रविवार, 23 मई 2021

मुरादाबाद की संस्था कला भारती की ओर से 23 मई 2021 को आयोजित काव्य गोष्ठी .....


मुरादाबाद की संस्था कला भारती की ओर से साहित्य समागम के तत्वावधान में एक ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन  किया गया जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई ने की | कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बाबा संजीव आकांक्षी तथा विशिष्ट अतिथि श्रीयुत श्री कृष्ण शुक्ल रहे | कार्यक्रम का शुभारंभ राजीव प्रखर के द्वारा  मां सरस्वती की वंदना के साथ किया गया| इस अवसर पर उपस्थित साहित्यकारों  द्वारा अपनी प्रस्तुतियां दी गई प्रकार है:-

 ठाकुर अमित कुमार सिंह ने कहा कि:-

 उम्र बीत जाती है फ़िकर, हिजारत और तिजारत में, 

लगता है अब हर किरदार निभाना आ गया

 इंदु रानी ने कहा कि:- 

रोम-रोम पुलकित भैया नैनों में मधुमास

 पग देखत श्री राम के, हिय बन गयो निवास

राजीव प्रखर  ने कहा कि:-

दूरियों का इक बवंडर, जब कहानी गढ़ गया।

मैं अकेला मुश्किलों पर, तान सीना चढ़ गया।

हाल मेरा जानने को, फ़ोन जब तुमने किया,

सच कहूँ तो ख़ून मेरा, और ज़्यादा बढ़ गया।

 मुजाहिद चौधरी एडवोकेट ने कहा कि:-

 उदास है ये फिजाएं, गगन उदास है यारों|

 अजीब वक्त है मिल कर भी रो नहीं सकते||

 डॉ अर्चना गुप्ता ने पढ़ा कि :-

कोरोना से मत डरो, हिम्मत से लो काम

 करना है मिलकर हमें, इसका काम तमाम

 श्री कृष्ण शुक्ल ने पढ़ा कि:-

 मानव के कष्टों का प्रभु अब अंत करो 

त्राहि-त्राहि हर ओर मची है मंद करो.

 बाबा संजीव आकांक्षी ने कहा कि :-

हैं नरो के इंद्र ने तुमको जगाया

अब भी ना जागे तो संताप होगा.

 अशोक विश्नोई ने कहा कि :-

मानस की चौपाईया देता उत्तम ज्ञान

इनको  पढ़िएगा सदा क्यों रहते अनजान.

इस अवसर पर प्रशांत मिश्रा, मीनाक्षी ठाकुर, डॉ रीता सिंह, हेमा तिवारी भट्ट, अशोक विद्रोही, योगेंद्र वर्मा व्योम, डॉ पूनम बंसल, डॉ मनोज रस्तोगी, आदि  ने भी अपनी प्रस्तुतियों से सभी की तालियां बटोरी.

 आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ के द्वारा सभी साहित्यकारों का धन्यवाद ज्ञापित किया गया एवं ईश्वर से प्रार्थना की गई कि वह शीघ्र पूरे देश को विश्व को इस कोरोना की महामारी से निजात दिलाएं एवं दिवंगत साहित्यकारों को श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए. 

कार्यक्रम का संचालन युवा कवि ईशांत शर्मा ईशु ने किया |

 

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में दिल्ली निवासी)आमोद कुमार का गीत ----तुम जो मिले

दिन बीते तुम जो मिले,
तम मे सौ-सौ दीप जले,
सुख-दुख जीवन मे जो मिले,
लगते थे सब हमको भले।
             तुम जो मिले

तुम जो उस दिन मुस्कुराए,
हम अपने गम भूल गए,
अभावों की सूनी बगिया मे
मुरझाए फूल फिर से खिले
                  तुम जो मिले

चंदा से मधु माँग पिया,
फिर क्यों जीवन विषमय हुआ,
यूँ तो सफर मे साथ थे हम,
फिर क्यों तन्हा तन्हा चले
              तुम जो मिले

अब तो सब कुछ बदल गया,
शाम हो गई और दिन ढल गया,
अलग-अलग क्यों उड़ते हैं
पंछी जो एक डाल पले
                  तुम जो मिले

मन्दिर के घंटों की ध्वनि,
खुश होते अम्बर-अवनि,
सर्द हवाएं चलती हैं
याद आई, तारे निकले
              तुम जो मिले
   
✍️ आमोद कुमार अग्रवाल, सी -520, सरस्वती विहार, पीतमपुरा, दिल्ली -34
मोबाइल फोन नंबर  9868210248

 

शनिवार, 22 मई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक निर्मल का गीत ---ये भी मेरा, वो भी मेरा भ्रम ये पाले हैं....


 

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की रचना ---दिल से दिल की प्रीत लिखूं मैं.....


 

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष पंडित मदन मोहन व्यास की कुछ रचनाएं, उन्हीं की हस्तलिपि में .....…


 







शुक्रवार, 21 मई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी जी के ग़ज़ल संग्रह "सीपज" की सुरेश दत्त शर्मा पथिक द्वारा लिखी गई भूमिका ।




छरहरा शरीर, लम्बा बदन, गौर वर्ण, सरस नेत्र, सिर पर गाँधी टोपी, आँखों पर बिना फैशन का चश्मा, पूरी बाँहों की कमीज, सादा सा पाजामा, पैरों में स्वर न करने वाले चप्पल, एक हाथ में छड़ी दूसरे हाथ में किताब, कापियों तथा कविताओं की नोटबुकों से आधा भरा थैला, धीमी धीमी चाल से चलता हुआ ऐसा व्यक्ति यदि आप को सड़क पर दिखाई दे जाए तो आप समझ लें कि यही हैं कविवर श्रीयुत बहोरन सिंह जी वर्मा 'प्रवासी'।

 सन् १९४९-५० में इनसे परिचय हुआ। नगर के अच्छे अध्यापकों में श्री प्रवासी जी की गणना होती है। 'शिक्षक संघ' के माध्यम से इन्होंने शिक्षकों की न्यायोचित माँगों को तीव्र स्वर दिया है तथा उनकी समस्या के समाधान हेतु शिक्षाधिकारियों को विवश किया है। अपने कर्त्तव्य के प्रति सदैव सजग रहे हैं तथा छात्रों के सर्वागीण विकास को पूजा से कम महत्व प्रदान नहीं किया है। इनकी दिनचर्या में अध्ययन और अध्यापन का प्रमुख स्थान है। माँ सरस्वती की सतत आराधना करके उनसे वरदान प्राप्त किया।

     साहित्यिक संस्था 'अन्तरा' तथा अन्य कवि गोष्ठियों में प्रवासी जी से कवितायें सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। 'तरन्नुम' के साथ तथा डूबकर कविता पढ़ते हैं। सुनने में अच्छा लगता है। सरल शब्दों में गहरी बात कहने में श्री प्रवासी जी सिद्धहस्त हैं। डा. अजय कुमार अग्रवाल 'अनुपम' प्रबन्धक, हिन्दी साहित्य सदन, मुरादाबाद, प्रायः मेरे पास रहते हैं। अभी कुछ दिन पूर्व उन्होंने श्रीयुत प्रवासी जी के गजल संग्रह 'सीपज के विषय में दो शब्द लिखने को कहा। उनके इस प्रस्ताव से मैं द्विविधा में पड़ गया। वास्तव में में इस गुरुतर कार्य के लिये अपने को अयोग्य मानता हूं। मैंने यह बात श्रीयुत अनुपम जी से कई बार कही। उन्होंने मेरी एक नहीं सुनी। विवश होकर उनके अनुरोध को स्वीकार करना पड़ा, क्योंकि श्रीयुत अनुपम जी से सम्बन्ध ही इस प्रकार का है। 'दो शब्द' जैसे हैं प्रस्तुत हैं।
        प्रस्तुत ग़ज़ल संग्रह 'सीपज' को आद्योपान्त पढ़ा। अच्छा लगा। अस्सी ग़ज़ल रूपी मोतियों को पिरोकर एक ऐसी सुघड़ माला बनायी गयी है जिसका प्रत्येक मोती अपनी अलग ही छवि बिखेर रहा है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि गीत एक ऐसा गुलदस्ता होता है जिसका प्रत्येक फूल अलग अलग रंग का होते हुए भी उसके सभी फूलों की गंध एक सी होती है जबकि ग़जल के सभी फूलों के रंग और गंध अलग भी हो सकते हैं। पूरे गीत का मूल भाव एक ही रहता है जबकि गजल के प्रत्येक शेर का भाव अलग होता है।
      श्रीयुत प्रवासी जी भावुक तथा गहरी परख वाले कवि हैं। उन्होंने समाज को गहराई से देखा है और उसकी अच्छाई बुराई को भली भाँति भोगा है। समाज की विसंगतियों को ध्यान पूर्वक देखा है। उनके सीपज का कथ्य उनके द्वारा भोगा हुआ सत्य है। प्रत्येक क्षेत्र में अन्याय को देखकर कवि के हृदय में एक टीस उठती है:
      'भव्यता कैसे रहेगी विश्व की,
      हर तरफ दुर्गन्ध ही दुर्गन्ध है। (गजल१)

चारों ओर अशान्ति का साम्राज्य देखकर कवि ने कहा है:
'शान्ति, जन को अब कहाँ से प्राप्त हो,
  शान्ति मंदिर ही हुआ जब ध्वस्त है
  भय प्रवासी को न शूलों का रहा होगा,
  यह हुआ उनका बहुत रहा, अभ्यस्त है। (गजल ९)

इसी भाव को अपनी ५६वीं ग़ज़ल में इस प्रकार कहा है..
'नुकीले बिछे पगपग डगर में,
नहीं ज्ञात कैसे पथिक चल रहा है।

जगत में सुख शान्ति लाने के जितने प्रयास हो रहे है, उतनी ही अशान्ति बढ़ रही है। 'मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों ज्यों दवा की इसको देखकर कवि निराशा भरे स्वर में कह उठता है:
मचा विश्व में आर्त्त क्रन्दन 'प्रवासी',
हुआ है व्यथा का शमन अब असंभव (गजल ४६)

निरीह भोली भाली जनता की दुर्दशा तथा उसको ठगकर ऐश्वर्य का जीवन जीने वाले नेताओं को देखकर कवि अत्यधिक दुःखी स्वर में कहता है:
कुछ समझ में नहीं आ रही है,
इस नियति चक्र की गति तनिक भी,
नीर को जो तरसते  कभी थे,
क्षीर को पी रहे हैं जगों से,
स्वप्न में भी यह आशा नहीं थी
जो मनुज की दशा हो गई अब,
लाज हिम के सदृश गल रही है,
नीर सा ढल गया है दृगों से। (गजल ७१)

वे आगे कहते हैं:
आज जन का विषमयी स्वर पान कर,
साँस घुटती जा रही है क्या करें ।' (ग़ज़ल७३)
हर ओर आज स्वार्थ की लहरा रही ध्वजा,
निःस्वार्थ कौन कर रहा उपकार आज कल
शुचि स्नेह, मान, नम्रता कब के विदा हुए
विद्रूप हो गया बहुत व्यवहार आजकल (गजल ७६
)

साहित्य शब्द में हित निहित है अतः जो साहित्य
समाज के हित हेतु न लिखा गया हो वह चाहे जो हो साहित्य नाम को सार्थक नहीं करता। श्रीयुत प्रवासी जी की मान्यता भी यही है। साथ ही वे काव्य में यति, गति छन्द तथा गेयता के पोषक हैं। वे कहते हैं:
हो न कल्याण-भावना जिसमें काव्य ऐसा असार होता है ।
न कल्याण हो जिस गिरा से किसी का
कहो शब्द विन्यास वाणी नहीं है। (गजल २८)

काव्य कहलाता छन्द, यति, वही जो गेय है।
छंद, यति, गति हीन रचना हेय है। (गजल ३९) ।

श्री प्रवासी जी धन, विद्या, काव्य तथा भक्ति के साधको को सिद्धि का मूल मंत्र बताते हुए कहते हैं:
लगन के बिना साधना है अधूरी,
सतत साधना सिद्धि मन्दाकिनी है।

पसीने की कमाई की प्रशंसा तथा कफन खसोट कर एवं दूसरों को सताकर कमाए धन को विष के समान बताते हुए कवि ने कहा है:

मिले जो सहज, श्रेष्ठ जानो उसे ही,
अलभ वस्तु पर दृष्टि अपनी धरो मत।
गरल बूँद, मधुक्षीर को विष बनाती,
कुधन से कभी कोष अपना भरो मत।
सुपथ से मिला अल्प धन ही बहुत है,
कुपथ से कभी द्रव्य अर्जन न करना।

  श्री प्रवासी जी ने श्रृंगार रस के बहुत से गीत तथा दोहे लिखे हैं। सीपज में भी श्रृंगार रस अछूता नहीं रहा है। कुछ शेरों को उदधृत करना पर्याप्त होगा:

हो गया दूर बालपन उनका,
अब बदलने लगा चलन उनका। गजल २

सृष्टि उस काल हो गई बेसुध
जिस समय वे सहज सँवर बैठे
प्राण की रूप माधुरी लखकर
क्या करें बातचीत भूल गए।

  उर्दू ग़ज़ल के अन्दाज में श्री प्रवासी जी कहते हैं: हटाओ नहीं चन्द्र मुख से अलक घन
मचल जायेंगे लख हटीले रसिक मन ।(गजल १२
)

परहित सरिस धरम नहिं भाई परपीड़ा सम नहिं अधमाई। गोस्वामी तुलसी दास जी के इसी भाव को श्री प्रवासी जी ने इस प्रकार व्यक्त किया है:

मनुजता की विमल व्याख्या यही है,
नयन गीले सुखाते जाइएगा । (ग़ज़ल २१)

मातृभूमि की सेवा करने की प्रेरणा देते हुए श्री प्रवासी जी कहते हैं:
एक दिन हर वस्तु होनी है विलय,
श्रेष्ठ कर्मों हो नहीं का सुयश अविलेय है।
सकता मनुज कोई उऋण
मातृभू का ऋण सभी पर देय है ।

मनुज की अशान्ति का कारण उसका लोभ और मोह है। कभी पूरी न होने वाली लालसाओं के चक्कर में पड़कर उसका सुख चैन गूलर का फूल हो गया है सन्तोष तथा त्याग ही शान्ति का आधार है, श्री प्रवासी जी कहते हैं:
लालसाएँ हैं कॅटीले जाल सी,
सर्व सुखदाता विषय का त्याग है।

कविवर रहीम जी ने एक दोहा लिखा है:
रहिमन अपने पेट सौं, बहुत कह्यों समझाय।
जो तू अन खायो रहै, तो सौ को अनखाय

इसी भाव को श्री प्रवासी जी ने अपने शब्दों में इस प्रकार कहा है:
सभी व्यक्ति होते सुजन इस धरा के,
व्यथित यदि न करती क्षुधानल उदर की।

दुःखालय संसार से संताप पाकर तथा विवश होकर प्राणी करुणालय एवं दीनबन्धु भगवान की शरण में जाता है। उन्हों की शरण में वह सुख शान्ति का अमृतपान करता है। श्री प्रवासी जी का कथन है:
तुम्हारे दर्श का प्यासा, तुम्हारे द्वार आया है।
कृपा की दृष्टि हो जाए बहुत जग ने सताया है ।।
कृपा जिस ओर हो  जाए तुम्हारी,
सुधा उसके लिए होता गरल है ।

अन्त में कहा जा सकता है कि कविवर भाई श्रीयुत प्रवासी जी ने सीधी सादी सरल भाषा रुपी धागे में मधुर भावों के रंग बिरंगे सीपजों को यत्नपूर्वक पिरोकर जो माला प्रस्तुत की है वह श्रोता तथा पाठकों के मन को मोहित किये बिना नहीं रह सकती। कला तथा भाव दोनों ही दृष्टियों से सीपज' एक अच्छी रचना है। श्रीयुत प्रवासी जी ने जनता की समस्याओं को तथा सुहृदयों के भावों को सीपज का कथ्य बनाया है। इसीलिये सीपज सभी पाठकों का मनोरंजन करते हुए आदर प्राप्त करेगी ऐसा विश्वास है। इस सुप्रयास के लिए भाई प्रवासी जी प्रशंसा के पात्र हैं। और इस संस्कृति को आप तक पहुंचाने के लिए हिन्दी साहित्य सदन मुरादाबाद तथा उसके प्रबन्धक डा. अजय अनुपम साधुवाद के अधिकारी हैं।

✍️ सुरेश दत्त शर्मा 'पथिक',मुरादाबाद

सोमवार, 17 मई 2021

वाट्स एप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक रविवार को वाट्स एप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है । इस आयोजन में समूह में शामिल साहित्यकार अपनी हस्तलिपि में चित्र सहित अपनी रचना प्रस्तुत करते हैं । रविवार 16 मई 2021 को आयोजित 253 वें आयोजन में शामिल साहित्यकारों डॉ अशोक रस्तोगी, अटल मुरादाबादी, दीपक गोस्वामी चिराग, विवेक आहूजा, रेखा रानी, राजीव प्रखर , मीनाक्षी ठाकुर, शिवकुमार चंदन, चंद्रकला भगीरथी, प्रीति चौधरी, अशोक विद्रोही, मुजाहिद चौधरी, इंदु रानी, श्री कृष्ण शुक्ल,अमितोष शर्मा,कंचन खन्ना, सन्तोष कुमार शुक्ल सन्त और डॉ मनोज रस्तोगी की रचनाएं उन्हीं की हस्तलिपि में .......



















 

रविवार, 16 मई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी के व्यक्तित्व एवं कृतित्त्व पर साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से दो दिवसीय ऑनलाइन चर्चा


वाट्स एप पर संचालित समूह  'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार स्मृतिशेष बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर 14 व 15 मई 2021 को दो दिवसीय ऑन लाइन आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में श्री प्रवासी जी की प्रकाशित - अप्रकाशित अनेक रचनाएं, उनसे सम्बंधित चित्र प्रस्तुत किये गए।


मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ
के तहत आयोजित इस कार्यक्रम में संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी के जीवन एवं रचना संसार पर प्रकाश डालते हुए कहा कि  सम्भल के कस्बे सिरसी में आश्विन शुक्ल नवमी सम्वत 1979 को   जन्मे प्रवासी जी की काव्य रचनाओं में न केवल अध्यात्म व श्रृंगार रस का पुट है वरन देश में व्याप्त सामाजिक विद्रूपताओं, विषमताओं, शोषण तथा वर्तमान समस्याओं आदि का भी पुट मिलता है। 'प्रवासी पंच सई', 'मंगला' और 'सीपज' उनकी उल्लेखनीय काव्य कृतियाँ हैं। आपका निधन वर्ष 2004 में दीपावली के दिन 12 नवम्बर को हुआ   

प्रख्यात साहित्यकार यशभारती माहेश्वर तिवारी ने कहा  कि कविश्रेष्ठ बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी जी ने विभिन्न छंदों ,रूपों में लेखन किया है । अपने बेटे के निधन के बाद उन्होंने कुछ गीत लिखे जो वेदना नामक संग्रह में हैं ।इस दृष्टि से उन्हें मुरादाबाद के शोकांतिका लेखन का प्रथम रचनाकार होने का गौरव दिया जा सकता है । वे जिस पीढ़ी के थे उस कालखंड को देखते हुए कहा जा सकता है कि उनके कृतित्व का सही मूल्यांकन होना अभी शेष है  । मनोज रस्तोगी ने उन्हें विस्मृति के गर्भग्रह से बाहर निकाला है इसके लिए उन्हें साधुवाद। अब शोध अध्ययन में लगे लोगों का दायित्व है कि उनके सम्यक विश्लेषण से अपना दायित्वपूर्ण कर्तव्य का निर्वहन करें ।    

केजीके महाविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ मीरा कश्यप ने कहा कि बहोरन सिंह वर्मा 'प्रवासी ' ने मानवीय जीवन की विभिन्न सम्वेदनाओं को सहज -सरल रूप में जन - जन तक अपनी कविताओं के माध्यम से पहुंचाने का प्रयास किया है ।श्रृंगार की अनूठी अभिव्यंजना ,राष्ट्र के प्रति समर्पित क्रांतिकारी विचारधारा एवं पारिवारिक मूल्यों के साथ ही परम्पराओं को सहेजने का सफल प्रयास उनकी रचनाओं में दृष्टिगत होता है । तत्कालीन मूल्यों को बचाये रखने के साथ ही कवि अपने समय के साथ तमाम वैचारिक क्रांति को अपने साहित्य में समाहित करके चलते दिखते हैं

वयोवृद्ध साहित्यकार सुरेश दत्त शर्मा पथिक ने कहा प्रवासी जी ने सीधी सादी सरल भाषा रुपी धागे में मधुर भावों के रंग बिरंगे सीपजों को यत्नपूर्वक पिरोकर जो माला प्रस्तुत की है वह श्रोता तथा पाठकों के मन को मोहित किये बिना नहीं रह सकती।
वरिष्ठ साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा कि  श्री बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी जन जन के कवि थे ।उन्होंने विभिन्न सामाजिक विसंगतियों, असमानता, मानवीय मूल्यों के क्षरण, देशभक्ति के साथ साथ जीवन दर्शन और अध्यात्म पर भी अपनी कलम चलायी । इसके अतिरिक्त उन्होंने कहीं कहीं अपनी गज़लों में प्रेम को भी अत्यंत सहजता से परिभाषित किया।
    
वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा कि प्रवासी जी सम्वेदना, सरलता, सादगी की प्रतिमूर्ति थे। उनका साहित्य अध्यात्म के मर्म से भरा पड़ा है । उनका लेखन पीड़ा के अथाह सागर तरंगों जैसा है कहीं वियोग के दर्शन होते है तो कही मिलन की तीव्र आकांक्षा ।
बाल साहित्यकार राजीव सक्सेना ने कहा कि जीवन के अभावों और विश्वासघातों ने कवि को शायद इतनी पीड़ा दी है कि दुख या अवसाद उनका स्थायी 'मूड' बन गया है।
     
जनवादी रचनाकार शिशुपाल सिंह मधुकर ने कहा कि प्रवासी जी ने अपनी रचनाओं में समाज में गिरते मानवीय व सांस्कृतिक मूल्यों,घटती जाती भाईचारे की भावना, मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण, विभिन्न तरह की विसंगतियों तथा भ्र्ष्टाचार को उजागर किया है।   वरिष्ठ साहित्यकार डॉ कृष्ण कुमार नाज  ने कहा कि प्रवासी जी ने हास्य-व्यंग्य को छोड़कर लगभग सभी विधाओं पर लेखनी चलायी है। उन्होंने गीत भी लिखे हैं और नवगीत भी, बाल-कविताएँ भी लिखी हैं और भक्तिपूर्ण कविताएँ भी। लेकिन वह सोच के धरातल पर कभी डगमगाये नहीं। उनकी रचनाएँ शिष्ट भी हैं और विशिष्ट भी। समाज में फैली विसंगतियों और भ्रष्टाचार को भी उन्होंने निशाना बनाया है।         

रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा यह वर्ष उनका जन्म शताब्दी वर्ष (संवत 1979 - 2079) है। उनका मूल स्वर वेदना से भरा हुआ है ।  उनकी वेदना निजी नहीं थी ,वह सहस्त्रों हृदयों की भावनाएं थीं।  ऐसे कवि कम ही होते हैं जो संसार के राग और लोभों के प्रति अनासक्त रहकर लगातार ऐसी काव्य रचना कर सकें , जिसमें एक सन्यासी की भांति समय आगे बढ़ता जा रहा है और कवि उस यात्रा को ही मंगलमय मानते हुए प्रसन्नता से बढ़ता चला जा रहा है । श्री बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी एक ऐसी ही अमृत से भरी मुस्कान के धनी कवि हैं। 

फ़िल्म निर्देशक,निर्माता एवं साहित्यकार अशोक विश्नोई ने कहा कि प्रवासी" जी हिन्दी साहित्य जगत के अनमोल रत्न थे। उन्होंने हिन्दी गज़ल को एक नया मुकाम दिया। उनके साहित्य में समाज के विभिन्न रूपों के दर्शन हो जाते हैं।
         
युवा साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि प्रवासी जी का प्रकाशित साहित्य भले ही विपुल मात्रा में न हो,पर उसका स्तर मानक व प्रेरक है।उन्होंने राष्ट्रप्रेम,नीति,श्रृंगार,भक्ति आदि विविध विषयों पर अपनी लेखनी चलायी है।उनका मुख्य स्वर प्रेम का ही है।उन्होंने श्रृंगार के संयोग और वियोग दोनों ही पक्षों को अपनी कला से अलंकृत किया है। रीतिकालीन कवियों की भांति उनके श्रृंगारिक (संयोग) दोहे भी खासे ध्यानाकर्षित करते हैं।रूपक,उपमा और विशेषतः उत्प्रेक्षा अलंकार से सजे ये श्रृंगारिक दोहे नायिका का अद्भुत चित्रण करते हैं और सर्वथा हटकर बिम्ब प्रस्तुत करते हैं।
युवा साहित्यकार राजीव प्रखर ने कहा कीर्तिशेष बहोरन सिंह वर्मा 'प्रवासी' जी  मानवीय जीवन की विभिन्न संवेदनाओं को सरल व सहज रूप में पाठकों तक पहुँचाने में वह सफल रहे हैं। प्रकृति को आधार बनाते हुए श्रृंगार की अनूठी अभिव्यक्ति, राष्ट्र के प्रति समर्पित रहने का क्रांतिकारी आह्वान अथवा पारिवारिक मूल्यों को सफलता के साथ उभारने व उनके प्रति सचेत करने की उनकी मनोहारी ललक, सभी कुछ उनके एक महान रचनाकार होने का स्पष्ट समर्थन करता है।  
      
युवा साहित्यकार फरहत अली खान ने कहा कि उन की रचनाओं में श्रृंगार, भक्ति और कुछ हद तक वीर रस के साफ़ निशानात मौजूद हैं। विषयों की विविधता के पैमाने पर प्रवासी जी ग़ज़लकार से ज़्यादा दोहाकार और गीतकार थे।
 

रामपुर के साहित्यकार शिवकुमार चंदन ने कहा कि स्मृति  शेष  श्रद्धेय कवि श्रेष्ठ श्री  बहोरन सिंह  वर्मा  प्रवासी, आदरणीय  साहित्य पुरोधा कवि श्री पुष्पेन्द्र वर्णवाल सहित  अनेक  साहित्यिक क्षेत्रों के  मूर्धन्य साहित्यकार रामपुर के  साहित्यिक आयोजन में  आया करते थे और मुझे भी ऐसे  महान व्यक्तित्व के  धनी  कवि  साहित्यिक  व्याख्यान सुनने  एवं  उनके  सामीप्य का  लाभ  प्राप्त हुआ था ।
 
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय अनुपम  ने उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा - एक सरल व्यक्तित्व। कमीज़ पायजामा ,सिरपर सफेद टोपी, आंखों पर चश्मा,हाथ में बेंत,और कपड़े का एक थैला,पांव में चप्पल/जूता।एक श्रेष्ठ कवि, सशक्त हिन्दी ग़ज़ल कार। इस सम्पूर्ण छवि का नाम था बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी।
     
वरिष्ठ साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी ने उनसे सम्बंधित संस्मरण प्रस्तुत किये।  उन्होंने कहा कि राष्ट्र भाषा हिंदी प्रचार समिति की ओर से हिंदी दिवस(14 सितंबर) को लाइनपार स्थित प्रज्ञा पीठ मंदिर में उनका सम्मान किया गया था। कार्यक्रम समयानुसार प्रारंभ हुआ।शहर के गणमान्य साहित्यकारों की उपस्थिति ने कार्यक्रम को और भी भव्यता प्रदान की।सम्मान प्रदान करने का शुभ समय आया।मैंने और आदरणीय दया शंकर पांडे के साथ-साथ श्री अनजाना जी,ने शॉल ओढ़ाकर तथा श्री अशोक विश्नोई ,डॉ प्रेमवती उपाध्याय जी ने श्री फल देकर बहुत हर्ष व्यक्त किया।आपके जीवन परिचय पढ़ने का कार्य आदरणीय व्योम जी द्वारा सम्पन्न किया गया।
     
गजरौला की साहित्यकार रेखा रानी ने कहा कि  प्रवासी जी का व्यक्तित्व नए रचनाकारों के लिए एक आदर्श है। उनके गीत ग़ज़ल सभी से एक बात परिलक्षित होती है कि वह प्रतिपलवेदना में डूबे हुए  ही प्रतीत होते हैं।साहित्य जगत के जगमगाते सूरज,  एकदम सरल व्यक्तित्व के धनी" सादा जीवन उच्च विचार" उक्ति को चरितार्थ करते शत शत नमन ।
अंत में प्रवासी जी के पौत्र राहुल वर्मा ने  कहा कि साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से डॉ मनोज रस्तोगी के संयोजन में आयोजित इस कार्यक्रम से हम सभी परिजन प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं । उन्होंने कार्यक्रम में शामिल सभी साहित्यकारों का आभार व्यक्त किया।