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सोमवार, 22 जुलाई 2024

मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल को कला भारती की ओर से 21 जुलाई 2024 को आयोजित कार्यक्रम में कलाश्री सम्मान

 मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल को उनकी साहित्यिक सेवाओं एवं उत्कृष्ट  सृजन के लिए साहित्यिक संस्था कला भारती की ओर से  कलाश्री सम्मान से अलंकृत किया गया। सम्मान समारोह का आयोजन रविवार 21 जुलाई 2024 को मिलन विहार स्थित आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कॉलेज में हुआ। 

 रघुराज सिंह निश्चल द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता बाबा संजीव आकांक्षी ने की। मुख्य अतिथि रामदत्त द्विवेदी एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में ओंकार सिंह ओंकार मंचासीन हुए। कार्यक्रम का संयुक्त संचालन राजीव प्रखर एवं आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ ने किया। सम्मान स्वरूप श्री शुक्ल को अंग-वस्त्र, मान-पत्र एवं स्मृति चिह्न अर्पित किए गये। सम्मानित  साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल पर आधारित आलेख का वाचन करते हुए राजीव प्रखर ने कहा ... अपने उत्कृष्ट एवं प्रेरक साहित्यिक समर्पण व सक्रियता से मुरादाबाद को गौरवान्वित करने वाले वरिष्ठ रचनाकार श्रीकृष्ण शुक्ल 'कृष्ण' का जन्म भाद्रपद कृष्ण, अष्टमी संवत् 2010 तदनुसार 30 अगस्त 1953 को मुरादाबाद में कीर्तिशेष श्री पुरुषोत्तम शरण शुक्ल एवं श्रीमती सरला देवी शुक्ल के कुलदीपक के रूप में हुआ। आपने अर्थशास्त्र में परास्नातक एवं CAIIB के दोनों भागों में विशेष योग्यता प्राप्त की। बचपन से ही परिवार और परिवेश से मिले संस्कारों ने संस्कृति और साहित्य की ओर आपको आकर्षित किया। उत्कृष्ट व्यक्तित्व एवं कृतित्व के स्वामी शुक्ल जी से मेरा परिचय अब से लगभग 8 वर्ष पूर्व साहित्यिक मुरादाबाद वाट्स एप ग्रुप के माध्यम से हुआ। उनका सरल, सहज एवं सौम्य व्यवहार मुझे आरंभ से ही भाता रहा है। मैं नि:संकोच कह सकता हूॅं कि अपनी साहित्यिक  यात्रा में मुझे जिन साथियों ने सर्वाधिक आत्मबल एवं प्रेरणा दी, श्रीकृष्ण शुक्ल जी उनमें से एक हैं। वास्तविकता तो यही है कि कोई अगर प्रेम, आत्मीयता, सरलता एवं सौम्यता से दो-चार होते हुए उसे ग्रहण करना चाहे, तो वह आदरणीय श्रीकृष्ण शुक्ल जी से मिले, बतियाए एवं अपने जीवन को निरंतर उन्नति के पथ पर आगे बढ़ाता रहे।  गद्य लेखन का कार्य छात्र जीवन से ही प्रारंभ हो गया था। विभिन्न स्तरों पर निबंध लेखन व वाद विवाद प्रतियोगिताओं में पुरुस्कृत हुए। आपने आगरा विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित गाँधी शताब्दी वाक् प्रतियोगिता में, (जो तीन चरणों में संपन्न हुई थी), द्वितीय पुरुस्कार तथा आपके विद्यालय की टीम ने प्रथम पुरुस्कार प्राप्त किया। जीवन के विभिन्न उत्तरदायित्व को पूर्ण करते हुए सन् 1973 में आपकी भारतीय स्टेट बैंक में नियुक्ति हुई। सेवा के साथ-साथ शिक्षा भी जारी रही तथा वर्ष 1984 में अर्थशास्त्र से आपने परास्नातक उपाधि प्राप्त की। सन् 1984 में रामपुर में नियुक्ति के दौरान आकाशवाणी रामपुर से आपकी वार्ताएं प्रसारित होने लगीं। वहीं स्मृतिशेष दिग्गज मुरादाबादी जी से संपर्क हुआ तथा आपने अपनी काव्य क्षमता को और अधिक गहराई से लेना आरंभ किया। उसी दौरान डॉ कारेन्द्र देव त्यागी उर्फ मक्खन मुरादाबादी जी से संपर्क हुआ तथा उनकी रचनाओं से प्रेरित होकर आपने व्यंग्य क्षेत्र में भी अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करवाई। उन दिनों छंदमुक्त लेखन का चलन आम था। आपकी अनेक व्यंग्य रचनाएं गोष्ठियों में सराही गयीं। इसी अनुक्रम में आपने कुछ कवि सम्मेलनों में भी प्रस्तुति दी। आकशवाणी रामपुर से भी यदा कदा कविताएं प्रसारित होती रहीं। वर्ष 1986  में रामपुर से पदोन्नत होकर आपका स्थानांतरण हो गया। नौकरी व परिवार की जिम्मेदारियां बढ़ती गयीं जिस कारण सृजन यात्रा कुछ थम सी गयी। वर्ष 1993 में आपका पुनः मुरादाबाद स्थानांतरण हुआ। उन दिनों आध्यात्मिक संस्था सहजयोग का प्रभार मिला । नौकरी, परिवार और सहजयोग के साथ साहित्य पीछे छूटता रहा। वर्ष 2013 के अंत में आप स-सम्मान सेवानिवृत्त होकर मुरादाबाद आ गये तथा सोशल मीडिया पर सक्रिय हुए। इस अवधि में आपके सृजन कार्य ने पुनः गति प्राप्त की। आपकी सृजन यात्रा की इस द्वितीय पारी में एक बड़ी भूमिका निभाई मुरादाबाद के वरिष्ठ रचनाकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी जी के वाट्स एप ग्रुप, साहित्यिक मुरादाबाद ने। आपके निवेदन पर उन्होंने आपको इस समूह से जोड़ा। इसी के साथ आपका रचनाकर्म एवं साहित्यिक छवि निरंतर पुष्ट होते गये। आपकी रचनाएं कई साझा संकलनों में प्रकाशित हुई हैं, जिनमें प्रमुख हैं: उजास, छाँव की बयार, काव्यधारा, स्वर्णाक्षरा, प्रणाम काव्यधारा, धरा से गगन तक, गुरु कृपा ही केवलम् आदि। हाल ही में भारत के संविधान को छंदबद्ध करने के विराट कार्य को पूरे देश से 142 साहित्यकारों ने संविधान को दोहों व रोलों की रचना से छंदबद्ध रूप दिया। यह अत्यंत गर्व की बात है कि उन 142 साहित्यकारों में आप भी सम्मिलित हैं । इसके अतिरिक्त सृष्टि सुमन, प्रेरणा अंशु, शैल सूत्र, स्पर्शी, काव्यामृत, काव्यधारा, नागरिक समाचार, उत्तराखंड करंट, ग्लोबल न्यूज, गोविषाण पाक्षिक आदि पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रही हैं।‌ साथ ही आपको विविध साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया गया है जिनमें ज्ञान भारती पुस्तकालय, रामपुर, अखिल भारतीय साहित्य परिषद, मुरादाबाद, काव्य धारा, रामपुर, हिंदू जागृति मंच संभल, साहित्यिक संस्था संकेत, मुरादाबाद आदि प्रमुख हैं। आपकी उत्कृष्ट रचनाएं जहां एक सुधी पाठक/श्रोता को सरल एवं सहज रूप से आध्यात्म से जोड़ती हैं, वहीं दैनिक जीवन से जुड़ी विभिन्न समस्याओं पर आपके धारदार व्यंग्य भी सभी को गहन चिंतन-मनन हेतु प्रेरित कर देते हैं। 

      अर्पित मान-पत्र का वाचन आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ द्वारा किया गया। कार्यक्रम के द्वितीय चरण में एक काव्य-गोष्ठी का आयोजन  किया गया जिसमें रचना पाठ करते हुए श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा - 

"धन यश वैभव के चक्कर में जीवन व्यर्थ गॅंवाया। 

अंतिम पल वह धन भी तेरे किंचित काम न आया। 

काया तो छूटी, माया भी साथ न ले जा पाया,

 सोच जरा क्या खोया तूने, सोच जरा क्या पाया।" 

इसके अतिरिक्त महानगर के विभिन्न रचनाकारों कमल शर्मा, राजीव प्रखर, मनोज मनु, योगेन्द्र वर्मा व्योम, विवेक निर्मल, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, चंद्रहास हर्ष, बृजेन्द्र वत्स, डॉ. मनोज रस्तोगी, ओंकार सिंह ओंकार, रघुराज सिंह निश्चल, रामदत्त द्विवेदी, बाबा संजीव आकांक्षी आदि ने भी श्रीकृष्ण शुक्ल को अपनी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए विभिन्न सामाजिक विषयों पर अपनी-अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्ति की। बाबा संजीव आकांक्षी द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा।























::::::::प्रस्तुति::::::

 राजीव 'प्रखर'

महानगर अध्यक्ष 

कलाभारती 

मुरादाबाद

सोमवार, 18 मार्च 2024

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष शिशुपाल मधुकर पर केंद्रित श्रीकृष्ण शुक्ल का संस्मरणात्मक आलेख...बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी थे वे



स्मृतिशेष  शिशुपाल सिंह राजपूत 'मधुकर' जी से मेरा प्रथम परिचय राजभाषा हिन्दी प्रचार समिति की काव्य गोष्ठी में हुआ था। उससे पूर्व मैंने साहित्यिक मुरादाबाद के वाट्स एप कवि सम्मेलन में श्रमिकों की स्थिति पर अपनी एक कविता शेयर की थी , उसी की प्रशंसा करते हुए उन्होंने अपना परिचय दिया था। उसके बाद तो तमाम गोष्ठियों में उनसे भेंट होती रही। धीरे धीरे उनकी रचनाओं को सुनते सुनते सामाजिक संदर्भों के प्रति उनकी संवेदनशीलता का परिचय मिला। 

ऐसी ही एक मुलाकात के दौरान उन्हें मेरी सहज योग के प्रति आस्था के विषय में पता चला तो देर तक चर्चा चली। उसी चर्चा के दौरान उनकी साम्यवादी विचारधारा का परिचय मिला। कहीं सहमति और कहीं असहमति के कारण यह चर्चा लंबी चलने लगी। उसी दौरान उन्होंने साम्यवाद से संबंधित एक किताब मुझे दी । 

वह साम्यवादी दल में केवल राजनीति के लिए नहीं थे बल्कि धरातल पर शोषित पीड़ित और उपेक्षित वर्ग के हितार्थ कार्य भी करते थे। मुरादाबाद में रेहड़ी, पटरी वाले दुकानदारों के पुनर्वास हेतु उन्होंने निरंतर आंदोलन किया था।

वर्ष 2022 के विधान सभा चुनाव में मुरादाबाद देहात विधानसभा क्षेत्र से उन्होंने विधायक हेतु चुनाव भी लड़ा था। 

श्री मधुकर काव्य सृजन के अतिरिक्त फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी सक्रिय थे। उनके द्वारा निर्मित दो फिल्मों के प्रीमियर पर मैं भी सम्मिलित हुआ था। एक फिल्म 'मेरा कसूर क्या था', कन्या भ्रूण हत्या तथा दूसरी फिल्म नशे की कुप्रथा के संदर्भ में निर्मित थीं। दोनों ही फिल्में दर्शकों के मन पर अपना प्रभाव छोड़ने में सक्षम थीं। 

इससे ज्ञात होता है कि वे बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी थे।

सितंबर 2022 में एक दिन अचानक उनका फोन आया, और उन्होंने बताया कि उनकी साहित्यिक संस्था 'संकेत' अपनी रजत जयंती मना रही है। उक्त अवसर पर पॉंच साहित्यकारों की रचनाओं का एक साझा काव्य संग्रह संस्था द्वारा प्रकाशित कराया जाना है, और उन साहित्यकारों में मेरा सम्मान करना निश्चित हुआ है। उक्त संदर्भ में उन्होंने मुझसे मेरी 20 रचनाएं भेजने का आग्रह किया। पहले मैंने यही कहा कि मैं तो साधारण सा लेखक हूॅं, मुरादाबाद में बहुत से श्रेष्ठ रचनाकार हैं, उनके रहते मेरा सम्मान उचित नहीं, लेकिन उन्होंने कहा, हम जानते हैं कि आपका साहित्य कैसा है, संस्था ने आपको चयनित किया है, संस्था के अध्यक्ष आदरणीय अशोक विश्नोई जी भी यही चाहते हैं। 

तत्पश्चात मैंने उनसे थोड़ा समय माॅंगा और कुछ ही दिनों में बीस रचनाएं प्रेषित कर दीं।

मैंने उनसे साझा संग्रह हेतु आर्थिक योगदान के विषय में जानकारी चाही किंतु वह टाल गये। आदरणीय अशोक विश्नोई जी से मैंने बहुत आग्रह किया तब उन्होंने योगदान हेतु सहमति दी, और योगदान देकर मुझे भी संतुष्टि मिली।

अंततः 20 नवंबर 2022 को संस्था द्वारा आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में हम पॉंच साहित्यकारों को सम्मानित किया गया। हमारे अतिरिक्त अन्य साहित्यकारों, रामपुर से श्री ओंकार सिंह विवेक, धामपुर से श्री प्रेमचंद प्रेमी, मुरादाबाद की वरिष्ठ कवियित्री डा. प्रेमवती उपाध्याय और मुरादाबाद की ही मीनाक्षी ठाकुर का सम्मान उक्त कार्यक्रम में हुआ।

उसके बाद मधुकर जी से हमारे संबंध और प्रगाढ़ हो गये थे।  माह दिसंबर से मार्च तक हम सहजयोग की प्रवर्तिका माताजी श्री निर्मला देवी जी के जन्म शताब्दी महोत्सव की तैयारियों व आयोजनों में व्यस्त रहे, जिस कारण साहित्यिक गतिविधियों से सक्रिय नहीं रह पाये थे, पटल पर भी सक्रियता न्यूनतम थी।

उन्हीं दिनों अचानक 2 मार्च 2023 को आदरणीय विश्नोई जी द्वारा उनके देहावसान की खबर पटल पर दी गई । अचानक से आघात लगा, विश्वास ही न हुआ कि इतने सक्रिय और दिखने में ह्रष्ट पुष्ट व्यक्ति अचानक हमारे बीच से चला गया। बड़ी मुश्किल से मन को समझाया। नियति को जो मंजूर था वह तो घट ही चुका था।

अभी विगत 3 मार्च को उनकी प्रथम पुण्य तिथि पर संकेत संस्था के बैनर तले ही, आदरणीय अशोक विश्नोई जी के संयोजन में उनकी स्मृति में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, जिसमें मुरादाबाद और आस पास के साहित्यकारों द्वारा उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर अपने विचार व्यक्त किये और उनकी रचनाओं का वाचन किया था, उक्त कार्यक्रम में कुछ साहित्यकारों का सम्मान भी किया गया।

कार्यक्रम में मधुकर जी के परिजनों द्वारा यह भी सूचित किया गया कि उनकी स्मृति में यह कार्यक्रम प्रतिवर्ष होगा।

निश्चय ही समाज को समर्पित एक संवेदनशील रचनाकार, आमजन को समर्पित एक राजनेता और एक संवेदनशील फिल्म निर्माता की स्मृतियों को चिरकाल तक जीवंत रखने का यह बहुत अच्छा निर्णय है।

उनकी तमाम रचनाएं, जो न जाने हमने कितनी बार पढ़ी थीं, लेकिन उनके लेखन की आत्मा को हम तब नहीं समझ पाये थे, आज पढ़कर और मंच से अन्य साहित्यकारों से सुनकर उनके लेखन की गहराई अब समझ में आती है।

जब वह कहते हैं:

1.

मजदूरों की व्यथा-कथा तो

कहने वाले बहुत मिलेंगे

पर उनके संघर्ष में आना

यह तो बिल्कुल अलग बात है,

तब उनके मन की पीड़ा का पता चलता है।

यह पंक्तियां भी देखें:

2.

तुम कुछ भी कहो

हम चुप ही रहें

यह कैसे तुमने सोच लिया,

3.

निशाने पर रहा हूं मैं निशाने पर रहूँगा मैं 

गलत बातों से मेरी तो रही रंजिश पुरानी है ,

4.

झूठ गर सच के सांचे में ढल जाएगा

रोशनी को अंधेरा निगल जाएगा

और

5.

छोड़ दो उसकी उंगली बड़ा हो गया

ठोकरे खाते - खाते संभल जाएगा।


उनकी सभी रचनाएं सामाजिक असमानता, विद्रूपता, शोषित, पीड़ित व वंचित वर्ग की आवाज बनकर हमारे समक्ष आयी हैं। जब जब ये पढ़ी जायेंगी तब तब ये आवाज़ और ऊॅंची उठकर व्यवस्था की नींद को झकझोरेगी। यही उनके लेखन की महानता है। इन्हीं शब्दों के साथ स्मृति शेष मधुकर जी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता हूॅं।

साथ ही उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर उनकी स्मृति में यह आयोजन कराने के लिये साहित्यिक मुरादाबाद पटल के प्रशासक डा. मनोज रस्तोगी का भी ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूॅं।


✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल

फ्लैट नंबर T-5 / 1103

आकाश रेजीडेंसी अपार्टमेंट

आदर्श कालोनी, मधुबनी के पीछे

कांठ रोड

मुरादाबाद 244001 

उ.प्र. , भारत

मोबाइल नंबर: 9456641400


गुरुवार, 24 अगस्त 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल का गीत ....दुनिया वालों आँखें खोलो, ये अभिनव भारत है

 


दुनिया वालों आँखें खोलो, ये अभिनव भारत है।

अब तुम भी नत मस्तक हो लो, ये अभिनव भारत है।

कल तक हमको साँप सँपेरों,वाला कहते आये।
हमें मदारी और फकीरों, में ही गिनते आये।
देखो हमने आज चाँद पर झंडा गाढ़ दिया है।
दक्षिण ध्रुव पर विक्रम को निर्भीक उतार दिया है।
भारत की ताकत अब तोलो, ये अभिनव भारत है।
दुनिया वालों आँखें खोलो, ये अभिनव भारत है।

पढ़ो जरा इतिहास सदा हम मेधा में अगड़े थे।
अनुसंधानों में आगे संसाधन में पिछड़े थे।
हमने खुद अपने ही दम पर, दिग्गज सभी पछाड़े।
इसरो छोड़ो नासा में भी, हमने झंडे गाढ़े।
विस्फारित नयनों को धोलो ये अभिनव भारत है।
दुनिया वालों आँखें खोलो, ये अभिनव भारत है।

हमको तो कल्याण विश्व का, हो ये सिखलाया है।
सभी शांति से रहें यही कल्याण मंत्र गाया है।
जो उपलब्धि हमारी उसका फल सब मानव पायें।
सभी शांति से रहें विश्व में गीत प्रेम के गायें।
सुप्त चेतना के पट खोलो, ये अभिनव भारत है।
दुनिया वालों आँखें खोलो, ये अभिनव भारत है।

ये तो केवल शुरूआत है अब हम नहीं रुकेंगे।
नहीं डिगेंगे, नहीं झुकेंगे, आगे सदा बढ़ेंगे।
विश्व पटल पर सभी चुनौती मिलकर पार करेंगे
विश्व गुरु तक भारत को पहुँचा कर ही दम लेंगे।
अब तो बोलो तुम भी बोलो, ये अभिनव भारत है।
दुनिया वालों आँखें खोलो, ये अभिनव भारत है।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 1 जुलाई 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल की कहानी .......मानवता का धर्म

 


पहाड़ी घुमावदार रास्तों पर श्याम बाबू अपनी गाड़ी सहज गति से चलाते हुए जा रहे थे। अचानक एक मोड़ काटते ही सड़क किनारे भीड़ दिखाई दी। ट्रैफिक भी रुका हुआ था।श्याम सिंह ने गाड़ी से उतरकर पूछा तो पता चला एक कार नीचे गिर गयी है। तभी नीचे से एक घायल को ऊपर लाया गया। श्याम बाबू उसे देखते ही चौंक गये: अरे ये तो दिलावर है। दिलावर गंभीर रुप से घायल था और उसे तुरंत चिकित्सा की जरुरत थी। बिना एक क्षण की देरी किये श्याम बाबू चिल्लाये: अरे जल्दी करो, इसे मेरी गाड़ी में लिटा दो और अस्पताल लेकर चलो। थोड़ी ही देर में वह अस्पताल पहुँच गये। डाक्टर ने जाँच की और कहा खून बहुत बह गया है। इन्हें तुरंत दो यूनिट खून चढ़ाना जरूरी है, नहीं तो ये नहीं बचेंगे। संयोग से श्याम बाबू का और वहाँ उपस्थित दो अन्य लोगों का खून भी मैच कर गया। लगभग दो घंटे की मशक्कत के बाद आपरेशन थियेटर से डाक्टर बाहर आये और बोले , आप लोग इन्हें टाइम से ले आये। और थोड़ी देर हो जाती तो ये नहीं बचते।

श्याम बाबू ने ईश्वर का बहुत धन्यवाद किया और अपने दफ्तर में आ गये। बैठे बैठे उन्हें वो दिन स्मरण हो आया जब यही दिलावर किसी टेंडर के सिलसिले में उनसे मिला था और टेंडर न मिलने पर उन्हें खुलेआम धमका कर गया था। श्याम बाबू एक आध दिन थोड़ा विचलित हुए, फिर सब भूल गये। 

दफ्तर के बाद शाम को श्याम बाबू फिर अस्पताल पहुँचे। दिलावर को होश आ चुका था।कहो दिलावर अब कैसे हो, श्याम बाबू ने उसका हाथ सहलाते हुए पूछा। तभी वहाँ खड़ी नर्स ने दिलावर को बताया, यही साब जी अपनी गाड़ी में आपको अस्पताल लाये थे, और अपना खून भी दिया था। इन्हीं की वजह से आपकी जिन्दगी बच गयी,नहीं तो यहाँ तक आते आते तमाम एक्सीडेंट के केस निपट जाते हैं।

दिलावर यह सुन कर रोने लगा और हाथ जोड़कर बोला बाबूजी आप मुझे क्षमा कर दो। मैंने आपके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया किंतु आपने सब कुछ भुलाकर मेरी जान बचायी।

अरे, रोओ मत, श्याम बाबू उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोले: ये तो मानवता का कार्य था। कोई और भी होता तो उसे भी हम अस्पताल पहुँचाते। और तुम ज्यादा मत सोचो। मैंने तो वह बात तभी भुला दी थी। हमारा काम ही ऐसा है। जिसका काम नहीं हो पाता वो ही धमका जाता है। तुम जल्दी से ठीक हो जाओ।

साब' आप इंसान नहीं इंसान के रुप में फरिश्ता हो। आपका बहुत बड़ा दिल है। जीवन में आपके किसी काम आ सका तो अपने को धन्य मानूँगा, कहते कहते दिलावर फिर रोने लगा।

रोओ मत दिलावर, सबकी रक्षा करनेवाला वह ईश्वर ही होता है, वो ही समय पर हमारे पास मदद के लिये किसी न किसी को भेज देता है। अब आगे से तुम भी यह निश्चय कर लो कि मुसीबत में यथासंभव अन्जान व्यक्ति की मदद करोगे और किसी से दुर्व्यवहार नहीं करोगे।

अच्छा चलता हूँ, कहकर श्याम बाबू अपने घर वापस आ गये।


✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ. मनोज रस्तोगी, श्रीकृष्ण शुक्ल एवं राजीव प्रखर को टी.जी.टी साहित्यरत्न सम्मान

मुरादाबाद के तीन रचनाकारों डॉ. मनोज रस्तोगी, श्रीकृष्ण शुक्ल एवं राजीव प्रखर को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए, प्रतिष्ठित द ग्राम टुडे प्रकाशन समूह (देहरादून) द्वारा टी.जी.टी. साहित्यरत्न सम्मान से सम्मानित किया गया।              मुरादाबाद के जीलाल मोहल्ला स्थित साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय में गुरुवार 16 फरवरी 2023 को आयोजित हुए एक संक्षिप्त समारोह में इन तीनों रचनाकारों को यह सम्मान प्रदान किया गया। इस अवसर पर उपरोक्त प्रकाशन समूह की ओर से वरिष्ठ पत्रकार एवं समूह संपादक  शिवेश्वर दत्त पांडे उपस्थित रहे। अपने उद्बोधन में श्री पांडे ने कहा - "ऐतिहासिक मुरादाबाद की धरती सदैव ही साहित्यिक विभूतियों से भरी पूरी रही है जिनकी प्रेरणा से मुरादाबाद को निरंतर उत्कृष्ट साहित्यकार/रचनाकार मिल रहे हैं, जो अत्यंत हर्ष का विषय है।" उन्होंने साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय को मील का पत्थर बताते हुए कहा कि इस शोधालय में संरक्षित साहित्य शोधार्थियों के लिए बहु उपयोगी सिद्ध होगा।

     इस अवसर पर एक संक्षिप्त काव्य-गोष्ठी का भी आयोजन किया गया जिसमें डॉ. मनोज रस्तोगी, श्रीकृष्ण शुक्ल एवं राजीव 'प्रखर' ने अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्ति की।

























मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल की रचना ..... मुस्कुराए थे वो, मुस्कुराना पड़ा

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शनिवार, 21 जनवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की हास्य कविता ....सात जन्म के साथ का वरदान


शादी की पचासवीं सालगिरह पर 

पति पत्नी ने घर में पूजा रखी,

जैसे जैसे पंडित जी बोलते गये

 वैसे वैसे दान दक्षिणा रखी,

उनकी श्रद्धा देख भगवान भी प्रसन्न हो गये, 

तुरंत आकाशवाणी हुई 

और वर माँगने का मौका दिया,

पति ने तुरंत सात जन्मों तक

एक दूसरे का साथ माँग लिया,

भगवान् ने कहा एवमस्तु , 

अगले सात जन्मों तक 

तुम्हें एक दूजे का साथ दिया

यह सुनते ही पत्नी बोली 

भगवन ये क्या कर दिया, 

ये वरदान है या सजा, 

न कोई चेंज न मजा

पूजा तो हम दोनों ने की थी,

तो वरदान इनको ही क्यों दिया,

पूजा की सारी तैयारी तो मैंने की,

वेदी मैंने  सजाई, 

प्रसाद मैंने बनाया, 

पूजा की सारी सामग्री मैं लाई,

यहाँ तक कि पंडित जी को

दक्षिणा भी मैंने थमाई

इन्होंने क्या किया सिर्फ हाथ जोड़े, 

मस्तक नवाया, आरती घुमायी, 

ये सब तो मैंने भी साथ में किया,

फिर वरदान अकेले इनको क्यों दिया,

अब मुझे भी वर दीजिए

सात जन्म वाली स्कीम को 

वापस ले लीजिए,

भगवान भी हतप्रभ हो गये, सोचने लगे,

मेरी ही बनायी नारी,

मुझ पर ही पड़ गयी भारी,

बोले: एक बार वरदान दे दिया सो दे दिया, 

दिया हुआ वरदान कभी वापस नहीं होता, 

इतना जान लो,

तुम भी कोई वरदान मांग लो,

पत्नी ने फिर दिमाग लगाया, 

तुरंत उपाय भी सूझ आया,

बोली भगवन कोई बात नहीं वरदान वापस मत लीजिए,

बस थोड़ा संशोधन कर दीजिए,

अगले जन्म में मुझे पति और इन्हें मेरी पत्नी बना दीजिए,

मैं भी चाहती हूँ, कि मैं पलंग पर बैठूँ 

और ये दूध का गिलास लेकर आयें,

मैं जब लेटूं, ये पैर दबाएं, 

मैं खाना खाऊं तो ये पंखा झुलायें,

मैं दफ्तर जाऊँ तो ये दरवाजे पर छोड़ने आयें,

और जब आऊँ तो ये दरवाजे पर खड़े मुस्काएं,

और क्या बताऊँ, 

थोड़े में ही बहुत समझ लीजिए,

बस मुझे इतना ही वरदान दे दीजिए.

भगवान कुछ कहते, इससे पहले ही पति चिल्लाया, 

भगवन ये अनर्थ मत कीजिए, हमें ऐसे ही रहने दीजिए,

सात जनम के चक्कर में

हमारे शेष जीवन का सुख चैन मत छीनिये.

प्रभु कृपा कीजिए, 

और हमें इसी जन्म में सुख-चैन से रहने दीजिए,

भगवान ने भी मौका तलाशा,  

तुरंत एवमस्तु कहा और अंतर्ध्यान हो गये 


✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत