डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822
डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822
तन ने बाजार
में
कीमत लगाई
हाथों-हाथ
बिक गया।।
मन तो पागल
था
बिना कीमत
लुट गया।
2
सभ्यताओं के
स्टॉल पर कोई
नहीं आता
अब गाय को रोटी
नहीं डाली जाती
3
उधार की संस्कृति
कब तक चलेगी..?
जब तक जाने जहाँ
यह बहार चलेगी।।
4
अंदर से कुछ
बाहर से कुछ..हो
यह सियासत भी..
मियां!
कहॉं से कहाँ
पहुँच गई।।
5
सब नाच रहे हैं
तुम भी नाच लो
अस्मिता ने घूंघट
छोड़ दिया है।।
✍️ सूर्यकांत द्विवेदी
मेरठ
उत्तर प्रदेश, भारत
सूर्य कांत द्विवेदी
मेरठ
उत्तर प्रदेश, भारत
फीता काटने से पहले आदमी को चारों तरफ गर्व से सिर उठाकर देखना चाहिए । एक नजर फीते की ओर, दूसरी नजर चारों तरफ उपस्थित भीड़ की ओर । अगल-बगल-पीछे सब को देखने के बाद उसे कैंची हाथ में लेने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए अर्थात कैंची को बहुत नाजुक तरीके से हाथ में उठाना होता है । इसमें कभी भी अपनी उतावलेपन की भावना को प्रकट नहीं होने देना चाहिए । वरना मामला बिगड़ जाता है । भीतर भले ही कैंची को झटपट प्लेट से उठाकर फीता काटने की ऑंधियॉं चल रही हों, लेकिन व्यक्ति की कलात्मकता इसी में है कि वह मंद मंद मुस्कुराते हुए धीरे-धीरे कैची को प्लेट से उठाए और हल्के-हल्के फीते तक ले जाए।
बस यहॉं आकर थोड़ा-सा रुकने की जरूरत है । अभी आपको फीता नहीं काटना है। कुछ लोग इसी समय अपना हाथ आपकी कैंची की तरफ बढ़ाने के उत्सुक होंगे । उन्हें जबरन पीछे धकेलने की कला आपको आनी चाहिए । यह बात सुनिश्चित कर लीजिए कि कैंची अकेले आपके हाथों में ही सुशोभित होनी चाहिए। अगर अगल-बगल के दो लोगों ने भी कैंची को स्पर्श कर लिया, तो समझ लीजिए कि आप का श्रेय एक तिहाई रह जाएगा। कल को जब इतिहास लिखा जाएगा, तब फोटो को सबूत के तौर पर कोई भी प्रस्तुत करके यह कह सकता है कि फीता तीन लोगों ने काटा है । तब आप क्या करेंगे ? सिवाय हाथ मलने के कुछ नहीं बचेगा ?
इसलिए कैंची को अपने शरीर के बीचो-बीच बिल्कुल सुरक्षित पोजीशन में रखिए । कैमरे की तरफ ध्यान अवश्य दें, लेकिन कैंची को चिंतन की धारा से बाहर न जाने दें। परोक्ष रूप से ध्यान पूर्णतः फीते पर ही रहना चाहिए । जरा सोचिए ! कितने उखाड़-पछाड़ के बाद फीता काटने का सौभाग्य जीवन में आता है ! कितने पापड़ बेले ! कितनी सिफारिशें पड़वाईं ! क्या-क्या सौदे नहीं किए ! न जाने कितने वायदों के बाद फीता काटने की मंजूरी मिल पाती है ! फीता काटने की दौड़ में अनेक प्रतियोगी लगे रहते हैं । एक अनार, सौ बीमार । जिसे फीता काटने का सौभाग्य मिल जाता है, सचमुच अपने आप को धन्य मानता है । दौड़ में एक को ही विजयश्री प्राप्त होती है । बाकी मन-मसोसकर रह जाते हैं कि यह जो फीता काटने का सौभाग्य अमुक को मिला है, काश हमें मिल जाता ! अगर दांव लग जाता तो हम भी फीता काट रहे होते!
✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल 99976 15451
सब मिल हम सखियाँ बचपन की
चल करते बतियाँ बचपन की
बागों में चलकर फिर खाते
वो खट्टी अमियाँ बचपन की
छत पर उन तारों को गिनकर
बीते फिर रतियाँ बचपन की
शादी हम जिसकी करवाते
चल ढूँढे गुड़िया बचपन की
कच्चे उस आगंन में अब भी
फुदके हैं चिड़ियाँ बचपन की
नव जीवन के सपने देखें
चमके हैं अँखियाँ बचपन की
2 दोहा गीतिका
बच्चे हम माँ शारदे , करते तेरा ध्यान ।
जीवन- पथ पर तुम हमें ,देती रहना ज्ञान ।।
माँगें हम यह भारती, हो भारत का नाम ।
फहरे झण्डा विश्व में, भारत की बन शान ।।
सभी रंग के फूल से , महके हर उद्यान ।
यही हमारी कामना , सब हो एक समान ।।
रुके नहीं चलते चलें , करें नहीं आराम ।
धात्री के सम्मान का , रखना हमको मान ।।
स्वप्न यही है ' प्रीति 'का, बेटी बनें महान ।
उनसे ही तो है बढ़े , इस भारत की शान ।।
3 गीतिका
सैर इस आसमाँ की कराओ परी
चाँद के पास जाकर सुलाओ परी ।।1।।
है वहीं माँ , बतायें मुझे सब यही
अब चलो आज माँ से मिलाओ परी ।।2।।
तुम सुनाकर कहानी मुझे गोद में
नींद भी नैन में अब बुलाओ परी ।।3।।
झिलमिलाते सितारे कहें हैं मुझे
ज़िंदगी में नया गीत गाओ परी ।।4।।
सीख अब मैं गयी बात यह काम की
फूल से तुम सदा मुस्कुराओ परी ।। 5।।
4 गुल्लक
बचपन की वह प्यारी गुल्लक
मिट्टी की थी न्यारी गुल्लक
चवन्नी अठन्नी जोड़ी जिसमें
मिलती नहीं हमारी गुल्लक
चकाचौंध की भेंट चढ़ गईं,
मेरी और तुम्हारी गुल्लक।
नहीं दिखतीं घर में किसी के
कहाँ गईं वह सारी गुल्लक।
5 मेरी माँ
कभी कड़वी कभी मीठी गोली सी मेरी माँ
प्यार अंदर भरा हुआ पर दिखती सख़्त है मेरी माँ
ममता की छांव में उसकी बड़े हुए हम
हम भाई बहनो का अभिमान है मेरी माँ
कभी.........
कड़ी धूप में चलना सिखाया
कठिनाइयों से लड़ना सिखाया
बात ग़लत पर चपत लगाती
राह सच्ची पर चलना सिखाती है मेरी माँ
कभी........
उच्च शिक्षा प्राप्त किए वो
पर अहंकार से बहुत दूर वो
हर पल चुनौतियों का सामना कर
आत्मविश्वास से भरी दिखती है मेरी माँ
कभी..........
न कभी सजते सँवरते देखा
न व्यर्थ बातों में समय व्यतीत करते देखा
सादगी से भरी ममता की मूरत
पूरे दिन हमारी फ़िक्र में
दिन रात मेहनत करती दिखती है मेरी माँ
कभी.....
कभी डाँट कर हमें वो अच्छा बुरा समझाती है
ये जीवन अमूल्य है
हर रोज़ यह बताती है
पथ पर क़दम न डगमगाए कभी
हर राह पर मेरे साथ खड़ी दिखती है मेरी माँ
कभी......
कभी गुरु बन वह मुझे मेरा रास्ता सुझाती है
कभी सखी बन मेरी हर बात बिन कहे समझ जाती है
कभी ईश्वर का रूप धर हर दुविधा में रास्ता बन जाती है
साहस अंदर भरा हुआ
हर विपदा से दूर मुझे कर देती है मेरी माँ
कभी.......
✍️ प्रीति चौधरी
गजरौला, अमरोहा
उत्तर प्रदेश, भारत
माँ! मैं भी बन जाऊँ कन्हैया,
मुरली मुझे दिला दे।
और मोर का पंख एक तू,
मेरे शीष सजा दे।
ग्वाल-बाल के साथ ओ! मैया,
मैं भी मधुबन जाऊँ।
प्यारी मम्मी! मुझको छोटी,
गैया एक दिला दे।
यमुना तट पर मित्रों के सँग,
गेंद-तड़ी फिर खेलूँ।
मारूँ तक कर गेंद,ओ माता!
मुझे पड़े तो झेलूँ।
और कदंब के पेड़ों पर मैं,
पल भर में चढ़ जाऊँ।
कूद डाल से यमुना में फिर,
गोते खूब लगाऊँ।
ऊँची डाली पर बैठूँ मैं,
मुरली मधुर बजाऊँ।
मुरली मधुर बजा कर मैया,
गैया पास बुलाऊँ।
मैं फोड़ूँ माखन-मटकी भी,
माखन खूब चुराऊँ।
मेरे पीछे भागें गोपी,
उनको खूब भगाऊँ।
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(2) कोयल कहती मीठा बोलो
कोयल कहती मीठा बोलो,
फूल कहें मुस्काओ।
चिड़िया चूँ-चूँ करके बोले,
शीघ्र सुबह उठ जाओ।
चींटी यह कहती है हमसे,
श्रम की रोटी खाओ।
कुत्ता भौं-भौं कर बतलाता,
वफादार बन जाओ।
नदी सिखाती चलते रहना,
थक कर मत रुक जाना।
पर्वत कहता तूफानों को,
कभी न शीष झुकाना।
वृक्ष हमें फल देकर कहते,
सदा भलाई करना।
मधुमक्खी सिखलाती बच्चो!
सदा संगठित रहना।
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(3) चांद और पृथ्वी में संबंध
अध्यापक जी ने कक्षा में,
पूछा एक सवाल ।
चांद और पृथ्वी में संबंध,
बतलाओ तत्काल ।
सारे बच्चे थे भौचक्के,
क्या है यह जंजाल।
सर जी ने पूछा है हमसे,
कैसा आज सवाल?
सर जी मैं बतलाऊँ उत्तर,
उठकर गप्पू बोला।
कक्षा में तो आता नहीं तू,
खबरदार मुँह खोला।
सब बच्चों के कहने पर फिर,
सर ने दे दिया मौका।
देखो प्यारे गप्पू ने फिर,
मारा कैसे चौका।
चाँद और पृथ्वी का संबंध,
हमको दिया दिखाई।
पृथ्वी तो है प्यारी बहना,
और चांद है भाई।
अध्यापक गुस्से में बोले-
पूरी बात बताओ।
भाई और बहन का रिश्ता,
कैसे है समझाओ।
गप्पू बोला मैं बतलाता,
ओ गुरुदेव! हमारे।
समझाता हूँ सुनो ध्यान से,
तुम भी बच्चों सारे।
जब चंदा है अपना मामा,
धरती अपनी मैया।
फिर क्यों नहीं होगा धरती का,
चंदा प्यारा भैया।
फिर क्या था पूरी कक्षा ने
खूब बजाई ताली।
बड़ी शान से गप्पू जी ने,
छाती खूब फुला ली।
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(4) बच्चों के मन भाता संडे
बच्चों के मन भाता संडे।
सबको बहुत लुभाता संडे।
होमवर्क से मिलती छुट्टी,
कितना रेस्ट कराता संडे।
सिर्फ एक दिन मुख दिखलाता,
फिर छ: दिन छुप जाता संडे।
बच्चों को पिकनिक ले जाकर,
खुद 'फन-डे' बन जाता संडे।
घर में बनते कितने व्यंजन,
नए-नए स्वाद चखाता संडे।
लेकिन प्यारी मम्मी जी का,
काम बहुत बढ़वाता संडे।
मुन्नी यों मम्मी से पूछे,
रोज नहीं क्यों आता संडे।
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(5) नील गगन के प्यारे तारे!,
नील गगन के प्यारे तारे!,
कितने सुंदर कितने न्यारे।
आसमान में ऊँचे ऐसे।
चमके हो हीरे के जैसे।
चाँद तुम्हारे पापा शायद,
साथ तुम्हारे आते हैं।
शैतानी न करो कोई तुम,
हर पल यह समझाते हैं।
कितने भाई तुम्हारे हैं ये।
एक ही जैसे दिखते हो।
सोच-सोच हैरानी होती,
नभ में कैसे टिकते हो।
क्या तुम भी विद्यालय जाते?,
किस कक्षा में पढ़ते हो?
हम बच्चों के जैसे तुम भी,
क्या आपस में लड़ते हो?
ओ तारे! चमकीलापन यह
तुमने कैसे पाया है?
सच-सच बतलाना तुम भैया,
किसने तुम्हें बनाया है?
✍️ दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिव बाबा सदन, कृष्णाकुंज
बहजोई (सम्भल) 244410
उत्तर प्रदेश, भारत
मो. नं.- 9548812618
ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com
ग़ज़ल शब्द सुनते ही कानों में मिठास घुल जाती है और लगता है हम किसी मनोरम स्थान पर झरने के नज़दीक एकांत में बैठकर प्रकृति की मधुर स्वर लहरियों में कहीं खो से गये हैं.ग़ज़ल का हर शेर स्वयं में एक पूर्ण कविता, एक कहानी लिये होता है. इसी क्रम में महानगर मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार जी का ग़जल संग्रह ' आओ! खुशी तलाश करें 'मुरादाबाद की ग़ज़ल यात्रा में एक संगीत का दरिया बनकर प्रवाहित हुआ है.
आपके ग़ज़ल संग्रह का शीर्षक ही 'आओ! खुशी तलाश करें ' जीवन से भरपूर व आशावादी दृष्टिकोण लिए हुए पाठकों के समक्ष प्रस्तुत हुआ है.आपकी ग़ज़लों ने परंपरागत शैली से हटकर मानव मन की पीड़ा को स्पर्श करते हुए, उस पीड़ा को अपना समझकर उसे दूर करने का प्रयास किया है. वस्तुतः आपके ग़ज़ल संग्रह की प्रथम ग़ज़ल ही सूर्य की प्रथम किरण की भाँति सकारात्मकता का सवेरा लिए अवसादों के अँधियारों को धूल चटाने में सक्षम प्रतीत होती है . संग्रह का शीर्षक ही 'आओ! खुशी तलाश करें ' जीवन से भरपूर व आशावादी दृष्टिकोण लिए हुए पाठकों के समक्ष प्रस्तुत हुआ है.आपकी ग़ज़लों ने परंपरागत शैली से हटकर मानव मन की पीड़ा को स्पर्श करते हुए, उस पीड़ा को अपना समझकर उसे दूर करने का प्रयास किया है. वस्तुतः आपके ग़ज़ल संग्रह की प्रथम ग़ज़ल ही सूर्य की प्रथम किरण की भाँति सकारात्मकता का सवेरा लिए अवसादों के अँधियारों को धूल चटाने में सक्षम प्रतीत होती है . चंद शेर देखिएगा..
" ग़मों के बीच से आओ खुशी तलाश करें
अँधेरे चीर के हम रोशनी तलाश करें
खुशी को अपनी लुटाकर खुशी तलाश करें
सभी के साथ में हम ज़िन्दगी तलाश करें"
एक अन्य ग़ज़ल के चंद शेर प्रस्तुत हैं
"मैं गीत में वो सुखद भावनाएँ भर जाऊँ
कि छंद छंद में बनकर खुशी उतर जाऊँ
हटा सकूँ मैं रास्तों से सभी काँटों को
हर एक राह पे फूलों सा मैं बिखर जाऊँ"
आप के सहज, सरल और निश्चल हृदय की परिक्रमा करती एक अन्य ग़जल नि:संदेह उच्च विचारों की गरिमा के परिधान पहने सामाजिक हितों व संस्कृति के चरण पखारती प्रतीत होती है.इस ग़ज़ल के चंद शेर मतले सहित बेहद शानदार बन पड़े हैं. यथा.
"अरूण को सवेरे नमन कर रहा हूँ
मैं उन्नत स्वयं अपना तन कर रहा हूँ
लिखूँ मैं सदा जन हितों की ही बातें
विचारों का मैं संकलन कर रहा हूँ"
आपने अपनी ग़ज़लों को शिल्प के कठोर बंधन में बांधकर भी मन के भावों के तन पर लेशमात्र भी खरोंच नहीं आने दी है. आपकी कलम के अनुभवी दृष्टिकोण ने इंसानी स्वभाव का बहुत सधा हुआ मूल्यांकन भी किया है.और तंज भी किया है. आपकी ग़ज़लों में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आपने इस संग्रह में हिंदी के शुद्ध शब्दों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया है . उर्दू के शब्दों के जबरन प्रयोग को आपने दरकिनार किया है.यह हिंदी साहित्य के लिए एक सुखद प्रयोग है साथ ही नैतिकता के जिस शिखर को आपकी ग़ज़लों ने स्पर्श किया है वह विरले ही देखने को मिलता है. इस क्रम में कुछ शेर प्रस्तुत हैं
"सुख तो औरों को मिला लेकिन श्रमिक को वेदना
जबकि उसके श्रम से सुख के पुष्प विकसित हो गए"
"किया है उसने किसी खल का अनुसरण मित्रों
कि जिससे बिगड़ा है उसका भी आचरण मित्रों"
"बुरे समय में अगर किसी के जो भी साथ निभायेगा
खुशियाँ उसके पाँव छुएंगी वो हरदम मुस्काएगा.
कष्ट पड़े चाहे जितने भी मलिन नहीं साधु होगा
जैसे जैसे स्वर्ण तपेगा और निखरता जायेगा"
"काम आए जो दूसरों के सदा
वो ही बड़े महान होते हैं
बढ़ती जाती है ज़िम्मेदारी भी
जबकि बच्चे जवान होते हैं"
"काम बन जाते हैं बिगड़े भी सरल व्यवहार से
मान जाते हैं बड़े रूठे हुए मनुहार से"
संघर्ष और मुश्किलों में भी सदैव मुस्कुराती आपकी गज़लें आज के आभासी युग में पाठकों के लिए और भी अधिक प्रेरणास्रोत बन जाती हैं, आपकी ग़ज़लों में महबूब की बेवफाई का रोना धोना नहीं है और न ही फालतू के शिकवा शिकायत हैं वरन् प्रेम के सकारात्मक पहलू ही आपकी ग़जलों के आभूषण बने हैं.आपकी ग़ज़लें देश की फिक्र करती हैं तो आम आदमी की पीड़ा के साथ ही महबूब से भी गुफ्तगू करती हैं. रुमानियत और खुरदरे धरातल दोनो का ख़याल रखते आपके अशआर अद्भुत हैं एक बानगी देखिए..
"मिल जाए उनका प्यार तो खुशियाँ मिलें सभी
उनके करम के सामने टिकते हैं ग़म कहाँ"
और . . .
"साथ तुम्हारे होने भर से
मंगल है मेरे जीवन में
मन में कसक रह गयी अबकी
भीग न पाए इस सावन में"
यथार्थ के धरातल पर उगे आम आदमी की पीड़ा के स्वर भी आपकी ग़ज़लों में बखूबी दिखते हैं..
"दिल लरजते हैं सभी, महंगाई की रफ़्तार देख
होश खो देते हैं कितने आजकल बाज़ार देख"
"बैचेन किया है सबको रोज़ी के सवालों ने
तूफान उठाया है रोटी के निवालों ने"
"इस दौर में ये कौन सा कानून चल गया
जो रोजगार को भी यहाँ के निगल गया
पानी को पी के जिसके बुझाते थे प्यास सब
नाले में गंदगी के वो दरिया बदल गया"
आतंकवाद पर भी आपकी कलम खूब चली है..
"नफरत को मुहब्बत मे बदलने नहीं देते
है कौन जो दुनिया को संभलने नहीं देते"
आपके भीतर का देश प्रेमी अपने अशआरके ज़रिए नौजवानों के हृदय में देश भक्ति की अलख जगाने में भी सफल रहा है..
"जिसको वतन से प्यार है, अहले वतन से प्यार है
मेरी नज़र में दोस्तों! काबिले ऐतबार है"
"ज़ात, मज़हब, धर्म के झगड़े मिटाने के लिए
आओ सोचें बीच की दीवार ढाने के लिए "
कहा जाता है कि आइना अपनी तरफ से कब बोलता है, इसी क्रम में सौम्यता और सादगी से परिपूर्ण और सबका हित चाहती आपकी ग़ज़लें देश, दुनिया, राजनीति, आम जनता और महबूब के मन के भावों को ही परावर्तित करती प्रतीत होती है. समर्पण की भावना को लेकर प्रारंभ हुई आपके इस ग़जल संग्रह की यात्रा ,स्वर कोकिला कीर्ति शेष लता मंगेशकर जी को शब्दाजंलि पर आकर समाप्त होते हुए अपने साथ अनेक भावों को समेटकर पाठकों के हृदय के तट स्थल छोड़ देती है,अंत में आपको ग़ज़ल संग्रह की बधाई प्रेषित करते हुए, आपके ही एक शेर से अपनी बात समाप्त करती हूँ.
"दर्द की सबके लिए दिल में चुभन ज़िंदा रहे
मुझमें सबके दुख मिटाने की लगन ज़िंदा रहे."
कृति : आओ! खुशी तलाश करें (ग़ज़ल संग्रह)
रचनाकार : ओंकार सिंह 'ओंकार'
प्रकाशन : गुंजन प्रकाशन, मुरादाबाद
प्रकाशन वर्ष : 2022
मूल्य : 250₹
समीक्षक : मीनाक्षी ठाकुर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य संगम के तत्वावधान में वरिष्ठ ग़ज़लकार ओंकार सिंह ओंकार के ग़ज़ल-संग्रह ‘आओ! खुशी तलाश करें’ का लोकार्पण रविवार 4 सितंबर 2022 को मिलन विहार दिल्ली रोड मुरादाबाद स्थित मिलन धर्मशाला के सभागार में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष रामदत्त द्विवेदी ने की, मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ कवयित्री डॉ. पूनम बंसल तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में गीतकार वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी एवं वरिष्ठ साहित्यकार योगेन्द्रपाल सिंह विश्नोई उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन कवि राजीव प्रखर द्वारा किया गया।
कार्यक्रम का आरंभ युवा कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वन्दना से हुआ। इस अवसर पर लोकार्पित कृति- ‘आओ! खुशी तलाश करें’ से रचनापाठ करते हुए ग़ज़लकार ओंकार सिंह ओंकार ने गजलें सुनायीं- ग़मों के बीच में आओ खुशी तलाश करें/अँधेरे चीर के हम रोशनी तलाश करें/हटाके धूल, जमी है जो अपने रिश्तों पर/पुराने प्यार में हम ताज़गी तलाश करें।
कार्यक्रम अध्यक्ष रामदत्त द्विवेदी का कहना था - "ओंकार जी ज़मीन से जुड़े हुए रचनाकार हैं और यह बात उनकी रचनाओं में स्पष्ट परिलक्षित होती है।"
वरिष्ठ कवयित्री डॉ पूनम बंसल ने अपने विचार रखे - "आम जन मानस की भाषा में रची गई यह कृति निश्चित ही सभी के हृदय को स्पर्श करेगी।"
वरिष्ठ रचनाकार एवं पत्रकार डॉ. मनोज रस्तोगी का कहना था - "ओंकार सिंह ओंकार की ग़ज़लों में वही सादगी और सहजता के दर्शन होते हैं जो उनके व्यक्तित्व में हैं। वह संपूर्ण विश्व के कल्याण की कामना करते हैं और आह्वान करते हैं कि रिश्तों पर जमी धूल को हटाएं और बनावट की चकाचौंध में गुम हो गई खुशी को तलाश करें।"
नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा- ‘ओंकार जी की ग़ज़लें भी संवेदना की पगडंडियों पर चहलकदमी करती हुई जीवन-जगत के यथार्थ को अभिव्यक्त करती हैं। उनकी ग़ज़लों की सबसे बड़ी ख़ासियत है कि उन्होंने अपनी ग़ज़लों में आमजन की बात को आमजन की भाषा में ही बयाँ किया है।’
वरिष्ठ गजलकार डाॅ. कृष्ण कुमार नाज़ के आलेख का वाचन किया गया- ‘ओंकार’ जी ने ‘आओ खुशी तलाश करें’ के माध्यम से आदमी से आदमी के बीच बढ़ती दूरी को कम करने का सफल प्रयास किया है। इस गजल-संग्रह का नाम ही हमें इस बात का पता देता है कि ओंकार जी में सबको साथ लेकर चलने की असीम क्षमता है। वे ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की उक्ति को अपनी रचनाधर्मिता का आधार बनाये हुए हैं।"
इस अवसर पर मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था अक्षरा की ओर से ओंकार सिंह ओंकार को सम्मानित भी किया गया । सम्मान पत्र का वाचन योगेंद्र वर्मा व्योम ने किया ।
कार्यक्रम में मीनाक्षी ठाकुर, अशोक विद्रोही, राजीव प्रखर, पूजा राणा, रामसिंह निशंक, नकुल त्यागी, जितेन्द्र जौली, रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ, के.पी.सरल, विकास मुरादाबादी, इंदु रानी आदि ने कृति के संबंध में अपनी अभिव्यक्ति एवं काव्यपाठ किया। आभार-अभिव्यक्ति जितेन्द्र कुमार जौली ने प्रस्तुत की।
-------- प्रस्तुति -------
राजीव प्रखर
कार्यकारी महासचिव
हिन्दी साहित्य संगम
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था अक्षरा के तत्वावधान में विख्यात ग़ज़लकार दुष्यंत कुमार की जयंती पर गुरुवार 1 सितम्बर 2022 को कंपनी बाग मुरादाबाद स्थित प्रदर्शनी भवन में स्मरण संध्या का आयोजन किया गया जिसमें दुष्यंत कुमार की रचनाधर्मिता के विविध पक्षों पर चर्चा की गई।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध साहित्यकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि साहित्यिक इतिहास के पृष्ठों पर सुनहरे अक्षरों में दर्ज दुष्यंत कुमार ने ग़ज़ल को उसके परंपरागत स्वर "महबूब से बात" और "इश्क-मोहब्बत" की चाहरदीवारी से बाहर निकाल कर आम आदमी की पीड़ा से ही नहीं जोड़ा बल्कि आम आदमी के व्यवस्था-विरोध का मुख्य स्वर बनाया।
मुख्य अतिथि मशहूर शायर मंसूर उस्मानी ने कहा कि दुष्यंत कुमार हिंदुस्तानी ज़ुबान के शायर होने के साथ ही जनकवि भी थे। उनकी शायरी आम जनता की तकलीफों का तर्जुमा ही है।
विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय अनुपम ने कहा कि दुष्यंत कुमार बिजनौर में जन्मे और मुरादाबाद में अपने अध्ययन प्रवास के दौरान चौमुखा पुल स्थित रिश्तेदार के भवन में अक्सर ठहरा करते थे। इस भवन के पीछे का वह आँगन, आँगन में खड़ा विशाल पीपल का पेड़ और छोटा-सा मन्दिर अब भी उसी स्थिति में है जैसा दुष्यंत कुमार के समय था।
संचालन करते हुए योगेन्द्र वर्मा व्योम ने दुष्यंत कुमार पर केंद्रित नवगीत पढ़ा- बीत गया है अरसा, आते/अब दुष्यन्त नहीं/पीर वही है पर्वत जैसी/पिघली अभी नहीं/और हिमालय से गंगा भी/निकली अभी नहीं/भांग घुली वादों-नारों की/जिसका अंत नहीं।
शिशुपाल मधुकर ने कहा कि दुष्यंत जी का पूरा लेखन दूषित राजनीति, कुव्यवस्थाओं और भृष्टाचार की परिणीति का परिणाम स्वरूप उपजी आम आदमी की पीड़ा को व्यक्त करता है।
शायर डॉ. कृष्णकुमार नाज़ ने कहा कि दुष्यंत ऐसे ग़ज़लकार हैं, जिन्होंने ग़ज़ल की परिभाषा को बदल दिया। सिर्फ़ 52 ग़ज़लों के इस शायर के शेर आज सबसे ज्यादा कोट किए जाते हैं।
डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि दुष्यंत कुमार एक ऐसे रचनाकार थे जिनका मकसद सिर्फ हंगामा खड़ा करना नहीं था, वह पर्वत सी हो गई पीर को पिघलाना चाहते थे, हिमालय से गंगा निकालना चाहते थे। वे चाहते थे बुनियाद हिले और यह सूरत बदले।
शायर मनोज मनु ने अपने भाव व्यक्त किए- ये सरकारें दबाकर हक़ अमन आवाद रक्खेंगी/मगर जब जुल्म मजबूरियां फरियाद रक्खेंगी/जमाने को दिया जो ढंग अपनी बात रखने का/तुम्हें उसके लिए दुष्यंत, सदियां याद रक्खेंगी।
शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि दुष्यंत हाथों में अंगारे लिए हुए हिन्दुस्तानी ज़बान और ज़मीन का शायर है। दुष्यंत ने साझा दुख बयान किया।
ग़ज़लकार राहुल कुमार शर्मा ने कहा कि दुष्यंत कुमार ने ग़ज़ल की परंपरागत भाषा, कहन, शैली से इतर अलग तरह की कहन और तेवर को ग़ज़ल के शिल्प में पूरी ग़ज़लियत के साथ प्रस्तुत करते हुए ग़ज़ल की नई परिभाषा, नया मुहावरा गढ़ा।
शायर फ़रहत अली ख़ान ने कहा कि दुष्यंत कुमार किसी एक ख़ास मंच के शायर नहीं हैं। अगर ग़ौर किया तो गली-मुहल्ले, सड़क-चौराहे यानी जहाँ-जहाँ आम आदमी है, दुष्यंत खड़े मिलेंगे। सिर्फ़ एक ही मंच है जहाँ दुष्यंत खड़े नहीं मिलते, वो है सत्ता पक्ष का मंच।
कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार, राजीव प्रखर, नज़र बिजनौरी, अनुराग मेहता सुरूर आदि ने दुष्यंत कुमार के व्यक्तित्व व कृतित्व पर चर्चा की। आभार अभिव्यक्ति ग़ज़लकार राहुल कुमार शर्मा ने प्रस्तुत की।
:::::::::प्रस्तुति:::::::
योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
संयोजक-'अक्षरा'
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल- 9412805981
'निशातगंज…जल्दी से पैसे बताओ?'
'तीस रुपए…चलो पच्चीस दे देना!...बीस से कम तो बिल्कुल नहीं!'
'दस रुपए दूंगा, तैयार हो तो चलो जल्दी! बहुत बार आता जाता रहता हूं, इससे ज्यादा कभी नहीं देता।'
'तो फिर पैदल चला जा!' मेरी अटैची फेंक वे अभद्रता पर उतर आए। और दूसरी सवारियों की ओर बढ़ गये।
तभी काली पैंट पहने और काला चश्मा लगाए एक युवक मेरी ओर बढ़ आया – 'आइए सरजी! मेरी रिक्शा में बैठिए! मैं ले चलूंगा आपको निशातगंज!'
'तू भी खोल अपना मुंह,बोल कितने लेगा?' मेरे स्वर में किंचित आवेश का पुट मिश्रित हो आया।
'जो चाहे वह दीजिएगा पर बैठ तो जाइएगा!' विनम्र स्वर के साथ अनुरोध भी।
'तुम जाहिल गंवारों में यही तो खास बात होती है कि पहले तो बताएंगे नहीं, और फिर जेब खाली करने पर उतारू हो जाएंगे…या फिर झगड़ा करने लगेंगे। तुम रिक्शा वालों की फितरत से मैं बहुत अच्छी तरह परिचित हूं।' पहले वाले रिक्शा चालकों के अभद्राचरण से मेरे स्वर में स्वत: ही उत्तेजना मुखर होने लगी थी।
युवक तब भी सहिष्णु बना रहा – 'सर!आप मुझे भी अन्य रिक्शा चालकों जैसा ही समझ रहे हैं। मैं उन जैसा नहीं हूं।आप निश्चिंत होकर बैठिएगा और जो उचित लगे दीजिएगा!न मन करे तो मत दीजिएगा! बिल्कुल नहीं झगड़ूंगा।'
'चल फिर ! आठ से ज्यादा बिल्कुल नहीं दूंगा! तुम जैसे जाहिल गंवारों से निपटना मैं भी अच्छी तरह जानता हूं।'
मैं बैठ गया। रिक्शा हवा से बातें करने लगा।साथ ही वह मुझसे निकटता बढ़ाने का प्रयास करने लगा – 'सर आप आए किस ट्रेन से हैं?...ट्रेन्स आजकल बहुत लेट चलने लगी हैं, बहुत टाइम बरबाद होता है यात्रियों का। पर कोई कहने सुनने वाला नहीं। कोई जिए या मरे, किसी का काम बने या बिगड़े, कोई है आवाज़ उठाने वाला? सर!इस देश में व्यवस्था नाम की कोई चीज है भला?सब कुछ राम भरोसे चल रहा है। अमेरिका और जापान में देखिए!सब कुछ निर्धारित रूप से संचालित होता है।समय का सम्मान करना जानते हैं वहां के लोग।तभी तो उन्नति कर रहे हैं वे देश।'
वह देश की व्यवस्था पर प्रहार कर रहा था जबकि मुझे लग रहा था कि वह मुझ पर मक्खन लगाने का प्रयास कर रहा है। ताकि मैं उसकी चिकनी-चुपड़ी बातों में आकर ज्यादा पैसे दे सकूं। मैं मन ही मन हंस पड़ा…बेटा चाहे तू कितनी भी बातें बना लें, पर मैं एक भी पैसा ज्यादा देने वाला नहीं…आठ रुपए कह दिए हैं तो आठ ही दूंगा। ज्यादा करेगा तो दो झापड़ रसीद करूंगा और चिल्लाकर भीड़ इकट्ठी कर लूंगा…स्साले बेइमान कहीं के…
'वैसे सर आप निशातगंज में जाएंगे कहां?' पैडिल पर पैर मारते-मारते उसने पूछा तो मैं अपनी सोच से बाहर निकल झुंझला सा पड़ा– 'जहन्नुम में जाऊंगा,बोल पंहुचा देगा? अकारण चख-चखकर मेरा दिमाग खाए जा रहा है? क्या मतलब है फालतू बातें करने का?'
वह कुछ बुझ सा गया – 'सर मैं इसलिए पूछ रहा था कि निशातगंज तो आ गया है, आपको जहां जाना हो वहां तक पंहुचा देता और आपका सामान भी उतार देता। सवारी पैसे देती है तो हमारा भी कर्तव्य बनता है कि उसे कोई कष्ट न होने दें,न कोई परेशानी होने दें। सारे रिक्शा वाले एक जैसे नहीं होते सर!'
गन्तव्य पर पंहुच मैंने उसे दस का नोट दिया तो दो रुपए वापस करते हुए उसने सिर को हल्का सा झुकाते हुए कहा – 'मेरी रिक्शा में बैठने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सर!'
आश्चर्य से जड़ रह गया मैं…आजतक किसी रिक्शा चालक में ऐसी विनम्रता, ऐसी शालीनता, ऐसी शिष्टता कहीं देखने को न मिल सकी थी मुझे। मेरी हैरतभरी निगाहें उसकी मुरझायी सी आंखों से टकरायीं तो उन आंखों में जलकण झिलमिला उठे – 'इस देश की भ्रष्ट व्यवस्था ने मुझे रिक्शा चलाने को मजबूर कर दिया सर! वरना कैमिस्ट्री से एम एस सी में फर्स्ट क्लास हूं मैं।दो बार चयन आयोग की परीक्षा में चुना गया पर नियुक्ति पाने के लिए न तो पैसा था जेब में और न ही सिफारिश थी।अतएव साक्षात्कार में असफल घोषित कर दिया गया।सिर पर बूढ़ी मां और दो बहनों का भार…आजीविका तो चलानी ही थी। रात्रि को ट्यूशन पढ़ाता हूं और दिन में रिक्शा चलाता हूं। और इसी में से समय निकालकर एम फिल की तैयारी भी कर रहा हूं।'
आत्म ग्लानि की ज्वाला में झुलस उठा मैं…मुझे उसके साथ ऐसा अशिष्ट और आक्रोशित आचरण नहीं करना चाहिए था। मैंने जेब से सौ का नोट निकाला और उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा – 'अपनी मां व बहनों के लिए मिठाई फल वगैरह लेते जाना!'
उसने हाथ जोड़ दिए– 'सर! गरीब जरूर हूं पर भिक्षुक नहीं। परिवार के जीविकोपार्जन योग्य कमा ही लेता हूं…नमस्कार!!'
मेरी दंभ भरी मानसिकता को दर्पण दिखा रिक्शा मोड़ बड़ी तीव्रता से वह वापस चला गया। किंतु मैं न जाने कब तक इस देश की भ्रष्ट व्यवस्था के शिकार उस स्नातकोत्तर रिक्शा चालक की विवशता के मकड़जाल में उलझा रहा।
✍️डॉ अशोक रस्तोगी
अफजलगढ़
बिजनौर
उत्तर प्रदेश, भारत
✍️ ज़िया ज़मीर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत