गुरुवार, 15 अप्रैल 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार रेखा रानी की रचना----मैं भुलाती रही , वो बुलाता रहा .....


 

मुरादाबाद मंडल के हसनपुर (जनपद अमरोहा ) निवासी साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की रचना---- दिल के दर्द दबाते रहिए , जख्मों को सहलाते रहिए.....


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मनोरमा शर्मा की कविता ------दीपक की लौ


 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक की कविता -----हां, मैंने तब देखा है .....


 

मुरादाबाद के साहित्यकार दुष्यन्त बाबा की कविता ---मच्छर और पुलिसकर्मी .......


 

मुरादाबाद मंडल के धामपुर (जनपद बिजनौर )की साहित्यकार चंद्रकला भागीरथी की रचना ---कलियुग में ऐसा समय आएगा किसी ने यह सोच न था ........


 

सोमवार, 12 अप्रैल 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष पंडित मदन मोहन व्यास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर 'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष पंडित मदन मोहन व्यास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर वाट्सएप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से 9 व 10 अप्रैल 2021 को दो दिवसीय ऑन लाइन आयोजन किया गया। कार्यक्रम में उनकी रचनाएं, चित्र तथा उनसे सम्बंधित सामग्री प्रस्तुत की गई। उल्लेखनीय है मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तंभ के तहत प्रत्येक माह के द्वितीय शुक्रवार - शनिवार को यह आयोजन किया जाता है। फरवरी में दुर्गादत्त त्रिपाठी जी और मार्च में कैलाश चन्द्र अग्रवाल पर यह आयोजन हो चुका है ।


कार्यक्रम में संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने पंडित मदन मोहन व्यास के जीवन एवं रचना संसार पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मुरादाबाद के मोहल्ला जीलाल के प्रतिष्ठित व्यास परिवार में 5 दिसंबर 1919 को  जन्में पंडित मदन मोहन व्यास को साहित्य और संगीत विरासत में मिला था ।उनकी मात्र दो काव्य कृतियां ही प्रकाशित हो सकीं। प्रथम काव्य कृति 'भाव तेरे शब्द मेरे' सन 1959 में प्रकाशित हुई जबकि 'हमारा घर' का प्रकाशन सन् 1978 में हुआ। आपके चार काव्य ग्रंथ 'त्रेता के अंतिम वीर', 'तुम्हारे गीत तुम्हीं को', मुक्त छन्दा, कुंडलिया शतक और निबंध संग्रह समेत अनेक रचनाएं अप्रकाशित हैं।  वह मुरादाबाद की विभिन्न साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्थाओं के संस्थापक सदस्य रहे हैं ।आप का निधन 23 मई 1983 को हुआ। उनसे सम्बंधित एक संस्मरण भी उन्होंने प्रस्तुत  किया -----

       जब दादा प्रोफ़ेसर महेंद्र प्रताप फफक फफक कर रो पड़े ........

लगभग 32 साल  से ज्यादा समय गुजर गया । बात सन 1988 की है। उस समय मैंने 'तरुण शिखा' नाम से संस्था बना रखी थी। इसके माध्यम से मैं साहित्यकारों की जन्मतिथि और पुण्यतिथि पर विचार गोष्ठी का आयोजन करता था । 5 दिसंबर को मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार, संगीतज्ञ, कलाप्रेमी पंडित मदन मोहन व्यास जी की जयंती होती है। व्यास जी के निधन के बाद पांच साल तक किसी भी संस्था ने कोई आयोजन करने की जरूरत नहीं महसूस की थी। विचार आया कि इस दिन कोई आयोजन किया जाए। इसे  विजय आलम जी के साथ साझा किया । युगबन्धु के सम्पादक कमलेश कुमार जी, रंगकर्मी धन सिंह धनेंद्र जी से विचार -विमर्श हुआ और तरुण शिखा, चेतना केंद्र और प्रयास नाट्य संस्था के संयुक्त तत्वावधान में संगीत, विचार व काव्य गोष्ठी का आयोजन निर्धारित हो गया। यह आयोजन हिंदू महाविद्यालय के अर्थशास्त्र व्याख्यान कक्ष में हुआ। आयोजन में स्मृतिशेष व्यास जी के लगभग सभी परिजन, अनेक मित्र, साहित्यकार, संगीतज्ञ और रंगकर्मी उपस्थित थे। दादा प्रो महेंद्र प्रताप जी कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे और विशिष्ट अतिथि आदरणीय माहेश्वर तिवारी थे। संचालन का दायित्व मेरे कंधों पर था । आयोजन उन्हीं की लोकप्रिय मां सरस्वती वंदना से आरंभ हुआ। उनके गीतों - भजनों की संगीत बद्ध प्रस्तुतियां हुईं। स्मृति शेष व्यास जी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर विचार व्यक्त किए गए और रचनाकारों ने काव्य पाठ भी किया । कार्यक्रम के अंत में अध्यक्ष दादा प्रो महेंद्र प्रताप जी का नाम उद्बोधन के लिए पुकारा गया । बोलने के लिए खड़े होते ही वह फफक फफक कर रोने लगे , आंखों से अश्रुधारा बहने लगी । यह देख कर उपस्थित सभी लोग भाव विह्वल हो गए और उनकी भी आंखे नम हो गई।  काफी देर बाद स्थिति सामान्य हुई।  भर्राए कण्ठ से दादा अधिक नहीं बोल सके। आज भी जब इस आयोजन का स्मरण होता है तो मेरी आंखें भी नम हो जाती हैं और मन विचलित । मेरा तो उनसे संपर्क /संबंध  महज औपचारिक ही रहा ।  राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति और साहित्यकारों के आवास पर होने वाली कवि गोष्ठियों में ही उन्हें देखा और सुना था। अंतिम बार उन्हें 14 सितंबर 1982 को राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति के तत्वावधान में आयोजित राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन जन्मशती समारोह में हुए कवि सम्मेलन में अध्यक्ष के रूप में सुना था। अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए उन्होंने रचना सुनाई थी -----

    हूं अपेक्षित पर उपेक्षित ही रहूंगा

    परिचितों से भी अपरिचित ही रहूंगा 

    कौन से अति पुण्य का फल यह मिला 

     उपकृतों से  भी अनुपकृत ही रहूंगा

     खेल ये कैसा ! जिसे मैं -

     जीत कर भी हाय! हारा !!


उनके धेवते अभय शर्मा ( सुपुत्र शशिबाला शर्मा ) ने पंडित मदन मोहन व्यास  द्वारा रचित सरस्वती वंदना उन्हीं की हस्तलिपि में प्रस्तुत की ------

उनके पुत्र मनोज व्यास ने यही सरस्वती वंदना अपने स्वर में प्रस्तुत की -----


 उनके अनुज बृज गोपाल व्यास ने उनकी कंठस्थ रचनाएं और कुंडलियां प्रस्तुत कीं -----



 उनके प्रपौत्र कार्तिकेय व्यास (पुत्र मुकुल व्यास पुत्र रमाकांत व्यास) ने पंडित मदन मोहन व्यास की रचनाएं प्रस्तुत कीं -----



     


प्रख्यात साहित्यकार यशभारती माहेश्वर तिवारी ने कहा कि मुरादाबाद के साहित्यिक जगत की अल्पज्ञात या विस्मृत प्रतिभाओं की सूची बहुत बड़ी है ।फिर वे पंडित दुर्गादत्त त्रिपाठी हों ,बहोरीलाल लाल शर्मा हों या प्रवासी जैसे कई अन्य लोग  स्मृति शेष पंडित मदन मोहन व्यास एक ऐसे ही गीत -गंधर्व रहे हैं जो अपने समय में साहित्य तथा काव्य मंच के क्षितिज पर चमकते नक्षत्र रहे ।निजी जीवन के संघर्ष ने उनके रचनाकार को कुछ ऊर्जा दी तो तोड़ने ,हताश और लगभग पराजय की हद तक खींच कर ले जाने की कोशिश भी की ।समकालीन हिंदी के विश्रुत कवि /गीतकार वीरेंद्र मिश्र ने अपनी एक रचना में लिखा है -जब जब कंठावरोध होता है /और अधिक सृजन बोध होता है ,यह बीजमंत्र व्यास जी का भी था और इससे प्रेरित लेखन के फलस्वरूप अपने समकालीनों में ,देवराज दिनेश ,मधुर शास्त्री ,क्षेमचंद सुमन आदि की आत्मीय अंतरंगता के सदस्य भी रहे ।इसकी जानकारी मुझे स्वयं दिनेश जी  ने दी।लेकिन संकोची स्वभाव के कारण अपने ही रचे नंदन कानन के वे सीज़र बन गये और स्थानीय ब्रूटसों की साजिश के शिकार हो गये।उनकी अतिशय विनम्रता ने भी उनकी प्रतिभा को दबोचे रखा ।।अब भोलेपन और विनम्रता का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है कि अपने ही अभिनंदन समारोह के लिए चंदा दिलवाने के लिए अति उत्साही युवकों के आग्रह पर वे रात के दस बजे चौमुखा पुल पर मुझे मिले और मेरे हठपूर्ण आग्रह पर वहाँ युवकों को छोड़कर कटघर पचपेड़ा के लिए वापस गए । एक सफल अध्यापक, अभिनेता , संगीतज्ञ , संपादक,व्यासजी की प्रतिभा श्रद्धेय दुर्गा दत्त त्रिपाठी जी को छोड़कर  अन्य अपने किसी समकालीन से कम नहीं थी लेकिन जितना लिख सकते थे उतना लिख नहीं पाये और जितना लिखा वह सब प्रकाशित नहीं हो पाया। स्थानीयता की सीमा में ही संतुष्ट रह जाने के कारण भी उनकी प्रतिभा को पूर्णतः प्रस्फुटन का अवसर नहीं मिल पाया   फिर भी जितना कुछ उपलब्ध है उसका ईमानदार मूल्यांकन हो सके तो उनकी प्रतिभा और कृतित्व को एक सार्थक पहचान मिल सकेगी ।
केजीके महाविद्यालय की हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ मीरा कश्यप ने कहा कि कवि  व्यास जी का कोमल हृदय जीवन के झंझावातों से टकराता है तो उसके हृदय में दुःख ,पीड़ा ,टीस ,वेदना भावाभिव्यक्ति के रूप में कविता बनकर स्वतः ही फूट पड़ती हैं ,वह  भाव कहीं प्रकृति के सुकुमार रूप में दिखाई देती है तो कहीं व्यथित समाज के प्रति संवेदनशील रूप धर कविता में अवतरित होती है ।
मथुरा के प्रभारी सहायक निदेशक (बचत) एवं प्रख्यात साहित्यकार डॉ राजीव सक्सेना ने कहा कि उनका संगीतकार व्यक्तित्व उनके कवि व्यक्तित्व को भी प्रभावित करता था। उनका संगीत स्वत: उनकी कविताओं व गीतों में समाविष्ट हो जाता था। यही कारण है कि उनके सम्पूर्ण काव्य में संगीत तत्व की प्रधानता है जो संगीतात्मकता और गेयता उनकी रचनाओं में है वह अब दुर्लभ है।
ग्रेटर नोएडा के साहित्यकार मदन लाल वर्मा क्रांत ने कहा कि व्यास जी छन्द शस्त्र, भाषा शास्त्र, दर्शन आदि अनेकानेक साहित्यिक अंगो उपांगों के मर्मज्ञ कवि के साथ-साथ भारतीय-संगीत के ज्ञाता हार- मोनियम, तबला, सितार, मृदंग आदि न जाने कितने ही वाद्य यन्त्रों में दक्ष थे । यही नहीं वह कुशल अभिनेता भी थे । उन्होंने व्यास जी से अंतिम भेंट और उनकी अंतिम रचना भी प्रस्तुत की ।
साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार ने कहा कि व्यासजी में अभिनय क्षमता भी जबरदस्त थी। करुणा और वात्सल्य भी उनमें कूट कूट कर भरा था। मेरे अंतस में उमड़ रही काव्य घटाओं को, व्यासजी के मार्ग दर्शन और प्रेरणा से ही बरसने का मौका मिला।एक संस्मरण सुनाते हुए उन्होंने कहा ----पार्कर कॉलेज में उन दिनों,हर वर्ष,फर्स्ट डिविजनर्स डे मनाया जाता था,जिसमे ईसाई समुदाय के, बरेली मंडल के प्रमुख,जिनको बिशप कहा जाता था, मुख्य अतिथि होते थे। कई दिन पहले से इस कार्यक्रम की तैयारी की जाती थी। यह शायद 1972 या 73 की घटना है।बिशप महोदय के स्वागत में,एक स्वागत गीत,आदरणीय व्यासजी के निर्देशन में,तैयार किया जा रहा था। उसके मुख्य बोल थे " खुश है धरती गगन ,आपके स्वागत में" मैंने उस गीत की एक पैरोडी बना डाली,जिसकी दो पंक्तियां मुझे आज भी याद हैं "स्कूल का पुता भवन,आपके स्वागत में, पढ़ना ,लिखना दफन,आपके स्वागत में" आस पास बैठे साथियों को इसका पता चल गया और उन्होंने आदरणीय व्यासजी तक,ये बात पहुंचा दी।अगले दिन उन्होंने,मुझे स्टाफ रूम में बुलाया। मैं डरते डरते उनके पास गया।," ये तुमने लिखा है"उन्होंने कड़क आवाज में पूछा।मैंने कांपते हुए,स्वीकृति में सिर हिलाया।"लिखते हो तो डरते क्यों हो।जो चाहते हो,उसे हिम्मत के साथ करोगे,तभी आगे बढ़ पाओगे।"इतना कहकर उन्होंने,मेरी पीठ थपथपाई।मेरी आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े।आज,लगभग 50 साल बाद भी,जब परिस्थिति जन्य व्यथाओं से मन विचलित होता है,उनके ये शब्द,मुझे संतुलन प्रदान करते हैं।
रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा कि व्यास जी में हास्य का रस बिखेरने की प्रभावशाली क्षमता थी ।श्रोताओं और पाठकों को मनोविनोद के साथ-साथ कुछ चुभती हुई सीख दे जाना यह आपकी कुंडलियों की विशेषता रही। सामाजिक विसंगतियों पर उनकी कलम बहुत अच्छी तरह से चली है।
वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा प्रेम के सहज पुजारी के रूप में उनके गीत उनका बिम्ब खीचते हैं। अध्यात्म के स्वर सामयिक बिडम्बनाओं को भी उद्घोषित करते गीत अपनी सांस्कृतिक आस्थाओं के स्वरूप का मोहक चित्र उकेरती परिलक्षित होते हैं।
वरिष्ठ साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा कीर्तिशेष पंडित मदन मोहन व्यास   मानवीय संवेदनाओं को स्वर देने वाले कवि व संगीतज्ञ थे। उनकी विभिन्न रचनाओं को पढ़कर यही कहा जा सकता है कि उन्हें साहित्यिक जगत में वह पहचान नहीं मिल पाई जिसके वह अधिकारी थे।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय अनुपम ने कहा मदन मोहन व्यास कला, संगीत, साहित्य के अद्भुत मर्मज्ञ, अपूर्व अध्यापक,अपने जीवन काल में साहित्यिक समाज और समारोहों के अनिवार्य अतिथि थे। यही नहीं वे मुरादाबाद में संगीत , साहित्य एवं शिक्षा-संस्कृति की प्रभावशाली परम्प
राओं के संस्थापकों में एक थे ।

जनवादी रचनाकार
शिशुपाल सिंह मधुकर ने कहा कि उनकी हर कविता में सामाजिक  विद्रूपताओं , समस्याओं और अपसंस्कृति के प्रति चिंता के दर्शन होते हैं। समाज में फैले भृष्टाचार के प्रति भी व्यास जी खासे चिंतित दिखाई देते हैं । उन्होंने हास्य के माध्यम से भी अपने विचारों को अभिव्यक्त किया है परंतु वहाँ भी समाज की किसी न किसी समस्या को उकेरा है। 
दिल्ली के साहित्यकार
आमोद कुमार ने कहा कि मुरादाबाद के कटघर पचपेड़ा निवासी स्मृतिशेष पं मदन मोहन व्यास विलक्षण प्रतिभाशाली गीतकार थे। साधारण कुर्ता धोती धारण कर साईकिल पर चलने वाले सरल और हँसमुख व्यक्तित्व के स्वामी पं मदन मोहन व्यास स्थानीय पारकर इंटर कालेज मे शिक्षक थे। कालेज से लौटते समय घर जाने से पहले वह प्रायः अमरोहा गेट पर स्थित गोविन्द जी की चाय की दुकान पर कुछ देर के लिए रुकते थे जहाँ उनका सानिध्य प्राप्त करने का अवसर हमें मिलता था।उनके कालजयी मधुर अलंकृत गीत हिन्दी साहित्य की अनमोल धरोहर हैं, उनके प्रसिद्ध गीत " भाव तेरे, शब्द मेरे ,गीत बनते जा रहे हैं ' को सुनकर सुप्रसिद्ध कवि गोपालदास नीरज ने उसकी भूरि भूरि प्रशंसा की थी, मैने ये गीत व्यास जी के श्रीमुख से प्रथम बार जी.जी हिन्दु इंटर कालेज के हाल मे हुए एक कवि सम्मेलन में सुना था। व्यास जी का एक अन्य गीत काव्य शिल्प का सुन्दरतम उदाहरण है जिसे वह अक्सर सुनाया करते थे, जिसकी प्रथम पंक्ति है--- खिले रसभरे नीरजों को "निरख कर मधुप झूम झुक उठ रहे,मिल रहे हैं"।नए शब्दों को गढ़ना और समान्य बोलचाल के शब्दों मे हास्य भर देना उनके हँसमुख स्वभाव का परिचायक था। कीर्तिशेष दादा प्रो. महेन्द्र प्रताप ब्यास जी को शब्द शिल्पी कहते थे। पं मदन मोहन ब्यास जी के संगीतमय मधुर गीत और उनके पढ़ने के अंदाज़ की याद आते ही उनका चेहरा सामने आ जाता है, मुरादाबाद मे मेरे निवास पर हुई काव्य गोष्ठी मे उनकी उपस्थिति की यादें भी ताज़ा हो जातु हैं, हिन्दी साहित्य आकाश मे मुरादाबाद के गौरव पं मदन मोहन ब्यास सदैव दीप्तिमान नक्षत्र सम अपनी अप्रतिम छटा बिखेरते रहेंगे।

कवयित्री
डॉ इंदिरा रानी ने कहा कि स्मृतियों के झरोखे से जब मैं अतीत में झाँकती हूँ तब आदरणीय व्यास जी से संबंधित अनेक प्रसंग चलचित्र की भाँति मेरे चक्षु पटल के समक्ष साकार हो उठते हैं. मेरे अग्रज आदरणीय आमोद कुमार जी साहित्य जगत से जुड़े रहे हैं. उनके प्रयासों से हमारे निवास पर अनेक कवि गोष्ठियां, संगीत गोष्ठियां आयोजित होती रहती थीं. व्यास जी को सुनने का अवसर मिला. हमारा परिवार व्यास जी से बहुत प्रभावित हुआ. व्यास जी का शुभ आगमन चौमुखl पुल स्थित हमारे निवास पर अनेक बार हुआ. जब भी व्यास जी आते, हम सब उनके श्रीमुख से मधुर गीत सुनते. भाव तेरे शब्द मेरे, खिले रस भरे नीरज, नर को तकती नर्तकी आदि अनेक गीत और कुंडलियां हमें कंठस्थ हो गई थीं, जिनका प्रयोग हम अंत्याक्षरी प्रतियोगिता में करते थे और पुरस्कृत होते थे. महाकवि निराला द्वारा रचित सरस्वती वंदना 'वर दे वीणा वादिनी वर दे' और महा कवि जय शंकर प्रसाद के गीत 'बीती विभावरी जाग री' बहुत ही मधुर कंठ से व्यास जी सुनाते थे. कालान्तर में अंतरा में व्यास जी को सुनने का अवसर मिलता रहा. सन 1980 या 81 में जब मेरे पति डी. ए. वी. कॉलेज, अमृतसर में चित्रकला विभाग में प्रवक्ता थे, एक दिन अचानक व्यास जी हमारे घर आए. उन दिनों फोन की सुविधा नहीं थी. व्यास जी को अमृतसर में कोई काम था. उनका आना एक सुखद आश्चर्य था. उन्होंने सुझाव दिया कि व्यास जी के अप्रकाशित साहित्य को प्रकाशित कराया जाय. साहित्य प्रेमियों को उनका साहित्य पढ़ने का अवसर मिलेगा. शोधार्थी उन पर शोध कर सकेंगे।
चर्चित साहित्यकार
डॉ कृष्ण कुमार नाज ने कहा श्रद्धेय पंडित मदनमोहन व्यास जी से मेरी भेंट तो नहीं है, क्योंकि मैं उस समय गांव में रहता था। आज साहित्यिक मुरादाबाद पर उनका साहित्य पढ़ा तो बहुत अच्छा लगा। व्यास जी ने जहां सुंदर बाल रचनाएं लिखी हैं, वहीं उनकी रचनाओं में देशप्रेम, समाजप्रेम और प्रेम की संवेदनशील वैयक्तिकता, इन सभी पहलुओं के दर्शन होते हैं। सामाजिक सरोकार पग-पग पर उनकी रचनाओं में दृष्टिगोचर होते हैं।उनकी रचनाएं युवा साहित्यकारों के लिए मार्गदर्शक की भूमिका में नज़र आती हैं।
युवा रचनाकार
राजीव प्रखर ने कहा कीर्तिशेष मदनमोहन व्यास जी आम व्यक्ति की वेदना को शिष्ट, सौम्य व गंभीर व्यंग्य के माध्यम से साकार करने में सफल रहे हैं। उनके व्यंग्य में विद्यमान यह शालीनता, सौम्यता व गंभीरता वर्तमान समय के तथाकथित मंचों पर परोसे जा रहे तथाकथित व्यंग्य को सही दिशा दिखाने में पूर्णतया सक्षम  है।
उनके पुत्र
रमाकान्त व्यास ने कहा कि पंडित मदन मोहन व्यास के गीत एवं कविताएं मुरादाबाद तक ही सीमित नहीं थीं, वह भारत के श्रेष्ठ और प्रतिष्ठित कवियों में गिने जाते थे। भारत के प्रसिद्ध गीतकार कवि उनका आदर करते थे ।
धामपुर के साहित्यकार
डॉ अनिल शर्मा अनिल ने कहा व्यास जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से बाल साहित्य में भी अपूर्व योगदान दिया है ।
हरि प्रकाश शर्मा ने कहा कि उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था।  साहित्य के प्रति,उत्साहित और प्रेरित करने वाले उन जैसे व्यक्तित्व बहुत मुश्किल से मिल पाते है।
वरिष्ठ साहित्यकार
अशोक विश्नोई ने कहा  स्मृति शेष मदन मोहन व्यास जी एक उच्च स्तरीय कवि थे,उनके गीत आज भी तरोताजा हैंं। संस्मरण प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा ---बात सन 1967 की है मैं एक मासिक पत्रिका" ह्रदय उदगार" का प्रकाशन करने जा रहा था, जिसका सम्पादक मैं स्वयं था।तब मैंने पत्रिका के संरक्षक हेतु स्मृति शेष मदन मोहन व्यास जी से आग्रह किया , मुझे यह कहने में कोई दुराव नहीं कि एक बार कहने पर ही उन्होंने सहर्ष मेरा निवेदन स्वीकार कर लिया वह कितने विनम्र थे यह इस बात से ज्ञात हो जाता है।मैं धन्य हो गया।और वह मेरे निवास स्थान पर कार्यालय के उद्घाटन में बरसात होने के बाद भी मेरे यहाँ पधारे और पत्रिका की रुप रेखा पर चर्चा की।वह अनमोल क्षण मेरे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण थे मैं आज भी उन क्षणों  को याद करता हूं तो आनंद की अनुभूति होती है।
कवयित्री
हेमा तिवारी भट्ट ने कहा इस कार्यक्रम में प्रस्तुत स्मृतिशेष पण्डित मदन मोहन व्यास जी और उनके अन्य परिवारीजनों की भी वीडियो व अन्य प्रस्तुतियों को देखकर यह आभास हो रहा है कि संगीत और साहित्य की प्रतिभा व्यास परिवार को आनुवांशिक प्राप्त है और इस आनुवांशिक प्रतिभा को सबने अपने पुरूषार्थ और अभ्यास से और पोषित किया है।पण्डित मदन मोहन व्यास जी को समर्पित इस आयोजन के माध्यम से हम ऐसे व्यास परिवार के बारे में जान पाये,जो विलक्षण प्रतिभाओं से युक्त है।हमने एक ऐसे साहित्यकार की रचनाओं की यात्रा की जिसने हास्य, व्यंग्य, विमर्श के ताने बाने में विभिन्न विषयों पर छंद और शब्द चातुर्य के साथ लिखा,लेकिन केवल लिखने के लिए नहीं लिखा बल्कि जीने के लिए लिखा।काश आज की फेसबुकी नयी पीढ़ी  स्मृति शेष श्री व्यास जी के इस संदेश को आत्मसात कर पाये और जीवन के लिए गीत गाने के पथ पर आगे बढ़े।

वयोवृद्ध संगीतज्ञ रामावतार रस्तोगी ने भावुक होकर उनसे सम्बंधित संस्मरण सुनाए ----


 

युवा रचनाकार दुष्यन्त बाबा ने उनके पुत्र मनोज व्यास द्वारा सुनाए संस्मरण प्रस्तुत किये।तत्कालीन समय में मुरादाबाद स्थित पार्कर कॉलेज शिक्षा के क्षेत्र में बहुत अग्रणी नाम हुआ करता था। जिले के लगभग समस्त वरिष्ठ अधिकारियों के बच्चे अक्सर इसी विद्यालय में पढ़ते थे। उस समय में अनुशासन के लिए विद्यार्थियों की पिटाई एक स्वाभाविक प्रक्रिया थी। श्रद्धेय व्यास जी ने एक बच्चे को (जिसके पिता मुरादाबाद के जिलाधिकारी थे) पीट दिया। इससे क्रुद्ध होकर जिलाधिकारी महोदय सीधे विद्यालय में आ गए। सारा वृतांत प्राचार्य को सुनाया। प्राचार्य जी ने व्यास जी को अपने कक्ष में बुलाया। और पूछा कि "आपने इनके बेटे को मारा...ये यहां के जिलाधिकारी हैं" व्यास जी मे आत्मबल से भरपूर जबाब दिया। कि " मैंने इनके बेटे को नही मारा..विद्यालय के सभी विद्यार्थी मेरे बेटे है। और यदि ये इनका बेटा है तो विद्यालय से ले जाएं"। ऐसा प्रतिउत्तर पाकर जिलाधिकारी महोदय बहुत लज्जित हुए और उन्होंने स्वयं की गलती के लिए खेद प्रकट किया। ऐसे थे! परम् श्रद्धेय मदन मोहन व्यास जी।
पंडित मदन मोहन व्यास की बहन साहित्यकार एवं संगीतज्ञ बाल सुंदरी व्यास (विशाखा तिवारी) ने कहा  मैं सबसे छोटी और भाई सबसे बड़े थे बहुत दुलार करते थे शिक्षक बहुत  अच्छे थे। मैं बारहवीं कक्षा में थी तब मैंने भाई से संस्कृत पढी ,जो भी उनसे एक बार पढ़ लेता उसे तुरंत याद हो जाता था। उनके पढ़ाये हुए बच्चे बहुत आगे ....बहुत आगे बढ़े। वह मुझे बहुत प्यार करते थे, गोदी में चढ़ाते थे मुझे। हम दोनों मिलकर खूब कीर्तन किया करते थे। बहुत सुरीले कंठ वाले थे । "पूजा का सामान संजोले सखी, प्रिय घर आने वाले हैं "बहुत सुंदर गीत था उनका। मुझे बहुत पसंद था ।  साहित्यिक रचनाओं के द्वारा भाई को याद करके बहुत अच्छा लगता है ।
साहित्यकार सीमा वर्मा ने कहा कि मेरा विवाह स्वर्गीय श्री पूरन लाल वर्मा जी के सबसे बड़े सुपुत्र आशीष कुमार के साथ सन 1996 में हुआ था  ।  परिवार का वातावरण संगीतमय व साहित्यिक था और अपने पितातुल्य ससुर जी के साथ जो भी सुअवसर मुझे प्राप्त होता था वह अपने जीवन से जुड़े संगीत प्रेमियों के विषय में मुझे बताते थे ।  व्यास परिवार के साथ हमारे परिवार का संबंध बेहद गहरा है यह बात विवाह के अगले दिन ही मुझे पता चल गई थी ।  कटघर वाले ताऊजी का जिक्र पिताजी उठते बैठते करते थे ।  हम फरीदाबाद में रहते हैं पर जब भी मुरादाबाद जाते तो  पिताजी फौरन कटघर फोन करके ताऊ जी को बताते कि आशीष और उसकी बहू आए हैं और कभी-कभी ताऊ जी से मिलने का अवसर भी मुझे प्राप्त होता । मुंबई वाले ताऊ जी के यहाँ भी अपने सास ससुर के साथ मैंने प्रवास किया ।  पिताजी की अपनी कोई बहन नहीं थी । इस क्षति की पूर्ति परम श्रद्धेय बुआजी ( बालसुंदरी तिवारी ) ने की । वे मेरे श्वसुरजी को राखी बाँधती रहीं हैं । इस प्रकार मेरे पिताजी ( श्वसुरजी ) स्वर्गीय पूरनलाल वर्मा जी व्यास परिवार में सदैव सबसे छोटे भाई के रूप में प्रतिष्ठित रहे और स्नेह पाते रहे ।  समूह में  मदन मोहन व्यास जी के विषय में जब मैंने  पढ़ना शुरू किया तो मन एक सुखद अनुभूति से भर गया कि इस महान  व्यक्तित्व के  साथ तो मेरा परिवार भी जुड़ा हुआ है ।
साहित्यकार मुजाहिद चौधरी ने कहा कि   स्वर्गीय पंडित मदन मोहन व्यास जी के व्यक्तित्व की जानकारी,उनके जीवन परिचय और कृतियों पर सुंदर लेखों को पढ़ कर मुझे भी गौरवपूर्ण एहसास हुआ । इस सब के लिए निश्चित तौर पर साहित्यिक  मुरादाबाद और उसके सभी सम्मानित साहित्यकार/सदस्य बधाई के पात्र हैं ।
दयानन्द आर्य कन्या महाविद्यालय के प्रबंधक उमाकांत गुप्ता ने कहा कि मेरी याद बार बार मुझे झकझोर रही है। श्री मदनमोहन व्यास जी आठवें दशक में  दयानंद आर्य कन्या डिग्री कालेज मुरादाबाद के प्रांगण में वार्षिक कार्यक्रम का संगीत का कार्य क्रम का निर्देशन किया था। मुरादाबाद के ही नहीं  वे पूरे जनपद व प्रदेश के रत्न थे। उन्हे मेरा श्रद्धापूर्वक नमन ।
गजरौला से रेखा रानी ने कहा कि श्रद्धेय व्यास जी से मेरा कोई व्यक्तिगत परिचय नहीं रहा  इस सम्मनित मंच पर आदरणीय मनोज  रस्तौगी जी द्वारा सांझा की गई सामग्री के माध्यम से वास्तव में बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त हुई हैं । अति सुन्दर वन्दना पढ़ी, ज्यों रवि की प्रथम किरण अद्भुत रचना आजा तुझसे होली खेलूं , वास्तव में  सराहनीय हैं ।
कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा आयोजन में शामिल सभी साहित्यकारों के विचार पढ़कर बहुत जानकारी मिली ।साहित्यिक मुरादाबाद बधाई का पात्र हैं जिसके माध्यम से हम लोगों को भी प्राचीन धरोहरों के दिव्य दर्शन होते हैं।
कवयित्री डॉ शोभना कौशिक ने कहा कि  व्यास जी की रचनाओं में  देश प्रेम , तत्कालीन समाज का यथार्थ,और प्रेम की संवेदनशीलता के दर्शन मििलता है ।

जनपद बिजनौर की साहित्यकार चंद्र कला भागीरथी ने कहा साहित्यिक मुरादाबाद में प्रस्तुत उनके सन्दर्भ में बहुत कुछ जानकारी मिली । इसके लिए मैं साहित्यिक मुरादाबाद की आभारी हूँ । उनकी रचनायें मानवीय  संवेदनशीलता से ओतप्रोत हैं।

अंत में आभार व्यक्त करते हुए पंडित मदन मोहन व्यास के सुपुत्र मनोज व्यास ने कहा कि  मुरादाबाद  समूह द्वारा पिताश्री स्मृतिशेष श्री मदन मोहन व्यास  द्वारा रचित कृतियों भाव तेरे शब्द मेरे , हमारा घर तथा अप्रकाशित रचनाओं तथा दुर्लभ चित्र प्रस्तुत करके उनका पुनः स्मरण कराया गया साथ ही व्यास जी के साहित्य और संगीत के क्षेत्र में योगदान पर साहित्य जगत और उनके संपर्क में आए महान विभूतियों के द्वारा उनके साथ बिताए पल और उनके साहित्य पर चर्चा करके जो प्रकाशित होने से रह गया है वह प्रकाशित होकर सबके बीच में पहुंचे ऐसा कार्य करने की प्रेरणा मिली है। अति शीघ्र समस्त साहित्य आपके बीच मैं लाने का प्रयास करूंगा ।

कार्यक्रम में डॉ प्रीति हुंकार, प्रदीप गुप्ता (मुम्बई), अटल मुरादाबादी(नोएडा), कंचन खन्ना,  अतुल कुमार शर्मा, श्रुति शर्मा,  सीमा रानी,  ने भी हिस्सा लिया। 








मंगलवार, 6 अप्रैल 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल के साहित्यकार (वर्तमान में गाजियाबाद निवासी ) डॉ राहुल उठवाल के सम्पादन में गाजियाबाद से प्रकाशित ऑनलाइन त्रैमासिक पत्रिका "ई -प्रदीप" का प्रवेशांक (जनवरी-मार्च 2021 ) । इस पत्रिका के संरक्षक हैं एमजीएम महाविद्यालय सम्भल के पूर्व प्राचार्य डॉ डीएन शर्मा .....


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दुर्लभ चित्र : मुरादाबाद के साहित्यकार और रंगकर्मी


 

सोमवार, 5 अप्रैल 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र का गीत---- इन उदास खंडहर वीरानों में .... उन्हीं के सुपुत्र अतुल मिश्र के स्वर में ...

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वाट्स एप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक रविवार को वाट्स एप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है । इस आयोजन में समूह में शामिल साहित्यकार अपनी हस्तलिपि में चित्र सहित अपनी रचना प्रस्तुत करते हैं । रविवार 4 अप्रैल 2021 को आयोजित 247 वें आयोजन में शामिल साहित्यकारों डॉ मनोज रस्तोगी, चन्द्रकला भागीरथी, प्रीति चौधरी, अटल मुरादाबादी , रेखा रानी, शिव कुमार चंदन, रंजना हरित,डॉ शोभना कौशिक, राजीव प्रखर, शिशुपाल सिंह मधुकर , मीनाक्षी ठाकुर, श्रीकृष्ण शुक्ल, सूर्यकांत द्विवेदी, सन्तोष कुमार शुक्ल सन्त, इंदु रानी जी, अनुराग रोहिला, डॉ प्रीति हुंकार और अशोक विद्रोही द्वारा प्रस्तुत रचनाएं उन्हीं की हस्तलिपि में ------


 

















रविवार, 4 अप्रैल 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार बन्शी लाल दिवाकर की कविता ----कोरोना


 बहुत आतंक वरपा रखा था

आतंकियों ने 

आये दिन बम विस्फोट हत्या 

धमकियों ने 

बहुत समझाता रहा है भारत 

बुरा "कोरोना "

नहीं माने तो लो भुगतो अब

जो भी  होना 

अपनों को ही अपनों से कर 

दिया है अलग 

आतंकी हत्यारे सब शांत हैं

अलग -थलग 

इतना ही नहीं, है छूने भर से 

मौत बुलावा 

मौन हो गये हैं मंदिर मस्जिद

गिरजा काबा 

घरों में घुस गए जान बचाने 

बदमाश लठैत  

"कोरोना " ने मारा जब जमा 

भीड़ के बेंत

उनमें से कुछ बीमार हुये कुछ 

मर गये रोगी 

अब तो समझे वही  "कोरोना "

जो भुक्तभोगी 

अब भी वक़्त है, घरों में रहो 

गलत करो ना

बाहर से आकर तुरंत साबुन 

से हाथ धोना

सभी देशवासियों से सरकार

का यही कहना 

"कोरोना "को अगर हराना है 

तो घरों में रहना

कुछ और दिनों की बात बस 

कोई न होगा रोगी 

देश करेगा विकास,

खुशियों की बरसात होगी 

✍️ बन्शी लाल दिवाकर 

सी-143, अवन्तिका कालोनी,

निकट साई पब्लिक स्कूल,पार्क एवं वाटर टैंक

कांठ रोड, मुरादाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत



मुरादाबाद की सहित्यिक संस्था "हिन्दी साहित्य संगम" की ओर से गूगल मीट पर आयोजित काव्य-गोष्ठी


 मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था "हिन्दी साहित्य संगम" की ओर से  रविवार 4 अप्रैल 2021 को गूगल  मीट पर काव्य-गोष्ठी का आयोजन  किया गया। डॉ. रीता सिंह द्वारा प्रस्तुत माँ शारदे की वंदना से आरंभ हुए  कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ  साहित्यकार  ओंकार सिंह 'ओंकार' ने की जबकि मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवयित्री डॉ.  मीना कौल रहीं। संचालन राजीव प्रखर ने किया। 

कार्यक्रम में ओंकार सिंह ओंकार ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति इस प्रकार की - 

तपाकर ख़ुद को सोने -सा निखरना कितना मुश्किल है । 

ख़ुद अपनी ज़िंदगी पुरनूर करना कितना मुश्किल है ।।

 है आसाँ ख़ून से अपनी इबारत आप ही लिखना, मुकम्मल शेर में अपने उतरना कितना मुश्किल है ।।

महाराजा हरिश्चंद्र महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. मीना कौल ने अपनी अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार की - 

 घर मेरे लाना सब मिल कर। 

 फूल प्रेम के चुन- चुन कर।

 संग अपने लाना खुशबू जरा,

 रंग मुझे चाहिए सपनों भरा।

वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ. मनोज रस्तोगी का कहना था -

  सुन रहे यह साल आदमखोर है। 

  हर तरफ चीख, दहशत शोर है।

  मत कहो वायरस जहरीला बहुत,

  आदमी ही आजकल कमजोर है।

  कवि अटल मुरादाबादी का कहना था - 

   मोहन की छवि भाय रही अति गोकुल ग्वाल हुए बलिहारी। 

   सोहनि सूरत मोहनि मूरत मोहन की छवि है अति प्यारी।

   नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम का कहना था - पुष्प ने तो नित्य भँवरों को लुभाया, 

प्यार अपना तितलियों पर भी लुटाया। 

कल्पना थी तूलिका थी रंग भी थे, 

खुशबुओं का चित्र फिर भी बन न पाया।

युवा कवि राजीव 'प्रखर' ने अपनी अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार की-

दिलों से दूरियाँ तज कर, नये पथ पर बढ़ें मित्रोंं। 

नया भारत बनाने को, नयी गाथा गढें मित्रोंं। 

खड़े हैं संकटों के जो, बहुत से आज भी दानव,

सजा कर श्रंखला सुदृढ़, चलो उनसे लड़ें मित्रोंं।

डॉ. रीता सिंह ने कुछ इस प्रकार कहा - 

कुछ धानी कुछ पीत वर्ण की पहने बाली कनक - क्यार। 

आम्र डाल पर झूमे म॔जरी कोकिल गाए बसंत बहार।

जितेन्द्र जौली ने कुछ यूँ कहा -  

देख चुनावी दर जो, लगा बांटने नोट। 

उसे कभी मत दीजिए, अपना कीमती वोट।।

इसके अतिरिक्त प्रशांत मिश्रा,  इंदु रानी, नजीब सुल्ताना आदि ने भी अपनी प्रस्तुति दी। जितेन्द्र जौली ने आभार अभिव्यक्त किया ।

शनिवार, 3 अप्रैल 2021

मुरादाबाद मंडल के चन्दौसी (जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार अतुल मिश्र का व्यंग्य ----- बम-धमाकों पर एक प्रेस-कांफ्रेंस !!


          बम-धमाकों को लेकर गृह मंत्री ने प्रेस कांफ्रेंस रखी थी, ताकि मीडिया की मार्फ़त यह बताया जा सके कि इस बार जो धमाके हुए हैं, उनमें विरोधी पार्टी की जगह इस बार भी किसी आतंकी गुट का ही हाथ है और हमेशा की तरह अब इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा I

    "आप इन धमाकों के पीछे किसका हाथ मानते हैं ?" किसी न्यूज़ चैनल के रिपोर्टर ने अपने हाथ अपनी जेबों में छिपाते हुए पूछा I

    "देखिये, अभी कुछ क्लीयर नहीं हुआ है कि किसका हाथ माना जाये I जैसे ही निश्चित होगा, आपको बता दिया जाएगा I" कम शब्दों में ज़्यादा बात कहने के लिए खुद को मशहूर मानने वाले मंत्री जी का जवाब होता है I

    "लेकिन किसी आतंकी गुट ने आज ही अपना हाथ होने की बात क़ुबूल की है ?" रिपोर्टर ने अपनी ख़ुफ़िया जानकारी से अवगत कराते हुए ऐसे पूछा, जैसे आतंकी गुट ने यह बात उसके कान में खुद डाली हो और अब वह उसका खुलासा इस सवाल की मार्फ़त कर रहा हो I

    "इस बारे में अभी हम कुछ नहीं कह सकते I यह काम जांच एजेंसियों का है I वे जैसा कहेंगी, हम बता देंगे I" मंत्रीजी ने अपनी बात में साफगोई का प्रसारण करते हुए कहा I

    "सरकार अब क्या कर रही है ?" एक अन्य अखब़ार के कम तनख्वाह  पाने वाले पत्रकार ने इस सवाल को कुछ ऐसे अंदाज़ में पूछा, जैसे वो अपने अखब़ार-मालिक से वेतन बढ़ाने की बात कर रहा हो और इस बारे में क्या सोचा जा रहा है, यह पूछ रहा हो I

    "सरकार सोच रही है I"

    " क्या सोच रही है ?"

    " यही कि क्या सोचा जाये ?"

    " क्या सोचा जाना चाहिए ?"

    " यह सोचना सरकार का काम है I"

    " फिर भी कुछ तो सोचा होगा ?"

    " यह जब सोच लिया जाएगा, हम बता देंगे I" वाक्यों के संक्षिप्तीकरण में आस्था रखने वाले मंत्री जी जवाब देते हैं I

    "बहुत दिनों से सुन रहे हैं कि सोचा जाएगा, सोचा जाएगा I आखिर कब तक सोच लेगी आपकी सरकार ?" समवेत स्वर के ज़रिये केवल यह अहसास कराने को कि हम सब पत्रकार एक हैं, कई पत्रकारों ने एक साथ शब्दों का हमला किया I

    "इस बारे में भी सोचा जा रहा है I"

    "मृतकों और घायलों के बारे में क्या सोच रहे हैं ?"

    "वो हम पहले ही सोच चुके हैं I"

    "क्या ?"

    "यही कि सबको मुआवजा दिया जाएगा I"

    "कब तक मिल जाएगा ?"

    "अब यह तो निर्भर करता है कि कितने लोग मरे हैं और कितने घायल हैं I हालात देखकर ही सब कुछ होगा I" मंत्री जी अपना यह जवाब देकर उठने की तैयारी करने लगते हैं और इस तरह बम-धमाकों पर चल रही प्रेस-कांफ्रेंस अगले धमाकों तक के लिए स्थगित हो जाती है I

    ✍️ अतुल मिश्र, श्री धन्वंतरि फार्मेसी, मौ. बड़ा महादेव, चन्दौसी, जनपद सम्भल, उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार ( वर्तमान में दिल्ली निवासी ) आमोद कुमार का गीत ---दे सको किसी को कुछ तो जीने की उमंग देना .....

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शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021

मुरादाबाद मंडल के धामपुर (जनपद बिजनौर ) के साहित्यकार डॉ अनिल शर्मा अनिल की लघुकथा------ होलिका दहन


 होलिका दहन के लिए गली के बाहर ही लकड़ियों का ढेर लगवा दिया था भाई साहब ने। कुछ लोगों ने स्थान न होने की बात कही लेकिन भाई साहब नहीं माने।अब बस मुश्किल से एक फुट का रास्ता ही बचा था जाने आने के लिए।

दिन भर डी जे पर कानफोडू संगीत बजाया गया। भाई साहब युवा नेता ठहरे और उस पर संस्कृति के पोषक संगठन के नगर प्रमुख,तो इतना करना,बनता ही था।

रात को होलिका दहन के बाद सब अपने घर चले गये। भाई साहब के पिता जी की अचानक तबियत खराब हो गई। एंबुलेंस के लिए फोन कर दिया गया। लेकिन गली से बाहर निकलने के लिए रास्ते में गुंजाइश ही नहीं थी। होली पूरे जोर से जल रही थी।

✍️ डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल', धामपुर, उत्तर प्रदेश

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष मदन मोहन व्यास की रचना- राज्य चाहा नही, स्वर्ग चाहा नहीं, भोग चाहा नहीं योग चाहा नहीं .... । यह प्रकाशित हुई थी मुरादाबाद से राजनारायण मेहरोत्रा के सम्पादन में प्रकाशित 'प्रदेश पत्रिका' के वर्ष 8, अंक 5 ,रविवार 19 अक्टूबर 1969 में


 

::::::प्रस्तुति::::::डॉ मनोज रस्तोगी 8, जीलाल स्ट्रीट मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

गुरुवार, 1 अप्रैल 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में मेरठ निवासी ) के साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी की व्यंग्य कविता --


 मूर्खों ने मूर्खों

से कहा, हम में

विद्वान कौन..?

जो समझता है

अपने को मूर्ख

वो सामने आइए

वरना यहाँ नहीं

दिल्ली जाइये।


सबसे बड़ा मूर्ख

सामने आया

अजीब उपाय बताया

आँखों पर चढ़ा लो

चश्मा, लोग समझेंगे

अंधा

अपना चल जाएगा 

धंधा।।


यह फार्मूला पुराना था

बीते कल का फसाना था

एक सिपाही आया

पेपर चेक किये

बोला ठीक है

जाओ

घर पहुंचे

चालान आ गया।


फिर डॉक्टर आया

चेकअप किया

बोला, रोग ही रोग

महामारी में वियोग

पांच लाख का पैकेज है

ठीक हो जाओगे...?

हमने पैकेज ले लिया

रोग ने क़फ़न ओढ लिया।


सब मूर्खों की बातें

नेता सुन रहा था

भाषणों से ज़मीन

आसमान एक कर रहा था

उसने लुभाया/ भरमाया

मूर्खों को पेंशन घोषित कर दी

उसी का ब्याज़ आज हम यारों

खा रहे हैं...

हर साल मूर्ख दिवस 

मना रहे हैं....!


वरना हम

तो रोज मूर्ख बनते हैं

घर में बीबी/ आज के बच्चे

दफ्तर में बॉस/ बाजार में 

व्यापारी/ सियासत में नेता

घर-परिवार-यार-दोस्त

सब मूर्ख समझते हैं

क्यों कि

हम 

फूलों में नहीं

अप्रैल के फूल 

में विश्वास करते हैं।

विद्वान होकर भी

मूर्ख का स्वांग भरते हैं।।

✍️ सूर्यकान्त द्विवेदी

मुरादाबाद के साहित्यकार राशिद हुसैन की कहानी ---- भिखारी की बेटी


अक्सर मैं शाम को अपने घर के बाहर सड़क किनारे परचून की दुकान पर खड़ा हो जाता था रोज ही एक आंखों से माज़ूर भिखारी  एक दस साल की लड़की के कांधे पर हाथ धरे भीख मांगता वहां से गुजरता। वह कभी-कभी सामने की ओर सड़क किनारे थोड़ी देर के लिए बैठ भी जाया करता और  फिर कुछ देर के बाद वहां से चला जाता। मैं यह मंजर लगभग हर  रोज ही देखता ।एक दिन जब वह बैठने के लिए झुक रहा था तब उसके साथ रहती छोटी लड़की ने हल्की हंसी के साथ कुछ कहा जिसे सुनकर भिखारी काफी ज़ोर से खिलखिला उठा और फिर  कुछ कहते हुए बैठ गया। यह माजरा देखकर मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि ऐसी कौन सी खुशी की बात थी जिसे सुनकर गिड़गिड़ा कर भीख मांगने वाले से बिना हंसे रहा नहीं गया। कहीं, यह हंसी व्यंगात्मक तो नहीं ?

 समीना ओ समीना भिखारी अपनी दस साल की मासूम बेटी को आवाज देते हुए बड़बड़ाया।  शाम हो गई है, इसका अभी तक पता नहींं? हर वक़्त जाने कहां  खेलती फिरती है ? भिखारी हाथ मेंं डंडा लेकर चारपाई से उठा और झोली ढूंढने की कोशिश करने लगा तब ही उलझे हुए बाल जिनमेंं छोटी-छोटी दो चोटियां बंधी थी। मैला सिलवटे पड़ा सलवार और बड़ा सा कुर्ता पहने दौड़ती हुई समीना आ गई ।आने के बाद समीना ने घिसी हुई रबड़ की दो पट्टियों वाली चप्पल चारपाई के नीचे से निकाल कर पहन ली। दिन ढल चुका था। हल्की ठंड होने लगी थी। ठंड से बचने के लिए उसने एक मैली से शॉल जो कई जगह से फटी थी। सर से इस तरह से ओढ़े कि उसका आधा शरीर ढक गया। बेटी के आने की आहट से अंधा भिखारी नाराज़ होते हुए फिर बड़बड़ाया। तुझे पता नहींं है शाम हो गई है अब हमें सवाल करने जाना होता है तू जानती है मैं देख नही सकता इसलिए तुझे साथ रखता हूँ सहमती हुई समीना ने खूंटी पर टंगी झोली उतारी और भिखारी के कंधे पर डाल दी फिर उसकी लाठी पकड़ आगे-आगे चलने लगी। भिखारी अल्लाह के नाम पर मोहताज को देते चलो बाबा ...कहता आगे बढ़ने लगा। कुछ दूर निकलने के बाद तू चुप क्यों है बेटी ? कुछ नहींं अब्बा जी समीना ने हल्के से कहा। लगता है तुझे गुस्सा आ गया मैं तो बस यूं ही कह रहा था एक तो बेटी तेरे सिवा मेरा इस दुनिया मेंं है ही कौन इसलिए मुझे हर वक़्त तेरी फिक्र लगी रहती है ।और अब रात और सुबह के खाने का इंतज़ाम भी तो करना है तुझे पता है बेटी मेरे सीने मैं कई दिनों से बड़ा दर्द है । मैं सोच रहा था कुछ पैसे इकट्ठे हो जाएं तो किसी अच्छे डॉक्टर को दिखा कर दवाई ले लूं । दर्द की बात सुनकर समीना से रहा नहींं गया वो बोल उठी अब्बा हम कल ही डॉक्टर को दिखाएंगे मैं जो पैसे गुड़िया खरीदने के लिए जोड़ रही हूं उन्ही पैसों से आपकी दवाई लेंगे समीना की बात सुनकर भिखारी का दिल भर आया और भर्राई आवाज़ से नहींं-नहींं बेटी इतना दर्द नहींं जो सहन न कर पाऊं कुछ दिन में पैसे जमा कर दवाई ले लेंगे।

कुछ देर की खामोशी के बाद भिखारी ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा अच्छा समीना तू आजकल कई दिनों से कहां खेलने चली जाती है?जो मेरे आवाज़ देने के बाद भी देर से आती है।जब समीना ने अपने अब्बा को साधारण होते हुए देखा तो वो चहकते हुए बोली सीमा आंटी के घर चली जाती हूँ वहां ,क्यों?  वो मालदार लोग है बेटी, वहां मत जाया करो ।भिखारी ने नसीहत करते हुए कहा फिर कुछ देर के लिए दोनों खामोश हो गए । अच्छा चल बता वंहा तू क्यों जाती है ? अब्बा उनकी लड़की मेरे बराबर की है न उसके पापा इसी हफ्ते दुबई से आये हैं। वो उसके लिए एक बहुत खूबसूरत सेलो वाली गुड़िया लाये हैं, जो हंसती भी है और रोती भी है । मैं उसके साथ उस गुड़िया से खेलती रहती हूं। सेलो वाली गुड़िया ये कैसी होती है ? भिखारी ने अचरज से पूछा समीना फिर जल्दी-जल्दी गुड़िया के बारे में बताती चली गई और जब रुकी तो अरमान भारी नज़रो से अपने अब्बा को देखते हुए ऐसी ही गुड़िया खरीदने की ख्वाहिश भी ज़ाहिर कर दी । बेटी की फरमाइश सुनकर भिखारी ने ठंडी सांस ली और कहा बेटी वो तो बहुत महंगी होगी हम कैसे खरीदेंगे ? यह सुनकर समीना फिर बोली तीन सौ रुपये की है। यंहा बाजार मे भी मिल जाएगी सीमा आंटी बात रही थीं। ये तो बहुत पैसे हैं कैसे इकट्ठा होंगे भिखारी ने असमर्थता जताते हुए कहा तभी समीना कह उठी अब्बा मेरी मिट्टी की गुल्लक मैं बहुत पैसे हैं उसे तोड़ कर देखेंगे जितने काम होंगे आप दे देना ।यह सुनकर भिखारी अपनी बेबसी पर लरज़ गया और सोचने लगा काश वह अपनी बच्ची को वो गुड़िया दिला पाता वो सोचने लगा उसको क्या मालूम उसकी गुल्लक मैं कितने पैसे हैं ? और फिर जितना मिलता है उससे तो दो वक़्त की रूखी-सूखी रोटी का ही इंतेज़ाम हो पाता है । अल्लाह के नाम पर भीख मांगने वाले किसी से खिलोने की ख्वाहिश भी तो ज़ाहिर नही कर सकते और ना ही झूठ बोलकर भीख मांग सकता। ये सब बातें वो काफी देर तक सोचता रहा। कुछ ही देर मैं उसके चेहरे पर चमक लौटी और कहा ठीक है हम थोड़े-थोड़े पैसे बचाकर कुछ दिनों मै गुड़िया ज़रूर खरीद लेंगे। यह बात सुनकर समीना खुश हो गई कई हफ़्तों की जद्दोजहद के बाद वो दिन आ गया जब भिखारी ने कुछ रुपयों का इंतज़ाम कर लिया लेकिन अभी भी कई रुपये की कमी थी जो पैसे पूरे करने के लिए समीना ने अपनी दो साल पुरानी गुल्लक तोड़ दी। 

गुड़िया खरीद कर समीना बहुत खुश थी लेकिन भिखारी की खुशी के साथ उसके सीने का दर्द भी बढ़ता जा रहा था किसी अनहोनी के डर से वह बेचैन था फिर भी वह खुश था । समीना अब हर वक़्त गुड़िया से खेलती रहती। रात को भी वह उसे अपने पास रखकर सोती ।समीना को उस बेजान खिलौने से इतना प्यार हो गया था कि वह उसका अपने से ज़्यादा ख्याल रखती।

जिसको पाने की तमन्ना मैं समीना दिन रात लगी रहती वो चीज़ पाने के बाद उसकी खुशी का कोई ठिकाना नही था। लेकिन अफसोस वो खुशी आज काफूर हो गई थी समीना की आंखों से बहते आँसू किसी के भी दिल को पिघलाने के लिए काफ़ी थे अन्धे भिखारी के कानों में सुनाई पड़ रही समीना की सिसकियाँ भिखारी के दिल पर नस्तर की तरह चुभ रही थीं और वह बेबस ज़ख्मी परिन्दे की मानिंद तड़प रहा था क्योंकि आज भिखारी की कोठरी की कच्ची दीवार में बने ताख से अचानक गुड़िया गिरकर टूट गई ।आज समीना बहुत रोई थी। मैं आज भी अक्सर वहीं सड़क किनारे खड़ा हो जाता हूँ लेकिन उसके बाद वह भिखारी कभी दिखाई नहींं दिया।

✍️ राशिद हुसैन, मोहल्ला बाग गुलाब राय, ढाल वाली गली झारखंडी मंदिर के पास थाना नागफनी, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, मोबाइल फोन नंबर- 9105355786




बुधवार, 31 मार्च 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र का गीत उन्हीं के सुपुत्र अतुल मिश्र के स्वर में...

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मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष मदन मोहन व्यास की तीन कुंडलियां । ये प्रकाशित हुई थीं मुरादाबाद से राजनारायण मेहरोत्रा के सम्पादन में प्रकाशित 'प्रदेश पत्रिका' के वर्ष 9, अंक 23 ,रविवार 27 जून 1971 में


 

::::::::प्रस्तुति:::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822