गुरुवार, 28 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार फक्कड़ मुरादाबादी की हास्य कविताएं


मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर रस्तोगी की कविता ------ याद आती है तुम्हारी मुझे


मुरादाबाद मंडल के चन्दौसी जनपद संभल ( वर्तमान में अलीगढ़ निवासी) के साहित्यकार लव कुमार प्रणय की गीतिका


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ सरोजिनी अग्रवाल का नाटक ---- आदमी कहां गया













✍️ डॉ सरोजिनी अग्रवाल
ए -15, देव विहार कालोनी
कमिश्नर आवास के निकट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456011596

बुधवार, 27 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ सुधीर कुमार अरोड़ा की कविता ------ मां


मैं और यह सर्द हवा
आग और बर्फ की तरह
खुले आसमान के नीचे
रहते हैं खुलकर!

एक समय था
जब यह सर्द हवा
अपने नुकीले दांतों से
मुझे काटती थी

समय का चक्र बदला
प्रकति बदली
आग बर्फ हो गई
बर्फ आग

आज यह बर्फीली आग
मुझे काटती नहीं
बल्कि
मेरा चुम्बन करती है
अपने प्यार का इज़हार
करने के लिए
मेरे अस्थिपंजर में प्रवेश कर जाती है

मैंने भी एक सच जान लिया है
कि
हम एक दूसरे के बिना अधूरे हैं

मैं ही दर्शक हूँ
मैं ही कलाकार
चल पड़ा हूँ, बस चल पड़ा हूँ
बिना जाने
कि कहाँ होगा पड़ाव
बस चल पड़ा हूँ इस वृत्ताकार पथ पर
जो
मुझे बार-बार ला देता है
जहाँ पर मुझे मिलता है
एक भिखारी

मैंने पूछा
तुम यहाँ क्यों आते हो
यहाँ तो भीख भी नहीं मिलती
यह जगह लोगों को दुखी बना देती है
एहसास कराते हुए
कि
एक दिन तुम्हे भी यहाँ आना है

वह मुस्कराया
बोला
न मैं बुद्धिमान
न मैं दुखी
मैं तो बस आता हूँ
सिर्फ सर्द हवाओं से बचने के लिए
ये चिताएँ मुझे गर्माहट देती हैं
मेरे अस्तित्व को बरक़रार रखती हैं
हालाँकि
यह बात दूसरी है
कि
जब ये चिताएँ चिताएँ नहीं थी
तब भी आग में जलती थी
फर्क सिर्फ इतना हैं
कि तब अन्दर से जलती थी
अब बाहर से

चिंता की आग
किसी काम की नहीं होती
उसके अपनों को ही
ठंडा कर देती है

लेकिन
चिता की आग
काम को जलाती हैं
और
पंछी को मुक्त कराती हैं

मुझ स्वार्थी के लिए तो बस
इतना है कि
कम से कम मुझे यह आग
बचाती हैं
अपनी गर्माहट से
मैं जिन्दा हूँ
चिता से
चिंता तो मुझे मार ही डालती

काम आग है
आग ही मेरा काम
और
मैं भलीभांति जान गया हूँ
कि
इस आग का अस्तित्व बर्फ में छिपा हैं
इसलिए
ये सर्द हवायें मुझे सताती हुई नहीं लगती
क्योंकि
मैं इन्हें अब प्यार करता हूँ
और यह भी सच है
कि
बर्फ और आग के बीच ही मैं जिन्दा हूँ

एक चिता मेरे अपने की
देख रहा था
निहार रहा था
उस पवित्र आत्मा को जिसने मुझे जन्म दिया
मुझे लगा
वह आत्मा मुझे आशीर्वाद दे रही थी

बेटे, हरहाल में खुश रहना
चिता की वो लपटें मुझे झुलसा नहीं रही थी
बल्कि ममता का गर्म स्पर्श दें रही थी

मैं जान गया
एक सच-
सच उस भिखारी का
उसके बार-बार मिलने का
एक चिता जो मेरे लिए मेरी माँ की चिता थी
लेकिन
भिखारी के लिये अस्तित्व की वजह

मैं उसके सामने नतमस्तक हो गया
सभी चिताएं ममता का स्पर्श दे रहीं थी
इसलिये वह खुश था

मैं सोचने लगा
कि
भिखारी कौन है
वह जिसके पास कुछ नहीं,
फिर भी खुश हैं
या मैं
जिसके पास सब कुछ हैं
फिर भी खुश नहीं हूं।

✍️  डॉ सुधीर कुमार अरोड़ा
अध्यक्ष
अंग्रेजी विभाग
महाराजा हरिश्चन्द्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय
लाजपतनगर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की लघुकथा------ करीब का दुकानदार


 लॉकडाउन चल रहा था । घर में दाल समाप्त हो गई । दिनेश बाबू हाथ में झोला लेकर गली के नुक्कड़ पर हरिराम की जनरल मर्चेंट की दुकान पर चले गए । एक किलो अरहर की दाल ली । पैसे देते -  देते कुछ ख्याल आया । बोले "एक किलो मूँग की दाल भी दे दो ।" दुकानदार ने एक किलो मूँग की दाल भी दे दी। फिर पैसे माँगे तो दिनेश बाबू की जेब में पैसे कम थे। वह तो केवल एक किलो अरहर की दाल खरीदने के हिसाब से ही गए थे । कहने लगे "इतने रुपए रख लो । बाकी बाद में दे जाऊँगा ।"
    दुकानदार बोला "नए ग्राहकों से हम उधार नहीं करते!"
    " मैं नया नहीं हूँ। यहीं पड़ोस में रहता हूँ।"- सुनकर दुकानदार ने आँखें चौड़ी करके दिनेश बाबू को एक निगाह से देखा और कहा "झूठ मत बोलो भाई साहब ! अगर पड़ोस में रहते होते तो कभी तो दर्शन देते ?"
     अपमानित होकर दिनेश बाबू केवल एक किलो अरहर की दाल लेकर घर लौट आए। काफी देर तक सोफे पर पड़े हुए सोचने लगे कि 20 साल की जिंदगी मैं सिर्फ इतना ही कमाया कि आज घर के पड़ोस में दुकानदार से चार पैसे का उधार भी नहीं ला सकता।
          फिर जब विचार करने लगे तो उन्हें अपनी गलती महसूस होने लगी। असल में उनकी दिनचर्या भी यही थी कि सुबह उठे, नहा धोकर नाश्ता करके कार में बैठे और सीधे ऑफिस चले गए । जब शाम को लौटना हुआ तो जो - जो सामान की लिस्ट खरीदारी की हुआ करती थी ,वह मॉल में जाकर वहाँ पर बड़ी-बड़ी दुकानों से खरीद लिया । घर के आस-पास के न दुकानदारों से उनका परिचय हुआ और न कभी उन दुकानों में जाकर उन्होंने कभी झाँका । हाँ ! बचपन में जब पिताजी को कोई सामान मँगवाना होता था तो वह दिनेश बाबू को आस पड़ोस की ही किसी दुकान पर भेजते थे । दुकानदार भी उन दिनों दिनेश बाबू को देखकर पहचान जाते थे । अनेक बार पिताजी की उँगली पकड़कर जब दिनेश बाबू बचपन में बाजार से गुजरते थे तो कम से कम 20 दुकानों पर पिता जी नमस्ते करते हुए आगे बढ़ते थे । उस समय घर में पैसा कम था लेकिन आस पड़ोस में इज्जत और जान पहचान आज के मुकाबले में कई गुना ज्यादा थी । तभी पत्नी ने आकर पूछा "ऐसे कैसे मुँह लटकाए बैठे हुए हो ? क्या सोच रहे हो ? "
       दिनेश बाबू ने दृढ़ संकल्प के साथ कहा "अब हमेशा करीब के दुकानदार से ही सामान लेंगे। वही हमारा मित्र है  ।"

✍️ रवि प्रकाश
 बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद के साहित्यकार विभांशु दुबे विदीप्त की लघुकथा -------- गिद्ध

       
       पड़ोस के गांव में महामारी घिर आयी थीl सैकड़ों लोग देखते ही देखते उसकी चपेट में आ गए थेl कुछ तुरंत मर गए; जो जिंदा बच गए वो मौत का इंतजार कर रहे थेl जो थोड़े बहुत काम करने लायक थे, वे बीमारों की तिमारदारी में लाग गएl सूचना मिलते ही काफी लोग गांव की ओर दौड़ पड़ेl इनमे से सबसे पहले थे डॉक्टर और प्रशासन के लोग, जो पीड़ितों की सहायता कर रहे थेl डॉक्टर जिसे बचा सकते थे उसे बचा रहे थे, जिसकी मौत निश्चित थी,उसका दर्द कम करके मौत को थोड़ा आसान बना रहे थेl प्रशासन के लोग गांव वालों के लिए व्यवस्था बनाने में लगे हुए थे, मृतकों के अंतिम क्रिया और उससे संक्रमण न फैले, उसका ख्याल रख रहे थेl इसके बाद जो लोग पहुंचे वो कुछ भले मानस थे, सो लोगों की सेवा में लग गए l बीमार को पानी देना, उसे भोजन करा देना, व्यवस्था बनाने में शासन की मदद करने में लग गएl फिर कुछ ऊंचे लोग भी पहुंचे, जो दान 'दिखाने' आए थेl एक निवाला मुँह में डालकर दस लोग उसकी फोटो निकलवा रहे थेl फिर कुछ "सत्यान्वेषी"  भी पहुंचेl मरे हुए की लाश का तमाशा दुनिया को दिखाने और अधमरे के मरने का सजीव वर्णन करनेl ऐसे तो बहुत थे, उनकी भीड़ लग गयी वहाँl सफेदपोश भी आए हुए थेl उनके लिए तो यही मौका था बिसात चमकाने काl जो 'अंदर' थे, वो जिंदा की गिनती करवाने लगे थे, जो 'बाहर' थे, वो लाशों की गिनती कर रहे थेl ये सब वो पांच साल का 'छोटू' देख रहा था, जिसके मुँह में न जाने कितने दिन से निवाला नहीं गया थाl उसने ऊपर मंडराते गिद्ध को देखा फिर उसने अपनी मां की तरफ देखाl उसकी मां की आंखे अब उसे रोटी की झूठी तसल्ली नहीं दे पा रही थींl ये सब लोग थे वहाँ और पहाड़ की चोटी पर बैठा शेर अपने शावक के साथ ये सब देख रहा थाl अचानक गिद्ध छोटू के पास आयाl वो ऊपर से सबको देख रहा था, जितने भी लोग शहर से आए थे, सबकोl शेर का शावक ये देखकर सोच रहा था कि ये गिद्ध उस बच्चे की मौत का इंतजार करेगा और फिर उसकी लाश से अपनी भूख मिटायेगाl लेकिन उस गिद्ध ने अपनी चोंच में दबी रोटी का टुकड़ा उस बच्चे के सामने रख दिया और थोड़ी देर देख वहाँ से चला गया।
उस बच्चे ने अपनी मां की ओर देखा और आँखों ही आँखों में उससे सवाल पूछ डाला, वहीँ शेर के शावक ने भी शेर से वही सवाल पूछा । ज़वाब न शेर दे पाया न ही उसकी मां। सवाल था, गिद्ध कौन? आखिरकार कौन था गिद्ध? ज़वाब शेर को भी पता था, और उस बच्चे को भी ।बस उन्होंने एक दूसरे की आँखों में देखा और शायद उन्हें ज़वाब मिल गया।


✍️विभांशु दुबे विदीप्त
गोविंद नगर
मुरादाबाद 244001

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रशांत मिश्र की कहानी----------वो यौद्धा था


आज जब कोरोना से डरकर लोग घर की दहलीज में रहकर अपने जीवन को बचाने का प्रयास कर रहे हैं, अपने घर का दरवाजा भी छु कर हाथों को रगड़-रगड़ के धो रहे हैं। ऐसे में एक चेहरा मेरी आँखों में जैसे मानों छप सा गया है, इस घर में रहते
हुए मुझे दो साल से अधिक का समय हो गया जीवन की भागदौड़ में इंसानों से ज्यादा पैसों की अहमियत ने स्थान ले लिया था ।
जब जिंदगी थोड़ी थमी तो एहसास हुआ एक शख्स का, जो मेरे जीवन का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। लॉकडाउन में मैं अपने घर में बैठा आराम से खा पी रहा था । काम वाली आंटी नहीं आ रहीं थी पर इतना काम करने में कोई दिक्कत नहीं थी । लेकिन ५ दिन आनंद लेने के बाद यह एहसास हुआ की घर में कूड़े का ढेर लग गया है और उसमें अब बदबू आ रही है । तो मन में घबराहट सी हुई ।
सोच रहा था इसके साथ कैसे रह पाउँगा बाहर फैंकने भी नहीं जा सकते और कूड़े वाला भी नहीं आ रहा है । अभी लॉकडाउन के कई दिन बाकी थे।
अक्सर में सुबह जल्दी चला जाता था काम वाली कूड़ा निकाल कर गेट पर रख देती थी और कूड़े वाला आ कर उसे ले जाता था । मुझे कभी यह सोचना भी नहीं पड़ा की घर के कूड़े का क्या होता है । परन्तु अब मज़बूरी थी । तो मैंने मन सिकोड़ते हुए और मुहँ बनाते हुए आपने सामने के फ़्लैट में रह रही एक आंटी से अपनी व्यथा सुनाई । उन्होंने मुझे पहचाना भी नहीं सोचिए
हम २ वर्षों से अधिक समय से आमने-सामने रह रहे थे परन्तु ...???
इतनी देर में सामने से एक लड़का आया जिसे देखकर वो मुस्कुराई और मेरी तरफ देखते हुए बोली लो आ गया आपकी समस्या का इलाज
वो मेरा कूड़ा वाला था जिसे मैं पहली बार देख रहा था ।
मैंने पूछा भाई कहाँ था इतने दिन से .................................?
उसने कहा –“सामने वाली आंटी से पूछा था तो कह रही थी कि आप कभी  दिखते ही नहीं“
मैं आपके यहाँ कूड़ा लेने रोज आता हँ”, आपका कूड़ा बाहर रखा नहीं दिख तो मुझे लगा कि कहीं आप अपने घर चले गए होंगें । आप गए नहीं ?(उसने मुस्कुराते हुए मुझसे पूछा) ”
(मैं सोच में पड़ गया कि आज से पहले कभी देखा ही नहीं । लेकिन वास्तविकता ये थी कि पिछले २ वर्षों में मैंने कभी उसके होने की जरुरत नहीं समझी और उसे अनदेखा करता रहा ।)
मैं मन ही मन में अपनी बेवकूफी पर हंस रहा था और गर्दन घुमाते हुए मैंने उसे “नहीं” कहा । फिर मैंने पूछा लॉक डाउन में छुट्टी नहीं है ? तो उसने मुस्कुराते हुए कहा साहब हम भी छुट्टी पर चले जाएंगे तो आपका क्या होगा?
वो सही कह रहा था, यह एक सच्ची घटना है। उसका नाम मुकेश है । वास्तव में हमारे जीवन मैं ऐसे कई लोग होते हैं जो बिना किसी राग के हमें सहयोग कर रहे होते हैं जब हम कुछ भी छु कर मौत के भय से हाथ धो रहे हैं तब भी वो मुस्कुराते हुए
अपनी जिम्मेदारी को निभा रहा है हर घर का कूड़ा उठा रहा है |

सलाम है ऐसे योद्धा को

✍️ प्रशान्त मिश्र
मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघु कथा ----- रोटी


​रोजी रोटी की तलाश में दीना ने अपनी जन्मभूमि से दूर जहां उसका बचपन और युवावस्था के कई साल गुजरे ,बचपन के संगी साथी और घर परिवार के लोगों का साथ छूटा इस  बात  से  भी  गुरेज  नहीं  किया .
​ उसको  याद  है  जब  वह  पहली  बार  शहर  आया  तो  उसकी  हालत  कैसी  थी ? बड़ी  मुश्किल  से  एक   कंट्रक्शन  कंपनी  में  दिहाड़ी  मजदूर  की  नौकरी  मिली  थी  जिसमें  गाँव  की  अपेक्षा  मजदूरी  तो  ज्यादा  थी  मगर  खेतों  से  उठने  वाली  सौंधी  खुशबू  दूर  दूर  तक  महसूस  नहीं  होती  थी .
बड़ी मुश्किल से एक गन्दी सी बस्ती में एक छोटा सा पिंजड़ा नुमा कमरा मिला था जिसमें सीलन की दुर्गन्ध और धुप और हवा तो दूर दूर तक नहीं आते थे । गावं में घर कच्चा और घास फूस का तो था मगर हवा पानी और धुप फ्री था जितना ले  सको उतना .
​पेड़ों की शीतल हवा ...और पक्षियों का मधुर कलरव सब कुछ कितना मीठा था .
​कभी कभी दीना बहुत उदास हो जाता था मगर वहां पर कोई भी सुख दुःख पूछने वाला नहीं था .लेकिन जब कभी बीच बीच में वह गाँव आता था तब खुद पर बड़ा रीझता था क्योंकि अब उसके पास अच्छे कपडे होते थे .थोड़े दिन बाद गाँव की कच्ची कोठरी को पक्का भी बना लिया था उसने जिससे उसके अडोसी पडोसी भी शहर जाने के लिए प्रेरित हुए बिना नहीं रह सके .
​उसको क्या पता था कि शहर उसके लिए किराए की जगह मात्र है उसकी जड़ें तो अब भी गावं में ही है .
​कोरोना के कारण शहर में काम धंधे बंद हो गए ऐसे में जब फांकों की स्थिति आ गई तो उसको वही गाँव फिर से याद आने लगा था जिससे उसको कुछ दिन पहले वितृष्णा सी होने लगी थी . वह व्याकुल हो उठा अपनी जड़ों की तरफ लौटने को .और पैदल ही निकल पड़ा अपने गाँव की तरफ धुप ,भूख और गर्मी की परवाह किये बिना .उसको आज भी विशवास था की उसकी जन्मभूमि उसको गले जरूर लगाएगी .
​उसने गाँव में घुसते ही सबसे पहले वहां की मिटटी को माथे से लगाया और पीछे मुड़कर सपने के सापेक्ष से शहर को अलविदा भी कह दिया .
​अब फिर से वह हकीकत और प्रेम से रूबरू हो गया था .
​घर में अपनों का साथ और प्रेम उसको बेशकीमती लग रहा था जिसको उसने सिरे से नकारने  की  कुचेष्टा की थी ,jजिस गाँव को वह नादानी के कारण हेय की दृष्टि से देखने लगा था उसी गाँव ने उसको फिर से प्रेम के मोहपाश में कैद कर लिया .


​ ✍️ राशि सिंह
​मुरादाबाद  244001


मुरादाबाद की साहित्यकार निवेदिता सक्सेना की लघु कथा -------- हे भगवान



नोनू और मनु मीरा के दो बेटे, दोनों ही छोटे थे।
,शैतान,नटखट ,चुलबुले दोनों दुनिया से अनजान सिर्फ अपनी दुनिया में मगन,।बचपन का आनंद लेकर जी रहे थे।
मीरा जब भी उन्हें  सुलाती तब अक्सर कहानिया सुनाया करती थी ,और कहानी के अंत  में अपने बच्चों से कहती कि बेटा छोटे बच्चों की पुकार भगवान बहुत जल्दी सुनते हैं ,इसलिए हमेशा भगवान से अपने घर परिवार की सलामती की प्रार्थना किया ।
करो दोनों बच्चे हाथ जोड़कर भगवान का धन्यवाद करते । दोनोंआपस में साथ साथ खेलते भी बहुत है और लड़ाई भी बहुत करते थे ना कभी कभी मीरा बहुत परेशान हो जाती थी जोर से चिल्लाने लगती,,,,,,,,' हे भगवान; मुझे उठा ले,  और कभी-कभी तो उन पर हाथ भी उठा देती , पर वह दोनों अपनी मस्ती में मस्त रहते थे नोनू छोटा था ,और मनु बड़ा ।
नादान नोनू अपनी मां की झुंझलाहट को देखता और बार बार दोबारा गलती ना करने के लिए कहता पर अबोधबालक फिर अपने भाई से लड़ाई लड़ता मां झुंझलाहट में अक्सर बड़बड डाती रहती ।;हे भगवान ;मुझे उठा ले, !
आज घर पर मेहमान आने वाले थे बहुत सारा काम था और उस पर  रविवार का दिन  बच्चे भी घर पर थे छोटे-छोटे बच्चों को संभालना मेहमानों के खातिर करना मीरा एक बार फिर झुंझला रही थी ,रात भर कमर दर्द से परेशान रही थी ।
सुबह सुबह कुछ लोगो के आने की खबर ,
मीरा महमान नवाजी में बहुत आगे थी तबियत कैसी भी हो पर किसी के आने की खबर उसमे ऊर्जा भर देती थी,।
 बच्चे बीच बीच में लड़ाई भी कर रहे थे ,बहुत देर से समझाने की कोशिश कर रही थी , बच्चे तो बच्चे  माने कैसे  एक बार फिर सर पकड़ कर बैठ गई मीरा।
: हे भगवान मुझे उठा ले;
 नादान नोनू बार-बार इस तरह से अपनी मां को करते देख एक दिन कह उठा हे भगवान आप बच्चो की बात जल्दी सुनते हो , मेरी बात सुन लो ,मेरी मां जो बार बार कहती है ,मुझे उठा लो ,
मुझे उठा लो ,
उनकी प्रार्थना सुन लो,, हे भगवान,,।

 ✍️ निवेदिता सक्सेना
मुरादाबाद 244001

मंगलवार, 26 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की कहानी ------- कर्तव्य


      बाहर शहनाइयों का शोर, मेहमानों की चहल-पहल और शादी की सजावटों के बीच, सुरेखा सोच रहीं थी कि अब जल्दी ही उनकी बेटी संजना विदा होकर ससुराल चली जायेगी ।
बेटी का विवाह करके उनका बहुत बड़ा कर्तव्य पूरा हो जाएगा लेकिन बेटी से बिछोह का ख्याल अनायास ही उनकी आंखें भिगो गया।
उन्हें याद आने लगा पच्चीस साल पहले का एक ऐसा ही दिन, ऐसी ही सजावट ऐसी ही चहल-पहल।
अंतर बस ये था कि उस दिन दुल्हन सुरेखा खुद थीं। अपने आप में सिमटी, सहमी हुई सी उन्नीस साल की सौन्दर्यपूर्णा, सुकुमारी, सुरेखा।
उस दिन भी उनके मन में विछोह के ख्याल आ रहे थे, अपने परिवार अपने माता-पिता से विछोह के ख्याल। बार-बार उनकी आंखें भीग रही थी ऊपर से उन्होंने अपने होने वाले पति सुरेश को देखा तक भी नहीं था।
सुरेखा, ससुराल आकर दो ही दिन में वह समझ गयी कि सुरेश बहुत सुलझे हुए, मितभाषी और हँसमुख इंसान हैं और सुरेखा अब उनकी जिंदगी। सुरेखा को अपने मान पर अभिमान था कि सुरेश उसे सर आंखों पर रखते हैं।
प्यार के दिन गुजरते देर नही लगती, ऐसे ही सुरेश और सुरेखा के प्यार के भी दस साल देखते ही देखते गुजर गए। इसी बीच सुरेखा दो बेटियों संजना और सपना की माँ बन गयी।
दो बेटियाँ!!?
उसकी ससुराल में उसके दो बेटियां होने पर सुरेखा के सम्मान में बहुत कमी आ गई थी। अलबत्ता सुरेश जरूर हमेशा मुस्कुराकर कहते - "अरे बेटियाँ तो आजकल बेटों से बहुत आगे हैं। ऊपर से बुढ़ापे में भी बेटियां, बेटों से अधिक ध्यान रखती हैं मां बाप का।"
और फिर हँसते हुए कहते - "सुरु तुम देखना, मेरी बेटियां डॉक्टर बनेंगी और मेरा नाम रोशन करेंगीं।"
कुछ दिन से सुरेश के सीने में हल्का दर्द हो जाता था। सुरेखा उन्हें अस्पताल दिखाने जाने को कहती तो वह ये कहकर टाल देते - "अरे कुछ नहीं हुआ, बस जरा गैस है; चूर्ण ले लूँगा ठीक हो जाएगा।"
लेकिन उस दिन दर्द न चूर्ण से ठीक हुए ना गोली से... सुरेखा जल्दी में उन्हें लेकर अस्पताल गयी, तब पता चला हार्ट अटैक आया है। और स्थिति घातक है बीमारी बहुत बढ़ चुकी है। रात-दिन एक करके भी डॉक्टर सुरेश को बचा ना सके।
सुरेखा अपनी दो बेटियों को लेकर अकेली रह गई। ससुराल वालों ने उसे ये कहकर घर से निकाल दिया कि "उसके दो बेटियां पैदा करने के कारण ही सुरेश दिल का मरीज बन गया, यही उनके बेटे की मौत का कारण है।"
सुरेखा रोती रही लेकिन उसकी किसी ने नहीं सुनी।
अब महानगर में अकेली औरत दो बेटियां लेकर कहाँ जाए! मायके में भी स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी। फिर भी वह मायके आ गयी।
सुरेखा धीरे धीरे सामान्य हो गयी, पढ़ी-लिखी तो वह थी ही, तो थोड़े प्रयास से उसे एक हॉस्पिटल में नौकरी मिल गई।
अपनी मेहनत से सुरेखा ने सालभर में ही खुद को संभाल लिया और मायके के पास ही अलग किराये का मकान ले लिया।
दोनों बेटियां स्कूल में पढ़ती थीं जिंदगी ठीक चल रही थी अचानक एक दिन छोटी बेटी सपना चक्कर खाकर गिर गयी।
डॉक्टर को दिखाने पर पता लगा कि मिर्गी की बीमारी है।
सुरेखा एक बार फिर परेशान हो गई । सपना के दौरे बढ़ते ही जा रहे थे अच्छे से अच्छा इलाज कराया लेकिन कुछ लाभ ना हुआ।
सुरेखा के पति सुरेश ने सुरेखा के नाम से एक जमीन खरीदी थी वह भी बिक कर सपना के इलाज की भेंट चढ़ गई।
एक दिन सुरेखा को किसी ने बताया कि कोई वैध हैं जो मिर्गी का इलाज करते हैं।
पहले तो इसे विश्वास नहीं हुआ, उसने सोचा जब इतने बड़े बड़े डॉक्टरों की दवाइयां ठीक नहीं कर पायीं तो जड़ी बूटियां,,,,??
लेकिन उनकी बड़ी बहन के कहने पर सुरेखा वैध जी से मिली और सपना के लिए दवाइयां ले आयी। उसे उस इलाज से आश्चर्यजनक परिणाम मिले।
तीन महीने में ही सपना पूरी तरह ठीक हो गयी।
इसी बीच संजना ने एक बैंक में संविदा पर नौकरी कर ली। सुरेखा का परिवार फिर अपनी जिंदगी में खुश था। संजना और सुरेखा की मिली-जुली कमाई से उनका जीवन सामान्य चल रहा था।
और आज संजना की शादी, सुरेखा फिर अकेली.....
अभी वह सोच ही रही थी तभी संजना की आवाज आई, "मम्मा कहाँ हो आप ??, बारात आ चुकी है सब आप ही को ढूंढ रहे हैं जल्दी चलिए।"
"हाँ!!, चल आती हूँ ", सुरेखा ने चुपके से आँसू पोंछ कर कहा।
सुरेखा जब नीचे आयी तो 'हेमन्त' दूल्हा बना घोड़ी पर बैठा द्वार पर पहुंच चुका था।  सुरेखा ने मुस्कुराकर उसकी आरती की।
एक बार फिर उसकी आँखें आँसुओं से भर गयीं। लेकिन ये खुशी के आँसू थे क्योंकि हेमन्त ने उसे वचन दिया था कि "संजना अपनी आधी तनख्वाह सपना की शादी तक सुरेखा को देती रहेगी और हेमन्त को भी वह दामाद नहीं बेटा ही समझे।"
हेमंत एक कॉरपोरेट कंपनी में अच्छे पद पर है।
शादी में दहेज लेने पर जब हेमन्त अड़ गए थे, तब सुरेखा बहुत परेशान हो गयी थी। उसने डरते हुए पूछा था -  "क्या चाहिए दहेज में बता दीजिए? हम सोचकर जबाब देंगे।"
बदले में हेमन्त ने मुस्कुराकर एक पर्चा उनकी तरफ बढ़ा कर कहा था , "हमें तो अभी जबाब चाहिए तुरंत।"
कांपते हाथों से सुरेखा ने पर्चा खोला तो उसमें लिखा था, "एक मां के प्रति हमारा कर्तव्य निभाने देने का वचन और मुझे दामाद नही बेटे का मान।"
सुरेखा की आँखे तब भी भीग गयीं थीं और उसने बस हाँ में सर हिलाया था।
सुरेखा बहुत खुश थी, हेमन्त जैसा दामाद पाकर।
जो उसे एक सगे बेटे से बढ़कर मान देता है।
संजना को भी हेमन्त ने कह दिया कि "मां को किसी चीज़ के लिए परेशान ना करे ; संजना को शादी में जो जरूरत की चीज हो हेमन्त खुद दिला देगा।"
"कहाँ खो गयीं मम्मा", इस बार हेमन्त ने सुरेखा की तन्द्रा तोड़ी।
और वह, "कहीं नहीं!!" कह कर मुस्कुरादी।
सुरेखा समझ ही नहीं पाती है कि कर्तव्य कौन निभा रहा है। वह या उसके बेटियाँ और दामाद हेमन्त।
अब तो सपना ने भी जॉब शुरू कर दी है।फिर भी हेमन्त और संजना रोज एक बार सुरेखा से जरूर बात करते हैं और उसकी हर ज़रूरत का ध्यान रखते हैं।

 ✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा (मुरादाबाद)
Mo.९०४५५४८००८

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ------जा को राखें साइयां...


....हेलो !,,अब रानी की कैसी हालत है? बेटा! डाक्टर से पूछ कर बताओ,,....,,अभी कुछ नहीं कहा जा सकता !नानाजी!!..मम्मी 60% जल गयीं हैं!....अगले 24घन्टे बहुत भारी हैं,,!!कह कर निशू ने फोन रख... दिया,,यह सुनकर रानी के चाचा की आंखों से आंसुओं का बांध फूट पड़ा ...कल से बार बार सम्पर्क करने पर इतना ही पता लग सका.... बड़े भैया की तीनों बेटियों में सबसे बड़ी रानी...उसका ये नाम दादा ने रखा था दिवाली के दिन जन्मी रानी का पहला नाम लक्ष्मी रखा गया सब लच्छो-लच्छो कहने लगे दादाजी को बुरा लगा तो लाड़ में नाम बदल कर  रानी कर दिया... रानी पूरे घर में सभी की बहुत लाडली थी सुंदर गोल मटोल घर में अकेला छोटा बच्चा ........
...परन्तु रानी के संघर्षों की एक लम्बी दास्तान है जो फिर कभी.... सुनना ।
    रानी डॉक्टर है और मरीजों की सेवा बड़े मनोयोग से करती है अच्छी सेवा के कारण रानी को जहां बहुत ज्यादा जरूरत होती है वहीं पोस्टिंग  मिलती है  कई साल पहले रानी के पति का एक एक्सीडेंट में देहांत हो गया था तब से संघर्ष और ज्यादा हो गए रानी ने बच्चों को ही आगे नहीं पढ़ाया बल्कि स्वयं की रुकी पढ़ाई को भी फिर से शुरू किया और धीरे-धीरे वह एक डॉक्टर बन गई... गवर्नमेंट जॉब भी मिल गई ....बच्चों को बड़ा करके पैरों पर खड़ा किया उसके बाद दोनों की शादी कर दी.. बेटा सीआरपीएफ में ऑफिसर है और बेटी की शादी एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर से हुई  है ...बेटी नर्सिंग कॉलेज में लेक्चरर के पद पर है  ।
....  हॉस्पिटल से लौटने पर किचन में गैस की गंध के कारण शक हुआ सिलेंडर लीक कर रहा है रानी ने गैस डिलीवरी ब्वॉय को बुलाया डिलीवरी ब्वॉय ने गैस चेक करने के लिए जैसे ही माचिस की तीली जलाई ... भड़ाक से ....पूरी किचन में भयंकर आग फैल गयी...... क्योंकि रानी पास ही खड़ी थी उसके दोनों हाथ पूरा चेहरा बाल गला तथा गर्दन बुरी तरह जल गए डिलीवरी बॉय भी बुरी तरह जल गया .. और मकान मालिक और उसकी पत्नी भी बचाने की बजह से आग की चपेट में आ गए पहले उन्हें लोकल हॉस्पिटल श्रीनगर में ले गए ...वहां से जौली ग्रांट देहरादून के लिए रेफर कर दिया गया.... और जौलीग्रांट से भी उसकी गंभीर स्थिति को देखते हुए लाला लाजपत राय हॉस्पिटल दिल्ली के लिए रेफर कर दिया गया वहीं रानी को इंटेंसिव केयर यूनिट में चिकित्सा प्रदान की जा रही है और अभी तक कुछ पता नहीं है कि क्या होगा.... *****इन्तजार  करते-करते शाम हो गई शाम को रानी के बेटे निशु का फोन आया ***********नानाजी  !..
,,अब मम्मी की तबीयत कुछ ठीक है,, वीडियो कॉल पर रानी को देखकर रोंगटे खड़े हो गए इतनी सुंदर लड़की का क्या हाल हुआ है डॉक्टरों ने अभी भी कहा है कि ,,अभी कुछ कह पाना बहुत मुश्किल है,,
     सभी संबंधी एवं मित्रगण भगवान से प्रार्थना करने लगे .... कि हे प्रभु रानी के प्राण बचाओ  किसी तरह.... सभी के लिए इतना सेवा भाव ....समर्पित रहने वाली लड़की की यह दशा देखकर ....सभी दुखी थे 3 दिन बाद ***उक्त हॉस्पिटल को ही कोरोना डिटेन्शन सेंटर डिक्लेअर कर दिया गया और वहां से रानी को तुरंत निकालने के लिए कह दिया गया ....अब और मुसीबत ....जैसे-तैसे रानी को बेटी के ही  फ्लैट में शिफ्ट किया गया... डॉक्टर को वहीं बुलाया जाता है  इलाज के लिए..
  आखिर रानी के प्राण बच गए रानी के बच्चों और संबंधियों की दुआएं शाय़द काम आ गईं शायद.!.... शरीर के घाव तो न जाने कब तक भरेंगे परंतु   ......रानी ने फिर एक बार मौत को हरा दिया........
 ..... किसी ने सही कहा है...
""जाको राखे साइयां मार सके न कोय .""....
                   
✍️ अशोक विद्रोही
 412 प्रकाश नगर
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नंबर 8218825541

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा----अपराध बोध से मुक्ति



"माँ,देखो मेरी नौकरी का नियुक्ति पत्र आया है"खुशी से चहकता हुआ महेश बोला।बेटे का नियुक्ति पत्र देखकर उसकी आँखों में आँसू आ गये।मां की आंखों मे आँसू देखकर महेश बोला,"आज बाबा भी होते तो कितना अच्छा होता ।"
महेश की बात सुनकर उसके आँसू थम गये।अगर आज वो जिन्दा होते तो शायद उसका बेटा आज यहां तक न पहुंच पाता।उसे याद है उसके पति का शराब पीना और रात को धुत होकर आना मारना पीटना।एक अच्छी नौकरी होने के बाद भी घर मे उसेऔर बच्चों को पैसों का अभाव बना रहता।एकबार मन किया कि उसे छोड दे मगर बच्चों का पालन कैसे कर पायेगी।फिर एक दिन रात को शराब के नशे में घुत रघु घर आया।वह हिम्मत कर दरवाजे पर खडी हो गयीं।अंदर न घुसने देने पर हाथापाई हो गयीं और लडखडाने के कारण रघु सीढियों से नीचे गिर गया।उसका सिर फट गया खून बह रहा था ,वह नीचे दौडी,मगर दो सीढियां उतरने के बाद वह रुक गई।नाजाने क्या सोचकर वह.कमरे मे वापस आगयी।सुबह जल्दी पडोसियों ने जगाया किरघु को चोट आयी है।अस्पताल से उसकी मृत देह आयी।वह बुत बनी रही समस्त संस्कार जैसे तैसे निपटे।एक अपराध बोध था मन मे।परिवार में लोगो ने रघु के स्थान पर उसकी नियुक्ति मे मदद की।तब से उसने माता पिता दोनो की जिम्मेदारी पूरी की।बेटी कीशिक्षा पूरी करवायी,बेटे को भी इस लायक बनाया।
आज वह हर अपराध बोध से मुक्त थी।

✍️ डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा -----बेबसी


      बुलाको काकी के पति सत्ताइस साल की उम्र में चार बच्चों के साथ उन्हें इस संसार अकेला छोड़ चल बसे ।काकी ने खेतों में धान गेहूं काट  कर बच्चों को जवान कर दिया ।दोनों लड़कों औऱ दो लड़कियों का विवाह किया ।विवाह के बाद दोनों लड़कियां ससुराल की होकर  रह गई।बीमार मां ने बुलाया तो भी नहीं आई।दोनोंं लड़कोंं की बहुएं अपने आदमियों के संग दिल्ली चली गई । फिर इन्हें याद नहीं आया कि इनकी बूढ़ी अम्मा गांव में पड़ी है।
आज एक लंबे अरसे के बाद विश्व  व्यापी आपदा के चलते जब सारे काम धंधे बंद हुए तो एक बार फिर अम्मा की याद आई । चल पड़े उसी ओर जहाँ काकी की आंखें वर्षो उनका इंतजार करते- करते थक गई थीं ।आज अचानक सब आये तो उसे लगा कि शायद उसके बेटे बहु को उसकी याद आई होगी ,तभी वे भागे चले आये। काकी के शरीर में फिर वही ताजगी उमड़ने लगी  लेकिन वह नहीं जानती थी आज अगर यह आपदा न आती तो  उसके बेटे बहु कभी इस ओर अपना रुख न करते ।

✍️ डॉ प्रीति हुँकार
 मुरादाबाद 244001

मुरादाबाद के साहित्यकार नवाज अनवर खान की लघुकथा ------- शादी



        मेरा एक पुत्र होगा। जिसका नाम बालेश्वर होगा। वह बारहवीं कक्षा में आते-आते चार बार फ़ैल होगा। उसे किसी भी कारोबार में कोई रूचि नहीं होगी। युवावस्था तक आते-आते उसे एक लड़की से प्रेम हो जायेगा। वह लड़की नगर के एम एल ए दान सिंह की पुत्री रत्नावती होगी। दोनों के बीच प्रेम इतना सुदृढ़ हो जायेगा की वह विवाह करना चाहेंगे। लेकिन क्योंकि मेरी पार्टी दान सिंह की पार्टी की विपक्षी पार्टी होगी। इसलिए मैं विवाह के लिए राज़ी नहीं होऊंगा। हम दोनों नेताओं के कारण हमारे बच्चों का जीवन खराब हो जायेगा। रत्नावती आत्महत्या कर लेगी। बालेश्वर सदमे में आ जायेगा। अगले माह चुनाव होंगे, चुनावों में दान सिंह की हार हो जायेगी। दान सिंह मुझसे बदला लेने की ठानेगा। चुनावों में हार और अपनी बेटी की मौत का जिम्मेदार मुझे समझेगा। घर पर गुंडे भेजेगा। लेकिन मेरी सुरक्षा में लगे पहरेदार उन गुंडों को मार डालेंगे। बात ऊपर तक पहुंचा दूंगा। पार्टी के बड़े नेता दान सिंह पर प्रतिबंध लगा देंगे। अगले चुनावों में निर्विरोध चुन लिया जाऊंगा। फिर अपनी पसंद की लड़की से बालेश्वर का विवाह करूँगा। दोनों सुख से रहेंगे। अगले आम चुनावों में बालेश्वर को पार्टी का टिकट दिला दूंगा। बालेश्वर जीत जायेगा। तब तक मेरी आयु भी साठ के करीब हो जायेगी।
आखिर मेरी शादी कब होगी?

 ✍️ नवाज़ अनवर ख़ान
च 21, कबीर नगर, एम डी ए कालोनी
 मुरादाबाद 244001
मो. 8057490457

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा ------ थकान


दोपहर का 1बजा था । जेठ की झुलसाने वाली गर्मी में सुबह से पत्थर तोड़ते कैलाश का हाल बेहाल हो चुका था।थकान और भूख प्यास के भाव उसके चेहरे पर स्पष्ट पढ़े जा सकते थे ।उसने सोचा ----- खाना खाकर थोड़ी देर आराम कर लेते है।
तभी उसे ध्यान आया - अरे आज तो उसकी शादी की सालगिरह है।सुबह घर से निकलते समय उसकी पत्नी ने जबरदस्ती 10 रुपए का नोट उसकी जेब में डाल दिया था।साथ में अपनी कसम दिलाकर कहा था ---आज सूखी रोटियां मत खाना,बाज़ार से दही खरीद लेना ।
        दही लाकर वो एक पेड़ के नीचे बैठ गया।खाना शुरू ही करने वाला था कि उसकी नजर अपने साथी मजदूर रामू पर गई,   -- अरे,तुम खाना नहीं खा रहे।
        नहीं,घर में बीबी बीमार है,सब पैसा उसके इलाज में लग गया।राशन ख़तम हो गया ,कल से कुछ नहीं बना -- रामू ने रोते हुए बताया।
    कैलाश ने अपने खाने को दो हिस्सों में बांटा और रामू के मना करने के बावजूद,जबरदस्ती उसे अपने साथ  खाना खिलाया।                                                     
खाना खाकर रामू के चेहरे से संतोष झलक रहा था।कैलाश की थकान भी रफूचक्कर हो गई थी ।दोनों फुर्ती से उठे और अपने काम पर लग गए ।

 ✍️ डॉ पुनीत कुमार
T-2/505,आकाश रेसीडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
कांठ रोड,मुरादाबाद -244001
M-9837189600

मुरादाबाद की साहित्यकार स्वदेश सिंह की लघुकथा -------- ऑपरेशन


 संगीता की ससुराल में आज सभी बहुत खुश नजर आ रहे थे..... संगीता की शादी के 10 साल बाद उनके घर में खुशी आनें वाली हैं ....इसलिए परिवार के सभी लोग खुशी से नाच रहे थे और एक दूसरे को मिठाई खिला रही थे । संगीता भी बहुत खुश कि उसकी जिंदगी में  एक नया बदलाव आने वाला था ।संगीता को डॉक्टर ने बेड रेस्ट  के लिए बोला है..... परिवार के सभी सदस्य  दिन-रात संगीता की सेवा में लगे रहते लगे रहते थे। ...साथ ही उसके पति महेश ने उसकी देखभाल के लिए तथा घर के काम के लिए दो  नौकरानियों की व्यवस्था भी कर दी थी।
 ....संगीता अब बिस्तर पर लेटे- लेटे मोबाइल चलाती रहती है और अपने पसंदीदा कार्यक्रम टीवी पर देखती रहती है।.... डॉक्टर ने  विशेष आराम करनें की विशेष हिदायत दे रखी थी कि बच्चा केवल ऑपरेशन से ही पैदा हो सकता है ....नॉर्मल डिलीवरी के कोई चांस नहीं है ...परंतु आज देश में लॉकडाउन की स्थिति होने के कारण संगीता और उसका परिवार बेहद परेशान था। कोरोना महामारी के डर से कामबालियों को भी मना करना पड़ा।......घर का सारा काम संगीता को ही अकेले करना पड़ रहा  था  ...वह पूरे दिन धीरे-धीरे घर के सभी कामों को निपटाती रहती थी। ......आज अचानक संगीता को पेट में दर्द होने लगा ....महेश संगीता को लेकर डॉक्टर के पास गया .... डॉक्टर ने उसे एडमिट कर लिया। परंतु डॉक्टर को कोरोना महामारी में ऑपरेशन करने की अनुमति नहीं थी .....दुखी होकर डॉक्टर ने ऑपरेशन करने से मना कर दिया। सभी बहुत परेशान और चिंतित हो गए कि अब क्या होगा .....सभी लोग बाहर डॉक्टर के क्लीनिक में बात कर रहे थे .....कि तभी नर्स ने आकर डॉक्टर से कहा .....डॉक्टर साहब देखों ....जल्दी चलों डिलीवरी होने वाली है डॉक्टर तुरंत  अंदर लेबर रूम में गई और..... संगीता ने नॉर्मल डिलीवरी से एक सुंदर व स्वस्थ  पुत्र को जन्म दिया ।....जिसे सुनकर सभी अचंभित रह गए और सभी डॉक्टर की तरफ  देखने लगे ...डॉक्टर बिना कुछ कहें..अपने काम में लग गई.......

✍️ स्वदेश सिंह
 सिविल लाइन्स
 मुरादाबाद 24401
मोबाइल -9456222230

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की लघु कथा -----अम्मा की गड़बड़


         सीताराम सीताराम सीताराम कहिए, जाहि बिधि राखे राम बाही विधि रहिए, रोज की तरह अम्मा बाथरूम में भजन गुनगुना रही थीं, अचानक अम्मा की आवाज आनी बन्द हो गई, थोड़ी देर बाद कमल को चिन्ता हुई, सीमा भी बोल पड़ी जरा बाथरूम में देखो तो.
कमल दौड़कर गया, देखा अम्मा बेहोश पड़ी थीं.
तुरंत डाक्टर बुलवाया गया. डाक्टर की सलाह पर अम्मा को अस्पताल में भर्ती कराया.
कमल रुँआसा सा डाक्टर के पास गया. डाक्टर बोला.देखो ये शुगर लेबल कम हो गया है और ये हाइपरग्लोसीमिया में चली गई हैं. जीवन को पूरा खतरा है.
हम 48 घंटे ऑब्जर्वेशन में रखेंगे,  उसके बाद ही कुछ कहा जा सकता है.
कमल ने सभी भाई बहिनों को फोन कर दिया.
शाम तक सभी आ गए।
एकदम से क्या हो गया, कैसे हो गया, सबके जबाब देते देते कमल और सीमा परेशान हो उठते.
सब लोग एक बार अस्पताल जाकर अम्मा को देख आते और फिर दिन भर घर में मेहमान की तरह रहते. सीमा घर में मेहमाननवाजी करते करते और कमल अस्पताल के चक्कर लगाते लगाते चुपचाप सबकी बातों को सुनते रहे.
ईश्वर की कृपा से चार दिन बाद अम्मा को होश आ गया और पाँचवें दिन अम्मा घर आ गईं. सब बड़े खुश होगए और अम्मा के पास बैठकर देर रात तक सब बच्चे बड़े हँँसी ठट्ठा करते रहे.
रात के बारह बजे तक सब अपने अपने कमरे में सोने चले गए.
कमल भी अम्मा को दवाई देकर अपने कमरे की ओर जा रहा था कि बड़ी भाभी के कमरे से आवाज सुनकर रुक गया.
भाभी और भैया में बात चल रही थी. इतना शोर मचाकर सबको बुला लिया, कुछ भी नहीं हुआ. हम तो दस दिन की छुट्टी ले आए थे. सोच रहे थे सब निपटा कर जाएंगे. अम्मा ने गड़बड़ कर दी.
कमल किंकर्तव्यविमूढ़ सा अपने कमरे में आ गया. बार बार उसके जहन में यही बात घूम रही थी, अम्मा ने गड़बड़ कर दी.

✍️  श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG-69, रामगंगा विहार,
मुरादाबाद, उ.प्र.।
मोबाइल नं. 9456641400

मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा मुरादाबाद के साहित्यकार शिशुपाल मधुकर के पांच गीत/ नवगीत, तीन गीतिका/ग़ज़ल, एक मुक्तक एवं 25 दोहों पर ऑन लाइन साहित्यिक चर्चा ----


 दिनांक 24 व 25 मई 2020 को वाट्स एप पर  संचालित समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा   'एक दिन एक साहित्यकार' की श्रृंखला के अन्तर्गत वरिष्ठ जनवादी कवि शिशुपाल मधुकर की रचनाधर्मिता पर स्थानीय साहित्यकारों ने अपने अपने  विचारों का आदान प्रदान किया। सबसे पहले शिशुपाल मधुकर द्वारा निम्न पांच गीत/ नवगीत, तीन गीतिका/ग़ज़ल, एक मुक्तक एवं 25 दोहे  पटल पर प्रस्तुत किए गए-

*गीत/नवगीत*
-------------------
               
*1.*
मजदूरों की व्यथा-कथा तो
             कहने वाले बहुत मिलेंगे
पर उनके संघर्ष में आना
     यह तो बिल्कुल अलग बात है

कितना उनका बहे पसीना
                कितना खून जलाते हैं
 हाड़ तोड़ मेहनत करके भी
                  सोचो कितना पाते हैं

 मजदूरों के जुल्मों-सितम पर
               चर्चा रोज बहुत होती है
उनको उनका हक दिलवाना
      यह तो बिल्कुल अलग बात है   

मानव है पर पशुवत रहते 
          यही सत्य उनका किस्सा है
रोज-रोज का जीना मरना
           उनके जीवन का हिस्सा है
 
उनके इस दारुण जीवन पर
                आंसू रोज बहाने वालों
उनको दुख में गले लगाना
      यह तो बिल्कुल अलग बात है
 
है संघर्ष निरंतर जारी
             यह है उनका कर्म महान
वे ही उनके साथ चलेंगे 
              जो समझे उनको इंसान
निश्चित उनको जीत मिलेगी
                  पाएंगे सारे अधिकार
लेकिन यह दिन कब है आना
      यह तो बिल्कुल अलग बात है


*2.*
       औरों की सुन-देख देखकर
       मैंने  तो  माँ   को  है  जाना                     
जब मैंने था होश संभाला
       खुद को था बिन मां का पाया
मैं क्या जानूं क्या होता है
        अपनी मां के सुख का साया
टुकुर-टुकुर देखा करता था
           औरों की मां का दुलराना
         
 धमा चौकड़ी शोर मचा कर
           मां की मीठी डांट न देखी                                                                                                                                                                      "मेरी मां सब से अच्छी है"
           कहकर नहीं बघारी शेखी                   
मेरे हिस्से नहीं था आया
      मां से लिपट-लिपट बतियाना

खेल खिलौने तो थे लेकिन
           उनमें मां का प्यार नहीं था
नहीं पीठ पर मां की थपकी
              लोरी का संसार नहीं था
कभी रूठना कभी मचलना
     मुश्किल था इस सुख को पाना 

औरों की मांओं में अक्सर
          अपनी मां  की छवि देखता
मुझको थोड़ा प्यार मिलेगा
             आशाओं का रवि देखता
अपनी मां तो मां होती है
          मां वालों को क्या बतलाना
   

 *3.*

अनगिन धोखे खाकर लौटे
                      नगरों से प्रवासी

दीन-हीन जन भूख प्यास से
                  कब तक यहां लड़े
बदहवास  अनजाने  भय  से
                      पैदल लौट  पड़े
कदम कदम पर बिखर गई है
                   चारों और  उदासी

नगरों  की  कुत्सित  चालों से
                    मन है बहुत दुखी
विपदा  में  भी छले  गए फिर
                        कैसे रहें सुखी
निर्धन  का  हर  कष्ट  उन्हें तो
                 लगती बात ज़रा सी

लंबे   चौड़े   वादे   हैं  पर
                 अमल नहीं भरपूर
टोने - टोटके, आडंबर का
                       जारी है दस्तूर
कल  की  चिंता  में डूबे हैं
                जुम्मन और हुलासी


*4.*
तुम कुछ भी कहो
    हम चुप ही रहें
       यह कैसे तुमने सोच लिया
  अनुबंधों से जुड़ा हुआ है
              बंध हमारा और तुम्हारा
   बार-बार अनुबंध तोड़कर
                 दोष बताते रहे हमारा
  तुम कुछ भी करो
       हम कुछ न कहें
          यह कैसे तुमने सोच लिया
  सीमाओं का करो उल्लंघन
            तुम मर्यादा को  भंग करो
   तुम तो हर सुख का भोग करो
            हमको मन चाहा तंग करो
  तुम जुल्म करो
      हम उसको सहें 
         यह कैसे तुमने सोच लिया
    क्यों कर अब यह झूठ तुम्हारे
              हम सच माने आंखें मूंदे
     जब तुमको है नहीं दीखती
                   मेरी ये आंसू की बूंदे 
 जो हवा चले
     हम उसमें बहें
           यह कैसे तुमने सोच लिया
    तुम हमसे हो हम तुमसे नहीं
           यह बात तुम्हें समझानी है
     व्यवहार तुम्हारा मनमाना
               समझो कोरी नादानी है 
  हम खंडहर बन
        चुपचाप ढहें
           यह कैसे तुमने सोच लिया

   
 *5.* 

      जाने कब हम
              लोकतंत्र में
                 रहना सीखेंगे
                   
    खुद को प्रजा समझ रहे हैं
                       और उन्हें राजा 
       नतमस्तक हो चूमे उनके
                      चौखट दरवाजा
       जाने कब हम
              जन सेवक को
                     चुनना सीखेंगे
                       
       गले सड़े सामंती पन को 
                         ओढ़ के बैठे हैं
        लुटे-पिटे भूखे प्यासे पर
                             रहते ऐंठे हैं 
          जाने कब हम
                नई राह पर
                     चलना सीखेंगे
                       
           ढूंढ रहे प्रश्नों के उत्तर
                     लोक कथाओं में
    मिथकों में, रूढ़ी में जाकर
                        धर्म सभाओं में 
          जाने कब हम
                 नई सोच में   
                     ढलना सीखेंगे


*गीतिका/ ग़ज़ल*
---------------------
(1)
मैं दीपक हूँ भले छोटा मेरी भी इक कहानी है
अँधेरों से नहीं मैंने कभी भी हार मानी है

निरंतर चल रहा हूं बस यही उम्मीद लेकर मैं
अगर मै चल रहा हूं तो मेरी मंजिल भी आनी है

कभी हँसाना कभी रोना कभी चुप तो कभी गाना
ये बातें आम हैं जब तक हमारी जिंदगानी है

निशाने पर रहा हूं मैं निशाने पर रहूँगा मैं
गलत बातों से मेरी तो रही रंजिश पुरानी है

कभी तकदीर की बातें कभी तदबीर की बातें
ये असमंजस की बातें ही जहालत की निशानी है

अँधेरा ही अँधेरा है जिधर भी दूर तक देखो
मशालें फिर नई हमको यहां मिलकर जलानी है

सुनो कुछ कह रहा 'मधुकर' अजब पसरा ये सन्नाटा
भले तूफान न आये मगर आंधी तो आनी है 
                                                                       (2)
     झूठ गर सच के सांचे में ढल जाएगा
     रोशनी को अंधेरा निगल जाएगा

     इतनी बीमार है आज इंसानियत
     लग रहा है कि दम ही निकल जाएगा

     छोड़ दो उसकी उंगली बड़ा हो गया
     ठोकरे खाते - खाते संभल जाएगा

    आ गए भेष धरकर मुहाफिज़ का जो
    राज उनका भी जल्दी ही खुल जाएगा

   अपने हक के लिए सब जो मिलकर लड़ें
    देखिए सारा आलम बदल जाएगा
 
(3)
ज़िदों पर अपनी अड़ने से किसी का क्या भला होगा
दिलों की साफ नीयत में सुलह का रास्ता होगा

चलो यह मान लें कोई किसी से है नहीं कमतर
किसी मुद्दे पे आकर तो कहीं कुछ फैसला होगा

हमारा भी तुम्हारा भी सभी का है वतन प्यारा
अम्न कायम रहे इसमें हमें यह सोचना होगा

तरीका अब कोई सोचे कि जिससे हो भला सबका
पुराना बेअसर हो तो नया फिर खोजना होगा

गले मिलकर भुलाएं सब पुराना हर गिला शिकवा
दिवाली ईद क्रिसमस पर अनोखा ही मजा होगा


*मुक्तक*
-----------

 जिंदगी में जीत भी है जिंदगी में हार भी
  जिंदगी में द्वेष भी है जिंदगी में प्यार भी
  कौन कैसे किस तरह जीता है इसको दोस्तो 
  जिंदगी अभिशाप भी है जिंदगी उपहार भी
               
*दोहे*
--------
ऐसे पतित समाज को भला बचाए कौन
जब झूठों के सामने सच्चे ठाड़े मौन

निजीकरण  के रास्ते रोजगार की चाल
गली-गली में बढ़ रहे नित-नित नए दलाल

रिश्ते जर्जर हो गए नहीं रहा वह मेल
प्रेम- शांति -सद्भाव की सूख रही है बेल

अब तो होती जा रही राजनीति व्यापार
जिधर देखिए हो रही लोकतंत्र की हार

कुर्सी पाने के लिए रहते सदा अधीर
आम आदमी की नहीं सुनता कोई पीर

नकली मुद्दों की चली ऐसी यहां बयार
साथ साथ दोनों बहे मूरख़ व होशियार

रूठे है रिश्ते सभी टूट रहे अनुबंध
अब आपस में रह गया पैसों का संबंध

सत्य खड़ा है सामने पर लगता है दूर
आंखों के इस रोग से लोग मिले मजबूर

नहीं ठौर है सत्य को फिरता है बदहाल
जिधर देखिए लग रही झूठों की चौपाल

ह्रदय प्रेम से हो भरा मन में स्वाभिमान
सच्चे मानव की यही होती है पहचान

सब बंटवारे झूठ हैं सारे मानव एक
कहता है विज्ञान भी कहते संत अनेक

होठों पर आता नहीं उसके मीठा राग
जिसके मन में हो लगी घृणा द्वेषकी

कैसी यह उन्नति हुई कैसा हुआ विकास
धन -दौलत खिचती गई कुछ लोगों के पास

होठों पर आता नहीं उसके मीठा राग
जिसके मन में हो लगी घृणा द्वेष की आग

धन परिभाषित कर रहा अब जीवन के ढंग
फीके  सारे हो गए नैतिकता के रंग

यदि पग - पग अन्याय का होने लगे विरोध
तब सुख के पथ से सभी हट जाए अवरोध

रोना - धोना छोड़ कर हो जाओ तैयार
सुनो मित्र मिलता नहीं  बिन छिने अधिकार

सच्चा साबित कर रहे खुद को झूठे लोग
बतलाते उपवास हैं खाकर छप्पन भोग

हुआ आजकल धर्म भी नया नया व्यवसाय
एक एक उपदेश भी लाखों में बिक जाए

दिन पर दिन महंगे हुए शिक्षा और इलाज
सत्ता के दावे मगर सफल हमारा राज

धर्म जाति के नाम पर सत्ता का व्यापार
लोकतंत्र के साथ में कहलाता व्यभिचार

कहीं जात के नाम पर कहीं धर्म के नाम
वोट बनाने के बने खेमे आज तमाम

तेज कुल्हाड़ी चल रहे चिड़ियां हैं अनजान
बैठ पेड़ पर गा रहीं अपना मंगल गान

राजनीति जो कर रहे नैतिक मूल्य विहीन
पद को दूषित कर रहे हैं जिस पर आसीन

धीरज को छोड़ो नहीं लक्ष्य न जाना भूल
चाहे कितनी भी चले समय चाल प्रतिकूल

    मधुकर जी की रचनाओं पर विचार व्यक्त करते हुए प्रख्यात साहित्यकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि "मधुकर जी जनवादी कवि हैं उनकी आमजन के प्रति प्रतिबद्धता से भरी रचनाएं हैं। वह शोषितों, पीड़तों, के साथ संघर्ष में भागीदारी भी निभाते हैं, उनका रचनात्मक तेवर इसका गवाह है" ।
व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि "शिशुपाल जी के रचना कर्म की सराहना करता हूं। उनके प्रति मेरा स्नेहभाव पहले से ही है  ।"
 वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि " समाज के आर्थिक रूप से निर्बल वर्ग के दुख दर्द की चिंता इन रचनाओं की केंद्रीय विषय वस्तु है। रचनाओं में शिल्प या छंद से अधिक ध्यान कहने पर दिया गया है।"
मशहूर शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज़ ने कहा कि " राजनीति और सामाजिक अव्यवस्थाओं के प्रति विद्वेष और विद्रोह मधुकर जी की अधिकतर रचनाओं में पाया जाता है"।
  नवगीत कवि योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि " वर्तमान की विभीषिकाओं, असंगतियों, विद्रूपताओं के अंधकार भरे समय में मधुकर जी संघर्ष की बात करते हुए यथार्थ को बहुत ही संवेदनशीलता के साथ उकेरते हैं"।
   वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि "शिशुपाल मधुकर जी की कविताओं में सर्वहारा वर्ग की पीड़ा, आक्रोश और शोषक वर्ग के खिलाफ खड़े होने के भरपूर स्वर मिलते हैं "।
   युवा शायर राहुल शर्मा ने कहा कि "मधुकर जी की रचनाओं में जनवादी स्वर की गूंज स्पष्ट सुनाई देती है। कथ्य की दृष्टि से उनकी रचनाएं समृद्ध हैं"।
  युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि "समाज में व्याप्त विषमताओं पर सशक्त प्रहार करना मधुकर जी की रचनाओं की विशेषता रही है।"
  युवा शायर अंकित गुप्ता अंक ने कहा कि "मधुकर जी की रचनाओं में वंचितों के प्रति विशेष अपनत्व स्वाभाविक व आवश्यक रूप से दृष्टिगोचर होता है"।    कवि श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा कि "शिशुपाल मधुकर जी की रचनाओं में व्यवस्था के प्रति एक आम आदमी की पीड़ा स्पष्ट दिखाई देती है"।
 ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि " शिशुपाल मधुकर जी की कविता का मुख्य विषय आम आदमी है चाहे वह मजदूर हो किसान हो अंतिम पंक्ति में खड़ा हुआ व्यक्ति हो जिसे उसका हक नहीं मिला है। मधुकर जी अपने काव्य से उसके हक की तलाश करते हैं। उसका हक मांगते हैं।"

✍️ ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन और संचालक
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब
मोबाइल- 8755681225

रविवार, 24 मई 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की कहानी---- जो जहाँ है , वहीं रहे


 सड़क पर मजदूर सिर पर सामान लादे हुए चले जा रहे थे । एक न्यूज चैनल के लिए काम करते समय मुझे जिम्मेदारी सौंपी गई थी कि मैं प्रवासी मजदूरों का इंटरव्यू लूँ और उनसे बातचीत करके उनके हृदय की भावनाओं को श्रोताओं तक पहुँचा दूँ। मेरे साथ एक दूसरे न्यूज चैनल का संवाददाता भी था ।
      एक मजदूर परिवार सहित आ रहा था। कुछ समझदार लगा ।मेरे साथ ही संवाददाता ने उसको रोक लिया और प्रश्न पूछना शुरू किया "आप क्यों आ रहे हैं? सड़क से पैदल चलते हुए ऐसी क्या मजबूरी थी?"
     वह मजदूर बोला "आखिर क्या करते ? न मकान का किराया देने के लिए पैसे थे, न कोई वेतन मिल रहा था और न खाने-पीने का इंतजाम सही था ?"
     मेरे साथी संवाददाता ने इतना सुनते ही उस मजदूर को मेरी तरफ बढ़ा दिया । बोला "यह तुम्हारे लिए है ।"
      मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ । लेकिन मैंने मजदूर से प्रश्न किया " तुम्हें खाने पीने की कमी भला कैसे हो सकती है ? सरकारों ने स्थान स्थान पर भोजन की व्यवस्था की है। आटा दाल चावल बाँटने का कार्य घर-घर में चल रहा है ।"
    सुनकर मजदूर ने सहमति में सिर हिलाया "यह बात सही है । लेकिन यह सब काफी नहीं होता । खर्चे और भी दस तरह के होते हैं। घर में पड़े - पड़े क्या जी लगे ? और फिर हमें महीने की तनखा भी तो नहीं मिल रही है?"
     " क्या काम करते हो ?"
              "फैक्ट्री में काम करते थे । अब फैक्ट्री बंद हो गई है। लिहाजा जब मालिक को कोई काम नहीं रहा तो हम भी वहाँ क्या करते । उसने हमसे भी मना कर दिया ।"
       "क्या कहा ? इस प्रश्न पर वह बोला "जब फैक्ट्री चलेगी ,तब आ जाना ।"
       "फिर अब जाने के बाद फिर लौट केआओगे ?"
       मेरे इस प्रश्न पर मजदूर ने कुछ परेशानी अपने चेहरे पर ओढ़ ली । बोला " यह तो कुछ कह नहीं सकते !"
  इतना कहकर मजदूर आगे बढ़ गया । मेरा साथी संवाददाता जो दूसरे न्यूज चैनल का था , वह किसी अन्य मजदूर से इंटरव्यू के लिए उलझा हुआ था । मजदूर बार-बार यह कह रहा था कि उसे घर की याद बहुत आ रही थी । साथ ही खाने-पीने और रहने की भी परेशानी होने लगी थी । लेकिन मेरा साथी संवाददाता बार-बार उससे यही पूछ रहा था "इसका मतलब है तुम्हें घर की याद आ रही थी ?"
          वह मजदूर सहमति के भाव से सिर हिलाता था और तब वह संवाददाता उससे कुरेद कुरेद कर प्रश्न पूछता था "जब घर की याद आती है तो तुम्हें ऐसा नहीं लगा कि तुम्हें घर तक पहुँचने के लिए कुछ इंतजाम होना चाहिए था ?"
     "हाँ ! यह तो हम चाहते ही थे कि कोई इंतजाम हो । जब इंतजाम नहीं था ,तभी तो हम पैदल चले ।"
      "तो इसका मतलब है कि जो इंतजाम होना चाहिए था, वह सरकार ने नहीं किया?"
     " भाई ! हम तो इतनी ज्यादा चीजें नहीं जानते । हम तो बस  यही चाहते थे कि किसी तरह घर पहुँच जाएँ। रहने की भी दिक्कत थी और घर की भी बहुत याद आ रही थी ।"
       "मतलब तुम्हें घर की याद आ रही थी और तुम्हारे पास घर पहुँचने के लिए कोई साधन नहीं था ? तुम कितनी परेशानी के साथ कितने दिनों से चल रहे हो ? कुछ विस्तार से बताओ ?"और तब संवाददाता उसके दुख और परेशानी को जो उसने रास्ते में झेली ,उसका विवरण पूछने में लग गया ।
               मैं इंटरव्यू लेकर दूसरी जगह चला गया था क्योंकि मुझे और भी काम था । फिर उसके बाद रास्ते में कुछ लोग बातचीत करते हुए नजर आए । यह राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता थे । सड़क पर धरने पर बैठे हुए थे । यद्यपि मेरा घर जाने का समय हो गया था लेकिन जब मैंने इस दृश्य को देखा तो मुझे यह एक अच्छी न्यूज़ नजर आई । मैं उन लोगों के पास पहुँचा और पूछने लगा "आपकी माँग क्या है ?"
      "हम मजदूरों के साथ हैं और हम चाहते हैं कि वह मजदूर देश में जहां भी फँसा हुआ है ,उसको उसके घर तक पहुँचाने के लिए सरकार इंतजाम करे। "
       "लेकिन सरकार का कहना है कि जो जहाँ है ,वही रहे। इसके बारे में आपकी क्या राय है ?"
            "हम इससे सहमत नहीं हैं । मजदूर को बंधक बनाकर नहीं रखा जा सकता। उसे उसके घर जाने का अधिकार मिलना ही चाहिए ।"
        "लेकिन क्या ऐसा करने से अव्यवस्था नहीं फैल जाएगी ? जो बीमारी इतने दिनों से रोक कर रखी गई है ,वह देश के हर हिस्से में चली जाएगी ।"
       "देखिए साहब ! हमने भी दुनिया देखी है । जब विदेशों से लोग ला रहे थे ,तब वह बीमारी नहीं फैल रही थी । अमीर लोगों से बीमारी नहीं फैली ।अब गरीब लोगों से फैल जाएगी ? देश में गरीब और अमीर के साथ भेदभाव किया जा रहा है । यह गलत है।"
             " आपने डब्ल्यूएचओ का नाम सुना होगा ? उसने गाइडलाइन देने में बहुत देर लगा दी ,जिसके कारण बाहर से आने वाले यात्रियों पर नियंत्रण करने में काफी देर रही ?"
       "यह सब बेकार की बातें हैं ।"-मेरे प्रश्न को अनसुना करते हुए धरने पर बैठे नेता ने कहा -"हम किसी भी हालत में मजदूरों को मानसिक , शारीरिक तथा आर्थिक प्रताड़ना नहीं देने देंगे । उन्हें अपने घर जाने का अधिकार है। सरकार के पास अगर सुविधा नहीं है ,तो हमसे कहे । हम मदद करने के लिए तैयार हैं।"
        मैं समझ गया कि इनके ऊपर किसी तर्क वितर्क अथवा किसी प्रश्न का कोई असर होने वाला नहीं है। इन्होंने नीति बना ली है कि मजदूरों को उनके कार्यस्थल से उनके गाँव तक पहुँचाने का काम होना चाहिए । वह यह सुनने के लिए तैयार नहीं थे कि  ऐसा करने से लॉकडाउन का उद्देश्य ही विफल हो जाएगा ।
        लेकिन फिर जब तक मैंने न्यूज बनाई और अपने न्यूज़ चैनल को भेजी तो उन्होंने इस पर मुझसे इतनी ही टिप्पणी  की कि अब इस को प्रसारित करने की आवश्यकता नहीं रही ,क्योंकि सबकी समझ में आ गया है कि पूरे देश की भलाई इसी में है कि जो जहाँ है, वह वहीं रहे ।  रोग इस प्रकार जड़ से समाप्त हो जाए तथा उसे फैलने का अवसर न मिले। मुझे थोड़ा दुख तो हुआ कि मेरी मेहनत बेकार गई लेकिन फिर मैंने सोचा कि मेरी मेहनत सफल रही क्योंकि रोग फैलने से रुक गया है ।

 ✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद के साहित्यकार फरहत अली खान की 10 ग़ज़लें-----



*1.
बाज़ दिल याद से उन की न ज़रा-भर आया
वो न आए तो ख़्याल उन का बराबर आया

साक़ी-ए-दर्द भरा ही किया पैमाना-ए-चश्म
सो तिरी बात पे छलका जो ज़रा भर आया

आह! वो शिद्दत-ए-ग़म है कि मिरी आँखों से
बूँद दो बूँद नहीं, एक समुंदर आया

जिस से बचने के लिए बंद कीं आँखें हम ने
बंद आँखों पे भी आगे वही मंज़र आया

ये जो सहरा में फिरा करता है दीवाना सा
ख़ुद को दुनिया के झमेलों से छुड़ा कर आया

दिल को शिद्दत से तमन्ना थी तिरे कूचे की
सो बड़े शौक़ से उस को मैं वहाँ धर आया


*2.
ज़िन्दगी दौड़ती है सड़कों पर
और फिर मौत भी है सड़कों पर

दिनदहाड़े पड़ा है इक ज़ख़्मी
क्या अजब तीरगी है सड़कों पर

लोग बस बे-दिली से चलते हैं
यानी बे-चारगी है सड़कों पर

उम्र घर में तो उस की कम गुज़री
और ज़ियादा कटी है सड़कों पर

मुफ़्लिसी कैसी-कैसी शक्लों में
तू भी अक्सर मिली है सड़कों पर

घर तो गोया किसी का है ही नहीं
सब का सब शहर ही है सड़कों पर

चलते हम-तुम भी है मगर 'फ़रहत'
होड़ रफ़्तार की है सड़कों पर


*3.
आप को उजला दिखे, काला दिखे
सच तो सच है चाहे वो जैसा दिखे

ज़ुल्फ़-ए-जानाँ, दीदा-ए-नम, दर्द-ए-दिल
इन से बाहर आएँ तो दुनिया दिखे

आँख के अंधे को फिर भी अक़्ल है
अक़्ल के अंधे को सब उल्टा दिखे

मुझ को अपने आप सा लगता है वो
राह चलते जब कोई रोता दिखे

हूँ पशेमाँ मैं गुनहगार अपना मुँह
फेर लेता हूँ जो आईना दिखे

खूब है दुनिया की ये जादूगरी
वो नहीं होता है जो होता दिखे


*4.
छेड़ दें गर क़िस्सा-ए-ग़म शाम से
कह रहेंगे सुबह तक आराम से

चाहिए हम को कि बेदारी रहे
आशना हों हश्र से अंजाम से

जो बुलाता था वो शख्स़ अब जा चुका
काम अपना देखिए आराम से

पा गए हम बे-गुनाही की सज़ा
बच गए सौ बार के इल्ज़ाम से

कट रही है ज़िन्दगी अब दश्त में
हम को क्या मतलब रहा हुक्काम से

क्या ख़बर तुझको कि कितना रोए हम
छूट कर सय्याद तेरे दाम से

बज़्म में ‘फ़रहत’ बड़े नाशाद थे
मुँह पे रौनक़ आ गयी इक नाम से


*5.
तू जहाँ में चार दिन मेहमान है
इसके आगे और ही सामान है

आदमी इक ख़ाक का पुतला है बस
जिस्म में रंगत है जब तक जान है

काला-गोरा, ऊँचा-नीचा, जो भी हो
आदमी वो है कि जो इंसान है

गर जहन्नुम की हक़ीक़त जान लो
राह जन्नत की बहुत आसान है

कुछ तिरे आमाल ही अच्छे न थे
अपनी बर्बादी पे क्यूँ हैरान है

कुछ नहीं सारे जहाँ की दौलतें
आदमी के दिल में गर ईमान है


*6.
न सारे ऐब हैं ऐब और हुनर हुनर भी नहीं
कुछ एहतियात तो कीजे पर इस क़दर भी नहीं

तुम्हारे हिज्र में बाँधा है वो समाँ हमने
कि आँख हमसे मिलाता है नौहागर भी नहीं

नहीं, ज़रा भी तो उस ने नहीं मिलाया रुख़
मैं उसको देख रहा था, ये जानकर भी नहीं

ये हमने भूल की आ पहुँचे उन की महफ़िल में
पर उन से अर्ज़-ए-तमन्ना तो भूल कर भी नहीं

कोई तो रंग बिखेरेगी ज़िन्दगी की ये धूप
अगर तवील नहीं है तो मुख़्तसर भी नहीं

मैं किस तरह से उसे दोस्त मान लूँ 'फ़रहत'
नहीं जो अहल-ए-सितम और चारागर भी नहीं


*7.
वो इक मोड़ क़िस्से में ऐसा भी आया
वही शख़्स रोया भी, जो मुस्कुराया

हमें याद करने में क्या लुत्फ़ पाया
कलेजा तुम्हारे जो मुँह को न आया

उसूलों की ख़ातिर जिसे हम ने छोड़ा
उसूलों ने फिर मुँह न उस का दिखाया

वफ़ा के तक़ाज़े अजब हमने देखे
जिसे आज़माया, बहुत आज़माया

सताने की हद हम ने देखी है 'फ़रहत'
वही रो पड़ा जिस ने हम को सताया


*8.
चारों जानिब सब्ज़ा-सब्ज़ा लगता है
साथ है वो तो सब कुछ अच्छा लगता है

उसके शहर में आया हूँ मैं पहली बार
फिर भी सब कुछ देखा-देखा लगता है

इश्क़ में इस दर्जा रहती है ख़ुश-फ़हमी
पैहम धोका खाना अच्छा लगता है

आँख से जारी होता है पानी कैसे
तू तो ऐ दिल सूखा सूखा लगता है

अहद-ए-वफ़ा ही कर बैठे थे हम वरना
रुस्वा होना किसको अच्छा लगता है

अब तक 'फ़रहत' हम तो इस धोके में रहे
हर कोई वैसा है जैसा लगता है


*9.
पत्ता पत्ता ख़ार हुआ है
गुलशन आँखों में चुभता है

सर फोड़े जैसा दुखता है
याद का पत्थर आके लगा है

गोया दिल पर बोझ हो कोई
हर लम्हा भारी लगता है
   
मेरा दोस्त नहीं है कोई
हर कोई तेरे जैसा है

उसकी झूठी वफ़ा का क़िस्सा
अक्सर याद आता रहता है

दिल का ज़ख़्म जो भर नहीं पाया
अक्सर आँखों से रिसता है

मुझ पे जो बीत रही है नासेह
तुझ पे न बीते मेरी दुआ है

अब शायद आराम मिले कुछ
हमने जी को मार लिया है


*10.
वो मुस्कुरा दिए तो ज़रा मुस्कुराएँ हम
फिर ख़ुद से चाहे कोई बहाना बनाएँ हम

फिर से है पैरहन को रफ़ूगर की जुस्तजू
दिल चाहता नहीं कि उसे भूल जाएँ हम

रंग उस के पैरहन के जहाँ में बिखर गए
ख़ुशबू फ़ज़ा में ऐसी घुली क्या बताएँ हम

इश्क़ अस्ल में है नाम अना की शिकस्त का
जब भी वो रूठ जाए तो उस को मनाएँ हम

फिरता है इक ख़्याल हमारी तलाश में
हम भी तलाश में हैं कहाँ उस को पाएँ हम

रंग इंतज़ार करते हुए खो गए कहीं
फ़ुर्सत न मिल सकी कि वहाँ हो भी आएँ हम

✍️फ़रहत अली ख़ान
लाजपत नगर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश ,भारत
मोबाइल फोन नंबर 9412244221

शनिवार, 23 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघु कथा -- आचरण


    पचास किलोमीटर के क्षेत्रफल में धनिया जैसा बेहतर कोई और मूर्तिकार नहीं था।धनिया की बनाई मूर्ति मां सरस्वती ,गणेश-  लक्ष्मी, मां काली की प्रतिमा साक्षात जीवंत सी जान पड़ती थी...। आसपास का कहना था कि मां सरस्वती ने उसे ही नहीं बल्कि उसके पूरे खानदान को यह वरदान दिया है कि जिस पत्थर या मिट्टी को वो गढ़ दे उसमे साक्षात देवी वास कर जाएगी।उसका पूरा खानदान इसी पेशे में कई दशक से लगा हुआ था, हां यह सत्य है कि जितनी शोहरत, पैसा धनिया ने कमाया उतना उसके पूर्वजों ने नहीं...

पर जाने क्यों उसके अब अभागे दिन आ गए हैं,  दो साल से कोई भी मूर्ति नहीं बिकी। लोगों का कहना है अब धनिया तेरे हाथ में वह बात नहीं रही...
घर में पैसे आने बंद हो गए हैं और घर में  रोज कलह होने लगी ।
धनिया की पत्नी मुनिया ने अंदर से आवाज लगाई-   सुनो जी अंदर आओ.....जल्दी....मां की प्रतिमा कैसे खंडित हुई ,तुमने तो कल ही बनाई थी ...हमने तो छुआ भी नहीं ,यहां तो हवा भी नहीं आती । मुझे तो लगता है कि जरूर कोई अपशगुन है।
 हे.... हे... मां मां .. माफ करो कुछ गलती हुई जाने अनजाने में.
धनिया की बेटी मुन्नी ने कहा-  बाबा आप तो मां लक्ष्मी की मूर्ति बनाते हो, इतनी सुंदर ,फिर भी हमारे पास पैसे की तंगी.. क्यों बाबा, क्यों??
धनिया जोर जोर से रोने लगा.. मां ....मां... मां माफ करो मां .....।
बिना खाना खाएं वह उस रात जल्दी सो गया।
देर रात महालक्ष्मी उसके सपने में आईं औऱ बोलीं  - बेटा धनिया तुमने अपने काम का  अनादर किया है। घमंड में आकर मदिरा का सेवन करते हुए तुम मूर्ति बनाते हो उस समय तुम असलियत में तुम नहीं होते,तुम्हारी नजर में भी वो बात नहीं होती.....
नशे में चूर तुम मुनिया को मारते पीटते हो ,गाली गलौज करते हो,और वह भी बेटी के सामने.....
 अरे मूर्ख ,देवी की प्रतिमाएं बनाता है और नारी का अपमान करता है। कर्तव्य का आचरण से सीधा संबंध है ।यह कहकर मां अंतर्ध्यान हो गई। सुबह उठते ही धनिया अपनी पत्नी का पैर पकड़कर माफी मांगने लगा और कहा - मुनिया तुझ पर जितनी बार हाथ उठाया मुझे उससे ज्यादा मार पर माफ कर दे...माफ कर ...माफ कर,कह कर रोने लगा
 "घर की देवी है तू,उसका अपमान देवी का अपमान ,फिर मूर्ति में कैसे लाऊं जान"

प्रवीण राही
Nc-102, मुरादाबाद
मो.नो.- 8860213526,8800206869

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रामकिशोर वर्मा का संस्मरणात्मक आलेख ----- "मेरे अंदर दबे हुए कविता के अंकुरों को प्रस्फुटित किया था हीरालाल 'किरण' ने"



    बात उन दिनों की है जब मैं बी ए करने के बाद राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान, रामपुर( उ०प्र०) से हिन्दी आशुलिपिक का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद भी खाली हाथ था । हालांकि वर्ष 1974 के समय सरकारी विभागों में भी हिन्दी आशुलिपिकों के पद न के बराबर ही थे पर भविष्य में इन पदों के सृजित होने की प्रबल आशा थी ।
   मैं साक्षात्कार की तैयारी कर रहा था । जेब खर्च निकालने और स्वयं को व्यस्त रखने के लिए मैंने 'अंँग्रेजी माध्यम' के रामपुर में एकमात्र 'सेंटमैरी कान्वेंट' स्कूल के बच्चों को घर पर जाकर ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया ।
   तभी मेरे घनिष्ठ मित्र स्मृति शेष श्री दिलीप कुमार शर्मा जी ने मुझसे कहा - 'टैगोर शिशु निकेतन में विज्ञान के आचार्य की आवश्यकता है । वहां के प्रधानाचार्य मेरे परिचित हैं। उनका भी काम हो जायेगा और तुम्हें भी सहारा मिल जायेगा।'
  मैंने सोचा - 'खाली से बेगार भली' और वहां विज्ञान पढ़ाना शुरू कर दिया ।
    विद्यालय का वातावरण और युवक-युवती आचार्य सभी बहुत भले थे । वहां पर मेरा परिचय श्री हीरालाल किरण जी से प्रत्यक्ष हुआ । इससे पहले मैं उन्हें केवल समाचार-पत्रों में ही उनकी रचनाओं के साथ पढ़ता रहता था । बहुत साधारण व्यक्तित्तव , मधुर वाणी वाले ज्ञान के भंडार हिन्दी के ध्वज को रामपुर में लहरा रहे थे ।
    बचपन से मुझे कविता पढ़ने का बहुत शौक था । मन करता था कि मैं भी लिखूं । भावों को कलम से कागज पर उकेर दूं ।मन नहीं माना और स्नातक करते समय ही भावों को कागज पर चीतना शुरू कर दिया था।
   मेरे लिए श्री हीरालाल किरण जी का सानिध्य ऐसा था कि जैसे मेरी सभी समस्याओं का हल मिल गया हो । विद्यालय में ही भोजनावकाश में मैं उनसे कविता पर चर्चा करता तो वह बहुत प्रसन्न होते थे । मेरे अंदर दबे हुए कविता के अंकुरों को प्रस्फुटित करने में वह मुझे निस्वार्थभाव से प्रोत्साहित करने लगे ।
   मैं लिखकर लाता और दिखाता तो कहते - 'अभी ऐसे ही लिखो । अच्छे भाव हैं । बस तुकान्त पर ध्यान दो ।'
    मैं अपने लिखे की प्रशंसा पाकर फूला न समाता। मुझे तो यह भी पता नहीं था कि तुकांत क्या और कैसे प्रयोग करते हैं।बस अतुकान्त लिखता पर मन यही कहता कि जो बात कविता में होती है,वह नहीं आ रही है। मैं अपने मनोभाव श्री हीरालाल किरण जी से कहता तो वह यही कहकर प्रोत्साहित कर देते कि -'करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान' । पहले तुकांत मिलाना सीखो । चार-चार की पंक्तियों में रचना रचो । मगर उन्होंने कभी हतोत्साहित नहीं किया ।
   श्री हीरालाल किरण जी मेरी प्रथम पाठशाला थे । तब से मैं अतुकान्त रचनाऐं लिखने लगा ।
   इसी मध्य मेरी नियुक्ति ज़िला एवं सत्र न्यायालय, रामपुर में हो गयी मगर मैं उनसे जुड़ा रहा ।
    आर्य समाज मंदिर, रामपुर में 'विज्ञान कार्यशाला' के आयोजन में श्री हीरालाल किरण जी ने मुझे भी निमंत्रित कर विज्ञान से संबंधित बाल रचाऐं रचने के लिए सभी रचनाकारों को प्रशिक्षण दिया गया।
    न्यायालय की नौकरी में कार्य की अधिकता के कारण समय नहीं मिल पाता था कि मैं काव्य गोष्ठियों में जा पाऊंँ । मगर कलम निरन्तर चलती रही। विभाग में समस्त न्यायिक अधिकारियों और स्टाफ की उपस्थिति में मैं राष्ट्रीय पर्वों पर स्वरचित रचनाऐं प्रस्तुत करता तो वहां भी भूरि-भूरि प्रशंसा पाकर मन गदगद हो जाता । मगर मैं श्री हीरालाल किरण जी को ही मन-ही-मन धन्यवाद देता कि यदि वह मुझे उत्साहित नहीं करते और कविता के व्याकरण व मात्राओं के मकड़जाल में फंँसा कर उलझा देते तो संभवतः कलम आगे नहीं चल सकती थी ।
    श्री हीरालाल किरण जी के व्यवहार और मार्गदर्शन को मैं कभी नहीं भुला सकता ।
 
✍️  राम किशोर वर्मा
       रामपुर

गुरुवार, 21 मई 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार भोलानाथ त्यागी की कविता ---- विरथी राम


राम , हमेशा
विरथी रहें  हैं ,
और रावण -
रथी ,
लंका सोने की
होती है ,
राम , पर्णकुटी में
विराजते रहें है ,
यही , जीवन का
रामराज्य है ,
आज एक बार फिर
अनेक  राम
अपनी अपनी सीता
व  , लाव - लश्कर  के साथ
अपनी खोली छोड़ -
नाप रहें हैं
बीहड़ मार्ग -
अपने साकेत की ओर ,
और वहां -
नव  निर्माण हेतु -
समतलीकरण का कार्य
प्रगति पर है ,
तथा समूचा परिदृश्य -
कालनेमि की भूमिका
निबाहने में
व्यस्त है ......


✍️ भोलानाथ त्यागी
 विनायकम
49 इमलिया परिसर 
सिविल लाइंस
बिजनौर 246701
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 70172 61904  , 94568 73005
           
 


बुधवार, 20 मई 2020

वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में मंगलवार 19 मई 2020 को आयोजित बाल साहित्य गोष्ठी में शामिल राशि सिंह, प्रीति चौधरी, अशोक विद्रोही ,वीरेंद्र सिंह बृजवासी, नृपेंद्र शर्मा सागर, कंचन लता पांडेय, मीनाक्षी ठाकुर, डॉ प्रीति हुंकार, डॉ पुनीत कुमार, कमाल जैदी 'वफ़ा', डॉ अर्चना गुप्ता, सीमा वर्मा, श्री कृष्ण शुक्ल, जितेंद्र कमल आनन्द,मरगूब हुसैन, राजीव प्रखर और कंचन खन्ना की रचनाएं -----



चलो हो गई सबकी  छुट्टी
​पढ़ाई से हो गई सबकी कट्टी .

​नानी के घर, अब सब जाएंगे
​धमा चौकड़ी , खूब  मचाएंगे .

​मस्ती , बस अब मस्ती होगी
​न किताबों का हो , कोई रोगी .

​सुबह सवेरे , उठकर हम सब
​टहलने जाएं,  नानाजी के संग

​नानी , प्रेम फुहार बरसायेगी
​मम्मी की , अब चल न पाएगी .

​दूध जलेबी मामाजी लाएंगे
​मिलजुलकर हम सब खाएँगे .

​मौसी , मम्मी , नानी नाना
​बुनते रहेंगे बातों का ताना .

​खूब खाएँगे आइसक्रीम कुल्फी
​ठंडी ठंडी , खट्टी और मीठी .

​छुट्टी बाद फिर स्कूल जायेगे
​अगले साल , अच्छे दिन आएंगे .

  ✍️ राशि सिंह
​मुरादाबाद 244001
-----------------------------

 दूरदर्शन पर प्रसारित
 सीरियल महाभारत ने
बच्चों का मन ख़ूब लुभाया
लोकडाउन के समय में
संस्कृति से अपनी
परिचय उनका कराया
सुन उपदेश गीता के
बच्चों के मन में
प्रश्न एक आया
बिन कर्म फल कैसे सम्भव
ऐ माँ ये समझ न आया
माँ ने  सुनकर प्रश्न बच्चों का
उनको पास अपने बैठाया
अपने ज्ञान सागर से फिर
उनकी शंका को यूँ मिटाया
फल की चिंता अगर करोगे
तो कर्म प्रभावित हो जाएगा
तुम्हारा मस्तिष्क फिर कही
एक सीमा तय कर आएगा
जिसको पाना ही मात्र
उद्देश्य तुम्हारा रह जायगा
 कहती गीता अगर बाँधोगे
ख़ुद को किसी सीमा से
फिर शक्ति जो अंदर बसी
उसे कैसे तूँ पहचान पायगा
जब कर्म करोगे चिंतामुक्त
फिर राह हर खुल जायगी
जिस पथ पर तुम पग रखोगे
वो यश की तुम्हें सैर करायगी
बच्चों क्षमता को अपनी
तुम किसी फल में
क़ैद कभी मत करना
कहती गीता इसलिए तुमसे
करते रहना कर्म ही सदा
फल की तुम इच्छा न करना
फल की तुम इच्छा न करना

 ✍️ प्रीति चौधरी
 (शिक्षिका)
राजकीय बालिका इण्टर कालेज
हसनपुर, जनपद-अमरोहा, उ0प्र0
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 पंछी क्या सिखाते हैं?
सुबह सवेरे घर के बाहर ,
              पंछी शोर मचाते हैं !
गा गा कर मीठी बोली में,
          हर दिन मुझे जगाते हैं!!       
  दादी रखती दाना पानी ,
           दाना सब चुग जाते हैं ।
दाना खाते पानी पीते,
          मन को बहुत लुभाते हैं।
शाखों की झुरमुट में देखो,
        गुरगल ने  घर बना दिया।
अंडे दो दे कर उसमें फिर
       अपना आसन जमा लिया।
 बुलबुल की मीठी बोली से ,
       मुझको लगता बहुत भला।
गौरैया की चीं चीं कहती,
          सांझ हुई अब सूर्य ढला!
दीवारों की कोटर में कुछ,
           कतरन और ऊनी धागे।
फुदक फुदक कर जाये,
   गिलहरी इस के हीअंदर भागे।
यह सब भी मानव के-
      जैसा घर संसार बसाते हैं।
 कभी नहीं आपस में लड़ते ,
            सदा प्यार बरसाते हैं।
यह पंछी और जीव जंतु-
   कुछ पाठ पढ़ाते हैं सबको!
हम अपने में खोए रहते,
          देख नहीं पाते इनको।
पापा मम्मी तुम दोनों में,
         जब झगड़ा हो जाता है!
सहम सहम जाता हूं मैं-
     और मन मेरा घबराता है!
 बुरे बुरे सपने आते हैं ,
        मुझको बहुत डराते हैं!!
अब आपस में न लड़ना,
     तुम पंछी यही सिखाते हैं !
सुबह सवेरे घर के बाहर ,
            पंछी शोर मचाते हैं !
गा गाकर मीठी बोली में ,
         हर दिन मुझे जगाते हैं।।

 ✍️ अशोक विद्रोही
 412 प्रकाश नगर
 मुरादाबाद
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आओ  छुक -छुक रेल चलाएं
मीलों   तक   इसको   दौड़ाएं
छुन्नू    चालक    आप    बनेंगे
मुन्नू   आप   गार्ड   बन   जाएं
झंडी और  व्हिसिल  देकर  के
सबको     गाड़ी    में    बैठाएं
आओ छुक -छुक--------------

स्टेशन        स्टेशन          रोकें
लाल   हरे   सिग्नल   को   देखें
चलने  का  सिग्नल  मिलने  पर
करें      इशारा      अंदर     बैठें
फिर    सरपट   गाड़ी    दौड़ाने
चालक   को   झंडी   दिखलाएं।
आओ छुक - छुक--------------

दादी     अम्मा     बूढ़े      बाबा
दौड़  नहीं  सकते   जो   ज्यादा
उनको   डिब्बे  में  बिठला  कर 
पूर्ण    करें       इंसानी      वादा
गोलू,      मोलू,     चिंटू,    भोलू
सबको  बिस्कुट  केक   खिलाएं
आओ छुक-छुक---------------

दिल्ली,  पटना,   अमृतसर   हो
जहाँ  कहीं  भी जिनका  घर हो
उत्तर,   दक्षिण,   पूरव,   पश्चिम
कोई     छोटा-बड़ा    शहर    हो
भटक  रहे  श्रमिक  अंकल   को
अब उनके   घर  तक    पहुंचाएँ
आओ छुक -छुक---------------

देख    सभी   का    मन   हर्षाया
उतरे     जब     स्टेशन      आया
टी टी   ने   जब    पूछा    आकर
सबने  अपना   टिकिट   दिखाया
टाटा     करते       सारे       बच्चे
अपने    अपने   घर   को    जाएँ।
आओ छुक -छुक----------------

हम    बच्चे   कमज़ोर   नहीं    हैं
बातूनी     मुंहजोर      नहीं      हैं
एक   साथ   रहते   हैं   फिर   भी
होते   बिल्कुल     बोर    नहीं   हैं
साथ - साथ  खा-पीकर  हम सब
मतभेदों       को     दूर     भगाएँ।
आओ छुक-छुक-----------------

 ✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
 मुरादाबाद/उ,प्र,
 9719275453
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तोता मुझे बना दो राम,
लंबे पंख लगा दो राम।
नील गगन में मैं उड़ जाऊँ,
तारे सभी बना दो आम।।

तोता मुझे बना दो राम,
सुंदर पँख लगा दो राम।

कभी खत्म ना हो बहार वो,
पतझड़ का क्या वहाँ पे काम।
तोड़-तोड़ कर उनको खाऊँ,
मुफ्त में बन जाये मेरा काम।।

तोता मुझे बना दो राम,
सुंदर पँख लगा दो राम।

इंद्रधनुष के रँग चुरा कर,
कर दूँगा होली के नाम।
सारे रँग मुफ्त में दूँगा,
लूँगा नहीं किसी से दाम।।

तोता मुझे बना दो राम,
सुंदर पँख लगा दो राम।

हरा लाल बंट गया मज़हब में,
सतरँगी हो मेरा चाम।
प्रेम भाव सन्देश सुनाऊँ,
मुझे सौंपना बस ये काम।।

तोता मुझे बना दो राम,
सुंदर पँख लगा दो राम।।

 ✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा (मुरादाबाद)
९०४५५४८००८
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चलो इशू ले आओ दाना
खिलाने चलें चिड़ियों को खाना
गिल्लू और मिट्ठू
बड़ी देर के आए
ढूँढो जरा दिक्खे कहीं ना
खिलाने चलें चिड़ियों को खाना
चलो ............................

देखो कच्चे अनार
इन दोनों नें कुतरे
छुपे हैं कि कोई देखे ना
खिलाने चलें चिड़ियों को खाना
चलो ...........................

मोर भी आया है
उसको भी देना
देखो कोई भूखा रहे ना
खिलाने चलें चिड़ियों को खाना
चलो ..........................

पानी के बर्तन में
पानी भी रखना
यहाँ वहाँ कहीं भटके ना
खिलाने चलें चिड़ियों को खाना
चलो ........................

देखो तो मोर
नाचने को आतुर
पानी कहीं बरसे ना
खिलाने चलें चिड़ियों को खाना
चलो ........................

✍️  कंचन लता पाण्डेय “ कंचन “
९४१२८०६८१६
आगरा
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आम रसीला पीला-पीला,
खाओ इसको शालू-शीला ।
गरमी में यह मन को भाये,
रूप इसका रंग रंगीला ।

इसको  कहते फलों का राजा
लंगड़ा,टपका,चौसा भी ला।
एक ही बार में खाऊँ सारे
सबको भावे आम रसीला ।।

✍️ मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद
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अम्मा जी इस बार जून में ,
मुझे गांव को जाना है।
पके आम की झुकी डाल से ,
आम तोड़ कर खाना है।
बूढ़े दादा जी के संग में ,
मैं खेतों पे जाऊँगा।
रोज सवेरे जल्दी उठकर ,
अपना स्वास्थ्य बनाऊंगा ।
बाबा के किस्से सुनसुन कर
अपना ज्ञान बढ़ाना है।

पके आम,,,,,
कुछ दिन के ही लॉक डाउन में ,
जीवन का धन पाया है ।
दादा दादी के संग रहकर ,
अच्छा समय बिताया है।
दादा जी जब गांव को जायें
मुझको भी संग जाना है।
पके,,,,,,,,,
आज जरूरत उनको मेरी
इसीलिये यह कहना है।
बूढ़े दादा लगते प्यारे ,
उनके संग ही रहना है।
अंधे की लकड़ी बनकर के
उनका साथ निभाना है ।
पके,,,,,

✍️ डॉ प्रीति सक्सेना
 मुरादाबाद
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दूल्हा बनने के चक्कर में
करा घोटाला चुनमुन ने
पापाजी की अलमारी का
तोड़ा ताला चुनमुन ने

पापाजी का सबसे बढ़िया
सूट निकाला चुनमुन ने
टाई लगाकर जूता पहना
ढीला ढाला चुनमुन ने

बहुत देर तक इधर उधर
देखा भाला चुनमुन ने
दुल्हन नहीं मिली,गुस्से में
तोड़ दी माला चुनमुन ने

 ✍️ डॉ पुनीत कुमार
T-2/505, आकाश रेसीडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
कांठ रोड,मुरादाबाद -244001
M - 9837189600
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मेरी प्यारी प्यारी किताबें,                                                     
मोबाइल से न्यारी किताबें।

लॉक डाउन में दिल बहलाती,
अच्छी  बातें यह सिखलाती।

घर बैठे यह ज्ञान बढ़ातीं,
न ही कोई खर्च कराती।

इन्हें नही करना रिचार्ज,
यह तो खुद रहती है चार्ज।

चाहे कितनी बार पढ़ो,
पलटो पन्ना आगे बढ़ो।

कोई दौर हो कोई ज़माना,
पुस्तक को तुम भूल न जाना।
                                                       
हो कितनी ही भारी किताबें,
कभी नही हैं हारी  किताबें।

इनका नही कोई भी मोल,
पुस्तक होती है अनमोल।

✍️  कमाल ज़ैदी "वफ़ा"                     
सिरसी (सम्भल)
9456031926
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गर्मी के मौसम की आहट आती है
धरती माता फूली नहीं समाती है

आमों की खुशबू आती हैं बागों से
गीत कोकिला कितना मधुर सुनाती है

हरे भरे हो पेड़ झूमने लगते हैं
पवन सुगंधित सारा जग महकाती है

होते मीठे खरबूजे तरबूज बड़े
इनको खाकर गर्मी प्यास बुझाती है

स्कूल किताबों से मिल जाता छुटकारा
गर्मी की छुट्टी बच्चों को भाती है

 ✍️  डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद244001
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मीठा और रसीला आम
मेरे मन को भाया आम
पीला - पीला  पका हुआ आम
हरा - हरा है खट्टा आम
डाल से लटका कच्चा आम
सबके मन को भाए आम
जो आए वो लाए आम
जो खाए , वो खाए आम
फलों का राजा कहलाए आम
खुद पर बहुत इतराए आम
काट के खाएं लंगड़ा आम
चूस के खाएं चोसा आम
बड़ा ही मीठा दशहरी आम
बहुत बड़ा है सफेदा आम
सबसे अच्छा अलफांसों आम
बच्चों का है प्यारा आम
जग में सबसे न्यारा आम ।।

✍️ सीमा वर्मा
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दादाजी का पोता अविरल।
है स्वभाव से अतिशय चंचल।।

इक पल रहता है जमीन पर,
अगले पल ही आसमान पर,
स्वप्न देखता रहता प्रतिपल,
है स्वभाव से अतिशय चंचल।

मन से तो है बिल्कुल बच्चा
खा जाता है सबसे गच्चा
पर न किसी से करता वह छल
है स्वभाव से अतिशय चंचल

कक्षा में अव्वल आता है
उसको गणित नहीं भाता है
प्रश्न पूछता रहता प्रतिपल
है स्वभाव से अतिशय चंचल

मँहगी मँहगी कार चलाना
वायुयान का चालक बनना
देश देश तक घूमे पल पल,
है स्वभाव से अतिशय चंचल।

सभी विषय के प्रश्न पूछता
नये नये फिर तर्क ढूँढता
जब तक प्रश्न न हो जाये हल,
है स्वभाव से अतिशय चंचल।

बहुआयामी उसे ज्ञान है
मेधावी है बुद्धिमान है
हो भविष्य अविरल का उज्ज्वल,
भले अभी है अतिशय चंचल।
दादाजी का पोता अविरल।

 ✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG 69, रामगंगा विहार
मुरादाबाद 244001
मोबाइल नं. 9456641400
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::::::::::;प्रस्तुति :::::::::::::

डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822