शुक्रवार, 20 नवंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा -- -----आदमी

   


 " मैंने पहले ही कहा था कि कुत्ता न पालो।आखिर काट ही लिया इसने! अब कराती रहो अपना इलाज ।" पति ने झुंझलाकर पत्नी से कहा।

      पत्नी ने उत्तर दिया,"तो क्या हुआ ! आदमी तो हर पल काटता रहता है, कुत्ते के काटे का तो इलाज हो सकता है।परंतु आदमी के काटे का कोई इलाज़ ही नहीं है। यह आदमी से तो अच्छा है।भले ही कुत्ता है ।

✍️ अशोक विश्नोई,मुरादाबाद

मो० 9411809222

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की दो लघुकथाएं ----"धार्मिकता " और "नई सोच''


1.  धार्मिकता

कैसे हिन्दू हो,नवरात्र के दिनों में भी शराब पी रहे हो , राजेश ने अपने मित्र समीर को टोका। फिर अपनी धार्मिकता पर घमंड करते हुए कहा -मेरा तो पक्का उसूल है, मैं इन दिनों शराब को हाथ तक नहीं लगाता।नवरात्र शुरू होने से पहले ही,पूरे नौ दिन का कोटा पूरा कर लेता हूं।


2  नई सोच 

शादी के 6 साल बाद,पहली बार नवरात्रि पर रुचिका सुसराल में थी। नवमी पर कन्याओं को हलवा पूरी खिलाने का रिवाज़ था। उसी की तैयारी चल रही थी। रुचिका को कुछ अटपटा सा लग रहा था। हिम्मत जुटा कर उसने अपनी सास से कहा - क्षमा करें मम्मी जी,हम अपने सम्पन्न परिचितों की बेटियों को घर बुला कर खाना खिला देते हैं।क्या आपको ये एक औपचारिकता मात्र नहीं लगता।कायदे में हमें गरीब बच्चियों की सहायता करनी चाहिए। मैं तो कई साल से अनाथ लड़कियों को नए कपड़े दिलवा देती हूं।मुझे देख कर धीरे धीरे पूरी सोसायटी में सबने ऐसा करना शुरू कर दिया है।क्या हम यहां ऐसा नहीं  कर सकते।

 तू सही कहती है,नई सोच से ही हम समाज को बदल सकते है। सास ने रुचिका को गले लगाते हुए कहा।


✍️ डॉ पुनीत कुमार

टी 2/505, आकाश रेजिडेंसी

मधुबनी पार्क के पीछे

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद की साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा ------सम्मान पत्र


रूचि बार बार घड़ी देख रही थी। शाम के 7 बज गये थे।वो सड़क पर लगभग दौड़ ही रही थी ......आज उसे
 जिलाधिकारी द्वारा  सम्मान पत्र दिया गया था। कार्यक्रम बहुत देर तक चला। फोन की बैटरी भी खत्म हो गयी थी।
उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।
उसने बेल बजाई तो बेटी अवनी ने दरवाज़ा खोला।
जल्दी से वह अन्दर आयी। सम्मान पत्र मेज पर रख वह जल्दी से मुहँ हाथ धोकर  किचन में चली गयी। पति राजेश अन्दर टीवी में मैच देखने में व्यस्त थे। वह वही से चिल्लाए   .........  .ये समय है घर आने का। कोई कहने सुनने वाला नही है। बच्चे भूखे है ,इसकी कोई फिक्र नही .......
अवनी ने मेज पर रखे सम्मान पत्र को उठाया ......माँ आपको ये मिला है। उसने पढ़ना शुरू किया .. 
श्रीमती रूचि आपके द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिये किये गये प्रयास सराहनीय है। आपको यह सम्मान पत्र देते हुए हम आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते है ।
रूचि अन्दर कुकर में जल्दी सब्जी बनाने के लिये तेज तेज चमचा चला रही थी
✍️ प्रीति चौधरी
 गजरौला ,अमरोहा 

गुरुवार, 19 नवंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी -------सलाह न मानने की सज़ा


गर्मी के दिन चल रहे थे , डॉक्टर तिलक अपने अस्पताल पर आज जल्दी आ गए , क्योंकि आज नगर का साप्ताहिक बाजार का दिन था ।  डॉक्टर साहब का अस्पताल बाजार के बिल्कुल मध्य में स्थित था, इस कारण वहां काफी लोग ऐसे ही मिलने भी आ जाया करते थे ।सुबह 10:00 बजे डॉक्टर साहब के मित्र मांगीलाल अपने छोटे भाई को बैलगाड़ी में लेकर आए और डॉक्टर साहब से बोले "डॉक्टर साहब जल्दी से मेरे भाई को देखो इसके सीने में बहुत तेज  दर्द हो रहा है और इसे पसीना भी आ रहा है" डॉक्टर साहब ने अपने बाकी के मरीजों को छोड़कर इमरजेंसी मरीज को जल्दी से भाग कर देखा डॉक्टर साहब को समझते देर न लगी कि मांगीलाल के भाई को हार्ट अटैक आया है । मांगीलाल  डॉक्टर साहब का परम मित्र था डॉक्टर साहब ने उसे समझाया यह बहुत गंभीर बीमारी है और इसमें रिस्क भी बहुत ज्यादा होता है, यदि आप कहें तो मैं इसका इलाज कर सकता हूं ।मांगीलाल का डॉक्टर साहब में परम विश्वास था अतः मांगीलाल ने डॉक्टर साहब को इलाज की स्वीकृति दे दी ।

                       डॉक्टर साहब ने मरीज का इलाज शुरू कर दिया व मरीज के घर वालों को सख्त हिदायत दी कि दो-तीन घंटे तक सीधे होकर ही लेटना है और यह बिल्कुल भी ना हिले ,असल में गांव देहात की यह परंपरा रही है कि जब भी कोई गाड़ी ठेला आदि गांव से शहर की ओर आता है तो वह घरेलू सामान लाने के लिए पूरी लिस्ट बना लेते हैं ताकि एक ही बार में सब सामान आ जाए क्योंकि बार-बार गांव से शहर आना संभव नहीं हो पाता है ।यही सोच के साथ मांगीलाल अपने भाई को डॉक्टर साहब के अस्पताल पर छोड़ बाजार सामान लेने चला गया । मांगीलाल अपने परिवार के सदस्यों को मरीज के साथ मिजाज पुर्सी के लिए छोड़ गया ,डॉक्टर साहब भी जब मांगीलाल के भाई को थोड़ा आराम आया तो अपने मरीज में व्यस्त हो गए । 

                       दोपहर के 1:00 बजे होंगे तभी मंदिर के पुजारी सुमति बाबा भागे भागे डॉक्टर साहब के पास आए और बोले "डॉक्टर साहब जल्दी चलिए मंदिर में एक भक्त की अचानक बहुत तबियत खराब हो गई है

और वह चक्कर खाकर गिर गया है" डॉक्टर साहब ने तुरंत अपनी दवा की पेटी उठाई और सुमति बाबा के साथ मंदिर की ओर चल दिए रास्ते में डॉक्टर साहब ने समिति बाबा से पूछा बाबा मरीज को क्या परेशानी है, सुमति ने जवाब दिया डॉक्टर साहब यह व्यक्ति अभी-अभी स्कूटर से मंदिर आया था और अचानक इसके सीने में दर्द होने लगा और इसे पसीना भी आया और एकदम से यह चक्कर खाकर गिर गया । डॉक्टर साहब ने मंदिर पहुंचकर मरीज को देखा तो उन्हें बड़ी हैरानी हुई क्योंकि यह भी हार्टअटैक का ही मामला था डॉक्टर साहब ने इलाज शुरू किया कुछ देर में मरीज को होश आ गया , उसने बताया "मेरा नाम मिस्टर कपूर है और मैं शुगर मिल में काम करता हूं, हार्ट की बीमारी से पीड़ित हूं" यह सुन डाक्टर साहब ने मिस्टर कपूर को कहा "अगर आपका हार्ट का इलाज चल रहा है तो आपको स्कूटर चला कर ऐसे नहीं आना चाहिए था, इससे हार्ट पर जोर पड़ता है" मिस्टर कपूर ने अपनी गलती को माना और जल्द ही ठीक करने की डॉक्टर साहब से विनती की ,डॉक्टर साहब ने कहा यदि आपको ठीक होना है तो दो-तीन घंटे तक शवासन में लेटे रहे बिल्कुल भी नहीं हिले । मिस्टर कपूर ने डॉक्टर साहब की सलाह पर सीधे होकर मंदिर में ही एक चारपाई पर लेट गए । मिस्टर कपूर को थोड़ा आराम मिलने पर डॉक्टर साहब दो-तीन घंटे बाद दोबारा देखने को कहकर वापस अपने अस्पताल आ गए । 

                      जैसे ही डॉक्टर साहब अपने अस्पताल पर आए तो उन्होंने देखा कि मांगीलाल का भाई जिसे वह अपने अस्पताल पर आराम करता छोड़ गए थे ,वह अस्पताल से नदारद है उन्होंने तुरंत कंपाउंडर को बुलाया और पूछा "मैं उस मरीज को आराम करने को कह गया था फिर वह कहां चला गया" कंपाउंडर ने डरते डरते कहा, वह मरीज हमारी नजर से बचकर कहीं चला गया है ।डॉक्टर साहब अपने मरीजों में व्यस्त हो गए तभी कुछ देर पश्चात उन्होंने देखा कि मांगीलाल का भाई बाजार से थैला उठाए आ रहा है । उसने अस्पताल में थैला रखा और अस्पताल के सामने सड़क पार कर पेशाब करने बैठ गया यह देख डॉक्टर साहब बहुत नाराज़ हुए और उन्होंने तुरंत मांगीलाल को बुलवाया और उससे कहा "मैंने जब मना किया था तो आपका भाई चारपाई से उठा कैसे" मांगीलाल चुप रहा इतनी देर में मांगीलाल का भाई भी आ गया, डॉक्टर साहब ने उससे पूछा "आप कहां उठकर चले गए थे जब आपकी इतनी तबीयत खराब थी" तो मांगीलाल के भाई ने उत्तर दिया "अब मैं बिल्कुल ठीक हूं मैं जरा बाजार से गुड़ लेने चला गया था" इतना कहना ही था कि मांगीलाल के भाई के सीने में फिर जोर से दर्द होने लगा, उसे पसीना भी आने लगा ,यह देख डॉक्टर साहब ने उन्हें फौरन अपने मरीज को लिटाने को कहा और बताया "यह बहुत तीव्र हृदय आघात है ,अब मैं भी कुछ नहीं कर सकता" कुछ ही पलों में मरीज के प्राण पखेरू उड़ गए । पूरे बाजार में शोर मच गया कि डॉक्टर साहब की दुकान पर एक मरीज की मृत्यु हो गई है। मांगीलाल समझ चुका था कि उसके भाई की गलती है और उसे बगैर सलाह के ऐसे बाजार में नहीं जाना चाहिए था । 

                           अब डॉक्टर साहब को मंदिर वाले मरीज मिस्टर कपूर का ख्याल आया , क्योंकि उन्हें भी हृदयाघात हुआ था और डॉक्टर साहब भागे भागे मंदिर पहुंचे तो देखा मिस्टर कपूर चारपाई पर विश्राम कर रहे हैं ।यह देख डॉक्टर साहब की जान में जान आई और मिस्टर कपूर से उनका हाल पूछा मिस्टर कपूर ने बताया "मैं बिल्कुल ठीक हूं और आपकी सलाह के अनुसार बिल्कुल सीधे होकर लेटा हुआ हूँ, अब जब आप कहेंगे तभी मैं घर की ओर प्रस्थान करूंगा" मिस्टर कपूर की स्थिति देख डॉक्टर साहब ने राहत की सांस ली और पुजारी जी से कहा "बाबा आप स्वयं रिक्शे पर बिठाकर मिस्टर कपूर को उनके घर छोड़कर आए" और इस प्रकार मिस्टर कपूर ने डॉक्टर साहब की सलाह पर चलकर अपने जीवन को बचा लिया और मांगीलाल के भाई ने डॉक्टर साहब की सलाह पर कोई ध्यान नहीं दिया व डॉक्टर साहब की "सलाह ना मानने की सजा" उसे अपनी जान देकर चुकानी पड़ी ।

आज के परिवेश में पूरे विश्व में कोरोना का प्रकोप है इस महामारी से रोज लाखों की तादाद में लोग मर रहे हैं सरकार , डब्ल्यूएचओ , स्वास्थ्य विभाग सभी जनता को समझाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं ।परंतु लोग सड़कों पर भीड़ लगाकर घूम रहे हैं और स्वास्थ्य कर्मियों की सलाह को दरकिनार कर नियमों की अवहेलना कर रहे हैं, मैं तो बस इतना ही कहूंगा कहीं डॉक्टर की सलाह ना मानना जनता को भारी न पड़ जाए ।

✍️ विवेक आहूजा, बिलारी, जिला मुरादाबाद

Vivekahuja288@gmail.com 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा -----सांड दादा


महानगर मेंं एक व्यापारी की मृत्यु के बाद जनता के शोर मचाने पर नगरनिगम ने सांड पकड़ने का अभियान शुरू किया।भूरा सांड  जोअपने क्षेत्र मे पेड़ के नीचे पड़ा पड़ा आराम करता था आज अपनी जान बचाने के लिए भागा भागा घूम रहा था।हाफँते हुए एक गली मे घुसा जहाँ गाडी़ नहीं जा सकती थी।देखा एक दीवार के पीछे कालु दादा छिपे थे लम्बी लम्बी साँसें ले रहे । भूरा बोला ," दादा आप भी ?"कालू बोला भाई सुबह से जान पर बन आयी है।भागते भागते थक गया हूं।भाई एक बात बताओ कि हमेंं सजा क्यों दी जा रही है?हमने क्या किया । उस गुस्सैल हीरा के कारण हम सबकी जान पर बन आयी है।"

साँस जब काबू मेंं आयी तब भूरा बोला,"दादा हमेंं भी विरोध करना चाहिए।एक की सजा सबको क्यों मिले?ये इंसान कितने विचित्र है खुद रोज एक दूसरे की जान लेते है और आजाद घूमते है ।हमारे एक साथी ने चोट खाने के बाद हमला किया।हमारी पूरी बिरादरी के पीछे पड़ गये।सुबह से कुछ खाने को भी नही मिला भाग भाग कर दम निकल रहा है।बस बहुत हुआ अब नही डरेगे"।भूरे सांड की बात पूरी भी नही हुई थी कि सरकारी गाड़ी का होर्न सुनाई दिया और भूरा और कालू बात छोड़ जान बचाने को विपरीत दिशा मेंं दौड़ पड़े ।

✍️ डा श्वेता पूठिया, मुरादाबाद


मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ----वह एक रात

 


.......... वाह क्या शानदार समारोह है?... शादी का !..... क्या लाजवाब इंतजाम.....? खाने में कोई ऐसी चीज नहीं छोड़ी गई थी जो ना हो इतना भव्य बड़ा पंडाल ....बड़े टेंट की शोभा देखते ही बनती थी ..

....."" बहुत ही आकर्षक "क्या अभी कुछ और भी बाकी है ?....

" क्यों नहीं ?

 वैसे काफी रात हो गई है ..! 

"परन्तु साहब......स्टेज सज गया.है यहां जौनपुर में आज भी शादी में नाच का प्रोग्राम न हो  तो उसे शान के खिलाफ माना जाता है".!

.. मुजरा शुरू हो गया... क्या सुंदर नृत्य था स्वर्ग लोक की अप्सराएं भी शर्मा जाएं....

बिल्कुल राजा महाराजाओ जैसा माहौल....

 अचानक नाचने वाली का चेहरा देखकर विनोद अवाक रह गया....."मिली! हां बिल्कुल हू वो हूं मिली ही तो है..... !"वही कद वही चाल वही.... ऐसी ही तो खूबसूरत थी...वह... बिल्कुल उसी की कॉपी  ....."यार मुझे मिलना है उससे....!"बस एक बार बात करा दो मिनट भर को"....!"मिलना चाहता हूं उससे...!" 

"परंतु यहां इतनी भीड़ में ! ....नहीं.... नहीं....  नहीं मिल सकते हो आप साहब!

"मुजरा चल रहा है। महफ़िल शबाब पर है"! 

ड्राइवर तारा सिंह ने कहा !

       "  मैं पार्टी से बात करके आता हूं" बिक्रम सिंह ही मुलाकात करा सकते हैं"!

       "गाड़ी पर ले आना जब दूसरी नाचनेवाली शुरू होगी तब ही ये आ सकेगी....!" 

        ..... ऐसा ही हुआ थोड़ी देर बाद दूसरी नाचने वाली आ गई तो  जिसको विनोद मिली समझ रहा था   उसको तारा सिंह ले आया।

      "विनोद ने पूछा"क्या नाम है तुम्हारा ?"

"प्रिया"! उत्तर मिला....

"तुम कहां से हो?"

" अरे बाबूजी कहां से क्या? हम लोगों का एक ठिकाना है?"कभी यहां कभी वहां"!

...... "फिर तुम यहां जौनपुर में कैसे?" 

"जौनपुर अंड्डा है नाचने वालियों का! साहब!

तभी...प्रिया की मांग का शौर मच गया और वह वापस चली गई। 

......विनोद ने प्रिया का नंबर ले लिया था

 प्रिया वही नाचने वाली 

ड्राइवर गाड़ी वापस ले चला परंतु विनोद के मन में चैन नहीं था...... 

तारा सिंह सोचता जा रहा था बेटी की उम्र की होगी प्रिया!! साहब को भी क्या पसंद आई !

*******         ******        ********       *****

    . विनोद उच्च प्रशासनिक पद पर आसीन था....... फोन करके और मोटी रकम देकर प्रिया को विनोद ने लखनऊ अपने बंगले पर बुलाया ।

 पूछा,"तुम अल्मोड़ा की रहने वाली हो"?

. "नहीं..". वहां मेरी मां थी "!

"मेरा जन्म समय से 3 महीने पहले ही हो गया था जिसके कारण मेरी मां को बापू ने झूठा इल्जाम लगा  कर घर से निकाल दिया .... कहकर

................"न जाने किसका पाप लेकर चली आई मेरे घर में मुझ से    शादी करके"!

अब वहां हमारा कुछ भी नहीं है ।

कुछ भी नहीं है हमारे पास" !

मां की बीमारी में सब खत्म हो गया!"

तुम्हारा मन करता है? पहाड़ में रहने का?

 मेरा मन बहुत करता है  वहां रहने के लिए... परंतु....  

"छूट गया सब कुछ मुझसे "!

"एक दोस्त भी था मेरा, जीवन, बचपन में ही,,

"अब किसी को पता भी नहीं है मैं कहां पर हूं"!

" मैं तुम्हें अल्मोड़ा बुलाऊं तो तुम आ सकती हो "जरूर आ सकती हूं पेमेंट करना होगा!"

"बिल्कुल पूरा!"

********

 पहाड़ी रास्ते मेंअचानक विनोद का एक्सीडेंट  हो गया..... अल्मोड़ा अस्पताल में उसको भर्ती कराया गया उसी के कहने पर फोन करके प्रिया को फिर मोटी रकम देकर बुलाया गया....! उसकी  हालत में अब थोड़ा सा सुधार था परंतु बचने की कोई उम्मीद नहीं थीं....... बिस्तर पर पड़े पड़े उसकी आंखों में अतीत की स्मृतियां चलचित्र की भांति ताजा हो रही थीं......

....वहअपने चार दोस्तों के साथ अपने मित्र मोहन की शादी में अल्मोड़ा गया था ।...

... बहुत सुंदर शानदार प्रोग्राम रहा जमकर खूब खाया पिया खूब हुड़दंग मचाया.... एक बड़े से शानदार होटल में बरात ठहरने का इंतजाम किया गया था उसे और उसके तीन दोस्तों को एक कमरा दे दिया गया था।......

.......परंतु अचानक.... इतना. बारिश आंधी तूफान.. आया कि सारे होटल की बत्ती गुल हो गई होटल ही क्या दूर दूर तक अंधेरा छा गया जिसको जहां आश्रय मिला उस जगह घुस गया।

 विनोद के दोस्त दूल्हे के साथ लड़की वालों के घर चले गए थे 

लड़की वालों का घर दूर था।

लड़की के पिता का विशेष आग्रह था कि लड़की के फेरे उसी के आंगन में पड़ेंगे इस भाग दौड़ में विनोद अकेला होटल में रह गया ....जैसे तैसे अपने कमरे में पहुंचा ...तभी अचानक कमरे का दरवाजा फिर  खुला उसे लगा उसके दोस्त वापस लौट आए हैं!

"यहां कोई है "!

अचानक मीठी सी आवाज आई ।

"हां आ जाओ जब तक तूफान है बेझिझक अंदर आ जाओ!"

विनोद ने आगंतुक को अंदर बुला लिया।

 ढूंढ कर मोमबत्ती जलाई मोमबत्ती के प्रकाश में जो दिखाई दिया विनोद उसे देखकर आश्चर्यचकित था बहुत ही सुंदर परी जैसी लड़की 17- 18 साल की कमरे में आ चुकी थी उसने दरवाजा बंद कर दिया था !

        तूफान रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था कमरे में एक डबल बेड था उसी पर विनोद ने उसे बुला लिया और फिर...... अनायास ही मिले दो हंसों के जोड़े की तरह ही वे एक दूसरे में कब खो गए पता ही नहीं चला!

      ‌‌ विनोद को खुमारी में कुछ भी नहीं सूझा ..... बस इतना ही पता चल सका उसका नाम मिली था

उसका घर कर्नाटक खोला अल्मोड़ा में था..... सुबह 5:00 बजे विनोद की आंख खुली ,मिली, कब की जा चुकी थी...

.........और उसका प्रतिरूप उसने प्रिया के रूप में इतने लंबे अरसे पाठक देखा....उसके जीवन की वह रात फिर उसे कभी नहीं भूली ,मिली, कि उसने बहुत तलाश की पर फिर दोबारा नहीं मिली!......

...... अल्मोड़ा में उसने एक शानदार बंगला बनवाया था ,मिली, की याद में जब कभी जिंदगी में वह उदास होता उसी बंगले में चला आता था बंगले से लगे हुए ही दो बगीचे भी थे जो फूलों और फलों से गुलजार रहते थे।

 *****

....... विनोद के पास वक्त बहुत कम था और प्रिया थी कि पहुंच ही नहीं पा रही थी....

अस्पताल में आईसीयू में जैसे ही प्रिया के कदम पड़े विनोद ने उसे देखा..... मुंह से निकला बेटी! प्रिया!!और उसने अंतिम सांस ली.....!

        .... चलते-चलते विनोद एक बड़ा सा लिफाफा छोड़ गया जिस पर लिखा था" मेरी प्यारी बिटिया के लिए"....

     लिफाफे में प्रिया के नाम बंगले, बगीचों के स्वामित्व के कागजात , नकदी और जेवरात थे।  ।

✍️ अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद 

 मोबाइल फोन  82 188 25 541






...

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक की लघुकथा -------क्या ये घर मेरा नही ?


अनिता के विवाह को आठ वर्ष बीत चुके थे। इन आठ वर्षों के दरमियाँ वह दो बच्चों की माँ बन चुकी थी।पति शैलेश से उसकी कोई शिकायत न थी।

कुल मिला कर उसका हंसता-खेलता परिवार था।अगर किसी को उससे शिकायत थी, तो वह थीं उसकी सासू माँ। न जाने वह अनिता से क्या चाहती? कभी उसके किसी काम से संतुष्ट नही रहतीं।चाहे वह उनके लिये कितना कुछ करती।शुरू में तो अनिता जरा-जरा सी उनकी बात दिल पर ले लेती।करती भी क्या, आखिर उसके अपने पीहर में तो ये कभी नही देखा था उसने। उसके भी माँ ,ताई, चाची, भाभी सभी साथ रहते ,संयुक्त परिवार था उसका। कब हंस-बोल कर समय निकल जाता पता ही नही चलता।यहाँ आ कर उसे शुरू में बड़ा अखरा।एक तो इकलौती बहु थी वह उस घर की।उस पर सासू माँ की उससे यही अपेक्षा रहती कि वह सबकी अपेक्षाओं पर खरी उतरे।दिन बीतते गये।अनिता के बच्चे भी बड़े हो गये थे।लेकिन अनिता और उसकी सास आपस में कभी सामंजस्य नही बना पाये।आखिरकार अनिता ने शैलेश से रसोई अलग करने की बात कह ही दी।उसका कहना भी सही था, कि बच्चे बड़े हो रहे हैं, इन रोज-रोज की लड़ाई-झगड़ों का उन पर क्या असर पड़ेगा।शैलेश ने अपने पिता से इस बारे में बात की।वह अपनी बहू को अच्छी तरह समझते थे।आखिरकार वह इस बात के लिये राजी हो गये।अनिता अलग हो चुकी थी ।फिर भी कभी उसके मन में ये सवाल कौंध जाता, कि जिस घर के लिये मैने इतना कुछ किया, क्या वो घर मेरा नही था, क्या वो मेरे अपने नही थे।   

 ✍️ डॉ शोभना कौशिक, मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार स्वदेश सिंह की लघुकथा ----नयी शुरुआत

 


शादी के कुछ दिनों बाद रागिनी अपने पति के साथ अपनी नौकरी वाले शहर पहुंच गई। रागिनी को यह शादी बिल्कुल भी पसंद नहीं थी ....परंतु मम्मी- पापा की वजह से मजबूरी बस करनी पड़ी।.... क्योंकि रागिनी एक डॉक्टर थी और  वह चाहती थी कि उसका पति भी डॉक्टर ही हो.. परंतु.....  उसके पापा ने उसकी शादी  इंजीनियर से कर दी।...  रागिनी  बहुत उदास थी उसे सुनील पसंद नहीं था। कमरे पर पहुंचने के बाद उसने बेमन से रात का खाना तैयार किया  ...... जब रात को रागिनी और उसका पति सुनील खाने के  लिए बैठे... तो रागिनी की माँ का फोन  आ जाने के कारण  वह बात करने लगी ।  तब तक  सुनील  अपना खाना  खत्म कर चुका था। फोन रखने के बाद रागिनी ने जैसे ही  पहला कोर मुहँ में रखा.... वह  थूकने के लिए भागी ।यह देख कर सुनील ने कहा क्या हुआ .....क्या दाल में कुछ कंकड़ आ गई।..... रागिनी ने कुछ नहीं कहा और  आश्चर्य के साथ सुनील को देखते हुए बोली.... आपको दाल में नमक ज्यादा नहीं लगा !....दाल में इतना ज्यादा नमक  आपने कुछ भी नहीं कहा....... और आपने सारा खाना खा लिया।...सुनील ने मुस्कुराते हुए कहा..... अभी हमारे  जीवन की  नई शुरुआत है। .. और इसे  हम दोनो को ही प्यार से शुरू करना है .....  यह सुनकर  रागिनी को अपनी सोच पर बहुत ग्लानि हुई ।...और उसकी आंखों में आंसू टप टप गिरने लगे । यह देख कर  सुनील ने रागिनी के आँसू पोछतें हुए अपने सीने से लगा लिया।

✍️ स्वदेश सिंह, सिविल लाइन्स, मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार धर्मेंद्र सिंह राजौरा की लघुकथा ----नसीब

 


मुंह अंधेरे वो वो घर से निकल पड़ता । नदी के आंचल से रोज एक बुग्गी रेत  भरता और निकल पड़ता किसी गाँव की ओर । बरस के आठ महीने यही उसका रोजगार था ।इसके लिए उसे रोज सौ डेढ़ सौ रुपये चुकाने पड़ते पर परिवार का खर्चा चल ही जाता । चिंता में उसके आधे बाल सफेद हो गये थे।  वो औरों के पक्के घरों के लिए रेत मसाला ढोता लेकिन खुद रहता मिट्टी के कच्चे घर में, जिसका छप्पर भी पिछली बरसात में जवाब दे गया था। बड़ी बिटिया सयानी हो गयी थी। उसके हाथ कैसे पीले हो इसी फिक्र में वो आधा रह गया था ऊपर बैल भी बूढ़ा हो चला था ।

सुबह के धुंधलके में वो रेत की बुग्गी भरकर नदी की गहराई से कछार की ओर बढ़ रहा था/ बूढा बैल सहसा ठिठका । एक लाल पत्थर, जो कटान रोकने के लिए लगे थे एक पहिये के नीचे आ गया। वो झटके से बुग्गी से उतरा और बैल की नाथ पकड़ कर खींचने लगा लेकिन उस ऊचाई पर पहुँच कर बैल ने घुटने टेक दिए । क्षणभर में बुग्गी लुढ़क कर नदी की रेतीले मैंदान में जा गिरी । लाखन ने दौड़ कर बल्लियों में फंसे बैल की रस्सियाँ ढीली की लेकिन बैल के प्राण  पखेरू उड़ चुके। 

 वो घुटनों के बल गिर पड़ा । नयनों से अश्रुधारा फूट पड़ी। कौन था दुनिया में उसका । एक वही तो सुख दुःख का साझेदार था/ एक पल में उसकी रोजी रोटी छिन गयी थी/अब उसके सामने परिवार के भरण पोषण का भीषण संकट था।      

✍️धर्मेंद्र सिंह राजौरा, बहजोई

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की लघुकथा ---आस्तीन का साँप

 


नेता जी को साँप पालने का बहुत शौक था। एक से एक जहरीले साँप उनकी बगिया में पलते थे। नेताजी साँपों से बड़ा लाड़ करते थे, अपने हाथों से उन्हें दूध पिलाते थे। लेकिन इनमें से भी नागराज से उन्हें बड़ा लगाव था।

जब भी नेताजी कहीं जाते नागराज उनकी आस्तीन में छुपा रहता।

न जाने कितने मौकों पर नागराज ने चुपचाप नेताजी के दुश्मनों को निपटा दिया था। 

इसी बात का नागराज को घमंड हो गया था।

एक दिन नेताजी को अपनी आस्तीन में जरूरत से ज्यादा सरसराहट महसूस हुई तो उन्होंने नागराज को छिटक दिया। उस दिन उन्होंने उसे दूध भी नहीं पिलाया।

बस नागराज गुस्सा हो गया और उसने सोचा लिया मेरा इतना बड़ा  अपमान । अभी मालिक को निपटा देता हूं, और उसने मौका देखकर नेताजी को काट खाया।

लेकिन यह क्या, नेताजी को कुछ नहीं हुआ, उल्टे नागराज ही छटपटाता हुआ मर गया।


✍️ ,श्रीकृष्ण शुक्ल, 

MMIG 69, रामगंगा विहार,  मुरादाबाद 

मोबाइल नंबर 9456641400

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा की लघुकथा ----- - 'अपेक्षा '

 


मिस्टर ओम के दो स्कूल कॉलिज चल रहें हैं और एक डिग्री कॉलिज । दोनों कॉलिज सफलता पूर्वक शत प्रतिशत अपना रिजल्ट दे रहें हैं ।समाज में बड़ा नाम है ।कई राजनैतिक संगठनों से भी जुड़े हुए हैं कुल मिलाकर समाज में नारी शिक्षा के उदार पक्षधर होने के नाते नारी की सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए कई संगठनों को आर्थिक सहायता देने भी कभी पीछे नही हटते ।घर में उच्च शिक्षा प्राप्त पत्नी है ।पत्नी के नाम मिस्टर ओम ने बहुत जायदाद कर रखी है ।वह बड़ी निर्भीक और हंसमुख , बड़ी मनमौजी स्वभाव की है और एक पुत्री है ।पति -पत्नी दोनों का ही सारा ध्यान अपनी बेटी सारा पर ही रहता है। उनका बस चले तो वह अपनी बेटी को आज ही बड़ी एम.बी बी . एस डाक्टर की उपाधि दिलवा दें ।नीट की दूसरी बार परीक्षा दी है लेकिन वह क्वालिफाई कर पायेगी अथवा नही ,उसे स्वयं विश्वास नही हो पा रहा था । लेकिन मिस्टर ओम दिल और दिमाग से किसी भी तरह चाहते थे कि वह कम से कम क्वालिफाई तो कर ही ले जिससे वह उसका दाखिला बड़े से बड़े मेडिकल काॅलिज में करवा सकें आखिर वह किसके लिए कमा रहे हैं अगर वह अपनी बच्ची को ही प्रतिष्ठित और सबसे मंहगा मुकाम न दिलवा सके तो ।समाज में उनके नाम की धज्जी उड़ जायेगी कि वह अपनी बेटी को ही कुछ न बना सके ।उनका रात दिन का चैन उड़ गया ,ईश्वर से बहुत प्रार्थनाएं कीं ।न खाने को दिल चाहता था न कुछ पीने को ।यह सब देखकर सारा सहम गई थी ।उसका खून मानो सूखता जा रहा था वह अपने पापा को जानती थी कि वह जो भी चाहते थे उसे पूरा करने में एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं चाहे कुछ हो जाये ।नही तो वह जाने क्या क्या कर सकते थे ।मम्मी को ताने मारना ,भला बुरा कहना ।तुम कुछ नही कर सकतीं ।अपनी बेटी पर ही तुमसे ध्यान नही दिया गया और क्या करोगी ? कौन सी सुविधा देने में मुझसे कमी हुई ।वह कुछ कह ही नही पा रही थी ।टेंशन में उसकी शुगर बढ़ने लगी ।बस सारा को एहसास भी नही होने देना चाहती थी ।जैसे ही मिस्टर ओम घर में घुसते ,आतंक सा छाने लगता।सारा और उसकी मम्मी विनीता का दम हर समय घुट रहा था ।सारा चुपके -चुपके रोती रहती लेकिन भयवश वह अपने पापा मम्मी से कुछ कह नही पा रही थी लेकिन बहुत सारे सवालों का बबंडर उसके दिमाग में था ।

✍️ मनोरमा शर्मा , अमरोहा 

बुधवार, 18 नवंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेन्द्र शर्मा सागर की कहानी ---- दादी


चिंटू अरे ओ चिंटू,,,, 

अस्सी बरस की रामकली बिस्तर पर लेटे लेटे अपने पोते को पुकार रही है। 

रामकली बूढी अवश्य हो गई है किंतु जीवन जीने की आशा ने उसे कभी जीर्ण होने नहीं दिया। खाल सिकुड़ अवश्य गई है किंतु मन की तरुणाई कहीं उसके मनन करते मन के किसी कोने में अभी भी जीवित है और जीवन की इसी आशा ने कभी उसके हाथ पांव को जड़ करने की जुर्रत नहीं की लेकिन अब हाथ पांव में कम्पन अवश्य होने लगा है। 

क्या हुआ जो चन्द कदम चलने के प्रयास में साँस चढ़ जाती है। इस से उसके मन के दौड़ते मनोभावों को तो विराम नहीं लगता। 

वह पुनः अपनी खटिया में लेट कर मन की कल्पना के अश्व पर सवार हो चल पड़ती है, अपनी विचार यात्रा पर। 

उसका साठ साल का बेटा रामधन जो खुद भी बूढ़ा हो चला है , किन्तु माँ की दृष्टि उसे अभी भी तरुण ही समझती है , और अपनी नसीहत न मानने पर ,मन ही मन खीझती है।

रामकली की कल्पना कभी उसे खेत पर ले जाती है जहाँ, रामधन अपने खुद की तरह जीर्ण होते बैलों के कंधे पर जुआ रखे, उसमे हल बांधे  इनके पीछे-पीछे हाथ में लकड़ी लिए कभी पुचकरता कभी भद्दी गालियां देता कभी मारता हुआ चल रहा है। 

रामकली सोचती कितने निकम्मे बैल हो गए हैं । मार से भी नहीं बढ़ते ,बेचारा 'रामधन' इस गति से कैसे इतने बड़े खेत को जोत पायेगा ,अभी तो तीन हिस्सा बाकी है। 

यही बैल रामधन के बापू की एक हांक पर कैसे हवा से आंधी बन जाते थे और आज देखो,,,!!!

रामधन के बापू का ख्याल आते ही रामकली के झुर्रियो भरे गाल लाल हो गए और कुछ क्षण के लिए झुर्रियों के बीच से बीस वर्ष की लजाती हुई सोहनलाल को छिप कर देखती हुई रामकली प्रकट हो गई। 

जो दोपहर को मटकती लहराती रोटी की पोटली बांधे पतली मेड़ो से होकर रास्ता छोटा करते हुए खेत पर जा रही है। उसे मन मीत से मिलने की शीघ्रता है या उन्हें जल्दी खाना खिलाने की लालसा ये तो उसका मन ही बेहतर जाने।

इसे दूर से आता देख सोहन भी बैलों को हल से मुक्त कर पेड़ के नीचे घास पर बैठ जाता।

बैल भी शायद उसके आने से प्रसन्न हो जाते ,ये कार्य मुक्ति की प्रसन्नता है,,, 

"नहीं नहीं" रामकली बैलों के लिए गुड़ के ढेले लेकर आती है उसी लालच में बैल पूंछ पटकते हैं। 

सोहन जब तक भोजन करता रामकली उसके मुख को तकती लजाती रहती। कितना प्यार करते थे रामधन के बापू उसे।

और वह खो जाती प्रेम मिलन की उस अद्भुत कल्पना में जिसमेंं उसके पूरे बदन में जोश और लज्जा के साझा रक्त संचार से ,कुछ पल को जवान रामकली लौट जाती। उस कल्पना में रामकली कभी मुस्कुराती कभी लजाती कभी खुद में ही सिमट जाती कितने भाव उसके मुख की भाव भंगिमा की बदलते रहते। 

अब रामकली अपने मन की कल्पना के घोड़े को एड लगाती चली जाती मोहन की दुकान पर । 

मोहन रामकली का पोता और रामधन का लड़का है ,पैंतीस बरस का मजबूत सुंदर जवान। 

रामकली को उसमेंं सोहन की छवि दिखती है वो उसे देख कर बलिहारी जाती है ।

जुग-जुग जिए मेरा मोहन बिलकुल अपने दादा पर गया है। आज अगर बो होते तो देखते रत्ती भर का बी फर्क नई पडा सूरत में बोही नयन नक्शा बैसे ही चौड़े कंधे।

काश !!!  वह होते आज ,,,

सोचकर रामकली की आँखे गीली हो गईं ।

यही मोहन दो बरस का था जब इसे बरसात की उस  रात उलटी दस्त लग गए थे । 

गांव के हकीम जी ने कहा सोहन शहर ले जा बच्चे को यहाँ इलाज़ ना है अब इस बीमारी का। सारे गांव में बीमारी फैली है साफ सफाई बी ना है गांव में जल्दी कर । 

और सोहन रात में ही मोहन की छाती से लगाए दौड़ गया था शहर की और ।

कोई सवारी का साधन नहीं था बस बही बैल गाड़ी। और सोहन ने कहा बैलगाड़ी से जल्द तो मैं पहुंच जाऊंगा बटिया से दौड़ कर ।  भीगते भागते दौड़ते उसने मोहन को तो बचा लिया, शहर ले जा कर, लेकिन खुद को मियादी बुखार से न बचा पाया ,और छोड़ गया रामकली को बेसहारा । 

तब से मोहन को रामकली ने अपना साया देकर पाला । अपनी सारी शक्ति अपना सारा सुख और मन के सारे कोमल भाव लगा दिए रामकली ने परिवार को पालने में।

चिंटू उसी मोहन का सात बरस का बेटा है। आजकल रामकली सोच रही है रामधन के बापू ने जन्म लिया है चिंटू के रूप में और अपना संपूर्ण वात्सल्य लुटा रही है ,अपने इस पड़पोते पर। 

आज कोई उसे लड्डू दे गया था सुबह बस वही पल्लू के कोने में बांधे पुकार रही है,, चिंटू अरे ओ चिंटू कहाँ है रे,,, 

तभी कहीं से चिंटू लौट आया,, क्या है दादी,, ?

हर वक्त चिंटू- चिंटू बोल क्या काम है,,??

ये वात्सल्य के परदे से बंद आँखे सब अनदेखा करती टटोल कर पल्लू खोलती लड्डू निकलती है।

हैं !!लड्डू,, 

कहाँ से लाई दादी ,

मेरी प्यारी दादी कहते हुए चिन्टू उसकी गोद में घुसकर लड्डू में मुँह मारने लगता है।

✍️ नृपेन्द्र शर्मा "सागर",ठाकुरद्वारा




मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा -----हार्न

 


सडक़ पर जाती लड़कियों के समूह पर फब्तियों की बौछार करनेवाले कुछ मजनुओं की मंडली को तितर -बितर करने के लिए राहुल ने फुल आवाज में बिना आवश्यकता के हार्न बजाया । सुरक्षा को महसूस करती वे सब आगे बढ़ गयीं ।उनकी मंद मुस्कान में मुझे अपनी  बेटी का चेहरा दिखने लगा ।

✍️डॉ प्रीति हुँकार, मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कहानी ----एक खत जिन्दगी के नाम


डियर जिन्दगी,

पता है मैं तुम्हें हमेशा प्यार करती आयी हूँ।लेकिन कभी-कभी बहुत झल्लाया है तुमने और बहुत बहुत रूलाया भी,इतना कि ……

मौत से दोस्ती करने को जी चाहा......हाँ-हाँ उसी मौत से जो तुम्हारी दुश्मन है|

पर कुछ तो है तुम में कि तुम्हारे दिए इतने जख्मों के बावजूद मौत मुझे तुम्हारे खिलाफ बरगला न सकी,

अच्छा ही हुआ.....वरना मैं उन खूबसूरत पलों के तोहफे कैसे खोल पाती जो तुमने छुपाकर रखे थे अपने पहलू में मेरे लिए|कैसे जान पाती कि तुम जो मुझे इतनी बुरी लगती हो कभी कभी......अनिर्वचनीय सुन्दर,रोमांचक और अद्भुत भी हो|

  वक्त की भट्टी में तपते तपते तुमसे मेरी दोस्ती अब गहराती जा रही है और तुम्हारे प्रति मेरा प्रेम भी बढ़ता जा रहा है|मैं अब तुम्हें समझने लगी हूँ,समझने लगी हूँ कि ये जो तुम कभी-कभी रूखी और कठोर हो जाती हो न,वो तरीका है तुम्हारा मुझे सँवारने का,मुझे निखारने का|वाकई तुम मेरी बेस्ट फ्रेण्ड हो,डियर जिन्दगी|पर एक बात कहूँ.....जब कुछ लोग तुम्हें समझ नहीं पाते और तुम्हारे दिए हुए चंद जख्मों के कारण तुम्हें खलनायक समझकर छलावी मौत से दोस्ती कर लेते हैं न,तो मुझे बड़ा अफसोस होता है|उस वक्त मेरा मन करता है काश मैं या मुझ जैसे वे लोग जिन्होंने जिन्दगी से दोस्ती कर ली है और जो मौत के छलावे से बच निकल आये हैं,उन्हें तुमसे रूठकर मौत से दोस्ती करने जा रहे लोगों को समय पर पहचानने और समझाने का एक मौका मिल जाता तो असमय होने वाली मृत्यु-मित्रता को रोका जा सकता|

   मैं तुम्हारी दोस्ती की अहमियत समझती हूँ डियर जिन्दगी और इसीलिए मैं तुम्हें प्यार करने वाले,तुम्हें चाहने वाले,तुम्हें शिद्दत से जीने वाले दोस्तों की संख्या बढ़ाना चाहती हूँ|

  आशा करती हूँ मेरी इस कोशिश में तुम भी मेरा साथ दोगी।दोगी न....

✍हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की लघुकथा ----कोई खास बात तो कही नहीं

     


रश्मि ने दादाजी के कमरे से बाहर आकर घबराहट भरे स्वर में सभी घरवालों को बताया कि दादा जी ने सबको अपने कमरे में बुलाया है । सुनकर सब सोच में पड़ गए कि आखिर दादा जी क्या कहना चाहते हैं ? अभी थोड़ी देर पहले जब रश्मि दादा जी को चाय देने गई थी तब उससे यह बात उन्होंने कही थी।

         दादाजी की आयु लगभग 75 वर्ष हो गई है । परिवार में उनके तीन बेटे और तीन बहुएँ हैं । पोते - पोतियाँ हैं। रमेश ने सन्नाटे को तोड़ा और कहा " हो सकता है ,दादा जी वसीयत बना रहे हो और हम सबको सूचित करने के लिए बुलाया हो ?"

           सुनते ही विमल की पत्नी विनीता भड़क गई ।"यह भी कोई समय है वसीयत बनाने का ? कल ही तो चाय देने में मुझे देरी हो गई थी और दादा जी नाराज हो गए थे।  लेकिन इसका मतलब यह थोड़ी है कि वह वसीयत बना दें!"

        आनन्द ने इस पर सबको शांत किया और कहा " हो सकता है ,मकान बेचने की बात कर रहे हों। क्योंकि हम लोग सिविल- लाइन शिफ्ट होना चाहते थे तथा दादाजी ही इस पर आपत्ति करते रहे थे।"

       रश्मि का कहना कुछ अलग था ।  उसने कहा " मेरे ख्याल से दादाजी घर के खर्चों   के बारे में चिंतित हैं । हमारे खर्चे ज्यादा हैं। बैंक से लोन बहुत ज्यादा है और उनको चुका भी हम नहीं पा रहे हैं। ऐसे में हो सकता है ,कार बेचने की बात या अम्मा जी के पुराने जेवर बेचने की बात दादाजी करना चाहते हों ! बुलाया किसी भी कारण से क्यों ना हो , लेकिन अब चलकर दादाजी की बात तो सुननी ही होगी ।"

          सब डरे - सहमे हुए और मन में अनेक आशंकाएँ लिए हुए दादा जी के कमरे में दाखिल हुए । दादाजी कुर्सी पर बैठे हुए थे। सब को देखते ही उन्होंने कहा "थोड़ा दूर- दूर बैठो ।"

        सब लोग दूर-दूर बैठ गए । दादा जी ने कहा "मैं कई दिनों से एक बात नोट कर रहा हूँ  कि तुम लोग घर से बाहर निकलते समय मास्क नहीं लगा रहे हो। इतना ही नहीं मुझे यह भी सुनने में आया है कि तुम भीड़भाड़ वाले इलाकों में भी अब जाने लगे हो । लौटकर आ के  साबुन से हाथ भी नहीं धो रहे हो ?"

      विमला ने बीच में ही टोक कर कहा "दादा जी ! मैं तो कहीं भी आती - जाती नहीं हूँ । "

     इस पर दादाजी थोड़ा क्रोधित हुए और बोले " मैं किसी की सफाई माँगने के लिए आज मौजूद नहीं हूँ। न मैं कोई आदेश तुम लोगों को दे रहा हूँ। मैं तो केवल एक पिता के नाते तुम को सलाह दे रहा हूँ कि अपनी भी भलाई का काम करो, मेरी भी भलाई का काम करो और जिसमें घर के छोटे- छोटे बच्चों की भी भलाई निहित है ,वही आचरण करो । जब भी घर से निकलो तो मास्क पहनो , भीड़ वाले इलाकों में मत जाओ , जिन लोगों से मिलो उनसे 2 गज की दूरी रखो और जरूरी काम से बाजार जाना पड़े घर से बाहर निकलना पड़े, यह तो जरूरी है लेकिन जब भी लौट कर आओ तो साबुन से हाथ जरूर धोओ । साफ - सफाई का जितना ध्यान रखोगे ,उतना ही बीमारी से  बचे रहोगे और स्वस्थ रहोगे । अब तुम लोग जा सकते हो ।"

       सुनकर सब लोग एक - एक करके दादा जी के कमरे से बाहर चले गए और बाहर जाकर सब की फुसफुसाहट सुनने में आई " कोई खास बात तो कही नहीं ,जिसके लिए दादा जी ने हम सब को बुलाया हो ? "

               उसी समय टेलीफोन की घंटी बजी और रमेश ने फोन उठाया ।फोन पर बात करते-करते उसने धीमे से यह शब्द कहे " क्या मौसा जी की मृत्यु कोरोना से हो गई ???"

        सुनते ही सबको साँप सूँघ गया। मौसा जी का  स्वास्थ्य उनकी उम्र के हिसाब से अच्छा था। लेकिन यह सुनने में आ रहा था कि वह और उनके बच्चे बहुत लापरवाही बरत रहे थे।

 ✍️ रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)

मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघुकथा ----बेचारी मां


तीनों भाई आपस में इसी बात का फैसला नहीं कर पा रहे हैं कि माँ को कौन अपने पास रखेगा।बड़ा भाई दूर नौकरी करने की दलील देकर बच कर साफ निकल जाता है।मंझला भाई पत्नी की  तबियत खराब चलने के कारण मां की सही देख भाल न हो पाने की बात कह कर अपना पीछा छुड़ा लेता है। 

    सबसे छोटा भाई शर्माते हुए अपनी पत्नी से पूछता है शोभा तुम बताओ क्या किया जाए।मेरी तो माँ है,मैं तो तुम्हारे ही ऊपर हूँ। तुम अगर माँ की सही देख-भाल कर सको तो मुझे खुशी होगी।

      तभी शोभा तुनककर बोली देखो जी दो बड़े भाइयों ने तो अपनी अपनी गाथा गा दी और पीछा छुड़ा लिया, क्या हम पर ही कुबेर का खजाना गढ़ा है।छोटी सी नौकरी दो-दो बच्चों की पढ़ाई लिखाई,हारी-बीमारी,इन्हीं के कपड़े-लत्ते बनाना भारी पड़ता है।ऊपर से इनका मुश्तकिल बोझ भी हमीं उठाएं यह तो खूब रही।तुम्हारी तो मति मारी गई है भाइयों के आगे तो भीगी बिल्ली हो जाते हो।जुबान को लकवा सा मार जाता है।मैं कुछ कहना भी चाहूँ तो,,,,,,,

          अब साफ साफ सुन लो जी, या तो ये ही रहेंगी या फिर तुम ही रहना अपने बच्चों के साथ।मेरी बात मानों तो माँ को

वृद्धाआश्रम में भेज दो सारा झंझट ही खत्म।में तो खुद ही बीमार सी रहती हूँ।

      जैसा तुम कहो,,,,,,,,

तभी अचानक भाइयों की इकलौती बहन बीना आ गई ।सारी बातों को सुन कर हैरान रह गई ।तुरत ही मां से बोली माँ,जल्दी चलो अब यह घर तुम्हारे रहने लायक नहीं रह गया है।अब तुम हमारे साथ रहोगी।हमें भी तुम्हारे आशीर्वाद की ज़रूरत है।

      बिटिया माँ को अपने साथ ले जाती है।घर को मुड़-मुड़कर निहारती रहती है "बेचारी माँ"              

✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी , मुरादाबाद, उ,प्र, 

मो0-    9719275453

         

मंगलवार, 17 नवंबर 2020

वाट्सएप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। मंगलवार 13 अक्टूबर को आयोजित बाल साहित्य गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों प्रीति चौधरी, रवि प्रकाश, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, राजीव प्रखर, दीपक गोस्वामी चिराग, नृपेंद्र शर्मा सागर, डॉ शोभना कौशिक, कमाल जैदी वफ़ा, मनोरमा शर्मा, अशोक विद्रोही, डॉ श्वेता पूठिया, रामकिशोर वर्मा, डॉ प्रीति हुंकार, डॉ रीता सिंह, श्री कृष्ण शुक्ल, धर्मेंद्र सिंह राजौरा और शिवअवतार सरस की रचनाएं


जगत में डर हँसाई का 

बहुत मुझको सताता है
देखकर रीत दुनिया में
मन घबरा यह जाता है
माँ ममता का आँचल है
बहुत ही याद आता है

अपनी आँखों के आँसू -
जब-तब  रोते रहते हैं
दुनिया में अपमान सभी
चुपचाप यही सहते हैं
माँ-गोदी में सोने को --
हर-पल मुझसे कहते हैं।

हृदय लगाकर अपने, माँ !
मुझको आज सहारा दो !
डूब रही जीवन-नैया ----
अपना इसे किनारा दो !
जिसमें दिख जाये हर पल
मुझको वही नज़ारा दो !!
                   
✍️  प्रीति चौधरी, गजरौला, अमरोहा
------------------------------------------------



झूल  रहा  है  टॉमी   जमकर
बच्चों  जैसी  आदत  पड़कर

कहता  है  हम  भी  तो  बच्चे
कुत्ते  हैं ,पर   मन   के   सच्चे

अगर पार्क में मालिक ! आओ
हमको  भी  तो  संग  खिलाओ

छोटा   भाई   समझ  बुला  लो
जब  तुम  झूलो ,हमें  झुला लो

✍️ रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997615451
-------------------------------------



गीदड़ को  मिल  गई बांसुरी,
लगा        छेड़ने          तानें,
मैं   ही   संगीतज्ञ   बड़ा   हूँ,
सभी       जानवर       जानें।
        
जो  संगीत   सीखना   चाहे,
पास     मेरे     आ      जाए,
ढोलक, ढपली और  मंजीरा,
दिनभर       खूब      बजाए,
पैसा  नहीं   रोज़   मुर्गा   ही,
फीस     मेरी      है     जानें।
गीदड़ को-----------------

कान खोलकर सुन लो मेरी,
फीस     नियम से      आए,
दुबला -पतला  नहीं  चलेगा,
मोटा         मुर्गा         लाए,
गद्दारी  करने   की  मन   में,
तनिक    न    कोई      ठानें।
गीदड़ को------------------

मैंने  अपने   गुरु  "गधे"   से,
कभी    न     की    मनमानी,
ढेंचू - ढेंचू   की    तानों    से,
सीखी       बीन       बजानी,
गुरु  गुरु   होता   है   उसकी,
महिमा        को      पहचानें।
गीदड़ को-------------------

सुबह  दुपहरी से  संध्या तक,
सबको       लगा      सिखाने,
मुर्गा, बत्तख,  खरहा, कबूतर,
खुलकर       लगा       चबाने,
कहा  शेर  ने  शोर   कहाँ   से
आया    हम      भी       जानें।
गीदड़ को--------------------

पहुंच  गया  जंगल  का  राजा,
सूंघ           सूंघकर        राहें,
उड़ा   रहा   था  दावत  गीदड़,
सान          सानकर       बांहें,
देख  शेर  को  थर-थर   काँपा,
भूल      गया      सब      तानें।
गीदड़ को---------------------

✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
  मो0-   9719275453
  -------------------------------------



चलो साथियो, हम मिल जुल कर,
इस बगिया को फिर महकायें।

सुंदर-सुंदर पौधे इसके,
जो दिखते हैं अब मुरझाये।
सोचो कैसा जतन करें हम,
क्यारी-क्यारी फिर मुस्काये।
ज़ात-पात से ऊपर उठ कर,
जन-जन के मन को  हर्षायें।
चलो साथियो, हम मिल जुल कर,
इस बगिया को फिर महकायें।

तेरा, मेरा, इसका, उसका,
काहे का यह झगड़ा प्यारे।
ऐसी पौध लगा दें इसमें,
जिससे भीतर का तम हारे।
पग-पग ऐसी ख़ुशबू बोकर,
सब इसके माली बन जायें।
चलो साथियो, हम मिल-जुलकर,
इस बगिया को  फिर महकायें।

✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद
----------------------------------------



आया गाड़ी वाला, घर का कूड़ा निकाल।
गीले को नीले, सूखा, हरे में डाल ।

घर और आफिस साफ रखें हम।
रोग-बिमारी फिर होंगे कम।
नाली में डेली, किरोसिन तू डाल।
आया गाड़ी वाला, घर का कूड़ा निकाल।

मक्खी-मच्छर मार गिराएं।
डेंगू-मलेरिया दूर भगाएं।
कूलर औ'र गमलों का पानी निकाल।
आया गाड़ी वाला, घर का कूड़ा निकाल।

गली-मोहल्ले,सड़कें या रोड।
कूड़ा क्यों इन पर देते हैं छोड़?
सुधरेंगे नहीं तो, होंगे बेहाल।
आया गाड़ी वाला, घर का कूड़ा निकाल।

मास्क लगा कर मुंँह पर रखना।
हाथों को धोना, सैनेटाइज करना।
आएगा कोरोना का भी काल।
आया गाड़ी वाला, घर का कूड़ा निकाल।

✍️ दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिवबाबा सदन, कृष्णाकुंज
बहजोई (संभल) उत्तर प्रदेश
मो - 9548812618
ईमेल -
deepakchirag.goswami@gmail.com
-----------------------------------------------------



घर में हो गयी नैक लड़ाई,
चुन्नू सिंह को रास ना आई।
चुन्नू सिंह ने उठा के झोला,
चुपके से दरवाजा खोला।
दरवाज़ा भी चुगलखोर था,
धीरे से चूं चूं चूं बोला।
दादी सोई थी आंगन में,
नींद नहीं उनकी अँखियन में।
चुन्नू कब जब जाते देखा,
दादी ने एक कुइश्चन पूछा।
कहां चले तुम चुपके चुपके,
घर में सबसे यूँ ही छिपके।
क्या कोई तेरी गर्ल फ्रेंड है,
जिसकी खातिर होता सैंड है।
बोला चुन्नू कोई नहीं है,
अब इस घर की बहुत सही है।
छोड़ रहा हूँ ये घर आंगन,
लेकिन नहीं मैं किसी का साजन।
बोली दादी दिल मत तोड़,
मत जा बेटा मुझको छोड़।
मैं भी तो कितनी एकाकी,
रोज सुनाती तेरी काकी।
या मुझको भी साथ में ले ले,
चलते दोनों साथ अकेले।
या फिर मेरी खातिर रुक जा,
मिलकर दोनों साथ में खेलें।
बोला चुन्नू तब मुस्का कर,
दादी जी को गले लगाकर।
दादी मेरी कितनी प्यारी,
लो ये रुक गयी यहीं सवारी।।

✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर", ठाकुरद्वारा
----------------------------------------------



मस्ती बच्चो की"
बच्चे सच्चे होते हैं।
दिल के अच्छे होते हैं।
खेल खेल में बीता पल।
न जाने कब निकला कल।
नही कोई इनको चिंता फिक्र।
हो जाये मस्ती बस यही खबर।
लाखो में एक न्यारे होते हैं।
दिल के प्यारे होते हैं।
बच्चे सच्चे होते हैं।
दिल के अच्छे होते हैं।
✍️ डॉ शोभना कौशिक, मुरादाबाद
------------------------------–----------


अम्मी  फिर आ जाओ ना
दीदी को सबक सिखाओ ना।
सब मिलकर है मुझे सताते,
बिना बात ही मुझे रुलाते।
सबकी मार लगाओ ना,                                           अम्मी फिर आ जाओ ना।                                          अल्लाह मियां ने तुम्हें बुलाया,
सब लोगो को बहुत रुलाया
मेरा बुलावा क्यों न आया।                     
अल्लाह से बात कराओ ना
अम्मी फिर आ जाओ ना
अम्मी जी यह दुनिया बुरी है,
सबकी ज़बाने तेज छुरी है।
घर की अब न कोई धुरी है।
सबको आकर समझाओ ना
अम्मी फिर आ जाओ ना।
झूठी तोहमत मुझ पा लगाते,
बात बात पर मुझे चिढ़ाते।
सारा काम मुझसे  कराते।
न मानूं तो बड़ा सताते।
मुझको और रुलाओ ना
अम्मी फिर आ जाओ ना।

✍️ कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
सिरसी (सम्भल)
9456031926
-----------------------------------------



अपनी ममता प्यार लुटा कर
पाला -पोसा बड़ा किया
ज्ञान -मान का तुमको प्रतिफल
मिले,सोच अनुष्ठान किया ।

देखो विश्वास किया तुमने
उसका प्रतिफल तुम्हे मिला
प्रतिदानों में तुम भी बच्चों
माँ पापा का ध्यान रखो ।

करुण ह्रदय में विकसित होती
आशीर्वादों की ममता
ममता को झुठलाकर उनकी
कभी न तुम अभिमान करो ।

✍️ मनोरमा शर्मा, अमरोहा
---------------------------------------



रंग बिरंगी चंचल तितली,
              मेरे मन को भातीं हैं।
जब भी उनको छूना चाहूं ,
             दूर बहुत उड़ जातीं हैं।।
मन चाहे मेरा भी एक दिन,
          तितली बन कर उड़ जाऊं।
नील गगन में उड़ते उड़ते,
                दूर देश में हो आऊं।।
न कोई सीमा का बंधन,
                न कोई मजबूरी हो।
जब जी चाहे सैर करूं मैं
              चाहे कितनी दूरी हो।।
घर के बाहर की ये दुनिया
          अक्सर मुझे बुलाती है।।
रंग बिरंगी चंचल तितली,
              मेरे मन को भातीं हैं।।
सारी दुनिया उड़कर घूमूं,
            ‌‌    देश देश में जाऊं मैं।
जानू हाल सभी का उनको ,
       ‌     अपना हाल सुनाऊं मैं।।
दुनिया ही अपना घर हो  तो
            फिर काहे घबराऊ मैं।
देश देश के सब बच्चों को ,
         मिलकर दोस्त बनाऊं मैं।।
प्रेम प्यार भाईचारे की ,
            बातें मुझे सुहाती हैं।।
रंग बिरंगी चंचल तितली ,
             मेरे मन को भातीं हैं।।
किसी देश की सीमाएं फिर,
              मुझे रोक न पाएंगी ।
जैसे नदी पवन का झोंका,
              रोज बहारें आएंगी।।
जब ईश्वर ने ये सारा जग ,
             सबके लिए बनाया है।
चंदा सूरज, जल थल अंबर,
            सब में वही समाया है ।।
फिर क्यो रचते पथ विनाश के,
           मुझे समझ नहीं आती है।।
रंग बिरंगी चंचल तितली ,
     ‌          मेरे मन को भातीं हैं।।
क्यों मानव ने इस धरती को,
              सीमाओं में बांट दिया।
हथियारों की होड़ लगाई,
            प्रेम वृक्ष को काट दिया।।
बैर-दुश्मनी युद्ध-लड़ाई ,
                बर्बादी ले आयेगा‌।।
यदि नहीं संभले तो एक दिन,
           विश्व युद्ध छिड़ जाएगा।।
बारूदी ढेरों पर दुनिया,
           मेरे होश उड़ाती है।।
रंग बिरंगी चंचल तितली ,
         मेरे मन को भाती है।।

✍️ अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
82 188 25541
-------------------- -------------------------



प्रभु  हम बच्चे हैं अज्ञानी,
आपकी  महिमा हमने मानी।
दे दो साहस और ज्ञान
जिससे हो सबका कल्याण,
प्रभु आप हो सर्वशक्तिमान।
हम नन्हें नन्हें बच्चे
पर मन के है सच्चे।
आपकी कृपा जो पा जायेगे
जीवन में कुछ कर जायेगे।
हम बच्चे हैं अज्ञानी
आपकी महिमा हमने जानी।।

✍️ डॉ श्वेता पूठिया,मुरादाबाद
-------------------------------------------



तन-मन स्वस्थ बनाना चाहो
जल्दी से बढ़ जाना चाहो ।
याददाश्त यदि तेज बनाना
ध्यान-योग होगा अपनाना ।।

मार पालथी बैठो ऐसे
छुए कलाई घुटनों जैसे ।
खोल हथेली ऊपर करना
कमर तनी अरु सीधी धरना ।।

अपने प्रभु का ध्यान लगाना
आंँख बंद उनमें खो जाना ।
मन पर लगाम कसनी होगी
चित्त शांत के होगे भोगी ।।

ॠषी-मुनी से बन सकते हो
दिव्य दृष्टि भी पा सकते हो ।
सरल चलाना जीवन होगा
भाव सदा ही निर्मल होगा ।।
✍️ राम किशोर वर्मा,  रामपुर
-------------------------------------



मैं कोयलिया काली काली
मेरी बोली बड़ी निराली
मधुर वचन से जग को जीतो,
कहती फिरती डाली डाली।

कटु वचन तो चुभें शूल से
मधुर वचन तो लगें फूल से
कड़वी वाणी छोड़ो बच्चों
कभी न बोलो इसे भूल से।
सबसे हम अच्छा ही बोलें
नहीं कभी भी देना गाली ।

सब रोगों की एक दवाई
नही रहेगी कहीं लड़ाई
सबको अपने गले लगाओ
जैसे रहते भाई भाई ।
श्याम वर्ण है मेरा बच्चों
प्रेम की शिक्षा देने वाली ।

✍️ डॉ प्रीति हुँकार ,मुरादाबाद
----------------------------------------



छुक छुक छुक छुक करती रेल
बड़ी तेज है चलती रेल
नदी पहाड़़ खेत चीर कर
इनके ऊपर चढ़ती रेल ।

नानी मामी बुआ मौसी
सबके घर पहुँचाती रेल
दादा दादी चाचा चाची
सबसे है मिलवाती रेल ।

सड़क सुरंग मैदानोंं में
सरपट दौड़ी जाती रेल
चिंटू मिंटू राजू रामू
मन सभी के भाती रेल ।

✍️ डॉ रीता सिंह, मुरादाबाद
---------------------------------------



पर्व दशहरा का जब आया।
छोटू जी ने खेल रचाया।
सब बच्चों को पास बुलाया ।
अपने मन का प्लान बताया ।
खेल अनोखा हम खेलेंगे।
रावण का पुतला फूंकेंगे।
सबको उनका रोल बताया।
रावण का पुतला बनवाया।
कालोनी के बीच पार्क में,
दृश्य युद्ध का गया रचाया।
छोटू ने फिर तीर चलाया।
मोटू ने पुतला सुलगाया।
धूम धूम कर फटे पटाखे,
रावण जला धरा पर आया।
फिर बुराई पर अच्छाई की,
विजय पर्व का जश्न मनाया ।
✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG 69, रामगंगा विहार,
मुरादाबाद 244001
मोबाइल नंबर 9456641400
----------------------------------------

मादा कौए ने बड़े प्यार से
सयाने बेटे को समझाया
ये मानव भी बड़ा चतुर है
भली भाँति उसको बतलाया

यदि आदमी झुके नीचे तू
झट से तू उड़ जाना
इस दुष्ट मानव के हाथों
पत्थर कभी ना खाना

कौआ बोला "तो सुनले
अगर कहीं ऐसा हो तो
क्या फिर भी रहूँ देखता
जो लिए वो पत्थर फिरता हो

✍️ धर्मेंद्र सिंह राजौरा, बहजोई
-------------------------------------------


मुरादाबाद के साहित्यकारों को पुष्पेंद्र वर्णवाल जयंती समारोह में किया गया सम्मानित

 पुष्पेंद्र वर्णवाल स्मृति न्यास मुरादाबाद के तत्वावधान में प्रख्यात साहित्यकार, इतिहासकार एवं पुरातत्ववेत्ता स्मृति शेष पुष्पेंद्र वर्णवाल की जयंती के अवसर पर 11 नवंबर 2020 को सम्मान समारोह एवं कवि गोष्ठी का आयोजन महाराजा हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय में किया गया।         वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई की अध्यक्षता में आयोजित समारोह में मुरादाबाद के साहित्यिक इतिहास लेखन एवं साहित्य संरक्षण में उल्लेखनीय योगदान के लिए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी, हिंदी साहित्य में अतुलनीय योगदान के लिए वयोवृद्ध साहित्यकार योगेंद्र पाल सिंह विश्नोई,ओज कवि विवेक निर्मल तथा हिंदी सेवा व सामाजिक कार्यों के लिए अनिल कांत बंसल को 'पुष्पेंद्र वर्णवाल स्मृति सम्मान' से सम्मानित किया गया ।    कार्यक्रम संयोजक रवि चतुर्वेदी ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। डॉ मनोज रस्तोगी ने पुष्पेंद्र वर्णवाल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला। अति विशिष्ट अतिथि डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा कि हिंदी साहित्य में हर विधा पर पुष्पेंद्र वर्णवाल की लेखनी पारंगत थी। विशिष्ट अतिथि  रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने कहा कि पुष्पेंद्र वर्णवाल ने अनेक कृतियों की रचना कर हिंदी साहित्य भंडार में वृद्धि की है । मुख्य अतिथि महाराजा हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्रबंधक डॉ काव्य सौरभ रस्तोगी ने कहा कि पुष्पेंद्र वर्णवाल साहित्यकार होने के साथ-साथ दार्शनिक, ज्योतिषाचार्य और इतिहासकार भी थे । अध्यक्ष अशोक विश्नोई ने कहा कि उन्होंने हिंदी साहित्य में विगीत विधा को जन्म दिया ।संचालक आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ ने सभी सम्मानित विभूतियों का जीवन परिचय प्रस्तुत किया।

 इस अवसर पर आयोजित कवि गोष्ठी में योगेंद्र पाल सिंह विश्नोई ने कहा---

रागयुक्त पर विरतिमय ,जिसका जीवन गान ।

यह विमोह का आचरण है विगीत का मान 

अशोक विश्नोई ने कहा----

समकालिक लेखक पुष्पेंद्र गीतकार 

जनक हैं  विगीतों के प्रेयस सुविचार 

आजीवन कविता कर नाम यश कमाया 

हिंदी के सेवक को फक्कड़पन भाया

 डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा----

इज्जत  हो  रही  तार-तार  देश में 

हो  रहे  हैं रोज  बलात्कार  देश में             

खुद ही कीजिएगा हिफाजत अपनी 

गहरी  नींद  में  है  पहरेदार  देश में                 

डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा-- दीप सद्भावना के जलाते रहें 

भाव संवेदनाएं जगाते रहें

 द्वेष दुर्गंध व्यापी पवन बह रही हम गुलाबों की फसलें उगाते रहे 

शिव ओम वर्मा ने कहा---

 वक्त हथौड़ा हो गया है

 मौत छेनी हो गई 

महामारी तेरी मार

 बहुत पैनी हो गई 

नजीब सुल्ताना ने कहा ---

कोई भूखा मारता है कोई खिलाकर मारता है

 यह सियासत है यहां कोई जिलाकर मारता है 

प्रशांत मिश्रा ने कहा---

 क्यों तुम मेरे पास आकर मुस्कुराकर चल दिए 

डॉ एमपी बादल जायसी ने कहा ---

सजी सजाई दुल्हन रह गई, बाबुल नीर बहाए 

माता रोती सौ आंसू, डोली लौटी जाए 

प्रवीण राही ने कहा----

 जब वह हम से नजर मिलाते हैं हम जमाने को भूल जाते हैं जिनकी औकात कुछ नहीं होती अपने बाजू वही चढ़ाते हैं। 

रवि चतुर्वेदी ने आभार व्यक्त किया ।















सोमवार, 16 नवंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ मीना नक़वी की शायरी पर केंद्रित योगेंद्र वर्मा व्योम का आलेख -------"ख़ुशबू के सफ़र की शायरा : डॉ. मीना नक़वी"

   


15 नवम्बर 2020 को सुबह-सुबह जब डॉ. मीना नक़वी जी के निधन का अत्यधिक दुखद समाचार सुना तो दिल धक से रह गया। सहसा विश्वास ही नहीं हुआ, लेकिन सच तो सच होता है। मीना नक़वी जी एक उत्कृष्ट रचनाकार होने के साथ साथ एक बहुत अच्छी इंसान भी थीं। उर्दू में शानदार और विशिष्ट अंदाज की शायरी करने वाली मीना जी का हिन्दी में भी महत्वपूर्ण सृजन रहा। उनकी आत्मीयता जीवनपर्यन्त शब्दातीत रही।  डॉ. मीना नक़वी के नाम से अदबी दुनिया में बखूबी पहचानी जाने वाली ज़िला बिजनौर की तहसील नगीना में 20 मई,1955 को जन्मी और वर्तमान में ज़िला मुरादाबाद के अग़वानपुर कस्बे में चिकित्सकीय वृत्ति से जुड़ी डॉ. मुनीर ज़ह्रा की शायरी के ज़र्रे-ज़र्रे में बसने वाली तहजीब और हिन्दुस्तानियत उनकी ग़ज़लों को इतिहास की ज़रूरत बनाती है। दरअस्ल उनके अश’आर में ना तो अरबी-फारसी की इज़ाफ़त वाले अल्फ़ाज़ घुसपैठ करतेे हैं और ना ही संस्कृतनिष्ठ हिन्दी के शब्द। उनकी शायरी को पढ़ने और समझने के लिए किसी शब्दकोष की ज़रूरत नहीं पड़ती। ग़ज़ल एक मुश्किल काव्य विधा है जिसमें छंद का अनुशासन भी ज़रूरी है और कहन का सलीक़ा भी। इसे इशारे की आर्ट भी कहा गया है। डॉ. मीना जी का शे’र देखें-

‘यूँ तो कुछ भी नहीं अयां मुझमें

है मगर कहक निहां मुझमें

रब्त रखते हुए ज़मीन के साथ

जज़्ब है सारा आसमां मुझमें’

ग़ज़ल की विशेषता ही यही है कि उसमें मुहब्बत की कशिश और कसक के कोमल अहसास की ज़िन्दादिली से परंपरागत अभिव्यक्ति के साथ-साथ पारिवारिक-सामाजिक सरोकार और समकालीन यथार्थ भी पूरी संवेदनशीलता से अभिव्यक्त होता रहा हैे। डॉ. मीना नक़वी की शायरी में भी इश्क, जुदाई, अना, फलसफा, मश्वरे और फ़िक्र-ओ-फ़न इस अहसास की चाशनी में पगकर अपनी विलक्षण मिठास के साथ मौजूद रहते हैं। शायद इसीलिए कराची (पाकिस्तान) के प्रसिद्ध लेखक जनाब अली मुजम्मिल डॉ. मीना नक़वी को साक्षात शायरी मानते हुए कहते हैं कि ‘उनकी शायरी के कलापक्ष और भावपक्ष दोनों ही मजबूत हैं, परम्परा में आधुनिकता का समावेश है....पाठक को हर मिसरा अपने दिल तक पहुंचता हुआ महसूस होता है।’ इन अश’आर में उनका अंदाज़-ए-बयाँ काबिल-ए-ग़ौर है-

‘बुलंदी टूट जाती है ज़रा से ज़लज़ले से ही

 ज़मीं जब आसमानों पर पलटकर वार करती है’

------------------------------

‘कामना अब याचना से यातना तक आ गई

 रक्तरंजित देह को उपचार तक लाएगा कौन

-----------------------------

वक़्त के जलते हुए सूरज की तपती धूप में

 उसकी यादों के शज़र हैं साएबानी के लिए’

   --------------------------

‘तेरी वफ़ाओं पे इतना यक़ीन हो मुझको

 तू झूठ बोले  मुझे  एतबार आ  जाए’

   -----------------------–-

अच्छे अश्आर मन-मस्तिष्क पर अपनी आहट से ऐसी अमिट छाप छोड़ जाते हैं जिनकी अनुगूँज काफी समय तक मन को झकझोरती रहती है। डॉ. मीना नक़वी की शायरी भी अपनी ऐसी ही ख़ूबसूरत आहटों की गूँज के लिए जानी जाती है। उर्दू के मशहूर शायर निदा फाज़ली कहते हैं - ‘ग़ज़ल मीनाकारी की कला है जिसमें केवल शब्दों से ही नहीं, शब्दों में शामिल अक्षरों की ध्वनियाँ, क़ाफ़ियों की ताल, छंद की चाल के माध्यम से भी बात की जाती है। यह एक ऐसी विधा है जो ख़ामोशियों की ज़ुबान में बोलती है और फ़िक्र को जज़्बे की तराज़ू में तोलती है।’ उर्दू शायरों की लम्बी फेहरिस्त में चंद लोग ही हैं जो ग़ज़ल को कहने में इन शर्तों का निर्वहन ईमानदारी से करते हैं। डॉ. मीना नक़वी का नाम ग़ज़ल-लेखन परंपरा के ऐसे ही चंद रचनाकारों में अदबी अहमियत के साथ शुमार होता है जिन्होंने छंद के अनुशासन का निर्वाह करते हुए ख़ूबसूरत कहन के साथ ग़ज़ल को नई पहचान दी। उनकी ग़ज़लों में कथ्य की ताज़गी, ग़ज़लियत की ख़ुशबू और भाषाई मिठास एक साथ गुंथी हुई मिलती ही हैं, कहीं-कहीं प्रतिरोध का स्वर भी मुखरित होता हुआ दिखाई देता है। एक शे’र देखिए-

‘हमें ही बेवफ़ा कहकर किनारा कर लिया उसने

 हमारी ज़ात पर इससे बड़ा इल्ज़ाम क्या होगा’

डॉ. मीना नक़वी की शायरी में काव्य के विविध रंग मिलते हैं, वह कभी ज़िन्दगी का फलसफ़ा समझाती हैं और कभी प्रेम की अनुभूतियाँ। नारी-मन की व्यथा को भी उन्होंने अपनी अलग ही शैली में अभिव्यक्ति दी है। दहेज की समस्या और कन्या भ्रूण हत्या जैसे अतिसंवेदनशील मुद्दे नारी अस्मिता से तो जुड़े हुए हैं ही साथ ही आज के तथाकथित रूप से विकसित व शिक्षित समाज के मुंह पर एक तमाचा भी हैं, कन्या भ्रूण हत्या के संदर्भ में समाज की भूमिका पर कटाक्ष करते हुए बड़ी बेबाक़ी से वह कहती हैं-

‘यह तो अच्छा हुआ कलियों का गला घोंट दिया

 वरना  ख़ुशबू  भी हवाओं में बिखर सकती थी’

वर्तमान में समाज चाहे कितना ही विकसित क्यों ना हो गया हो लेकिन कुछ सन्दर्भों में समाज आज भी कुंठित मानसिकता और वही पुरानी दकियानूसी रूढ़िवादिताओं के चक्रव्यूह में फँसा हुआ है, उसकी सोच में बदलाव नहीं हो सका। दहेज की समस्या भी आज उसी मजबूती के साथ समाज में बनी हुई है जितनी दशकों और सदियों पहले अपने विद्रूप रूप में थी। आज भी दहेज के कारण अनेक परिवार बिखर रहे हैं, अनेक बेटियाँ दहेज-हत्या का शिकार हो रही हैं। दहेज हत्या की पीड़ा को मीना जी की संवेदनशील लेखनी कुछ इस तरह से बयां करती है-

‘बहू ज़िन्दा जला दी जाती है इस बात को सुनकर

 मेरी  मासूम  बेटी  शादी  से  इंकार  करती है’

साथ ही तथाकथित आधुनिकता का लबादा ओढे आज के समाज की स्याह मानसिकता को उजागर करते हुए एक संवेदनशील रचनाकार की अनुभूति और कडुवी सच्चाई को अपने शे’र में ढालकर वह कहती हैं-

‘तअल्लुक़ हो न हो, ज़रदार से फिर भी तअल्लुक़ है

 हो मुफ़लिस भाई  तो  रिश्ता बताना  भूल जाते हैं’

वहीं दूसरी ओर आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता सांप्रदायिक-सद्भाव की बात को वह बिल्कुल अनूठे अंदाज़ में अभिव्यक्त करती हैं-

‘है अज़ाँ अल्लाह की और आरती है राम की

 गूँज है दोनों में लेकिन प्यार के पैग़ाम की’

डॉ. मीना नक़वी के रचनाकर्म के संदर्भ में अपनी टिप्पणी के माध्यम से जहाँ एक ओर मशहूर शायर बड़े भाई श्री कृष्ण कुमार ‘नाज़’ ने उनको दर्द को थपकियाँ देकर सुलाने का हुनर जानने वाली शायरा बताया है वहीं दूसरी ओर वरिष्ठ नवगीतकार श्री माहेश्वर तिवारी उन्हें भारत की परवीन शाकिर मानते हैं। दरअस्ल डॉ. मीना नक़वी की शायरी अलग अंदाज़ की शायरी है, ख़ुशबू के सफ़र की शायरी है। ज़िन्दगी के ऊँचे-नीचे रास्तों पर चलते हुए उनकी अनुभूतियाँ अपने आप शायरी में ढलती गईं और ये शे’र यथासमय उनकी ग़ज़लों के अंग बनते गए। तीन विषयों- हिन्दी, अंग्रेज़ी और संस्कृत में परास्नातक डॉ. नक़वी की अब तक नौ कृतियाँ- ‘साएबान’, ‘बादबान’, ‘जागती आँखें’ (तीनों उर्दू में), ‘दर्द पतझड़ का’, ‘धूप-छाँव’, ‘किरचियाँ दर्द की’ (देवनागरी और उर्दू दोनों में) तथा ‘आईना’ प्रकाशित, पुरस्कृत और साहित्य जगत में पर्याप्त चर्चित हो चुकीं हैं। अपनेे महत्वपूर्ण कृतित्व के लिए मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी, बिहार उर्दू अकादमी, बज़्मे अदब जालंधर, नज़र अकादमी मुरादाबाद, रामकिशन सिंघल ट्रस्ट शिवपुरी, साहित्यिक संस्था ‘अक्षरा’ मुरादाबाद, क़ैफ मैमोरियल सोसाइटी मुरादाबाद, अखिल भारतीय साहित्य कला मंच मुरादाबाद सहित अनेक संस्थाओं द्वारा समय-समय पर सम्मानित तथा भारत-भर ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मुशायरों के मंचों पर अपनी बेशक़ीमती शायरी से प्रतिष्ठा पाने वाली डॉ. मीना नक़वी की महत्वपूर्ण रचनाधर्मिता अपने इंद्रधनुषी रंगों वाले कथ्यों और भावों से समृद्ध है, उनकी ग़ज़लें जहाँ मन को गहरे तक छूती हैं वहीं मस्तिष्क को झकझोरती भी हैं। गंभीररूप से अस्वस्थ रहने बाबजूद भी अपने अंतिम समय तक अपनी रचना-यात्रा को प्रवाहमान  रखने वाली शायरा डा. मीना नक़वी का समग्र सृजन उर्दू साहित्य के साथ-साथ हिन्दी साहित्य में भी अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। ईश्वर उनके रचनाकर्म को रामकथा की आयु दे।

✍️ योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’                            

मुरादाबाद 244001

 उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल- 94128.05981