रविवार, 27 दिसंबर 2020

वाट्सएप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक रविवार को वाट्सएप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है। इस आयोजन में साहित्यकार अपनी हस्तलिपि में चित्र सहित रचना प्रस्तुत करते हैं । रविवार 20 दिसंबर 2020 को आयोजित 233 वें आयोजन में शामिल साहित्यकारों सूर्यकांत द्विवेदी, रवि प्रकाश, डॉ अशोक रस्तोगी, राजीव प्रखर, डॉ रीता सिंह, मनोरमा शर्मा, अमितोष शर्मा, श्री कृष्ण शुक्ल, संतोष कुमार शुक्ल संत, मीनाक्षी ठाकुर, वैशाली रस्तोगी, अशोक विद्रोही, डॉ शोभना कौशिक, दुष्यंत बाबा , दीपक सिंह, डॉ पुनीत कुमार , ओंकार सिंह विवेक, मीनाक्षी वर्मा, रामकिशोर वर्मा और डॉ मनोज रस्तोगी की रचनाएं उन्हीं की हस्तलिपि में ------




















शनिवार, 26 दिसंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार ( वर्तमान में मुंबई निवासी) प्रदीप गुप्ता की कविता ----क्रिसमस के बाद की सुबह


मेरा मन उड़ना चाहता है पक्षी की तरह 

उन्मुक्त जिधर मैं चाहूँ 

कभी इस मुँडेर पे तो कभी उस मुँडेर पे . 

कुछ पल सुस्ताना भी चाहता है 

किसी मुँडेर पे भले वो मंदिर की हो , अग्यारी की 

किसी चर्च या फिर मस्जिद की .

तुम्हें पता है मेरे लिए 

तुम्हारे द्वारा अपनाए गए धर्म ,

उस धर्म से जुड़े पर्व और रीति रिवाज 

रोज़ आनंदित होने का एक बड़ा कारण हैं .

पर यह भी सच है 

तुम्हें दूसरों के पर्व और उपासना विधि से 

बड़ी तकलीफ़ होती है ,

तुममें से कुछ तो उससे नफ़रत भी करते हैं .

तुम दिन रात अपनी तरह के  

पूजा अर्चना में तल्लीन रहते हो 

लेकिन तुम्हें क्या लगता है तुम्हारे देवता 

दूसरों के प्रति  तुम्हारे नफ़रती सोच के लिए 

तुम पर पुष्पों की वर्षा करते होंगे .

देवता तो देवता हैं 

वे किसी ख़ास मजहब की जागीर नहीं हैं 

सबको हक़ है उन्हें पूजने का 

जैसे भी जो चाहे. 

एक बात ओर समझ लो 

देवता आसमान में रहते हैं. 

तुम क्या कभी किसी पहाड़ के शिखर पर चढ़े हो ?

वहाँ पहुँचने का केवल एक रास्ता नहीं होता 

तुम अपनी मरजी वाला रास्ता पकड़ सकते हो ,

कोई रास्ता सीधा , कोई ऊबड़ खाबड़ तो कोई पथरीला , 

लेकिन अगर वो ऊपर की तरफ़ जा रहा है 

तुम मज़े से शिखर तक पहुँच सकते हो .

वही जो तुम्हारे विश्वास का उत्कर्ष है . 

अतीत बताता है ज़्यादातर लोग 

अपने गंतव्य पर नहीं 

बस रास्ते पर फ़ोकस रहे हैं ,

यहीं से झगड़े की शुरुआत हुई है 

इसीलिए इतिहास के पन्ने खून में सने हुए हैं . 

इतिहास से सीखो तो 

तुम बेहतर इंसान बन सकते हो .

तुम अपने मन को पक्षी बना लो 

उसे उड़ने के लिए अंतरिक्ष का विस्तार दे दो 

जो मत मतांतर से कहीं परे है . 



                   https://youtu.be/RnRoeDZdGAw


✍️ प्रदीप गुप्ता

 B-1006 Mantri Serene

 Mantri Park, Film City Road ,   Mumbai 400065

मुरादाबाद के साहित्यकार राशिद हुसैन की कहानी----------मुरझा गया कमल

     


मैं नैनीताल हूं मेरी भुजाएं हरे भरे वृक्षों लदे पहाड हैं। मेरे सीने पर एक बड़ी सुंदर झील है मेरे मौसम की खुशगवारी पूरी दुनिया में मशहूर है। उत्तराखंड के पहाड़ों पर बसा हूं मैं। मेरा हुस्न देखने हर साल लाखों सैलानी आते हैं ।झील में तैरती बत्तखों की काफ काफ करती आवाज़ और  पानी पर तैरती छोटी छोटी किस्तियाँ मेरी ख़ूबसूरती में चार चांद लगा देती हैं। जो भी सैलानी मुझे देखने आता है वह आनंदित होकर मेरी तारीफ करके चला जाता है पर आज तक मेरे दर्द को  कोई भी नहीं जान पाया क्योंकि हर इंसान उसे देख कर भी अनदेखा कर देता है।

जाड़ा लग कर चढ़ रहे तेज़ बुखार से कंपकपाते कमल को उसकी माँ राजवती फटे कम्बल से ढके उसके सर को अपनी गोद मे रख कर दबा रही थी पर कमल की करराहट लगातार बढ़ती जा रही थी एक तो तेज़ बुखार ऊपर से पेट में भूख की आग ने कमल की तड़प और बढ़ा दी थी।राजवती के पेट में भी पिछले दो दिन से अन्न का दाना नहीं गया था लेकिन कमल की तकलीफ ने राजवती की भूख की शिद्दत को कम कर दिया था। उसके आंसू बेटे के दर्द और कर्रआहट को बर्दाश्त नही कर पा रहे थे।मजबूर राजो अपनी झोपड़ी से बाहर निकलने को सरकारी हुक्म का इंतज़ार कर रही थी। एक- एक पल राजो को महीनों से लग रहा था। काफी देर के बाद कमल को अब हल्की बेहोशी छाने लगी थी पर राजवती की बेचैनी और बढ़ रही थी। वह सोच रही थी कि पति की मौत के बाद कमल ही एकमात्र उस का सहारा है अगर उसे कुछ हो गया तो क्या होगा ? कैसे कटेगी जिंदगी मुझे तो कई -कई दिन गुजर जाते हैं मजदूरी नहीं मिलती किसी दिन मजदूरी मिल जाए तो दो-तीन दिन की रोटी का इंतजाम हो जाता है । मेरा कमल तो रोज ही झील किनारे गांव के कई और बच्चों की तरह चाय के ठेले पर काम करके और दूर दराज से  नैनीताल घूमने आए  लोगों के इर्द- गिर्द  घूमकर अपने और मेरे खाने, कपड़े का इंतजाम कर लेता है । फिर सोचने लगी अगर वह असमय काल के गाल मैं न समाते हम दोनों अपने कमल को खूब पढ़ाते और फ़ौज मैं भेजते मगर नियति को यही मंज़ूर था।एक दिन पहाड़ की कटाई का काम करते हुए उनके ऊपर एक बड़ा पत्थर आ गिरा और वो हमेशा के लिए----- हड़बड़ा उठी राजो उसने फिर कमल को देखा जो अभी भी तेज बुखार मैं तप रहा था। राजो फिर भगवान से प्रार्थना करने लगी हे भगवान अगर मेरे कमल को कुछ हो गया तो मै ये ग़म बर्दाश्त नही कर पाउंगी तू मुझे भी उठा लेना।

दिन ढल चुका था रात गहराने लगी थी राजो फिर सोचने लगी कल भी हमे अपने घरों मैं ही कैद रहना होगा क्योंकि कल ही तो आ रहे हैं राजा जी अब मै क्या करूँ? मेरा कमल यही सोचते हुए झटके से उठ खड़ी हुई राजो और पड़ोस की झोपड़ी में इस इरादे से गई शायद वँहा कुछ खाने को मिल जाये लेकिन वँहा भी कुछ नही मिला।वापस आकर फिर कमल को गोर से देखने लगी उसके चेहरे पर अब सख्त भाव उभरने लगे थे। राजो ने निष्चय किया सुबह होते ही वह कमल को सरकारी अस्पताल ज़रूर ले जायगी चाहे पुलिस पकड़ कर उसे जेल मे ही क्यों न डाल दे।

राजो ओ राजो ले एक भुट्टा बोरी मैं पड़ा मिल गया परसो बिकने से रह गया था अपने कमल को खिला दे पेट मे कुछ जाएगा तो अच्छा रहेगा राजो के पास आते हुए पड़ोसी विमला ने कहा फिर दोनों आपस मे बातें करने लगी तुझे पता है राजो पूरी झील की सफाई हुई है राजो ने विमला की तरफ देखा और चुप रही विमला फिर बोलने लगी पूरे पन्द्रह दिन हो गए हैं तैयारियां चलते हुए बड़े बड़े अफसर यंहा डेरा डाले है। एक एक होटल की चेकिंग की जा रही है घर- घर जाकर रिस्तेदारी में आये मेहमानों को भी चेक किया जा रहा है उनकी पूरी जांच पड़ताल हो रही है। किस्तियाँ चलाने वाले निजी आदमियों को हटा दिया गया है सब पर सरकारी मुलाज़िम बैठेंगे पूरे  नैनीताल का  ट्रैफिक बंद रहेगा शहर को आने जाने वाले सारे रास्तों पर पुलिस रहेगी आज से परसों तक के लिए कोई भी सेलानी नैनीताल में प्रवेश नहीं करेगा और सुना है पेड़ों पर खुफ़िया कैमरे भी लगे हैं सादी वर्दी मैं पुलिस वाले पूरे शहर मे घूम रहे हैं। हर दुकान और स्टाल पर सादी वर्दी मैं पुलिस लगी है हम तो गरीब मजदूर है हमें तीन दिन पहले ही घरों में कैद कर दिया बताओ हम भला क्या किसी को मारेंगे? हम क्या किसी को नुकसान पहुंचाएंगे ? विमला ने एक लंबी सांस ली और फिर बोलने लगी जैसा सरकार का हुकुम अरे राजो मैं बोले जा रही हूं तुझे बोलने का मौका ही नहीं दिया तू सुबह को कमल को अस्पताल कैसे लेकर जाएगी ?हम यहां ऊपर पहाड़ों के गांव में रहते हैं और अस्पताल तो नीचे शहर के बीच में बना है अपने गांव में तो कोई वैध जी भी नहीं है बहुत देर बाद राजो की चुप्पी टूटी आखिर आ क्यों रहे हैं? ऐसे मेहमान राजा जो हम गरीबो के घर से निकलने पर भी पाबंदी लगा दी गयी है । चाहे कोई किसी हाल में हो विमला जवाब देते हुए बोली तुझे पता है कोन आ रहे हैं? राजो ने प्रश्नचिन्ह नज़रो से विमला की तरफ देखा जो बोले जा रही थी दुनिया की सबसे बड़ी ताकत वाले देश के राजा हैं क्या मतलब? राजो ने कहा हां अमेरिका के राष्ट्रपति है हिन्दुस्तान आये हुए हैं दौरे पर जाने क्या सूझी नैनीताल घूमने का इरादा बना लिया सुना है उन्हें यंहा के मौसम और  प्राकृतिक सुंदरता के बारे में यहां के एक आदमी  जो अमेरिका में व्हाइट हाउस में नौकरी करते हैं उन्होंने बता रखा है तभी तो उनकी इच्छा यहां आने की हुई है बस दो घंटे रहेंगे नैनीताल फिर चले जायेंगे सिर्फ दो घंटों के लिए इतनी तैयारियां अचंभित होते हुए राजो ने कहा विमला ने उत्तर दिया अरे पगली अमेरिका बहुत पैसे वाला देश है वहां के राष्ट्रपति जी का तो खूब आदर सत्कार करना ही पड़ेगा क्या पता खूश होकर हमारे मुल्क के साथ कोनसा सौदा कर जाएं जो भविष्य मे देश के लिए हितकर हो इस बार राजो गुस्से से तमतमा गई और बोली क्या गरीबी मिट सकती है हमारी ? ये तो भगवान ही जाने विमला ने कहा कुछ देर खामोश रही दोनो फिर चुप्पी तोड़ती हुई विमला बोली अच्छा राजो रात बहुत हो गई है ठंड भी बढ़ने लगी है मैं चलती हूं हां जब कमल की आँख खुले तो ये भुट्टा ज़रूर खिला देना अच्छा रहेगा ये कहते हुए विमला चली गयी।

राजो उठी और कमल के पास जाकर उसे देखा जो अभी भी बेहोशी की हालत मैं था ।राजो ने उसका सर अपनी गोद मे रखा और दीवार से पीठ लगा कर बैठ गयी और सुबह होने का इंतज़ार करने लगी । जैसे जैसे रात गहराती जा रही थी वैसे वैसे उसकी बेचेनी बढ़ रही थी । राजो देर तक इस कशमकश मैं थी कि सुबह होने पर वह कमल को अस्पताल कैसे लेकर जाएगी ? तभी कमल ने कपकपाती आवाज़ से पानी- पानी पुकारा राजो ने पास मैं रखे गिलास को उठाया और गोद मे लेटे कमल पिलाने लगी अब उसने निश्चय कर लिया कि वह सुबह होते ही कमल को अस्पताल लेकर ज़रूर जाएगी ।

काफी रात बीत चुकी थी बैठे बैठे राजो की आँखों में भी हल्की नींद की ख़ुमारी छा गई जो सहर मैं मुर्गे की पहली बान के साथ हठी । राजो ने हड़बड़ा कर इधर उधर देखा फिर अपने कमल को देखने लगी कुछ देर पहले जो शरीर तेज़ बुखार के कारण तप रहा था वह अब ठंडा पड़ा था कमल अब कभी न जागने वाली गहरी नींद सो चुका था राजो ने कई बार अपने जिगर के टुकड़े को पुकारा उठ जा कमल उठ जा कमल लेकिन कमल नही उठा क्योंकि अब वो इस दुनिया में नही था। कल तक खूबसूरत फूल की तरह खिला कमल सूरज की पहली किरण पड़ने से पहले ही मुरझा गया था।

✍️ राशिद हुसैन 

मोहल्ला बाग गुलाब राय,ढाल वाली गली झारखंडी मंदिर के पास थाना नागफनी, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश,भारत

मोबाइल फोन नंबर-9105355786


मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी का संस्मरण ---लोग उसे भिखारी समझते थे लेकिन वह कवि निराला थे ..….

         


वह सन 1996 की तारीख थी पांच अक्टूबर । मुरादाबाद रेलवे स्टेशन पर आरक्षण हॉल में एक कोने में दीवार के सहारे अधलेटा एक वृद्ध। शरीर पर मैला- कुचैला कुर्ता पायजामा, बढ़ी दाढ़ी, उलझे हुए बाल। कोई यात्री उसे भिखारी समझ रहा था तो कोई उसे पागल समझ कर एक उचटती हुई नजर डाल कर आगे बढ़ रहा था। यह शायद किसी को नहीं मालूम था कि यह आदमी रामपुर का एक जाना पहचाना कवि है, जिसका नाम है मुन्नू लाल शर्मा निराला। अपनी कविताओं से जिंदगी में रंग भरने वाले इस कवि को शायद इस बात का कभी गुमान भी नहीं हुआ होगा कि जिंदगी के किसी मोड़ पर उसकी जिंदगी भी इस तरह बदरंग हो जाएगी। यात्रियों की भीड़ में उपेक्षित इस कवि को पहचाना काशीपुर के साहित्यकार डॉ वाचस्पति जी ने। टिकट लेते हुए अचानक उनकी निगाह उन पर पड़ी और उन्हें देखते ही वह लपक कर उनके पास पहुंच गए थे। निगाहें मिली और दोनों एक दूसरे को पहचान गए। कातर दृष्टि से कवि निराला ने उनसे पानी मांगा। पानी पीने के बाद उन्होंने कहा बस एक डिब्बी पनामा सिगरेट और एक माचिस की डिब्बी और ला दो। रुपये- पैसे लेने से उन्होंने इंकार कर दिया था। साथ जाने से भी उन्होंने मना कर दिया था।            

      उस समय मैं दैनिक जागरण में कार्यरत था। प्रख्यात साहित्यकार माहेश्वर तिवारी जी का फोन आया । उन्होंने यह जानकारी मुझे दी । यह सुनते ही फोटोग्राफर को लेकर मैं रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया। वहां मैंने निराला जी से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि एक माह पहले वृंदावन गया था। एक हफ्ते पहले जब वहां से वापस लौट रहा था तो किसी ने राजघाट पर धक्का दे दिया। उस समय पैर में चोट आ गई । खैर किसी तरह वह चन्दौसी पहुँचे और पहुंच गए पुरातत्ववेत्ता सुरेंद्र मोहन मिश्र जी के बड़े भाई के घर। उन्होंने उन्हें खाना खिलाया उसके बाद वह मूलचंद गौतम के घर भी पहुंचे लेकिन उनसे भेंट न हो सकी। श्री गौतम उस दिन शहर से बाहर थे।  उसके बाद किसी तरह वह मुरादाबाद आ गए । तीन-चार दिन से यहीं रेलवे स्टेशन पर पड़े हैं । उन्होंने कहा "मजबूरी का नाम महात्मा गांधी"। आज भूख लगी तो रेलवे स्टेशन के सामने पहुंच गये एक मुसलमान के होटल पर जहां उसने कढ़ी चावल खिलाएं । 

    जिंदगी भर दुख सहने वाले इस कवि ने कभी जिंदगी से हार नहीं मानी थी। पत्नी उसे छोड़कर कलकत्ता चली गई थी । एक बेटा था उसकी मौत हो गई थी और बेटी उसका कुछ पता नहीं था। वह अकेला ही जिंदगी काट रहा था और कविताएं रच  रहा था ।पहला काव्य संग्रह जिंदगी के मोड़ पर छपा। साप्ताहिक सहकारी युग के सम्पादक महेंद्र गुप्त जी अपने अखबार में उनकी कविताएं छापते रहे। आकाशवाणी का रामपुर  केंद्र उनकी कविताएं प्रसारित करता रहा।

   वह जिंदगी के हर  पड़ाव को, हर मोड़ को हंसते हुए पार करते रहे। उस समय चलते चलते उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा--- 

सर सैयद के घर मेहमानी

करके मुसलमान कहलाए

 यह दुनिया वाले क्या जाने

 हम क्या-क्या बन कर आए

✍️ डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश,भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822


मुरादाबाद की साहित्यकार ( वर्तमान में जकार्ता इंडोनेशिया निवासी ) वैशाली रस्तोगी की कविता -----


 

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार सरिता लाल की रचना -----प्रकृति शिव की पटरानी हो गयी....


चुपके से बरसी प्रेम बूंदों से

देखो ये सुबह सुहानी हो गयी

रातभर मधुर मिलन की खुशबु से

प्रकृति शिव की पटरानी हो गयी,


यूं धरती का‌ नभ‌ से आलिंगन

राधाकृष्णमय ये अद्भुत बंधन

गर्भ में समाये मिलन गीत अनमोल

मयूर सा नाच उठा अभिसारित सिंचन,


माटी का हर‌ कण देखो अब

स्वर‌ में‌ बजती वीणा की तान है

यही काम रूप सृष्टि में बहता

ये ही प्रेम‌गीत‌ इसकी ‌‌पहचान है,


नव यौवना सी सुन्दरता में पगी पगी 

मंत्रमुग्धा सी मैं रह‌गयी ठगी ठगी

बारिशों ने मासूमियत से ली जो अंगड़ाई

इन्द्रधनुष की लालिमा हो गयी‌ सजी सजी। ।


✍️ सरिता लाल

37-ए, मधुबनी

कांठ रोड

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा -----समझ


सोनल बहुत सुन्दर थी।बचपन से ही अपनी सुन्दरता के कारण वह सभी की प्रंशसा पाती रही।उसे भी अपने रुप का अभिमान हो चला था।

        शादी के बाद भी उसका वही स्वभाव रहा।पति प्रवीण शुरू मेंं उसके रुप से प्रभावित रहा। व्यवहार की कमी को अनदेखा करता रहा मगर जल्द ही रूप की चमक व्यवहार के कारण दबती गयी।जिस वह बीमार सास को घर मेंं अकेले घर मे छोडकर ब्यूटी पार्लर गयी उस दिन घर लौटे प्रवीण का गुस्सा सातवेंं आसमान पर पहुंच गया और उसने चेतावनी दे डाली।वह गुस्से मे घर छोडकर मां के घर आ गयी।

        आज छह माह बीत गये।मां पिता ने समझाया मगर वह न मानी।दिन बीतते गये अकेलेपन ने उसे बहुत कुछ सिखा दिया।आज करवा चौथ का दिन  है। वह प्रवीण को बहुत याद कर रही थी। सोचते सोचते वह उठ खडी हुई तैयार होकर बोली,"मां मै अपने घर जा रही हूँ"।उसे अपनी गलती समझ आ गयीं थी।वह जल्द से जल्द  अपने घर पहुंचना चाहती थी।


✍️ डा.श्वेता पूठिया, मुरादाबाद

बुधवार, 23 दिसंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक की लघुकथा ----करवा चौथ

     


विवाह के सात वर्ष व्यतीत हो चुके थे ,और उन सात वर्षों में मोनिका का हर सम्भव यही प्रयास रहा ,कि वह अपने कर्तव्यों पर खरी उतरे ।ससुराल में पति के साथ-साथ सब लोगों को खुश रखने के चक्कर में मोनिका स्वयं अपना अस्तित्व ही भूल चुकी थी ।दिन - रात एक कर सबकी सेवा में लगी रहती लेकिन अनुज और उसके घर वालोंं की नजर में उसकी कोई कीमत न थी ।इतना सब करने के बाद कभी -कभी मोनिका का मन ग्लानि से भर जाता ।सोचती ,क्या इसे ही विवाह कहते हैं।क्या यही है ,पति -पत्नी का संबंध।

      अनुज की नजरों में मोनिका की कोई अहमियत नही थी ।उसका व्यवहार मोनिका के प्रति आत्मीयता का नही ,बल्कि सिर्फ एक नौकरानी का था ।आखिर कब तक मोनिका यह सब कुछ सहती, एक दिन वह अपने बच्चों को साथ ले अपने पिता के घर आ गयी ।जैसे भी हो ,अब वह वहाँ लौट कर नही जायेगी।आखिर कब तक वह अपना और अपने बच्चों का शोषण करवायेगी ,अनुज को वैसे भी उसकी जरूरत समाज को देखते हुए ही थी ।समय बीतता रहा, शुरू में तो अनुज ने उसे बुलाने के प्रयास भी किये,लेकिन धीरे -धीरे वह भी बंद हो गये।

      मोनिका अपने माता -पिता के साथ अपने बच्चों की परवरिश में लग गयी लेकिन उसने अपने कर्तव्यों की डोर को नही छोड़ा ।यहाँ एक तरफ पति के साथ ससुराल में रह अपने कर्तव्यों का पालन किया ,वहीं दूसरी तरफ अपने अस्तित्व को बचा कर बच्चों के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह करती रही ।यहाँ तक कि, प्रतिवर्ष करवा चौथ आती और वह व्रत रखती।यहाँ भी वह अपने कर्तव्य से नही फिरना चाहती थी ।इसलिए नही ,कि लोग क्या सोचेंगे ,बल्कि इसलिए कि ईश्वर उसके आगे का मार्ग प्रशस्त कर उसे एक नई शक्ति दें ।

डॉ शोभना कौशिक, मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा -----मधुर मिलन


आज रागिनी ने बहन रूचि को भी शादी कर विदा कर दिया.....

रागिनी पुरानी यादों में  खो गयी ....लगभग 10 साल बीत गये , जब राज के साथ उसकी सगाई तय कर शादी की तैयारी मे जुट गये थे उसके मम्मी पापा .......

पर एक दिन ......कार  दुर्घटना ...  भाई अमन और बहन रूचि की जिम्मेदारी उस पर छोड वे सदा के लिये चले गये। 

'अरे रागिनी कहाँ खोई हो, चलो सागर किनारे टहल कर आते है।'राज ने कहा।

 रागिनी आज बहुत हल्का महसूस कर रही थी, वह राज के साथ चल दी ... 

दोनो सागर किनारे टहल रहे थे। चारों ओर चाँदनी बिखर रही थी ......

'राज चाँद कितना सुन्दर लग रहा है। अरे..... आज तो शरद पूर्णिमा है  .....पता है आज चन्द्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। 'रागिनी ने उत्सुकता से कहा।

हाँ जानता हूँ ....रागिनी मुझे तुमसे कुछ कहना है....  

राज ने कहना शुरू किया ' तुमने अपनी जिम्मेदारी बहुत अच्छी तरह निभायी है। अमन भी अपने परिवार के साथ खुश है और आज  रुचि की शादी भी अच्छे घराने में हो गई है। बहुत साल बीत गये  ......अब मेरा इंतजार खत्म करो......रागिनी  .....मुझसे शादी कर लो।' राज ने रागिनी का हाथ अपने हाथों में ले लिया।

रागिनी ने नजरें झुका ली ......

शरद पूर्णिमा का चाँद उन दोनों के मधुर मिलन की गवाही दे रहा था।                               

✍️ प्रीति चौधरी, गजरौला,अमरोहा

                                    

मंगलवार, 22 दिसंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट का संस्मरण ------- अमृत

       


सेवारत प्रशिक्षण के तीन दिवसीय शिविर में पहली बार अमृत से मुलाकात हुई थी।उसकी ओजस्विता,उसकी ऊर्जा,उसकी वाकपटुता,उसकी चपलता और किसी भी विषय पर उसके धाराप्रवाह शास्त्रार्थ कर पाने की क्षमता ने मेरे दिलो-दिमाग पर गहरा असर किया था।पर कभी कभी लगता था जैसे वह बीच बीच में कहीं भटक जाती है, लेकिन स्वयं ही स्वयं को मुख्यधारा से जोड़ती वह पुन: अपनी जीवन्तता का परिचय देती तो सब कुछ ठीक लगता।

        ऐसा लगता था जैसे वह समय की मिट्टी को समेटकर एक पात्र बना लेना चाहती हो और समय के इस पात्र में अपने भीतर के घनीभूत भावों को विविध रूप देकर वह उड़ेल देना चाहती हो।वह चाहती कि उसके आस पास मौजूद हर व्यक्ति श्रोता या दर्शक बनकर उसके समय पात्र से अवश्य ही रसपान कर उसे सराहे।तभी वह कविता,गीत, ग़ज़ल,भजन,श्लोक ,कहानियाँ, हास-परिहास, वाद-विवाद, लतीफे,भाषण आदि विविध परिस्थितियों के अनुकूल विधाओं के स्वाद इस पात्र में उड़ेलती रहती थी।

       सच बताऊँ तो प्रथम दृष्टया वह मुझे दिमाग से खिसकी हुई लगी थी।क्योंकि वह निरन्तर अपनी ही बक बक किये जाती थी।कभी कभी लोगों का ध्यान खींचने के लिए वह कुछ विवादित बातें भी कह उठती थी जिसके कारण अक्सर उसका मकसद पूरा हो जाता,क्योंकि इंसान की आम फितरत है कि वह विवाद से जल्दी और अनचाहे ही जुड़ जाता है।शिविर के प्रतिभागियों में से कुछ लोग उसकी बहुमुखी प्रतिभा के कायल हो चुके थे,पर अधिकांश लोग उसे सनकी या पागल समझते थे, जिनमें मैं भी थी।यह विडम्बना ही है कि हमारे भारतीय समाज में अतिसक्रियता,विलक्षण बुद्धि और अति विचारशीलता या संवेदनशीलता को अक्सर पागलपन या सनकीपन करार दिया जाता है।

          मुझे आज भी अफसोस है कि संवेदनशील होते हुए भी पहले दिन मुझे भी उसका व्यवहार सनकी लगा था और मैंने उसकी एक पहचान वाली से पूछ ही लिया था,"क्या इसको कोई मानसिक बीमारी है?"तो उसने तुरंत खण्डन करते हुए गम्भीरता पूर्वक कहा था,"नहीं, दीदी।वह बहुत अच्छी है।आप एक बार उससे दोस्ती कर के तो देखो।हालांकि वह बीमार है,लेकिन मानसिक बीमार तो कतई नहीं।"

    कौतूहल तो जगा था पर संकोचवश मैंने स्वयं कोई पहल नहीं की। सौभाग्य से प्रशिक्षण के दौरान हम सबको अपने-अपने विचार व्यक्त करने का अवसर दिया गया। मुझे कविता लिखने का शौक है यह अधिकतर सहकर्मी जानते थे अतः मुझसे कविता सुनाने का आग्रह हुआ। मैंने अपनी एक कविता सभा में सुनाई।सभी को बहुत पसंद आई और सबने करताल से मेरा स्वागत किया।परंतु अमृत ने एक ऐसी बात कह दी कि मेरे कानों में विष सा घुल गया।अमृत खड़ी हुई और वही अपने असाधारण सनकीपने से बोली,"अरे भई,किसी की चुराई हुई कविता पढ़ने में क्या बात है? योग्यता हो तो चुनौती लो और मेरे साथ कविता में प्रतिस्पर्धा करो।"        

        मुझे बहुत बुरा लगा कविता लिखना मेरा शौक था।"चोरी की कविता" जैसा शब्द-समूह मेरे लिए गाली की तरह था।उसके इस व्यवहार ने मुझे उद्वेलित कर दिया था।लेकिन अमृत मुस्कुरा रही थी।

    एक अन्य प्रतिभागी महिला ने दोहे और श्लोक सुनाएं जो नीति परक थे।परंतु अमृत तब भी चुप नहीं रही और उसने दोहों के रचनाकारों के नाम पूछने शुरू कर दिए।इस पर उस महिला के आत्मसम्मान को भी ठेस पहुंची,पर अमृत के लिए तो मानो यह सब खेल ही था।उसने खुद उठकर न केवल कई दोहे सुनाये बल्कि प्रत्येक दोहे के रचनाकार का नाम और उस रचनाकार का जीवन परिचय भी धाराप्रवाह बताना शुरू कर दिया।अब यह ज्यादा हो रहा था। प्रतिभागी धीरे धीरे मंच पर आने से घबराने लगे थे।अमृत के इस असाधारण व्यवहार की सदन में आलोचना होने लगी थी और आपसी खुसर-पुसर में उसके सनकी होने की चर्चा बढ़ती जा रही थी।तभी अचानक अमृत ने गीत सुनाने की पेशकश सदन में रखी और उत्तर की प्रतीक्षा किए बगैर गाना शुरू कर दिया।बहुत ही सुंदर फिल्मी गीत था जिसके बोल थे,"इक दिन बिक जायेगा" सदन में चुप्पी छा गई थी। कुछ देर पहले फैली कड़वाहट को उस मधुर गीत की धुन में सब भूल चुके थे और जब गाना खत्म हुआ तो पूरा सदन तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था जिसमें मेरी तालियां भी शामिल थीं। मैं अजीब सी उधेड़बुन में थी।मेरे लिए कल तक सनकी अमृत,फिर कठोर प्रतिस्पर्धी अमृत अब एक जिज्ञासा बनती जा रही थी।

     मध्यावकाश के बाद प्रशिक्षक ने एक गतिविधि के तहत सभी को छ:छ: के समूह में विभाजित कर दिया।अजीब इत्तेफाक था, मैं और अमृत एक ही समूह में थे।अमृत मेरे पास आकर बैठी और बोली,"कब से इस मौके की तलाश में थी,अब जाकर मिला।अब देखना सबकी छुट्टी।दो धुरंधर एक ग्रुप में। सबसे अच्छा प्रेजेंटेशन हमारा ही होने वाला है।" मन को अच्छा-सा लगा।प्रस्तुतिकरण तैयार करते समय उसके विचार तर्कपूर्ण थे और अन्य लोगों के तर्कपूर्ण विचारों को भी समान महत्व देते हुए वह समूह भावना का परिचय दे रही थी।टास्क के बीच में ही उसने मुझसे कहा,"आप बहुत उम्दा लिखती हैं।आपको तब मेरी बात बुरी लगी होगी परन्तु सर्वश्रेष्ठ लेखन के लिए ऐसे आघात भी कभी कभी बहुत जरूरी होते हैं। मुझे भी लिखने का शौक है।पर आपकी तरह मेरी किस्मत कहाँ.....? अच्छा बताइये आपको घर का सपोर्ट तो है न।मेरा मतलब भाई साहब को आपके लिखने से कोई परेशानी तो नहीं।"

     एक नयी अमृत के पृष्ठ क्रमशः मेरे सामने खुल रहे थे।कल तक सनकी लगने वाली अमृत का उदार, मानवीय, सृजनात्मक, तार्किक और सबसे अलग एक संवेदनशील परन्तु भीतर से कहीं गहरे तक घायल चेहरा धीरे-धीरे मेरे मानस पटल पर छप रहा था।

            मैंने भी आत्मीय होकर बताया कि  किस तरह मेरा पूरा परिवार मेरा सहयोग करता है खासकर मेरे पति जो मेरी भावनाओं का पूरा ख्याल रखते हैं और उदार दृष्टिकोण रखते हुए मेरी रचनाओं को ना केवल सराहते हैं,बल्कि उचित मंच पर उन्हें ले जाने हेतु प्रोत्साहित भी करते हैं।जब मैं यह बात बता रही थी तब मैंने हर क्षेत्र में संपूर्ण सी लगती अमृत की आंखों में एक अजीब सूनापन देखा और एक फीकी सी बात उन मधुर होंठों से बाहर निकल कर आई,"सबकी किस्मत इतनी अच्छी कहां होती है।... ‌खैर भगवान का लाख-लाख शुक्रिया!आप किस्मत वाली हो।भगवान आपको खुश रखे।" कहते हुए अमृत ने फिर बात की दिशा बदल दी और हम टास्क पूरा करने में लग गये।    

    ***** ***** ***** *****    

         प्रशिक्षण का अंतिम दिन था।पहले दिन हुई अमृत की आत्मीय बातों ने मुझे उसके करीब ला दिया था।सागर की तरह न केवल उसका विस्तार अधिक था बल्कि सागर की तरह उसमें गहराई भी थी जिसकी थाह पाने की ललक मुझ में जाग चुकी थी।आज मैं स्वयं ही अमृत के पास जाकर बैठ गयी थी।पर आज अमृत बुझी-बुझी सी थी।मैंने कारण पूछा तो उसनेे कमर में बँधी अपनी बेल्ट की ओर इशारा किया और कहा,"मेरा बेटा बड़े ऑपरेशन से हुआ था।पता नहीं उस समय कौनसा टीका गलत लग गया कि तब से आज तक कई डॉक्टर्स को दिखा चुकी हूँ पर कमर दर्द है कि ठीक ही नहीं होता।हमेशा ही यह बेल्ट बाँधे रहती हूंँ।कभी कभी दर्द असहनीय हो जाता है,आज भी यही हो रहा है।पर अब तो दर्द की आदत बन गई है।"उसका दर्द मुझे अपने भीतर तक महसूस हुआ। मुझे एहसास हुआ कि वह एक महान शख्सियत थी जिसने अपनी जीवंतता से अपने दर्द को मात दी हुई थी।उससे बातचीत के क्रम में मुझे पता चला कि वह अपने माता-पिता की दो संतानों में से इकलौती पुत्री थी।उसका भाई बहुत बड़ा बिजनेसमैन था। उसके पिता एक रिटायर्ड जज थे। मांँ स्वास्थ्य विभाग से रिटायर्ड थीं।पति भी व्यवसायी था और उसका ससुराल बहुत संपन्न था। एक 7 वर्ष का बेटा था उसका। जीवन में सब कुछ इतना आकर्षक था।फिर इतनी छटपटाहट क्यों थी,अमृत की आँखों में।इतनी व्याकुलता क्यों थी,उसकी बातों में।इतनी अधीरता क्यों थी,उसके व्यवहार में।

         शिविर समाप्त हो गया था। हम पुन: अपने कार्य स्थलों पर पहुंच चुके थे।यह प्रशिक्षण शिविर उससे मेरी मुलाकात का पहला और आखिरी स्थल बन जायेगा, ऐसी कल्पना करना भी मूर्खता था।पर स्मृति पटल पर धीरे धीरे इन पलों की तीव्रता मंद पड़ती जा रही थी।

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      वार्षिक सम्मेलन में हमारी संस्था की ओर से बीस सर्वश्रेष्ठ कर्मचारी कार्यशैली और प्रदर्शन के आधार पर चयनित किए गए थे।विभागाध्यक्ष द्वारा उन्हें समारोह पूर्वक सम्मानित करने हेतु आमंत्रित किया गया था।मैं भी इस सूची में शामिल थी और मुझे पता चला था कि अमृत भी इस सूची में है।अतः बहुत दिनों बाद उससे मुलाकात होगी,यह सोच कर भी मैं रोमांचित थी। आधुनिक युग में भी ऐसी संवादहीनता का कारण यह था कि अमृत के पास अपना कोई फोन नंबर नहीं था।उसने यह कह कर बात टाल दी थी कि उसे फोन से एलर्जी है।कोई जरूरी संदेश होता है तो उसके पति के फोन से काम चलता है।उसके पति का नंबर न मैंने लिया न उसने दिया। इसलिए मेरे पास उस शिविर के बाद से उसकी कोई खबर नहीं थी।मंच पर मेरा नाम पुकारा गया मैंने प्रशस्ति पत्र लिया और आभार व्यक्त किया।मेरी नजरें अमृत को खोज रही थीं,परंतु मुझे अमृत कहीं दिखाई नहीं दी।अमृत का नाम मंच से पुकारा गया पर वह वहां नहीं थी।उसकी सहकर्मी ने उसका सम्मान ग्रहण किया। समारोह के समापन के बाद मैं अमृत की उस सहकर्मी के पास गई और मैंने अमृत के बारे में पूछा।उसने बताया कि अमृत के बारे में उसे भी तीन-चार दिन से कुछ नहीं पता है। क्योंकि वह 4 दिन से ऑफिस भी नहीं आई है। उसके पति के नंबर पर फोन करने पर वह बेरुखी से जवाब देता है ,"मुझे नहीं पता क्यों नहीं आ रही?" मैंने पूछा,"कोई परेशानी है क्या उसे ?" वह बोली, "परेशानी....परेशानी का पहाड़ है उसके सिर पर।" मैंने आश्चर्य से पूछा,"क्या मतलब........वह तो संपन्न परिवार से है।जॉब करती है, एक 7 साल का बेटा है।प्रतिभा की धनी है।बेस्ट ऑफिशियल अवार्डी है।अब शरीर की बीमारियों का क्या?ये तो लगी रहती हैं।उसकी स्थिति तो फिर भी ठीक है कि वह इलाज करा सकती है, दवाई ले सकती है।अब हर इंसान को सब कुछ तो नहीं मिल सकता।" वह बोली,"मैडम जो दिखता है,हमेशा वही पूरा सच नहीं होता।अमृत मैडम की कमर दर्द की समस्या तो उनकी असल समस्या के सामने बिंदु भर भी नहीं है?" "क्या....प्लीज मुझे खुल कर बताओ?",मैंने निवेदन किया। उसने गहरी साँस भरी और कहना शुरू किया,"अमृत जी के पति बहुत ही शक्की,पियक्कड़ और गुस्से बाज हैं।वह उनकी हर बात पर शक करते हैं।रोज पीते हैं और नशे में धुत होकर उन्हें बेरहमी से पीटते हैं।एक बार एक संपादक उनकी रचनाओं को छापने की बात लेकर घर पहुंच गया।उनके पति ने उसे पीट पीट कर घर से बाहर निकाला।उनकी सारी डायरियांँ,सारा लेखन आग के हवाले कर दिया और यहां तक कि उनके नौकरी करने पर भी उन्हें आपत्ति है।कई बार तो वह उनके पीछे-पीछे ऑफिस आ जाते हैं और निगरानी रखते हैं कि वह क्या कर रही है,किससे बात कर रही है ?और फिर बात बेबात सरेआम बेइज्जती करना शुरू कर देते हैं।"

     यह सुनकर मैं गुस्से से उत्तेजित होकर बोल उठी,"अरे अमृत जैसी पढ़ी लिखी महिला,एक सम्पन्न परिवार की बेटी,क्यों ऐसे शराबी व्यक्ति के ज़ुल्म सह रही है।उसे इसका प्रतिरोध करना चाहिए।आज के समय में तो महिलाओं के हित में इतने कानून हैं।ऐसे दुष्ट को तो सबक सीखाना चाहिए।" वह फीकी मुस्कान बिखेरती हुई बोली,"यह सब कहना जितना आसान है न मैडम उतना करना नहीं। मैंने भी कई बार अमृत जी को सलाह दी है पर उनकी बातों ने हमेशा मुझे चुप करा दिया।पता नहीं किस मिट्टी की बनी हैं। कहती हैं 'ज्ञान,संस्कार और सामाजिक प्रतिष्ठा वे बेड़ियाँ हैं उनके अंतःकरण पर जिनसे वह कभी निकल नहीं पायेंगी।क्योंकि इससे उनका परिवार और उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा दांव पर लग जायेंगे।उनके बेटे की जिंदगी कानूनी दांव पेंचों में फँस कर रह जाएगी।कोई बात नहीं मियां बीवी में झगड़े तो होते ही हैं वह अपने प्यार से अपने पति का बर्ताव बदलकर रख देंगी।'पता नहीं मैडम!कितनी हिम्मत है उनके अंदर सब कुछ सह लेती हैं। किसी से कुछ नहीं कहती।कहती हैं 'पुलिस में जाकर क्या होगा उनके माता-पिता की इतने वर्षों से बनी सामाजिक प्रतिष्ठा धूल में मिल जाएगी।उन्हें बुढ़ापे में लोगों की कितनी बातें सुननी पड़ेंगी। हमारे समाज में हर गलती का जिम्मेदार घुमा फिरा कर आखिर लड़की को ही समझा जाता है। फिर न्याय क्या पेड़ पर लगा पत्ता है कि गए और तोड़ लाए।वैसे ही हमारे देश में जजों की कमी है। कई केस न्याय की बाट जोह रहे हैं। न्याय तो जल्दी मिलेगा नहीं उल्टा जिंदगी कचहरी के चक्कर लगाते-लगाते कट जाएगी और इस सब में उनके बेटे का बचपन, उससे उसके पिता की छांव,उनके माता-पिता व सास ससुर का बुढ़ापा,समाज में उनकी प्रतिष्ठा, उनके भाई का सुनहरा भविष्य सब दांव पर लग जाएगा।एक उनके जख्म सहने से अगर इतने घाव बच रहे हैं तो यही सही।फिर कभी तो भोर होगी।'ऐसी बातें करके ही वह चुप करा देती हैं।"

     मैं अवाक थी।अमृत से पहली मुलाकात याद आ रही थी।उस वक्त उसके व्यवहार पर जितना आश्चर्य हुआ था,आज उतना ही गर्व महसूस हो रहा था।वह एक सामान्य महिला से दैवीय रूप धारण करती जा रही थी। मैं भाव विभोर थी। उसके आदर्श ऊंचाई पर चमकते दिखाई दे रहे थे।

  तभी फोन की रिंग से मेरा ध्यान टूटा,मैंने अपना फोन चैक किया। परन्तु फोन अमृत की सहकर्मी का बज रहा था। उसने फोन रिसीव किया और ,"क्या.....?"के साथ उसका मुंह खुला रह गया।"कब...? कैसे....?"अग्रिम दो शब्द थे। उसने अश्रुपूरित नेत्रों से मेरी ओर देखा और बस इतना कह पायी,"अमृत सूख गया, मैडम!"

     ***** ***** ***** *****

       अमृत के आलीशान बंगले के बाहर लोगों की भीड़ जमा थी। हमारे विभाग के अधिकारी और सहकर्मी वहाँ मौजूद थे।दुमंजिले में कमरे के बाहर अमृत को रखा गया था। ऐसा लग रहा था जैसे अमृत अभी उठेगी और कहेगी,"ओय चुप करो भई! मैं तो मजाक कर रही सी गी।" पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।

          अमृत की माँ दहाड़े मार कर रो रही थीं। रोते रोते वह बीच में बेहोश हो जाती तो लोग पानी के छीँटे मारकर और पानी पिलाकर उन्हें सँभालते।जब वह होश में आती तो आर्तनाद करती,"हाय बेटी तूने ये क्या किया?एक बार तो अपनी माँ को बताती।तेरा भाई तेरे लिए धरती पाताल एक कर देता।तेरे डैडी ने जिन्दगी भर लोगों के फैसले किये,तेरे लिए भी करते।पर तूने हमें कुछ न बताया बेटी।हाय मेरी लाडो हमें जिन्दा मार गयी तू।"माँ की दहाड़ों के साथ साथ औरतों के रुआँसे स्वर भी शामिल होकर माहौल को बहुत गमगीन बनाये हुए थे।

          दबे स्वर में लोग अमृत के पति और सास-ससुर की बुराई कर रहे थे।कोई कह रहा था कि उन्हें यकीन नहीं होता कि इतनी पढ़ी लिखी,नौकरीपेशा,सम्पन्न मायके वाली लड़की इन जाहिलों के ज़ुल्म को अब तक बर्दाश्त करती रही।अमृत का बेटा मामा की गोद में बैठा भरी आँखों से इधर उधर टुकुर-टुकुर देख रहा था।मेरी नज़र अमृत के पति को ढूँढ रही थीं। मैं एक बार नर वेशधारी उस भेड़िये को देखना चाहती थी पर पता चला कि वह घटना के बाद से ही फरार है।

     "4 दिन से वह लगातार अमृत की पिटाई कर रहा था उसने अमृत के मायके जाने पर भी रोक लगा दी थी।बेटे को भी वह अमृत के पास नहीं जाने देता था और उसके बारे में भला-बुरा कहता था।",एक पड़ोसन बता रही थी। दूसरी ने कहा,"उस दिन ऑफिस से कोई आदमी आया था यह बताने के लिए कि उसका नाम ईनाम के लिए गया है तो वह फलां तारीख को फलां जगह ईनाम लेने आ जाए। बस उस आदमी को देखकर ही मिन्दर भड़क गया था और 'ले ईनाम!ले ईनाम!'कह कर डंडे से वह पिटाई की थी उसकी कि दूसरे दिन पूरे बदन पर नील पड़ी हुई थी और वह उठ भी नहीं पा रही थी।तभी से वह ऑफिस भी नहीं गई थी।" "बेचारी कब तक सहती आज मौका पाकर आजाद हो गई, लटक गई फंदे से,"एक अन्य ने कहा।

        मुझे धक्का लगा।यकीन नहीं हो रहा था,"अमृत और ऐसा कदम... ।नहीं,.....यह हत्या है।"मन कह रहा था।पर लगातार घनों की चोट से पहाड़ भी तो टूट जाते हैं।हो सकता है अमृत के भीतर का पहाड़ भी हिल गया होगा।सच्चाई अमृत के साथ ही चली गई थी।पर मेरे पूरे वजूद को इस भयावह दृश्य ने कम्पित कर दिया था।आज पता चला वह समय को क्यों समेट लेना चाहती थी?वह बोलने का कोई अवसर क्यों नहीं गवाती थी।पर अब क्या?.....,

      विष को अमृत करने की चेष्टा में अमृत सूख चुका था।

✍️ हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के चन्दौसी (जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार अतुल मिश्र का व्यंग्य ---एक नेता के मरने के बाद

   


चित्रगुप्त दुविधा में थे कि जिस नेता को अभी यहां लाया गया है, उससे क्या और किस किस्म के सवाल किये जाएं कि वह सच बोलने को मजबूर हो जाये ? बामुश्किल मरने वाले इस नेता को देखकर उन्हें जो सबसे बड़ी दिक्कत पेश आ रही थी, वह यह थी कि इसे अगर हलके-फुल्के सवाल करके स्वर्ग भेज दिया गया तो वहां के लोग ऐतराज़ करेंगे कि यह तो सरासर ज़्यादती है. स्वर्ग भी अब रहने लायक नहीं रहा. नरक में इसे भेज दिया तो नरक के सारे प्राणी कहेंगे कि और कितना नरक बनाओगे इस नरक के लिए ?

     चित्रगुप्त के सामने धर्म वाला संकट खड़ा था. यमराज ने तो बस, इस प्राणी का कॉलर पकड़ा और यहां ला कर पटक दिया कि इसे भी देख लें. यह नहीं सोचा कि इसको लेकर हम किस संकट में पड़ जायेंगे ?ज़्यादातर तो यह होता था कि यमराज नेताओं को लाने में ऐतराज करते थे कि जीने दो वहीँ, वरना रास्ते भर भाषण देता हुआ आएगा कि यह अन्याय है और इसे अब ज़्यादा दिन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. आदि-आदि. मगर इस बार पता नहीं, यमराज को क्या हुआ कि एक नेता की साबुत आत्मा को उठा लाये ? चित्रगुप्त का दिमाग घूम रहा था कि अब इससे कैसे निपटा जाये ? चित्रगुप्त ने अपना बीड़ी का बंडल निकालकर उसके अन्दर इस समस्या का समाधान ढूंढने की गरज से झांका तो पता चला कि दो ही बीड़ियां बची हैं और इनमें से एक यमराज को अगर नहीं दी तो पता नहीं कौन सा नया बवाल लाकर यहां पटक दे कि लो महाराज, इसका भी फैसला करो. चित्रगुप्त किसी लोकतांत्रिक देश के प्रधान मंत्री की तरह परेशान होने का मूड बना रहे थे.

” इसको यहां लाने की क्या ज़रुरत थी, महाराज ? अभी कुछ दिन वहीँ पड़ा रहने देते. ” चित्रगुप्त ने दोनों बीड़ियां निकालने के बाद उसका रैपर नेता की आत्मा पर उछालते हुए पूछा.

” ज़रुरत क्या थी ? अरे, यह आदमीनुमा प्राणी वहां लाखों लोगों का खून चूस रहा था और डकार भी नहीं ले रहा था. ” यमराज ने चित्रगुप्त के हाथ में सुलग चुकीं दो बीड़ियों में से एक को अपने हाथ में लेकर जवाब दिया.

” लेकिन इसका हिसाब कैसे किया जाएगा कि इसने कितने पाप किये और कितने पुण्य ? ” अपनी बीड़ी से एक तनावभगाऊ सुट्टा खींचते हुए चित्रगुप्त ने फिर सवाल किया .

” इसमें इतना सोचने की क्या ज़रुरत है ? पुण्य वाला जो कॉलम तुम अक्सर खाली छोड़ देते हो, इस बार भी उसे खाली ही रखो. ” यमराज ने बीड़ी का सारा धुआं नेता की आत्मा की ओ़र फेंकते हुए इस समस्या का सीधा समाधान बताया.

” यह बात भी आप सही कह रहे हैं. ” चित्रगुप्त ने चिथड़े बन चुकी अपनी बही का नेताओं वाला पन्ना खोला और उसमें पुण्य वाले उस कॉलम में एक एंट्री देखकर उसे गोल घेरे में कर दिया और जिसका मतलब उन्होंने यह मान रखा था कि यह पुण्य अभी संदिग्ध है कि किया भी था या नहीं.

इस तरह नेताओं के मिलन-स्थल यानि नरक की तरफ उस नेता को भी ले जाया गया और उसकी आत्मा के मुंह पर भी एक ऐसा टेप चिपका दिया गया कि कहीं से भी वह अन्य लोगों को भाषण देने की पोज़ीशन में ना रहे.

✍️ अतुल मिश्र, श्री धन्वंतरि फार्मेसी, मौ. बड़ा महादेव, चन्दौसी, जनपद सम्भल