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✍️🎤 डॉ. मधु चतुर्वेदी
गजरौला गैस एजेंसी चौपला,गजरौला
जिला अमरोहा 244235
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9837003888
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✍️🎤 डॉ. मधु चतुर्वेदी
गजरौला गैस एजेंसी चौपला,गजरौला
जिला अमरोहा 244235
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9837003888
महिला डाक्टर ने कामिनी को अगले माह के आखिर में शिशु पैदा होने की संभावित तिथि दी थी। डिलीवरी के लिए उसने शहर के सबसे बडे और मँहगे अस्पताल का चयन कर एडवांस धन जमा कर दिया और नियमित डाक्टरी सलाह ले रही थी। शिशु के जन्म पर दोनों पति-पत्नी जन्मोत्सव मनाने के अभी से ऊंचे-ऊंचे स्वप्न संजोने में लगे थे। उसको बाहर घूमने-फिरने के लिए सख्ती से मना किया गया था लेकिन आज तो अपने भाई के 'वैवाहिक सालगिरह' के समारोह में उसको हर हाल में जाना था। उसने इसकी पहले से सब तैयारी कर रखी थी। उसे क्या पहनना है? रजत क्या पहनेगा? इस बारे में वह बडी उत्सुक थी । भाई के लिए महंगे से महंगे उपहार भी खरीद लिये थे। बिना मेहनत की कमाई हुई धन-दौलत से खुशियां खरीदने का जब कोई अभ्यस्त हो जाता हैं तब उसका ज्ञान व विवेक मर जाता है। कामिनी भी अपने मायके में अपनी शान-शौकत का दिखावा करने हेतु अति उत्साहित थी।
रजत को आफिस से आने में देर होती जा रही थी। घडी़ की सुई के साथ-साथ कामिनी का पारा भी बढ़ता जा रहा था। उसके चेहरे पर क्रोध व चिंता के लक्षण एक साथ दिखने लगे थे। वह कितनी बार रजत को फोन कर चुकी थी लेकिन फोन मिल कर ही नहीं दे रहा था। कुछ देर बाद फोन भी बंद जाने लगा। अब तो कामिनी की परेशानी और अधिक बढ़ गई। वह कुछ समझ नहीं पा रही थी कि क्या किया जाय।
वह बार-बार दरवाजे और खिडकिंयों में झांकती कभी बैठ कर फोन लगाने की कोशिश करती । अचानक उसके मोबाइल की घंटी बजी। उसने तेज कदमों से जाकर डाइनिंग टेबिल पर रखा अपना फोन उठाया।
... हेलो। दूसरी तरफ से एक कड़कदार आवाज आई।
....आप रजत की पत्नी बोल रहीं है क्या? वह लडखडाती हुए बोली ... हां..आप कौन? ....देखिये मैं पुलिस आफीसर बोल रहा हूं। हमने अभी-अभी आपके पति रजत को 50000 रुपये रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार किया है...... यह सुनते ही उसके हाथ से मोबाइल छूट कर गिर पडा।एक झटके में कामिनी औंधे मुंह फर्श पर आ गई-
✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र '
श्रीकृष्ण कालोनी, चन्द्र नगर,
मुरादाबाद244001
उत्तर प्रदेश, भारत
कलकल करके बहता जाता।
सूरज के रंगों से मिलकर
बन जाता रंगों का संगम,
कभी न रुकता बाधाओं से
राहें हों कितनी भी दुर्गम,
हर पत्थर को भेद-भेदकर
आगे चलता , वेग बढ़ाता ।
कोमल जल है फिर भी देखो
दूर हटाता पत्थर को भी,
मृदुता का आदर करने का
पाठ पढ़ाता भूधर को भी,
जल की मृदुतामय दृढ़ता को
भूधर भी तो शीश झुकाता ।
हे नन्हे-प्यारे मानव तुम
दृढ़ विश्वास बनाए रखना ,
कष्ट पड़ें चाहे कितने भी
मानवता से कभी न हटना ,
पक्का- नेक इरादा ही तो
हर मुश्किल को सरल बनाता ।
✍️ ओंकार सिंह 'ओंकार'
1-बी-241 बुद्धि विहार ,मझोला,
मुरादाबाद 244103
उत्तर प्रदेश, भारत
............................................
✍️मनोज मानव
बिजनौर
उत्तर प्रदेश, भारत
......................................
✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल 9997615451
...........................................
बोर्नबीटा का दूध पिला दो।
बिस्कुट-चाकलेट दिला दो।।
लंच-डिनर खूब खिला दो।
खिला-पिला इसे हिला लो।।
वरना ये उत्पात करेगी
खाकर चूहे पेट भरेगी
हो ना जाये यह मांसाहारी।।
बिल्ली मौसी लगती प्यारी।।
✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र'
चन्द्र नगर, मुरादाबाद
...........................…...........
✍️कमाल ज़ैदी "वफ़ा"
सिरसी (संभल)
मोबाइल फोन 9456031926
...........................................
नवरात्रि के दिन है तो क्या
कूटू-मेवा खीर मिलेगी
किचिन में रखती साफ-सफाई
खूब मिलेगी दूध मलाई ।
दादी दादा ,मम्मी डैडी
या कोई हों अंकल आंटी
माता के है दिन ये सारे
गाएं भजन सभी मिल सारे
महिमा न्यारी जग माता की
बोलें सब मिल जय माता की ।
✍️ उमाकान्त गुप्त
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
......…......................................
✍️अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
..........................................
चुन चुन तिनका लाए चिड़िया
सुंदर नीड़ बनाए चिड़िया
उड़ती फिरती कसरत करती
हिल-मिल प्यार बढ़ाए चिड़िया ।
सुबह सवेरे आए चिड़िया
मीठा गीत सुनाए चिड़िया
राजू जगो भोर है प्यारी
सबके मन को भाए चिड़िया ।
✍️डॉ रीता सिंह
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
........................................
✍️ मीनाक्षी वर्मा
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
.........................................
कैसे उसे मनाए दीदी।
वैसे इतना प्यारा देखो,
जब चाहे घर पर आ जाये।
अगर समय हो तो जी भर कर,
भेजा भी सबका खा जाये।
मगर व्यस्तता भी जीवन में,
क्या उसको समझाए दीदी।
नटखट भैया गुस्से में है,
कैसे उसे मनाए दीदी।
खैर खबर लेने की सबकी,
जब-जब उसने फ़ोन घुमाया।
भागा उल्टे पैरों देखो,
मायूसी का दंभी साया।
बैठा भूखा गाल फुलाकर,
क्या अब खुद भी खाये दीदी।
नटखट भैया गुस्से में है,
कैसे उसे मनाए दीदी।
लो जी एक तरीका सुझा,
बैठक सबकी आज जमाएं।
सुनना और सुनाना भी हो,
नाचें कूदें खाएं-गाएं।
अगर न मुस्काया फिर भी वो,
सोच-सोच घबराए दीदी।
नटखट भैया गुस्से में है,
कैसे उसे मनाए दीदी।
✍️ राजीव प्रखर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
हमारे जंगल में भी
अभिव्यक्ति की है आजादी
लेकिन कोई किसी पर
अकारण नहीं चिल्लाता है
ना किसी का अपमान करता है
ना किसी की भावनाओं का
मजाक उड़ाता है
ये हमारे
जंगल की संस्कृति है
सारे जानवरों में
इसे स्वेच्छा से
अपनाने की प्रवृति है
जब कोई इंसान
अभिव्यक्ति की आजादी
के नाम पर
दूसरे के चरित्र पर
कीचड़ मलता है
हमको हमारा
जंगली जानवर होना
बहुत अच्छा लगता है।
✍️ डॉ पुनीत कुमार
T 2/505 आकाश रेजीडेंसी
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
कृष्णम् बच्चों को सदा, करती लाड़ दुलार।।1।।
मातृशक्ति का जो करें, जन, मन से गुणगान।
चाकर बन उनके रहें, सुख के सब सामान।।2।।
भक्तों को जगदंबिका, होती कोमल फूल।
दुष्टों को चुभती मगर, जैसे घातक शूल।।3।।
पूछ रहा माँ आपसे, मैं बालक निष्पाप।
किन कर्मों के भोगता, जन्म-जन्म अभिशाप।।4।।
दया करो माँ शारदे, फटी बिवाई पाँव।
उखड़ी-उखड़ी साँस है, दूर बहुत है गाँव।।5।।
माँ तुमने सब कुछ दिया, किए बहुत उपकार।
नमन आपको मैं लिखूँ, अगणित बारम्बार।।6।।
क्योंकर माँ के सामने, करनी ऊँची बात।
माता को सब कुछ पता, कैसी किस की जात।।7।।
आँसू मेरे कर रहे, आज मुझे बदनाम।
आँचल में देकर शरण, हर लो कष्ट तमाम।।8।।
प्राणों तक की भी कभी, माँग न पाए भीख।
कृष्णम् को दे दीजिए, माँ इतनी सी सीख।।9।।
✍️त्यागी अशोका कृष्णम्
कुरकावली, संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
नेपाल जाते समय अपने घर से निकलने पर मुझे ऐसे लग रहा था जैसे कोई परीक्षा देने जाना है दिमाग में यही चल रहा था कि कोई जरूरी सामान छूट न जाए। दूर जगह और दूसरा देश। अपने देश की तस्वीर दूसरे देश में प्रस्तुत जो करनी थी चाहे कविता के रूप में, चाहे पहनावे के रूप में या फिर सभ्यता के रूप में। रास्ते में ही पता चला कि हमारा मुख्य हथियार यानि 'कलम' हमसे घर पर ही छूट चुका था, हालांकि यह कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी, कोई भी पैन पांच-दस रूपए का कहीं से भी खरीद सकता था लेकिन पता नहीं क्यों ,मन में निश्चय कर लिया कि यह पूरी यात्रा बिना कलम के ही करूंगा।
हमें अलीगढ़ से जोगबनी तक ट्रेन से जाना था और ट्रेन जाने का समय सुबह 9:30 था ,हम कहीं लेट न हो जाएं इसलिए रामपुर के वरिष्ठ गीतकार श्रद्धेय शिवकुमार चंदन जी को अपने घर पर रात्रि में ही बुला लिया था। 16मार्च की सुबह 6:00 बजे से पहले ही,हम लोगों ने बहजोई के ख्याति प्राप्त साहित्यकार श्री दीपक गोस्वामी चिराग जी का दरवाजा खटखटाया। हो सकता है उनकी श्रीमती जी ने कहा भी हो कि यह लोग न खुद सोएंगे, न हमें सोने देंगे, क्योंकि सुबह की नींद का तो आनन्द ही कुछ और होता है।
कुछ ही देर में साहित्य के हम तीनों सिपाही अलीगढ़ की बस में सवार हुए और समय से पहले स्टेशन पहुंच गए। 'भारतीय रेलवे लेटलतीफी व्यवस्था' का सम्मान करते हुए, ट्रेन निर्धारित समय से मात्र 20 मिनट लेट थी। रेंगती हुई ट्रेन में हम लोग सवार हो गए और ट्रेन झूंमती-झांमती जोगबनी को रवाना हुई। कहीं अंगड़ाई लेती नजर आती तो कहीं स्पीड पकड़ लेती और जहां उसे याद आ जाता कि उसका नाम एक्सप्रेस भी है तो अपने नाम का सम्मान करते हुए थोड़ा और तेज चल जाती। प्रयागराज ,पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन , मीरजापुर आदि होती हुई ट्रेन 25 घंटे की यात्रा पूरी करके जोगबनी स्टेशन पहुंच गई ।बॉर्डर पर ऊंचा तिरंगा देखकर हमारा सीना फूलता महसूस हुआ और फिर शीघ्र ही हमने नेपाल देश की सीमा में कदम रखा, रिक्शे से विराटनगर (महानगरपालिका) शहर पहुंचे।
हमें नेपाल भारत साहित्य महोत्सव में प्रतिभाग करना था, सीधे कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे। श्री रामजानकी मंदिर के पास होटल में कमरा नंबर 13 में, हमारे ठहरने की व्यवस्था थी। तरोताजा होने के बाद हम लोग, श्री रामजानकी मन्दिर में दर्शन करने के उपरान्त, कार्यक्रम में पहुंचे। प्रोफ़ेसर देवी पन्थी जी अपना उद्बोधन दे रहे थे, देखते ही हमारे नाम पुकारे और रुद्राक्ष माला पहना कर व तिलक लगाकर हम सबका स्वागत किया। इस उद्घाटन सत्र में "हिन्दी और नेपाली भाषा का जुड़ाव" विषय पर चर्चा चल रही थी, वक्ताओं ने अपने-अपने सारगर्भित विचार रखे। भारत के सिक्किम, मिजोरम, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, असम, मध्य प्रदेश आदि राज्यों के अतिरिक्त नेपाल के दूरदराज क्षेत्रों से भी साहित्यकार इस महोत्सव में पहुंचे हुए थे। वक्ताओं में कुछ जमकर नेपाली भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे और भारतीय वक्ता अपने-अपने क्षेत्रों के इतिहास से जोड़कर, हिन्दी भाषा में धाराप्रवाह बोल रहे थे। हाॅल में सूनापन बिल्कुल नहीं था, क्योंकि जब नेपाली बोलते तो नेपाली भाषा के चहेते चहकने लगते, और जब कोई हिन्दी भाषी बोलते तो हिन्दी प्रेमी लोग तालियां बजाते। कुछ ऐसे भी थे जो दोनों भाषाओं पर अधिकार और ज्ञान रखते, तो वे करतल ध्वनि से दोनों ही भाषाओं का सम्मान बढ़ा देते।
प्रथम दिवस में ही काफी कलमकारों ने अपनी रचनाएं पढ़ीं, अनूठा माहौल बना हुआ था, इतने में ही संचालक महोदय ने मेरे नाम को बोलते हुए, मंच पर अपना स्थान लेने की बात कही, लेकिन हमें अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था क्योंकि पूरा हॉल उच्च स्तर के वरिष्ठ कलमकारों से भरा हुआ था,न जाने किस दृष्टिकोण से उन्होंने मुझे मंचस्थ करने का फैसला लिया होगा? खैर हम मंच की ओर बढ़ चले और अपनी जगह ले ली। इतने में ही काठमांडू से आए त्रिभुवन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एवं वरिष्ठ गज़लकार डॉ घनश्याम परिश्रमी जी को मंच पर आमंत्रित किया गया, मैं उनसे पूर्व परिचित था, वे मेरे पास ही सटकर बैठ गए। अब उस सत्र में अपनी प्रस्तुति देने वालों को सम्मानित करने का जिम्मा, मंच पर मौजूद लोगों का ही था। अंत में मंच के लोगों के बोलने का क्रम शुरू हुआ, जिसमें हमने भी अपने कुछ मुक्तक और छोटी सी रचना प्रस्तुत की ,जिसमें भारतीय संस्कृति को पटल पर रखने की पूरी कोशिश की गई थी। सदन का भरपूर स्नेह मिला और फिर नेपाल-भारत साहित्य महोत्सव के आयोजक मंडल ने अंगवस्त्र ,प्रमाण पत्र व स्मृति चिन्ह भेंट किए। तमाम वरिष्ठ साहित्यकारों ने अपने गीत,गजल ,हास्य-व्यंग्य आदि पेश किए ,कुछ युवा कलमकार भी थे, ऐसे खुशनुमा माहौल में साहित्य की लहलहाती फसल देखकर, मेरा मन बहुत प्रफुल्लित था।
दूसरे दिन नाश्ते के बाद कार्यक्रम विधिवत प्रारंभ हुआ जिसमें बहजोई के वरिष्ठ साहित्यकार श्री दीपक गोस्वामी चिराग और रामपुर के जाने-माने गीतकार श्री शिवकुमार चंदन जी को पूरे मान-सम्मान से मंचस्थ किया गया था,मुझे लगा कि नेपाल में पहुंचकर मेरा भारत सिंहासन पर विराजमान है। चारु विधा के जनक प्रोफेसर देवी पन्थी जी संचालन कर रहे थे ,नेपाल और भारत के विभिन्न राज्यों से कुछ अतिथि साहित्यकारों को भी मंचित किया गया और फिर सुनने-सुनाने का क्रम चलता रहा, खूबसूरत माहौल का आनंद लेने के बाद दूसरे दिन के कार्यक्रम को संपन्न किया गया।
शाम को बाजार घूमने निकल पड़े क्योंकि मेरा एकादशी का व्रत था,ऊर्जा हेतु कुछ फल या मिठाई खरीदने थे। बाजार में हर जगह भारतीय और नेपाली मुद्रा के लिए दिमाग लगाना पड़ता और फिर वहां महंगाई सिर चढ़कर बोल रही थी, फलों के भाव सुनकर भूख अपने आप विदा हो गई फिर भी कुछ संतरे ,अंगूर और मिठाई खाकर व्रत पूर्ण किया। मैंने महसूस किया कि स्थानीय लोगों में कठोरता बिल्कुल नहीं थी और न ही कोई चालाकी। कई सरल-हृदय लोगों से संपर्क हुआ उनमें हमारे प्रति सम्मान की भावना झलकती, यानि वहां के अधिकांश लोग दिल के धनी थे। एक जगह जरूर ऐसा मौका आया, जहां रिक्शेवाले ने हमें बाहरी समझते हुए, चार सौ की जगह एक हजार रूपये भाड़ा मांगा, वहां हमने भी स्वयं को विदेशी स्वीकार करने में देर नहीं लगाई।
हिन्दी भाषा के चलन को लेकर वाकई नेपाल देश की भूरि-भूरि प्रशंसा करनी होगी कि वहां पर आज भी मुद्रा पर हिन्दी अंकों का चलन है और वाहनों पर लगी नंबर प्लेट पर नम्बरों को, देवनागरी लिपि में ही लिखा जाता है,इस विषय पर मैं कहूंगा कि भारत सरकार को भी यह शिक्षा लेनी चाहिए ताकि हिन्दी को बढ़ावा दिया जा सके।
तीसरे दिवस नाश्ते में पतली-पतली करारी जलेबी और चने की दाल के साथ कचौड़ी का लुफ्त लेने के बाद कार्यक्रम हॉल में पहुंचे, आज समापन-सत्र था और हम "क्या खोया-क्या पाया" जैसे विषय पर , मन-मन ही मंथन कर रहे थे। देखा तो क्रान्तिकारी साहित्य अकादमी के संस्थापक व कार्यक्रम संयोजक डॉ विजय पंडित आज का संचालन कर रहे थे। सदन में, नेपाली और हिंदी भाषा में लिखी पुस्तकों का, एक-दूसरी भाषा में अनुवाद को लेकर चर्चा जारी थी। प्रश्नोत्तर चल रहे थे, समस्याओं के समाधान हेतु मंच पर डॉ घनश्याम परिश्रमी जी के साथ ही हिन्दी और नेपाली भाषा के विशेषज्ञ मौजूद थे। धीरे-धीरे कार्यक्रम समापन की ओर बढ़ता चल रहा था,अंत में सभी एक दूसरे को विदा करने और मोबाइल नंबर का आदान-प्रदान करने में व्यस्त दिखाई पड़े।
हमने कार्यक्रम के उपरान्त शहर के निकट, राजा विराट के महल के भग्नावशेष देखने का निश्चय किया, जो उस स्थान से 8 किलोमीटर की दूरी पर, यादव जाति बाहुल्य गांव भेड़ियारी में था। गांव पहुंचने पर देखा कि चारदीवारी में खंडहरनुमा अस्त-व्यस्त टीला और पड़ोस में माता भुवनेश्वरी का मंदिर और विराटेश्वर महादेव का मंदिर बना था। इस स्थान के संरक्षक श्री कमल किशोर यादव जी से मुलाकात हुई जिन्होंने निजी स्तर पर कुछ पुराने अवशेष एकत्रित कर रखे थे, जैसे - नापतोल के बाट, प्राचीन शिलालेख, सिलौटा, मूर्तियां, हाथी दांत का पासा, तांबे व अन्य धातु के सिक्के, मूंगा रत्न आदि। सरकार की उदासीनता पर यादव जी खासे नाराज दिखे हालांकि कुछ समय पहले ही प्रशासन ने राजा विराट के नाम पर संग्रहालय और उसके सामने चौक में राजा विराट की प्रतिमा स्थापित की है।
बताया जाता है कि जोगबनी का प्राचीन नाम सुंदरवन था जिसमें ऋषियों के तपस्या करने के कारण इसका नाम बाद में योगमुनि, तत्पश्चात जोगबनी पड़ा। यहीं पर प्राचीन काल में एक शमी का वृक्ष था जिस पर पांडवों ने अपने अस्त्र-शस्त्र छुपा दिए थे और दुर्योधन से छुपते हुए, मत्स्य देश के राजा विराट के महल में नाम परिवर्तन कर, अज्ञातवास का समय व्यतीत किया था जिसमें युधिष्ठिर ने अपना नाम कंक रखा और एक ब्राह्मण सलाहकार एवं मंत्री की भूमिका में रहे, भीम ने अपना नाम बल्लभ रखकर रसोई का कार्य संभाला, अर्जुन ने बृहन्नला नाम रखकर राजा के यहां संगीत-नृत्य सिखाया, नकुल ने अपना नाम ग्रन्थीक रखते हुए अश्वसेवक के रूप में कार्य किया, सहदेव ने तंत्रिपाल नाम से चरवाहा बनकर गायों की जिम्मेदारी ली और द्रौपदी ने सैरन्द्री नाम रखकर रानी के श्रृंगार करने का काम किया।
इस तरह पांडवों ने एक वर्ष तक अपने को छुपाए रखा, वहीं के लोगों ने बताया कि भारत-नेपाल सीमा क्षेत्र पर ही कीचक वध पोखर है जो कि आज भी अस्तित्व में है, जिनके संरक्षण हेतु प्रयासों की बहुत कमी है। खैर! इतिहास सहेजे रखने के लिए, ऐसे स्थलों को सुरक्षित रखना चाहिए।
अब हमारी ट्रेन का समय हो चला था हम लोग तुरन्त होटल पहुंचे और फिर "अलविदा नेपाल" कहने का समय आ गया। जैसे ही नेपाल बॉर्डर से निकलकर भारत की सीमा पर कदम रखे, दिल में कुछ अलग-सी खुशी और हलचल होने लगी। रात्रि में लहराता ऊंचा तिरंगा देखकर सीना चौड़ा हो गया और मन में अविस्मरणीय उत्साह। गाड़ी ठीक समय पर चल पड़ी, हम लोग पूरी रात और दिनभर सफर करने के बाद रात में एक बजे, इस यात्रा के परम सहयोगी कवि दीपक गोस्वामी जी के घर पहुंचकर, रात्रि विश्राम किया और सुबह दही-पराठे खाकर अपने घर को निकल पड़े।
घर पहुंचते-पहुंचते मैं भरपूर थक चुका था, हल्की झपकीं में भी रेलगाड़ी के झोंकें पीछा नहीं छोड़ रहे थे, फिर भी इतना अवश्य चाहुंगा कि साहित्य सेवा के लिए मैं कभी थकूं नहीं, रुकूं नहीं, और सतत् मेहनत करता रहूं, ऐसे पावन मौके मेरे जीवन में बार-बार आते रहें, ईश्वर से यही प्रार्थना है।
✍️ अतुल कुमार शर्मा
सम्भल
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल-8273011742
भारत के सच्चे वीर सपूतों को
देश हित जो कुर्बान हो गये
इंकलाब जिंदाबाद कह गये।।
जग बदलूँ संकल्प धरा है
वीरों ने वलिदान वरा है
इस माटी की गन्ध बताती
सच सोने की तरह खरा है।
✍️ अशोक विश्नोई
मो 9458149223
..................................
मत व्यर्थ बहाओ तुम आँसू,
बेटा मेरा बलिदानी है,
मज़हब से क्या लेना उसको,
वह सच्चा हिंदुस्तानी है।
**************
साँसों में बारूदी शोले,
आँखों में भी अंगार बसे,
बोली हुंकार बमों जैसी,
हैं अस्त्र- शस्त्र संगीन कसे,
जीवन के पन्नों पन्नों पर,
लिखता नित नई कहानी है।
मत व्यर्थ बहाओ-------------
प्राणों का मोह नहीं उसको,
है स्वार्थसिद्धि की चाह नहीं,
दुश्मन के रणकौशल की भी,
किंचित उसको परवाह नहीं,
नित घोर संकटों से लड़कर,
पाता वह नई जवानी है,
मत व्यर्थ बहाओ----------
शव आया है आ जाने दो,
मैं बढ़कर माथा चूमूँगी,
बेटे की गौरव गाथा को,
लेकर दुनियाँ में घूमूंगी,
नत मस्तक जिसे तिरंगा हो,
वह मौत नहीं कुर्बानी है ।
मत व्यर्थ बहाओ-------------
दुश्मन के चिथड़े- चिथड़े कर,
उसने यह नाम कमाया है,
फहराकर स्वयं तिरंगे को,
भारत का मान बढ़ाया है,
वह ऐसा वैसा वीर नहीं,
माता की अमर निशानी है।
मत व्यर्थ बहाओ--------------
✍️ वीरेंद्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9719275453
.........................................
आज भी उनको नमन कर रही,
जनता हिंदुस्तान की।
युगों युगों तक कथा रहेगी,
वीरों के बलिदान की ।।
वीर शिवा राणा का भारत,
भारत झांसी रानी का।
बलिदानी वीरों का भारत,
यह हर हिंदुस्तानी का।।
जन जन के मन में बहती है,
देश प्रेम की रस धारा।
सबकी रहती सदा भावना,
हर जन के कल्याण की।
युगों युगों.....
नमन हमारा भगत सिंह को,
संसद में बम फोड़ दिया।
गोरों का सत्ता सिंहासन,
बहुत जोर झकझोर दिया।।
संसद में बम की घटना,
गोरे भीतर तक दहल गए।
देश के हित बाजी थी लगा दी,
भगत ने अपनी जान की।
युगों युगों......
राजगुरु सुखदेव निभाते रहे,
भगत का साथ सदा ।
इनको निज प्राणों से प्यारी,
भारत मॉं की धरा मृदा ।।
नमन उन्हें भारत हित,
प्राणों को न्यौछावर कर डाला।
भारत भूमि ऋणी सदा ही,
उस पावन बलिदान की ।
युगों युगों......
राजगुरु सुखदेव भगत को,
फांसी पर था चढ़ा दिया।
इनके बलिदानों ने क्रांति के,
रथ को आगे बढ़ा दिया।।
जिनके कारण भारत ने,
पाई है पावन आजादी ।
अपने लहू से कथा लिख गए,
भारत नव निर्माण की।
युगों.........
✍️ डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
.............................
हम भारत के वो सच्चे परवाने हैं।
दुश्मन भी तो जिनका लोहा माने हैं।।
उलझे हैं वर्षों से जो मसले अब तक,
आपस में मिलकर हमको सुलझाने हैं।।
चुप रहने को जो समझे थे कमज़ोरी,
ताक़त भारत की अब वो पहचाने हैं।।
आ जाए सीमा पर गर दुश्मन कोई,
देने उसको लाशों के नज़राने हैं।।
भूले हैं भारत की जो गौरव गाथा,
वीरों के किस्से उनको बतलाने हैं।।
छुपकर पीछे से करते हैं जो हमले,
शोले अब उनके घर पे बरसाने हैं।।
झंडे में लिपटे जो वापिस घर आये,
ऐसे वीरों के *ममता* शुक्राने हैं।।
✍️ प्रो.ममता सिंह
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
........................................
मैं देश की हवाओं में
भूला हुआ इक राग हूं
मैं भारत की माटी का
विस्मृत सा अनुराग हूं
शहीद होकर भी मैं ही
यादों का गौरव गान हूं ।
रातों में जब सोते थे सब
तब मैं रातों में जगा यहां
देशहित का बना मैं प्रहरी
सीमाओं पर बस डटा रहा।
सभी ने मनाई जब दीवाली
मैं बच्चों व घर से दूर रहा
सबने जब खेली थी होली
मैं खुशियों के ख्वाबों में रहा।
माटी के कण कण को पूजा
उसकी श्वासो में जीता रहा
अनूठा सा आत्मबल था मेरा
मां के खातिर बस चलता रहा।
लेकिन
देशहित में देखे जो जो सपने
गद्दारों ने सब चकनाचूर किये
वन्दे मातरम् की हर परिभाषा
हो गई रक्त रंजित तूफान लिये ।
तिरंगे में लिपट लिपट देश का
हर शहीद दुनिया से विदा हुआ
फिर लौटूंगा इसी धरा पर
प्रभु से यही संकल्प हुआ
मेरा खून बहा तो भी क्या
मां का सिन्दूर तो अमर हुआ ।
✍️ सरिता लाल
मधुबनी
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
........................................
कैसे आजादी मिली, कैसे हिन्दुस्तान
कितने वीरों ने दिये, इस पर तन मन प्राण,,
सोचें तो मन हूंकता, जब जब करें विचार
वीरों ने कैसे सहे, तन पर सतत् प्रहार,
खुद अपने ही खून से, कैसे सींचा बाग़
कैसे अपनी मृत्यु को, बना लिया सौभाग
गोली, फाँसी, सिसकियां, जेलें, कोडे, मात
क्या क्या मुश्किल की वरण, कितनी झेलीं घात,,
तोपें,चाबुक, हथकड़ी, तन मसला बारूद
डिगा सका ना लक्ष्य से, थामे रखा वजूद,
तनिक नहीं परवाह की, गये स्वयं को भूल
इस स्वतन्त्रता के लिये, सब कुछ किया कबूल,
✍️ मनोज मनु
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
....................................
लिए गीत कुछ चल पड़े, बाॅंके वीर जवान।
गाते-गाते कर गये, प्राणों का बलिदान।।
प्राणों पर भी खेल कर, आई सबके काम।
वर्दी तेरे शौर्य को, बारम्बार प्रणाम।।
माटी मेरे देश की, कब से रही पुकार।
खड़ी न होने दीजिए, नफ़रत की दीवार।।
फहराकर रणभूमि में, पुनः तिरंगा आज।
रख लेना हे वीर जी, तुम राखी की लाज।।
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दुनिया के हर सुख से बढ़कर, मुझको प्यारे तुम पापा।
मेरे असली चंदा-सूरज और सितारे तुम पापा।
सोये आज तिरंगा ओढ़े, बहुत गर्व से कहता हूॅं,
मिटे वतन पर सीना ताने, कभी न हारे तुम पापा।
✍️ राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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आओ आज हम सभी,
शहीदों को नमन करें!
देश के लिए जिए जो,
देश के लिए मरे!
थाम के मुख में लगाम,
बांध शिशु को पीठ में,
बिजलियों सी चमकती थीं,
तेग रण के बीच में!
रक्त में नहाई लक्ष्मीबाई ,
काली रूप ले!
देश के लिए जिए जो,
देश के लिए मरे!
क्या उबाल खून में था,
मृत्यु से डरे नहीं,
कट गए समर में किंतु,
आज तक मरे नहीं !
ऐसे राणा वीर शिवा,
कितना हम बयां करें !
देश के लिए जिए जो,
देश के लिए मरे!
धर्म के विरुद्ध युद्ध ,
क्रांति की दिशा बना!
मन में था उबाल,
भाल देश प्रेम में ढला!
राजगुरु, सुखदेव, भगत,
हंस के सूली पर चढ़े!
देश के लिए जिए जो,
देश के लिए मरे!!
लें शपथ ये सरहदों पे,
शत्रु दन दनाये गर!
चीर देंगे वक्ष मातृभू पे
आंच आए गर !
शीश निज चढ़ाके ,
भारती की अर्चना करें!!
देश के लिए जिएंगे,
देश के लिए मरे!!
✍️ अशोक विद्रोही विश्नोई
412 प्रकाश नगर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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बदन ये खाक हो जाये,वतन की राह में मरकर,
कटा दूँ सर खुशी से मैं,तिरंगा ओढ़ लूँ हँसकर,
हिफा़ज़त में तेरी माँ भारती कुछ ऐसा कर जाऊँ
शहीदों की किताबों में मेरा भी ज़िक्र हो अक्सर।
✍️ मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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मुझे अनुराग इससे है यही अभिमान मेरा हैं ।
उजाला ज्ञान का जिसने सदा जग में बिखेरा है
हुआ है धन्य यह जीवन यहां पर जन्म लेने से
यही तो स्वर्ग है मेरा जहां खुशियों का डेरा है ।
✍️ डॉ प्रीति हुंकार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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स्वतंत्रता की यज्ञवेदी में अपना रक्त चढ़ाया था।
उन वीरों की हुंकारों से हर ब्रिटिश घबराया था।
लाठी गोली कोड़े फाँसी सब हथकण्डे अपनाए।
आज़ादी के मतवालों को कुछ भी डरा ना पाया था।।
मातृभूमि की सेवा का प्रण मानों लेकर जन्मे थे।
कोई सुख दुःख कोई नाता इन्हें रोक नहीं पाया था।
स्वतंत्रता का ध्वज लेकर निकले थे माँ की सेवा में।
आज़ादी अधिकार हमारा सबको यही सिखाया था।
फाँसी के फंदों को चूमा और सूली पर झूल गए।
उन वीरों के बलिदानों पर सबने शीश झुकाया था।
मिली आज़ादी मुक्त हुए हम उनके ही प्रयासों से।
अगस्त पन्द्रह को स्वतंत्रता का हमने पर्व मनाया था।
आओ याद करें हम फिरसे उन सबके बलिदानों को।
जिन वीरों ने मातृभूमि पर अपना शीश चढ़ाया था।
जय हिन्द जय मातृ-भारती महामंत्र बस उनका था।
मौत गुलामी से अच्छी है ये सन्देश सुनाया था।
✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा, मुरादाबाद
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बहुत सब्र अब हो चुका,
अब तो सिंह दहाड़ो तुम,
भारत माँ का भाल है सुना,
अब तो मुकुट सँवारो तुम,
बहुत सियासत हो चुकी
न कोई अब शहादत हो
भारत मां के जयकारों में
न झूठी अब कोई इबादद हो
अहिल्या उद्धारक की नगरी का
अब तो उद्धार भी हो चुका,
अब काश्मीर को सँवारो तुम
जिसके होते माँ के टुकड़े हो गए
ऐसे बापू को कैसे राष्ट्रपिता का हकदार कहूँ,
जिन्होंने लूट मचाई, खून बहाया घाटी में
ऐसे गद्दारों को कैसे सच्चा पहरेदार कहूँ
अफगानिस्तान, पाकिस्तान, तिब्बत,
बांग्ला, भूटान वर्मा
फिर से एक सूत्र में जोड़ो तुम
बहुत सब्र अब हो चुका
अब तो सिंह दहाड़ो तुम
✍️ प्रशान्त मिश्र
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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