गुरुवार, 20 जनवरी 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार राहुल शर्मा का योगेन्द्र वर्मा व्योम के नवगीतों पर केंद्रित आलेख -- नवगीत वृक्ष को पुष्पित-पल्लवित करने वाली एक मजबूत शाखा हैं योगेंद्र वर्मा व्योम

     


आधुनिक हिंदी नवगीत के सशक्त हस्ताक्षर के रूप में पूरे देश के भीतर मुरादाबाद शहर को पहचान दिलाने वाले योगेन्द्र वर्मा व्योम  के नवगीतों से गुज़रना मतलब एक ताज़गी भरे नगर से गुज़रना है। यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि एक ही कार्यालय में कार्यरत होने के कारण मैं उनके काव्य सृजन की प्रक्रिया का साक्षी रहा हूँ। वह इतनी खूबसूरती से और बड़ी बारीकी से ऐसे-ऐसे बिंब, प्रतीक और प्रतिमान ढूँढ लाते हैं जिन्हें सामान्य कवि/ गीतकार की दृष्टि खोज ही नहीं पाती। यही उनके नवगीतों की सबसे बड़ी विशेषता है।

         नवगीत की सबसे प्रमुख और प्रथम शर्त ही नयापन है।योगेन्द्र वर्मा व्योम के नवगीतों में इस नयेपन की मिठास मिलती ही है। गीत और ग़ज़ल काव्य की अलग अलग विधाएँ हैं, दोनों का कथ्य और शिल्प बिल्कुल अलग है। ग़ज़ल के छंद विधान यानि कि क़ाफ़िया, रदीफ़, बहर आदि का अभिनव प्रयोग कर नवगीत 'जीवन में हम ग़ज़लों जैसा होना भूल गए' रचा गया है जिसमें ग़ज़ल विधा के व्याकरण का मानवीकरण करते हुए कथ्य का प्रभावशाली प्रस्तुतीकरण किया गया है-

जीवन में हम ग़ज़लों जैसा होना भूल गए 

जोड़-जोड़कर रखे क़ाफ़िये सुख-सुविधाओं के

और साथ में कुछ रदीफ़ उजली आशाओं के

शब्दों में लेकिन मीठापन बोना भूल गए

सुबह-शाम के दो मिसरों में सांसें बीत रहीं

सिर्फ़ उलझनें ही लम्हा-दर-लम्हा जीत रहीं

लगता विश्वासों में छन्द पिरोना भूल गए

     

अनेक कवियों ने बरसात के मौसम पर केन्द्रित अनेक गीतों, ग़ज़लों, दोहों का सृजन किया है लेकिन बूँदों की आकाश से धरती तक की यात्रा और बूँदों का आपस में बतियाना व्योमजी के नवगीतों में ही मिलता है। उनके एक नवगीत 'मैंने बूँदों को अक्सर बतियाते देखा है' पर दृष्टि पढ़ते ही महाकवि बाबा नागार्जुन के कालजयी गीत "बादल को घिरते देखा है" की स्मृति ताज़ा हो जाती है। इस नवगीत में वे बाबा नागार्जुन का आशीर्वाद प्राप्त करते हुए दृष्टिगोचर होते हैं-

मैंने बूँदों को अक्सर बतियाते देखा है

इठलाते बल खाते हुए धरा पर आती हैं

रस्ते-भर बातें करती हैं सुख-दुख गाती हैं

संग हवा के खुश हो शोर मचाते देखा है

कभी झोंपड़ी की पीड़ा पर चिंतन करती हैं

और कभी सूखे खेतों में खुशियाँ भरती हैं

धरती को बच्चे जैसा दुलराते देखा है

         वे चीजों को रूपांतरित करने में सिद्धहस्त हैं। रूपांतरित कर देने के पश्चात रूपांतरण के मानकों का सटीक उपयोग करना बहुत ही कुशलता का कार्य है जो उनके नवगीतों में सहज रूप से दिखता है। मन को गाँव की संज्ञा में रूपांतरित कर देने जैसा प्रयोग पहले कभी कहीं देखने को नहीं मिलता। गाँव भले ही मन का हो लेकिन गाँव है तो चौपालें भी होंगी और गाँव है तो पंचायत भी होगी और चुनाव भी होंगे। मन के भाव और गाँव के वातावरण को शानदार अभिव्यक्ति दे रहा है उनका नवगीत-

तन के भीतर बसा हुआ है मन का भी इक गाँव

बेशक छोटा है लेकिन यह झांकी जैसा है

जिसमें अपनेपन से बढ़कर बड़ा न पैसा है

यहाँ सिर्फ़ सपने ही जीते जब-जब हुए चुनाव

चौपालों पर आकर यादें जमकर बतियातीं

हँसी-ठिठोली करतीं सुख-दुख गीतों में गातीं

इनका माटी से फ़सलों-सा रहता घना जुड़ाव

   

  रिश्तों के खोखलेपन या उनकी मर्यादा के चटक जाने का मार्मिक वर्णन उनके एक अन्य गीत "मुनिया ने पीहर में आना-जाना छोड़ दिया" में भी देखने को मिलता है जिसमें मायके से मिलने वाली उपेक्षा से दुखी एक विवाहित लड़की के मनोभावों का हृदयस्पर्शी वर्णन है। दरअसल रिश्ते हमारे जीवन की सबसे अनमोल पूँजी होते हैं उन्हें सहेज कर रखना सबसे बड़ी उपलब्धि है। किसी भी कारण से यह पूँजी व्यर्थ न जाए इसकी कोशिश लगातार रखी जानी चाहिए। रिश्तों को बनाए रखने के अनुरोध को बड़े ही खूबसूरत अंदाज़ में अभिव्यक्त करते हुए वे खानदान के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति की भूमिका में नज़र आते हैं-

चलो करें कुछ कोशिश ऐसी रिश्ते बने रहें

बंद खिड़कियाँ दरवाज़े सब कमरों के खोलें

हो न सके जो अपने, आओ हम उनके हो लें

ध्यान रहे ये पुल कोशिश के ना अधबने रहें

यही सत्य है ये जीवन की असली पूँजी हैं

रिश्तों की ख़ुशबुएँ गीत बन हर पल गूँजी हैं

अपने अपनों से पल-भर भी ना अनमने रहें

       वर्तमान समय में सामान्य रूप से देखने में आता है कि चिट्ठियाँ आनी-जानी बंद हो गई हैं। इसके लिए लोगों द्वारा अब चिट्ठियाँ लिखना बंद कर दिया जाना भी जिम्मेदार है और डाक विभाग द्वारा साधारण डाक के वितरण में बरती जा रही लापरवाही भी। इस सरकारी व्यवस्था की अव्यवस्था पर कटाक्ष करते हुए मन की पीड़ा को नवगीत में वर्णित करने का प्रयोग विलक्षण है। बहुत ही खूबसूरत एकदम नए किस्म का नवगीत है यह। मैं इसको व्यंग्य-नवगीत की संज्ञा देना चाहूँगा-  

अब तो डाक-व्यवस्था जैसा अस्त-व्यस्त मन है

सुख साधारण डाक सरीखे नहीं मिले अक्सर

मिले हमेशा बस तनाव ही पंजीकृत होकर

फिर भी मुख पर रहता खुशियों का विज्ञापन है

गूगल युग में परम्पराएँ गुम हो गईं कहीं

संस्कार भी पोस्टकार्ड-से दिखते कहीं नहीं

बीते कल से रोज़ आज की रहती अनबन है

   

  कोई भी कवि अपनी कविता की विषयवस्तु अपने आसपास के वातावरण से ही खोजता है और उसे अपने ढंग से अपनी कविता में ढालता भी है। समाज में कभी मुहल्ला-संस्कृति भी थी जिसमें लोग एक दूसरे के सुख-दुख में शामिल रहते थे, फिर कॉलोनी-संस्कृति और अब अपार्टमेंट-संस्कृति प्रचलित है जिसमें लोग एक दूसरे के सुख-दुख में शामिल होना तो दूर एक दूसरे से परिचित तक नहीं होते। क्या कॉलोनी के लोग भी किसी गीत की विषयवस्तु हो सकते हैं? मैं कहूँगा कि हाँ। ऐसा सिर्फ़ उनके यहाँ ही देखने को मिल सकता है। सिमटे हुए स्वार्थी जीवन की विद्रूपता का जैसा चित्रण इस नवगीत में हुआ है अन्यत्र दुर्लभ है-

अपठनीय हस्ताक्षर जैसे कॉलोनी के लोग

सम्बन्धों में शंकाओं का पौधारोपण है

केवल अपने में ही अपना पूर्ण समर्पण है

एकाकीपन के स्वर जैसे कॉलोनी के लोग

ओढ़े हुए मुखों पर अपने नकली मुस्कानें

यहाँ आधुनिकता की बदलें पल-पल पहचानें

नहीं मिले संवत्सर जैसे कॉलोनी के लोग

      यह कॉलोनी-संस्कृति संवादहीनता की वाहक बनकर कहीं न कहीं हम सबको ही प्रभावित कर रही है। और यही संवादहीनता आज के समाज की बड़ी समस्या बन गई है जिसका कुप्रभाव अवसाद के रूप में देखने को मिल रहा है। शब्दों को केंद्रबिंदु बनाकर लिखा गया व्योमजी का यह नवगीत बहुत मार्मिक बन पड़ा है-

अब संवाद नहीं करते हैं मन से मन के शब्द

हर दिन हर पल परतें पहने दुहरापन जीते

बाहर से समृद्ध बहुत पर भीतर से रीते

अपना अर्थ कहीं खो बैठे अपनेपन के शब्द

आभासी दुनिया में रहते तनिक न बतियाते

आसपास ही हैं लेकिन अब नज़र नहीं आते

ख़ुद को ख़ुद ही ढूँढ रहे हैं अभिवादन के शब्द

       

      1970 के दशक में दुष्यंत कुमार की ग़ज़लों ने व्यवस्था विरोध के लिए नारों का काम किया, आज भी आम आदमी की ज़बान पर दुष्यंत का कोई न कोई शेर ज़रूर रहता है। दुष्यंत कुमार की मशहूर ग़ज़ल- 'हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए/इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए' को उन्होंने अपने नवगीत की विषयवस्तु बनाया है। पहली बार किसी कवि के द्वारा दूसरे कवि और उसकी कविता को नवगीत जैसी विधा की विषयवस्तु बनाया जाना अपने आप में चमत्कृत कर देने जैसा प्रयोग है। जनवाद की पैरोकारी करता दुष्यंतजी के आगमन का आवाहन समेटे उनका यह नवगीत भी अपने आप में अनूठा है-

बीत गया है अरसा, आते अब दुष्यंत नहीं

पीर वही है पर्वत जैसी पिघली अभी नहीं

और हिमालय से गंगा भी निकली अभी नहीं

भांग घुली वादों-नारों की जिसका अंत नहीं

हंगामा करने की हिम्मत बाक़ी नहीं रही

कोशिश भी की लेकिन फिर भी सूरत रही वही

उम्मीदों की पर्णकुटी में मिलते संत नहीं

        कोरोना काल में उपजीं भीषण विद्रूपताओं से आम आदमी आज भी रोज़ाना लड़ाई लड़ रहा है। इस कोरोना काल में लोग बीमारी से तो मरे ही भूख से भी मरे और बहुत लोगों का रोजगार भी खत्म हुआ। उस समय कड़ी धूप में पैदल अपने गांव की ओर चलते जा रहे प्रवासी मजदूरों का दृश्य आँखों में उतर आता है। इसी मंज़र को बेहद भावुक रूप में उन्होंने अपने नवगीत में अभिव्यक्त किया है, भूख जब रोटी के नाम खत लिखती है तो एक बेहद संवेदनशील दृश्य पैदा होता है। मेरी दृष्टि में इस कोरोना काल की व्यथा को समेटे इससे मार्मिक नवगीत कोई दूसरा नहीं हो सकता-

आज सुबह फिर लिखा भूख ने ख़त रोटी के नाम

एक महामारी ने आकर सब कुछ छीन लिया

जीवन की थाली से सुख का कण-कण बीन लिया

रोज़ स्वयं के लिए स्वयं से पल-पल है संग्राम

ख़ाली जेब पेट भी ख़ाली जीना कैसे हो

बेकारी का घुप अँधियारा झीना कैसे हो

केवल उलझन ही उलझन है सुबह-दोपहर-शाम

      'रिश्ते बने रहें' नवगीत-संग्रह के रचनाकार योगेन्द्र वर्मा व्योम के नवगीतों को पढ़कर मैं यह बात दावे से कह सकता हूंँ कि हिंदी साहित्य के इतिहास का चित्र बनाने वाला चित्रकार जब कभी नवगीत के वृक्ष का चित्रण करेगा तो मुरादाबाद का नाम दो विशेष कारणों से चित्र में प्रकाशित दिखाई देगा। प्रथम तो नवगीत वृक्ष की जड़ों में से एक साहित्य-ऋषि दादा माहेश्वर तिवारी और दूसरा नवगीत वृक्ष को पुष्पित पल्लवित करने वाली सबसे मजबूत शाखाओं में से एक योगेंद्र वर्मा व्योम। 


✍️ राहुल शर्मा

आफीसर्स कालोनी, रामगंगा विहार-1

काँठ रोड, मुरादाबाद- 244105

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल- 9758556426

बुधवार, 19 जनवरी 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा का व्यंग्य ---एक स्वामीभक्त का पत्र


साहब जी ,

आपके गरिमामयी गमन के बाद ,यहां आपकी कर्मशाला रूपी कार्यालय में सब कुछ अस्त-व्यस्त हो गया और मैं जबरदस्त आर्थिक रूप से त्रस्त हो गया हूं। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आप अपने नए जिले में पहुंचकर पद पर आसीन हो चुके होंगे, क्योंकि आपके अंदर जो गुणों की खान है वह अद्वितीय है ,जिससे मैंने भी कुछ ग्रहण करने की कोशिश की थी। उन्हीं गुणों से मेरा गुजारा भी ठीक-ठाक चल रहा था लेकिन समय को कुछ और ही मंजूर था।

 जब से आप गए हैं, तब से ऑफिस वाले दूसरे बाबुओं ने, मेरा जीना दुश्वार कर दिया है ,नए साहब की सेटिंग, मोटे चश्मे वाले बाबू से बन गई है क्योंकि दोनों ही हर शाम कांच की प्यालियों का स्वाद लेते हैं और आजकल सारी फाइलों पर उसी का कब्जा चल रहा है ।खैर मैं भी आपका चेला रहा हूं, निकाल लूंगा कोई बीच का रास्ता ,जिससे मेरा भी दाना पानी चलता रहे। वरना तो मेरी लक्जरी गाड़ी, मुझे मुंह चिढ़ाएंगी ,बच्चों के हॉस्टल वाले, मेरी राह ताकेंगे और घर में काम करने वाले दोनों नौकर, अपनी-अपनी पगार को तरस जायेंगे। छोटी-सी तनख्वाह में तो दाल-रोटी के सिवाय क्या खा पाऊंगा, साहब जी? आपकी छत्रछाया में तो मेरा सब-कुछ अच्छा चल रहा था, आप बहुत ही ईमानदारी से ,मेरी बाबूगिरी की कद्र करते हुए,जजिया कर के रूप में, निर्विवाद तरीके से, दस परसेंट कमीशन थमा देते थे और मैंने भी आपको कई मामलों में तो ,पूरा-पूरा हिस्सा ही दिलवाया था ।

आपकी कुर्सी की कसम, मैंने आप से छुपा कर कोई रिश्वत नहीं ली । आप ही बताओ कि आपाधापी भरे इस कलियुग में, मुझ जैसा निष्ठावान स्वामीभक्त मिल सकता हैं क्या?

 और हां ! इसी बात पर याद आया कि हमारे पड़ोसी वर्मा जी ,अपने झबरीले कुत्ते की स्वामीभक्ति का बहुत रौब झाड़ते थे ,एक दिन बंदर ने उन पर हमला बोल दिया तो उनका शहंशाह कुत्ता अंदर वाले कमरे में ,खाट के नीचे घुस गया और जब तक नहीं निकला ,जब तक कि वर्मा जी को इंजेक्शन लगवाने का इंतजाम पूरा न हो गया। बहुत  क्या कहना?  स्वामीभक्ति का दूसरा उदाहरण मुझ जैसा आपको नहीं मिलेगा। आपको याद होगा कि  आपके ट्रांसफर से चार दिन पहले ही, नियुक्ति प्रकरण में,ऑफिस में आकर नेताजी, कितनी बुरी तरह आपको डांट रहे थे और आप सर को नीचे झुका कर सुन रहे थे उनकी फटकार ।

 फिर मैंने ही आपका पक्ष लिया था और नेता जी को पलक झपकते ही शांत करके, पांच परसेंट पर पटा लिया था ।

फिर भी साहब जी , मैंने तो एक बात गांठ बांध रखी है कि बेईमानी का पैसा, जितनी ईमानदारी से और जितनी जल्दी, प्रत्येक पटल पर पहुंच जाता है उसका हिसाब उतना ही साफ-सुथरा रहता है ।

और तो और ,आॅडिटर भी फाइल से पहले नामा देखता है जिस कोटि के नामा होते हैं, उतनी ही पवित्र भावना से ,उस फाइल का लेखा-जोखा देखता है।

 खैर !आपसे क्या रोना, अपने मन की भड़ास  निकालने के लिए आपको पाती लिखी है, क्योंकि आपका फोन उसी दिन से बंद था और सरकारी नंबर को रिसीव न करने की, आपकी पुरानी आदत जो ठहरी ।

फिर भी मुझे यह अपेक्षा रहेगी कि आप मुझसे फोन जरुर करेंगे।अब तो अपनी सांठ-गांठ में और गांठ लगने की गुंजाइश भी नहीं बची। आपको वहां भी काफी बकरे मिल जाएंगे और मैं भी अपना खर्चा चलाने को,तलाश करने में जुटूंगा -"छोटे-छोटे मुर्गे"।

अपने-अपने कद और पद के अनुसार शिकार ढूंढेंगे, आखिर पूरी करनी है जिंदगी,और काटना है यह मनहूस जीवन,इन्हीं मुर्गे और बकरों के साथ।


आपका अपना

"परेशान आत्मा"


✍️अतुल कुमार शर्मा 

सम्भल, उत्तर प्रदेश, भारत

मंगलवार, 18 जनवरी 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम के दोहे .....


शहद कभी तीखी कभी, फूलों में मकरंद ।

कस्तूरी के हिरन सी , अंग अंग में गंध ।।


मुख मंडल के तेज की , लाली सूरज लाल ।

तीरथ जैसी देह है , मन जैसे खड़ताल ।।


 छोटी-छोटी घंटियों , जैसा भोला प्यार ।

 लाल गुलाबी बह रही , सरिता जैसी धार ।।


जब से दर्शन दे दिए , मिटे सभी अवसाद ।

जन्म जन्म के मिल गया , कर्मों का परसाद ।।


हमने तो बस प्यार में , मार दिए थे फूल ।

 उनको ऐसे चुभ गए, जैसे हौ त्रिशूल ।।


किसने उनको कह दिया , पत्थर दिल गम गीन ।

झूठा यह अभियोग है , नहीं आप रंगीन ।।


किस दुश्मन ने है भरे, प्रिय तुम्हारे कान ।

ऐसा क्यों लगने लगा , नहीं जान पहचान ।।


 एक बताऊं मैं तुम्हें , लाख टके का सार ।

मुझसे बातें मत करो , हो जाएगा प्यार ।।


✍️ त्यागी अशोका कृष्णम

कुरकावली, सम्भल

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का व्यंग्य -- चुनाव के मौसम में नाराज फूफा


इधर चुनाव का मौसम आया ,उधर फूफा नाराज होने लगे । एक शादी में दूल्हे के मुश्किल से दो-चार फूफा होते हैं । उनको मनाने में जो पसीने छूटते हैं ,वह तो दूल्हे का बाप ही जानता है । फूफा भी समझते हैं कि इस समय नाराज हो गए तो मनाने के लिए ससुराल से चार जनों का प्रतिनिधिमंडल जरूर आएगा । फिर उसके सामने मांगपत्र रखा जाएगा । फूफा नाक चौड़ी करके कहेंगे कि हमारा कोई मान-सम्मान ही नहीं रहा । हमारा भी तो एक एजेंडा है । हमें भी तो समुचित आदर मिलना चाहिए । यह क्या कि शादी हो रही है और हमारे लिए न नया सूट सिलवाया गया ,न हमें मफलर दिया गया और न जूते खरीदवाए गए । कुछ फूफा गले में सोने की चेन की मांग करते हैं । कहते हैं, हम शादी में तब तक भाग नहीं लेंगे, जब तक हमारे गले में सोने की मोटी चेन ससुर जी नहीं पहना देंगे !

         कुछ ऐसा ही हाल चुनाव के समय हो जाता है । सबसे ज्यादा बड़े वाले फूफा जी नाराज हैं । बड़े वाले फूफा अर्थात वह महारथी जिन्होंने चुनाव लड़ने के लिए पार्टी का टिकट मांगा था, मगर नहीं मिला । अब फूफा बिखरे पड़े हैं । किसी की आँख से आँसू बह रहे हैं, किसी की आँखें अंगारे बरसा रही हैं। कोई अपने समर्थकों के साथ घिरा हुआ षड्यंत्र रच रहा है ,तो कोई अकेले में आत्ममंथन करने में व्यस्त है । कुछ लोग माइक के सामने हैं । कुछ माइक को देखकर  छह फीट पीछे हट जाते हैं । मगर मुंह खुले हुए हैं । यह तो जरूर कहते हैं कि हमारी ससुराल का मसला है , हम आपस में निपटा लेंगे। मगर कैसे निपटेगा, यह नहीं बताते।

         उधर बुआ सबसे ज्यादा दुखी दिखती हैं । उन्हें डर है कि कहीं रूठे हुए फूफा अपना गुस्सा उनके ऊपर न उतार दें अर्थात चालीस साल पुरानी शादी का समझौता टूट न जाए । बारात चलने को है । बैंड बाजे वाले आ चुके हैं लेकिन फूफा टस से मस नहीं हो रहे । कहते हैं ,हमारा मान-सम्मान दो कौड़ी का हो गया । ससुराल पक्ष उनकी आवभगत में लगा हुआ है । भैया ! मान जाओ । शादी के समय इतना नखरा नहीं करते । बहुत कर चुके ! अब रस्म पूरी हो गई ! तुम्हें रूठना था ,थोड़ी देर रूठे। अब ढंग के कपड़े पहनो ,दाढ़ी बनाओ ,बालों में तेल-कंघी करो और सज-संवर कर दूल्हे के बराबर में खड़े हो । नकली मुस्कान ही सही लेकिन फोटो में मुस्कुराते हुए नजर आओ !

                    कई लोग फूफा की समस्या से जूझने के लिए कुछ अलग क्रांतिकारी प्रकार के विचार रखने लगे हैं । उनका कहना है कि फूफाओं को चुनाव के समय मनाने की कोई जरूरत नहीं है । इन्हें इनके हाल पर छोड़ देना चाहिए । जब देखो तब कोई न कोई समस्या लेकर खड़े हो जाते हैं । जैसे कि दूसरी पार्टी वालों की सरकार बन जाएगी तो धरती पर स्वर्ग उतर आएगा ? तुम्हारा सांसद या विधायक अगर किसी दूसरी पार्टी का बन भी गया तो कौन से आसमान से तारे तोड़ कर ले आएगा ? अब तक किसी ने क्या कर लिया जो अब कर लेगा ? 

       लेकिन फूफा को तो सारा गुस्सा अपनी ससुराल पर ही उतारना है । हमारी पार्टी, हमारी सरकार ,हमारे नेता ,हमारा उम्मीदवार जब तक नाक न रगड़े ,तब तक हम वोट डालने नहीं जाएंगे । मतदाताओं में जो मठाधीश बैठे हुए हैं ,वह भी किसी फूफा से कम नहीं हैं। बहुत से मुद्दे हैं ,जिन पर आग जलाकर फूफागण खाना पका रहे हैं। कुछ फूफाओं को विरोधी पार्टी के लोग हवा दिए हुए हैं । इन्हें घर का विभीषण समझा जाता है । इन विभीषण-टाइप फूफाओं का संबंध अपनी ससुराल से ज्यादा दूसरों की ससुराल से है । विरोधी पक्ष की ससुराल वाले उनका भाव रोजाना बढ़ाते हैं । कहते हैं कि आपसे ज्यादा महान आदमी तो इस संसार में आज तक पैदा ही नहीं हुआ ! खेद का विषय है कि आपकी पार्टी ने आपके "फूफत्व" को कभी नहीं पहचाना ! 

          कुछ फूफाओं को सीधे-सीधे दूसरी शादी करने का निमंत्रण विरोधी पक्ष की ससुराल से मिल जाता है । कुछ फूफा नाराज होने के चक्कर में अपनी नाराजगी दिखाते-दिखाते जनता की निगाह में विदूषक की भूमिका निभाने लगते हैं । उनका खूब मजाक बनता है । लेकिन वह पहचान नहीं पाते । लोग कहते हैं कि फूफा ! अपने सिर पर दूल्हे की एक पगड़ी तुम भी पहन लो और फूफा सचमुच यह समझते हुए पड़ोसी द्वारा उपलब्ध कराई गई दूल्हे की पगड़ी पहनकर खड़े हो जाते हैं मानो वह पच्चीस साल के नवयुवक हों। पड़ोसी खूब मजे ले रहे हैं । कहते हैं वाह फूफा ! हाय फूफा ! डटे रहो फूफा ! कोई कहीं से एक मरियल सी घोड़ी ले आया है । फूफा उस पर बैठ जाते हैं । चार-छह लड़के ड्रम बजाते हुए उनका जुलूस निकाल देते हैं।

 ✍️ रवि प्रकाश 

बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश), भारत

 मोबाइल 99976 15451

रविवार, 16 जनवरी 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ मीरा कश्यप का आलेख.....सुरेन्द्र मोहन मिश्र का बहुआयामी व्यक्तित्व


अवशेषों और पुरातत्वों की खोज में ,यायावरों की भांति, अपनी संस्कृति और सभ्यताओं को सहेजने, सवांरने के लिए कोई यथार्थ का दामन थामे इतिहासकार तो हो सकता है, परन्तु कल्पना के पंख लगा प्रकृति के हास - उल्लास के गीत गाते,नवयौवन के मधुर कल्पना लोक में विचरते कवि  होना उसके बहुआयामी व्यक्तित्व का परिचायक बन जाता है ,जहाँ इतिहासकार होना ,व्यक्तित्व के रूखेपन को दर्शाता है वहीं इतिहासकार होकर कवि के कवित्व को बनाये रखना सुरेन्द्र मोहन मिश्र जी की कल्पनाशीलता जैसे सारी बातों का खण्डन कर रही हो । लेखक का हास्य रुप सबको दिखता है, परन्तु उस कठोर यथार्थ के भीतर बहते मीठे स्रोत को पहचानना हर किसी के वश में नहीं, लेकिन सुरेन्द्र मोहन जीवन की इन सारी कटुताओं के बीच कवि हृदय को जीवित रखने में सफल हुए हैं । वे इतिहासकार हैं तो पुरातत्ववेत्ता भी ,उपन्यासकार हैं तो कविता की मधुरता से ओतप्रोत भी ।उनके गीत मात्र हास भर नहीं है, उनके यहाँ प्रकृति इठलाती है, नर्तन करती है, हृदय में माधुर्य भी घोलती है--

दृग सम्मुख ये विशाल भूधर /ओढ़े है चांदी की चादर /**** झर-झर झरते शुचि निर्झर से / सरिता की लहरों के स्वर से /****** खग रव से मुझको गान मिला /मुझको मेरा उपहार मिला 

अल्पावस्था से ही उनको कविता का उपहार मिला समय के साथ वह प्रौढ़ होता चला गया। प्रेम और श्रृंगार के गीत रचते -रचते कवि कब सांसारिक दुखों से बोझिल हो नैराश्य से भर उठा --

  बनकर कितने स्वप्न मिटे हैं मेरे 

जल -जलकर कितने दीप बुझे हैं मेरे 

जग का ठुकराया प्यार तुम्हें मैं क्या दूँ

संसार के मिथ्या  प्रेम और आडम्बर से ऊबकर कवि कब लौकिक से पारलौकिक हो गया कि वह ईश्वर को प्रिय मान उन्हीं में अपने जीवन के सौंदर्य को तलाशने लगा --

 मेरे दुर्दिन में जब प्रियतम आते हैं 

नयनों में आ आंसू बन बह जाते हैं 

मेरे उर के कोमल छाले भी 

नभ के तारे बनकर मुस्काते हैं  

इस प्रकार जीवन के विविध रूपों को तलाशते हुए उदारमना कवि सुरेन्द्र मोहन जी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं ,उनमें इतिहासकार की भांति खरा यथार्थ है तो कल्पनाशीलता भी । इतिहास की वीथिका में विचरते हुए उनका कवि मन कभी भी थकता नहीं है ,ऐसा एक विराटमना व्यक्ति अपने जीवन में निरंतर कालजयी रचनाओं के साथ हमारे बीच अपनी उपस्थिति बनाने में सफल हो सका है तो वे हैं सुरेंद्र मोहन मिश्र ,यहीं उनकी रचनाओं की प्रासंगिकता भी है ---

 तेरे रंगीन विश्व में मुझे बहुत छला गया 

मिलन उम्मीद का विहग उड़ा कहीं चला गया 

सभी तो स्वार्थ में पले न बन सका कोई मेरा 

न जाने कौन विषमयी सुरा मुझे पिला गया 

अपने विविध आयामों में आभा बिखेरता वह महान व्यक्तित्व अपनी रचनाओं के साथ चिरकाल तक अविस्मरणीय रहेगा  ।

✍️ डॉ मीरा कश्यप

अध्यक्ष हिंदी विभाग

के.जी.के. महाविद्यालय मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत


शनिवार, 15 जनवरी 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य सदन की ओर से साहित्यकार एवं इतिहासकार डॉ अजय अनुपम की कृति 'भारत के इतिहास में मुरादाबाद का स्थान' का सार्वजनिक लोकार्पण एवं परिचर्चा का आयोजन

मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार एवं इतिहासकार डॉ अजय अनुपम की कृति 'भारत के इतिहास में मुरादाबाद का स्थान' का सार्वजनिक लोकार्पण एवं परिचर्चा का आयोजन शुक्रवार 14 जनवरी 2022 को किया गया। हिंदी साहित्य सदन की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में वक्ताओं ने पुस्तक की महत्ता और प्रामाणिकता पर साधुवाद देते हुए कहा कि मुरादाबाद के इतिहास में अब तक कोई ऐसी कोई पुस्तक सामने नहीं आई है। 

      कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि 18 वीं शताब्दी में ठाकुरद्वारा राज्य की स्थापना को उजागर करते हुए बीसवीं शताब्दी में ब्रिटिश शासन द्वारा देसी रजवाड़ों के योजनाबद्ध विनाश का महत्वपूर्ण विवरण इस ऐतिहासिक कृति में प्रस्तुत किया गया है। पर्यावरण मित्र समिति के महासचिव केके गुप्ता ने कहा कि मुरादाबाद के कालापानी कहे जाने वाले ठाकुरद्वारा नगर की भौगोलिक महत्ता इस पुस्तक में प्रस्तुत की गई है।

       कार्यक्रम का संचालन करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि डॉ अजय अनुपम ने इस कृति के माध्यम से  मुरादाबाद क्षेत्र के अनेक अज्ञात साहित्यकारों का महत्वपूर्ण विवरण दिया है, जिन पर शोध करने की आवश्यकता है । 

ज्योतिर्विद विजय कुमार दिव्य ने कहा यह कृति मुरादाबाद की प्राचीन शिक्षा पद्धति और जनजीवन की भावना को जानने के लिए  उपयोगी सिद्ध होगी।  अवकाश प्राप्त एबीएसए घनश्याम सिंह ने कहा इस पुस्तक में क्षेत्र के प्राचीन रीति-रिवाजों और उच्च मध्यम वर्ग की महिलाओं के घरेलू तथा सामाजिक स्तर का बखूबी मूल्यांकन किया गया है।

       आयोजन में गोकुलदास हिंदू कन्या महाविद्यालय की पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर संस्कृत डॉ कौशल कुमारी, इंजीनियर स्वाति सिंघल आदि उपस्थित थे। आभार अभिव्यक्ति सुगम अग्रवाल ने की।










बुधवार, 12 जनवरी 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र का ऐतिहासिक उपन्यास - शहीद मोती सिंह। यह कृति वर्ष 2001 में प्रतिमा प्रकाशन , दीनदयाल नगर ,मुरादाबाद द्वारा प्रकाशित की गई थी। स्मृतिशेष मिश्र जी की यह कृति मुझे 30 अक्टूबर 2004 को दैनिक जागरण के तत्कालीन स्थानीय संपादक डॉ अनुपम मार्कण्डेय जी ने प्रदान की थी ।


 क्लिक कीजिए और पढ़िए पूरी कृति

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:::::::प्रस्तुति:::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मंगलवार, 11 जनवरी 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार एवं पुरातत्ववेत्ता स्मृति शेष सुरेंद्र मोहन मिश्र का गीत -----मद भरे लोचन सिहरती रात....। यह गीत लिया गया है वर्ष 1980 में प्रकाशित वार्षिक स्मारिका विनायक से । यह स्मारिका मेला गणेश चौथ चंदौसी के अवसर पर प्रकाशित की जाती है ---


 ::::::::प्रस्तुति:::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

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मुरादाबाद के साहित्यकार एवं पुरातत्ववेत्ता स्मृति शेष सुरेंद्र मोहन मिश्र का गीत -----मस्तक पर हिम किरीट आवरण, ....। यह गीत लिया गया है वर्ष 1977 में प्रकाशित वार्षिक स्मारिका विनायक से । यह स्मारिका मेला गणेश चौथ चंदौसी के अवसर पर प्रकाशित की जाती है ---


 
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डॉ मनोज रस्तोगी

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मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

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मुरादाबाद के साहित्यकार एवं पुरातत्ववेत्ता स्मृति शेष सुरेंद्र मोहन मिश्र का गीत ----- दीप खंडहरों के, सौ सौ खंडहरों के ...। यह गीत लिया गया है वर्ष 1976 में प्रकाशित वार्षिक स्मारिका विनायक से । यह स्मारिका मेला गणेश चौथ चंदौसी के अवसर पर प्रकाशित की जाती है ---


 
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डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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सोमवार, 10 जनवरी 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर की साहित्यकार रंजना हरित की रचना ----सब भाषा और भाषा की जान , हिंदी है तू बड़ी महान।


सब भाषा और भाषा की जान 

हिंदी  है   तू   बड़ी   महान।

 शब्द  शब्द  में   होता   दम,

 लिखना पढ़ना बन जाए सुगम।


 हमको  मिलता  हरदम  ज्ञान,

 हिंदी  है  तू  बड़ी  महान ।

मातृभाषा  सचमुच मां जैसी,

हरे  वृक्ष  की  छाया  जैसी ।


पलते  बढ़ते  जैसे  हम संतान,

 हिंदी  है  तू  बड़ी  महान।

 शब्दों  में  है  अमृतवाणी ,

भाषाओं  की है  हिंदी रानी।


  गीत संगीत की है तू जान,

 हिंदी  है  तू बड़ी  महान ।

पर्वत से ऊंची  गरिमा तेरी ,

कोई  नहीं  है  सीमा तेरी।

 सर्वज्ञानी बने सर्वत्र विद्वान,

 हिंदी है तू बड़ी  महान।


✍️ रंजना हरित 

बिजनौर, उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर के दोहे --- हिन्दी बांहें खोलकर, करती सबसे प्रीत ....


 

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की रचना --हिन्दी अपनाओ ! बंद सारे झगड़े हों


 हिन्दी के हों दोहरे ,छद, बंध, श्रृंगार,

चौपाई और गीत में ,रस की पड़े फुहार।।

रस की पड़े फुहार ,भाव के घन उमड़े हों,

हिन्दी अपनाओ !बंद सारे झगड़े हों ।।

विद्रोही ,मां के माथे ज्यों सजती बिन्दी,

भारत माता के  माथे, यूं सजती हिन्दी।।


✍️अशोक विद्रोही 

412 प्रकाश नगर,मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन 82 188 25 541


मुरादाबाद के साहित्यकार दुष्यंत बाबा की रचना ---- उस हिन्दी को आज नमन


 

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद सम्भल) के साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग की रचना ---- वर्ण क्रम में वैज्ञानिकता, भाषा बहुत महान है हिन्दी।


भारत माँ की शान है हिन्दी

सनातनी पहचान है हिन्दी ।


पैंसठ प्रतिशत जन की भाषा,

पूरा हिन्दुस्तान है हिन्दी


भारत की थाती की वाहक,

संस्कृत की संतान है हिन्दी। 


भोजपुरी, अवधी, नेपाली,

 बृज की मात समान है हिन्दी।


वर्ण क्रम में वैज्ञानिकता,

भाषा बहुत महान है  हिन्दी।


ग्यारह स्वर इकतालीस व्यंजन,

वर्ण-चिह्नों की खान है हिन्दी।


ढाई लाख की शब्द सम्पदा,

छंद व रस प्रधान  है हिन्दी।


इसमें नहिं अपवाद कहीं भी,

सीखो तो आसान है हिन्दी।


तुलसी,सूर, जायसी,रहिमन,

घनानंद ,रसखान है हिन्दी।


मीरा के पग की रुनझुन है,

भूषण की भी बान है हिन्दी।


कबिरा की फक्कड़ता इसमें,

खुसरों का अभिमान है हिन्दी।


नीर भरी दुःख की बदली है,

दिनकर की भी आन है हिन्दी।


बच्चन की ये मधुशाला है,

नीरज का भी गान है हिन्दी।


यह किरीट सब भाषाओं की,

कवियों को वरदान है हिन्दी।


✍️दीपक गोस्वामी 'चिराग'

 बहजोई (सम्भल) उ.  प्र., भारत

मो. 9548812618

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की रचना --अपनी प्यारी भाषा हिन्दी, अपना गौरव-गान है ----


करे पूर्ण व्यक्तित्व हमारा,

भारत की पहचान है।

अपनी प्यारी भाषा हिन्दी,

अपना गौरव-गान है।

जय हिन्दी..... जय हिन्दी....।


अपनाती है बड़े प्रेम से,

अन्य सभी भाषाओं को।

पूरी भी करती है देखो,

कितनी ही आशाओं को।

ज़ात-पात से ऊपर उठकर,

एक सभी का मान है।

अपनी प्यारी भाषा हिन्दी,

अपना गौरव-गान है।

जय हिन्दी...... जय हिन्दी......।


इसकी महिमा-गरिमा को अब, 

जग भर में पहुँचाना है।

राष्ट्रसंघ की सूची में भी,

लेकर इसको जाना है।

माँ वाणी से मित्रो हमको,

मिला महा वरदान है।

अपनी प्यारी भाषा हिन्दी,

अपना गौरव-गान है।

जय हिन्दी...... जय हिन्दी......।

               

✍️ प्रीति चौधरी

गजरौला, अमरोहा

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की सजल --महाशक्ति करती अगवानी; हिंदी - गौरव - रथ आया है!



हिंदी विश्व दिवस आया है।

मनो बसंत विश्व छाया है!


देश-देश में बजी दुन्दुभी;

हिंदी - केतन लहराया है!


महाशक्ति करती अगवानी;

हिंदी - गौरव - रथ आया है!


नभ में इंद्रधनुष शोभित हैं;

तोरण द्वार क्षितिज लाया है!


चमके सूरज, चांद, सितारे;

सिंधु धरा पर लहराया है!


नदियां, झीलें, पर्वत गाते;

स्वर्ग उतर वसुधा आया है!


खिली हुई है मधुर चांदनी;

विश्व पटल अति हर्षाया है!


उपवन-कानन सुमन खिले हैं;

हिंदी की अद्भुत माया है!


✍️डा. महेश 'दिवाकर '

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज मनु की रचना ---लाएं निज व्यवहार में , हिंदी का उपयोग, संप्रेषण जिसका खरा, समझ सके सब लोग,,


हिंदी यदि पाती रहे,

                 जन मन में आकार,

 निज भाषा उत्थान के,

                   हों सपने साकार ,,


लाएं निज व्यवहार में ,

                        हिंदी का उपयोग,

 संप्रेषण जिसका खरा,

                      समझ सके सब लोग,,


 माँ जिस बोली में गढ़े ,

                        लोरी- प्यार -दुलार,

 भाषा वही स्वदेश की,

                          इसमें  कैसी  रार ,,


 विश्व पटल पर हम सभी,

                          हैं बस  हिंदी  ज़ात,

 इसीलिए सब कीजिए,

                          बस हिंदी की बात,,


 सीखी हर भाषा तभी ,

                       जब हिंदी थी ज्ञात,

 भूले से मत भूलना ,

                     हिंदी  की   सौगात,,


 नहीं जोड़ने  गांठने,

                   अंदाजे  के  बोल ,

हिंदी के  संदर्भ  में ,

                  यही कथन अनमोल,

✍️  मनोज 'मनु '

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मरगूब अमरोही की रचना --हिन्दी पढ़ लो, हिन्दी जी लो, हिन्दी सबके गले का हार, ये है भाषा अजब निराली बरसाए सब पर रसधार ...


 

मुरादाबाद मंडल के नजीबाबाद की साहित्यकार नीमा शर्मा हंसमुख की रचना ---ऐ हिन्दी तेरे वर्णो से सजा हुआ संसार

 


ऐ हिन्दी तेरे वर्णो से

सजा हुआ संसार ।

सुर लय ताल छन्द सारे

गाये मधुर मल्हार ।

ऐ हिन्दी - - - - - - -

स्वर और व्यंजन 

मिल दे सारे शब्दो को आधार |

क ख ग घ मिलकर सारे

चले बनाकर कतार ।

करके शब्द साधना प्राणी

ज्ञान मिले भरमार ।

ऐ हिन्दी तेरे - - - - - -

मातृ भाषा तुझको कहते

पढ़े सभी संसार ।

तुम बिन मै अज्ञानी बालक

तुम बिन है अंधियार ।

ऐ हिन्दी तेरे वर्णो से

सजा हुआ संसार ।

✍️ नीमा शर्मा 'हँसमुख '

नजीबाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ राकेश चक्र की रचना ---मैं हिन्दी हूं ...


मैं भारत की प्यारी हिंदी।

जन-जन की उजियारी हिंदी।।


मैं तुलसी की सृष्टि बनी।

मैं सूरदास की दृष्टि बनी।।


मैं हूँ मीरा की  पथगामी।

मैं हूँ कबीर की सतगामी।।


मैं रत्नाकर के छंद बनी।

मैं खुसरो की हूँ बन्द बनी।।


मैं घनानंद की प्रवाहिका।

मैं निराला की अनामिका।।


मैं बसंत का गीत बनी।

फिल्मों का संगीत बनी।।


मैं मोक्षदायिनी गंग बनी।

 मैं सप्तरंग का रंग बनी।।


मैं ही जीवन का सत्य अटल।

मैं ही भारत का भाग्य पटल।।


मैं हूँ तुलसी का रामचरित।

सुरसरिता-सी महिमामंडित।।


 मैं जयशंकर की कामायनी।

मैं शस्य धरा की प्राणदायिनी।।


✍️ डॉ राकेश चक्र 

90 बी, शिवपुरी

मुरादाबाद 244001

उ.प्र .भारत

9456201857

Rakeshchakra00@gmail.com

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का व्यंग्य --मामूली आदमी और आम चुनाव

 


 हमारे मित्र ने एक सज्जन की ओर इशारा करके हमें बताया-" जानते हो इनके ब्रीफकेस में कितने रुपए हैं ? "

     हमने कहा "हम क्या जानें ! आप ही बताइए ?"

      उन्होंने कहा "पूरे चालीस लाख रुपए हैं । अब बताओ, किस काम के लिए यह लिए-लिए घूम रहे हैं ?"

      हमने फौरन अपनी बुद्धि दौड़ाई और जवाब दिया "विधानसभा के चुनाव में खर्च की अधिकतम सीमा चालीस लाख रुपए है। अतः जरूर यह सज्जन चालीस लाख रुपए लेकर घूम रहे होंगे । ताकि टिकट-प्रदाताओं को यह संतुष्ट किया जा सके कि उनकी जेब में चालीस लाख रुपए रहते हैं ।"

                  हमारे मित्र हमारा उत्तर सुनकर व्यंग्यात्मक दृष्टि से हँस पड़े । बोले "आप अभी तक चुनाव का गणित नहीं समझ पाए ?"

       हमने कहा "आप ही समझा दीजिए ।"

वह बोले "यह चालीस लाख रुपए तो टिकट-प्रदाताओं को टिकट देने के लिए प्रसन्न करने हेतु हैं । इन चालीस लाख रुपयों से जब टिकट-प्रदाता प्रसन्न हो जाएंगे ,तब खर्चे का काम आगे बढ़ेगा।"

      हमने चौंक कर कहा "अगर टिकट मांगने में ही चालीस लाख रुपए खर्च हो जाएंगे तब तो विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए अस्सी लाख रुपए चाहिए ? क्या कोई व्यक्ति इतना मूर्ख है कि अस्सी लाख रुपए खर्च करके चुनाव लड़ने का जुआ खेले ? अगर हार गया ,तब तो बर्बाद हो जाएगा ! क्या बैंक से लोन मिल जाता है ?"

          अब हमारे मित्र बुरी तरह हमारे ऊपर क्रुद्ध होने लगे । बोले "जब राजनीति की चर्चा चले ,तब 40 और 80 लाख जैसी छोटी रकम पर अटकना नहीं चाहिए। यह तो इसी प्रकार से तुच्छ धनराशि है ,जैसे कोई व्यक्ति गुटखा खाता है और थूक देता है। थोड़ी देर का आनंद है । अगर दाँव लग गया तो पाँच साल तक सितारा बुलंद रहेगा और अगर हार गए तो कोई खास नुकसान नहीं होता ।"

      हमने पुनः प्रश्न किया "आप अस्सी लाख रुपए को तुच्छ धनराशि कह रहे हैं ?"

     वह कहने लगे " अस्सी लाख रुपए तो कुछ भी नहीं , एक-दो करोड़ रुपये कहिए। चुनाव में हमारे और आपके जैसे मामूली आदमी थोड़े ही खड़े होते हैं । न ही उनको पार्टियाँ टिकट देती है । यह तो धनपतियों का खेल है । हमें और आपको तो केवल वोट डालना है । जो अच्छा लगे ,उसे वोट डाल देना । "

     हमने कहा "यह भी आप सही कह रहे हैं। यह चुनाव भी बड़ी ऊँची चीज है । कहलाता आम चुनाव है ,लेकिन आम आदमी की पहुँच से बाहर है ।"

✍️ रवि प्रकाश 

बाजार सर्राफा

 रामपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

 मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद मंडल के हसनपुर (जनपद अमरोहा) निवासी साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की ग़ज़ल ---विश्वास था तो जग जीत लिया, अब जग है पर विश्वास नहीं


मंजिल की और तलाश नहीं ।

मंजिल भी शायद पास नहीं ।।     

मैं थक के राह में बैठ गया    । 

मुझे दर्द का कुछ एहसास नहीं ।

नहीं पाने की कोई चाहत अब ।   

अब कुछ खोने की आस नहीं ।।   

मुझे कौन मिला किसने छोड़ा ।   

ये सब किस्मत के किस्से हैं ।।      

हां जिनके लिए सबको छोड़ा ।     

अब उनको मेरा पास नहीं ।। 

विश्वास था तो जग जीत लिया । 

अब जग है पर विश्वास नहीं ।। 

क्यों अपना मुजाहिद को समझूं ।

जब मैं ही खुद के पास नहीं ।।                  


✍️मुजाहिद चौधरी 

हसनपुर , अमरोहा

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की व्यंग्य कविता ---कहाँ जाऊँगा--?-

अरे

तुम फिर आ गये

गये नहीं अभी तक

मैं,

कहाँ जाऊँगा मालिक ?

मैं यहीं जन्मा हूँ

यहीं पला हूँ

यहीं आपकी छत्रछाया में

बड़ा हुआ हूँ।

तभी से यहीं खड़ा हुआ हूँ।।

मैं तो,

नीचे से, उपर से

दायें से, बायें से

हर दिशाओं से

हर परिस्थितियों में

उपस्थित रहता हूँ मालिक

आपके आशीष से

समय पर काम करता हूँ

मैं कहाँ जाऊँगा ?

यहीं जन्मा

यहीं मर जाऊँगा,

फिर

मेरी औलाद काम करेगी।

जन्मों जन्मों तक 

आपकी सेवा करेगी।।

मैं तो

आपके आस - पास

ही रहता हूँ।

सत्य को भी

झूठ में बदलता हूँ।।

आप चाहें या न चाहें

मैं,

हर पल सेवा करुंगा।

जब पुकारोगे

हाज़िर रहूँगा।

मैं,

हर आदेश का पालन 

करता हूँ।

यही तो मेरा श्रेष्ठ शिष्टाचार है ।

मेरा नाम भ्रष्टाचार है ।।


✍️ अशोक विश्नोई

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में सम्भल निवासी ) साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी की व्यंग्य कविता ---गधों ने गधों से कहा

 


सड़क पर खड़े

गधों को गधों ने

देखा...

सभी के कंधे

जिम्मेदारी के

बोझ से दबे थे

फिर भी सड़क पर

सीधे और तने थे। 

इस बीच कितने

गधे वहाँ से गुजरे

वही नाज़  नखरे

कोई गधा मानने

को तैयार नहीं था

हम गधे है।

गधे हैं तो फिर

क्यों गधे हैं। 

गधे गणेश जी के पास पहुंचे..

गधे: क्या हम गधे हैं?

गणेश: पूरे गधे हो

गधे: आधे कब थे

गणेश: पता चल जाएगा

 गधों ने वही सवाल 

कवि से किया.

.क्या हम गधे हैं..?

कवि: तुम तो फिर भी ठीक हो, मगर वो...

गधे: वो कौन...? 

कवि: अरे वही, जो मेरी रचना पढ़ गया।

गधे सोच में/ रचना..?

हम गधों की क्या रचना?

खर-खर-खर: खराक्षरी?

बात बुद्धि की थी

गधे हार गए...!

 तभी सामने से..

धवल वेषधारी नेताजी

का पदार्पण हुआ...

आकाश से 

पुष्प वर्षा होने लगी...

कानों में 

अपने आप शंख

बजने लगे....?????

लंबे-लंबे कान गधों

के हिलने लगे...? 

सड़क पर सधे/तने

गधे हटने लगे...! 

मुद्दा जस का तस रहा

हम क्यों गधे हैं..!!


✍️ सूर्यकांत द्विवेदी

शुक्रवार, 7 जनवरी 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ विश्व अवतार जैमिनी का गीत- उठो जवानों जिसे प्रस्तुत कर रहे हैं मयंक शर्मा

 क्लिक कीजिए और सुनिए

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मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ विश्व अवतार जैमिनी का गीत -एक चन्दन वदन, रश्मि प्रभाकर के स्वर में

 क्लिक कीजिए और सुनिए

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मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ विश्व अवतार जैमिनी का गीत - मैं पद्यप हूं, मेरा है मृगछौने जैसा मन, डॉ प्रेमवती उपाध्याय के स्वर में

 क्लिक कीजिए

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मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ विश्व अवतार जैमिनी का गीत - मेरा मन है मगन देखिए, मीनाक्षी ठाकुर के स्वर में

 क्लिक कीजिए

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सोमवार, 3 जनवरी 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य संगम की ओर से रविवार 2 जनवरी 2022 को गूगल मीट पर नववर्ष को समर्पित काव्य-गोष्ठी का आयोजन


मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य संगम की ओर से रविवार 2 जनवरी 2022 को गूगल मीट पर नववर्ष को समर्पित   काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। 

राजीव 'प्रखर' द्वारा प्रस्तुत माँ शारदे की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ शायर ओंकार सिंह 'ओंकार' ने अपनी ग़ज़ल की तान कुछ इस प्रकार छेड़ी - 

खुशियां हज़ार लाएगा अबके नया बरस । 

यूं जगमगाता आएगा अबके नया बरस। 

इक प्यार बनके छाएगा अबके नया बरस।

सब नफ़रतें मिटाएगा अबके नया बरस।। 

 मुख्य अतिथि डॉ. मनोज रस्तोगी ने नववर्ष का स्वागत इन शब्दों से किया - 

मंगलमय हो, आनन्दमय हो

 नूतन वर्ष का शुभागमन। 

हो समृद्धि आपकी और

 हो सुखों का आगमन। 

 विशिष्ट अतिथि के रूप में सुप्रसिद्ध नवगीतकार  योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने सर्दी का जीवंत चित्र खींचते हुए कहा - 

ठिठुरन भी धरने लगी, रोज़ भयंकर रूप।

रिश्तों में अपनत्व-सी, कहीं खो गई धूप ।। 

कुहरे ने जब धूप पर, पाई फिर से जीत । 

सर्दी भी लिखने लगी, ठिठुरन वाले गीत ।।

विशिष्ट अतिथि कवयित्री डॉ. संगीता महेश ने नववर्ष का अभिनंदन करते हुए कहा -

आओ नववर्ष, तुम्हारा अभिनंदन। 

शुभ हो तुम्हारा जीवन में आगमन। 

स्वागत में हम गीत तुम्हारे गाते हैं। 

नव आशा का दीप जलाते हैं। 

 संचालन करते हुए संस्था के महासचिव जितेन्द्र 'जौली' की अभिव्यक्ति इस प्रकार रही - 

बेटी अब बेटा बनी, चला रही परिवार।

बेटी को भी दीजिए, बेटों जैसा प्यार।। 

वरिष्ठ साहित्यकार अशोक 'विद्रोही' ने देशभक्ति की अलख जगाते हुए कहा -

 मैं जाऊं जब भी दुनिया से यही बस आरजू मेरी। 

तिरंगा हो कफन मेरा भी मैं उस में लिपट जाऊं।।

युवा साहित्यकार राजीव 'प्रखर' ने अपने भावों को दोहों में अभिव्यक्त करते हुए कहा - 

है तुमसे यह प्रार्थना, हे गिरधर गोपाल। 

हर संकट से मुक्त हों, आने वाले साल।। 

फुटपाथों पर बन रहा, किस-किस की तक़दीर।

बूढ़े एक लिहाफ़ का, बेदम पड़ा शरीर।। 

कवयित्री इंदु रानी की अभिव्यक्ति इस प्रकार थी - 

धीरे धीरे उंगलियाँ छुड़ा रहा यह वर्ष।

अंग्रेजी नव वर्ष का,मना रहे हम हर्ष।।

लोकप्रिय कवयित्री  मोनिका शर्मा 'मासूम' का अंदाज़ इस प्रकार रहा - 

इन आंखों में तेरा चेहरा, तेरा ही नाम होठों पर। 

नहीं उतरे नशा जिसका रखा वो जाम होठों पर। 

तेरी सांसों से महके ये मेरी सांसों की स्वर लहरी, 

बनाकर बांसुरी रख ले मुझे तू श्याम होठों पर। 

डॉ. रीता सिंह की अभिव्यक्ति इस प्रकार थी - 

पल पल खुशियाँ रास रचाएँ।

जन सारे उल्लास मनायें।

दीप नेह का कर ज्योतिर्मय,

कलुष जगत का दूर भगायें।

संस्था के कार्यकारी महासचिव राजीव 'प्रखर' द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम विश्राम पर पहुँचा।


शनिवार, 1 जनवरी 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही का कहना है ---बदल गया है आज कलैंडर पर पंचांग नहीं बदला । कैसे कहूं नव वर्ष इसे , अपना अंदाज नहीं बदला।।



बदल गया है आज कलैंडर

पर  पंचांग नहीं बदला ।

कैसे कहूं नव वर्ष इसे ,

अपना अंदाज नहीं बदला।।


ठंड जकड़ती पल-पल सबको

क्रियाशीलता शिथिल  हुई । 

अंग्रेजी  नवबर्ष आ गया,

आजादी गुम कहां हुई ।। 


शीत लहर चल रही ठिठुरती

और सिकुड़ती नियती नटी।

निविण निशा की बढ़ी कालिमा

दिनकर की रश्मियां घटीं।।


कांप रही है धरा ठंड से

कोहरे की चादर ओढे,।

धूल जमी पत्ती पत्ती पर।

कैसे ऑक्सीजन  छोड़ें।।


नहीं परिंदों का कलरव है ,

गुमसुम सारे वृक्ष खड़े ।

न इसमें कुछ भी नवीन है,

बस दावे हैं बड़े बड़े।।


नव बर्ष नयापन कुछ तो  हो,

कुछ दिन थोड़ा बस धैर्य धरो।

अब नकल छोड़ औअक्ल लगा,

प्रतीक्षा बस उस दिन की करो।


जब प्रकृति के आंगन में 

हर रंग उभर कर आएगा,

दिन बहुत सुहाने आएंगे,

कोहरा सब गुम हो जाएगा


धरती पर होगा नव बसंत,

हर भंवरा गीत सुनाएगा ।

जब चैत्र प्रतिपदा शुक्ल पक्ष

नव वर्ष  हमारा आयेगा।


है आर्यवर्त का यह गौरव,

युक्ति संगत प्रमाण सिद्ध।

सबसे उत्तम गणना युगाब्ध,

नव वर्ष हमारा है प्रसिद्ध।।


फागुन के रंग बिखरने दो!

धरती को जरा संवरने दो!

हरियाली फैले चहूं ओर,

पुष्पों को जरा महकने दो!


खुश हाली घर घर आएगी,

सब गीत खुशी के गाएंगे ।

अनमोल विरासत है अपनी,

मिलजुल नव वर्ष मनाएंगें।


  अब चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा,

  हर दिल उल्लास  जगाना  है

  और छोड़ अंग्रेजी नया साल

  हिंदी नववर्ष मनाना है ।।


✍️ अशोक विद्रोही 

412, प्रकाशनगर, मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार योगेन्द्र वर्मा व्योम की रचना ---हैं यही नववर्ष की शुभकामनायें


सब सुखी हों स्वस्थ हों

उत्कर्ष पायें

हैं यही नववर्ष की

शुभकामनायें


अब न भूखा एक भी जन

देश में हो

अब न कोई मन कहीं भी

क्लेश में हो

अब न जीवन को हरे

बेरोज़गारी

अब न कोई फै़सला

आवेश में हो

हम नयी कोशिश

चलो कुछ कर दिखायें

हैं यही नववर्ष की

शुभकामनायें


धर्म के उन्माद का

ना हो अंधेरा

दूर ले जाये कहीं

हिंसा बसेरा

हो तनिक न जातिगत

विद्वेष का विष

फिर उगे विश्वास का

नूतन सबेरा

हों सुगंधित प्यार से

सारी दिशायें

हैं यही नववर्ष की

शुभकामनायें


✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'

मुरादाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल-9412805981

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता कहती हैं ---नया साल फिर आ गया, मन में जागी आस ...


 

मुरादाबाद मडल के बहजोई (जनपद सम्भल )के साहित्यकार धर्मेंद्र सिंह राजौरा का कहना है ---सब प्यार में ही खो जाएं इस नए साल में


 कुछ बात ऐसी हो जाएं इस नए साल में 

सब मैल मन के धो जाएं इस नये साल में 


न फासले कोई रहें ना हो कोई तकरार ही

सब प्यार में ही खो जाएं इस नए साल में 


बागों में खिलते रहे फूल अपनी उम्र तक 

कुछ ऐसे बीज बो जाएं इस नए साल में 


महकी हो दूर तक फिजा जहां तक रसाई हो 

सब रंगो बू में सो जाएं इस नए साल में


✍️ धर्मेंद्र सिंह राजौरा, बहजोई

जनपद सम्भल, उत्तर प्रदेश

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मरगूब अमरोही का कहना है ---ऐसा था ये वर्ष पुराना, थम गया जिसमें पूरा संसार ....


 

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा ) की साहित्यकार रेखा रानी की रचना --वर्ष पुराना गुजर रहा है





तारीखों के जीने से
चुपके से वो धीरे धीरे
देखो कोई उतर रहा है
उम्र की माला से 
आज़ फिर एक मोती
 टूट देखो गिर रहा है।
 कुछ अपने सपने से होकर
 कुछ बेगाने अपने होकर
 बिगड़ा पल फिर संवर रहा है।
 कुछ बिछुड़े हैं अनहोनी से
 बंधे हुए थे नेह डोरी से।
 वक्त लगा कर पंख सहसा
  चुपके चुपके गुजर रहा है।
  अरमानों के आसमान पर,
  आशाओं की फिर धूप खिली है। 
  गुजरे लम्हों पर झीना सा,
  एक परदा गिर रहा है।
  भोर सुहानी फिर से होगी
  तन मन सुन्दर और स्वस्थ हों
  न हो कोई भी अब रोगी।
  नवल वर्ष में जन जन में 
  यह विश्वास पल रहा है।
  नवल रश्मियां भानू शशि की
  आएंगी फिर से धरती पर,
  देखो बादल सा बनकर
  वर्ष पुराना गुजर रहा है।
  आओ बैठो फिर से पास
  घोलो अंतर्मन में उल्लास।
  रेखा जज्बातों का दरिया
  धीरे धीरे उमड़ रहा है।*
  
 ✍️ रेखा रानी
विजय नगर गजरौला ,
जनपद अमरोहा उत्तर प्रदेश

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग की ग़ज़ल ---देखिए जी देखिए फिर नया साल आ गया ...


 

मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में फरीदाबाद निवासी ) सीमा वर्मा का कहना है --"नए साल" ने फिर से हमको , नई राह से मिलवाया


 समय का ख़जाना

              वक्त का नजराना 

   एक साल का आना

              और एक साल का जाना

   सदियों की नुमाइश 

               जीवन जीने की ख़्वाहिश 

   मोहताज हम पलों के 

               और जीवन बीत जाना

   लम्हों से हमने सीखा

                और वक्त को चौंकाया 

   हर पल को जी लेने का

                हमने भी मन बनाया 

   छिटका दिए सब ग़म हैं 

               जो बीता वो बिसराया

   आने वाले समय में 

               भविष्य में और कल में 

   पाना नया क्षितिज है

                सजने नए स्वप्न हैं 

   उगते हुए दिनकर ने 

                उम्मीदों को सहलाया

   वो "था" था जो बीता है 

           अब "है" और जो  भी  "होगा"

   चलना या रुकना जो हो

            थकना संभलना जो हो

   "नए साल" ने फिर से हमको 

              नई राह से मिलवाया  ।।।।। 

  ✍️ सीमा वर्मा ,फरीदाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में जकार्ता इंडोनेशिया निवासी ) कहती हैं --- नववर्ष नव उल्लास लाये हम सबके जीवन में ....


 

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का कहना है- ---नया वर्ष लाए खुशियों के, अनगिन भरे पिटारे, शुभ संदेश मिलें रोजाना, चमकें भाग्य सितारे


नया वर्ष  लाए खुशियों के,

अनगिन     भरे      पिटारे,

शुभ संदेश  मिलें  रोजाना,

चमकें     भाग्य     सितारे।


रूठी खुशियां वापस लौटें,

लौटें        सभी      सहारे,

बीती बातें भूल  दिलों  के,

खोलें       नूतन        द्वारे।


हरपल हीआशीष बड़ों का,

आकर      तुम्हें       दुलारे,

रिद्धि,सिद्धि,समृद्धि सर्वदा,

होवे         साथ      तुम्हारे।

 

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी", मुरादाबाद, उ.प्र.

मोबाइल फोन नम्बर 9719275453

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मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर का मुक्तक --- एक नया साल फिर ...