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गुरुवार, 24 अगस्त 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल का गीत ....दुनिया वालों आँखें खोलो, ये अभिनव भारत है

 


दुनिया वालों आँखें खोलो, ये अभिनव भारत है।

अब तुम भी नत मस्तक हो लो, ये अभिनव भारत है।

कल तक हमको साँप सँपेरों,वाला कहते आये।
हमें मदारी और फकीरों, में ही गिनते आये।
देखो हमने आज चाँद पर झंडा गाढ़ दिया है।
दक्षिण ध्रुव पर विक्रम को निर्भीक उतार दिया है।
भारत की ताकत अब तोलो, ये अभिनव भारत है।
दुनिया वालों आँखें खोलो, ये अभिनव भारत है।

पढ़ो जरा इतिहास सदा हम मेधा में अगड़े थे।
अनुसंधानों में आगे संसाधन में पिछड़े थे।
हमने खुद अपने ही दम पर, दिग्गज सभी पछाड़े।
इसरो छोड़ो नासा में भी, हमने झंडे गाढ़े।
विस्फारित नयनों को धोलो ये अभिनव भारत है।
दुनिया वालों आँखें खोलो, ये अभिनव भारत है।

हमको तो कल्याण विश्व का, हो ये सिखलाया है।
सभी शांति से रहें यही कल्याण मंत्र गाया है।
जो उपलब्धि हमारी उसका फल सब मानव पायें।
सभी शांति से रहें विश्व में गीत प्रेम के गायें।
सुप्त चेतना के पट खोलो, ये अभिनव भारत है।
दुनिया वालों आँखें खोलो, ये अभिनव भारत है।

ये तो केवल शुरूआत है अब हम नहीं रुकेंगे।
नहीं डिगेंगे, नहीं झुकेंगे, आगे सदा बढ़ेंगे।
विश्व पटल पर सभी चुनौती मिलकर पार करेंगे
विश्व गुरु तक भारत को पहुँचा कर ही दम लेंगे।
अब तो बोलो तुम भी बोलो, ये अभिनव भारत है।
दुनिया वालों आँखें खोलो, ये अभिनव भारत है।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 1 जुलाई 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल की कहानी .......मानवता का धर्म

 


पहाड़ी घुमावदार रास्तों पर श्याम बाबू अपनी गाड़ी सहज गति से चलाते हुए जा रहे थे। अचानक एक मोड़ काटते ही सड़क किनारे भीड़ दिखाई दी। ट्रैफिक भी रुका हुआ था।श्याम सिंह ने गाड़ी से उतरकर पूछा तो पता चला एक कार नीचे गिर गयी है। तभी नीचे से एक घायल को ऊपर लाया गया। श्याम बाबू उसे देखते ही चौंक गये: अरे ये तो दिलावर है। दिलावर गंभीर रुप से घायल था और उसे तुरंत चिकित्सा की जरुरत थी। बिना एक क्षण की देरी किये श्याम बाबू चिल्लाये: अरे जल्दी करो, इसे मेरी गाड़ी में लिटा दो और अस्पताल लेकर चलो। थोड़ी ही देर में वह अस्पताल पहुँच गये। डाक्टर ने जाँच की और कहा खून बहुत बह गया है। इन्हें तुरंत दो यूनिट खून चढ़ाना जरूरी है, नहीं तो ये नहीं बचेंगे। संयोग से श्याम बाबू का और वहाँ उपस्थित दो अन्य लोगों का खून भी मैच कर गया। लगभग दो घंटे की मशक्कत के बाद आपरेशन थियेटर से डाक्टर बाहर आये और बोले , आप लोग इन्हें टाइम से ले आये। और थोड़ी देर हो जाती तो ये नहीं बचते।

श्याम बाबू ने ईश्वर का बहुत धन्यवाद किया और अपने दफ्तर में आ गये। बैठे बैठे उन्हें वो दिन स्मरण हो आया जब यही दिलावर किसी टेंडर के सिलसिले में उनसे मिला था और टेंडर न मिलने पर उन्हें खुलेआम धमका कर गया था। श्याम बाबू एक आध दिन थोड़ा विचलित हुए, फिर सब भूल गये। 

दफ्तर के बाद शाम को श्याम बाबू फिर अस्पताल पहुँचे। दिलावर को होश आ चुका था।कहो दिलावर अब कैसे हो, श्याम बाबू ने उसका हाथ सहलाते हुए पूछा। तभी वहाँ खड़ी नर्स ने दिलावर को बताया, यही साब जी अपनी गाड़ी में आपको अस्पताल लाये थे, और अपना खून भी दिया था। इन्हीं की वजह से आपकी जिन्दगी बच गयी,नहीं तो यहाँ तक आते आते तमाम एक्सीडेंट के केस निपट जाते हैं।

दिलावर यह सुन कर रोने लगा और हाथ जोड़कर बोला बाबूजी आप मुझे क्षमा कर दो। मैंने आपके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया किंतु आपने सब कुछ भुलाकर मेरी जान बचायी।

अरे, रोओ मत, श्याम बाबू उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोले: ये तो मानवता का कार्य था। कोई और भी होता तो उसे भी हम अस्पताल पहुँचाते। और तुम ज्यादा मत सोचो। मैंने तो वह बात तभी भुला दी थी। हमारा काम ही ऐसा है। जिसका काम नहीं हो पाता वो ही धमका जाता है। तुम जल्दी से ठीक हो जाओ।

साब' आप इंसान नहीं इंसान के रुप में फरिश्ता हो। आपका बहुत बड़ा दिल है। जीवन में आपके किसी काम आ सका तो अपने को धन्य मानूँगा, कहते कहते दिलावर फिर रोने लगा।

रोओ मत दिलावर, सबकी रक्षा करनेवाला वह ईश्वर ही होता है, वो ही समय पर हमारे पास मदद के लिये किसी न किसी को भेज देता है। अब आगे से तुम भी यह निश्चय कर लो कि मुसीबत में यथासंभव अन्जान व्यक्ति की मदद करोगे और किसी से दुर्व्यवहार नहीं करोगे।

अच्छा चलता हूँ, कहकर श्याम बाबू अपने घर वापस आ गये।


✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ. मनोज रस्तोगी, श्रीकृष्ण शुक्ल एवं राजीव प्रखर को टी.जी.टी साहित्यरत्न सम्मान

मुरादाबाद के तीन रचनाकारों डॉ. मनोज रस्तोगी, श्रीकृष्ण शुक्ल एवं राजीव प्रखर को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए, प्रतिष्ठित द ग्राम टुडे प्रकाशन समूह (देहरादून) द्वारा टी.जी.टी. साहित्यरत्न सम्मान से सम्मानित किया गया।              मुरादाबाद के जीलाल मोहल्ला स्थित साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय में गुरुवार 16 फरवरी 2023 को आयोजित हुए एक संक्षिप्त समारोह में इन तीनों रचनाकारों को यह सम्मान प्रदान किया गया। इस अवसर पर उपरोक्त प्रकाशन समूह की ओर से वरिष्ठ पत्रकार एवं समूह संपादक  शिवेश्वर दत्त पांडे उपस्थित रहे। अपने उद्बोधन में श्री पांडे ने कहा - "ऐतिहासिक मुरादाबाद की धरती सदैव ही साहित्यिक विभूतियों से भरी पूरी रही है जिनकी प्रेरणा से मुरादाबाद को निरंतर उत्कृष्ट साहित्यकार/रचनाकार मिल रहे हैं, जो अत्यंत हर्ष का विषय है।" उन्होंने साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय को मील का पत्थर बताते हुए कहा कि इस शोधालय में संरक्षित साहित्य शोधार्थियों के लिए बहु उपयोगी सिद्ध होगा।

     इस अवसर पर एक संक्षिप्त काव्य-गोष्ठी का भी आयोजन किया गया जिसमें डॉ. मनोज रस्तोगी, श्रीकृष्ण शुक्ल एवं राजीव 'प्रखर' ने अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्ति की।

























मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल की रचना ..... मुस्कुराए थे वो, मुस्कुराना पड़ा

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शनिवार, 21 जनवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की हास्य कविता ....सात जन्म के साथ का वरदान


शादी की पचासवीं सालगिरह पर 

पति पत्नी ने घर में पूजा रखी,

जैसे जैसे पंडित जी बोलते गये

 वैसे वैसे दान दक्षिणा रखी,

उनकी श्रद्धा देख भगवान भी प्रसन्न हो गये, 

तुरंत आकाशवाणी हुई 

और वर माँगने का मौका दिया,

पति ने तुरंत सात जन्मों तक

एक दूसरे का साथ माँग लिया,

भगवान् ने कहा एवमस्तु , 

अगले सात जन्मों तक 

तुम्हें एक दूजे का साथ दिया

यह सुनते ही पत्नी बोली 

भगवन ये क्या कर दिया, 

ये वरदान है या सजा, 

न कोई चेंज न मजा

पूजा तो हम दोनों ने की थी,

तो वरदान इनको ही क्यों दिया,

पूजा की सारी तैयारी तो मैंने की,

वेदी मैंने  सजाई, 

प्रसाद मैंने बनाया, 

पूजा की सारी सामग्री मैं लाई,

यहाँ तक कि पंडित जी को

दक्षिणा भी मैंने थमाई

इन्होंने क्या किया सिर्फ हाथ जोड़े, 

मस्तक नवाया, आरती घुमायी, 

ये सब तो मैंने भी साथ में किया,

फिर वरदान अकेले इनको क्यों दिया,

अब मुझे भी वर दीजिए

सात जन्म वाली स्कीम को 

वापस ले लीजिए,

भगवान भी हतप्रभ हो गये, सोचने लगे,

मेरी ही बनायी नारी,

मुझ पर ही पड़ गयी भारी,

बोले: एक बार वरदान दे दिया सो दे दिया, 

दिया हुआ वरदान कभी वापस नहीं होता, 

इतना जान लो,

तुम भी कोई वरदान मांग लो,

पत्नी ने फिर दिमाग लगाया, 

तुरंत उपाय भी सूझ आया,

बोली भगवन कोई बात नहीं वरदान वापस मत लीजिए,

बस थोड़ा संशोधन कर दीजिए,

अगले जन्म में मुझे पति और इन्हें मेरी पत्नी बना दीजिए,

मैं भी चाहती हूँ, कि मैं पलंग पर बैठूँ 

और ये दूध का गिलास लेकर आयें,

मैं जब लेटूं, ये पैर दबाएं, 

मैं खाना खाऊं तो ये पंखा झुलायें,

मैं दफ्तर जाऊँ तो ये दरवाजे पर छोड़ने आयें,

और जब आऊँ तो ये दरवाजे पर खड़े मुस्काएं,

और क्या बताऊँ, 

थोड़े में ही बहुत समझ लीजिए,

बस मुझे इतना ही वरदान दे दीजिए.

भगवान कुछ कहते, इससे पहले ही पति चिल्लाया, 

भगवन ये अनर्थ मत कीजिए, हमें ऐसे ही रहने दीजिए,

सात जनम के चक्कर में

हमारे शेष जीवन का सुख चैन मत छीनिये.

प्रभु कृपा कीजिए, 

और हमें इसी जन्म में सुख-चैन से रहने दीजिए,

भगवान ने भी मौका तलाशा,  

तुरंत एवमस्तु कहा और अंतर्ध्यान हो गये 


✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 29 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की व्यंग्य कविता .....


एक दिन एक कवि सम्मेलन में 

एक श्रोता 

खड़ा होकर चिल्लाया

ये क्या सुनाते हो आप, 

ये कविता नहीं चुटकुले हैं,

कल ही के अखबार में छपे हैं,

उन्हीं चुटकुलों पर मुलम्मा चढ़ाते हो,

और शान से मंच पर सुनाते हो,

और लिफाफा भी तगड़ा ले जाते हो,

जरा तो शरम करो यार

कुछ तो ऐसा सुनाओ 

जिसमें राग रंग रस छंद नजर आये

कविता में कुछ तो कवित्व नजर आये

मैं थोड़ा सकपकाया, फिर चिल्लाया,

जी हाँ, आप सच कह रहे हो,

हम चुटकुले सुनाते हैं, 

लेकिन भैय्ये सच तो यह भी है कि,

आप भी तो चुटकुले ही सुनना चाहते हो,

एक बार नहीं बार बार सुनते हो, 

वन्स मोर वन्स मोर करते हो,

और यदि हम गीत गज़ल या मुक्तक सुनाते हैं, 

तो आप ही हमें हूूट भी करते हो,

ऐसा नहीं है कि हम 

गीत गजल रस छंद नहीं लिखते

हमारे संकलन तो देखो,

उनमें तो यही सब हैं दिखते,

यहाँ तो हम आपका 

विशुद्ध मनोरंजन करते हैं, 

माल वही बिकता है 

जिसके खरीदार होते हैं,

इसीलिए हम भी चुटकुले सुनाते हैं,

किंतु इन्हीं चुटकुलों के बीच में 

आपकी सोई चेतना को भी जगाते हैं,

और भैय्ये निश्चिंत रहो,

जिस दिन ये सोई चेतना जाग जायेगी,

मंचों पर चुटकुले नहीं,

विशुद्ध कविता नज़र आयेगी


✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल

MMIG - 69

रामगंगा विहार

 मुरादाबाद  244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मंगलवार, 26 जुलाई 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल द्वारा अशोक विश्नोई के लघुकथा संग्रह सपनों का शहर की समीक्षा ....तमाम विसंगतियों को सशक्त रूप से दर्शाती हैं अशोक विश्नोई की लघुकथाएं

 जीवन की आपाधापी में तमाम मोड़ ऐसे आते हैं जहाँ परिस्थितियाँ अप्रत्याशित होती हैं I कहीं सामान्य मानवीय व्यवहार के कारण तो कहीं मानवीय मूल्यों के क्षरण के कारण ऐसी घटनाएं घट जाती हैं जो हतप्रभ कर देती हैं I

ऐसे ही घटनाक्रमों के कथानक को लेकर सूक्ष्मता से व प्रभावशाली ढंग से कम से कम शब्दों में व्यक्त करने की विधा है लघुकथा ।

 'सपनों का शहर' मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई का यह दूसरा लघुकथा संग्रह है । विश्नोई जी कहते हैं कि वो वही लिखने का प्रयास करते हैं जो समाज में घटित होता है - अर्थात जैसा देखा वैसा लिखा ।

उनके उपरोक्त कथन के अनुरूप ही इस संग्रह में सभी लघुकथाएं अपने आस पास के परिवेश में घटित होने वाली घटनाओं पर ही आधारित हैं । लघुकथा पढ़ते पढ़ते लगता है कि ये तो हमारे संज्ञान में है, या ऐसी घटनाएं तो आम बात हैं और यहाँ वहाँ घटती ही रहती हैं, किंतु उनकी लघुकथाएं तमाम विसंगतियों को सशक्त रूप से दर्शाती भी हैं और संदेश भी देती हैं ।भाषा और प्रस्तुति की शैली भी सामान्य और सहज है,   कहीं भाषा की क्लिष्टता या गूढ़ता नहीं मिलती ।

उक्त संग्रह में उनकी 101 लघुकथाएं संकलित हैं Iपहली ही लघुकथा में सेठ जी द्वारा भिखारी को दस रुपये न देकर भगा देना और फिर केवल दस रुपये के अंतर से टेंडर निरस्त हो जाना, जरूरतमंदों की मदद करने व उनके साथ अच्छा व्यवहार करने का संदेश देता है ।इसी प्रकार आदमी शीर्षक की लघुकथा में सेठ जी को और करारा तमाचा लगता है, जब पानी पिलाने की गुहार लगाता फकीर कहता है, 'सेठ जी कुछ देर के लिये आप ही आदमी बन जाइए' ।

कुछ लघुकथाएं कल्पना पर आधारित प्रतीत होती हैं ।हालाँकि वे हास्य प्रधान लघुकथाएं हैं, जैसे 'मजबूरी' नामक लघुकथा को ही लें, जहाँ पंद्रह दिन से टिके मेहमानों को विदा करने के उद्देश्य से तांत्रिक को बुलाया गया, योजनानुसार तांत्रिक ने धूनी रमाकर कहा : नये की बलि दो, और नत्थू की पत्नी ने जैसे ही कहा: महाराज नया तो कोई नहीं है, हाँ चार मेहमान जरूर हैं, जिसे सुनकर मेहमान भाग लिये I इस लघुकथा में कल्पना जनित हास्य झलकता है, जो पाठक को आनंदित करता है ।ऐसी ही लघुकथा कंजूस बाप है जो घड़ी खराब हो जाने के कारण बार बार कंजूस बाप से पचास रुपये माँगने आ जाता है, और अंतत: बाप घड़ी को ही पत्थर से कूटकर समाप्त कर देता है । एक और रोचक कथा है कवि गोष्ठी ।

इसी प्रकार सभी लघुकथाएं रोजमर्रा के क्रियाकलापों, मानवीय व्यवहार, ऊँच नीच, छल फरेब,लालच, दुराचार, आदि मानवीय बुराइयों का पर्दाफाश करती हैं और समाज को इनसे विलग रहने का संदेश देती हैं ।

      समग्रता में देखें तो श्री विश्नोई जी इन लघुकथाओं के माध्यम से पाठकों को तमाम विसंगतियों और असहज परिस्थितियों से  अवगत कराने के साथ साथ इन तमाम बुराइयों के प्रति सचेत करते हैं, साथ ही रोचकता बनाये रखने में सफल रहे हैं । कुल मिलाकर सपनों का शहर एक बार तो पठनीय संग्रह है ।





कृति : सपनों का शहर (लघु कथा संग्रह)

 लेखक : अशोक विश्नोई  

 प्रकाशक : विश्व पुस्तक प्रकाशन, नई दिल्ली

 प्रथम संस्करण : 2022 पृष्ठ संख्या -103

 मूल्य : 250 ₹

 

समीक्षक :श्रीकृष्ण शुक्ल,

MMIG - 69,

रामगंगा विहार,

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

रविवार, 28 नवंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल की ग़ज़ल ----ग़मज़दा कोई नहीं है, मौत पर भी आजकल, लोग जुड़ते हैं फक़त चेहरा दिखाने के लिये.....


रूठना भी है जरूरी, मान जाने के लिये।

कुछ बहाना ढूंढ लीजे मुस्कुराने के लिए ।।


जिन्दगी की जंग में उलझे हुए हैं इस कदर।

वक्त ही मिलता नहीं, हँसनै हँसाने के लिये।।


काम ऐसा कर चलें जो नाम सदियों तक रहे।

अन्यथा जीते सभी हैं सिर्फ खाने के लिये।।


ग़मज़दा कोई नहीं है, मौत पर भी आजकल।

लोग जुड़ते हैं फक़त चेहरा दिखाने के लिये।।


कृष्ण ये धरना यहाँ पर अनवरत चलता रहे।

माल म‌‌‌िलता है यहाँ भरपूर खाने के लिये।।


✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद ,उत्तर प्रदेश, भारत


शुक्रवार, 19 नवंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल का गीत ----आओ हम सब बनें भगीरथ, गंगा को फिर स्वच्छ करें स्वच्छ रखें नाले नाली सब, अपशिष्टों से मुक्त करें


एक भगीरथ के तप से ही, धरती पर गंगा आई

शिव के सहस्त्रार से होकर, अमृतमय जल ले आई

गंगाजल का एक आचमन, तन मन पावन करता था

पाप ताप को धोते धोते, पतित पावनी कहलाई

 

उद्गम से जब चलती है तो, अमृत लेकर चलती है

देवभूमि तक पावनता से, कल कल बहती रहती है

इसके पावन गंगाजल से, जड़ चेतन जीवन पाते

औषधीय गुण धारण करके, तृप्त सभी को करती है

 

पाप हमारे धोने को ये अविरल बहती जाती है

तन मन को पावन करने में, तनिक नहीं सकुचाती है

पर हम अपनी सभी गंदगी, फेंक इसी में जाते हैं

मैल हमारा धोते धोते खुद मैली हो जाती है

 

गंगा की अविरल धारा को, हमने दूषित कर डाला

सब अपशिष्ट ग्रहण कर गंगा आज रह गई बस नाला 

पतित पावनी गंगा का जल, तन मन निर्मल करता था

आज आचमन भी कैसे हो, गंगाजल दूषित काला. 

 

 गंगा के अविरल प्रवाह पर, बाँध अनेक बना दिए  

अपशिष्टों के नद नाले भी, गंगाजल में मिला दिए

 बूँद बूँद जल में अमृत था, बूँद बूँद अब गरल हुआ

  पाप मोचिनी को मलीन कर, हमने कितने पाप किए

 

  आओ हम सब बनें भगीरथ, गंगा को फिर स्वच्छ करें

  स्वच्छ रखें नाले नाली सब, अपशिष्टों से मुक्त करें

  धर्म कर्म के सभी विसर्जन, धरती में करना सीखें

  स्वच्छ बने ये गंगा फिर से, पुनः आचमन सभी करें

 

 ✍️  श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत


सोमवार, 18 अक्तूबर 2021

सड़क : चार दृश्य । मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा ---- बगुलाभगत, श्रीकृष्ण शुक्ल की कहानी--ईमानदार का तोड़, राजीव प्रखर की लघुकथा-- दर्द और अखिलेश वर्मा की लघुकथा---वो तो सब बेईमान हैं

 


बगुलाभगत

      इंजीनियर ने ठेकेदार से क्रोध जताते हुए कहा ," क्या ऐसी सड़क बनती है जो एक बरसात में उधड़ गई, तुम्हारा कोई भी बिल पास नहीं होगा।" बड़े साहब मुझ पर गरम हो रहे थे उन्हें क्या जवाब दूंगा ? ठेकेदार बोला ," सर आप मेरी भी सुनेंगे या अपनी ही कहे जाएंगे।" बोलो क्या कहना है।" इंजीनियर ने कहा।

      " सर 40%में ,मैं रबड़  की सड़क तो बना नहीं सकता,ठेकेदार ने कहा ,फिर आपकी भी तो उसमें ---------? अब क्या था इंजीनियर का चेहरा देखने लायक था -------। 

✍️ अशोक विश्नोई

मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

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ईमानदार का तोड़

क्या मैं अंदर आ सकता हूँ, आवाज सुनते ही सुरेश कुमार ने गरदन उठाकर देखा, दरवाजे पर एक अधेड़ किंतु आकर्षक व्यक्ति खड़े थे,  हाँ हाँ आइए, वह बोले!

सर मेरा नाम श्याम बाबू है, मेरा सड़क के निर्माण की लागत का चैक आपके पास रुका हुआ है!

अच्छा तो वो सड़क आपने बनाई है, लेकिन उसमें तो आपने बहुत घटिया सामग्री लगाई है, मानक के अनुसार काम नहीं किया है, सुरेश कुमार बोले!

कोई बात नहीं साहब, हम कहीं भागे थोड़े ही जा रहे हैं, पच्चीस साल से आपके विभाग की ठेकेदारी कर रहे हैं, जो कमी आयेगी दूर कर देंगे, आप हमारा भुगतान पास कर दो, हम सेवा में कोई कमी नहीं रखेंगे!

आप गलत समझ रहे हो श्याम बाबू, पहले काम गुणवत्ता के अनुसार पूरा करो,तभी भुगतान होगा, कहते हुए सुरेश उठ गये और विभाग का चक्कर लगाने निकल गये!

श्याम बाबू चुपचाप वापस आ गये!

पत्नी ने पानी का ग्लास देते हुए पूछा: बड़े सुस्त हो, क्या हो गया तो बोल पड़े एक ईमानदार आदमी ने सारा सिस्टम बिगाड़ दिया है, कोई भी काम हो ही नहीं पा रहा है, सबके भुगतान रुके पड़े हैं, बड़ा अजीब आदमी है!

खैर इसकी भी कोई तोड़ तो निकलेगी!

कुछ ही दिनों बाद लेडीज क्लब का उत्सव था, श्याम बाबू की पत्नी उसकी अध्यक्ष थीं, श्याम बाबू के मन में तुरंत विचार कौंधा और बोले: सुनो इस बार नये अधिकारी सुरेश बाबू की पत्नी सुरेखा को मुख्य अतिथि बना दो और सम्मानित कर दो!

कार्यक्रम के दिन पूर्व योजनानुसार सुरेखा को मुख्य अतिथि बनाया गया, सम्मानित किया गया, उन्हें अत्यंत कीमती शाल ओढ़ाया गया और एक बड़ा सा गिफ्ट पैक भी दिया गया!

कार्यक्रम के बाद श्याम बाबू की पत्नी पूछ बैठी: आप तो बहुत बड़ा गिफ्ट पैक ले आये, क्या था उसमें!

कुछ ज्यादा नहीं, बस एक चार तोले की सोने की चेन,शानदार बनारसी साड़ी और कन्नौज के इत्र की शीशी थी, श्याम बाबू बोले!

इतना सब कुछ क्यों, 

कुछ नहीं, ये ईमानदार लोगों को हैंडिल करने का तरीका है!

कहना न होगा, अगले ही दिन श्यामबाबू का भुगतान हो गया!

✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल,

MMIG - 69, रामगंगा विहार,

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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दर्द

"साहब ! हमारे इलाके की सड़कें बहुत खराब हैं। रोज़ कोई न कोई चोट खाता रहता है। ठीक करा दो साहब, बड़ी मेहरबानी होगी.......",  पास की झोपड़पट्टी में रहने वाला भीखू नेताजी के सामने गिड़गिड़ाया।

"अरे हटो यहाँ से। आ जाते हैं रोज़ उल्टी-सीधी शिकायतें लेकर। सड़कें ठीक ही होंगी। उनमें अच्छा मेटेरियल लगाया है......."। भीखू को बुरी तरह  डपटने के बाद सड़क पर आगे बढ़ चुके नेताजी को पता ही न चला कब उनका पाँव एक गड्डे में फँसकर उन्हें बुरी तरह चोटिल कर गया।

"उफ़ ! ये कमबख्त सड़कें बहुत जान लेवा हैं......", दर्द से बिलबिलाते हुए नेताजी अब सम्बंधित विभाग को फ़ोन मिलाते हुए हड़का रहे थे।

✍️ राजीव 'प्रखर'

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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वो तो सब बेईमान हैं 

" अरे वाह चौधरी ! मुबारक हो आज तो तुम्हारे गाँव की सड़क बन गई है .. अब सरपट गाड़ी दौड़ेगी । " भीखन ने  खूँटा गाड़ते चौधरी को देखते हुए कहा ।

" पर यह क्या कर रहे हो , खूँटा सड़क से सटा कर क्यों लगा रहे हो । " वो फिर बोला ।

" सड़क किनारे की पटरी चौड़ी हो गई है ना .. तो कल से भैंसे यही बाँधूँगा .. अंदर नहलाता हूँ तो बहुत कीच हो जाती है घर में .. I " चौधरी बेफिक्र होकर बोला ।

" पर पानी तो सड़क खराब कर देगा चौधरी " भीखू बोला ।

" मुझे क्या । ठीक कराएँगे विभाग वाले , सब डकार जाते हैं वरना । " हँसकर चौधरी बोला ।

भीखू आगे बढ़ा ही था कि देखा रामदीन ट्रेक्टर से खेत जोत रहा था .. वो असमंजस से बोला , " अरे रामदीन भाई ! यह क्या कर रहे हो . तुमने तो अपने खेत के साथ साथ सड़क के किनारे की पटरी तक जोत डाली .. बिना पटरी के तो सड़क कट जाएगी । "

रामदीन जोर से हँसा और बोला , " अरे बाबा , यह फसल अच्छी हो जाए फिर से मिट्टी लगा दूँगा । और रही बात सड़क कटने की तो फिर से ठीक करेगा ठेकेदार .. उसकी दो साल की गारंटी होती है ... और विभाग वाले .. हा हा हा ! वो तो सब बेईमान हैं ।"

✍️ अखिलेश वर्मा

   मुरादाबाद

   उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 31 जुलाई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष दुर्गादत्त त्रिपाठी के कृतित्व पर केंद्रित श्रीकृष्ण शुक्ल का आलेख --- सामाजिक विषमता का चित्रण है दुर्गादत्त त्रिपाठी की रचनाओं में

 


कीर्तिशेष श्री दुर्गादत्त त्रिपाठी जी की रचनाओं में सामाजिक विषमता का चित्रण है, आध्यात्मिक चिंतन है, राजनीति के दमनकारी व्यवहार और निरीह जनता की लाचारी का चित्रण भी है।

उनकी कविताओं में से विशेष रूप से कुछ रचनाओं की पंक्तियां यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ जो उनके भीतर के साहित्यकार को परिभाषित करने में सक्षम हैं।

एक यही तो है स्वतंत्र जन नगरी

कौन मनुज काया को कहता कारा

हमें सर्वहितकारी सक्रियता से

लेना है पल पल का लेखा जोखा

विश्व व्यथा से सतत संग रखने को

रखना रोम रोम का खुला झरोखा 

होने और न होने से जीवन के

बड़ा तथ्य निश्चित गंतव्य हमारा।

इसी रचना में आगे कहते हैं:

जन बलिदान मूल्य पर जनमत पाना क्षम्य नहीं

इसमें छिपी हुई हिंसा से जनपद मरता है।

इन पंक्तियों में वह सत्ता पाने के लिये हिंसा का सहारा लेने वाली राजनीति को भी चेतावनी देते दिखाई देते हैं।साथ ही सत्ता की दमनकारी नीतियों के कारण उत्पन्न परिस्थितियों का जीवंत चित्रण इन पंक्तियों में भी परिलक्षित होता है:

कहीं भूखों ने लूटा नाज

आग उगली पिस्तौलों ने

कहीं दंगों में जन निर्दोष 

भून डाले पिस्तौलों ने

समाज में सफल और समर्थ वर्ग की अर्थपिपासा, संवेदन शून्यता,  परिवारों का विघटन, इन सभी परिस्थितियों को अत्यंत मार्मिक तरीके से उन्होंने व्यक्त किया है। देखें ये पंक्तियां:

जाने कब सबलों की विजय पिपासा

बूंद बूंद जल सागर का पी जाये

शेष स्नेह में संवेदना नहीं है

परिवारों की चौखट चटख रही है

प्रेतों की छवियां समाज पर उभरी

आकृति बदल गयी है चित्र वही है

इसके परिणाम भी उन्होंने इन पंक्तियों में दर्शाए हैं:

लोक प्रगति को अवसादों ने घेरा

विश्व शांति का मुँह अशान्ति ने फेरा।

साथ ही साथ अपनी रचनाओं में उन्होंने समाज को शिक्षा भी दी है:

बोलो दो बोल किन्तु मधुर मधुर बोलो

रस में विष तीसरे वचन का मत घोलो।

और आने वाले समय के लिये आगाह भी किया है :

राज्य के महोत्सव सब राजसी होंगे

और जन अभावों की यातना सहेंगे।

साहित्यकार की रचनाधर्मिता कभी अभावों या दबाव के आगे प्रभावित नहीं होती  वह किसी त्रासदी से विवश होकर नहीं लिखता, कुछ यही व्यक्त होता है इन पंक्तियों में:

पामर से पामर जन

झेले इतिहासों ने

भूख से हिला डाले

व्यक्ति विवश त्रासों ने

एक झिल न पाया तो मैं

और अंत में कवि की रचनाधर्मिता का स्वआकलन जो कवि को कभी निराश या हताश नहीं होने देता:

जो कुछ उसने लिखा भले मर जाए

किन्तु न मर पायेगी उत्कट ममता

उपरोक्त विवरण उनके विराट व्यक्तित्व के संबंध में अत्यंत सूक्ष्म परिचय देता है, लेकिन उनके भीतर के साहित्यकार से अच्छे से परिचित करवाता है।

✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, MMIG 69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद 244001, उत्तर प्रदेश, भारत