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रविवार, 23 जनवरी 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग के ग्यारह नवगीत । ये सभी नवगीत हमने लिए हैं वर्ष 2013 में पार्थ प्रकाशन मुरादाबाद द्वारा प्रकाशित उनके नवगीत संग्रह 'अपने-अपने सूरज' से । इस संग्रह में उनके 51 नवगीत हैं। संग्रह की भूमिका लिखी है जितेन्द्र जौहर ने ।


 (1)

बूढ़े-बड़े सभी

हर घर में

अब केवल सामान हैं

बहू-पोतियाँ

पोते कहते

जीवन में व्यवधान हैं


खाँस रही है

दादी, दादा

अदरक चटा रहे हैं

अम्मा को

बापू बुखार का

सीरप पिला रहे हैं


वर्षों से जो

रखे-संवारे

चूर हुए अरमान हैं


हीरोहोंडा

मोटर साइकिल

एक्टिवा स्कूटर

पोते यारों के संग

घूमे

कार इनोवा लेकर


कमर दर्द से

बाबा पीड़ित

जो घर की पहिचान हैं


मात-पिता से

बतियाने का

बेटे समय न पाते

सारी दुनिया घूमे

उनके पास नहीं आ पाते


फिर भी

मात-पिता को बेटे

सचमुच प्राण समान है


आज आदमीयत

रोती है 

फूट-फूट हर घर में

बूढ़ी छड़ी

हाथ में है बस

कोई नहीं सफर में


मौत सत्य है

सब कुछ झूठा

हम इससे अनजान हैं


(2)

कुनबे के अब अमन चैन पर

गिरती रोज़

बिजलियाँ

पच्छिम की

सभ्यता-संस्कृति

ओढ़े फिरें युवतियाँ


चकिया-चूल्हे

वासन-भाँडे

आपस में लड़ते हैं

आँगन-आँगन

देहरी-द्वारे

सुबह-साँझ भिड़ते हैं


कमरों में है हाथापाई

रोयें देख

खिड़कियां


भाई-भाई में अनबन है 

पिता-पुत्र में झगड़े 

माँ-बेटी

भाई-बहिना में

मनमुटाव हैं तगडे़


घर के धंधे चौपट 

गायब सुख की 

सभी तितलियाँ


उगीं नागफनियाँ

खेतों में

अरु खलियान धतूरे

बिटिया के 

व्याहन के सपने

फिर रह गये अधूरे


ऐसी दशा देख 

बरसातीं 

आंसू स्याम बदलियाँ


(3)

सुबह दुपहरी साँझ रात है 

चन्दा है दिनमान है 

घर खलियान खेत चौपालें 

गली-गली श्मशान है


लोकतंत्र है सब स्वतंत्र हैं 

न्यायपालिका बूढ़ी 

घर है एक कई चूल्हे हैं 

आँगन-आँगन दूरी


जिधर देखते अंधकार है 

डरावना सुनसान है


रक्षक ही भक्षक है अब तो 

कैसे लाज बचेगी 

तुलसी की अनछुई जिन्दगी 

कैसे हाय! कटेगी!


सभी जगह अब पसर रही है

गिद्धों की मुस्कान है


अपने-अपने सूरज 

अपने-अपने हाथों लेकर 

हमने हैं तय किए रास्ते 

खुद अपने ले देकर


गीता और बाइबिल के संग 

झुठला दिया कुरान है


गिद्ध-भेडिए स्वान-सियार मिल

 लाशें बाँट रहे हैं 

 खून सने लोथड़े माँस के

 दाँतों काट रहे हैं


चिडियों के घोसलों बीच में 

बाज बना मेहमान है

खरगोशों के भोले बच्चे 

थर-थर काँप रहे हैं

रेशम के बिस्तर में 

सोये काले साँप रहे हैं


बारूदी टीले पर सचमुच 

बैठा हुआ जहान है


(4)

खून चाहिए

इन्हें किसी का 

हो इनका या उनका


खूनी कुत्ते

छिपे हुए हैं

फूलों की हर क्यारी

हाथ लिए तेजाब

सुलगती ज्वाला

की चिन्गारी


निर्दयता से

रौंद रहे

बूटों से तिनका-तिनका


बच्चों के

हाथों में दें यह

बम्ब और हथगोले

जला रहे हैं

शहर-बस्तियाँ

धरती थर-थर डोले


इनका कोई

नहीं जहाँ में 

कहें जिसे यह अपना


फगवा गाते

गेहूँ बालें

लिए मटर की कलियाँ

बध करते

उनको जिनके

हाथों फूलों की डलियाँ


मौत सामने

खड़ी देख

सूरज का माथा ठनका


मानव सूरज

बीच बनाते

हैं ये रोज सुरंगें

मनुज देह को

काट बिगाड़ें

जैसे लाल पतंगे


प्यार प्रीति की दुनिया 

इनके बीच

हो गयी तिनका


(5)

गर्म ख़ून से

अपनी धरती

लाल हो रही है अब


स्नेह- प्यार के

झरने सूखे

कहीं नहीं है मंगल

साँसों की

चहुँ ओर बिछा

सन्नाटा काला जंगल


धरती माता

अपना धीरज

रोज खो रही है अब


किए मजहबों ने

पैदा हैं

ईश्वर अपने-अपने

दिखा रहे सारी जनता को

रंग-बिरंगे

सपने


लहुलुहान मानवता

यह सब देख 

रो रही है अब


मजहब का परिधान पहिन 

नर-गिद्ध भेड़िए आते 

अपने को

मानवता का

सच्चा हमदर्द बताते


मानव-सम्बन्धों की हत्या 

रोज हो रही है अब


(6)

मचा हुआ कोहराम तितलियों में

भोले अलियों में

रखी हुयी चिनगारी है अब 

फूलों में कलियों में


धुवाँ धमाकों चीखों हल्लों 

हंगामों से अपनी

भरा हुआ माहौल धरा का

 फैल रही बद अमनी


त्राहि-त्राहि- सी मची हुयी है 

धरा-गगन गलियों में


मरी तितलियों की लाशें 

टकराकर तेज पवन में 

रेत-रेत हो-हो गिरती 

जंगल उपवन आँगन में


तैर रहे हैं जीवित मुर्दे 

लाल-लाल नदियों में


शोर-शराबा आगजनी 

होती निर्मम हत्यायें 

चढ़ी हुयी आतंकी धनुषों

की है प्रत्यंचायें


ऐसा देखा गया नहीं है 

अब तक तो सदियों में


(7)

मुझे न अब सूरज की किरनों से 

बतियाना भाये 

मेरे बाहर-भीतर कोई 

तीखी अगनि जलाए


पीपल के पेड़ों पर उल्लू 

और गिद्ध बैठे हैं 

जीवित मुर्दे द्वारे-द्वारे 

दस्तक दे लेटे हैं।


सरसों के खेतों से अब 

कोई आवाज़ न आये


बदबूदार सड़ी मानव 

लाशें तैरें नदियों में 

मक्खी-मच्छर रहे भिनभिना 

हैं संकरी गलियों में


उतर रही खामोशी है 

झीना परिधान सजाये


मानवीय गुण स्नेह दया 

करुणा दुलार बीते हैं 

श्रद्धा प्यार मुहब्बत से 

अब सबके मन रीते हैं


जहरीली चल रही हवायें 

कली-फूल मुर्झाये


(8)

प्रजातंत्र में सभी घटक

सरकार बन गये हैं 

शासन के अधिकारी तो

परिवार बन गये हैं


राम -खुदा बन्दी हैं अब तो 

मन्दिर-मस्जिद में 

जली जा रही सारी दुनिया 

आतंकी जिद में


मानव के कर्तव्य सभी 

अधिकार बन गये हैं


वर्ण–भेद का सूरज जग में 

अब भी चमक रहा 

मानवीय संदेश एक पर 

निर्णय विमत रहा


धर्म सभी उपकार छोड़ 

हथियार बन गये हैं


गांधी और मंडेला दोनों 

बैठे हैं गुमसुम

मानवता के दुश्मन फिर भी

नाच रहे छमछम


हृदय हमारे फूल नहीं

तलवार बन गए हैं


(9)

नील झील में जब जब सूरज 

रो-रो डूबा है 

धुँधलाये क्षितिजों पर हमने

रंग सजाए हैं


दुख को भुला सपन सतरंगी

जीवन में बोये

दहशतगर्त हवाओं के

काले चेहरे धोये


बारूदों की छाया में भी 

फूल खिलाये हैं


वन-उपवन के फूल-फूल में

जब यौवन काँपा  

गंध चन्दनी के घर में

विषधर ने आँगन नापा


काले सन्नाटे के हमने

पंख जलाए हैं


जब-जब भी बिगड़ैल मौत की

 छायायें पसरें 

 आसमान में तड़प बिजलियाँ 

 धरती पर उतरें


सागर से मोती चुन-चुन

 झोली भर लाये हैं


उदासीन गीले आँगन का 

मन बहलाया है --

वीरानेपन की छत पर चढ़ 

शोर मचाया हैं


इन्द्रधनुष से गीत रंगीले 

हमने गाये हैं


(10)

कदम-कदम खानापूरी 

चहुँ ओर दिखावा है

सभी ओर मरुथल

पानी तो

सिर्फ छलावा है


पत्ते नुचे

टहनियाँ टूटी

कोपल बची नहीं

चैती कजरी के

स्वर मीठे

मिलते नहीं कहीं


कलियों की

मुस्कानों को

दहशत ने बाँधा है


बैसवारी की

घनी छाँव में

आँखें रोती हैं.

मिलते नहीं

गुलाबों की

पाँखों पर मोती हैं


नये भोर में

लम्हा-लम्हा

झरता लावा है।


पंख तितलियों के

चिड़ियों के

और पतंगों के

गली-गली

उड़ते हैं चिथड़े

मानव-अंगों के


फूलों की

लाशें ढो ढो कर 

दुखता काँधा है


गर्म हवाओं ने

जब-जब भी

झुलसाये सावन 

बाग-खेत

खलियान पोखरे

रेत हुए आँगन


हमने

औरों का दुःख अपने 

सुख से साधा है


(11)

शब्द-शब्द टूटा-फूटा 

अर्थ-अर्थ लंगड़ा लूला है

कैसे मन के 

गीत सुनायें!


आंगन -आंगन द्वारे-द्वारे

नफरत का अंकुर फूटा है

नभ ऊचें उड़ते-उड़ते 

गौरैया का पर टूटा है

 सूना-सूना जीवन अपना 

 फिर कैसे

घर बार सजायें


बादल जैसी भीगी साँसे 

भीतर चुभे दर्द की फाँसें 

बदल-बदल मौसम हत्यारे 

इस दुखिया जीवन में खांसें


चाट रही दीमक रिश्तों को 

कैसे मन की

बिथा बतायें


छाती फटी ताल की नदिया 

बार-बार हिलकी भरती है 

धूल नहाते मरी चिरैया 

सचमुच पानी से डरती है


चौखट-चौखट दहशत बैठी

कैसे 

चैती-सावन गायें


पड़े रेत पर शंख चीखते 

बार-बार पानी-पानी हैं 

इन्द्रधनुष हो गये सयाने 

रंग सबके सब बेमानी हैं


कण्ठ-कण्ठ सांपों की माला

कैसे

सोया बीन जगायें


::::::::प्रस्तुति:::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822





गुरुवार, 20 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग की पुण्यतिथि पर " मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" द्वारा उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा ---


      वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा  "ज़मीं खा गयी आसमां कैसे कैसे" शीर्षक के तहत 17 अगस्त 2020 को साहित्यकार ब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग की पुण्यतिथि पर उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर चर्चा की गई। चर्चा दो दिन चली। सबसे पहले ग्रुप के सदस्य योगेंद्र वर्मा व्योम ने ब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग के प्रतिनिधि गीत पटल पर रखे।

चर्चा शुरू करते हुए प्रख्यात नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि गौतम जी ने पर्याप्त मात्रा में लेखन किया है और छांदस कविता के क्षेत्र में प्रचलित लगभग सभी छंद विधानों में अपनी लेखनी चलाई है। ऐसी सामर्थ्य पूर्ण प्रतिभा विरल लोगों में ही होती है ।
वरिष्ठ कवि शचीन्द्र भटनागर ने कहा कि अनुराग जी आयु में लगभग दो वर्ष बड़े थे मुझसे, पर घर हो या मंच, मुझे भाईसाहब कहकर ही संबोधित करते थे। ग़ज़ब की बेबाकी थी उनमें, पर विनम्र भी इतने कि यदि किसी से उनका मन आहत हुआ वर्णन करते समय आंखें गीली हो जाती थीं। गौतम जी ने जो लिखा वह विपुलता और गुणवत्ता दोनों ही दृष्टियों से श्रेष्ठ है। उनकी सृजन क्षमता ग़ज़ब की थी। उनके स्वयं के शब्दों में वह एक दिन में एक दर्जन से अधिक नवगीत लिख देते थे।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि अनुराग जी की रचनाओं में जीवन का बहुआयामी चित्रण मिलता है। अपने समय में बहुत परिश्रम से समाज में अपनी पहचान बनाई थी। ग्राम्य परिवेश और नगरीय वातावरण दोनों को बारीकी से देखना उन्हें भली-भांति आता था। साहित्य में मुरादाबाद में उनका स्थान रिक्त है। रचनाकर्म के प्रति अब वैसा समर्पण अलभ्य है।
वरिष्ठ व्यंग कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि अनुराग जी एक बड़े साहित्यकार थे।उनका लेखन लोकगान भी था और लोकधाम भी।उनका सृजन अपनी मिट्टी की सौंधी गंध से पूर्णतः महका हुआ है।लोक की चिंताओं के साथ-साथ लोक कल्याण की भावना भी उनके साहित्य में भरी पड़ी है। असमानता, असंगति,विसंगति और समाज की समरसता को उन्होंने गाया है।समाज को उन्होंने गहराई से पढ़ कर  उसके लिए जो गढ़ा है वह कविता और समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
मशहूर शायरा डॉ  मीना नक़वी ने कहा कि स्मृति शेष कविता के मूर्धन्य समर्थ महाकवि अनुराग 'गौतम' जी को  अनेकानेक  गोष्ठियों में सुनने का गौरव प्राप्त हो चुका है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इनकी रचनाओं का आकाश बहुत विस्तृत है जो अपनी धरती को एक क्षण नहीं भूलता। समर्थ छाँदस रचनायें उन्हें साहित्य में विशिष्ट स्थान दिलाती हैं।
वरिष्ठ कवियत्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा कि गीतों के सरस अनवरत निर्झर झरने की प्रकृति के कवि गौतम जी एक कोमल ह्र्दय के कवि थे। उनके गीतों में श्रंगार रस की अभिव्यक्ति अधिक रही, चाहें संयोग हो अथवा वियोग रस। जीवन की कष्ट वेदनाओं की अपरमित गाथा उनकी गजलों, उनके गीतों में भरी पड़ी है। गौतम जी ने अपने दुख को भी बहुत संवेदनशीलता के साथ उन्मुक्त भाव से व्यक्त किया।
वरिष्ठ कवि आनंद कुमार गौरव का दर्पण मेरे गाँव का और चाँदनी जैसी अमर कृतियों के कीर्तिशेष काव्य साधक के रचनाकर्म पर टिप्पणी के रूप में कहना था कि "बना घरौंदे नम माटी के मन की गागर भर लेने दो"और "मनमुटाव से बुझे पड़े हैं मन के सभी अलाव" जैसे सहजतह स्वीकार्य अनुभावों के साथ"दादी अम्मा की खटिया पर टूटी छप्पर छाँव, कैसे आज लौटकर आऊँ फिर पुरुखों के गाँव" लिखकर विवशता और पीड़ा अभिव्यक्ति, स्वयं प्रमाणित कर देती है,कि सत्य की कडुवाहट को पीना और उसी सत्य के साथ जीना ही, सहज, सात्विक, अनुशासनप्रिय, अनुराग गौतम जी को सदा प्रिय रहा।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि स्मृति शेष ब्रजभूषण सिंह गौतम 'अनुराग' जी के सम्पूर्ण साहित्य में ग्रामीण जीवन से लेकर महानगर की कोलाहल भरी जिंदगी तक के विभिन्न चित्र मिलते हैं। उनके गीतों में बहुआयामी प्रेम और विरह वेदना के स्वर है तो सामाजिक विषमताओं और विवशता की पीड़ा भी। जहां वह नायिका के रूप सौंदर्य का बखान करते हुए श्रंगार रस से परिपूर्ण गीत रचते हैं तो वहीं उनकी कलम आतंकवाद और राजनीति के छल प्रपंच के ऊपर भी चलती है। वह अपने आसपास होने वाली घटनाओं को भी अनदेखा नहीं करते। नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों के पतन पर भी चिंता व्यक्त करते हैं।
मशहूर नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कहा कि अनुराग जी का कृतित्व निश्चित रूप से अनूठा है, अनौखा है, विलक्षण है इसलिए उनके कृतित्व की तुलना किसी भी अन्य देशी अथवा विदेशी व्यक्तित्व के कृतित्व से करना किसी भी दृष्टि से कदापि उचित नहीं होगा। उनके समग्र सृजन का यद्यपि अभी तक उस स्तर पर मूल्यांकन भले ही न हो पाया हो जिस स्तर के मूल्यांकन का सुपात्र उनका रचनाकर्म है, किन्तु यह अकाट्य सत्य है कि ‘अनुराग’ जी का समग्र सृजन हिन्दी साहित्य के इतिहास में मील का पत्थर है और भावी पीढ़ियों के लिए पथ-प्रदर्शक भी।
समीक्षक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि मेरे नज़दीक अनुराग जी को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि उनकी जो कृतियां अभी तक अप्रकाशित हैं उन्हें प्रकाशित कराया जाए ताकि एक अनमोल धरोहर हमारे सामने आ सके। एक गुज़ारिश यह भी है कि ऐसे महान स्मृतिशेष व्यक्ति के संबंध में दो चार लेख इस तरह के आने चाहिएं जिससे नई पीढ़ी उन से भली-भांति परिचित हो जाए। जैसे उस व्यक्ति के प्रारम्भिक रचना कर्म पर लिखा जाए, जिन परिस्थितियों में जीवन गुजा़रा और साहित्य सर्जन के लिए जो परिश्रम किया उस पर लिखा जाए। तत्पश्चात कृतियों और रचनाओं पर चर्चा हो ताकि नई पीढ़ी को हौसला मिल सके और उसका मार्गदर्शन हो सके और यह मालूम हो सके कि ऐसे व्यक्ति को यहां तक पहुंचने में कितनी मेहनत करनी पड़ी है।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि श्री ब्रजभूषण सिंह गौतम 'अनुराग' अन्तस की वेदना को जीवंत कर देने वाले दुर्लभ रचनाकार थे। अपने मनमोहक गीतों के माध्यम से मुरादाबाद के साहित्यिक इतिहास में अमर 'अनुराग' जी ऐसे गीतकार हुए हैं, जिनकी रचनाऐं हृदय को भीतर तक स्पर्श करती हैं। जो वेदना उनकी रचनाओं के केन्द्र में रही, उसे उन्होंने स्वयं भी अवश्य अनुभव किया होगा, जिया होगा।
युवा कवियत्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि स्मृति शेष बृजभूषण सिंह गौतम अनुराग की विलक्षण प्रतिभा होने का ही साक्ष्य है क्योंकि प्रतिस्पर्धा में कुछ पंक्तियांँ, कुछ कविताएंं तो लिखी जा सकती हैं पर अस्वस्थता के बावजूद 190 छंद के मुकाबले 218 छंद लिखना वह भी कला और भाव पक्ष की स्तरीयता के साथ, यह कार्य किसी सामान्य लेखक के बूते का नहीं है। तभी तो वह मेरे लिए कौतूहल जगाते व्यक्तित्व ही हैं। उनका समर्पण भाव और सिद्धहस्तता ही उनके लेखन कौशल की वह विशेषता है जो आमतौर पर आज के समय के लेखकों में दुर्लभ है।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि आदरणीय अनुराग जी के गीतों को पढ़कर सहज ही उनकी उत्कृष्ट लेखनी का अंदाज़ा लग जाता है। गीतों में प्रेम में मिलन की आस है तो विरह की वेदना भी है। सामाजिक विद्रूपताओं के विरुद्ध खड़ा होने वाला प्रतिनिधि कवि है तो प्रकृति का चितेरा, पुष्प की सुगंध और कांटों की चुभन को महसूस करने वाला कोमल ह्रदयी भी। शहरी जीवन से उकता कर गांव जाकर नीम की छाँव और मिट्टी की ख़ुशबू लेने की उत्कंठा भी है। हर रचना में सुंदर शब्दों से मनभावन वाक्य संयोजन किया गया है। इनको पढ़ना काव्य की कक्षा में अच्छा समय व्यतीत करने जैसा रहा।
युवा कवियत्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि अनुराग जी ने शायद समाज में आयी संबंधों की रिक्तता, स्वार्थपरता ,शहरीकरण, गाँवों का शहरों को पलायन, प्रकृति से दूरी का दर्द, सब कुछ तो समेट लिया है। दर्द के बावज़ूद कहीं न कहीं मानव मन में सहज भाव से उपजने वाले श्रृंगारिक भावों को भी बड़ी ही सुंदरता से जीवंत करता उनके  गीत बरबस ही प्रकृति व पुरूष के परस्पर आकर्षण को सजीव करते प्रतीत होते हैं। प्रकृति का सजीव चित्रण,दर्द की पीड़ा ,श्रृंगार की चमक ,समाज में अनुशासनहीनता व विद्ररुपता पर चलती पैनी कलम से सम्भवतः कहीं कुछ छुटा ही नहीं है।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि बृजभूषण सिंह गौतम अनुराग जी मुरादाबाद के वरिष्ठ कवि हैं। जिन्होंने बहुत लिखा है। गौतम जी के यहां प्रकृति से जुड़े शब्दों और प्रकृति से संबंधित गीत और रचनाएं अधिक देखने को मिलती हैं। जिसमें उन्होंने अपने कवि को व्यक्त किया है। इसके अलावा उनके यहां कुछ ऐसे शब्द भी हैं जो पुनरावृत हो कर आते हैं और खास तौर पर जिनका प्रयोग बाल साहित्य में अधिक होता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि शब्दों को प्रयोग करने में उन्हें किसी तरह की झिझक नहीं थी चाहे वह साहित्यिक शब्द हो या ना हो इससे यह साबित होता है कि उनके पास शब्दों का बहुत अधिक भंडार था। यहां प्रस्तुत गीतों में बहाव भी है और भाव भी है। मुझे गौतम जी के कुछ गीत अच्छे लगे।

:::;;;:प्रस्तुति;;;;;;;;
ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब
मो०8755681225