गुरुवार, 24 सितंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा ------ निःशब्द अहसास


चाँद निकल आया...............

आसपास से आवाज़ आ रही थी,सब   विवाहित जोड़े पूजा करने अपनी अपनी छत पर थे।रागिनी अब भी एकटक चाँद को देख रही थी ।पहला करवाचौथ .........

शादी के जोड़े में वह दुल्हन की तरह सजी हुई राज का इंतज़ार कर रही थी ।हाथों में मेहंदी ,आँखो में काजल ,माथे की बिंदिया ,चूड़ियों की खनखन उसके मन को गुदगुदा रही थी ।आज उसने तैयार होने में कोई कसर नही छोड़ी .......

चाँद की रोशनी में रागिनी चाँद जैसी  ही लग रही थी...बहुत ख़ूबसूरत.......

चाँद को देखते हुए उसके लबों पर मुस्कराहट और आँखो में हया तैर रही थी .....

कार के हॉर्न की आवाज़ सुनते ही वह झट से नीचे आयी।राज फ़ाइल हाथ में लिए तेज़ी से कमरे की तरफ़ चले गये ।’बहुत भूख लगी है रागिनी ,खाना लगा दो ....

आज मीटिंग देर तक चली।’राज हाथ धोते धोते बता रहा था।’खाना तैयार है ,आज करवाचौथ है ,पहले चाँद को जल दे आते हैं ।’रागिनी जल्दी से लोटा लेकर छत की ओर चल दी ।

आउच...........रागिनी चिल्लायी ......

उसके पैर से ख़ून निकल रहा था .....

‘देखकर नही चल सकती तुम ।लगता है कुछ बहुत गहरा  चुभ गया है ।’राज रागिनी के पैर को देख रहा था।

‘सचमुच कुछ बहुत गहरा ही चुभा है ।’रागिनी ने मन में सोचा।

उसकी आँखो का काजल फैलता जा रहा था।

 ✍️प्रीति चौधरी

  गजरौला,अमरोहा

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल )निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा ----आईना


बार बार आईने में अपना सुंदर मुखड़ा देखकर अभिमान से फूली न समाने वाली शालिनी सड़क दुर्घटना में घायल हो गई उसके मुख पर काफी चोटे आयीं  अब वह आईने के सामने जाने से डरती है।

✍️कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'

प्रधानाचार्य, अम्बेडकर हाई स्कूल बरखेड़ा (मुरादाबाद)

सिरसी  (सम्भल)

9456031926

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में नोएडा )निवासी साहित्यकार अटल मुरादाबादी की लघुकथा ----मेहनत



नितिन और नीरज दो जुड़वां भाई थे।नीरज बहुत ही कुशाग्र बुद्धि का था जबकि नितिन पढ़ने में उससे उन्नीस था। लेकिन सामान्य शब्दों में कहें तो वह भी पढ़ने में ठीक ही था। कुशाग्र बुद्धि का होने के कारण नीरज को अपने ऊपर जरुरत से अधिक विश्वास था। इसलिए वह खूब मौज-मस्ती करता रहता था और अधिकतर समय खेलने में गुजार देता था जबकि नितिन अपना अधिक समय पढ़ने में लगाता था। लेकिन कक्षा आठ तक नीरज हमेशा अधिक अंक लाकर उससे बाजी मार लेता था। नितिन ने  कभी हिम्मत नहीं हारी और संकल्प के साथ मेहनत से लगातार पढता रहा।इस तरह दोनों ने नौंवी की परीक्षा उत्तीर्ण कर दसवीं में, एहल्कान पब्लिक स्कूल दिल्ली में प्रवेश ले लिया। दोनों अपनी अपनी पढ़ाई,पूर्व की तरह ही करते रहे।एक दिन आया सुबह-सुबह दसवीं का परीक्षा फल घोषित किया जाना था। नितिन सुबह से ही परीक्षा फल का इंतजार कर रहा था और नीरज पार्क में खेलने चला गया।लगभग दस बजे परीक्षा फल घोषित हुआ। नितिन दौड़ कर नीरज को बुलाने गया।नीरज ने अपने पुराने अंदाज में कहा- "क्यों अफरा-तफरी कर रहा है,तेरे अंक तो मेरे से कम ही होंगे"। लेकिन घर आकर जब देखा तो नितिन अधिक अंक लाकर बाजी मार चुका था।

उसके मुंह से अनायास निकला "ओह"

✍️ अटल मुरादाबादी

९६५०२९११०८

बुधवार, 23 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ---- एक सच


मानसी एक प्राइवेट विद्यालय मे शिक्षिका है।वेतन भी ठीक है।पूरा परिवार पढालिखा है।पति भी सरकारी इंजीनियर है।मगर आज मानसी को समझने वाला कोई नहीं।थककर उसने नारी शक्ति केन्द्र को फोनकर मिलने का समय लिया।अध्यक्षा महोदया बोली,"अपनी समस्या बताओ"?मानसी बोली,"मै मां बनने वाली हूँ।मेरी एक बेटी है ।उसके बाद दो बार मेरा मातृत्व छीना जा चुका है।पुत्र की चाह मे मेरे अंश का कत्ल किया जा चुका है।बहुत सी महिला डा. आज भी इस कार्य मे संलग्न है।पर इसबार मै नहीं चाहती कि मेरा मातृत्व मुझ से छीना जाये।अभी वह भ्रूण मात्र है फिर भी मै उससे बहुत प्यार करती हूँ।मन ही मन उसे लोरियाँ सुनाती हूँ।,काजल का टीका लगाती हूँ, मै उसके कोमल स्पर्श कोमहसूस करती हूँ।मैउसे खोना नहीं चाहती।"

अध्यक्षा महोदया बोली,"परिवार से बात की?पति को समझाया?"

मानसी बोली,"जी सब करके थक चुकी हूँ।विरोध पर तलाक देने की धमकी देते है।विधवा मां के अतिरिक्त कोई नहीं है।अब इस उम्र मे इस दुख से वो टूट जायेगी।मेरा भी वेतन इतना नहीं कि सबका काम अच्छे से चल जायेगा।इसीलिए कुछ ऐसा करिए कि परिवार भी बचा रहे और बच्चा भी"।

अध्यक्षा की चुप्पी उसे परेशान कर रही थी।यह सोचकर वह परेशान थी कि पढे लिखे लोगो की सोच ऐसी है तो अनपढों को क्या समझाये मगर फिर  बोली,"डाक्टर के यहाँ कब जाना है"?मुझे फोन कर देना मै वहां मिलूगी।"

मानसी के चेहरे पर मुस्कान खिल गयी।

✍️डा.श्वेता पूठिया, मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी----पासा

   एक दिन रमेश के पास उसके बड़े भाई अजय का फोन आया,  हालचाल जानने के पश्चात अजय ने रमेश से कहा "तुम तो गांव में रहते हो वहां पढ़ाई के लिए कोई अच्छा स्कूल भी नहीं है , लिहाजा अपनी बेटी रमा को मेरे पास पढ़ने के लिए भेज दो , मेरी भी कोई बेटी नहीं है मुझे भी बेटी का सुख मिल जाएगा" यह सुन रमेश अति प्रसन्न हुआ कि उसके बड़े भाई उसका कितना ख्याल रखते हैं । घर में पत्नी से मंत्रणा कर रमेश ने अपने बेटे विनय  के साथ रमा को अजय के घर छोड़ने के लिए भेज दिया , घर पहुंचते ही ताई जी ने विनय से पूछा कैसे आना हुआ सब खैरियत तो है । यह सुन विनय को बड़ा  अचरज हुआ कि अजय ताऊ जी ने घर पर कुछ नहीं बताया था । लेकिन फिर भी विनय ने ताई जी से कहा मैं रमा को आपके घर छोड़ने के लिए आया हूं ,ताकि यह शहर में पढ़ाई कर सकें । ताई जी विनय की बात सुन , चुप हो गई । चाय पानी के पश्चात ताई जी विनय से बोली चलो थोड़ा सैर कर आते  हैं सेहत के लिए अच्छी होती है । विनय ने हामी भर दी और उनके साथ सैर करने  चला गया । रास्ते में ताई जी ने विनय से कहा तुम्हारे ताऊजी की तुम्हारे पापा से क्या बात हुई मुझे नहीं पता , रमा यहां पर रहे मुझे इस पर कोई एतराज नहीं है , मगर मैं तो बस इतना कहना चाहती हूं कि लड़की जात है अगर कोई ऊंच-नीच हो गई तो मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी । ताई जी अपना "पासा" फेंक चुकी थी, विनय भी काफी समझदार था वह उनका मतलब अच्छे से समझ गया था । वह चुप रहा और घर आकर रमा से बोला चलो वापस घर चलते हैं ,  इस वर्ष स्कूलों में सभी सीटें फुल हो गई हैं अगले वर्ष एडमिशन की पुनः कोशिश करेंगे ।

✍️विवेक आहूजा 

बिलारी 

जिला मुरादाबाद 

@9410416986

Vivekahuja288@gmail.com

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा --- भिन्नता


"बाबूजी हाथ छोड़िए और अंदर जाइए l" विजय ने बुरा सा मूँह बनाते हुए कहा और अपनी चमचमाती गाड़ी की तरफ मुड़ गया l

उधर बाबूजी खड़े खड़े अपनी अंगुलियों को देख रहे थे.

"जिन अंगुलियों को पकड़कर बेटे को चलना सिखाया, वही हाथ पकड़कर आज उनको वह वृद्ध आश्रम में छोड़ आया l

✍️राशि सिंह, मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की लघुकथा ---बेटा या बाप-


अरे तुम सुनते ही नहीं हो, अपनी चलाये जा रहे हो, जैसा मैंने बताया वैसा करो, रामबाबू क्रोध में अपने जवान पुत्र पर चिल्लाये। 

ठीक है, अगर कुछ गड़बड़ हुई तो मुझसे मत कहिएगा, बड़बड़ाता पैर पटकता हुआ उनका पुत्र चला गया।

आप को लल्ला से ऐसे बात नहीं करनी चाहिए,  अब वह बच्चा नहीं है बल्कि बच्चों वाला है, पानी का गिलास देते हुए  उनकी पत्नी ने उन्हें समझाया ।

अरे तुम कैसी बात करती हो, कितना ही बड़ा हो जाये, मेरा तो बेटा ही रहेगा बाप थोड़े ही हो जायेगा, रामबाबू बोले।

तभी भीतर से बाबूजी की आवाज आई: अरे बेटा मेरा च्यवनप्राश खत्म हो गया है, लल्ला से कहकर मँगवा देना।

लो अब इनकी सुनो, अरे, पहले से क्यों नहीं बताया, अब वह चला गया तो कह रहे हो। अब दो तीन दिन ऐसे ही काम चलाओ। रामबाबू चिल्लाये ।और बाबूजी चुपचाप उनकी ओर देखते रह गये।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल

MMIG - 69,

रामगंगा विहार, मुरादाबाद ।

मोबाइल 9456641400

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघुकथा -----माफ करना भैया

         


तांगा एक आलीशान कोठी के सामने आकर रुक गया।सवारी उतरी और बैग लेकर कोठी के अंदर जाने लगी तभी तांगे वाले ने टोकते हुए कहा भाई साहब मेरे पैसे तो देते जाइये।सवारी ने दो हज़ार का नोट दिखाते हुए कहा भाई छुट्टे नहीं हैं, थोड़ा ठहरो अंदर से लाकर देता हूँ।सवारी बैग लेकर अंदर चली गई।

       तांगे वाले को खड़े-खड़े दस मिनट हो गए परंतु भाई साहब नहीं लौटे।शायद किसी काम में लग गए होंगे थोड़ी देर और देख लेता हूँ।आधा घंटा बीतने पर तांगे वाले ने घंटी का बटन दबाया और कुछ क्षण इंतज़ार किया।तभी दरवाज़ा खुला और वही सज्जन बाहर निकले ।तांगे वाले को देखकर अवाक रह गए और बोले  भाई मुझे माफ़ करना मैं अंदर जाकर कुछ काम में लग गया मुझे यह ध्यान ही नहीं रह कि तुम्हारे पैसे भी देने हैं।

     तुमने इतना इंतज़ार ही क्यों किया पहले ही घंटी बजा दी होती।जल्दी से तांगे वाले को पैसे देकर पुनः क्षमा मांगते हुए बोले भाई इसे दिल पर मत लेना।

         तांगे वाले ने भी सहजता पूर्वक कहा कोई बात नहीं भाई साहब ऐसा हो जाता है।आप बहुत अच्छे हैं सर,,,,कहते हुए 

तांगा लेकर चला गया।

        


                वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                  मुरादाबाद/उ,प्र,

                  9719275453

       दिनांक- 02/09/2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रागिनी गर्ग की लघुकथा ----तेरी भी चुप मेरी भी चुप

 

देर से आई मेहरी को देखते ही सीमा विफर पड़ी 

 "रानी आज कहाँ मर गयी थी?और यह तेरे चोट कैसे लगी हैं?"

 "बीबीजी मैं  फिसल गयी तो चोट लगी हैंl" रानी ने बर्तनों को धोते हुए कहा. 

"यह तो पीटने के निशान है किसने मारा तुझे?"

सीमा उसके चेहरे पर नजरें जमाते हुए बोली 

रानी फफक-फफक कर रो पडी़ और रोते हुए बोली, "बीबीजी मेरे मर्द ने शराब पीकर मारा।"

 "तलाक काहे नहीं  दे देती ऐसे नामर्द को जो औरत पे हाथ उठाता है?" सीमा गुस्से में बोली. 

बीबी जी के चेहरे पर उँगलियों। की छाप देख रानी ने भरे गले से कहा, "बीबी जी शायद आप भी आज  फिसल गईं थीं "

 रानी से इतना सुनते ही सीमा आँख में  आँसू भर लाई रानी को गले लगा कर बोली,"हम औरतें  घर की लाज हैं रनिया"।


रागिनी गर्ग, रामपुर, यूपी

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा --- समय


    "" मारो ! इनको पता नहीं, कहाँ- कहाँ से से चले आते हैं परेशान करने----। मगर हजूर यह तो आप की प्रजा है रामू ने कहा।" 

        " वो क्या होती है रे-----?" 

   " हजूर वहीं जिसके बल पर आप राज कर रहे हैं---।" 

       एक कटु मुस्कान के साथ " हूँ ------राज  कर रहे हैं। सुनो रामू , हम राज इनके बल पर नहीं, चाटुकारिता के बल पर कर रहे हैं, समझे।" 

✍️ अशोक विश्नोई,  मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की लघुकथा ---- गहरी नींद

"सटाकsssss ........." की आवाज़ के साथ उस रईसजादे की ठोकर से, फुटपाथ पर गहरी नींद में डूबा पड़ा मल्लू सकपका कर उठ गया।

"फिर किसी ससुरे ने सोते से उठा दिया,  कम से कम मुझे भरपेट खाने तो देता ..........",  गहरी नींद से उठ बैठा मल्लू बड़बड़ाये जा रहा था।

-✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद

मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की लघुकथा -- रामराज

..........कल इंटरव्यू है अस्पताल में 25 वैकेंसी  हैं।

 " कैसी तैयारी कर रखी है ?"प्रमोद जी ने पूछा

"तैयारी तो खूब अच्छी की है..... परंतु...!"मनीष के स्वर में लाचारी और झिझक थी ।

"परंतु क्या ?"

"पैसा चल रहा है !" और वह भी 5 लाख से ज्यादा !

"फिर"??

"मंत्री जी से सिफारिश लगवाई है.....

 बहुत सुना था अब रामराज है".... "शाम को फोन पर बताएंगे ....क्या हो सकता है? "मनीष ने पूरी व्यथा कथा कह डाली....!

       ..... शाम को मंत्री जी से फोन पर बात हुई उन्होंने कहा "मुबारक हो काम हो जाएगा.... बड़ी मुश्किल से तैयार हुए  हैं...इंटरव्यू वाले 10 मांग रहे थे तुम्हारी मेरिट अच्छी है इसलिए मैंने साफ कह दिया 8 से ज्यादा नहीं मिलेंगे !.... अब मिठाई की तैयारी करो ....! तुम्हारी नौकरी पक्की ...!!"

      मनीष के तो होश ही उड़ गए । दुनिया घूमती हुई नजर आने लगी  !  फिर सोचने लगा आखिर किस्मत भी तो कोई चीज है !

.......... इंटरव्यू बहुत शानदार रहा..... परंतु मनीष की हालत आठ लाख जुटाने की नहीं थी..... सेठ धनराज के लड़के मनोज ने भी इंटरव्यू दिया था.. परंतु वह इंटरव्यू फेस नहीं कर पाया..!. मेरिट में भी वह सबसे नीचे था...........

     ..... मंत्री जी का फोन आया मनीष की हिम्मत नहीं हुई  ...... बात करने की....... !!

....मंत्री जी से अच्छा तो ठेकेदार संजय था जिसने 5 की डिमांड की थी....!

       .....ये क्या ?.... परिणाम आ चुका था.. मनोज घूम घूम कर मिठाई बांट रहा था.......और......मनीष बार-बार अखबार पलट कर देख रहा था उसका कहीं नाम नहीं था..........!!

                 

,✍️अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर,  मुरादाबाद

82 18825 541

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेन्द्र शर्मा सागर की लघुकथा ----- नर पिशाच


 "अरे! देखो ये पिशाच लड़के को खा रहा है, उसका खून पी रहा है",

जमा होती भीड़ में से कोई चिल्लाया।

लड़के के जिस्म पर झुके उस आदमी ने झटके से अपना सर ऊपर उठाया,

उसके मुँह से खून टपक रहा था और उसके हाथों ने लड़के के पैर को पिंडली पर कसकर पकड़ा हुआ था। उसने इस जुटती हुई भीड़ को उपेक्षा से देखा और फिर अपना मुँह लड़के की पिण्डली से बहते खून पर लगा दिया।

"तेरी इतनी हिम्मत शैतान-नर पिशाच!! कि तू हमारे बेटे का खून पिये", कहकर ठाकुर साहब ने पिस्तौल निकाली और धाँय!! धाँय!!! दो फायर उस आदमी की खोपड़ी में झोंक दिए।

"अब आपका बेटा खतरे से बाहर है ठाकुर साहब, उसे बहुत जहरीले नाग ने डसा था लेकिन भला हो आपके उस शुभ चिंतक का जिसने अपने दाँतों से डंक वाले स्थान को काटकर उसका खून निकाल दिया जिसके साथ लगभग सारा जहर भी बाहर निकल गया। वर्ना हम आज आपके बेटे को नहीं बचा पाते।

वैसे वह शख्स किस हालत में है जिसने ये जोखिम उठाया? क्या वह आपका कोई खास परिचित है?", डॉक्टर साहब बोलते जा रहे थे और ठाकुर साहब का शरीर सुन्न होता जा रहा था।

अचानक ठाकुर साहब ने अपने सर पर हाथ रखा और जमीन पर बैठ गए। उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे।

✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"

ठाकुरद्वारा मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा ----- वास्तविक सोच

  मेरे बेटे रोहन ने एक स्वनिर्मित चित्र मेरे सामने लाकर रख दिया ...। इस चित्र में उसने अपनी मां को आठ हाथों के साथ दिखाया है ... पहले हाथ में किताब, दूसरे हाथ में बर्तन, तीसरे हाथ में छोटे बच्चे (शायद रोहन खुद को दिखाना चाहते हो), चौथे हाथ में छोटी बहन, पांच हाथ में। पापा, छठे हाथ में घर, सातवें हाथ में कार्यालय, और आठवें हाथ में घड़ी ... उसे देखकर ही सुबह का वाकया मेरी आँखों के सम्मुख छा गया। 

जब बेटे रोहन ने आज दुर्गा नवमी पर पूजा के दौरान मां दुर्गा की प्रतिमा को देखकर मुझसे पूछा "पापा हम सभी के दो- दो हाथ, पर माता दुर्गा के आठ हाथ, ये तो झूठ है ... ऐसा नहीं हो सकता है ना!" पापा "। मैं उसकी बात सुनकर स्तब्ध रह गया था और बोला कि ... 

"बेटा तुम देखो, मां दुर्गा ने अपने सभी हाथों में अलग-अलग चीजें धारण कर रखी हैं। इन सभी चीजों में, मां दुर्गा पार्वती हैं"। 

"क्या हुआ पापा?" बेटे ने आवाज दी तो मेरी तन्द्रा भंग हुई मैंने उसे गले से लगा लिया और पत्नी की ओर प्रेम से देखकर मुस्करा भर दिया।

✍️ प्रवीण राही, मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की लघुकथा ---- बधाई


        "बधाई हो गर्ग साहब ! अब तो लॉकडाउन समाप्त होने की दिशा में है। होटल में समारोह करने की अनुमति भी मिलने वाली है । हमारा बिज़नेस फिर से शुरू हो जाएगा । "
          "सही कहा आपने गोयल साहब ! कई महीने से काम - धंधा बंद था । कोई शादी -ब्याह- बरात होटल में नहीं हुई ।खर्चे ज्यों के त्यों मगर आमदनी जीरो । भगवान ने सुन ली । अब समारोह होंगे और खुशियाँ वापस लौट आएँगी ।"
          " तो फिर खुशी में एक धन्यवाद - पत्र अखबार में प्रकाशित कर दिया जाए ? क्या राय है आपकी ?"
        "जरूर -जरूर ! क्यों नहीं गोयल साहब ?  इतना बड़ा अवसर हम लोगों को मिला है । जनता तक संदेश तो जाना ही चाहिए । "
       "ठीक है । मैं इंतजाम कर देता हूँ।"- कहकर गोयल साहब जाने लगे , मगर जाते-जाते फिर पलटे और मुस्कुरा कर पूछा " गर्ग साहब ! अब तो आप अपने पोते की बर्थडे धूमधाम से होटल में मना सकेंगे ?" -सुनकर गर्ग साहब डर से काँपने लगे । बोले - "कैसी बातें कर रहे हो ? लॉकडाउन रहे या न रहे, लेकिन बीमारी तो अपनी जगह ज्यों की  त्यों है , बल्कि बढ़ रही है । यह समय क्या समारोह करने का है ? 
        इतना सुनकर गोयल साहब रहस्यमय ढंग से मुस्कुराए और बिना कुछ कहे चले गए ।

✍️ रवि प्रकाश 
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451_

मंगलवार, 22 सितंबर 2020

वाट्सएप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। मंगलवार 25 अगस्त 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ अनिल शर्मा अनिल, अशोक विद्रोही, रवि प्रकाश, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, सीमा रानी, श्री कृष्ण शुक्ल , राजीव प्रखर,राम किशोर वर्मा , डॉ पुनीत कुमार, डॉ प्रीति हुंकार ,मनोरमा शर्मा, नृपेन्द्र शर्मा सागर, डॉ श्वेता पूठिया और दीपक गोस्वामी चिराग की बाल कविताएं -------

क्यों घर रोका?

इतने दिन हो गए मम्मी जी
कोरोना के नाम पर।
घर में बंद हुए हम बच्चे
जाएं बड़े सब काम पर‌।।
कब स्कूल खुलेंगे अपने,
कब जाएंगे हम बाहर?
घर के भीतर रहते रहते

अब बोरिंग लगता है घर।
वहीं गेम सब,वहीं किताबें
वहीं रुटीन, वहीं खाना।
सच कहते हैं मम्मी जी हम
अब चाहते बाहर जाना।।
सिर में दर्द,जलन आंखों में
आनलाइन पढ़ते पढ़ते।
कुछ समझे,सब समझ न पाए
नया नहीं कुछ भी गढ़ते।
बस एक बात बता दो मम्मी,
बच्चों को क्यों घर रोका?
कोरोना का डर है सच में,
या इसमें कोई धोखा।
बेटा! सही कह रहे हो तुम,
सचमुच हो जाते हो बोर।
लेकिन इतनी बात समझ लो,
कोरोना का चल रहा दौर।।
बंद सभी स्कूल और कालेज,
रहो सुरक्षित अपने घर।
इसमें कोई नहीं है धोखा,
बस कोरोना का ही डर।
जितनी कर सकते आराम से
बस उतनी ही पढ़ाई करो।
ठीक ठाक सब हो जाएगा
बेटा बिल्कुल नहीं डरो।
पापाजी की ड्यूटी जारी,
इसलिए करते रोज सफर।
जनता की स्वास्थ्य सेवा में
लगे हुए सभी डॉक्टर।
बेटा,विषम परिस्थितियां हैं,
करना होगा समझौता।
वक्त बदल जाएगा यह भी,
सदा एक सा न होता।

✍️डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर,उत्तर प्रदेश
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बच्चों तुम चलते चलो, ले आशा के दीप।
ले जायेंगे लक्ष्य के, तुमको यही समीप।।

साहस रख बढ़ते चलो, अन्धेरे को चीर।
पथ अपना है ढूँढता, जैसे नदिया-नीर।।

साया तम का है घना, मेरे चारों ओर।
कोई ऐसी राह हो, दिखा सके जो भोर।

मेरे मन ले चल मुझे, अब उस पथ की ओर।‌
चल कर जिस पर पा सकूँ, मैं मंज़िल का छोर।।

उड़ तू नभ की ओर अब , अपना ढूँढ जहान
मिल जाएगा  लक्ष्य भी , भरकर नयी उड़ान
                    
✍️ प्रीति चौधरी
गजरौला,अमरोहा
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नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा
           छुट्टी में जब हम हैं जाते
           नाना नानी खुश हो जाते
           अपनी बहुत प्रतीक्षा करते
           दोनों प्यार बहुत हैं करते
           मैं नानी की राजदुलारी
          और भैया है राज दुलारा
नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा
           नानी के घर दो गैया हैं
           एक बहना और एक भैया है
           मामा रोज जलेबी लाते
           सब मिल दही जलेबी खाते
           उधम मचाते कभी झगड़ते
           खाते कसम ना आएं दोबारा
नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा
           नहर किनारे बसा गांव है
           शुद्ध हवा और धूप छांव है
           नाना संग खेत पर जाते
           नलकूप के पानी में नहाते
           फिर बागिया से अमियां लाते
          अजब खेत और ग़ज़ब नज़ारा
नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा नाना
         पर इस बार नहीं जा पाए
         कोरोना ने होश उड़ाए
         बहुत भयंकर बीमारी है
         घोषित हुई महामारी है
         अखिल विश्व इससे है हारा
          पूछो मत कितनों को मारा
नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा
        अबकी अरमां मिल गए माटी
        सारी छुट्टी घर में काटी
        कोरोना से सब हैं बेदम
        केवल घर में कैद हुए हम
        ऊब गये हैं पढ़ते पढ़ते
        होते बोर रहे दिन सारा
नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा
       मिलने से मजबूर हो गए
       नाना-नानी दूर हो गए
       हे प्रभु अब तो दया दिखाओ
       कोरोना को मार भगाओ
       दुखी हो रहे नाना नानी
       निशदिन रस्ता तकें हमारा
नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा
  
अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
82 188 25 541
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कोरोना  से   फायदा ,सुन  लो   मेरे   यार
हम बच्चों को मिल गया ,मोबाइल उपहार
मोबाइल   उपहार ,ऑनलाइन   अब पढ़ते
पढ़कर  ढेर  सवाल ,रोज  उत्तर  हम गढ़ते
कहते रवि कविराय ,मजा यह हमें न खोना
अच्छा तिरछा - लाभ ,दिया  तुमने  कोरोना

✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर ,उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451
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सड़  जाएंगे  दांत   तुम्हारे
ज्यादा   मीठा  मत  खाना
दर्द   करेगा,  मुँह   सूजेगा
बहुत     पड़ेगा   पछताना।

नींद  नहीं  आएगी  तुमको
मुश्किल   होगा   सो  पाना
टॉफी,चॉकलेट का तुम पर
यही      लगेगा     जुर्माना।

जब भी मीठा दूध पियो तो
दाँत  साफ   करके   आना
कोई फिर कुछ दे खाने को
लेकिन कुछ भी मत खाना।

बच्चो कुछ पाने की खातिर
कुछ  तो  पड़ता   है  खोना
पिज्जा, बर्गर, टॉफी सबसे
कहना  पड़ता  है, अब  ना।

अच्छे बच्चे  सभी बड़ों  का
सदा     मानते   हैं    कहना
तभी  हमेशा   सुंदर  दिखते
लगते  घर  भर  का  गहना।

टीना,  टीनू,   तरु,   हिमानी
पंकज  असमी  और   मोना  
मोती   जैसे  दांतों  के   संग
तुम   खुलकर  के  मुस्काना।

वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
मो0---   9719275453
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प्यारे बच्चाें ये सुंदर जीवन,
निराश कभी नही हाेना है |
कभी खुशी मिले यहाँ पर,
तो दुख भी हँसकर सहना है |

सुबह नरम व दाेपहर गरम ,
कभी रात चाँदनी हाेती है |
जी भर खाना मौज मनाना,
प्यारा ऐसा बचपन हाेता है |

कभी उछलना कभी कूदना,
सबकाे जी भर मस्ती देता है |
प्यार -दुलार सबकाे भरपूर ,
क्याें लौटकर फिर नही आता है?

✍🏻सीमा रानी
अमराेहा
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बंद घरों में पड़े बीतती अपनी सुबहो शाम।
मोबाइल में ही हो जाते अब तो सारे काम।।
खेल कूद पर भी पाबंदी कैसे दिन बेकार ।
अब तो मुश्किल लगता है ये हर पल का आराम ।

याद बहुत आता है वो टीचर का हमें डपटना।
उत्तर याद नहीं आये तो मुँह में थूक गटकना।।
इंटरवल में सबका मिलकर हल्ला गुल्ला करना।
एक दूजे के लंच बॉक्स से खाना साझा करना।

जी करता है कोरोना जी जल्दी से मिट जायें।
हम पहले की भाँति रोज विद्यालय में जा पायें।
और शाम को रोज पार्क में जाकर खेलें कूदें।
वीक एंड पर पापा के संग पुनः घूमने जायें।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG-69, रामगंगा विहार,
मुरादाबाद ।
मोबाइल  9456641400
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देखो हम बच्चों की प्यारी,
नानी ज़िन्दाबाद।

राजा-रज़िया-बिन्दर-असलम,
सारे उनको प्यारे।
सबको हँसकर बड़े प्रेम से,
आकर रोज सँवारे।
करती रहती सबके सुख की,
भगवन से फ़रियाद।
देखो हम बच्चों की प्यारी,
नानी ज़िन्दाबाद।

प्रात: उठकर सबसे पहले,
आकर हमें जगाती।
पास बिठाकर फिट रहने के,
नुस्खे खूब बताती।
हम पौधे हैं पाते उनसे,
ममता रूपी खाद।
देखो हम बच्चों की प्यारी,
नानी ज़िन्दाबाद।

✍️ राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
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इतना नीर कहांँ से आता
बादल कैसे जल बरसाता?
ग्रीष्म के ही बाद क्यों आता?
आता है; क्यों झड़ी लगाता ?

नदी-नालियां भर जाते हैं
सड़कों पर जल ही पाते हैं ।
शहरों का तो हाल बुरा है
बीच नदी ज्यों तना खड़ा है ।।

अति वर्षा जब हो जाती है
नदी-बांँध भी उफनाती है ।
बहता है जब इनका पानी
याद दिला देता है नानी ।।

खेत-गांँव सब पानी-पानी
पशु-पक्षी करते हैरानी !
जान-माल पर भी बनती है
वर्षा इतनी क्यों पड़ती है ।।

टी वी वाले बाढ़ दिखाते
दृश्य देखकर मन घबराते ।
घर-पहाड़ पानी में ढ़हते
दिल पर पत्थर रख सब सहते ।।

इतनी वर्षा मत बरसाओ
इन्द्रदेव अब दया दिखाओ ।
मात -भूमि कुछ जल को पी लें
जीव-जंतु तब सुखमय जी लें ।।

✍️राम किशोर वर्मा
रामपुर
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मम्मी मम्मी,प्यारी मम्मी
क्या दोगी मुझको उपहार

जन्मदिन आता है मेरा
पूरे एक साल के बाद
लेकिन तुमको ना जाने क्यों
कभी नहीं रहता है याद
बहुत हो गया, अब तो छोड़ो
अपना क्लबों का संसार

नहीं चाहिए नौकर आया
नहीं चाहिए कोर्इ खिलौना
नहीं चाहिए चॉकलेट भी
और ना ये मखमली बिछौना
ममता की गोदी मिल जाए
मिल जाए थोड़ा सा प्यार

✍️ डॉ पुनीत कुमार
T - 2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद - 244001
M - 9837189600
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मिठ्ठू तोता पिंजड़े में भी ,
सबका जी  बहलाता है ।
सुबह आम की गुठली भाय,
शाम को काजू खाता है ।
घर में जब मेहमान पधारें ,
यह कहता है राम राम ।
बिन पूंछे ही सबसे कहता ,
मिठ्ठू मेरा प्यारा नाम ।
जब कोई पकवान बने तो ,
माँग माँग के खाता है।
मिठ्ठू****
मिठ्ठू और पटे की बोली,
लगती उसके मुख से प्यारी ।
लाल चोंच और हरे पंख से ,
उसकी सूरत सबसे न्यारी ।
बच्चों की जब डांट पड़े तो ,
उनकी नकल बनाता है ।
मिठ्ठू******

✍️डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद
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बारिश ,बादल ,मस्त पवन सब
मन मर्जी के मालिक हैं
मैं ही बस खिड़की से झांकू
सूना मन घर सूना है ।

पीटर के घर एक बहन है
सुन्दर गुड़िया ,जादू सी
बहुत चार्मिंग मुझको लगती
वो क्यूट डाॅल बार्बी सी ।

रोली चावल माथे टीका
बांधे राखी मेरे भी
मैं सारी चाकलेट दे दूँ
गोलू मोलू हाथी भी ।

चहक चहक कर चिड़िया है खुश
ये डाॅगी मस्ताना भी
मैं ही बस इकलौता बालक
घर में बंद खिलौना सा ।

दादा-दादी नाना -नानी
सबको ढूंढू भोला सा
मन कहता है मेरा भी हाँ
सबके बीच रहूं मैं अब।

मम्मी अपने ऑफिस जातीं
फिर डैडी जी भी जाते
मैं ही बस रह जाता घर में
और काका जी सो जाते ।

तड़ -तड़ करके बारिश होती
काले बादल घिर आते
ठंडी -मस्त हवा भी चलती
पर मुझको तनिक न भाते ।

✍️मनोरमा शर्मा
अमरोहा
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रोज सुबह तुम जल्दी जागो।
तितली के पीछे मत भागो।
साफ सफाई का हो ध्यान।
मल-मल नित्य करो स्नान।।

प्रभु के चरणों में सिर नवाओ।
हँसते-हँसते पढ़ने जाओ।
पढ़ लिख कर तुम बनो महान।
ऊँची रखना देश की शान।।

आपस के सब द्वेष भुलाकर।
चलना सबको साथ मिलाकर।
बढ़े पिता माता का मान।
मिले तुम्हे अच्छी पहचान।।

कभी किसी को नहीं सताना।
सच्ची सदा ही बात बताना।
लेकिन ना करना अभिमान।
सबका करना तुम सम्मान।।

मानवता के हित के काम।
इनमें मत करना विश्राम।
सदा बढ़ाना अपना ज्ञान।
इसको निज कर्तव्य मान।।

✍️नृपेन्द्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद
9045548008
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छोटी सी चिडिय़ा फुदक फुदक कर उडना चाहती है.
पिंजरे में न बान्धो मुझको यह कहती जाती है।
मुझको उडना है दूर दूर तक
क्षितिज तक जाना है जरूर
मेरी स्वत्रंता है अमूल्य
मेरा है न कोई मूल्य।

✍️श्वेता पूठिया
मुरादाबाद
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बच्चो! राष्ट्रीय-फल मैं आम।
मुझको खाते मिट्ठू राम।
वैसे मेरा नाम है *आम*।
बहुत खास हूँ ,न बस आम।

खट्टा-मीठा रस है मुझमें।
सौ से ज्यादा मेरी किस्में।
दशहेरी,चौसा और लंगड़ा।
खाता जो करता है भंगड़ा।

मुझको काली-कोयल खाती।
खाकर मीठा गाना गाती।
सब फल का मैं ही हूँ राजा।
रस मेरा है ताजा-ताजा।
देखो! मुख में आया पानी।
खाओगे होगी हैरानी।

,✍️ दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिव बाबा सदन,कृष्णा कुंज
बहजोई (सम्भल) पिन-244410
मो. 9548812618
ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com

संस्कार भारती मुरादाबाद की ओर से रविवार 20 सितंबर 2020 को आयोजित हिन्दी साहित्य महोत्सव में प्रस्तुत विभांशु दुबे, इला सागर रस्तोगी, पिंकेश चौहान, अभिषेक रुहेला, प्रवीण राही, नृपेंद्र शर्मा सागर, रानी इंदु , प्रशांत मिश्र, ईशांत शर्मा ईशु, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ , डॉ रीता सिंह, मयंक शर्मा , मीनाक्षी ठाकुर, रश्मि प्रभाकर, मोनिका मासूम , हेमा तिवारी भट्ट , डॉ ममता सिंह, राजीव प्रखर, मुजाहिद चौधरी, कृष्ण शुक्ल , डॉ एमपी बादल जायसी, डॉ मनोज रस्तोगी, योगेंद्र वर्मा व्योम , अशोक विद्रोही , डॉ मीना कौल, डॉ पूनम बंसल अशोक विश्नोई , अमित कुमार सिंह, डॉ सतीश वर्धन जी, बाबा कानपुरी जी और संजीव आकांक्षी की रचनाएं------


(1)
भारत  की  भाषा  हिन्दी  है
जन-जन की आशा हिन्दी है
यह नहीं मिटाये मिट सकती
यह जननि भाल की बिंदी है

(2)
आओ बात करें भारत में हिन्दी के सम्मान की
आओ मिलकर शपथ उठाएं हिन्दी के उत्थान की
देख के दुनिया की भाषाएं हमको ये ही लगता है-
सबसे सुंदर सबसे प्यारी हिन्दी हिदुस्तान की ।।

✍️ अशोक विश्नोई
      मुरादाबाद
     मो० 9411809222

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हिंदी का सम्मान करें हम, हिंदी अपनी शान है।
भारती के भाल की बिंदिया, हम सबका अभिमान है।।

सहज सरल है अनुपम है ये, शब्दों का गहरा सागर।
इसके अंग अंग से देखो, भावों की छलके गागर।
सम्प्रेषण का मधुर प्रसाधन, मीठी बहुत जुबान है।।

है वैज्ञानिक भाषा हिंदी, नियमों से अभिसार करें।
सजी हुई है अलंकार से, छंदों से श्रृंगार करें।
संस्कृति की बनती है पोषक, गीतों का प्रतिमान है।।

सबसे ज्यादा समझी जाती, दुनिया में बोली जाती।
फिर न जाने क्यूँ कर के यह, इंग्लिश से तोली जाती।
हिंदी को जो हीन समझता, वो तो बस नादान है।।

क्यूँ हो एक दिवस हिंदी का, इस पर भी कुछ ध्यान करें।
हर दिन हर पल हो हिंदी का, ऐसा अब अभियान करें।
मानवता को मिला हुआ यह, शारद का वरदान है।।
भारती के भाल की बिंदिया, हम सबका अभिमान है।

✍️डॉ पूनम बंसल
10, गोकुल विहार
कांठ रोड, मुरादाबाद
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जिंदगी आजकल
कोरोना के खौफ में गुजर रही है
  हर कदम पर बीमारी
  एक नयी साजिश रच रही है।
  वायरस के बोझ से
  हर व्यवस्था कुचल रही है
  निर्दोषों की चीख से
  मानवता भी दहल रही है।
  महामारी की आग में
  हर इच्छा ही जल रही है
  दूर देश से उठी आग
  कितनी साँसें निगल रही है।
  आपसी सद्भाव पर
  संदेह की काली छाया पड़ रही है
  धर्म स्थल पर भी
  शत्रु की काली दृष्टि पड़ रही है।
  कौन है जिसने
  यह अवांछित कर दिया
अपने ही घर में
हमें असुरक्षित कर दिया।
आखिर कब तक
जिंदगी कोरोना के साए में गुजरेगी
आँखें कब तक
अपने सपनों को तरसेंगी।
कभी कभी लगता है
इसकी कोई दुआ जरूर आएगी
महामारी छोड़ पीछे
मीना जिंदगी आगे बढ़ जाएगी।।
  ✍️ डाॅ मीना कौल
  मुरादाबाद
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अपने ही घर में कोई ,पाए ना सम्मान ।
कुछ राज्यों में होत यों,हिंदी का अपमान।।
हिन्दी का अपमान ,सुनो नेता गण प्यारे ।
हिंदी को अनिवार्य करो ,राज्यों में सारे।।
,विद्रोही,सच‌ होंय , राष्ट्र भाषा के सपने ।
यदि अपमानित न हो , हिन्दी घर मेंअपने।।

हिन्दी के हों दोहरे, छंद, बंध, श्रृंगार।
चौपाई और गीत में ,रस की पड़े फुहार ।।
रस की पड़े फुहार,भाव के घन उमड़े हों।
हिन्दी लो अपनाय, बंद सारे झगड़े हों ।।
,विद्रोही, मां के माथे,ज्यों सजती बिन्दी ।
भारत माता के माथे ,यों सजती हिन्दी ।।

✍️ अशोक विद्रोही
मुरादाबाद
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1:
हमारी अस्मिता है राष्ट्र का अभिमान है हिंदी।
परस्पर के सहज संवाद की पहचान है हिंदी ।
नहीं बस मात्र भाषा, ये हमारी मातृ भाषा है।
हमारा मान है हिंदी,  हमारी शान है हिंदी ।।

2:
है अँधेरा घना फिर भी, दीप जल जल कर लड़ा है।
सूर्य सा तो नहीं है पर, हौसला इसमें बड़ा है।।
मुश्किलों में डटे रहना, दीप से ही सीख लो तुम।
जीत उसकी ही हुई है, जो अडिग होकर खड़ा है।।

3:
अँधेरे दिलों के मिटाते रहेंगे।
दिये प्यार के बस जलाते रहेंगे।।
हवाओं से यदि तुम करोगे हिफाजत ।
दिये रात भर जगमगाते रहेंगे।।

✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल,  मुरादाबाद
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रेल की पटरियों सा
हो गया जीवन
        लक्ष्य प्राप्ति के लिए
        हम भटकते  रहे
        अर्थ लाभ के लिए
        बर्फ सा गलते रहे
सुख की कामना में
जर्जर हो गया तन
       स्वाभिमान भी गिरवी
       रख नागों के हाथ
       भेड़ियों के सम्मुख
       टिका दिया माथ
इस तरह होता रहा
अपना चीरहरन
रेल की पटरियों सा
हो गया जीवन
✍️ डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश , भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822
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चिन्ताओं के ऊसर में फिर
उगीं प्रार्थनाएँ

अब क्या होगा कैसे होगा
प्रश्न बहुत सारे
बढ़ा रहे आशंकाओं के
पल-पल अँधियारे
उम्मीदों की एक किरन-सी
लगीं प्रार्थनाएँ

बिना कहे सूनी आँखों ने
सबकुछ बता दिया
विषम समय की पीड़ाओं का
जब अनुवाद किया
समझाने को मन के भीतर
जगीं प्रार्थनाएँ

धीरज रख हालात ज़ल्द ही
निश्चित बदलेंगे
इन्हीं उलझनों से सुलझन के
रस्ते निकलेंगे
कहें, हरेपन की ख़ुशबू में
पगीं प्रार्थनाएँ

✍️ योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
मुरादाबाद
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माँ हिन्दी के नेह की, एक बड़ी पहचान।
इसके आँचल में मिला, हर भाषा को मान।।

मानो मुझको मिल गये, सारे तीरथ-धाम।
जब हिन्दी में लिख दिया, मैंने अपना नाम।।

तभी सफल होगा सखे, हिन्दी का अभियान।
मिले इसे व्यवहार में, जब पूरा सम्मान।।

मन की आँखें खोल कर, देख सके तो देख।
कोई है जो लिख रहा, कर्मों के अभिलेख।।

प्यारी मुनिया को मिला, उसी जगह से त्रास।
जिसमें लोगों ने रखा, नौ दिन का उपवास।।

सुन गोरी के पाँव से, पायल की झंकार।
ढल जाने को काव्य में, मचल उठा श्रृंगार।।

पुतले जैसा जल उठे, जब अन्तस का पाप।
तभी दशहरा मित्रवर, मना सकेंगे आप।।

बुरे ग्रहों ने साथियो, ज्यों ही सूँघे नोट।
पल में पावन हो गये, रहा न कोई खोट।।

-✍️ राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
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मैं जब भी अपने पुरखों से मिला हूं ये लगा मुझको ।
मैं उनके ख्वाब जैसा हूं हमेशा ये लगा मुझको ।।
मेरे गांव के रस्ते,सूने घर,वीरान चौपालें ।
मेरे ही मुंतज़िर हैं वो हमेशा ये लगा मुझको ।।
कभी भूला नहीं बचपन के यारों को,बुजु़र्गों को ।
मैं जब भी घर गया उनसे मिला हूं ये लगा मुझको ।।
अजब मायूसी है,वहशत का आलम है जमाने में ।
नहीं गांव में कुछ खौ़फो़ ख़तर बस ये लगा मुझको ।।
ये हिंदू और मुस्लिम के जो झगड़े हैं शहर में हैं ।
मेरे गांव में हैं सब भाई भाई ये लगा मुझको ।।
ये दरिया धूप बादल और सितारे भी सभी के हैं ।
मेरा घर मेरा आंगन है सभी का ये लगा मुझको ।।
मुजाहिद एक इंसां है उसे इंसां से रग़बत है ।
मैं तन्हा हो के सबका हूं हमेशा ये लगा मुझको ।।

✍️मुजाहिद चौधरी
हसनपुर, अमरोहा
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अहसास उमड़ते जब मन में, भावों में बांधा जाता है,
भावों को बना लेखनी जब शब्दों में साधा जाता है,
आँखों में उमड़े सपनों की जब हृदय तंत्र से ठनती है,
तब जाकर के निर्भीक लेखनी से इक कविता बनती है।

जब आँसू बिना ही आँखों में आती है नमी विचारों की,
जब कलम उगलती अंगारे, और लिखती ग़ज़ल बहारों की,
संयोग वियोग भावना जब कवि हृदय रक्त में सनती है,
तब जाकर के निर्भीक लेखनी से इक कविता बनती है।

जब धरती से अम्बर तक का एक अद्भुत रूप निखरता है,
जब सागर से अम्बुद बनकर, वापस उस ओर बिखरता है,
उन्मुक्त कल्पनाओं की जब इक सुंदर नदी उफ़नती है,
तब जाकर के निर्भीक लेखनी से इक कविता बनती है।

जब उमस भरी लंबी रातें, तम की चादर फहराती हैं,
जब जुगनू की टिम टिम किरणें अंधियारे को गहराती हैं,
जब सुखद सवेरा करने को, उषा परिधान पहनती है,
तब जाकर के निर्भीक लेखनी से इक कविता बनती है।

जब मस्तक रूपी कागज़ पर अनुबंध उकेरे जाते हैं,
जब उर के श्वेत पटल पर अद्भुत रंग बिखेरे जाते हैं,
जब श्रोताओं की वाह वाह कवि हृदय प्रेरणा बनती है,
तब जाकर के निर्भीक लेखनी से इक कविता बनती है।।

✍️रश्मि प्रभाकर
मुरादाबाद
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ज़िंदगी तुझसे मिलन जिस वक़्त दोबारा हुआ
आँसुओं का ये समंदर और भी खारा हुआ

बट गये ग़म और खुशी दीवारो दर की आड़ में
शर्म आँखों की गई जब घर का बटवारा हुआ

जी रहा है आदमी अब आदमीयत छोड़कर
हर बशर मक़तूल  हर एक शख़्स हत्यारा हुआ

जिसपे क़ुदरत  मेह्रबाँ थी उसको मंज़िल मिल गई
दर बदर फिरता रहा तक़दीर का मारा हुआ

तीर नफ़रत के मुहब्बत की कमां से जब चले
और भी घायल दिले -"मासूम" बेचारा हुआ

✍️ मोनिका "मासूम"
मुरादाबाद
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आओ सिपाही हिन्दी के,
हिन्दी के लिए बलिदान करें।
हिन्दी है भाल तिलक जैसी,
हिन्दी का वही सम्मान करें।

निज भाषा के लिए अगर,
हमने नहीं कोई काम किया।
तो निरर्थक ही जीवन को,
इन साँसों का दाम दिया।
जीवन समर्पित हिन्दी हित,
साँसे हिन्दी को दान करें।
आओ सिपाही......

हिन्दी ओढ़े,हिन्दी पहने,
हिन्दी ही गहना हो अपना
हिन्दी सोचे,हिन्दी बाँचे
हिन्दी ही सपना हो अपना
हिन्दी का जाप करें निशदिन,
हिन्दी का ही गुणगान करें
आओ सिपाही......

जन गण मन के कानों में
हिन्दी हिन्दी हिन्दी गूँजे
हर घर हर जन तक देखो
हिन्दी हिन्दी हिन्दी पहुँचे।
"हिन्दी वालों हिन्दी बोलो"
हिन्दी हित यह आह्वान करें
आओ सिपाही......

✍️ हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद
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हिन्दी भारत का गौरव और श्रृंगार है।
पा रही जग में अब तो ये विस्तार है।।

रस अलंकार छन्दों से है ये सजी,
ये तो रसखान की मीठी रसधार है।।

पीर मीरा की इसमें समाई हुयी,
ये सुभद्रा औ' दिनकर की हुंकार है।।

जोड़ती है सभी के दिलों को तो ये,
हिन्दी भाषा नहीं प्राण आधार है।।

गर्व *ममता* हैं करते बहुत इस पे हम,
छू गई हिन्दी मन के सभी तार है।।

✍️ डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद
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सूरज की किरणें जब आयीं
अंग अंग धरती मुस्कायी
हुए मुदित सब सुमन मनोहर.
पाती तरुवर ने लहरायी ।

सरिता ने धुन मधुर सुनायी
खिली हुईं कलियाँ हर्षायी
उठे विहग, सब राग छेड़ते
निंदिया रानी किसे सुहायी ।

लगे जीव सब ,नित कर्मों में
रोजी - रोटी सबको भायी
कर्मशील लख कोना कोना
सकल सृष्टि में खुशी समायी ।

✍️ डॉ रीता सिंह
चन्दौसी (सम्भल)
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लघुकथा-----  क़सूर

कपड़ों की दुकान बंद होते ही, उस दुकान में टँगी सभी पोशाकें वाचाल हो गयीं। "स्कर्ट "ने अपना अनुभव सुनाते हुए कहा कि सड़कों पर सब  लोग उसे गंदी नज़रों से घूरते हैं।
यह सुनकर, "साड़ी" ने कहा,"नहीं बहन!सिर्फ तुम्हें ही नहीं ,मुझे भी घूरते हैं।
"नकाब "ने कहा,"पर मैं तो दब ढक कर निकलता हूँ,  फिर भी मेरे बदन को भी लोगों की निगाहें खंज़र जैसी निगाहें चुभती रहती हैं।"
"दुपट्टे वाली ड्रेस"ने एक लंबी साँस ली और कहा,"....मेरा आँचल भी लोगों की कुदृष्टि से यत्र- तत्र मैला होता रहता है।"
यह सुनकर  मौन दर्पण  बोल उठा,
" ....सब तुम्हारे यौवन का "क़सूर"है!!लोगों की निगाहों का नहीं।"
"यौवन का "क़सूर."..???पर मुझे भी तो लोगों की गंदी.....!!"बात पूरी करने से पहले ही दुकान के कोने में टँगी "छुटकी" फ्राक सुबक -सुबक कर रोने लगी ।

✍️मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार
मुरादाबाद
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हिंदी संस्कार की भाषा
हिंदी प्रेम प्यार की भाषा
हिंदी राम कृष्ण की भाषा
हिंदी है तो हम हिंदुस्तानी,
हिंदुस्तानी  कहलाते  है
इस हिंदी ने दी पहचान
इसे नमन है सौ सौ बार
  ये हिंदी अपनी भाषा है
   इससे  अपना नाता है
  यह अपनी मिट्टी से जोड़ें
यह अपने दिल कभी ना तोड़े
जख्मों पर मरहम सी हिंदी
दर्द हुआ तो दवा है हिंदी
टूटे रिश्ते जोड़ते हिंदी
कभी न रिश्ते तोड़ती हिंदी
दुनिया को दिखलाती हिंदी
विश्व बंधुत्व सिखलाती हिंदी
प्रेम प्यार की भाषा हिंदी
संस्कार की भाषा हिंदी
हिंदी है तो तुम हम हैं
इस हिंदी की जय बोलो
सब हिंदी की जय बोलो

✍️आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ
मुरादाबाद
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हिंदी अब उड़ने लगी निज पंखों को खोल,
सात समंदर पार भी लोग रहे हैं बोल।

अपना हो या ग़ैर का रखती नहीं विचार,
हिंदी ने हर शब्द को खोल दिये हैं द्वार।

साइलेंट कुछ भी नहीं सबकी है आवाज़,
हिंदी उर पट खोलती रखे न कोई राज़।
✍️मयंक शर्मा
मुरादाबाद
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लघुकथा ---- असंतुलन

"इतना क्यों दुखी होती हो भाभी इतना क्यों रो रही हो?" ध्वनि ने भाभी को सांत्वना देते हुए चुप कराने की कोशिश करते हुए कहा।
भाभी ने सिसकियां भरते हुए उत्तर दिया "ध्वनि अब मैं थक गयी हूँ यह सब करते अब और नहीं किया जाता। महीने भर उन अच्छे दिनों का इंतजार फिर कोशिश करने के बाद वजन मत उठाओ, ज्यादा दौड़ो मत, गर्म चीजें मत खाओ, क्या पता इस बार ईश्वर सुन ही ले और फिर टैस्ट किट का प्रयोग और फिर नेगेटिव रिजल्ट फिर भी यही उम्मीद होती है कि शायद किट गलत हो या फलाना हार्मोन अभी अच्छी मात्रा में बने नहीं और फिर उन दिनों का आ जाना और अंत में मेरा बिलखते रोना, किस्मत को कोसना और फिर शुरू होती है एक नई साइकिल। पिछले दस साल से यही तो कर रही हूँ ध्वनि मैं पर अब थक गई । कितना कहा मैने इनसे कि बस अब मुझसे डॉक्टरों के चक्कर नहीं लगाए जाते पर ये भी मजबूर हैं। बच्चा तो चाहिए ही न। बच्चा गोद लेने की कितनी कोशिश की फिर भी निराशा ही हाथ लगी।"
ध्वनि ने भाभी को गिलास से पानी पिलाते हुए कहा "दुखी मत हो भाभी ईश्वर के घर देर है अन्धेर नहीं। लो आप टीवी देखो मन बदलेगा।"
चैनल लगाते समय ध्वनि ने गलती से न्यूज चैनल लगा दिया। उसपर आती एक खबर ने दोनों का ध्यान आकर्षित किया। खबर में दिखा रहे थे कि किस प्रकार एक नृशंस मानव ने नवजात जुड़वां बच्चियों को कूड़े के डिब्बे में मरने के लिए छोड़ दिया।  ध्वनि समझ नहीं पा रही थी कि इस खबर को देखने के बाद अपनी रोती हुई भाभी को वह अब क्या सांत्वना देकर चुप कराए।

✍️ इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद
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भटक रहा संसार में, इधर-उधर  इंसान।
चले अगर सदमार्ग पर,मिल जाये भगवान।।

प्रेम साँचा उसे मिले, जो नर हो निष्काम।
मीरा खातिर प्रेम के, कर बैठी विषपान।।

पर नारी के  रूप ने , भेदा है हर चित्त,
कामातुर  देवेश भी, बन बैठा हैवान ।।

धारण कर भगवा वसन,बनें न दुर्जन संत।
इंद्रासन पर बैठकर, हुए न असुर महान।।

सेवा कर माँ बाप की,मिल जाएं सब धाम।
जग में तेरा नाम हो, पावन संतति जान।।
                     
✍️ पिंकेश चौहान ' तपन '
मुरादाबाद
-----------------------------------------



1.......
शब्द से मोतियों को पिरोते हैं हम,
लोग बेचैन हैं कैसे सोते हैं हम।
है नहीं काम आसान सुन लो सभी,
पृष्ठ को आँसुओं से भिगोते हैं हम।

2.......
ग़मों की वादियों में भी हमेशा मुस्कुराते हैं,
नहीं ज़ख्मी परिन्दे की तरह हम छटपटाते हैं।
ज़रूरत आपको होगी भले ही चाँद की हम तो,
लिये आज़ाद इक चेहरा सदा ही जगमगाते हैं।

✍️ अभिषेक रुहेला
ग्रा०पो०- फतेहपुर विश्नोई, मुरादाबाद
(उ०प्र०)- 244504
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अध जले आंचल
भुरभुरे काग़ज़
जैसी हूं
उसपे अब भी कुछ लिख सकती हूं
कुछ तो अब भी रंग भर सकती हूं
आईना तू क्या  रूठा है मुझसे ?
अब तो मैं भी तुझसे रूठी हूं
जरा देख
तेरे सामने ही बैठी हूं
जितना बचा है मेरे चेहरे पे चेहरा
बिंदिया कहीं भी अब लगा लूंगी
ठेढ़े मेढ़े अधरो को भी
लिपिस्टिक से सजा दूंगी
आईना तुझे कोई किरदार
निभाने कहां आता है?
तू हर चेहरे से बिक जाता है
फिर मुझे देखे क्यों नज़रे चुराता है?
मेरी नजरों में आज भी
मैं उतनी ही खूबसूरत हूं
पापा की लाडली
मां की लक्ष्मी
घर की इज्जत की मूरत हूं
सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा
वक्त के साथ घाव भर भर जाएगा
मैं हिमालय सी अडिग
प्रशांत महासागर सी गहरी
सियाचिन की बर्फ सी जमी पड़ी हूं
पर जीने की आस में
खुद के सामने खड़ी हूं
संकीर्ण गली सी सोच वालों
तुमसे आज भी मैं बड़ी हूं
बस ठीक है सब
केवल रसायन शास्त्र को अब
पसंद नहीं  करती हूं
जब  भी इसे मैं पढ़ती हूं
अंदर से रो रो पड़ती हूं
उस तेजाबी हादसे से 
बारम्बार जल पड़ती हूं
बारम्बार जल पड़ती हूं

✍️ प्रवीण राही
8860213526
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ख़ातिर औलाद की एक घोंसले को बुनते हुए
नही है देखता कोई बाप को उधड़ते हुए

बने थे फूल जिस चमन के हम थे जानो जहां
कैसे कोई देख ले चमन को यूँ उजडते हुए

वो जो औलाद की ही खाल मे दुश्मन है छुपा
कैसे कोई रोके ले औलाद को बिगड़ते हुए

चोरी करते सभी पर चोर वो जो पकड़ा गया
नामी बदमाश हमने देखे खूब चलते हुए

हैं गिरी हरकतें किसकी नही बूझो तो जरा
बड़े बड़े नाम वाले देखे हमने गिरते हुए

✍️इन्दु,अमरोहा,उत्तर प्रदेश
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सियासत की राह में,
इंसानियत मैली हो गई,
अब तक नदी का जल पीते थे,
अब फिल्टर गोमुख हो गई,

गंगा की कालिख़ में,
दाग तुम्हारा भी है,

इतनी फ़िक्र थी,
खुद ही गंदगी रोक लेते,
ऐसा सुनकर बात हमारी टाल गए,
नदी साफ करने चले थे
खुद गन्दगी डाल गए,

✍️प्रशान्त मिश्र
मुरादाबाद
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छोटी - सी ज़िन्दगी है हर बात में खुश रहो ।
जो चेहरा पास न हो उसकी आवाज़ में खुश रहो ।
कोई रूठा हो आपसे उसके अंदाज़ मे खुश रहो ।
जो लौट कर नहीं आने वाले उसकी याद में खुश रहो ।
कल किसने देखा है अपने आज में खुश रहो ।
छोटी - सी ज़िन्दगी है हर बात में खुश रहो।

✍️ईशांत शर्मा
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हम पढे और पढाये
         कुछ करके दिखाये
हम कम नही किसी से
         दुनिया को ये बताये
हम पढे ----
कुछ करके----
         हिन्दू हो या मुस्लमान
सिख हो या इसाई
         इक साथ मिल सभी ने
अवाज ये उठाई
        हम पढे और----
        कुछ करके------
अनपढ़ न रहे कोई
       हमने है सौगन्ध खाइ
मजदूर हो या किसान
       बुढा हो या जवान
हम पढे और-----
कुछ करके------
      बटे और बेटी को
शिक्षा मिले समान
      अज्ञानता का दाग
माथे से हम मिटायें
       हम पढे और -----
       कुछ करके ------
गर मंजिलों को है पाना
       खुद का है पहचान बनाना
पढ़ लिख शिक्षित हो के
       आगे ही बढ़ते जाना है
अशिक्षित पायें शिक्षा
      और शिक्षित उन्हें पढ़ायें
हम पढे़ -------
कुछ करके ----
      
✍️ डा एम पी बादल जायसी
  9319318919
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आईने के सामने
आब ऐ आईना हो जाऊं मैं,
तेरा अक्श देखूँ
तो तुझ सा ही हो जाऊं मैं।
दिल में दबी एक
ख्वाहिश सा मचल जाऊं मैं,
सिमट के तुझ में
खुद ही संभल जाऊं में ।।
दिल रोज ही तेरी चाहत करे
बस तेरी ही रिवायत करे,
अब ये यूँही बिगड़ जाए
तो कोई क्या करे ।
चाहकर भी तुझको
चाहत न हो पूरी,
रास्ते सभी जहां के
लगते हैं क्यों अधूरे,
ये दूरियां मिटाना
लगता है अब जरूरी ।।
तू सामने जो आये तो
तुझमें ही खो जाऊँ में,
तू बेरूखी दिखा दे
अमित कुमार सिंह,मुरादाबाद
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वह दिल भी क्या दिल है यारों,  जिस दिल में किसी का प्यार ना हो।
कोई लक्ष्य ना हो कोई चाह ना हो, किसी चाहत की परवाह ना हो।

है लक्ष्य बिना जीवन सूना, कोई पथ ही नही गर चलने को।
ऐसे जीवन को क्या कहिये, कोई चाह नहीं हो पाने को।।

जिस मिट्टी से तन का नाता,  उस मातृभूमि से प्रेम करो।
निज देश धर्म की रक्षा में,कोई नया मार्ग सृजन कर लो।।

अपने इस नश्वर जीवन को, निज देश के हित कुर्बान करो।
जो मानवता के शत्रु हैं, उनमें मानवता का ज्ञान भरो।।

कुछ पथिक भटकते हैं पथ से, कुछ को भटकाया जाता है।
वे सत्य भुला यह देते हैं, मानव का उनसे नाता है।।

कुछ मासूमों की राह सत्य के, मार्ग में प्रशस्त करो।
जिस मिटी से तन का नाता, उस मातृभूमि से प्रेम करो।।

✍️नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा, जिला मुरादाबाद
mobile:-+919045548008
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न जिद मे न किसी गुस्से में किया था
कुछ कर दिखाने के लिए उसने ये कदम लिया था
एक लड़के ने भी घर छोड़ा था
अपनी मेहनत की कश्ती को एक समंदर में छोड़ा था
एक लड़के ने खुद के करियर के लिए घर छोड़ा था
छोड़कर घर की मोह माया को
हास्टल की दुनिया से नाता जोड़ा था
चंद सपनों की खातिर खुद को अपनों से दूर किया था
एक लड़के ने भी घर छोड़ा था
उम्मीदों की दौड़ में वो मां के आंचल से दूर निकला था
पिता के साये से दूर अब बाहर की दुनिया में पहुंचा था
हाँ, एक लड़के ने भी अपना घर छोड़ा था
किताबों की दुनिया से उसने अपना नाता जोड़ा था
कुछ कर दिखाने के जुनून में खुद को झोंका था
एक लड़के ने भी घर छोड़ा था
रख परे शौक को अपने
अपनी मेहनत के साहिल पर उसने
अपनी किस्मत की कश्ती को छोड़ा था
अपने माता पिता के गर्व को ऊंचा रखने के लिए
खुद को त्याग की आग में झोंका था
एक लड़के ने कुछ कर दिखाने को घर छोड़ा था
वक्त से भी उसकी मशक्कत का सिला उसको मिला था
उस लड़के के कारनामे से
उसके पिता का सीना गर्व फूला था
आखिरकार उसने उस सच को पत्थर पर लिख छोड़ा था
अब लोग कहते थे उसके गांव के B
वाकई कुछ कर दिखाने को
एक लड़के ने घर छोड़ा था ll

✍️विभांशु दुबे विदीप्त ,मुरादाबाद
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जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम ।
मन से राम को याद करो तो बन जाते सब बिगड़े काम ।।

ताड़का और सुबाहु तारे पत्थर बनी अहिल्या तारी ।
जयंत और खर-दूषण तारे केवट के संग नौका तारी ।।
मात्र बेर खाने से जग में अमर हो गया शबरी नाम ।
जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम ।

मायावी मारीच तर गया बाली का उद्धार हो गया ।
सुग्रीव और अंगद जैसों का राम नाम आधार हो गया ।।
वानर सेना सारी तर गयी बोल बोल कर जय श्रीराम।
जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम ।।

विभीषण भी गले लगाया ,हनुमान को भक्त बनाया ।
क्रोध राम का देखा तो फिर दम्भी सागर शरण मे आया ।।
पत्थर तक भी तर गये देखो जिन पर लिखा गया था राम ।
जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम जय श्रीराम बोलो जयश्री राम ।।

कुम्भकर्ण जैसा बलशाली ,रावण के जैसा महाज्ञानी ।
परख न पाये थाह राम की मद में होकर के अभिमानी ।।
अंत समय पर जोर जोर से बोले दोनों जय श्रीराम  ।।
जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम ।।

धरा गगन भी हर्षित हो गये मन सबके भी पुलकित हो गये ।
कलियुग में बनवास भोगकर राम अवध में वापस आ गये ।।
धाम अवध सबको चलना है बोल बोल कर जय श्रीराम ।

जय श्रीराम बोलो जयश्रीराम ,जय श्री राम बोलो जय श्रीराम।
मन से राम को याद करो तो बन जाते सब बिगड़े काम ।।

जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम -------------------

  ✍️ डॉ सतीश वर्द्धन ,पिलखुवा
9927197480
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जितनी विषम परिस्थितियां हैं, उतने ही दृढ़ मोदी जी,
भरते हैं हुंकार दुश्मनों की छाती चढ़ मोदी जी।

जब भी घोर देश में संकट या विपपदाएं आती हैं,
देते हैं इमदाद सभी को खुद आगे बढ़ मोदी जी।

उग्रवादियों देशद्रोहियों के घुसकर ताहखानों में,
ध्वस्त किए उनकी साजिश के बड़े-बड़े गढ़ मोदी जी।

पाक-चीन से कम,खतरा ज्यादा घर के जयचंदों से,
उनसे मिले निजात, युक्तियां वही रहे गढ़ मोदी जी।

मीठा मीठा गप्प और कड़वा कड़वा जो थूक रहे,
उनको सबक सिखाने का भी रहे पाठ पढ़ मोदी जी।

✍️बाबा कानपुरी

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कुछ नए और
कुछ पुराने मिले
हुए सब अपने
जो भी बेगाने मिलेl
कुछ इस तरह से
मालामाल किया
गया मुझे
गम के गहने,
तकलीफों के ताज़,
धोखे की दौलत
फरेबी जज़्बात
ये बेशुमार दौलत
ज़िंदगी भर की कमाई
से अब भी
कहीं ज्यादा है
और दो, और दो,
ये खज़ाना और दो मुझे
मैं थकूंगा नहीं.
ये मेरा वादा हैl
क्योंकि
मैं पिता हूँ, पति हूँ,
आम नागरिक हूँ,
एक व्यवसायी हूँ,
कुछ कहते हैं
बड़ा हरजाई हूँ,
सामाजिक सरोकारों से
जोड़ा गया हूँ,
बेवज़ह, बेवक्त,
बेमकसद तोडा गया हूँl
जो भी कुछ

✍️ संजीव आकांक्षी
मुरादाबाद