रविवार, 7 मार्च 2021

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था "हिंदी साहित्य संगम" की ओर से रविवार 7 मार्च 2021 को ऑन लाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों अशोक विश्नोई, ओंकार सिंह ओंकार, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, श्री कृष्ण शुक्ल, अशोक विद्रोही, अखिलेश वर्मा, डॉ मनोज रस्तोगी, राजीव प्रखर, डॉ ममता सिंह, सीमा रानी, डॉ रीता सिंह, इंदु रानी, प्रशांत मिश्र, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, विकास मुरादाबादी, नकुल त्यागी और नजीब सुल्ताना द्वारा प्रस्तुत रचनाएं----

 


भारतीय,भावुक नागरिक ने

नव- निर्वाचित नेता
को बधाई
देने का विचार बनाया,
उसने फोन घुमाया ,
नेता जी बोले
कौन है भाई
नागरिक ने उत्तर
दिये बिना ही
पश्न किया,
आप कहाँ से बोल रहे हैं
श्री मान
नेता जी
जो अभी तक
अभिमान के आवरण से
मुक्त नहीं हो पाये थे,
झुँझलाकर बोले,
जहन्नुम से-
नागरिक ने उत्तर दिया
मैं भी, यहीं सोच रहा था
कि
तुम जैसा नीच, कमीन, बेईमान
स्वर्ग में तो जा ही नहीं सकता ।।

✍️ अशोक विश्नोई, मुरादाबाद
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फूल खिलते हैं हसीं हमको रिझाने के लिए ।
ये बहारों का है मौसम गुनगुनाने के लिए ।।

बाग़ में चंपा, चमेली ,खेत में सरसों खिली ,
हर कली तैयार है अब मुस्कुराने के लिए ।।

गुलमुहर के लाल फूलों की छटा है फागुनी ,
है रंगीली धूप धरती को सजाने के लिए ।।

देखकर फूलों को खिलता झूमती हैं तितलियाँ ,
मस्त भौंरे गुनगुनाते रस को पाने के लिए ।।

कोंपलों के फूटते ही आम बौराने लगे ,
आ गई डाली पे कोयल गीत गाने के लिए ।।

नाचती हैं तितलियाँ , मधुमक्खियाँ देती हैं ताल ,
मस्त धुन पंखों से बजती झूम जाने के लिए ।।

अब उदासी रात की धुलकर सहर होने लगी ,
आ गया फूलों का मौसम खिलखिलाने के लिए ।।

ताज़गी से भर गया उम्मीद का हर-इक ख़याल ,
गुनगुनी है धूप सर्दी को मिटाने के लिए  ।।

उड़ रही है मस्त खुशबू हर तरफ़ 'ओंकार 'अब ,
दिल उसे करता है साँसों में बसाने के लिए ।।

✍️ओंकार सिंह 'ओंकार'
1-बी-241 बुद्धिविहार,मझोला,
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) 244001
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नवल रश्मियों की ऊष्मा के,
पावन       घटक        लिए,
कलियाँ खिली सात रंगोंका,
नव         श्रृंगार        किए।
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मुरझाए   तरुवर     मुस्काए,
इठलाईं                 कलियां,
फूलों  ने   खुशबू   बिखराई,
महक        उठीं      गलियां,
नयनों ने   हर पल वसंत  के,
दर्शन         खूब         किए।
नवल रश्मियों--------------

फूल-फूल का मुख  पुचकारे,
भौंरों           की         टोली,
कोयलिया झुरमुट में छुपकर,
बोले           मृदु         बोली,
तितली ने भी पंख  खुशी  में,
खोले           बंद         किए,
नवल रश्मियों-------------

माँ  वाणी  ने  भी  वीणा  के,
किए         तार        झंकृत,
मानव  ही क्या  स्वयं  देवता,
पीते           रस        अमृत,
सकल सृष्टि को आशीषों के,
भर-भर      कलश      दिए।
नवल रश्मियों--------------

ठिठुरन का संताप मिट गया,
आलस         दूर        हुआ,
शीतलहर का अहम स्वयंही,
चकनाचूर                 हुआ,
वासंती परिधान  पहन  कर,
सुंदर         नृत्य        किए।
नवल रश्मियों--------------

बौर लदी  आमों  की  डाली,
झुककर      नमन        करें,
पशु-पक्षी  भी  एक-दूजे  से,
प्यारी         बात          करें,
कवियोंको भी ऋतु वसंत ने,
नवस्वर       दान        किए।
नवल रश्मियों--------------
      
✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद/उ,प्र, मोबाइल फोन नम्बर--9719275453
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सेवा में जब तक रहे, अपना रहा जमाल।
आज रिटायर हो गये, हाल हुआ बेहाल।

घर में भी पतले हुए, अब तो अपने हाल।
घरवाली के देखिए, बदल गये सुर ताल।।

सुबह हो गयी है प्रिये, चाय मिले तत्काल।
बोली स्वयं बनाइये, अपनी है हड़ताल।।

आप रिटायर हुए हो, मैं हूँ पूर्ण नियुक्त।
हाथ बँटाओ काम में, मत समझो जंजाल।।

गृहलक्ष्मी के हाथ में, अपनी जीवन डोर।
उनके ऊपर भाइयों, कब चलता है जोर।।

गृहलक्ष्मी को मानिए, अपना माई बाप।
सेल लगी है माल में, ले जाओ चुपचाप।।

पत्नी को संबोधित एक मुक्तक:

तुम आये तो आ गया जीवन में रस रंग।
तुमसे पहले तो रहा, ये जीवन  बेढंग।।
टोक टोक कर रात दिन, बदली मेरी चाल।
पहले मैं लल्लू रहा, अब हूँ मिस्टर लाल।।

✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।
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                  देवी हो या कोई अप्सरा,
        स्वर्ग लोक से आयी हो!
मेरे मन के मनमंदिर में ,
      एक तुम ही तुम छाई हो !!

इन्द्रधनुषी भवें तुम्हारी,
             नैना कज़रारे कारे  !
चेहरा सुंदर झील कमल सा,
              होंठ दहकते अंगारे !!
निरख चांद भी चकित है ,
    जैसे चांद की तुम परछाई  हो!!
मेरे मन के मनमंदिर में
          एक तुम्हीं तुम छाई हो!

कालिदास के मेघदूत की,
           तुम्ही उर्वशी लगती हो!
आंखों में सिंदूरी सपने,
            सोती हो या जगती हो!!
तुम ही दिलक़श ख्वाब ज़िगर
           का ग़ालिब की रुबाई हो!!
मेरे मन के मनमंदिर में,
          एक तुम्हीं तुम छाई हो!

लैला मजनूं,हीर रांझा सा,
             मिलन मुझे मंजूर नहीं।।
प्रेम अगन और विरह व्यथा भी,
               कर सकते मज़बूर नहीं !
सप्तपदी में सात जन्म तक,
             तुम संग गांठ बंधाई हो!!
मेरे मन के मनमंदिर में,
           एक तुम ही तुम छाई हो!!

छोड़ छाड़ कर मां बापू को,
          तुम संग भाग नहीं सकता !
जो  मुझको लाये दुनिया में ,
      उनको‌ त्याग नहीं सकता!!
परिणय तभी करूंगा तुम संग,
           साथ बहन और भाई हो!!
मेरे मन के  मनमंदिर में,
              एक तुम्हीं तुम छाई हो !!

प्रेम निवेदन मेरा यदि प्रिय!
            तुम को उत्तम लगता है  ?
कर लेना स्वीकार यदि दिल ,
           फिर भी धक धक करता है ?
वर्ना नाम न आये लव पर,
             दोनों की रुसवाई हो !
मेरे मन के मनमंदिर में,
               एक तुम्हीं तुम छाई हो!!

✍️अशोक विद्रोही , 412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद, मोबाइल 8218825541
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बुरा मेरा नसीब था कि ऐसा मोड़ आ गया
जो था मुझे अज़ीज़ वो ही दिल मेरा दुखा गया ।

तू पास आया तो बहार पर निखार आ गया
मृदंग बज उठे समां भी गीत गुनगुना गया ।

मिला नहीं कोई भी वक़्त पे जो काम आ गया
भरोसा जिस पे भी किया वही नज़र चुरा गया I

गई वो तंज मार के वफ़ा पे संग मार के
कि आइना तो टूटा ही दिलों में बाल आ गया ।

लिखा था मेरे हाथ में रहूँगा तन्हा तन्हा मैं
तू ज़िंदगी में आ के उस लकीर को मिटा गया ।

✍️ अखिलेश वर्मा
  मुरादाबाद/अमरोहा
  9897498343
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इज्जत  हो  रही  तार-तार  देश में
हो  रहे  हैं रोज  बलात्कार  देश में            

खुद ही कीजिएगा हिफाजत अपनी
गहरी  नींद  में  हैं  पहरेदार  देश में                

बढ़ रही है हैवानियत किस तरह
इंसानियत  हो रही शर्मसार देश में

'एक्शन' के साबुन से हो जाएगी ये साफ
वर्दी  जो  हो  गई है दागदार देश में

चीखने का कोई होगा नहीं असर
हो गई है बहरी अब सरकार देश में

टीआरपी चैनलों की बढ़ रही 'मनोज'
जमकर  बिक  रहे  अखबार देश में
✍️ डॉ मनोज रस्तोगी, मुरादाबाद
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आहत बरसों से पड़ा, रंगों में अनुराग।
आओ टेसू लौट कर, बुला रहा है फाग।।

छुरी सियासत से कहे, चिन्ता का क्या काम।
मुझे दबाकर काँख में, जपती जा हरिनाम।।

गुमसुम पड़े गुलाल से, कहने लगा अबीर।
चल गालों पर खींच दें, प्यार भरी तस्वीर।।

कुर्सी-कुर्सी देश में जब खेले हुक्काम।
देने बैठीं दाढ़ियाँ, तिनकों को आराम।।

ऐसी भटकी राह से, रंगों की बौछार।
लुकता-छिपता फिर रहा, अब है शिष्टाचार।।

गले मिलाने इस बरस, कैसे आऊँ पास।
है साये में ख़ौफ़ के, अब भी फागुन मास।।

मिल-जुल कर ऐसी करें, रंगों की बौछार।
बह जायें अविलंब ही, मन के सभी विकार।।

✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद
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बदले मिरे नसीब से हालात देखिये। 

होने लगी है प्यार की बरसात देखिये।।

मुझ पर हुआ है उनकी मुहब्बत का ये असर,
गाने लगी हूँ प्यार के नग़्मात देखिये।।

जब से मिली है उनकी वो तस्वीर इक मुझे,
आते हैं बस उन्हीं के  ख़यालात देखिये।।

मौक़ा नहीं मिलेगा  शिकायत का आपको,
इक बार हम पे कर के इनायात देखिये।।

आने लगीं हैं हिचकियाँ उनको भी रात-दिन,
*ममता* ये प्यार की है  शुरूआत देखिये।।

✍️ डाॅ. ममता सिंह, मुरादाबाद
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बेटी मैं आपकी ही हूँ
    जरा पहचान लीजिए |
उडना मैं भी चाहती हूँ,
       खुला आसमान दीजिए ||

मैं ही दुर्गा मैं ही गौरी
मै ही शिवा कल्याणी हूँ |
शक्ति मेरी है अपरम्पार
      अब जान लीजिए
उडना मैं भी चाहती हूँ,
    खुला आसमान दीजिए |

मै ही बहना मैं ही माता,
मैं ही बनती जीवन संगिनी |
अनेकाें रूप हैं मेरे तो अब
           पहचान लीजिए |
उडना मैं भी चाहती हूँ
         खुला आसमान दीजिए |

मैं ही गीता मैं ही क्षमा,
मैं ही लक्ष्मी काली हूं |
बिन मेरे सृष्टि नही सम्भव,
        अब मान लीजिए |
उडना मैं भी चाहती हूँ
        खुला आसमान दीजिए |

माँ की लाडली
       पिता की धडकन,
भाई का गहना हूँ मैं |
बिन मेरे आप सब सूने
       जरा ध्यान दीजिए |
उडना मैं भी चाहती हूँ
      खुला आसमान दीजिए |
बेटी मैं आपकी ही हूँ
       जरा पहचान लीजिए,
उडना मैं भी चाहती हूँ
    खुला आसमान दीजिए |

✍️ सीमा रानी,  पुष्कर नगर, अमराेहा
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भोर के सूरज से निकलती , लहक हैं बेटियाँ
घर उपवन में खिले सुमन की , महक हैं बेंटियाँ
चहचहातीं जो अंजुली भर , खुले आसमां में
बाबुल अँगना की वो मीठी , चहक हैं बेटियाँ ।

बहें जिस लहर सँग भाई वो , बहक हैं बेटियाँ
छोड़तीं राखी के लिये सभी , हक हैं बेटियाँ
हो जाती भस्म जिसमें , कुरुवंश की कुरूपता
याज्ञसैनी के उस क्रोध की , दहक हैं बेटियाँ ।

✍️ डॉ. रीता सिंह, मुरादाबाद
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लिख रहा था जब खुदा तकदीर आधी रह गई
मैं बनाता था जो कल तस्वीर आधी रह गई

थी कोई दौलत वो मेरी प्यार के सब रंग भरी
मेरे हिस्से की मिरी जागीर आधी रह गई

खिल उठा जीवन था मेरा बन सुगंधित फूल सा
चुभ गया काँटे सा बन औ तीर आधी रह गई

मीठे झरने का वो पानी पी जिसे मदहोश था
आदी था जिसका मैं वो तासीर आधी रह गई

वो रही गीतों मे मेरे,मेरी गजलों मे घुली
लिख रहा तो हूँ गजल पर, पीर आधी रह गई

वो मिरी ,मैं भी समर्पित, पा सका फिर भी नही
जल चिता मे रानी मेरी हीर, आधी रह गई

✍️ इन्दु,अमरोहा,उत्तर प्रदेश
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क्यों “धर्म” और “मजहब” की राजनीति
भाई-चारा,  तार–तार करती है,
क्यों “गीता” और “कुरान” की राजनीति
ज्ञान पर प्रहार करती है ,
आखों से देखा.......... तो
लहू का रंग एक था
काया , रूप , रंग, बनावट ,
में न कोई भेद था
फिर न जाने क्यों.......?
इंसानियत में “इन्सान” के प्रकार करती है
क्यों “धर्म” और “मजहब” की राजनीति
मित्रता में शत्रुता का निर्माण करती है

✍️ प्रशान्त मिश्र, मुरादाबाद
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माना कि हम चांद तारे नहीं हैं
सूरज सरीखे के सितारे नहीं हैं
मगर नाज है हमें अपनी रोशनी पर
कभी हम अंधेरों से हारे नहीं हैं |

✍️ आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, मुरादाबाद
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हे    वसंत ,  प्यारे    वसंत  !
मस्ती  लेकर  आओ  वसंत !
अभी व्याप्त करोना  है भूपर ;
इस ढीट रोग का करो अन्त !

अमृत  वरसा  दो माँ  भू पर !
सुख - चैन भरे वसुधा ऊपर  !
ऋतु राज   करो  ऐंसा  जादू ;
मुस्कान व्याप्त हो हर मुंह पर !।

✍️ विकास मुरादाबादी , मो  9997235297
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  लड़ने वाले
कहीं लड़ते हैं बातों से
कहीं लड़ते हैं लातों से
कहीं लड़ते हैं डंडों से
कहीं पिचके टमाटर अंडों से
कहीं क्या ,
सभी लड़ते अपने तरीकों से लेकिन सफल होते केवल वही
जो लड़ते हैं हथकंडो से

✍️ नकुल त्यागी , मुरादाबाद
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देखकर भागने वाला जांबाज नहीं होता
मुश्किलों से हारने वाला सिंदबाद नहीं होता दुनिया में जिसके पास है मां बाप की दुआ
वो इंसान कभी भी बर्बाद नहीं होता

मां तो मां है दुआ भी कमाल देती है
सर पे रखके हाथ बला को टाल देती है
मौहब्बत का किसी की क्या अंदाजा नजीब
खुदाई भी मौहब्बत की मां पर मिसाल देती है

✍️ नजीब सुल्ताना, रफातपुर, मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार की रचना ----


 

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ विश्व अवतार जैमिनी की कविता --कोरोना जी, आपके कारण यह नौबत आई .....


 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रेमवती उपाध्याय का गीत --/--


 

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी की कविता -----


 

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कविता ----


 

मुरादाबाद के साहित्यकार शिशुपाल मधुकर के मुक्तक व गीतिका -----


 

मुरादाबाद की साहित्यकार विशाखा तिवारी की कविता -----


 

शुक्रवार, 5 मार्च 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ राकेश चक्र द्वारा किया गया श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय दो का काव्यानुवाद ------

धृतराष्ट्र के सारथी संजय ने धृतराष्ट्र से सैन्यस्थल का आँखों देखा हाल कुछ इस तरह कहा। 

अर्जुन ने श्री कृष्ण से , किया शोक संवाद।

नेत्र सजल करुणामयी ,तन-मन भरे विषाद।। 1

श्री कृष्ण भगवान उवाच

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प्रिय अर्जुन मेरी सुनो, सीधी सच्ची बात।

यदि कल्मष हो चित्त में, करता अपयश घात।। 2


तात नपुंसक भाव है, वीरों का अपमान।

उर दुर्बलता त्यागकर, अर्जुन बनो महान।। 3


अर्जुन ने भगवान कृष्ण से कहा

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हे!मधुसूदन तुम सुनो, मेरे मन की बात।

पूज्य भीष्म,गुरु हनन से, उन पर करूँ न घात।। 4


पूज्य भीष्म,गुरु मारकर, भीख माँगना ठीक।

गुरुवर प्रियजन श्रेष्ठ हैं, ये हैं धर्म प्रतीक।। 5


ईश नहीं मैं जानता,क्या है जीत-अजीत।

स्वजन बांधव का हनन, क्या है नीक अतीत।। 6


कृपण निबलता ग्रहण कर, भूल गया कर्तव्य।

श्रेष्ठ कर्म बतलाइए, जो जीवन का हव्य।। 7


साधन अब दिखता नहीं, मिटे इन्द्रि दौर्बल्य।

भू का स्वामी यदि बनूँ, नहीं मिले कैवल्य।। 8


संजय ने धृतराष्ट्र से इस तरह भगवान कृष्ण और अर्जुन का संवाद सुनाया

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मन की पीड़ा व्यक्त कर, अर्जुन अब है मौन।

युद्ध नहीं प्रियवर करूँ, ढूंढ़ रहा मैं कौन।। 9


सेनाओं के मध्य में, अर्जुन करता शोक।

महावीर की लख दशा, कृष्ण सुनाते श्लोक।। 10


श्री भगवान ने अर्जुन को समझाते हुए कहा 


पंडित जैसे वचन कह, अर्जुन करता शोक।

जो होते विद्वान हैं, रहते सदा अशोक।। 11


तेरे-मेरे बीच में,जन्मातीत अनेक।

युद्ध भूमि में जो मरे, लेता जन्म हरेक।। 12


परिवर्तन तन के हुए, बाल वृद्ध ये होय।

जो भी मृत होते गए, नव तन पाए सोय।। 13


सुख-दुख जीवन में क्षणिक,ऋतुएँ जैसे आप।

पलते इन्द्रिय बोध में, धैर्यवान सुख- पाप।। 14


पुरुषश्रेष्ठ अर्जुन सुनो, सुख-दुख एक समान।

जो रखता समभाव है, मानव वही महान।। 15


सार तत्व अर्जुन सुनो, तन का होय विनाश।

कभी न मरती आत्मा, देती सदा प्रकाश।। 16


अविनाशी है आत्मा, तन उसका आभास।

नष्ट न कोई कर सके, देती सदा उजास।। 17


भौतिकधारी तन सदा, नहीं अमर सुत बुद्ध।

अविनाशी है आत्मा, करो पार्थ तुम युद्ध।। 18


सदा अमर है आत्मा , सके न हमें लखाय।

वे अज्ञानी मूढ़ हैं, जो समझें मृतप्राय।। 19


जन्म-मृत्यु से हैं परे, सभी आत्मा मित्र।

नित्य अजन्मा शाश्वती, है ईश्वर का चित्र।। 20 


जो जन हैं ये  जानते, आत्म अजन्मा सत्य।

अविनाशी है शाश्वत, कभी ना होती मर्त्य।। 21


जीर्ण वस्त्र हैं त्यागते, सभी यहाँ पर लोग।

उसी तरह ये आत्मा, बदले तन का योग।। 22


अग्नि जला सकती नहीं, मार सके न शस्त्र।

ना जल में ये भीगती, रहती नित्य अजस्र।। 23


खंडित आत्मा ही सदा, है ये अघुलनशील।

सर्वव्याप स्थिर रहे, डुबा न सकती झील।। 24


आत्मा सूक्ष्म अदृश्य है, नित्य कल्पनातीत।

शोक करो प्रियवर नहीं, भूलो तत्व अतीत।। 25


अगर सोचते आत्म है, साँस-मृत्यु का खेल।

नहीं शोक प्रियवर करो, यह भगवन से मेल।। 26


जन्म धरा पर जो लिए, सबका निश्चित काल।

पुनर्जन्म भी है सदा,ये नश्वर की चाल।। 27


जीव सदा अव्यक्त है, मध्य अवस्था व्यक्त।

जन्म-मरण होते रहे, क्यों होते आसक्त।। 28


अचरज से देखें सुनें, गूढ़ आत्मा तत्व।

नहीं समझ पाएं इसे, है ईश्वर का सत्व।। 29


सदा आत्मा है अमर, मार सके ना कोय।

नहीं शोक अर्जुन करो, सच पावन ये होय।। 30


तुम क्षत्रिय हो धनंजय, रक्षा करना धर्म।

युद्ध तुम्हारा धर्म है, यही तुम्हारा कर्म।। 31


क्षत्री वे ही हैं सुखी, नहीं सहें अन्याय।

युद्धभूमि में जो मरे, सदा स्वर्ग वे पाय।। 32


युद्ध तुम्हारा धर्म है, क्षत्रियनिष्ठा कर्म।

नहीं युद्ध यदि कर सके, मिले कुयश औ शर्म।। 33


अपयश बढ़कर मृत्यु से, करता दूषित धर्म।।

हर सम्मानित व्यक्ति के, धर्म परायण कर्म।। 34


नाम, यशोलिप्सा निहित, चिंतन कैसा मित्र।

युद्ध भूमि से जो डरे, वह योद्धा अपवित्र।। 35


करते हैं उपहास सब,निंदा औ' अपमान।

प्रियवर इससे क्या बुरा, जाए उसका मान।।36


यदि तुम जीते युद्ध तो, करो धरा का भोग।

मिली वीरगति यदि तुम्हें, मिले स्वर्ग का योग।।37


सुख-दुख छोड़ो मित्र तुम, लाभ-हानि दो छोड़।

विजय-पराजय त्यागकर, कर्म करो उर ओढ़।।38


करी व्याख्या कर्म की, सांख्य योग अनुसार।

मित्र कर्म निष्काम हो, उसका सुनना सार।।39


भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को कर्मयोग का महत्व बताया

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कर्म करें निष्काम जो, हानि रहित मन होय।

बड़े-बड़े भय भागते, जीवन व्यर्थ न होय।।40


दृढ़प्रतिज्ञ जिनका हृदय, वे ही पाते लक्ष्य।

मन जिनका स्थिर नहीं, रहते सदा अलक्ष्य।।41


वेदों की आसक्ति में, करें सुधीजन पाठ।

जीवन चाहे योगमय, ऐसा जीवन काठ।।42


इन्द्रिय का ऐश्वर्य तो, नहीं कर्म का मूल।

करें कर्म निष्काम जो, मानव वे ही फूल।।43


सुविधाभोगी जो बनें, इन्द्रि भोग की आस।

ईश भक्त ना बन सकें, रहता दूर प्रकाश।।44


तीन प्रकृति के गुण सदा,करते वेद बखान।

इससे भी ऊँचे उठो, अर्जुन बनो महान।।45


बड़ा जलाशय दे रहा, कूप नीर भरपूर।

वेद सार जो जानते, वही जगत के शूर।।46


करो सदा शुभ कर्म तुम,फल पर ना अधिकार।

फलासक्ति से मुक्त उर, इस जीवन का सार।।47


त्यागो सब आसक्ति को , रखो सदा समभाव।

जीत-हार के चक्र में, कभी न दो प्रिय घाव।।48


ईश भक्ति ही श्रेष्ठ है, करो सदा शुभ काम।

जो रहते प्रभु शरण में, होता यश औ नाम।।49


भक्ति मार्ग ही श्रेष्ठ है, रहता जीवन मुक्त।

योग करे, शुभ कर्म भी, वह ही सच्चा भक्त।।50


ऋषि-मुनि सब ही तर गए, कर-कर प्रभु की भक्ति।

जनम-मरण छूटे सभी, कर्म फलों से मुक्ति।।51


मोह त्याग संसार से, तब ही सच्ची भक्ति।

कर्म-धर्म का चक्र भी, बन्धन से दे मुक्ति।।52


ज्ञान बढ़ा जब भक्ति में, करें न विचलित वेद।

हुए आत्म में लीन जब, मन में रहे न भेद।।53


श्रीकृष्ण भगवान के कर्मयोग के बताए नियमों को अर्जुन ने बड़े ध्यान से सुना और पूछा--


अर्जुन बोला कृष्ण से, कौन है स्थितप्रज्ञ।

वाणी, भाषा क्या दशा, मुझे बताओ सख्य।।54


श्रीकृष्ण भगवान ने अर्जुन को फिर कर्म और भक्ति का मार्ग समझाया

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मन होता जब शुद्ध है, मिटें कामना क्लेश।

मन को जोड़े आत्मा, स्थितप्रज्ञ नरेश।।55


त्रय तापों से मुक्त जो, सुख - दुख में समभाव।

वह ऋषि मुनि-सा श्रेष्ठ है, चिंतन मुक्त तनाव।।56


भौतिक इस संसार में, जो मुनि स्थितप्रज्ञ।

लाभ-हानि में सम दिखे , वह ज्ञानी सर्वज्ञ।।57


इन्द्रिय विषयों से विलग, होता जब मुनि भेष।

कछुवा के वह खोल-सा, जीवन करे विशेष।।58


दृढ़प्रतिज्ञ हैं जो मनुज, करे न इन्द्रिय भोग।

जन्म-जन्म की साधना, बढ़े निरंतर योग।।59


सभी इन्द्रियाँ हैं प्रबल, भागें मन के अश्व ।

ऋषि-मुनि भी बचते नहीं, यही तत्व सर्वस्व।।60


इन्द्रिय नियमन जो करें, वे ही स्थिर बुद्धि।

करें चेतना ईश में, तन-मन अंतर् शुद्धि।61


विषयेन्द्रिय चिंतन करें, जो भी विषयी लोग।

मन रमताआसक्ति में, बढ़े काम औ क्रोध।।62


क्रोध बढ़ाए मोह को, घटे स्मरण शक्ति।

भ्रम से बुद्धि विनष्ट हो, जीवन दुख आसक्ति।। 63


इन्द्रिय संयम जो करें , राग द्वेष हों दूर

भक्ति करें जो भी मनुज, ईश कृपा भरपूर।। 64


जो जन करते भक्ति हैं, ताप त्रयी मिट जायँ।

आत्म चेतना प्रबल हो, सन्मति थिर हो जाय।। 65


भक्ति रमे जब ईश में, बुद्धि दिव्य मन भव्य।

शांत चित्त मानस बने, शांति मिले सुख नव्य।। 66


यदि इंद्रिय वश में नहीं, बुद्धि होती है क्षीण। 

अगर एक स्वच्छंद है, तन की बजती बीन।।67


इन्द्री वश में यदि रहें, वही श्रेष्ठ है जन्य।

और बुद्धि स्थिर रहे, मिले भक्ति का पुण्य।।68


आत्म संयमी है सजग, तम में करे प्रकाश।

आत्म निरीक्षक मुनि हृदय, मन हो शून्याकाश।।69


पुरुष बने सागर वही, नदी न जिसे डिगाय।

इच्छाओं से तुष्ट जो, वही ईश को पाय।। 70


इच्छा इंद्री तृप्ति की, करे भक्त परित्याग।

अहम, मोह को त्याग दे, मिले शांति का मार्ग।। 71


आध्यात्मिक जीवन वही, मानव करे न मोह।

अंत समय यदि जाग ले, मिले धाम ही मोक्ष।।72

इस प्रकार श्रीमद्भगवतगीता के द्वितीय अध्याय " गीता का सार" का भक्तिवेदांत तात्पर्य पूर्ण हुआ ।क्लिक कीजिये और पढ़िये पहले अध्याय का काव्यानुवाद

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क्लिक कीजिये और पढ़िये पांचवे अध्याय का काव्यानुवाद

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क्लिक कीजिये और पढ़िये तेरहवें अध्याय का काव्यानुवाद 

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✍️ डॉ राकेश चक्र, 90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001, उत्तर प्रदेश, भारत, मोबाइल फोन नंबर 9456201857

Rakeshchakra00@gmail.com

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल से अतुल कुमार शर्मा के सम्पादन में प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका 'स्पर्शी' का ई-संस्करण

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मुरादाबाद मंडल के चन्दौसी (जनपद सम्भल)निवासी साहित्यकार अतुल मिश्र का व्यंग्य --- पराई नारियों पर एक सत्संग !!

    


 सत्संग चल रहा था. स्वामी जी अपनी हैसियत से ज़्यादा ऊंचे मंच पर बैठे थे. भक्त चूँकि अभी वह ऊंचाई पाने लायक पोज़ीशन हासिल नहीं कर पाए थे, इसलिए वे नीचे बैठे, स्वामी जी का चेहरा ही देख रहे थे. सत्संग जारी था.

“…….तो मैं बता रहा था कि कभी पराई नारी की ओ़र ग़लत भाव से मत देखो, यह सब मिथ्या है.” स्वामी जी ने नारियों के उस समूह की ओ़र एक गिद्ध द्रष्टि डालते हुए इस बात को कुछ ऐसे अंदाज़ में कहा, जैसे वे उन तमाम नारियों को ग़लत भाव से देखने के लिए परमात्मा की ओर से अधिकृत हों और जो लोग अपने पूर्व जन्मों के कर्मों की वजह से अभी इस लायक नहीं बन पाए हैं, उन्हें आगाह कर रहे हों कि इसके कितने भयंकर दुष्परिणाम होते हैं.

    “दुर्योधन ने द्रौपदी को ग़लत द्रष्टि से देखा तो उसका क्या अंज़ाम हुआ ? बहुत बुरा हुआ. वह कही का नहीं रहा. राजपाट भी गया और अंत में उसकी हार हुई सो अलग.” प्रवचन अभी भी उस विषय से नहीं हट पाया था, जो आज बहुत महत्वपूर्ण था और स्वामी जी की तरफ से स्पष्टीकरण मांग रहा था. कुछ बूढ़ी औरतें जो इस बात से पूरी तरह से इत्तेफाक रखती थीं, उठकर मंच की ओर आईं और स्वामी जी के गले में फूलों का हार डालकर सबसे आगे ही बैठ गयीं.

“शास्त्रों में साफ़-साफ़ लिखा है कि अपनी बीवी के अलावा सभी औरतों को अपनी बहन-बेटियों की नज़र से देखो.” बिना उन शास्त्रों का हवाला दिए कि वे कौन से शास्त्र हैं, जिनमें इस किस्म की बातें लिखी हैं, प्रवचन आगे बढ़ रहा था.

    “जो लोग फिर भी नहीं मानते और ऐसे ही नीच कर्मों में लगे रहते हैं, उन्हें ‘श्वान-योनि’ यानि कुत्ते की योनि में जन्म लेना पड़ता है और अपने मालिक से तिरस्कार का सामना करना पड़ता है. आप जगत में जितने भी कुत्ते देख रहे हैं, वे सब पिछले जन्मों में इसी प्रकार के पाप-कर्म करने की वजह से ही इस गति को यानि स्थिति को प्राप्त हुए हैं.” कुत्तों के बारे में अपनी नई थ्योरी प्रस्तुत करते हुए स्वामी जी ने एक सरसरी निगाह फिर औरतों के समूह पर डाली तो औरतों ने भी “जय हो, महाराज की जय हो”, जैसे गगन भेदी नारों से पूरा पंडाल हिलाकर रख दिया.

    “सत्य बोलो, किसी का बुरा मत सोचो और अपने गुरु की शरण में ही रहो, इन बातों का ध्यान रखोगे तो जीवन जो है, वो अच्छा रहेगा, वरना यह जो जीवन है, वो कहीं का भी नहीं रहेगा यानि जीवित रहते हुए भी मरे हुए के सामान ही रहोगे.” स्वामी जी ने अपने प्रवचन को अंतिम रूप देते हुए सत्संग-आयोजक की ओर एक निगाह डालकर अपने उठने की मूक सूचना दी और उसके बाद किसी ऐसे फ़िल्मी गाने से अपनी बात पूरी की, जिसका भावार्थ कुछ इस प्रकार था कि ‘लग जा गले, कि फिर ये हसीं रात हो ना हो, शायद कि इस जनम में मुलाक़ात हो ना हो.”

“परमात्मा कहते हैं कि हे प्राणी, किसी और के गले लगने से बेहतर है कि तू मेरे गले लग जा, क्योंकि यह रात भी कपटी है, इसका कोई भरोसा नहीं कि यह फिर हो या ना हो. और यह जो जन्म तुझे मिला है, उसमें तू मुझे प्राप्त कर सके या ना कर सके, इसमें भी संशय है.” फ़िल्मी धुनों पर बने गानों का प्रसारण बहुत देर तक होता रहा और इस दौरान स्वामी जी को परमात्मा स्वरुप मानकर औरतों द्वारा उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेने का सिलसिला भी शुरू हो गया.

✍️अतुल मिश्र, श्री धन्वंतरि फार्मेसी, मौ. बड़ा महादेव, चन्दौसी, जनपद सम्भल

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ---इतना आसान कहाँ ...

     


शुभि ने जल्दी जल्दी सारा घर का काम निपटाया और तैयार होकर सोफे पर बैठकर छोटे बेटे कुणाल की स्कूल शर्ट का बटन टाँकने लगी , साथ ही मन में कल की घटना भी उसको रह रह कर याद आ रही थी ।

​सोचने लगी "आजकल के बच्चे भी न ....पता नहीं क्या होता जा रहा है ?"

​कल सान्या उसकी बेटी का बर्थडे था , बस बच्चों को तो मौका मिल गया गिफ्ट का फिर भले ही उसकी जरूरत हो या न हो ।

​"मॉम मुझे इस बार कुछ नया गिफ्ट  चाहिए ....जो मेरी किसी फ्रेंड के पास नहीं हो ।"बेटी ने ठुनकते हुए कहा  था ।

​"मगर बेटा ...किसी की होड़ थोड़े ही करते हैं ...जिसकी जरूरत हो ....।"

​"मॉम प्लीज यह जरूरत वाली बात मुझे अच्छी नहीं लगती ....डैड देखो न मम्मा ...l"

​"ठीक तो कह रही है तुम्हारी मम्मी ।"सूरज ने भी डरती हुई आवाज में कहा ।

​"बस रहने ही दो मुझे नहीं जाना आपके साथ मार्केट ...।"चिढ़ते हुए सान्या ने कहा और पैर पटकते हुए मॉल से बाहर  भाग गई l

"​सान्या.........।"दोनों आवाज देते रह गए l

​"क्या जरूरत थी उसको ज्ञान देने की ?"सूरज का भी मूड खराब हो गया ।

​"आप भी न ....चढ़ा लो इस लड़की को सिर पर ...क्या समझाना बुरी बात है ?"शुभि ने चिढ़कर कहा l

​"नहीं ...मगर अब कुछ माँग रही है तो देना ही होगा l"

​"और क्या देना ही होगा ...डिमांड तो रोज बढ़ती ही जा रहीं हैं दोनों की ...सुर भी तो कुछ कम नहीं ।"

​"अभी तो दोनों आठवीं और दसवीं कक्षा में हैं ...पता नहीं आगे क्या होगा ?"शुभि ने संदेह व्यक्त करते हुए कहा l

​"शुभि तुम क्यों परेशान हो ....आजकल पेरेंट्स होना कोई इतना आसान नहीं ...हमारे तुम्हारे जैसा जिनके लिए माँ बाप की बात मानना भगवान की बात से भी ज्यादा अवश्य था ।"

​तभी दरवाजे की घंटी बजती है तब शुभि की तंद्रा भंग होती है और  वह उठकर दरवाजा खोलती है l

​"अरे आप तो तैयार हैं ....मैँ अभी रेडी होकर आती हूँ ।"

​सान्या ने बैग सोफे पर पटकते हुए कहा l

​अपनी जीत पर सान्या बहुत खुश जो थी आखिर पेरेंट्स को हरा जो दिया था ।

​रात खाना तभी खाया जब आज वह जो चाहेगी वह दिलाना पड़ेगा l

​✍️ राशि सिंह, मुरादाबाद उत्तर प्रदेश 


मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा------ कहाँ गये आप ......

 


गाँव में कदम रखते ही लोगो की भीड़ रागिनी को जगह जगह दिखायी दी। वह उस भीड़ में से अपने लिये जगह बनाती हुई आगे बढती रही ......। 

बहुत अच्छी मौत पायी .... किसी से कुछ नही  कराया...... बैठे बैठे ही दम निकल गया......भगवान ने चलते हाथ-पैर ही उठा लिया ...   98 साल के तो हो भी गये थे।........

इस तरह की बातें उसे भीड़ से निकलते हुए सुनायी दे रही थी।

रागिनी बड़े से आगंन को तेजी से पार करती हुई , अम्मा के कमरे की तरफ गयी ...... 

फिर रागिनी को सुनायी दिये अम्मा के रोते रोते कहे शब्द ......

इतनी जल्दी मुझे अकेला छोडकर क्यो चले गये आप .....कहाँ गये आप , दिखते भी नही।

✍️ प्रीति चौधरी , गजरौला,अमरोहा

                                

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा ----तैयारी


"बाज़ार से बिल्कुल सस्ते वाले,दस कंबल मंगवा लो।ठंड बहुत हो रही है। गरीबों की बस्ती में बांटने चलना है।"

अपने कंजूस पिता के मुख से,ये बात सुनकर अंकित को बहुत आश्चर्य हो रहा था। उसके पिता ने उसके चेहरे के भाव पढ़ते हुए समझाया

"अरे भाई,इस बार चुनाव लड़ना है,तो तैयारी तो अभी से करनी पड़ेगी।और हां,अपने प्रेस फोटोग्राफर मित्र को जरूर बुला लेना।"

✍️ डॉ पुनीत कुमार, T 2/505 आकाश रेसीडेंसी, मधुबनी के पीछे, मुरादाबाद 244001,M 9837189600

गुरुवार, 4 मार्च 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्वदेश सिंह की लघुकथा --जैसी करनी वैसी भरनी

    


  गृह प्रवेश के समय अपनी सास   व ननद से नौकरों जैसा व्यवहार करने वाली दीपाली के आँसू आज रोकने से भी नहीं रुक रहे थे।... रो-रो कर दीपाली तथा उसके पति का बुरा हाल था।.... वह समझ नहीं पा रहे थे।.... कि अब कहां जाएं?....  क्योंकि जिस बैंक से नीरज ने लोन लेकर घर बनाया था... इंक्वायरी होने पर वह फर्जी निकला ।सच सामने आनें पर उसके घर की नीलामी हो रही थी और नौकरी भी चली गई।.... अब नीरज व दीपाली दर-दर की ठोकरों को मोहताज व बेघर हो गये  । 

✍️ स्वदेश सिंह, सिविल लाइन्स, मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा) की साहित्यकार रेखा रानी की लघुकथा ---उजड़ा बसेरा

  


सांझ ढले..."  जब चोंच में दाना लिए  चिड़िया वापस लौटी ,तब इधर से उधर बेचैन हो उठी । उसका घोंसला उजड़ चुका था, क्योंकि जिस वृक्ष पर उसका आशियाना था, उसे काट कर मनुष्य अपनी सवारी में लाद लिया था।.... पता नहीं छोटे छोटे ची- ची करते हुए.... भूखे  बच्चे अपनी मां को कहां तलाश रहे होंगे।...... अरे ,ओ क्रूर मानव! तुझे ,क्या मिला हम पंछियों  का बसेरा उजाड़ कर।  

✍️ रेखा रानी, विजय नगर , गजरौला, जनपद अमरोहा


मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी --हादसा.....


 .... दहेज की बलि बेदी पर चढ़ गयी बेटी की भेंट !  लोभी दरिंदों ने आठ दिन तक अन्न का एक भी दाना नहीं दिया...बन्द कमरे में भूखी प्यासी मार दिया....!

      थाने पहुंचे मम्मी-पापा . पोस्टमार्टम रिपोर्ट में रिपोर्ट आयी पेट में पिछले आठ दिनों से कुछ भी नहीं गया...परन्तु इसे पुलिस हत्या का सबूत नहीं मान रही पुलिस दुनिया भर के सबूत मांग रही है ....चक्कर लगा लगा कर थक गये ...अब पुलिस रिश्वत  भी चाहती है...दो और जवान बेटियां घर में क्वारी बैठीं हैं....! माली हालत भी ठीक नहीं है... कार्रवाई रोकने के लिए लड़के वालों से मिली मोटी रकम के बाद पुलिस कार्यवाही कैसे करे  ?......

   ....कैसी विडम्बना है  ? एक तो ज़िगर का टुकड़ा गया .... अपराधी स्वतन्त्र घूम रहे हैं ! ऊपर से रिश्वत दोगे तभी एफ आई आर दर्ज होगी...!

     .....सरवेस.... हिम्मत हारने लगा था थक चुका था भाग दौड़ करते करते...... परन्तु जब घर लौट कर घर में घुसता तो बेटी की फोटो का सामना नहीं कर पाता और लड़ने के लिए न जाने कहां से शक्ति आ जाती......दिन यूं ही गुजरते जा रहे थे.....

.......तब ही एक दिन अचानक अखबार पढ़ते पढ़ते सरवेस ड्यूटी छोड़ कर घर की ओर दौड़ा जाकर पत्नी को अखबार दिखाया.....

.......लिखा था 'भयानक हादसा एक ही घर के तीन लोगों की मौत'

कार और डंपर की भयानक टक्कर में कार बुरी तरह क्षति गस्त हो गई और उसमें बेटा मां और बाप की मृत्यु हो गई....

.....ये बेटी के सास ,ससुर और पति ही थे.....

✍️ अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद, मोबाइल फोन नम्बर 8218825541

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा की लघुकथा --इनवेस्टमेंट

 


इलेक्शन न लड़ें तो अपने पैसे में आग लगा दें क्या? बताओ मुझे ?क्यों भाभी ??।                         ''अगर इतना पैसा है तो धर्मशाला खोलो , जगह जगह प्याऊ लगवाओ ,गरीब कन्याओं की शिक्षा में ,उनके विवाह में खर्च कर दो ।"भाभी ने बड़े ही संयत शब्दों में जबाब दिया । 

   वाह्ह अपना पैसा व्यर्थ में बहा दूं उंह्ह !जो इतनी मेहनत से कमा कर जमा किया ,इसका रिटर्न है कोई ?ऊंह्ह ! आज राजनीति पर खर्च करूंगा तो असल के साथ-साथ सूद न मिलेगा! शिक्षा अनुदान राशि ,कन्या धन राशि समाज कल्याण राशि न जाने कितने रास्ते खुलेंगें !।

✍️ मनोरमा शर्मा, अमरोहा

मुरादाबाद मंडल के धामपुर (जनपद बिजनौर) से डॉ अनिल शर्मा अनिल द्वारा संपादित अनियतकालीन ई-पत्रिका 'अभिव्यक्ति' का वसन्त बहार अंक 49 (रविवार 21-02-2021)-----

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वाट्स एप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद ' में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है । मंगलवार 2 मार्च 2021 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों वीरेंद्र सिंह बृजवासी, श्रीकृष्ण शुक्ल, डॉ रीता सिंह, राजीव प्रखर, वैशाली रस्तोगी, रेखा रानी, अशोक विद्रोही और डॉ शोभना कौशिक की कविताएं ......


आकर बैठ गई  खिड़की पर,

झबरी        बिल्ली       रानी,
सूंघ  रही  थी  कहाँ  रखी  है,
चिकिन,   मटन,   बिरियानी।

सारे  घर  में   दौड़   दौड़कर,
हारी         बिल्ली        रानी,
हाथ न आया कुछ भी उसके,
मुख  में      आया       पानी।

लेकिन झबरी  बिल्ली ने भी

दिल    से   हार    न    मानी,
फ्रिज से आती हुई महक को,
वह     झट     से    पहचानी।

लगी  खोलने डोर  फ्रिज का,
पंजों         से      अभिमानी,
फूलदान गिर गया  ज़मी  पर,
जागी        बिटिया       रानी।

पूंछ  दबाकर  भागी   बिल्ली,
भूल          गई      बिरियानी,
कूद  गई   खिड़की   से  नीचे,
पकड़     न      पाई      नानी।

✍️वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी,मुरादाबाद/उ,प्र,मोबाइल फोन नम्बर- 9719275453
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देखो मैं भी बड़ा हुआ हूंँ।
बिना सहारे खड़ा हुआ हूंँ।।

अपने काम स्वयं करता हूंँ।
ख़ुद खाता हूँ खुद पीता हूँ।

कक्षा में रहता हूँ आगे।
खेल कूद में भी अव्वल  हूंँ।

माँ पापा को तंग न करता।
होमवर्क भी खुद करता हूंँ।

सबकी ही इज्जत करता हूँ।
नहीं किसी से मैं डरता हूँ।

अब मुझको बच्चा मत समझो।
काम बड़ों जैसे करता हूँ।।

✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, MMIG-69, रामगंगा विहार,
मुरादाबाद 244001
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बोली चिड़िया डाली डाली

कर लो उपवन की रखवाली
पहले शिकार बस मैं ही थी
अब पात पात भी चुन डाली ।
बोली चिड़िया......

गिन गिन काटे तरुवर सारे
लूट लिये सब चमन हमारे
देखो कैसी दशा हुई है
सूखे में बदली हरियाली ।
बोली चिड़िया.......

बहुत हो गया अब मत काटो
खेत वनों को और न छाँटो
बने शिकारी जाल बिछाया
हर ली अपनी ही खुशहाली ।
बोली चिड़िया.....

✍️ डॉ रीता सिंह,मुरादाबाद
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दादी लड्डू बना रही हैं,
उनका हाथ बँटाते दद्दू।
उछल कूद करते बच्चों को,
पल-पल डाँट पिलाते दद्दू।

घनी रात सबके सोने पर,
जब चौके में ताला होता।
आँख मारकर तब चिन्टू को,
तरकीबें लड़वाते दद्दू।

दादा-पोते की फुस-फुस से,
जब सारा घर उठकर बैठे।
नकली खर्राटे भर-भर कर,
सबको फिर भरमाते दद्दू।

दादी लड्डू बना रही हैं,
उनका हाथ बँटाते दद्दू।
उछल कूद करते बच्चों को,
पल-पल डाँट पिलाते दद्दू

✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद
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बच्चों देखो होली आई
रंग बिरंगी होली आई
प्यार के रंग, संग लेकर आई
लाल ,गुलाबी नीला पीला
ना कोई तेरा ना कोई मेरा
भेद मन के मिटाने आई
एक रंग में होना तुम
पानी गुब्बारों में भरकर
सबको खूब भिगोना तुम
नाचना ,गाना ,मस्ती करना
खूब हँसी ठिठोली करना
अम्मा, बाबा को तुम रंगना
ताऊ,चाचा से ना डरना
ये बचपन है, कर लो मस्ती
प्रौढ अवस्था इसको तरसती
बच्चों देखो होली आई
रंग बिरंगी होली आई ।

✍️वैशाली रस्तौगी , जकार्ता (इंडोनेशिया)
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हम सारे बेसिक के बच्चे
हर दम मौज मनाते हैं।
खेल - खेल में जीवन के
अध्याय सीखते जाते हैं।
  सुबह की बेला में हम सीखें,
ईश का वंदन करना।
राष्ट्र गान  से हम सब सीखें,
देश प्रेम में रंगना।
प्रेरक प्रसंग संग- संग उसके
जीवन आदर्श सिखाते हैं।
खेल - खेल में जीवन के
अध्याय सीखते जाते हैं।
रोचक गतिविधियों से सीखें,
कठिन पाठ को पढ़ना।
गुरुओं के व्यवहार से सीखें,
प्रेम सभी से करना।
सबके संग में भोजन करना,
सम व्यवहार सिखाते हैं।
खेल - खेल में जीवन के,
अध्याय सीखते जाते हैं।
टन टन बजती घंटी देखो,
नित बदलाव सिखाती है।
हर दिन की यह भोजन तालिका
पौष्टिकता को  दर्शाती है।
खाकर पौष्टिक भोजन,
नित  ताकतवर बन  जाते हैं।
खेल - खेल में जीवन के,
अध्याय सीखते जाते हैं।
बाल संसद, मीना मंच,
करतब नए सिखाती हैं।
कार्य विभाजन,नियमानुशासन,
जीवन आयाम सिखाती हैं।
रेखा पढ़कर जीवन में,
हम आगे बढ़ते जाते हैं।

✍️ रेखा रानी
विजय नगर गजरौला
जनपद अमरोहा
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कोहरा छंटा शीत हट गया,
      मौसम ने फिर ली अंगड़ाई।
ऊनी वस्त्र उतारो भाई,
        देखो देखो गर्मी आई  ।।

हवा बसन्ती तेज चल रही,
        जाती सर्दी हाथ मल रही।
रंग बिरंगे पुष्प खिले हैं,
        बृक्षों को नव बस्त्र मिले हैं।।
कैसी फूल रही अमराई,
        देखो देखो गर्मी आई  ।।

बच्चे दिन भर शोर मचाते,
         नहाने से अब न घबराते।
बिना उठाये ही उठ जाते,
          सुबह सवेरे दौड़ लगाते।।
सुस्ती सबने दूर भगाई,
           देखो देखो गर्मी आई  ।।

विद्यालय भी शुरू हुए हैं,
     कड़क सभी फिर गुरु हुएं हैं।
विषय सभी तैयार करो अब,
     बस पढ़ने में लग जाओ सब!!
निकट परीक्षा की तिथि आई,
           देखो देखो गर्मी आई  ।।

अब न चलेगा कोई बहाना,
           पढ़ने में मन खूब लगना।
किसी विषय को भूल न जाना,
         अंक सभी में अच्छे लाना।।
तभी सिद्ध हो सब चतुराई,
             देखो देखो गर्मी आई  ।।

✍️अशोक विद्रोही , 412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद, मोबाइल फोन नम्बर 8218825541
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मौसम ने ऐसी पलटी खाई ।
जाड़ो की हो गयी विदाई ।
गर्मी रानी झट से आईं।
    देखते -देखते टोपे मोजे उतर गए ।
    पंखे कूलरों के दिन बहुर गये ।
    चिंटू ,मिंटू ,बिंटू के दिन सवर गये ।
ठंडा शर्बत और नारियल पानी ।
साथ में लस्सी की बात निराली ।
चाहे जितनी भी बत्ती रुलाती ।
गर्मी की दोपहर ही हमें तो भाती।
      जब चाहे मर्जी तब तुम नहाओ ।
      साथ में पाउडर की खुशबू उड़ाओ
      सूझे जो कोई शरारत तुम्हें।
      पाउडर गिरा -गिरा कर ।
     फर्श पर फिसल जाओ ।
न मम्मी की डांट की चिंता ।
न पापा का डंडा याद है ।
याद है तो बस इतना ।
कि, अब गर्मियों का राज है ।

✍️डॉ शोभना कौशिक, बुद्धिविहार, मुरादाबाद

मंगलवार, 2 मार्च 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी का गीत ---कसा शिकंजा एक दिशा पर पागल हो, सब उठीं दिशाएं


कसा शिकंजा एक दिशा पर

पागल हो, सब उठीं दिशाएं


गीत,खेल,फिल्मों के ट्वीटर

क्या दे देंगे माल बज़ीफ़ा

पर्यावरण राह से आये

लिबरल होकर मियां ख़लीफा

घूम रहीं समझौता करती

उड़ती फिरती पस्त हवाएं


सत्ता सुख सुविधा से ख़ारिज

पचा न पाए कंगाली को

सोन चिरैया आती दीखी

मना न पाए दीवाली को

गढ़ते गाली रोज़ निराली

विचलित फिर भी नहीं ऋचाएं


पूंछ भैंस की पकड़ चाहते

चतरू खुद को पार लगाना

डुबक भैंसिया कब जायेगी                 

संभव नहीं जान यह पाना

अतिशयता में अनगिन डूबे

अनदेखी कर सत्य कथाएं

✍️ डॉ. मक्खन मुरादाबादी

झ-28, नवीन नगर, कांठ रोड, मुरादाबाद 244001,उत्तर प्रदेश,भारत, मोबाइल : 9319086769

सोमवार, 1 मार्च 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष विद्यावारिधि ज्वाला प्रसाद मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर एटा की साहित्यिक संस्था 'प्रगति मंगला' ने किया दो दिवसीय ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन



वाट्सएप पर संचालित  साहित्यिक समूह 'प्रगति मंगला', एटा की ओर से  "साहित्य के आलोक स्तम्भ" कार्यक्रम की 32 वीं कड़ी के तहत फरवरी माह के अंतिम शनिवार 27 फरवरी को मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार स्मृतिशेष विद्यावारिधि ज्वाला प्रसाद मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर दो दिवसीय ऑनलाइन साहित्यिक परिचर्चा का आयोजन किया गया ।  पटल प्रशासक नीलम कुलश्रेष्ठ द्वारा  मां सरस्वती को नमन और दीप प्रज्ज्वलन के  साथ कार्यक्रम आरम्भ हुआ।

कार्यक्रम के संयोजक मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरा‌र्द्ध में जिस समय भारतेंदु हरिश्चंद्र साहित्य रचकर हिंदी भाषियों का नेतृत्व कर रहे थे। उस समय मुरादाबाद के साहित्यकार भी उनके साथ कदम से कदम मिला रहे थे। इनमें एक उल्लेखनीय नाम है विद्यावारिधि पं. ज्वाला प्रसाद मिश्र का। उनकी  रामायण की भाषा टीका पूरे देश में प्रसिद्ध है। उनको सुप्रसिद्ध नाटककार, कवि, व्याख्याता, अनुवादक, टीकाकार, धर्मोपदेशक, इतिहासकार के रूप में भी जाना जाता है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जे एल एम कालेज के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष आचार्य डॉ प्रेमी राम मिश्र ने कहा - आज मुरादाबाद की पहचान पीतल नगरी के रूप में भले ही होती हो, यहां की सुदीर्घ साहित्यकारों की परंपरा भी सदा स्मरणीय रहेगी। यहां के साहित्यकारों ने हिंदी के उद्भव काल से ही हिंदी को पल्लवित और पुष्पित करने में महती भूमिका का निर्वाह किया है। स्मृति शेष पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र उसी गौरवमयी परंपरा के भास्वर नक्षत्र हैं । यह एक सुखद संयोग ही है  कि उन्हीं  के समान उसी युग में किसरौल, मुरादाबाद के पंडित ज्वाला दत्त शर्मा ने भी हिंदी की विविध विधाओं को समृद्धि  प्रदान करने  में  प्रचुर योगदान दिया था! पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र मात्र हिंदी के लेखक ही नहीं थे ,संस्कृत के अधीती पंडित थे। उनका संस्कृत के काव्य, न्याय और व्याकरण पर असाधारण अधिकार था ।संस्कृत शिक्षक के रूप में  अध्यापन करते हुए उन्होंने सामान्य लोगों तक संस्कृत के ग्रंथों का हिंदी अनुवाद कर महान उपकार किया था ।उनकी विद्वत्ता से प्रभावित होकर टिहरी नरेश के साथ-साथ तत्कालीन अनेक राजाओं ने भी उन्हें सम्मानित कर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव किया था उनका  अंग्रेजी, फारसी ,उर्दू, बांग्ला ,गुजराती आदि भाषाओं पर भी असाधारण अधिकार था। मुंबई के तत्कालीन प्रतिष्ठित प्रकाशक वेंकटेश्वर प्रेस, निर्णय सागर प्रेस ,ज्ञान सागर प्रेस आदि ने उनकी अनेक पुस्तकों का प्रकाशन किया था। हिंदी में सीता बनवास शीर्षक नाटक लिखकर उन्होंने प्रचुर ख्याति प्राप्त की थी। यह भी एक सुखद संयोग ही है कि उनके समान ही उनके तीन भाई पंडित जुगल किशोर मिश्र बुलबुल ,पंडित बलदेव प्रसाद मिश्र एवं पंडित कन्हैयालाल मिश्र ने भी साहित्य लेखन के क्षेत्र में प्रतिष्ठा प्राप्त की थी ।यदि वे 54 वर्ष की अल्प आयु में दिवंगत न हुए होते तो  अपने लेखन से हिंदी को समृद्ध बनाने में और अधिक योगदान दे जाते ।
प्रख्यात साहित्यकार यशभारती माहेश्वर तिवारी ने कहा - पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र के कृतित्व से वे सभी लोग परिचित हैं जिन्होंने हिंदी साहित्य के इतिहास का बारीकी से अध्ययन किया है ।पंडित जी मौलिक कवि ,नाटककार ,टीकाकार आदि थे ।बहुत बचपन की याद है ,उनके द्वारा लिखी रामायण की टीका का प्रकाशन वेंकटेश्वर प्रेस बंबई से हुआ था और उसके पचास से अधिक संस्करण प्रकाशित हुए ।हमारे घर में उसका नित्य पाठ होता था ।उसके आठ खंड थे ।बाद में तुलसीकृत राम चरित मानस से परिचय हुआ तो पता चला कि रामायण की कथा के बहुत से अंश राम चरित मानस की कथा के अतिरिक्त पिरोये गए थे ।इसके पीछे शायद कारण यह रहा होगा कि तुलसी दास जी ने अपनी कथा को नाना पुराण सम्मत कहा है जबकि मिश्र जी ने संभवतः वाल्मीकि के रामायण को आधार ग्रंथ चुना ।भारतेंदु युग में हिंदी ब्रजभाषा,अवधी आदि से निकल कर नया रूप ग्रहण कर रही थी और मिश्र जी आधुनिक काल के उस काल खंड के एक प्रमुख रचनाकार थे ।

प्रगति मंगला के संस्थापक बलराम सरस ने कहा कि प्रगति मंगला मंच के चर्चित साहित्यिक अनुष्ठान *साहित्य के आलोक स्तम्भ* के क्रम में वरिष्ठ पत्रकार श्रेष्ठ कवि डॉ.मनोज रस्तोगी जी के संयोजन व सम्पादन में मुरादाबाद के अद्भूत कवि कीर्तिशेष विद्यावारिधि पं. ज्वाला प्रसाद मिश्र के कृतित्व व व्यक्तित्व पर चर्चा हुई। निसन्देह डॉ. मनोज रस्तोगी जी का प्रयास सराहनीय व शोधार्थियों के लिए लाभप्रद है।भारतेन्दु युग के कवि व विराट कृतित्व के स्वामी पं. ज्वाला प्रसाद मिश्र जीवनीकार, नाटककार, टीकाकार  समीक्षक व काव्यशास्त्री के रूप में पहचाने जाते हैं। उनके काव्यशास्त्र का ज्ञान स्तुत्य है।रस अलंकार समास आदि का ज्ञान उन्होंने अपने काव्य सृजन से दिया है जिसमें दोहे चौपाई भी हैं।तत्कालीन सामाजिक अभिरुचि के अनुसार गीतिशैली में लिखा उनका नाटक सीता का बनवास काफी लोकप्रिय हुआ। हिन्दी संस्कृत उर्दू बंगाली अंग्रेजी भाषा के जानकार कवि पं. ज्वाला प्रसाद ने संस्कृत के नाटकों का हिन्दी अनुवाद किया।जिनमें उन्होंने दोहा कवित्त सोरठा कुन्डलियां आदि विभिन्न छन्द विधानों का प्रयोग किया है। जीवनीकार के रूप में स्वयं उनके कुल की जीवनी पढ़ने को मिली। कवि की कलम रामायण की टीका लिखती है तब वह बाल्मीकि रामायण को प्राथमिकता देता है। महर्षि दयानंद के आर्य समाज से उनका विरोध रहा जिसके चलते उन्होंने दयानंद तिमिर भास्कर नामक 425 पृष्ठों का ग्रंथ लिखकर ख्याति प्राप्त की। विद्यावारिधि पं. ज्वाला प्रसाद मिश्र का लेखन काफी समृध्द है। उनके वारे में जानने समझने का अवसर मिला इसके लिए पुनश्च डॉ. मनोज रस्तोगी जी का साधुवाद।

गुना की साहित्यकार नीलम कुलश्रेष्ठ ने कहा कि जैसे 'विद्वान् सर्वत्र पूज्यते' सूक्ति कही जाती है वैसे ही 'विद्वान् सर्वदा पूज्यते' यह सूक्ति भी कही जा सकती है। इसी का प्रमाण यह हुआ कि 27 फरवरी पूर्वाह्ण 11 बजे से प्रगति मंगला मंच के पटल पर *साहित्य के आलोक स्तंभ* की बत्तीसवीं शृंखला में सन् 1862 ईस्वी में जन्मे मुरादाबाद की साहित्यिक व  सांस्कृतिक नगरी के प्रख्यात साहित्यकार और टीकाकार *विद्यावारिधि पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र जी* को इतने वर्षों बाद भी पुण्य-स्मरण किया गया। यह परिचर्चा न होती तो हम जैसे पाठक न जान पाते कि भारतेंदु युग में संस्कृत, हिंदी, अंग्रेज़ी, फारसी, गुजराती, बांग्ला जैसी भाषाओं के ज्ञाता इतना भी सशक्त कोई साहित्य का प्रेमी व पुरोधा  उत्पन्न हुआ और साहित्य साधना एवं सेवा के लिए समस्त जीवन सनातन धर्म की संवृद्धि में लगा दिया। उन्होंने अनेकानेक वैदिक, पौराणिक ग्रंथों की भाषा टीकाएँ लिखीं। सीता वनवास, अभिज्ञान शाकुंतलम्, वेणीसंहार,बिहारी सतसई इत्यादि नाटकों का अनुवाद करके हिंदी को और भी समृद्ध किया। इसी कारण आचार्य रामचंद्र शुक्ल, प्रताप नारायण मिश्र, क्षेमचदं सुमन, डॉ सोमनाथ गुप्ता जैसे मूर्धन्य साहित्यकारों ने अपने अपने आलोचनात्मक ग्रंथों में उल्लेख किया।
युवा साहित्यकार फ़रहत अली ख़ान ने कहा - साहित्य की महान विभूति पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र जी द्वारा रचित टीका ग्रन्थ जहाँ ख़ासे महत्वपूर्ण हैं, वहीं भारतेंदु के ज़माने में यानी हिंदी साहित्य के आरंभिक दौर में इन का लिखा नाटक और इन के द्वारा अनूदित दो नाटक इन को साहित्य की मुख्यधारा में महत्वपूर्ण स्थान दिलाने के लिए काफ़ी हैं, साहित्य के किसी भी विद्यार्थी के लिए ये बात सब से अहम है। फिर प्रताप नारायण मिश्र जी का लेख इन के लेखन की गुणवत्ता की सनद है।चूँकि इन्हें संस्कृत, हिंदी, उर्दू, फ़ारसी का भी अच्छा ज्ञान था, इस का प्रभाव इनके नाटकों की भाषा पर साफ़ नज़र आता है। भाषा प्रवाहमय और ज़्यादातर सरल है। मसलन- ‘लाचारी’, ‘पल’, ‘कल(आराम)’, ‘वास्ते’, ‘ज़हर’ जैसे आम-फ़हम अल्फ़ाज़ नज़र आते है।
कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि भारतेंदु जी के समकालीन और श्रेष्ठ अनुवादक, सनातन धर्म की कीर्ति ध्वजा फहराने वाले,संस्कृत के प्रकांड विद्वान तथा राग रागिनियों के ज्ञाता,सभी कुछ तो थे पंडित ज्वाला प्रसाद जी।उनके द्वारा रचित सीता वनवास नाटक के संवाद अत्यंत रोचक व दृश्यों में जान डालने वाले हैं। आम जनमानस को सदैव ही हर काल में धर्म,संस्कृति  तथा अतीत के गौरव की व्याख्या करते नाटक,कहानियां ,लोकगीत लुभाते आये हैं । पंडित जी के बारे में पढ़कर यह स्पष्ट है कि वह मुरादाबाद का गौरव हैं तथा जनमानस के प्रिय भी ।स्व. पंडित जी की साहित्य साधना को कोटि-कोटि नमन।
नयी दिल्ली की साहित्यकार आशा दिनकर आस ने कहा कि आज बहुत खुशी हुई जानकर कि पंडित ज्वाला प्रसाद जी एक बहुआयामी साहित्यकार और बहुभाषा के सिद्धहस्त रहे | आपका लेखन और कृतित्व अतुलनीय साहित्यिक विरासत है ।
रामनगर एटा के कृष्ण मुरारी लाल मानव ने कहा कि ऐसे आयोजन करके बहुत ही सराहनीय कार्य प्रगति मंगला मंच कर रहा है। आज की कड़ी में ज्वाला प्रसाद मिश्र जी के जीवन तथा व्यक्तित्व व कृतित्व की उपयोगी जानकारी दी गई।इसके लिए प्रगति मंगला मंच तथा मंच के सभी पदाधिकारीयों का हार्दिक अभिनंदन।
डिब्रूगढ़,असम की कल्पना सेन गुप्ता ने कहा कि स्मृति शेष ज्वाला प्रसाद मिश्र जी के बारे में जानकर अच्छा लगा।दिवंगत साहित्यकारों को उचित सम्मान और उनके विषय में सम्पूर्ण जानकारी देने के लिए प्रगति मंगला मंच का यह कार्य वास्तव में सराहनीय है ।
आगरा के साहित्यकार विजय चतुर्वेदी विजय ने कहा कि स्मृति शेष आदरणीय ज्वाला प्रसाद जी मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से अवगत हो कर अत्यंत हर्ष का अनुभव हुआ।विशेषतः उनकी अलंकारिक परिभाषाओं को पढ़ कर बहुत अच्छा लगा। नई पीढ़ी के रचनाकारों को इससे बहुत ज्ञान प्राप्त होगा।प्रगति मंगला मंच का आभार।
कुशीनगर की साहित्यकार रूबी गुप्ता ने कहा कि सर्वप्रथम आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद और वंदन अभिनन्दन जो इतनी अच्छी  जानकारी से सभी को अवगत कराया। सत्य कहा जाये तो  साहित्य और साहित्यकार का जीवन ही सबसे अमूल्य विरासत है। और खासकर जब   स्मृतिशेष ज्वाला प्रसाद जी जैसे  महानायक की बात हो तो यह बात कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि आज के युवाओं के लिए इतनी  सार्थक रचना को पढ़कर बहुत कुछ  सीखने का मौका मिलता है।

जौनपुर की विभा तिवारी ने कहा कि आज के इस साहित्य के आलोक स्तंभ की 32वीं कड़ी में मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्रा जी को स्मरण किया गया। ज्वाला प्रसाद मिश्र जी के लेखन,कृतित्व और व्यक्तित्व से सभी परिचित हैं ,उनके द्वारा रचित तमाम विधाओं को पढने जानने का अवसर मिला,मिश्र जी के साहित्यिक कृतियों को जानने के बावजूद इतनी बारीकी से जानने का अवसर आदरणीय गुरुश्रेष्ठ प्रेमीराम मिश्र जी, भाई बलराम सरस जी और डॉ मनोज रस्तोगी जी की वजह से प्राप्त हुआ. आपसभी को हृदय से आभार।

युवा साहित्यकार राजीव 'प्रखर' ने कहा कि कीर्तिशेष पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र जी एक साहित्यकार होने के साथ-साथ एक युग दृष्टा भी कहे जा सकते हैं। यही कारण है कि उनकी कृतियाँ नयी पीढ़ी के लिये भी श्रेष्ठ हैं।  निश्चित ही उनकी गणना कालजयी रचनाकारों में की जा सकती है।







 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार चन्द्रशेखर शर्मा मार्कण्डेय की कविता ---- आजादी की मशाल जलाकर आजाद कहलाया


 चन्द्र बन गया शिखर जिसका शिव बन जाता है ।

शिखर हिम का भी भारत के वीरों के नित झुक जाता है ।।

आजादी की मशाल जलाकर आजाद कहलाया  ।

चन्द्र शेखर आजाद आज हर दिल में समाया ।।

बालपन में देख अंग्रेजी तांडव मन बहुत घबराया ।

जन जन की त्रासदी का दुख चेहरे पर उभर आया ।।

दहाड़ उठा सिंह गर्जन से सारा जंगल गुंजाया ।।

आजादी की मशाल जला अंग्रेजों को सबक सिखाया ।।

जलियांवाला कांड जिसमें क्रुर हुकुमत के दर्शन होते थे ।

भगतसिंह बिस्मिल,अश्फाक जैसों को फिर साथ मिलाया ।।

छेड़ी जंग और अंग्रेजों को कदम कदम पर सबक सिखाया ।।

चन्द्र शेखर आजाद का नाम उभरकर सामने आया ।।

कांपती थी अंग्रेजी फौज जिस शेरे हिन्द के सामने ।।

चुगलखोर देशद्रोहियों ने शेर को मारने का प्लान बनाया ।

इलाहाबाद का अल्फ्रेड पार्क जो आजाद की कहानी है ।।

दुख भरी दास्तां और चुगलखोरी की बड़ी  निशानी है ।

जितने गोरे सामने आये सबको मार गिराया ।

वीरों के वीर महा वीर ने अकेले कहर मचाया ।।

बची एक गोली तो खुद का ही काम तमाम किया ।

अंग्रेजों का साहस आजाद के सामने काम न आया ।।

नाम अमर कर गया वह भारत मां का मतवाला ।

जन जन को सीख दे गया गोरों का पांव उखड़ने वाला ।।

उठो जागो और जंग करो भारत मां का श्रंगार करो ।

कह गया वीर बच्चे बच्चे से आजाद भारत होने वाला ।।

हुआ आजाद भारत और आज स्वतंत्र हम कहलाते ।

अपनी अपनी भूमिका हम देश हित में कैसे निभाते ।।

सोचो समझो और कर्म करो भारत को और मजबूत करो ।

आत्मनिर्भर भारत बनाकर विश्व शांति का संदेश प्रदान करो ।।

जय हिन्द जय भारत वंदेमातरम इसी बात की निशानी है ।। आज़ाद भगतसिंह राजगुरु सुखदेव बिस्मिल की निशानी है ।।

इस हिन्द को सुरक्षित रखना हर भारत वासी का काम है ।

जिसने ऐसी हिम्मत जगाई उसका चन्द्र शेखर आजाद नाम है ।।

✍️  चन्द्रशेखर शर्मा मार्कण्डेय

ग्राम महमदी अफजल पुर लूट

पोस्ट कौराला मंडी धनौरा

जनपद अमरोहा, उत्तर प्रदेश

244231 

मोबाइल नम्बर 8192078541