मंगलवार, 7 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' की ओर से चार फरवरी 2023 को आयोजित भारतीय शास्त्रीय संगीत कार्यक्रम 'वसंत-राग एवं सम्मान समारोह' में बरेली के संगीतकार अवधेश गोस्वामी, रीता शर्मा एवं डॉ हितु मिश्रा को किया गया सम्मानित

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' की ओर से नवगीतकार माहेश्वर तिवारी जी के नवीन नगर स्थित आवास पर शनिवार 4 फरवरी 2023 को भारतीय शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम 'वसंत-राग एवं सम्मान समारोह' का आयोजन किया गया जिसमें बरेली निवासी शास्त्रीय संगीतकार अवधेश गोस्वामी, रीता शर्मा एवं डॉ हितु मिश्रा को भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए मानपत्र, अंगवस्त्र, प्रतीक चिह्न तथा सम्मान राशि भेंटकर "संत संगीतज्ञ कीर्तिशेष पुरुषोत्तम व्यास स्मृति सम्मान" से सम्मानित किया गया। 

     सुप्रसिद्ध संगीतज्ञा बाल सुंदरी तिवारी एवं उनकी शिष्याओं लिपिका सक्सेना, संस्कृति राजपूत, सिमरन मदान व राधिका गुप्ता द्वारा संगीतमयी प्रस्तुत सरस्वती वंदना से आरम्भ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना रुकमणी खन्ना ने की, मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध शास्त्रीय संगीतज्ञ ब्रज गोपाल व्यास तथा विशिष्ट अतिथि दयानंद आर्य कन्या महाविद्यालय के प्रबंधक उमाकांत गुप्त रहे। कार्यक्रम का संयुक्त रूप से संचालन वरिष्ठ रंगकर्मी प्रदीप शर्मा एवं नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने किया।

         इस अवसर पर सर्वप्रथम बाल सुंदरी तिवारी द्वारा महाकवि निराला के अमर वसंत गीत- "सखि वसंत आया..." की संगीतमय प्रस्तुति की गयी तत्पश्चात अतिथि संगीतकारों की प्रस्तुतियां हुईं।

     बरेली के वरिष्ठ संगीतज्ञ अवधेश गोस्वामी ने राग- सोनी में भजन और राग- पटदीप में ठुमरी के साथ साथ राग-पीलू में "तुम राधा मैं कृष्ण..." की कर्णप्रिय संगीतमय प्रस्तुति दी। अतिथि संगीतज्ञ डॉ हितु मिश्रा ने राग-वसंत में छोटा खयाल -"...सरस रंग खिले" और होरी- "ब्रज में धूम मची..." की प्रस्तुति के साथ साथ 18 रागों की रागमाला प्रस्तुत की। बरेली की ही वरिष्ठ संगीतज्ञा रीता शर्मा ने विभिन्न रागों में भजन और गीतों -"ऐ री सखी री मोरे पिया घर आये..." की मनमोहक प्रस्तुति दी। कार्यक्रम में वरिष्ठ संगीतज्ञ बृज गोपाल व्यास, रागिनी कौशिक और राजीव व्यास ने भी प्रस्तुति दी। बरेली से पधारे प्रशांत उपाध्याय ने तबले पर, चाँद खां ने हारमोनियम पर और स्थानीय राधेश्याम ने तबले पर शानदार संगत दी।" 

            इस अवसर पर संगीतकार विनय निगम, साहित्यकार योगेन्द्र वर्मा व्योम, डॉ चंद्रभान यादव, डॉ मनोज रस्तोगी, राजीव प्रखर, मनोज मनु, डॉ माधुरी सिंह, उमाकांत गुप्त, संजीव आकांक्षी, गीता शर्मा, संतोष रानी गुप्ता, आशा तिवारी, समीर तिवारी, भाषा, अक्षरा, शशि प्रभा आदि उपस्थित रहे। आभार अभिव्यक्ति माहेश्वर तिवारी ने प्रस्तुत की।


















































:::::::प्रस्तुति:::::::::

योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'

संयोजक

साहित्यिक संस्था 'अक्षरा'

मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल- 9412805981

रविवार, 5 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम ने 5 फरवरी 2023 को आयोजित की काव्य-गोष्ठी

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की मासिक काव्य गोष्ठी पांच फरवरी 2023 को मिलन विहार स्थित आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कॉलेज में हुई। 

राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि ओंकार सिंह ओंकार ने कहा ....

सबके सुख की करे कामना,

कितनी प्यारी होती माॅं। 

खुद कम खाकर हमें खिलाती, 

सबसे न्यारी होती माॅं। 

   मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवयित्री डॉ. पूनम बंसल ने अपने मनोभावों को मुक्तक में उकेरा - 

 आस की सांझ में स्वप्न पलने लगे, 

 प्रीत की याद के रंग मलने लगे।

 हार ही जीत की जब सहेली बनी, 

 हौंसले देखिए साथ चलने लगे। 

    विशिष्ट अतिथि के रूप में रामेश्वर वशिष्ठ ने कहा - 

तुम निराशा दो मुझे विश्वास लेकर क्या करूंगा। 

जब दीप ही मेरा नहीं, प्रकाश लेकर क्या करूंगा। 

    वरिष्ठ साहित्यकार रामदत्त द्विवेदी की अभिव्यक्ति थी - 

घर में दीवार बना ली नहीं, यह ठीक किया। 

अपनी पहचान छुपा ली नहीं, यह ठीक किया। 

      श्रीकृष्ण शुक्ल ने हास्य-व्यंग्य की फुहार छोड़ी -

 अश्रु आँखों में छिपाना सीख लो I 

 तुम अकारण मुस्कुराना सीख लो II 

 रूठने से बात बिगड़ी है सदा, 

 आप रूठे को मनाना सीख लो ।।

     डॉ. मनोज रस्तोगी ने व्यंग्य का रंग बिखेरा - 

बीत गए कितने ही वर्ष ,

हाथों में लिए डिग्रियां

कितनी ही बार जलीं 

आशाओं की अर्थियां

आवेदन पत्र अब लगते 

तेज कटारों से। 

      राजीव प्रखर की अभिव्यक्ति थी -  

हो इसकी उन्नति में मित्रो, जन-जन का अवदान। 

चलो बनाएं सपनों जैसा, प्यारा हिन्दुस्तान। 

 कार्यक्रम का संचालन करते हुए जितेन्द्र जौली ने व्यंग्य के तीर छोड़े - 

 महज दिखावा लग रही, हमें आयकर छूट। 

 सात लाख तक छूट है, उससे ऊपर लूट।। 

नकुल त्यागी ने कहा - 

दरअसल मेरे पति ही पगले हैं 

एक बार दस के नोटों के पैकेट में

दस  के एक सौ एक नोट निकले हैं। 

 अंत में ओंकार सिंह ओंकार जी की माताजी के निधन पर दो मिनट का मौन रखते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। संस्था अध्यक्ष रामदत्त द्विवेदी द्वारा आभार-अभिव्यक्त किया गया ।














शनिवार, 4 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की कविता .... गौरैया


आजा प्यारी गौरैया हम तुझको नहीं सतायेंगे।

दाने डाल टोकरी में अब तुझको नहीं फँसायेंगे।

छत पर दाना पानी रखकर हम पीछे हो जाएंगे।

छोटे छोटे घर भी तेरे फिर से नए बनाएंगे।

आजा प्यारी गौरैया अब तुझको नहीं सतायेंगे।।


हुई ख़ता क्या नन्हीं चिड़िया जो तू हमसे रूठ गयी।

या तू जाकर दूर देश में अपना रस्ता भूल गयी।

एक बार तू लौट तो आ हम सच्ची प्रीत निभाएंगे।

दूर से तुझको देख देखकर अब हम खुश हो जाएंगे।

आजा प्यारी गौरैया हम तुझको नहीं सतायेंगे।।


चीं चीं करती छोटी चिड़िया याद बहुत तू आती है।

जब कोई तस्वीर किताबों में तेरी दिख जाती है।

एक बार तू वापस आ हम फिर से रंग जमाएंगे।

सुंदर सी तस्वीर तेरी हम फिर से नई बनाएंगे।

आजा प्यारी गौरैया हम तुझको नहीं सतायेंगे।।


✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"

ठाकुरद्वारा

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता ....मैं केवल देखता हूं



कोई क्रिया,प्रतिक्रिया नही

केवल देखता हूं

जी हां, मैं केवल देखता हूं


घोटालों के पहाड़ को

भ्रष्टाचार के ताल को

प्रदूषण के दानव को

मिलावट के जाल को

केवल देखता हूं

जी हां, मैं केवल देखता हूं


चढ़ती हुई महंगाई को

भुखमरी को, बेकारी को

शिक्षा के अभाव को

बढ़ती बेरोजगारी को

केवल देखता हूं

जी हां, मैं केवल देखता हूं


हिंसा को,अराजकता को

धार्मिक उन्माद को

चरित्र के पतन को

आतंक को,उग्रवाद को

केवल देखता हूं

जी हां, मैं केवल देखता हूं


गीता का ज्ञान

मेरे भीतर समाया है

भगवान श्रीकृष्ण ने

अर्जुन को समझाया है

कोई भी घटना हो

साक्षी भाव में रहना है

भावुकता में

बिल्कुल नही बहना है

मैं इसी सिद्धांत को

अपना माथा टेकता हूं

और हर घटना को

केवल देखता हूं

जी हां, मैं केवल देखता हूं


✍️डॉ पुनीत कुमार

T 2/505 आकाश रेजीडेंसी

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की कविता .....चित्र


एक नागरिक ने

जनता की निगाहों

को तोल-

मंच पर चढ़कर बोला -

मेरे हाथ में क्या है ?

जो बतलायेगा

हम , उसे हिंदुस्तान

की सैर करायेगा -

तभी,

जनता के बीच से

आवाज़ आई --

तुम्हारे हाथ में 

क्या है भाई--

नज़र नहीं आ रहा है

मेरे पास चश्मा नहीं है

दूसरा बोला,

तुम्हारे हाथ में फ़ोटो है

जिसका चेहरा लालू

से मिलता है--

कई बच्चों का बाप होने पर

कमल सा खिलता है--

मुझे,

तो दूर से टोपी ही

नजऱ आ रही है-

वी.पी.सिंह की याद

आ रही है-

नागरिक ने कहा

नहीं भाई नहीं,

तुम्हारे सभी उत्तर गलत 

हो गये,

तुम्हारे सभी अंदाज़

फेल हो गये-

यह चित्र,

किसी नेता या

राजनेता का नहीं

आम आदमी का चित्र है--

जिसका चेहरा

खिला हुआ नहीं

भूख से त्रस्त है--

सर पर टोपी नहीं

बल्कि,

अपनी जिंदगी के बोझ 

को ढोता, दर्द को सहता-

तिल - तिल कर मरता-

आज का इंसान है।

इसकी टांगे महंगाई ने

कमजोर कर दी हैं-

यह खड़ा होने में

असमर्थ है --

यह बड़ा ही विचित्र है--

सच्चाई के करीब,

आम आदमी का चित्र है ।।


✍️अशोक विश्नोई

मुरादाबाद

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार शिव कुमार चंदन की काव्य कृति शारदे-स्तवन की रवि प्रकाश द्वारा की गई समीक्षा .... सरल हृदय से लिखी गई सरस्वती-वंदनाऍं

सहस्त्रों वर्षों से सरस्वती-वंदना साहित्य के विद्यार्थियों के लिए आस्था का विषय रहा है । भारतीय सनातन परंपरा में देवी सरस्वती को ज्ञान का भंडार माना गया है । वह विद्या की देवी हैं । सब प्रकार की कला, संगीत और लेखन की आधारशिला हैं।  उनके हाथों में सुशोभित वीणा जहॉं एक ओर सृष्टि में संगीत की विद्यमानता के महत्व को उन के माध्यम से दर्शाती है, वहीं एक हाथ में पुस्तक मानो इस बात का उद्घोष कर रही है कि संपूर्ण विश्व को शिक्षित बनाना ही दैवी शक्तियों का उद्देश्य है । केवल इतना ही नहीं, एक हाथ में पूजन के लिए प्रयुक्त होने वाली माला भी है जो व्यक्ति को देवत्व की ओर अग्रसर करने के लिए एक प्रेरणादायक प्रस्थान बिंदु कहा जा सकता है । 

       हजारों वर्षों से सरस्वती पूजा के इसी क्रम में रामपुर निवासी कवि शिवकुमार चंदन ने एक-एक करके 92 सरस्वती-वंदना लिख डालीं और उनका संग्रह 2022 ईस्वी को शारदा-स्तवन नाम से जो प्रकाशित होकर पाठकों के हाथों में आया तो यह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है । सामान्यतः कवियों ने एक-दो सरस्वती वंदना लिखी होती हैं, लेकिन 92 सरस्वती वंदनाऍं लिख देना इस बात का प्रमाण है कि कवि के हृदय में मॉं सरस्वती की वंदना का भाव न केवल प्रबल हो चुका है, अपितु जीवन में भक्ति का प्रादुर्भाव शीर्ष पर पहुॅंचने के लिए आकुल हो उठा है । इन वंदनाओं में एक अबोध और निश्छल बालक का हृदय प्रतिबिंबित हो रहा है । कवि ने अपने हृदय की पुकार पर यह वंदनाऍं लिखी हैं और एक भक्त की भॉंति इन्हें मॉं के श्री चरणों में समर्पित कर दिया है।

   प्रायः यह वंदनाऍं गीत-शैली में लिखी गई हैं । कुछ वंदना घनाक्षरी छंद में भी हैं, जो कम आकर्षक नहीं है । एक घनाक्षरी वंदना इस प्रकार है :-

शारदे मॉं चरणों में चंदन प्रणाम करे 

अंतस में ज्ञान की मॉं ज्योति को जगाइए

रचना विधान काव्य शिल्प छंद जानूॅं नहीं 

चंदन को छंद के विधान को सिखाइए

विवश अबोध मातु आयके उबारो आज 

जगत की सभी नीति रीति को निभाइए 

प्रकृति की प्रीति रीत पावस बसंत शीत

चंदन के गीत छंद स्वर में गुॅंजाइए (पृष्ठ 127)

एक गीत में कवि जन्म-जन्मों तक भटकने के बाद मॉं की शरण में आता है और जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य "ध्यान" की उपलब्धता को प्राप्त हो जाता है । गीत के प्रारंभिक अंश इस प्रकार हैं :-

जन्म-जन्मों का चंदन पथिक हो गया

मोह अज्ञान तम में कहॉं खो गया

थाम ले बॉंह को टेर सुन आज मॉं 

कर कृपा शारदे,पूर्ण कर काज मॉं

छोड़कर पंथ चंदन शरण आ गया 

मॉं तुम्हारा सहज ध्यान गहरा गया (पृष्ठ 25) 

     जीवन में वैराग्य भाव की प्रधानता अनेक गीतों में प्रस्फुटित होती हुई दिखाई पड़ रही है । यह सहज ही उचित है कि कवि अनेक जन्मों की अपनी दुर्भाग्य भरी कहानी को अब मंजिल की ओर ले जाना चाहता है । ऐसे में वह मॉं सरस्वती से मार्गदर्शन भी चाहता है । एक गीत कुछ ऐसा ही भाव लिए हुए है । देखिए :-

जब इस जग में आए हैं मॉं

निश्चित इक दिन जाना है

अनगिन जन्म लिए हैं हमने

अपना कहॉं ठिकाना है 

यह सॉंसें अनमोल मिली हैं 

ज्यों निर्झर का झरना है 

करूॅं नित्य ही सुमिरन हे मॉं 

मुझे बता क्या करना है ?(पृष्ठ 104) 

        वंदना में मुख्य बात लोक-जीवन में प्रेम की उपलब्धता हो जाना मानी गई है । सरस्वती-वंदना में कवि ने इस बात को ही शब्दों में आकार देने में सफलता प्राप्त की है । एक वंदना गीत में कवि ने लिखा है :-

ज्ञान की ज्योति दे दो हमें शारदे 

नेह मनुहार से मॉं हमें तार दे

अर्चना में हमारी यही आस हो 

मन में भक्ति जगे श्रद्धा विश्वास हो

भाव के सिंधु में प्रीति पतवार दे 

ज्ञान की ज्योति दे दो हमें शारदे (पृष्ठ 34)

         अति सुंदर शुद्ध हिंदी के शब्दों से अलंकृत यह सरस्वती-वंदनाऍं सदैव एक नतमस्तक भक्त के मनोभावों को अभिव्यक्त करती रहेंगी । सामान्य पाठक इनमें अपने हृदयोद्गारों को प्रकट होता हुआ देखेंगे तथा भीतर से परिष्कार की दिशा में प्रवृत्त हो सकेंगे।

     पुस्तक की भूमिका में डॉक्टर शिवशंकर यजुर्वेदी (बरेली), हिमांशु श्रोत्रिय निष्पक्ष (बरेली) तथा डॉक्टर अरुण कुमार (रामपुर) की भूमिकाऍं वंदना-संग्रह की गुणवत्ता को प्रमाणित कर रही हैं । डॉ शिव शंकर यजुर्वेदी ने ठीक ही लिखा है कि इस वंदना-संग्रह का जनमानस में स्वागत होगा तथा यह पूजा-घरों की शोभा बढ़ाएगी, मेरा विश्वास है । ऐसा ही इस समीक्षक का भी विश्वास है। कृतिकार को ढेरों बधाई।





कृति : शारदे-स्तवन ( मां सरस्वती वंदना-संग्रह)

कवि : शिव कुमार चंदन, सीआरपीएफ बाउंड्री वॉल, निकट पानी की बड़ी टंकी, ज्वालानगर, रामपुर (उत्तर प्रदेश) मोबाइल 6397 33 8850 

प्रकाशक : काव्य संध्या प्रकाशन, बरेली 

मूल्य : ₹200 

प्रथम संस्करण : 2022

समीक्षक : रवि प्रकाश,

बाजार सर्राफा

रामपुर 

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉक्टर पुनीत कुमार का व्यंग्य....विकास मिल गया है


काफी खोजबीन करने के बाद विकास का पता मिला। ये खोजबीन हमारी अपनी थी। इसमें गूगल बाबा का कोई रोल नहीं था। गूगल ने विकास के एक लाख से अधिक परिणाम दिखाकर, हमको भ्रमित ही कर दिया था।अपनी सफलता पर हम फूले नहीं समा रहे थे। हमारा सीना तीस इंच से बत्तीस इंच हो गया था और हमको तसल्ली दे रहा था कि बहुत जल्द ये छप्पन इंच के जादुई स्तर को छू लेगा। हमारी स्थिति उस पॉकेटमार की तरह थी,जिसे प्लास्टिक मनी के युग में, नोटों से भरी पॉकेट मिल गई हो।हमने बिना समय गवांए,अपना कैमरा उठाया और विकास से मिलने चल दिए लेकिन हमको निराशा हाथ लगी। घर के बाहर ताला लटका था। 

       पड़ोसियों ने बताया - विकास काफी समय से बीमार था। डॉक्टर की सलाह पर, आजकल स्विट्जरलैंड में स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर रहा है। "हमारे पास लौट के बुद्धू घर को आए के अलावा कोई ऑप्शन नही था।हमने पड़ोसियों से कहा,"जब विकास वापस आ जाए,सूचित कर देना। उससे मिलने की तीव्र इच्छा है।अभी तक उसका, बस नाम सुना है, देखा नहीं है।हम मरने से पहले, ये इच्छा पूरी करना चाहते हैं।"

      पांच महीने बाद, एक पड़ोसी ने हमें फोन पर बताया ," विकास आ गया है लेकिन अब इस जगह को छोड़, नेताओं की बस्ती में रहने लगा है। "हम फौरन उससे मिलने जा पहुंचे। एक बूढ़े व्यक्ति,जिसको चलने में परेशानी हो रही थी, ने दरवाजा खोला। पता चला वही विकास है। हमने उसको अपनी छड़ी पकड़ाई। उसने हमें घूर कर देखा,"पहले मेरे पास भी ऐसी ही एक ईमानदारी की छड़ी थी‌ लेकिन वह बहुत कमजोर निकली। मैं कई बार चलते चलते गिरा। कहीं से बेईमानी की छड़ी मिल जाए तो लाना, सुना है वो बहुत मजबूत होती है।"

       हमने कहा,"पूरे देश को तुम्हारी जरूरत है,और तुम यहां छुपे बैठे हो।" विकास हंसा," मैं भी सबसे मिलना चाहता हूं ।मैने कुछ समय पहले पदयात्रा शुरू की थी लेकिन चलने की आदत ना होने के कारण, थक जाता था।एक दिन में केवल आठ दस घरों तक पहुंच पाता था। मैं इतने में भी खुश था। धीरे धीरे ही सही,एक दिन हर घर में मेरी पहुंच होगी लेकिन मेरी किस्मत खराब थी, जो नेताओं की नजर मुझ पर पड़ गई।उन्होंने सोचा, सबके घर अगर आसानी से विकास पहुंच गया, तो हमें कौन पूछेगा। हम किसके नाम पर वोट मांगेंगे। उन्होंने मुझे पकड़कर बंधक बना लिया। बस तभी से मैं इस बस्ती में,सख्त पहरे के बीच रह रहा हूं।क्या तुम मेरी कुछ सहायता कर सकते हो।"

      हमारे पास कोई जवाब नहीं था।हमें लगा, अब तो सारी जनता मिलकर ही विकास को, नेताओं के चंगुल से छुड़ा सकती है लेकिन पता नहीं,वो दिन कब आएगा।


✍️डॉ पुनीत कुमार

T 2/505 आकाश रेजीडेंसी

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

बुधवार, 1 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की लघुकथा ....महंगाई


महंगाई के दौर में डीजल ,पैट्रोल, खाद्य सामग्री सभी कुछ गरीब जनता,अल्प वेतन भोगियों से दूर होता जा रहा है जिसके चलते कई दिनों से रामलीला मैदान में बहुत बड़ा धरना प्रदर्शन चल रहा था!        

          मुख्यमंत्री जी ने स्वयं  धरना स्थल पर उपस्थित होकर देश की अर्थ व्यवस्था पिछली  सरकार द्वारा खराब करने का हवाला देते हुए कार्यवाही करने में असमर्थता जताई परन्तु  भविष्य में इस पर कार्यवाही करने का पूर्ण आश्वासन देते हुए किसी प्रकार धरना समाप्त करवाया! 

    विधानसभा में कार्य के दौरान टेबल पर विधायकों का 20,000 रुपए वेतन बढा़ने से सम्बन्धित फाइल जैसे ही टेबल पर आयी, मुख्यमंत्री महोदय ने सारी फाइल हटाते हुए सबसे पहले उस पर यह कहते हुए साइन किए......कि वास्तव में महंगाई बहुत बढ़ गई है    इसलिए    यह बहुत जरूरी है!........ 

✍️ अशोक विद्रोही विश्नोई 

412 प्रकाश नगर

 मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 82 188 2 5 541

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की लघुकथा .....प्रेम


"क्या आप अब मुझे बिल्कुल प्रेम नहीं करते बाबू? कितने दिन से आपने मुझे एक भी गिफ्ट नहीं दिया है।" लड़की ने अदा से इठलाते हुए लड़के की आँखों में देखते हुए पूछा।

 "प्रेम!!! मुझे लगता है मैं इतना महंगा प्रेम अफोर्ड करने की  हैसियत ही नहीं रखता बेबी। अगर हमेशा महंगे गिफ्ट देना ही प्रेम है तो सच में मैं तुमसे प्रेम नहीं करता क्योंकि मैं व्यापारी नहीं हूँ।" लड़के ने लड़की को खुद से अलग करते हुए कहा और सिर उठाकर मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गया।

✍️नृपेंद्र शर्मा "सागर"

ठाकुरद्वारा

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार ज़िया ज़मीर के ग़ज़ल संग्रह....‘ये सब फूल तुम्हारे नाम' की अंकित गुप्ता "अंक" द्वारा की गई समीक्षा.. महकती है भारतीयता की भीनी-भीनी ख़ुशबू

ग़ज़ल का अपना एक सुदीर्घ इतिहास रहा है । अमीर ख़ुसरो,  कबीर, वली दक्किनी, मीर तक़ी 'मीर', मिर्ज़ा मज़हर, सौदा, मीर दर्द, ज़ौक़, मोमिन, ग़ालिब, दाग़, इक़बाल, जिगर मुरादाबादी जैसे सुख़नवरों से होती हुई यह फ़िराक़ गोरखपुरी, फ़ैज़, अहमद फ़राज़, दुष्यंत कुमार के हाथों से सजी और सँवरी । ग़ज़ल को पारंपरिक तौर पर इश्क़ो- मोहब्बत की चाशनी में पगी सिन्फ़ समझा जाता था और एक हद तक यह धारणा गलत भी नहीं थी । धीरे-धीरे ग़ज़ल बादशाहों के दरबार से नज़र बचाकर समाज की ओर जा पहुँची । तल्ख़ हक़ीक़तों की खुरदुरी ज़मीन से इसका पाला पड़ा, तो ज़िंदगी की कशमकश के नुकीले काँटों ने भी इसके कोमल हाथों को लहूलुहान किया । इसका सुखद परिणाम यह हुआ कि इसने अपने पैकर में रहते हुए भी अपनी आत्मा को परिमार्जित और परिष्कृत किया तथा यह शोषित-पीड़ित मन की आवाज़ बनने लगी ।

मोहम्मद अल्वी का कहना था—

"क्यूँ सर खफा रहे हो मज़ामीं की खोज में

 कर लो जदीद शायरी लफ़्ज़ों को जोड़ कर"

    ज़िया ज़मीर जदीद शायरी की इस मशाल को आगे बढ़ाने वाले शोअ'रा में से एक है़ं । उनका ग़ज़ल-संग्रह 'ये सब फूल तुम्हारे नाम'  इस कथन पर मुहर लगाने के लिए काफ़ी है । संग्रह में 92 ग़ज़लें, 9 नज़्में, 16 दोहे और 6 माहिये संकलित हैं । ज़िया साहब को शायरी का फ़न विरासत में मिला । वालिदे-मुहतरम जनाब ज़मीर दरवेश के मार्गदर्शन में उनकी शायरी क्लासिकी और आधुनिकता दोनों का कॉकटेल बन गई । ज़िया ज़मीर अपनी हर ग़ज़ल में ग़ज़ल के स्वाभाविक और 'क्विंटनसेंशियल' हिस्से मोहब्बत और इश्क़ को नहीं भूलते । इस पतवार का सहारा लेकर वे आधुनिक जीवन की हक़ीक़त और सच्चाइयों और बुराइयों के पहलुओं को छूते हैं और एक नए दृष्टिकोण की स्थापना करते हैं । 

 "उस मोड़ पे रिश्ता है हमारा कि अगर हम

  बैठेंगे    कभी    साथ    तो  तन्हाई बनेगी"

उपरोक्त शे'र के ज़रिए वे आज की एकांत और बेहिस ज़िंदगी की तस्वीर खींचते हैं, तो वहीं

 " जो एक तुझको जां से प्यारा था 

 अब भी आता है तेरे ध्यान में क्या"

 शे'र में तेज़ी से बदलते रिश्तों के प्रतिमान की पड़ताल कराते हैं कि कैसे इस सो कॉल्ड 'आधुनिक' समाज में रिश्ते और संबंध पानी पर उठे बुलबुले जैसे क्षणभंगुर हैं ।

बाहुबलियों के हाथों दीन-हीनों पर अत्याचार कोई नई बात नहीं रही है;  नई बात तो उनका हृदय-परिवर्तन होना है । ज़िया साहब का एक शे'र देखें—

 " लहर ख़ुद पर है पशेमान के उसकी ज़द में

  नन्हे हाथों से बना रेत का घर आ गया है "

बालपन किसी घटना को पहले से सोचकर क्रियान्वित नहीं करता । वह तो गाहे-बगाहे वे कार्य कर डालता है जिसे बड़े चाह कर भी नहीं कर पाते । ज़िया ज़मीर कुछ यूँ फ़रमाते हैं— 

"किसी बच्चे से पिंजरा खुल गया है

 परिंदों   की   रिहाई   हो  रही  है"

फ़िराक़ गोरखपुरी के अनुसार, "ग़ज़ल वह बाँसुरी है; जिसे ज़िंदगी की हलचल में हमने कहीं खो दिया था और जिसे ग़ज़ल का शायर फिर कहीं से ढूँढ लाता है और जिसकी लय सुनकर भगवान की आँखों में भी इंसान के लिए मोहब्बत के आँसू आ जाते हैं ।" प्रेम की प्रासंगिकता कभी समाप्त नहीं हो सकती । बाइबिल में अन्यत्र वर्णित है— "यदि मैं मनुष्य और स्वर्ग दूतों की बोलियाँ बोलूँ और प्रेम न रखूँ; तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल और झनझनाती हुई झांझ हूँ ।"  ज़िया ज़मीर की शायरी इसी प्रेम का ख़ाक़ा खींचती है और वे कहते हैं—

 "देख कर तुमको खिलने लगते हैं

  तुम गुलों से भी बोलती हो क्या "

.............

"इश्क़ में सोच समझ कर नहीं चलते साईं

जिस तरफ़ उसने बुलाया था, उधर जाना था"

हालांकि उन्होंने मोहब्बत में हदें क़तई पार नहीं कीं और स्वीकार किया—

"हमने जुनूने- इश्क़ में कुफ़्र ज़रा नहीं किया

 उससे मोहब्बतें तो कीं, उसको ख़ुदा नहीं किया"

आज हालांकि मानवीय संवेदना में कहीं न कहीं एक अनपेक्षित कमी आई है ।  हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं । एक शायर भी इससे अछूता नहीं रह सकता । उसकी शायरी हालात का आईना बन जाती है । इस बाबत मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद का शे'र मुलाहिज़ा करें—

 "कुुछ ग़मे-जानां, कुछ ग़मे-दौरां दोनों मेरी ज़ात के नाम 

 एक ग़ज़ल मंसूब है उससे एक ग़ज़ल हालात के नाम"

ज़िया का मन भी आहत होकर कहता है—

“कुछ दुश्मनों की आँख में आँसू भी हैं; 

मगर कुछ दोस्त सिर्फ लाश दबा देने आए हैं“

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"पत्थर मार के चौराहे पर एक औरत को मार दिया

 सबने मिलकर फिर ये सोचा उसने गलती क्या की थी"

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"दानाओं ने की दानाई, मूंद ली आँखें 

चौराहे पर क़त्ल हुआ पागल ने देखा"

आले अहमद सुरूर ग़ज़ल को 'इबादत, इशारत और अदा की कला' कहते हैं । ज़िया ज़मीर इस रवायत को बड़े सलीक़े से निभाते चलते हैं ।  अपने भोले माशूक़ से ज़िया साहब की मीठी शिकायत है—

 "तुमने जो किताबों के हवाले किए जानां

वे फूल तो बालों में सजाने के लिए थे"

ख़्यालात की नाज़ुकी  उनके यहाँ कहीं-कहीं इतनी 'सटल' हो जाती है कि क़ारी के मुँह से सिर्फ़ "वाह" निकलता है—

  "मेरे हाथों की ख़राशों  से न ज़ख़्मी हो जाए

   मोर के पंख से इस बार छुआ है उसको"

शायरी का फ़न ऐसा है कि उसमें सोच की नूतनता, शिल्प की कसावट और 'अरूज़  का पालन सभी तत्वों का समावेश होना अत्यावश्यक है अन्यथा कोई भी तख़्लीक़ सतही लगेगी । जिया ज़मीर फ़रमाते हैं—

"शौक यारों को बहुत क़ाफ़िया पैमाई का है

 मस'अला है तो फ़क़त शे'र में गहराई का है"

विचारों के सतहीपन को वे सिरे से नकारते हैं— 

"शे'र जिसमें लहू दिल का शामिल ना हो

वो लिखूँ भी नहीं, वो पढ़ूँ  भी नहीं "

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  “चौंकाने की ख़ातिर ही अगर शे'र कहूँगा

 तख़्लीक़ फ़क़त क़ाफ़िया पैमाई बनेगी"

प्रोफ़ेसर वसीम बरेलवी का इस संबंध में एक शे'र कितना प्रासंगिक है—

 " कभी लफ़्ज़ों से ग़द्दारी न करना

   ग़ज़ल पढ़ना अदाकारी न करना"

आज जब रिश्तो को बनाए रखने की जद्दोजहद में हम सभी लगे हैं।  ऐसे में अना का पर्दा हर बार हमारे संबंधों की चमक पर पड़कर उसे फीका कर देना चाहता है; जबकि रिश्तों को बचाए, बनाए और सजाए रखना उतना कठिन भी नहीं है। बक़ौल ज़िया—

"बस एक बात से शिकवे तमाम होते हैं

बस एक बार गले से लगाना होता है"

ग़ज़लों के बाद यदि नज़्मों पर दृष्टि डालें तो वे भी बेहद असरदार और अर्थपूर्ण बन पड़ी हैं । क्योंकि नज़्मों में अपने विचारों से पाठक को अवगत कराने के लिए अपेक्षाकृत अधिक फैलाव मिल जाता है; इसलिए इस विधा का भी अपना अलग रंग है । 'बिटिया' शीर्षक नज़्म में कन्या भ्रूण हत्या की त्रासदी को बड़ी असरपज़ीरी से उन्होंने हमारे सामने रखा है । 'राष्ट्रपिता' नज़्म महात्मा गांधी के योगदान व बलिदान पर सवालिया और मज़ाक़िया निशान लगाने वाली भेड़चाल को बड़ी संजीदगी से व्यक्त करती है । मेट्रोपॉलिटन, कॉस्मोपॉलिटन, मेगा सिटी, स्मार्ट सिटी इत्यादि विशेषणों से सुसज्जित आधुनिक शह्रों में गुम हुई भारतीयता की असली पहचान हमारी भूल-भुलैया नुमा, टेढ़ी-मेढ़ी पतली गलियों और उनमें बसने वाले मासूम भारत का सजीव अंकन करती है नज़्म 'गलियाँ' ।  'चेन पुलिंग' बतकही शैली में रची गई एक और नज़्म है जो सुखांत पर समाप्त होती है; तो 'कॉफ़ी' शीर्षक नज़्म नाकाम और बेमंज़िल प्यार की ट्रेजेडी को बयान करती है । 'माँ का होना' नज़्म में ज़िया ज़मीर दुनिया की हर माँ के प्रति श्रद्धावनत होते हुए उसके संघर्षों और आपबीती को ख़ूबसूरत ढंग से व्यक्त करते हैं ।

   ग़ज़लों, नज़्मों की भांति ज़िया साहब के दोहों में भी एक गहरी प्रभावशीलता है । निदा फ़ाज़ली, मंसूर उस्मानी, वसीम बरेलवी, शहरयार, बेकल उत्साही आदि मॉडर्न शो'अरा ने भी दोहों में बख़ूबी जौहर आज़माए हैं और ज़िया भी इन सुख़नवरों की राह पर पूरी तन्मयता से बढ़ते नज़र आते हैं— 

"इतनी वहशत इश्क़ में होती है ऐ यार

 कच्ची मिट्टी के घड़े से हो दरिया पार"


 "उसकी आँखों में दिखा सात झील का आब

  चेह्रा पढ़ कर यह लगा पढ़ ली एक किताब"


"जाने कब किस याद का करना हो नुक़सान

जलता रखता हूँ सदा दिल का आतिशदान"


 एक माहिये में कितनी सरलता से वे इतनी भावपूर्ण बात कह जाते हैं—

   "आँसू जैसा बहना

     कितना मुश्किल है

    उन आँखों में रहना"

ज़िया ज़मीर ने भाषायी दुरूहता को अपने शिल्प के आड़े नहीं आने दिया । इन सभी 'फूलों' को हमारे नाम करते हुए उन्होंने यह बख़ूबी ध्यान रखा है कि इनकी गंध हमें भरमा न दे । बल्कि इनमें भारतीयता और उसकी सादगी की भीनी-भीनी ख़ुशबू महकती रहे । आशय यह है कि भाषा छिटपुट जगहों को छोड़कर आमफ़हम ही रखी गई है ।प्रचलित अंग्रेज़ी  शब्दों इंसुलिन, इंटेलिजेंसी,  सॉरी,  मैसेज,  लैम्प-पोस्ट, रिंग,  सिंगल, जाम, टेडी आदि के स्वाभाविक प्रयोग से उन्होंने परहेज़ नहीं किया । वहीं चाबी, पर्ची, चर्ख़ी, काई, टापू, चांदना जैसे ग़ज़ल के लिए 'स्ट्रेंजर' माने जाने वाले शब्दों का इस्तेमाल भी सुनियोजित ढंग से वे कर गए हैं । तत्सम शब्दों गर्जन, नयन, संस्कृति, पुण्य आदि भी सहजता से निभाए गए हैं ।  ज़िया ज़मीर के यहाँ मुहावरों /लोकोक्तियों का प्रयोग भी कहीं-कहीं मिल जाता है । कान पर जूं न रेंगना, डूबते को तिनके का सहारा, जान पर बन आना आदि का इस्तेमाल प्रशंसनीय है।

संक्षेप में, कहा जा सकता है कि ज़िया ज़मीर ने जो ये फूल अपने संग्रह में सजाए हैं; उनकी ख़ुशबू पाठक के ज़ह्न और दिल में कब इतनी गहराई तक उतर जाती है उसे ख़ुद पता नहीं चलता । संग्रहणीय संग्रह के लिए वे निश्चित तौर पर बधाई के पात्र हैं और 'ये सब फूल हमारे नाम' करने के लिए भी ।



कृति-
‘ये सब फूल तुम्हारे नाम’ (ग़ज़ल-संग्रह)  ग़ज़लकार - ज़िया ज़मीर                                        प्रकाशक - गुंजन प्रकाशन, मुरादाबाद। मोबाइल-9927376877

प्रकाशन वर्ष - 2022  

मूल्य - 200₹

समीक्षक -अंकित गुप्ता 'अंक'

सूर्यनगर, निकट कृष्णा पब्लिक इंटर कॉलिज, 

लाइनपार, मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल नंबर- 9759526650