रविवार, 6 जून 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार दुष्यन्त बाबा का गीत -----धरा से कितने ही वृक्ष भी पाए प्राण वायु और फल भी पाए कितने ही काटे कितने जलाए अब कटने से भी इन्हें बचाओ


हे!  मानव तुम  धरा बचाओ

कुछ तो इसका कर्ज चुकाओ

 

बूंद-बूंद  जल संचित  करती

अपने स्वेद से प्यास बुझाती

फिर भी न कोई कीमत पाती

ऐसे न  इसको व्यर्थ  बहाओ

 

सुबह  सबेरे  सूरज उग आता

फिर  सारे जग  को चमकाता

नही  किसी  से  ये विल पाता

ध्यान रखो! इसके  गुण गाओ

 

धरा से कितने ही वृक्ष भी पाए

प्राण  वायु और फल भी पाए

कितने ही काटे कितने जलाए

अब कटने से भी इन्हें बचाओ

 

नदियां धरा  की आभूषण  हैं

रत्नगर्भा और  कृषि भूषण है

समृद्धि  की परिचायक भी  है

प्रदूषण से  तुम इन्हें  बचाओ

 

हे!  मानव तुम  धरा बचाओ

कुछ तो इसका कर्ज चुकाओ

✍️दुष्यंत बाबा, पुलिस लाइन, मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर का गीत ----पूजन-सामग्री, कूड़ा-करकट, इनका कुशल प्रबंधन हो, बहता गंगाजल निर्मल हो, हरियाली का वंदन हो ।।


कितने जंगल खेत कटेंगें,

मानव तेरे विकास को ?

कितनी नदियां दूषित होंगी,

गंदे जल के निकास को ?


कठिन परिश्रम और करो

अब थोड़ा तो गौर करो,

हरी-भरी सुंदर धरती थी,

याद पुराना दौर करो।।


आओ अपनी धरती माँ का

वृक्षों से शृंगार करें,

धरती की धानी चूनर का

 आँचल फिर तैयार करें।।


पूजन-सामग्री, कूड़ा-करकट,

इनका कुशल प्रबंधन हो,

बहता गंगाजल निर्मल हो,

हरियाली का वंदन हो ।।


✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार का गीत -----रोगों को दूर भगाते हैं, हरते पीड़ाएँ तन-मन की, सेवा में तत्पर रहते हैं , पत्ते- पत्ते, डाली-डाली।।


मन- मोहक सुख देने वाली, होती धरती की हरियाली।

जो दुनिया के हर प्राणी के, जीवन की करती रखवाली। ।


ये हरी क्यारियां, घास हरी, इठलाती- बलखाती ऐसे,

मदमस्त हवा के झोंकों से, लहराता हो आँचल जैसे,

खुशबू से तर करती सबको, भर-भर देती मधु की प्याली। 


जब पेड़ो पर बैठे पंछी ,मीठी लय में सब गाते हैं,

तो फूलों से लिपटे भौंरे , उनसे सुर-ताल मिलाते हैं,

यह दृश्य देखकर आंखें भी, होती जाती हैं मतवाली।।


मीठे फल लगते पेड़ों पर, जो भूख मिटाते जन-जन की,

रोगों को दूर भगाते हैं, हरते पीड़ाएँ तन-मन की,

सेवा में तत्पर रहते हैं ,  पत्ते- पत्ते, डाली-डाली।।


हरियाली कारण वर्षा का ,जलवायु विशुध्द बनाती है , 

हर जीव-जंतु को धरती के , माता बनकर सहलाती है ,

सिंचित करती रस से जीवन , बनकर माली यह हरियाली।।


हितकामी जन इस जगती के, सब मिलकर चिंतन-मनन करें, 

हरियाली नष्ट न हो पाए , हम ऐसा कोई जतन करें ,

'ओंकार' तभी इस दुनिया में , सब ओर बढ़ेगी खुशहाली।।

✍️ ओंकार सिंह 'ओंकार' , 1-बी-241 बुद्धि विहार, मझोला, दिल्ली रोड, मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) - 244103

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की रचना ----वृक्ष रोपण और जल संरक्षण फ़र्ज़ ये निभाने ही होंगे , चूक यदि हो गयी इनमें तो मंजर बहुत भयावह होंगे


सर सर बहती हवा कह रही

मत काटो मनुज पँख हमारे ,

स्वस्थ साँस का स्रोत यही हैं

समझो सच जीवन का प्यारे ।


नहीं रहेंगे विपिन अगर तो

कैसे बदरा मोहित होंगे ,

बरखा रानी के दर्शन को

तरस रहे भू अंबर होंगे ।


तेज ताप का होगा नर्तन

बवंडर मृदंग बजायेंगे

तृप्त न होंगे कंठ जीव के

सब हा हा कार मचायेंगे।


विज्ञान लाचार सा दिखेगा

सुख सँसाधन मुँह चिड़ायेंगे ,

मनमाने कोप प्रकृति के

सब मिलकर बहुत रुलायेंगे ।


जागो मानव अब भी जागो

नहीं भोग के पीछे भागो ,

श्वास महकती यदि लेनी है

लोभ ऊँचे भवन का त्यागो ।


वृक्ष रोपण और जल संरक्षण

 फ़र्ज़ ये निभाने ही होंगे ,

चूक यदि हो गयी इनमें तो 

मंजर बहुत भयावह होंगे ।


✍️ डॉ रीता सिंह, मुरादाबाद


मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर के दोहे -----/


 

शनिवार, 5 जून 2021

मुरादाबाद मंडल के चन्दौसी (जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार अतुल मिश्र का व्यंग्य -----होना एक सरकारी अभिशाप का


सरकारी इश्तहारों में जो नारे लिखे होते हैं, उनकी पोज़ीशन अब यह है कि उन्हें लोग बिना पढ़े निकल लेते हैं, जिससे उन सरकारी मंसूबों पर पानी फिर जाता है, जो दीवारों पर कुछ इस अंदाज़ में लिखे जाते हैं कि आदमी भयभीत ही ना हो, उनसे डरकर उन पर अमल करना भी शुरू कर दे. लोग अब इन्हें देखकर मन ही मन कहते हैं कि यार, दफ़ा करो, जो काम खुद सरकार करवा रही है, उसी को मना भी कर रही है कि ” शराब पीना अभिशाप है. ” या ” बाप शराब पियेंगे, बच्चे भूखे मरेंगे. ” सरकार ने यह सोचा होगा कि इंडियन बाप जो हैं, वो इन इश्तेहारों से डरकर शराब पीना बंद कर देंगे और हमें यह कहने को हो जाएगा कि हमारी सरकारी मुहिम सफल रही.

मज़े की बात तो यह है कि जिस मद्य-निषेध विभाग की तरफ से ये विज्ञापन किये जा रहे हैं, उसका मंत्री कौन है और किसी भी शहर में उसका ऑफिस कहां है, भगवान सहित कोई नहीं जानता. अगर यह ऑफिस किसी गली के किसी कोने में अपना अस्तित्व बनाए हुए कहीं है भी, तो वह क्या कर रहा है, यह भी कोई नहीं जानता. कायदे में तो जिस तरह से दारू की दुकानों के बराबर ही ये विज्ञापन लिखकर दर्ज़ किये जा रहे हैं, वहां इस विभाग के कर्मचारियों को भी तैनात कर देना चाहिए कि तुम किसी को भी शराब नहीं पीने दोगे और जो पिए, उसे पकड़कर थाने पहुंचा दो, मगर ऐसा आज तक नहीं हुआ. लोग ” शराब पीना अभिशाप है.” में से ” अभिशाप ” पर कालिख या स्वसुविधानुसार गोबर पोतकर अन्दर निकल लेते हैं.

सरकार दोनों बातों में दिलचस्पी रखती है कि शराब के राजस्व से उनकी सरकार भी चलती रहे और मद्य-निषेध विभाग भी. लोगों से जिस बात को मना करो, वे उस बात को करते ज़रूर हैं, इस लिहाज़ से सरकार ने कुछ तो अपने छंद बोध से और कुछ जहां बोध सही नहीं लगा, वहां सीधे-सादे शब्दों में अपनी आवाम को यह पैग़ाम भी दे दिया कि दारू पीने के बाद यह सोचो कि तुम्हारे बच्चे अब भूखे मरेंगे कि नहीं ? ऐसे-ऐसे डरावने इश्तहार हैं कि आदमी बिना डरे ना रहे और अपना डर दूर करने को दारू ज़रूर पिए कि यार, सरकार जब खुद बिकवा रही है तो पीने में क्या हर्ज़ है ? ज़्यादा पी ली तो इसी बात को मुददा बना कर सरकार को चार-छह गालियां भी दे लीं कि मन हल्का हो जाये.

मैं अक्सर सोचता हूं कि सरकार अगर वास्तव में शराब पीने को अभिशाप मानते हुए इसकी बिक्री पर ही रोक लगा दे तो क्या होगा ? इस बारे में जब एक मंत्री से पूछा तो उन्होंने बताया कि होगा क्या, भट्टा बैठ जाएगा सरकार का. सरकार का मुंह अमरीका या विश्व बैंक की तरफ मुड़ जाएगा कि भैया, भगवान के नाम पर दे दो या ईमान के नाम पर दे दो. पड़ोसी मुल्कों को समझाना पड़ेगा कि भाई, आजकल ज़रा हालात सही नहीं हैं, इसलिए हमला-वमला करने से पहले सोच लेना कि करना है या नहीं. हमारा मुल्क अब अमन प्रिय हो गया है और लोगों ने दारू भी छोड़ रखी है. सच में, अगर एक बार ऐसा हो जाये तो शराबियों का तो जो होगा, वह होगा ही, सरकार का क्या हाल होगा, यह सोचकर मैं अक्सर गर्मियों में भी कांप उठता हूं.

✍️ अतुल मिश्र, श्री धन्वंतरि फार्मेसी, मौ. बड़ा महादेव, चन्दौसी, जनपद सम्भल, उत्तर प्रदेश

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में मुंबई निवासी) प्रदीप गुप्ता का व्यंग्य -- संस्कारी दामाद

   


हमारे मित्र शर्मा जी के लिए उनके माता पिता उनके लिए एक अच्छा मैच तलाशने में जुटे हुए थे , लेकिन कभी कोई लड़की शर्मा जी को पसंद आती तो लड़की ना पसंद कर देती , कोई लड़की उन्हें पसंद करती तो शर्मा जी को पसंद नहीं आती . फिर अचानक एक ऐसा मैच सामने आया शर्मा जी को पहली नज़र में लड़की भा गयी और लड़की को शर्मा जी . लेकिन विवाह के आड़े एक छोटी सी चुनौती आ गयी , लड़की का परिवार बेहद संस्कारी था , वे ऐसे लड़के की तलाश में थे जो उन्ही की तरह संस्कारी हो , न मीट खाता हो न ही दारू पीता हो . शर्मा जी ने लड़की वालों के सामने ‘आई शपथ’ कह कर अपने आप को सौ टका संस्कारी बता दिया . बस लड़की के पक्ष के लोग उनकी इस अदा पर क़ुर्बान हो गए, आनन फ़ानन में मुहूर्त निकलवाया गया और शादी की तारीख़ पक्की हो गयी .

शर्मा जी के सभी  मित्र उन्हीं की तरह पूरी तरह ग़ैर-संस्कारी थे . इसलिए शर्मा जी ने अपनी शादी में एक भी मित्र आमंत्रित नहीं किया , हाँ , शादी की खबर को सेलिब्रेट करने के लिए हम सब को खंडाला के पास एक रिज़ॉर्ट में ज़बरदस्त पार्टी दी , जिसके लिए ख़ास एयरपोर्ट की ड्यूटी फ़्री शॉप से जुगाड़ करके स्कॉच की बारह बोतल मँगवाई थीं . इसलिए किसी भी मित्र को उनकी शादी का निमंत्रण न पा कर कोई दुःख नहीं हुआ , क्योंकि सब को शर्मा जी की होने वाली ससुराल की संस्कारी पृष्ठभूमि का पता चल चुका था, ऐसी ड्राई जगह वैसे भी भला कौन जाता. 

शर्मा जी की शादी का कुछ कुछ ऐसा शिड्यूल था कि बारात वापस आने के अगले दिन उनके यहाँ संस्कारी क़िस्म का रिसेप्शन रखा गया था , जिसके लिए बधु की बहनें और भाई सभी आए थे , वापसी में वे लोग वधू को विदा कर कर ले गए थे. अब बारी शर्मा जी की थी , शर्मा जी अपनी पत्नी को ससुराल लिवाने के लिए गए , साले सालियों का इसरार था कि शर्मा जी को छै दिन उधर रुकना होगा . दिन भर साले सालियों के बीच शर्मा जी घिरे रहते थे , सास जी चुन चुन कर बेहतरीन से बेहतरीन वेज डिशेज़ बनाने और जमाई को अपने सामने बैठ कर खिलाने में लगी रहतीं . न नान-वेज न सिगरेट ना ही दारू,  शर्मा जी उस क्षण को कोस रहे थे जब उन्होंने शादी की ख़ातिर अपने आप को संस्कारी घोषित किया था . ससुराल में उनका यह पाँचवाँ दिन हो चुका था , दारू , सिगरेट और नान-वेज की बड़ी तलब लग रही थी . एक आइडिया उनके दिमाग़ में ट्यूब लाइट की तरह कौंधा , बस उन्होंने अपनी सासु माँ को बताया कि पेट अपसेट है आज डिनर स्किप करेंगे और थोड़ा टहलने जाएँगे . सासु माँ सुनते ही नींबू, काला नमक , काला जीरा युक्त जलजीरा बना लाईं. शर्मा जी ने जलजीरा  पिया और चुपचाप बिना किसी से कहे सुने घूमने निकल लिए. ससुराल से मात्र डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर ही उन्हें एक फ़ाइन डाइनिंग बार दिखायी दिया , शर्मा जी की बाछें खिल गयीं . आनन फ़ानन में बार में प्रवेश किया, मामला ससुराल के शहर का था इसलिए शर्मा जी ने तय किया सबसे आख़िर के स्मोकिंग ज़ोन वाले केबिन में बैठा जाए . सबसे पहले शर्मा जी ने लगातार दो सिगरेटें पी कर पाँच दिनों की बोरियत को दूर किया , पटियाला पेग स्कॉच का ऑर्डर दिया. साथ में साइड दोष में चिकेन ६९ और फ़िश फ़िंगर रोल मँगवाए. उस दिन पता लगा अगर कोई मनपसंद चीज़ कई दिनों के बाद मिले तो उसका क्या आनंद होता है . 

बस खाने पीने के इस अद्भुत सुख का आनंद उठा कर शर्मा जी केबिन के बाहर निकले तो सामने देख कर होश उड़ गए . सामने वाले केबिन से उनके ससुरश्री निकल रहे थे . काटो तो खून नहीं , ससुर जी की भी वही हालात थी पर बुजुर्ग तो बुजुर्ग होते हैं , पहल उन्ही को करनी पड़ती है आगे बढ़ कर दामाद को गले लगा लिया , उनके मुख से भी स्कॉच और फ़िश रोल की महक आ रही थी. गले मिलते ही दोनों के संस्कार भी मिल गए .

✍️  प्रदीप गुप्ता, B-1006 Mantri Serene, Mantri Park, Film City Road , Mumbai 400065

शुक्रवार, 4 जून 2021

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा ) निवासी साहित्यकार रेखा रानी की लघुकथा ----ऑन लाइन पढ़ाई


शीला  बड़बड़ाए जा रही थी कि "इस जमाने में तीन - तीन बच्चों को पालना ही कितना मुश्किल  और ऊपर से पढ़ाई भी सरकार फ़ोन पर ही करवाएगी । कहां से लाऊं इतना पैसा ..... सोनू के पापा  होते तो अपने आप जो भी करते मुझे परेशान न होने देते । सरकार के करिंदे बार बार कहे जा रहे हैं कि हाथ सैनेटाइज करो ,साबुन से हाथ धोओ एक टिक्की भी दस से कम की नहीं मिलती है..... सरकार भी....।" मम्मी! मैम कह रही थी, कि मां से कहो टच वाला फ़ोन लो बिना लिए काम नहीं चलेगा। तभी पिंकी ने कहा मां मुझे भी चाहिए, उधर से चिंकू बोला ....." मेरा काम भी नहीं चल पा रहा है बिना फोन "..... अब तो शीला ने अपना माथा ही पीट लिया और चिल्लाने लगी "एक काम करो..... मुझे बेच दो किसी को और ले लो तुम तीनों टच के मोबाइल ....हां ! तुम्हारा बाप तो बडी जायदाद छोड़ कर गया है ना ....जो उसकी कमाई से तुम्हें मोबाइल से पढ़वा लूं " कहते - कहते आपा खो गई शीला.... तभी अचानक नीचे गिर पड़ी बेहोश होकर ,ऐसी गिरी कि फ़िर कभी न उठी। तीनों बच्चे उससे चिपट कर रो रहे

✍️ रेखा रानी,  विजयनगर, गजरौला, जनपद -अमरोहा उत्तर प्रदेश।

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कहानी ---- मुंहफट भिखारिन-

 


        माही को बाहर बाइक के पास छोड़ विक्रम मोबाइल रिपेयरिंग शॉप के ऊपरी तल पर अपना मोबाइल लेने गया हुआ था।माही बाइक से टेक लगाकर अपना मोबाइल देखने लगी।तभी एक आठ-दस साल का लड़का उसके सामने कटोरा फैला कर बड़ी मासूमियत से गिड़गिड़ाने लगा,"आंटी जी!दस रुपए दे दो। बहुत भूख लगी है।" माही ने मोबाइल से नज़र हटाकर उसे बड़े ध्यान से देखा।एक आम भिखारी की तरह ही उसका चेहरा कान्तिहीन और मैला था।लेकिन उसके भीख मांगने के लहजे में माही को कहीं भी दयनीयता नहीं दिखी।उसके कटोरे में दस-दस के दो नोट थे,माही के देखते ही लड़के ने जल्दी से वे नोट अपनी नेकर की जेब में ठूंस लिये और दूसरा हाथ जिसमें एक पॉलीथिन में बिस्किट और कुरकुरे का पैकेट था वह पीछे की ओर कर लिया।

                 माही ने सब कुछ अनदेखा करके बड़े प्यार से उस लड़के की तरफ देखा और अपनी आदत के अनुसार उस बच्चे को समझाने लगी,"तुम स्कूल क्यों नहीं जाते हो,बेटा? अब तो थोड़ी थोड़ी दूर पर सरकारी स्कूल हैं।वहाँ खाना,ड्रेस,बस्ता सब मिलता है।तुम्हें स्कूल जाना चाहिए,भीख मांगना गंदी बात होती है।" 

"आंँटी पहले मैं पढ़ता था गाँव में।अब हम अपना गाँव छोड़ के आ गये न तो अभी दाखला नहीं लिया।पर मैं जाऊँगा स्कूल कल से, सच्ची।तुम दस रुपए दे दो।" लड़का वाकपटु था।पड़ी लिखी आधुनिक महिला माही भीख देने के सख्त खिलाफ थी और उपदेश वह मुक्त कंठ से बाँटती थी।फिर भी उस लड़के के बातूनीपन से रीझकर वह उसे दस रूपए देने की सोच ही रही थी कि एक पंद्रह सोलह साल की लड़की डेढ़-दो साल के एक छोटे बच्चे को गोद में लिये और दूसरे हाथ से कटोरा पकड़े वहाँ आकर रुकी।ठीक उसी तरह का संवाद उसने भी दोहराया जो उस लड़के ने बोला था।माही ने भी फिर वहीं स्कूल जाने वाली बात दोहरायी तो लड़की उसे अजीब से घूरने लगी।इधर वह लड़का जल्दी में था उसने एक आखिरी कोशिश करनी चाही,"आंँटी दस रुपए दे दो न।"

                माही कुछ कहती या देती इससे पहले ही वह भिखारिन युवती उस लड़के को पीठ पर धौल देकर खदेड़ती हुई बोली,"चल रे लक्की,आगे बढ़।ये न देने की कुछ भी।पढ़ाई की बात कर री हैं।हमें नहीं पढ़ना।हम तो पढ़ाई छोड़ के आये हैं।हम तो भीख ही मांगेंगे।इनसे मलब।बड़ी आयी सिखाने वाली।पढ़ा के नौकरी दिला देंगी क्या?हमारे अब्बा पढ़ें हैं दसवें तक।भीख माँगते हैं,अब पढ़ाओ उन्हें भी।बात बतायेंगी बस।" इस तरह लताड़कर जाती हुई उस मुँहफट भिखारिन को माही अवाक देखती ही रह गयी।

 ✍️ हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष दयानन्द गुप्त की कहानी--- नेता। यह कहानी हमने ली है उनके कहानी संग्रह मंजिल से । उनकी यह कृति अग्रगामी प्रकाशन मुरादाबाद द्वारा वर्ष 1956 में प्रकाशित हुई थी। इस कृति की भूमिका प्रख्यात साहित्यकार पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' ने लिखी है।

 


सेठ दामोदर दास दामले अपने आफिस में बैठे दैनिक समाचार पत्र पढ़ रहे थे। उनके आफिस के तीन कमरे थे। पहला कमरा क्लर्कों के लिए था, दूसरा उनके प्राइवेट सेक्रेट्री तथा तीसरा उनके बैठने के लिए था । आगन्तुक को उनसे भेंट करने के लिए दो कमरे पार करके जाना पड़ता था। प्रातःकाल के सात बजे होंगे। गर्मी का मौसम था। सात बजे भी काफी दिन चढ़ आता है। उनकी मेज़ पर कई पत्र—अंग्रेजी, हिन्दी, उर्दू तथा मराठी के पड़े हुए थे। उस समय उनकी आँखें एक अंग्रेजी दैनिक के सम्पादकीय वक्तव्य पर पञ्जाब मेल की रफ़्तार से दौड़ रही थीं। इसके बाद उन्होंने शीर्षक पंक्तियाँ तथा कहीं कहीं बीच से कुछ पंक्तियाँ पढ़ डालीं। इसी प्रकार कई पत्र बाँच डाले । लेकिन वह पत्रों का व्यावसायिक स्तम्भ अवश्य पढ़ लेते थे, क्योंकि वह उनका पैतृक गुण था। इसके बाद उन्होंने पत्रों की गिन गिन कर तह बनाई। अनेक पत्र थे – दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा मिश्रित इन पत्रों की तह बना डालने के बाद उन्होंने कमरे के चारों ओर सजे हुए सामान पर दृष्टि दौड़ाई तथा सन्तोष की एक निश्वास छोड़ी । समाचार पत्रों का सारांश, मुख्यांश, भावांश तथा रसांश ग्रहण करने के बाद उनका अपने कमरे की 'सजावट पर ध्यान गया। भैरवनृत्य करने की मुद्रायुक्त आबनूसी दीपक वृक्ष कमरे के एक कोने में रखा हुआ था | उड़ते हुए पक्षियों के चित्र, झील के सूर्योदय और सूर्यास्त के चित्र तथा राकाइन्दु पर सिन्धु-उन्माद के चित्र आदि उनकी कक्ष की दीवारों से टंगे हुए थे । एक नग्न रमणी-सौन्दर्य की प्रतिमा भी ऊँचे डेस पर खड़ी हुई थी। कमरे के ठीक मध्य में महात्मा गाँधी का हँसता हुआ चित्र उन के आदर्श तथा राजनैतिक सिद्धान्तों को व्यक्त कर रहा था। नील कादम्बिनी के रङ्ग के रँगे हुए पर्दों पर आँखें मारते हुए तारों के फूल हँस रहे थे। उनके नीचे नाचते हुए मोरों की पंक्तियाँ विलक्षण छवि ग्रहण कर रही थीं। मेज पर ताजे प्रभात की सुरभि से मदहोश पुष्पदान की महक कमरे में बसी हुई थी। सेठ दामले एक बार अपने सौभाग्य पर सिहर उठे। वे प्रान्तीय शासन मशीन के डायनमो थे। हिटलर के प्रोपेगेण्डा मन्त्री की अपेक्षा उनकी वाणी में प्रभाव और शक्ति कम नहीं थी । मिनिस्ट्री के कार्यों का प्रकाशन तथा प्रशंसा उनका प्रमुख कर्त्तव्य था । इस समय क्लर्कों के कमरे में अकेला टाइपिस्ट और दूसरे कमरे में उनका प्राइवेट सेक्रेट्री बैठे हुए थे। उन्होंने अपनी कलाई की घड़ी में समय देखते हुए प्राइवेट सेक्रेट्री से प्रश्न किया—

    “मिस्टर नीलकण्ठ, आप आज के व्याख्यानों के लिए तैयार ही होंगे। "

"केवल एक व्याख्यान रह गया है— संगीत परिषद् के

लिये ?"

" इस विषय से मैं बिलकुल अनभिज्ञ हूँ। क्या समय दिया गया है ?"

"कल ८ बजे सायंकाल | "

"आज कहां कहां जाना होगा और किस समय पर? डायरी देखिये तो ।"

 डायरी  देखकर नीलकंठ ने कहा- सबसे  पहले किसान सभा में 9 बजे महावीर दल में 10 बजे रेलवे वर्क असोसियेशन में साढ़े दस  बजे, मजदूर सभा में 11 बजे,  दलितोद्धार समिति में साढ़े 11 बजे स्काउट्स असोसियेशन में 12 बजे जाना होगा। इसके बाद आराम और फिर श्रीयुत विजयकर राव के यहाँ भोज में जाना होगा।

 "अच्छा फिर ।"

"एक लम्बी व्याख्यानमाला-म्यूनीसिपल और डिस्ट्रिक्ट बोर्ड में एड्रेस 4 बजे तक स्वदेशी संघ में 4-15 बजे, एन्टीकरप्शन सोसायटी में 4-30 बजे, नागरीप्रचार मण्डल में 6 बजे, धर्म-समाज में 6-30 बजे और फिर 7 बजे सायंकाल से 9-30 बजे तक आजाद-पार्क में भाषण।"

"ओह!"

" कल फिर आज का-सा चक्र वही, प्रचार, व्याख्यान और भाषणों का पिष्टपेषण, सम्वाद- दाताओं से मगजपच्ची , इन्टरव्यू, मुलाकात और कागजी किश्तियों की यात्रा ।”

"यह तो सदैव लगा रहेगा, जब जीवन का लक्ष्य ही देश सेवा बनाया गया है। "

"परन्तु सेठ जी बच्चे तरसते हैं हमसे बात करने को और हम उनसे । आपने तो अपने हृदय से कोमलता, ममता और स्नेह सरसता निकाल कर फेंक दी है।"☺️ ""तुम्हारी भी सब चकचकाहट जाती रहगी। धैर्य के साथ देश की सेवा करते रहो। प्रारम्भ में मेरा भी मन घबराता था और कभी कभी सार्वजनिक जीवन निष्प्राण, निराकर्षक तथा परीक्षाप्रद मालूम होता था। पर अब त्याग की पवित्रता ने दुर्बलताओं को दूर कर दिया है। "

"यह कहने में तो सुन्दर है। लेकिन वास्तव में धोखा है। इस तरह हम अन्याय करने के लिये अपनी नींव बना लेते हैं । अपनी पत्नी और संतति के प्रति भी हमारा कुछ कर्तव्य है।"


"हमें मानव में विभिन्नता और अन्तर पैदा करने का अधि कार कहाँ है ? अपने सम्बन्धियों को औरों से अधिक प्रेम करने का हमें कोई हक नहीं ।

नीलकण्ठ ने उत्तर देने के लिए मुँह खोला ही था कि डाकिये ने आवाज दी। टाइपिस्ट उन दोनों की बातों को बड़े ग़ौर से सुन रहा था। डाकिये की आवाज सुनकर वह चौंक कर खड़ा होगया डाकिये ने आकर नीलकण्ठ के सामने मेज पर लिफ़ाफों व पत्रों का ढेर लगा दिया। उसने पत्र खोलने आरम्भ कर दिये। अपने प्राइवेट सेक्रेटरी को पत्रों में व्यस्त होते देखकर सेठ जी ऊपर नाश्ता करने चले गये।

सेठ जी के छः या सात साल की एक कन्या थी। उनके केवल एक मात्र यही सन्तान थी। वह सेठ जी को देखते ही उनकी टाँगों से लिपट गई और कोई कहानी सुनाने के लिये अनुरोध करने लगी सेठजी ने टालने की ग़रज से कहा- “अच्छा कल तुम्हें एक बढ़िया कहानी सुनाऊँगा ।"

“न, मैं तो अभी सुनूँ गी।"

"नहीं बेटा, मुझे जरूरी काम से शीघ्र ही बाहर जाना है।" “आप बाहर सबको रात-दिन कहानी सुनाते रहते हैं। फिर हमें क्यों नहीं सुनाते ?”

"कल तुम्हें भी सुनायेंगे।"

"आप तो कल भी यही कहते थे । " "लेकिन अब कल जरूर ही सुना देंगे।"

“मैं तो आज ही सुनूँगी ।”

"अच्छा रात को सुनायेंगे।"

सेठजी की पत्नी पिता-पुत्री का संलाप ध्यान से सुन रही थी। बच्ची की आँखों में आँसू छलछलाते देखकर उससे न रहा गया और उसने सेठजी से भर्त्सना के मीठे शब्दों में कहा - "हम दोनों तुम्हारे लिए भटक गये हैं लेकिन यह तो नादान बच्ची है। इसका जी रख दो। ज्यादा से ज्यादा दो चार मिनट लगेंगे । ”

" तुम्हीं न कोई कहानी सुना दो।"

“मैं तो रोज ही सुनाती रहती हूँ, लेकिन यह मानती नहीं देखो, इसकी आँखों में आँसू भर आये हैं ।”

पुत्री को पुचकारते हुए सेठजी ने कहानी आरम्भ की - " एक पीपल पर एक गिद्ध रहता था। वह अन्धा था, लेकिन था बहुत ही ईमानदार और साहसी उसी पीपल के तने में कोटर था, जिसमें एक तोते का जोड़ा और उसके बच्चे रहते थे। गिद्ध बुढ्ढा हो गया था और तोते उसे दयाकर खाने को दे दिया करते थे ।”

सेठजी का नाश्ता समाप्त हो आया था और वे खाते हुए कहानी कहते जारहे थे। इतने में उनके सामने नौकर आकर खड़ा हो गया। उन्होंने पूछा “क्या है ?"

"जबाबी तार आये हैं।"

"चलो, आ रहा हूँ।" सेठजी ने अन्तिम ग्रास मुँह में देकर पानी पिया और नीचे जाने को उठ खड़े हुए। उन्होंने लड़की को पुचकार कर कहा "बेटा, बाकी कहानी लौटकर सुनाऊँगा।" यह कह कर सेठ जी चले गये।

सेठजी को आया देखकर उनके प्राइवेट सेक्रेटरी ने कहा- "यह तार विनायक रावजी आप्टे का आया है। पूछते हैं कि वर्किंग कमिटी की मीटिंग 4 मई को है आप किस गाड़ी से आयेंगे ?"

"गर्मी के मौसम में रात का सफ़र ठीक रहता है। लिख दीजिये, हम सबेरे पूना पहुंचेंगे। और दूसरा ?"

"यह दूसरा विश्वनाथ कालेलकर का है। उन्होंने भी आपको नागपुर विश्वविद्यालय की सीनेट की मीटिंग में भाग लेने को बुलाया है। महत्वपूर्ण चुनाव होगा।"

हमारी संख्या सीनेट में वैसे ही बहुत अधिक है। मेरी क्या आवश्यकता है ? इस चुनाव में शरीक होना इतना जरूरी नहीं! लिख दीजिये, समय नहीं, क्षमा चाहते हैं। "

"यह अन्तिम तार रहा ट्रेड यूनियन के जनरल सेक्रेटरी देसाई जी का। उन्होंने आपको 15 मई के लिए मौजूदा हड़ताल के सम्बन्ध में भाषण देने के लिये आमन्त्रित किया है। "

"हाँ बम्बई की कई मिलों में स्ट्राइक है लेकिन समय होगा तभी तो जा सकूँगा जरा डायरी तो देखकर बताइये।" डायरी देखकर नीलकण्ठ ने कहा- "बिलकुल समय नहीं है।" "तो लिख दीजिये कि हम समयाभाव के कारण असमर्थ हैं।"

"इन लोगों को इतना भी खयाल नहीं कि दूसरों के भी कुटुम्ब है, पत्नी और सन्तान है। उन लोगों का भी कोई हक है। उनको भी एक मिनट छोड़ना नहीं चाहते।"

“रहने दीजिये। इन बातों की कोई जरूरत नहीं हम लोग देश के सेवक हैं। जरा डायरी तो मुझे दीजिए।"

सेठजी ने अपने प्राईवेट सेक्रेटरी से डायरी लेकर स्वयं देखना आरम्भ कर दिया। डायरी देखने के बाद उन्होंने कहा "बेशक 15 मई को समय तो नहीं है, लेकिन मध्यान्ह के बाद हमारा भोज का प्रोग्राम है। उसमें सम्मलित न होकर वहाँ पहुँच सकते हैं। आप लिख दीजिए कि मैं आऊंगा । महाशय खोटे जी से क्षमा याचना कर लोजिये, मैं भोज में सम्मिलित न हो सकूँगा।

"बहुत अच्छा" कह कर नीलकण्ठ ने उनकी आज्ञा का पालन आरम्भ कर दिया और सेठजी ऊपर कपड़े पहनने चले गये ।

इस समय 8-30 बज चुके थे। ऊपर पहुंचते ही सेठजी की कन्या ने बाकी कहानी समाप्त कर देने का आग्रह करना शुरू किया। सेठजी कपड़े पहनते जाते थे और कहानी कहते जाते थे। उन्होंने कहा

“गिद्ध इतना दुर्बल था कि वह उड़ नहीं सकता था। चिड़ियों की कृपा से उसके दिन सुख से बीत रहे थे। जब चिड़ियाँ दिन में अपने बच्चों को अकेला छोड़कर भोजन लाने के लिये उड़ जाती थीं तब वह गिद्ध उनके बच्चों की देख-भाल किया करता था। एक दिन एक बिल्ली उधर आ निकली। उसने चिड़ियों के बच्चों को फुदकते हुए देखा तब उनका कोमल माँस खाने के लिए उसकी जीभ तड़प उठी" सेठजी कहानी कह ही रहे थे कि उनका नौकर सामने आकर खड़ा हो गया । उसने कहा – “किसान सभा के 'नेता' नीचे आपकी प्रतीक्षा में बैठे हुए हैं ।"

एक बार फिर अपनी बच्ची को प्यार भरे शब्दों में किसी और समय कहानी सुनाने का दिलासा देते हुए कपड़े शीघ्रातिशीघ्र पहनकर सेठजी नीचे चले गये। उनकी बच्ची और पत्नी हृदय थाम कर रह गईं। सेठ जी को कहानी पूरा करने को अवकाश ही न था। सार्वजानिक जीवन पराया हो जाता है, अपना नहीं रहता।

सेठजी शाम को एक घण्टे की जगह आध घंटे के लिए ही अपने घर आ सके। वैसे तो वे अपने समय के बड़े पाबन्द थे, लेकिन जलसों का भारतीय समय ठहरा, पाँच पाँच मिनट की देर होते होते शाम तक आध घंटे की देर हो ही गई। उन्होंने जल्दी जल्दी खाना खाया उनकी पुत्री कहानी कहने का आग्रह करती रह गई और वे चले गये। रात्रि को 10-20 पर लौटे। मां-बेटी दोनों सो गई थीं। सेठ जी ने उन्हें जगाना उचित न समझा और वे भी सो गये।

सबेरे फिर और दिनों की तरह उन्होंने अपने प्राइवेट सेक्रेटरी से दिन का कार्य्य क्रम मालूम किया। आज उन्हें संगीत विषय पर भाषण करना था, जो उनकी योग्यता के बाहर था। इसमें उनका दखल न था और वे बहुधा राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक समस्याओं पर ही बोला करते थे लेकिन नेताओं से तो जनता सब विषयों के ज्ञान की आशा करती है और नेतागण भी अपने को सब कायों में नेता गिनने लगते हैं। उन्होंने अपने सेक्रेटरी से कहा “संगीत विषय का भाषण किस प्रकार तैयार किया जाय ?"

“मिस्टर गांगुली की जो नई पुस्तक कल-आई है उसे देख जाइये या किसी का गाना सुनकर अपनी कल्पना कर लीजिए ।""

सेठ जी ने कुछ विचार करने के बाद कहा – “संगीत-परिषद् के मन्त्री को 8-20 बजे सायंकाल का समय सूचित कर दो। मैं 8 बजे भाषण नहीं प्रारम्भ कर सकूँगा।"

"जो आज्ञा " सेक्रेटरी ने उत्तर दिया

दिन भर के भारी कार्य्य के बाद संध्या आई। भोजन करके सेठजी ने अपनी पत्नी से प्यार भरे शब्दों में कहा - "आज तुम्हारा संगीत सुनने को जी कर रहा है ।

पत्नी ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया - " अहो भाग्य !”

सेठजी ने उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा – “समय ही नहीं मिलता कि दो चार मिनट भी तुम्हारे पास बैठकर बात-चीत कर सकूँ । सार्वजानिक जीवन वालों को अपने साथ अन्याय करना पड़ता है। "

" और अपने सम्बन्धियों के साथ भी। सच जानो तुम्हारे लिये मेरा हृदय कितना उत्कंठित रहता है ! तुम हमें कितना भूल गये हो !" यह कहने के बाद उसके नेत्र डबडबा आए ।

“नहीं, भूला नहीं, किन्तु विवश हूँ। मैं भी विवश हूँ, हृदय रखता हूँ, पर संसार की सेवा का व्रत धारण कर चुका हूँ। तुम्हें भी अपना यही आदर्श रखना चाहिए।"

" और अपने कुटुम्ब के प्रति तुम्हारा कोई कर्त्तव्य नहीं । मुझे जीवन सहचरी बनाते समय मुझसे ही प्रतिज्ञाएँ ली थीं और क्या स्वयं कोई वचन नहीं दिया था ? परमार्थ प्रेमी को किसी दूसरे को बन्धन में बाँधना ही नहीं चाहिए।"

तुम्हें तो मैंने मुक्त कर रक्खा है, लेकिन तुम ही इस चहर दीवारी से बाहर नहीं जाना चाहतीं। तुम भी इस गृह के अँधेरे से निकल कर इस संसार के प्रकाश में क्यों नहीं आ जाओ ?"

"मेरे इस गृह से बाहर आने पर यहाँ अँधेरा हो जायगा । मेरे यहाँ रहने से अँधेरा नहीं, प्रकाश रहता है लेकिन जब मैं यहाँ रहती हूँ, तुम ही क्यों न अपना कार्यक्रम मेरा सा बना लो । झगड़ा ही समाप्त हो जाय । "

" और देश सेवा ?"

“यह सब ढोंग है। जो खुद दूसरों पर अन्याय करते हैं वे दूसरों पर कैसे न्याय कर सकते हैं ?"

"आज शास्त्रार्थ का समय नहीं है। मेरे यह आनन्द के क्षण हैं। मैं इन्हें नीरस बातों में नष्ट नहीं करना चाहता हूँ । चलो कुछ गाना सुनाओ।"

सेठ जी ने यह कहा ही था और वे अन्दर के कमरे में जाने वाले ही थे कि उनकी कन्या ने कहानी पूरी कर देने का आग्रह किया। माँ-बाप की बात-चीत वह बड़े ध्यान से सुन रही थी और उसने कोई बाधा नहीं डाली थी, लेकिन अब उसका चपल शिशु-धैर्य्य देर तक कहानी टलते देखकर रुक न सका । एक बार गाना आरम्भ हो जाने पर कितना समय लगता, अत: उसने टोकना ही उचित समझा पर इस बार माँ ने घुड़क दिया । एक गाना आरम्भ हुआ हारमोनियम के साथ उसके स्वर में आज माधुरी घुस गई थी। उसके हर्ष का वारापार न था। उसने बहुत दिनों के बाद आज अपने प्रिय पति के कहने से गाया था।

हृदय के सरस स्रोत सूख चुके थे, लेकिन आज उसमें उन्माद-ज्वर आगया था। सचमुच वह अपने प्राणों के स्वर फूँक रही थी। सेठजी गाने में तन्मय हो रहे, लेकिन वे गाने के प्रभाव से उत्पन्न विचारों को स्मृति बद्ध करना नहीं भूले थे। व्याख्यान का भूत उनके सिर पर सवार था । वे गाना सुन रहे थे, लेकिन सोच कहीं और ही रहे थे। आनन्द के प्रवाह में अविराम गति से बहने का भी उनका भाग्य न था, क्रूर काल उन पर मन ही मन हँस रहा था। उन्होंने अपने विचार अंकित करने के लिए चुपके से कागज पेन्सिल उठा ली और संक्षिप्त नोट लेना शुरू कर दिये। उनकी पत्नी मीड़ की लहरी में नयन-निमीलित किये हुए डूब रही थी।

उसने नेत्र खोले तब सेठजी को काग़ज़ पर कुछ लिखते देखा। उसका एकदम यह भाव हुआ कि वे केवल उसका मन बहला रहे हैं और उन्हें गाना नहीं सुनना है, अपना कार्य करना है। गाने का उन्होंने एक बहाना उसे प्रसन्न करने के लिये निकाला है। उस समय वह गा रही थी

'हाय तुम कैसे विमोही !

आज रुक जाओ निठुर घर 

यों न जाओ प्राणमोही ।'

कि उसका कण्ठ एकाएक सिसकियों से रुद्ध होगया आँसू आँखों में उतर आये स्वरतार अनायास टूट गया। यह देखकर सेठजी स्तम्भित रह गये। उन्होंने तत्काल खड़े होकर उसका हाथ पक ड़कर पूछा - "क्यों तुम्हें क्या हुआ ?"

"कुछ नहीं कुछ नहीं।" एक हाथ से आँसू पोछते हुए वह संगीतशाला को उजाड़ती हुई उठ खड़ी हुई । उसने कहा इतना धोखा ! इतना छल !"

"नही, धोखा कैसा ?"

"और क्या ? गाने का तो बहाना था। "

"मैं तो अपने भाव इकट्ठे कर रहा था, भाषण देने के लिए। " उन्होंने कहा

“तो फिर मैं आपके व्याख्यानों का यन्त्र हूँ। मेरा गाना आनन्द के लिए नहीं है। सभाओं में भाषण देने के लिए इसका भी अस्तित्व है अन्यथा इससे क्या प्रयोजन ? तुम्हारे व्याख्यानों पर इसका भी जीवन निर्भर है। अब मैं कभी ऐसी ग़लती न करूँगी ।" उसने दृढ़ता से उत्तर दिया। “तो इसमें तुम्हारा गया क्या ?"

    "चोट पहुँचाकर अपमान करना भी जानते हो। यह काम तो किसी भी किराये की गायिका से निकाला जा सकता था। मेरी ही क्या जरूरत थी ?" उसने एकटक नेत्रों से सेठजी की ओर देखा। उनमें अपमानित स्त्रीत्व की ज्वाला निकल रही थी।

    सेठजी कुछ कहने को मुँह खोल ही रहे थे कि नौकर को देखकर वे पानी पानी हो गये। शायद उसने उनकी सब बातें सुनी होंगी। पता नहीं कितनी देर से खड़ा हुआ है। उसकी ओर उनका ध्यान न जा सका था। उनके पूछने पर उसने कहा "संगीत परिषद के कार्यकर्त्ता आये हैं। "

  सेठजी ने अपनी कलाई की घड़ी देखी। देर हो चुकी थी। उन्हें संगीत की तरंग में समय का बोध न हो सका था। वे जल्दी जल्दी कपड़े पहनने लगे। उनकी कन्या ने फिर अपनी पुरानी हठ आरम्भ की वह अधिक कह भी न पाई थी कि उस की मां ने उसे बलपूर्वक गोद में उठा लिया और उसे ले दूसरे कमरे में चली गई। वह उसे कहती जा रही थी - " चल । मैं आज तुझे कहानी सुनाऊँगी।”

     सेठजी अकेले कपड़े पहनते रह गये । कुछ मिनटों के बाद वे रंगमंच पर आवेश के शब्दों में भाषण दे रहे थे । जनता अपलक दृष्टि से उनके मुख को देखती हुई ध्यानमग्न उनके भाषण प्रवाह में बह रही थी। सभा में सन्नाटा था, केवल उनकी वाणी सुनाई देती थी और उधर माँ बेटी सिसकी भरती हुई एक-दूसरे से चिपटी निद्रा का आवाहन कर रही थीं।

:::::::::प्रस्तुति:::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की लघुकथा----- बहू

 


"देखो भाभी,पापा की बातों का बुरा मत माना करो।अब उनकी उम्र हो गयी है,ऊपर से बीमार भी हैं।अगर कुछ उल्टा सीधा बोल भी रहे हैं,तो बुजुर्गों  की बात का बुरा नहीं मानते...और हाँ उनके खाने -पीने का भी खास ख़्याल रखा करो....इस घर की बहू होने के नाते आपका फर्ज़ है भाभी......बेटियाँ तो दूर रहकर कुछ भी नहीं कर पातीं....."सुमन अपनी भाभी,नेहा से फोन पर बात करते हुए बड़े समझाने वाले स्वर में कह रही थी। "

"बहू ..अरे बहू..! कहाँ चली गयीं, आज चाय देना ही भूल गयी क्या बेटा ?,"दूसरे कमरे से सुमन की बीमार सास ने कराहती  आवाज़ में  कहा ।सास की आवाज़ सुनकर सुमन ने कहा,"रुको भाभी ,अभी बाद में फोन करती हूँ..पापा जी का ख्याल रखना...।"कहकर सुमन ने फोन काट दिया। "इस बुढ़िया को पल भर भी चैन नहीं.... पता नहीं कब मरेगी..नाक में दम करके रखा है....पूरा दिन कभी चाय,कभी पानी.......कभी खाना....   बहू...! बहू....! करके इस बुढ़िया ने तो जीना मुश्किल कर दिया है....।"बड़बड़ाती सुमन चाय का पानी गैस पर रखने लगी।

,✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का व्यंग्य ----वरिष्ठ नागरिकों का जीने का अधिकार

     


वरिष्ठ नागरिकों को भला कौन पूछता है ? वरिष्ठ हो ,लेकिन गरिष्ठ भी तो हो ? अब न तुमसे कुछ खाना पच पाता है और न तुम देश को पच पा रहे हो । खाते पीते वरिष्ठ सामाजिक लोग भी वरिष्ठ नागरिकों को अब इसी दृष्टि से देखते हैं । घरों में तो वरिष्ठ नागरिकों को एक कोने में खटिया पर पड़े रहने का उपदेश देने वाले लोगों की संख्या समाज में पहले से ही कम नहीं है ।

     लेकिन इन सब में भी एक पेंच है । अगर वरिष्ठ नागरिक रिटायरमेंट के बाद पेंशन पा रहा है और पेंशन की रकम मोटी है तथा बाकी घर का खर्चा भी उस पेंशन की रकम से चलता है तो बुड्ढे की उम्र चाहे जितनी हो जाए ,उसको जिंदा रखने के लिए पूरा परिवार रात-दिन एक कर देगा । बूढ़े को मरने नहीं देगा । उसकी पेंशन को जिंदा जो रखना है ! कुल मिलाकर मामला उपयोगिता का है ।

      ले-देकर वह वरिष्ठ नागरिक रहमो-करम पर रह जाते हैं ,जिन बेचारों की जेब में पांच पैसे नहीं होते । केवल चालीस साल पुराने संस्मरण होते हैं या फिर समाज में बैठकर सुनाने के लिए चार उपदेश होते हैं । उपदेश कोई वरिष्ठ नागरिक के श्रीमुख से ही क्यों सुने ? उसके लिए गीता ,रामायण और न जाने कितनी बोध-कथाएं हैं । जरूरत है ,तो किताब खोलो और पढ़ लो । जो उपदेश कथावाचक लोग देते रहते हैं ,जब इन सब की किसी ने नहीं सुनी तो फिर लोग वरिष्ठ नागरिक की ही क्यों सुनेंगे ? 

          वरिष्ठ नागरिक अपनी जेब में हाथ डालता है ,तिजोरी खोलता है और बैंक की पासबुक को बार-बार जाकर बैंक में भरवाने का प्रयत्न करता है । लेकिन हर बार उसे निराशा ही हाथ लगती है । कहीं से पैसा आए ,तब तो बूढ़े व्यक्ति के हाथ में दिखेगा ? जब तक पैसा नहीं है ,वरिष्ठ नागरिक सिर्फ कहने के लिए वरिष्ठ हैं । खाते पीते वरिष्ठ सामाजिक लोग तो उनके बारे में निर्ममतापूर्वक यही कहेंगे कि बहुत जी लिए । अब दूसरों को जीने दो।

              इसलिए मेरी तो सलाह सब वरिष्ठ नागरिकों से यही है कि चाहे जैसे हो ,अपने हाथ-पैर सही सलामत रखो। चलते-फिरते रहो । दिमाग सही काम करता रहे । वरना अगर ठोकर लगी ,गिर पड़े  और हड्डी टूट गई तो कोई प्लास्टर बँधवाने वाला भी नहीं मिलेगा । चतुर लोग यही कहेंगे " इन हाथ-पैरों से बहुत चल चुके हो । अब व्यर्थ प्लास्टर पर खर्चा क्या करना ? "

          एक प्रश्न यह भी मन में उठता है कि वृद्ध-आश्रम या ओल्ड एज होम सही भी हैं या इनको भी बंद कर दिया जाए ? नौजवानों के लिए काफी पैसा बच जाएगा ? कितना अच्छा होता ,यदि भगवान ने मनुष्य की आयु सौ वर्ष के स्थान पर केवल साठ वर्ष की रखी होती । इधर आदमी वरिष्ठ नागरिक हुआ ,उधर अर्थी तैयार है । लेटो। हम शवयात्रा खुशी-खुशी शमशान लेकर जाते हैं। तुम नई पीढ़ी को चैन से जीने दो । 

 ✍️ रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश ) मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ---पहचान


समाज में महिलाओं को जागरूक करने की मुहिम लता  ने शुरू कर रखी थी।शहर की संस्थाओं के बाद उसने गांव का रुख किया।एक गांव में वह सभा में आयी सभी स्त्रियों से उनके नाम पूछ रही थी।घूघंट निकाले जब एक नवयुवती का नम्बर आया तो वह चुपचाप रही।बहुत कहने के बाद वह खडी़ हुई।लता ने बडे प्यार से पूछा,"आप अपना नाम बताओ, हम अपने रिपोर्ट में लिखेगे"।वह बोली,"मेरा नाम  मुझे पता नहीं।सब यह सुनकर हँस पडे़ लता ने समझाया ",जिस नाम से सब आपको बुलाते हैं वह नाम बतायें"।

वह बोली",हम सच कह रहे हैं हमें अपना नाम पता करने के लिए अपने घर जाना होगा।बाबू से पता करके बतायेंगे।बचपन में सब रामुआ की लड़की कहते थे। दादी कलमुँही कहती थी।फिर ब्याह हो गया तो कलुआ की बहू के नाम से सब बुलाते थे।जब से किसना का जनम हुआ तो सभी किसना की अम्मा कहते हैं।यही हैं हमारे नाम ।बापू ने जो नाम दिया होगा हमें याद नहीं ।

उसकी बात सुनकर लता निरुत्तर रह गयी।

✍️ डा.श्वेता पूठिया, मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा ------इंसानियत का रिश्ता

 


 'इनकी दोनों किडनी खराब हो चुकी है। इनका ब्लड ग्रुप ए नेगेटिव है।इसी ब्लड ग्रुप की किडनी चाहिये क्योंकि दूसरे ब्लड ग्रुप से कोम्प्लीकेसन के चांस रहते हैं। जल्द इन्तजाम कीजिये। डॉक्टर ने राजेश से कहा।

           राजेश का ब्लड ग्रुप ए पॉजिटिव था। वह बहुत परेशान था। रागिनी के बिना वह जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता था। वह बैन्च पर बैठकर सभी रिश्तेदारों को फोन मिलाने लगा, पर कहीं से कोई इन्तजाम नहीं हो पाया। जिनका ब्लड ग्रुप ए नेगेटिव था, उन्होने भी मना कर दिया। राजेश नीचे मुहँ करके बैठ गया।उसे कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही थी। अचानक एक अजनबी ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा, 'दोस्त मेरा ब्लड ग्रुप ए नेगेटिव है, मैं किडनी देने को तैयार हूँ।'

पर ........तुम्हारे से तो मेरा कोई रिश्ता भी नहीं है, फिर तुम क्यों .........राजेश ने रुंधे गले से कहा।

       तुम शायद भूल रहे हो, एक बहुत गहरा रिश्ता है मेरा तुमसे .............. इंसानियत का रिश्ता। मै अपनी बीवी को नहीं  बचा सका, पर दोस्त अपनी बहन को कुछ नहीं होने दूँगा। चलो उठो, जल्दी चलो।

दोनों उठे और तेज कदमों से चल दिये।

✍️  प्रीति चौधरी ,गजरौला, अमरोहा 


                       


मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा ----पहचान


" मेरा नाम रवि कुमार है। मैं आयकर अधिकारी था।" 

" मैं श्यामा प्रसाद ,डिग्री कॉलेज में प्रधानाचार्य था।"

" मैं राम सिंह हूं। सिंचाई विभाग में मुख्य अभियंता के पद से सेवा निवृत हुआ हूं।"

  सब बारी बारी से,बड़े गर्व के साथ अपना परिचय दे रहे थे। हरिप्रकाश, जो बड़े बाबू के पद से सेवा निवृत हुए थे,अटपटा सा महसूस कर रहे थे। सोच रहे थे, मैं इन बड़े लोगों के बीच कहां फंस गया।जब उनकी बारी आई,उन्होंने हिम्मत जुटा कर बोलना शुरू किया,"क्षमा चाहता हूं। मुझे कुछ भी नहीं याद आ रहा है। मैं किस विभाग में था,किस पद पर था। मैं तो अपना नाम तक भूल चुका हूं। मैं केवल इतना जानता हूं कि मैं एक सेवा निवृत कर्मचारी हूं। अब यही मेरी पहचान है।"

✍️ डॉ पुनीत कुमार, T2/505 आकाश रेजीडेंसी, आदर्श कॉलोनी रोड, मुरादाबाद 244001, M 9837189600

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा -----नया चश्मा


पिद्धान जी तुमने तो कही थी कि अगर हम तुमको वोट दें तो हमारे घर नयो पखानो बन जायेगो ।"वह नीचे बैठा गिड़गिड़ा रहा था ।

"हां भई हां कही थी हमने जे बात मगर अबे पैसा कहां आयो है सरकार से जो तुम्हारी जरूरतें ऐक दिन में पूरी कर दें ...सरकारी काम है दद्दा टेम लगेगो टेम ।"नवनियुक्त प्रधानजी ने मूंह से बीड़ी का धुआं निकालते हुए कहा ।

वह अब खामोश होकर उल्टे पांव जाने लगा ।

"का करें नैकौ चैन से न रहन देत हैं जे सब मूरख ।"पिद्धान जी ने अपने नए नवेले काले चश्मे को पौंचते हुए कहा ।

और पहली ही किश्त में आई बुलेट पर बैठकर फुर्र हो गए अब इस नए चश्मा से गांव की समस्याएं  दिखाई देने बंद जो हो चुकी थीं ,जो पहले नंगी आंखों से साफ दिखाई दे रहीं थीं लेकिन सिर्फ वोट लेने से पहले तक ।

✍️ राशि सिंह, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश


मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ---विश्वास


.... ट्रेन का समय हो चुका था ....जल्दी-जल्दी टैक्सी को पैसे दिये और भागते भागते ट्रेन पकड़ी ट्रेन में बहुत भीड़ थी ....

जैसे ही विकास अपनी बर्थ तक पहुंचा..... कि ट्रेन चल दी....

...... 5 दिन बाद रेनू की शादी है सभी तैयारियां विकास को ही करनी थीं.... बैंक से 100 की 500 की नए नोटों की गड्डियां कैश निकाला..., गहने ,कपड़े ,बनारसी साड़ियां बनारस से ही खरीदीं काफी सामान हो गया था ....इसीलिए उसके पास दो बड़े बड़े सूट केस हो गये.... जिन्हें संभाल कर उसने अपनी बर्थ के नीचे रख लिया।

....... सामने वाली बर्थ किसी दिनेश गोस्वामी की थी..... शायद उसकी भी ट्रेन छूट गई...... वैसे सभी बर्थें  भरीं थीं......... प्रतापगढ़ से वह बर्थ *विश्वास* (दूसरी सवारी )को दे दी

गयी ....गोरा चिट्टा सजीला नौजवान सात फिटा.... किसी हीरो से कम आकर्षक व्यक्तित्व नहीं..... विकास के सामने वाली बर्थ पर आ गया चेहरे पर मुस्कुराहट ने बरबस ही विकास को उससे बोलने के लिए मजबूर कर दिया....।

         धीरे-धीरे विकास और विश्वास में घनिष्ठता बहुत बढ़ गई खाने का समय हुआ तो  दोनों ने अपने-अपने घर से लाया हुआ खाना निकाला साथ बैठकर खाना खाया हंसी मजाक होती रही । बातों ही बातों में विकास ने उसे बहन की शादी में आमन्त्रित भी कर दिया........ थोड़ी देर बाद विश्वास को टॉयलेट जाना पड़ा बड़े सुंदर से इंपोर्टेड दो सूटकेस इसके पास भी थे !....बर्थ पर रखकर विकास को सौंप कर चला गया.... शायद काफी देर से रोके हुए था... काफी देर में लौटा.... धीरे धीरे बरेली पास आ रहा था और विकास भी फ्रेश होने के लिए अपना सामान उसको सौंप कर टॉयलेट चला गया बरेली में ट्रेन रुकी....... लौट कर आने पर देखा विश्वास वहां नहीं था और ट्रेन बरेली से आगे खिसक चुकी थी सामने वर्थ पर विश्वास के सूट केस रखे हुए थे ..... जिन्हें देखकर विकास ने चैन की सांस ली..... जब काफी देर हो गई तो उसे चिंता हुई शायद वह बरेली स्टेशन पर उतरा हो और ट्रेन छूट गई हो.... काफी देर इंतजार करने के बाद भी जब वह नहीं लौटा जो विकास ने झांककर अपनी बर्थ के नीचे देखा ........  तो उसके होश उड़ गए... ........ये क्या ! विकास के दोनों सूटकेस गायब थे.... उसकी जैसे जान ही निकल गई हो.......फिर क्या था ....पूरे कंपार्टमेंट में और पूरी ट्रेन में विकास ने उसे खूब ढूंढा परंतु वह कहीं नहीं मिला .......पुलिस को सूचित किया....

मुरादाबाद आ चुका था उसके सूटकेस खुलवाए गए सूट केसों में अखबारों के बीच में पत्थर के टुकड़े भरे हुए थे......! फोन मिलाने पर बार-बार मैसेज आ रहा था यह नंबर मौजूद नहीं है कृपया नंबर की जांच जांच कर ले.........

....... विकास का सर चक्कर खाने लगा!

✍️ अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद , मोबाइल फोन 82188 25 541

मुरादाबाद की साहित्यकार कंचन खन्ना की लघुकथा ------- तनावमुक्त

 


कल से लॉकडाउन खुल रहा है। शाम की चाय पीते हुए ज्यों ही पुत्र ने बताया, शर्मा जी के हृदय को अनकही सी राहत मिली। शर्मा जी रिटायर्ड प्रोफ़ेसर थे। अधिकांश समय मित्रों से मिलने-जुलने व पढ़ने-लिखने में व्यतीत होता था। इधर जब से कोरोना फैला, घर में बंदी से बनकर रह गये थे। पुत्र का जनरल स्टोर था। राशन व दैनिक आवश्यकता की वस्तुएँ मिलने के कारण दुकान सुबह जल्दी ही लॉकडाउन के बावजूद भी खुल जाती थी, जिससे घर की व्यवस्था में भी बदलाव आ गया था। सुबह बहू जल्दी उठकर पुत्र को चाय-नाश्ता बना कर देती। पोते को भी पुत्र साथ ही मदद के लिये ले जाता। बहू और शर्मा जी घर में रह जाते। घरेलू नौकरानी भी लॉकडाउन में आ नहीं रही थी। बहू पुत्र के साथ ही सुबह उठकर रसोई में जुट जाती, जिससे शर्मा जी की सुबह की चाय लेट हो गयी थी। बहुत बार तो चाय मिलने तक दोपहर के बारह बज जाते। उस पर बहू अनेक बार छोटे-बड़े काम में मदद के लिये कह देती, उसे अकेले परेशान देख स्वयं शर्मा जी भी मदद कर देते। किन्तु दिनचर्या अव्यवस्थित सी हो गयी थी। पुत्र व पोता दोपहर बाद दुकान से लौटते तो बहू समेत सब खा-पीकर सो जाते।

      लॉकडाउन से पूर्व शर्मा जी सुबह परिवार के अन्य सदस्यों के जागने से पूर्व ही नहा-धोकर अपनी व बहू की चाय बनाते, बहू की चाय उसे देते, फिर स्वयं चाय बिस्कुट का नाश्ता करके टहलने निकल जाते। दोपहर तक मित्रों से मिलकर लौटते तो खाना खाकर कुछ देर आराम करते फिर शाम की चाय बहू व पोते के साथ पीकर पुत्र के पास कुछ समय दुकान पर बिता आते।

      किन्तु लॉकडाउन में समस्त दिनचर्या अव्यवस्थित हो गयी थी। पोते का विद्यालय बंद, पुत्र की दुकान के समय में बदलाव से उनकी व बहू की दिनचर्या के साथ ही, सबकी दिनचर्या में बदलाव होने से सभी असहज से होकर रह गये थे। आज ज्यों ही लॉकडाउन के समाप्त होने की सूचना पुत्र ने परिवार को दी तो समस्त परिवार के चेहरों पर अनकहा सा सुकून दिखाई दिया जिसे महसूस कर शर्मा जी मानो अनचाहे तनाव से मुक्त हो गये।

✍️ कंचन खन्ना, कोठीवाल नगर, मुरादाबाद, उ०प्र०, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघु कथा -----बच्चा चोर


अरे,अरे,,,तुम सब लोग यह क्या कर रहे हो।इस स्त्री का क्या दोष है जो तुम इस पर इतनी बेरहमी से लात-घूंसे चला रहे हो।

    साहब, आप नहीं जानते यह भोली नहीं बच्चा चोर है बच्चा चोर।  ठहरो,अभी इस महिला से ही पूछ लेते हैं,की जो बच्चा उसके हाथ से छूटकर नींचे गिरा है, वह उसका अपना है या वह कहीं से उठाकर ले आई है।

     भद्र पुरुष ने पहले तो उस स्त्री को पानी पिलाया,फिर थोड़ा शांत होने पर उससे बड़ी विनम्रता से पूछा 'बहन' तुम डरो मत, मुझे साफ-साफ बताओ कि यह उग्र भीड़ जो कह रही है वह सत्य है क्या?

    नहीं-नहीं यह बिल्कुल भी सत्य नहीं है।मैने किसीका बच्चा नहीं चुराया भैया। भला एक माँ होकर में ऐसा घृणित कार्य क्यों करूंगी।

    सच तो यह है कि मेरे बच्चे को बहुत तेज़ बुखार है,मैं उसे पास के गांव में वैद्य जी को दिखाने की जल्दी में थी।चलते-चलते मेरा पांव किसी पत्थर से टकरा गया।मैं गिरते-गिरते बची मगर मेरा बच्चा छिटककर दूर जा गिरा।बच्चे को गिरते देख इन लोगों ने यह समझा 

की बच्चा मैंने इनको आते देख जानबूझकर फेंक दिया है।

    तभी इन लोगों ने चोर,चोर बच्चा चोर का शोर मचाते हुए मुझे अभद्र शब्दों के साथ बुरी तरह से मारना-पीटना शुरू कर दिया।

       मैंने इनके आगे बहुत हाथ -पंजे जोड़े और यह समझाने की हर संभव कोशिश की की यह बच्चा किसी और का नहीं मेरा ही है।पर इनके सर पर तो भूत सवार था।किसी ने मेरी एक न सुनी।वह तो आप अच्छे आ गए वर्ना तो ये मुझे जान से ही मार देते कह कर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी और कहने लगी मेरे बाद मेरे बच्चे का क्या होता।

     आप तो इस गांव के हर घर से बच्चा खोने की सूचना मंगालें,अगर सही हुआ तो में सभी के सामने स्वयं को दोषी मान लूंगी।अन्यथा इन सरफिरे गुंडों को भी एक माँ के साथ अभद्रता करने की न्यायोचित कार्यवाही की व्यवस्था अवश्य ही कराएं।

     आपका बहुत बड़ा उपकार होगा भाई साहब!

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी", मुरादाबाद/उ,प्र, मोबाइल फोन नम्बर 9719275453

                  

                 

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गुरुवार, 3 जून 2021

बुधवार, 2 जून 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष दयानन्द गुप्त के गीत उन्हीं की हस्तलिपि में .....








 

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी की कविता ---रथ पर चढ़ो----------


हे!

भारत महान

तुम्हें मिलते रहते हैं

दीपक भी,

घंटे-घड़ियाल

और थाली भी।

तुम!कितने महान हो 

कुछ बोलते ही नहीं

खाते रहते हो गाली भी।।

ऐसी क्या विवशता है

जो तुम,

जी लेते हो घुट-घुटकर भी।

सहनशीलता तुमने

त्यागी ही नहीं

लुट-लुटकर भी।।

अब,

ये वाली महानता तो

छोड़ ही दो।

शांति दूत मौनी बाबा!

बेचारी शांति की सोचो

और,मौन

तोड़ ही दो।।

कुछ शाश्वत भी है

जिसे,

गिल्ली-डंडा खेलने वाले

बच्चे भी खूब जानते हैं।

लातों के भूत

बातों से नहीं मानते हैं।।

सहनशीलता से

सुचेष्टाओं की

कुचेष्टाओं पर

जीत नहीं होती है।

तुलसीदास की मानों

भय बिन प्रीत नहीं होती है?

यह किस्सा नहीं है केवल

आज का, अभी का।

तुम तो सम्मान 

करते आ रहे हो सभी का।।

फिर भी,

कुछ आगबबूले

तुमसे,

स्थाई रूप से क्रुद्ध हैं।

उन्हें ही,

झेले जा रहे हो

जिन्होंने तुम्हारे भीतर

जमकर, 

बैठाए कई युद्ध हैं।।

तुमने गीता सुनी थी

उसी को फिर से पढ़ो।

सारथी कृष्ण हैं तुम्हारे

रथ पर चढ़ो----------।।

✍️ डॉ.मक्खन मुरादाबादी, नवीन नगर ,कांठ रोड, मुरादाबाद 244001

Email:

 makkhan.moradabadi@gmail.com

Mobile: 9319086769

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ जगदीश शरण का व्यंग्य ------"तमाकू पर प्रवचन "


          अपने कॉलेज जाने के लिए घर से निकलकर जैसे ही मैं नुक्कड़ पर स्थित पान के खोखे के करीब पहुँचा, अपने पोपले मुख के सींक से भी पतले होठों में सुरती दबाए मेरे जाहिल भतीजे लल्ला ने मेरा रास्ता रोक लिया। मैंने उसे तत्काल घुड़का लेकिन रेल-ड्राइवर के बार-बार सीटी बजाने पर भी रेललाईन से न हटनेवाले गधे की तरह वह बेग़ैरत अपनी जगह से टस-से-मस न हुआ। आखिर मैंने रुक जाना ही उचित समझा।

       मैंने देखा, लल्ला आज पूरे राजसी ठाठ में दिखाई दे रहा है। मैंने पूछा, 'लल्ला, इतना बनठन कर आज कहाँ बिजली गिराने जा रहा है ?'

      मेरे इस सवाल पर वह जैसे वायदा करनेवाले किन्तु बाक़ायदा वायदा न निभानेवाले आधुनिक प्रपंची अँगूठाछाप नेताओं के द्वारा छली गई पढ़ी-लिखी गंवार जनता के दिमाग़ी 'स्टैंडर्ड' पर बू-हू-बू-हू कर हँसने लगा । उसके इस तरह रस और अलंकारविहीन हँसने पर उसे कम, मुझे ज्यादा लज्जा का अनुभव हुआ। मैं अतिउच्चशिक्षित जो ठहरा !

       अपना थोबड़ा गगनोन्मुख किए, ताकि होठों में दबी सुरती से प्राप्त उसके मुख का कहीं  स्वाद न बिगड़ जाय, वह मुझसे बोला, 'चच्चा ! तुम परोफेसर हो या घनचक्कर ?' मिडिल एजुकेशन के पहले सोपान पर ही चार बार चित्त अपनी ' चाणक्येबिल' बुद्धि से रेलवे का ठेकेदार बनने से लेकर यूनियन का अगुआ बन जाने तक का सफर तय करनेवाले लल्ला के मुखारविंद से ऐसे सरस शब्द सुनकर मैं किंचित बौखला-सा गया, ' मतलब ?'

     'मतबल जे परोफेसर साब ! भाषण देने जा रहा हूँ नरक...ऊँह, नगर निगम में । तमाकू निषेध दिवस है न आज, इसलिए'--लल्ला ने सुरती की पहली पीक थूककर कहा ।

        प्रोफेसर होने के कारण अब मुझे दूसरी बार घोर लज्जा का अनुभव हुआ फिरभी साहस बटोरकर मैंने उससे पूछ ही लिया, 'लल्ला, तू खुद तम्बाकू का सेवन करता है, तू ही उसका सेवन न करने का लोगों को भाषण देगा...!' कमबख्त सुरती को खाये बिना उसे जैसे कोई फ़लसफ़ा न सूझता हो, अपने होठों में दबी सुरती को थूक तथा पुनः नवीन सुरती को रगड़ मुँह में फाँकते हुए मेरे कान में, तनिक निकट आकर वह बोला, 'चच्चा ! सब ढोंग है, ढोंग ! निरी नौटंकी ! दिखावा ! ! कबीर कहते -कहते मर गए । जरा बताओ, मस्जिदों में ऊँची आवाज़ में अजान देना बंद हुआ, क्या ? मन्दिरों में जोर-जोर से घण्टे-घड़ियाल बजने बन्द हुए, क्या ?' 

     मैंने देखा, लल्ला निरन्तर सीरियस होता जा रहा है । सुरती को थूक अंगोछे से मुँह को साफ करते हुए करीब तीस सेकेंड का इंटरवेल लेने के बाद उसने स्टेशन पर किसी ट्रेन के आने की सूचना देनेवाली कम्प्यूटराइज़्ड लेडी एनाउंसर की तरह लगातार बोलना जारी रक्खा, 'देखो, चच्चा ! सीधी और सपाट बात है। तमाकू बेचने और बिकवाने का धंधा जब सरकार खुद करवा रही है तो तमाकू खाने से नुकसान पर बेहूदा प्रवचन क्यों ? चच्चा, कोई ऐसा भी है जिसका खुले माल पर जी न ललचाए ? यह तो किसी को गड्ढ़े में धकेल फिर बाहर निकालनेवाली मसल हुई न ? या तो गड्डा खोदो मत। खोदोगे, कोई-न-कोई उसमें गिरेगा तो जरूर।'

       किसी शोध-प्रबंध का समाहार लिखनेवाले अनुसन्धितसु  की भांति मैंने निष्कर्ष निकाला कि लल्ला ने जो कुछ कहा उसमें सौ फीसदी सच्चाई है। पिछले बाईस सालों से प्रतिवर्ष अतंर्राष्ट्रीय तम्बाकू निषेध दिवस पर तम्बाकू के ख़तरों के प्रति लोगों को जागरूक करने के बाद भी हर साल करीब सत्तर लाख लोग तम्बाकू की कब्र में दफन होने पर अब आम लोगों को नहीं, सरकारों को जागरूक करने की गहरी आवश्यकता है।

   ....मैं अपने चिंतन को और विस्तार देता, सहसा  मेरे कन्धे पर किसी ने हाथ रक्खा। देखा, मेरा वही ज़ाहिल भतीजा लल्ला अपने श्रीमुख पर फैली हँसी की आड़ी-तिरछी तरंगों से उद्भूत शब्दों से जैसे मेरी प्रोफेसरी पर व्यंग्य कर रहा हो ! बोला, 'अच्छा, चलता हूँ। तुम्हारे चक्कर में चाय-समोसों से भी हाथ धो बैठूंगा ।'

       और, वह पुनः सुरती को होठों में ठूंसते तम्बाकू निषेध दिवस पर प्रवचन देने के लिए चल पड़ा । 

       ✍️ डॉ जगदीश शरण,  217, प्रेमनगर, लाइनप, माता मंदिर गली, मुरादाबाद-- 244001, उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल :  983730 8657 


 

मंगलवार, 1 जून 2021

वाट्स एप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद ' में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है । मंगलवार 25 मई 2021 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों रंजना हरित, नरेन्द्र सिंह नीहार, कमाल ज़ैदी "वफ़ा", डाॅ ममता सिंह, अशोक विद्रोही, डॉ अर्चना गुप्ता, दीपक गोस्वामी 'चिराग', नीमा शर्मा हंसमुख, सीमा रानी, वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी", कंचन खन्ना , राजीव प्रखर की कविताएं और विवेक आहूजा की कहानी ------


देखो - देखो मोटर आती ,

इधर उधर से धूल उड़ाती ।

              पेट्रोल की बू फैलाती ,

              बड़े वेग से दौड़ी जाती। 

इसमें नहीं जुते हैं घोड़े, 

 बंधे नहीं  बैल के जोड़े ।

        इसको एक चलाती कल है ,

          इसमें भरा तेल का बल है।

 ड्राइवर साहब हॉक रहे हैं,

 शीशे  में  से   झांक रहे हैं।

          देख किसी को आगे आते।

         भों- भोंं  करके उसे भगाते।

 इसके आगे से हट जाओ ,

भागो - भागो प्राण बचाओ। 

         बीच सड़क में जो आओगे,

          गिरकर घायल हो जाओगे


✍️  रंजना  हरित, बिजनौर, उत्तर प्रदेश

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उछल - कूदकर  हुई उमंगित,

नवल प्रभात की प्रथम किरण।

हँसती - गाती  दौड़ लगाती,

छैल छबीली मृदुल पवन।

मुर्गा जागा उठकर भागा,

चढ़ छप्पर पर बांग लगाये।

जगे गाँव के लोग सभी,

अपने - अपने पथ पर धाये। 

तोता बोला सुन - ओ मैना। 

सैर सुबह की बहुत सुहानी। 

आलस छोड़ निकल भी आओ, 

फिर ढूंढेंगे दाना - पानी। 

छुटकू फुदकू खनकू सारे, 

अब राहों पर घूम रहे हैं। 

खगकुल गाता वन्दनवारे, 

अपनी मंजिल चूम रहे हैं। 

कूक रही कोयलिया प्यारी,

मनभावन से सभी नज़ारे। 

दस्तक देती घूम रही है, 

सुबह सभी के द्वारे - द्वारे।। 

 

✍️ नरेन्द्र सिंह नीहार, नई दिल्ली

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सबसे अच्छा होता पढ़ाना,

सबसे बुरा आपस मे लड़ाना।

घर मे जो भी आये अतिथि,

इज्ज़त से ही उसे बिठाना।

पहले उसको पानी पिलाना,

फिर मम्मी पापा को बुलाना।

मृदु भाषी बनकर बच्चो,

सबके दिल मे जगह बनाना।

कटु वचन न कहना किसी से,

जो रूठा है उसे मनाना।

नानी के घर  भी जाना तो,

साथ मे बस्ता लेकर जाना।

खेल कूद भी बुरा नही है,

लेकिन अच्छा पढ़ना पढ़ाना।


✍️ कमाल ज़ैदी "वफ़ा"

प्रधानाचार्य,अम्बेडकर हाई स्कूल

सिरसी (संभल)9456031926

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कठिन समय है मत घबराओ। 

हर पल आगे बढ़ते जाओ।। 


रात नहीं ये टिकने वाली।

चाहे हो कितनी भी काली। 

मायूसी को दूर भगाओ।।

हर पल आगे बढ़ते जाओ।। 


गम की बदली छट जायेगी। 

भोर सुहानी फिर आयेगी। 

मन में ये विश्वास जगाओ।। 

हर पल आगे बढ़ते जाओ।। 


सुख दुःख है जीवन का हिस्सा। 

यही बनेगा कल फिर किस्सा।। 

रुक कर मत यूँ समय गवाँओ।। 

हर पल आगे बढ़ते जाओ।। 


चुनौतियों से तुम मत ड़रना। 

साहस का दम हर पल भरना। 

शैल चीर के राह बनाओ।। 

हर पल आगे बढ़ते जाओ।। 


कठिन समय है मत घबराओ। 

हर पल आगे बढ़ते जाओ।। 


✍️ डाॅ ममता सिंह, मुरादाबाद

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इन्द्र धनुष का  रंग निराला!

इसका रूप बड़ा मतवाला!!

       वर्षा     रुकी  बदरिया   छाई

       जब सूरज ने झलक दिखाई।

सूरज  की  विपरीत  दिशा में,

यह न  दिखेगा कभी निशा में,

       अद्भुत दृश्य नजर एक आया।

       सात  रंगो  ने  जिसे   बनाया।।

जादू  जैसा  कोई चलाएं,

कैसे इंद्रधनुष बन जाए ?

       इंद्रदेव      वर्षा   करते   हैं।

       इस जग की पीड़ा हरते हैं।।

मेघों   से   जल   बूंदे    झड़तीं,

सूर्य किरण उन पर जब पड़तीं,

      सातों   रंग  उभर  तब  आते।

      मिलकर इंद्रधनुष बन जाते।।

दौड़ दौड़ बच्चों की टोली,

इसे  निहारे  करे  ठिठोली।

      बैंगनी, नीला फिर आसमानी।

      देखो   अम्मा !    देखो नानी !

हरा,   पीला,  नारंगी , लाल।

सात रंगों ने किया कमाल।।

      सब मिल अद्भुत छटा दिखाते

      सब  बच्चों  के  मन  को भाते

बच्चों  बात    हमारी  मानो !

इसमें छुपा रहस्य पहिचानो !

       मिलजुल  कर जब रहते सारे,

       रंग   निखरते  कितने   प्यारे?

तुम सब भी मिल जुल कर रहना !

इंद्रधनुष  सम  जग  से    कहना !

       अगणित  जन  जन भिन्न प्रकार,

       मिल   कर    बनता  है  संसार।।

अलग अलग हम भले अनेक,

सब मिल कर बन जायें एक !

      इससे कितना सुख पाओगे !

      सबके  प्यारे  बन  जाओगे !!


 ✍️ अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर मुरादाबाद, मोबाइल 8218825541

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किसने है ये स्कूल बनाए 

कोई हमको जरा बताए 


टीचर जी से डर लगता है

रोज रोज पढ़ना पड़ता है


होमवर्क लगता है दुश्मन

मम्मी से करवाता अनबन 


दोस्त यहां बस मिलते प्यारे 

शोर मचाते मिल कर सारे 


टन टन टन जब घंटी बजती 

लगे जेल से छुट्टी मिलती


कितना प्यारा होता बचपन 

नहीं अगर पढ़ने का बंधन


✍️ डॉ अर्चना गुप्ता, मुरादाबाद

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नील गगन के प्यारे तारे। 

कितने सुंदर कितने न्यारे ।

आसमान में ऊँचे ऐसे ।

चमके हो हीरों के जैसे ।


चाँद तुम्हारे पापा शायद,

साथ तुम्हारे आते हैं।

शैतानी न करो कोई तुम, 

हर पल यह समझाते हैं ।


कितने भाई तुम्हारे हैं ये, 

एक ही जैसे दिखते हो ।

सोच-सोच हैरानी होती। 

नभ में कैसे टिकते हो ।


क्या तुम भी विद्यालय जाते?,

 किस कक्षा में पढ़ते हो।

 हम बच्चों के जैसे तुम भी 

क्या आपस में लड़ते हो ।


ओ! तारे चमकीलापन यह तुमने कैसे पाया है। 

सच-सच बतलाना तुम भैया किसने तुम्हें बनाया है?


✍️ -दीपक गोस्वामी 'चिराग', बहजोई (सम्भल) उ.प्र. मो. 9548812618

ईमेल 

deepakchirag.goswami@gmailL.com

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मुख की शोभा होते दाँत

रोज सफाई करो तुम इनकी

कभी न खाओगे तुम मात।।

जब आये चेहरे पर मुस्कान

दाँत प्रकट होते श्रीमान।

सुंदर मुख मोती से चमके

दाँतो की शोभा यूँ दमके ॥

खाने का आता है स्वाद

मुहँ में अगर हो दाँत जनाब।

नही लगाना कभी औजार

हो जाते है दाँत बेकार ॥

सुबह सवेरे उठकर

मंझन दाँत में नित कर।

रखोगे दाँतो की सफ़ाई

करे दाँत तुमसे वफाई ॥


✍️ नीमा शर्मा हंसमुख, नजीबाबाद बिजनौर

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ओ चमकीले से प्यारे तारे, 

लगते क्याें तुम इतने प्यारे |

 आसमान में चमकाे ऐसे ,

हीराें का सरदार हो जैसे |


मामा चंदा साथ तुम्हारे, 

हरदम हँसकर रहते हैं |

कभी इधर , कभी उधर, 

बस दोडाे़ तुमसे कहते हैं |


कभी स्कूल भी जाते हो क्या? 

दोस्तों संग गप्प लड़ाते हाे क्या? 

मित्राें मंडली संग घूम घूमकर ,

कभी चाट पकौड़ी खाते हाे क्या |


घर पर मम्मी रोज तुम्हारी, 

तुमकाे भी समझाती होगी |

ज्यादा ऊँचे पर मत जाना, 

बड़ी मुश्किल व परेशानी होगी |


बोलाे इतने ऊँचे आसमान में ,

कैसे तुम जी भर दौड़ लगाते हाे |

क्याें नही फिसलतें पैर तुम्हारे, 

क्या जादू टोना कराते हो  ?


✍🏻सीमा रानी, पुष्कर नगर , अमरोहा 

सम्पर्क सूत्र 7536800712

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कहा  भैंस  ने  गैया  मुझसे,

बहस   कभी   मत   करना,

खाकर  पन्नी, कूड़ा  कचरा,

पेट      यहाँ    तू    भरना।

          -------------

शुद्ध  नीर,भूसा, चोकर तो,

नहीं      भाग्य    में      तेरे,

चना,बिनोला,खलचोकरतो,

बदा      भाग्य     में     मेरे,

दूर  खड़ी   ऐसे  खाने  की,

सिर्फ       सोचती    रहना।


मेरा  मालिक  मेरे तन  को,

शीशे        सा    चमकाता,

दुहकर  दूध तुझे गौपालक,

घरसे          दूर     भगाता,

तेरे  मालिक  को आता  है,

सिर्फ     दिखावा    करना।


मेरा मालिक  मुझे नित्य ही,

गुड़   और    तेल   पिलाता,

तेरा मालिक तुझको केवल,

सूखी        घास   खिलाता,

उसको नहींअखरता कतई,

तेरा         जीना      मरना।


बहन बहुत मत शेखी मारो,

थोड़ा      चुपभी      जाओ,

मेरे  लाख गुणों का भी  तो,

वर्णन      सुनती      जाओ,

जो   बोलूँगी  सच   बोलूँगी,

झूठ    नहीं    कुछ  कहना।


मेरे    रोम - रोम   में  रहता,

सब     देवों     का     वास,

मेरी  पूजा से  होता  जाता,

सबका    तन-मन     साफ,

सच कहती हूँ  प्यारे  बच्चो,

मानो        मेरा       कहना।

                      

व्यर्थ बहस करने से अच्छा,

होता    है     चुप     रहना।


✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी", मुरादाबाद/उ,प्र, मोबाइल फोन नम्बर 9719275453

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नंदू  गोपी और गोपाल 

गए घूमने तीनों भोपाल ।


नानी नाना दादा दादी 

मम्मी पापा मामा मामी ।


संग गया सारा परिवार 

झूमे नाचें मौज उड़ाएं 


ताल तलैया देखें तीनों 

झूमें गाएं नहाएं तीनों ।


फिरउपवन की सैर करी 

सूरत आंखों में भर ली ।


हाथ पकड़े नाना नानी 

नहीं करने देते सैतानी ।


दादी दादा ज्ञान बढ़ाएं 

सब चीजों को समझाएं ।


संग  खाएं चाय पकौड़ी 

खूब मचाएं धमा चौकड़ी ।


हंसते गाते रास्ते कट जाएं 

आकर पढ़ाई में लग जाएं ।


✍️ राशि सिंह, मुरादाबाद उत्तर प्रदेश

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वृक्ष मनोहर प्यारे प्यारे

कुदरत की आँखों के तारे 

दानी बनकर खड़े हुए हैं

शांत भाव सारे के सारे ।

वृक्ष मनोहर प्यारे प्यारे ।।


पशु पक्षी और कीट पतंगे

नभ जल थल के सब ही प्राणी

जीव जीव इन पर निर्भर है

दाता जग के सबसे न्यारे ।

वृक्ष मनोहर प्यारे प्यारे ।।


बने दधीचि से महा त्यागी

अंग अंग करते न्यौछावर ,

मूल फूल फल पत्र से लेकर

सबकुछ इस जगती पर वारे ।

वृक्ष मनोहर प्यारे प्यारे ।


✍️ डॉ रीता सिंह, आशियाना , मुरादाबाद

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मां अब वो दिन- कब आयेंगे,

मोबाइल से- छुटकारा कब पायेंगे।

आंखें अब- दुख  रही हैं इतनी,

मां स्कूल फिर हम- कब जायेंगे।

अब मनाह नहीं- तुम करती हो,

मोबाइल लिये -पीछे चलती हो।

पढ़ाई करलो-जिद्द करती हो,

स्कूल के वैन- बस कब आयेंगे,

मां स्कूल अब-कब हम जायेंगे।

जी करता है हाथों-से कुछ करलूं,

अपने घर को- पेंटिंग से भर दूं।

वीणा सरस्वती- वादन से स्वर लूं।

दिन पुराने कब- लौट कर आएंगे।

शीशम-पीपल बरगद के पेड़ लगाकर,

आक्सीजन बने,रखूं पर्यावरण बचाकर।

बर्बाद न करूं- पानी मैं बहाकर।

महामारी के दिन-स्वतः लौट जाएंगे,

मां फिर तो स्कूल- खुल जायेंगे,

लोक डाउन हमेशा- हट जायेंगे।

पहले दिन मां- फिर आएंगे- आयेंगे।


✍️ सुदेश आर्य-"गौड़ ग्रेशियस", मुरादाबाद

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बच्चे सच्चे कल का भविष्य

बनेंगे अच्छे नागरिक

हमें उनको सही संस्कार देने होंगे

ये कर लो सब प्रण रे भाई

ये कर लो सब प्रण।।


कैसे विपत्ति का करेगें सामना

कैसे प्रकृति को रखे सुरक्षित

राम चरित्र उनको सुनाए

कृष्ण का गीता पाठ पढाए

हमारी संस्कृति है इतनी प्यारी

विदेशों ने भी इस को अपनाया

ये सब उनको बताओ रे भाई

ये सब उनको बताओ।।


माता-पिता की सेवा करो

भाई बहनों संग प्यार से रहो

नाना नानी दादा दादी का रखो ख्याल

ऐसे बनो देश के तुम सुंदर लाल

ये सब उनको सिखाओ रे भाई

ये सब उनको सिखाओ।।


✍️ चन्द्रकला भागीरथी

धामपुर जिला बिजनौर

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बाल कथा  ----


आज काफी लंबे समय बाद जंगल के राजा शेर🐅ने आपसी भाईचारे को बनाए रखने के लिए सभी जीव जंतुओं की जंगल में एक सभा का आयोजन किया। सर्वप्रथम गधा कुमार जी🐴 ने खड़े होकर अपनी समस्या रखने के लिए महाराज से गुजारिश की जो कि तुरंत स्वीकार कर ली गई ।तत्पश्चात गधे कुमार जी 🐴ने कहना शुरू किया "महाराज मुझे अपने जीव जंतु समुदाय से कोई शिकायत नहीं है परंतु मानव जाति ने मेरा जीना मुश्किल करा हुआ है" आगे बताते हुए गधा कुमार जी बोले "मानव👨‍💼 दिन रात मुझे सामान ढोने पर लगाए रहता है और एक पल भी मुझे आराम करने नहीं देता" ऊपर से मानव जाति ने मेरा मजाक उड़ाने के लिए कहावते तक बना रखी है, जैसे गधे के सिर पर सींग, अबे गधे , ओए गधे आदि इसके बाद में गधे ने रूआंसु होकर कहा सरकार इतनी मेहनत करने के बाद भी मानव समाज में मेरी कोई इज्जत नहीं है। अभी गधे जी🐴 की बात पूरी भी ना हो पाई थी कि बैल 🐂 ने भी सभा में शोर मचा दिया "महाराज में भी कुछ कहना चाहता हूं" महाराज ने कहा बोलो आप भी अपनी समस्या बेहिचक होकर सभा में रख सकते हैं ।बैल जी 🐂बोले "महाराज मेरी भी शिकायत मानव जाति से ही है" उन्होंने बताया कि "मानव अपनी खेती में मेरा खूब इस्तेमाल करता है और इनका हल जोतते जोतते मेरी टांग टूट जाती है व मुझे वह जरा सा भी आराम नहीं करने देता, इतना ही नहीं जब मेरी उम्र हो जाती है तो वह मुझे कसाई को बेच देता है" बैल ने आगे कहा "महाराज आप ही बताएं क्या मुझे आराम करने का कोई हक नहीं" 

                 बैल की बात समाप्त होते ही तोता श्री 🦜, कबूतर श्री 🕊आदि पक्षी भी अपनी शिकायत सभा में रखने को आतुर हो गए ।सभी जंतुओं ने उन्हें समझाया जल्दी मत करो तुम्हें भी अपनी शिकायत करने का पूरा मौका दिया जाएगा ।शेर महाराज 🐅ने पक्षी समुदाय से अपना पक्ष रखने को कहा तो तोता श्री 🦜फुदक कर सभा के मध्य आ गए और तीखी आवाज में बोले "महाराज मानव ने हमें तो बिल्कुल गुलाम ही बना रखा है और हमारा जीवन सालों साल पिंजरे में कैद होकर ही रह जाता और पिंजरे में ही हम लोग मर जाते हैं, महाराज हमें पिंजरे की गुलामी से आजादी दिलाई जाए" महाराज ने पक्षी समुदाय की बात को बड़े ध्यान से सुनी , कुछ पक्षीयो ने अपने भक्षण की शिकायत भी की , भक्षण की बात सुन मुर्गा 🐓और बकरे🐐 ने शोर मचा दिया जोर से सभा में दहाड़े मार-मार कर रोने लगे , शेर महाराज ने उन्हें बमुश्किल चुप कराया और उनसे रोने का कारण पूछा तो वह रोते हुए बोले "महाराज मानव से हमारी रक्षा करें इन लोगों ने तो हमारा जीवन दूभर कर दिया है इनकी कोई दावत होती है वह हमारी जान लेकर ही जाती है" और तो और हम लोग तो अपनी पूरी जिंदगी भी नहीं कर पाते इससे पहले ही मानव👨‍💼 हमारा भक्षण कर लेता है सब की समस्याएं सुन महाराज शेर 🐅ने लंबी सांस लेते हुए कहा आप सब की समस्याएं काफी गंभीर हैं । और इन सब के निस्तारण की भी अति आवश्यकता है। पर मानव को कौन समझाएगा महाराज ने सबसे मानव के सुधार के लिए अपने सुझाव रखने को कहा । करीब करीब सभी छोटे-बड़े जीव-जंतुओं ने एक सुर में महाराज से कहा "अब बात समझाने से आगे निकल चुकी है" अगर हम मानव को समझाने जाएंगे तो वह हम लोगों को और भी ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है। अतः अब मानव 👨‍💼को सबक सिखाने का वक्त आ गया और सभी जीव जंतु समुदाय ने सर्वसम्मति से मानव जाति के विरुद्ध जंग का प्रस्ताव पास कर दिया। महाराज ने सभी को समझाया की जंग से कोई फायदा नहीं आपस में ही बैठ कर सुलाह कर लेते हैं। परंतु कोई भी जीव मानने को तैयार नहीं हुआ । सभी ने महाराज 🐅से आग्रह किया कि मानव को एक बार सबक सिखाना अत्यंत आवश्यक है और जंग की पूरी रूपरेखा बनाने के लिए महाराज जी को नियुक्त कर दिया । सभी जीव जंतुओं की मर्जी के आगे महाराज जी की एक न चली और उन्होंने जीव जंतुओं की जंग में पूरा साथ देने का वादा किया व अगले दिन सब को सभा स्थल पर पुनः बुलाया । 

        अगले दिन पूरा जीव जंतु समुदाय सभा स्थल पर एकत्र हुआ और महाराज शेर से जंग की तैयारी का हाल पूछा तो महाराज जी ने कहा मैंने मानव को सबक सिखाने के लिए एक योजना बनाई है। और इस योजना में "कोरोना विषाणु" बेटा हमारी मदद करेगा सभी जीव जंतुओं ने महाराज से पूछा यह कैसे संभव है ।कोरोना तो बहुत छोटा है और नंगी आंखों से हम इसे देख भी नहीं सकते फिर यह हमारी मदद किस प्रकार कर सकेगा ।महाराज ने कहा कोरोना ही हमारी मदद कर सकता है और मानव को अच्छी तरह सबक सिखा सकता है ।उन्होंने करोना बेटा को बुलाया और उसे आदेश दिया कि पृथ्वी के पूर्वी हिस्से में किसी खाद पदार्थ में मिलकर अपना दुष्प्रभाव दिखाना शुरू करो वह एक से दूसरे दूसरे से तीसरे फिर हजारों लाखों करोड़ों लोगों में अपना दुष्प्रभाव पृथ्वी के सभी देशों में फैला दो। महाराज से आज्ञा लेकर कोरोना विषाणु ने पूर्व से पश्चिम तक पूरी पृथ्वी पर अपना दुष्प्रभाव चलाना शुरु कर दिया। धीरे धीरे दुष्प्रभाव से हजारों लाखों फिर करोड़ों लोग प्रभावित होने लगे। लाखों की संख्या में मानव मरने लगे। सभी जीव जंतुओं को मानव द्वारा अपने ऊपर किए गए अत्याचार का बदला मिल गया था और सब एकत्र होकर महाराज के पास आए व बोले "महाराज मानव जाति को अब काफी सबक मिल चुका है ,अब आप कोरोना को वापसी का आदेश दें" 

                           महाराज शेर ने तुरंत कोरोना को बुलवाया और उससे मानव जाति पर उसके प्रभाव की रिपोर्ट मांगी। कोरोना विषाणु ने सीना चौड़ा कर महाराज से कहा कि "मै आपको अभी अपने प्रभाव की छमाही रिपोर्ट देता हूं" यह कहकर करोना ने बताना शुरू किया "मानव मेरे प्रभाव से मुंह पर कपड़ा बांधकर घूमता है , मदिरा जो पीने की वस्तु है उसे मेरे प्रभाव को कम करने के लिए हाथों में लगा कर घूम रहा है, इसके अलावा सबसे मजेदार बात यह है कि मानव एक दूसरे से दूर दूर होकर बैठता है और दूर दूर होकर ही घूम रहा है" यह कहकर कोरोना ने एक जबरदस्त ठहाका लगाया सभी जीव जंतु छमाही रिपोर्ट सुनकर अति प्रसन्न हुए ,तत्पश्चात सभी जीव जंतुओं ने महाराज से कहा अब बहुत हुआ मानव को सबक मिल चुका है आप कोरोना से कहे कि वह अपने प्रभाव को खत्म करें और शांत हो जाए महाराज ने कोरोना को तुरंत आदेश दिया कि वह अपना बोरिया बिस्तर समेट कर पूरे विश्व से रवाना हो जाए । किंतु करोना तो घमंड में चूर हो चुका था उसने महाराज की बात को मानने से साफ इंकार कर दिया और बोला "आप सभी जीव जंतुओं में मैं सबसे ताकतवर हूं ,जो काम आप सब मिलकर नहीं कर सके वह मैंने अकेले कर दिखाया लिहाजा अब तो जब मेरा मन करेगा तभी मैं वापसी करूंगा" यह सुन सभी जीव जंतु बहुत गुस्सा हुए और उन्होंने कोरोना को सभा से धक्के मार कर अपनी जमात से बाहर कर दिया। 

                         कोरोना की इस हरकत पर सभी जीव जंतु बहुत दुखी थे और महाराज शेर से उन्होंने कहा अब इस मुसीबत से मानव को निजात दिलाने के लिए कुछ युक्ति करें महाराज ने कहा "देखो मैं कुछ करता हूं" उन्होंने सबसे कहा "पृथ्वी पर भारतवर्ष के पीएम बहुत अच्छे व्यक्ति हैं मैं उन्हें अपने पत्रवाहक कबूतर को भेजकर खबर करता हूं" कि कैसे जीव-जंतुओं की नासमझी के कारण यह समस्या खड़ी हो गई है व करोना बागी हो गया है।महाराज ने आगे लिखा "अब हम लोगों ने करोना को अपनी जमात से भी बाहर कर दिया है अतः आप जो कठोर से कठोर कार्यवाही करोना के खिलाफ करना चाहे हमारा आपको पूर्ण समर्थन रहेगा" यह कहकर उन्होंने कबूतर जी को पत्र देकर रवाना किया ।

 तत्पश्चात भारतवर्ष के पीएम ने सभी जीव जंतुओं का शुक्रिया अदा करा व अपने वैज्ञानिकों, डॉक्टरों की पूरी टीम को करोना पर कार्यवाही के लिए लगा दिया और जल्द ही पूरा विश्व कोरोना के प्रभाव से मुक्त हो गया। इस प्रकार सभी जीव जंतुओं ने महाराज शेर के सम्मुख अपनी गलती स्वीकारी , अब उन्हे अच्छे से समझ आ चुका था कि दुनिया को प्यार से ही जीता जा सकता है ना कि बदले से, और सभी ने महाराज शेर के समक्ष प्रण किया कि अब वह मानव जाति के साथ प्रेम से ही जीवन व्यतीत करेंगे ।


✍️ विवेक आहूजा, बिलारी

जिला मुरादाबाद

Vivekahuja288@gmail.com

@9410416986

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मुरादाबाद मंडल के चन्दौसी (जनपद सम्भल ) के साहित्यकार डॉ मूलचन्द्र गौतम का व्यंग्य ----बहुरूपिये वायरस की बेइज्जती

 


कोरोना वायरस किसी बहुरूपिये मायावी राक्षस से कम नहीं है।जिन्होंने राम रावण युद्ध का वर्णन पढा है वे जानते हैं कि इसे पराजित और परास्त करना कितना कठिन काम है।यह रक्तबीज है,कालिया नाग है ,मारीच है जो आसानी से नष्ट होने को तैयार नहीं।महामारियों के इतिहास में कोरोना ने प्लेग को बहुत पीछे छोड़ दिया है।लोग अपनों को कन्धा देने तक को तैयार नहीं।अस्थि चयन और विसर्जन तो दूर की बात है।कलिकाल   में समस्त आसुरी शक्तियां इसी में  समाहित हो गयी हैं।पहले एक मामूली सा राक्षस तैंतीस करोड देवताओं पर भारी पडता था तो मानुषों की तो कोई गिनती ही नहीं।कोरोना को भी अपनी बेइज्जती कतई बर्दाश्त नहीं।बेइज्जती से यह सुरसा के मुँह की तरह विशालकाय होता चला जाता है।बाबा ने पहले ही आगाह कर दिया था -खल परिहरइ  स्वान की नाईं।

       पूरी दुनिया के तमाम वैज्ञानिक,डाक्टर और विशेषज्ञ रातदिन इसकी काट  ढूंढने में लगे हुए हैं।तरह-तरह के टीके ईजाद किये जा रहे हैं।टोने टोटके अलग।ऊपर से नीम हकीमों के नुस्खे-काढे। हर तरह का धंधा चालू आहे ।इन  सब उपायों और उपचारों से इसका गुस्सा आसमान तक पहुँच गया है।कोरोना को कष्ट है कि जो गालियां देश के नेताओं के लिये फिक्स हैं वो उसे क्यों दी जा रही हैं?क्या इसलिये कि उसने विश्व की हर सत्ता और व्यवस्था की पोल खोल दी है?

      इसीलिए माबदौलत ने तय किया है कि बाबा की रणनीति के तहत इसे तरह-तरह की निंदा से नहीं प्रशंसा से मारा जाना चाहिये।बाबा ने भी सर्वप्रथम खल वन्दना करके इसके कोप से आत्मरक्षा की थी।इसीलिए चतुर सुजानों ने इसकी प्रशंसा और अभिनंदन -वंदन के ढेर लगा दिये हैं ताकि वे इसके प्राणघातक कहर से सुरक्षित रह सकें।कोरोना चालीसा में  इस बहुरूपिये को ब्रह्म ही स्थापित कर दिया गया है।चमगादड के इस वंशज की महिमा अपरंपार है।इसके मेहमानों तक को उल्टा लटकना पडता है तो दमघोंटू शिकारों का क्या कहिये?

      आज भी मोहल्ले का शार्प शूटर सबसे पहले उनसे हिसाब चुकता करता है जो उसे नमस्ते नहीं करते।हर आते-जाते से उसका सवाल होता है कितने भाई हो ,जबाब मिलते ही उनकी संख्या में एक बढाकर पूछता है ,इतने होते तो मेरा क्या कर लेते और उसकी ढिशूम ढिशूम चालू हो जाती है।बयरु अकारण सब काहू सौं।ऐसा नहीं कि यह गुण्डा आदर करने वालों पर कोई रहम दिखाता है बल्कि उनको बेगारी में पकड लेता है और जिन्दगी भर उनकी पीढ़ी दर पीढ़ी से गुलामी कराता है।गिद्ध सबसे पहले अपने शिकार की आँखें नौंचता है ताकि उसे कुछ दिखाई न दे।यह बाली की तरह सबसे पहले जीव के फेफड़ों को जकड़ता है ताकि मरीज इसके सामने  बेदम हो जाय ।क्या कल्कि अवतार का यही सही समय है?

✍️ डॉ मूलचंद्र गौतम , शक्ति नगर,चंदौसी,जनपद संभल 244412, मोबाइल  8218636741