बुधवार, 1 जनवरी 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष आनन्द स्वरूप मिश्रा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख








स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी साहित्य में मुरादाबाद के कथाकार आनन्द स्वरूप मिश्रा ने अपनी एक अलग पहचान स्थापित की है । आपने  शताधिक  कहानियों और उपन्यासों की रचना कर हिन्दी कथा सहित्य में एक उल्लेखनीय योगदान दिया है।

     श्री मिश्रा का जन्म 14 अगस्त 1943 को मुरादाबाद के लाईनपार क्षेत्र में हुआ । आपके पिताश्री ब्रज बिहारी लाल मिश्रा रेलवे विभाग में विद्युत इंजीनियर के पद पर थे। आपके पितामह श्री गुलजारी लाल मिश्रा भी रेलवे विभाग में थे। चार भाइयों एवं तीन बहनों में उनका स्थान छठा था । उनके तीनों भाइयों के नाम आत्म स्वरूप  

मिश्रा, ब्रह्म स्वरूप मिश्रा और ज्योति स्वरूप मिश्रा थे।

    आपकी प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा बरेली और देहरादून में हुई। वर्ष 1955 में मुरादाबाद नगर के केजीके इण्टर कालेज से हाईस्कूल एवं हिन्दू इण्टर कालेज से वर्ष 1957 में इण्टरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण कर उच्च शिक्षा प्राप्ति हेतु बी एससी की परीक्षा उत्तीर्ण की। वर्ष 1961 में हिन्दी विषय से स्नातकोत्तर उपाधि ग्रहण करने के पश्चात् उन्होंने विधि कक्षा में  प्रवेश ले लिया। प्रथम वर्ष की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् ही वर्ष 1962 में उनकी नियुक्ति डिफेन्स विभाग में हो गयी लेकिन उनका मन वहां नहीं रमा और वर्ष 1963 में त्यागपत्र देकर पुनः मुरादाबाद आ गये। वर्ष 1964 में उन्होंने बीटी परीक्षा उत्तीर्ण की तथा उनकी नियुक्ति सरस्वती इण्टर कालेज नजीबाबाद में अध्यापक के रूप में हो गयी। 

  वर्ष 1966 से 1968 तक केजीके इंटर कॉलेज मुरादाबाद, वर्ष 1968 से 69 तक सनातन धर्म इण्टर कालेज, रामपुर में उन्होंने अध्यापन कार्य किया । वर्ष 1969 में उनकी नियुक्ति मुरादाबाद के महाराजा अग्रसेन इण्टर कालेज में हो गयी ।

   वर्ष 1963 में जब वह डिफेन्स विभाग में सेवारत थे। तब उनका विवाह शाहजहाँपुर के प्रसिद्ध चिकित्सक की पुत्री सरोज मिश्रा के साथ 15 जून 1963 को सम्पन्न हो गया । आपके तीन पुत्र विपिन मिश्रा, अमित मिश्रा और डॉ अजय मिश्रा हैं ।एक पुत्री  नीलम मिश्रा की मृत्यु वर्ष 2009 में हो चुकी है।

    विद्यार्थी जीवन में देवकीनन्दन खत्री की चंद्रकांता संतति, बंगला कथाकार रवीन्द्र नाथ टैगोर तथा बंकिम चन्द्र की कहानियाँ पढ़ते-पढ़ते उनकी रुचि भी कहानी लेखन हेतु जागृत हो गयी और उन्होंने कहानी लिखना आरम्भ कर दिया। मेरठ में शिक्षाध्ययन के दौरान वह वीरेन्द्र कुमार गौड़ के सम्पर्क में आये तथा उनके साथ ही सूरज कुण्ड पर एकान्त में बैठकर कहानियों के प्लाट सोचकर लेखन करते थे ।

  इसके अतिरिक्त ओम प्रकाश शर्मा, कैलाश मिश्र, बनफूल सिंह, शिव अवतार सरस, मनोहर लाल वर्मा, दयानन्द गुप्त, शांतिप्रसाद दीक्षित, रमेश चन्द्र शर्मा विकट तथा आनन्द प्रकाश जैन उनकी मित्र मण्डली में रहे ।

  उनकी पहली कहानी का प्रकाशन नगर से प्रकाशित होने वाले पत्र में वर्ष 1956 में 'मुरझाया पुष्प' शीर्षक से हुआ । तत्पश्चात् चित्रकार साप्ताहिक (दिल्ली), छात्र संगम, मासिक (मेरठ), प्रगति मासिक (मेरठ), लोकधाता साप्ताहिक (रामपुर), देशवाणी दैनिक (मुरादाबाद), भारत दर्पण साहित्यिक (मेरठ), साथी मासिक (मुरादाबाद), अरुण मासिक (मुरादाबाद), आदर्श कौमुदी (चंदक, बिजनौर), सरिता (दिल्ली) तथा हरिश्चन्द्र बन्धु (मेरठ) आदि विभिन्न पत्र–पत्रिकाओं में आपकी कहानियाँ प्रकाशित हुईं। 

मुरादाबाद से प्रकाशित मासिक पत्र 'अरुण' में प्रकाशित ' बराबर बाजी', 'टूटती  कड़ियां (अगस्त, 1974), एक सुलगती हुई बाती (सितम्बर, 1975), कालिख (नवम्बर 1974), मेरठ की पत्रिका में 'अनाथालय (1960), यात्रा के पन्ने (1961), चित्रकार में प्रकाशित विद्रोह की चिंगारी (दिसम्बर 1956) भारत-दर्पण में प्रकाशित 'मृत्यु की घड़ी ( सितम्बर 1958), जलती चिंगारी (सितंबर 1960) छात्र संगम में अभिनय ( नवम्बर 1960), चुनाव की चाय, ज्योत्सना में प्रकाशित क्या उसने कारण पूछा था (1970), उलझन (1971), जीवन की दौड़ (1972), एक बलिदान और (1991), उसका अधिकार (1976), साथी में प्रकाशित पासा पलट गया, उम्मीद के सितारे, देवता, हरिश्चन्द्र बन्धु में प्रकाशित त्रिभुज का नया बिन्दु, उलझता सुलझता जीवन ( अप्रैल 1988), शाप का अंत (1990), खोटा सिक्का, एक नया सीरियल आदि उल्लेखनीय है।

   स्वतंत्र रूप से  उनकी पहली कृति उपन्यास के रूप में 'अलग अलग राहें (1962) पाठकों के समक्ष आई। दूसरा उपन्यास प्रीत की रीत (1969), तीसरा उपन्यास अंधेरे उजाले प्रकाशित हुआ।  चौथा उपन्यास कर्मयोगिनी(1992), पांचवा उपन्यास चिरंजीव(1994) तथा छठा उपन्यास रजनी (2002) प्रकाशित हुआ। आपके तीन

कहानी संग्रह टूटती कड़ियाँ(1993), झरोखा(1996) तथा इंतजार (2003) प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त एक कविता संग्रह विस्मृतियांं (1997) प्रकाशित हुआ ।

    आपको अनेक संस्थाओं द्वारा समय समय पर सम्मानित भी किया गया। अभी बीती 8 सितंबर 2023 को रोटरी क्लब धामपुर इंडस्ट्रियल एरिया द्वारा आपको शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए मरणोपरांत सम्मान से विभूषित किया गया ।

    आपका निधन तीन अप्रैल 2005 को मुरादाबाद में सिविल लाइंस स्थित अपने आवास मिश्रा भवन में हुआ ।



✍️  डॉ मनोज रस्तोगी

संस्थापक

साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9456687822

   


शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' के तत्वावधान में 12 दिसंबर 2019 को हिमगिरि कॉलोनी स्थित 'गौरव सदन' में आयोजित सम्मान-अर्पण कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार आनन्द 'गौरव' को हस्ताक्षर साहित्य-साधक सम्मान

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' के तत्वावधान में  गुरुवार 12 दिसंबर 2019 को हिमगिरि कॉलोनी स्थित 'गौरव सदन' में सम्मान-अर्पण कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार आनन्द कुमार गौरव को 'हस्ताक्षर साहित्य-साधक सम्मान' से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर संस्था की ओर से उन्हें  सम्मान-पत्र, अंग वस्त्र, प्रतीक चिह्न एवं श्रीफल भेंट किया गया।

     इस अवसर पर संस्था के सह संयोजक राजीव 'प्रखर' ने गौरव जी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर केन्द्रित आलेख का वाचन करते हुए कहा कि 'गौरव जी हिन्दी साहित्य के बड़े हस्ताक्षर हैं जिनके 2 उपन्यास 'थका हारा सुख' और 'आंसुओं के उस पार' 2 गीत संग्रह 'मेरा हिन्दुस्तान कहां है' और 'सांझी सांझ' एक कविता संग्रह 'शून्य के मुखौटे' प्रकाशित हो चुके हैं।' 

    उल्लेखनीय है कि संस्था हस्ताक्षर की ओर से मुरादाबाद के वरिष्ठ एवं वयोवृद्ध साहित्यकारों को उनके जन्म दिवस‌ पर उनके आवास पर जाकर सम्मानित किए जाने की परंपरा में अब तक शिव अवतार रस्तोगी 'सरस', सुरेश दत्त शर्मा 'पथिक',  एस.पी. सक्सेना 'सूर्य', आर.पी.गहोई, राम दत्त द्विवेदी एवं ज़मीर दरवेश को सम्मानित किया जा चुका है। कार्यक्रम का शुभारंभ डा. प्रेमवती उपाध्याय  द्वारा प्रस्तुत माँ शारदे की वंदना से हुआ।

   कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा, " आनंद गौरव की कविता एक बाइस्कोप की तरह है जो न केवल अपने समय के परिदृश्य को परत दर परत खोलकर दिखाती है, वरन वह अपने समय का पोस्टमार्टम करते हुए सत्य मानवता नैतिकता की हत्या के यथार्थ के कारकों और कारणों की पड़ताल भी करती है।' 

मुख्य अतिथि विख्यात शायर ज़मीर दरवेश ने कहा कि 'आनंद गौरव के गीत तो विलक्षण होते ही हैं, उनकी ग़ज़लें भी अपनी एक अलग अदबी हैसियत रखती हैं।'

अतिविशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डा. अजय अनुपम ने कहा कि " गौरव जी आज के समय के महत्वपूर्ण रचनाकार हैं जिन्होंने जितना समृद्ध काव्य सृजन किया है उतना ही दस्तावेज़ी गद्य लेखन भी किया है।"

विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई ने कहा कि ' गौरव जी की कहानियां अपने समय की विद्रूप स्थितियों को उजागर करने वाले विषय उठाती हैं, वहीं संवेदना के चरमोत्कर्ष पर पहुँच कर पाठकों को उद्वेलित करती हैं। "

कार्यक्रम में सम्मानित साहित्यकार आनन्द गौरव ने रचना-पाठ करते हुए कहा-

"नगर-नगर गाँव-गांव

धूप-धूप छांव-छांव

बंजारा बन भटका मन"


"बिकने के चलन में

जहाँ चाहतें उभारों में हैं

हम उन बाजारों में हैं"


"जाने क्यों छिपे हुए हैं हम

खिड़कियों पर झुके हुए हैं हम"

कार्यक्रम का संचालन संस्था के संयोजक योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने किया तथा आभार-अभिव्यक्ति संस्था के सह संयोजक राजीव 'प्रखर' द्वारा प्रस्तुत की गई। कार्यक्रम में सर्वश्री विवेक निर्मल, श्रीकृष्ण शुक्ल, मनोज मनु, डा. मनोज रस्तोगी, डा. पूनम बंसल, डॉ.कृष्ण कुमार नाज़, डॉ. प्रेमवती उपाध्याय, ज़िया ज़मीर आदि उपस्थित रहे।































गुरुवार, 12 दिसंबर 2019

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सोमवार, 2 दिसंबर 2019

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम के तत्वावधान में संस्था के संस्थापक कीर्तिशेष साहित्यकार राजेंद्र मोहन शर्मा श्रृंग जी की पुण्यतिथि के अवसर पर एक दिसंबर 2019 को आयोजित समारोह में साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी को 'राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग स्मृति साहित्य साधक सम्मान' से किया गया सम्मानित

 मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम के तत्वावधान में संस्था के संस्थापक कीर्तिशेष साहित्यकार राजेंद्र मोहन शर्मा श्रृंग जी की पुण्यतिथि के अवसर पर रविवार एक दिसंबर 2019 को आयोजित समारोह में महानगर के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी को 'राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग स्मृति साहित्य साधक सम्मान' से सम्मानित किया गया। सम्मान स्वरूप उन्हें मानपत्र, अंगवस्त्र, प्रतीक चिह्न, श्रीफल एवं सम्मान-राशि भेंट की गई। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात साहित्यकार  माहेश्वर तिवारी ने की। मुख्य अतिथि महाराजा हरिश्चन्द्र महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ मीना कौल एवं विशिष्ट अतिथि  सागर तरंग प्रकाशन के संचालक साहित्यकार  अशोक विश्नोई, श्री रामदत्त द्विवेदी, प्रख्यात हास्य व्यंग्य कवि डॉ मक्खन 'मुरादाबादी' एवं श्रीमती शिखा रस्तोगी रहे। माँ शारदे की वंदना  मयंक शर्मा ने प्रस्तुत की तथा संचालन संयुक्त रूप से सुप्रसिद्ध नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' एवं संस्था के कार्यकारी महासचिव राजीव 'प्रखर' ने किया।

राजीव 'प्रखर' द्वारा सम्मानित साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित आलेख का वाचन किया गया।

 माहेश्वर तिवारी ने कहा कि डॉ मनोज रस्तोगी  ने  अपनी लेखनी के माध्यम से हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता को एक नया आयाम दिया है। मुरादाबाद के साहित्यकारों पर किया गया उनका शोधकार्य अत्यंत महत्वपूर्ण है। डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि सोशल मीडिया के जरिये डॉ मनोज रस्तोगी मुरादाबाद के साहित्य को वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में प्रयासरत हैं । डॉ मीना कौल ने कहा कि डॉ मनोज रस्तोगी मुरादाबाद की साहित्यिक विरासत को सहेजने का बहुमूल्य कार्य कर रहे हैं । अशोक विश्नोई ने कहा कि डॉ मनोज रस्तोगी के पास मुरादाबाद के साहित्य का अमूल्य भंडार है । इतिहासकार डॉ अजय अनुपम ने कहा कि  डॉ मनोज रस्तोगी मुरादाबाद के साहित्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विरासत व इतिहास को उजागर करते हुए उसे नई पीढ़ी तक पहुंचाने का सराहनीय कार्य कर रहे हैं ।

वक्ताओं ने स्मृतिशेष श्री राजेन्द्र मोहन जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर भी प्रकाश डाला ।

  इस अवसर पर काव्य-गोष्ठी का आयोजन भी किया गया जिसमें जितेन्द्र कुमार जौली (सचिव, हिन्दी साहित्य संगम), नेपाल सिंह पाल, मोनिका मासूम, हेमा तिवारी भट्ट, मीनाक्षी ठाकुर, रामवीर सिंह वीर, अशोक विद्रोही, राशिद मुरादाबादी, राजीव 'प्रखर', मनोज 'मनु', योगेन्द्र वर्मा व्योम, रवि चतुर्वेदी, शिशुपाल 'मधुकर', वीरेंद्र 'ब्रजवासी', रामवीर सिंह 'वीर', रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ, ज़िया ज़मीर, डॉ० अजय 'अनुपम', राम दत्त द्विवेदी, मयंक शर्मा, अशोक विश्नोई, डॉ० मीना कौल, माहेश्वर तिवारी, डॉ मनोज रस्तोगी आदि ने काव्य पाठ किया। संस्था के अध्यक्ष श्री रामदत्त द्विवेदी ने आभार-अभिव्यक्त किया।