गुरुवार, 23 मार्च 2023

मुरादाबाद मंडल के अफजलगढ़ (जनपद बिजनौर) निवासी साहित्यकार डॉ अशोक रस्तोगी की कहानी.... पराजय

     


सरस्वती माध्यमिक विद्यालय का परीक्षा परिणाम गतवर्षों की भांति इस वर्ष भी शत-प्रतिशत ही रहा था। प्रदेश में सर्वोच्च स्थान भी इसी विद्यालय के छात्र ने पाया था। तथा अन्य कई छात्र विशेष उच्चांक सूची में भी आये थे।इस अप्रतिम सफलता का श्रेय विद्यालय के प्रधानाचार्य नवीनचंद्र पांडे की अद्भुत कार्यशैली, कठोर परिश्रम व शिक्षण के प्रति समर्पण भाव को जाता था। प्रदेश भर में उनका नाम समाचार पत्रों की सुर्खियों में छा गया। उनके सचित्र समाचार तो छपे ही, साक्षात्कार भी प्रकाशित हुए। अनेकों सामाजिक संस्थाओं द्वारा उनका अभिनंदन किया गया। सात्विक वृत्ति और सरल हृदयी नवीनचंद्र पांडे ऐसा भावभीना सम्मान पाकर भी कभी दम्भ अथवा लोभ से ग्रस्त नहीं हो पाये।

     पतली सी कदकाठी,सपाट चेहरा, आंखों पर चश्मा,देह पर खादी का लंबा कुरता व किनारीदार धोती,हाथ में पतली सी छड़ी…विद्यालय में जिधर को भी निकल जाते,सब उनकी तेजोद्दीप्त आंखों के संकेत मात्र से ही अनुशासन की सीमा में बंध जाते। कठोर अनुशासन,अत्युत्तम शिक्षा व शुद्ध आचरण उनके मुख्य सिद्धांत थे।उनका कथन था कि पांडे वह लोहस्तंभ है जो टूट तो सकता है किंतु झुक नहीं सकता…और न ही सिद्धांतों के परिपालन में कभी किसी से पराजित हो सकता।

     प्रदेश के नवमनोनीत शिक्षा मंत्री अनुज प्रताप सिंह के संज्ञान में पांडे जैसे उत्प्रेरक व आदर्श प्रधानाचार्य का व्यक्तित्व आया तो उन्होंने भी उन्हें पुरस्कृत करने की घोषणा करके अपने विद्वताप्रेमी व शिक्षाप्रेमी होने का संदेश प्रचारित कर डाला।

     अभिनंदन की तिथि घोषित करने से पूर्व प्रधानाचार्य जी को मंत्री जी के सचिव की ओर से अनेक दिशा निर्देश दिए गए…जैसे – सभास्थल पर भारी भीड़ जुटाई जाए, छात्राओं द्वारा उनका प्रशस्ति गान कराया जाए, गणमान्य नागरिकों द्वारा उनका अधिकाधिक माल्यार्पण कराया जाए, उनके व्यक्तित्व व कृतित्व का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया जाए, पुरस्कार में प्रदत्त धनराशि का आधा भाग मंत्री जी की संस्था को सहयोग रूप में दिया जाए,मंच ऊंचा व पुष्पसज्जित देवोपम सुंदर होना चाहिए,निरामिष भोजन व मदिरापान की व्यवस्था अत्युत्तम होनी चाहिए…आदि-आदि।

     नवीनचंद्र पांडे के हृदय में वितृष्णा की लहर दौड़ गई…मंत्री जी अभिनंदन करने आ रहे हैं या कराने आ रहे हैं?... कदाचित इस ओट में वे स्वयं का महिमामंडन कराना चाह रहे हों…उनका उत्साह तो शून्य में विलीन हो ही गया, मंत्री जी के नाम पर मन में भी कड़वाहट घुल गई…नहीं चाहिए ऐसा पुरस्कार जिससे स्वाभिमान आहत होता हो…फिर भी वे ऊपर से शांत ही बने रहे।

     घोषित तिथि को निर्धारित समय से काफी विलम्ब के पश्चात् जिस समय मंत्री जी का आगमन हुआ, उस समय प्रधानाचार्य जी दर्शक दीर्घा की अग्रिम पंक्ति में आत्मलीन से बैठे थे। मंत्री जी के गाड़ी से उतरते ही उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने उन्हें पुष्पमालाओं से लाद दिया। फिर वे कार्यकर्ताओं से घिरे धीर मंथर गति से करबद्ध अभिवादन की मुद्रा में मंचासीन हुए।

      और ज्यों ही कंठ में पड़ी पुष्प मालाएं उतारकर उन्होंने मेज पर रखीं तो उस चेचक के दाग भरे खुरदुरे श्यामल चेहरे पर नवीनचंद्र पांडे का दृष्टिपात् होते ही यकायक उन्हें लगा जैसे गरम तवे पर पैर पड़ गया हो…बुरी तरह चौंक पड़े वे…मुंह से उच्छवास सा निकल गया –"अरे प्रताप तू?...तू मंत्री बन गया?... वह भी शिक्षा मंत्री?..."

     अनायास ही उनके अवचेतन मन ने आंधी में फड़फड़ाते ध्वज के समान वर्षों पूर्व के अतीत के गर्त में छलांग लगा दी……

     *कुंवर* राघवेंद्र सिंह पब्लिक इंटर कालेज में जब वे प्रथम बार प्रधानाचार्य बनकर पहुंचे थे तो अनुशासन शून्य विद्यालय कुव्यवस्थाओं का शिकार बना हुआ था। छात्र-छात्राएं दिनभर विभिन्न प्रकार की क्रीड़ाओं में व्यस्त रहते तो शिक्षक गण भी शिक्षक कक्ष में एकत्रित होकर हंसी-ठिठोली करते रहते। दायित्वबोधी शिक्षक विद्यार्थियों को समझाने का प्रयास करते तो उनका उपहास उड़ाया जाता, करबद्ध अभिवादन की मुद्रा में उन्हें कुवाच्य बोले जाते।हर ओर अराजकता का कोलाहल व्याप्त…और प्रयोगशालाएं तो मानो कबाड़खाना बनकर रह गई थीं…प्रयोग करने में विद्यार्थियों की रुचि नहीं तो प्रयोग  कराए किसे जाएं?

     नवीनचंद्र पांडे ने पहले दिन ही प्रार्थना सभा में वज्रनाद् कर दिया –'अनुशासन,अध्यापन और अध्ययन आज से इस विद्यालय के मूलमंत्र रहेंगे।आज से इस विद्यालय में वही रह सकेगा जो इनका अनुसरण करेगा। अवहेलना करने वालों के लिए मुख्य द्वार हमेशा खुला रहेगा…नियम भंग करने वाला स्वेच्छापूर्वक यहां से विदा ले जाए ,अन्यथा हठधर्मिता से बाहर धकेल दिया जाएगा।'

     उन्होंने छात्र-छात्राओं के साथ-साथ शिक्षकों के पैरों में भी कठोर नियंत्रण की जंजीरें डाल दीं और स्वच्छंदता पर प्रतिबंध लगा दिया।हर बच्चे,हर शिक्षक पर वे पैनी निगाह रखते। उनकी कठोर विभेदक दृष्टि जिस पर भी पड़ जाती वह भय से थरथरा उठता।अतएव सभी अपने-अपने कर्तव्यबोध के प्रति सजग रहकर विद्यालय का वातावरण सुधारने हेतु सन्नद्ध रहने लगे।उनके अथक प्रयास और दृढ़ निश्चय से विद्याध्ययन का मलय पवन विद्यालय के वातावरण को सुवासित करने लगा।

     किंतु सत्तारूढ़ दल के नगराध्यक्ष के शरारती व उद्दंडी पुत्र प्रताप ने उनके नियंत्रण को स्पष्ट अस्वीकार कर दिया। सीधे सरल छात्रों का उत्पीड़न करना उसका मुख्य स्वभाव था।उनका भोजन छीनकर खा जाना,जेब से पैसे निकाल लेना, उनकी नई-नई कापियों-पुस्तकों पर अपना नाम लिखकर अधिपत्य जमा लेना, किसी से शिकायत करने पर उनके साथ मारपीट करना उसकी प्रवृत्ति में सम्मिलित था। और शिक्षकों पर उपहासात्मक कटाक्ष करने में तो उसे विचित्र सी आनन्दानुभूति होती थी।

     लेकिन एक दिन विद्यालय परिधि के बाहर प्रताप कुछ छात्रों को कुक्कुट बनाकर उत्पीड़न करते हुए प्रधानाचार्य जी की सजग दृष्टि में कैद हो गया। तत्काल उन्होंने उसे व उसके नगराध्यक्ष पिता को अपने कार्यालय में बुलाकर पहले तो स्नेहसिक्त वाणी में समझाया और फिर कठोर शब्दों में चेतावनी भी दे डाली –'विद्यालय का अनुशासन भंग करने का परिणाम होगा विद्यालय से निष्कासन…इसलिए अच्छी तरह समझ लीजिए कि आज के बाद कोई भी अनुशासनहीनता स्वीकार नहीं होगी। और यह भी आप लोगों को पता होना चाहिए कि नवीनचंद्र पांडे पर किसी भी तरह का कोई दबाव प्रभावी नहीं होता…अब आप लोग जा सकते हैं।'

     पिता ने तो हाथ जोड़कर पुत्र के कुकृत्यों की क्षमा उनसे विनम्र स्वर में मांग भी ली किंतु प्रताप गर्दन झुकाए बिना कुछ बोले, बिना कोई प्रतिक्रिया व्यक्त किए शांत भाव से बाहर निकल गया।मानो प्रधानाचार्य जी की चेतावनी का उस पर लेशमात्र भी प्रभाव न पड़ा हो।

    और फिर अगले दिन से ही वह सहपाठियों का पीछा छोड़कर प्रधानाचार्य जी के पीछे हाथ धोकर पड़ गया…

     निरीक्षण के उद्देश्य से प्रधानाचार्य जी नियमित रूप से किसी न किसी कक्षा की कोई न कोई बेला स्वयं निर्देषित करते थे। प्रताप उसी बेला में उनके साथ कोई न कोई हास्यास्पद् कृत्य कर देता था…कभी कागज की गेंद बनाकर उनकी दृष्टि बचाकर उनके सिर पर दे मारता, कभी उनकी कुर्सी पर कोलतार चिपका देता…वे बैठते तो चिपके रह जाते, कभी उनकी कुर्सी के पाये तले पटाखा रख देता…वे बैठते तो तड़ाक से फूट पड़ता।कभी उनकी पीठ पर धूर्त मक्कार लिखा कागज चिपका देता…वे जिधर को भी निकलते हंसी के फव्वारे फूट पड़ते। शरारती का नाम उजागर करने के लिए पूरी कक्षा की पिटाई होती। पर प्रताप के आतंक से कोई भी उसका नाम बताकर नहीं देता। सबके होंठ ऐसे सिल जाते जैसे कभी खुलेंगे ही नहीं।

     किंतु उस दिन प्रताप उनकी सतर्क निगाहों से बचा न रह सका,जब उसने प्रार्थना सभा में सोडियम के टुकड़े उछाल दिए।वायु का संपर्क होते ही वे जलकर छात्रों पर गिरे तो पूरी सभा में भगदड़ मच गई। प्रधानाचार्य जी ने तत्काल उसे विद्यालय से निष्कासित कर निष्कासन पत्र उसके पिता को भेज दिया।

     परंतु पता नहीं वह किस मिट्टी का बना था कि निष्कासन से भी लेशमात्र भयभीत नहीं हुआ। अपितु विद्यालय के अनुसूचित व दलित छात्रों को एकजुट कर उकसाने लगा –'अनुसूचित जाति का कमजोर व कुचला हुआ समझकर यह अत्याचार मुझ पर किया जा रहा है। अरे आज मुझे इस विद्यालय से निकाला जा रहा है,कल तुम सब दलितों को भी एक-एक कर बाहर कर दिया जाएगा। ताकि इस विद्यालय पर सवर्णों का एकछत्र साम्राज्य स्थापित हो सके। लेकिन यदि आप सब मेरा साथ दोगे तो दबे कुचले लोगों के प्रति यह तानाशाही मैं कभी चलने नहीं दूंगा।सारे दलितों की फीस माफ कराकर रहूंगा। और आप सभी को परीक्षाओं में उत्तीर्ण कराना भी मेरा दायित्व रहेगा। यह एक अकेले प्रताप की लड़ाई नहीं अपितु दलितों व सवर्णों के बीच की लड़ाई का आरंभ है।'

     फिर क्या था, फिर तो सभी ने समवेत स्वर में क्रांति का बिगुल बजा दिया –'प्रताप भैया! तुम संघर्ष करो!हम तुम्हारे साथ हैं…हमारा नेता कैसा हो?... प्रताप भैया जैसा हो!...जो हमसे टकराएगा!...चूर चूर हो जाएगा!'

     और अगले दिन ही विद्यालय के मुख्य द्वार पर प्रताप के नेतृत्व में धरना प्रदर्शन आरंभ कर दिया गया। प्रधानाचार्य जी के विरोध में दलितों का स्वर मुखर हो गया –'नवीनचंद्र पांडे हाय-हाय!...हाय-हाय।… प्रधानाचार्य! मुर्दाबाद…मुर्दाबाद!'

     प्रधानाचार्य जी ने उन्हें समझाने का प्रयास किया तो मानो उनमें तो प्रबल ऊर्जा का संचार हो गया –'पहले निष्कासन वापस, फिर कोई और बात!' कई छात्र तो उनके साथ अभद्रता पर उतारू हो गए।विवश होकर उन्हें पुलिस की सहायता लेनी पड़ी। पुलिस की फटकार से समस्त आंदोलनरत छात्र मधुमक्खियों की तरह तितर- बितर हो गये।

     हर कूल कंगारे को झिंझोड़ता हुआ यह समाचार नगर में हर ओर फैल गया कि जिस शिक्षा के मंदिर में कभी पुलिस के सिपाही की छाया तक नहीं पड़ी थी वहां की व्यवस्था में पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा।

     विद्यालय प्रबंधन समिति की आपात सभा बुलाई गई। और उसमें प्रधानाचार्य नवीनचंद्र पांडे की अकर्मण्यता, विवेकहीनता, अकुशलता व विद्यालय परिसर में पुलिस बल के कदमों की घोर भर्त्सना की गई। तथा उन्हें   अपमानित व लांछित भी किया गया। इस अपमानदंश पर नवीनचंद्र पांडे बुरी तरह तिलमिलाकर रह गये…लगा जैसे संपूर्ण व्यक्तित्व सुलग रहा हो।

     उधर प्रताप की अनुशासनहीनता को दंडित करने के उद्देश्य से अगली प्रार्थना सभा में प्रबंधक द्वारा उससे प्रधानाचार्य जी के चरण स्पर्श कराकर क्षमायाचना कराई गई तथा दंडस्वरूप उसके हाथों पर प्रधानाचार्य जी द्वारा बेंत प्रहार भी कराया गया।

     और फिर अप्रत्याशित व अकल्पित रूप से वह घटित हो गया था जिसने उनकी समूची संयम शक्ति को पूर्ण वेग से झिंझोड़ डाला था…उनके व्यक्तित्व को झकझोरकर रख दिया था।…विद्यालय के अवकाश के उपरांत ज्यों ही वे मुख्य द्वार से बाहर निकले, प्रताप कहीं से घात लगाए चीते की तरह चपल गति से प्रकट हुआ और उनका कालर पकड़कर एक झन्नाटेदार तमाचा उनके गाल पर मारता हुआ बोला –'पांडे! प्रताप आज तक किसी के सामने नहीं झुका तो तुझसे कैसे पराजित हो सकता है?आज से ध्यान रखना! मुझसे टकराने की कोशिश मत करना कभी वरना तेरे लिए परिणाम अच्छा नहीं होगा।'

     पलार्द्ध भर को अवसन्न रह गया नवीनचंद्र पांडे का भावप्रधान मस्तिष्क…किंतु अगले ही पल उनमें न जाने कहां से ऐसी शक्ति ऐसा साहस उत्पन्न हो गया कि विद्युत गति से उन्होंने उसे लात घूंसो से बुरी तरह धुन दिया। हांफते हुए से बोले–'प्रताप याद रखना!मेरा नाम नवीनचंद्र पांडे है। सिद्धांतों का धनी हूं इसलिए कभी किसी से पराजित नहीं होता। तुम जैसे गुंडों को सुधारना मेरा बांए हाथ का खेल है। लेकिन जो कुछ आज हुआ वह मैं करना नहीं चाहता था। इससे विद्यालय की भी गरिमा धूमिल हुई तथा मेरी भी …और यदि तूने अपना यह धृष्टाचरण नहीं सुधारा तो जिंदगी में तू कभी कुछ नहीं बन सकता।…मेरा क्या है मुझे तो यह नहीं तो कोई और विद्यालय अपना ही लेगा। इसलिए मैं स्वयं इस विद्यालय को त्यागकर जा रहा हूं।यह निर्णय कल ही मैंने उस समय ले लिया था जब प्रबंधनतंत्र ने मेरे कार्य में हस्तक्षेप करने की चेष्टा की थी…लेकिन यह तुझे भविष्य बताएगा कि पराजय मेरी हुई या तेरी?'

     और उसी समय उन्होंने प्रबंधनतंत्र को अपना त्यागपत्र भिजवाया तथा वहां से विदा ली।

     चूंकि उनकी सुघड़ कार्य शैली की चर्चा दूर-दूर तक होने लगी थी अतएव उपप्रधानाचार्य के अवलंबन पर चल रहे सरस्वती माध्यमिक विद्यालय धर्मपुर ने तत्काल उन्हें प्रधानाचार्य पद पर नियुक्त कर विद्यालय की डोर पूर्णतया इस अनुबंध के साथ उनके हाथों में सौंप दी कि परिणाम शत-प्रतिशत मिलना चाहिए, शैक्षिक स्तर शिखर को स्पर्श करना चाहिए, विद्यालय की दुंदुभी चहुंओर बजनी चाहिए।

     सर्वप्रथम आत्ममंथन, फिर व्यवस्थाओं का अवलोकन और तत्पश्चात् तदनुरूप क्रियान्वयन शैली अपनाते हुए उन्होंने विभेदक दृष्टि से विद्यार्थियों का निरीक्षण किया, उनकी नसों पर हाथ रखा, अभिभावकों की सभा आयोजित कर उन्हें विश्वास में लिया, अपने उद्देश्य, लक्ष्य व कार्यप्रणाली के विषय में विस्तार से चर्चा की, शिक्षकों से बंधुत्व भाव बनाए रखने का आग्रह किया, छात्रों को पुत्रवत् स्नेह प्रदान कर विद्यालय में पारिवारिक वातावरण उत्पन्न किया, छात्रों व शिक्षकों को उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए पुरस्कृत करने का निर्णय लिया।…

     और मनोयोगपूर्वक किये गये अथक परिश्रम, ध्येय के प्रति अटूट निष्ठा,लगन, सुनियोजित क्रियात्मक योग, त्यागी वृत्ति, स्नेहिल आचरण, विलक्षण कार्यक्षमता व अनुपम शैली ने अपना रंग दिखाया तो विद्यालय का नाम प्रदेश भर में विख्यात् होने के साथ-साथ ही प्रधानाचार्य नवीनचंद्र पांडे का अद्भुत प्रेरणास्पद् व्यक्तित्व शिक्षा जगत में एक किंवदंती बन गया।……

     *शिक्षामंत्री* अनुज प्रताप सिंह!... जिंदाबाद… जिंदाबाद!...समूचा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजा तो अतीत का वह तिक्त कषाय कालखंड वायु के पत्तों पर आरूढ़ हो अनंत में कहीं जाकर शून्य में विलीन हो गया। चैतन्य होकर उन्होंने चहुंओर दृष्टिपात् किया तो मंच पर ध्वनि विस्तारक के समक्ष खड़े मंत्री जी उन्हें ही लक्ष्य कर संबोधित कर रहे थे –"देखिए!समय का चक्र किस प्रकार घूमता और सबको घुमाता है…आज मैं जिन नवीनचंद्र पांडे को पुरस्कृत करने आया हूं वे कभी मेरे कालेज में प्रधानाचार्य हुआ करते थे। उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया था कि तू जिंदगी में कभी कुछ नहीं बन सकता,न कभी मुझसे जीत सकता है। लेकिन आज आप देख ही रहे हैं कि उनके कालेज का वह आवारा गुंडा, अनुसूचित जाति का दबा कुचला छात्र,जिसे पांडे ने छोटी सी बात पर विद्यालय से निष्कासित कर दिया था आज आपके सामने एक लोकप्रिय मंत्री के रूप में खड़ा है। जबकि पांडे पहले भी प्रधानाचार्य थे और आज भी प्रधानाचार्य हैं। उन्नति के सोपान पर एक कदम भी तो नहीं चढ़ सके…काल विडंबना का इससे सशक्त उदाहरण और क्या हो सकता है कि जिन हाथों पर उन्होंने कभी बेंत प्रहार किए थे,वही आज उन्हें पुरस्कृत करने जा रहे हैं।"                                                                                        पलांशभर को ठिठके मंत्री जी और फिर खुरदरे स्याह होंठों पर कुटिल मुस्कान लाते हुए बोले–" तो मैं प्रधानाचार्य पांडे को अपने हाथों से पुरस्कार देने के लिए मंच पर बुलाना चाहूंगा…शीघ्र आ जाएं क्योंकि अभी मुझे कार्यकर्ताओं की मीटिंग भी लेनी है।"

     भारी और बोझिल कदमों से नवीनचंद्र पांडे मंच पर चढ़े और माइक के सामने बिना किसी औपचारिकता के प्रारंभ हो गये–"ऐसा प्रतीत होता है कि माननीय मंत्री जी मुझे पुरस्कृत करने की ओट में अपने हृदय में बरसों से बंधी हुई ग्रंथि खोलने आये हैं…लेकिन वे बहुत बड़े भ्रम का शिकार हैं।या तो वे अभी तक नवीनचंद्र पांडे को समझ नहीं पाए हैं या फिर न समझने का अभिनय कर रहे हैं। पांडे मंत्री जी जैसा वृहदाकार अस्तित्व नहीं है। वह ऐसा लघुतर अस्तित्व वाला दीपक है जिसकी प्रज्वलित की हुई ज्योति में अब तक अगणित चिकित्सक, इंजीनियर, प्रोफेसर, वैज्ञानिक, प्रशासनिक अधिकारी, न्यायाधीश व शिक्षाविद् प्रकाशित हो चुके हैं। और समाज के विभिन्न क्षेत्रों में प्रकाश फैला रहे हैं। इस अस्तित्व विहीन पांडे के शिक्षा मंदिर से अनेक प्रतिभाएं उदित हुई हैं। लेकिन क्या हमारे सम्मानित मंत्री जी बता सकते हैं कि उनके कौशल से कितनी प्रतिभाओं का विकास हो सका है?...रही बात पुरस्कार की, तो स्वाभिमान आहत करके जो पुरस्कार दिया जाता है उसकी कोई महत्ता नहीं रह जाती। ऐसे पुरस्कार की कोई गुणवत्ता नहीं होती। आज राजनीति में पुरस्कार तो रह गया है परंतु सम्मान व वास्तविक कार्यक्षेत्र नहीं रह गया है। पुरस्कार देना राजनीतिज्ञों के लिए बहुत सरल है। इससे उनकी सदाशयता प्रदर्शित होती है, लोकप्रियता बढ़ती है, क्षेत्र में महत्ता बढ़ती है।"…

     निमेषभर को रुककर उन्होंने एक गहरी सांस ली और फिर बोले–"मेरे विद्यार्थियों ने, शिक्षकों ने, अभिभावकों ने व इस क्षेत्र की जनता ने अपने प्रेम, प्यार, सम्मान व शुभकामनाओं से मुझे एक बार नहीं अनेक बार पुरस्कृत किया है।आजन्म ऋणी रहूंगा मैं उनके इस भावनात्मक अभिनंदन का।अतएव मुझे माननीय मंत्री जी के पुरस्कार की कोई आवश्यकता नहीं। मैं उनका पुरस्कार अस्वीकार करता हूं। माननीय मंत्री महोदय का बहुत-बहुत धन्यवाद।"

     प्रधानाचार्य जी मंच से उतरकर सभागार से भी बाहर निकल गये। जबकि हाथों में प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह, धनराशि का अनुदेश पत्र व शाल थामें मंत्री जी पाषाण प्रतिमा बने उनके जाने की दिशा में एकटक निहारते -निहारते न जाने किस लोक का विचरण करने निकल गये।

     शायद यह एहसास उन्हें कहीं भीतर तक कचोट गया था कि प्रधानाचार्य नवीनचंद्र पांडे ने उन्हें एक बार पुनः पराजित कर दिया था।

✍️ डॉ अशोक रस्तोगी

अफजलगढ़, बिजनौर

मो.9411012039

मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेंद्र की कहानी ..... 'मेरी भी एक माँ थी'


सुनिधि हमेशा अपनी कक्षा के बच्चों को बहुत प्यार करती थी तथा बडे़ मनोयोग से पढा़ती थी। बच्चों के अभिभावक हमेशा उसकी प्रशंसा करते थे। उसका दुर्भाग्य था कि हिंदी और इतिहास विषय से प्रथम श्रेणी की स्नातकोत्तर होने और बीएड होने के बाबजूद वह एक निजी पब्लिक स्कूल में अल्प वेतन भोगी अध्यापिका थी।

       सुनिधि को आज उसकी सेवा समाप्ति के लिए  नोटिस मिला था। इसका उत्तर एक सप्ताह में उसे प्रधानाचार्या को देने के लिए निर्देशित किया गया था । वह हतप्रभ थी कि एकदम से उसके विरुद्ध इतना सख्त निर्णय कैसे लिया जा सकता है?  उसने जो काम किया था उसका वह परिणाम भुगतने को तैयार थी। अधिक से अधिक उससे क्लास छीनी जा सकती थी लेकिन उसकी सेवा समाप्त हो जायेगी यह तो उसके दिमाग में कभी आया ही नहीं था।

        सुनिधि की कक्षा में एक छात्रा पलक थी जो पढ़ने-लिखने में बहुत तेज थी। उसकी माँ का जबसे 'कोरोना' से अचानक निधन हुआ वह बहुत शांत हो चली थी। सुनिधि उसको बहुत प्यार से समझाती और पढा़ई लिखाई में मन लगाने पर जोर देती । उसका काम पूरा नहीं हो पाता तब वह किसी न किसी तरह पलक का काम पूरा कराती रहती थी। पेरेन्टस डे में पहले माँ आया करती थी अब उसके पापा कभी आ जाते तो हाथ बांधे खडे़ सुनते रहते थे। माँ की मृत्यु के बाद पलक को सब काम अपने आप ही करना पड़ता था। पिता का पर्याप्त समय न दे पाना उनकी भी मजबूरी थी।

         पलक की हिंदी की परीक्षा में उसे अपने "सर्वप्रिय व्यक्ति" पर निबंध लिखना था। उसने पहली लाइन लिखी- 

      "मेरी भी एक माँ थी जो दुनिया भर में मुझे सबसे प्यारी थी... "

       उसकी आंखों से आंसुओं की झडी लग गई। आंसू टप-टप उस की कापी में गिरते गए। उसने जो कुछ लिखा था और जो वह आगे लिखने का प्रयास कर रही थी वह सब आंसूओं से गीला होकर खराब होता जा रहा था। उससे लिखा नहीं जा रहा था। जैसे तैसे उसने अपनी परीक्षा दी।  पलक की कापी जब सुनिधि के पास जांचने को आई तो वह पलक की कापी देख कर विचलित हो उठी। कापी में सुनिधि पलक की मनोदशा को अच्छे से पड पा रही थी। 'मां' के विषय में कापी पर कुछ भी स्पष्ट नहीं लिखा होने पर सुनिधि ने जैसे मानो पूरा निबंध पढ़ लिया था। आखिर उसे पलक से विशेष लगाव था। उसकी आंखें नम हो चलीं थीं। उसने पलक को 10 में 10 नम्बर देकर कापी बंद कर दी।

      यही एक दुस्साहस उसने किया था। यह उसका खाली पीरियड था। काफी परेशान सी क्लास में अकेली सुनिधि अपनी ऊंगलियां चटखाती। कभी अपने बालों पर हाथ फेरती। कभी उठ कर इधर-उधर चहल कदमी करती। उसे निर्णय करने में अधिक समय नहीं लगा। एक झटके से अपने पर्स  से  कागज और पेन निकाला और अपना त्यागपत्र लिख कर चपरासी के द्वारा प्रिंसपल को भेज कर वह सीधे अपने घर चली आई।

✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र '

श्रीकृष्ण कालोनी, चन्द्र नगर, 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी .....खुतरी नाशपाती

 


   "..... आप सब लोगों ने  अगर यह देख लिया है तो मैं अब ब्लैक बोर्ड साफ कर दूं?"डाॅ लवानिया सर ने पूछा.

   "हा हा हा हा हा हा" पूरी क्लास हंसी के ठहाकों से गूंज गई....कुछ लोगों ने कहा "हां सर पढ़ लिया है बिगाड़ दीजिए! "

       "तो आओ अब पढ़ाई शुरू करें! " और बाॅटनी की पढ़ाई शुरू हूई बीच-बीच में शरारती लड़के हमेशा की तरह व्यवधान उत्पन्न करते रहे.... परंतु डाॅ लवानिया सर पूरे मनोयोग से पढ़ाने में लगे रहे ..... 

     ....डाॅ लवानिया सर देखने में सांवले खुदरा चेहरा परन्तु आत्मविश्वास से भरे हुए एकदम सरल स्वभाव वाले थे परंतु पढ़ाते बहुत अच्छा थे! गोल्ड मेडलिस्ट थे तो जो पढ़ने वाले बच्चे थे उन्हें बहुत पसंद करते थे और जो आवारागर्दी करने आते थे वे एक गढढों वाली नाशपाती का चेहरा बनाते और उस पर डाॅ यू सी लवानिया लिख देते ऐसा करके वह प्रोफ़ेसर का उपहास करते थे.....! खुराफात करने में सतीश त्यागी और रामप्रसाद मुख्य थे ये दोनों शरारत और गुंडागर्दी करते ही रहते थे दूसरे प्रोफ़ेसर तो प्रिंसिपल से शिकायत कर देते थे घरवालों तक को लेटर लिखवा देते थे यहां तक कि नाम भी कटवा देते थे परंतु डाॅ यूसी लवानिया उनमें से नहीं थे! 

.......एक दिन किसी केस के सिलसिले में सतीश त्यागी और रामप्रसाद को तलाशती हुई पुलिस क्लास में आ पहुँची तब डाॅ यूसी लवानिया क्लास ले रहे थे  परमिशन लेकर पुलिस वाले अंदर आए और पूछा सतीश त्यागी और रामप्रसाद  किस तरह के लड़के हैं गुंडागर्दी करने वाले हैं या शरीफ..!यह बात उन्होंने क्लास में सबके सामने पूछी...... 

सभी सोच रहे थे कि डाॅ यूसी लवानिया आज अपने मन की भड़ास निकाल कर ही दम लेगें..और इन दोनों को फंसा  ही दम लेंगे उन दोनों के चेहरे भी पूरी तरह उतर गए थे कि आज बचने वाले नहीं जेल जाना ही पड़ेगा परंतु ये क्या?....ऐसा नहीं हुआ डाॅ यूसी लवानिया ने कहा " ये दोनों बच्चे मेरी क्लास के सबसे शरीफ छात्र हैं अपना काम हमेशा मन लगाकर करते हैं यह सुनकर पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट लगाई रिपोर्ट लगाई और लौट गई अगले दिनों में कई दिनों तक सतीश त्यागी और रामप्रसाद क्लास में नहीं आए....परंतु इस बीच ऐसा हुआ की डाॅ यूसी लवानिया को जापान की किसी यूनिवर्सिटी ने अपने यहां सलेक्ट कर लिया और उनके जाने की खबर पूरे कॉलेज में फैल गई अंतिम दिन डाॅ यूसी लवानिया क्लास में आए रोज की तरह ही क्लास ली और अंत में उन्होंने स्टूडेंट्स से विदा लेते हुए कहा आप लोगो के साथ बहुत सुन्दर समय गुजरा,अब मेरी जाॅब  विदेश में लग गयी है बच्चों मेरा पूरा प्रयास रहा कि मैं अपने प्रत्येक छात्र को ठीक से पढ़ा सकूं परंतु पढ़ाते समय शिक्षक को थोड़ा  सख्त भी होना पड़ता है इस लिए पढाने के दौरान मुझसे जो भी गलती हुई हो उसे क्षमा करना! और आगे भी अपनी पढाई ऐसे ही मन लगा करना....!और जीवन में अपने साथ ही अपने माता पिता का नाम ऊंचा करना! 

    उनका ये कहना था कि सतीश त्यागी एवं राम प्रसाद उनके चरण छूकर फूट फूट कर रो पड़े कक्षा में सभी की आंखे भीगी थीं..... 

✍️ अशोक विद्रोही 

412 प्रकाश नगर

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 8218825542

सोमवार, 20 मार्च 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार योगेंद्र वर्मा व्योम के दो नवगीत





मुरादाबाद के साहित्यकार बाबा संजीव आकांक्षी की कविताएं

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मुरादाबाद के साहित्यकार योगेंद्र पाल सिंह विश्नोई का गीत .. दुनिया की नजरों में आए कितने भेद हमारे मन के .

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रविवार, 19 मार्च 2023

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली ( जनपद संभल) निवासी साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम् के नौ दोहे ......


ऊंची ऊंची फेंकना, दो अब माधव छोड़।

तुमने मटकी प्रेम की,दी कंकर से फोड़।। 1।।


तोड़फोड़ या जोड़ की,बातें कर लो लाख।

हठ जिसने की प्रेम में,मिली उसे बस राख।। 2।।


मैं तुमसे रो-रो कहूं,पांव पकड़कर नाथ।

बरजोरी जमकर करो, किंतु न छोड़ो हाथ।। 3।।


नाथ-साथ,की बात का,क्या जानोगे मर्म।

पग-पग गोपी छेड़ना,रहा तुम्हारा धर्म।। 4।।


 होठों से छू कर मुझे, बढ़ा दीजिए मान।

 बंशी बन करती रहूं, जीवन भर गुणगान ।। 5।।


माधव मेरी अंत में,मन की सुनो पुकार।

निर्मोही जो तुम हुए, डूबोगे मझधार।। 6।।


 माधव अब राधा बनो,जानो मेरी पीर।

आते हो जब स्वप्न में,होती बहुत अधीर।। 7।।


मनमंदिर मोहन बसे,ऊंची सबसे साख।

रूठे जो मुझसे कभी,जली मिलूंगी राख।। 8।।


अज्ञानी बनकर रहो,चाहूं मैं मन मीत।

ज्ञानी बन मत तोड़ना,मुझ से बांधी प्रीत।। 9।।


✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्

कुरकावली, संभल 

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार रामेश्वर वशिष्ठ को कला भारती की ओर से 19 मार्च 2023 को आयोजित कार्यक्रम में कलाश्री सम्मान

मुरादाबाद के वरिष्ठ रचनाकार  रामेश्वर वशिष्ठ को कलाभारती की ओर से 19 मार्च 2023 को आयोजित  समारोह में कलाश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। उपरोक्त सम्मान-समारोह का आयोजन मिलन विहार स्थित आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कॉलेज पर हुआ। ईशांत शर्मा ईशु द्वारा प्रस्तुत माॅ़ं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता बाबा संजीव आकांक्षी ने की। मुख्य अतिथि  अशोक विश्नोई एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में योगेंद्र पाल विश्नोई मंचासीन हुए। कार्यक्रम का संचालन आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ ने किया तथा सम्मानित रचनाकार  रामेश्वर वशिष्ठ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित आलेख का वचन राजीव प्रखर द्वारा किया गया। अर्पित मानपत्र का वाचन ईशांत शर्मा ईशु ने किया। 

     कार्यक्रम के द्वितीय चरण में एक काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें दुष्यंत बाबा, राजीव प्रखर, ईशांत शर्मा, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, इंजीनियर राशिद हुसैन, डॉ मनोज रस्तोगी, अशोक विद्रोही, रघुराज सिंह निश्चल, मीनाक्षी ठाकुर, रमेश गुप्ता, योगेन्द्र पाल विश्नोई, अशोक विश्नोई, बाबा संजीव आकांक्षी, रघुराज सिंह निश्चल, रामेश्वर वशिष्ठ आदि ने विभिन्न रचनाओं के माध्यम से विभिन्न सामाजिक मुद्दों को उठाया। राजीव प्रखर द्वारा आभार अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम विश्राम पर पहुॅंचा।










शुक्रवार, 17 मार्च 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में जकार्ता इंडोनेशिया निवासी) वैशाली रस्तोगी की तीन काव्य कृतियों मेरे चारों धाम (दोहा संग्रह), करती खुद को मैं नमन (कविता संग्रह), तथा शुभ-प्रभात (हाइकु संग्रह) का जनपद संभल की साहित्यिक संस्था परिवर्तन ट्रस्ट(पंजी) के तत्वावधान में आयोजित भव्य समारोह में किया गया लोकार्पण

मुरादाबाद  मंडल के जनपद संभल की साहित्यिक  संस्था परिवर्तन ट्रस्ट(पंजी) के तत्वावधान में जकार्ता (इंडोनेशिया) की साहित्यकार वैशाली रस्तोगी की तीन काव्य कृतियों मेरे चारों धाम (दोहा संग्रह), करती खुद को मैं नमन (कविता संग्रह), तथा शुभ-प्रभात (हाइकु संग्रह) का लोकार्पण पर्व एवं साहित्यकार सम्मान समारोह का आयोजन गुरुवार 16 मार्च 2023 को व्हाइट हाउस, बुद्धि विहार दिल्ली रोड मुरादाबाद में किया गया। 

       कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती के चित्र के समक्ष  दीप प्रज्ज्वलन व पुष्पार्पण करके किया गया। परिवर्तन ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष प्रदीप कुमार "दीप" ने माँ सरस्वती की वंदना प्रस्तुत की तदोपरांत वैशाली रस्तोगी की तीनों पुस्तकों का लोकार्पण कार्यक्रम अध्यक्ष हास्य व्यंग्य के प्रख्यात साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी, विशिष्ट अतिथि चर्चित साहित्यकार  डॉ मनोज रस्तोगी, डॉ पंकज दर्पण अग्रवाल, डॉ अर्चना गुप्ता, संचालक त्यागी अशोका कृष्णम् तथा अश्विनी रस्तोगी के कर कमलों द्वारा संपन्न हुआ। 

       समारोह में  मयंक शर्मा, प्रदीप कुमार "दीप"  दीक्षा सिंह, मोहनी रस्तोगी, साक्षी रस्तोगी,  अणिमा रस्तोगी , अश्वनी रस्तोगी एवं त्यागी अशोका कृष्णम् ने वैशाली रस्तोगी की कविताओं का सुमधुर काव्यपाठ किया।

       प्रख्यात व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने वैशाली रस्तोगी को एक होनहार कवयित्री बताते हुए कहा कि उनकी रचनाएं, विदेशी मिट्टी पर अपनी मिट्टी के भाव की उपज हैं। इनमें अपने सांस्कृतिक और संस्कारी प्रवाह के साथ साथ सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों की न उधड़ने वाली बुनावट के ताने बाने की प्रगाढ़ झलक अपना रंग भर कर गौरवान्वित हुई है। वैशाली का रहना सहना भले विदेश का है पर उसके भीतर रची बसी धुकर पुकर अपने भारतीय परिवेश की ही है, जिसे उसका संवेदनात्मक मन एक पल के लिए भी नहीं छोड़ता।

      व्यंग्य कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि वैशाली रस्तोगी ने अपने दोहों के माध्यम से भारतीय सभ्यता, संस्कृति, रीति-रिवाजों एवं परम्पराओं का सरलता के साथ सटीक वर्णन किया है। इसके अतिरिक्त अपनी रचनाओं के माध्यम से वह नारी सशक्तिकरण पर बल देती हैं तो वर्तमान भौतिकतावादी युग में खत्म होती जा रही मानवीय संवेदनाओं और आपसी रिश्ते नातों में बिखराव पर चिंता जताती हैं । शृंगार रस से परिपूर्ण रचनाओं के माध्यम से जहां वह शाश्वत प्रेम और विरह वेदना को अभिव्यक्त करती हैं वहीं सामाजिक विसंगतियों और कुरीतियों पर पैने प्रहार भी करती हैं । 

     साहित्यपीडिया की संस्थापक डॉ अर्चना गुप्ता ने वैशाली रस्तोगी की लेखनी को अपने देश की संस्कृति की खुशबू से लबरेज बताते हुए कहा वह एक लंबे समय से विदेश में रहते हुए भी देश की माटी से जुड़ी हुई हैं। वैश्विक स्तर पर हिंदी जगत में उनकी एक विशिष्ट पहचान है, उनकी रचनाएं आम जनजीवन से जुड़ी हुई हैं।

      अमरोहा की साहित्यकार शशि त्यागी ने वैशाली रस्तोगी के हाइकु भोले नंदन/ शुभगुणकानन/ शुभागमन का उदाहरण देते हुए उनके आध्यात्मिक सृजन की भूरि-भूरि प्रशंसा की।

      वरिष्ठ रंगकर्मी डॉ पंकज दर्पण अग्रवाल ने कहा  "वैशाली रस्तोगी हिदुस्तान के बाहर रहकर भी अपने दिल में हिंदी और हिंदुस्तान के लिए प्रेम एवं समर्पण का सागर भरे हुए हैं।" वरिष्ठ साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा कि वैशाली रस्तोगी के दोहों के केंद्र में भक्ति एवं आध्यात्म है।

        युवा कवि एवं समीक्षक दुष्यंत बाबा ने वैशाली रस्तोगी के सृजन को अध्यात्म, दर्शन, और प्रकृति के साथ साधारणीकरण करते हुए मानवीय संवेदनाओं का स्पर्श करने वाला बताया।

        इस अवसर पर साहित्य, समाज, एवं संस्कृति के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने वाले साहित्यकारों, युवाओं एवं नारी शक्ति को सम्मानित किया गया। डॉ. पंकज दर्पण अग्रवाल ने मुरादाबाद सांस्कृतिक समाज संस्था की ओर से वैशाली रस्तोगी का सम्मान करते हुए उन्हें शॉल  और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया।

      कार्यक्रम का संचालन संयुक्त रूप से प्रदीप कुमार दीप एवं त्यागी अशोका कृष्णम् के द्वारा किया गया। कार्यक्रम के समापन पर वैशाली रस्तोगी ने मधुर कंठ से अपनी रचनाओं का पाठ करते हुए कार्यक्रम में आए सभी अतिथियों, व साहित्यकारों, का आभार व्यक्त किया। 

       इस अवसर पर अशोक विश्नोई, योगेंद्र वर्मा व्योम, राजीव प्रखर, धवल दीक्षित, अशोक विद्रोही, नकुल त्यागी, वीरेंद्र रस्तोगी, शिखा रस्तोगी, संजय शंखधार आदि मौजूद रहे।


































































































 ::::::::::प्रस्तुति:::::::::

त्यागी अशोका कृष्णम्

संस्थापक अध्यक्ष

परिवर्तन ट्रस्ट (पंजी) 

कुरकावली, संभल

उत्तर प्रदेश, भारत