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रविवार, 7 सितंबर 2025

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघु कहानी.... खूबसूरती

 


"मैडम जी हमारा काम निपट गया अब हम घर जा रहे हैं। " कस्तूरी ने अपना झोला उठाते हुए कहा। "हाँ हाँ..चली जाना...थोड़ी देर सुस्ता तो ले। " मंदाकिनी ने टीवी का रिमोट उठाते हुए कहा। कोई सीरियल चल रहा था शायद जिसमें बला की खूबसूरत लड़कियाँ अभिनय कर रही थीं। 

कस्तूरी नीचे जमीन पर ही बैठने लगी तो मंदाकिनी ने डाँटते हुए कहा। "अरे उपर ही बैठ जा...जब देखो तब गिल्ट फील कराती रहती है...यह मजबूरी है नहीं तो कभी कोई बाई नहीं लगाती   । " मंदाकिनी ने अपने पेट को पकड़ते हुए कहा। आठ महीने की पेट से थी वह। 

"अरे मैडम ऐसा क्यों कह रही हो ?...आपने तो हम जैसे असहाय गरीब लोगों को काम देकर हम पर उपकार ही किया है। " कस्तूरी की आवाज में एहसान का पुट था। "मैडम जी एक बात पूछे?" कस्तूरी ने डरते हुए पूछा। 

"हाँ हां...दस पूछ। " मंदाकिनी ने किशमिश मुँह में रखते हुए कहा। 

"जे हीरोइन कितनी सुंदर होती हैं न!" कस्तूरी ने मासूमियत से कहा। 

"अरे सब मेकअप का कमाल है...इतनी ज्यादा भी खूबसूरत नहीं होती ये। " मंदाकिनी ने हँसते हुए कहा। 

"क्या मेकअप से हम भी खूबसूरत लग सकते हैं?" कस्तूरी ने फिर से सवाल किया। 

उसकी बात सुनकर मंदाकिनी आश्चर्य से उसका मुँह देखती रह गई। 

"ठीक है मैडम जी हम चलते हैं...बच्चे इंतजार कर रहे होंगे...बिटिया के एग्जाम होने वाले हैं। " कहती हुई कस्तूरी एकदम से उठ खड़ी हुई। 

मंदाकिनी मुस्करा भर दी। उसके जाते ही मंदाकिनी ने एक गहरी सांस ली और सोचने लगी। "खूबसूरती की कितनी तुच्छ सी परिभाषा हमारे इस समाज द्वारा निर्धारित कर दी गई है।"

"गोरा रंग और स्त्रियों के तीखे नाक नक्श। " यानी शारीरिक सुंदरता। मन की सुंदरता को तो जैसे बिल्कुल इस समाज ने दरकिनार ही कर दिया है। "मंदाकिनी ने गहरी सांस ली और जोर से सिर हिलाया जैसे कह रही हो कि कुछ भी नहीं हो सकता इस समाज का । वह न चाहते हुए भी खुद को रिलेक्स करने की लिए कोई पुराना सा लोक गीत गुनगुनाने लगी ...और उस दिन की घटना याद आ गई। 

दरवाजे की घंटी बजते ही उसने दरवाजा खोला तो सामने साँवरी सलोनी सी कोई पच्चीस साल की लड़की खड़ी थी। 

"मैडम नमस्ते। " उसने झेंपते हुए कहा। 

"नमस्ते...क्या चाहिए?"

"मैडम काम..!"

"काम तो कोई नहीं है अभी....वैसे क्या काम कर लेती हो?"

"मैडम झाड़ू पोछा  ...बर्तन....!"

"खाना बना लेती हो?"

"हाँ हाँ...बना लेती हूँ। "

"ठीक है...कल से आ जाना...। "

"धन्यवाद मैडम....आपने मेरी बहुत बड़ी समस्या हल कर दी। " उसने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा। 

अगले दिन वह काम पर आई...मंदाकिनी ने पति जतिन को जब इसके बारे में बताया तो वह भी खुश हुआ क्योंकि उसकी घर बैठे ही बहुत बड़ी समस्या हल जो हो गई थी। 

खाना तो इतना लजीज बनाया कस्तूरी ने कि पूरा घर ही कस्तूरी सी महक से खिल उठा। 

"घर में कौन कौन है तुम्हारे?"

"मम्मी पापा और दो बच्चे मेरे!"

"और पति?" मंदाकिनी ने जिज्ञासावश पूछ लिया। 

"वे हमारे साथ नहीं रहते। " उसने संक्षिप्त उत्तर दिया। 

मंदाकिनी ने आगे पूछना उचित नहीं समझा। 

"मैडम पूछा नहीं आपने...मुझे उन्होंने क्यों छोड़ दिया?" उसका प्रश्न सुनकर मंदाकिनी चौंक गई। 

"मैं बदसूरत हूँ न...मेरी मोटी नाक...बड़े दांत और यह क़ाली चमडी़। " कहते हुए वह रुआंसी हो गई। 

तथाकथित खूबसूरती से वह कोसों दूर जरूर थी लेकिन उसके भीतर एक कुशल स्त्री के सभी गुण मौजूद थे जो कि उसके पति को शायद नजर ही नहीं आये। कितनी शालीनता है इसके व्यवहार में और कर्तव्यनिष्ठा भी। अपने बच्चों को अपने दम पर पाल रही है। 

तभी डोर की घंटी बजी....दरवाजा खोला तो सामने कस्तूरी खड़ी थी। 

"अरे तुम फिर आ गई!"

"हाँ....कल न मेरी बेटी का जन्म दिन है...इसलिए थोड़ा लेट हो जाऊंगी मैडम। " उसने खुशी से चहकते हुए कहा। 

"ठीक है कस्तूरी...बस ऐसे ही खिली खिली रहा करो कस्तूरी सी...और हाँ....तुम्हें किसी क्रीम और मेकअप की जरूरत नहीं है....तुम बहुत खूबसूरत हो...खुद की नजर से देखा करो खुद को। "मंदाकिनी ने मुस्कराते हुए कहा। 

" हां मैडम जी...तभी तो जिंदा हैं...नहीं तो कब के खाक में मिल गए होते। "उसने हँसते हुए जवाब दिया। 

 मंदाकिनी की सारी शंकायें और डर धरे के धरे रह गए। उसको बहुत खुशी हुई। 


✍️राशि सिंह 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


बुधवार, 25 जून 2025

मुरादाबाद की संस्था जैमिनी साहित्य फाउंडेशन की ओर से 22 जून 2025 को आयोजित समारोह में डॉ मनोज रस्तोगी के संपादन में प्रकाशित डॉ मुहम्मद जावेद की कृति किस्से कहानियां का लोकार्पण



 मुरादाबाद की संस्था जैमिनी साहित्य फाउंडेशन की ओर से महाराजा हरिश्चन्द्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय में रविवार 22 जून 2025 को आयोजित समारोह में युवा साहित्यकार डॉ मुहम्मद जावेद की कृति किस्से कहानियां (लोक कथाएं) का लोकार्पण किया गया। इस कृति का संपादन वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी ने किया है। 

 फाउंडेशन के संस्थापक स्मृतिशेष डॉ विश्व कोअवतार जैमिनी के  चित्र पर माल्यार्पण से आरम्भ समारोह की अध्यक्षता करते हुए सोशल एक्टिविस्ट डॉ राकेश रफीक ने कहा लोक कथाओं के माध्यम से बच्चे अपनी संस्कृति और समाज से समरसता कायम कर लेते थे। आज मैकाले शिक्षा पद्धति और संयुक्त परिवारों के विघटन ने बच्चों को अपनी सांस्कृतिक, सामाजिक परंपराओं और विरासत से वंचित कर दिया है।

   मुख्य अतिथि बाल संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ विशेष गुप्ता ने कहा लोक कथाओं के माध्यम से जहां हम अपनी संस्कृति, सभ्यता और जीवन मूल्यों से परिचित होते हैं वहीं वह हमें संस्कारित भी करती हैं।

     जैमिनी साहित्य फाउंडेशन की संरक्षिका आशा जैमिनी ने कहा लोक कथाओं का उद्‌देश्य मनोरंजन करना कभी नहीं रहा। इनके माध्यम से अनुभवों का आदान प्रदान, मानवता की शिक्षा, सद्कर्म  का महत्व, अनुचित कार्यों से दूर रहने का संदेश दिया जाता रहा है।

     फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ काव्य सौरभ जैमिनी ने कहा लोककथाएं हमें मनोरंजन के साथ साथ आत्म सम्मान, साहस और पारस्परिक सद्‌‌भावना के साथ जीवन जीने की कला सिखाती हैं।

        कृति के संपादक डॉ मनोज रस्तोगी ने संचालन करते हुए कहा लालपुर गंगवारी  गांव में जन्में डॉ मुहम्मद जावेद की यह कृति जैमिनी साहित्य फाउंडेशन द्वारा युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच लखनऊ के सहयोग से प्रकाशित हुई है। इस कृति में पचास शिक्षाप्रद लोककथाएं है। स्मृतिशेष विश्व अवतार जैमिनी को समर्पित यह कृति न सिर्फ विस्मृत हो चुकीं लोककथाओं को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य करेगी बल्कि उन्हें संरक्षित करने में भी योगदान देगी। 

     जे. एल. एम, इंटर कालेज कुंदरकी के पूर्व प्रधानाचार्य मुहम्मद इरफान ने कहा  बच्चों को संस्कारित करने में लोक कथाओं का सर्वाधिक योगदान है। डॉ मुजाहिद फराज ने कहा इंटरनेट के युग में  किस्से-कहानियों से नई पीढ़ी का दूर हो जाना चिंताजनक है। योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कहा आज माता पिता की व्यस्तता और मोबाइल फोन ने बच्चों को लोक कथाओं से दूर कर दिया है। फरहत अली खान ने बाल पत्रिकाओं और बाल साहित्य से बच्चों को जोड़ने पर जोर दिया। उर्दू साहित्य शोध केंद्र के संस्थापक डॉ मुहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा डॉ जावेद ने सरल भाषा और रोचक शैली में लोक कथाओं को प्रस्तुत किया है।

   समारोह में डॉ प्रेमवती उपाध्याय, डॉ राकेश जैसवाल, हरि प्रकाश शर्मा, प्रो रियाजउद्दीन, हाजी अतीक, अजीजुर्रहिम, डॉ राकेश चक्र, डॉ पूनम बंसल, मुजाहिद चौधरी, धवल दीक्षित,मुशाहिद पाशा, दुष्यंत बाबा, असद मौलाई, मनोज मनु, कौशल क्रांतिकारी, डॉ कृष्ण कुमार नाज, डॉ रामानंद बाजपेई, जाबिर हुसैन,राशिद हुसैन, डॉ उजैर, मुहम्मद शावेज़ आदि ने भी विचार व्यक्त किए।  आभार डॉ  मुहम्मद जावेद ने व्यक्त किया।
























































































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