गुरुवार, 14 जुलाई 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति की ओर से 14 जुलाई 2022 को काव्य-गोष्ठी का आयोजन

  मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति की ओर से मासिक काव्य-गोष्ठी का आयोजन 14 जुलाई 2022 को विश्नोई धर्मशाला, लाइनपार पर किया गया।

 रामसिंह निशंक द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता रामदत्त द्विवेदी ने की। मुख्य अतिथि श्री अशोक विश्नोई तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री रमेश यादव कृष्ण उपस्थित रहे। संचालन राजीव प्रखर ने किया। 

वरिष्ठ शायर ओंकार सिंह ओंकार का कहना था - 

आलोचकों को जब से सितमगर समझ लिया।

 तब से ही मस्ख़रों को सुख़नवर समझ लिया।

 शैतान की उड़ान को बहतर समझ लिया। 

संजीदगी को लोगों ने कमतर समझ लिया।।

 वरिष्ठ रचनाकार डॉ. मनोज रस्तोगी की अभिव्यक्ति इस प्रकार थी - 

कंक्रीट के जंगल में, 

गुम हो गई हरियाली है, 

आसमान में भी अब, 

नहीं छाती बदरी काली है। 

रचना-पाठ करते हुए राजीव प्रखर ने कहा - 

आकर मेरी नाव में, हे जग के करतार।

 मुझको भी अब ले चलो, भवसागर से पार।। 

छुरी सियासत से कहे, चिन्ता का क्या काम। 

मुझे दबाकर काॅंख में, जपती जा हरिनाम।

प्रशांत मिश्र ने कहा - 

छोटी-छोटी खुशियाँ मन महकाती हैं,

 धीरे-धीरे से दिल में उतर जाती हैं।

 उपरोक्त रचनाकारों के अतिरिक्त शिशुपाल मधुकर, गौरव यादव, रामेश्वर वशिष्ठ,  अशोक विश्नोई, रामदत्त द्विवेदी, रमेश यादव कृष्ण आदि ने भी अपनी-अपनी अभिव्यक्ति की। योगेन्द्र पाल विश्नोई द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम विश्राम पर पहुॅंचा।























सोमवार, 4 जुलाई 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में मेरठ निवासी) के साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी के अस्सी दोहे -----

 


दिल से दिल की बात सुन, दिल से कर विश्वास। 

दिल से बड़ा न बावरा, दिल से बड़ी न आस।। 1।।


माना मुद्दा है बड़ा, अफवाहें भी तेज़। 

दिल थामे पढ़ते रहो, बदल बदल कर पेज।।2।।


अपनी-अपनी कह रहे, चूहे, बिल्ली शेर।

आया गीदड़ पढ़ गया, और किसी के 'शेर'।।3।।


लोरी सुनकर सो गये, सभी बुरे हालात।

देखे विपदा नींद में, सपनों की हर रात।। 4।।


सुख सूने इस गाँव में, दुःख नदिया उस पार। 

चले राम वनवास को, कहने को  अवतार।। 5।।


सावन बोला नैन से,  तू  कितनी चितचोर।

मैं तो बरसूं  कुछ घड़ी,  तू हर दिन घनघोर।।6।।


छोड़ वसीयत जा रही, अब पीढ़ी गुमनाम।

आंगन, तुलसी, वंदना,  हाथ जोड़ प्रणाम।।7।।


क्या चिंता अवसान की, लिख जीवन के गीत। 

बूँद भला कब सोचती, धरती, सावन, मीत।।8।।


आती जाती है हवा, आता जाता रूप। 

पल दो पल की सांस है, पल दो पल की धूप।। 9।।


बाग़ी जंगल हो गया, ठंडी पड़ी दहाड़। 

पदवी छीनी शेर से, चींटी चढ़ी पहाड़।। 10।।


युग युग की यह सीख है, रच अपनी तस्वीर।

बढ़ना है तो खींच ले, तू भी बड़ी लकीर।। 11।।


धन, दौलत, यशगान में, समझा जिसे अमीर। 

हाथ पसारे वो चला, बनकर एक फ़कीर।। 12।।


बहुत बड़ी यह साधना, घर है जिसका नाम। 

इसे अवध काशी कहूँ, या वृन्दावन धाम।। 13।।


खुशहाली घर में रहे, हरियाली मन मोर ।

है जीवन की कामना, वृंदावन चहुं ओर।। 14।।


लिखा हुआ क्या भाग्य में, यह जाने करतार।

कर्म-मार्ग पर बढ़ चलो, खुल जाएंगे द्वार।। 15।।


सूने इस संसार में, कौन किसी के संग।

बड़ी मित्र है लेखनी, फूटे क़ाग़ज़ रंग।। 16।।


सागर मन की सुन ज़रा, बढ़ती जाये पीर।

आँसू सूखे नयन से, भाप उड़े सब नीर।। 17।।


शब्द सरीखी भावना, शब्द सरीखा प्यार। 

शब्द शब्द अनमोल है, अद्भुत ये संसार।। 18।।


किसी तीर से कम नहीं, शब्दों की ये मार ।

सोच समझकर बोलिये, इसके दर्द अपार।।19।।


लिख-लिखकर कागज धरे, पढी सुनी कब बात।

अपना दिल कहता रहा,  बंद ज़िल्द जज़्बात।। 20।।


रोते-हँसते आ गई, जीवन की लो शाम ।

मधुर-मधुर संगीत है, अधरों  पर हे राम।।21।।


पास पास सब दूर हैं, दूर दूर सब पास।

इस आभासी जगत में, जुमलों में उल्लास।। 22।।


बस्ती अपनी छोड़कर, भोगा यूँ वनवास।

घट घट जल पीते रहे, बुझी नहीं वो प्यास।।23।।


अंबर से आँचल गिरा, गई नैन से लाज।

मौन हवा कहने लगी, धरती के सब राज़।। 24।।


तुम तो सावन सी रही, मेघों की मल्हार।

दिल अपना भादो रहा, राधे राधे प्यार।। 25।।


लिखा कील के भाग में, सहे हथौड़ा छेद।

दीवारें यह सोचती,खुले सभी अब भेद।। 26।।


आई चाभी ले गई, मन का सब विश्वास।

खुले खुले तब द्वार थे, ताले पड़े उदास।। 27।।


कोई भी टिकता नहीं, बदले सबका रूप।

बचपन, यौवन कह गये, अब क़ाग़ज़ की धूप।।28।।


अपनी अपनी वेदना, अपना ही संताप।

बाहर बाहर सब हँसें, अंदर रोवें आप।। 29।।


एक कली मासूम सी, करती क्या वो बैर।

फूलों के है हाथ में, खुद अपनी ही ख़ैर।। 30।।


आई रात तो सो लिये, दिन निकले ही काम। 

घट घट सागर पी गया, नदिया का आराम।। 31।।


मन मंदिर के सामने, खुद ही हम करतार।

मगर जानते ही नहीं,क्या अपना किरदार।। 32।।


आंगन टेढ़ा सब कहें, नाचन को संसार। 

दिखे कमी खुद में नहीं, औरन में भरमार।। 33।।


जो भोगा सो कह दिया, कह दी अपनी रीत। 

छोटा सा है ये सफ़र, रखिये सबसे प्रीत।। 34।।


जब तक है जाने जहाँ, करते रहिये काम। 

बोझ बनी ज्यूँ ज़िन्दगी, घर के घर नीलाम।। 35।।


शीशी भरी गुलाब थी, और मित्र थे इत्र

गंध कहीं वो उड़ गई ,रहे नहीं  वो चित्र।। 36।।


यह बस्ती है संत की, देता किसको सीख

चलो कबीरा घर चलें, मांगें सुख की भीख।। 37।।


मीर कहो ग़ालिब कहो, तुलसी या फिर सूर।

चमचों के है हाथ में, शहंशाहे हुज़ूर।। 38।।


क़ाग़ज़ पर लिखते रहे, सभी यहाँ पर फूल।

देखी जो बगिया कभी, नफरत के थे शूल।। 39।।


ये उदासी शाम लिए, जाता कहाँ किशोर। 

धीरज रख तू राम सा, माधव सा मन मोर।। 40।।


शोध किये बाहर सभी, भूले घर परिवार।

घर है मीठी चाशनी, इससे सब त्योहार।।41।।


बदल गई आबो हवा, बदले सभी उसूल। 

वर्जित चीजें हो गई, सब की सब अनुकूल।। 42।।


वनवासी संसार में, कौन किसी का राम।

चले अकेले अवधपति, लड़ने को संग्राम।। 43।।


मुद्दत से जाना नहीं, क्या अपना क़िरदार।

एक रूप में सब बसें, फूल शूल ओ' प्यार।। 44।।


क्या लिखते क्या सोचते, क्या कहते हैं आप।

नज़र उठाकर देखिये, सभी यहाँ पर 'बाप' ।। 45।।


जाने किसके भाग से, साँसें हैं अवशेष। 

अभिशापों से क्यों डरें, हाथों में लग्नेश।। 46।।


मधुर मधुर वाणी भली, मधुर मधुर संसार।

क्यों फिर मन के द्वार पर, नफ़रत पहरेदार।। 47।।


ढाई अक्षर प्रेम का, लिखते सौ-सौ बार।

नफ़रत के बस चार ही, सीने के उस पार।।48।।


बिना बीज होती नहीं, कभी फसल तैयार।

माँ क़ुदरत का नूर है, धरती पर अवतार।। 49।।


हर पल चिंता वो करे, सांसें करे उधार। 

कागज, कलम दवात से, माँ है मीलों पार।। 50।।


हर दिन साँसों में चढ़े, जिसका क़र्ज़ अपार।

खिली खिली वह धूप है, ममता की बौछार।। 51।।


दिल सबका है जानता, अंदर कितनी खोट। 

पोल खुले दीवार की, कील करे जब  चोट।। 52।।


क्या देखें हम क्या पढ़ें, यही समय का लोच।

सारा जग ज्ञानी भया, अब आगे की सोच।। 53।। 


मकड़ी ने जाला बुना, चींटी चढ़ी पहाड़। 

गिरा आँख से आदमी, नकली सभी दहाड़।। 54।।


सूरज तब नादान था, चंदा भी शैतान।

संग संग मेरे चले, भूले सभी जहान।। 55।।


माँ से बड़ा श्रम नहीं, और पिता से ताप। 

मजदूरी ऐसी मिली, जीवनभर संताप।। 56।।


चार चार में चार हैं, धर्म, वर्ण निष्काम।

चार पलों में कह गए, चार चरण सुख धाम।। 57।।


आँखों-आँखों में हुये, सब गुनाह मंजूर।

घर चौखट को देखिये, हम कितने मजबूर।। 58।।


धूल भरी हैंआँधियाँ, उड़ते छप्पर ताज।

कब किसके टिकते यहाँ, राज,काज,ओ साज।।59।।


आभासी संसार में, आँगन आँगन शोर।

कोयल खींचे सेल्फी, करता लाइव मोर।। 60।।


मर्यादा के कान में, पिघला शीशा रात।

नया नया परिवेश है, आँचल ढूँढे वात।। 61।।


पिघल पिघल कर मोम ने, कह दी अपनी पीर।

ठंडा ठंडा जिस्म है, पल दो पल के नीर।। 62।।


बैठ जा कभी दो घड़ी, कर ले खुद से  बात। 

धन दौलत ये नौकरी, पल दो पल की रात।। 63।।


एकाकी जीवन हुआ, घर में अब वनवास

कलयुग में भी देखिए, त्रेता सम उपवास।। 64।।


घर से बड़ी दवा नहीं , तन से बड़ा न काम।

मन से बड़ा न राज़ है,  सेहत चारों धाम।। 65।।


साँसों से होती रही, तन की जब तकरार।

तभी सामने आ गया, जिस हाथों पतवार।। 66।।


तन से बड़ी न नौकरी, मन से बड़ा न बॉस

कहे सूर्य  संसार से,  कभी न छोड़ो आस।। 67।।


हुरियारी हर दिन रहे, बरसे रंग गुलाल।

होली कहती ज़िन्दगी, रखना इसे सँभाल।। 68।।


फीके फीके रंग हैं, फीकी फ़ाग फुहार।

बस कविता में रह गए, होली के क़िरदार।। 69।।


ओह जानकी भाग में, क्या तेरे संताप।

हर युग में तूने सहा, ताप ताप बस ताप।। 70।।


उबल रहा था दूध भी, घुमड़ रहे थे भाव।

संकट में दो जान थीं, कौन न खाए ताव ।।71।।


कौन न खाए ताव, बड़ी थी मन में दुविधा।

कवि युगल परेशान, कहीं से आये सुविधा।।72।।


कहे सूर्य कविराय, वीर-गीत का रस प्रबल।

कह देते दूध से, अरे सीमा पार उबल।। 73।।


प्यार मोहब्बत रिश्ते नाते, हरा भरा परिवार।

छोटी सी है यही जिंदगी, सब अपना संसार।। 74।।


टप-टप-टप ओले गिरे, कांपे थर-थर गात।

सब दलों में द्वंद्व है, तू ने की बरसात।। 75।।


जुमलों की इस जंग में, हार गए अल्फ़ाज़

काँव काँव कोयल करे,कौओं के सर ताज।। 76।।


आये चुनाव हो लिए, हम तो उनके साथ।

अब तो भगवन आप हैं, लोकतंत्र के नाथ।। 77।।


सबके सब चलते रहे, शकुनी जैसी चाल।

गौण हुए मुद्दे सभी, चौपड़ पर सुर-ताल।। 78।।


वेश बदलते जो यहाँ, लेते नव-अवतार।

आज उन्हीं की जेब में, टिकटों का संसार।। 79।।


बन दूल्हा मेंढक चला, कह मौसम का हाल। 

आ रही है तेज घटा, लोकतंत्र की चाल।। 80।।


 ✍️ सूर्यकांत द्विवेदी

 मेरठ, उत्तर प्रदेश, भारत

शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

मुरादाबाद मंडल के नजीबाबाद (जनपद बिजनौर ) की साहित्यकार दीपिका महेश्वरी सुमन का दीपिका छंद विधान और चार दीपिका छंद

 


दीपिका छंद विधान

दीपिका छंद दोहा विधा में लिखा हुआ छंद है, जो पांच दोहों से मिलकर निर्मित होता है। इसमें दोहा विधा के सारे विधान सम्मिलित हैं। इसका विस्तार पहले दोहे के अंतिम चरण को दूसरे दोहे के प्रथम चरण के रूप में परिवर्तित कर के किया जाता है, अर्थात् दोहे की अंतिम चरण में 11 मात्राएं होती है यदि हमें उसे अगले दोहे का प्रथम चरण बनाना है तो हमें उस में 13 मात्राएं बनाने के लिए 11 प्लस दो मात्राएं बढ़ा देने पर दूसरे दोहे का प्रथम चरण बन जाएगा। 

इसमें यह ध्यान रखना जरूरी है कि  पहले दोहे की अंतिम चरण की 11 मात्राओं के बाद आपको दो मात्रा बढ़ानी हैं। ऐसी दो मात्राएं, जिससे हम दूसरे दोहे का विस्तार पहले दोहे के संबंध में ही कर सके जैसे-

भँवरें गुंजन कर रहे, कल कल बजता साज। 

केसू सिन्दूरी खिले , महके यूँ गिरिराज ॥

महके यूँ गिरिराज हैं,किया पुष्प सिंगार।

शीश चाँदनी ओढ़ के, धरा हुई तैयार॥

धरा हुई तैयार जब, खिली सुनहरी धूप। 

चम-चम-चम-चम चमकता, निखरा-निखरा रूप॥

निखरा-निखरा रूप ले, ढूंढ़े मन का मीत। 

राहों में गाती चले, मीठे-मीठे गीत॥

मीठे-मीठे गीत से, गूंजा सारा व्योम।

बूँद-बूँद तन में घुले, बरसा मादक सोम॥


दीपिका छंद कई रस मे लिखे जा सकते हैं जैसे शृंगारिक दीपिका छंद ,भक्तिमय दीपिका छंद ,विरह दीपिका छंद ,ओजमयी दीपिका छंद

दीपिका छंद के पांचों दोहे एक दूसरे से जुड़े हुए होने चाहिए। दीपिका छंद की सुंदरता बढ़ाने के लिए इसमें युग्म शब्दों का और अालंकारिक भाषा का प्रयोग करना चाहिए।जैसे युग्म शब्द

मीठे-मीठे गीत से, गूंजा सारा व्योम।

बूँद-बूँद तन में घुले, बरसा मादक सोम॥

अालंकारिकभाषा

चम-चम-चम-चम चमकता, निखरा-निखरा रूप॥

इस पंक्ति में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग करने का प्रयास किया गया है

दीपिका छंद कई प्रकार के लिखे जाते हैं। इसमें सभी दोहे का चरणान्त एक ही वर्ण से होता है। जैसे-

मृग तृष्णा में भटकता , मन है बहुत अधीर।

मैया को पहचान के , धर लो मन में धीर।।

धर लो मन में धीर तो, मिट जाये सब पीर। 

जो मन में  मैया बसे, नैन न आये नीर।।

 इसमें सभी दोहों का चरणांत अलग-अलग वर्ण से होता है। जैसे-

सावन ले अंगङाइयाँ, उपवन हुआ निहाल।

कोयल छेड़े रागिनी, मेघ मिलाये ताल॥

मेघ मिलाये ताल प्रिय, मानों बजे मृदंग।

हृदय तार मिलने लगे, चढ़ा प्रेम का रंग ॥

    दीपिका छंद का श्रेष्ठतम सृजन जब ही माना जाता है जब इस छंद का प्रत्येक दोहे का प्रकार अलग हो जैसे गयंद दोहा , बल दोहा पान दोहा, सर्प दोहा।इस छंद की श्रेष्ठता छंद लिखने वाले की अपनी कार्यकुशलता पर निर्भर है।

     जैसे कुंडलिया छंद के चौथे और पाँचवें चरण में पुनरावृत्ति ,या सिंहावलोकन छन्द ‌में‌ हर नये छन्द की शुरुआत पिछले छन्द के अन्तिम शब्द से होती है।   दीपिका छन्द भी उसी श्रेणी में आता है । इसलिए  इस बात का ध्यान  रखना चाहिए कि दोहे इस तरह लिखे जायें कि पढने में पुनरावृत्ति अखरे नहीं क्योंकि इसमें पुनरावृति का प्रयोग काव्य सौंदर्य के लिए ही किया जा रहा है। प्रस्तुत हैं चार दीपिका छंद-----

(1)

झर झर झर झर झरत है, आज गगन का नीर।

समझ समझ समझी धरा, नभ के मन की पीर॥

(त्रिकल दोहा  9 गुरु और 30 लघु वर्ण हैं)

नभ के मन की पीर अब, करती विकल त्रिलोक । 

जग जब जीवन मांगता , झुक कर करता धोक॥

  (पान दोहा 10 गुर 28 लघु वर्ण)

झुक कर करता धोक जब, मिलता प्रभु का साथ।

अमृत्व का प्रकाश लिए , उठे ईश के हाथ॥

(गयंद दोहा 13 गुरु 22 लघु)

उठे ईश के हाथ से, निकला पुंज प्रकाश।

खिल-खिल कण-कण यूँ गया, थमता चला विनाश॥

(गयंद दोहा 13 गुरु 22 लघु) 

थमता चला विनाश है, उर-उर उठे उमंग।

ठुम ठुम ठुम ठुम ठुमकती, भू ओढ़े नवरंग॥

(पान दोहा 10 गुरु 28 लघु)

(2)

रिमझिम रिमझिम बरसता, है सावन का मास।

रोम-रोम पुलकित हुआ, कान्हा खेलें रास॥

कान्हा खेलें रास जब, नैनों से हो बात।

श्वासों में श्वासें घुलें, बीती जाए रात॥

बीती जाए रात प्रिय, कान्हा जी के संग ।

मगन-मगन सब नाचते, मौसम भरे उमंग ॥

मौसम भरे उमंग ज्यों, हाथों में हो हाथ। 

पंखों के झूले पड़े, झूलें राधे साथ ॥

झूलें राधे साथ हैं, वरमाला को डाल।

वैज्यंती बन झूमती, खिले खिले हैं गाल ॥

(3)

झन झन झन झनका रही, झाँझर की झंकार।

खोले गहरे राज़ को, नई नवेली नार॥

नई नवेली नार अब,   कहती जीवन सार।

चरनन तल में है बसा, प्रीतम वैभव द्वार ॥

प्रीतम वैभव द्वार हूं, भावों का आधार।

भावों में ही है बँधी, विभूति अतुल अपार॥

विभूति अतुल अपार हूँ, माया की मैं धार।

तीखी-सी तलवार से, मत करना तुम वार॥

मत करना तुम वार प्रिय, मत ठानो तुम रार।

फूलों से स्वागत करो, महके जीवन डार॥

(4)

मधुर-मधुर सी महकती , चलती चले बयार।

असर लिए तुम इत्र सा , आए मेरे द्वार॥

आए मेरे द्वार हो, बन मीठी सौगात।

डाली जैसा डोलता, बहके मेरा गात॥

बहके मेरा गात यूँ, ले हाथों में हाथ।

रात-रात भर रास में, नाचूँ मोहन साथ॥

नाचूँ मोहन साथ मैं, उड़े अबीर गुलाल।

श्याम रंग ऐसा चढ़े, कर दे मालामाल ॥

कर दे मालामाल ज्यों, पहुँचूँ मैं ब्रजधाम।

प्रीत बसंती कह रही,मेरे तन-मन  श्याम ॥

✍️ दीपिका महेश्वरी सुमन (अहंकारा), नजीबाबाद बिजनौर ,उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की कहानी-----गुलाब जल!

 


आठ साल के बेटे मोहित ने अपनी माँ को बताया,अम्मा मेरी दोनों आँखों में हल्का-हल्का सा दर्द रहने लगा है।मुझे कोई चीज साफ साफ दिखायी भी नहीं देती।

    माँ ने जब यह सुना तो वह सन्न रह गई। तुरंत मोहित को अपने पास बुलाकर उसकी दोनों आंखों को गौर से देखा और बोली, बेटा वैसे तो तुम्हारी आंखें साफ दिखाई दे रही हैं। कहीं कोई गांठ-गुहेरी या लालामी नज़र नहीं आ रही है। फिर भी नेत्र चिकित्सक को दिखाना ही अच्छा रहेगा।

    चल चलके डॉ0 सुचक्षु विद्यार्थी को दिखा लेते हैं।शहर के बड़े ही फेमस आई सर्जन हैं।

    बिना समय गंवाए माँ मोहित को लेकर नेत्र विशेषज्ञ

के "अमर ज्योति"नेत्र चिकित्सालय पहुँच गयी। वहां पहुंचकर तुरंत 800/- का पर्चा बनवाकर बारी आने की प्रतीक्षा करने लगी और दोनों आंखें बंद करके माँ भगवती से बेटे के निरोगी होने की प्रार्थना करने लगी।

    तभी कंपाउंडर ने मोहित का नाम पुकारते हुए अंदर आने को कहा। माँ शीघ्र ही डॉक्टर साहब के चेम्बर में पहुंच गई।

  डॉक्टर ने बड़ी ही बारीकी से मोहित की आंखों का परीक्षण किया। और माँ को बताया कि बच्चे की आंखों में ऐसी कोई बड़ी समस्या तो दिखाई नहीं दे रही। फिर भी मैं आँखों मे डालने की और खाने की दवा दे रहा हूँ। एक हफ्ता खिलाकर बताएं। बच्चे के खाने-पीने का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है।

    हरी सब्ज़ियां,मौसमी फलों के साथ-साथ दूध,दही, घी,अंकुरित दालों की मात्रा बढ़ा दें तो अच्छा रहेगा। एक महत्वपूर्ण सलाह यह है कि ज्यादा टी.वी,मोबाइल और पढ़ाई का सही तरीके से न करना भी विशेष रूप से हानिकारक होगा।

    माँ बड़ी तल्लीनता से मोहित के इलाज को अंजाम देती।और उसके खाने-पीने में भी कोई कोताही न करती। रोज़ भगवान के मंदिर जाकर प्रसाद चढ़ाना भी न भूलती।

    कुछ ही दिनों में मोहित बिल्कुल भला चंगा हो गया। अथक प्रयास से वह आयकर अधिकारी बनकर देश सेवा करने लगा। माँ ने बड़े ही चाव से उसका विवाह उसी की पसंद से उसकी सहकर्मी वंदना से करा दिया।

     दोनों साथ-साथ ऑफिस जाते और एक साथ ही घर लौटकर अपने शयन कक्ष में चले जाते। दिन ढले उठने पर सैर-सपाटे को निकाल जाते।

 बेचारी माँ दो बातें करने को भी तरसती रह जाती।

     उनकी व्यस्तता को देखते हुए उनसे अपनी कोई इच्छा भी व्यक्त न कर पाती।

      एक दिन हिम्मत करके मोहित को पास बुलाकर कहा बेटा मेरी आँखों में कई दिन से बड़ी खुजली हो रही है। तेज जलन के साथ आंखों में सूजन भी आ रही है। शायद चश्मे का नंबर ही बदल गया हो। बेटा समय निकालकर किसी डॉक्टर को दिखा दे तो अच्छा रहेगा।

    अच्छा माँ कहकर मोहित  कमरे में चला गया।,,,, माँ कई दिन तक इसी इंतज़ार रही कि आज चले,आज चले। हारकर माँ ने अपनी पुत्र वधू वंदना को बुलाकर डॉक्टर को दिखाने की बात कही।

    वंदना ने बड़े ही रूखे स्वर में कहा ऐसी भी क्या जल्दी है करवा देंगे। आपको कौन सा दफ्तार जाना है। गुलाब जल रखा है उसे दिन में दो,तीन बार डाल लिया करो।

उम्र के साथ आंख,कान,दांत तो कमज़ोर हो ही जाते हैं।

    आपके साथ भी तो उम्र का तकाज़ा है। पचासी साल की उम्र में आंखे नयी तो हो ही नहीं जाएंगी।

    माँ खून का सा घूँट पीकर रह गयी और ऐसे जीने से तो मौत भली कहकर चुपचाप बरांडे में पड़ी कुर्सी पर जाकर बैठ गयी।

   तभी मोहित हाथ में गुलाब जल की शीशी लेकर माँ के पास आया और बोला देखो माँ वंदना तुम्हारा कितना खयाल रखती है। उसने तुम्हारे लिए यह गुलाब जल भेजा है। इसकी एक-एक बून्द दोनों आंखों में डालती रहो यही काफी है तम्हारे लिए।

    माँ ने शीशी हाथ लेते हुए कहा जीते रहो बेटा।

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

  मोबाइल फोन नंबर  9719275453

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मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की लघुकथा -नया ट्रैफिक प्लान

 


अशर्फी देवी धीरे धीरे लगभग लड़खड़ाते हुए अपने घर से निकलीं और मौहल्ले की पतली सड़क को पार करके मुख्य बाजार में आकर ई रिक्शा का इंतजार करने लगीं। जब काफी देर तक कोई ई रिक्शा उन्हें आती-जाती नहीं दिखी तो उनका माथा ठनका। उन्होंने पास ही खड़े हुए एक स्कूटर वाले से पूछा "क्यों बेटा ! आज कोई ई रिक्शा आती जाती नहीं दिख रही ? क्या बात है?"

    स्कूटर वाला मुस्कुराया बोला "अम्मा ! आपको नहीं पता , शहर में नया ट्रैफिक प्लान चालू हो गया है । अब यहां कोई ई रिक्शा नहीं चलेगी ।"

        "क्या कह रहे हो ? "सुनकर अशर्फी देवी माथे पर हाथ रख कर रह गईं। हम तो सिवाय इसके और कैसे जाएं ? हमारे पास तो यही साधन है।"

    स्कूटर वाला बोला "अम्मा ! हमारे पास भी सिवाय स्कूटर के कोई दूसरा साधन नहीं था ।रोक तो प्रशासन ने इस पर भी लगा दी थी। वह तो यह कहिए कि हम लोग धरना प्रदर्शन नारेबाजी करके इस रोक को हटा दिए , वरना हमारा स्कूटर भी आज इस रोड पर नहीं चल रहा होता ।"

      अशर्फी देवी के घुटनों में दर्द रहता था। घर में अकेली रहती थीं। बच्चे सब बाहर थे। सुनकर बस यही कह पाईं "बेटा ! हम बूढ़े और बीमार लोगों की आवाज प्रशासन तक कौन पहुंचाएगा? हमारे लिए नारे लगाने वाला कौन है ?"

 ✍️ रवि प्रकाश 

बाजार सर्राफा, रामपुर 

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल 999 7615 451

शुक्रवार, 24 जून 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य रचना ----आंसू


कुछ कमजोर हैं,कुछ धांसू हैं

तरह तरह के आंसू हैं

पूरा शोरूम

ब्रांडेड आंसुओं से सजा है

लोकल आंसुओं का भी

अपना अलग मजा है


सबसे उपर सजे आंसू

ना हमारे हैं,ना आपके हैं

उस बदनसीब बाप के हैं

जो पूरी कोशिश के बाद भी

बेटी को दहेज नहीं दे पाया

बेटी दहेज की

वेदी पर बलि हो गई

अंतिम बार उसका

मुख भी नही देख पाया

इन आंसुओं में

पितृत्व और प्रतिशोध का

मिला जुला पानी है

आक्रोश है,क्रोध है

आत्म ग्लानि है

इन आंसुओं की कीमत

कोई भी नही भर सकता

क्योंकि आज का विज्ञान

मरी हुई बेटी को

जिंदा नहीं कर सकता


इसी के पास में

उस बेरोजगार के आंसू हैं

जो योग्य होने के बावजूद

नौकरी ना पा सका

क्योंकि ना रिश्वत जुटा सका

ना किसी बड़े आदमी की

सिफारिश लगा सका

पिछले दस साल से

सड़क पर पड़ा है

कहां जाना चाहता था

कहां पर खड़ा है

मरने के लिए पैसे नहीं हैं

इसलिए जी रहा है

आश्वासनों को खा रहा है

खुद्दारी को पी रहा है

इन आंसुओं को देखकर

आप कमल से खिल जाएंगे

क्योंकि ये आपको

भारी डिस्काउंट पर मिल जाएंगे


अगले काउंटर पर

नेताओं के आंसू मिलते हैं

ये किसी भी व्यक्ति को

दुखी देख निकल पड़ते हैं

शर्त सिर्फ इतनी है

वह उनके चुनाव क्षेत्र का

कोई वोटर होना चाहिए

और इस हमदर्दी का

फोटो खींचने के लिए

कोई रिपोर्टर होना चाहिए

बहुत गंदा हो चुका है

इन आंसुओं का पानी

इसमें मिले हैं

धोखा,मक्कारी,बेईमानी


अपनी बात को

आगे बढ़ाते हैं

कुछ विशेष और अनमोल

आंसुओं से आपको मिलवाते हैं

इन आंसुओं को

उस खुशनसीब मां ने बहाया है

जिसने देश के लिए

अपने बेटे को गवांया है

इन आसुओं में

गर्व की छाया है

एक ही बेटा होने का

अफसोस भी इनमे समाया है

अगर चाहते हो

इनकी कीमत का अंदाज लगाना

देश पर अपना

सर्वस्व पड़ेगा लुटाना


और भी कई

वैरायटी के आंसू हैं

सबकी अलग जाति

अलग धर्म है

सेकुलर आंसुओं का

बाजार बहुत गर्म है

घड़ियाली आंसुओं की

डिमांड सबसे ज्यादा है

टोटल सेल में इनका

योगदान लगभग आधा है

नेता चाहें छोटे हों या बड़े

इनको भारी संख्या में ले जाते हैं

राजनीति में चमकने के लिए

इन्हें पानी की तरह बहाते हैं


मध्यम वर्गीय आदमी की 

लेकिन अजब लाचारी है

उसके स्टैंडर्ड के

आंसुओं की कीमत

उसकी जेब पर भारी है

उसकी आंख और आंसुओं में

बहुत बड़ी दूरी है

विषम परिस्थितियों में भी

मुस्कराना उसकी मजबूरी है।


✍️ डॉ पुनीत कुमार

T 2/505 आकाश रेजीडेंसी

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में जकार्ता, इंडोनेशिया निवासी ) वैशाली रस्तोगी की रचना ----मैं हूँ ना


अकेली पड़ गई 

एक बार एकांत में 

डूब गई गहरे में

कभी कुछ बनाने में

कहीं कुछ मिटाने में

विचारों की गंगा में

कभी डूबती,कभी उतर जाती 

खो जाती अपने हाथों,

कभी पा जाती प्रवासी

तभी कर जाती आदतन प्रवास

कुछ नहीं आया होगा रास 

कान के पास,कान में

किसी ने फुसफुसाया  

मैं हूं ना तेरे पास 

ऐसा ही आभास

जैसे है कोई मेरे पास,बहुत खास

सहसा,तंद्रा मेरी टूट गई 

जकड़न से छूट गई 

जगती नींद से जाग गई

मैं हूं ना,मैं हूं ना की 

अपार ताकत को पहचान गई

फिर मन की बगिया महक उठी 

झूम उठी खुश होकर 

हर कली खिल उठी 

अपने रास्ते चल पड़ी 

रुकी पड़ी,मेरी घड़ी

फिर चल पड़ी,फिर चल पड़ी। 

✍️वैशाली रस्तौगी

    जकार्ता (इंडोनेशिया)

गुरुवार, 23 जून 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा --दौर -


"जिंदाबाद जिंदाबाद हमारे नेता जी जिंदाबाद ...मुर्दाबाद मुर्दाबाद तुम्हारे नेता जी मुर्दाबाद ।" भीड़ चिल्लाती जा रही थी ।

"अभी सब कुछ ठीक नहीं  है क्या देश में ।"आरोप जोर से चिल्लाया और यह सुनकर प्रत्यारोप भी कहां चुप रहने वाला था ।

"तुम्हारे शासनकाल में तो सब कुछ जैसे अच्छा ही अच्छा था ।"उसने तंज कसा ।

"हां जिन कमियों के लिए जब तुम चिल्ला रहे थे अब वही तुम्हारे भी तो शासन में हैं ?"आरोप फिर से बौखलाया सा चिल्लाया ।

"हां अभी सत्ता परिवर्तन होने दो पाली बदल जायेगी क्योंकि चेहरे बदलते हैं विचारधारा नहीं । " घायल समय असहनीय पीड़ा से कराह उठा ।


✍️ राशि सिंह

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत 




मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रामकिशोर वर्मा की लघु कथा ---- मेरे पापा

     


राम सागर बहुत देर से दरवाजा खटखटा रहा था मगर उसकी पत्नी रम्मो जानबूझकर दरवाजा नहीं खोल रही थी । उसे पता था कि आज फिर राम सागर देर से काम से लौटा है तो पीकर ही आया होगा और फिर घर में बेटी रुचि के सामने उल्टा-सीधा बोलेगा और उल्टियां करके बेसुध सो जायेगा ।

   मगर जब रुचि के पापा को दरवाजा खटखटाते बहुत देर हो गई तो रुचि से नहीं रहा गया और वह भागकर दरवाजा खोलते हुए देखती है कि उसके पापा के हाथ में दो गुब्बारे और बिस्कुट -टॉफियां हैं। 

   राम सागर रुचि को देखते ही मुस्कराकर उसे गोद में उठा लेता है ।

   रुचि के मुंँह से एकदम निकल जाता है -"मेरे पापा!" और एकदम सवाल दागती है -" आज आपके मुँह से अजीब सी बदवू नहीं आ रही?"

   रम्मो यह सब देखकर अवाक रह जाती है ।

 ✍️ राम किशोर वर्मा

रामपुर ,उत्तर प्रदेश, भारत

दिनांक:- २२-०६-२०२२ बुधवार

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की लघुकथा-आंकड़े

     


विभागीय मीटिंग में वर्तमान वर्ष के नामांकन की समीक्षा चल रही थी। गत वर्ष की तुलना में 30 प्रतिशत नामांकन वृद्धि का लक्ष्य प्रत्येक विद्यालय को पूरा करना था।सभी विद्यालयों के गत नामांकन के सापेक्ष वर्तमान का नामांकन प्रतिशत निकाला गया था और उसी अनुसार वृद्धि प्रतिशत पूरा न करने वालों को स्पष्टीकरण का पत्र हाथों हाथ थमाया जा रहा था।

      इस वर्ष सात नये नामांकन करने वाले प्रधानाध्यापक राजेन्द्र कुमार आत्मविश्वास से लबरेज थे आखिर उन्होंने वांछित प्रतिशत से एक अधिक नामांकन किया था,पर वहीं 44 नये नामांकन करने के बावजूद प्रधानाध्यापक किशोर कुमार के दिल की धड़कनें बढ़ गयीं थीं क्योंकि अभी भी वांछित वृद्धि प्रतिशत से वह 22 नामांकन दूर थे। तभी मंच से लक्ष्य प्राप्त न करने वाले उनके विद्यालय का नाम पुकारा गया और वह मन ही मन सोच रहे थे काश, मैंने गत वर्षों में घर घर घूम कर और मेहनत करके नामांकन न बढ़ाया होता तो इस वर्ष यह कार्रवाई न होती.....

 ✍️ हेमा तिवारी भट्ट

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी -----------बिन बुलाए मेहमान



   .... "कितनी देर से डोर बेल बज रही है देखते क्यों नहीं कौन आया है?"

     "अरे भटनागर साहब आइए" !

'"भाभी जी बिटिया की शादी है यह रहा कार्ड राही गेस्ट हाउस में आप सभी का बहुत-बहुत आशीर्वाद चाहिए कुछ भी हो जाय समय से आ जाना" !!

      " बिल्कुल भाई साहब बिटिया की शादी हो और हम ना पहुंचे ? भला हो सकता है यह?"

 "अंकल जी नमस्ते!,, खाना खाते हुए ही  विकल ने मुझे नमस्ते की ।

,,नमस्ते बेटा,,,! और कौन-कौन आया है? मैंने भी विकल की नमस्ते का जवाब देते हुए पूछा ।,, अंकल सभी आए हैं मम्मी पापा भैया !!

       ......और बताओ कैसे हो? आपस में बातें करते करते सब लोग खाना खाने लगे वैसे तो सभी जगह शादियों में खाना अच्छा ही होता है परंतु यहां और भी ज्यादा उच्च कोटि के व्यंजन दिखाई पड़ रहे थे सभी लोग रुचि अनुसार भोजन का रसास्वादन कर भोजन कर रहे थे ।

       अंत में आइसक्रीम पार्लर से आइसक्रीम ले खाने को संपूर्णता प्रदान कर सभी पड़ोसी लिफाफा देने के लिए भटनागर साहब को खोजने लगे परन्तु भटनागर साहब का कहीं पता नहीं था।अब महिलाएं श्रीमती भटनागर को ढूंढने लगी परन्तु वह  भी कहीं दिखाई नहीं पड़ीं ।

    ....जहां दोनों पक्ष मिलकर एक ही जगह  भोज का आयोजन करते हैं वहां अक्सर इस प्रकार की समस्या आती ही है ... सामने एक टेबल पर सभी के लिफाफे लिए जा रहे थे सभी लोगों ने अपने लिफाफे वहीं दे दिए  .... 

.....लिफाफे गिनने पर बैठा व्यक्ति एक दूसरे संभ्रांत व्यक्ति के कान में फुसफुसा रहा था 

"कार्ड तो एक हजार ही बांटे थे अब तक ढाई हजार लिफाफे आ चुके हैं !" 

.."सचमुच किसी ने सही कहा है शादियों में कन्याओं का भाग काम करता है ..... वरना भला ऐसा कहीं हुआ है की 1000 कार्ड बांटने पर ढाई हजार से ज्यादा लिफाफे आ जाएं "

....तभी वहीं चीफ कैटर( जिसको कैटरिंग का ठेका दिया था) आया और उन्ही दोनों लोगों से धीरे धीरे परन्तु आक्रोश में कह रहा था

      "यह बात बहुत गलत है  ! साहब जी ! मुझे 12 सौ लोगों का भोजन प्रबंध करने के लिए कहा गया था आपके यहां ढाई हजार से ज्यादा लोग अब तक भोजन कर चुके हैं सारा खाना समाप्त हो गया है अब मेरे बस का प्रबंध करना नहीं है मैंने खुद खूब बढ़ाकर इंतजाम किया था परंतु इतना अंतर थोड़ी होता है 100 -50 आदमी बढ़ जाएं चलता है"

" .... मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं है अब..... आप स्वयं जानें..."!

....... रात्रि के 11:00 बज चुके थे घर भी जाना था सब ने अपनी अपनी गाड़ियां निकालीं और घर की ओर चलने लगे.......

.... जब बाहर निकल रहे थे तभी अचानक दूल्हे पर नजर पड़ी दूल्हा गोरा चिट्टा शानदार वेशभूषा में तलवार लगाएं घर वाले भी सभी राजसी पोशाकें पहने जम रहे थे जैसे किसी राजघराने की शादी हो.... सभी लोग आपस में बात करते हुए जा रहे थे "कुछ भी हो भटनागर साहब ने घराना  तो बहुत अच्छा ढूंढा."..... "हां भाई साहब बहुत शानदार शादी हो रही है"!!

   ..... निकलते निकलते मन हुआ द्वार पूजा तो देख लें परन्तु गाड़ियां धीरे धीरे बाहर निकल रहीं थीं..... चलते चलते उड़ती नज़र लड़की के पिता के स्थान पर मौजूद व्यक्ति पर पड़ी तो लगा वह भटनागर साहब नहीं थे.........फिर सोचा हमें कहीं धोखा लगा होगा....

...... परंतु राही होटल से निकलने के बाद कुछ आगे चलकर एक और होटल पड़ा उसका नाम भी राही ही लिखा  हुआ था...... यह देखकर माथा कुछ ठनका सोचते सोचते घर पहुंच गए सभी पड़ोसी लोग  आपस में बातें कर रहे थे कि भटनागर साहब क्यों नहीं मिले ?ऐसा कहीं होता है कि मेहमानों से मिलो ही नहीं ! यह बात किसी को भी अच्छी नहीं लग रही थी.....

........अगले दिन भटनागर साहब गुस्से में सबसे शिकायत कर रहे थे कि "आप लोगों में से कोई भी नहीं पहुंचा.!!!.... भला यह भी कोई बात हुई  सारा खाना बर्बाद हुआ..!!!.... सभी पड़ोसी लोग एक दूसरे का मुंह देख कर मामले को समझने का प्रयत्न कर रहे थे...... आखिर सब लोग किसकी  दावत में शामिल हो गए और व्यवहार के लिफाफे किनको।   थमा कर चले आये......

      ‌.... चौंकने का समय तो अब आया जब अखबार में पढ़ा "राही होटल में शादी में खाना कम पड़ जाने के कारण बरातियों ने हंगामा काटा !! प्लेटें फेंकी .....नाराज़ होकर दूल्हे सहित बरात बिना  शादी किए लौटी !!! ...सभी पड़ोसी स्तब्ध थे.......


✍️ अशोक विद्रोही

 412 प्रकाश नगर मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

बुधवार, 22 जून 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का व्यंग्य ....नेतावीर


"नेतावीर" योजना अगर शुरू की जाए तो कैसा रहेगा ? योजना का उद्देश्य जैसा कि नाम से प्रकट हो रहा है, देश को अच्छे नेता प्रदान करना है । आजकल जिसे देखो विधायक और सांसद बनने के लिए खड़ा हो जाता है । चुनाव भी जीत जाता है और जनता से झूठे वायदे करके अथवा उसकी भावनाओं को भड़का कर पद प्राप्ति के बाद तिकड़म बाजी में जुट जाता है । नेतावीर योजना में ऐसा नहीं हो पाएगा ।

             सर्वप्रथम जिन लोगों को नेता बनना है अर्थात सांसद और विधायक आदि का चुनाव लड़ना है, उन्हें पॉंच वर्ष तक नेतावीर के कठिन प्रशिक्षण से गुजरना होगा। नेतावीर बनने के लिए आवेदन-पत्र प्राप्त किए जाएंगे । यह केवल 25 वर्ष से 60 वर्ष आयु के व्यक्तियों के लिए होंगे अर्थात बूढ़े और ढल चुके व्यक्तियों का नेताओं के रूप में कोई भविष्य नहीं होगा । इन्हें जबरन राजनीति से रिटायर कर दिया जाएगा । 

       नेतावीर के लिए उन युवकों को प्रशिक्षण हेतु चुना जाएगा जो किसी गुंडा-बदमाशी के चलते जेल में सजा काटकर नहीं आए होंगे अर्थात अच्छे चाल-चलन वाले लोगों को राजनीति में प्रश्रय मिलेगा ।

     नेतावीर बनना कोई मामूली बात नहीं होगी । इसके लिए 5 वर्षों तक किसी प्रकार का कोई भत्ता या वेतन नहीं मिलेगा बल्कि उल्टे अपनी आमदनी का 10% देश को दान के रूप में देना पड़ेगा। जब आप देश की सेवा करने के इच्छुक हैं तो अपनी आमदनी का 10% देश को पहले दिन से देना शुरू कर दें ।  फिर उसके बाद 5 साल तक जनता के सुख और दुख में निरंतर भागीदारी निभानी होगी । 

        अंतिम संस्कार में कंधा देना पड़ेगा और विवाह आदि के कार्यों में आपकी सहभागिता नोट की जाएगी । सुबह से शाम तक आप कितने लोगों के सुख-दुख में हिस्सेदार बने, उनका हालचाल पूछने के लिए अस्पताल अथवा घर पर गए, यह भी देखा जाएगा। गली-मोहल्लों के चक्कर आपको प्रतिदिन लगाने होंगे तथा उसका विवरण भेजना पड़ेगा । इन सब को देखते हुए कुछ लोगों को नेतावीर का सर्टिफिकेट दिया जाएगा तथा बाकी लोगों को नेता बनने के लिए चुनाव में खड़े होने का अवसर मिलेगा । चुनाव में खड़े होने के बाद भी तथा चुनाव जीतकर सांसद और विधायक बनने के बाद भी यह पद देश की सेवा के लिए ही सुरक्षित रहेगा अर्थात नेतावीर बनने की प्रक्रिया के दौरान जो 10% अपनी आमदनी देश को देते थे, वह आपको सारी जिंदगी देनी पड़ेगी।  विधायक और सांसद बनने के बाद कोई वेतन भत्ता तो दूर की बात रही, आपको अपने पास से अपनी आमदनी का 10% देना पड़ेगा । 

      इतनी कठिन प्रक्रिया के बाद सांसद और विधायक बनने के लिए केवल अच्छे, भले और ईमानदार लोग ही आएंगे।  जिनका उद्देश्य राजनीति में पैसा कमाना है, वह तो दूर से ही राजनीति को प्रणाम करेंगे । वह लोग नेता तो दूर की बात रही नेतावीर भी नहीं बन पाएंगे । एक बार जो सांसद और विधायक बन गया, वह कभी भूल कर भी इस्तीफा देने की नहीं सोचेगा।  इतने पापड़ बेलकर जब पद मिलेगा, तो कौन उसे गॅंवाने की सोच सकता है ?

✍️रवि प्रकाश 

बाजार सर्राफा

 रामपुर ,उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी का गीत .... साज़िश में बैठी है साज़िश साज़िश गहरी है ,और हमारी भलमनसाहत गूंगी बहरी है।।


साज़िश में बैठी है साज़िश

साज़िश गहरी है।

और हमारी भलमनसाहत

गूंगी बहरी है।।


आगबबूला हर कोशिश का

पता नहीं चलता।

तार गया सौहार्द हमें जो

आज नहीं फलता।।

घर में आकर समरसता के

माचिस ठहरी है।


मकसद सारे लगे ताक में

करते निगरानी।

शुभम् शिवम् पर जैसे भी हो

फिर जाए पानी।।

रोग निरंतर बढ़ता जाता

मौसम ज़हरी है।


हुई अराजक दुष्ट हवाएँ

उधम मचाती हैं।

महक रहे इस चन्दन वन में

आग लगाती हैं।।

और दखल देने में लगती

विफल कचहरी है।


✍️ डॉ.मक्खन मुरादाबादी

      झ-28, नवीन नगर

      काँठ रोड, मुरादाबाद-244001

      उत्तर प्रदेश, भारत

     संपर्क:9319086769

मंगलवार, 21 जून 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार सुभाष चंद्र शर्मा की रचना .... योग करने से रोग, जाएगा उड़ धूल-सा, पूर्ण स्वस्थ शरीर भी, हल्का होगा फूल-सा....


वर्ष का दिन बड़ा,

कड़ा ताप धूप में।

21 जून मना रहे,

योग दिवस के रूप में।।

अनुलोम विलोम योग को,

जब कभी करते हैं आप।

नियत रखता है आपका, 

निम्न-उच्च रक्तचाप।।

जवाब जब दे दिया,

मरीजों की जेब ने।

स्वस्थ योग से किया,

बाबा रामदेव ने।।

योग-गुरु देखते जब,

मरीजों की नब्ज को।

सबसे पहले तुड़वाते हैं,

पेट की कब्ज को।।

कब्ज ही होती बहुत,

रोगों का मूल है।

मुंह के छाले बवासीर,

चाहें पेट का शूल है।।

करो कपालभांति,

उदर विकार मुक्ति को।

रामदेव साथ हैं,

सुझाने सब युक्ति को।।

प्राणायाम करते रहो,

बुद्धि के विकास को।

लो तनाव मुक्ति को,

हास-परिहास को।।

योग करने से रोग,

जाएगा उड़ धूल-सा।

पूर्ण स्वस्थ शरीर भी,

हल्का होगा फूल-सा।।

मोदी जी थकते नहीं,

योग के प्रभाव से।

ऊबते नहीं कभी,

काम के दबाव से।।

मोदी जी को धन्यवाद,

जो विश्व में पहचान है।

अखिल विश्व कर रहा,

भारत का सम्मान है।।

यदि जड़ से ही खोना है,

आते हुए रोग को।

छोड़ सब भौतिकवाद,

अपनाओ तुम योग को।।


✍️ सुभाष चन्द्र शर्मा

सम्भल, उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद की साहित्यकार रश्मि प्रभाकर का मुक्तक ___योग से सिद्ध हो काम सभी


योग करो तो निरोग रहो, करो योग निरोगी बनाओ काया, 

स्वस्थ नहीं तो गरीब हो तुम, चाहे फ़िर लाख कमाओ माया, 

योग से सिद्ध हो काम सभी, मन शुद्ध बने तन पावन होये, 

रश्मि कहे करो योग और तन से रोग को दूर भगाओ भाया.... 


✍️रश्मि प्रभाकर

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत


मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में जकार्ता इंडोनेशिया निवासी ) वैशाली रस्तोगी के दोहे .....


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की दोहा गीतिका


चाहो यदि संसार से, दूर हटें सब रोग।

सुबह-सुबह मिलकर करें, आओ हम सब योग।।  


नित्य नियम से जो करे, हर दिन  प्राणायाम।

त्याग देह-आलस्य को, पाये जीवन  भोग।।

                                        

जब हों  विचलित  इन्द्रियाँ,  बने ध्यान से काम।

इस मन को जो बाँधता , वही परम है जोग ।।


इस कोरोना -मार से, कैसा हुआ कमाल।

सेहत ही पूँजी बड़ी , समझ गये हैं लोग।।


प्रीति  यहाँ जब लोग सब, मन में लेंगे ठान।

नवभारत की शान तब, बन पायेगा योग।।

✍️प्रीति चौधरी

हसनपुर, अमरोहा

उत्तर प्रदेश, भारत



मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद संभल ) के साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम के आठ दोहे


प्रात काल के योग से, दूर रहें सब रोग।
गुणकारी गुरु मंत्र सा, संजीवन रस योग।।

जीवन को सुंदर बना, करके साधन योग।
वेदों की शिक्षा यही, कहते सुनते लोग।।

भूले से करना नहीं, मन तन से खिलवाड़।
एक बार की चूक से, मिले दुखों की बाढ़।।

काया को कमजोर की, सारे सुख निर्मूल।
चुभते उसको फूल भी, जैसे शूल बबूल।।

एक-एक का योग भी, कहलाता है योग।
भोग हुआ जब योगमय, मिटे सभी दुर्योग।।

सबके मन में रम रहे, रोग भोग संभोग।
जिसका जैसा योग हैं, उसका वैसा भोग।।

जो मन चाहे भोगना, कुल वसुधा के भोग।
तन को मन में ढाल ले, मन से कर ले योग।।

दिया हुआ भगवान का, तन सुंदर उपहार।
कृष्णम् नियमित योग से, लाना नित्य निखार।।

✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्
कुरकावली, संभल (उ०प्र०)


सोमवार, 20 जून 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार का गीत ....बादल आए ,एक झलक दिखलाकर चले गए, बिन बरसे ही आँचल-से लहराकर चले गए


बादल आए ,एक झलक दिखलाकर चले गए।

बिन बरसे ही आँचल-से लहराकर चले गए ।।


बाँंध टकटकी रहे देखते, नीम और जामन, 

सूखे में ही बीत रहा है ,यह कैसा सावन  ।

रूठ गए हैं जिसके साजन, विपदा की मारी,

निष्ठुर बादल की चाहत में ,सूख गई क्यारी  ।

सपने में आए थे प्रीतम, आकर चले गए. ।।

बादल आए------


दरक गईं परतें धरती की ,सूख गया  सब जल,

नहीं परिंदों की होती है, झीलों पर हल-चल  ।

दाना-पानी फिरें ढूंढ़ते,  पागल-से सारस, 

भूखे पेट नहीं उनमें है ,उड़ने का साहस  ।

दूर देश के कुछ पंछी,  अकुला कर चले गए ।।

बादल आए---

 

हरियाली रितु के आने की,  आशा थी पूरी  ,

लेकिन बादल की धरती से ,बनी रही दूरी  ।

आज किसान दर्द से अपनी,  आँखें मींच रहा, 

श्रम की बूँदों से ही अपनी, फ़सलें सींच रहा  ।

बादल नभ में बिजली-सी, चमका कर चले गए. ।।

बादल आए------


✍️ओंकार सिंह 'ओंकार'

1-बी- 241 बुद्धि विहार, मझोला 

मुरादाबाद 244103

उत्तर प्रदेश, भारत

रविवार, 19 जून 2022

मुरादाबाद की संस्था कला भारती की ओर से रविवार 19 जून 2022 को ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया । प्रस्तुत हैं गोष्ठी के अध्यक्ष संजीव आकांक्षी, मुख्य अतिथि अशोक विश्नोई , विशिष्ट अतिथि डॉ पूनम बंसल, विशिष्ट अतिथि त्यागी अशोका कृष्णम् एवं साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी, योगेन्द्र वर्मा 'व्योम', मुजाहिद चौधरी, मनोज'मनु', राजीव 'प्रखर',अतुल कुमार शर्मा, दुष्यंत 'बाबा', डॉ रीता सिंह, इन्दु रानी,नृपेंद्र शर्मा, प्रशान्त मिश्र और शुभम कश्यप 'शुभम' द्वारा प्रस्तुत की गईं रचनाएं ...…

 


ज़हालत इस क़दर भर दी गई इन नामाकूलों में।।           हर एक के साथ ग़द्दारी सीखा  दी है उसूलों में।।

न अपनी कौम के ही हो सके न देश दुनिया के।
खुद ही दीमक लगाते घूमते मज़हब की चूलों में।।

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पत्थर पूजने वाले ही पत्थर खाएँ, आखिर क्यों?
जहरीले सापों से रिश्ता हम निभाएँ, आखिर क्यों?
फनों से ज़हर की थैली निकालो तोड़ डालो दाँत।
तुम्हारे पाले सांपों को हम गिनाएँ, आखिर क्यों?

✍️ संजीव आकांक्षी
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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आप जानते हैं ,
मैं, गीत नहीं लिखता ।
       सुख कब आते हैं ;
       पीड़ा के आंगन में ।
       रहा अकेला मैं ,
       अपनों के कानन में ।
मेरा पका घाव ,
फिर भी नहीं रिसता ।।
        छोटे से घर में ,
        ईर्ष्या की दीवारें ।
        बाहर से अच्छा ,
        दिलों में दरारें ।
भोला मन है ये,
सदा रहा दबता ।।
         विश्वासों पर ही तो,
         दिन कम हो जाता ।
         निजी आस्थाओं में ,
         मन कहीं खो जाता।
भोर से भी अपना,
भ्रम नहीं मिटता ।।
         पक्षी करते कलरव,
         अच्छा सा लगता है।
         सांझ ढले जब-जब,
         भीतर डर लगता है।
करे क्या मानव,
ईमान यहां बिकता ।।
आप जानते हैं,
मैं, गीत नहीं लिखता ।।

✍️ अशोक विश्नोई
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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आँसू में डूबा हुआ है जिसका संगीत
कैसे मैं  पूरा करूँ जीवन का यह गीत

छोटी सी यह बाँसुरी राधा की है प्रान
प्रभु अधरों से लग गई भूली अपनी तान
मिट जाने से ही मिली सात  सुरों  की जीत

दुख बचपन से साथ है सुख तो है मेहमान
मोल न जाने हंसी का दुख से जो अनजान
अपनी तो है दर्द से जनम जनम की प्रीत

कदम कदम पर ठोकरें खाता  है इंसान
गिरके भी संभले न जो वो मूरख नादान
शोलों को देता हवा यह जग की है रीत

क़िस्मत  से लड़ना नहीं  होता है आसान
आसमान छू लें कदम बस इतना अरमान
सपनों में  ही हो गई लो सपनों की जीत

✍️ डॉ पूनम बंसल
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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हाथों में हैं आरियाँ,बातें हैं रसदार।
पीपल बोला आम से,देख मनुज व्यवहार।।

सच की गठरी बांध कर,उठे गिरे सौं बार।
कुछ कागज की नांव भी,पहुंच गईं उस पार।।

तुलना का प्रारंभ है,अपनेपन का अंत।
खो जाता आनंद तब,पीड़ा मिले अनंत।।

रिश्ते अपने हो गए,इसीलिए दो फाड़।
सच था मेरे साथ में,उनके पास जुगाड़।।

गिरगिट के रंग देखकर,कैसे हों हम दंग।
रंग बदलते मिल गए,हमको कई भुजंग।।

देख-देखकर रात दिन,फँसी गले में जान।
हिन्दुस्तानी सूरतें,मन हैं पाकिस्तान।।

पापी रावण कंस या,दुर्योधन बदमाश।
अहंकार की एक गति,होती मात्र विनाश।।

किस दुश्मन ने हैं भरे,यार तुम्हारे कान।
ऐसा क्यों लगने लगा,नहीं जान पहचान।।

चित्रकार ने भाग्य से,ऐसे हारी जंग।
सुंदर बनते चित्र पर,बिखर गए सब रंग।।

✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्
कुरकावली , सम्भल
  उत्तर प्रदेश, भारत
मो.+91 97190 59703

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लेकर फिर हाथ में वो मशालें निकल पड़े हैं
बेकुसूरों  के  घर  वो जलाने निकल पड़े हैं
यह सोच कर उदास हैं चौराहों पर लगे बुत
हमारे शहर में  वो लहू बहाने निकल पड़े हैं

✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822

Sahityikmoradabad.blogspot.com
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बहुत दूर हैं पिता
किन्तु फिर भी हैं
मन के पास

पथरीले पथ पर चलना
मन्ज़िल को पा लेना
कैसे मुमकिन होता
क़द को ऊँचाई देना
याद पिता की
जगा रही है
सपनों में विश्वास

नया हौंसला हर पल हर दिन
देती रहती हैं
जीवन की हर मुश्किल का हल
देती रहती हैं
उनकी सीखें
क़दम-क़दम पर
भरतीं नया उजास

कभी मुँडेरों पर, छत पर
आँगन में आती थी
सखा सरीखी गौरैया
सँग-सँग बतियाती थी
जब तक पिता रहे
तब तक ही
घर में रही मिठास

✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल-9412805981

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तुमने नहीं किया तो किसी ने नहीं किया ।
कुछ दोस्तों ने हमसे किनारा नहीं किया ।।
इस हाथ ले के उसने उसी हाथ दे दिया ।
जब भी दुआएं मांगीं वो मक़बूल हो गई ।
मेरे खुदा ने मुझसे किनारा नहीं किया ।।
दुश्मन से मिल गए जब मोहब्बत के साथ हम ।
फिर दुश्मनों ने हमसे किनारा नहीं किया ।।
जब दोस्तों ने फर्ज निभाया तो रो पड़े ।
उन दोस्तों से हमने किनारा नहीं किया ।।
खुशबू की तरह गुल का निभाते रहे हैं साथ ।
साए से उनके हमने किनारा नहीं किया ।।
दुश्मन सा जब सुलूक किया हमसफर ने फिर ।
हमने भी दुश्मनी से किनारा नहीं किया ।।
गमगीन हैं चमन के मैं हालात देखकर ।
फिर भी चमन से हमने किनारा नहीं किया ।।
मुजाहिद ने फिर जहां को वफा की दिलायी याद ।
उसके अहद से हमने किनारा नहीं किया ।।

✍️ मुजाहिद चौधरी
हसनपुर अमरोहा
उत्तर प्रदेश, भारत

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सिर पर
छांव पिता की,
कच्ची दीवारों पर छप्पर..

आंधी-बारिश
खुद  पर   झेले
हवा  थपेड़े  रोके ,
जर्जर तन
भी ढाल बने
कितने मौके-बेमौके ,
रहते समय
जान नहीं पाते
क्यों हम सब ये अक्सर,..
सर पर छांव पिता की ,,...

जितनी
दुनियादारी जो भी
नजर  समझ   पाती  है,
वही दृष्टि
अनमोल पिता के
साए  संग  आती  है ,
जिससे, दुष्कर
जीवन  पथ  पर
नहीं  बैठते थककर....
  सिर पर छांव पिता की...

माँ का आंचल
संस्कार       भर
प्यार  दुलार लुटाता,
पिता
परिस्थिति की
विसात पर
चलना हमें सिखाता,
करता सतत प्रयास
कि बेटा होवे उस से बढ़कर,..
सिर पर
छांव पिता की
कच्ची दीवारों पर छप्पर...
                      
✍️ मनोज'मनु'
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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ॲंधियारे अब ऐंठना, है बिल्कुल बेकार।
झिलमिल दीपक फिर गया, तेरी मूॅंछ उतार।।

मन की ऑंखें खोल कर, देख सके तो देख।
कोई है जो रच रहा, कर्मों के अभिलेख।।

कर लेने को हैं बहुत, बातें मेरे पास।
ओ दीवारो तुम कभी, होना नहीं उदास।।

बेबस भीखू को मिली, कैसी यह सौग़ात।
दीवारों से कर रहा, अपने मन की बात।।

चन्दा बिन्दी भाल की, तारे नौलख हार।
रजनी करके आ गयी, फिर झिलमिल शृंगार।।

छुरी सियासत से कहे, चिन्ता का क्या काम।
मुझे दबाकर काॅंख में, जपती जा हरिनाम।

गुमसुम बैठी रह गयी, बरखा-गीत बहार।
मेघा गप्पें मार कर, फिर से हुए फ़रार।।

आये जब अवसान पर, श्वासों का यह साथ।
तब भी लेखनरत मिलें, हे प्रभु मेरे हाथ।।

की पंछी ने प्रेम से, जब जगने की बात।
बोले मेंढक कूप के, अभी बहुत है रात‌‌।।

✍️ राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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धरने पर बैठे किसानों के तंबुओं की तरह,
नहीं होती हैं कविताएं,
कि सरकार की सख्ती और हठधर्मिता के सामने,
यूं ही उखड़ जाएं।
या फिर तूफानों में उजड़ जाएं,
जंगलों की तरह,
या जल जाएं,
घास-फूस के छप्परों सी,
घुल जाएं जहरीली हवा में,
या दब जाएं ऑफिस की फाइलों सी।
मिल जाए जैसे दूध में पानी,
और कोहरे में छिप जाए,
सूरज की तरह,
कविता कविता है,
जो कभी नहीं मरती,
दिलों पर करती है राज,
एक रानी की तरह।
कविता की कीमत,
कीमती आदमी ही जानता है,
उस की आन-बान-शान को पहचानता है,
संस्कृति से इसका अटूट नाता है,
कविता किसी सभ्य समाज की निर्माता है।
कविता को विचारों का भूखंड चाहिए,
भाव रूपी ईटों की मजबूती चाहिए,
हो समस्या की सरियों का जाल,
कुंठा को तोड़ने वाली,
ऐसी रेती चाहिए।
फिर लगाकर सहानुभूति का सीमेंट,
मिटाया जाता है,
खुरदुरेपन का एहसास,
डाल दी जाती है, संस्कारों की छत,
और पहना दिया जाता है प्यारा-सा लिबास।
करके दुनिया का श्रंगार फिर,
दीनता का समाधान बन जाती है कविता,
और पहन संस्कृति का परिधान,
हर समस्या का निदान बन जाती है कविता।

✍️ अतुल कुमार शर्मा
सम्भल, उत्तर प्रदेश, भारत

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राधा! मुरली श्याम की, कितनी  हुई बड़भागी।
देख विभोर श्याम को, बोली ललिता अनुरागी।।
तुम तो राधा पुरइन पात, कियो कृष्ण रस गात।
अधरन पे वो रहत सदा, हरि छिटकें नही हाथ।।
तब ललिता से राधा कहें,दृग कंचन नीर बहाय।
ये माटी की गगरिया, अधजल  छलकत जाय।।
हम अबला भोरी थोरी, सो सहज श्याम सुहाय।
जब हरि की दृष्टि पड़े,तो बंशी सौतन छुट जाय।।

✍️ दुष्यंत 'बाबा'
पुलिस लाइन, मुरादाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत

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मेघा आओ मेघा आओ
झोली में पानी भर लाओ
सूख रहे सब ताल तलैया
रौनक उनमें फिर दे जाओ ।

सड़क किनारे धूल उड़ी है
अाँगन में भी तपन बढ़ी है
हुआ दूभर बाहर निकलना
गरमी की बस मार पड़ी है ।

आकर अब तुम जल बरसाओ
धरती माँ को मत तरसाओ
बूँद बूँद भरकर कण कण में
रिमझिम रिमझिम मन हरसाओ ।

✍️ डॉ रीता सिंह
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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हिन्दू मुस्लिम सिक्ख सब, इस भारत की आन।
आया ऐसा दौर अब, भूल गए पहचान।।

गए भूल पहचान हैं ,हम भारत की शान।
आया ऐसा दौर है, युद्ध लिया है ठान।।

बात धर्म की छेड़ कर, व्यर्थ करे अभिमान ।
आया ऐसा दौर क्यों, करते हैं अपमान।

मिल जुल कर सब एक हो ,बने हिन्द की जान।
आया ऐसा दौर क्यों,टकराओं की ठान।।

आया ऐसा दौर क्यों,बिखर रहे सब भ्रात।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख सब, रखते एक बिसात।।

✍️ इन्दु रानी, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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नफरत दिलों के बीच बढाती हैं सरहदें।
इंसान को हैवान बनाती हैं सरहदें।।

मालिक ने तो बख्शी थी कितनी हसीं दुनिया।
सीने पर इसके दाग लगाती हैं सरहदें।।

मालिक के बन्दों में नहीं है फ़र्क़ जरा सा।
है एक सा लहू और है एक सी काया।।

बंदों से खून बन्दों का कराती हैं सरहदें।
इन्सान को शैतान बनाती हैं सरहदें। ।

मालिक ने न बाँटा हवा पानी और बसेरा।
दी एक सी ही रात बख्शा एक ही सवेरा।।

हर रात में एक ख़ौफ़ बढ़ाती हैं सरहदें।
इंसान को शैतान बनाती हैं सरहदें।।

लेकिन भला क्या सरहदें कर देंगी दिल जुदा।
उसका बुरा क्या होगा जिसके दिल है प्यार का।।

कैसे जुदा करेंगी उनके दिल को सरहदें।
जो मानते नही हैं क्या होती हैं सरहदें।।

✍️ नृपेंद्र शर्मा
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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मेरे विरोधी ही,
मेरे अच्छे “मित्र” हैं..
और मुझसे सच्चा प्यार करते हैं,
जब अपने साथ छोड़ जाते हैं
जब अपने हमसे रूठ जाते हैं
उस समय की वेदना में,
शान्त जीव चेतना में
हंसकर अपने होने का इजहार करते हैं
मेरे विरोधी ही मेरे अपने हैं
और मुझे सदैव याद करते हैं

जब हार होती है,
और मैं टूट जाता हूँ
अकेला तन्हा, अपनी “किस्मत’ से रूठ जाता हूँ
तब मेरे विरोधी मुझे चिढ़ाते हैं
तब मेरे विरोधी मुझे उकसाते हैं
और मेरे बिखरे हुए
“अरमान” को पुनः जगाते हैं
मेरे विरोधी ही मेरी प्रेरणा हैं
और मुझ पर पक्का एतबार करते हैं 

“अपनों” का आना, सिर्फ हवा का झोंका है..
“चिता” पर छोड़ आते समय
कितनों ने रोका है,
जो मेरे सुख में कम
और दुःख में ज्यादा याद करते हैं..
मेरे विरोधी ही हैं
जो मेरी हर पल बात करते हैं
मेरे विरोधी ही हैं
जो मेरे शरीर में , तेज रक्त प्रवाह कर
आसीम शक्ति का संचार करते हैं

✍️ प्रशान्त मिश्र
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद ,उत्तर प्रदेश, भारत

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क्यों फ़र्ज़-ओ-वाजीबात का मतलब नही पता ।
छोटों से इल्तिफ़ात का मतलब नही पता ।
सबका लहू सफेद है घर - घर हैं रंजिशें,
रिश्तों का मुआमलात का मतलब नही पता।
ठोकर में बाप दादा की दस्तार है पड़ी,
जन्नत की मालियात का मतलब नही पता।
बैठे बिठाए बाप की दौलत जिसे मिली,
उसको ही दाल भात का मतलब नही पता ।
बढ़के गले 'शुभम' ने सभी को लगा लिया,
उसको तो जात पात का मतलब नहीं पता।
 
✍️शुभम कश्यप 'शुभम'
मुरादाबाद ,उत्तर प्रदेश, भारत