शनिवार, 30 अप्रैल 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार दुष्यंत बाबा की रचना --करिया रंग


सिपाही पहुंचा ससुराल में, अपने साथी संग

करिया रंग को देखकर, साली  हो  गयी दंग


बात करने से  बच  रही, बदल  रही  थी ढंग

दीदी हमारी गोरी चिठ्ठी, तुम हो काले भुजंग


दिल टूटा दीवान का,  थाना पहुँचा   तत्काल

एसओ साहब भी आ गए, बढ़ता देख बबाल


गुस्सा मत  करो प्यारे, हो जाओ  कुछ  शांत

ठंडा पानी पीकर तुम, सब बतलाओ वृतान्त


लगा बताने दीवान भी, उनपर कर  विश्वास

पहुंचा था ससुराल में, मन में थी कुछ आस


पर मेरी ससुराल  में, मुझ पर कसे गए तंज

साली मुझसे कह गयी, तुम हो काले भुजंग


गर्मी ऐसी भयंकर ,कि सिन्धु दरिया हो गया

दिनभर ड्यूटी करके, मैं भी करिया हो गया


मुंशी तुरंत बोल पड़ा, हो जायेगी हवा टाइट 

दिन की ड्यूटी के बाद, यदि लगा दी  नाईट


कारखास भी बोल पड़ा, खुद में बना महान

राज्य प्रहरी की  नौकरी, होती नही आसान 


हेड मोहर्रिर को  समझो, हर थाने की  दाई

समझा रहा  दिवान को, जैसे हो  बूढ़ी ताई


करिया रंग को  देखकर, मत हो ज्यादा तंग

राधा उन्ही को मिली हैं, जिनके करिया रंग

✍️ दुष्यन्त 'बाबा'

पुलिस लाइन

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के चन्दौसी (जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार रमेश अधीर की रचना ---मेरे राम

 


शांति भी है साथ मेरे

अश्रुओं का नीर भी

सृष्टि का आनंद भी है

है जगत की पीर भी

मैं अकेला चल रहा हूँ

भावना की भीड़ में

रह रहा हूँ मस्त हो कर

यातना के नीड़ में

है नहीं मुझको शिक़ायत

अब किसी के काम से

चूँकि नाता जुड़ गया है

आज मेरा राम से !

लोग कहते हैं मुझे मैं

एक कुचला फूल हूँ

दौर के दरपन पे छायी

इक अभागी धूल हूँ

मैं मगर सब अनसुनी कर

मस्त रहता हूँ सदा

पूर्ण है आराम,पर मैं

व्यस्त रहता हूँ सदा

डर नहीं लगता मुझे अब

मौत के पैग़ाम से

चूँकि नाता जुड़ गया है

आज मेरा राम से !!

इस जहाँ से उस जहाँ तक

राम का ही रूप है

राम ही तारण तरण है

राम ही भवकूप है

पूछते हैं लोग मुझसे

राम तेरा कौन है

बोलता हूँ मैं सभी से

आत्मा है, मौन है

हो गया हूँ आज परिचित

आत्मिक आराम से

चूँकि नाता जुड़ गया है

आज मेरा राम से !!!

 ✍️ रमेश 'अधीर'

चन्दौसी, जिला सम्भल

उत्तर प्रदेश, भारत

       

सोमवार, 25 अप्रैल 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में आगरा निवासी ) ए टी ज़ाकिर की कविता ---हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और


हम नींद में कविताएँ सुना रहे थे,

हमेशा की तरह औरतों की हंसी उड़ा रहे थे

कि भगवान जी ने कमरे में आकर हमें जगाया-

ऒर एक चांटा हमारे गाल पे लगाया 

बोले,"गधे ! मेरी बात ध्यान से सुन,

उसे अपने मन में बुन

औरत के बिना मर्द का जीवन अधूरा है,

और तू समझ रहा है कि जीवन आदमी से ही पूरा है

हर आदमी को चौबीसों घंटों

औरत की ज़रूरत होती है

सुबह सोकर उठने से लेकर सारे दिन, रात भर और फिर

सुबह औरत ही तेरे साथ होती है

तुझे औरतों का साथ और बात 

,लगता है बखेड़ा,

अबे ,तू सचमुच में है गधेड़ा !

तुझे विद्या,लक्ष्मी और शांति की कामना होती है,

उषा से संध्या तक फिर निशा

में सपना बनकर वो तेरे पास

होती है.

सुबह उठते ही तू कभी गायत्री, कभी गीता,कभी साधना करता है 

श्रद्धा, पूजा ,आरती और वन्दना के मंत्र जपता है

अपने कर्म के बदले में तू प्रतिष्ठा और कीर्ति चाहता है

और फिर भी  औरत को मज़ाक उड़ाने की चीज़ मानता है

अंधेरे में ज्योति, बुढ़ापे में प्रेम

और युद्धभूमि में वह विजया बनकर तेरे साथ होती है

इस तरह, हर समय, हर जगह, हर आयु में औरत तेरे

पास होती है

मां बेटी ,बहन, पत्नी, प्रेमिका बनकर वो तेरा साथ निभाती है

और अपने आप को देख नाशुक्रे,

वो तुझसे अपनी हंसी

उड़वाती है

हमने कहा,

ठीक है भगवन, पर आपसे एक सवाल है,

क्या आपके यहाँ देवलोक में भी यही हाल है ?

भगवान नेअपना मुकुट हटाकर सिर खुजाया,

और

फुसफुसा कर ये, सच बताया

भय्या ए.टी ज़ाकिर ,

देव लोक में भी हमारी बीबियों का यही हाल है

और मेरे जॆसे हर भगवान की

ज़िन्दगी मुहाल है

अब देख यार,आज सुबह ही

हमारी देवीजी ने बिना चाय- नाश्ते के हमें घर से निकाला हॆ,

और तुझे ठीक करके आने 

का फंदा हमारी गर्दन में डाला है

अब तेरी मरम्मत करके ही हमें देव लोक में वापिस जाना हॆ,

वरना बेटा ,आज चाय- नाश्ता, खाना कुछ नहीं पाना है

✍️ ए टी ज़ाकिर

आगरा

उत्तर प्रदेश, भारत


बुधवार, 20 अप्रैल 2022

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम का आलेख --- गीतों के सम्राट रामावतार त्यागी मानवता के संवाहक


नाम : रामावतार त्यागी, जन्म1935, स्थान : कुरकावली, तहसील संभल, जिला तत्कालीन मुरादाबाद, देहावसान : 12 अप्रैल 1985 नई दिल्ली, शिक्षा: स्नातकोत्तर हिंदी ,दिल्ली विश्वविद्यालय

    नया खून, मैं दिल्ली हूं, आठवां स्वर, गुलाब और बबूल वन, महाकवि कालिदास रचित मेघदूत का काव्य अनुवाद करने वाले, समाधान, चरित्रहीन के पत्र , दिल्ली जो एक शहर था, राम झरोखा ,व्यंग्य स्तंभ और गद्य रचनाएं रचने वाले, समाज, समाज  कल्याण, साप्ताहिक हिंदुस्तान, नवभारत टाइम्स में संपादन कार्य करने वाले, अनेक विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में उनकी रचनाएँ पढ़ाई जाने वाले, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ,हरिवंश राय बच्चन, गोपाल सिंह नेपाली, नरेंद्र शर्मा, शिवमंगल सिंह सुमन, बलवीर सिंह, देवराज दिनेश, वीरेंद्र मिश्र की कवि कुल पीढ़ी के ज्वालयमान नक्षत्र।

खड़ी है बांह फैलाए हुए हर और चट्टानें / गुजरती बिजलियां अपनी कमानें हाथ में ताने/ गजब का एक सन्नाटा कहीं पत्ता नहीं हिलता / किसी कमजोर तिनके का समर्थन तक नहीं मिलता । हो, या जिंदगी और बता तेरा इरादा क्या है अथवा विचारक है ना पंडित हैं ना हम धर्मात्मा कोई, बड़ा कमजोर जो होता वही बस आदमी हैं हम। जैसे सैकड़ों अमर गीतों के रचयिता गीत कवि रामावतार त्यागी के साहित्यिक अवदान के बारे में तो पूरा काव्य जगत मुझसे कहीं बहुत अधिक....बहुत अधिक ही जानता है, पहचानता है और मानता है। संपूर्ण हिंदी साहित्य जगत ने उनके गीतों की विशेष रूप से सराहना करते हुए उनकी प्रतिभा का लोहा भी माना है, किंतु रामावतार त्यागी के भीतर एक दूसरा संसार 'मानवता का संसार' भी रचा बसा हुआ था, जिसमें प्रेम, करुणा, दया ,आंसू से लवरेज जिंदगी के दर्शन होते हैं। उनके भीतर जिंदगी की अठखेलियां भी खूब रची- बसी थी ,जो बच्चों में भी बसती हैं और बड़ों में भी रहती हैं। वह बच्चों में भी खूब रमते थे और बड़ों में भी जमकर जमते थे। बच्चों जैसे उनके मन में उछलते हिरण दौड़ लगाते थे तो कभी रूठ कर बैठ जाते और मान भी जाते थे, जो उनके रूठने का अपना अलग अंदाज था और मानने का तो कोई जवाब ही नहीं। रामावतार त्यागी में ना जाने क्या-क्या तलाशने में लगे रहे काव्य जगत से जुड़े लोग उनके व्यापक और विराट व्यक्तित्व के बारे में शायद दो चार पायदान ही चल पाए हो।

     मैं जो उसी कुल गांव और गोत्र और कुरकावली के उसी खानदान में जन्मा जिसमें  रामावतार त्यागी (ताऊ जी) का अवतरण हुआ। मेरी आयु लगभग 9-10 वर्ष की रही होगी। सन 70 और 80 के दशक में तब ताऊ जी का किसी शादी - विवाह के अवसर पर गांव में आना-जाना हुआ करता था अथवा वह किसी साहित्यिक यात्रा पर जब इधर से निकलते थे चाहे वह मुरादाबाद हो, बदायूं हो, चंदौसी हो,  बरेली या शाहजहांपुर जाते थे तो निश्चित रूप से कुरकावली अवश्य आया करते थे। उनको अपनी जन्मभूमि किसी तीर्थ स्थान की तरह लगती थी। उनके समय के अनेक ख्याति प्राप्त सुकवि उनके साथ कुरकावली आकर दालान पर रात्रि प्रवास कर चुके थे । जाने कितने छपने और छापने वाले महान संपादक और कवि उनके घर की बनी बाजरे की रोटी, देसी घी पड़े साग से खाकर धन्य हो गए । पता नहीं, क्यों मुझे बचपन से ही उनके कवि होने से बेहद लगाव था। उनके अस्तित्व से मैं कुछ ज्यादा ही प्रभावित था । वह जब गांव आकर उठने बैठते, मेरे दादाजी बाबूराम त्यागी जो उन्हीं की उम्र के थे उनके पास आया करते थे तब उनके सभी खानदानी भाई चारों ओर खाटें बिछा कर बैठ जाया करते थे। उनको देखा करते और सुना करते थे। मैं जो बहुत अधिक गाने- बजाने में रुचि रखता था, पिताजी से डरकर किसी कोने में खड़ा होकर उनकी बातें सुना करता था। मुझे याद है कि उस समय 'जिंदगी और तूफान', महावीर अधिकारी जी के उपन्यास पर आधारित फिल्म आ  चुकी थी और उसमें उनके गीत का तहलका पूरे विश्व में मच चुका था तब गांव आने पर उन्होंने सभी को अपने अन्य गीत सुनाने के बाद 'जिंदगी और बता तेरा इरादा क्या है' बहुत मन के साथ सुनाया था। मेरी स्मृतियों में सुरक्षित है जब बहन शारदा की बारात हापुड़ के चमरी गांव से आई थी तो विदाई के समय बारातियों के विशेष अनुरोध पर उन्होंने यूं ही खड़े होकर अपने कुछ गीत सुनाए थे , जिसके बोल कुछ इस प्रकार थे----

 किसी गुमनाम से गांव में पैदा हुए थे हम

 नहीं है याद पर कोई अशुभ शाही महीना था 

रजाई की जगह ओढी पुआलो की भवक हमने

 विरासत में मिला जो कुछ हमारा ही पसीना था

 रामावतार त्यागी जी का व्यक्तित्व छल, प्रपंच, झूठ, पाखंड, हानि- लाभ, जीवन- मरण, यश- अपयश के बंधनों से बहुत दूर था । उन्होंने अपने आप को सभ्य, सुसंस्कृत, सुशील, शालीन, संस्कारित, सच्चरित्र दिखाने के लिए कभी मिथ्या आडंबर और चिकने चुपडे़, गंदे आवरण को अपने व्यक्तित्व पर कभी नहीं ओढ़ा। उनका जीवन एक खुली किताब की तरह था। एकदम सरलता से परिपूर्ण और कुटिलताओं से कोसों कोसों दूर। यह उनके चरित्र की एक बहुत वडी विशेषता थी । उन्होंने जो कुछ भोगा वही लिखा, जो कुछ लिखा वही कहा और सीना चौड़ा कर चीख चीख कर कहा। बेहद स्वाभिमानी व्यक्तित्व के धनी थे।

  रामावतार त्यागी के खरेरे खरे और खुरदरी व्यक्तित्व में यदि सच और कृतज्ञ भाव न होता तो वह एक अहंकारी व्यक्ति के रूप में जाने और पहचाने जाते । उनका अकड़पन उनका खरेरा पन ही उनके व्यक्तित्व को अनेक लोगों से कोसों दूर.... बहुत दूर ऊपर की ओर ले जाता है। मुझे भली-भांति याद है कि जब कभी भी उनका गांव आना होता था तो वह गांव के अपने सभी पुराने यार- दोस्तों से बिल्कुल गंवई अंदाज में मिलाजुला करते थे। कोई बनावट नहीं, कोई बड़प्पन का दिखावा भी नहीं। तहमद अर्थात लुंगी बांधे हुए गांव के बीचो-बीच कुंए की  मन पर बैठकर घंटों हास परिहास करना वह भी ठेठ ग्रामीण भाषा और शैली में  मजाक करना, जस्सू बाबा  की चौपाल पर  बैठकर घंटों हुक्का ताजी करवा कर पीने वाला व्यक्ति गणमान्य होते हुए कितना सामान्य है। यह आंखों पर मोटा चश्मा लगाए और हवाई चप्पल पहने हुए हाफ शर्ट पहने हुए गांव की शैली में हंसने हंसाने और प्यार में  गरियाने वाला व्यक्ति देश का जाना माना  स्थापित गीतों का शहंशाह रामावतार त्यागी है ।

यह था उनका विराट व्यक्तित्व जिसमें गांव जीवन उफान मारता था । भले ही देश की राजधानी के विशाल सभागारों और ऊंची ऊंची अट्टालिकाओं  में उनके गीत गूंजते थे लेकिन उनके भीतर पूरा एक गांव  जिंदा था जिसमें खेत थे, खलिहान थे, बाग थे, दालान थे, कहकहो का एक पूरा संसार था तभी तो प्यार, तकरार, झूठ , मनुहार वाले उनके तेवर थे। तभी तो वह कह भी दिया करते थे  

 मैं तो छोड़ मोह के बंधन अपने गांव चला जाऊंगा 

तुम प्यारे मेरे गीतों का गुंजन करते रह जाओगे 

उनकी हठ में प्रेम था और प्रेम में हठ... इस हद तक कि वह जिसको अपने जीवन में सर्वाधिक प्रेम करते थे उसी से संबंध विच्छेद कर देने में उन्हें तनिक भी संकोच नहीं हुआ लेकिन पश्चाताप में उन्होंने ऐसे हृदय विदारक विच्छेदनों को किसी उपासना से कम, किसी तीर्थ से कम अपने जीवनपर्यंत नहीं माना लोगों ने रामावतार त्यागी  के दूसरे विवाह के बारे में तो सुना ही होगा और साथ में उनसे जुड़ी अथवा जोड़ी गई बहुत सी बातें भी सुनी होंगी पर यह कम ही लोग जानते हैं कि उन्होंने अपने प्रथम विवाह का सम्मान जीवन पर्यंत पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ किया। मेरा आशय उनकी पहली पत्नी और हमारी ताई जी कांति त्यागी से है, जब तक वह जीवित रही रामावतार त्यागी जी ने कुरकावली के अपने घर ,जमीन, गांव एवं उनसे जुड़े रिश्तो के ऐश्वर्य से कभी भी छेड़छाड़ नहीं की। घर की संपूर्ण संपत्ति, यश और कीर्ति पर क्रांति ताई जी का ही हक जीवन पर्यंत  रहा। 

  रामावतार त्यागी बहुत संकोची एवं शर्मीले व्यक्ति भी थे। उस समय घर की आर्थिक परिस्थितियां उच्च शिक्षा के पक्ष में नहीं थी। जमीदार परिवार में जन्म लेने के बाद भी घर के हालात बहुत अच्छे नहीं थे किंतु वह पढ़ना चाहते थे। पिताजी का अध्यादेश यह था कि अब घर का अपने हिस्से का काम रामावतार तुझे भी करना है, इसका वह स्वयं विरोध नहीं कर पाए किंतु अपने चाचा जी भीमसेन त्यागी जी के द्वारा रोने धोने का कारण पूछने पर उनको ही अपनी व्यथा कथा सुनाई। चाचा जी भीमसेन जी के द्वारा पिताजी के समक्ष यह आश्वासन देने के उपरांत ही कि रामावतार के हिस्से का काम मैं कर लूंगा, के उपरांत ही गीतों की सुपरफास्ट राजधानी एक्सप्रेस को आगे बढ़ने की हरी झंडी मिल पाई । वह रिश्तो में बहुत ईमानदार और वफादार थे। बात उन दिनों की है जब उनका मुंबई आना- जाना हुआ करता था। वह मुंबई में थे अपने गीतों के सिलसिले में और चाचा भीमसेन जी का कुरकावली में घोड़े तांगे से गिरकर एक्सीडेंट हो गया था। दिल्ली सफदरजंग हॉस्पिटल में छोटे चचेरे भाई ओमवीर के हाथों में चाचा जी ने अपनी अंतिम सांस ले ली थी और ओमबीर सिंह को पिताजी का शव अस्पताल प्रशासन ने किसी कारण से देने से मना कर दिया था तब वह जैसे ही दिल्ली पहुंचे  अपना आपा खो बैठे।  इससे पहले शायद किसी ने उनका यह रूप पहले नहीं देखा था। उन्होंने अस्पताल के प्रशासन को जमकर लताड़ लगाई और वहीं जमीन पर बैठ गए और तब तक नहीं उठे जब तक तत्कालीन केंद्रीय मंत्री एचकेएल भगत, जगदीश टाइटलर, ललित माकन आदि जैसे लगभग आधा दर्जन कैबिनेट  मंत्री मौके पर नहीं आ गए । प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार विशेष सम्मान के साथ उनके चाचा जी की अंत्येष्टि संपन्न हुई और उसमें पूरे समय तक सभी उपस्थित रहे मंत्रीगण । ऐसे अड़ियल व्यक्तित्व के स्वामी भी थे रामावतार त्यागी। 

  रामावतार त्यागी को विसंगतियों  और विरोधाभासो  से युक्त व्यक्तित्व यूं ही नहीं कहा क्षेमचंद सुमन जी ने। उसके पीछे एक बहुत बड़ा और मजबूत आधार है। एक ओर जहां साहित्य जगत में उनके अकड़पन तुनक मिजाजी और अड़ियल रवैए को लेकर जीवन पर्यंत विवादों और चर्चाओं का बाजार गर्म रहा वहीं दूसरी ओर उनके भीतर बैठा एक प्रेम करने वाला  गीतकार अपने गीत रचता दिखाई देता रहा। कुछ इस प्रकार----

आंख दो टकरा गई हो 

जब किसी के लोचनो से 

हो गया हो मुग्ध जो भी

रूप के कुछ कम्पन्नो से

मौन जीवन वाटिका में प्यार के तर्वर तले

 मिल गए हो प्राण जिसको राह में आते वनों से

 उन मिलन के दोस्तों का नाम केवल जिंदगी 

रात की तड़पनो का नाम केवल जिंदगी


 इसी के साथ प्रेम की प्रेम की प्राणघातक पीड़ा जिस  हृदय मे अपना विजय ध्वज शान से फैला रही हो उसी ह्रदय के  रोशनदानो से आम जनों शोषितो वंचितों के लिए कितना गहरा दर्द था-----

 सौगंध हिमालय की तुमको

 योग का इतिहास बदल दो

यह भूखे कंगाल सिकुड़ते रातों में

दिया गया नूतन विधान जिनके हाथों में

 इससे तो पतझड़ अच्छा 

ऐसा मधुमास बदल दो 

सौगंध हिमालय की तुमको

 युग का इतिहास बदल दो

   ..कहने को और भी बहुत कुछ कहा जा सकता है, सुना जा सकता है, लिखा जा सकता है, पढ़ा जा सकता है  रामावतार त्यागी के विराट और अद्भुत विलक्षण व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में । मैं उन जैसे महान रचनाकार के बारे में क्या कह सकता हूं केवल बालस्वरूप राही के शब्दों के साथ अपने विचारों को विराम देना ही उचित समझता हूं। उन्होंने शायद ठीक ही कहा था कि आधुनिक गीत साहित्य का इतिहास उनके गीतों की विस्तार पूर्वक चर्चा किए बिना लिखा ही नहीं जा सकता ।

✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्

 कुरकावली ,जनपद  संभल

 उत्तर प्रदेश, भारत

रविवार, 17 अप्रैल 2022

वाट्स एप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से स्मृतिशेष रामावतार त्यागी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर 14 अप्रैल 2022 को तीन दिवसीय ऑन लाइन कार्यक्रम का आयोजन






मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल) के प्रख्यात साहित्यकार स्मृतिशेष रामावतार त्यागी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर वाट्स एप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से 14,15 व 16 अप्रैल 2022 को तीन दिवसीय ऑन लाइन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। चर्चा में शामिल साहित्यकारों ने कहा कि रामावतार त्यागी पीड़ा के अमर गायक थे । उनके गीत 'मन समर्पित, तन  समर्पित और यह जीवन समर्पित' तथा 'ज़िन्दगी और बता तेरा इरादा क्या है'  पूरे देश में लोकप्रिय हैं। यही नहीं उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने  राजीव गांधी व संजय गांधी की हिन्दी स्पीकिंग क्लास के लिए निजी शिक्षक भी नियुक्त किया था । 

   

मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ  की  पन्द्रहवीं कड़ी के तहत आयोजित इस कार्यक्रम में संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने रामावतार त्यागी के शुरुआती जीवन, उनके जीवन संघर्षों और साहित्यिक योगदान के बारे में विस्तार से बताया और उनकी प्रतिनिधि रचनाएं पटल पर रखीं। बताया कि 8 जुलाई 1925 को जनपद सम्भल के कुरकावली नामक ग्राम के त्यागी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका पहला काव्य संग्रह वर्ष 1953 में 'नया खून' नाम से प्रकाशित हुआ। उसके पश्चात 'आठवां स्वर' , 'मैं दिल्ली हूं', 'सपने महक उठे', 'गुलाब और बबूल', ' गाता हुआ दर्द', ' लहू के चंद कतरे', 'गीत बोलते हैं' काव्य संग्रह  और  उपन्यास 'समाधान' प्रकाशित हुआ। इसके अतिरिक्त 1957 में  उनकी कृति 'चरित्रहीन के पत्र'  पाठकों के समक्ष आई । उनका निधन 12 अप्रैल 1985 को हुआ। स्मृतिशेष त्यागी जी के सुपुत्र सन्देश पवन त्यागी (मुम्बई) ने उनके दुर्लभ चित्र प्रस्तुत किए।

       

प्रख्यात हास्य व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि रामावतार त्यागी  पीड़ा के अमर गायक थे । वह उस उदधि के जैसे हैं जिसकी लहर-लहर में पीड़ा ही पीड़ा व्याप्त है।इन पीड़ाओं के ताप से समुद्र वाष्पीकृत होकर बादल बनके जब बरसता है तो पीड़ाओं की बाढ़ ले आता है। पीड़ाओं की इस बाढ़ से उन्होंने दो-दो हाथ  भी किये हैं। उनका गीत संसार पीड़ाओं की मूसलधार बरसात से कमाई गई खेती है।   

सम्भल के वरिष्ठ साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम ने कहा कि रामावतार त्यागी के भीतर एक दूसरा संसार 'मानवता का संसार' भी रचा बसा हुआ था, जिसमें प्रेम, करुणा, दया ,आंसू से लवरेज जिंदगी के दर्शन होते हैं। उनके भीतर जिंदगी की अठखेलियां भी खूब रची- बसी थी ,जो बच्चों में भी बसती हैं और बड़ों में भी रहती हैं। वह बच्चों में भी खूब रमते थे और बड़ों में भी जमकर जमते थे। बच्चों जैसे उनके मन में उछलते हिरण दौड़ लगाते थे तो कभी रूठ कर बैठ जाते और मान भी जाते थे, जो उनके रूठने का अपना अलग अंदाज था और मानने का तो कोई जवाब ही नहीं। रामावतार त्यागी जी का व्यक्तित्व छल, प्रपंच, झूठ, पाखंड, हानि- लाभ, जीवन- मरण, यश- अपयश के बंधनों से बहुत दूर था । उन्होंने अपने आप को सभ्य, सुसंस्कृत, सुशील, शालीन, संस्कारित, सच्चरित्र दिखाने के लिए कभी मिथ्या आडंबर और चिकने चुपडे़, गंदे आवरण को अपने व्यक्तित्व पर कभी नहीं ओढ़ा। उनका जीवन एक खुली किताब की तरह था। एकदम सरलता से परिपूर्ण और कुटिलताओं से कोसों कोसों दूर। यह उनके चरित्र की एक बहुत वडी विशेषता थी । उन्होंने जो कुछ भोगा वही लिखा, जो कुछ लिखा वही कहा और सीना चौड़ा कर चीख चीख कर कहा। बेहद स्वाभिमानी व्यक्तित्व के धनी थे।

       

वरिष्ठ साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा -उनकी रचनाओं को पढ़कर  आभास हो जाता है कि वह सामाजिक परिदृश्य, जिंदगी की विषमताओं, व्यवस्था की विसंगतियों, सामाजिक ताने बाने  और मानवीय स्वभाव पर बड़ी पैनी नजर रखते थे, और अपनी रचनाओं में बड़ी बेबाकी से इन्हें उजागर करते थे I उनकी रचनाओं में उनकी खुद्दारी और स्वाभिमान की स्पष्ट झलक मिलती है, स्वाभिमान के आगे व्यवस्था से समझौता करना उन्का स्वभाव नहीं है, और उनके स्वभाव की यही विशेषता उनकी रचनाधर्मिता में मिलती है I साथ ही एक खुद्दार आदमी की अहमियत जताते हुए वह व्यवस्था को आइना भी दिखाते हैं। उनकी रचनाओं में विरोध के साथ साथ दर्द और पीड़ा को भी बड़ी सहजता से व्यक्त किया गया है।
 वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय  ने कहा जो स्वयं गीत बन गए ,निर्झर की भांति अनवरत बहते रहे , साहित्यिक परम्परा में आज भी अपनी उपस्थित का भान करा रहे स्मृति शेष रामावतार त्यागी वास्तव में एक अवतार थे , राम की तरह कंटकों में असहज जीवन को सहज जिया और हमें दे गए  अमूल्य निधि अपने गीतो की एक बृहत, बोध ,समर्पण भरी जीवन को जीने की विधा। उनके गीत वेदनाग्रस्त ह्र्दय को साहस से लबालब करने की सामर्थ्य प्रदान करते है । 

     

रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा कि  रामावतार त्यागी ने जो गीत लिखे ,वह उनकी जुझारू फौलादी मानसिकता को प्रकट करने वाले हैं। प्रत्येक गीत में विपरीत परिस्थितियों से जूझने का आवाहन है और टूटते रहने के बाद भी न टूटने का संकल्प है ।  आत्मबल से भरपूर तथा अकेलेपन के बाद भी संसार को परिवर्तित कर सकने की दृढ़ इच्छाशक्ति उनकी रचनाओं में मुखरित हुई है ।  

मुम्बई के साहित्यकार प्रदीप गुप्ता ने कहा- आज मेरी जो कुछ लिखने पढ़ने में रुचि है उसका बड़ा कारण रामावतार त्यागी के लिखे शब्दों का तिलिस्म था । एक बार उन्हें संभवतः 1976 में एक कवि सम्मेलन में सुनने का अवसर मिला . उन्होंने जैसे ही कोई कविता पढ़नी शुरू की श्रोताओं की ओर से ज़बरदस्त शोर हुआ “एक हसरत थी “। यह वो गाना था जो उन्होंने फ़िल्म ज़िंदगी और तूफ़ान के लिए लिखा था और उन दिनों रेडियो पर काफ़ी बज रहा था । उन्होंने गाना फ़िल्मी तरीक़े नहीं अपने अन्दाज़ में पढ़ा।

     

अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा ने कहा - "मनुष्य से मनुष्यत्व तक की यात्रा के यायावर श्री रामावतार त्यागी जी  कवि का जिद्दी और बेबाक  मन , रूढ़िवादिता को तोड़ देने का विद्रोह, मनमाना स्वभाव उनकी रचनाओं के विभिन्न परिवेश ही हैं ।विविध आयामों में विचरण करती उनकी कविताएँ  कभी अपने अस्तित्व के झंडे गाड़ती हैं तो कभी सामाजिक सरोकारों में झूलती नज़र आती है। उनके तेवर दुष्यंत कुमार और श्री सहादत हसन मंटो के तेवर लगते हैं और अपने समय के सर्वाधिक मुखर ,बीमार,जीर्णशीर्ण  रूढ़िगत परम्पराओं का विरोध करते हुए एक नयी पंक्ति खींच कर अपने आप को नई उर्जा से सींचते हुए ,नई ठसक के साथ अपने आप को सिद्ध करते  हुए दृष्टिगोचर होतें हैं। 

 कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट  ने कहा - श्री त्यागी जी ने अपने गीतों में जिस तरह से दर्द को जिया है और वह जिस तरह से दर्द को पालते हैं,पुचकारते हैं,साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं।क्योंकि जो व्यक्ति अपनी 'तप की सफलता के परिणाम में चुभन की कामना' करे,वह साधारण हो भी नहीं सकता। उनका अंतर ज्योतिमान था,इसीलिए बाहर का घना तम भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाया।उनकी जवाबदेही स्वयं के प्रति रही,उनकी लड़ाई स्वयं से रही।इसी कारण बाहर का लोभ, दुःख,भय और रुकावटें उनका मार्ग अवरुद्ध ही नहीं कर पाये और स्वयं से उन्होंने हर समर सावधानी पूर्वक लड़ा,क्योंकि वह जानते थे स्वयं से हारे हुए को ईश्वर भी संबल नहीं दे सकता। वह आत्मजयी थे, अतः वह हर नकारात्मकता में भी सकारात्मकता खोजने में सफल होते और इस सकारात्मकता को कमजोर,संकटग्रस्त और दु:खी मानव समाज को अपने गीतों के माध्यम से अग्रसारित करते। उन्होंने स्मृति शेष रामावतार त्यागी जी को अर्पित करते हुए कहा --

पंक्ति पंक्ति चरितार्थ हुई सी, शब्द शब्द में कौशल बोले।

अर्थ निहित ज्यों अक्षर अक्षर,उच्च भाव हृदय के खोले।

घटना घटना पैनी दृष्टि,रखकर कलम चलाने वाले,

अभिनंदन है कठिन आपका,हमने सारे शब्द टटोले।

   

युवा साहित्यकार राजीव प्रखर ने कहा कि स्मृति शेष रामावतार त्यागी जी का महान रचनाकर्म आपाधापी से भरे इस युग में भी मनुष्य को निरंतर जीवन के सत्य का भान कराता रहता है। चाहे वह समाज में व्याप्त विद्रूपताओं की ओर संकेत करते हुए उनका हल हो अथवा मानवीय संवेदना को झिंझोड़ते हुए उसे उत्कर्ष की ओर ले जाने का अभियान, प्रत्येक स्तर पर उनका रचनाकर्म जहाॅं जीवन के सत्य को ही पाठकों के सम्मुख रखता है यही कारण है कि आज भी उनकी रचनाएं प्रासंगिकता के मानकों पर पूर्णतया खरी सिद्ध हुई हैं।      

कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा - "ज़िन्दगी और बता तेरा इरादा क्या है"जैसै कालजयी गीत की रचना करने  वाले निश्चय ही  अपने गीतों के माध्यम से साहस की नयी परिभाषा गढ़कर अमर हो गये..ज़िंदगी से दो टूक प्रश्न पूछकर आगे बढ़ो का सिद्धांत बनाना और नित आगे बढ़ते चले जाना, यह विरले ही देखने को मिलता है.. जीवन के दार्शनिक रूप को सहज भावों में ढालना कवि की बड़ी चुनौती और उपलब्धि दोनो होती है और कीर्ति शेष रामावतार त्यागी जी ने इस तथ्य को  बड़ी ही कुशलता से अपने गीत ग़ज़लों में ढाला है.. व्यंग्यात्मक शैली में प्रश्न और जवाब दोनो उनके गीतों में मिलते हैं.. और पाठकों को लाजवाब कर देते हैं। उनकी रचनाओं में विद्रोही तेवर,राष्ट्रवाद की भावना, जनजागरण, दार्शनिकता व कहीं कहीं कल्पनाओं का समावेश भी मिलता है।वह पूर्वाग्रहों की बेड़ियों को भी तोड़ते नज़र आते हैं।दर्द से रिश्ता  निभाती उनकी रचनाएँ बहुत ही खूबसूरत बन पड़ी हैं।

   

सम्भल के साहित्यकार राजीव कुमार भृगु ने कहा -उनकी रचनाएं आज भी लोगों के मन पर उतना ही प्रभाव छोड़ती है जितना उनके समय में छोड़ती थी। उन्हें  पीड़ा का गायक माना जाता है लेकिन देशभक्ति की भावना उनके मन में हमेशा रही। उनके कुछ गीत मुझे बहुत प्रभावित करते हैं। उन्होंने गजलें और गद्य लेखन भी किया लेकिन उनका मनपसंद लेखन केवल गीत ही रहा ।     

 रामपुर के साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक ने कहा किउनके गीतों में शिल्प और भाव की जो श्रेष्ठता विद्यमान है वैसा ही मेयार बह्र ,तग़ज़्ज़ुल् और कहन के स्तर पर मुझे उनकी ग़ज़लों में भी दिखाई दिया।उनकी एक ग़ज़ल, जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया, के कुछ अशआर का  ख़ास तौर से उल्लेख करना चाहूँगा--

 आँखों का काम कान से लेने लगे हैं लोग,

  फिर पूरे इत्मिनान से लेने लगे हैं लोग।

       

 रामपुर के साहित्यकार शिव कुमार चंदन ने कहा - जीवन के अनेक संघर्षों को सहते हुए श्री त्यागी जी ने अपनी रचनाओं में प्रकृति चित्रण ,मानवीय सम्वेदनाएँ ,जन सरोकारों  एवं राष्ट्र भक्ति के भाव पिरोए हैं ।  अनेक काव्य मंचों ,अनेक कवि सम्मेलनों  पर मनोहारी काव्य पाठ की प्रस्तुति के प्रभाव से  काव्य साहित्य के सर्वोच्च शिखर पर आसीन हो कर  साहित्य जगत  में अविस्मरणीय  हो गये । 

 गजरौला की कवयित्री रेखा रानी  ने कहा - रामावतार त्यागी गीत की दुनिया का चमकते हुए  सितारे थे। एक एक कर क्रमशः इतने विरले व्यक्तित्व  की गूढ़ रहस्य जानकारियां इस महान पटल से प्राप्त होती हैं इसके लिए हृदय से आभार व्यक्त करती हूं आदरणीय डॉ मनोज कुमार रस्तोगी जी का। उनकी यह पंक्तियां बार बार गुनगुनाने का दिल चाहता है -

मुझको भी प्यार मिला दो दिन

कोमल भुज हार मिला दो दिन

उन आंखों में रहने का भी

मुझको अधिकार मिला दो दिन।

     

 कवयित्री डॉ शोभना कौशिक ने कहा-- त्यागी जी का हिंदी साहित्य जगत युगों - युगों तक ऋणी रहेगा ।उन्होंने अपनी रचनाओं द्वारा देश के गांवों से लेकर महानगरों तक का सजीव चित्रण इस प्रकार चित्रित किया है ,कि उसको पढ़ते हुए मन अनायास ही यथार्थ के धरातल पर उतर जाता है ।उनके गीत और कविताएं मन मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़ती हैं । उनका व्यक्तित्व एक खुली किताब की तरह था ,जो सरलता से परिपूर्ण और कुटिलताओं से कोसों दूर था ,जो उनके चरित्र की एक बहुत बड़ी विशेषता थी ।

 सम्भल के युवा साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा  ने कहा - उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से कई प्रकार के रंग-रूपों से साहित्य का श्रंगार किया है। उनकी एक-एक पंक्ति के गंभीर अर्थ को समझने हेतु,मनन-चिन्तन करने की आवश्यकता होती है। त्यागी जी के संपूर्ण जीवन में, सुख से कम और परेशानियों से ज्यादा नाता रहा है, उनका यह दर्द उनकी रचनाओं  में उभरता भी है ।

       

साहित्यकार नकुल त्यागी ने कहा --देश के महान गीतकार स्मृति शेष श्री रामावतार त्यागी मुख्य रूप से  पीड़ा और देश प्रेम की कविताओं के लिए जाने जाते हैं। वे मंच पर कवि सम्मेलनों में बहुत बड़े-बड़े कवि श्री धर्मवीर भारती, श्री शेरजंग गर्ग, डॉ हरिवंश राय बच्चन, श्री श्याम नारायण पांडे, श्री कमलेश्वर आदि के समकालीन हैं। उन्होंने उनसे भेंट का संस्मरण भी प्रस्तुत किया ।  

 जकार्ता (इंडोनेशिया) की साहित्यकार वैशाली रस्तोगी  ने कहा कि त्यागी जी के गीत पूरे भारत में ही नहीं,विश्व भर में भारतीयों द्वारा गुनगुनाएं जातें है। उनके गीत की ये दो पंक्तियां ही बहुत कुछ कह जाती हैं----

 " एक घटना से नही बनती कहानी 

    हर कहानी में कई इतिहास होते हैं" 

 कार्यक्रम में स्मृतिशेष त्यागी के अनुज रामनिवास त्यागी के सुपुत्र राहुल त्यागी,  शोधादर्श पत्रिका के सम्पादक अमन कुमार त्यागीशशि त्यागी ने भी हिस्सा लिया ।

 अंत में आभार व्यक्त करते हुए स्मृतिशेष रामावतार त्यागी के सुपुत्र सन्देश पवन त्यागी (मुम्बई) ने कहा -जैसे कि एक सफेद चादर पर कोई एक रंग दूर से ही नजर आता है और अपनी ओर ध्यान आकर्षित कर लेता है, उसी प्रकार समाज में कवि होते है| ऐसा मेरा मानना है| मैं आप सब का प्यार अपनी पिताश्री के लिए पाकर धन्य महसूस करता हूँ। डॉक्टर मनोज रस्तोगी को दिल से सादर प्रणाम करता हूं। आपने मुझे अपना समय दिया, और मुझे लगता है, कि आप सभी का सबसे मूल्यवान उपहार है। आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद।


:::::: प्रस्तुति ::::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822



 

                                   


शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का एकांकी --नेत्रदान महादान


काल
: आधुनिक काल 

स्थान : भारत का कोई भी साधारण-सा शहर 

पात्र 

वृद्धा : आयु लगभग 70 वर्ष

पड़ोसन :आयु लगभग 70 वर्ष 

दो युवक :आयु लगभग 25 वर्ष 

राम अवतार :आयु लगभग 25 वर्ष

कुछ अन्य पात्र : आयु कुछ भी हो सकती है


              【 दृश्य एक 】


दो नवयुवक एक मोहल्ले में जाकर किसी घर की कुंडी खटखटाते हैं । अंदर से महिला की आवाज आती है : कौन है ?


एक युवक : अम्मा जी ! हम आई बैंक से आए हैं । दरवाजा खोलिए ।

(एक वृद्धा घर का दरवाजा खोलती है।) वृद्धा : भैया ! कहाँ से आए हो ? क्या काम है?

दूसरा युवक : हम आई बैंक अर्थात नेत्र संग्रहालय से आए हैं । आपके शहर के आँखों के अस्पताल में अब आई बैंक खुल गया है । हम आपको नेत्रदान के लिए प्रोत्साहित करने आए हैं ।

वृद्धा : (चौंककर पीछे हटते हुए) हाय राम ! क्या तुम मेरी आँखें निकालने आए हो ? क्या तुम लोग मुझे अंधा करोगे ? अरे कोई है ? बचाओ ! बचाओ !

एक युवक : (वृद्धा को निकट जाकर समझाने का प्रयास करता हुआ ) मैया ! आप गलत समझ रही हो । हम जिंदा लोगों की आँखें नहीं निकालते हैं । हम तो यह कहना चाहते हैं कि आप मरणोपरांत अपनी आँखें दान करने का संकल्प-पत्र भरकर हमें दे दें । (अपने बैग में से एक कागज निकालता है ) देखिए अम्मा ! यह रहा संकल्प-पत्र ! आप नेत्रदान की घोषणा कर दीजिए ।

वृद्धा : मुझ बुढ़िया को मूर्ख बनाने आए हो। मेरी आँखें लेकर कोई क्या करेगा ? अब मुझे ही कौन-सा अच्छा दिखता है ?

(तभी वृद्धा की पड़ोसन जो कि स्वयं भी वृद्धा है ,आ जाती है )

वृद्धा  अरी पड़ोसन ! अच्छा हुआ ,तू आ गई। देख तो ,यह लोग मेरी आँखें निकालने की तैयारी कर रहे हैं ।

पड़ोसन : हाय रे हाय बहना ! ऐसा अत्याचार !

वृद्धा : हाँ ! यह कहते हैं कि नेत्रदान कर दो। 

पड़ोसन : (हाथ नचा कर ) बिल्कुल नहीं ! तुम अपनी आँखें कभी दान मत करना। मुझे सब मालूम है। यह लिखा-पढ़ी करके तुम्हारे मरने के बाद तुम्हारी आँखें निकाल कर ले जाएँगे और तुम्हारा चेहरा राक्षसों की तरह दिखने लगेगा। तुम बिल्कुल भूतनी नजर आओगी ।

एक युवक : नहीं अम्माजी ! यह गलत धारणा है । मरने के बाद आँखें निकालने के बाद भी चेहरे में कोई खराबी नहीं आती है। यह पता भी नहीं चलता कि किसी की आँखें निकाली गई थीं।

वृद्धा : क्या शरीर की चीर-फाड़ से कष्ट नहीं होगा ? आत्मा को अशांति नहीं होगी ?

दूसरा युवक : बिल्कुल नहीं । जो व्यक्ति मर गया है ,उसे कष्ट कैसा ? कष्ट तो जीवित रहने पर ही होता है । जहाँ तक मृतक की आत्मा की शांति का सवाल है ,तो मृतक को तो परम प्रसन्न होना चाहिए कि उसकी आँखें किसी के काम आ रही हैं ।

पड़ोसन : बेटा रे ! मुझे तो डायबिटीज रहती है । मेरी आँखें किसी के क्या काम आएँगी ?

पहला युवक : डायबिटीज का रोग होने के कारण आँखें बेकार नहीं हो जातीं। चश्मा लगाने वाला व्यक्ति भी अपनी आँखें दान कर सकता है । 

पड़ोसन : क्या बूढ़े-बुढ़िया भी ?

एक युवक : हाँ ! किसी भी उम्र का व्यक्ति अपनी आँखें दान कर सकता है ।

पड़ोसन : क्या आँखें आदमी के मरने के बाद सड़ती नहीं हैं ?

दूसरा युवक : अम्माजी ! मृत्यु के छह घंटे के भीतर अगर शरीर से आँखें निकाल ली जाएँ तो उन्हें नेत्रहीन व्यक्ति के लिए उपयोग में लाया जा सकता है ।

वृद्धा : (गुस्से में चीख कर ) अरे मरे नासपीटो ! तुम्हें इतनी देर से मरने की बातें ही सूझ रही हैं । क्या मैं मर गई हूँ ? भाग जाओ मेरे घर से । निकलो ! 

(वृद्धा जमीन पर पड़ी झाड़ू उठा कर दोनों युवकों को मारने के लिए दौड़ती है । दोनों युवक तेजी से घर से बाहर निकल जाते हैं।)


                     【दृश्य दो】


(रामअवतार जिसकी आयु लगभग 25 वर्ष है ,उसको कुछ लोग हाथों से सहारा देकर वृद्धा के घर में लाते हैं । रामअवतार की आँखों पर पट्टी बँधी है।)

वृद्धा : (चौंक कर) मेरे बेटे ! मेरे राम अवतार ! तुझे क्या हुआ ? तेरी आँखों पर यह चोट कैसी है ?

एक आगंतुक : अम्मा ! यह कार्यालय की सीढ़ियों से गिर गए थे । आँखों में चोट आई है । अब यह ...

वृद्धा : अब यह ...तुम क्या कहना चाहते हो ?

एक आगंतुक : अब यह देख नहीं सकते। इनकी आँखों की रोशनी चली गई है।

वृद्धा : (रोकर)  हाय ! मेरा बेटा अंधा हो गया । हाय राम ! इसकी आँखें चली गई ं। 

राम अवतार : (टटोलते हुए वृद्धा के निकट पहुँचता है तथा उसके सीने से लग जाता है) माँ ! बड़ी भयंकर चोट थी । किस्मत से ही मैं बच पाया ।

पड़ोसन : क्या बेटा राम अवतार ! तुम्हारी आँखें अब कभी ठीक नहीं होंगी ? किसी डॉक्टर को दिखाया ?

राम अवतार : मौसी ! मेरी आँखें ठीक हो सकती हैं। मैंने शहर के आँखों के अस्पताल के डॉक्टर को दिखाया था । उनका कहना है कि कोई अपनी आँखें दान कर दे ,तो मुझे आँखों की रोशनी मिल सकती है ।

वृद्धा और पड़ोसन : (एक साथ चीख कर कहती हैं ) नेत्रदान ! यह तुम क्या कह रहे हो ?

राम अवतार : हाँ माँ !अब तो हमारे शहर में भी आई बैंक खुल गया है । काश लोगों में इतनी चेतना आ जाए कि सब लोग नेत्रदान के संकल्प-पत्र को भरकर अपनी आँखें खुशी से दान करने लगें, तब मुझ जैसे अंधे को शायद आँखें मिल सकें।

पड़ोसन :( वृद्धा से कहती है ) बहना ! यह हमने क्या कर डाला ? 

वृद्धा : (पड़ोसन से)  हमने अपने पैरों पर आप ही कुल्हाड़ी मार ली ।

राम अवतार : मैं कुछ समझा नहीं ..

वृद्धा : मगर मैं सब कुछ समझ गई हूँ। मैं नेत्रदान जरूर करूँगी ,ताकि किसी अंधे को आँखों की रोशनी मिल सके ।

पड़ोसन : (कान पकड़कर)  मैं भी अपनी गलती की माफी चाहती हूँ। मैं भी नेत्रदान करूँगी।

वृद्धा तथा पड़ोसन : ( मिलकर कहती हैं) चलो ! हम अभी आँखों के अस्पताल के आई बैंक में जाकर नेत्रदान का संकल्प-पत्र भरते हैं । सुन लो मोहल्ले वालों ! सुन लो शहर वालों ! सुन लो हमारे घर वालों ! हमने आँखें दान करने का फैसला किया है । जब हम मर जाएँ तो आई बैंक वालों को बुलाकर हमारी आँखें दान जरूर करना । इसी से हमारी आत्मा को शांति मिलेगी ।

(पर्दा गिर जाता है।) 

✍️ रवि प्रकाश

बाजार सर्राफा

 रामपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

 मोबाइल 99976 15451

गुरुवार, 7 अप्रैल 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल के गांव कुरकावली निवासी साहित्यकार स्मृति शेष रामावतार त्यागी का परिचय और 45 गीत ।ये गीत संकलित हैं क्षेमचंद सुमन द्वारा संपादित कृति 'रामावतार त्यागी परिचय एवं प्रतिनिधि कविताएं ' में। इस कृति का प्रकाशन वर्ष 1961 में राजपाल एंड संस दिल्ली ने किया था।


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डॉ मनोज रस्तोगी

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बुधवार, 6 अप्रैल 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कहानी ---छोटी सी आशा.......


"सुनो ! कल कमल को छुट्टी कह दूँ क्या"

"नहीं,बुला लो।"

"अरे छोड़ो न, एक दिन रेस्ट कर लेगा।"

"उसने कौनसा पहाड़ खोदना है?आराम ही तो है,बैठ कर गाड़ी ही तो चलानी है।"

"फिर भी, मुझे ठीक नहीं लग रहा कल बुलाना।कल मुझे कॉलेज जाना नहीं है और हम सब लोग मूवी देखने जा रहै हैं।वहाँ के लिए तो आप ही ड्राइव कर लोगे।"

"जब मैं कह रहा हूँ तो कह रहा हूँ।बस तू कह दे उसे।भले ही कल 2 बजे बुला ले क्योंकि तीन बजे का शो है" 

"ठीक है..." रमा ने बेमन से कहा।उसे अच्छा नहीं लग रहा था कि वह नये साल के दिन खुद तो परिवार के साथ एंजॉय करे और अपने ड्राइवर को बेवजह थोड़ी दूरी की ड्राइव करने के लिए भी बुला ले।उसने सोचा था कि वह कमल को कल की छुट्टी देकर उसे नये साल का जश्न मनाने को कहेगी तो उस गरीब के चेहरे पर भी एक छोटी सी मुस्कान आ जायेगी।

     'हम बड़ी चीजें न कर सकें पर अपने स्तर की छोटी छोटी खुशियां तो बाँट ही सकते हैं' रमा ने मन में बुदबदाया।उसे राघव पर झुंझलाहट आ रही थी,पर अपने पति की बात भी वह नहीं टाल सकती थी।

     कमल गैराज में गाड़ी पार्क कर चुका था और अंदर लॉबी में की-स्टेंड पर गाड़ी की चाभी टाँगने आया था।उसने रोज की तरह रमा से पूछा,

     "मैंने गाड़ी पार्क कर दी है,मैम।अब मैं जाऊँ....?और वो ...कल की तो छुट्टी रहेगी न मैम।आप कह रहे थे न कि कल कॉलेज नहीं जाना है।"

     "हाँ,कल कॉलेज तो नहीं जाना है पर सर बुला रहे हैं कल किसी काम से।तुम कल दो बजे आ जाना।" रमा ने सेन्टर टेबल पर फैली पड़ी मैग्जीन्स समेटने का उपक्रम करते हुए कहा।वह असहज महसूस कर रही थी क्योंकि उसने जो सोचा था वह हो नहीं पाया था।उसने चोर निगाह से कमल की ओर देखा।

     "ठीक है,मैम" कहकर कमल रोज की तरह गम्भीरता ओढ़े गर्दन झुका कर मेन गेट के पास खड़ी अपनी टीवीएस तरफ बढ़ गया।रमा के सिर पर उस उदास चेहरे का बोझ चढ़ गया था,वह जाकर अपने कमरे में लेट गयी।

        अगले दिन ठीक दो बजे कमल अपनी ड्यूटी पर था।

        "नमस्ते मैम,नमस्ते सर।आपको नये साल की बहुत बहुत मुबारकबाद।"

        "नमस्ते कमल,तुमको भी नया साल मुबारक।" राघव ने गर्मजोशी से कहा।

        रमा ने फीकी मुस्कान फैंकी।उसे राघव का कमल को छुट्टी के दिन भी काम पर बुलाना गलत लग रहा था।हालांकि महीने में चार-पाँच छुट्टियाँ कमल को आराम से मिल जाती थी क्योंकि सन्डे को तो रमा कॉलेज नहीं जाती थी।पर आज नया साल था और यही बात उसे खटक रही थी।

        रमा के दो बेटे थे जो युवा कमल से कुछ ही वर्ष छोटे किशोर वय के थे।वे दोनों भी तैयार होकर बाहर आ गये थे।कमल ने गैराज से गाड़ी बाहर निकाली और उसे साफ किया।राघव ड्राइवर के साथ वाली सीट पर बैठा और रमा दोनों बेटों सहित पीछे की सीट पर।

        गाड़ी शहर के सबसे शानदार मॉल कम मल्टीप्लेक्स के मेन गेट पर पहुँच चुकी थी।

        कार पार्किंग में ले जाने से पहले कमल ने मालिक के परिवार को कार से उतारते हुए मालिक से पूछा," सर,कितनी देर की मूवी है?मैं सोच रहा था कार पार्क कर के मैं भी थोड़ी देर पास में ही अपने रिश्तेदार के घर हो आता।जब मूवी ख़त्म हो आप मुझे कॉल कर देना,मैं तुरन्त आ जाऊँगा।"

        "नहीं,तुम कहीं नहीं जाओगे।कार पार्क कर के सीधे यहाँ आओ।"

        कमल चुपचाप कार पार्किंग की ओर बढ़ गया।अब तो रमा को बहुत ही गुस्सा आया पर सार्वजनिक स्थान पर और वह भी जवान बेटों के सामने वह अपने पति से क्या कहे।उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर राघव ऐसा क्यों कर रहे हैं?राघव ने मुस्कुराकर रमा की ओर देखा लेकिन उसने गुस्से से मुंह फेर लिया।

        थोड़ी देर में कमल कार पार्क कर के लौटा तो राघव ने उसके कन्धे पर हाथ रखा और पूछा, "मूवी वगैरह देख लेते हो या नहीं।आज तुम्हें हमारे साथ मूवी देखना है,ठीक है।" कमल का चेहरा कमल की तरह खिल गया।रमा के दोनों बेटे भी पापा को देखकर मुस्कुराने लगे और रमा.... वह तो हक्की बक्की रह गयी थी।राघव ने प्यार से जब रमा की तरफ देखा तो वह मुस्कुरा उठी।रमा के बेटों ने कमल का हाथ पकड़ कर उसे अपने साथ आगे बढ़ाया तो राघव ने रमा का हाथ पकड़ा।पाँच टिकट ऑनलाइन बुक कराये गये थे,थ्री डी मूवी थी जो रेटिंग्स में धूम मचाये हुए थी।ढाई घण्टे की मूवी देखकर हंसते खिलखिलाते सब हॉल से बाहर निकले।

        राघव पिज्जा कॉर्नर की तरफ बढ़ा और सबके लिए पिज्जा आर्डर किया।कमल के चेहरे पर संकोच मिश्रित प्रसन्नता के भाव थे।पाँच जगह पिज्जा सर्व  हुए।सबने खाना शुरू किया।लेकिन ये क्या कमल की आँखों में आंसू थे।राघव ने मज़ाक करते हुए पूछा,"क्या बात मूवी अच्छी नहीं लगी, कमल।"

"नहीं,सर नहीं,ऐसी बात नहीं है।बहुत अच्छी मूवी थी।पर.... मैंने अपने जीवन में आज तक कभी मल्टीप्लेक्स में मूवी नहीं देखी और थ्री डी मूवी भी पहली बार देखी।एक बात बताऊं ,सर।दो साल पहले मैंने इस पिज्जा कॉर्नर पर काम किया है।लेकिन मैंने कभी पिज्जा नहीं खाया।मैं बता नहीं सकता कि मैं आज कितना खुश हूँ।आप सचमुच बहुत बड़े दिल वाले हैं।वरना एक ड्राइवर को अपने साथ कौन बैठाता है,एक ड्राइवर के लिए इतना कौन सोचता है?" राघव ने कमल को गले से लगा लिया।

       रमा खुद पर शर्मिन्दा थी कि वह अपने ही पति की भलमनसाहत को आखिर क्यों नहीं पहचान पायी।पर उसे हल्का गुस्सा भी आया कि आखिर राघव ने उसे ये सब पहले क्यों नहीं बताया।? पर अगले ही पल उसने मन ही मन ढेर सारा प्यार राघव पर उड़ेला।दोनों बेटे बहुत खुश थे कि वे अपने व्यस्ततम माता पिता के साथ नये साल पर मूवी देखने आए।लौटते समय गाड़ी में बैठी सवारियों के भाव बिल्कुल बदले हुए थे।इस नये साल पर सबकी छोटी छोटी आशाएं जो पूरी हुई थीं।

 ✍️ हेमा तिवारी भट्ट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल)निवासी साहित्यकार स्मृतिशेष रामावतार त्यागी की काव्य कृति - आठवां स्वर । इसका प्रकाशन 1958 में फ्रैंक ब्रदर्स एन्ड कम्पनी दिल्ली द्वारा किया गया था । इस कृति में उनके 58 गीत हैं ।भूमिका लिखी है प्रख्यात साहित्यकार रामधारी सिंह दिनकर ने ।



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मुरादाबाद 244001

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मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल)निवासी साहित्यकार स्मृतिशेष रामावतार त्यागी की काव्य कृति - गीत बोलते हैं । इसका प्रकाशन 1986 में आत्माराम एन्ड सन ,कश्मीरी गेट, दिल्ली द्वारा किया गया था ।


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मंगलवार, 5 अप्रैल 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार राजीव कुमार भृगु का गीत---मेरी पीड़ा तुम क्या जानो


मेरी पीड़ा तुम क्या जानो,

कितने दर-दर में भटकी हूँ।

छोड़ा है जबसे दर तेरा,

बीच भँवर में मैं अटकी हूँ।


पाया नहीं किनारा मैंने,

जीवन में इतनी भटकन है।

पा न सकी फिर द्वार तुम्हारा,

विषयों की इतनी अटकन है।


देता कौन सहारा मुझको,

जग की आंखों में खटकी हूँ।


जब से मुझ पर यौवन आया,

जग के वैरी मुझे खींचते।

फैला जाल वासनाओं का,

मोह पाश में मुझे भींचते ।


जब से छूटा साथ तुम्हारा,

रोज़ अधर में मैं लटकी हूँ ।


तेरे घर से आकर मैंने,

ठौर नहीं जग में पाया है ।

नित्य बिकी हूँ बाजारों में,

नहीं किसी ने अपनाया है ।


स्वारथ के अंधों ने जग के,

बाँध डोर में मैं झटकी हूँ ।


अब तो एक चाह है मन की,

तेरे दर को फिर पा जाऊँ ।

इस भटकन को छोड़ जगत की,

तेरे चरणों में आ जाऊँ ।


क्या तुम मुझको अपना लोगे,

यही सोच कर मैं अटकी हूँ ।


✍️ राजीव कुमार भृगु

सम्भल, उ.प्र.,भारत

रविवार, 3 अप्रैल 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम के तत्वावधान में रविवार 3 अप्रैल 2022 को आयोजित मासिक काव्य-गोष्ठी

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हिंदी साहित्य संगम'  की मासिक काव्य-गोष्ठी का आयोजन रविवार 3 अप्रैल 2022 को मिलन विहार स्थित मिलन धर्मशाला में किया गया। 

कवयित्री इंदु रानी द्वारा प्रस्तुत माॅं शारदे की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रामदत्त द्विवेदी ने कहा - 

किस्मत से अपनी ऐसे हम मजबूर हो गये। 

अब खेत में अपने ही हम मजदूर हो गये।।

 मुख्य अतिथि ओंकार सिंह ओंकार ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति इस प्रकार की -

अरुण को सवेरे नमन कर रहा हूँ,

मैं उर्जित स्वयं अपना तन कर रहा हूँ।।

 सभी को खुशी का उजाला जो बांटे, 

उसे जमाने का जतन कर रहा हूँ।।

 विशिष्ट अतिथि के रूप में  विकास मुरादाबादी ने कहा -

जिससे हो वैमनस्य वो जज्बात छोड़ दो। 

बहुत हुआ अब नफरतों की बात छोड़ दो।। 

डॉ. मनोज रस्तोगी की अभिव्यक्ति इस प्रकार रही - 

राह में कभी सीधा चलना 

हमें नहीं भाता है।

हमेशा उल्टा चलना ही 

सुहाता है।

नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने वर्तमान सामाजिक परिस्थिति का चित्र कुछ इस प्रकार खींचा - 

जनता-हित के नाम पर, दिखावटी परमार्थ।

 राजनीति गढ़ती रही, कैसे-कैसे स्वार्थ ।। 

इधर भूख से चल रहा, बाहर-भीतर द्वंद्व। 

उधर नये रचती रही, राजनीति छल-छंद ।।

 कार्यक्रम का संचालन करते हुए राजीव प्रखर ने कहा --

बहुत व्यस्त है जन-सेवा में, हर फरमाबरदार। 

बाहर बोझा ढोती मुनिया, भीतर है त्योहार। 

कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने अपनी अभिव्यक्ति करते हुए कहा - 

कल सपने में आई अम्मा, पूछ रही थी हाल। 

जबसे  दुनिया गई छोड़कर,

बदले घर के ढंग। 

दीवारों को भी भाया अब, 

बँटवारे का रंग। 

सांझी छत की धूप बँट गयी, बैठक पड़ी निढाल।  

इंदु रानी की अभिव्यक्ति इस प्रकार रही - 

मिले न बगुला भक्ति से, व्यर्थ करे अभिमान। 

जे मन चंगा राखिए, ह्रदय प्रभु विद्यमान।।

जितेंद्र जौली ने हास्य-व्यंग की फुहार छोड़ी -

 हम पर सारी रात ये, करते अत्याचार। 

लगता है अब चल रही, मच्छर की सरकार।। 

राशिद मुरादाबादी ने अपने भावों को अपने अशआर में  ढाला - 

नये झगड़े नई रंजिशें ईजाद करते हैं, 

अब कहाँ इन्सां मुहब्बत की बात करते हैं। 

 रामदत्त द्विवेदी द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम विश्राम पर पहुॅंचा।












::::::प्रस्तुति:::::

जितेंद्र जौली 

महासचिव

हिन्दी साहित्य संगम

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


शनिवार, 2 अप्रैल 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की रचना --चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा की, सबको है शत बार बधाई


 नव संवत की बेला आई 

वसुधा ने पाई  तरुणाई


वीथि वीथि मंन्त्रों का गुंजन

मन मंदिर में माँ का वंदन 

प्रतिपल प्रकृति पुलकित मुखरित

महक उठा खुशियों का चंदन ।

पुण्य धरा पर आर्यवर्त की 

गूँज उठी पावन शहनाई ।

नव संवत की बेला आई ।


गेहूं और सरसों की फसलें 

घर आँगन में पटी हुईं है ।

खेत और खलिहान महकते 

जन की भीड़ें डटी हुई है ।

आम्रमंजरी झुकी धरा पर 

आलिंगन करने को आई ।

नव संवत की बेला आई ।.

मंद सुगंधित अनिल बही है 

भौरों का दल आया है ।

कुसुमाकर ने निज प्रभाव से 

मन सबका बहकाया है । 

चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा की 

सबको है शत बार बधाई ।

नव संवत की बेला आई ।

✍️ डॉक्टर प्रीति हुंकार 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत