रविवार, 7 जून 2020

वाट्सएप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में प्रत्येक रविवार को वाट्स एप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है ।रविवार 31 मई 2020 को आयोजित 204 वें आयोजन में 26 साहित्यकारों ने अपनी हस्तलिपि में रचनाएं प्रस्तुत की । आयोजन में शामिल साहित्यकार डॉ अशोक रस्तोगी, मुजाहिद चौधरी, विपिन कुमार शर्मा, डॉ पुनीत कुमार, रवि प्रकाश ,अशोक विश्नोई, प्रीति चौधरी, वहाज उल हक काशिफ, संतोष कुमार शुक्ला, मीनाक्षी ठाकुर ,अनुराग रोहिला ,श्री कृष्ण शुक्ल, मनोज कुमार मनु, इंदु रानी, कमाल जैदी वफ़ा, रामकिशोर वर्मा, डॉ प्रीति हुंकार, कंचन लता पांडेय, राजीव प्रखर, अशोक विद्रोही, प्रवीण राही, त्यागी अशोक कृष्णम , डॉ श्वेता पूठिया,जितेंद्र कमल आनन्द, नृपेंद्र शर्मा सागर और डॉ मनोज रस्तोगी की हस्तलिपि में रचनाएं



























:::::::प्रस्तुति:::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश ,भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

शनिवार, 6 जून 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार राहुल शर्मा की दस ग़ज़लों पर "मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" द्वारा आनलाइन साहित्यिक चर्चा -----

         वाट्स एप पर संचालित समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा 4 व 5 जून 2020 को 'एक दिन एक साहित्यकार' की श्रृंखला के अन्तर्गत ग़ज़लकार राहुल शर्मा की दस गजलों पर ऑन लाइन साहित्यिक चर्चा की गई।  सबसे पहले राहुल शर्मा द्वारा अपनी निम्न दस ग़ज़लें पटल पर प्रस्तुत की गयीं-

*(1)*

यकीं लाज़िम है रिश्तों में वफादारी ज़रूरी है
मगर ए दिल मोहब्बत में भी खुद्दारी ज़रूरी है

मियाँ सादाबयानी झूठ सी है दौरे-हाज़िर में
भले सच बोलिए लेकिन अदाक़ारी ज़रूरी है

हमेशा आलिमों से ही नहीं मिलते सबक सारे
कभी कुछ ज़ाहिलों से  भी मग़ज़मारी ज़रूरी है

परायों का भी दुनिया साथ देती है भलाई में
अगर अपना ग़लत भी हो तरफ़दारी ज़रूरी है

सियासत के घने जंगल में ज़िंदा रहना है तो फिर
तआल्लुक लोमड़ी  से गिद्ध से यारी ज़रूरी है

जहां केवल समर्पण ही समर्पण हो वहाँ "राहुल"
न चालाकी मुनासिब है न हुशियारी ज़रूरी है

*(2)*

 हम दोनों में से क्या मद हैं
 सचमुच हैं या फिर शायद हैं

हमसे मत इतराया कीजे
रजधानी जी हम सरहद हैं

पनपो तो इनसे दूर रहो
पौधों संभलो ये बरगद हैं

दोनों की तुलना बेमानी
तुम ऊंचाई हो वो क़द हैं

ये लोकतंत्र का हासिल है
छोटे हैं लोग बडे़ पद हैं

किस दुनिया के दस्तूर हैं ये
हम लोगों पर क्यूँ आयद हैं

*(3)*

भेजा है क्या सवाल छुपाकर जबाब में
पैवस्त है महीन सा कांटा गुलाब में

इस ज़िंदगी ने मूल भी वापस नहीं किया
हमने तो सूद जोड़ रखा था हिसाब में

पाया जो ठोकरों से वही ठीक था सबक
आया न काम कुछ जो लिखा था किताब में

नाकामियां, उदासियां, तन्हाई, ज़िल्लतें
क्या क्या मिलाके पी गए हम भी शराब में

जीवन की भागदौड़ ने छोड़ा कहाँ है वक़्त
आराम से मिलेंगे कभी आओ ख्वाब में

*(4)*

कुछ अंधेरा हैं कुछ उजास हैं हम
दोस्त कड़वी सी एक मिठास हैं हम

दर्द को दिल में दी शरण हमने
आंसुओं का नया विकास हैं हम

बस हमें टूटने नहीं देना
कितनी आंखों की एक आस हैं हम

सौंपना मत हमें बदन अपना
चिथड़ा चिथड़ा हुए लिबास हैं हम

एक पर्दा तो कायनात उठा
हैं हकीक़त कि फिर क़यास हैं हम

जाने कब किसके रूबरू निकलें
दिल के भीतर दबी भड़ास हैं हम

प्यास जिसने बुझाई है सबकी
अनबुझी उस नदी की प्यास हैं हम

*(5)*

वो लोग और थे कि गिरे और संभल गए
हम ख्वाहिशों की भीड़ के नीचे कुचल गए

खाली थी मेरी जेब परेशान तो मैं था
ये क्या हुआ कि आपके तेवर बदल गए

सूरज को एहतियात बरतने की राय दो
कुछ लोग सुब्ह ओस की बूंदों से जल गए

वो झूठ थे कि जिनको रटाना पड़ा तमाम
सच हैं कि अपनेआप ज़ुबां से निकल गए

जब ये लगा कि वक़्त मेरी मुट्ठियों में है
लम्हे तमाम रेत के जैसे फिसल गए

दुनिया तेरे निज़ाम की गफलत अजीब है
खोटे तमाम सिक्के सरेआम चल गए

हासिल नहीं है शायरी पैदायशी हमें
आँसू हमारे शेरों की सूरत में ढल गए

*(6)*

अपने बारे में कुछ इस तरह बताती है मुझे
एक सबक ज़िंदगी हर रोज सिखाती है मुझे

ख्वाब होते तो निगाहों में संजो लेता मै
तुम हक़ीक़त हो यही बात डराती है मुझे

एक अनजान डगर खींच रही है मुझको
कोई खामोश सदा पास बुलाती है मुझे

मै किसी हुक्म की तामील समझता हूँ उसे
वो किसी फ़र्ज़ के मानिंद निभाती है मुझे

एक दो वार तेरे और भी सह सकता हूँ
जान बाकी है अभी साँस भी आती है मुझे

*(7)*

ख़ुद को ही ढूंढने में कहीं मुब्तला हैं  हम
यारो हमें तलाश करो गुमशुदा  हैं हम

मौका मिला तो हाथ से जाने नहीं दिया
कितना गुरूर था कि बड़े पारसा  हैं हम

सर चढ़ के बोलती हैं हमारी अलामतें
दूरी बनाए रखिए जुनूं हैं नशा हैं हम

सारी सजाएँ काट लीं अब फैसला तो दे
सचमुच कसूरवार हैं या बेख़ता हैं हम

मानो तो ठीक और न मानो है तब भी ठीक
हुक्मे अमल नहीं हैं फकत मशविरा हैं हम

कुछ दूर तक तो साथ हमारे भी चल के देख
मंज़िल भी हैं पड़ाव भी हैं रास्ता हैं हम

*(8)*

अपने बारे में समझा गईं रोटियाँ
आख़िरी सच हैं बतला गईं रोटियाँ

भूख ने मार डाले बहुत फिक्रो फन
जाने कितने हुनर खा गयीं रोटियाँ

ज़र्द चेहरे पे कौंधी चमक कह उठी
आ गईं रोटियाँ आ गईं रोटियाँ

किससे कब कैसी क़ीमत वसूली कहो
मैंने पूछा तो शर्मा गयीं रोटियाँ

पेट की आग ठंडी न बेशक हुई
पर सियासत तो गर्मा गयीं रोटियाँ

आख़िरश भूख ईमान पर छा गयी
हर हिदायत को ठुकरा गयीं रोटियाँ

जब भरे पेट वालों के हिस्से पड़ीं
अपनी हालत पे झुंझला गईं रोटियाँ

*(9)*

दोनों की हो रही है गुजर जिन्दगी के साथ
हम तीरगी के साथ हैं वो रोशनी के साथ

करती है एक मौत कई ज़िंदगी खराब
मरते हैं लोग कितने ही एक आदमी के साथ

आंखों में अश्क भर के मुझे रोकने की ज़िद
ये क्या मज़ाक है मेरी आवारगी के साथ

मंज़िल कहाँ है वैसे भी मालूम है नहीं
उसपे भी चल दिए हैं किसी अजनबी के साथ

तेरे लिए जो शौक है मेरे लिए गुनाह
तू मालो ज़र के साथ है मै मुफलिसी के साथ

एक दूसरे से आंख बचा कर निकल गए
वो भी किसी के साथ था मै भी किसी के साथ

*(10)*

कोशिशें औरों की बेशक दिल तो बहलाती रहीं
रौनकें जिससे थीं उसके साथ ही जाती रहीं

साथ मिलकर काम करने का मज़ा कुछ यूँ रहा
तालियाँ साझा रहीं और गालियाँ ज़ाती  रहीं

चैन सारा पी गयी मेरा ज़रूरत की नदी
और हिस्से का सुकूं दो रोटियाँ खाती रहीं

ज़िल्लतें, रुसवाईयां, बदनामियां और तोहमतें
जिनसे बचते थे वही सब सामने आती रहीं

झोंपड़ी हर आपदा के सामने जूझी, लडी़
कोठियां तो बस ज़बानी फिक्र फरमाती रहीं

ज़ोर कोई हल नहीं है जल्द बाज़ी है फिज़ूल
गिरहें नादां उंगलियों को सब्र सिखलाती रहीं

रोशनी क़ायम रहेगी बस दियों की शक्ल में
आंधियां सूरज से अपनी शर्त मनवाती रहीं

बावरा मन बुद्धि से कहता रहा अपनी व्यथा
कल्पनाएं भावना को शब्द पहनाती  रहीं

       इन गजलों पर चर्चा करते हुए प्रख्यात नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि "राहुल शर्मा अपनी पहली ग़ज़ल से ही पाठक से जो रिश्ता बनाते हैं वह उन्हें एक प्रगतिशील शायर के रूप में सामने लाता है, उनकी ग़ज़लें पढकर लगता है कि उनके भीतर शमशेर बहादुर सिंह और दुष्यंत कुमार का ग़ज़लकार तो मौजूद है ही नागार्जुन जी का तेवर भी है "।           
     विख्यात व्यंग्य कवि डॉ. मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि "राहुल शर्मा की कहन में सफलता-असफलता के दर्शन के साथ ईमानदारी की तराजू पर किया गया आत्मनिरीक्षण भी मौजूद है"।
     वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय अनुपम ने कहा कि "राहुल जी की गजलें इंसानी तहज़ीब का आईना सामने लेकर आयी हैं"।
    वरिष्ठ शायर डॉ. कृष्ण कुमार नाज़ ने कहा कि "राहुल शर्मा के शेर ज़िन्दगी की हकीकत को स्वयं में समेटे हुए होते हैं। उन्होंने जो देखा और महसूस किया वहीं अपने अशआर में ढाला है"।
     नवगीत कवि योगेन्द्र वर्मा व्योम ने उनकी ग़ज़लों के बारे में कहा कि "राहुल जी की ग़ज़लें परंपरागत ग़ज़लों और आधुनिक ग़ज़लों की संधिबिंदु की ग़ज़लें हैं. इनमें एक अलग तरह की मिठास भी है और अपने समय का कसैलापन भी"।
      युवा कवि राजीव 'प्रखर' ने कहा कि "भाई राहुल शर्मा जी की ग़ज़लें आम ज़िन्दगी को गहराई से छूती हुई श्रोताओं व पाठकों से सीधे बात करती हैं"।
     कवि शिशुपाल मधुकर ने कहा कि "राहुल जी की गजलें परंपरा को निभाते हुए प्रगतिवाद की ओर कदम बढ़ाती दिखती हैं"।
      युवा शायर अंकित गुप्ता अंक ने कहा कि "राहुल जी की गजलें  आम जिंदगी की पशोपेश को बड़े ही प्रभावशाली ढंग से पाठकों के सामने रखती हैं"।
      डॉ. अजीमउल हसन ने कहा कि "राहुल जी आम जनमानस के दर्द और पीड़ा को अनुभव करते हैं और उसे गजलों के रूप में प्रस्तुत कर देते हैं"।
      युवा शायर मनोज मनु ने कहा कि "राहुल साहब के भीतर एक खुद्दार शायर मौजूद है जो अपनी खुद्दारी से सौदा नहीं करता और जिंदगी की बारीकियों को अपने अनोखे अंदाज में बयां करता है"।
     युवा शायर फरहत अली खान ने कहा कि "राहुल जी की ग़ज़लों में कल्पनाओं का दखल कम हकीकत का कब्जा ज्यादा है"।
     युवा गीतकार मयंक शर्मा ने कहा कि "आमतौर पर ग़ज़ल का कोई एक या दो शेर ही दिल को छूता है लेकिन यहां प्रस्तुत राहुल जी का एक-एक शेर शानदार है"।
     ग्रुप एडमिन और संचालक ज़िया ज़मीर ने कहा कि "राहुल शर्मा ने दोनों ज़ुबानों को एक साथ एक जैसा इस्तेमाल करके अपनी शायरी में एक गाढ़ा रंग पैदा कर लिया है"।

::::::: प्रस्तुति ::::::::

 ✍️ ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
"मुरादाबाद लिटरेरी क्लब"
मो० 7017612289

शुक्रवार, 5 जून 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार अंदाज अमरोहवी की ग़ज़ल


वाट्सएप समूह साहित्यिक मुरादाबाद में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। मंगलवार 2 जून 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकार प्रीति चौधरी, कमाल जैदी वफ़ा,डॉ प्रीति हुंकार, नृपेंद्र शर्मा सागर, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, अशोक विद्रोही, रवि प्रकाश, हेमा तिवारी भट्ट, स्वदेश सिंह, रामकिशोर वर्मा, राशि सिंह, डॉ पुनीत कुमार, जितेंद्र कमल आनंद, डॉ श्वेता पूठिया, श्री कृष्ण शुक्ल, शिव अवतार रस्तोगी सरस , मनोरमा शर्मा , नवल किशोर शर्मा नवल, डॉ अर्चना गुप्ता, राजीव प्रखर और कंचन खन्ना की कविताएं

   
बचपन को अपने आग़ोश में लेकर
क्यूँ न आज ख़ुद को बारिश में भिगो लूँ
दौड़ पड़ूँ बादलों संग किसी दिशा में
क्यूँ न बँधी साँसों को आज़ाद कर लूँ

हवा के झोंके छेड़े मुझे फिर से
क्यूँ न बात इनसे दोचार कर लूँ
काम के दलदल से निकलकर
क्यूँ न काग़ज़ की नाव बना लूँ

सोंधि ख़ुश्बू मिट्टी की बुलाए मुझे
क्यूँ न कच्चे उस आंगन में खेलूँ
काली घटा को देख कहा दिल ने
क्यूँ न भूल जग  मोरनी बन नाच लूँ

कड़के बिजली जब गगन में
क्यूँ न ख़ुद को माँ के आँचल में छुपा लूँ
बारिश को देख कहा फिर दिल ने
क्यूँ न आज अपने बचपन को बुला लूँ
                             
✍️  प्रीति चौधरी
 गजरौला,अमरोहा
----------------------------
 
                                                   
 चिंटू मिंटू थे दो भाई,         
कभी नही करते थे लड़ाई।।                                                                               
घण्टी की आवाज जो आई,
सबने बस तक दौड़ लगाई।         

बस में चढ़े जब बारी आई,
सीट पर बैठा मोटू भाई।
                                                                    करने लगा वो उनसे लड़ाई,
बिना बात के चपत लगाई।

चिंटू बोला मिंटू भाई,                                          माँ ने थी कुछ बात बताई

अपनी रक्षा आप करेंगे,
नही लड़ेंगे, नही डरेंगे।

मोटू की फिर शामत आई,
मिंटू ने जो मार लगाई।
                                                                    सुना मेम ने तो चिल्लाई,
यही करी क्या आज पढ़ाई।

बंद करो यह मार कुटाई,
आपस मे सब भाई भाई।

✍️  कमाल ज़ैदी "वफ़ा"
सिरसी (सम्भल)
मोबाइल फोन नम्बर 9456031926
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नमन तुम्हे व्यक्तित्व महान
जगत करे उनका गुणगान ।
विपदा में  भी मोदी चाचा
तुमने धाक जमाई है ।
भूल गए सब दुख कोअपने
बात सभी मनवाई है।
दिग्गज सारे करें नमस्ते
नतमस्तक है सभी जहान।

नमन तुम्हें,,,,,,,
घोर विपत्ति में भूख प्यास में
कोई नही घबराया है ।
सबमें नव उत्साह जगाकर
लॉक डाउन करवाया है।
तुम ही हो आदर्श हमारे
तुम हो हम बच्चों की शान ।
नमन तुम्हें,,,,,,

✍️  डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद 244001
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गुमसुम बैठा था खरगोश,
भरा हुआ था मन में रोष।

वो कछुए से हार गया,
अति उत्साह मार गया।

आलस ने सब काम बिगाड़ा,
जीत ने उससे किया किनारा।

जो हरदम मेहनत करते हैं,
जीवन में आगे बढ़ते हैं।

किसी को भी ना छोटा मानो,
मूल सफलता का पहचानों।

लगन और श्रम में विश्वास,
विजय सदा हो उनके साथ।।

✍️ नृपेन्द्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा, मुरादाबाद
9045548008
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अम्मा  कब   स्कूल    खुलेंगे
इतना तो  हमको   बतला दो
कान   पड़कर  कोरोना   को
अपनी ताकतभी दिखला दो।
     
मोबाइल  मत   देखो   बच्चों
असर पड़ेगा  इन आंखों  पर
लेकिन ऑनलाइन शिक्षा का
असर न होगा क्याआँखों पर?
चश्मा  नहीं  लगाना   हमको
अद्यापक को भी  बतला  दो।
अम्मा कब-----------------

अंतर्मन खुश  होता  सबका
साथ -साथ  ही  बतियाने में
कितना जी लगताहै सबका
मिल  करके  शिक्षा पाने  में
करके  पूजा  तुम  ईश्वर को
हाल  हमारा भी  बतला  दो।
अम्मा कब----------------

इकिया-दुकियाआंख मिचौनी
खेलें   किलकिल   कांटी  हम
कोड़ा   छुपा   लगाएं  चक्कर
रोकें    उठती     खांसी    हम
खेल-खेल  में पढ़ना - लिखना
अम्मा हमको भी  सिखला दो।
अम्मा कब------------------

घर  में   पड़े-पड़े  हम  यूं  ही
कब तक अपना वजन बढ़ाएं
और   पार्क   में  दौड़  लगाने
कब तक  अपना मन तरसाऐं
बाधाओं   से   मुक्ति   दिलाने
अम्मा कुछ तो चक्र  चला दो।
अम्मा कब------------------

अरे कोरोना  अंकल  तुम भी
इतना नहीं  समझते  पाते हो
हमें  समझकर  बच्चा  हमसे
आकर  स्वयं  उलझ जाते हो
हिम्मत   है तो  माँ   के  आगे
हमको  छूकर भी दिखला दो।
अम्मा कब------------------
     
           
              ✍️  वीरेंद्र सिंह ब्रजवासी
                   मुरादाबाद/उ,प्र,
                   9719275453
--------------------------------

हम झोंके तूफान के
        बच्चे हिंदुस्तान के
कदम कदम बढ़ाएंगे,
         आगे बढ़ते जायेंगे
हिन्दु मुस्लिमों में, दिल
            के फ़ासले मिटायेंगे
उठ रहा तूफान है
            देश  ये  महान है
हर किसी के दिल में
     सिर्फ प्यारा हिंदुस्तान है
हम कसम उठायेंगे
       और वचन    निभाएंगे
इसकी खातिर हो जरूरी
          जान तक लुटायेंगे
तुम को है जगा रहा
          नई डगर बना रहा
विश्व का गुरु बनेगा
     सबको ये सिखा रहा
हार के न बैठना
     शक्ति    पर  न  ऐंठना
सिंह की दहाड़ से
     हम अडिग पहाड़ से
वादा हर निभायेंगे
        शत्रु को झुकाएंगे
घोर संकटों के बीच
        हम तो मुस्कुराएंगे
श्रम से कंटको में भी
         पुष्प  हम खिलाएंगे
शोक से ना हार के
         मायूस बैठ जाएंगे
बढ़ के  चूमती कदम
          मंजिलों को पायेंगे
कदम कदम बढ़ाएंगे
         आगे बढ़ते जाएंगे

     ✍️  अशोक विद्रोही
       8218825541
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
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शुरू  करो  पापा  संडे  को  रखना बंद दुकान
                   ( *1* )
हम बच्चों सँग रविवार को मस्ती तनिक मनाओ
हमें  घुमाने  कहीं सिनेमा हॉल मॉल ले जाओ
कब तक सोचोगे बस अपना नफा और नुक्सान
शुरु  करो  पापा  संडे  को  रखना  बंद दुकान
                        ( *2* )
दफ्तर  सारे  रविवार  को  सदा  बंद रहते हैं
सारे  डॉक्टर  छुट्टी के दिन को संडे कहते हैं
सिर्फ तराजू पर तुम तोला करते हो सामान
शुरू  करो  पापा संडे को रखना बंद दुकान

✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल फोन 99 97 61 5451
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"स्कूल आज न जाऊँ मम्मी,सूरज भी नहीं आया है।
काला बादल गश्त लगाता,डर से दिल थर्राया है।
छतरी की तीली निकली थी,ठीक नहीं करवायी हो।
रेनकोट भी फटा हुआ है,नया नहीं तुम लायी हो।
भीग गया जो मैं पानी में,आफत तुम पर आयेगी।
बैठे बिठाए फिर बीमारी,बिल पर बिल बढ़ाएगी।
देख कभी वह काले बादल,खतरा मोल न लेती है।
सूरज की माँ कितनी अच्छी,रेनी डे कर देती है।
✍️हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद 244001
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*प्यारे  तारे*
छोटे -छोटे ,प्यारे -प्यारे
नील गगन  में चमके तारे

शाम हुई  तो सब आ जाते
सूरज निकला सब छिप जाते

हैं तारों की दुनिया न्यारी
आसमान में खिली फुलवारी

जगमग जगमग चमके सारे
टिमटिमा कर करते इशारे

छोटे- छोटे  ,प्यारे- प्यारे
नील गगन  में चमके तारे

 ✍️ स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद 244001
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पुत्र-वधू बोली बेटी से, पोयम एक सुनाओ ।
अच्छी सी बच्ची हो तुम तो, सबको खूब रिझाओ ।

बाबा-दादी खुश होकर के, चाकलेट भी देंगे ।
तारीफों के पुल भी बेटी, तेरी खूब बंँधेंगे ।।

पोती पहले शरमायी फिर, बा बा बा बा गायी ।
सुन हमने पोती की पोयम,  बहुत पीठ सहलायी ।।

पोती बोली बाबा मुझको, वन-टू भी आती है ।
भूल जाऊंँ तो मम्मी मुझे, आंँखें दिखलाती है ।।

इतना कहकर बिटिया पोती, पेंसिल रंँग ले आयी ।
दीवारों पर खींची लाइन, की पेंसिल रगड़ायी ।।

 उसने मुड़ फिर ऐसे देखा, कैसा मैं लिख पायी !
अध्यापक होगी लगता है, दादी यों बतलायी ।।

मंद-मंद मुस्काता मैं भी, सोच रहा था भाई ।
एक इकाई कौन कहे अब, अंग्रेजी है ताई ।।

✍️ राम किशोर वर्मा
   जयपुर ( राजस्थान)
मोबाइल नं०-8433108801
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चंदा  मामा आएंगे
आम रसीले लाएंगे

चूस चूसकर खाएंगे
खूब मजे  उठाएंगे

​नानी के घर जाएंगे
​तारों के संग खेलेंगे

​जब आएगी कोई पतंग
​उसको तोड़ उड़ाएंगे .

​चंदा  मामा आएंगे
​आम रसीले लाएंगे

​✍️राशि सिंह
 मुरादाबाद 244001
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दादी दादी प्यारी दादी
रात बीत चुकी है आधी
छोड़ो भी अब ये मनमानी
 कहो जल्दी कोई कहानी

नीटू से अब नहीं लड़ूंगा
मन लगा के खूब पढूंगा
करूंगा ना कोई शैतानी
कहो जल्दी कोई कहानी

कल से मानूंगा हर बात
रोज़ सुबह माजूंगा दांत
नहीं करूंगा आनाकानी
कहो जल्दी कोई कहानी

चलो हटो थूको ये गुस्सा
पोता नहीं मिलेगा मुझ सा
नई कहो या कहो पुरानी
कहो जल्दी कोई कहानी

 ✍️ डॉ पुनीत कुमार
T -2 /505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद - 244001
M 9837189600
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लिखी अभी तो नयी नहीं है
बच्ची आयी नयी नहीं    है   ।।
🍬🍬
राम-नाम आओ अब जपने ।
खेलो खेल निराले  अपने   ।
धमा--चौकड़ी रोज मनाओ ।
दिन में भी देखो सब सपने  ।
बात अभी पर , जमी नहीं है।
लिक्खूं कविता नयी- नयी है ।।
🍫🍫
जब गुड्डे सँग गुड़िया आये   ।
जब विटिया सँग बुढ़िया लाये।
खेले खेल-खिलौने जमकर   ,
सँग चूरन जब मुनिया लाये   ।
बात कहेंगे, जमी सही  है     ।
कविता लिक्खी नयी वही है ।।
🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈

✍️ जितेन्द्र कमल आनंद
सांई विहार कालोनी
 रामपुर उ प्र भारत
मोबाइल नम्बर:7017711018
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छुट्टी आयी छुट्टी आयी
मस्ती वाली छुट्टी आयी
धूम मचाते घुमे हरदम
मनभर खुशियाँ लायी।
नहीं किताबें नही कापियां
स्कुल न टीचर का रूल
खाना सोना और खेलना
अबयही जीवन का मूल।छुट्टी..।।
पापा भईया की न डाँट
सुने कहानी दादी साथ
जमके खेले सारा दिन
करते हरदम मन की बात।
छुट्टी आयी छुट्टी आयी
मस्ती वाली छुट्टी आयी।।

✍️श्वेता पूठिया
मुरादाबाद 244001
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छोटू पापा से ये बोला।
राज ह्रदय का उसने खोला।
सोच रहा हूँ कवि बन जाऊँ।
मंचो पर जाकर छा जाऊँ।।
पापा बोले गलत ख्याल है।
कविता लिखना भी मुहाल है।
सपनों में जीना पड़ता है।
छंदों को गढ़ना पड़ता है।
तब जाकर कविता बनती है।
फिर भी हूटिंग हो जाती है।
पापा ये है बात पुरानी
नव कवियों की जात सयानी
कुछ चुटकुले याद कर लूँगा
घुमा फिरा प्रस्तुत कर दूँगा
अपने शानदार अभिनय से
सबको लोटपोट कर दूँगा।
टी वी पर भी छा जाऊँगा
रकम बड़ी लेकर आऊँगा।
मंचों की अब माँग यही है।
कविता की पहचान यही है।

श्रीकृष्ण शुक्ल मुरादाबाद।
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 बाल बूझ पहेली
"नीलकंठ कौए कोयल संग
चील, कबूतर या बन्दर.

भालू,शेर, श्रृंगार ,हिरन संग
मिलते सर्प,मोर, अजगर.

मछली,कच्छप,मगरमच्छ संग
दिखते घोड़े,गदहे,ऊंट

वक्त,बत्तख,तोता मैना से
परिपूरित है............ ....
कृपया रिक्त स्थान की पूर्ति करें

✍️ शिव अवतार रस्तोगी सरस
मुरादाबाद 244001
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सखि, आई चली चीं चीं चिड़िया
मटक-मटक कर ,फुदक -फुदक कर
गर्दन को कुछ ,इधर-उधर कर
ऊषा के उजास से पहले ही
गाकर प्रभाती ,करती स्वागत
एक नयी भोर का ,दिन-प्रतिदिन
चीं चीं चीं   चीं चिक्की  चिड़िया
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पीछे -पीछे काग महाशय
ताक रहे कुछ आँख दबाकर
आज सुबह की सैर  करें
कुछ यहाँ बैठे ,कुछ वहाँ बैठे
कोयल की तानों से ऐंठे
कान दबाकर  ,चुप चुप सरकें
मुंशी जी  कुछ  इतराते
कग कग करते काँव-काँव
आँख बचाकर उड़ जाते ।

 ✍️ मनोरमा शर्मा
अमरोहा
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मम्मी मुझे सुला दो ना।
लोरी मुझे सुना दो ना।
नींद सताती है मुझको,
बिस्तर जरा लगा दो ना।

नींद मुझे जब आयेगी।
स्वप्न मुझे दिखलायेगी।
सुंदर   सपना  देखूंगा, 
जब नींद  गहरायेगी।
                                       
चंदा   मामा    आयेंगे।
हलवा  पूड़ी    लायेंगे।
खूब खिलायेंगे मुझको,
संग  मुझे  ले   जायेंगे।

आसमान में उनका घर।
उड़ कर जायेंगे बिन पर।
परियों के संग खेलूंगा,
हवा चलेगी सर-सर-सर।

मम्मी मुझे जगाना ना।
मुझको सुबह रुलाना ना।
देर तलक में सोऊंगा,
मुझको सुबह सताना ना।

 ✍️ नवल किशोर शर्मा 'नवल'
बिलारी, मुरादाबाद
मो0 नं0- 9758280028
-------------------------------



:::::::प्रस्तुति ::::::;;;
 डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की कविता


🎤✍️ अतुल कुमार शर्मा
सम्भल

पर्यावरण दिवस पर सुनिए मुरादाबाद की साहित्यकार पूनम गुप्ता की कविता


गुरुवार, 4 जून 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की कहानी------ झूठी शान

                     
बरामदे में  पलंग पर लेटे हुक्का गुड़गुड़ा रहे इकबाल मियां के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी । वह किसी गहरी चिंता में डूबे हुए थे ।उनके सामने कुर्सी पर बैठी उनकी बीवी सफिया उन्हें समझा रही थीं -देखिये पूरे मुल्क में कोरोना की बीमारी फैली हुई है, लॉक डाउन लगा हुआ है ऐसे में  गुलफाम भाई के चालीसवें की फातिहा बड़ी मस्जिद के इमाम साहब को बुलाकर पढ़वा दीजिये। कोई जलसा वगैरा मत कीजिये इससे खर्चा भी बचेगा और हम कानून का पालन करने वाले भी कहलायेंगे । फातेहा में पांच लोग हाथ उठायेंं या पचास।  अल्लाह ताला सब जानता है उसके पास सवाब की कमी थोड़े है वो गुलफाम भाई को भरपूर सवाब देगा फिर हमारे गुलफाम भाई तो वैसे ही खुदा के नेक बन्दे थे। उन्होंने नमाज, रोजा ,हज, जकात वगैरा अल्लाह के किसी भी फरमान में कोताही नही की है और सबसे बढ़कर वह सबके हमदर्द थे। उन्होंने कभी किसी का दिल नही दुखाया। हर किसी की मदद करते थे ऐसे बन्दों से तो अल्लाह वैसे ही खुश रहता है। सफिया की बात सुनकर इकबाल मियां कहने लगे बात तो तुम्हारी ठीक है लेकिन बेगम दीन से दुनिया भारी है। लोग क्या कहेंगे, रिश्तेदार ताने देंगे कि एक ही भाई था उसकी चार बीघा जमीन तो लेली और उनका चालीसवाँ तक सही से नही किया । कहेंगे लॉक डाउन था तो क्या हुआ बाहर वालों को न सही गांव के लोगों को ही बुलाकर फातेहा का खाना कर देते । मीट बंद था तो चिकन तो मिल ही जाता थोड़ा महंगा होता तो क्या गुलफाम भाई की जमीन भी तो मिलेगी ।  मियां की बात सुनकर बीवी सफिया फिर समझाने लगी देखिये लोगो की बातों पर न जाइये लोगो की क्या वह तो खाना खाने के बाद भी बातें बनाएंगे । कोई कहेगा चिकन में नमक कम था तो कोई कहेगा रोटी ठंडी थी  फिर गुलफाम भाई की बीमारी में ही सारा पैसा खतम हो चुका है। उनकी जमीन भी आप साहूकार के पास गिरवीं रखकर उनके इलाज में लगा चुके है । ऐसे में और कर्जा करके  चालीसवें की फातेहा पर बड़ा खाना करना अक्लमंदी नही है लेकिन इकबाल मियां पर तो सफिया की बातों का कुछ असर ही नहीं हुआ। वह अपने तर्क देने लगे कि गांव वाले क्या सोचेंगे । उनके बाप दादा की शान मिट्टी में मिल जाएगी फिर किसी को क्या पता उन पर कितना उधार है। धीरे धीरे सब अदा कर देंगे लेकिन एक बार गई इज्जत बनाने में सालों लग जाते है ।इकबाल मियां अपनी ज़िद पर अड़े रहे और अगली जुमेरात पर उन्होंने बड़े भाई गुलफाम के चालीसवें की फातेहा बड़ी धूमधाम से की। लॉक डाउन के चलते छिपकर एक क्विंटल चिकन मंगाया ।शहर से नानवाई बुलाया ।जलसे के बाद फातेहा हुई और फिर चालीसवें की दावत शुरू हो गई। चालीसवें पर भी लोग दुखी होने के बजाय हँस हँस कर बतिया रहे थे ।तभी सायरन बजाती पुलिस की गाड़ियों ने गांव में प्रवेश किया और लॉक डाउन के उल्लंघन में इकबाल मियां को साथ ले गई। तमाम गांव में चर्चा हो गई कि प्रधानी चुनाव की रंजिश में सरवत खांं ने इकबाल मियांं को पकड़वा दिया। उधर, सफिया माथे पर हाथ रखे बड़बड़ा  रही थी मियां अगर झूठी शान दिखाने में न पड़कर मेरी बात मान लेते तो मुझे यह दिन न देखना पड़ता।

✍️  कमाल ज़ैदी "वफ़ा"
सिरसी (सम्भल)
9456031926

मुरादाबाद की साहित्यकार स्वदेश सिंह की लघुकथा.... दहशत


सुनों..... गोलू की मम्मी.... मैं  अपना अपनी खांसी का टेस्ट कराने हॉस्पिटल जा रहा हूँ । गोलू की मम्मी ने चौकतें हुए कहा .... क्या  ????  कह रहे हो ..तुम्हें तो यह खांसी का धशका  लगभग 20 साल से है और तुमने अभी तक कोई टेस्ट नहीं कराया और अचानक आज कैसें..... गोलू के पापा ने हिचकते हुए कहा.. कि वह आजकल कोरोना चल रहा है... इसलिए मुझे चिंता हो रही है.. एक बार करोना टेस्ट करा लूं  तो उसके बाद निश्चिंत हो जाऊँगा.... गोलू की मम्मी ने कहा ठीक है... अपने मन का वहम भी खत्म करो जाओं..... तेजा अपना कोरोना टेस्ट कराने के लिए हॉस्पिटल चला गया और हॉस्पिटल से आनें के बाद गुमसुम सा रहने लगा  गोलू की मम्मी के बार-बार पूछने पर भी वह चुपचाप ही रहता था कुछ नहीं कहता था ...अभी टेस्ट कराए हुए एक दिन ही बीता होगा कि अचानक उसको सीने में दर्द होने लगा..... तेजा ने यह बात परिवार के किसी भी सदस्य को नहीं बताई और खुद ही दर्द झेलता रहा.... और घेर में सोने के लिए चला गया।  ...सुबह उठकर जब  तेजा की पत्नी घेर में गई तब उसने देखा कि उसका पति अभी तक सो रहा है ।....वह उसे हिलाकर जगाने लगी... बार-बार हिलाने पर भी जब उसने देखा की वह नहीं जगा तो उसने चिंता होने लगी ....वह घबरा कर तेज तेज हिलाने  लगी  पर यह क्या???  उसका शरीर बेजान  हो  चुका था। ....उसकी पत्नी की चीख निकल गई  जोर-जोर से दहाड़े मारकर रोने लगी .... तेजा  अब इस दुनिया को छोड़ कर जा चुका था ।....3 दिन बाद करोना की  रिपोर्ट आई . जो कि निगेटिव थी.....परंतु उससे पहले ही तेजा अपनी जिंदगी को अलविदा कह चुका था।... और एक हँसता- खेलता परिवार कोरोना की भेंट चढ़  गया।

✍️ स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद
099456222230

मुरादाबाद की साहित्यकार इंदु रानी की कहानी ----आपदा और मजदूर


आज पैदल चलते चलते सफर का तीसरा दिन था ।मजदूर भीमा और उसकी पत्नी अपने बच्चों के साथ थक कर चूर हुए जा रहे थे तभी अचानक कुछ दूरी पर एक पेड़ दिखा जिसके चबूतरे पर कुछ पल रुक कर आराम करने की इच्छा से वे रुक गए।
भीमा ने एक उम्मीद से अपने परिवार को देखा कि बस अब ज्यादा नही सिर्फ कुछ दिन और फिर हम अपने घर होंगे अपने सब लोगों के बीच और उसकी पत्नी ने पसीना पोंछ कर मुस्कुराते हुए मानो हामी भरी।
ठीक तभी बड़ी बेटी पूछ पड़ी "माँ और अभी कितने दिन? कब तक चलेंगे?"
माँ ने सर पर हाथ फेरते हुए बोला अब ज्यादा नही बेटा आने ही वाले हैं..चल कुछ खा ले और पूरी अचार थैले से निकाल उसे दे दिया।
पूरा परिवार वहीं लेट गया बच्चे सो गए तभी बच्चों पर तरस खाती माँ ने बुदबुदाया- "इतने मासूम बच्चे तीन दिन से संग बराबर चल रहे का कोई और चारा नही है का? सब तो बतियाई रहे सरकार बहुत मद्दद कर रही इस आपदा मा...राहत कोष मा सब लोगन से मदद आई रहे...का हमरे ख़ातिन कुछू नाही.."।
  "अरी पगली तुमका का मालूम बेफालतू बक-बक करती, जिसके लिए है उसके लिए ना, हमार तुम्हार  जैसन को थोड़ी...। रही तो थी ना वहां भी इतने दिन लॉक डाउन मा? कितना भर पेट खाने मिला? कितनी मदद मिली? आखिर परेशानी तो उहां भी झेले ना...। जा आराम कर फिर चलना है....लगी दिमाग खराब करने.."।
बेचारी करवट ले कर चुप-चाप निरुत्तर हो पड़ी रही पर दिमाग मे घूम रहा था वो सब समय जब वो हर जरूरी और छोटी-छोटी चीज को तरसती हुई गाय-भैस का गोबर पानी कर गाँव मे जीवन बिताया करती और पति से संग शहर ले जाने को लड़ती थी। चलो एक बार फिर वही सब पर कम से कम ये दिन तो न देखने पड़ेंगे के अपने संग बच्चे भी मुसीबत झेलें। रह लूँगी मैं फिर सर्फ, साबुन,शैम्पू,नून,तेल लकड़ियां की परेशानी को झेलती हुई पर मेरे बालक तो कम से कम खेल-खा के खुश रहेंगे। सोचते सोचते ही वक़्त बीत गया और अब फिर से चलने की तैयारी।

सफर का पाँचवा दिन और मंजिल बहुत करीब पर बच्चों के पैरों की मांसपेशियां अकड़ जाने के कारण वे ठीक से चल पाने मे असमर्थ थे भीमा बच्चों को हौसला देता गया हिम्मत रखने की पर छोटा बेटा दर्द से बेचैन हो रोने लगा। बच्चे की परेशानी ज्यादा होती देख वह अटैची,गठरिया साइड मे रख कर वहीं आनन-फानन मे बैठ कर हाथों से उसके पैरों की अकड़ जल्दी-जल्दी मसल कर ठीक करने के उद्देश्य से लग गया और सबका ध्यान रोने के कारण उसकी ओर ही रहा इतने में पीछे से आती चार पहिया वाहन भीमा को टक्कर मारती चली गयी और सबका ध्यान अचानक भंग हो गया। भीमा बुरी तरह जख्मी ठोकर खाए दूर पड़ा था उसकी पत्नी चीख गयी,बार बार उसके सर को गोद मे उठा मदद को चिल्लाती पुकारती रही पर पूरा भारत बंद था और सियासतें अंधी बहरी आपात कालीन स्थिती के चलते।😢😢


✍️ इन्दु रानी
मुरादाबाद 244001

बुधवार, 3 जून 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की कहानी------त्रासदी


     सुबोध और सीमा ,उम्र  75 से 80 के बीच, दोनों नोएडा में एक सोसाइटी में रहते थे। बच्चे बंगलौर और मुम्बई में थे ।
लॉकडाउन  की वजह से दोनों डरे हुए थे। सोसाइटी वालों ने उनकी प्रॉब्लम देखते हुए उनकी बाई का आना बंद नहीं किया था।
 सुबोध सेना से रिटायर हुए थे ।बहुत समझदार और परिपक्व सोच के थे। उसके बाद नोएडा ही बस गए थे। बच्चों के पास उनका मन नहीं लगता था। सबकी अपनी अपनी ज़िंदगी थी उसमें तारतम्य बैठाना आसान काम नहीं था। सम्बन्धों में प्रेम और अपनापन बना रहे इसलिये उन्होंने अलग रहने का फैसला लिया था। बीच बीच मे या तो वो बच्चों के पास चले जाते या कभी  1-2 दिन को बच्चे आ जाते। ज़िन्दगी आराम से चल रही थी।
सुबोध कभी कभी बस ये   सोचकर परेशान हो जाते थे 'अगर मैं  नहीं रहा तो सीमा का क्या होगा' ...फिर वह सोच लेते जो होना है होगा ही...सोचकर क्यों परेशान होना। ज़िन्दगी ऐसे ही चल रही थी कि कोरोना ने मुश्किल में डाल दिया। सीमा से तो कुछ नहीं कहते पर सुबोध अंदर ही अंदर परेशान रहने लगे। अब वो किसी से मिल भी नहीं पाते थे । बस दोस्तों से फोन पर बात करते रहते थे। बच्चों के फोन भी कभी कभी आ जाते थे । नीचे जाकर वह दूध सब्जी फल ले आते थे।
 दो महीने बीत गए थे। कोरोना की स्थिति बिगड़ती ही जा रही थी। उनका मन का डर भी बढ़ता जा रहा था। और वही हुआ जिसका डर था। एक दिन उन्हें खुद को फीवर सा लगा। गले मे दर्द भी था। उन्हें समझ में आ गया कि वह कोरोना की चपेट में आ चुके हैं और सीमा को भी अवश्य कोरोना होगा। बाहर किसी से कहने का मतलब था उन्हें घर छोड़कर जाना पड़ता । फिर  सीमा का क्या होगा । यही सोचकर वह परेशान थे।
   अचानक उन्होंने एक फैसला किया। यह कहकर कामवाली को आने से मना कर दिया कि वह बच्चों के पास जा रहे हैं। पैसे वह कोरोना की वजह से उसे काफी एडवांस दे चुके थे। सीमा को भी बुखार आ गया था । उसे सांस लेने में बहुत परेशानी हो रही थी । वह उसे गर्म पानी पिलाते , भाप देते। पर बूढ़ी हड्डियां इतना कष्ट नहीं झेल सकीं उसने पति की बाहों में ही प्राण त्याग दिए। सुबोध ने आँखें मूंद ली। उनमें से आँसू टपक रहे थे । उन्होंने बेटे को फोन लगाया। सब हाल चाल लिया। फिर बेटी को फोन किया। किसी को कुछ नहीं बताया। वह जानते थे सुनने के पश्चात सब बेहद परेशान हो जाएंगे और उनका यहां आ पाना सम्भव नहीं है। वे सब ठीक हैं ये जानकर उन्हें  संतोष हुआ। फिर अपने सबसे प्रिय मित्र को फोन लगाया। और फूट -फूट कर रो पड़े। उन्हें सीमा की मृत्यु का समाचार दिया। वह और बात नहीं कर सके। उन्होंने  फोन काट दिया।
मित्र घर से बाहर नहीं जा सकता था उसने  घबराकर सबको फोन कर दिया । बच्चों ने सोसाइटी में फोन किया। फौरन गार्ड ने आकर उनकी  बेल  बजाई।कोई आवाज न आने पर दरवाजा तोड़ा गया। अंदर सीमा के चेहरे पर चेहरा रखे सुबोध भी  गहरी निंद्रा में सो रहे थे  उनके प्राण भी छूट चुके थे ....सबकी आँखे उन दोनों को देखकर नम थी। बच्चे भी नहीं आ पाए। ट्रैन फ्लाइट सब बन्द थीं। कार से इतनी जल्दी आना सम्भव नहीं था। पुलिस द्वारा ही उनका दाह संस्कार कर दिया गया। कोरोना का ये कहर पता नहीं कब तक चलेगा ...ये कितनी ज़िन्दगी और लीलेगा....

✍️ डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की लघुकथा------- नंगा


"शर्म नहीं आती, यों बनियान-कमीज़ उतारकर सबके सामने नंगे घूम रहे हो", बेढंगे होकर, बिना कमीज-बनियान पहने सड़क पर टहल रहे चंदा लाल को देखकर अप टू डेट विनय बाबू ने उन्हें कसकर डाँटा‌।
"अरे साहब, गर्मी पड़ रही थी इसलिए थोड़ी देर के लिए....., खैर, आप बताइए कैसे आना हुआ?", बेफिक्र होकर सड़क पर टहल रहे चंदा लाल ने विनय बाबू से प्रश्न किया।
"बात यह है चंदा बाबू, तुम्हारी पेंशन बनने वाली है। उसका सारा काम दफ़्तर में मैं ही देख‌ रहा हूँ। तुम चिंता मत करना, काम हो जायेगा। बस, पाँच हजार रुपए हमारे खर्चा पानी के अभी दे दो",  विनय बाबू चंदा बाबू के कान में मक्कारी भरे स्वर में फुसफुसाये।
"नंगा" - चंदा लाल पाँच हज़ार रुपए विनय बाबू की जेब में चुपचाप सरकाकर बुदबुदाये और पुनः पहले की तरह बेफ़िक्र होकर सड़क पर टहलने लगे।

✍️ राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद 244001
मो० 8941912642

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की लघुकथा------भगवान सब अच्छा करता है.


"ऐ... कहाँ जा रहे हो? पता नहीं दुनिया में क्या चल रहा है। सारा संसार बीमारी से जूझ रहा है। सारे देश में लॉक डाउन लगा हुआ है और तुम्हें घूमने की पड़ी है।" एक पुलिस वाला डंडा हिलाकर एक बुजुर्ग से कह रहा था।
"क्या बताऊँ बेटा कई दिन से बुखार है, खाँसी भी बहुत है और अब तो चक्कर भी आ रहे हैं।" बूढ़े ने खाँसते हुए कहा।
"तुम क्या रोज ऐसे ही खुलेआम बाहर घूमते हो?" पुलिस वाले ने पूछा।
"नहीं साहब रोज नहीं बस जिस दिन घर में रोटी नहीं मिलती या ..." कुछ कहते-कहते रुक कर बूढा जोर-जोर से खाँसने लगा।
तब तक पुलिस वाला कहीं फोन कर चुका था।
कुछ ही देर में एक एम्बुलेंस आयी जिसमें पूरी तरह सुरक्षा आवरण पहने हुए कर्मचारी थे।
उन्होंने बूढ़े को पूरी तरह कवर किया और अपने साथ ले गए।
"चलो अब मेरी सारी जाँच और इलाज फ्री में हो जाएगा और रोटी भी मिलती रहेगी।
बहु की मार से भी बचूँगा। चार साल पुरानी खाँसी आज काम आ गयी। भगवान जो करता है अच्छे के लिए ही करता है।"
बूढा मुस्कुराते हुए बुदबुदा रहा था और एम्बुलेंस सायरन बजाती भागी जा रही थी।

✍️  नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा, मुरादाबाद
9045548007

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की लघुकथा----- तसल्ली


"मम्मी काम वाली आंटी का फोन है।"
"रीसीव कर ले बेटा और स्पीकर ऑन करके यहांँ शेल्फ के ऊपर रख दे। मैं बर्तन धो रही हूँ,हाथ गीले हैं। यहीं से सुन लूँगी।"
"हैलो,भाभी जी राम राम।मैं शीतल की मम्मी बोली रई।"
"हां, नमस्ते शीतल की मम्मी।"
"भाभी जी,सब खैर कुशल है।"
"हाँ,सब ठीक है।आप बताओ कोई परेशानी तो नहीं है।"
"ना,भाभी जी कोई परेशानी नहीं।बस ये पूछने के तांयी फोन कर रही थी के काम पर आ जावें क्या अब?"
"नहीं, नहीं।अभी खतरा टला थोड़े ही है।अभी तो और कुछ दिन एहतियात रखनी पड़ेगी।"
"वो ऐसा है ना भाभी जी।जब तुमने छुट्टी करी थी,तो हम अपने गाँव चले गये थे।इतने दिनों में अपने गेहूँ भी समरवा लिये और कुछ दिन गाँव में भी काम कर लिया।अब खाली बैठे हैं।तब शीतल के पापा ने कयी कि काम को पूछ लो।जो भाभीजी कहेंगी तो लौट चलेंगे कमरे पर को।"
"नहीं,शीतल की मम्मी ।अभी नहीं।और आप लोग भी ऐसे आवाजाही मत करो।जहाँ हो वहीं रहो।हाँ,कोई परेशानी हो तो बताओ।"
"ना भाभी जी, परेशानी ना है।तुमने एडभांस दे ई दी थी।गाँव में अनाज सब्जी की परेशानी ना है।परधान,डीलर सब लोगन की मदद कर रै हैंगे।"
"तो फिर आराम से गाँव में रहो ना जब अब समय मिला है तो।यहाँ आठ लोग के साथ किराये के एक कमरे में रहती थी तो रोज गाती थी,भाभी जी गाँव में रहते तो कितने सही रहते।ये भी रोना था कि काम के चक्कर में गाँव जाने का टाइम नहीं मिलता। तुम्हारी तो सुन ली भगवान ने।"
"ना भाभी वो बात ना है।गाँव तो अपना घर है।कुछ नहीं तो भूखे तो नहीं मरने देगा।पर जिनगी में केवल पेट तो ना है। बच्चों की पढ़ाई लिखाई,शादी ब्याह...।पैसे चाहिए हर काम कू।खैर जे छोड़ो,ये बताओ...घर का काम तुमी कर रही।"
"और कौन करेगा शीतल की मम्मी....मैं ही कर रही हूँ।"
"नई मैं सोची कि कहीं कोई आस पड़ोस की रख ली हो।काम भी तो भतैरा है तुमारा।"
"हाँ,वो तो है पर जब काम पे किसी को रखना ही होता तो तुम्हें ही वापस ना बुला लेती।जब लॉकडाउन हटेगा तो तुम्हें ही बुलाऊँगी,बे फिकर रहो"
"वो तो मुझे भरोसा है तुम पर।लोकडोन कभी तो खतम होगा पर इस बीच नौकरी न चली जाय बस यही चिन्ता है हम मजूरों की।तुमसे बात करके तसल्ली है गयी।ठीक है राम राम भाभीजी!"

 ✍️हेमा तिवारी भट्ट
बैंक कॉलोनी, खुशहालपुर
मुरादाबाद 244001
मो.न.-7906879625

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा -------- पुरस्कार



मैं अपनी कक्षा की चुप रहने वाली लड़कियों में से एक थी । टीचर के प्रश्न का उत्तर मालूम होते हुए भी खड़े होकर बोलने में डरती थी ।एक  दिन विद्यालय में शिक्षा विभाग की ओर से एक टीम विद्यालय के बच्चों का ज्ञान स्तर पता लगाने आई ।कुछ एक प्रश्नों के उत्तर बच्चों से पूछे गए।अधिकांश प्रश्नों के उत्तर अलग अलग विद्यार्थियों ने बताये पर एक प्रश्न का उत्तर किसी ने नहीं बताया ।मेरी कक्षा अध्यापिका जोर से डांटने लगी और बोली ,'बच्चों!कोई,तो बताओ ,विद्यालय की बदनामी होगी ।
यह सुनकर मैने हाथ खड़ा कर प्रश्न का सही उत्तर बताया ।टीम ने पुरस्कार दिया और मेरी पीठ थपथपाई।यह पुरस्कार  पांचवी कक्षा में बेसिक शिक्षा अधिकारी ने दिया। इसके बाद मैंने कई पुरस्कार जीते लेकिन यह पुरस्कार आज भी मुझे सब से अहम है क्योंकि अगर यह पुरस्कार मैं नही जीती होती ,तो मैं जीतना सीखती ही नहीं।

✍️ डॉ प्रीति हुंकार
मुरादाबाद

मंगलवार, 2 जून 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ अजय अनुपम के 10 मुक्तकों पर "मुरादाबाद लिटरेरी क्लब " द्वारा ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा------


 वाट्स एप पर संचालित समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा  'एक दिन एक साहित्यकार' की श्रृंखला के अन्तर्गत 31 मई/01 जून 2020 को वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय अनुपम के मुक्तकों पर ऑन लाइन साहित्यिक चर्चा की गई । सबसे पहले डॉ. अजय अनुपम द्वारा निम्न 10 मुक्तक पटल पर प्रस्तुत किए गए-

*(१)*
भव्यता भव्य हो गई होगी
दृश्यता श्रव्य हो गई  होगी
वे झुके नयन जब उठे होंगे
दृष्टि वक्तव्य हो गई  होगी।

*(२)*
स्वप्न  सोये  जगाती मिलीं
चित्र धुंधले सजाती मिलीं
गीत  रचरूप  यौवन  गये
झुर्रियां  गुनगुनाती मिलीं।

*(३)*
सांस  जब अपनी  बिरानी हो गई
हर चुभन बढ़ कर  कहानी हो गई
दर्द  कुछ ऐसा  चढ़ा दहलीज़  पर
उम्र  दो  पल  में  सयानी  हो  गई।

*(४)*
फूल से झर गयी पर चहेती रही
रूप रस से  भरी नाव खेती रही
धन्य  है  धर्म  सन्निष्ठिता  पंखुरी
धूल में  मिल गई गंध  देती रही।

*(५)*
दृष्टि   गहराइयों   तक   उतरने   लगी
सांस   से  मदभरी   गंध  झरने   लगी
आयु मधुमास के द्वार  पर  क्या चढ़ी
देह   परछाइयों   तक   संवरने  लगी।

*(६)*
जो अधर के लिए  मौनव्रत लिख गई
सत्य  को मान  लूं स्वप्नवत लिख गई
हृदय  के   पृष्ठ   पर   वर्जनाओं  भरी
दृष्टि वह प्यार का भागवत लिख गई।

*(७)*
देह   इसकी   गर्म   सांसों  से   ढली  होगी
गंध   इसमें  भाव   सुमनों   से  पली  होगी
पुलक, शीत, प्रदाह, मादकता भरी जिसमें
ये  हवा  निश्चय  तुम्हें   छूकर  चली  होगी।

*(८)*
ज्ञान  की  अज्ञान  से   होती  न  भरपाई
जानती अनुचित-उचित  कब उम्र बौराई
रूप है मन की प्रकाशित भावना का रंग
रूप  का  मानक न श्यामलता न गोराई।

*(९)*
भाव  से  मन  को  लुभाता  है
दुसह    पीड़ाएं    जगाता   है
विरह की देता व्यथा, फिर भी
प्यार  सुख का  जन्मदाता  है।

*(१०)*
राह  कांटों  भरी   थी  सहल  हो  गई
कामना  भी  कुटी  से  महल  हो  गई
मैं   झिझकता  रहा  बात  कैसे  करूं
आज  उनकी तरफ़ से  पहल हो गई।
   
       इन मुक्तकों पर चर्चा प्रारंभ करते हुए प्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि "शिक्षाविद इतिहासविद और प्राच्य शास्त्र से नए-नए पहलुओं की तलाश करने वाले साहित्यकार डॉ अजय अनुपम के यहां प्रस्तुत सारे मुक्तक सौंदर्य और आकर्षण को अभिव्यक्ति देते हैं"।
    विख्यात व्यंग्य कवि डॉ. मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि "प्रस्तुत मुक्तकों वे सभी बारीक काम हैं जो मुक्तकों में होने चाहिएं। यह मुक्तक कसौटी पर पूरे उतरते हैं"।
     सुप्रसिद्ध ग़ज़लकार डॉ कृष्ण कुमार नाज़ ने कहा कि "अनुपम जी के मुक्तकों में भाषा का गाम्भीर्य और कहन का सलीका पाया जाता है जो उनके उत्तम विचारों को उत्कृष्टता की सीमा तक ले जाता है"।          शायर डॉ मुजाहिद फराज़ ने कहा कि "डॉ अनुपम जी के मुक्तक श्रृंगार रस की मुंह बोलती तस्वीर हैं।"
     डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि "डॉ अनुपम जी के प्रस्तुत मुक्तकों में उनका सौंदर्य बोध और रागात्मक अनुभूति स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है"।
    कवि शिशुपाल मधुकर ने कहा कि "यहां प्रस्तुत अनुपम जी के समस्त मुक्तक शिल्प की दृष्टि से उत्तम है भाव पक्ष श्रृंगार प्रधान है"।
    नवगीतकवि योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कहा कि "अनुपम जी के मुक्तकों में परिपक्व अनुभूति और सबल अभिव्यक्ति की सुगंध की उपस्थिति को स्पष्टतः महसूस किया जा सकता है।"।
    डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि "डॉ अजय अनुपम के मुक्तक छंदानुक्रम में व्यवस्थित शब्द मात्र नहीं हैं बल्कि उनकी गहन साहित्य साधना का परिणाम हैं"।
    ग़ज़लकार राहुल शर्मा ने कहा कि "अनुपम जी के मुक्तकों की भाषा शैली अत्यंत उच्च कोटि की है"।        अंकित गुप्ता अंक ने कहा कि "डॉ अजय अनुपम के यहां मुक्तकों की संक्षिप्त क्यारी में जो विस्तृत और व्यापक विचारों और भावों की खुशबू पिरोयी गई है वह निश्चित ही सराहनीय है"।
    चर्चित रचनाकार राजीव प्रखर ने कहा कि " अनुपम जी ने संयोग एवं वियोग श्रृंगार दोनों को ही मुक्तकों में सफलतापूर्वक उभारा है"।
    डॉ अज़ीमउल हसन ने कहा कि "अनुपम जी के मुक्तकों में मनुष्य की सुंदरता को परिभाषित करने का अंदाज निराला व अनुपम है"।
    मनोज मनु ने कहा कि "दादा अजय अनुपम के मुक्तकों में मुक्तकों की सभी खूबियां बड़ी संजीदगी से पाई जाती हैं"।
    युवा शायर फरहत अली खान ने कहा कि " अनुपम जी ने जिस सलीके से मुक्तकों का हक निभाया है, रचनाकारों में ऐसी इमानदारी और कुशलता कम कम ही मिलती है"।
   मयंक शर्मा ने कहा कि "डॉ अनुपम जी के मुक्तकों के मर्म तक पहुंचने के लिए समझ के सोपानों पर चढ़ने की आवश्यकता है"।
     वरिष्ठ कवि श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा कि "डॉ अनुपम जी के मुक्तकों की भाषा सरल वह सुग्राह्य है। कथ्य स्पष्ट व सार्थक है"।
   चर्चित कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि "सिद्ध मुक्तक लिखने के लिए रचनाकार को आदरणीय अनुपम जी के समान अध्ययनशील, शास्त्रों का ज्ञाता, अनुभवी व विशाल दृष्टि वाला होना चाहिए"।
    चर्चित शायरा मोनिका मासूम ने कहा कि "आदरणीय अनुपम जी के सभी मुक्तक सिंगार के लेखन में उनकी कलम की कुशलता का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं"।
   कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि "डॉ अनुपम जी के मुक्तकों में दार्शनिकता सुंदरता रचनाधर्मिता शालीनता व सरलता बड़ी खूबसूरती से बुनी गई है"।      ग्रुप एडमिन एवं संचालक जिया ज़मीर ने कहा कि "डॉ अजय अनुपम जी मुक्तकों में जितने शालीन जितने स्पष्ट और जितने रचे बसे हैं, ऐसे मुक्तक कवि मुश्किल से देखने को मिलते हैं"।

::::::::प्रस्तुति::::::::
✍️ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब
मो०8755681225