सोमवार, 3 अगस्त 2020

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था "हिंदी साहित्य संगम" की ओर से माह के प्रथम रविवार को काव्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है । रविवार 2 अगस्त 2020 को आयोजित ऑनलाइन काव्य गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ मीना नकवी, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, डॉ मीना कौल, योगेंद्र वर्मा व्योम, श्री कृष्ण शुक्ल, अशोक विद्रोही, सीमा रानी, राजीव प्रखर, डॉ ममता सिंह, मीनाक्षी ठाकुर, इंदु रानी, अरविंद कुमार शर्मा आनन्द, जितेंद्र कुमार जौली, डॉ प्रीति हुंकार, प्रशांत मिश्र, राशिद मुरादाबादी, नृपेंद्र शर्मा सागर और नकुल त्यागी की रचनाएं ----


सत्य घोलो आचमन में।
अन्यथा क्या है हवन में।।

युग ये दानवराज का है।
नीति है जिसकी दमन में।।

नृत्य बरखा कर रही है।
गीत हो जैसे पवन में।।

याद फि़र आया है कोई।
कुछ नमी सी है नयन में।।

क्यों अँधेरों से डरें हम।
चाँद तारे हैं गगन में।।

कोई मन में यूँ समाया।
जैसे खु़शबू हो चमन मे।।

तुम पलट आओगे इक दिन।
दृढ़  है यह विश्वास  मन में।।

हों सुकोमल भाव 'मीना'।
वरना क्या रखा है फ़न में।।
 डॉ.मीना नक़वी
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तन   वैरागी  , मन  वैरागी
जीवन का हर क्षण वैरागी
जीवन को जीवन पहनाने
सारा  घर  आंगन   वैरागी।
       
मेरे   रोम-रोम   में  बसतीं
सतत प्रेमकी  अभिलाषाएं
मन वीणा  की  झंकारों  से
झंकृत  होती  दसों  दिशाएँ
सच कहता हूँ मानवता को
हुआ सकल  जीवन वैरागी।
तन वैरागी----------------

देख -देख  भूखे  प्राणी  को
मुझको भारी  दुख  होता है
सुनकर आतंकित वाणी को
मेरा    अंतर्मन     रोता    है
हरदम सबका  साथ निभाने
व्याकुल  अपनापन  वैरागी।
तन वैरागी-----------------

धर्म  जाति   के   संघर्षों  में
सारी  दुनियाँ  ही उलझी  है
अहंकार  की  घोर   समस्या
किसके  सुलझाए सुलझी है
बनी  हुई  है आज  स्वयं  ही
मेरी  सघन   लगन    वैरागी।
तन वैरागी-----------------

नींद   नहीं  आती  रातों  को
हरपल    बेचैनी   रहती    है
सारे जग की  करुण कहानी
आकर  कानों  में  कहती  है
मेरे  साथ  हो  गया अब  तो
चंदन   वन   उपवन  वैरागी
तन वैरागी-----------------

केवल   वही  शक्तिशाली  है
हर  कोई  यह  दंभ भर  रहा
अपनी गलती को झुठलाकर
औरों पर  इल्ज़ाम   धर रहा
इन्हें   राह  दिखलाने   वालों
को    मेरा    वंदन    वैरागी।
तन वैरागी-----------------

वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद 244001
 9719275453
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  जिंदगी आजकल
  कोरोना के खौफ में गुजर रही है
  हर कदम पर बीमारी
  एक नयी साजिश रच रही है।
  वायरस के बोझ से
  हर व्यवस्था कुचल रही है
  निर्दोषों की चीख से
  मानवता भी दहल रही है।
  महामारी की आग में
  हर इच्छा ही जल रही है
  दूर देश से उठी आग
  कितनी साँसें निगल रही है।
  आपसी सद्भाव पर
  संदेह की काली छाया पड़ रही है
  धर्म स्थल पर भी
  शत्रु की काली दृष्टि पड़ रही है।
  कौन है जिसने
  यह अवांछित कर दिया
 अपने ही घर में
 हमें असुरक्षित कर दिया।
 आखिर कब तक
 जिंदगी कोरोना के साए में गुजरेगी
 आँखें कब तक
 अपने सपनों को तरसेंगी।
 कभी कभी लगता है
 इसकी कोई दुआ जरूर आएगी
 महामारी छोड़ पीछे
 मीना जिंदगी आगे बढ़ जाएगी।।
     
डाॅ मीना कौल
मुरादाबाद
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चिन्ताओं के ऊसर में फिर
उगीं प्रार्थनाएँ

अब क्या होगा कैसे होगा
प्रश्न बहुत सारे
बढ़ा रहे आशंकाओं के
पल-पल अँधियारे
उम्मीदों की एक किरन-सी
लगीं प्रार्थनाएँ

बिना कहे सूनी आँखों ने
सबकुछ बता दिया
विषम समय की पीड़ाओं का
जब अनुवाद किया
समझाने को मन के भीतर
जगीं प्रार्थनाएँ

धीरज रख हालात ज़ल्द ही
निश्चित बदलेंगे
इन्हीं उलझनों से सुलझन के
रस्ते निकलेंगे
कहें, हरेपन की ख़ुशबू में
पगीं प्रार्थनाएँ

 योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
मुरादाबाद
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पूरी हो मन की अभिलाषा जन जन का कल्याण हो।
जन्मभूमि पर रामलला के मंदिर का निर्माण हो ।

पूर्ण हो गई आज प्रतीक्षा, मंदिर के निर्माण की ।
युगों युगों के संघर्षों की, कोटि कोटि बलिदान की ।
अखिल विश्व में सत्य सनातन, के ध्वज की पहचान की
बने निशानी अब यह मंदिर, भारत के सम्मान की ।।
राम लला के मंदिर की अब अखिल विश्व में शान हो।
जन्मभूमि पर रामलला के मंदिर का निर्माण हो।

रामलला हम सब आयेंगे, मंदिर वहीं बनायेंगे ।
राम शिलाएं जोड़ जोड़कर भव्य भवन बनवायेंगे।
राम लला की प्राण प्रतिष्ठा मंदिर में करवायेंगे ।
घंटे और घड़ियाल बजाकर राम नाम धुन गायेंगे।
राम राम जय राम राम मय रमते मन और प्राण हो।
जन्मभूमि पर रामलला के मंदिर का निर्माण हो ।

श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG -69,
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद 244001
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नेता कहतेआजादी,
          चरखे से भारत में आई!
 नेहरू गांधी की खादी
        और सत्य अहिंसा से पाई!
 नेताओं ने इसकी खातिर,
                कितने डंडे खाए हैं
जीवन के अनमोल बरस
            जेलों की भेंट चढ़ाए हैं
किंतु सत्य ये नहीं है ,जो कि
               साफ दिखाई देता है
लाखों हैं बलिदान हुए,
            इतिहास गवाही देता है
जलिया वाले बाग की गाथा,
               क्यों हो गई पुरानी है
गूंज रहीं चींखें कहतीं,
         बच्चा-बच्चा बलिदानी है
बांध कमर में लिया शिशु
         बलगाऐं थामीं थीं मुख में
दोनों हाथों की तलवारें,
          चमकीं थीं जब अंबर में
महारानी लक्ष्मीबाई ने
                वीरगति रण में पाई
देख अमर बलिदान मनु का
                पीछे आजादी आई
निरख काल भी कांपा जिसको
            अंग्रेजों की  कौन बिसात
मृत्यु तकआजाद रहा
            गोरी सेना को देकर मात
खुद को गोली मारी उसने
           अपनों की जब देखी घात
देश हमेशा गर्व करेगा
         तुझ पर चंद्रशेखर आजाद
भरी जवानी प्राण गवाएं ,
                  वीरों ने ली अंगड़ाई
मंगल पांडे गरजा और
            विद्रोही ज्वाला भड़काई
 राजगुरु ,सुखदेव ,भगत सिंह
               को कैसे हम भूल गए
थे कुलदीपक अपने घर के
               थे फांसी पर झूल गए
खड़ी मौत देखी जब सम्मुख
                 गोरे थे थर थर कांपे
पूरा भारत जाग उठा था ,
                   गौरों ने तेवर भांपे
क्रांतिवीर थे काल बन गए
                 अरि ने देखी बर्बादी
जान बचाना मुश्किल हो गया,
             तब सौंपी थी आजादी
कोई वीर जननी जब जब
            ऐसे वीरों को जनती है
तरुणाई तब गौरव गाथा
            बलिदानों की बनती है
भूले नहीं किसी को भी
            पर मात्र यही सच्चाई है
अमर शहीदी लाशों पर
           चढ़कर आजादी आई है
     
अशोक विद्रोही
 82 188 25 541
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
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मन की व्यथा
जब बढ जाती है
तो सोचना पड़ता है |
      ये खोखले रिश्ते
       ये दोगले नाते
       इन्हें बेमन से
        ढोना पड़ता है |
 मन की व्यथा
जब बढ जाती है
तो सोचना पड़ता है |
       आँखों की नमी छिपाकर
       चेहरे पर मुस्कान चढाकर
         दिल में दर्द  काे दबाकर
         जग से कदम मिलाकर
        हँसकर चलना पड़ता है |
  मन की व्यथा
  जब बढ जाती है
   तो साेचना पड़ता है |
          सच बता नही सकते
            झूठ छिपा नही सकते
            खुलकर राे नही सकते
             बस चुप रहना पड़ता है|
    मन की व्यथा
    जब बढ जाती है
     तो साेचना पड़ता है |
             सच बता दिया तो
               दुनिया गिरा देगी
              झूठ छिपा लिया
               तो चाेट हिला देगी
              चुप चलना पड़ता है |
      मन की व्यथा
      जब बढ जाती है
      तो सोचना पड़ता है ,
      मन की व्यथा
      जब बढ जाती है
      तो साेचना पड़ता है |

 ✍🏻सीमा रानी
बुद्धि विहार
मुरादाबाद
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कहें कलाई चूम कर, राखी के ये तार।
तुच्छ हमारे सामने, मज़हब की दीवार।।

दूर नहीं आतंक का, जड़ से काम तमाम।
मेरी सारी राखियाँ, भारत माँ के नाम।।

गुमसुम पड़े गुलाल से, कहने लगा अबीर।
चल गालों पर खींच दें, प्यार भरी तस्वीर।‌।

कैसे भागेगा भला, संकट का यह दौर।
जब जनहित से भी परे, कुर्सी हो सिरमौर।।

हे भगवन है आपसे, मेरी यह मनुहार।
हर भाई को दीजिये, एक सुखद संसार।।

बहिनों का आशीष है, कभी न हो नाकाम।
चमके सूरज-चाँद सा, भैया तेरा नाम।।

 राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
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रेशम के धागे से यह,
बंधा हुआ त्यौहार।
खुशियां लेकर आया है,
देखो कितनी अपार।।

आ न सको यदि राखी पर,
तो मत होना उदास।
दिल से जब याद करोगी,
मिलेगा भाई पास।।

दुनिया के हर रिश्ते से,
अलग है इसकी बात।
सबको कब है मिल पाती,
प्रेम की ये सौगात।।

बड़ा अनोखा होता है,
भाई बहन का प्यार।
बहन लुटाती भाई पर,
अपना सारा दुलार।।

डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद
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अबकी राखी भेज रही हूँ,भैया कुरियर के द्वारा,
कोरोना ने रस्ता रोका,सहमी गलियाँ चौबारा,

नाजुक डोरी रेशम के सँग,रोली अक्षत  टीका भी
 मेरे प्यारे  भैया तुम पर,बहना ने सब कुछ वारा।

दूरी मेरी मजबूरी है,वरना दौड़ी मैं आती,
तेरा जीवन भैया मुझको,अपने जीवन से प्यारा।

तीजो बीती सूनी सूनी,झूला कब सखियाँ झूलीं,
अगले बरस ही आऊँगी अब,लेने अपना सिंधारा

मैका देखे अरसा बीता,हँसी -खुशी सब गायब है
हे ईश्वर कुछ ऐसा करदे,खुशियाँ आयें दोबारा ।।

मीनाक्षी ठाकुर
मुरादाबाद
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सालों से जिसको दिल मे पाला है।
जीते-जी   उसने   मार   डाला  है।

मेरा   ही   खून   मेरा   क़ातिल  है,
खेल  क़िस्मत  का  ये  निराला  है।

कोई  अपना  नहीं   सिवा   उसके,
अब  की औलाद कितनी आला है।

जिस घरौंदे को हम सजाते थे,
उस घरौंदे में कितना जाला है।

खेला बचपन जहाँ था आँगन में,
लग गया उस जगह पे ताला है।

इन्दु,अमरोहा
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जिंदगी रंग हर पल बदलती रही।
साथ गम के ख़ुशी रोज़ चलती रही।।

शम्अ जो राह में तुम जला के गये।
आस में आपकी बुझती जलती रही।।

रिफ़अतें जो जहाँ में अता थी मुझे।
रेत सी हाथ से वो फिसलती रही।

क्या कहूँ दोस्तों दास्ताँ बस मिरी।
शायरी बनके दिल से निकलती रही।।

जो खिली रौशनी हर सुबह जाने क्यों।
शाम की आस में वो मचलती रही।।

क्या बचा अब है 'आनंद' इस दौर में।
लुट गया सब कलम फिर भी चलती रही।।

अरविंद कुमार शर्मा "आनंद"
मुरादाबाद
8979216691
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पूरी नहीं होने देगे उनकी कभी कामना,
कितने भी हो शत्रु हम डटकर करेंगे सामना।
जात-पात की भावना रख दो उठाकर ताक में,
आओ सब मिलकर करे हम देश की आराधना॥

करना है क्या कैसे, बताते रहे हैं जो।
भटके तो हमे राह, दिखाते रहे हैं जो॥
ऐसे गुरु के ऋण को, चुकाऐ भला कैसे।
दिया बनाके खुद को, जलाते रहे हैं जो॥

-जितेन्द्र कुमार 'जौली'
मुरादाबाद
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मैके में जो रोज मने ,त्योहार निराले थे ।
बाबुल तेरे आँगन के ,वो प्यार निराले थे ।
अबकी विपदा आई ऐसी ,सूने हैं घर द्वार ।
भाई के  घर जा न पाई ,इस राखी त्योहार ।
भैया तुमतो लेने मुझको ,आने वाले थे ।
बाबुल तेरे..............

मजबूरी में अपनी राखी, नही भेज मैं पाई ।
एक कलावा बाँध ले बीरन , सुन्दर लगे कलाई ।
राखी धागे क्या मिले तुम्हें, जो मैने डाले थे ?
बाबुल तेरे ......

डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद
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गली गली अब घूम रहे,
कोरोना लिए यमराज हैं
किसका मौका कल है ..
जाने किसका आज है ।।1।।

कुछ कतार लंबी देख ..
मना रहे क्यों जश्न हैं,
खोद रहे हैं कब्र अपनी
या करने सभी भस्म हैं ।।2।।

देखो प्रशान्त! है सब्र कहाँ
गैरत किसके पास है,
किसका नम्बर कब है..
जाने किसके बाद है ।।3।।

प्रशान्त मिश्र
राम गंगा विहार
मुरादाबाद 244001
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पहली मुहब्बत भुलाना मुश्किल है,
वफ़ा के दस्तूर निभाना मुश्किल है,

सूख जाये गर इश्क़ का चमन राशिद,
मुहब्बत के फूल खिलाना मुश्किल है,

दिलों की ख़्वाहिश जताना मुश्किल है,
जज़्बात ए रूह सुनाना मुश्किल है,

करो चाहे बेपनाह मुहब्बत किसी से,
उम्र भर उसका साथ निभाना मुश्किल है,

अपने गुनाहों को छुपाना मुश्किल है,
बदनामियों के दाग़ मिटाना मुश्किल है,

हो गये ज़माने के हालात कुछ ऐसे,
सच्चाई की राह पे चल पाना मुश्किल है,

टूटे दिलों को फिर मिलाना मुश्किल है,
आईने की दरार को मिटाना मुश्किल है,

बंटे रहोगे अगर बिरादरी और फ़िरक़ों में,
क़ौम को इक राह पे लाना मुश्किल है,

आयी है महामारी बच पाना मुश्किल है,
रूठा है ख़ुदा उसे मनाना मुश्किल है,

जाने कब ख़त्म होगा अज़ाबों का दौर,
सोचते रहो पर अंदाज़ा लगाना मुश्किल है,

ख़ुदा की नेमतों को झुठलाना मुश्किल है,
उसकी बन्दगी के फ़र्ज़ निभाना मुश्किल है

नहीं है ख़ुदा के सिवा कोई माबूद बेशक,
उसके सिवा कहीं सर झुकाना मुश्किल है,

राशिद मुरादाबादी
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जो समझ ले मौन को खुद,
मौन रहकर सब कहे।
सुखी सब संसार हो जब,
 मौन की धारा बहे।
मौन की हो गूँज पावन,
नाद ईश्वर मन्त्र सा।
मौन हो आधार वाचन,
मौन सारा जग रहे।
मौन पहुँचे हृदयतल तक,
मौन की शक्ति गहन।
जब बड़ी हो बात कहनी,
गूढ़ अर्थ मुखर रहे।
मौन भाषा प्रेम की है,
शब्द के बिन हो प्रसार।
हृदय सुन ले बात मन की,
 मौन सब भाषा रहे।।
मौन से कोई ना जीता,
 मौन अविजित है सदा।
मौन की भाषा प्रखर है,
 मौन सब बातें कहे।।

नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा,मुरादाबाद
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मिट्टी के बिकते ढांचे को क्यों कर कोई दोष लगेगा स्नेह तेल हो ज्ञान की बाती  ऐसा दीपक रोज जलेगा

मिलकर नहीं जलेंगे दीपक घिर घिर अंधकार आएगा
 तब प्रतिभा संपन्न से कल प्रश्न एक पूछा जाएगा

पथ प्रशस्त क्यों किया तिमिर का तुमको तो आलोक मिला था
मौन रहेंगे तब सोचेंगे जब जीवन ही व्यर्थ जिया था

जो शिक्षित है ज्ञानवान है पथ प्रदर्शक बन सकते हैं
जलते हुए दीप बनकर वे  तम की पीड़ा हर सकते हैं

अपनी प्रतिभा से आलोकित पगडंडी और  राह बनाएंं अंधकार को क्यों धिक्कार अच्छा है एक दीपक जलाएं
नकुल त्यागी
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रविवार, 2 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार योगेंद्र वर्मा व्योम के दस नवगीतों पर "मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" द्वारा ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा----



 वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा 'एक दिन एक साहित्यकार' की श्रृंखला के अन्तर्गत  दिनांक 1 व 2 अगस्त को मुरादाबाद के चर्चित  नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम की रचनाधर्मिता पर ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा का आयोजन किया गया । सबसे पहले योगेंद्र वर्मा व्योम द्वारा निम्न दस नवगीत पटल  पर प्रस्तुत किये गए

(1)

जीवन में हम ग़ज़लों जैसा
होना भूल गए

जोड़-जोड़कर रखे क़ाफ़िये
सुख-सुविधाओं के
और साथ में कुछ रदीफ़
उजली आशाओं के
शब्दों में लेकिन मीठापन
बोना भूल गए

सुबह-शाम के दो मिसरों में
सांसें बीत रहीं
सिर्फ़ उलझनें ही लम्हा-दर-
लम्हा जीत रहीं
लगता विश्वासों में छन्द
पिरोना भूल गए

करते रहे हमेशा तुकबंदी
व्यवहारों की
फ़िक्र नहीं की आँगन में
उठती दीवारों की
शायद रिश्तों में ग़ज़लियत
संजोना भूल गए

(2)

मैंने बूँदों को अक्सर
बतियाते देखा है

इठलाते बल खाते हुए
धरा पर आती हैं
रस्ते-भर बातें करती हैं
सुख-दुख गाती हैं
संग हवा के खुश हो
शोर मचाते देखा है

कभी झोंपड़ी की पीड़ा पर
चिंतन करती हैं
और कभी सूखे खेतों में
खुशियाँ भरती हैं
धरती को बच्चे जैसा
दुलराते देखा है

छोटा-सा जीवन है लेकिन
काम बड़ा करतीं
सूनी आँखों में उजली-सी
आशाएँ भरतीं
तक़लीफ़ों को सहकर भी
मुस्काते देखा है

(3)

तन के भीतर बसा हुआ है
मन का भी इक गाँव

बेशक छोटा है लेकिन यह
झांकी जैसा है
जिसमें अपनेपन से बढ़कर
बड़ा न पैसा है
यहाँ सिर्फ़ सपने ही जीते
जब-जब हुए चुनाव

चौपालों पर आकर यादें
जमकर बतियातीं
हँसी-ठिठोली करतीं सुख-दुख
गीतों में गातीं
इनका माटी से फ़सलों-सा
रहता घना जुड़ाव

चंचलता की नदी पास में
इसके बहती है
जो जीवन को नई ताज़गी
देती रहती है
बाढ़ कभी जब आती इसमें
उगते बहुत तनाव

(4)

चलो करें कुछ कोशिश ऐसी
रिश्ते बने रहें

रिश्ते जिनसे सीखी हमने
बोली बचपन की
सम्बन्धों की परिभाषाएँ
भाषा जीवन की
कुछ भी हो, ये अपनेपन के
रस में सने रहें

बंद खिड़कियाँ दरवाज़े सब
कमरों के खोलें
हो न सके जो अपने, आओ
हम उनके हो लें
ध्यान रहे ये पुल कोशिश के
ना अधबने रहें

यही सत्य है ये जीवन की
असली पूँजी हैं
रिश्तों की ख़ुशबुएँ गीत बन
हर पल गूँजी हैं
अपने अपनों से पल-भर भी
ना अनमने रहें

(5)

अब तो डाक-व्यवस्था जैसा
अस्त-व्यस्त मन है

सुख साधारण डाक सरीखे
नहीं मिले अक्सर
मिले हमेशा बस तनाव ही
पंजीकृत होकर
फिर भी मुख पर रहता
खुशियों का विज्ञापन है

गूगल युग में परम्पराएँ
गुम हो गईं कहीं
संस्कार भी पोस्टकार्ड-से
दिखते कहीं नहीं
बीते कल से रोज़ आज की
रहती अनबन है

नई सदी नित नई पौध को
रह-रह भरमाती
बूढ़े पेड़ों की सलाह भी
रास नहीं आती
ऐसे में कैसे सुलझे जो
भीतर उलझन है

(6)

अब संवाद नहीं करते हैं
मन से मन के शब्द

एक समय था, आदर पाते
खूब चहकते थे
जिनकी खुशबू से हम-तुम सब
रोज़ महकते थे
लगता है अब रूठ गए हैं
घर-आँगन के शब्द

हर दिन हर पल परतें पहने
दुहरापन जीते
बाहर से समृद्ध बहुत पर
भीतर से रीते
अपना अर्थ कहीं खो बैठे
अपनेपन के शब्द

आभासी दुनिया में रहते
तनिक न बतियाते
आसपास ही हैं लेकिन अब
नज़र नहीं आते
ख़ुद को ख़ुद ही ढँूढ रहे हैं
अभिवादन के शब्द

(7)

अपठनीय हस्ताक्षर जैसे
कॉलोनी के लोग

सम्बन्धों में शंकाओं का
पौधारोपण है
केवल अपने में ही अपना
पूर्ण समर्पण है
एकाकीपन के स्वर जैसे
कॉलोनी के लोग

महानगर की दौड़-धूप में
उलझी ख़ुशहाली
जैसे गमलों में ही सिमटी
जग की हरियाली
गुमसुम ढ़ाई आखर जैसे
कॉलोनी के लोग

ओढ़े हुए मुखों पर अपने
नकली मुस्कानें
यहाँ आधुनिकता की बदलें
पल-पल पहचानें
नहीं मिले संवत्सर जैसे
कॉलोनी के लोग

(8)

बीत गया है अरसा, आते
अब दुष्यंत नहीं

पीर वही है पर्वत जैसी
पिघली अभी नहीं
और हिमालय से गंगा भी
निकली अभी नहीं
भांग घुली वादों-नारों की
जिसका अंत नहीं

हंगामा करने की हिम्मत
बाक़ी नहीं रही
कोशिश भी की लेकिन फिर भी
सूरत रही वही
उम्मीदों की पर्णकुटी में
मिलते संत नहीं

कैसे आग जले जब सबके
सीने ठंडे हैं
आग जलाने वालों के
अपने हथकंडे हैं
आम आदमी के मुद्दे अब
रहे ज्वलंत नहीं

(9)

मौन को सुनकर कभी देखो
रूह भीतर गुनगुनाती है
ज़िन्दगी का गीत गाती है

झूठ के सुख-साधनों को तज
छल-भरे आश्वासनों को तज
रोग बनते जा रहे हैं जो
शोर के विज्ञापनों को तज
मौन को चुनकर कभी देखो
रूह भीतर खिलखिलाती है
ज़िन्दगी का गीत गाती है

दृष्टि में थोड़ा खुलापन ले
इन्द्रधुषी कुछ नयापन ले
बालपन-सी ताज़गी के सँग
सोच में थोड़ा हरापन ले
मौन को बुनकर कभी देखो
रूह भीतर चहचहाती है
ज़िन्दगी का गीत गाती है

बंदिशें सब तोड़ बंधन की
साजिशें सब छोड़ उलझन की
गंध डूबे शब्द कुछ लेकर
तुम कभी आयत बनो मन की
मौन को गुनकर कभी देखो
रूह भीतर मुस्कुराती है
ज़िन्दगी का गीत गाती है

(10)

आज सुबह फिर लिखा भूख ने
ख़त रोटी के नाम

एक महामारी ने आकर
सब कुछ छीन लिया
जीवन की थाली से सुख का
कण-कण बीन लिया
रोज़ स्वयं के लिए स्वयं से
पल-पल है संग्राम

वर्तमान को लील रहा हरदम
भय का दलदल
और अनिश्चय की गिरफ़्त में
आने वाला कल
सन्नाटे का शोर गढ़ रहा
भीतर प्रश्न तमाम

ख़ाली जेब पेट भी ख़ाली
जीना कैसे हो
बेकारी का घुप अँधियारा
झीना कैसे हो
केवल उलझन ही उलझन है
सुबह-दोपहर-शाम

इन नवगीतों पर चर्चा करते हुए विख्यात नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि कोलाहल से गुजरते हुए जब हम उनकी रचनाशीलता के आग्रहों की ओर ध्यान देते हैं तो पता चलता है कि निजता से लेकर व्यापक सामाजिक सरोकारों की धरती से जो निरंतर अनुपस्थित होते जा रहे हैं उन जीवन मूल्यों ,परस्पर संबंधों की गाँठ से ढीले होकर छूटते या सरकते रिश्तों की अकुलाहट भारी टीस उनके कथ्य में शामिल हैं इस तरह वे अपनी अभिव्यक्ति के दायरे को बड़ा करते जाते हैं। जीवन में गहरी संवेदनात्मकता का क्षरण उनके गीतों की वस्तु चेतना में शामिल है। यह पहले गीत से लेकर दसवें गीत तक में ही नहीं बल्कि उनके समूचे लेखन के केंद्र में है। उनके लिए रचना भी एक प्रार्थना है, पूजा है इसलिए बासी फूलों की टोकरी अलग खिसका कर ताजा फूलों का प्रयोग करते हैं। व्योम सर्वथा मौलिक चिंतन के रचनाकार हैं और हिंदी नवगीत में मुरादाबाद के उजली पाँत की संभावना हैं।
आलमी शोहरत याफ्ता शायर मंसूर उस्मानी ने कहा कि मुझे नवगीत जितना भी पढना सुनना और समझना आता है उस कसौटी पर व्योम की रचनाएं मुझे बेहद आकर्षित करती हैं क्योंकि मेरे नजदीक व्योम पूरी तरह मानवतावादी कवि हैं, इंसानी सोच उसके दुख-सुख उसकी आवश्यकतायें और अपेक्षाएं व्योम की रचनात्मक सोच का केंद्र बिंदु रहती हैं वह कल्पनाओं से ज्यादा हकीकतों के कवि हैं जो उन्हें अपने बडों के बीच स्थापित करता है।
वरिष्ठ कवि शचीन्द्र भटनागर  ने कहा कि व्योम के कवि मन को जो वेदना निरंतर मथती रहती है, वह है आज के संबंधों में सहजता का अभाव. कभी वह उसे ग़ज़ल की मिठास तो कभी बूंदों द्वारा अपने छोटे से जीवन में बड़े काम करने से व्यक्त करते हैं. कभी मन के भीतर बसे गाँव से तो कभी संस्कारों के विलुप्त होने से, अपनत्व रहित संवादों अथवा कोलोनी के कृत्रिम जीवन से तुलना करके व्यक्त करते हैं। अंतिम नवगीत वैश्विक संकट से उत्पन्न स्थिति में श्रमजीवी जैसे सबसे निचले स्तर के व्यक्ति की वेदना को उकेरा है। दुष्यंत कुमार के स्मृति गीत के माध्यम से उनकी अपेक्षाओं के अनुरूप समाज में जागृति न आ पाने पर कवि का क्षोभ व्यक्त हुआ है। इन गीतों जैसे मानवीकरण के सुंदर सटीक उदाहरण एक साथ कम ही मिल पाते हैं ।
विख्यात व्यंग्य कवि  डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि व्योम नवगीत विधा में चर्चा पाकर अपना स्थान बना चुके हैं। उनके कोंपलों जैसे ताजा नवगीत सकारात्मक सोच और कड़वाहट को मिठास के साथ परोसने के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। यह मुश्किल कार्य उनसे हुआ इसके लिए पहले ही बधाई। ऐसे समर्थ रचनाकार पर कुछ कहने के लिए गीत और नवगीत को समझना आवश्यक है। योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' की मीठी भाषा, शिल्प की तराश, कथ्य में जन भागीदारी, बिंबों का अनूठापन कहन के माधुर्य से गीत के सौंदर्य को उच्चता की ओर ले जा रहा है।
वरिष्ठ कवि  डॉ अजय अनुपम ने कहा कि आज पटल पर श्री योगेन्द्र वर्मा व्योम जी के दस गीत पढ़े। विस्तृत विचार और खुली सोच के गीत। रचनाकार के मन में पहले एक विचार उमड़ता है और उसमें से गीत का स्वरूप उभरता है। गीत का शाब्दिक अर्थ ही है कि जो गाया जा चुका है। व्योम जी के गीत भाषा और कथ्य में समकालीन परिवेश की पूरी तस्वीर उतारने में समर्थ हैं। विस्तृत विचार और खुली सोच के गीत हैं।
मशहूर शायरा डॉ मीना नकवी ने कहा कि व्योम से एक लम्बे समय से परिचय है और अनेकानेक बार उन्हें सुना भी है और पढ़ा भी है। व्योम नवगीत के सशक्त कवि हैं। सामाजिक संबंधों की असहजता उन्हे व्याकुल रखती है। सामजिक परिवेश की उथल पुथल को जब वह डाक व्यवस्था से सटीक उपमा देते हैं तो मन विस्मित हो जाता है। कुल मिला कर व्योम समय, संबधो के सकारात्मक  और सशक्त कवि हैं।
मशहूर शायर  डॉ कृष्ण कुमार नाज ने कहा कि योगेंद्र ‘व्योम जी के गीतों में प्रयोगशीलता तो है, लेकिन मनमानापन नहीं। व्योम जी आज देशभर में नवगीत के क्षेत्र में अपना वह मुक़ाम पा चुके हैं, जो बहुत कम लोगों का मुक़द्दर होता है। उनके यहाँ प्रत्येक भाषा के बहुप्रचलित शब्द आसन जमाये विराजमान होते हैं। बिंब बहुत साफ़-सुथरे और आम आदमी की पहुँच में आने वाले होते हैं।
मशहूर शायर डॉ मुजाहिद फराज  ने कहा कि कागज़ पर सजे हुए 'व्योम' के नवगीत हमारे सामाजिक जीवन का अक्स हैं। ये नवगीत शायरी के उस नाज़ुक एहसास को दर्शाने के लिए साधारण अल्फ़ाज़ का लिबास पहनते हैं जहाँ बारिश की बूंदों की बाते भी सुनी जाती हैं और उस पीड़ा को भी एक हस्सास शायर ही महसूस कर सकता हैं जो बारिश से झोपड़ियों और उसके रहने वालों को होती हैं।'व्योम' के नवगीत मन के तारों को छेड़ते भी है और मस्तिष्क के तारो को झंझोड़ते भी हैं।
वरिष्ठ कवि  डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि मुरादाबाद के साहित्यिक पटल पर अपनी एक विशिष्ट पहचान स्थापित कर चुके योगेंद्र वर्मा व्योम के मन के गांव में बसी भावनाएं जब शब्दों का रूप लेकर नवगीत, ग़ज़ल और दोहों के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं तो वह अपने पाठकों / श्रोताओं की सोच को  झकझोर देती हैं। उनके नवगीत जिंदगी के विभिन्न रूपों के गीत हैं जो हम से बतियाते हैं और हमारे साथ खिलखिलाते भी हैं। उन्हें पढ़/ सुनकर हमारा अस्त व्यस्त मन कभी गुनगुनाने लगता है तो कभी चहचहाने लगता है तो कभी निराशा और हताशा के बीच आशाओं के दीप जलाने लगता है।
प्रसिद्ध कवियत्री डॉ पूनम बंसल ने कहा कि आदरणीय व्योम जी नव गीत के सशक्त हस्ताक्षर हैं उनके गीतों में जहाँ सामाजिक विद्रूपताओं का सजीव चित्रण है वहीं मानवीय संवेदनाएं उनके गीतों का आधार हैं। सरल सहज शब्दों में वर्तमान परिवेश की हलचल को उजागर करना उनके गीतों की विशेषता है सच्चे अर्थों में उनकी रचनाएं समाज का दर्पन हैं। उनकी अनुपम रचनाधर्मिता के प्रति हृदय से साधुवाद माँ शारदे की कृपा व्योम जी पर यूँ ही बरसती रहे।
वरिष्ठ कवि  शिशुपाल मधुकर ने कहा कि व्योम जी बहुत ही मृदुभाषी मिलनसार तथा व्यवहारिक व्यक्ति हैं। सबका सहयोग करना उनके व्यक्तित्व का महत्वपूर्ण गुण है। मैं उनके लेखन से करीब 30 वर्षों से परिचित हूं। व्योम जी अत्यंत संभावनाशील व उत्कृष्ट रचनाकार है जो बदलते परिवेश में स्वयं को ढालने में सिद्ध हस्त हैं।मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास भी है कि वे नवगीत की और उचाइयों को अवश्य छुएंगे।
प्रसिद्ध समीक्षक  डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि मुरादाबाद वासियों को गर्व होना चाहिए की हमारे शहर के अग्रिम पंक्ति के नवगीतकारों में आदरणीय योगेंद्र वर्मा व्योम जी का नाम भी शामिल है। योगेंद्र वर्मा व्योम जी के नवगीत केवल कहन भर  नहीं  बल्कि  सामाजिक  चेतना  के  सूत्रधार  भी  प्रतीत  होते  हैं।
युवा शायर  राहुल शर्मा ने कहा कि व्योम जी इतनी खूबसूरती से, बड़ी बारीकी से ऐसे ऐसे बिंब, प्रतीक और प्रतिमान ढूंढ लाते हैं जिस पर सामान्य गीतकार दृष्टिपात नहीं कर पाते। व्योम जी चीजों को रूपांतरित करने में सिद्धहस्त हैं। मन को गांव की संज्ञा में रूपांतरित कर देने जैसा प्रयोग पहले कभी कहीं देखने को नहीं मिलता। रूपांतरित कर देने के पश्चात रूपांतरण के मानकों का सटीक उपयोग करना बहुत ही कुशलता का कार्य है।
युवा शायर फरहत अली खान ने कहा कि नवगीत अगर गीत की रिवायत को जदीदियत(आधुनिकता) का नया रंग देने का नाम है तो व्योम जी के नवगीत इस की अच्छी मिसाल हैं। ज़ाहिर है कि 'नया' कुछ नहीं होता बल्कि 'पुराने' का ही वर्तमान के आइने में नज़र आने वाला अक्स होता है। आप ने विषयों के तौर पर समाज के अंदर-बाहर के छोटे-बड़े पहलुओं को जिस तरह से चुन-कर, उन में निहित जज़्बात और उन से पैदा होने वाले असरात को आम-फ़हम शब्दों से बुन-कर सामने रखा है, वो क़ाबिल-ए-दाद है।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि तमाम संवेदनाओं को समेटे उनकी रचनाएं पाठकों व श्रोताओं से सीधी व सरल भाषा-शैली में वार्ता करती प्रतीत होती हैं। उनसे मुझ अकिंचन को भी भरपूर स्नेह व मार्गदर्शन मिलता रहा है। देश के श्रेष्ठ नवगीतकारों में से एक की रचनाओं का आज पटल पर आना हम सभी के लिए हर्ष का विषय है। निश्चित ही साहित्य-जगत में और अनेक ऊँचाईयाँ बाहें फैलाए आदरणीय व्योम जी की प्रतीक्षा कर रही हैं। ईश्वर से प्रार्थना है कि हम सभी उन ऐतिहासिक क्षणों के प्रत्यक्षदर्शी बन सकें।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि आदरणीय व्योम जी के प्रस्तुत गीतों की करें, तो ये सभी कल्पनाओं के व्योम से यथार्थ की जमीन पर उकेरे गए शब्दों के संयोजन हैं। व्योम जी के सभी नवगीत उत्कृष्ट साहित्य की बानगी भर हैं। इस व्योम में ऐसे असंख्य तारे हैं। मुझे विश्वास है कि उनकी चमक भी हम तक ऐसे ही किसी माध्यम से ज़रूर पहुँचेगी।
युवा समीक्षक डॉ अजीम उल हसन ने कहा कि व्योम जी के सभी नवगीत एक से बढ़ कर एक हैं। भाषा अत्यन्त सरल एवं व्यावहारिक है जिससे गीतों को पढ़कर मन बोझिल नहीं होता बल्कि सहजता से ये नवगीत मन में उतरते चले जाते हैं। कहने को तो ये नवगीत है परंतु इनकी जड़े हमारी प्राचीन भारतीय सभ्यता तथा परम्पराओं से जुड़ी हुई प्रतीत होती हैं।
युवा कवियत्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि व्योम जी निस्संदेह नवगीत की डगर पर सधे हुए कदमों से निरन्तर आगे बढ़ रहे हैं। उनके गीत मन को छूते हैं और समसामयिक विषयों पर गहरे तक झकझोरते भी हैं। व्योम जी को मैं एक मिलनसार, सहयोगी, हितैषी, मार्गदर्शक बड़े भाई के साथ साथ एक संवेदनशील, अध्ययनशील, साहित्य के प्रति जिज्ञासु और समर्पित व्यक्तित्व के रूप में जानती हूँ। मैं आश्वस्त हूँ कि हमारे मुरादाबाद से बड़े भाई श्री योगेन्द्र वर्मा व्योम जी निकट भविष्य में नवगीतकारों की उस पंगत में शामिल होंगे, जो साहित्य के इतिहास में स्वर्णिम आभा बिखेरने वाले हैं।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर  जिया जमीर ने कहा कि योगेंद्र वर्मा व्योम उन रचनाकारों में से हैं जिन्होंने कविता से अपना साहित्यिक सफ़र शुरू किया और फिर नवगीत के आकर्षण में बंध कर नवगीत की तरफ आ गए। नवगीत की तरफ वो रचनाकार ही आता है जिसे बेड़ियां तोड़ने की ख्वाहिश होती है। व्योम जी की परवरिश उनकी रचनाओं, उनके गीतों में साफ़ दिखाई देती है। वो रिश्तों की पासदारी में यकीन रखते हैं। रिश्तों को निभाना चाहते हैं। आख़िरी दम तक रिश्ते तोड़ना नहीं चाहते। तभी तो अपनी नवगीतों की किताब का नाम उन्होंने 'रिश्ते बने रहें' रखा। नवगीत होने के बावजूद इन गीतों में जो गहराई, जो ठहराव और शब्दों के चयन और उनका पंक्ति में फैलाने का जो सलीक़ा है, वह किसी भी तरह इन नवगीतों को परंपरागत गीत के स्तर से कम नहीं होने देता।

:::::::::प्रस्तुति:::::::::
-ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
"मुरादाबाद लिटरेरी क्लब"
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उत्तर प्रदेश, भारत
मो० 7017612289

वाट्स एप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक रविवार को हस्तलिखित वाट्स एप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है । बीती 26 जुलाई 2020 रविवार को आयोजित 212 वें आयोजन में शामिल साहित्यकारों रवि प्रकाश, श्री कृष्ण शुक्ल, मनोरमा शर्मा, मुजाहिद चौधरी , रामकिशोर वर्मा, कंचन लता पांडे, प्रवीण राही, सीमा रानी, सीमा वर्मा, राजीव प्रखर, अशोक विद्रोही, कमाल जैदी वफ़ा, त्यागी अशोक कृष्णम, संतोष कुमार शुक्ला , अशोक विश्नोई, दीपक गोस्वामी चिराग, डॉ पुनीत कुमार, अनुराग रोहिला, डॉ श्वेता पूठिया, प्रीति चौधरी, डॉ अशोक रस्तोगी, नृपेंद्र शर्मा सागर, डॉ ममता सिंह, डॉ मीरा कश्यप ,डॉ प्रीति हुंकार और डॉ मनोज रस्तोगी द्वारा हस्तलिपि में प्रस्तुत रचनाएं------




























मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता-----गिरावट


राजनीति में
पता नहीं कैसा भूचाल आया
शेयर बाज़ार बुरी तरह लड़खड़ाया
फिर मुंह के बल गिर गया
अख़बार वालो को
जश्न मनाने का मौका मिल गया
उन्होंने इस समाचार को
मुखपृष्ठ पर स्थान दिया
क्या करें,क्या ना करें
इस पर लंबा ज्ञान दिया
न्यूज़ चैनलों की तो जैसे
लॉटरी खुल गई
पूरे दिन चलाने को
सनसनीखेज न्यूज़ मिल गई
सोशल मीडिया ने भी
इस मुद्दे को हाथो हाथ लिया
विरोध और समर्थन के आधार पर
देशभक्त और देशद्रोही खेमों में
पूरे देश को बांट दिया
रुपए में गिरावट पर भी
निरर्थक बहस जारी है
शायद हम में इतनी ही समझदारी है

दूसरी तरफ
सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों में
जबरदस्त गिरावट है
हम सब मूक दर्शक बने बैठे है
ना कोई शोर शराबा है
ना कोई सनसनाहट है
राजनेताओं का चरित्र भी
बराबर गिर रहा है
हमको खुली आंख से भी
नहीं दिख रहा है
संसद में बोली जाने वाली भाषा
निम्नतम स्तर पर है
फिल्मों में कहानी
और कवि सम्मेलनों में कविता
वेंटिलेटर पर है
शिक्षा की गुणवत्ता का ग्राफ
बराबर नीचे जा रहा है
सब पैसा कमाने में व्यस्त है
किसी को समझ नहीं आ रहा है

ये सब मात्र एक झलक है
गिरावट जीवन में
जन्म से मृत्यु तलक है
हमने रामायण महाभारत गीता
और वेद पुराण जैसे शास्त्रों से
अपना नया तोड़ लिया है
केवल और केवल
अर्थ शास्त्र से खुद को जोड़ लिया है
हमारी सोच में भी
गिरावट आने लगी है
हम सब स्वार्थी हो गए है
और भौतिक प्रगति ही
हमको भाने लगी है।

डॉ पुनीत कुमार
T-2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद - 244001
M - 9837189600