शनिवार, 4 अप्रैल 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल के गांव कुरकावली निवासी साहित्यकार स्मृति शेष रामावतार त्यागी के नौ गीत--- ये गीत लिए गए हैं क्षेमचंद सुमन द्वारा संपादित कृति 'रामावतार त्यागी परिचय एवं प्रतिनिधि कविताएं ' से । इस कृति का प्रकाशन राजपाल एंड संस दिल्ली ने किया था। इसमें उनके 45 गीत हैं ----











 
                ::::::::::::: प्रस्तुति ::::::::::::
   
                 डॉ मनोज रस्तोगी
                  8, जीलाल स्ट्रीट
                  मुरादाबाद 244001
                  उत्तर प्रदेश, भारत
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मुरादाबाद के साहित्यकार आनन्द कुमार गौरव के छह गीत --- ये गीत उनके गीत संग्रह 'सांझी सांझ' से लिए गए हैं । यह संग्रह नमन प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा सन 2015 में प्रकाशित हुआ था। इस संग्रह में उनके 79 गीत संग्रहीत हैं







                   
                    :::::::::प्रस्तुति:::::::::

                    डॉ मनोज रस्तोगी
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शुक्रवार, 3 अप्रैल 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष राजेंद्र मोहन शर्मा श्रृंग के पांच गीत --- ये गीत उनके गीत संग्रह 'मैंने कब ये गीत लिखे हैं' से लिए गए हैं । उनका यह संग्रह लगभग 13 साल पूर्व श्रेष्ठ प्रकाशन लाइनपार मुरादाबाद द्वारा प्रकाशित किया गया था। इस संग्रह में उनके सन 1960 के बाद के चुने हुए 57 गीत हैं । संग्रह की भूमिका लिखी है योगेंद्र वर्मा व्योम ने---







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मुरादाबाद मंडल के चंदौसी, जनपद संभल (वर्तमान में अलीगढ़ निवासी) के साहित्यकार लव कुमार प्रणय की एक ग़ज़ल-- यह ग़ज़ल लगभग 42 साल पहले चन्दौसी से सन् 1978 में प्रकाशित स्मारिका विनायक के नवम अंक में छपी थी । यह स्मारिका प्रतिवर्ष मेला गणेश चतुर्थी के अवसर पर प्रकाशित होती है। इस स्मारिका के प्रधान संपादक रामबाबू अड़ियल थे जबकि संपादक रामअवतार गर्ग और कैलाश बिहारी मिश्र थे ।


                   
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मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा स्थित गुरुकुल कन्या महाविद्यालय चोटीपुरा की छात्राओं द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना -- प्रभु इस जगत से कोरोना हटा दो, कोई रोए ना ऐसा शुभ दिन दिखा दो । इसे लिखा है महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ सुमेधा ने... क्लिक कीजिए 👇👇👇👇👇👇👇👇

                 
     :::::::::::::प्रस्तुति:::::::::
               
     डॉ दीपक अग्रवाल
     एडिटर सन शाइन न्यूज
     37 ए ,अमरोहा ग्रीन कालोनी
      जोया रोड ,अमरोहा
      उत्तर प्रदेश, भारत
      मोबाइल फोन नंबर -9837912393

मुरादाबाद के साहित्यकार अनुराग रुहेला का गीत-- विनती यही सभी से इतनी सी बात मानो, जाओ ना घर से बाहर प्रण मन में अब यह ठानो


मुरादाबाद के साहित्यकार एवं संगीतकार आदर्श भटनागर का गीत -- क्यों निकलते हो घरों से, क्यों समझते ही नहीं, घर के अंदर ही रहो जानों कोरोना को जरा


मुरादाबाद जनपद के मूल निवासी साहित्यकार (वर्तमान में गाजियाबाद निवासी) डॉ कुंअर बेचैन का एक गीत --- यह गीत लिया गया है लगभग 53 साल पहले प्रकाशित गीत संकलन 'उन्मादिनी' से । यह संग्रह कल्पना प्रकाशन , कानूनगोयान मुरादाबाद द्वारा सन 1967 में प्रकाशित हुआ था। श्री शिवनारायण भटनागर साकी के संपादन में प्रकाशित इस संग्रह में देशभर के 97 साहित्यकारों के श्रृंगारिक गीत संग्रहीत हैं। इसकी भूमिका लिखी है डॉ राममूर्ति शर्मा ने


   
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             डॉ मनोज रस्तोगी
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मुरादाबाद के साहित्यकार ( वर्तमान में दिल्ली निवासी ) आमोद कुमार के मुक्तक -- ये मुक्तक लिए गए हैं लगभग 56 साल पूर्व सन 1964 में हिंदी साहित्य निकेतन द्वारा प्रकाशित साझा काव्य संग्रह 'तीर और तरंग 'से। मुरादाबाद जनपद के 39 कवियों के इस काव्य संग्रह का संपादन किया था गिरिराज शरण अग्रवाल और नवल किशोर गुप्ता ने । भूमिका लिखी थी डॉ गोविंद त्रिगुणायत ने ।




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गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार एवं पुरातत्ववेत्ता स्मृति शेष सुरेंद्र मोहन मिश्र के दो गीत -- ये गीत लिए गए हैं लगभग 56 साल पूर्व सन 1964 में हिंदी साहित्य निकेतन द्वारा प्रकाशित साझा काव्य संग्रह 'तीर और तरंग 'से। मुरादाबाद जनपद के 39 कवियों के इस काव्य संग्रह का संपादन किया था गिरिराज शरण अग्रवाल और नवल किशोर गुप्ता ने । भूमिका लिखी थी डॉ गोविंद त्रिगुणायत ने ।






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डॉ मनोज रस्तोगी
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मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में गाजियाबाद निवासी ) डॉ कुंअर बेचैन के दो गीत और परिचय । ये गीत वर्ष 1964 में प्रकाशित मुरादाबाद जनपद के कवियों के साझा काव्य संकलन "तीर और तरंग" में प्रकाशित हुए थे। संभवत: ये उनके पहले गीत होंगे जो किसी साझा संकलन में प्रकाशित हुए होंगे। यह संकलन हिन्दी साहित्य निकेतन संभल द्वारा गिरिराज शरण अग्रवाल और नवल किशोर गुप्त के संपादन में प्रकाशित हुआ था। भूमिका लिखी थी डॉ गोविंद त्रिगुणायत ने.....






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डॉ मनोज रस्तोगी

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मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की कहानी ---नेकलेस


   लॉकडाउन को समाप्त हुए आज ग्यारहवाँ दिन था । दीपक ने अपनी सर्राफे की दुकान हमेशा की तरह खोली तथा काउंटर साफ करने के बाद गद्दी पर बैठ गया। बाजार में सन्नाटा था । पिछले दस दिन से यही चल रहा था कि दीपक आकर दुकान खोलता था, गद्दी पर बैठता था और फिर शाम को खाली हाथ घर वापस लौट जाता था। बिक्री के नाम पर बोहनी तक नहीं होती थी ।
          ग्यारहवें दिन भी दीपक उदास बैठा था। सोच रहा था कि शायद आज भी कोई ग्राहक न आए ,लेकिन तभी सामने से नई कॉलोनी वाली मिसेज शर्मा दुकान पर चढ़ीं।  उन्हें देखकर दीपक की आँखों में चमक आ गई । लॉकडाउन से थोड़े दिन पहले ही तो मिसेज शर्मा दुकान पर आकर एक सोने का नेकलेस पसंद करके गई थीं। कीमत बयालीस हजार रुपए बैठी थी । नेकलेस उन्हें पसंद आ रहा था लेकिन इतने पैसे की गुंजाइश नहीं थी । अतः "बाद में कभी आऊंगी "-कह कर चली गई थीं। आज जब आईं तो दीपक को लगा कि शायद आज कुछ बिक्री हो जाए ।
          "बैठिए मिसेज शर्मा ! क्या नेकलेस.." दीपक का इतना कहना ही था कि मिसेज शर्मा ने कहा " हाँ! नेकलेस के बारे में ही आई हूँ।"
        सुनकर दीपक खुशी से उछल पड़ा। वाह ! आज का दिन तो बहुत अच्छा रहा। लेकिन यह खुशी मुश्किल से आधा मिनट ही टिकी होगी क्योंकि मिसेज शर्मा ने अपने पर्स में से एक पुराना टूटा- फूटा नेकलेस निकाला और कहा " लालाजी ! आप से ही तीन- चार साल पहले खरीदा था । अब बेचने की नौबत आ गई..." कहते हुए मिसेज शर्मा की आँखें भर आई थीं।
        दीपक से भी कुछ और नहीं पूछा गया। उसने नेकलेस तोला और हिसाब लगाकर मिसेज शर्मा को बता दिया " नेकलेस छत्तीस हजार रुपए का बैठ रहा है । आप कहें तो रुपए दे दूँ?"
     " हाँ! रुपए दे दीजिए । इसी लिए तो लाई हूँ।"
         तिजोरी से रुपए निकालकर दीपक ने मिसेज शर्मा को दे दिए । मिसेज शर्मा रुपए ले कर चली गईं। उनके जाने के बाद दीपक ने नेकलेस को तिजोरी में रखने के लिए हाथ बढ़ाया लेकिन फिर कुछ सोच कर उसने नेकलेस को अपनी कमीज की जेब में रख लिया और बुदबुदाकर स्वयं से कहने लगा "मुझे भी तो घर-खर्च चलाने के लिए नेकलेस गलाना ही पड़ेगा ।"-उसकी आंखें भी यह बुदबुदाते हुए भर आई थीं।

 *** रवि प्रकाश
 बाजार सर्राफा
 रामपुर
उत्तर प्रदेश
 *मोबाइल 99976 15451*

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की कहानी--- लॉक डाउन



"ये लीजिये,चाय पी लीजिये,"मीनू ने अखबार पढ़ते हुए सुमित के आगे पड़ी टेबल पर चाय रखते हुए कहा ।सुमित ने मुस्कुराते हुऐ ,"शुक्रिया जनाब" कहा तो मीनू हौले से हँसते हुऐ बोली,"ओहो..क्या बात है ..!आजकल बड़े शुक्रिया अदा करने लगे हो।" "हाँ...बस यूँ ही..आज मन किया कि तुम्हें शक्रिया  बोलूँ..!वाहहह!!चाय तो बड़ी अच्छी बनी है..।"सुमित ने चाय पीते हुऐ कहा तो मीनू भी हँसते हुऐ बोली,"हार्दिक आभार आपका जी...."फिर दोनो ही जोर से हँस पड़े।"मीनू रसोई में जाकर नाश्ता बनाने लगी। सुमित को अपने अस्पताल जाने की तैयारी करते देख चिंतित स्वर में बोली,"सुनो अपना ध्यान रखना,कोरोना बहुत तेजी से फैल रहा है,अस्पताल में पता नहीं कैसे कैसे मरीज आते होंगे।""ओके बाबा"मैं अपना पूरा ध्यान रखूँगा,पर तुम और बच्चे घर के भीतर ही रहना,इस महामारी का अभी तक कोई इलाज नहीं मिला है।घर में रहना ही इससे बचने का एकमात्र उपाय है।" "जानती हूँ..।...इसलिये तुम्हारे जाते ही घर में ताला लगा देती हूँ..चलो अब नाश्ता करो...देर हो रही है.।"मीनू ने कहा।
पिछले सात आठ दिन से सुमित  के  पूरे घर का माहौल ही बदला हुआ  सा लग रहा था ।वैसे तो  कोरोना के देश में फैलने के  कारण मन मस्तिष्क में एक   तनाव सा बना हुआ  तो था, पर लगता था कि घर में कुछ नयापन सा है।वैसे तो घर में कोई कमी न थी,पर ऐसा माहौल भी पहले कभी न बना था।बात बात पर बच्चों पर झुंझलाने वाली मीनू न जाने कितने समय बाद बच्चों के इतने करीब थी।बच्चे भी खुश थे कि उन्हें माँ के दुलार के साथ प्रतिदिन कुछ नया व्यंजन भी खाने को  मिल रहा था। छत पर रखे गमले जो कभी पानी को भी तरस जाया करते थे ,आज मौसमी फूलों से लद गये हैं।जिस स्टोर रुम में कोई सामान न मिलता था,वहाँ भी एक सुघड़ता दिखने लगी थी ।घर के दर्पण जिन्हें वो बदलने की सोच रहे थे,सब चमचमा रहे थे।  पूरा घर अनुशासित और व्यवस्थित नज़र आने लगा था ।जिन रुमालों  और मौजौं को अथक प्रयास से भी वह कभी ढूँढ न पाता था,वो करीने से उसकी अलमारी में रखे मिलने लगे थे।जो बच्चे हमेशा ऊलूल जुलूल कार्टून देखते थे,वो भी अब दूरदर्शन पर उसी बेसब्री से रामायण के आने की प्रतीक्षा करने लगे थे,जैसे कभी वह अपने बचपन में पूरे परिवार के साथ रामायण देखने की प्रतीक्षा करता था।अभी तक उसे यही लगता था कि आजकल के बच्चे कलयुगी हो गये हैं,और धार्मिकता और भारतीय संस्कृति से विमुख हो गये हैं।पर उन्हें भगवान राम के दुख में दुखी तथा उनके शौर्य पर रोमांचित होते देख,अपना बचपन याद आ गया था।सोच रहा था कि बच्चे नहीं बदले,हम लोगों ने ही कभी सही प्रयास नहीं किया। मीनू एक शिक्षिका थी और घर व बाहर दोनो को अच्छे से निभाने की कोशिश करती थी।सुमित एक सरकारी अस्पताल में डाक्टर था।नौकरी के चक्कर में दोनो चाहते हुए भी कभी अपने परिवार व बच्चों को समय नहीं दे पाये थे।मीनू को गर्मियों व सर्दियों की छुट्टियाँ ज्यादा गरमी और ज्यादा ठंड के कारण कुछ विशेष अच्छी न लगती थीं। हमेशा झुंझलायी रहने वाली मीनू को अब एक अरसे के बाद अपने घर को सँवारने,बच्चों और पति पर अपना स्नेह और प्रेम उडेलने का अवसर मिला था। घर परिवार को एक साथ खिलखिलाता देख नाश्ता करता हुआ  सुमित मन ही मन मुस्कुरा उठा और धीरे से बड़बड़ाया, "लाक डाउन इतना भी बुरा नहीं है।"

‌***मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
‌मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार नवाज अनवर खान की कहानी ---बदला


चिंटू सड़क पर टहल रहा था तभी अचानक एक तेज़ रफ़्तार कार ने उसे ज़ोरदार टक्कर मार दी। चिंटू लहूलुहान होकर गिर पड़ा और सड़क पर तड़पने लगा। उसके ऊपर से सैकड़ों वाहन गुज़र गये उसे कोई बचाने नहीं आया। करीब 15 मिनट तड़पने के बाद चिंटू ने दम तोड़ दिया।
चिंटू की मौत की ख़बर सुनकर उसके परिवार में कोहराम मच गया क्योंकि दो महीने पहले ही उसके छोटे भाई मिंटू की मौत भी एक तेज़ रफ़्तार बस के नीचे आने से हो गयी थी। जैसे-तैसे चिंटू का अंतिम संस्कार कर दिया गया लेकिन अब उसका परिवार और सब्र नहीं कर सकता था चिंटू के पापा सरपंच शेरा से मिलने उनके घर गए शेरा ने चिंटू की मौत पर अपनी संवेदनाएं व्यक्त कीं।
"आखिर कब तक हमारे बच्चे ऐसे ही मरते रहेंगे कुछ तो करना होगा सरपंच साहब" चिंटू के पापा ने कहा और बहुत देर की वार्तालाप के बाद एक सभा का आयोजन करने का निर्णय लिया गया और शेरा ने गांव में एक सभा करने की घोषणा कर दी। सभा हुई, जिसमें दूर दराज़ के गांवों से आये कुत्तों ने अपनी आपसी रंजिशें भुलाते हुए इस सभा में भाग लिया।
चिंटू के पापा माइक पर आये और उन्होंने बोलना शुरू किया- आख़िर कब तक वफ़ादारी दिखाएंगे हम लोग, कब तक चिंटू और मिंटू की तरह ऐसे अपनों को खोतें रहेंगे, ऐसे चुपचाप बैठकर अपनों की मौतें कब तक देखें, कब तक... अगर हमने अब कोई बड़ा कदम नहीं उठाया तो हमारे अपने ऐसे ही हमें छोड़कर जाते रहेंगे आज मिंटू, कल चिंटू, फिर कोई और....हमारी जाति ही खत्म न हो जाये मुझे तो अब यह डर भी सता रहा है। क्या कुछ नहीं करते हम इंसानों के लिए रात-रात भर जागते हैं कि कहीं इनके घरों में कोई बाहरी न घुस जाये फिर भी इनके बच्चे हम पर ईंटे मारते हैं, इन्हें गुस्सा आता है तो कभी भी डंडा मार देते हैं। अभी पीछे चिंटू की माँ को तेज़ का ज़ुकाम था वो दवाई के लिए भटक रही थी अचानक एक इंसानी बच्चे ने उसपर पानी डाल दिया क्या यह अन्याय नहीं है, क्या ज़ुकाम इनको ही होता है, क्या हम लोग बस इनके अत्याचार सहने के लिए बने हैं?
चिंटू के पापा भावुक हो गए और मंच पर ही रो पड़े, खुद सरपंच शेरा ने आकर उन्हें संभाला और ज़मीन पर बिठाया।
शेरा ने माइक सँभालते हुए कहा- अब वक्त आ गया है हम लोग अपनी आपसी रंजिशें भुला दें और अपने परिवारों की हिफाज़त के लिए कुछ बड़ा कदम उठाएं। शेरा ने आगे कहा कि अगर किसी के पास कोई सुझाव है तो वह माइक पर आकर सबको बताये।
कुछ गांव के कुत्तों का कहना था कि इंसान जहां कहीं भी दिखे उसको लपककर काट लो और उसका इतना मांस नोंच लो की वह मर जाये। लेकिन शेरा ने कहा कि हम भी अगर इंसानों की तरह ही बेगुनाहों की जान लेंगे तो उनमें और हम में क्या फ़र्क रह जायेगा।
कुछ कुत्तों ने इंसानी घरों में घुसकर लूटपाट करने की सलाह दी। वह कह रहे थे की इंसानों के घर में जो भी रखा हो उसे मुँह में दबाकर ले आओ चाहे वह खाने का न भी हो, अगर खाने का न हो तो उसको सड़क पर व्यर्थ कर दो और इंसानों का खूब नुकसान करो।
हालांकि कुछ बूढ़े कुत्ते यह भी कह रहे थे की हमें खुद ही अपने बच्चों का ख्याल रखना चाहिए, उन्हें सड़क तक जाने ही न दो जो कोई इंसान उन्हें रौंदकर चला जाये।
बहुत सारे कुत्तों ने अपने-अपने सुझाव दिए लेकिन सरपंच शेरा कोई ऐसी तकनीक की खोज कर रहे थे जिससे इंसानी क़ौम को साफ-साफ पता चल जाये की अब कुत्ते खामोश नहीं बैठेंगे और वह उनसे बदला ले रहे हैं। सरपंच शेरा की मंशा थी की हम ज़्यादा आतंक भी न मचाएं और इंसानों को सबक भी सिखा दिया जाये। वह दूरदर्शी थे उन्हें पता था कि अगर कुत्ते इस प्रकार के किर्याकलाप करेंगे जो सुझाव दिए गए हैं तो इंसानों को गुस्सा भी आएगा और कुत्तों पर होने वाले अत्याचार और ज़्यादा बढ़ जाएंगे।
अंततः शेरा ने एक नई तकनीक खोज ली और देखते ही देखते हज़ारों की तादाद में कुत्ते शांतिपूर्वक सड़कों पर उतर आये। सारे मुख्य मार्गों को कुत्तों ने अपने कब्ज़े में ले लिया। भौं-भौं की आवाज़ें आसमान को छूने लगीं। कुत्तों के सड़कों पर उतर आने से सारा ट्रैफिक जाम हो गया। पुलिस अफसरों ने कुत्तों को सड़कों से भगाने की खूब कोशिश की लेकिन जैसे ही कोई पुलिस वाला कुत्तों के करीब आता, बहुत सारे कुत्ते उससे लिपट जाते और काट लेते तो पुलिस वालों की हिम्मत भी नहीं हो रही थी की वह उनके नज़दीक जाएँ। वह गोली भी नहीं चला सकते थे क्योंकि हज़ारो कुत्तों की भीड़ में सबको तो मारा नहीं जा सकता था।
पुलिस कमिश्नर ने फौरन कुत्तों की भाषा समझने और कुत्तों को उनकी भाषा में ही समझाने वाली टीम को बुला लिया। वह टीम पूरी तैयारी के साथ आई उन अफसरों के कपड़ों पर कुत्ते नहीं काट सकते थे।
जैसे ही उनका अधिकारी कुत्तों की तरफ बढ़ा कुत्ते भी उसे काटने के लिए दौड़े लेकिन वह काट नहीं पाए। बार बार कई कुत्ते काटने का प्रयास कर रहे थे लेकिन काट नहीं पा रहे थे।
यह देखकर शेरा समझ गया कि यह कोई इंसानी अधिकारी है और उसने सारे कुत्तों को एक किनारे होने का आदेश दिया।
अब सारे कुत्ते सड़क के किनारे हो गए और गोल घेरा बनाकर खड़े हो गए बीच में सिर्फ़ उस टीम के अधिकारी, सरपंच शेरा और चिंटू-मिंटू के मम्मी-पापा थे।
उन्होंने भौंक-भौंककर और रो-रोकर अपनी बात कहना शुरू की और चिंटू-मिंटू की मौत के बारे में अधिकारी को सारी बात बताई। अधिकारी ने उनकी समस्या सुनकर उनकी भाषा में समझाना शुरू किया और इंसानी कानूनों में सुधार होने की बात कही और शेरा व बाकी सारे कुत्तों को उनकी सुरक्षा का आश्वासन दिया और उनसे सड़क से हट जाने की विनती की। शेरा के आदेश पर सब कुत्ते अपने-अपने गांवों को लौट गए। फिर कभी किसी इंसानी वाहन ने किसी कुत्ते को नहीं कुचला अगर कोई कुत्ता सामने आ भी जाता तो वाहन चालक एकदम ब्रेक लगा लेते और कुत्तों को भी मरने से बचाने की पूरी कोशिश ऐसे ही करते जैसे इंसानों को बचाने की किया करते थे।


***नवाज़ अनवर ख़ान
च 21, कबीर नगर, एमडीए कालोनी,
 निकट प्रेम वंडर लैंड
 मुरादाबाद-244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मो. +91 8057490457

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल के साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की कहानी --ईश्वर जिंदा है



एक छोटे कस्बे में स्वाभिमानी परिवार रहता था जिसमें पति पत्नी और उसके दो बच्चे मीना और कृष्णा जोकि क्रमशः कक्षा पांच और कक्षा तीन में पढ़ते थे,कम संसाधनों में ही जीवनयापन कर रहे थे।दोनों बच्चों का मजबूर पिता,मुरारी टिक्की का ठेला लगाकर,अपने परिवार का पालन-पोषण करता था।यह अलग बात है कि वह केवल अपने कर्तव्य का ही पालन कर रहा था,अल्प आय के कारण,पोषण तो दूर की बात थी।बच्चों को पोषक तत्वों की जानकारी तो थी क्योंकि स्कूल में शिक्षक ने उनको पाठ पढ़ाया था लेकिन फलों,दालों और हरी सब्जियों का स्वाद,उन बच्चों को कम ही मिल पाता था।खैर यह परिवार,संतोष धारण करके,कम इच्छाओं का बोझ लेकर,चिंताओं से मुक्त होकर जी रहा था,लेकिन ईश्वर भी अपने भक्तों की परीक्षा समय-समय पर लेते ही रहते हैं,भले ही दुष्टों को दुष्टता करने का पूरा मौका देते रहें।
एक बार,जानलेवा महामारी से शहर कर्फ्यू ग्रस्त हो गया,लोग घरों में कैद हो गये,बाहर निकलने पर पुलिस का खौफ और आवारा घूमते पशु भी,अपनी रोटी का इंतजार करने लगे।मुरारी का ठेला भी घर में कैद हो गया और ठेले के साथ ही,उनका खाना-दाना और रोजमर्रा की चीजें भी अप्राप्त हो गईं,जैसे-तैसे 4 दिन कटने के बाद,स्टोर हुआ राशन भी जवाब दे गया और साथ ही परिवार के सदस्यों का धैर्य भी। मुरारी और उसकी पत्नी जयंती इस मुसीबत पर गहन चिंतन करने लगे,इतने में बच्ची मीना ने अपनी गुल्लक,(जिसमें सुबह की पूजा के बाद धर्मार्थ ₹1 रोजाना डाला जाता था)को तोड़ दिया।
 सिक्कों की खनक के साथ ही,सबके चेहरों पर खुशी झलकने लगी। जयंती,सिक्कों की पोटली बनाकर,आटा-चावल आदि लेने को बाजार गई। लाला रूपकिशोर को पैसे गिनवाए तथा उतनी ही कीमत का राशन मांगा।लाला को पूरा किस्सा समझते देर न लगी,लाला ने पूरे 1 महीने का राशन उसको बांध दिया। पैसे ना लेने की बात कहते हुए,लाला ने कहा कि इस समय आपके घर पर पैसों का अभाव होगा इसलिए मैं उधार कर लेता हूं,यह पैसे फिर दे देना।लेकिन स्वाभिमानी जयंती ने लाला की बात नहीं मानी,उसने सिक्के की पोटली थमा दी और फिर लाला ने बिना झिझक,सिक्कों की पोटली ले ली। जैसे ही जयंती गई,तुरंत लाला ने, वो पोटली,अपने आसन के ऊपर बने भगवान के मंदिर में,भगवान से क्षमा मांगते हुए रख दी।कुछ दिनों के झंझावात के बाद, कर्फ्यू के बादल छटे, महामारी शांत हुई और चहल-पहल शुरू हुई।
लाला रूपकिशोर,मुरारी के घर गया और सिक्कों की पोटली देकर कहा- ''मुझे माफ कर देना, मेरे अंदर का इंसान अभी जिंदा है,ईश्वर ने मुझे,दूसरों के काम में आने लायक बनाया है तो फिर मैं ईश्वर से धोखा क्यों करूं?मेरे ईश्वर,आपकी पत्नी,जयंती के रूप में,मेरी परीक्षा लेने पहुंचे थे,और मैं नहीं चाहता कि मैं उनकी परीक्षा में असफल हो जाऊं इसलिए तुम यह सिक्के,भगवान के मंदिर में रख दो, किसी अन्य जरूरतमंद के काम आऐंगे।''
मुरारी और जयंती के आंखों में आंसू आ गए,रोते हुए भारी आवाज में,मुरारी ने कहा - ''सचमुच ईश्वर जिंदा है,जिस दिन लोगों के आंखों की शर्म,ह्रदय में दया-करुणा और दिलों में सहानुभूति मर जाएगी,मैं समझूंगा कि ईश्वर मर गया।''

***अतुल कुमार शर्मा
संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 8273011742, 9759285761

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की लघुकथा --- गधत्व


"हट हट ....चल चल चल... ."
आसमान पर काले घनघोर बादल घिर आये थे। खराब हो चुके मौसम के बीच, बाग में बेफ़िक्र घूम रहे अपने प्रिय गधों को घर के भीतर करने का प्रयास करते हुए हरिया लगातार चिल्ला रहा था। गधे भी किसी निराली मिट्टी के ही बने थे, भीतर जाने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
"हssssट .......चल......अंदर... हsssट...",
गधों की बेफ़िक्री से परेशान होकर बौखलाया हरिया अब डंडा लेकर उन पर पिल पड़ा था।  उसकी मेहनत रंग लाई और गधे खराब होते मौसम के बीच आखिरकार घर के भीतर चले गए।
हरिया के चेहरे पर अब संतोष की लकीरें उभर रही थीं क्योंकि, उसने अपने प्यारे गधों को खराब मौसम से बचाते हुए, सुरक्षित घर के भीतर कर लिया था।

***राजीव 'प्रखर'
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद की साहित्यकार स्वदेश सिंह की लघु कथा --आनन्द


अरे -अरे बेटा  मांझे को ढीला करो वरना  पतंग कट जाएगी...आवाज   सुनकर जब मैंने बाहर देखा तो पड़ोस में रहने वाला सुनील अपने बेटे को पतंग उड़ाने  की बारीकियां समझा रहा था। देखकर मन में अजीब सी खुशी महसूस हुई कि आज कितने दिन...साल बाद सुनील को अपनी इच्छा पूरी करने का मौका मिला है।
    एक समय था जब सुनील पतंग उड़ाने में नंबर-1 था... उसके पापा उसे बार-बार पढ़ाई के लिए कहते थे परंतु उसका मन पढ़ाई में न लगकर पतंग में ज्यादा लगता था । चोरी छिपे घर की छत पर पहुंचकर भरी दोपहर  में पतंग उड़ाना उसकी दिनचर्या  था.... जिसके लिए   रोज अपने पिताजी की डांट और मार दोनों खाता था परंतु आज 18- 20 साल बाद उसे इस तरह खुश देख कर मन को बड़ी शांति  मिल रही थी ,जबसे उसके पापा का स्वर्गवास हुआ है, वह सुबह 6:00 बजे से रात को 11:00 बजे तक घर में ही बनाई हुई दुकान पर बुझे मन से पूरे दिन बैठा रहता है और ग्राहकों को सामान देता रहता है।उसे मुस्कराते हुए  शायद ही कभी किसी ने देखा हो... परंतु आज कोरोना वायरस के कारण पूरे देश मे लॉकडाउन होने से उसका  पुराना शौक  पुनः  जीवित हो गया ।  वह अपने बेटे के साथ बहुत खुश नजर आ रहा है।

***स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की कहानी --बेजुबान कुत्ते


लॉक डाउन के कारण मनीष कई दिन से अपने घर में था,ना वह खुद बाहर निकल रहा था और ना ही अपने परिवार के किस सदस्य को उसने बाहर निकलने दिया था । उसने मंदिर जाना भी छोड़ दिया था और पूजा-पाठ भी वह घर पर ही करता था ।           नौदुर्गे में पूरे व्रत रखने वाला मनीष एक साधारण सा इंसान था । एक दो बार जरूरत का सामान उसने अपने घर के सामने ही आए हुए ठेले वालों से खरीद लिया था । वह अक्सर मोहल्ले के युवाओं से सड़क पर ना आने और घर के बाहर खड़े ना होने की निरंतर अपील भी करता रहता था ।
    आज घर में ब्रेड नहीं थी, जब उसकी पत्नी सुनीता ने उसको ब्रेड लाने के लिए कहा,तो मनीष बाहर ब्रेड लेने चला गया ।जैसे ही वह घर से बाहर निकला मनीष को मौहल्ले के 3-4 कुत्तों ने घेर लिया । मनीष डर रहा था, कोई कुत्ता उसको काट नहीं रहा था,लेकिन वह उसको आगे जाने भी नहीं दे रहे थे । कुत्ते बार-बार खड़े हो जाते और मनीष के चारों ओर चक्कर काट रहे थे, मनीष की समझ में नहीं आ रहा था क्या करे ? तभी सामने देख रहे दुकानदार सलीम ने मनीष को आवाज देकर कहा कि कुत्ते भूखे हैं,और ये आपसे कुछ खाने को मांग रहे हैं । आप आहिस्ता आहिस्ता आ जाइए और मनीष आहिस्ता आहिस्ता सलीम की दुकान तक पहुंच गया और दुकान से ग्लूकोज बिस्किट का पैकेट लेकर जैसे ही कुत्तों को डाला, वे बिस्किट बड़े प्रेम से खाने लगे और जब पैकेट खत्म हो गया तो बिना कुछ कहे वहां से चले गए ।
   अब जब भी मनीष घर से बाहर निकलता, वे सारे कुत्ते मनीष के पैरों में लोटने लगते और मनीष भी  अपनी जेब में बिस्किट का पैकेट लेकर ही निकलता,शायद मनीष बेजुबानों का दर्द समझने लगा था,और बेजुबान कुत्ते भी मनीष के प्यार को पहचानने लगे थे । मनीष सोचता काश देश और दुनिया भर में सांप्रदायिकता और आतंकवाद फैलाने वाले जातिवाद धर्मवाद की लड़ाई लड़ने वाले इंसान बेजुबानों की इन भावनाओं को समझ पाते ...

***मुजाहिद चौधरी
हसनपुर
जनपद अमरोहा
उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार फरहत अली खान की लघुकथा --वादा



“ये अजीब वबा फैली कि सारी दुनिया मुसीबत में है।”

“हाँ, मगर इस का एक अच्छा पहलू भी नज़र आया। अगर कुछ को छोड़ दिया जाए तो लॉक-डाउन में देश का हर आदमी घर में बैठा है। सब ने एकता का सबूत दिया। इस इम्तेहान की घड़ी में ये बहुत बड़ी बात है।”

“हाँ, बड़ी बात तो है। मगर हमारी एकता का असली इम्तेहान तो तब होगा जब हम इस महामारी से बचने में कामयाब हो जाएँगे।”

“मतलब...?”

“मतलब ये कि इस वक़्त तो हमारा एक साथ होना फिर भी आसान है, क्यूँ कि इस महामारी से हम सभी को बराबर तौर से ख़तरा है। लेकिन जब ये बुरा दौर गुज़र जाएगा और तब अगर हम में से किसी एक पर कोई मुसीबत आती है, तो ये देखने वाली बात होगी कि हम सब उस एक के साथ खड़े होते हैं या नहीं। दर अस्ल तब ही हमारी एकता का असली इम्तेहान होगा। तब भी हम इसी तरह एकजुट रहेंगे न?”

“.....”

“.....”

“हाँ, ज़रूर। हम तब भी एकजुट रहेंगे। उस एक के लिए आवाज़ बुलंद करेंगे, उस के साथ खड़े होंगे।”

“हमारी एकता सलामत रहे।”

***फरहत अली खान
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद की साहित्यकार मंगलेश लता यादव की कहानी -- एक चिट्ठी बच्चों के नाम


प्यारे बच्चों,
              बहुत बहुत प्यार
अत्र कुशलं तत्रास्तु । आशा ही नही वरन् पूरी उम्मीद करती हूँ कि आप भी अपने माता पिता भाई बहन सभी के साथ सकुशल होगे,  आगे समाचार यह है आप लोगो से मुलाकात हुई काफी लम्बा समय हो गया और आपकी कौई खैर खबर भी नही मिल रही तो सोचा क्यों न आपको पत्र लिखूँ  ।    जैसा कि आप सभी इस समय समाचार पत्रों एवं टीवी पर देख रहे कि  आजकल पूरे विश्व मे मानवजाति पर कितना गहरा संकट छाया हुआ है कोरोना वायरस ने हम सब के जीवन को खतरे मे डाल दिया है ।
हम सब की जिंदगी बहुत मजे मे व्यतीत हो रही थी । कुछ की परीक्षा समाप्त होकर परिणाम का इंतजार था तो कौई आगामी परीक्षा की तैयारी मे था हम भी तो  आपके परीक्षाफल को बड़े मनोयोग से बना रहै थे, लेकिन अचानक सब कुछ बदल गया और हम घरो मै केद होन को मजबूर हो गऐ  अब आपस मे हमारा कौई सम्पर्क नही हो रहा  है अत  आपको पत्र द्वारा कुछ बातें बताना चाहती हूँ ध्यान से पढें।हम सब आपके अभिभावक, माता- पिता हैं एवं हम सबसे बड़ा आपका कोई शुभचिंतक नहीं हो सकता है। आप अवगत हैं कि कोरोना वायरस के संक्रमण से पूरे देश को मिलकर लड़ाई लडनी है। मा. प्रधानमंत्री जी ने स्वयं सभी का आह्वान किया है और जनता कर्फ्यु में सहयोग मांगा है।अत: हम सब आपसे अपील करते हैं कि कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए सभी बच्चे अपने- अपने घरों,हास्टल अथवा जहाँ भी हैं, वहीं रहें। रेल,बस,हवाई जहाज से या किसी भी तरह के भीड़_भाड़ बाले वाहनों/ सार्वजनिक साधनों से यात्रा न करें। इस प्रकार के साधनों से यात्रा करने पर भी संक्रमण व्यापक रूप से फैलता है। पुनः अपील है कि प्यारे बच्चों घर, हास्टल या जहाँ हैं,वहीं पर सुरक्षित रहें एवं देश की इस लड़ाई में सहयोग करें।आप अपने हाथ साबुन से एक नियमित अन्तराल पर अच्छी तरह से धोयें।
      और हाँ हम सब फिरसे जल्दी ही मिलेंगे और पुनः अपने उन पुराने दिनो में  लौटेंगे। जब तक लाकडाउन  है तब तक आप मे से कौई बाहर ना निकले । इन छुट्टियों का सदुपयोग करना अपनी प्रोजेक्ट फाईल तैयार करना जिसमे कोरोना के बारे मे विस्तार से लिखना चित्र सहित वर्णन करना है । अपने माता पिता और छोटे भाई बहनों का विशेष ध्यान रखना  । अपनी मां के साथ घरेलू कामो मे हाथ बटाना । पत्र ज्यादा लम्बा हो गया है शेष अगले पत्र मे लिखूंगी। अपनी कुशलता का समाचार शीघ्र देना । अपने माता पिता को मेरा नमस्कार कहना और छोटे बच्चों को प्यार ।
                   आपकी प्यारी मैडम
                     मंगलेश लता यादव
                             मुरादाबाद

बुधवार, 1 अप्रैल 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष ललित भारद्वाज के कुछ मुक्तक-- ये मुक्तक उनके मुक्तक संग्रह 'प्रतिबिंब' से लिए गए हैं। इस कृति का प्रकाशन लगभग 43 साल पहले सन 1977 में हुआ था और इसे प्रकाशित किया था प्रभायन प्रकाशन 41ए, गांधी नगर, मुरादाबाद 244001 ने । इस कृति में उनके 200 मुक्तक संग्रहित हैं। कृति की भूमिका प्रो. महेंद्र प्रताप द्वारा लिखी गई ।










            ::::::;;;;;;;:प्रस्तुति ::;;;;;;;::::::::
           
             डॉ मनोज रस्तोगी
             8, जीलाल स्ट्रीट
             मुरादाबाद 244001
            उत्तर प्रदेश, भारत
            मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मुरादाबाद की साहित्यकार पूनम गुप्ता की कविता ---कोरोना सबके आगे खड़ा है , तुम भी कुछ करो ना


मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी शायर स्मृति शेष रईस रामपुरी की गजल जिसे प्रस्तुत कर रहे हैं मुरादाबाद के संगीतकार विनीत मोहन गोस्वामी


मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की गजल --रो रही जिंदगी अब हँसा दीजिये ....


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की गजल --बुरी लगती न रिश्वत देनी हमको काम के आगे, हुई हैं आम अब कितनी ये भ्रष्टाचार की बातें


छुपाती मीडिया भी है बहुत सरकार की बातें
बहुत घूमी हुई होती हैं अब अखबार की बातें

कभी प्रॉमिस कभी टेडी कभी तो रोज डे मनते
जुबां पर आजकल सबके ही देखो प्यार की बातें

ये नेता खुद तो चलते हैं सदा विपरीत धारा के
मगर जनता से करते हैं नदी की धार की बातें

किसी को याद अपने फ़र्ज़  तो रहते नहीं देखो
यहाँ सब चीखकर करते मगर अधिकार की बातें

बुरी लगती न रिश्वत देनी हमको काम के आगे
हुई हैं आम अब कितनी ये भ्रष्टाचार की बातें

नहीं पथ छोड़ना सच का यहाँ डरकर विरोधों से
जहाँ पर फूल हैं होंगी वही पर खार की बातें

जगाना 'अर्चना' है जोश लोगों के दिलों में अब
कलम से हो रही हैं इसलिये ललकार की बातें

***डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत