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शुक्रवार, 28 मई 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार इंदु रानी की कहानी ----महान पिता


 "रेलवे की मामूली सी प्राइवेट नौकरी और माँ-पिता से लेकर छोटे भाई,बीमार बड़े भाई के बेटे व खुद के तीन बच्चों की पूरी पूरी जिम्मेदारी ऐसे में एक पिता के नाते किस तरह मैं घर की गाड़ी चला पा रहा हूँ ये तो सिर्फ ईश्वर या मेरा दिल जानता है तनु की माँ.."! एक पिता कराहते हुए पास में सर दबाती अपनी पत्नी से। 

"हां जी वो तो मैं खुद समझ रही हूँ आप खुद के लिए कम और औरों के लिए ज्यादा जी रहे हैं और अब बिटिया भी ग्रेजुएशन कर चुकी उसका मन आगे की पढ़ाई को है..!"पत्नी बोली।

"हां पर मुझे  तो जिम्मेदारी निपटाने की सूझ रही बिटिया को दायरे मे रह कर सामान्य सी पढ़ाई करने की सलाह देते हुए उसे समझा बुझा दिया है मैंने । आखिर, अपने दोनों लड़कों को भी तो लैब टेक्नीशियन और एक्सरा टेक्नीशियन बनाना है और दहेज के लिए धन भी एकत्र करना है फिर छोटी बेटी भी बड़ी हो रही ,बहुत बहुत जिम्मेदारी हैं भाग्यवान"!

बिटिया पल्ले की आड़ से सुन कर मायूस हो गयी...

       पर बिटिया को तो धुन थी हट के पढ़ाई करने की सो उसने चुपके से एक पत्र अपने चाचा को लिखा जिसकी अंतिम पंक्तियां थी- "आप कृपा कर मुझ पर भरोसा रखिये,पढ़ाई पूरी होने पर जब जॉब लगेगी तो मैं सब उधार चुका दूँगी.."! तभी इत्तेफाक से उसके पिता उसे लिखते हुए पकड़ लेते हैं और हाथों से ले कर पढ़ने लगते हैं। उनकी आँख डबडबा जाती है। मन भर आता है।  खुद को सम्भालते हुए वो पत्र  हाथ में मोड़ते हुए रख लेते और शाम को पत्नी से सारे वाकये का जिक्र करते हुए कह उठते हैं - "जब इतनी ही लगन है हमारी बिटिया को तो क्यों न हम दहेज के सारे पैसे रुपए बिटिया की खुद की ही पढ़ाई पर ही लगा के देखें,अरे क्या पता वो हमारे इन्हीं दोनों लड़कों सी निकले। भाग्यवान, कम से कम उसका दिल तो रह जाएगा..!चल बाबली कोई बात नहीं भले हम एक टाइम की सब्जी दोनों टाइम चला लेंगे पर बच्चों के शौक तो पूरे हो सकेंगे..."! 

पिता ने बस यही सोच बिटिया पे भरोसा करते हुए अपने से बहुत दूर दाखिला करवा के छात्रावास में रहने और पढ़ने लिखने को छोड़ दिया और खुद जिम्मेदारियों में दब कर एक टाइम की सब्जी दोनों टाइम पत्नी के साथ खुशी-खुशी बाँट के जीता रहा। इस सोच के साथ के यही बच्चे  तो आगे चल के सहारा होंगे। भले अंत समय कुछ पास हो न हो बच्चों की ये दौलत तो कम से कम होगी।

✍️ इंदु रानी, मुरादाबाद

गुरुवार, 4 जून 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार इंदु रानी की कहानी ----आपदा और मजदूर


आज पैदल चलते चलते सफर का तीसरा दिन था ।मजदूर भीमा और उसकी पत्नी अपने बच्चों के साथ थक कर चूर हुए जा रहे थे तभी अचानक कुछ दूरी पर एक पेड़ दिखा जिसके चबूतरे पर कुछ पल रुक कर आराम करने की इच्छा से वे रुक गए।
भीमा ने एक उम्मीद से अपने परिवार को देखा कि बस अब ज्यादा नही सिर्फ कुछ दिन और फिर हम अपने घर होंगे अपने सब लोगों के बीच और उसकी पत्नी ने पसीना पोंछ कर मुस्कुराते हुए मानो हामी भरी।
ठीक तभी बड़ी बेटी पूछ पड़ी "माँ और अभी कितने दिन? कब तक चलेंगे?"
माँ ने सर पर हाथ फेरते हुए बोला अब ज्यादा नही बेटा आने ही वाले हैं..चल कुछ खा ले और पूरी अचार थैले से निकाल उसे दे दिया।
पूरा परिवार वहीं लेट गया बच्चे सो गए तभी बच्चों पर तरस खाती माँ ने बुदबुदाया- "इतने मासूम बच्चे तीन दिन से संग बराबर चल रहे का कोई और चारा नही है का? सब तो बतियाई रहे सरकार बहुत मद्दद कर रही इस आपदा मा...राहत कोष मा सब लोगन से मदद आई रहे...का हमरे ख़ातिन कुछू नाही.."।
  "अरी पगली तुमका का मालूम बेफालतू बक-बक करती, जिसके लिए है उसके लिए ना, हमार तुम्हार  जैसन को थोड़ी...। रही तो थी ना वहां भी इतने दिन लॉक डाउन मा? कितना भर पेट खाने मिला? कितनी मदद मिली? आखिर परेशानी तो उहां भी झेले ना...। जा आराम कर फिर चलना है....लगी दिमाग खराब करने.."।
बेचारी करवट ले कर चुप-चाप निरुत्तर हो पड़ी रही पर दिमाग मे घूम रहा था वो सब समय जब वो हर जरूरी और छोटी-छोटी चीज को तरसती हुई गाय-भैस का गोबर पानी कर गाँव मे जीवन बिताया करती और पति से संग शहर ले जाने को लड़ती थी। चलो एक बार फिर वही सब पर कम से कम ये दिन तो न देखने पड़ेंगे के अपने संग बच्चे भी मुसीबत झेलें। रह लूँगी मैं फिर सर्फ, साबुन,शैम्पू,नून,तेल लकड़ियां की परेशानी को झेलती हुई पर मेरे बालक तो कम से कम खेल-खा के खुश रहेंगे। सोचते सोचते ही वक़्त बीत गया और अब फिर से चलने की तैयारी।

सफर का पाँचवा दिन और मंजिल बहुत करीब पर बच्चों के पैरों की मांसपेशियां अकड़ जाने के कारण वे ठीक से चल पाने मे असमर्थ थे भीमा बच्चों को हौसला देता गया हिम्मत रखने की पर छोटा बेटा दर्द से बेचैन हो रोने लगा। बच्चे की परेशानी ज्यादा होती देख वह अटैची,गठरिया साइड मे रख कर वहीं आनन-फानन मे बैठ कर हाथों से उसके पैरों की अकड़ जल्दी-जल्दी मसल कर ठीक करने के उद्देश्य से लग गया और सबका ध्यान रोने के कारण उसकी ओर ही रहा इतने में पीछे से आती चार पहिया वाहन भीमा को टक्कर मारती चली गयी और सबका ध्यान अचानक भंग हो गया। भीमा बुरी तरह जख्मी ठोकर खाए दूर पड़ा था उसकी पत्नी चीख गयी,बार बार उसके सर को गोद मे उठा मदद को चिल्लाती पुकारती रही पर पूरा भारत बंद था और सियासतें अंधी बहरी आपात कालीन स्थिती के चलते।😢😢


✍️ इन्दु रानी
मुरादाबाद 244001

गुरुवार, 14 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार इंदु रानी की लघुकथा ------ मजदूर


आज बहुत दिन बाद बुधिया को जाम का नशा चढ़ा मन ही मन सोच कर परेशान "आखिर महामारी के चलते इस लॉक डाउन मा जब सब कुछ बन्द हुई गवा तो फिर ई ससुरा मदिरालय खुल कइसे गवा... खैर कउनो बात नाही कुछ तो खुला "। आनन्दsss
         सुबह नशा उतरा और बुधिया फिर परेशान," जब कंस्ट्रक्शन का काम चल ही नही रहा तो हम का करेंगे यहां भिखारी की तरह पड़े पड़े। ना ढंग का भर पेट खाना न रहना ऊपर से शहर का अइसन बुरा व्यवहार हमको निकाल दिया खोली से.... का ऊ मकान मालकिन अनपढ़ है,मालूम नही का लॉक डाउन चल रहा। कैसे अब हम घर वालों को पैसा भेजेंगे कैसे मुनवा की पढ़ाई हुई है। काहें नाही समझत ई लोग काहे नाही समझत ई सरकार। नाही-नाही अब हमका जाई के पड़ी हम ना इहां रहिबै "।
ठीक तभी अपने मन की उधेड़ बुन मे बुधिया को पता चला कि जो मजदूर परिवार उनके साथ लाचारी मे फसा हुआ था उस पर एक और मुसीबत गिर पड़ी। वो मजदूर जो भोजन की व्यवस्था करने खाने का सामान जुटाने गया था। देश मे आपातकालीन स्थिती के चलते मृत लौटा उस मजदूर परिवार की औरत रोए जा रही थी दोनों बच्चो को सुबह से कुछ भी खाने नही मिला था। उसके मजदूर आदमी का अब कैसे अंतिम संस्कार किया जाए ये भी समझ नही आ रहा था। बुधिया ने जैसे तैसे पैसे मांग कर जुटाए और अंतिम संस्कार कर भोजन सामग्री उस परिवार तक ला कर दी। और फैसला किया चाहे भले गाँव मे ही कम खा-पहन जी लेंगे पर शहर के इस अमानवीय वातावरण मे नही लौटेंगे। बेशक कम मे रहेंगे पर अपने परिवार वालों को ऐसे हाल में नही छोड़ेंगे।
अब विभिन्न तरीकों से मजदूरों द्वारा सरकार से गुहार लगाई जा रही थी कि उन्हें उनके घर भिजवा दिया जाए उनकी यह गुहार सरकार तक पहुँची और उन सबको उनके गांव तक पहुँचाने के लिए ट्रेन भी चली पर यहां भी बुधिया परेशान उसे जाने के लिए स्पेशल चार्ज देना था जो के उसके पास नही था तभी उसकी मदद संग के सभी मजदूरों ने मिल कर की और वह अपने स्टेशन पर पहुँचा पर अफसोस वहां भी किस्मत का मारा बुधिया धक्के ही खाने मजबूर। गाँव वालों ने पूरा गाँव घेर कर बन्द कर डाला ताकी कोई बाहर का गाँव मे न आए और गाँव महामारी से सुरक्षित रहे। बुधिया को फिर परिवार से दूर वहां के सेनेटाइज किये हुए स्थान पर क्वारन्टाईन हो कर रहना पड़ा और अब तक बुधिया महामारी से संक्रमित हो चला था जिसको प्रशासन की गाड़ी ले जा चुकी थी और इलाज हेतु जिला अस्पताल  में रखा गया जहां उसकी हालत बिगड़ती गई अंततः उसे अब छूना परिवार से मिलना सब मना हो गया और परिवार से मिलने कुछ कहने की सारी तंमन्नाए उसके साथ स्वाहा हो लीं।
रहा तो सिर्फ बुधिया का परिवार जो उस के सहारे ही पल रहा था....

✍️ इन्दु रानी
मुरादाबाद

गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार इंदु रानी की लघुकथा --- लॉक डाउन


"बाहर मत जा पागल लॉक डाउन हो गया है मुसीबत खड़ी हो जाएगी....." मैना नन्ही चिड़ी पर जोर-जोर से चिल्लाए जा रही थी।
                              "नहीमाँssssss....आज देखो न आसमान कितना स्वच्छ है, कहीं भी कोई ध्वनिप्रदूषण नही है, कोई धुआं नही है, इंसान तन-मन से कितने अनुशासित हो गए हैं, कोई हम पशु-पक्षियों को मारने की सोच भी नही रहा, आज जी भर के उड़ लेने दो ना माँ, दिल बहुत खुश है ये वातावरण देख के माँ, मैं नही आऊँगी"।
               "अरे ये सुनती तो है नही,अब इस पागल को कौन समझाए के ये इन्सानी लोग हैं भला कब तक एसे रहने वाले हैं हम सब की जान तो तब तक तक ही सलामत है जब तक ये कोरोना.."।

✍️इन्दु रानी