शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष शिव अवतार रस्तोगी सरस की बाल कविताओं पर केंद्रित राजीव सक्सेना का आलेख .....बच्चों से बतियाती कविताएं । उनका यह आलेख "मैं और मेरे उत्प्रेरक" (श्री शिव अवतार सरस जी की जीवन यात्रा ) ग्रंथ में प्रकाशित हुआ है ।

 


कुछ कवि केवल बच्चों के कवि होते हैं और कुछ बच्चों के साथ-साथ बड़ों के भी। शिव अवतार रस्तोगी 'सरस' जी ऐसे ही बाल कवि हैं, जिनकी रचनाएं बच्चों के साथ ही बड़ों के लिए भी उपयोगी होती हैं। उनकी बाल-कविताएं बच्चों के अन्तर्मन को तो छूती ही हैं, बड़ों के भीतर किसी कोने में बैठे बालक को भी सहज ही गुदगुदाती रहती हैं। 'सरस' जी की कविताओं में बच्चों, बड़ों सभी को समान रूप से रसानुभूति होती है और यही उनकी बाल कविताओं की सबसे बड़ी शक्ति है। सरस जी की बाल कविताएं केवल बाल मनोभावों का सूक्ष्म चित्रण ही नहीं हैं, अपितु वे हमारे बचपन का 'टोटल रिकॉल' हैं क्योंकि इनमें बचपन की वापसी होती दिखायी पड़ती है या फिर हम बार-बार बचपन की ओर लौटते हैं।

      अपने काव्य-संग्रह में सरस जी ने ऐसी ढेरों कविताएं प्रस्तुत की हैं, जो बालकों के अन्तर्जगत की मन मोहक छवियों को तो निर्मित करती ही हैं, वह घरातल भी प्रदान करती हैं जिनमें बचपन पल्लवित होता है। सरस जी की बाल कविताओं का रचना आकाश भी बड़ा व्यापक है और बचपन, उनमें कल्पना की ऊँची उड़ानें भरता हुआ ही नहीं, बल्कि सतरंगे सपने बुनता हुआ भी दिखायी पड़ता है। सरस जी की बाल कविताओं में बचपन के लगभग सभी शेड उपस्थित हैं। इस दृष्टि से देखा जाए तो उनका सम्पूर्ण संकलन बचपन का एक सम्मोहक आभा दर्पण है ।

     इस संकलन की ख़ास बात यह है कि इसमें कवि ने बच्चों के इर्द-गिर्द मौजूद सूरज, चन्दा, बादल, झरना, पेड़ जैसे प्राकृतिक उपादानों के ऊपर कई रोचक और मोहक कविताएं रची हैं। इन कविताओं में प्रकृति के प्रति एक सहज लगाव या जुड़ाव तो परिलक्षित होता ही है, प्रकृति के प्रति संवेदना और उसे बचाये रखने के लिए एक आग्रह भी स्पष्ट तौर पर लक्ष्य किया जा सकता है। प्रकृति के बिना बचपन बेमानी है, इस तथ्य को यदि मौजूदा दौर में किसी बाल-कवि ने सर्वाधिक प्रमाणिक ढंग से स्थापित किया है, तो वे बस सरस जी ही हैं। ऐसे समय में, जबकि प्रकृति बाल-काव्य तो क्या, स्वयं मुख्य धारा की हिन्दी कविता से भी लगातार बेदखल और काफी हद तक अदृश्य होती जा रही है, प्रकृति के प्रति सरस जी का यह रचनात्मक कदम सचमुच श्लाघनीय है। दरअसल, उनकी बाल कविताएं प्रकृति की बाल-काव्य की वापसी तो हैं ही, वे एक ऐसा प्रस्थान-बिन्दु भी उपस्थित करती हैं जिनमें भविष्य के बाल-कवि भी अपनी राह खोज सकते हैं।

       अगर बाल कविताओं के बहाने प्रकृति सरस जी की चिन्ता का केन्द्र-बिन्दु है, तो बालकों के आस-पास मौजूद जीव-जगत भी उन्हें एक व्यापक चेतना से जोड़ता है। शायद यूँ ही बया और बन्दर, शेर और चूहा, कौआ, मुर्गा, खरगोश, बिल्ली और गौरैया सहित अनेक जीवों एवं प्राणियों को भी अपनी चिन्ता के केन्द्र में रखते हुए मौलिक कविताएं रचकर अपनी रचना-धर्मिता के संग बाल-कविता को भी नये आयाम प्रदान किए हैं। सरस जी की इन कविताओं की खूबी यह भी है कि ये बेहद रोचक शैली में और पय-कथाओं के रूप में रची गयी हैं और बच्चों के साथ-साथ बड़ों को भी खासा गुदगुदाती हैं। 'चूहे चाचा, चुहिया चाची',  शीर्षक की ये पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं -

"बिल्ली मौसी पानी लाने, को सरिता तक जब निकली ।

सरिता में काई ज्यादा थी काई में बिल्ली फिसली।

मौका पाकर चूहे चाचा, चाची को लेकर भागे ।

चाची दौड़ रही थीं पीछे - चाचा थे आगे-आगे” 

सरस जी की बाल-कविताओं में यह हास्य अक्सर उपस्थित होता है, लेकिन उनकी बाल-कविताओं का हास्य शिष्ट है, उनमें भद्दापन बिल्कुल नहीं है और यही विशेषता उन्हें समकालीन हिन्दी बाल-कवियों के मध्य एक अभिजात्यता के साथ-साथ रचनात्मक वैशिष्ट्य भी प्रदान करती है। इन बाल कविताओं में ग़ज़ब की गेयता है, उन्हें किसी के द्वारा भी सहज ही गाया-गुनगुनाया जा सकता है। शायद इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि सरस जी की कविताएं छन्द, यति-गति की दृष्टि से 'परफेक्ट' हैं। उनका शब्द चयन भी विलक्षण है और प्रसिद्ध बालकवि 'दिग्गज मुरादाबादी' जैसा सटीक है। एक ऐसे दौर में, जबकि कविता, विशेषकर बाल-कविता, छन्द से दूर होती जा रही है और बाल-काव्य के नाम पर प्रभूत मात्रा में फूहड़ बाल-कविताओं का सृजन हो रहा है, सरस जी बाल-काव्य में 'छान्दसिकता के नये प्रतिमान' रच रहे हैं। सरस जी की बालोपयोगी कविताएं बालकाव्य में छन्द की वापसी का जीवंत प्रमाण हैं। उनकी बाल कविताओं के बारे में इस तथ्य का उल्लेख भी समीचीन होगा कि उनमें केवल गेयता ही नहीं, बल्कि अभिनेयता का तत्व भी विद्यमान है। इसके बरबस यह भी उल्लेखनीय है कि सरस जी की बाल कविताएं नाटक का कोई एकालाप (ब्रामेटिक नहीं हैं, बल्कि बच्चों से संवाद करती, बतियाती या खेल-खेल में कुछ सिखाती कविताएं हैं। सरस जी ने बाल काव्य के प्रतिमानों के अनुरूप और बाल साहित्य के अपरिहार्य तत्वों का समावेश करते हुए बालकों को कोई भी सीधा संदेश, उपदेश या प्रवचन देने से प्रायः परहेज किया है और वे शिक्षक की मुद्रा धारण करते हुए कभी बालकों पर तर्जनी उठाते दिखायी नहीं पड़ते, बल्कि स्वयं एक बच्चा बनकर बाल-मानस या बालकों की भीतरी दुनिया में प्रवेश कर उसके अनूठ बिम्ब प्रस्तुत करने का विनम्र प्रयास अवश्य करते हैं। शायद यूँ ही प्रस्तुत संग्रह की कविताएं बाल-मानस या बच्चों की दुनिया की एक सच्ची और काफी हद तक यथार्थ परक झाँकी प्रस्तुत करती हैं। वे अपनी बाल-कविताओं के ज़रिये बालकों के लिए आदर्श-परक किन्तु अव्यवहारिक किस्म की परिस्थितियाँ नहीं रचते हैं, न ही कोई 'यूटोपिया' प्रस्तुत करते हैं, बल्कि बच्चों की व्यावहारिक दुनिया को प्रतिबिम्बित करते हैं, जिसमें बालक सामान्य तौर पर निवास करते हैं। अपनी इसी खूबी के कारण सरस जी की बाल-कविताएं बच्चों के ही नहीं, बल्कि स्वयं बचपन के भी काफी करीब हैं। इसके अतिरिक्त कवि सरस जी इन कविताओं में बचपन को आधुनिक बाल-परिवेश और नये सन्दर्भों में भी रचने गढ़ने में सफल रहे हैं। लगातार लुप्त होते पक्षी गौरैया के प्रति कवि सरस जी की यह चिन्ता आधुनिक बाल-परिवेश और नये सन्दर्भों के प्रति उनकी रुचि और जुड़ाव को ही दर्शाती है

      भारतीय समाज में यह उक्ति बहुत प्रचलित है कि बच्चे हमारा भविष्य हैं, किन्तु वे भविष्य से कहीं ज्यादा हमारा वर्तमान भी हैं। दरअसल, भविष्य भी वर्तमान की नींव पर ही टिका होता है। अगर हम बच्चों का वर्तमान सँवारेंगे, तभी भविष्य सँवरेगा। सरस जी की कविताओं में इसी वर्तमान के प्रति एक आग्रह स्पष्ट तौर पर परिलक्षित होता है और वे बच्चों को बड़े सलीके या तरीके से संस्कारों की शिक्षा देते हुए उन्हें भविष्य के योग्य नागरिकों के रूप में रचना-गढ़ने की चेष्टा करते हैं। वे बाल काव्य के ज़रिये न तो स्वयं के लिए और न ही बच्चों के लिए कोई वायवी या बहुत दूर के लक्ष्य निर्धारित करते हैं। समग्र रूप में सरस जी की बाल कविताएं एक ऐसा सम्मोहक माया दर्पण हैं, जिसमें बच्चे तो अपना अक्स ढूँढ ही सकते हैं, स्वयं बचपन के भी ढेरों विम्ब पूरी भव्यता के साथ उपस्थित हैं। बाल कविता के इस माया दर्पण के दुर्निवार आकर्षण से बच्चों का तो क्या, बड़ों का भी बच पाना मुश्किल है। 


✍️ राजीव सक्सेना

डिप्टी गंज

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष शिव अवतार रस्तोगी "सरस" की ग्यारह बाल कविताएं उन्हीं की हस्तलिपि में ....


 











गुरुवार, 12 जनवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष शिव अवतार रस्तोगी "सरस" के अप्रकाशित खंडकाव्य "गुदड़ी के लाल" का प्रथम सर्ग - "शैशव"


शिशु-सा रख कर रूप, अवतरित हुआ 'तथागत' । 

बना हुआ था केन्द्र, क्रान्ति का सारा भारत ।। 

किन्तु नहीं वह किसी, 'राजकुल' से आया था । 

निर्धन के घर दया, प्रेम, श्रम, बल लाया था ।। 1 ।।


'दो - अक्तूबर' जन्म लिया, बन छोटा 'बापू' 

आजादी के लिये हुआ, भारत, बे-काबू ।। 

सन् उन्निस सौ चार क्रान्ति, की फैली ज्वाला । 

देश-प्रेम के लिये बना, जन-जन मतवाला ।। 2 ।।


'मुगलों' का था नगर नहीं, मुगलों-सा मानी 

हिन्दू-मुस्लिम, सिक्ख सभी थे, ज्ञानी-ध्यानी ।।

 उसी नगर में एक वंश कायस्थों का था । 

 पूर्ण निरामिष और धर्म-चर्चा में लय था ।। 3 ।।


उसी वंश में श्री शारदा जी शिक्षक थे ।

नीति रीति पद परम्परा के संरक्षक थे ।।

कायस्थों में सदा कहा यह ही है जाता ।

'पढ़ा भला या मरा भला', जग में कहलाता ।। 4 ।। 


उसी वंश का अंश हमारा लाल बहादुर ।

रख कर 'बौना' रूप बजाता आया नूपुर ।।

देख 'लाल' को मुदित हुई माँ रामदुलारी ।

महक उठी थी पूज्य शारदा की फुलवारी ।। 5 ।। 


नन्हा सा था लाल, अतः 'ननकू' कहलाया ।

बाल- 'कृष्ण' सम प्यार, नगर घर भर से पाया ।। 

गंगा तट के निकट लाल की कुटिया न्यारी ।

बनी 'देवकी' और 'यशोदा' स्वयं दुलारी ।। 6 ।।


कल-कल करता गंगा का जल था अति उज्ज्वल ।

जल का कर स्पर्श गंधवह, बहती शीतल ।।

गंगा-यमुना एक रूप हो गई वहाँ पर ।

श्वेत-श्याम जल हुआ एक था, आलिंगन कर ।। 7 ।।


मीन-मकर जल ब्याल, 'लाल' का मन हरते थे। 

खग कपोत कारण्डव, मनरंजन करते थे । 

चहक चहक कर चटक उड़ा करते थे चंचल | 

पकड़ 'चंग' की डोर, शोर करता था युव-दल ।। 8 ।। 


दिन थे स्वर्णिम और निशाएं थीं रत्नारी ।

कलियों के कल-कुंज, कुमुदनी की थीं क्यारी ।।

गंगा तट गुंजायमान था गुंजा रव से

सभी ओर थे 'अर्क' और 'गुंजा' के पौधे ।। 9 ।। 


'अर्क' उगा था एक, पूर्व में ले उजियाला । 

इधर 'अर्क' के पौधों ने थी की ज्वाला ।।

 प्रबल ताप में निर्जल रहकर जो लहलहाता ।

 वही 'अर्क' सम विषम क्षेत्र में शोभा पाता ।। 10 ।।


अर्क क्षेत्र में उसी उगा हो जैसे 'शतदल' ।

हाथ-पैर थे लाल, लाल ही था मुख-मंडल ||

देख 'लाल' को 'लाल' 'लाल' था गया पुकारा ।

'लालबहादुर' लगा नाम तब सबको प्यारा ॥ 11 ॥


संग, मात के, गंग नहाने अक्सर जाता ।

करने को कल्लोल, उछल कर आगे आता ।। 

चंचल था अत्यधिक गोद से निकला पड़ता 

न्हाते न्हाते ही अक्सर, गंगा में गिरता ।। 12 ।। 


एक बार की बात मकर संक्रान्ति पर्व था ।

'माघ मास था गंगा तट पर बड़ा हर्ष था ।। 

साथ 'नाथ' के रामदुलारी तट पर आयी ।

भीड़ अत्यधिक, बच्चा छोटा, थी पबरायी ।। 13 ।। 


घूँघट में थी वधू, गोद में, शिशु था प्यारा । 

चिकनी मिट्टी, फिसलन भारी, घिरा किनारा || 

दुविधा में थी वधू, 'हाय मैं किसे सम्हालूँ । 

'लाल' 'लाज' में टनी, आज मैं किसको पालू ? ।। 14 ।।


कन्धे से था लगा हुआ जो छोटा 'छोना' । 

छिटका गंगा बीच, टोकरी बनी बिछौना ।। 

लेकर सूनी गोद, लौट कर तट तक आयी । 

हिरनी-सी गिर पड़ी, मूर्च्छा उसने खायी ।। 15 ।।


इसी बीच में वहां भीड़ का 'रेला' आया । 

'भागो भागो' तभी भीड़ ने शोर मचाया || 

गंगा तट पर रामदुलारी, बिना 'लाल' के ।

देख रही थी दृश्य अनोखे, महाकाल के ।। 16


उधर छिपा कर 'लाल', टोकरी वाला धाया ।

सोचा, मैंने 'लाल', आज गंगा से पाया ।।

 था वह निःसंतान, दूध का व्यवसायी था । 

 परम भक्त था और धर्म का अनुयायी था ।। 17


सर्दी थी अत्यधिक, कंपकंपी भी थी भारी । 

वात्सल्य -वश विवश, मिर्जई तुरत उतारी ।। 

ढका 'लाल' को फिर, फाहे से दूध पिलाया । 

सोच रहा था, आज पर्व का, 'फल' है पाया ।। 18 ।।


कभी कृष्ण को छिपा 'छाज' में लाये नृपवर । 

बड़ा किया था पाल-पोस, अपना सुत कहकर ।।

पार पहुँच कर सोच रहा था, मन में ग्वाला 

इसी इरादे से उसने था शिशु को पाला ।। 19 ।।


इधर 'दुलारी' बिना लाल के, बुरे हाल थी ।

रो-रोकर निन्दा करती, उस बुरे काल की ।। 

हुई पुलिस में रपट, झपट दौड़े भगदड़ में ।।

मिला 'लाल' था छिपा, एक ग्वाले के घर में ।। 20 


कुछ मुद्रायें देकर, शिशु को वापिस पाया । 

लेकर सुख की साँस, मुदित थी सबकी काया ।। 

पाकर शिशु को हुआ प्रफुल्लित, सारा घर था । 

पहुँचूँ 'गंगा-पार' लक्ष्य था, जीवन भर का ।। 21 ।।


रहे वर्ष भर ठीक, मगर कब तक रह पाते । 

क्रूर-काल कब देख सका सबको मुदमाते ।।

रखा गया था 'लाल', डाल पलकों की छाया । 

टाल सका पर कौन ? भाग्य, जो जिसने पाया ।। 22 ।।


इसी बीच 'दुष्काल' 'लाल' के घर तक आया । 

रखकर भैरव-रूप, भीम आतंक मचाया ।। 

खींच प्राण ले गया, 'काल' था, साथ पिता को । 

डेढ़ साल का 'लाल', देखता रहा चिता को ।। 23 ।।


हुआ 'लाल' यूँ शैशव में ही, हाय! अभागा । 

पड़ीं मुसीबत बहुत, आयीं बाधा पर बाधा ।। 

दो पुत्री के साथ पुत्र था एक अकेला । 

रखकर उर पर वज्र, कष्ट माता ने झेला ।। 24 ।।


घर-भर में सर्वत्र शोक - विक्षोभ मचा था । 

हा । धिक् धिक् दुर्भाग्य, खेल क्यों गया रचा था ।। 

किसलय पर गिर पड़ी गाज, कलियों पर पाला । 

'यौवन में वैधव्य 'दुलारी' को दे डाला ।। 25 ।।


वज्रपात-सा हुआ, मूर्च्छित हुई 'दुलारी' । 

असमय में ही उजड़ गयी उसकी फुलवारी ।। 

कुल इक्किस की उम्र, जुड़ा 'नेहर' से नाता । 

डेढ़ साल का 'लाल', हाय दुर्भाग्य विधाता ।। 26 ।। 


इस प्रकार यह 'लाल' पढ़ा फिर, नाना के घर । 

नाना ने भी प्यार किया था इसको भुज-भर ।।

'पूज्य हजारी लाल' नियम पालन के पक्के । 

अनुशासन प्रिय और बहुत ही कट्टर मति के ।। 27 ।।


एक बार की बात, बाढ़ गंगा में आयी ।

डूब रहे शिशु की, 'ननकू' ने जान बचायी ।।

'जय हो ननकू', 'जय ननकू' का था नारा ।

मेरा 'लाल' बहादुर है, तब गया पुकारा ।। 28 ।।


उसी दिवस से लाल बना था, 'लाल बहादुर' । 

सब करते थे प्रेम, ब्राह्मण, बनिये, ठाकुर || 

'गंगा का वरदान' मानते थे सब इसको ।

'तैराकी' था, खेल नहीं थे 'डिस्थ्रो डिस्को' ।। 29 ।। 


शैशव के दस वर्ष बिताकर, नाना के घर । 

भला-बुरा सब जान चुका था 'ननकू' सत्वर ।। 

'छठवीं' कर उत्तीर्ण समस्या आगे आई । 

कैसे होवे पूर्ण गाँव में अब शेष पढ़ाई ।। 30 ।।


तभी आ गया पत्र, भाग्य से, मौसा जी का । 

नगर 'बनारस' केन्द्र ज्ञानदा सरस्वती का ।। 

मीसा श्री 'रघुनाथ' पालिका में मुंशी थे । 

विस्तृत था परिवार, मगर वे संतुष्टी थे ।। 31 ।।


✍️ शिव अवतार रस्तोगी "सरस"

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ राकेश चक्र की कृति " भारत के गौरव स्वामी विवेकानंद " का 12 जनवरी 2023 को हुआ लोकार्पण

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ राकेश चक्र की कृति " भारत के गौरव स्वामी विवेकानंद " का लोकार्पण  गुरुवार 12 जनवरी 2023 को युवा दिवस अर्थात स्वामी विवेकानंद जी के जन्म दिवस के अवसर पर डिप्टी जगन्नाथ सिंह सरस्वती विद्या मंदिर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कटघर मुरादाबाद में आयोजित कार्यक्रम में किया गया। 

     कार्यक्रम की अध्यक्षता विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री सुनील कुमार जी ने की। मुख्य अभ्यागत सुविख्यात सर्जन डॉ मनोज अग्रवाल ( आशीर्वाद नर्सिंग होम ) और वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी रहे ।  इस अवसर पर विद्यार्थियों  , विवेकानंद बने कृष्णा तिवारी , पूर्व छात्र शुभम गुप्ता , इशांक भारद्वाज आदि ने स्वामी विवेकानंद के जीवन प्रसंग प्रस्तुत किए। साहित्यकार डॉ राकेश चक्र द्वारा स्वलिखित पुस्तकें भी बच्चों को भेंट की गईं ।









   

बुधवार, 11 जनवरी 2023

मुरादाबाद मंडल के सुजातपुर (जनपद संभल ) के साहित्यकार प्रदीप कुमार "दीप" का गीत ....


देखकर तैयार धानों की फसल को।

आ गये तूफान आंधी और बारिश।


स्वप्न कुछ देखे थे हरसुख चौधरी ने,

आस एक पाली थी रामू की बुआ ने।

कर्ज इन दानों के ऊपर ले लिया था,

लाड़ले के जन्मदिन पर हरखुआ ने।।


सबकी उम्मीदों को मिट्टी में मिलाकर,

खा गये तूफान आंधी और बारिश।।


इस दिवाली पर नये कपड़े बनेंगे।

सोचते थे घर में बूढ़े और बच्चे।

कल ही तो कलुआ ने आकर के कहा था,

पक रहे इस बार अम्मा धान अच्छे।।


आज बनकर दर्द गम के मेघ काले,

छा गये तूफान आंधी और बारिश।।


कर रहे अट्टहास काले मेघ अब भी,

पूर्णिमा की रात को मावस बनाकर।

हँस रही हैं बिजलियाँ अम्बर में बैठी,

छीनकर खुशियाँ हमारी खिलखिलाकर।।


छीनकर सबकुछ हमारा जाने क्या ही,

पा गये तूफान आंधी और बारिश।।


✍️ प्रदीप कुमार "दीप"

सुजातपुर, सम्भल

उत्तर प्रदेश, भारत

मो०-8755552615

मंगलवार, 10 जनवरी 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार प्रो ममता सिंह के विश्व हिन्दी दिवस पर चार दोहे ....


हर दिन हर पल पा रही, जग भर में विस्तार। 

कोना कोना कर रहा, अब हिंदी से प्यार।। 1।।


माँ की बोली सी लगे, छू ले मन के तार, 

खुले हृदय से सब करें, हिंदी को स्वीकार।। 2।।


हिंदी हिन्दुस्तान की, आन बान अरु शान। 

पूर्ण राष्ट्र भाषा बने, लो इसका संज्ञान।। 3।।


भारत का प्रतिबिम्ब है, जीवन का आधार। 

आओ सब मिलकर करें, हिंदी की जयकार।।4।।


✍️ प्रो.ममता सिंह

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार नकुल त्यागी की रचना ...हिंदी भारत की भाषा है

 

 हिंदी भारत की भाषा है, 

यह जान गई सारी दुनिया ।

बस भारत से ही आशा है,

यह मान गई सारी दुनिया । 

सब जग के कोने कोने में,

 बैठे जो भारतवंशी हैं ,

उनके हिम्मत कौशल को,

पहचान गई सारी दुनिया ।

जो हिंदी लिखते कहते हैं,

 इंसान बो अच्छे होते हैं,

दे सम्मान रही दुनिया ।

मानव हो मानवता हो, 

संस्कृति हो या सभ्यता हो, 

वैश्विक भाषा होगी हिंदी,

हैरान हुई सारी दुनिया ।


✍️ नकुल त्यागी 

10/58 बुद्धि विहार

 मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

रविवार, 8 जनवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल की घनाक्षरी .... ठंड है बड़ी प्रचंड, कांप रहे अंग अंग ...

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मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर (वर्तमान में शाहजहांपुर निवासी) की साहित्यकार विनीता चौरसिया का गीत . घर घर तिरंगा फहराएं .

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मुरादाबाद के साहित्यकार शिशुपाल मधुकर का गीत ....दूर होंगे अंधेरे घनेरे सभी .

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शनिवार, 7 जनवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता .... विकास लापता है


विकास लापता है

सरकार और जनता

दोनों को

इस बात का पता है


विकास

कैसा दिखता है

किस जगह मिलता है

अधिकांश जनता

इस बात से अनजान है

क्योंकि उसने

आज तक विकास को

ना कभी देखा है

ना उसकी किसी के 

माध्यम से

कोई जान पहचान है


विकास आखिरी बार

कहां पर मिला था

क्या किसी को

उसके हिंदू या मुस्लिम

होने का पता चला था


किसी के पास

अगर विकास का कोई फोटो हो

तो हमको अवश्य दिखाएं

ताकि हम

पूरी ईमानदारी से

विकास को ढूंढने में जुट जाएं


सरकार की नियत पर

हमें पूरा विश्वास है

हम जानते हैं

विकास यहीं कहीं,

हमारे ही आस पास है


✍️ डॉ पुनीत कुमार

T 2/505 आकाश रेजीडेंसी

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

M 9837189600

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद संभल ) निवासी साहित्यकार त्यागी अशोक कृष्णम के सत्रह दोहे ....


हर रिश्ते के मूल में,छिपा हुआ यह सार।

रचा बसा उपयोग में, रिश्तों का संसार।। 1।।


उपयोगी जब तक रहे, हम थे सबके  खास।

बूढ़े घोड़े को यहाँ ,कौन डालता घास।। 2।।


उपयोगी रहना सनम, चाहो जो तुम मान।

उपयोगी का ही जगत, करता है गुणगान।।3।।


दुर्दिन आ जाएँ कभी, मानो उन्हें बहार।

भूखे रहकर भी सदा, मारो तेज डकार।।4।।


यहाँ किसी के सामने, रोना है अभिशाप।

रोने से पैदा हुए, पुण्य पेट से पाप।।5।।


कम बोलो ज्यादा सुनो, जो चाहो मनमीत।

बड़बोले ही हारते, हाथ लगी हर जीत।। 6।।


सोचा समझा देर से, पकड़े कुछ दिन बाद।

अगर नहीं सच बोलते, होते नहीं विवाद।।7।।


कुछ अपना प्रारब्ध था, कुछ थे उसके श्राप।

किसके खाते में लिखें, अनजाने के पाप।। 8।।


कृष्णम मन में राम के, कुछ तो था संताप।

अनजाने  होता नहीं,मर्यादा से  पाप।।9।।


सहनशक्ति का रूप है, माँ सीता का नाम।

इसीलिए जग बोलता, जय जय सीताराम।। 10।।


तेइस आया द्वार पर,बाइस गया सिधार।

जो जैसा करता यहां,वैसी जय जयकार।। 11।।


सूर्य देव घर में पड़े,ठंड हुई बरवंड।

नए साल पर दे रही,लाचारों को दंड।। 12।।


सर्दी में आते सदा,नए साल हर साल।   

होली पर आओ कभी,हो जाओगे लाल।। 13।।


आए हो तो प्रेम से,रहना पूरे साल।

नए साल इस बार कुछ,करना नहीं बवाल।। 14।।


अगर किया कुछ आपने,अबकी बार बवाल।

कर देंगे हम पीट कर,गाल तुम्हारे लाल।। 15।।


घर में जैसे आ गया,कोई नटखट लाल। 

पलक बिछाकर हम करें,स्वागत नूतन साल।। 16।।


जन गण मन मोहक बने,हो सबका उत्कर्ष।

सबको मंगलमय रहे,कृष्णम् यह नव वर्ष।। 17।।



✍️ त्यागी अशोका कृष्णम

कुरकावली, संभल

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की ग़ज़ल ....देर तक सोच कर मुस्कराते रहे .....


 

गुरुवार, 5 जनवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेंद्र की लघु कथा - "मस्ती और नशा"

   


वह दूर दूर तक बिखरी अपनी मटर, आलू ,प्याज साग, सब्जियां बटोर रहा था। काफी सब्जियां तो आने जाने वाली कारों गाड़ियों के पहियों से कुचल चुकी थीं। बीच में वह बार-बार अपने आंसू भी पोंछता जा रहा था। एक तरफ उसका ठेला टूटा और उल्टा पडा़ था। उसके हाथ और चेहरे पर आई चोटें भी साफ दिखाई दे रही थी, जिसमें से खून रिस रहा था। कुछ लोग उसकी वीडियो बनाने में लगे थे। घुमंतु यू -ट्यूबलर भी आ पहुंचे जबरदस्ती उसका इंटरव्यू लेने और वीडियो बनाने लगे । एक दो राहगीर उसकी मदद करने को आगे आये,सब्जी बटोरने में मदद करने लगे। 

   धीरे-धीरे खाली सड़क पर तमाशा देखने वालों की भीड़ बढ़ने लगी थी। कहने को कुछ भी नहीं हुआ था। नये साल की मस्ती और नशे में डूबे रईसज़ादों की औलादों की तेज रफ्तार महंगी कार के सामने सब्जी वाला अपना ठेला लेकर आ धमका था।

     लड़के तो नये साल की अपनी मस्ती और नशे में थे, गलती तो गरीब परिवार के इकलौते सब्जी बेचने वाले की थी।

✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र'

चन्द्र नगर, मुरादाबाद 

उत्तर प्रदेश, भारत


मुरादाबाद की संस्था जैमिनी साहित्य फाउंडेशन की ओर से स्मृतिशेष डॉ विश्व अवतार जैमिनी की जयंती पर चार जनवरी 2023 को कवि सम्मेलन का आयोजन

 मुरादाबाद की संस्था जैमिनी साहित्य फाउंडेशन की ओर से साहित्यकार एवं शिक्षाविद स्मृतिशेष डॉ विश्व अवतार जैमिनी की जयंती पर बुधवार 4 जनवरी 2023 को भावपूर्ण काव्यांजलि कार्यक्रम का आयोजन मानसरोवर पैराडाइज में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ राकेश चक्र ने की तथा संचालन फाउंडेशन के सचिव डॉ मनोज रस्तोगी ने किया ।  मुख्य अभ्यागत आरएसएस  के विभाग संघ चालक ओम प्रकाश शास्त्री, डॉ राकेश कुमार एवं समाज सेवी दीपक बाबू रहे। इस अवसर पर तीर्थंकर महावीर मेडिकल कॉलेज अस्पताल के निदेशक विपिन जैन, प्रख्यात चिकित्सक डॉ राकेश कुमार और प्रख्यात रंगकर्मी राजेश रस्तोगी को डॉ जैमिनी स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया।

 कवि सम्मेलन का शुभारंभ डॉ पूनम बंसल द्वारा प्रस्तुत मां सरस्वती वंदना से हुआ।फ़ाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ काव्य सौरभ जैमिनी ने कहा नवोदित रचनाकारों के लिए डॉ विश्व अवतार जैमिनी शोधपीठ की स्थापना शीघ्र की जाएगी। महाराजा हरिश्चंद्र महाविद्यालय के प्रोफ़ेसर डॉ सुधीर अरोरा ने डॉ विश्व अवतार जैमिनी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा 4 जनवरी 1940 को संभल के प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में जन्में डॉ जैमिनी ने काव्य और गद्य दोनों में ही समान रूप से साहित्य रचा। "संस्कृत दर्पण", हिन्दी भाषा प्रदीप' , ‘साहित्यानुशीलन’,बिंदु बिंदु सिंधु  तथा काव्य कृति मैं पद्यप उनकी उल्लेखनीय कृतियां हैं । डॉ प्रियंका गुप्ता ने डॉ जैमिनी की रचना का पाठ किया। 

      कवि सम्मेलन में प्रख्यात बाल साहित्यकार डॉ राकेश चक्र का कहना था .... 

जिसकी मिट्टी में फले-फूले सदा खाया रिजक।

नाज उस पर हर किसी को यार होना चाहिए। 

वरिष्ठ साहित्यकार ओंकार सिंह 'ओंकार' ने कहा...

 हम नयी राहें बनाने का जतन करते चलें ।

जो भी वीराने मिलें उनको चमन करते चलें ।।

नफ़रतों की आग से बस्ती बचाने के लिए ,

प्यार की बरसात से ज्वाला शमन करते चलें।।

छीनकर सुख दूसरों से अपना सुख चाहें नहीं ,

ऐसे सुख की कामनाओं का दमन करते चलें।।

रातभर जो दीप जलकर रोशनी करते रहे 

उन दियों की साधनाओं को नमन करते चलें ।

      वरिष्ठ साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल का कहना था ..

      नफ़रतें दिल में मत पनपने दो,

      प्यार थोड़ा दिलों में रहने दो,

      न करो बंद दिल के दरवाजे,

      एक खिड़की तो खुली रहने दो 

  वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय का गीत था ... 

  कुटिल कंटकों में मुसकाते, सुरभित सुमन सुहाने हैं। 

  चहुँदिशि फैले कीर्ति पताका, गीत राष्ट्र के गाने हैं।

वरिष्ठ कवि अशोक विद्रोही ने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा .... 

दिव्य से वटवृक्ष की जैसे

घनी शीतल हो छाया ! 

चिलचिलाती धूप में व्याकुल

पथिक जहाँ चैन पाया! 

घोर काली रात में ज्यों

ज्ञान का दीपक जलाये! 

वरिष्ठ कवयित्री डॉ पूनम बंसल ने कहा ...

सर्द सुबह के बीच फंसी हैं ,सिमटी सिकुड़ी आशाएं।

शीत पवन की मार कटीली ,कैसे इससे बच पाएं।

कुहरे के चलते विरोध में,दिनकर ने हड़ताल करी

सूरज दादा को समझाकर, धूप ज़रा सी ले आएं। 

वरिष्ठ हास्य कवि फक्कड़ मुरादाबादी ने हास्य रस की फुआर छोड़ते हुए कहा ... 

शादी के पश्चात मित्रवर जब अपनी ससुराल पधारे, 

पूछन लगे वहां किसी से मनोरंजन का साधन प्यारे, 

सुनकर उनकी बात गांव का एक युवा मुस्का कर बोला 

जो साधन था मनोरंजन का चला गया वह साथ तुम्हारे

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी ने रूस यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में कहा ... 

उड़ रही गंध ताजे खून की, 

बरसा रहा जहर मानसून भी, 

घुटता है दम बारूदी झोंको के बीच ।

 चर्चित नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कहा...

 ठिठुरन, कुहरे ने धरा, जबसे क्रोधित रूप 

 रिश्तों में अपनत्व-सी, नहीं दिख रही धूप । 

 बूढ़ी दादी दे रही, सबको यह ही राय ।

सर्दी में सबसे भली, अदरक वाली चाय ।।

      साहित्यपीडिया की संस्थापक डॉ अर्चना गुप्ता ने कहा....

      पार्थ विकट हालात बहुत हैं, मगर सामना करना होगा

      धनुष उठाकर तुमको अपना, अब अपनों से लड़ना होगा 

    कवयित्री रश्मि प्रभाकर का कहना था ...

कड़वे मीठे अनुभव का कुछ स्वाद बनाये रखिये 

कैसी भी हो परिस्थिति संवाद बनाये रखिये। 

अच्छी बुरी हो जैसी भी प्रतिक्रिया कोई तो हो,

जिंदा हो तो जीने का उन्माद बनाये रखिये।

     चर्चित दोहाकार राजीव 'प्रखर' का मुक्तक था ...

शब्द पिरोने का यह सपना, इन नैनों में पलने दो।

मैं राही हूॅं लेखन-पथ का, मुझे इसी पर चलने दो।

कल-कल करती जीवनधारा, पता नहीं कब थम जाए,

मेरे अन्तस के भावों को, कविता में ही ढलने दो।

     कवि मनोज 'मनु' ने कहा... 

      सिर पर, छांव पिता की, 

      कच्ची दीवारों पर छप्पर

      आंधी- बारिश, खुद  पर झेले, 

      हवा  थपेड़े  रोके ,

      जर्जर तन भी ढाल बने

       कितने मौके-बेमौके ,

       रहते समय जान नहीं पाते, 

       क्यों हम सब ये अक्सर। 

कवयित्री प्रो. ममता सिंह ने ग़ज़ल प्रस्तुत करते हुए कहा ...

बाद मुद्दत के कहीं ऐसे ज़माने आये। 

उनकी ग़ज़लों में  मेरे फिर से  फ़साने आये।

उनके हर शेर में है अक्स मेरी यादों का, 

बस ये अहसास ही वो मुझको  दिलाने आये।। 

     युवा साहित्यकार ज़िया ज़मीर ने ग़ज़ल प्रस्तुत की...

हक़ीक़त था मगर अब तो फ़साना हो गया है

उसे देखे हुए कितना ज़माना हो गया है

ज़रा सी बात पे आंखों के धागे खुल गए हैं

ज़रा सी देर में ख़ाली ख़जाना हो गया है। 

      बिजनौर से आए युवा कवि दुष्यंत बाबा ने बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ के संदर्भ में रचना प्रस्तुत करते हुए कहा... 

मत रोको पापा मुझको मैं तो बाहर जाऊंगी, 

रंग भरूँगी सपनों में, मैं तो कलम चलाऊंगी

प्रत्यक्ष देव त्यागी ने कहा ...

कुछ लोग मेरे अपने थे, 

कुछ लोग मेरे सपने थे। 

आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ ने मुक्तक प्रस्तुत किया । 

    आयोजन में  आर एस एस के विभाग प्रचार प्रमुख पवन जैन, विवेक गोयल, गौरव गुप्ता, संजीव आकांक्षी, डॉ विनोद पांडेय, राकेश जैसवाल, पंकज दर्पण, तृप्ति रस्तोगी, शिखा रस्तोगी, अमर सक्सेना, डॉ नरेंद्र सिंह, देवेंद्र शर्मा, राजीव अग्रवाल , डॉ मुहम्मद अय्यूब डॉ अब्दुररब आदि उपस्थित रहे। आभार फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ काव्य सौरभ जैमिनी ने व्यक्त किया।

         इससे पूर्व एम एच कालेज में डॉ जैमिनी को भावांजलि दी गयी। वरिष्ठ चित्रकार  डॉ नरेंद्र सिंह के निर्देशन में कलाकारों ने डॉ जैमिनी की लाइव पेंटिंग बनायी। उधर द्रोपदी रतन इंटर कालेज, मुरादाबाद में जैमिनी जयंती समारोह पूर्वक मनायी गयी।प्रधानाचार्य अर्जुन सिंह ने डॉक्टर विश्व अवतार जैमिनी के जीवन को अनुकरणीय बताते हुए उन्हें अजातशत्रु की संज्ञा दी। प्रबंधक डॉ काव्य सौरभ जैमिनी ने इस अवसर पर पाँच निर्धन बालिकाओं को छात्रवृति प्रदान की। विजय वीर सिंह, माया सक्सेना, कल्पना, सरोज गुप्ता, अंजू, कमलेश, कृष्णा आदि प्रमुख रूप से रहे।