रविवार, 3 जनवरी 2021

वाट्सएप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक रविवार को वाट्सएप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है। इस आयोजन में साहित्यकार अपनी हस्तलिपि में चित्र सहित रचना प्रस्तुत करते हैं । रविवार 27 दिसंबर 2020 को आयोजित 234 वें आयोजन में शामिल साहित्यकारों डॉ अशोक रस्तोगी, नजीब सुल्ताना, रवि प्रकाश, मरगूब हुसैन अमरोही, अनुराग रोहिला, राजीव प्रखर, मनोरमा शर्मा, श्री कृष्ण शुक्ल, संतोष कुमार शुक्ल संत, वैशाली रस्तोगी, अशोक विद्रोही, डॉ शोभना कौशिक, दुष्यंत बाबा , डॉ पुनीत कुमार , मीनाक्षी वर्मा, रामकिशोर वर्मा,डॉ प्रीति हुंकार, विवेक आहूजा,मोनिका मासूम,प्रीति चौधरी,सूर्यकांत द्विवेदी,डॉ ममता सिंह और डॉ मनोज रस्तोगी की रचनाएं उन्हीं की हस्तलिपि में ------



























 

हिन्दी साहित्य संगम ने आयोजित की नव वर्ष पर काव्य-गोष्ठी



मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हिन्दी साहित्य संगम' की ओर से आज गूगल मीट पर नव वर्ष को समर्पित काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें रचनाकारों ने नव वर्ष पर मंगलकामनाएं करते हुए अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्ति की।

कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मनोज रस्तोगी ने की। मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध नवगीतकार  योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' एवं विशिष्ट अतिथि  डॉ. रीता सिंह रहीं। माँ शारदे की  वंदना राजीव 'प्रखर' ने प्रस्तुत की तथा कार्यक्रम का संचालन जितेन्द्र 'जौली' द्वारा किया गया।

वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ. मनोज रस्तोगी ने नववर्ष की शुभकामनाएं देते हुए कहा ----
मंगलमय हो आनंदमय हो,
नूतन वर्ष का शुभ आगमन
हो परिवार में शांति और
सुखों का हो आगमन।

     चर्चित साहित्यकार योगेन्द्र वर्मा व्योम का कहना था---
सब सुखी हों स्वस्थ हों उत्कर्ष पायें
हैं यही नववर्ष की शुभकामनाएँ
अब न भूखा एक भी जन देश में हो
अब न कोई मन कहीं भी क्लेश में हो
अब न जीवन को हरे बेरोजगारी
अब न कोई फैसला आवेश में हो
हम नयी कोशिश चलो कुछ कर दिखायें
हैं यही नववर्ष की शुभकामनाएँ

       कवयित्री डॉ. रीता सिंह का स्वर था -----
मैया तेरा नटखट लाला,
किशन द्वारिकाधीश बना
कल तक जिसने मटकी फोडी
आज वही जगदीश बना ।।

        युवा साहित्यकार राजीव 'प्रखर' ने मुक्तक प्रस्तुत किया-----
दिलों से दूरियाँ तज कर, नये पथ पर बढ़ें मित्रों।
नया भारत बनाने को, नयी गाथा गढ़ें मित्रों।
खड़े हैं संकटों के जो, बहुत से आज भी दानव,
बनाकर श्रंखला सुदृढ़, चलो उनसे लड़ें मित्रों।

        साहित्यकार अरविंद 'आनन्द' ने गजल प्रस्तुत करते हुए कहा-----
हादसों से सज़ा आज अख़बार है ।
झूठ और सच में हर वक़्त तकरार है ।
ज़ख़्म इतने सियासत ने हमको दिये।
अब लगे है फ़रेबी हर सरकार है।

        कवयित्री इन्दु रानी ने कहा-----
हाँ रही हूँ मै समर्पित पर मेरा क्या योग है
वस्तु सम मापी गई औ वस्तु सम ही जोग है

        युवा कवि जितेन्द्र 'जौली' ने कहा -----
कुछ ऐसा तुम काम करो जो, न कर पाया जमाना
याद रखेगी दुनिया तुमको, था कोई दीवाना।

       ओजस्वी कवि प्रशान्त मिश्र का कहना था -----
गम है ज़िन्दगी तो रोते क्यों हो,
नैनों के नीर से जख्मों का दर्द कम नहीं होता,
अपने हम से रूठ जाते हैं...

कार्यक्रम में विकास 'मुरादाबादी' एवं नकुल त्यागी भी उपस्थित रहे।

:::::: प्रस्तुति::::::
 राजीव 'प्रखर'
कार्यकारी महासचिव
8941912642

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की दोहा यात्रा के संदर्भ में योगेंद्र वर्मा व्योम का आलेख ---. कितने धोखेबाज़ हैं, दो रोटी के ख़्वाब


‘दोहा’ हिन्दी कविता का ऐसा छंद है जो आज भी आमजन के हृदय में बसता है, ज़ुबान पर हर वक़्त विराजता है और दो पंक्तियों की अपनी छोटी-सी देह में ही कथ्य की सम्पूर्णता को समाहित कर बहुरंगी खुशबुएँ बिखराने की क्षमता रखता है। भक्तिकाल से लेकर आज तक अपनी सात्विक यात्रा में दोहा छंद ने कई महत्वपूर्ण कीर्तिमान स्थापित किए हैं। इस परंपरागत छंद ने कविता के विभिन्न युगों और कालों में कथ्य के अनूठेपन के साथ हिन्दी साहित्य के इतिहास में अपनी दस्तावेज़ी उपस्थिति दर्ज़ कराते हुए अपने समय के खुरदुरे यथार्थ को भी पूरी संवेदनशीलता के साथ अभिव्यक्त किया है। इंदौर के कीर्तिशेष कवि चन्द्रसेन ‘विराट’ ने दोहे की विशेषता को ही केन्द्रित करते हुए दोहा कहा है-‘बात ठोस संक्षिप्ततम, और दोष से मुक्त/कहने की यदि हो कला, तो दोहा उपयुक्त।’ यह दोहा छंद की लोकप्रियता और हिन्दी साहित्य में उसकी कालजयी भूमिका ही है कि वर्तमान समय में हिन्दी कवियों के साथ-साथ उर्दू के भी अनेक रचनाकार दोहे लिख रहे हैं, अनेक साहित्यिक पत्रिकाएँ अपने ‘दोहा विशेषांक’ प्रकाशित कर रही हैं और समवेत रूप में व मौलिक दोहा-संग्रह भी प्रचुर मात्रा में प्रकाशित हो रहे हैं। वर्तमान में दोहा छंद पर किया जा रहा कार्य, चाहे वह सृजनात्मक हो अथवा शोधपरक निश्चित रूप से हिन्दी कविता को समृद्ध करने वाला दस्तावेज़ी कार्य है।

मुरादाबाद में भी अनेक रचनाकार हैं जिन्होंने दोहा विधा में महत्वपूर्ण सृजन किया है किन्तु विशुद्ध दोहाकार के रूप में संभवतः किसी की पहचान नहीं बन सकी। यह सुखद है कि यहाँ के नवोदित रचनाकारों में अत्यंत संवेदनशील और संभावनाशील श्री राजीव ‘प्रखर’ द्वारा लिखे जा रहे धारदार दोहे उनकी पहचान धीरे-धीरे एक महत्वपूर्ण दोहाकार के रूप में बना रहे हैं। उनके दोहों की यह विशेषता है कि वह समसामयिक संदर्भों में साधारण सी लगने वाली बात को भी असाधारण तरीके से सहज रूप में अभिव्यक्त कर देते हैं। प्रखरजी ने अपने दोहों में भोगे हुए यथार्थ को भी केन्द्र में रखा है और जीवन-जगत के इन्द्रधनुषी रंगों को भी शब्द दिए हैं। कविता का मतलब सपाटबयानी नहीं होता, प्रतीकों के माध्यम से संवेदनशीलता के साथ कही हुई बात पाठक के मन पर अपना प्रभाव छोड़ती ही है, यह बात उनके दोहों में हर जगह अपनी मौजूदगी दर्ज़ कराती हुई दिखाई देती है। एक दोहा देखिए-

भूख-प्यास में घुल गए, जिस काया के रोग

उसके मिटने पर लगे, पूरे छप्पन भोग

भूख की भयावह त्रासदी के संदर्भ में सुपरिचित ग़ज़लकार डॉ. कृष्णकुमार ‘नाज़’ का एक शे’र है-‘मैं अपनी भूख को ज़िन्दा नहीं रखता तो क्या करता/थकन जब हद से बढ़ती है तो हिम्मत को चबाती है।’ यह भूख ही है जिसे शान्त करने के लिए व्यक्ति सुबह से शाम तक हाड़तोड़ मेहनत करता है, फिर भी उसे पेटभर रोटी मयस्सर नहीं हो पाती। देश में आज भी करोड़ों लोग ऐसे हैं जो भूखे ही सो जाते हैं, वहीं कुछ लोग छप्पनभोग जीमते हैं और अपनी थाली में जूठन छोड़कर रोटियां बर्बाद करते हैं। यह पूँजीवाद का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव है कि अमीर और ज़्यादा अमीर होता जा रहा है तथा ग़रीब और ज़्यादा ग़रीब। भूख से हो रही इस आत्मघाती जंग से जूझते/पिसते आम आदमी की व्यथा को एक दोहे के माध्यम से अभिव्यक्त करते हैं प्रखरजी-

फिर नैनों में बस गए, कर दी नींद खराब

कितने धोखेबाज़ हैं, दो रोटी के ख़्वाब


वहीं दूसरी ओर, ‘अनेकता मे एकता’ भारत की संस्कृति रही है, भारत की पहचान रही है और सही मायने में भारत की शक्ति भी यही है तभी तो आज भी गाँव के किसी परिवार की बेटी पूरे गाँव की बेटी होती है और ग्रामीण क्षेत्रों में तो आज भी सभी धर्मों के लोग एक दूसरे के त्योहार प्रेम और उल्लास के साथ मनाते हैं। राजनीतिक रूप से प्रायोजित धार्मिक तथा जातीय उन्माद के इस विद्रूप समय में साम्प्रदायिक सौहार्द को मज़बूती से पुनर्स्थापित करने और राष्ट्र को सर्वोपरि रखने की ज़रूरत को प्रखरजी अपने दोहे में बड़ी शिद्दत के साथ महसूस करते हैं-

चाहे गूँजे आरती, चाहे लगे अज़ान

मिलकर बोलो प्यार से, हम हैं हिन्दुस्तान


वर्तमान समय ही नहीं सदियों से नारी-उत्पीड़न मानव-सभ्यता को शर्मसार करने वाली सामाजिक विद्रूपता और सबसे बड़ा संकट बना हुआ है। मानसिक और सामाजिक रूप से आधुनिकता सम्पन्न इस पुरुष प्रधान समाज में आज भी स्त्री को दोयम दर्ज़ा ही प्राप्त है। वह घर की चाहरदीवारी के भीतर और बाहर समान रूप से प्रताड़ना का भाजन बनती ही रही है चाहे कन्याभ्रूण हत्या हो, घरेलू-हिंसा हो, दहेज उत्पीड़न हो या फिर शारीरिक शोषण हो। छोटी-छोटी बच्चियों के साथ बलात्कार की क्रूरतम घटनाओं के संबंध में अख़बारों में लगभग प्रतिदिन आने वाले समाचार पढ़कर बच्चियां तो भयाक्रांत होती ही हैं, मानवता भी लज्जित होती है। प्रखरजी इसी पीड़ा को अपने एक दोहे में समाज पर व्यंग्य करते हुए बेहद संवेदनशीलता के साथ उजागर करते हैं-

प्यारी मुनिया को मिला, उसी जगत से त्रास

जिसमें लोगों ने रखा, नौ दिन का उपवास


आज के विसंगतियों और विषमताओं भरे अंधकूप समय में मानवता के साथ-साथ हमारे सांस्कृतिक मूल्य भी कहीं खो गए हैं, रिश्तों से अपनत्व की भावना और संवेदना कहीं अंतर्धान होती जा रही है और संयुक्त परिवारों की परंपरा लगभग टूट चुकी है लिहाजा आपस की बतियाहट अब कहीं महसूस नहीं होती। बुज़ुर्गों को पुराने ज़माने का आउटडेटेड सामान समझा जा रहा है। इसीलिए शहरों में वृद्धाश्रमों की संख्या और उनमें आकर रहने वाले सदस्यों की संख्या का ग्राफ़ अचानक बड़ी तेज़ी के साथ बढा है। समाज में व्याप्त विद्रूपताओं से आहत कविमन ने रिश्तों में मूल्यों की पुनर्स्थापना के उद्देश्य से ही माँ के महत्व को अपने दोहों में गढ़ा है। माँ के प्रति श्रद्धा और आस्था को बढाने के साथ-साथ समाज को जाग्रत करने का भी पवित्र कार्य करता प्रखरजी का यह दोहा मन को छूने और मन पर छाने का काम करता है-

क्या तीरथ की कामना, कैसी धन की आस

जब बैठी हो प्रेम से, अम्मा मेरे पास


अपनी कृति ‘समर करते हुए’ में कीर्तिशेष गीतकवि दिनेश सिंह ने कहा है कि ‘जो रचना अपने समय का साक्ष्य बनने की शक्ति नहीं रखती, जिनमें जीवन की बुनियादी सच्चाईयाँ केन्द्रस्थ नहीं होतीं तथा जिनका विजन स्पष्ट और जनधर्मी नहीं होता वह कलात्मकता के बाबजूद अप्रासंगिक रह जाती हैं।’ केवल दोहे ही नहीं साहित्य की अन्य कई विधाओं-गीत, लघुकथा, बाल कविता आदि के सृजन में भी रत राजीव प्रखर के दोहों को पढ़कर निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि जीवन की बुनियादी सच्चाइयों को केन्द्रस्थ रखकर रचे गए उनके दोहे अपने समय का साक्ष्य बनने की शक्ति रखने के साथ-साथ हिन्दी कविता को महत्वपूर्ण रूप से समृद्ध कर रहे हैं। 

✍️ योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’

ए.एल.-49, दीनदयाल नगर-।,काँठ रोड, मुरादाबाद-244001 उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर - 9412805981


        


शनिवार, 2 जनवरी 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की गीतिका ----इस नये साल की यूँ शुरूआत हो हर खुशी द्वार पर एक सौगात हो


इस नये साल की यूँ शुरूआत हो 

हर खुशी द्वार पर एक सौगात हो ।।1।।


लौट आये वही भोर खुशियों भरी 

आपदा मुक्त फिर देश-हालात हों ।।2।।


ये कदम ना रुकें,चल पड़ें जोश से

जिन्दगी से नयी फिर मुलाकात हो ।।3।।


भूख से अब तड़पता न कोई रहे

अन्न धन की सभी द्वार बरसात हो ।।4।।


सो सकें चैन से अब घरों में सभी 

खौफ से दूर अपनी सभी रात हों।।5।।


 ✍️ प्रीति चौधरी , गजरौला,अमरोहा

                           

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक की रचना ------गए साल जैसा नहीं हाल होगा, है उम्मीद अच्छा नया साल होगा



गए    साल   जैसा    नहीं   हाल   होगा,

है   उम्मीद  अच्छा   नया  साल   होगा।


बढ़ेगी   न   केवल  अमीरों  की  दौलत,

ग़रीबों  के  हिस्से  भी कुछ माल होगा।


रहेगा   सजा    आशियाँ    रौशनी   का,

घरौंदा    अँधेरे    का    पामाल    होगा।


जगत  में  सभी   और   देशों  से  ऊँचा,

सखे!हिंद  का   ही  सदा  भाल  होगा।


न   होगा  फ़क़त  फाइलों-काग़ज़ों  में,

हक़ीक़त में भी मुल्क ख़ुशहाल होगा।


 ✍️ ओंकार सिंह विवेक, रामपुर

शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की कृति ....लोकधारा 3 । यह कृति वर्ष 2019 में विश्व पुस्तक प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुई है। इस काव्यकृति में उनकी नई कविताएं हैं जो उनके पूर्व प्रकाशित काव्य संग्रहों अन्याय के विरुद्ध, काल भेद और भावना का मंदिर में प्रकाशित हो चुकी हैं ।



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डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की कृति ....लोकधारा 2 । यह कृति वर्ष 2019 में विश्व पुस्तक प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुई है। इस काव्यकृति में उनकी गीति,दोहा और मुक्तक काव्य रचनाएं हैं



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डॉ मनोज रस्तोगी

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मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की कृति ....लोकधारा 1 । यह कृति वर्ष 2018 में विश्व पुस्तक प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुई है। इस काव्यकृति में उनकी पूर्व प्रकाशित काव्य कृतियों 'भाव सुमन' (1996), 'पथ की अनुभूतियाँ (1997), 'विविधा (1999), युवकों सोचो !' (2003), 'सूत्रधार है मौन' (2007), 'रंग-रंग के दृश्य' (2009), 'नया भारत' (2012), 'हिन्दी की मुस्कान' (2018), 'फिर खिलेंगे फूल (2018) में प्रकाशित समग्र दोहों को सँजोया गया है। इसमें लगभग 6480 दोहे समाहित हैं।



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मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी की रचना ----मंगलमय हो, आनन्दमय हो , नूतन वर्ष का शुभ आगमन


 

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष हुल्लड़ मुरादाबादी की रचना ----भूल जा शिकवे, शिकायत, ज़ख्म पिछले साल के साथ मेरे मुस्कुरा ले, साल आया है नया । यह रचना हमें भेजी है उनकी सुपुत्री मनीषा चड्डा ने



यार तू दाढ़ी बढ़ा ले, साल आया है नया 

नाई के पैसे बचा ले, साल आया है नया 


तेल कंघा पाउडर के खर्च कम हो जाएँगे 

आज ही सर को घुटा ले, साल आया है नया 


जो पुरानी चप्पलें हैं उन्हें मंदिरों पर छोड़ कर

कुछ नए जूते उठा ले, साल आया है नया 


मैं अठन्नी दे रहा था तो भिखारी ने कहा

तू यहीं चादर बिछा ले, साल आया है नया


दो महीने बर्फ़ गिरने के बहाने चल गए

आज तो "यार" नहा ले, साल आया है नया


भूल जा शिकवे, शिकायत, ज़ख्म पिछले साल के 

साथ मेरे मुस्कुरा ले, साल आया है नया


दौड़ में यश और धन की जब पसीना आए तो 

'सब्र' साबुन से नहा ले, साल आया है नया


मौत से तेरी मिलेगी, फैमिली को फ़ायदा

आज ही बीमा करा ले, साल आया है नया 

✍️ हुल्लड़ मुरादाबादी

::::प्रस्तुति:::::

मनीषा चड्डा सुपुत्री स्मृतिशेष हुल्लड़ मुरादाबादी

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ ममता सिंह का गीत ----नये साल का आओ मिलकर, हम अभिनन्दन करते हैं


नये साल का आओ मिलकर, हम अभिनन्दन करते हैं। 

रोली, केसर, तिलक लगा कर, इसका वन्दन करते हैं।। 


सच्ची, मीठी वाणी बोले, नहीं किसी का बुरा करें। 

हर मुश्किल का करें सामना, अन्यायी से नहीं डरें। 

वैर भाव सब आज मिटा कर, मन को चन्दन करते हैं। 

रोली, केसर , तिलक लगा कर, इसका वन्दन करते हैं।। 


ऊँच -नीच सब भेदभाव का, आओ अब हम अन्त करें। 

सतरंगी कुछ फूल खिलाकर, आशाओं के रंग भरें। 

 बिखरा कर के छटा निराली , मन को उपवन करते हैं। 

रोली, केसर, तिलक लगा कर, इसका वन्दन करते हैं।। 


देखे हमने जो भी सपने, अब उनको साकार करें। 

देश प्रेम की अलख जगा कर, हर मन में विश्वास भरें। 

करे प्रगति ये देश हमारा, ऐसा चिन्तन करते हैं। 

रोली, केसर, तिलक लगा कर, इसका वन्दन करते हैं। 


नये साल का मिल कर आओ, हम अभिनन्दन करते हैं। 

रोली, केसर, तिलक लगा कर, इसका वन्दन करते हैं।। 


✍️ डाॅ ममता सिंह, मुरादाबाद

 

मुरादाबाद के साहित्यकार शिशुपाल मधुकर की रचना ----आशा की इक नई किरण से स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा


आशा की इक नई किरण से स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा

लेते हैं संकल्प यही हम मिटे जगत का हर अंधियारा। 

करनी है स्वीकार चुनौती कदम कदम पर आने वाली

नव वर्ष के मंगलमय का हो सपना साकार हमारा

✍️ शिशुपाल "मधुकर", मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में दिल्ली निवासी )आमोद कुमार अग्रवाल की रचना ----दिल में हिंदुस्तान बसाए रखना


चेहरे पर मुस्कान बनाए रखना,

और अपना ईमान बनाए रखना,

पटल पर बिताई मीठी यादों का ,

टेबुल पर गुलदान सजाए रखना, 

कोई मज़हब, कोई जात हो हमारी,

दिल मे हिन्दुस्तान बसाए रखना ।

✍️ आमोद कुमार अग्रवाल

मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज मनु की रचना ----शुभ हो नववर्ष




 

 

मुरादाबाद मंडल के बहजोई(जनपद सम्भल) के साहित्यकार नवल किशोर शर्मा नवल की रचना ---जा रहा है साल पिछला, इक नया फिर साल दे-


 

मुरादाबाद मंडल जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार डॉ अजय जनमेजय की रचना -----शुभ सबको नवबर्ष, लो ये इक्कीस आया




 

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार इंद्र देव भारती का गीत ----है नवल वर्ष !हो तुम्हारा अवतरण शुभ मंगलम


 

मुरादाबाद के साहित्यकार पंकज दर्पण की रचना ----आने वाले साल में हो एक नई शुरुआत ...…


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की रचना ----आया नूतन वर्ष है , लेकर नवल प्रभात


आया  नूतन  वर्ष  है , लेकर  नवल  प्रभात

कहता  है  विस्मृत  करो ,विगत अँधेरी रात

विगत  अँधेरी  रात ,  एक   दुःस्वप्न सरीखी

यह  ऐसी  खूँखार , नहीं  पहले  थी   दीखी

कहते रवि कविराय ,चलो नव लेकर काया

लेकर नव-उत्साह ,जन्म समझो नव आया

 रवि प्रकाश

बाजार सर्राफा

रामपुर (उत्तर प्रदेश)

मोबाइल 99976 15451 


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में नोएडा निवासी) साहित्यकार अटल मुरादाबादी का नवगीत ----और समय की आकांक्षा ले, देखो नूतन साल आ रहा।


कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें

देकर बीता साल जा रहा।

और समय की आकांक्षा ले,

देखो नूतन साल आ रहा।

*******************

मन की डाली पर अब नित ही

कोमल कोंपल फूट रही है।

बीती बातों की यह श्रृंखला

खुद ही हमसे छूट रही है।

कोरोना का काला साया

दुनिया में बेचाल छा रहा।

कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें

देकर बीता साल जा रहा।।

*******************

आओ लिख लें गीत नया अब।

सबकी खबर रखेगा बस रब।।

अनुपम फूलों की खुशबू से

महक रहा है घर-उपवन भी।

कोना कोना हुआ उल्लसित,

हर्षित है अब मही-गगन भी।

नये वर्ष का करें स्वागतम,

मौसम भी नवगीत गा रहा।

कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें

देकर बीता साल जा रहा।।

✍️ अटल मुरादाबादी, नौएडा

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल(वर्तमान में मेरठ निवासी) साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी

 


लेते- देते शुभ कामना

वर्ष कितने ही बीत गये

रही अंजुरी प्यासी प्यासी

हाथ आये, सब छिटक गये

जब भी जोड़े कर जीवन में

वर्ष कितने ही रीझ गये।। 

है बैसाखी पर समर्पण 

शून्य भाव, सजल तर्पण

ढोनी है परम्परा सबको

वर्ष कितने ही मीत गये।। 

पर आशा क्यों हार माने

नभ में सूर्य, शशि शेष है

हुई भोर, उड़े है पंछी

वर्ष कितने ही जीत गये।। 

सोया कब क्षितिज सवेरा

कुछ पल ही तिमिर बसेरा

पंख रंग, उड़ती है तितली

वर्ष कितने ही शीत गये।।

लेते- देते शुभ कामना

वर्ष कितने ही बीत गये।। 

✍️ सूर्यकान्त द्विवेदी, मेरठ

मुरादाबाद की साहित्यकार मोनिका मासूम की रचना ---नवल वर्ष में हिल-मिल सब बोलें - बतलाएँ


बतलाएँ क्या आपको कैसे बीता साल

वक्र दृष्टि शनि की हुई, चली राहु ने चाल

चली राहु ने चाल, कमाना -खाना मुश्किल

सूने सब त्योहार, रही फीकी हर महफ़िल

चाहे दिल "मासूम" लौट कर शुभ दिन आएँ

नवल वर्ष में हिल-मिल सब बोलें - बतलाएँ

✍️ मोनिका "मासूम",मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की रचना ---साल एक बीत गया


काल फिर जीत गया

साल एक बीत गया

आ गया साल नया

लेकर के जाल नया


अब नहीं फंसना है

मन अपना कसना है

बुद्धि को छोड़ना है

विवेक से चलना है


प्यार को लुटाना है

सबका साथ पाना है

एकता सद्भाव के

गीत हमें गाना है


प्रभु से यही प्रार्थना

हृदय से कामना

देशप्रेम से सजे

हम सबकी भावना

✍️ डॉ पुनीत कुमार

T 2/505 आकाश रेसीडेंसी

मधुबनी के पीछे

मुरादाबाद 244001

M 9837189600 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की रचना ----थामी बीस ने सर्दी में इक्कीस की पक्की डोर

 


थामी बीस ने सर्दी में

इक्कीस की पक्की डोर 

जा बैठा है अब किनारे

कर कोरोना का शोर ।

टीका आने की राह है

देख रही अब प्रजा सारी

कैसे देगी सब जनों को

सोच रही सरकार हमारी ।

भूख गरीबी और बेकारी

जनसंख्या भी कितनी भारी

जल संकट धूल धुआँ धुंध

फैली अनगिन हैं बीमारी ।

बिसर गयीं सारी ही बातें

महामारी के फैलावे में

कैसे स्वस्थ हो देश हमारा

रह न जाये बहकावे में ।

✍️डॉ रीता सिंह, मुरादाबाद