शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई का शाहजहांपुर में होगा सम्मान

मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई को जनपद शाहजहांपुर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्था प्रेरणा द्वारा शिवकुमार शिवांशु स्मृति सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। उन्हें यह सम्मान उनके वर्ष 2018 में प्रकाशित कविता संग्रह स्पंदन के लिए दिया जाएगा।
 संस्था के संस्थापक विजय तन्हा के अनुसार यह समारोह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित श्री रामसेवक शुक्ल के 115 वें जन्मदिवस श्री रामनवमी 2 अप्रैल को पुवायां शाहजहांपुर में आयोजित किया जाएगा । समारोह में श्री विश्नोई के अतिरिक्त डा . ब्रजेश कुमार मिश्र  (मुजफ्फरनगर) को 'गीत मैं गाता रहा' गीत संग्रह के लिए डा. गिरिजानन्दन त्रिगुणायत आकुल स्मृति सम्मान, डा ओम प्रकाश हयारण दर्द  (झांसी) को 'अतीत की परछाइयां' गीत संग्रह के लिए गंगाधर मिश्र गंग स्मृति सम्मान, डा. महेश चंद्र  (दिल्ली) को
 'तेरी पीड़ा है नदी' दोहा संग्रह के लिये कबीर दास स्मृति सम्मान, डा. कमल कान्त तिवारी  (बरेली) को 'दर्पण मैं दिखलाता हूं' गीत एवं कविता संग्रह के लिए अग्निवेश शुक्ल स्मृति सम्मान , आचार्य भगवत दुबे  (जबलपुर) को 'भूखे भील गए' नवगीत संग्रह के लिए सुदामा पाण्डेय धूमिल स्मृति सम्मान , श्री अनुराग मिश्र गैर (अंबेडकरनगर) को 'खेत के पांव' ग़ज़ल संग्रह के लिए दुष्यन्त कुमार स्मृति सम्मान ,श्री ऋषिपाल धीमान  (अहमदाबाद) को 'तस्वीर लिख रहा हूं' गजल संग्रह के लिये दामोदर स्वरूप विद्रोही स्मृति सम्मान, श्री आत्म प्रकाश (अहमदाबाद) को
 'भर्तृहरि के तीन शतक' कुण्डलियाँ के लिए संत तुलसीदास स्मृति सम्मान, श्री बृजेश्वर सिंह त्यागी (मुजफ्फरनगर) को 'बया का घर' के लिए चरनजीत सिंह दारूवाला स्मृति सम्मान, श्री टिल्लन वर्मा  (उझानी) को 'शब्दों की मायानगरी' गजल संग्रह के लिए राजबहादुर विकल स्मृति सम्मान, श्री सुनील कुमार  (बहराइच) को ' खुशियों की तलाश में' कविता संग्रह के लिए रामधारी सिंह दिनकर स्मृति सम्मान , श्री नरेंद्र श्रीवास्तव (मध्य प्रदेश) को
'ये और बात है' कविता संग्रह के लिए हजारी प्रसाद द्विवेदी स्मृति सम्मान, श्री दिनेश चंद्र प्रसाद दिनेश (कोलकाता) को 'अगर इजाजत हो' कविता संग्रह के लिए गजानन माधव मुक्तिबोध सम्मान स्मृति सम्मान,  डॉ प्रतिमा कुमारी पाराशर  (बिहार) को 'अंतर्व्यथा शूर्पणखा की' खंडकाव्य के लिए विश्वनाथ त्रिपाठी व्यग्र स्मृति सम्मान, डा.  चित्रा जैन (उज्जैन) को  'अनुगूँज' कविता व गीत संग्रह के लिए राम कुमार मिश्र मधुकर स्मृति सम्मान, डॉ पुष्पा लता  (मुजफ्फरनगर) को एक और उर्मिला'  खंडकाव्य के लिए सुमित्रा नन्दन पंत स्मृति सम्मान , डा.  अर्चना प्रकाश  (लखनऊ) को 'भारत देश महान' कविता संग्रह के लिए सुभद्रा कुमारी चौहान स्मृति सम्मान, डा.  मीनाक्षी शर्मा लहर  (साहिबाबाद)को
 'अजनबी शहर'  गजल संग्रह के लिए राजकुमार शर्मा राज स्मृति सम्मान , श्रीमती विनय लक्ष्मी भटनागर  (चंडीगढ़) को 'भावों का पंछी' गीत संग्रह के लिए जयशंकर प्रसाद गुप्त स्मृति सम्मान, श्रीमती रजनी धीमान  (अहमदाबाद) को 'रोशनी है दांव पर'  ग़ज़ल संग्रह के लिए माखनलाल चतुर्वेदी स्मृति सम्मान, श्रीमती अमिता शुक्ला (पुवायाँ) को
'शब्दों की माला' कविता संग्रह के लिए मुंशी प्रेमचंद स्मृति सम्मान, श्रीमती रश्मि लता मिश्रा (छत्तीसगढ़) को 'मेरीअनुभूति' कविता संग्रह के लिये सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला सम्मान, श्रीमती जया मोहन  (प्रयागराज) को 'मेरी सतरंगी कविताएं' कविता संग्रह के लिए कृष्ण कुमार मिश्र अचूक स्मृति सम्मान,  श्रीमती  विनीता शुक्ला  (लखनऊ) को 'एक्वेरियम की मछलियां' कविता संग्रह के लिए मैथिली शरण गुप्त स्मृति सम्मान, श्रीमती विजया गुप्ता (मुजफ्फरनगर) को 'एक सिन्दूरी शाम' गीत संग्रह के लिये बदरी विशाल स्मृति सम्मान,  श्रीमती रेखा लोढ़ा स्मित  (भीलवाड़ा) को 'रोशनी है दांव पर' ग़ज़ल संग्रह के लिए महादेवी वर्मा स्मृति सम्मान, श्रीमती नीलम रानी गुप्ता (बरेली) को।'रुह से कविता' लंबी कविता के लिए पंकज वरुण स्मृति सम्मान से सम्मानित किया जाएगा ।

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ पूनम बंसल का गीत -- इस बदलते समय की यही रीत है सामने सच खड़ा झूठ की जीत है.... ....


गुरुवार, 20 फ़रवरी 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई का कहना है - बनाये मूर्ख संसद को कलाकारी उसी में है ...


मुरादाबाद के शायर रिफ़त मुरादाबादी कहते हैं -- पाकीजा दामन को जो करते हैं तार तार ,उनको सजा ए मौत सरेआम दीजिये ....


मुरादाबाद के शायर डॉ मुजाहिद फराज का कहना है - बहुत कठिन है हिमायत में बोलना सच की ...


मुरादाबाद के शायर मंसूर उस्मानी कहते हैं -- मैंने तो जिंदगी को तेरे नाम कर दिया , अब मुझको तो इंतजार तेरे फैसले का है ...


मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार यशभारती माहेश्वर तिवारी के नवगीत


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की गजल


मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट का गीत


मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार यशभारती माहेश्वर तिवारी के नवगीतों पर केंद्रित योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' का आलेख

इस सदी का गीत हूँ मैं...

भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित हिंदी गीत के प्रतिष्ठित समवेत संकलन ‘पाँच जोड़ बांसुरी’ के संपादक डा. चन्द्रदेव सिंह ने कहा है कि ‘आज का गीत न तो लोक जीवन से विमुख है और न ही नागरिक जीवन से उपेक्षित, न तो राष्ट्र की भौगोलिक सीमाओं से बद्ध है और न ही अंतर्राष्ट्रीय स्थितियों से तटस्थ। नया गीतकार अपने परिवेश के प्रति सजग तथा अस्तित्व के प्रति व्यापक रूप से सतर्क है। वर्तमान में हिंदी गीतों की संवेदना जन-जन के मर्म को छूती है। इनमें निजता भी है और लोक जीवन भी, युग चेतना है पर दिखावटी बौद्धिकता नहीं।’ आज के जिस गीत की बात डा. चन्द्रदेव सिंह ने की है वह नवगीत ही तो है जिसमें समसामयिक संदर्भ भी हैं और जीवन-मूल्य भी। अपने जन्म से लेकर आज तक की नवगीत की यात्रा में अनेक महत्वपूर्ण पड़ाव आए और अनेक रचनाकार हुए जिन्होंने अपने रचनाकाल में अपनी रचनाधर्मिता के माध्यम से नवगीत के क्षेत्र में नये-नये कीर्तिमान स्थापित किए।
महाकवि निराला से आरंभ हुई नवगीत की यह सात्विक यात्रा आज भी अनवरत चल रही है, इस यात्रा में नवगीत को उत्तरोत्तर समृद्ध करने वाले महत्वपूर्ण नवगीत-साधकों में वीरेन्द्र मिश्र, उमाकांत मालवीय, शलभ श्रीराम सिंह, शंभूनाथ सिंह, शिवबहादुर सिंह भदौरिया, देवेन्द्र शर्मा ‘इन्द्र’, गुलाब सिंह, विद्यानंदन राजीव, कैलाश गौतम, नईम, नचिकेता, कुमार रवीन्द्र, डा. शान्ति सुमन, मधुकर अष्ठाना, वीरेन्द्र ‘आस्तिक’, अबधविहारी श्रीवास्तव सहित अनेक प्रमुख रचनाकार रहे हैं जिन्होंने नवगीत की रचनाधर्मिता को उजली दिशा प्रदान करने के साथ-साथ उसे नया स्वरूप भी दिया और भाषाई सहजता भी। इसी भाषाई सहजता व आंचलिक मिठास की चर्चा हिन्दी साहित्य में जब-जब नवगीत की संवेदना और युगीन संदर्भों के साथ होती है, हिन्दी नवगीत के महत्वपूर्ण और अद्भुत हस्ताक्षर श्री माहेश्वर तिवारी के सृजनात्मक उल्लेख के बिना न तो वह पूर्ण होती है और ना ही उस चर्चा का कोई महत्व रहता है। इसे सुप्रसिद्ध गीतकवि डॉ0 बुद्धिनाथ मिश्र के शब्दों में कहा जाये तो अधिक उचित होगा-‘माहेश्वर तिवारी हिन्दी नवगीत विधा के बरहम बाबा हैं। जैसे गाँव का कोई शुभकार्य बरहम बाबा की प्रदक्षिणा किए बिना आरंभ नहीं किया जाता, ठीक उसी तरह हिन्दी नवगीत की चर्चा भी माहेश्वर तिवारी के बिना पूरी नहीं हो सकती है।’
      उ0प्र0 के बस्ती जनपद में जन्मे तथा वर्तमान में मुरादाबाद के साहित्यिक पर्याय श्री माहेश्वर तिवारी का सृजन-संसार अपने समकालीन परिवेश एवं लोक मानस से निरंतर जुड़ा रहता है, यही कारण है कि उनकी रचनाओं में प्रयुक्त आंचलिक शब्द, मुहावरे और जीवन-जगत से जुड़े अनूठे प्रयोग उन्हें अन्य नवगीतकारों में एक अलग विशेष पहचान दिलाते हैं और उनके नवगीत अपनी विशेष रचना-दृष्टि, अछूते बिंबों और स्वस्थ कथ्य के चलते पाठकों और श्रोताओं के मन को भीतर तक छूते भी हैं और मन-मस्तिष्क पर छाते भी हैं। उनके नवगीतों में भारतीयता की सांस्कृतिक सुगंध अपने समय के युगबोध और मूल्यबोध के साथ उपस्थित है, कथ्य और शिल्प में प्रयोगवादी स्वर है तो नवता के साथ। उन्होंने अपने नवगीतों में वर्तमान परिवेश के लगभग हर पहलू को सार्थक अभिव्यक्ति दी है, चाहे राजनीति का विद्रूप चेह्रा हो, व्यवस्थाओं की अव्यवस्थित स्थिति हो, आम-आदमी की विवशताओं का चित्रण हो या फिर सामाजिक विषमताएँ हों-
‘बर्फ होकर
जी रहे हम तुम
मोम की जलती इमारत में
इस तरह
वातावरण कुहरिल
धूप होना
हो रहा मुश्किल
जूझने को
हम अकेले हैं
एक अंधे महाभारत में’
नवगीत ने हमेशा अपने समय के अधुनातन संदर्भों के यथार्थ को मुक्तछंद की कविताओं के समांतर ही उजागर किया है। कविता में यथार्थ का अर्थ सपाटबयानी या समाचार-वाचन नहीं होता, सच्ची कविता में यथार्थ की उपस्थिति भी अपनी संवेदनशीलता और काव्यत्व की ख़ुशबू के साथ होती है। श्री तिवारी के नवगीतों में यथार्थ का चित्रण इसी काव्यत्व की ख़ूबसूरती के साथ प्रस्तुत किया गया है। यह आम धारणा के साथ-साथ कड़ुवी सच्चाई भी है कि आज के समय में राजनीति के क्षेत्र में वही व्यक्ति सफल है या हो सकता है जो छल-छंद, मक्कारी, दबंगई और अनैतिक चातुर्य में निपुण हो। राजनीति के ऐसे ही विद्रूप पक्ष को अपनी पंक्तियों में श्री तिवारी प्रभावी रूप से व्यक्त करते हुए मंथन करने पर विवश करते हैं-
‘सुन रहा हूँ
शेर की खालें दिखाकर
मेमने कुछ फिर किसी
मुठभेड़ में मारे गए
फिर हवा ने
मुखबिरी की चंद फूलों की
और बन आई
खड़े काले बबूलों की
कई कागज लिए बादामी
गाँव को जब
चंद हरकारे गए’
एक अन्य नवगीत में भी श्री तिवारी अपने मन की इन्हीं पीड़ाओं को प्रतीकों के माध्यम से बहुत ही प्रभावशाली रूप से अभिव्यक्त करते हुए साम्राज्यवादी नीतियों के ख़तरों के प्रति आगाह करते हैं-
‘आने वाले हैं
ऐसे दिन आने वाले हैं
जो आँसू पर भीे
पहरे बैठाने वाले हैं
आकर आसपास भर देंगे
ऐसी चिल्लाहट
सुन न सकेंगे हम अपने ही
भीतर की आहट
शोर-शराबे ऐसा
दिल दहलाने वाले हैं’
आज तथाकथित कुछ सुख-सुविधाओं की तलाश में आदमी का वास्तविक सुख-चैन ख़त्म हो गया है। कभी किसी कारण से तो कभी किसी कारण से दिन-रात तनावग्रस्त रहना और चिन्ताओं की भट्टी में पल-पल गलते रहना उसकी नियति बन गई है। महानगरीय जीवन में व्याप्त इन्हीं विद्रूपताओं और विसंगतियों से व्यथित श्री तिवारी गाँव वापस लौटने की आत्मीयता से लबालब गुहार लगाते हैं क्योंकि कवि को लगता है कि शहर की तुलना में गाँव का जीवन अधिक सरल और सुकून भरा है-
‘चिट्ठियां भिजवा रहा है गाँव
अब घर लौट आओ
थरथराती गंध
पहले बौर की कहने लगी है
याद माँ के हाथ
पहले कौर की कहने लगी है
थक चुके होंगे सफर में पाँव
अब घर लौट आओ’
श्री तिवारी हिन्दी नवगीत के एक समर्थ रचनाकार हैं। उनके रचना कर्म का कैनवास बहुत विस्तृत है, मुझे नहीं लगता कि उनकी लेखनी से कोई भी विषय छूटा हो। सामान्य सी बात है कि प्रेम का हर व्यक्ति से गहरा नाता होता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में जहाँ एक ओर अपने समय के यथार्थ को बड़ी ही संवेदनशीलता के साथ महसूस करते हुए उकेरा है वहीं दूसरी ओर काग़ज के कोरेपन की तरह पवित्र प्रेम को भी मिठास की खुशबू भरे शब्द दिए हैं। हिन्दी गीति-काव्य में प्रेमगीतों का भी अपना एक स्वर्णिम इतिहास रहा है, छायावादोत्तर काल में विशेष रूप से। श्री तिवारी के प्रेम की चाशनी में पगे गीतों में भी वही परंपरागत स्वर अपनी चुम्बकीय शक्ति के साथ विद्यमान है लेकिन नवता की मिठास के साथ-
‘डायरी में
उँगलियों के फूल से
लिख गया है
नाम कोई भूल से
सामने यह खुला पन्ना
दिख गया हो
कौन जाने आदतन ही
लिख गया हो
शब्द जो
सीखे कभी थे धूल से’
श्री तिवारी का एक गीत जो रचा तो गया सन् 1964 में लेकिन आज आधी सदी बीत जाने बाद भी उतना ही ताज़गी भरा लगता है जितना रचे जाने के समय होगा। यह गीत केवल चर्चित ही नहीं हुआ बल्कि उनकी पहचान का गीत भी बना-
‘याद तुम्हारी जैसे कोई
कंचन-कलश भरे
जैसे कोई किरन अकेली
पर्वत पार करे
लौट रही गायों के संग-संग
याद तुम्हारी आती
और धूल के संग-संग मेरे
माथे को छू जाती
दर्पण में अपनी ही छाया-सी
रह-रह उभरे
जैसे कोई हंस अकेला
आँगन में उतरे’
हिन्दी के विख्यात गीतकवि स्व. भवानीप्रसाद मिश्र को यह गीत बहुत पसंद था, उन्होंने होशंगाबाद के एक कवि सम्मेलन में इस गीत की और गीत के रचयिता की आधे घंटे तक प्रशंसा की और यही गीत सुनाने का आग्रह किया। एक बार एक कविसम्मेलन में श्री तिवारी ने यही गीत सुनाया, कविसम्मेलन के पश्चात एक बुजुर्ग व्यक्ति श्री तिवारी के पास आए और बोले कि तिवारी जी जब किरन अकेली पर्वत पार कर रही थी तो आप उसके साथ नहीं थे क्या? उन बुजुर्ग की बात सुनकर श्री तिवारी ठहाका लगाकर हँस पड़े।
पंडित रमानाथ अवस्थी जी का प्रसिद्ध गीत है-‘मेरी रचना के अर्थ बहुत से हैं/जो भी तुमसे लग जाए लगा लेना’ मैं समझता हूँ कि अवस्थी जी की उपर्युक्त पंक्तियाँ श्री तिवारी के रचनाकर्म को संक्षेप में पूर्णतः व्याख्यायित करती हैं। नवगीतांे के शिल्प, भाव, कथ्य और सन्दर्भ में वैविध्य ही उनकी पूँजी है। लगभग सभी विषयों सन्दर्भों को उनके नवगीत आत्मसात करते हुए श्रोताओं से, पाठकों से सीधा संवाद करते हैं। उनके नवगीत ज़मीन से जुड़कर तो बात करते ही हैं, हमें ऐसे दिवालोक में भी ले जाते हैं जहाँ ‘खिलखिलाते हैं/नदी में/जंगलों के गेह’, ‘दूर तक फैला हुआ तट/चाँदनी में सो गया है’, ‘डालों से उलझी है शाम/कनेरों वाली मुंडेरों पर’, ‘किसी स्वेटर की तरह/बुनकर/दिशाएँ खुल गई हैं’, ‘मटर की ताज़ी फलियों से दिन’ और ‘कच्ची अमिया की फांकों-सी आँखें’ हैं। शायद ही किसी ने पत्तियों को ताली बजाते देखा हो, श्री तिवारी के नवगीतों में पत्तियां भी ताली बजाती हैं-
‘पेड़ का
गाना सुना है क्या
पत्तियां
ताली बजाती हैं
और
सुर में सुर मिलाती हैं
यह कभी
हमने गुना है क्या’
विख्यात साहित्यकार श्री दयानन्द पाण्डेय के शब्दों में कहें ‘माहेश्वर तिवारी के गीतों की मिठास में हम झूम-झूम जाते हैं। फिर जब इन गीतों को माहेश्वर तिवारी का सुरीला कंठ भी मिल जाता है तो हम इन में डूब-डूब जाते हैं। इन गीतों की चांदनी में न्यौछावर हो-हो जाते हैं। माहेश्वर तिवारी हम में और माहेश्वर तिवारी में हम बहने लग जाते हैं। माहेश्वर तिवारी के गीतों की तासीर ही ऐसी है। करें तो क्या करें?’ स्वयं श्री तिवारी भी कहते हैं-
‘सिर्फ़ तिनके-सा न दाँतों में दबाकर देखिए
इस सदी का गीत हूँ मैं, गुनगुनाकर देखिए’
यश भारती सहित अनेकानेक सम्मानों से समादृत श्री तिवारी के रचना-संसार में नवगीतों के अनेकानेक बहुमूल्य रत्न हैं। उनके एक-एक नवगीत के संदर्भ में बात की जाए तो हर नवगीत पर एक आलेख तैयार हो सकता है। श्री तिवारी के रचनाकर्म के संदर्भ में कुछ भी लिख पाना विख्यात शायर स्व. कृष्ण बिहारी ‘नूर’ के इस शे’र जैसा ही है-
‘लब क्या बतायें कितनी अज़ीम उसकी जात है
 सागर को सीपियों से उलीचने की बात है’

- योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
 ए.एल.-49, उमा मेडिकल के पीछे,
 दीनदयाल नगर-।, काँठ रोड,
मुरादाबाद (उ0प्र0)
चलभाष- 9412805981






बुधवार, 19 फ़रवरी 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज कुमार मनु का कहना है - फिर मनुहार की बातें चलेंगी ...


मुरादाबाद के शायर सैयद हाशिम मुरादाबादी का कहना है -- आस्तीनों में अगर सांप न पाले होंगे ....


मुरादाबाद के शायर कशिश वारसी का कहना है --हमारे कौम के रहबर कहां कहां टूटे ....


मुरादाबाद के साहित्यकार राहुल शर्मा का कहना है -भले सच बोलिये लेकिन अदाकारी जरूरी है ....


मुरादाबाद के साहित्यकार अंकित गुप्ता अंक कहते हैं - चुप्पी से बस बैर बढ़ाया जा सकता है ...


मुरादाबाद के शायर तहसीन अहमद मुरादाबादी कहते हैं --दुनियाभर में सबसे प्यारा भारत देश हमारा है ....


मुरादाबाद मंडल के सिरसी (सम्भल) के साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा

 # मनचले                                     
  उन मनचलों का रोज का दस्तूर था कि शाम को सैर पर निकलते तो आती जाती लड़कियों व महिलाओं पर फब्तियां कसते और खुश होते जुमेरात को भी वो रोजाना की तरह सिगरेट के कश लगाते हुए फब्तियां कस रहे थे तभी सामने से कुछ लड़कियां काले बुर्के पहने आती दिखाई दी अपनी आदत के मुताबिक तीनो मनचलों ने उन पर फब्तियां कसनी शुरू कर दी कोई उन्हें पास आने की दावत  दे रहा था तो कोई चेहरा दिखाने की गुजारिश कर रहा था तो कोई आहे भर रहा था लेकिन यह क्या वह बुर्कापोश लडकिया तो उन्ही की तरफ आने लगी तीनो मनचले खुश होने लगे लेकिन लड़कियों ने उनके पास आकर जब नकाबे उल्टी तो मनचलों के  चेहरे फक हो गये यह तो उनकी ही बहने थी जो दरगाह पर मन्नत मांगकर वापस घर जा रही थी
**कमाल ज़ैदी 'वफ़ा', सिरसी (सम्भल)
मोबाइल फोन नंबर 9456031926

मुरादाबाद के साहित्यकार पंकज दर्पण अग्रवाल की लघुकथा

**भूल
आज वो आफिस से लौटने में लेट हो गयी थी । अंधेरा होने लगा था- सड़क सुनसान थी।
वो सहमी सहमी तेज़ कदमो से अपने घर के लिये कदम बढ़ाने लगी। तभी उसे अपने  पीछे  4-5 लोग अपनी ही तरफ आते दिखे तो चैन की सांस ली कि चलो अब सड़क सूनी नही है। लेकिन ये क्या- उन्होंने तो अब फिकरे ही कसने शुरू कर दिए । कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या करे कि तभी उसे एक पुलिस चौकी दिखाई दी।
वो तेज़ी से पुलिस चौकी में घुस गयी लेकिन..
लेकिन यही उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल थी।
**पंकज दर्पण अग्रवाल, मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की लघुकथा

*पश्चाताप*

"कमला!क्या तुमने टेबल पर रखा मेरा पर्स संभाला था?"

"नहीं दीदी,मैं तो झाड़ू पोछा कर के बर्तन धोने चली गयी थी।मैंने ध्यान भी नहीं दिया।"

"अच्छा ....पता नहीं पर्स कहाँ रख दिया मैंने?ठीक है,अभी तू जा।मैं ढूँढ़ लूँगी,यहीं कहीं होगा।"

कमला के जाते ही भीतर के कमरे से रवि लॉबी में दाखिल हुआ,"अरे इस चोर को ऐसे ही क्यों जाने दिया?जब तुमने खुद उसे पैसे निकालते देख लिया है तो फिर अनजान होने का नाटक क्यों?"

"रवि...!कमला पैदायशी चोर नहीं है।कितने सालों से वह हमारे यहाँ काम कर रही है।कभी कोई नुकसान हुआ?....लापरवाही मैंने की है।मुझे उसके माँगने पर रुपयों के लिए मना नहीं करना चाहिए था।वह बहुत जरूरत में थी और सामने नोटों का बण्डल।मन डोल गया होगा।फिर कई गुलाबी नोटों में से केवल एक नोट निकाला।"

"क्या मतलब  है इसका?"

"यही कि उससे गलती हुई है,अपराध नहीं।अगर मैं उसे सजा देती तो शायद ही सुधार की गुंजाइश बचती।पर सजा न देकर उसके ज़मीर को जगा पाने की एक उम्मीद तो बची है।"

"अरे छोड़ो फिजूल की बातें।मैं पुलिस को फोन कर रहा हूँ,ये लातों के भूत होते हैं,ऐसे नहीं मानेंगे।"

"प्लीज रवि!बस एक बार मेरी बात मान लो।"वह लगभग गिड़गिड़ायी।

बाहर गेट के पास ड्रॉइंग रूम की दीवार की ओट में छिपकर सब सुन रही कमला की आँखों से झरझर आँसू गिर रहे थे।उसने पल्लू से बँधे नोट को निकाला और भीतर आकर मालकिन के पैरों में रख दिया।कान पकड़कर आँसू बहाती कमला को पश्चाताप का और कोई तरीका नहीं पता था।

✍ _हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद ✍

मुरादाबाद के साहित्यकार अखिलेश वर्मा की लघुकथा

परीक्षा

"देख ! देख ! गहनों से लदी है वो लाश.... पेड़ पर लटकी है तो शायद किसी ने नहीं देखी . हमारे दिन बदल जाएंगे यार इसके इतने सारे गहने बेचकर हम और हमारे बच्चों का भविष्य सुधर जाएगा ... मंदिर के पास बाढ़ का पानी उतर चुका है .. लोगों की आवाजाही शुरू होने से पहले ही हम भाग चलेंगे ।" हरीश ने रोशन से चहकते अंदाज़ में कहा।
       "अरे ! वो देखो ! इसकी कमर से बच्चा बँधा है .. इसे बचाने के लिए पहले पेड़ पर चढ़ी होगी फिर कमर से बाँध लिया होगा ... जिंदा है बच्चा अभी ।" रोशन गौर से लाश के करीब जाकर बोला ।
 "अरे छोड़ सब यार .. बच्चे को मत देख ...गहने उतार जल्दी से और भाग चल ।" हरीश उतावला सा होकर बोला।
"नहीं भाई ... वो औरत अपनी जान देकर अपने बच्चे को बचाकर परीक्षा में पास हो गई ... अगर हम इसके गहने लेकर बच्चे को छोड़ गये तो इंसानियत की परीक्षा में फेल हो जाएंगे ... अब हमारी परीक्षा है कि हम इस बच्चे को सहायता कैम्प तक पहुँचा दे और महिला की जानकारी भी दें ।" रोशन ने गंभीर स्वर में कहा ।

- अखिलेश वर्मा
  मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश द्वारा रचित नाटक

अधूरा यज्ञ
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   यह लगभग 5000 साल पहले का समय है ।अग्रोहा में प्रतापी राजा अग्रसेन का शासन है। महाराजा अग्रसेन अपने मंत्री के साथ राज्य का सघन दौरा करके लौटे हैं और चिंतित मुद्रा में हैं ।
                        दृश्य 1
 *मंत्री : महाराज ! जब से आप राज्य का दौरा करके लौटे हैं कुछ चिंतित से जान पड़ते हैं।
 *महाराजा अग्रसेन : हां मंत्री जी ! मेरा हृदय राज्य की व्यवस्था देख कर बहुत खिन्न महसूस कर रहा है ।
 *मंत्री : (आश्चर्य से) महाराज ! यह आप क्या कह रहे हैं ?  संपूर्ण पृथ्वी पर अग्रोहा से अच्छी राज्य- व्यवस्था कहीं नहीं है। आपके राज्य में लोग घरों और दुकानों पर बिना ताला लगाए चले जाते हैं। कोई चोरी डकैती रहजनी कहीं नहीं है। सर्वत्र कानून का शासन है ।अग्रोहा में कोई गरीब नहीं है ।धन की न्यूनतम आवश्यकताओं की दृष्टि से सभी समृद्ध हैं ।
 *महाराजा अग्रसेन : बात आर्थिक विकास की नहीं है । मैं जानता हूँ कि मेरे राज्य में सभी धनवान हैं । सब निर्भय हैं किसी का उत्पीड़न व शोषण नहीं होता है । मगर एक बात राज्य- भ्रमण के दौरान मैंने महसूस की है। राज्य में जन्म के आधार पर प्रजा के मध्य विभाजन की रेखाएँ खिंची हुई हैं।
 *मंत्री : महाराज ! मैं कुछ समझा नहीं।
महाराजा अग्रसेन : बात यह है कि राज्य के भ्रमण के दौरान मैंने पाया कि हमारे राज्य में अलग-अलग समुदाय अलग-अलग बस्तियों में रहते हैं । उनके बीच कोई झगड़ा तो नहीं है लेकिन फिर भी न जाने क्यों मुझे एक अदृश्य दीवार खिंची नजर आई ।
 *मंत्री : महाराज !यह तो हजारों साल से होता चला आया है। अलग-अलग समुदाय जन्म के आधार पर अलग-अलग वर्गों में बँटे रहते हैं ।लेकिन फिर भी आपके राज्य में तो भाईचारे की ऐसी सुंदर स्थिति है कि इसकी मिसाल समूचे भारतवर्ष में दी जाती है।
 *महाराजा अग्रसेन : जो हजारों साल से होता चला आया है, जरूरी तो नहीं है कि वही हमेशा चलता रहे। अगर राज्य में कोई विकृति दिखाई पड़ रही है तो राज्य शासन का यह कर्तव्य हो जाता है कि वह उसे दूर करे। प्रजा के मध्य जन्म के आधार पर विभाजन की दीवार मुझे सहन नहीं है। इस दीवार को ढहाना ही होगा ।
 *मंत्री : महाराज ! (कांपते हुए) यह नहीं हो सकता । जन्म के आधार पर सब अलग समुदायों में विभाजित हैं। वह एक कैसे हो सकते हैं ?  बस हम उन्हें विकास की समान सुविधाएं ही उपलब्ध करा सकते हैं।
 *महाराजा अग्रसेन : देखिए मंत्री जी ! मैंने तय कर लिया है कि मैं दरबार बुलाऊँगा और उसमें इस समस्या को रखा जाएगा, ताकि इसका समाधान ढूँढा जाए । आप दरबार की तिथि की घोषणा कीजिए ।
 *मंत्री : ( सिर झुकाकर) जी महाराज ! जैसी आपकी आज्ञा। वैसे महाराज ,मेरी राय फिर भी यही है कि जन्म के आधार पर तो विभाजन ईश्वर निर्मित है । उसे समाप्त करने का प्रयत्न ....
 *महाराजा अग्रसेन : मंत्री जी ! दरबार की तिथि घोषित कीजिए।
 *मंत्री : जी महाराज ....
                (फिर पर्दा गिर जाता है ।)
                     दृश्य दो
   अग्रोहा का दरबार सजा हुआ है। प्रमुख दरबारीगण चमचमाती पोशाकों को पहने हुए सुंदर आसनों पर विराजमान हैं । महाराजा अग्रसेन सिंहासन पर सधी हुई मुद्रा में विराजमान हैं।
 *मंत्री  : माननीय अग्रोहा नरेश ,प्रजावत्सल, न्यायमूर्ति महाराजा अग्रसेन की जय हो। अग्रोहा में रामराज्य है । सब सुखी हैं। सब निरोगी हैं । सब धनवान हैं।  फिर भी महाराज चाहते हैं कि अग्रोहा की प्रजा जन्म के आधार पर जो विभिन्न बस्तियों में विभाजित है, वह एक हो जाए और उनमें अद्भुत समानता आ जाए । इस बारे में महाराज स्वयं योजना की घोषणा अपने श्रीमुख से करेंगे।
 *महाराजा अग्रसेन : समस्त दरबारीगण तथा मेरे प्यारे अग्रोहा वासियों ! अब आप सब में कोई भेदभाव नहीं है ।सबको समान सुविधाएँ हैं। समान रूप से आगे बढ़ने के अवसर हैं । सब समृद्ध हैं। केवल एक ही कमी मैंने महसूस की है कि अग्रोहा का समाज जन्म के आधार पर एक दूसरे से भेदभाव करता है। यह विभाजन मुझे परेशान करता है और मैं इस विभाजन की दीवार को समाप्त करना चाहता हूँ। मोटे तौर पर मैंने अग्रोहा में अठारह  समुदाय महसूस किए हैं । इन अठारह  समुदायों में आपस में मिलना जुलना भी कम है । एक समुदाय दूसरे समुदाय से कटा- कटा सा रहता है ।एक समुदाय के भीतर जो एकता और भाईचारा रहता है , वह उनका दूसरे समुदाय के साथ नहीं होता । समस्या का मूल यह है कि एक समुदाय में विवाह संबंध केवल अपने समुदाय में ही होते हैं । वह अपने समुदाय के बाहर जाकर विवाह नहीं करते। मैंने यह निश्चय किया है कि अग्रोहा के अठारह समुदायों में यज्ञ का आयोजन करूँगा तथा इसके माध्यम से प्रत्येक समुदाय को एक ऋषि गोत्र- नाम प्रदान किया जाएगा । जिस तरह जो गोत्र का नामकरण होगा, वही उस समुदाय का गोत्र कहलाएगा । गोत्र ही तो मनुष्य की पहचान का आरंभिक बिंदु है। इससे पहले की सारी पहचान फिर नहीं रहेगी । सबसे महत्वपूर्ण बात यह होगी कि एक गोत्र के व्यक्तियों में आपस में विवाह करने पर प्रतिबंध रहेगा। अनिवार्य रूप से व्यक्ति को अपने से भिन्न दूसरे गोत्र में विवाह करना पड़ेगा। इस तरह सभी अठारह  गोत्र अलग-अलग होते हुए भी भीतर से विवाह संबंध की डोर से बँधते चले जाएँगे और बहुत जल्दी ही एक ऐसा समाज विकसित होगा, जिसे हम सही मायने में एकताबद्ध समाज कह सकेंगे। अब आप अपनी राय रखें।
 *एक दरबारी : महाराज !आज जो आपने घोषणा की है, वह संसार में अतुलनीय है । इससे महान अग्रवंश एक सूत्र में बँधकर निकलेगा। मैं इसका समर्थन करता हूँ।
 *दूसरा दरबारी : महाराज ! अपने गोत्र में विवाह न होने से समस्त गोत्रों में आपसी विवाह संबंध धीरे- धीरे स्थापित हो जाएंगे। तब गोत्र अलग-अलग भले ही रहेंगे, किंतु आपसी एकता का अटूट दृश्य पैदा होगा। मैं भी समर्थन करता हूँ।
 *तीसरा दरबारी:  महाराज ! आपकी योजना तो सही है और मैं भी उसका समर्थन करता हूँ, किंतु यदि राज्य के कुछ उपद्रवी लोग अनिवार्य अंतर्गोत्रीय- विवाह का विरोध करेंगे तो क्या होगा?
 *महाराजा अग्रसेन : ( क्रोधित होकर अपनी तलवार को म्यान से बाहर निकालते हैं )उनके लिए मेरी तलवार है । किसका साहस है कि ऐसे शुभ कार्य के मार्ग में बाधक बने और उपद्रव करने की कल्पना भी कर सके ?
      (संपूर्ण दरबार में शांति छा जाती है। किसी का साहस महाराजा अग्रसेन की योजना के विरोध में खड़े होने का नहीं हो पाता । मंत्री जी तब दरबार को संबोधित करते हैं।)
 *मंत्री : माननीय उपस्थित सभासदों ! महाराजा जी की आज्ञानुसार शीघ्र ही अठारह यज्ञों का आयोजन किया जाएगा। सभी सज्जनों को उनके नए गोत्र में प्रवेश मिलेगा और तत्पश्चात पुरानी विभाजनकारी पृष्ठभूमि सदा- सदा के लिए समाप्त हो जाएगी । यह गोत्र ही महाराज के वंशज होंगे। वह इन्हें पुत्रों के समान ही चाहेंगे। वह इनके भीतर निवास करेंगे।
       (दरबारसभा समाप्त हो जाती है। पर्दा गिर जाता है।)
                            (दृश्य 3)
            (अग्रोहा में यज्ञ चल रहे हैं । एक-एक करके आज यह सत्रहवाँ यज्ञ है ।महाराजा अग्रसेन यज्ञ में पधारे विद्वान ऋषियों का अभिवादन करते हुए कहते हैं)
 *महाराजा अग्रसेन : हे पूजनीय श्रेष्ठ जनों ! आपने सत्रह यज्ञ पूर्ण करके अग्रोहा तथा मुझ पर बड़ा भारी उपकार किया है। इन यज्ञों के द्वारा हम अग्रोहा की जन्म पर आधारित विभाजनकारी  दीवारों को ढ़हा पाएंगे । हर समुदाय का अपना एक गोत्र होगा तथा इस प्रकार समूचा अग्रोहा पूरे अठारह गोत्रों में बँट जाएगा। बँटने के बाद भी सब भीतर से एक होंगे , क्योंकि विवाह के अवसर पर इन सभी अठारह गोत्रों में कोई अंतर नहीं समझा जाएगा। आप सब बधाई के पात्र हैं कि जो आप इस महान एकता के यज्ञ में सहभागी बने और आपने अग्रोहा को एक सूत्र में बाँधा ।
 *सेनापति : महाराज ! मुझे सूचित करते हुए अपार हर्ष हो रहा है कि अग्रोहा में सर्वत्र शांति है। समस्त प्रजाजन अठारह गोत्रों के यज्ञों के आयोजन से खुश हैं। अपना- अपना नया गोत्र प्राप्त करके उनमें एक महान कार्य से जुड़ने का भाव आ रहा है ।
 *महाराजा अग्रसेन : बहुत प्रसन्नता का विषय है कि अग्रोहा में सत्रह यज्ञ पूर्ण हो चुके हैं। अब केवल एक अंतिम यज्ञ बचा है । इसके द्वारा अठारहवाँ गोत्र भी निश्चित हो जाएगा और एक नए युग का सूत्रपात होगा। (महाराजा अग्रसेन चले जाते हैं । पर्दा गिर जाता है ।)
                        ( दृश्य चार )
                    (यज्ञ मंडप पर महाराजा अग्रसेन विराजमान हैं । यह अठारहवाँ यज्ञ है ।
 घोषणा की जाती है ) सबको सूचित किया जाता है कि अग्रोहा में अद्भुत और महान यज्ञों की श्रंखला में सत्रह यज्ञ पूर्ण हो चुके हैं। सत्रह गोत्रों का निर्धारण हो चुका है, तथा अब अठारहवें  यज्ञ का आरंभ हो रहा है। जिसके माध्यम से अठारहवें गोत्र का निर्धारण होगा ।
 *मंत्री : महाराजा अग्रसेन जी  की आज्ञा से यज्ञ आरंभ करने का शुभ अवसर उपस्थित हो गया है ।कृपया यज्ञ आरंभ किया जाए ।
        (यज्ञ आरंभ हो जाता है । मंत्रोचार के मध्य अग्नि प्रज्वलित की जाती है। महाराजा अग्रसेन सिंहासन से उठकर यज्ञशाला में इधर-उधर टहलने लगते हैं । इसी समय यज्ञ में बलि देने के लिए घोड़ा लाया जाता है। घोड़ा डरा हुआ है । वह संभवतः अपनी मृत्यु को नजदीक से देख कर काँप रहा है। घोड़े ने रस्सी छुड़ाकर भागने की काफी कोशिश की । शोर भी मचाया। टाँगे भी हवा में उठा लीं। अंत में घोड़े की आँखों से अपनी असहाय अवस्था को देखकर आँसू बहने लगे। तभी महाराजा अग्रसेन की दृष्टि घोड़े की तरफ पड़ी । )
 *महाराजा अग्रसेन : (घोड़े की तरफ देखते हुए )अरे - अरे !यह निर्दोष पशु क्या मेरे कारण ही आज मारा जाएगा ? इसकी आँखों में जो भय और विवशता छिपी है, वह मुझसे देखी नहीं जा रही है । इससे ज्यादा अभागा और कौन होगा कि यह आज मेरी यज्ञशाला में खड़ा हुआ है किंतु मेरे ही हाथों मारा जा रहा है ।
(सभी  लोग महाराजा अग्रसेन की भावुक स्थिति देख रहे  हैं ।)
 *एक व्यक्ति : अरे देखो ! महाराज कितने भावुक दिखाई पड़ रहे हैं ।
 *दूसरा व्यक्ति : महाराज के हृदय पर घोड़े के अश्रुओं का प्रभाव पड़ता साफ दिख रहा है ।
 *महाराजा अग्रसेन : (अपने सहायकों से कहते हैं)  मैं राजमहल में जाकर विश्राम करता हूँ। अब मैं यहाँ ठहर नहीं पाऊँगा।
*सहायक :जो आज्ञा महाराज !
(महाराजा अग्रसेन थके कदमों से धीरे-धीरे अपने महल में चले जाते हैं । पर्दा गिर जाता है ।)
                      ( दृश्य पाँच)
(रात्रि का समय हो चुका है। महाराजा अग्रसेन को अभी भी नींद नहीं आ रही है। वह बेचैनी के साथ कमरे में टहल रहे हैं।)
 *महाराजा अग्रसेन : (स्वयं से बातें करते हुए कहते हैं )  मुझे आज नींद भला कैसे आएगी ?  मैंने आज ही तो यज्ञशाला में बलि हेतु लाए गए घोड़े की आँखों में भय देखा था। वह रो रहा था । क्या ऐसा यज्ञ मैं उचित कहूँगा, जिसमें निरपराध पशु की हत्या कर दी जाए और उसकी बलि चढ़ा दी जाए ?  नहीं- नहीं ! यह अग्रोहा की संस्कृति के अनुरूप नहीं होगा।  हमें तो अहिंसा के भावों पर आधारित अग्रोहा का निर्माण करना है। जीवों पर दया इस राज्य की महानता का आधार होगा।
    महाराजा अग्रसेन बिस्तर पर निढाल- से गिर पड़ते हैं। वह सो जाते हैं । फिर पर्दा गिर जाता है ।
                     ( दृश्य 6)
        ( यज्ञशाला में हलचल तेज है। अठारहवाँ यज्ञ अब आगे की ओर बढ़ना चाहता है ।)
 *सेनापति : क्या बात है मंत्री जी! महाराज अभी तक यज्ञमंडप में नहीं पधारे हैं।
 *मंत्री :  मुझे तो कुछ पता नहीं ? ऐसा होता तो नहीं है। पता नहीं क्या बात है? महाराज तो ठीक समय पर ही स्वयं यज्ञशाला में आते हैं। मैं महाराज के भाई महाराज शूरसेन जी से पूछता हूँ।
      ( मंत्री जी महाराजा शूरसेन जी के पास जाते हैं ।)
 *मंत्री : माननीय महाराज शूरसेन जी ! क्या आपको ज्ञात है कि महाराज अभी तक यज्ञशाला में क्यों नहीं पधारे हैं ? वह तो समय के अनुशासन का खुद ही ख्याल रखते हैं ।
 *महाराजा शूरसेन : मुझे भी महाराज के विलंब पर आश्चर्य हो रहा है । मैं कारण पूछने खुद महाराज के पास जाता हूँ।
         ( महाराजा शूरसेन अपने भाई महाराजा अग्रसेन के यज्ञशाला में आने में विलंब होने का कारण पता लगाने के लिए तेज कदमों से चल देते हैं ।)
              ( दृश्य 7)
( महाराजा शूरसेन अपने भाई महाराजा अग्रसेन के शयन कक्ष में प्रवेश करते हैं।)
*महाराजा शूरसेन :भ्राता श्री ! क्या कारण है कि आपको विलंब हो रहा है?
*महाराजा अग्रसेन :.भ्राता श्री ! यज्ञ में पशु - हिंसा मुझे पसंद नहीं आ रही है ।यज्ञ में पशु मारा जाए , यह बात मेरी अंतरात्मा सहन नहीं कर पा रही है। हमें तो अग्रोहा में ऐसी संस्कृति का विकास करना है, जिसमें सब जीवो पर दया हो। किसी की हिंसा न हो। माँसाहार वर्जित हो।
 *महाराजा शूरसेन : आप चाहते क्या हैं ? यज्ञ में पशु बलि तो प्रथा है । इसमें ज्यादा सोच- विचार की जरूरत क्या है?
 *महाराजा अग्रसेन : मैं पशु बलि की प्रथा को समाप्त करना चाहता हूँ। अर्थात् मेरे राज्य में यज्ञ तो होगा किंतु उसमें पशु की बलि नहीं होगी।
 *महाराजा शूरसेन : भ्राता श्री ! यह समय वैचारिक विवाद में उलझने का नहीं है। यज्ञ की सारी तैयारी हो चुकी है । यह तो अंतिम अठारहवाँ यज्ञ है। इसे हो जाने दो। इसमें विवाद खड़ा मत करो। मैं आपकी बात से सहमत हूँ। संसार के सब जीवों पर दया हमें करनी चाहिए, किंतु आज पशु- बलि मत रोको । आगे के लिए जैसा चाहो विधान बना लेना ।
 *महाराजा अग्रसेन : जो कार्य ठीक है, उसे कल पर टालना क्या उचित है ? अगर हम अहिंसा का सम्मान करते हैं और पशु- बलि को अनुचित कह रहे हैं ,तो इसे अमल में लाने के लिए कल का इंतजार कैसा ? आज और अभी पशुबलि पर रोक  लगाना ही उचित होगा । मेरे वंशज पशुहिंसा में कदापि संलग्न नहीं हो सकते ।
 *महाराजा शूरसेन : भ्राता श्री ! आपकी बात सही है । आज ही हमें समाज से पशुहिंसा को समाप्त करना होगा ।अहिंसा की प्रतिष्ठा करनी होगी ।मैं आपके साथ हूँ।
   ( दोनों भाई एक साथ प्रसन्न मुद्रा में चलकर राजमहल से यज्ञशाला तक आते हैं । )
 *महाराजा अग्रसेन : समस्त उपस्थित सज्जनों ! आज और अभी से यज्ञ में पशुबलि पर रोक लगाने की घोषणा करते हुए मुझे बहुत हर्ष हो रहा है ।अब हमारे इस अग्रोहा राज्य में आज से कभी भी कहीं भी किसी भी रूप में पशु- हिंसा नहीं होगी । हम सब लोग जीवो पर दया करेंगे । उन्हें नहीं मारेंगे ।
 *महाराजा शूरसेन : महाराजा अग्रसेन की जय हो
 *मंत्री : महाराजा अग्रसेन की जय हो
 *जनता : महाराजा अग्रसेन की जय हो
 *यज्ञ कराने वाला व्यक्ति : कैसी जय ?  किस बात की जय ? यज्ञ में पशुबलि तो परंपरा है । यही परिपाटी है । जानवर को मारने में पाप कैसा ? यह अहिंसा की बड़ी-बड़ी बातें राजा को शोभा नहीं देतीं। अगर पशुबलि नहीं हुई तो यज्ञ नहीं होगा । यज्ञ का बहिष्कार होगा । फिर राजा तुम ही अकेले बैठकर यज्ञ करते रहना।
  ( यज्ञ कराने वाले अनेक व्यक्ति क्रोधित होकर एक- एक करके यज्ञशाला से उठ कर चले जाते हैं ।महाराजा अग्रसेन उन्हें समझाने की कोशिश नहीं करते हैं । वह उन्हें जाने देते हैं । )
 *महाराजा अग्रसेन : उपस्थित सज्जनों ! हमारा अठारहवाँ यज्ञ अधूरा नहीं रहा ,अपितु बाकी यज्ञों से भी श्रेष्ठ है। यह अठारहवाँ यज्ञ ही अहिंसा के भाव से आपूरित यज्ञ है । मनुष्यता की भावना के विस्तार का यज्ञ है। अठारह गोत्रों में विभक्त अग्रवाल समाज को यही अहिंसा का सूत्र आपस में बाँधकर रखेगा । राष्ट्र की एकता, तन - मन- धन की समानता तथा पशुहिंसा की कुरीति से मुक्त अग्रवंशी ही मुझे अग्रोहा में अभीष्ट हैं।
      ( सब लोग *महाराजा अग्रसेन की जय*  के नारे लगाते हैं ।पर्दा गिर जाता है ।)
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
 *लेखक : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर( उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97615451

मंगलवार, 18 फ़रवरी 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा 'सागर' की दो बाल कविताएं



मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की तीन बाल कविताएं




मुरादाबाद के युवा साहित्यकार अभिषेक रुहेला का सुनिये यह गीत


मुरादाबाद की शायरा डॉ मीना नकवी की सुनिये यह गजल


मुरादाबाद के साहित्यकार आनन्द कुमार गौरव की प्रतिनिधि रचनाएँ


मुरादाबाद के साहित्यकार राशिद मुरादाबादी का कहना है - रिश्ते कहां निभाता है आदमी ....


मुरादाबाद के शायर जिया जमीर कहते हैं --जो जख्म थे सूखे हुए रिसने लगे फिर से .....


मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर का कहना है -- कुछ उलझन कम हम करें कुछ सुलझाए आप ..


मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ अजय अनुपम का सुनिये गीत --शांत लहरें जब तटों के साथ बतियातीं सफर में..


मुरादाबाद की साहित्यकार विशाखा तिवारी की कविता


मुरादाबाद की साहित्यकार मोनिका मासूम की सुनिये यह गजल - नाम इनके मासूम हुई दिल की जागीर


सोमवार, 17 फ़रवरी 2020

संस्कार भारती मुरादाबाद की ओर से 16 फरवरी 2020 को हुआ लघुकथा/काव्य गोष्ठी का आयोजन

रविवार 16 फरवरी 2020 को संस्कार भारती महानगर मुरादाबाद की ओर से साहित्य समागम के कार्यक्रम के अंतर्गत नया कश्मीर विषय पर लघुकथा गोष्ठी का आयोजन आकांक्षा विद्यापीठ मिलन विहार मुरादाबाद में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई ने की । मुख्य अतिथि डॉ पूनम बंसल एवं विशिष्ट अतिथि डॉ मनोज रस्तोगी एवं अम्बरीष गर्ग रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन एवं माल्यार्पण करके किया गया । मां सरस्वती की वंदना डॉ पूनम बंसल ने की ।
  संस्कार भारती के प्रान्त महामंत्री बाबा संजीव आकांक्षी ने कश्मीर में सैनिकों की समस्या पर लघुकथा "समीर" की  मार्मिक प्रस्तुति की। डॉ मनोज रस्तोगी ने दो दो हजार के चार नोट शीर्षक से लघुकथा प्रस्तुत की। इसके अतिरिक्त मीनाक्षी ठाकुर, अशोक विश्नोई,केपी सिंह सरल, इंदु रानी ने भी लघुकथा का वाचन किया ।
  इस अवसर पर साहित्यकारों द्वारा काव्य पाठ भी किया गया।विवेक निर्मल ने सुनाया
भारत के नक्शे पर उभरा एक नया कश्मीर
इच्छा शक्ति से ही टूटी आतंकी शमशीर
 रामदत्त द्विवेदी  ने कहा-
 सड़क पर बिखरे मखाने
 हमें यह  बतला रहे हैं
हम ठुकराये हुए हैं उनके
जो  जग से जा  रहे हैं
 अभिषेक रुहेला ने कहा-
आओ मिलकर गाएं हम उस केसर वाली घाटी को।
ईशांत शर्मा ईशु  ने कहा -
तिरंगा भी शान से लहराने लगा है
कश्मीर हमारा जगमगाने लगा है।
अब केसर भी मुस्कुराने लगा है।
कश्मीर हमारा जगमगाने लगा है।
 रघुराज सिंह निश्छल  ने कहा -
विश्व में कहीं भी चाहे घूम लो
सबसे अच्छा देश हिंदुस्तान है
 डॉ पूनम बंसल ने कहा-
 महक उठी केसर की वादी, उड़ा गुलाल अबीर है
धारा के हटने से भइया बदल रहा कश्मीर है
   इस अवसर पर डॉ सत्यवीर सिंह मौजूद रहे। संचालन ईशांत कुमार शर्मा "ईशु ने किया ।




मुरादाबाद के शायर एवं बाल साहित्यकार जमीर दरवेश जी का फरहत अली खान द्वारा लिया विशेष साक्षात्कार


मुरादाबाद की साहित्यकार पूनम गुप्ता कविता के माध्यम से दे रही हैं पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि


मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर के तीन बाल गीत




रविवार, 16 फ़रवरी 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की सुनिये गजल - वो अंगुली मुझ पर उठा रहा था...

मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार मक्खन मुरादाबादी का सुनिये यह गीत....


डॉ रीता सिंह की काव्यकृति वीरों का वंदन का लोकार्पण

पुलवामा में शहीद हुए जवानों के प्रथम बलिदान दिवस पर उनको समर्पित कवयित्री डॉ रीता सिंह द्वारा रचित काव्य संग्रह "वीरों का वंदन"का विमोचन शुक्रवार 14 फरवरी 2020 को चन्दौसी में दर्जा राज्यमंत्री सूर्य प्रकाश पाल ,जिलाधिकारी संभल अविनाश कृष्ण सिंह,नवगीतकार  माहेश्वर तिवारी ,डॉ महेश दिवाकर, रूप किशोर गुप्ता , डॉ महेश दिवाकर, जितेंद्र कमल आनन्द, डॉ मनोज रस्तोगी, डॉ अर्चना गुप्ता, डॉ मक्खन मुरादाबादी, डॉ डीएन शर्मा, पंकज दर्पण , डॉ अजय अनुपम आदि ने किया । इस मौके पर अमर वीर शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित किये गए ।
 प्रख्यात साहित्यकार माहेश्वर तिवारी की अध्यक्षता  तथा डॉ सौरभ कांत शर्मा के संचालन  में आयोजित कार्यक्रम में कवयित्री डॉ रीता सिंह का परिचय कार्यक्रम संयोजक डॉ टी एस पाल ने प्रस्तुत किया।
 मुख्य अतिथि  राज्य निर्माण सहकारी संघ के सभापति सूर्य प्रकाश पाल ने कहा कि एक वर्ष पूर्व आज ही के दिन पुलवामा में सीआरपीएफ के सैनिकों पर आतंकी हमला किया गया जिसमें हमारे 40 जवान शहीद हुए, इसका बदला भारत सरकार ने 13 वें दिन दुश्मनों के घर में घुसकर तीन सौ से ज्यादा आतंकी एयर स्ट्राइक से मार गिरा कर लिया और यह साबित कर दिया कि देश के सम्मान के साथ कोई समझौता,हम बर्दाश्त नहीं करेंगे।
   विशिष्ट अतिथि जिलाधिकारी अविनाश कृष्ण सिंह ने कहा कि देश के अमर "वीरों का वंदन" काव्य कृति का प्रत्येक पाठक अपने देश एवं सेना पर गर्व महसूस करेगा। पुस्तक की समीक्षा  डॉ शिखा बंसबाल,अवध किशोर शर्मा,राजीव प्रखर प्रस्तुत की। डॉ रीता सिंह ने काव्यपाठ करते हुए कहा
 "वीरों का वंदन माथे का चन्दन,आओ करें नमन इनको करें नमन।सीमा के प्रहरी माने नहीं थकन,लाते सदा अमन इनको करें नमन"।
धामपुर से आये राजेश कुमार ने कहा --
"दिलों में हमेशा हमारे रहेंगे,जो अपने वतन को सँवारे रहेंगे"।नैनीताल से आये सत्यपाल सिंह सजग ने कहा- "रंगा वीरों के लहू बसंत,शोक लहरों का दिखे न अंत,रंगा वीरों के लहू बसंत"।मुरादाबाद की डॉ अर्चना गुप्ता ने कहा- "कलम तुम गाओ उनके गान,तिरंगे की जो रखते आन",।
   डॉ पंकज दर्पण ने "अगर पीठ पर वार करेगा,मुँह की हमसे खायेगा।जिसने भी अपराध किया है,अंत समय पछतायेगा"।डॉ टी एस पाल ने "देख जवानों की कुर्बानी,आज तिरंगा भी रोया है।सुरक्षा बल का लहू देश में,वहशत के हाथों खोया है"।हरीश कठेरिया ने "जहाँ चाह है वहाँ राह है,सदियो से सुनते आते हैं।बढ़ते क़दमों को तूफाँ भी रोक भला कहाँ पाये है"
   डॉ जय शंकर दुवे ने "जिनको अपनी मातृभूमि पर,रहा सदा ही है अभिमान।धीर-वीर सुत जननी के ही,पाते हैं जग में सम्मान"। हिमांशी शर्मा ने "है कसम अपने ही बाँकपन की हमें,लाज रखनी  है अपने वतन की हमें।
   इसके अतिरिक्त रूप किशोर गुप्ता, मक्खन मुरादाबादी, डॉ अजय अनुपम ,सुखपाल कौर,  कुशाग्र चौहान , डॉ डीएन शर्मा, अनिल सारस्वत,राजकुमार चौहान, विवेक कुमार, डॉ मनोज रस्तोगी डॉ अनुपम गुप्ता आदि ने काव्य पाठ एवं विचार व्यक्त किये ।
     कार्यक्रम में मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार केपी सिंह सरल, श्री कृष्ण शुक्ल, रविशं










कर रवि, रामेश्वर सिंह,हेमेन्द्र सिंह, मीनाक्षी सागर, शुभम अग्रवाल, संजय सैनी, तरुण नीरज, सुधीर मल्होत्रा,डॉ अनुपम गुप्ता,शालिनी शर्मा, संगीता भार्गव, डॉ अलका अग्रवाल आदि उपस्थित रहे।

:::::::::प्रस्तुति:::::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822

शनिवार, 15 फ़रवरी 2020

सुनिये मुरादाबाद के प्रख्यात हास्य व्यंग्य कवि स्मृतिशेष हुल्लड़ मुरादाबादी जी को

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राष्ट्रप्रेम की अलख जगाती डॉ रीता सिंह की काव्य कृति 'वीरों का वंदन'


एक रचनाकार के अंतस में उमड़ते भावों का कृति के रूप में समाज के सम्मुख आना, सदैव साहित्य-जगत की परम्परा रही है। ऐसी अनगिनत कृतियों ने समाज को एक सार्थक संदेश देते हुए साहित्य-जगत में अपनी गरिमामयी उपस्थिति दर्ज करायी है। डॉ रीता सिंह जी की उत्कृष्ट लेखनी से निकला काव्य-संग्रह, 'वीरों का वंदन' एक ऐसी ही कृति कही जा सकती है। बहुत अधिक समय नहीं बीता है, जब मानवता के दुश्मनों ने पुलवामा में  अमानवीयता का उदाहरण प्रस्तुत किया था परन्तु, नमन भारत माँ के उन लाडलों को, जिन्होंने इन तत्वों को मुँहतोड़ उत्तर देकर इनके हौसले पस्त कर दिये। यद्यपि, इस घटना में अनेक वीरों को अपने प्राणों का बलिदान करना पड़ा परन्तु, उनका शौर्य एवं जीवटता देश के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गयी। डॉ रीता सिंह का काव्य-संग्रह 'वीरो का वंदन' उन्हीं सपूतों को श्रद्धांजलि के रूप में हमारे सम्मुख है। कुल तीस ओजस्वी रचनाओं से सुसज्जित इस श्रद्धांजलि-माला का प्रत्येक मनका, वीरों के शौर्य को नमन करता हुआ राष्ट्रप्रेम की अलग जगाता है। संकलन की प्रथम रचना 'जय भारत जय भारती' शीर्षक से हमारे सम्मुख आती है। माँ भारती को नमन करती यह रचना  एक सुंदर गीत है जो सहज ही मातृभूमि के प्रति उमड़ रहे भावों को सजीव अभिव्यक्ति प्रदान कर रही है। भावुक कर देने वाली इस रचना की कुछ पंक्तियाँ देखें -
"महा सिंधु है चरण पखारे
घाटी इसका रूप सँवारे
मुखमण्डल अनुपम है इसका,
काली माटी नज़र उतारे।"

सशक्त प्रतीकों से सजी यह रचना न केवल उत्कृष्ट काव्य-सौन्दर्य का उदाहरण है अपितु, पाठक को देशप्रेम से ओतप्रोत होकर गुनगुनाने पर भी बाध्य कर देती है। इसी क्रम में पृष्ठ 13 पर 'वीरों का वंदन' शीर्षक रचना उन कठिन परिस्थितियों का चित्रण करती है जिनके मध्य रहकर हमारे शूरवीर देश की सीमाओं को सुरक्षित रखते हैं। रचना की कुछ पंक्तियाँ -
"धूप में ये खड़े
शीत से भी लड़े
करते कहाँ गमन
रहते सदा मगन
इनको करें नमन
'कलम तुम गाओ उनके गान', शीर्षक रचना कलम के सिपाहियों को सीमा के योद्धाओं का स्मरण कराती हुई, उनसे आह्वान करती है कि अगर वे सीमा के प्रहरी हैं तो आप कलमकार भीतर के रक्षक। कलम के योद्धाओं से वार्तालाप करती इस रचना की कुछ पंक्तियाँ देखें -
"कलम तुम गाओ उनके गान
तिरंगे की जो रखते आन
मातृभूमि पर बिन आहट ही
हुए न्योछावर जिनके प्रान।
कलम तुम गाओ उनके गान।"

इसी क्रम में, आतंक का नग्न एवं वीभत्स नृत्य करने वाले शत्रुओं को ललकारने एवं व्यवस्था से कड़े प्रश्न करने से भी कवयित्री संकोच नहीं करती।  रचना "आज तिरंगा भी रोया है", इसी तथ्य का समर्थन कर रही है। रचना की कुछ पंक्तियाँ -
"देख जवानों की कुर्बानी
आज तिरंगा भी रोया है
सुरक्षा बल का लहू देश ने
दहशत के हाथों खोया है।
भर विस्फ़ोटक घूम रहे क्यों
सड़कों पर गद्दार यहाँ
घाटी पूछ रही शासन से
हैं कैसे ये हालात यहाँ।"

इसी कड़ी में एक अन्य उत्कृष्ट रचना, "सीमा से आयी पाती थी" पाठकों के सम्मुख आती है। इस रचना की विशेषता यह है कि यह राष्ट्र प्रेम एवं प्राकृतिक सौन्दर्य का सुन्दर मिश्रण लिये अन्तस को स्पर्श कर जाती है। रचना की कुछ पंक्तियाँ -

"पीत चुनरिया लहराती थी
हवा बसन्ती इतराती थी
धरती यौवन पर है अपने
सजी संवरकर इठलाती थी
सीमा से आयी पाती थी।"

इसी श्रृंखला में - "बसन्त तुमको दया न आयी", "पूछ रही घाटी की माटी", "तम की बीती रजनी काली", "आज़ादी का दिन आया" आदि ओजस्वी एवं हृदयस्पर्शी रचनाएं, कवयित्री  द्वारा किये गये इस साहित्यिक अनुष्ठान की उत्कृष्टता को प्रमाणित करती हैं।
राष्ट्रप्रेम की अलग जगाती यह ओजस्वी रचना-यात्रा, पृष्ठ 39 पर उपलब्ध रचना, "जय हिन्द!" पर विश्राम लेती है। इस गीत की पंक्तियाँ सहज ही पाठक को इसे गुनगुनाने पर बाध्य कर रही हैं, पंक्तियाँ देखें -

"सब नारों में मानो अरविन्द
जय हिन्द! जय हिन्द! जय हिन्द!
खिली पंखुरी जन सरवर से
जय हिन्द! जय हिन्द! जय हिन्द!"
कृति की एक अन्य विशेषता यह भी है कि इसमें पृष्ठ 40 से 49 तक, पुलवामा आतंकी हमले में शहीद हुए वीर जवानों की सूची उनके पते सहित दी गयी है जिस कारण यह कृति स्वाभाविक रूप से और भी अधिक महत्वपूर्ण बन गयी है।
व्याकरण एवं छन्द-विधान के समर्थक रचनाकार बन्धु यह कह सकते हैं कि, कहीं-कहीं कवयित्री की उत्कृष्ट लेखनी भी छंद, मात्राओं इत्यादि की दृष्टि से डगमगाती सी प्रतीत हुई है परन्तु, मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि, कृति की सभी रचनाओं का भाव-पक्ष इतना प्रबल एवं उच्च स्तर का है कि वह इस असन्तुलन को भी पछाड़ते हुए, राष्ट्रप्रेम की अलख जगाने में सफल रही है। निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि, डॉ रीता सिंह जी की उत्कृष्ट लेखनी एवं साहित्यपीडिया जैसे उत्तम प्रकाशन संस्थान से सुन्दर स्वरूप में तैयार होकर, एक ऐसी कृति समाज तक पहुँच रही है, जो देश के लिये बलि हो जाने वाले वीरों का स्मरण कराते हुए, पाठकगणों को राष्ट्र के प्रति समर्पित रहने को प्रेरित करेगी।

** पुस्तक : वीरों का वंदन (काव्य)
** रचनाकार : डॉ रीता सिंह
**प्रकाशक : सहित्यपीडिया पब्लिशिंग, नोएडा(भारत),  दूरभाष-(+91)9618066119, ईमेल-publish@sahityapedia.com
**  समीक्षक : राजीव 'प्रखर', डिप्टी गंज, मुरादाबाद -244001,उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर  8941912642

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020

मुरादाबाद के मशहूर शायर मंसूर उस्मानी कहते हैं-- बेहतर है कि तुम खुद ही संभल जाओ किसी दिन ...


हिंदी साहित्य संगम मुरादाबाद की ओर से 2 फरवरी 2020 को आयोजित काव्य गोष्ठी में उपस्थित साहित्यकारों सर्वश्री अशोक विश्नोई, ओंकार सिंह ओंकार, रामदत्त द्विवेदी ,केपी सिंह सरल, शिशुपाल सिंह मधुकर, राशिद मुरादाबादी, रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ, राजीव प्रखर ,मनोज कुमार मनु और शायर मुरादाबादी द्वारा प्रस्तुत काव्य पाठ सुनिये....


पढ़िए रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश की लघुकथा लेनदेन

लघुकथा ः लेन-देन
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     "कितने का लिफाफा दिया जाए ? "- रमेश बाबू ने अपनी पत्नी से पूछा.।
       "100 से कम का तो लिफाफा चलता ही नहीं है , वैसे ढाई सौ का या 500 का दिया जाना चाहिए  "  पत्नी मिथिलेश का उत्तर था ।
    "कैसे दे दिया जाए"? - पत्नी मिथलेश की बात का जवाब देते हुए रमेश बाबू ने कहा-" 100 से ज्यादा का लिफाफा हम कैसे दे सकते हैं "
     " तो 100 का ही दे दिया जाए" - मिथिलेश ने कहा। रमेश बाबू का चेहरा मुरझा गया। बोले"दे तो देंगे ,लेकिन बाद में बेइज्जती कहीं न उठानी पड़े ।अभी थोड़े दिन पहले घनश्याम जी के यहां प्रीतिभोज हुआ था उसमें भी एक सज्जन ने सौ रुपए का लिफाफा दिया था तो पूरे शहर भर में वह उसकी बेइज्जती करते फिरे थे। दरअसल अभी थोड़ी देर पहले शहर के प्रमुख उद्योगपति रमेश बाबू को अपनी विवाह की पच्चीसवीं वर्षगांठ का निमंत्रण देकर गए थे । क्या दिया जाए ..तभी से दोनों पति-पत्नी इस बारे में विचार मंथन कर रहे थे। जब काफी देर हो गई तो रमेश बाबू ने झुंझलाकर कहा "ज्यादा तो हम दे नहीं सकते और कम देने में बेइज्जती है। लिहाजा अच्छा यही होगा कि हम कोई बहाना बना दें और एनिवर्सरी में न जाएं। यह  सुनकर ठंडी और गहरी सांस लेकर मिथिलेश ने अपने पति की बात का समर्थन किया ।बोली  " हां ! यही ठीक रहेगा"।
रवि प्रकाश, रामपुर

बुधवार, 12 फ़रवरी 2020

मुरादाबाद के हास्य व्यंग्य कवि फक्कड़ मुरादाबादी की चर्चित कविता


देश-विदेश में नाम रोशन किया हुल्लड़ मुरादाबादी ने

हास्य व्यंग्य कवि हुल्लड़ मुरादाबादी एक ऐसे रचनाकार रहे जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से न केवल श्रोताओं को गुदगुदाते हुए हास्य की फुलझड़ियां छोड़ीं बल्कि रसातल में जा रही राजनीतिक व्यवस्था पर पैने कटाक्ष भी किए। सामाजिक विसंगतियों को उजागर किया तो आम आदमी की जिंदगी को समस्याओं को भी अपनी रचनाओं का विषय बनाया।  पदम् श्री गोपालदास नीरज के शब्दों में कहा जाए तो  हुल्लड़ मुरादाबादी की ख्याति हास्य व्यंग विधा के एक श्रेष्ठ कवि के रूप में है लेकिन उन्होंने जो दोहे और गजलें कहीं हैं वे उन्हें एक दार्शनिक कवि के रूप में भी स्थापित करने के लिए पर्याप्त हैं। हास्य के लहजे में कुछ शेर तो उन्होंने ऐसे कहे हैं जो बेजोड़ हैं और जो हजार हजार लोगों की जुबान पर हैं। हिंदी में तो कोई भी हास्य का ऐसा कवि नहीं है जो उनकी ग़ज़लों के सामने सिर ऊंचा करके खड़ा हो सके।

हिंदी के हास्य कवियों की जब कभी चर्चा होती है तो उसमें हुल्लड़ मुरादाबादी का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है । जी हां , एक समय तो ऐसा था जब
 हुल्लड़ मुरादाबादी  अपनी हास्य कविताओं से पूरे देश मे हुल्लड़ मचाते फिरते थे। कवि सम्मेलन हो या किसी पत्रिका का हास्य विशेषांक छपना हो तो हुल्लड़ मुरादाबादी का होना जरूरी समझा जाता था । रिकॉर्ड प्लेयर पर अक्सर उनकी रचनाएं बजती हुई सुनने को मिलती थीं ।दूरदर्शन का कोई हास्य कवि सम्मेलन भी हुल्लड़ जी के बिना अधूरा समझा जाता था। इस तरह अपनी रचनाओं के माध्यम से हुल्लड़ मुरादाबादी ने पूरे देश में अपनी एक विशिष्ट पहचान कायम की ।

आजादी से पहले मुरादाबाद आकर बसा था परिवार
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हुल्लड़ मुरादाबादी का जन्म 29 मई 1942 को गुजरांवाला (जो अब पाकिस्तान में है )हुआ था।  उनके पिता श्री सरदारी लाल चड्डा बर्तनों का व्यवसाय करते थे। यह संभवतः कम लोगों को ही मालूम होगा कि आप का वास्तविक नाम सुशील कुमार चड्डा था।  भारत के आजाद होने से पहले ही आपका पूरा परिवार मुरादाबाद आकर बस गया था। शिक्षा दीक्षा मुरादाबाद में ही हुई। सन 1958 में आपने पारकर इंटर कॉलेज से हाईस्कूल तथा वर्ष 1960 में इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की थी।बीएससी सन 1965 में तथा सन 1971 में हिंदी विषय से स्नातकोत्तर की परीक्षा स्थानीय हिंदू डिग्री कॉलेज से  उत्तीर्ण की । इसी बीच 1969 में आपका विवाह हो गया। वर्ष 1970-71 में आपने एस एस इंटर कॉलेज तथा 1971-72 में आरएन इंटर कॉलेज में अध्यापन कार्य किया ।

पहली बार लाल किले पर 1962 में पढ़ी कविता
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पारकर इंटर कॉलेज में जब वह पढ़ते थे तो वहां हिंदी के एक अध्यापक पंडित मदन मोहन व्यास थे जो  एक चर्चित साहित्यकार व संगीतकार भी थे उन्हीं की प्रेरणा व निर्देशन में हुल्लड़ मुरादाबादी का साहित्यिक जीवन प्रारंभ हुआ।  वह दिवाकर उपनाम से वीर  रस की कविताएं लिखने लगे।  2 दिसम्बर 1962 में आपने पहली बार किसी स्तरीय मंच से काव्य पाठ किया । भारत चीन महायुद्ध के संदर्भ में उस वर्ष राष्ट्रीय रक्षा कोष सहायतार्थ एक अखिल भारतीय वीर रस कवि सम्मेलन लालकिला दिल्ली में आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता महाकवि रामधारी सिंह दिनकर कर रहे थे । उक्त कवि सम्मेलन में एक श्रोता के रूप में हुल्लड़ जी भी मौजूद थे । कविसम्मेलन के दौरान राष्ट्र की रक्षा के लिए कुछ देने का प्रश्न आया तो उन्होंने अपनी एक सोने की अंगूठी उतार कर दे दी तथा देशभक्ति से ओतप्रोत एक वीर रस की रचना भी पढ़ी, जिसकी पंक्तियां थी -
तुम वीर शिवा के वंशज हो, फिर रोष तुम्हारा कहां गया
। बोलो राणा की संतानों, वह जोश तुम्हारा कहां गया।। जाकर देखो सीमाओं पर, जो आज कुठाराघात हुआ । जाकर देखो भारत मां के, माथे पर जो आघात हुआ।।  गर अब भी खून नहीं ख़ौला, गर अब तक जाग न पाए हो ।। मुझको विश्वास नहीं आता, तुम भारत मां के जाए हो ।।इसके बाद तो न जाने कितने कवि सम्मेलनों में रचना पाठ किया और एक तरह से वे हास्य के पर्याय बन गए । आपने मुरादाबाद के कुछ बुद्धिजीवियों व रचनाकारों को साथ लेकर हास परिहास नामक संस्था का भी गठन किया। वर्ष 1971 में यहीं से हास परिहास नामक एक मासिक पत्रिका भी संपादित की जो वर्ष 1975 तक प्रकाशित होती रही।

फिल्मों में भी किया अभिनय
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आपकी रचनाओं की ख्याति को देखते हुए वर्ष 1977 में मशहूर हास्य अभिनेता व निर्माता निर्देशक आई एस जौहर ने उन्हें फिल्मों में लिखने का ऑफर भी दिया। उस समय वह नसबंदी फिल्म का निर्माण कर रहे थे।  उन्होंने हुल्लड़ जी का उसमें एक गीत क्या मिल गया सरकार तुझे इमरजेंसी लगा कर लिया जिसे संगीतबद्ध कल्याणजी-आनंदजी ने किया तथा महेंद्र कपूर व मन्ना डे ने गाया। इस तरह धीरे-धीरे उनका फिल्मों की ओर झुकाव होने लगा और वर्ष 1979 में वह मुरादाबाद छोड़कर मुंबई जाकर स्थाई रूप से रहने लगे। वहां प्रसिद्ध अभिनेता निर्देशक निर्माता मनोज कुमार को अपना गुरु बनाया तथा उन्हीं की प्रेरणा से आगे बढ़ते गए । फिल्म सन्तोष में भी उन्होंने एक अच्छी भूमिका निभाई । इससे पूर्व शिवानी की कहानी पर आधारित फिल्म बंधन बांहों का में भी उन्होंने अभिनय किया। दरअसल अभिनय करने के अंकुर भी उनमें छात्र जीवन में ही फूटे । वर्ष 1960-61 में हिंदू डिग्री कॉलेज की हिंदी साहित्य परिषद द्वारा आयोजित एकांकी नाटक प्रतियोगिता में उन्हें सर्वोत्तम अभिनय करने पर प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ था । इसके अतिरिक्त भगवतीचरण वर्मा के एकांकी नाटक दो कलाकार , ऋषि भटनागर रचित सफर के साथी, डॉ शंकर शेष रचित एक और द्रोणाचार्य में भी  उन्होंने प्रमुख भूमिकाएं अभिनीत की।

सन 1989 में सपरिवार लौटे मुरादाबाद
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परिवार के साथ मुंबई चले जाने के बाद भी मुरादाबाद से उनका जुड़ाव बना रहा। यही कारण रहा कि वर्ष 1989 में  गर्दिश के दिनों में वह पुन: सपरिवार यहां वापस लौट आए। मुंबई से जब वह वापस मुरादाबाद आए तो साहित्य के प्रति उनका मन उचट सा गया था। उनका साहित्य से पुन: रिश्ता कायम हुआ दैनिक स्वतंत्र भारत के माध्यम से।  अपने मित्र चुन्नी लाल अरोड़ा के बहुत आग्रह के बाद उन्होंने स्वतंत्र भारत के लिए लिखना शुरू किया। उसके बाद फिर उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा।  वर्ष 2000 में  वह फिर मुरादाबाद की पंचशील कालोनी छोड़कर पूरी तरह मुम्बई में बस गए।  12 जुलाई 2014 को उन्होंने मुंबई के  गोरेगांव स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली।

प्रकाशित साहित्य एवं सम्मान
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हुल्लड़ मुरादाबादी की  प्रमुख कृतियों में इतनी ऊंची मत छोड़ो, मैं भी सोचूं तू भी सोच, अच्छा है पर कभी कभी, तथाकथित भगवानों के नाम,सत्य की साधना, त्रिवेणी , हज्जाम की हजामत, सब के सब पागल हैं , हुल्लड़ के कहकहे ,हुल्लड़ का हंगामा,   हुल्लड़ की श्रेष्ठ हास्य व्यंग रचनाएं ,हुल्लड़ सतसई, हुल्लड़ हजारा, क्या करेगी  चांदनी, यह अंदर की बात है  मुख्य हैं । एचएमबी द्वारा आपकी हास्य रचनाओं के अनेक रिकॉर्ड्स एवं कैसेट्स रिलीज हो चुके हैं जिनमें प्रमुख रूप से हंसी का खजाना , हुल्लड़ का हंगामा , हुल्लड़ के कहकहे, हुल्लड़ मुरादाबादी से मिलिए बेहद पसंद की गई हैं । आपको विभिन्न पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया जिनमें प्रमुख रूप से काका हाथरसी पुरस्कार, महाकवि निराला सम्मान, हास्य रत्न अवार्ड, कलाश्री पुरस्कार, ठिठोली पुरस्कार, इंडियन जेसीज का टी ओ वाई पी अवार्ड  मुख्य हैं।
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डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822