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सोमवार, 2 अक्तूबर 2023

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा का गीत ....प्रौढ़ावस्था हुयी सयानी, बोनसाइ त्योहार हुए हैं



पर्व मनाते यंत्रवत् हम

थके हुए त्योहार हुए हैं

पृथक आत्मा तन के ज्यों 

रीतिबद्ध त्योहार हुए हैं । 


कलाइयों पर सजी राखियाँ 

मन ,बच्चे जैसे निर्मल थे

प्रौढ़ावस्था हुयी सयानी 

बोनसाइ त्योहार हुए हैं ।

  

पर्वों की अवतंस श्रंखला

सुखधाम धरा की निश्चलता

स्थिर और ठहरे जीवन में

सक्रियता के नाम हुए है । 


त्योहारी इस सभ्यता का

संयम से संपोषण करना

जीवन जीने के अर्थों में   

ये सकाम  ललाम हुए है । 


पर्व मनाते यंत्रवत् हम 

थके हुए त्योहार हुए हैं 

पृथक आत्मा तन की ज्यों  

रीतिबद्ध त्योहार हुए हैं ।। 


✍️ मनोरमा शर्मा

जट्बाजार

अमरोहा

उत्तर प्रदेश, भारत

रविवार, 8 मई 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरम शर्मा की रचना --ईश्वर का आशीष लिए मां करुणा लगती है


मां का मुखड़ा कैसा भी हो सुन्दर लगता है 

नयन के मृदुलेप सा झर-झर झरना लगता है 


अन्यत्र कोई  और हितैषी जो  मेरा हित चाहे

ईश्वर का आशीष लिए मां   करुणा लगती है 


मेरे कड़वों बोलों का भी  एक पुलिंदा है 

दिन भर क्यों माँ उसे उठाये घूमा करती है 


संघर्षों की घनी धूप में  मां छाया  बनती

रोम-रोम ममता से सिंचित विजया लगती है 


नयन के मृदुलेप सा झर-झर झरना लगता है

मां का मुखड़ा कैसा भी हो सुन्दर लगता है


✍️ मनोरमा शर्मा

अमरोहा 

उ.प्र. भारत

शनिवार, 20 नवंबर 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा की कविता -----प्रेम की निरपेक्षता

 


प्रेम की निरपेक्षता  सुनी है कहीं 

लेकिन प्रेम की निरपेक्षता   

एक अमूल्य साहित्य रच देती है 

महान कलाओं का सृजन कर देती है

एक निर्भीक,  सत्यनिष्ठ ,

संसार  रच देती है

उत्साह की  गंगा में

गोते लगाती   

सद्भावों की गीता बाँचती है

सृष्टि का सार समझाती है 

क्योंकि प्रेम धर्म निरपेक्ष होता है 

सनातन भाव में जीता है

पूर्णतः साहित्यिक', सुसंस्कृत' ,

कर्तव्यनिष्ठ और सीमाओं से परे ।

आलौकिक आध्यात्मिक 

सात्विक भावों की

सकारात्मक सोच ही प्रेम  की व्यापकता है ।

सामाजिक सौहार्द भी प्रेम है  

एक निर्वैर उद्गीथ रचता   । 

आशीषता प्रेम  

'शारदीय प्रभा में आलोड़ित' 

गंगे माँ तुम सा पावन ,तुम सा निर्मल प्रेम ,

उद्दाम लहरों में

बहा मत ले जाना । सुवासित कर देना जग को।

  मात्र कल्पना लोक का प्रेम तो नही यह ।--

✍️ मनोरमा शर्मा

अमरोहा, उ.प्र., भारत

रविवार, 28 मार्च 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा की रचना ---- दही बड़े और गुंजिया खाकर होली में हम धूम मचाएं



सूरज उजला उजला घूमे दिन भी अब फूला न समाय 

धूप हवा में इतराती है मादक गंध जो फैली जाय ।

सर्दी की ठिठुरन की सी -सी हडियन को न और सताए

सूर्य देव की अनुकम्पा से धरती उपवन सी सरसाय ।

आया ऋतुराज बसन्त सुनो अवनि का आंचल लहराए 

होली खेलें अब मस्ती से ऋतु बसन्त सु मन हरषाए ।

दही बड़े और गुंजिया खाकर होली में हम धूम मचाएं

मुक्त रहें अब सभी नशे से होली की गरिमा न जाए ।

✍️ मनोरमा शर्मा , अमरोहा ।

शुक्रवार, 12 मार्च 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा की लघु-कथा--भंडारा

 


शिवरात्रि का पर्व है ।कांवरियों के लिए भंडारा चल रहा है

"सभी को भोग लगवाइए ।आइए आइए बैठिए ।यहां बैठिए ,और लीजिए "।चारों ओर शोर मच रहा है तभी सतीश माहेश्वरी ,जो कि भंडारे के आयोजक थे, वहाँ आएऔर खान पान की व्यवस्था देखी ।राशन पानी लगभग सब लग चुका था आखिरी खेप ही बची थी ।आधा-आधा बोरी कच्चा राशन बचा था ।दोपहर होने वाली है और शहर से बहुत से प्रतिष्ठित साथियों को उसने बुलावा दे रखा था वे सब आयेंगें तो अवश्य ही ।अगर राशन खत्म हो गया तो उनका आतिथ्य कैसे होगा ?इसलिए कांवरियों के लिए भंडारा बन्द कराना ही सही होगा ।इसलिए यह सोचकर उन्होंने भोजन की व्यवस्था देख रहे सभी कारीगरों को धीरे से संकेत दिया । बाहर शामियाने में विश्राम कर रहे कांवरियों को जल पीकर ही संतोष करना पड़ा ।उधर सतीश माहेश्वरी ने सगर्व मुस्कान बिखेरते हुए सबको विदा किया और कहा ,"आज का भंडारा समाप्त हो चुका है ,माॅफ कीजिए ।" कांवरिए जल ग्रहण कर आगे चल पड़े । कुछ कांवरियों को उन अतिथियों के सामने भी भी तो खिलाना पड़ेगा यह सोचकर शामियाने के पर्दे बन्द करवा दिए गए और सतीश जी उन मेहमानों को फोन करने लगे । 

 ✍️ मनोरमा शर्मा,  अमरोहा 

गुरुवार, 4 मार्च 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा की लघुकथा --इनवेस्टमेंट

 


इलेक्शन न लड़ें तो अपने पैसे में आग लगा दें क्या? बताओ मुझे ?क्यों भाभी ??।                         ''अगर इतना पैसा है तो धर्मशाला खोलो , जगह जगह प्याऊ लगवाओ ,गरीब कन्याओं की शिक्षा में ,उनके विवाह में खर्च कर दो ।"भाभी ने बड़े ही संयत शब्दों में जबाब दिया । 

   वाह्ह अपना पैसा व्यर्थ में बहा दूं उंह्ह !जो इतनी मेहनत से कमा कर जमा किया ,इसका रिटर्न है कोई ?ऊंह्ह ! आज राजनीति पर खर्च करूंगा तो असल के साथ-साथ सूद न मिलेगा! शिक्षा अनुदान राशि ,कन्या धन राशि समाज कल्याण राशि न जाने कितने रास्ते खुलेंगें !।

✍️ मनोरमा शर्मा, अमरोहा

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा की लघुकथा ---देह की यात्रा


तू छोड़ यह सब ।अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे ।हां दीदी ! मैं तो बहुत ध्यान से पढ़ रही हूं आप कभी कभी कैसी बाते करती हो

दीदी मुझे समझ नही आती ।मेरे स्कूल में आज 'मिशन शक्ति' अभियान चल रहा है रोज प्रोग्राम होता है ।मैडम ने आज 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' के बारे में हम सबको बहुत समझाया कि हमारी बेटियां किसी से कम नही हैं ।पढ़ लिख कर वह चांद पर भी पँहुच सकती हैं ,सेना में भर्ती होकर हमारे देश की सुरक्षा कर सकती हैं ।वह जोश में बोले जा रही थी ।

'बस अपनी सुरक्षा ही नही कर पातीं हैं .'...सबसे आसान और क्या है? और सबसे मुश्किल भी यही है ..।इस देह की यात्रा बड़ी लम्बी लगने लगी है ऐसा लगता है कि हर रोज एक नई कहानी शुरू होती है हर कहानी पिछली कहानी से अलग । कराहट से भरी महक बुदबुदा कर बोली।सारे पैसे खत्म हो गए आज ,कल सुबुक की फीस भी जानी है ।क्या करूं ? चार दिन से कोई ग्राहक भी नहींं आया । मां, बाबा के गुजरने के बाद से लेकर आज तक की सारी यातनाएं उसकी आंखों के सामने एक रील की तरह दौड़ गयीं ।

✍️ मनोरमा शर्मा, अमरोहा 

गुरुवार, 19 नवंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा की लघुकथा ----- - 'अपेक्षा '

 


मिस्टर ओम के दो स्कूल कॉलिज चल रहें हैं और एक डिग्री कॉलिज । दोनों कॉलिज सफलता पूर्वक शत प्रतिशत अपना रिजल्ट दे रहें हैं ।समाज में बड़ा नाम है ।कई राजनैतिक संगठनों से भी जुड़े हुए हैं कुल मिलाकर समाज में नारी शिक्षा के उदार पक्षधर होने के नाते नारी की सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए कई संगठनों को आर्थिक सहायता देने भी कभी पीछे नही हटते ।घर में उच्च शिक्षा प्राप्त पत्नी है ।पत्नी के नाम मिस्टर ओम ने बहुत जायदाद कर रखी है ।वह बड़ी निर्भीक और हंसमुख , बड़ी मनमौजी स्वभाव की है और एक पुत्री है ।पति -पत्नी दोनों का ही सारा ध्यान अपनी बेटी सारा पर ही रहता है। उनका बस चले तो वह अपनी बेटी को आज ही बड़ी एम.बी बी . एस डाक्टर की उपाधि दिलवा दें ।नीट की दूसरी बार परीक्षा दी है लेकिन वह क्वालिफाई कर पायेगी अथवा नही ,उसे स्वयं विश्वास नही हो पा रहा था । लेकिन मिस्टर ओम दिल और दिमाग से किसी भी तरह चाहते थे कि वह कम से कम क्वालिफाई तो कर ही ले जिससे वह उसका दाखिला बड़े से बड़े मेडिकल काॅलिज में करवा सकें आखिर वह किसके लिए कमा रहे हैं अगर वह अपनी बच्ची को ही प्रतिष्ठित और सबसे मंहगा मुकाम न दिलवा सके तो ।समाज में उनके नाम की धज्जी उड़ जायेगी कि वह अपनी बेटी को ही कुछ न बना सके ।उनका रात दिन का चैन उड़ गया ,ईश्वर से बहुत प्रार्थनाएं कीं ।न खाने को दिल चाहता था न कुछ पीने को ।यह सब देखकर सारा सहम गई थी ।उसका खून मानो सूखता जा रहा था वह अपने पापा को जानती थी कि वह जो भी चाहते थे उसे पूरा करने में एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं चाहे कुछ हो जाये ।नही तो वह जाने क्या क्या कर सकते थे ।मम्मी को ताने मारना ,भला बुरा कहना ।तुम कुछ नही कर सकतीं ।अपनी बेटी पर ही तुमसे ध्यान नही दिया गया और क्या करोगी ? कौन सी सुविधा देने में मुझसे कमी हुई ।वह कुछ कह ही नही पा रही थी ।टेंशन में उसकी शुगर बढ़ने लगी ।बस सारा को एहसास भी नही होने देना चाहती थी ।जैसे ही मिस्टर ओम घर में घुसते ,आतंक सा छाने लगता।सारा और उसकी मम्मी विनीता का दम हर समय घुट रहा था ।सारा चुपके -चुपके रोती रहती लेकिन भयवश वह अपने पापा मम्मी से कुछ कह नही पा रही थी लेकिन बहुत सारे सवालों का बबंडर उसके दिमाग में था ।

✍️ मनोरमा शर्मा , अमरोहा 

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा की लघुकथा ------काली आंखें

 


गंगा शरद् ॠतु में अपने शान्त स्वभाव में बहते हुए मन में शान्ति अनुभव करती प्रतीत हो रही थी ।जैसे निर्मल मन वाली कोई पवित्र आत्मा । गंगा भी हम जैसे मानवों के कलुष धोने के लिए धरती पर परोपकार करने के लिए ही प्रकट हुई है ।।गंगा के परोपकार की यात्रा अनवरत चल ही रही है लेकिन हमारे प्रयासों में आज तक कोई सच्चाई नही आई ।इंसानों की इतनी तामसिकता ही आपदाओं का बुलावा है ।तो... बात मैं, कर रही थी हमारी कुत्सित और कुंठित भावनाओं की और गंगा के तट पर बैठे -बैठे आज एकाएक मुझे अतीत की स्मृति हो आयी । पावन नदियों के किनारे स्त्री पुरुष बालक बालिकाएँ, किशोर किशोरियाँ आबाल वृद्ध ,अमीर गरीब सब एक तट पर ही समान्यतः स्नान करते रहें हैं और किस पुरुष की निगाहें क्या देख रही रहीं हैं वह उसके संस्कारों पर ही निर्भर है या दैव कृपा पर । गंगा माँ तो अपने सभी प्रकार के बच्चों को समान भाव से अभिसिक्त करती है तो आज तट पर बैठे हुए चारों तरफ वो काली निगाहें साथ चलने लगीं । मम्मी पापा के साथ फैमिली ट्रिप पर मैं गंगा स्नान के लिए आयी थी और साथ में पापा पड़ोसी के किसी रिश्तेदार को भी साथ में गंगा -स्नान कराने के लिए ले आए थे । ग्यारह -बारह साल की उम्र में किसी बालिका को इतनी तमीज नही होती कि वह किसी गलत बात का विरोध कर सके या किसी को वह बात बता सके लेकिन नाव में बैठे बैठे एकटक देखते रहना और नजर पडते ही ऐसे रियक्ट करना कि जैसे चोरी पकड़ी गई हो ।बड़ा अजीब लग रहा था लेकिन क्या कह सकते थे ।फिर गंगा स्नान के बाद जैसे ही कपड़े बदलने के लिए कुटिया में आयी तो लगा कुटिया की दीवार से कोई आंखें नजरें गड़ाए हुए हैं ।मेरी जान निकल रही थी कौन है वहाँ ? कौन है वहाँ ?? और जल्दी जल्दी चेंज कर के मम्मी के पास भागी । फिर अगले दिन वही डर । लेकिन मम्मी से कह नही पायी ।फिर पुनः वही काली आकृति । जोर से चीखी तब कुछ अश्लील से शब्द । घबराहट के मारे शीघ्रता से बाहर निकली तो देखा कि वही व्यक्ति जो हमारे साथ आया था वही तेजी से वहाँ निकला और भागा ।जाकर मम्मी को बताया तो मम्मी ने सान्त्वना दी सहलाया लेकिन उस समय कुछ कहा नही लेकिन उन आँखों की भयावहता आज भी सिहरन पैदा कर देती है और मन में एक ग्लानि का भाव ।आज तो बच्चों को हम अच्छे स्पर्श और गन्दे स्पर्श के बारे में समझातें हैं और उन्हें अलर्ट करतें हैं । इतनी हिम्मत हमारे समाज ने पैदा कर ली है और यह जरूरी भी है ।

✍️ मनोरमा शर्मा, अमरोहा ।

बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा की लघुकथा ----- बोझिल परम्पराएं

 


भाभी मुझे पैसे दे दो मुझे जरुरत आन पड़ी है 

मैंने कल दीदी से भी बोला था आप स्कूल गईं हुईं थीं ,मुझे आज पाँच सौ रुपए दे दो ।मैं थोड़ी झुंझलायी कि यह हमेशा ही यही करती है ,महीना पूरा होने नही देती, बीस तारीख को ही तकाज़ा हाजिर रहता है ।रानी मैंने तुमसे कई बार कहा कि महीना पूरा तो होने दिया करो ।

भाभी मेरा महीना तो बीस को ही होता है ,वहबोली ।

पिछले दिनों जब लाॅकडाउन चल रहा था, मैंने तुम्हे तीन महीने बिना काम के ही पैसे दिए थे या नही ,दिए थे और तुम बीस तारीख का ही रोना लिए रहती हो ।दस दिन तुम उसी में एडजेस्ट कर लो और न जाने कितनी बार तुम लम्बी लम्बी छुट्टियाँ कर लेती हो ,तो ???  मैंने कभी तुम्हारे पैसे काटे ??

काम बाली बाई रानी चुपचाप सुन रही थी ,बोली ,ना भाभी मेरे घर सास की बरसी है उसी के सामान के लिए मुझे चाहिए ।मेहमान आयेंगें ,रिश्तेदार आयेंगें और हमारे यहाँ ननदों को कपड़े लत्ते देकर विदा किया जाता है ।पण्डित जी जीमेंगें ।सामान बगैहरा दिया जायेगा ,बहुत खर्चा है ।

मेरा लहजा कुछ ठंडा पड़ चुका था ।मैं बोली , ऐसे हालात में तुम्हे इतना सब क्यों करना है ? तुम्हारा आदमी इतने दिनों से काम धंधे से छूटा पड़ा था ,तीन -तीन बेटियाँ हैं ,कैसे करोगी यह सब ?

भाभी जी लोकलिहाज को करना ही पड़ेगा । हमारे जेठ तो खत्म हो गए तब से जेठानी तो कुछ खर्चा करती नही और देवर करना नही चाहता , वह तो सास की एक कोठरी हड़पने की चाहत में नाराज़ हुआ बैठा है ,तो बचे हम । हम भी न करेंगें तो बताओ बिरादरी बाले क्या कहेंगें । सासु जी की आत्मा भी हमें ही कोसेगी ।करना तो पड़ेगा ही ।खैर मैं ज्यादा और सुनने के मूड में नही थी ।मैंने उसे पैसे दिए और अपने काम में व्यस्त हो गई ।

मैं इस धार्मिक महाभोज के बारे में सोचने लगी कि बताओ ये गरीब मजदूर वर्ग भी अपने ये रस्मोरिवाज़ दिन रात मेहनत करके , पाई पाई जोड़कर या हो सकता है कि अपने काम से एडवांस ले लेते हों तब भी भरसक निभाना चाहता है ।अपनी इन पुरातन परम्पराओं का बोझ मेरे मन पर भी भारी होने लगा हालांकि हम भी यही सब करते ही आ रहें हैं ।

✍️मनोरमा शर्मा, अमरोहा