सोमवार, 2 मार्च 2020

अखिल भारतीय साहित्य परिषद मुरादाबाद ने किया मुरादाबाद के साहित्यकारों श्री कृष्ण शुक्ल ,फक्कड़ मुरादाबादी , विवेक निर्मल और मोनिका मासूम को सम्मानित





























अखिल भारतीय साहित्य परिषद मुरादाबाद की ओर से रविवार  1 मार्च 2020 को महाराजा हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय में आयोजित समारोह में मुरादाबाद के साहित्यकारों श्री फक्कड़ 'मुरादाबादी', श्री विवेक 'निर्मल', श्रीयुत श्रीकृष्ण शुक्ल एवं श्रीमती मोनिका 'मासूम' को 'साहित्य मनीषी सम्मान' से सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात साहित्यकार  यशभारती माहेश्वर तिवारी ने की। मुख्य अतिथि व्यंग्य कवि डॉ मक्खन 'मुरादाबादी' एवं विशिष्ट अतिथि  अशोक विश्नोई थे। माँ शारदे की वंदना अशोक 'विद्रोही' ने प्रस्तुत की तथा कार्यक्रम का संचालन संयुक्त रूप से राजीव 'प्रखर' एवं आवरण अग्रवाल 'श्रेष्ठ' ने किया।

सम्मान-समारोह में उपरोक्त चारों सम्मानित साहित्यकारों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर, अशोक विश्नोई, राजीव 'प्रखर',आवरण अग्रवाल 'श्रेष्ठ'  एवं प्रशांत मिश्रा द्वारा आलेखों का वाचन भी किया ।
इस अवसर पर मोनिका शर्मा 'मासूम' ने अपनी सुंदर ग़ज़ल की सुगंध कुछ इस प्रकार बिखेरी -

"खयाल बनके जो ग़ज़लों में ढल गया है कोई
मिरे वजूद की रंगत बदल गया है कोई
सिहर उठा है बदन, लब ये थरथराए हैं
कि मुझ में ही कहीं शायद मचल गया है कोई"

वरिष्ठ रचनाकार  विवेक 'निर्मल' ने अपने चिर-परिचित रंग में कहा -

"कुछ गर्मी कुछ सर्द समेटे बैठे हैं
सब अपने दुख दर्द समेटे बैठे हैं
एक बूढ़े ने जब से खटिया पकड़ी है
रिश्ते नाते फर्ज समेटे बैठे हैं।"

सुप्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य कवि श्री फक्कड़ 'मुरादाबादी' ने अपने हास्य-व्यंग्य से सभी को गुदगुदाते हुए कहा  -

"विवाह के पश्चात मित्रवर,
जब अपनी ससुराल पधारे।
वहाँ पूछने लगे किसी से,
मनोरंजन का साधन प्यारे।
श्रीकृष्ण शुक्ल ने  रचना-पाठ करते हुए कहा -

"राह अपनी खुद बनाना, जिंदगी आसान होगी।
हो भले दुष्कर सफर पर, हार कर मत बैठ जाना।
पथ की बाधाओं से डरकर, राह से मत लौट आना।।
विजयश्री जिस दिन मिलेगी, इक नयी पहचान होगी।
राह अपनी खुद बनाना, जिंदगी आसान होगी।।"

कार्यक्रम में डॉ मीना कौल, डॉ मनोज रस्तोगी, योगेन्द्र वर्मा 'व्योम', विजय शर्मा, डॉ प्रेमवती उपाध्याय, डॉ कृष्ण कुमार 'नाज़', अशोक 'विद्रोही', मयंक शर्मा, आवरण अग्रवाल, एमपी 'बादल', राशिद 'मुरादाबादी', मनोज 'मनु', आशुतोष मिश्र, प्रशांत मिश्र, रवि चतुर्वेदी आदि उपस्थित रहे।
::::::::प्रस्तुति:::::::
**राजीव प्रखर
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत


वाट्सएप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में प्रत्येक रविवार को कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है । इस अनूठे आयोजन में साहित्यकार अपनी हस्तलिपि में अपने चित्र सहित रचना साझा करते हैं । रविवार एक मार्च 2020 को हुए आयोजन में सर्वश्री रवि प्रकाश जी , संतोष कुमार शुक्ल जी, नृपेंद्र शर्मा सागर जी, प्रीति हुंकार जी, श्री कृष्ण शुक्ल जी, राजीव प्रखर जी, मनोज मनु जी और डॉ मनोज रस्तोगी ने अपनी हस्तलिपि में रचनाएं साझा कीं ..........













अधिवक्ता साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच मुरादाबाद की ओर से 29 फरवरी 2020 को काव्य गोष्ठी का आयोजन

 अधिवक्ता साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच मुरादाबाद के तत्वावधान में  सभागार जिला बार एसोसिएशन में  युवा और राष्ट्र विषय पर काव्य/ विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक कुमार सक्सेना एडवोकेट ने की। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जिला बार के महासचिव हरप्रसाद एडवोकेट कार्यक्रम रहे । कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन करके किया गया।
  कार्यक्रम में वक्ताओं ने वर्तमान परिस्थितियों में युवाओं और विशेष कर युवा अधिवक्ताओं की भूमिका पर चर्चा परिचर्चा की। इस अवसर पर उपस्थित अधिवक्ता साहित्यकारों ने अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से समाज में फैली हुई  कुरीतियों और नफरतों को समाप्त करने का प्रयास किया । कार्यक
 मोहम्मद जावेद आलम ने कहा  -
बादल है बदली है परछाई है
आसमां में देखो धुंध सी छायी है
सड़कों पर देख लो, फैला खून है
कोने  में  चुपचाप खड़ा,देखो कानून है।।
तंज़ीम शास्त्री ने कहा -
भूलकर भी ना कोई तू ऐसी भाषा लिखना ।
 नई नई परंपराओं से लड़ा  रहे है जो समाज को।
 ऐसे तत्वों के विरुद्ध तू  इंकलाब लिखना ।।
 अज़हर अब्बास नकवी ने कहा -
सच बोलते ही सर मेरा हो जाएगा कलम।
 खंजर  मेरे गले के निहायत करीब है।
 अनिरुद्ध उपाध्याय "आज़ाद" ने कहा -
दिल हल्का करने के लिए कोई मिलता ही नहीं यहां ।
 हर किसी ने बसा लिया है अपना अलग जहां ।।
 अरविंद कुमार शर्मा आनंद ने कहा -
 बहाया था दरिया वफाओं का हमने ।
 कि तोड़ा गुमान भी घटाओं का हमने ।
मयस्सर हुआ जो भी उसमें रहा खुश।
न मांगा जखीरा दुआओं का हमने।
 कार्यक्रम का संचालन करते हुए आवरण अग्रवाल "श्रेष्ठ" ने कहा -
 मरा हिंदू , मरा मुसलमान बताएंगे।
 सियासत वाले दंगे में मरा कब इंसान बताएंगे ।।
 कार्यक्रम में जयवीर सिंह एडवोकेट, मोहम्मद मुख्तार वारसी एडवोकेट, विशाल राठौर एडवोकेट, प्रमोद प्रत्येकी एडवोकेट, डॉ राकेश जैसवाल एडवोकेट आदि मौजूद रहे ।
   




::::::प्रस्तुति:::::::
आवरण अग्रवाल "श्रेष्ठ"
महासचिव
अधिवक्ता साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

रविवार, 1 मार्च 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की काव्य कृति "वीरों का वंदन" की मेजर अवध किशोर शर्मा द्वारा की गई समीक्षा


सर झुके बस उनकी शहादत में ,
जो शहीद हुए हमारी हिफाजत में ।

समीक्षा का अर्थ है गुणों को प्रोत्साहन और दोषों का निवारण । आश्वासनों के बीच घिसटते जीवन की जगमगाहट को कवयित्री डॉ. रीता सिंह ने श्रद्धांजलि स्वरूप रचित पुलवामा के शहीदों को समर्पित अपने काव्य संग्रह ' वीरों का वंदन ' में बूंद बूंद सहेजा है । निराशा का ताप भट्टी सा दाहक बन जाता यदि जीवन के आक्रोश को निकलने का रास्ता न मिलता । व्यवस्था के प्रति आक्रोश जनित विद्रोहों को कवयित्री ने रचनात्मक बनाने की पहल की । कवयित्री की मूल चेतना में समर्पित राष्ट्रीयता की अग्नि अपेक्षाकृत ज्यादा है । राजनैतिक स्थितियों के प्रदूषणों को भी कवयित्री ने भरपूर बचाया है । मरघट के अवसन्न भयावहता त्रासदी पथ दीपों की रोशनी में बदलने का प्रयास किया है । कविताओं में प्रसारित राष्ट्रीयता के ध्रुव बिंबों ने उनकी दृष्टि को प्रखरता दी है । राष्ट्रीयता बोध के साथ साथ शहीदों को नमन दीपक से उठती चुपचाप जलती हुई निष्कंप किरण है जिसके जीवन की सार्थकता दूसरों को अंधकार से ज्योति की ओर प्रवृत करने में हैं । कला कला के लिए या अपने पांडित्य प्रदर्शन जैसे भावों की तुष्टि की भावना कहीं दृष्टिगोचर नहीं होती । कविताएं लयात्मक हैं और गेयता का आकर्षण उत्पन्न करने के लिए अपनी रचना तुकांत छंदों में की है । अपनी समूची रचना यात्रा में आपने किसी का अनुकरण नहीं किया और न ही किसी की अनुगामी बनी । अलंकार स्वतः समाहित हो गए हैं । मानवीकरण का प्रयोग सौंदर्य की अभिवृद्धि करता है । कहीं कहीं वज़्न कम होने के कारण काफिया खटकता है । वर्तनी संबंधी दोष मुक्त रचनाएं उत्सर्जक व प्रेरक हैं । श्रेष्ठ , सामयिक एवं प्रासंगिक ' वीरों का वंदन ' श्लाघनीय हैं इसकी सराहना होनी ही चाहिए ।

कृति - वीरों का वंदन (काव्य संग्रह)
रचनाकार - डॉ. रीता सिंह
प्रकाशक - साहित्यपीडिया पब्लिशिंग
मूल्य - ₹ 150
प्रथम संस्करण - 2020
**समीक्षक - मेजर अवध किशोर शर्मा
चन्दौसी ,जिला सम्भल
उत्तर प्रदेश, भारत

यादगार आयोजन : मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था ‘अक्षरा’ के तत्वावधान में 8 दिसम्बर 2013 को आयोजित समारोह में मुरादाबाद के वरिष्ठ शायर ज़मीर ‘दरवेश’ को किया गया सम्मानित

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था ‘अक्षरा’ के तत्वावधान में हिमगिरी कॉलोनी, मुरादाबाद स्थित शिव मंदिर के सभागार में 8 दिसम्बर 2013 को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया जिसमें मुरादाबाद के वरिष्ठ शायर  ज़मीर ‘दरवेश’ को हिन्दी व उर्दू के क्षेत्र में किए गए समग्र साहित्यिक अवदान के लिए अंगवस्त्र, मानपत्र, प्रतीक चिन्ह, श्रीफल भेंटकर ‘देवराज वर्मा उत्कृष्ट साहित्य सृजन सम्मान-2013’ से सम्मानित किया गया।

   अंकित गुप्ता ‘अंक’ द्वारा प्रस्तुत मां सरस्वती वंदना से आरंभ कार्यक्रम में संस्था के संयोजक योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’ ने बताया कि कुछ अपरिहार्य कारणोंवश इस वर्ष ‘देवराज वर्मा उत्कृष्ट साहित्य सृजन सम्मान-2013’ हेतु प्रविष्टियां आमंत्रित नहीं की जा सकीं । अत: समग्र साहित्यिक अवदान को दृष्टिगत रखते हुए संस्था द्वारा सम्मान हेतु वरिष्ठ शायर ज़मीर ‘दरवेश’ के नाम का चयन किया गया। सम्मानित व्यक्तित्व श्री दरवेश के कृतित्व के संदर्भ में प्रकाश डालते हुए संस्था के संयोजक ने कहा-‘दरवेश जी का समूचा रचनाकर्म हिन्दी और उर्दू साहित्य जगत में एक अलग पहचान तो रखता ही है, महत्वपूर्ण स्थान भी रखता है। उनकी ग़ज़लों में मिठास का एक कारण उनकी कहन का निराला अंदाज़ भी है।  

   अध्यक्षता कर रहे विख्यात नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि ‘ज़मीर दरवेश की ग़ज़लें फ़िक्र और अहसास के नये क्षितिज से उदय होती हैं। उनकी ग़ज़लों के शेर हालात पर तंज भी करते हैं और मशविरे भी देते हैं।’ 

    मुख्य अतिथि प्रसिद्ध साहित्यकार  राजीव सक्सेना ने कहा कि ‘श्री दरवेश अपनी ग़ज़लों के माध्यम से चित्रकारी करते हैं, वह अपने शेरों में मुश्किल से मुश्किल विषय पर भी सहजता से अपनी बात कह जाते हैं। यही खासियत है कि उनकी ग़ज़लें श्रोताओं और पाठकों के दिल-दिमाग़ पर छा जाती हैं।’ 

      विशिष्ट अतिथि डॉ. ओम आचार्य ने कहा कि ‘बेहद खूबसूरत ग़ज़लें कहने वाले ज़मीर साहब शेर कहते समय भाषा की सहजता का विशेष ध्यान रखते हैं, उनके शेरों में बनावटीपन या दिखावा कहीं नहीं मिलता।’ 

     सुप्रसिद्ध शायर डॉ. कृष्णकुमार ‘नाज़’ ने कहा कि ‘बहुत कम लोगों को पता है कि ज़मीर साहब बेहतरीन शायर होने के साथ-साथ बहुत अच्छे बालकवि भी हैं। उन्होंने बच्चों के लिए अनेक कहानियाँ तो लिखी ही हैं बहुत सारी बाल कवितायें भी लिखी हैं जो विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर चर्चित भी हुई हैं।’ 

    कार्यक्रम में सम्मान के पश्चात ज़मीर ‘दरवेश’ के एकल काव्य-पाठ का भी आयोजन किया गया जिसमें उन्होंने अपनी कई ग़ज़लें प्रस्तुत करते हुए कहा-

 ‘हर शख़्स के चेहरे का भरम खोल रहा है

 कम्बख़्त ये आइना है सच बोल रहा है

 पैरों को ज़मीं जिसके नहीं छोड़ती वो भी

 पर अपने उड़ानों के लिए तोल रहा है’

 

‘घर के दरवाज़े हैं छोटे और तेरा क़द बड़ा

 इतना इतराकर न चल चौखट में सर लग जायेगा’


‘आदमी को इतना ख़ुदमुख़्तार होना चाहिए

 खुल के हँसना चाहिए, जीभर के रोना चाहिए’

 

‘मैं घर का कोई मसअला दफ़्तर नहीं लाता

 अन्दर की उदासी कभी बाहर नहीं लाता

 तन पर वही कपड़ों की कमी, धूप की किल्लत

 मेरे लिए कुछ और दिसम्बर नहीं लाता’

 

‘महकने लगती है आरी अगर चन्दन को छू जाये

 दुआ देते हैं हम उस तंज पर जो मन को छू जाये’

 कार्यक्रम में ब्रजभूषण सिंह गौतम ‘अनुराग’, अशोक विश्नोई, जिया ज़मीर, अतुल कुमार जौहरी, मनोज वर्मा ‘मनु’, शिवअवतार ‘सरस’, सतीश ‘सार्थक’, रामसिंह ‘निशंक’, विवेक कुमार ‘निर्मल’, अम्बरीश गर्ग, डा.मीना नक़वी, डा. प्रेमवती उपाध्याय, डा. पूनम बंसल, राजेश भारद्वाज, डॉ. अजय ‘अनुपम’, यू.पी.सक्सेना ‘अस्त’, रामदत्त द्विवेदी, रघुराज सिंह ‘निश्चल’, ओमकार सिंह ‘ओंकार’, समीर तिवारी, अंजना वर्मा, सुभाषिणी वर्मा, श्रेष्ठ वर्मा, प्रतिष्ठा वर्मा, दीक्षा वर्मा, रामेश्वरी देवी, पुष्पेन्द्र कुमार सिंह, देवेन्द्र सिंह एडवोकेट, प्रदीप कुमार, प्रेम कुमार, वेदप्रकाश वर्मा कादम्बिनी वर्मा आदि उपस्थित रहे । कार्यक्रम का संचालन आनंद कुमार ‘गौरव’ ने किया तथा आभार अभिव्यक्ति श्री मनोज वर्मा ‘मनु’ ने प्रस्तुत की ।


















मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी की काव्य कृति कड़वाहट मीठी सी की राजीव प्रखर द्वारा की गई समीक्षा ....

आम जीवन की साकार अभिव्यक्ति - 'कड़वाहट मीठी सी'
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आज के भाग-दौड़ भरे जीवन में जबकि, व्यक्ति के पास जीवन को समझने का ही क्या, स्वयं के भीतर झाँकने का भी समय नहीं है, सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ० कारेन्द्र देव त्यागी (मक्खन मुरादाबादी) जी की व्यंग्य-कृति 'कड़वाहट मीठी सी' उसे सहज ही ऐसा अवसर प्रदान करती है। सामान्यतः जीवन में जो कुछ भी व्यक्त होता है, उसमें से ही कविता को ढूंढने का प्रयास किया जाता है परन्तु, श्रद्धेय मक्खन जी की कृति 'कड़वाहट मीठी सी' जीवन के उस पक्ष से भी कविता को ढूंढ कर ले आती प्रतीत होती है जो अव्यक्त है एवं किन्हीं परिस्थितियों वश किसी बंधन में है। संभवतः यह भी एक कारण है कि प्रकाशित होने के पश्चात् अल्प समय में ही कृति लोकप्रियता की ऊंचाइयों की ओर अग्रसर है। अग्रसर हो भी क्यों न ? क्योंकि, मक्खन जी की लेखनी से निकलने के पश्चात्, रचना मात्र रचना ही नहीं रहती अपितु, आम व्यक्ति के जीवन की साकार एवं सार्थक अभिव्यक्ति भी बन जाती है।
व्यंग्य के तीखे तीर छोड़ती एवं सामाजिक विषमताओं पर सटीक प्रहार करती हुई कुल ५१ व्यंग्य-पुष्पों से सजी इस माला का प्रत्येक पुष्प, उस कड़वी परन्तु सच्ची तस्वीर को हमारे सम्मुख ले आता है जिसकी ओर से हमारे समाज का तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग प्राय: अपने नेत्र, कर्ण एवं मुख को बंद रखना ही श्रेष्ठ समझता है।
यद्यपि कृति में से सर्वश्रेष्ठ रचनाओं का चयन करना मुझ अकिंचन के लिए संभव नहीं,  फिर भी कुछ रचनाओं का उल्लेख करने से मैं स्वयं को रोक नहीं पा रहा हूँ।
इस व्यंग्य-माला का प्रारंभ वर्तमान काव्य मंचों पर कुचली  जा रही कविता की वेदना को अभिव्यक्ति देती रचना, 'चुटकुलों सावधान' से होता है। तथाकथित व्यवसायिक मंचों का चिट्ठा खोलती इस रचना की कुछ पंक्तियाँ देखें -

"चुटकुलों सावधान
हम तुम्हें
ऐसा करने नहीं देंगे,
तुम्हारे प्रकोप से
कविता को मरने नहीं देंगे।"

इसी क्रम में एक अन्य अति विलक्षण रचना 'तुम्हारा रंग छूट जाएगा' शीर्षक से दृष्टिगोचर होती है। अति विलक्षण इसलिए क्योंकि, इस रचना की आत्मा श्रृंगारिक है जिसने व्यंग्य का सुंदर आवरण ओढ़ रखा है। रचना की कुछ पंक्तियाँ देखें -

"अब तुम
मेरे सपनों में
आना-जाना बन्द कर दो
नहीं तो,
तुम्हारे प्रति
मेरा सारा
विश्वास टूट जाएगा,
जानती हो ना
मैं तुम्हें छुऊँगा, तो
तुम्हारा रंग छूट जाएगा।"

इसी क्रम में, 'ठहाके लगाइये', 'ब्लैक-आउट', पुलिस चाहिए', 'राम नाम सत्य है', 'बीमा एजेंट चिल्लाया' आदि रचनाएं सामने आती हैं जो स्वस्थ एवं सशक्त व्यंग्य के माध्यम से, किसी न किसी विद्रूपता पर न केवल प्रहार करती हैं अपितु, अप्रत्यक्ष रूप से उनके समाधान पर सोचने को भी विवश करती हैं। कृति की समस्त रचनाओं की एक अन्य विशेषता यह भी है कि वे गुदगुदाहट से आरंभ होकर गंभीरता पर विश्राम लेती हैं।
व्यंग्य के कुल ५१ सुगंधित पुष्पों से सजी इस व्यंग्य-माला का अन्तिम पुष्प 'वर्तमान सिद्ध करने में लगा है' शीर्षक रचना के रूप में हमारे सम्मुख है। इस संक्षिप्त परन्तु बहुत ही सशक्त रचना की पंक्तियाँ देखें -

"वह व्यक्ति
जिस डाल पर बैठा था
उसी को काट रहा था,
सृजक था
जाने कौन सा
सृजन छाँट रहा था।
यह सत्य हमारा
अनुपम इतिहास हो गया,
इतना बड़ा मूर्ख
संस्कृत में कालिदास हो गया।
इतिहास,
वर्तमान का
विश्वास हो जाता है,
लेकिन वर्तमान
सिद्ध करने में लगा है
मानो
हरेक मूर्ख
कालिदास हो जाता है।।"

निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि, छंद-विधान के बन्धन से परे 'कड़वाहट मीठी सी' के रूप में एक ऐसी कृति समाज के सम्मुख आयी है, जो आम जीवन को स्पर्श करने में पूर्णतया सफल है। हास्य-व्यंग्य का सार्थक एवं सटीक मिश्रण करते हुए, आकर्षक सजिल्द स्वरूप में तैयार यह कृति निश्चित ही व्यंग्य साहित्य की एक अनमोल धरोहर बनेगी, इसमें कोई संदेह नहीं। इस पावन एवं पुनीत कार्य के लिए रचनाकार एवं प्रकाशन संस्थान दोनों ही हार्दिक अभिनंदन एवं साधुवाद के पात्र हैं‌।

कृति : 'कड़वाहट मीठी सी'
रचनाकार : डॉ मक्खन मुरादाबादी
प्रकाशक : अनुभव प्रकाशन
(गाज़ियाबाद, दिल्ली, देहरादून, लखनऊ)
प्रथम संस्करण : 2019





मूल्य : 250 ₹
** समीक्षक : राजीव प्रखर
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत