शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की लघुकथा ----बराबरी


"ये कंडक्टर की सीट है बहन जी,यहाँ मत बैठिए।"

"अरे भाई जरा तुम खड़े हो जाओ और बहन जी को बैठने दो।"

ड्राइवर ने सामने सीट पर बैठे अखबार पढ़ रहे युवक से कहा।पहले तो उसने अनसुना किया पर ड्राइवर के दोबारा कहने पर वह जैसे झल्ला गया।

"वाह भई वाह। वैसे तो लड़कियाँ लड़कों से कम नहीं,लड़कियों को लड़कों के बराबर समझो,लैंगिक समानता,अलाना फलाना और बसों में महिला आरक्षित सीट भरने के बाद अनारक्षित सीट पर बैठे आदमी को भी महिला के लिए उसकी सीट से उठा रहे हो।क्या कहने इस इंसाफ के?धन्य हो नारीवाद!"कहकर भुनभुनाता हुआ वह फिर अखबार देखने लगा।ड्राइवर चुप हो गया।

            पूरी बस खचाखच भरी थी।पीछे बैठे एक बुजुर्ग से रहा नहीं गया,जोर से बोले,"बेटा अगर किसी तरह पीछे आ सको तो मैं अपनी सीट तुम्हें देता हूँ।" रमोला ने कृतज्ञता भरी मुस्कान भेंट की और भीड़ की ओर देखा।

      तभी एक दूसरा युवक जो कि बस में ही खड़ा था,उस युवक से बोला,"भाई अपनी क्रांतिकारी बातें फिर कभी कर लेना,पेपर छोड़ कर जरा मैडम की हालत तो देखो।शर्म आनी चाहिए तुम्हें।"

       अब उस युवक ने रमोला को ध्यान से देखा तो हिचकिचा गया।गलती सुधार करते हुए उसने अपनी सीट से उठते हुए कहा,"माफ कीजिए मैंने पहले ध्यान नहीं दिया,आप बैठ जाइये।"

     रमोला ने अब तक रॉड के सहारे अपने को मजबूती से टिका लिया था और सीटों के बीच के स्थान पर वह सावधानीपूर्वक खड़ी हो गयी थी।दृढ़ स्वर में उसने कहा,

"कोई बात नहीं आप बैठे रहिये।मुझे तो रोज ही सफर' करना है।............

वैसे आप सही कह रहे थे बराबरी का मतलब हर बात में बराबरी होना चाहिए।............

आपका धन्यवाद कि आपने मुझे सीट ऑफर की।मैं ईश्वर से प्रार्थना करूँगी कि कभी कोई गर्भवान पुरूष इस तरह खचाखच भरी बस में असहज हो रहा हो तो आप की तरह मुझे भी उसकी सहायता करने का समान अवसर मिले।"

✍️ हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल) के साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा----- ठांय- ठांय

 


ठांय, की आवाज़ के साथ तमंचे से गोली बाहर निकली और एक बुजुर्ग की छाती में उतर गई। गोली चलाने वाले ने अपने साथी की ओर देखा और विजयी मुस्कान के साथ विक्ट्री का चिन्ह बनाकर खुशी का  इजहार किया। दूसरी गोली साथी की पिस्तौल से निकली और उसने एक नवयुवक को ढेर कर दिया. अब खुश होने की बारी साथी की थी उसने भी विक्ट्री का चिन्ह बनाकर अपने विजयी होने का एलान करते हुए खुशी प्रकट की शहर में दंगा फैला हुआ था. दोनों साथी मोर्चा सम्भाले हुए दूसरे धर्म के लोगो को निशाना बना रहे थे अब तक वह दर्जन भर लोगो को मौत के घाट उतार चुके थे। अचानक  नारे बाज़ी करती भीड़ उनके सामने आई. दोनों ने अपने अपने पिस्तौल लोड किये और भीड़ की ओर निशाना लगाया. 'अरे! नहीं वह बच्चा है।'साथी ने बच्चे को मारने से मना करते हुए उसे रोकना चाहा ।'अरे बच्चा है तो क्या हुआ? है तो विधर्मियो की ही औलाद।' कहते- कहते उसने पिस्तौल का ट्राइगर दबा दिया. ठांय की आवाज के साथ गोली मासूम की पीठ में जा लगी. बच्चा वही गिर गया गिरते हुए बच्चे के मुख से निकली आवाज़ ने गोली चलाने वाले को हिलाकर रख दिया। गोली चलाने वाला बच्चे के शव पर बिलख- बिलख कर रो रहा था क्योंकि वह उसका अपना ही बच्चा था. जो दंगे में उसे खोजता हुआ यहाँ तक आ पहुंचा था।

✍️कमाल ज़ैदी' वफ़ा', सिरसी (सम्भल)

 मोबाइल फोन नम्बर 9456031926

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा -----डोनेशन


कथा की समाप्ति के बाद भोजन प्रसाद की व्यवस्था थी। दो सब्जी,रायता,पुलाव,पूरी के साथ देशी घी का मेवायुक्त हलवा और गुलाबजामुन भी बनवाए गए थे। आयोजकों ने भरपूर मात्रा में सामान बनवाया था,लेकिन उम्मीद से अधिक श्रद्धालुओं के आ जाने के कारण बाद में व्यवस्था गड़बड़ा गई।किसी को एक सब्जी मिली,किसी को रायता,किसी को पुलाव। भीड़ इतनी असंयमित हो गई कि लोग कथा की बातेंं भूलकर ,एक दूसरे पर दोषारोपण करने लगे। हद तो तब हो गई जब एक सज्जन चिल्लाने लगे "हमने दस हजार रुपए डोनेशन दिया था, हमें न हलवा मिला, ना गुलाब जामुन।जिन्होंने एक धेला नहीं दिया, वे सारा माल उड़ा गए।"

✍️डाॅ पुनीत कुमार

T -2/505, आकाश रेजिडेंसी

मधुबनी पार्क के पीछे

मुरादाबाद -244001

M - 9837189600

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा -- लिटरेरी इनविटेशन


"​नील जी क्यों न साहित्यिक संध्या का आयोजन करा लिया जाए ...शाम भी रंगीन हो जाएगी और नाम भी हो जाएगा ....रही बात लेखकों की तो वे तो दौड़े चले आएंगे ।" श्रीप्रकाश जी ने नील जी से कहा।

​"अजी हाँ ...नेकी और पूछ पूछ ...आज ही इंतजाम कराते हैं जनाब ...बताइए लिस्ट में कौन कौन से साहित्यकारों को बुलाया जाए ?"नील जी ने पान  चबाते हुए कहा ।

​"हाँ ...पिछले मुशायरे में गए थे न ...वहाँ जितनी भी महिला साहित्यकार आईं थीं सभी के नाम नोट कर लीजिए जनाब ...और हाँ वो नीली साड़ी पहने जो मोहतरमा थीं उनका ज़रूर ...क्या गजब ढा रहींथींl"श्रीप्रकाश जी ने चटकारे लेते हुए कहा l

​"कौन सी कविता बोली थी उन्होने ?"

​"अजी छोड़िए कविता बबिता ...हमें क्या करना । "श्रीप्रकाश जी ने बेशर्मी से कहा और दोनोंं ठहाका मारकर जोर से हंसते हुए एक और शाम की रंगीनियत के ख्वाबों में खो गए l

​✍️ राशि सिंह , मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश 


मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा ----मानवता


    फकीर ने सेठ जी से कहा सेठ जी प्यास लगी है पानी पिला दीजिये ।सेठ जी बोले , अभी कोई आदमी नहीं है, यह कहकर मोबाइल पर बात करने लगे ।जब बात कर चुके तो फकीर ने फिर कहा सेठ जी बहुत प्यास लगी है, पानी पिला दीजिये ।" अरे कहा ना अभी कोई आदमी नहीं है।"

   " इस पर फकीर बोला सेठ जी कुछ देर के लिए आप ही आदमी बन जाइये ।

✍️ अशोक विश्नोई, मुरादाबाद

                       

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा -----आँखों का सफ़र


अचरज से तकती है नन्ही आँखे रंग बिरंगे संसार को,  बचपन की नटखट गलियों में असीमित सवालों से भरी 

आंखें जवाब ढूंंढने को मचलती रहती हैं  ,सामने खड़ा  खटखटाता है  यौवन दरवाजा,जिसके प्रेम में डूब जाती हैं  आँखे, फिर याद आया अभी करने है पूरे स्वप्न भी तब दिखती आँखो में सपने पूरे करने की ललक ,पर मिलते ही  मंजिल आंखों  में दिखने लगती भविष्य की चिंताए ,इतनी चिंता कि धुंधली होती आंखों पर किसी का ध्यान ही नही गया,जीवन भर चलती आंखें आज ठहर गयी एक जगह, बहुत कोशिश की मैने देखने की, पर उन आंखों में आज कुछ नही दिखता, बैरंग सी दीवारों के बीच अपने शरीर में सुइयोंं के चुभने पर भी वे विचलित नही होती है ........        

✍️ प्रीति चौधरी, गजरौला,अमरोहा

                                     

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद सम्भल)के साहित्यकारधर्मेंद्र सिंह राजौरा की लघुकथा -----गंदगी


वो चौराहे पर अक्सर पायी जाती/ठेले वाले , खोमचे वाले , दुकानदार उसकी विक्षिप्तता पर तरस खाकर उसे कुछ न कुछ खाने को अवश्य दे देते/उसके  बाल उलझे हुए थे न जाने वो कितने दिनों से नहीं नहाई थी/कुछ लोग कहते हैं कि वो किसी अच्छे परिवार की बहु थी जिसका परित्याग कर दिया गया था और उसका कुसूर ये था कि शादी के कई साल बाद भी उसे कोई सन्तान न हुई थी/


कुछ  संभ्रांत लोग वहां खड़े हुए थे  और शाम के समय  एक ठेले पर खड़े केले खा रहे थे उनमें से एक ने उसे खाने को  तीन चार केले दे दिए/उसने केले खाये और अपने व उन लोगो के छिलके लेकर जाने लगी /  एक तेल टेंकर वहाँ से गुजर रहा था/ क्लीनर ने दरवाजा खोला और एक जोर की पीक सड़क पे मारी शायद उसने गुटखा खाकर पीका था/ उस विक्षिप्त अवस्था में भी उसे यह बात नागवार गुजरी /वो पलट कर टेंकर के पीछे दौडने लगी / टेंकर की रफ़्तार तेज़ थी लेकिन सौभाग्य से सड़क पर थोड़ा जाम था सो उसकी गति धीमी हो गई/  

औरत ने सारे छिलके टेंकर की छत पर दे मारे/ छिलके फैंकने के बाद उसके चेहरे पर परम संतोष के भाव उभरे/ कितना सटीक था उसका निशाना / वो खिलखिला कर हंसी और चौराहे की और मुड़ गयी किसी भाला फेंक विजेता की मानिन्द/

शायद वो गंदगी करने वाले क्लीनर को सबक सिखाने में सफल हुई थी/

✍️ धर्मेंद्र सिंह राजोरा, बहजोई,जिला सम्भल

गुरुवार, 5 नवंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की कहानी ----ज्योति


सुबह-सुबह घूमने निकले कुछ लोग यकायक बच्चे के रोने की आवाज़ सुनकर ठिठके और कुछ पल रुक कर रोती  हुई आवाज़ का सच जानने के प्रयास में उस ओर दौड़े जहां से आवाज़ आ रही थी।उन्होंने देखा कि एक जालीदार टोकरी में एक नवजात बच्ची रोए जा रही है।अरे कोई लड़की लोक लाज के डर से इस बच्ची को यहाँ छोड़कर चली गई है।सबने बारी-बारी से अपनी प्रतिक्रिया तो व्यक्त की परंतु उस बच्ची को उठाकर उसके जीवन को बचाने की कोशिश नहीं की।

     किसी ने कहा लड़का होता तो हम ही रख लेते, किसी ने कहा क्या पता किस धर्म जाति की है।किसी ने कुछ तो किसी ने कुछ कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया और अपनी राह हो लिए।वह बच्ची इसी प्रकार भूखी-प्यासी रोती रही ज्यादा भूख लगती तो अपने हाथ की उंगलियों को ही चूसकर शांत हो जाती।

      दिन चढ़ते चढ़ते काफी लोग इकट्ठा हो गए लेकिन उसे किसी ने प्यार से गोदी में नहीं उठाया।बात फैली तो एक बड़े घर की महिला वहां आई और उसने उस बच्ची को गोदी में उठाकर उसके ऊपर लगे कूड़े कचरे को हटाया और एक साफ तौलिया में लपेटकर उसे पहले बाल चिकित्सालय ले गई।वहाँ उसका पूरा स्वास्थ्य परीक्षण कराने के बाद उसे पास के थाने लेजाकर उसे अपने साथ रखने की प्रक्रिया की जानकारी की।अंततः अनाथालय के माद्यम से बच्ची को घर ले जाने में सफलता हासिल की। 

       जब काफी समय बीतने पर भी उसे लेने कोई नहीं आया तो महिला ने उसकी अच्छी परवरिश में दिन-रात एक कर दिए।बच्ची का नामकारण भी बड़ी धूम-धाम से किया गया।सभी उसे ज्योति कहकर पुकारते।बच्ची धीरे -धीरे बड़ी होती गई।खूब पढ़ लिखकर योग्य चिकित्सक बनी।

      वह अपनी मां का बहुत ध्यान रखती।एक दिन मां ने उसे सत्य से अवगत कराते हुए कहा बेटी यह संसार बड़ा विचित्र है।यहां लोग सिर्फ अपने फायदे के बारे में ही सोचते हैं।तू अगर लड़का होती तो मुझे कैसे मिलती।लड़के के ऊपर किए गए खर्चे की तो पाई पाई वसूल कर लेते।तेरे ऊपर लगाए पैसे तो उनके लिए व्यर्थ ही जाते।

       तू मेरी आँखों की ज्योति है और मेरी हारी-बीमारी में मेरी चिकित्सक भी। ईश्वर तुझे शतायु करे।यह सुनकर बिटिया मां से लिपट कर बोली तुम तो ईश्वर की साक्षात प्रतिमा हो माँ।

✍️वीरेन्द्र सिंह बृजवासी, मुरादाबाद/उ,प्र,

   मो 9719275453

       

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा -- ----- प्रयास


कल्पना एम ए की कक्षा मेंं  थी।अपनी सखियों के साथ बैठी हँसी ठिठोली कर रही थी।फ्री पीरियड था तो मस्ती करनी थी ताकि अगली कक्षा के लिए रिचार्ज हो जाये।इतने मे एक आंटी जैसी महिला ने आकर पूछा ,"एम ए हिन्दी की कक्षा किस कक्ष में लगती है?

   "पायल बोली ,"आपको किस से मिलना है।हम यहींं बता देंंगे,आप जाकर क्या करेगी।"वह महिला बोली,"मुझे किसी से नहीं मिलना,आज की क्लास अटेंड करनी है।मेरा कल ही एडमिशन हुआ है आज क्लास मेंं पढना है"।यह बात सुनकर सभी चौक गयीं।"आंटी आप हमारी क्लास मेंं पढेगी, आपके बच्चे?"कहकर वे सब चुप हो गयीं।लड़कियों के आश्चर्य मिश्रित भाव देखकर वह बोली,"मेरा बेटा एम एससी कर रहा हैऔर बेटी बी ए फायनल मेंं है।""फिर आप इस उम्र में क्यों पढ़ाई कर रही हैंं"।सबने एक साथ पूछा।

    "तुम सब हिन्दी एम ए की ही स्टूडेंट्स हो "वह बोली,"तो चलो क्लास मे चलकर ही बात करते है"।वह सभी के पीछे पीछे कक्ष की ओर चल दी।कक्ष मे पहुंच कर सब उसे घेर कर खड़ी हो गयींं।आंटी बताओ न।

   वह बोली,'मेरी शादी कक्षा आठ के बाद ही कर दी गयी।गांव मे कक्षा8के बाद स्कूल नहीं था।गांव से बाहर लडकी पढ़ने जाये ये तो कभी हुआ नहीं।सो 14साल की उम्र से गृहस्थी शुरू हो गयी।मगर मन जो पढ़ने की ललक थी वो नहीं गयी।ससुराल मे बहू का पढ़ना असम्भव  था।बेटा जब कक्षा दस के लिए पढ़ने शहर आया तो खाना व देखभाल के लिए हमे भेजा गया।बस यही अवसर मिला।मन की बात बेटे को बताई तो उसने प्राइवेट फार्म भर दिया।दोनोंं ने साथ परीक्षा दी।अच्छे नम्बर आये।इसी तरह इंटर होगया ।फिर सब से लड़कर बेटी को भी शहर लाई।अब हम सब पढ़ते ।आनंद आता।बीए मे मेरे अंक मेरे बेटे से ज्यादा थे।जब ये बात पति को पता चली।वो खूब नाराज हुए मगर बेटे के आगे ज्यादा न बोल सके ।आज मैंं यहां आपके साथ पढूंगी"।

   ..तभी कल्पना बोली,"आंटी अब इस उम्र मे नौकरी तो मिलने से रही फायदा क्या होगा आपकी पढाई का"?। वह बोली,"बेटा नौकरी के लिए पढ़ाई जरूरी होती हैं मगर पढ़लिखकर नौकरी की जाये जरूरी नहीं।मेरी पढ़ाई मुझे संतुष्ट करती है खुशी मिलती है। तुम सब खुशनसीब हो जो तुम्हारे माता पिता पढ़ा रहे है जिस दिन बच्चों की पढ़ाई पूरी होगी मुझे फिर गांव जाना होगा मगर अब मेंं घर के काम के बाद गांव की उन लड़कियों को पढा़उंंगी जो पढ़ना चाहती हैं।"

सभी लड़कियां खड़ी हो गयींं और तालियां बजाते हुए बोलींं,"आंटी इस कक्षा मे आपका स्वागत है" वह मुस्कुरा रही थी।

✍️ डा.श्वेता पूठिया, मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रामकिशोर वर्मा की लघुकथा ----- चरित्र

 


"आज का युवा वर्ग वालीबुड के नायक/नायिकाओं को अपना आदर्श मानता है ।" -- मीता ने रीता से कहा --"अपनी मूवी के द्वारा लिखे हुए संवाद बोलकर अभिनय के द्वारा जनता पर छा जाते हैं और युवा वर्ग उन पर गर्व करने लगता है ।"

   तभी रीता बीच में ही उसकी बात काटकर बोली --"मगर उनका वास्तविक चरित्र देखा है । पर्दे पर कुछ और है तथा वास्तविक जीवन में कुछ और ही हैं । पैसे और शौहरत के कारण बुरे व्यसन भी इनमें मिलेंगे ।  पर सभी एक से नहीं है । पता भी है ?"

    "हांँ, यह बात तो रीता तेरी सही है ।"--कहते हुए मीता ने अपना कथन जारी रखा --"हमारे वास्तविक नायक/नायिकायें तो हमारे देश के रक्षक हैं, वैज्ञानिक हैं । उनका चरित्र देखिए।"

   रीता ने कहा -- "सही बात है मीता । युवा वर्ग के वास्तविक आदर्श अपने उत्तम चरित्र के कारण हमारे देश के रक्षक और वैज्ञानिक-डॉक्टर हैं ।" 

✍️राम किशोर वर्मा, रामपुर

        

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी -----जेवरों की चोरी


..........रात का तीसरा पहर आदित्य की आंखों में नींद नहीं थी.......... उसकी व्याकुलता इस कारण नहीं थी कि उसने कुछ खाया नहीं था........उसे इस बात का भी कतई मलाल नहीं था कि उसे इतनी छोटी उम्र में गुलामों की तरह अनिच्छा से इतना कठोर परिश्रम करना पड़ता था कि रात भर उसका शरीर दुखता रहता था बल्कि इससे उसका पढ़ने लिखने का इरादा और अधिक मजबूत होता था............वह पूर्ण निष्ठा लगन और मेहनत से लगातार सौंपा गया काम निरंतर करता रहता था। भूख उसे तोड़ नहीं पाई ,मेहनत उसे डिगा नहीं पाई! परन्तु चोरी का झूठा इल्जाम वह सह नहीं पा रहा था.... उसका आत्मबल उसका संयम सब जवाब दे गया था। उसका हर समय मुस्कुराता हुआ चेहरा मुरझा कर पीला पड़ गया था........ अपने चरित्र पर लगा यह दाग वह सह नहीं पा रहा था....... और अपनी ही रिश्तेदारी में इस तरह ज़लील होकर वह जाना नहीं  चाहता था.... इस तरह कलंकित होकर चले जाना उसे परेशान किए हुए था..... सुबह तो होगी परंतु उसके जीवन में तो हमेशा के लिए अंधेरा छाने वाला था ...... उसके अंदर का सब कुछ टूट रहा था उसके मन में आ रहा था कि वह आत्महत्या कर ले..... परंतु  दूसरी ओर उसके अंदर की कोई शक्ति उससे कह रही थी "हार कर मत जा ! ''चला गया तो यह दाग जीवन भर नहीं धुलने वाला !"....." हार कर भाग जाना कायरता है ."!....."जब तूने कुछ किया ही नहीं है तो फिर तू क्यों इस तरह बदनाम होकर दुनिया से जाये!" इसलिए उसने उन गहनों को फिर से ढूंढने का निश्चय किया .....

   घर की दीवारें मिट्टी की थीं। ऊपर से चूहों के बड़े-बड़े बिल। जेवरों पर लिपटा हुआ गुलाबी कागज़ वहीं उसी के कमरे में पड़ा हुआ मिला था यही उसके खिलाफ सबसे बड़ा सबूत था उसने दिमाग दौड़ाया.... कुछ भी था झूठा इल्जाम भी वे लगाने वाले नहीं थे। नुकसान तो हुआ था.....पर किसने??

यही यक्ष प्रश्न बार-बार मन में उठ रहा था। सहसा कुछ सोच कर आदित्य ने छैनी हथौड़ी उठाई और चूहों के बिल को तोड़ता  चला गया तोड़ने की आवाज से कृष्ण कुमार और मुन्नी जाग गये आवाज लगाई"आदित्य! आदित्य!! क्या कर रहे हो खोलो दरवाजा!!" 

दरवाजा खुल गया, वे बोले"दीवार क्यों तोड़ रहे हो?"

आदित्य बिना उत्तर दिये ,बिना रुके दीवार तोड़ता रहा.......

मुन्नी चिल्लाई "अरे आदित्य क्या पागल हो गया सुनता क्यों नहीं है?.."

....... तभी अचानक जो हुआ उसे देखकर सब चकित थे कंगन और जेवर सामने थे....!!!

हुआ यूं कि चूहे जेवरों  की पुड़िया को दिल में घसीट कर ले गए..... सभी चीजें (जे़वर) सही सलामत मिल गए!

आदित्य की आंखों में खुशी के आंसू थे!

कृष्ण कुमार और मुन्नी ने आदित्य को गले लगा लिया और माफी मांगी......!!

 ........  परन्तु ये क्या आदित्य सुबह पांच बजे वाली गाड़ी से अपना बैग लेकर जा चुका था !!.....

✍️अशोक विद्रोही

412, प्रकाश नगर, मुरादाबाद यूपी

82 188 25 541

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक की लघुकथा -----दीमक


रुपाली एक कामकाजी महिला थी।जल्दी जल्दी सुबह का काम निबटा कर बैंक चली जाती। शाम को आते आते 6 बज जाते।आते ही फिर उसके आगे काम का पिटारा खुल जाता।इसी समयाभाव के कारण वह घर की साफ सफाई पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाती।काम वाली अपनी मर्जी से काम पूरा कर चली जाती।बचता रविवार का दिन यही दिन था, जो रुपाली को घर की पूरी सफाई के लिये मिलता।

       ऐसे ही एक रविवार रुपाली अपने घर की सफाई कर रही थी।देखती क्या है, उसकी मौडयूलर किचन की वार्डरोब को दीमक लग गया है और उसने अंदर ही अंदर उसे खोखला भी कर दिया है। आनन फानन रुपाली ने गूगल पर सर्च कर दीमक के उपचार ढूंढने शुरू किये और उन्हें अपनाना शुरू किया।कुछ दिनों में दीमक तो चली गयी लेकिन उसके निशान रह गये। रुपाली जब भी उस वार्डरोब को देखती सोचती क्या आज भी हमारे समाज में फैली कुरीतियां , अंधविश्वास इस दीमक की तरह नहींं है,जो अंदर ही अंदर उसे खोखला कर रहे हैं। ऐसा खोखला जिसकी क्षतिपूर्ति करना मुश्किल ही नहींं नामुमकिन है।

✍️ डॉ शोभना कौशिक, मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेन्द्र शर्मा सागर की लघुकथा --बेकार नोट


आज एक पुरानी डायरी पढ़ते समय अचानक पाँच सौ का पुराना नोट सुमित की गोद में आ गिरा।

ये वही नोट था जो उसे उसकी प्रेमिका ने एक हज़ार रुपये लेकर उसके लाख मना करने पर भी यह कहकर वापस कर दिया था कि उसे बस पाँच सौ की ही जरूरत है।

और उसने शरारत से उस नोट पर "आई लव यू सुमित" लिखकर नीचे अपना नाम भी लिखा था।

सुमित ने अपनी प्रेम की कविताओं की डायरी में इसे बहुत सहेज कर रख दिया था जिसमें हर कविता के नीचे उसने अपनी प्रेमिका का नाम लिखा था।

नोट बन्दी से ठीक चार घण्टे पहले ही तो उनका ब्रेकअप हुआ था किसी छोटी सी बात को लेकर।

"अब ना ये नोट किसी काम का है और ना ही इसपर लिखा नोट", सुमित ने धीरे से कहा और उस नोट के टुकड़े कर दिए।

✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर", ठाकुरद्वारा

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा-----वृत्तं यत्नेन संरक्षेत्


कितना सुन्दर होगा तुम्हारा साथ प्रियतम !हम बहुत दूर चले जायेंगे ।

कहीं भी,जहाँ हमारे प्रेम को किसी की नजर न लगे ।विवाह के एक दिन पूर्व मेहंदी से रंगी हथेलियों वाली उर्मि अपने मनभावन लड़के के साथ घर से भागने की योजना बना रही थी । घर वाले उसके पसंद के लड़के से विवाह के विरुद्ध थे ।यौवनावस्था और धनसम्पन्नता ,उस पर अप्रतिम सौन्दर्य !तीनों एक साथ ।बुद्धि का नाश  तो स्वाभाविक था । प्रेमी की योजना के अनुसार कुछ रुपये पैसे के साथ उसको चुपचाप निकलना था । विवाह के घर में व्यस्तताओं में उलझे ,उसका मोबाइल अचानक कहाँ गया ?किससे पूछे ?अब वह उसे कैसे सूचना देगी ? अरे !डायरी में भी लिखा है उसका मोबाइल नंबर कहीं।पहला पन्ना पलटा ,फिर दूसरा ,और फिर क्रम से.......कई.....।अरे ....मिल गया ..लेकिन.... ऊपर ... सबसे ऊपर..लिखा था.." वृत्तं यत्नेन संरक्षेत्।....अक्षीणो वित्ततः,क्षीणो वृतस्तु हतो हतः ।

कक्षाओं में शिक्षकों ने यही तो कहा था,फिर क्यों ?उर्मि काँप उठी। मानो कोई दुस्वप्न देखा हो ।उस आदर्श वाक्य को बार-बार पढा़ और पढा़ ....फिर उसके मन से वह कुत्सित योजना ओझल होती गई सदा के लिए।एक आदर्श वाक्य की शक्ति थी यह ....कि एक चरित्र की रक्षा हुई।

✍️डॉ प्रीति हुँकार, मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार ज़मीर दरवेश की बाल कविता --- प्यासी चिड़िया


मरी पड़ी थी चिड़िया एक, 

देखके बोला बच्चा  एक.. 


किसने इसे मारा है  मम्मी, 

पता चले वो कौन है पापी? 


मम्मी बोलीं - हम भी तुम भी, 

इसको मारने के हैं  दोषी। 


कितनी पड़ी हुई है गर्मी, 

यह चिड़ाया बेहद प्यासी थी। 


तरस न इस पर किसी को आया, 

किसी ने पानी नहीं पिलाया। 


छतों मुंडेरों पर भी आई, 

पानी की इक बूंद न पाई। 


बच्चे की आंखें भर आईं, 

मम्मी भी उसकी पछताईं। 


झट पट रक्खा छत पर पानी, 

साथ में रक्खा कुछ दाना भी। 

✍️ ज़मीर दरवेश, मुरादाबाद

پیاسی چڑیا.... 


مری پڑی تھی چڑیا ایک، 

دیکھکے بولا بچہ ایک. 


کس نے اسے مارا ہے ممّی، 

پتا چلے وہ کون ہے پاپی؟ 


ممّی بولیں - ہم بھی تُم بھی، 

اسکو مارنے کے ہیں دوشی. 


کتنی پڑی ہوئی ہے گرمی، 

یہ چڑیا بےحد پیاسی تھی. 


ترس نہ اس پر کسی کو آیا، 

کسی نے پانی نہیں پلایا. 


چھتوں مُنڈیروں تک بھی آئی، 

پانی کی اک بوند نہ پائے! 


بچّے کی آنکھیں بھر آئیِں، 

ممّی بھی اسکی پچھتائیں. 


جھٹ پٹ رکھّا چھت پر پانی، 

ساتھ میں رکھّا کچھ دانہ بھی. 

(ضمیر درویش)

बुधवार, 4 नवंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की बाल कथा -----पिंजरे में कैद हो गया बबलू

   


मेले से जिद करके बबलू एक तोता खरीद लाया था । छोटा - सा पिंजरा था और उसमें तोता थोड़ा - बहुत हिल-डुल रहा था । घर पर लाकर बबलू ने तोते को हरी मिर्च खिलाई । हरी मिर्च घर पर ही रखी थी। तोते ने प्रारंभ में तो मिर्च की तरफ ध्यान ही नहीं दिया लेकिन फिर बबलू के हाथ से एक मिर्च अपनी चोंच में पकड़ ली । यह देख कर बबलू की खुशी का ठिकाना न रहा । फिर तो घर पर खाने की जितनी भी चीजें थीं, बिस्कुट ,टॉफी ,काजू ,मठरी ,रोटी सभी कुछ लेकर बबलू तोते के पास जाने लगा । तोता इतना सामान कहाँ से खाता ! कुछ चोंच में पकड़ा ,कुछ खाया ,बाकी सब गिरा दिया। लेकिन बबलू को यह सब देख कर ही बहुत अच्छा लग रहा था । उसे तो यही बात आनंदित कर रही थी कि तोता असली में हमारे जैसे साँस लेता है, हिलता - डुलता है और अपनी चोंच को इधर-उधर करता रहता है । ...और हाँ तोता खाता भी है ,यह बात भी बबलू को असर कर रही थी । तोता अब उसकी साँसों में बस गया था । 

                    रात को सोया तो जैसे ही नींद आई ,नींद में ही तोते के पास चला गया । सपना देखने लगा ।  वह तोते को हरी मिर्च खिला रहा है और तोता अपनी चोंच से हरी मिर्च को पकड़ रहा है । लेकिन यह क्या ! सपना देखते देखते बबलू ने देखा कि तोते ने हरी मिर्च को खाते-खाते उसकी उंगली भी पकड़ ली । अब तो बबलू सपने में चीखने लगा । उसने उँगली छुड़ाने की बहुत कोशिश की  मगर तोते ने नहीं छोड़ी । तोता उसकी उँगली को अपने पिंजरे में खींचने लगा । धीरे- धीरे बबलू का पूरा हाथ पिंजरे के अंदर चला गया और फिर बबलू का शरीर पतला होते हुए धीरे-धीरे पूरा शरीर पिंजरे के अंदर आ गया । अब पिंजरे के अंदर बबलू भी कैद था और तोता भी कैद था। 

        बबलू को पिंजरे के अंदर घुटन महसूस होने लगी। उसने जोर से अपनी मम्मी को आवाज लगाई "मम्मी ! मुझे पिंजरे से निकालो । मेरा दम घुट रहा है । मैं आजाद होना चाहता हूँ।"

        बबलू की आवाज उसकी मम्मी ने नहीं सुनी तथा वह नहीं आईं। इस पर बबलू और भी परेशान होने लगा । उसने अपने हाथ पैरों को पटकना शुरू किया । उसे साँस लेने में मुश्किल आ रही थी । वह पिंजरे से बाहर निकल कर अपने कमरे में जाना चाहता था तथा पूरे घर में और घर के बाहर कॉलोनी में भी बच्चों के साथ खेलना चाहता था । उसने जोर से फिर मम्मी को आवाज लगाई "मुझे पिंजरे में क्यों कैद कर रखा है ? मुझे जल्दी से आजाद कराओ । मैं बच्चों के साथ खेलूँगा ।"

       इस बार बबलू ने देखा कि वह अपने हाथ - पैरों को छटपटा रहा है । उसकी आँख खुल गई और वह समझ गया कि मैं एक डरावना सपना देख रहा हूँ। दिन निकलने ही वाला था । बबलू दौड़कर पिंजरे के पास गया उसने फौरन पिंजरे का दरवाजा खोलाऔर  तोते को बाहर निकाल कर उससे कहा "उड़ जा तोते ! तू भी तो घुटन महसूस कर रहा होगा ।"

            तोता बबलू को कृतज्ञता के भाव से देखता हुआ आसमान में उड़ गया।  बबलू को लगा कि यह तोता नहीं बल्कि वह खुद किसी भयानक कैद से आजाद हुआ है।

✍️ रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)

 मोबाइल 99976 15451

वाट्स एप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। मंगलवार 6 अक्टूबर 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ अनिल शर्मा अनिल, विवेक आहूजा, अशोक विद्रोही, स्वदेश सिंह, वीरेंद्र सिंह बृजवासी,राम किशोर वर्मा, कमाल जैदी वफ़ा, डॉ शोभना कौशिक और शिव अवतार रस्तोगी सरस् की बाल कविताएं .......

 


इतना सारा धुआं कहॉं से

सुबह सुबह ही आ जाता।
सूरज को भी ढक लेता है,
साफ नजर न कुछ आता।।
किसने घर के बाहर जमा,
कूड़े में आग लगायी है।
या खेतों में पड़ी पराली,
कृषकों ने सुलगायी है।।
इसके कारण दादीजी की
श्वांस फूलने लगती है।
बैठी रहती है खटिया पर
सोती है,न जगती है।।
दादाजी भी खूब खांसते,
हाय राम ये क्या संकट?
आंखों में भी जलन हो रही
आयी समस्या बड़ी विकट।।
मत जलाओ पराली कूड़ा,
धुंअॉ न इतना फैलाओ।
पर्यावरण शुद्ध रखना है,
नयी तकनीकी अपनाओ।।
खाद बनाकर इनकी भईया
देना भूमि को भोजन।
पर्यावरण शुद्ध बनेगा,
स्वस्थ रहेगा जनजीवन।।

✍️डॉ.अनिल शर्मा अनिल
धामपुर, उत्तर प्रदेश
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अब काहे का रोना ,जब हो गया तुम्हें करोना ।
बाहर थे जब तुम जाते ,हम सब तुम को समझाते ।
हो गया जो था होना ,अब काहे का रोना ।।

गमछा गले में डाले , सबके तुम रखवाले ।
हो गई समाज की सेवा , मिल गया तुमको मेवा । 
अब अकेले ही तुम सब सहना , अब काहे का रोना ।।

समझाते थे तुमको सारे , मगर माने नहीं तुम प्यारे ।
अब तुमको ही सब सहना , पड़ेगा अस्पताल में रहना । मरीजों के संग तुम सोना , अब काहे का रोना ।।

जल्दी से घर को आना , बिल्कुल मत घबराना ।
कहती है तुम्हारी बहना ,हमारे लिए "तुम सब कुछ हो ना" 

✍️ विवेक आहूजा 
बिलारी, जिला मुरादाबाद 
मोबाइल फोन नम्बर 9410416986
Vivekahuja288@gmail.com 
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एक बिल्ली का बच्चा एक दिन,
                 छोटा सा घर आया।
देख उसे मेरे गोलू का ,
                  नन्हा मन हर्षाया।।
उसका रंग काला सफेद था,
                लगा बड़ा ही सुंदर।
म्याऊं ,म्याऊं का शोर मचाया,
                उसने घर के अंदर।।
भूख प्यास से व्याकुल था वह,
                लगा खूब चिल्लाने।
एक कटोरी लिया दूध ,
               गोलू ने लगा पिलाने।।
दूध पिया सारा फिर भी,
         वह चक्कर काट रहा था।।
भूख अभी बाकी थी ,
        खाली बर्तन चाट रहा था।।
देख देख उसकी व्याकुलता ,
                   मन में दया समाई।
फेरा हाथ गोलू ने उस पर,
             खिचड़ी उसे खिलाई।।
खा पीकर वह मस्त हो गया,
                लगा शरारत करने।
देखी उसकी धमा चौकड़ी,
              लोग लगे सब हंसने।।
कभी उछलता इधर उधर,
          कभी गोदी में आ जाता।
घर वालोें का धीरे-धीरे,
           जुड़ गया उससे नाता।।
चंचलता के कारण आखिर,
            सबके मन वह भाया ।
बड़े प्यार से सबने उसका,
           "औगी''नाम धराया ।।
एक दिन फिर"औगी''की सूरत
              कहीं नजर न आई,।
ढूंढ ढूंढ कर हार गये सब ,
            पड़ा न कहीं दिखाई।।
कई दिनों के बाद हटी गाड़ी,
               तब देखा जाकर ।
औगी,मरा पड़ा बेचारा,
          वहां रैट किल खाकर।।
याद में रोयेअपना गोलू ,
              उसे भूल न पाता है।
प्रेम मिले तो मानव क्या,
       पशुभीअपना हो जाता है।।

अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद
8218835 541
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देखो- देखो सर्दी आई
टोपा, मौजों की बारी लाई

            सर्दी में जम जाते  हाथ
           किट किट कर बजते दांत

स्वेटर पहनना मुझे ना भाये
ना पहनू तो ठंड सताए

            सन सन कर चलती  हवा
           सूरज दादा छिप जाते कहाँ

मम्मी मुझे रोज न नहलाना
गरम -गरम  दूध पिलाना

          सर्दी मुझको रास ना आती
       खेलने पर भी पाबंदी लगाती

✍️ स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद
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बिल्ली  बोली   चूहे   राजा,
क्यों  मौसी   से  डरते   हो,
निर्भय   होकर  घर-भर  में,
क्यों नहीं कुलांचें भरते  हो।
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छोड़ा मांसाहार  कभी  का,
छोड़   दिया  अंडा   खाना,
अब तो मुझे बहुत भाता है,
दाल - भात   ठंडा    खाना,
मेरी  सच्ची बातों  पर क्यों,
नहीं   भरोसा    करते   हो।
बिल्ली बोली ----------------

मेरा  मन  करता है  मैं  भी,
साथ   तुम्हारे   नृत्य   करूं,
साज उठाकरखुदको भी मैं,
सरगम   में  अभ्यस्त  करूं,
फिरभी प्यारी मौसी से क्यों,
डर    के    मारे   मरते  हो।
बिल्ली बोली--------------

देखो   मेरी   कंठी  - माला,
देखो    राम    दुपट्टा    भी,
याद  नहीं  मैंने   मारा   हो,
तुम पर  कभी  झपट्टा  भी,
मेरे  सम्मुख   खीर  मलाई,
लाकर  क्यों  ना  धरते  हो।
बिल्ली बोली-------------

अब तो आँख मीच ली मैंने,
फिर   काहे   की   शंका  है,
धमा चौकड़ी  खूब मचाओ,
बजा   प्यार   का   डंका  है,
मेरी   गोदी   में    आने   से,
तुम  किसलिए  मुकरते  हो।
बिल्ली बोली---------------

सौ-सौ चूहे  खाकर  बिल्ली,
कितनी   भोली   बनती   है,
एक आँख  कर बंद, गौर से,
सबकी    बोली   सुनती   है,
सुनो,  शर्तिया  मर  जाओगे,
यदि तुम  आज बिखरते हो।
बिल्ली बोली---------------
          
✍️वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
मो0-    9719275453
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कितने रंग बदलता बादल, समझ नहीं यह आता है ।
पूरब में नारंगी है तो, पश्चिम लाल दिखाता है ।।
उत्तर में नीला-भूरा सा, दक्षिण रंग जमाता है ।
बादल में क्या-क्या दिखता है, मानव समझ न पाता है ।। 1।।

आंँख-मिचौली खेलें तारें, शशि बादल से आता है ।
सुबह-सवेरे सूर्यदेव भी, बादल से उग आता है ।।
धरती को जब प्यास लगे तो, वर्षा तृप्त कराता है ।
उमड़-घुमड़ जब बादल आते, गड़गड़ ढ़ोल  बजाता है ।। 2।।

कितने ग्रह हैं इस बादल में, समझ नहीं यह आता है ।
बिजली भी चमकाता बादल, कितने रंग दिखाता है ।।
धुंँआ-धुंँआ कहते बादल को, मेरा सिर चकराता है ।
तेरी माया तू ही जाने, भगवन जो दिखलाता है ।। 3।।

✍️ राम किशोर वर्मा
रामपुर, उत्तर प्रदेश
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चमको चमको तारे बनकर,
जगमग  कर दो घर और बाहर।
बिखरो फूल सी खुशबू बनकर।
महक उठे हर एक का घर, दर।
बढ़ते जाओ बढ़ते जाओ,
मन मे न हो बिल्कुल भी डर।
दूर गगन में तुम हो आओ,
पंछी और परियों सा उड़कर।
हिम्मत कभी न डिगने देना,
घोर मुसीबत में भी घिरकर।
खूब बड़ा बनना है तुमको,
मेहनत से ही लिखकर पढ़कर।
सपने जो देखे थे तुमने,
समय हुआ उनको पूरा कर।
अवरोधों से न डर बिल्कुल,
मार दे सबको जोर की ठोकर।
काम जो दिल मे ठान लिया है,
उसको पूरा कर पूरा कर ।,                                                                    खुशियां सबके मुख पर ला दो,
खुद हंसकर और सबको हँसाकर।

✍️ कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
प्रधानाचार्य,अम्बेडकर हाई स्कूल
बरखेड़ा (मुरादाबाद)
9456031926
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बच्चे प्यारे प्यारे,
    होते राजदुलारे,
ये वो नन्हें फूल है,
    मत मुरझाने देना प्यारे,
अपने आप में रहते मस्त,
     हो कर एक दूसरे के बस,
भेद भाव का काम नहीं,
     इनके यहाँ आराम नहीं,

✍️ डॉ शोभना कौशिक, मुरादाबाद

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मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ ममता सिंह की बाल कविता


 

मंगलवार, 3 नवंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था " हिन्दी साहित्य संगम " के तत्वावधान में रविवार एक नवंबर 2020 को ऑन लाइन कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया । गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों अशोक विश्नोई , डॉ मीना नक़वी, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, श्री कृष्ण शुक्ल, अटल मुरादाबादी, डॉ मनोज रस्तोगी, योगेंद्र वर्मा व्योम, राजीव प्रखर,डॉ रीता सिंह,डॉ प्रीति हुंकार,अरविंद कुमार शर्मा आनन्द, इंदु रानी,प्रशांत मिश्र, नकुल त्यागी, विकास मुरादाबादी और राशिद मुरादाबादी द्वारा प्रस्तुत रचनाएं ......

 


वोट देने हेतु

आस्तीन से पसीना
पोंछता कतार में लगा
भारतीय नागरिक
अपने अधिकारों की लड़ाई
हर बार हारा है ।
वह कल भी
असहाय बेचारा था,
वह आज भी,
असहाय बेचारा है ।।
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तीन चौके पन्द्रह
का हिसाब बैठा कर ,
गुणा भाग कर।
कच्चा- पक्का
हिसाब आ गया।
मेरी गली का गुंडा
सत्ता पा गया ।।

✍️अशोक विश्नोई, मुरादाबाद
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भावनाओं का तिरस्कार नहीं होना था।
क्रोध को प्रेम का आधार नहीं होना था।।

जब था विश्वास का सम्बंध तो हरगिज़ तुमको।
बेवफा़ई का तरफ़दार नहीं होना था।।

इक ज़रा बात पे मस्तक पे न बल डालने थे।
अपने लोगों से ये व्यवहार नहीं होना था।।

होली और ईद तो बस पर्व हैं सद्भावों के।
रक्त रंजित कोई त्यौहार नहीं होना था।।

ये विरह-वेदना दलदल की तरह लगती है।
दुख के सागर को यूँ मंझधार नहीं होना था।।

तुझ को करनी थी जो समझौते की बातें मुझ से।
तेरे वचनों में  अहंकार नहीं होना था।।

मन के घावों पे मेरे, दृष्टि तेरी पड़नी थी।
तेरे अधरों को यूँ तलवार नहीं होना था।।

कैसा अनुरोध?  कि मन रिक्त था इच्छाओं से।
दान में प्रेम भी स्वीकार नही होना था।।

बंदिशें भावों पे और शब्दों पे पहरे 'मीना'।
लेखनी पर ये मेरी भार नहीं होना था।।

✍️ मीना नक़वी
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कदम-कदम पर  स्वर्ग-नर्क  है,
स्वयं   धरा   पर    बसा   हुआ,
नेकी   करो   नेकियां   पा   लो,
दंड   बदी   से    कसा    हुआ।
         
ऊपर कुछ  भी नहीं  कहीं   पर,
नहीं      धाम     वैकुंठ      वहाँ,
धर्मों   के   दलदल    में   मानव,
डूबा    है      आकंठ        यहाँ,
ज्ञानी   भी   खुद  अंधकार   के,
लगता   दुख   में   धसा    हुआ।
कदम-कदम पर---------------

धर्मराज   को     किसने    देखा,
मिले    नहीं     यमराज     कहीं,
वेदों    की    रचना   करते   भी,
दिखे    नहीं    गजराज     कहीं,
अपने   बुने   जाल    में   मानव,
बुरी   तरह    से    फसा    हुआ।
कदम-कदम पर---------------

स्वागत   होता   हो   फूलों    से,
महके     राह      दुआओं     से,
जीवन का क्षण-क्षण महका  हो,
शीतल     शुद्ध     हवाओं     से,
यही   स्वर्ग    है   इसमें   लगता,
जीवन  का   सुख   बसा   हुआ।
कदम-कदम पर----------------

अहित    चाहने    वाला    प्राणी,
दानव       दुष्ट      कहाता      है,
सरे  राह   वह   इसी    धरा   पर,
रोज़      जूतियां      खाता      है,
यही   नर्क   है, जब  अपना   ही,
लगता    खुद    से   कटा   हुआ।
कफम-कदम पर-----------------

स्वर्ग  -  नर्क   सब    बेमानी    हैं,
इसको     विसरा     कर      देखो,
जैसी     करनी      वैसी     भरनी,
का     सच     अपनाकर     देखो,
पेच  बुद्धि  का   ढीला   कर   लो,
जो    स्वार्थ    में    कसा    हुआ।
कदम-कदम पर-----------------
            
✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
मो0-   9719275453
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कुंडलिया

गृहणी करवा चौथ पर, रखती हैं उपवास।
पतियों की दीर्घायु की, लिए ह्रदय में आस।।
लिए ह्रदय में आस, कठिन व्रत धारण करतीं।
रहे अखंड सुहाग, कामना ये ही रखतीं।।
हों भूमिजा प्रसन्न, रहें चिर मंगलकरणी।
यही कृष्ण की आस, रहे चिरजीवी गृहिणी।।

गज़ल
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पत्थरों सा जो हो गया होता।
आज मैं भी खुदा हुआ होता।

फूल ये इस तरह न मुरझाता।
प्यार से आपने  छुआ होता।।

हम अँधेरों से पार पा लेते।
एक भी दीप यदि जला होता।

आपने यदि हवा न दी होती।
जख्म फिर से न ये हरा होता।

कंटकों से न घर सजाते तो।
आज दामन न ये फटा होता।।

✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद
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जिंदगी तो एक दरिया खूब न्हाना चाहिए,
और उसकी धार में गोते लगाना चाहिए।

जिंदगी गफलत नहीं है जिंदगी जीवंत है,
जिंदगी में हर खुशी को अब मनाना चाहिए।

खार औ कांटें मिलें तो गम कभी करना नहीं,
सीखकर लघु कंटकों से मार्ग पाना चाहिए।

जिंदगी बंजर नहीं है जिंदगी उपजाऊ' है,
हसरतों के फूल दिल में भी उगाना चाहिए।

नफरतों को छोडकर सब गीत अब गायें नया,
प्यार से मिलकर रहें हम वो जमाना चाहिए।

भीड़ जिसपर भी पड़े तो हम मदद उसकी करें,
कर्म कुछ सदभाव के कर  प्रीति पाना चाहिए।

हों अगर माॅयूसियाॅ तो त्याग दें उनको तनिक,
और रसमय भाव से नवगीत गाना चाहिए।

जब कभी हो गमजदा तो मुस्कुरा कर देखिए,
खुद हॅसो अरु दूसरों को भी हॅसाना चाहिए।

✍️ अटल मुरादाबादी
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बिताकर वर्ष आया                                                                    
      दीपावली   का  त्योहार
बढ़े सुख समृद्धि आपकी
      और आपस में बढ़े प्यार
दीप  जलें  खुशियों  के
      दुखों का हो दूर अंधकार.                 
आनंदित हो  पर्व   मनाएं                                    
      शुभकामना करें स्वीकार

✍️  डॉ मनोज रस्तोगी
8 जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
Sahityikmoradabad.blogspot.com
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न जाने किस भँवर में ज़िन्दगी है

ठहाके मौन हैं ग़ायब हँसी है

नहीं परछाईयाँ तक साथ देतीं
इसी का नाम शायद बेबसी है

भटकती है दिशा से वो यक़ीनन
नदी जब भी किनारे तोड़ती है

चलीं तूफ़ान बनकर आँधियाँ जब
परिन्दों ने नई परवाज़ की है

हुई है मौत जिसकी तिश्नगी में
उसी की आँख में अब तक नमी है

मिलेगी कोशिशों से ही सफलता
यही हमको बड़ों ने सीख दी है

कहेगा सच हमेशा तल्ख़ियों से
तभी तो आँख की वह किरकिरी है

दुआएँ अब असर करती नहीं क्यों
हमारी ही कहीं कोई कमी है

✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम',मुरादाबाद
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दूर हटाने के लिये, अन्तस से अँधियार।
करे अमावस हर बरस, दीपों से शृंगार।।
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निद्रांचल को छोड़ कर, दिनकर ने दी डाल।
प्राची-पट पर प्रेम से, पुनः चुनरिया लाल।।
******
मानुष-मन है अश्व सा, इच्छा एक लगाम।
जिसने पकड़ी ठीक से, जीत गया संग्राम।।
******
दीपक रूपी सत्य को, करके अंगीकार।
चलो मनायें साथियो, अब झिलमिल त्योहार।।
******
अपने मीठे-मीठे गीत सुनाती रहना।
सबके मन को इसी तरह हर्षाती रहना।
माना यह उपवन भी तुमने पीछे छोड़ा,
प्यारी चिड़िया चीं-चीं करने आती रहना।

✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद
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आओ चलें वनों की ओर
जहाँ सुरीली होती भोर
खग समूह मिल सुर लगाते
खोल पंख उमंग दिखाते
नाचे मस्ती में है मोर ।
आओ चलें वनों की ओर ।।

प्रथम पहर में रवि किरण ने
नरम धूप की पकड़ी डोर
पात चमक उठे ज्यों झालर
उछल रहे पेड़ पर वानर
एक छोर से दूजे छोर ।
आओ चलें वनों की ओर ।।।

दिन दहाड़े गज चिंघाड़े
भालू बजा रहे नगाड़े
मृग नाचते ता ता थैया
मनहु सब हैं भैया भैया
चारों ओर खुशी का शोर
आओ चलें वनों की ओर ।

घूम रहे सिंह गरजते
सब जीव दल जान बचाते
कहीं शिकार कहीं शिकारी
सोच एक से एक भारी
लगी जीतने की है होर ।
आओ चलें वनों की ओर ।।

✍️ डॉ रीता सिंह
असिस्टेंट प्रोफेसर
एन के बी एम जी कॉलेज ,
चन्दौसी (सम्भल)
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बिखरे मोती तुमने गूँथे ,दी मजबूती माल को ।
मिलकर आओ नमन करें हम ,उस भारत के लाल को ।
लौह पुरूष जिनकी है उपमा ,
अथाह देश से प्यार था ।
सही अर्थ में मेरे देश में ,एक यही सरदार था ।
समग्र राष्ट्र को तुमने जोड़ा ,पौरुष जहाँ अपार था ।
एक देश का सबल राष्ट्र का ,किया स्वप्न साकार था ।
यश की कान्ति सतत चूमती भारत माँ के भाल को ।
मिलकर आओ*********
हे क्रांति वीर बिस्मार्क देश के ,
तुमने हमको समझाया है ।
एक रहेगें खूब फलेंगे हमको
यह  पाठ पढाया है ।
देश से ऊपर धर्म न कोई ,जनजन ने अब गाया है ।
नमन ह्रदय से करें आज फिर
नहीं तुमको कभी भुलाया है ।
सदा आपकी रही जरूरत ,मेरे देश विशाल को ।
मिलकर आओ*****

✍️ डॉ प्रीति हुंकार ,मुरादाबाद
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बहाया था दरिया वफ़ाओं का हमने।
कि तोड़ा गुमाँ भी घटाओं का हमने।।

मयस्सर हुआ जो भी उसमें  रहे खुश।
न माँगा ज़खीरा दुआओं का हमने।।

हुआ जब से मशगूल अपनी दिशा में।
न देखा है जलवा अदाओं का हमने।।

गुलों से ये बुलबुल भी कहती है हँसकर।
सजाया है दामन फ़ज़ाओं का हमने।।

हमेशा ही "आनंद" दुश्मन को अपने।
दिया प्यार फिर फिर दुआओं का हमने।।

✍️अरविन्द कुमार शर्मा "आनंद", मुरादाबाद
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राम राज आया है यही क्या,हम तुम जो बीमार हुए?
तन से तो बीमार थे पहले अब मन भी बीमार हुए।

भ्रात बन्धु के सारे रिश्ते पल मे तारम तार हुए,
देख जगत की हालत ऐसी राम  शर्मसार हुए।

जात धर्म के नशे मे केवल आपस मे तकरार हुए,
आज अखण्ड भारत के टुकड़े होने को तैयार हुए।

राम नाम बस कंठों तक ही हाथों मे तलवार हुए,
आज संकट मे हर बेटी, हर घर और संसार हुए।

नोच रहे हैं जालिम बोटी, गिद्धों से बेकार हुए
युवा पीढ़ी पतन को निश्चित कुछ ऐसे आसार हुए।

क्या तरक्की मुल्क की ऐसे, अनसुनी दरकार हुए
कैसे आका अफसर कैसे , फरियादी लाचार हुए।

भेद वर्गों के मिट जाते पर इन पर ही व्यापार हुए,
एक अबला असहाय पर कितने व्यभिचार हुए।

इश्क का जो दम भरते थे, भँडुए सब दिलदार हुए
जिसके नही बहन कोई बेटी ऐसी तो सरकार हुए।

सच को जो पर्दे मे रखते ऐसे तो पत्रकार हुए,
गृह क्लेश ये निबटे कैसे लड़ने सब बेकरार हुए।

बैरभाव जहां मिट जाए तो आपस मे फिर प्यार हुए,
प्रेमी बन कर रहने वाले जन सभी लाचार हुए।

✍️ इंदु ,अमरोहा,उत्तर प्रदेश
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आओ ! चले उस बाग में
जहाँ फूलों की कलियाँ खिली हुई हो
पंछी मंद-मंद मुस्कुरा रहे हों
कोमल पवनें लहरा रही हों

भौंरों की आँखें कुम्भला रहीं हैं
कोयल मधुर संगीत गा रहीं हो

आओ ! चलें उस बाग में
जहाँ चेहरों पर खुशियाँ खिली हुई हो

✍️प्रशान्त मिश्र
राम गंगा विहार ,मुरादाबाद
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एक दिन नव दंपति में हो गई लड़ाई!
पत्नी ने मार दी फेंक कर
चूल्हे पर रखी तेल से भरी कढ़ाई
पति भी बहुत बड़बड़ाया,
पत्नी भी बहुत बड़बड़ाई
दोनों ने निश्चय किया
चलो डूबकर मरेंगे,
आखिर एक दूसरे को तंग तो नहीं करेंगे
  कुएं पर पहुंचकर पतिव्रता पत्नी ने
  पति का हाथ पकड़ा,
  पति बोला लेडीज फर्स्ट!
  प्रिय आप ही कीजिए कष्ट !
  मैं बाद में मौका देख  कूदूंगा l
✍️नकुल त्यागी, मुरादाबाद
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लोकतंत्र के पर्व में ,डूबा आज बिहार !

इसी पर्व में जीत है, इसी पर्व मे हार !
न्यायाधीश जनता बनी,नेता बेवस आज ;
जिस पर जनता हो फिदा,उसकी ही सरकार !

है समाज संजीवनी,लोकतंत्र का तन्त्र !
निजता को दे सबलता,लोकतंत्र का मन्त्र !
सुख-शान्ति-समृद्धता-मंगलमय हों लोग ;
सदा सदा कायम रहे,भारत में गणतंत्र!

अज्ञान और मूर्खता की जिद को छोड़कर !
जाति अरु मजहब की दीवारों को तोड़ कर !
आओ हम सब एक बने,देर न करें
आओ सबका साथ दे, हर  एक मोड़ पर।

✍️ विकास मुरादाबादी
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कभी ठुकराये कभी दुलार करे है,
उँगली उठाये बातें हज़ार करे है,

ये दुनिया है अजीब यहाँ हर कोई,
एक दूसरे से बेवजह की रार करे है,

तुम हुस्न हो इश्क़ चाहेगा ही तुम्हें ,
कि भंवरा फूल पे जां निसार करे है,

आँधियाँ उजाड़ देती हैं इक पल में,
जो फ़सल काश्तकार तैयार करे है,

ख़ुद दे रहे दावत मौत को हम लोगों,
मिलावटखोरी अब हमें बीमार करे है,

लगे हैं इतने मक्कारियों के दाग़ चेहरे पे,
आईना भी सच दिखाने से इंकार करे है,

अच्छे कामों का सिला मिलेगा ऊपर,
जाने क्यूँ ख़ुदा इन्सां से उधार करे है,

✍️ राशिद मुरादाबादी

रविवार, 1 नवंबर 2020

सागर तरंग प्रकाशन की कृति संदर्भ ग्रंथ संकेत का लोकार्पण समारोह 29 दिसंबर 2002 को हुआ था । प्रस्तुत है आयोजन का दैनिक जागरण मुरादाबाद के 30 दिसंबर 2002 के अंक में प्रकाशित समाचार


 

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता -----मै सड़क और सांड


हमारी पत्नी के दिमाग की

ना जानें कौन सी नस कुलबुलाई

उसने हमको

खूब खरी खोटी सुनाई

कोरोना की आड़ में

सारे दिन घर में पड़े रहते हो

हर एक घंटे के बाद

किचन में खडे़ रहते हो

सुबह उठते ही

खाने में लग जाते हो

खाते खाते थककर

फिर से सो जाते हो

खाना सोना,सोना खाना

इसीके चारों ओर घूमता है

तुम्हारी जिन्दगी का ताना बाना

कविंद्र जी को देखो

घर का सारा काम करते है

बीच बीच में कविताएं भी लिखते हैं

सारा मौहल्ला उनको जानता है

आदमी कम और कवि ज्यादा मानता है

हमको लगा,कोई पड़ोसन

हमारी पत्नि को भड़का रही है

या पत्नि समझदार हो गई है

हमको सही समझा रही है

कोरोना ने सबका भला किया है

अनपढ़ और मूर्ख लोगों को भी

कवि बना दिया है

हम तो फिर भी हाईस्कूल फेल हैं

हमारे लिए ये सब

बांए हाथ के खेल हैं


लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी

जब कुछ नहीं लिख पाया 

हमने हिन्दी के प्रोफेसर

पड़ोसी को फोन लगाया

गुरु जी

व्याकरण और छंद का ज्ञान

हमारे अंदर उतार दो

कोई कविता लिखवा दो

और हमको इस संकट से उबार लो

गुरु जी बोले

ज्ञान के चक्कर में मत पड़ो

जैसा मैं कहता हूं,वैसा लिखो

शुरुआत मैं से करो

फिर जहां पर हो,वो लिखो

हमने कहा ,सड़क पर हूं

वे बोले बेधड़क,

लिख डालो सड़क

सामने क्या है

सामने एक सांड खड़ा है

फ़ौरन लिखो सांड

ये शब्द बहुत बढ़िया मिला है

आसपास क्या है

एक तरफ मंदिर

दूसरी तरफ अस्पताल

अगली लाइन में डाल दो

मंदिर और अस्पताल

अब शुरू से पढ़ो

मैं,सड़क,सांड

मंदिर और अस्पताल

आपकी ये कविता

मचा देगी धमाल

हमने कहा

ये भी कोई कविता है

ना कोई तुक है

ना कोई अर्थ निकलता है

गुरुजी बोले,ये वास्तविकता है

आजकल ऐसा ही माल बिकता है

दो चार भाड़े के टट्टू

अपने साथ रखना

वो वाह वाह करके सब संभाल लेंगे

रही अर्थ की बात

पढ़ने सुनने वाले

तुमसे ज्यादा समझदार हैं

कुछ ना कुछ अर्थ अवश्य निकाल लेंगे


✍️ डॉ पुनीत कुमार, मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की रचना -----गरीबी की रेखा-


एक बार अकबर ने बीरबल से चुहुल की।

एक कागज पर एक रेखा खींच दी।

बोले: बीरबल, तुम बड़ी बड़ी बुद्धिमत्ता की बात करते हो।

बहुत चतुर होने का दम्भ भरते हो।

जरा इधर आओ।

बगैर छुए ही इस रेखा को बड़ी करके दिखाओ।

अब तो पूरे दरबार में शांति छा गयी।

विरोधी खेमे में खुशी की लहर दौड़ गयी।

आज तो बीरबल को हार माननी पड़ेगी।

सारी चतुराई धरी रहेगी।

लेकिन बीरबल तो बीरबल ही थे।

बुद्धि के मामले में वाकई धनी थे।

तुरन्त उस रेखा के पास एक छोटी रेखा खींच दी।

लीजिए हुजूर,  आपकी ही रेखा बड़ी की।

काश, बीरबल आज भी जीवित होते।

हमारी सरकार के बहुत काम आते।

कुछ ऐसा ही कौतुक दिखाते।

और सबको गरीबी की रेखा से ऊपर उठाते।

✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, 

MMIG - 69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद ।

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की कविता


ओ,

मेरी आस्था और विश्वास

की लम्बी रेस के घोड़े

मैं,

तुझे कहाँ - कहाँ दौड़ाऊं

अगर भरी सड़क पर दौड़ाता हूँ

तो तू थक जाता है

और, यदि

खुले आसमान के नीचे 

ठंडी हवा में दौड़ाऊं तो,

तुझे सुस्ती आने लगती है

काम चोर हो जाता है

फिर,

तू ही बता तुझे कहाँ दौड़ाऊं

एक बार तुझे

विधान सभा की सड़क पर

दौड़ाया था,

तो, मुझे लेने के देने पड़ गए थे

तुझे

बड़ी मुश्किल से सम्भाल पाया था

क्योंकि,

वहाँ की आब- हवा तुझे क्या लगी

की वहां से हटने का नाम

नहीं ले रहा था,

बार - बार वहीं जाकर खड़ा 

हो जाता था ।

तुझे कैसे काबू कर पाया

यह मैं ही जानता हूँ।

जैसे - तैसे वहाँ से जान बची

तो सोचा,

कहीँ और चलकर दौड़ाऊं

 फिर  तुझे राजधानी में

लोकसभा की सड़क पर दौड़ाया

बस,फिर क्या था

तूने वहाँ कमजोर घोड़ों के उपर ही

हिनहिनाना आरम्भ कर दिया था

और,

मेरे हाथ से छूटकर ऐसा भागा

कि आज तक

 ढूंढ  रहा हूँ  हाथ नहीं आया,

राजधानी का पानी तुझे ऐसा भाया ।

✍️अशोक विश्नोई, मुरादाबाद

मो० 9411809222

मुरादाबाद के साहित्यकार रवि प्रकाश का गीत ----दुनिया में सबसे ऊँचे अपने सरदार पटेल



                       ( *1* )

सबसे ऊँची मूर्ति विश्व की यह जो लगी सही है 

परम   साहसी   दुनिया   में   ऐसा   दृढ़वती   नहीं  है

यह  पटेल  की  दूरदृष्टि  भारत  माता    के   गायक

शत  शत  नमन  देश का उसको  जो सचमुच जननायक

जो  रियासतें उच्छ्रंखल  थीं  उनकी  कसी नकेल

दुनिया  में  सबसे  ऊँचे  अपने   सरदार   पटेल

                          ( *2* )

यह  पटेल  थे  एकीकृत  भारत  के  नव निर्माता

यह पटेल थे जिन्हें याद करके साहस भर जाता

यह  पटेल  थे  देशभक्त  राजाओं  को   समझाया

विलय   रियासत का मृदुता से भारत में करवाया

खेला   अड़ियल   तानाशाहों   से   ताकत   का   खेल

दुनिया   में   सबसे   ऊँचे   अपने   सरदार  पटेल

                       ( *3* )

अगर  नहीं  होते   पटेल   तो   राजा .- रानी  ढोता

देश   पाँच   सौ   से   ज्यादा   राजा -रानी   का   होता

सब रियासतें अपना शासन अपना हुकम चलातीं

सभी  योजनाएँ   भारत   में   लागू   कब   हो   पातीं

परमिट - वीजा   लेकर   चलती   नागरिकों   की  रेल

दुनिया    में    सबसे    उँचे    अपने    सरदार    पटेल

                    ( *4* )

सौ- सौ होते काश्मीर जो ढ़पली अलग बजाते

दफा तीन सौ सत्तर लेकर भारत को धमकाते

भारत तो आजाद हुआ, जनता गुलाम ही रहती 

कब्जे   में   यह   राजाओं   के, सारी   दुनिया   कहती

दृढ़ता    थी     चट्टान     सरीखी  , संवादों     का   मेल

दुनिया    में    सबसे   ऊँचे   अपने     सरदार     पटेल

✍️ रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा , रामपुर  (उत्तर प्रदेश) 

 मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की कविता ----- बंदरबांट


सरकारी लट्टू ने

पुनः चक्कर लगाया,

और विद्यार्थियों के लिए,

दोपहर का भोजन,

आखिरकार विद्यालय में आया।

भोजन की सुलभता और पौष्टिकता,

अपना कमाल दिखाने लगी।

तभी तो गुरु जी की उपस्थिति,

विद्यालय में प्रतिदिन,

शत-प्रतिशत नजर आने लगी।

अजी! अब तो बड़े साहब भी,

अपना दायित्व बखूबी निभाते हैं।

तभी तो उनके घरेलू बर्तन,

विद्यालय की शोभा बढ़ाते हैं।

नौनिहालों का पेट,

आकाओं की नीयत,

वाह क्या मेल है।

अजी! इसके आगे तो

बंदरबांट भी फ़ेल है।

✍️ राजीव  'प्रखर', मुरादाबाद