शनिवार, 26 नवंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष गगन भारती पर केंद्रित ए टी ज़ाकिर का संस्मरणात्मक आलेख ....कहां तुम चले गए.......


बात 1969 की है । गगन साहब से मेरा तार्रूफ़ जनाब साहिर लुधियानवी साहब के साथ एक मीटिंग के दौरान बम्बई के एक कौफ़ी हाउस में हुआ था। इस मीटिंग में अदबी दुनिया की मशहूर -ओ-मारुफ़ हस्तियां मौजूद थीं । अदब में ये एक अजीब इन्कलाबी दौर था, जिसमें हिन्दुस्तान के राइटर्स को जदीदियत की एक नई दुनिया दिखाई देने लगी थी।

ये क़लमकार थे, जनाब साहिर साहब, जनाब के.ए.अब्बास साहब, जनाब कृशन चन्दर साहब, जनाब रामलाल साहब, जनाब कैफ़ी आज़मी साहब, जनाब जां निसार अख़्तर साहब, जनाब राजेन्द्र सिंह बेदी साहब, जनाब हसरत जयपुरी साहब, जनाब तलत महमूद साहब, जनाब जोश मलीहाबादी साहब , उनके साथ थे गगन भारती और मेरे जैसे नन्हे पौधे जो इन बड़े- बड़े आलीशान दरख़्तों के साये में पल रहे थे। जिस गुलशन या अंजुमन का मैं ज़िक्र कर रहा हूं, उसका नाम था,"प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन"इस ग्रुप का मिम्बर होना अपने आप में एक बहुत बड़ी बात थी। बडा फ़ख्र महसूस करते थे इसकी मिम्बरशिप पाकर लोग।

तरक्की पसंद ख्याल और जदीद सोच के नारों को बुलन्द करने वाली ऐसी ही उस मीटिंग में पहले -पहल गगन भारती साहब को देखा। गगन साहब आग उगलती हुई नज़्मों के शायर थे और मैं इक्कीस  साल का वो अनजाना अफसाना निगार था,जो इन अज़ीम अदबी सितारों से उस हद तक मुत्तासिर हो चुका था कि एक अजीब से मकनातीसी अंदाज़ में इन सितारों के गिर्द गर्दिश कर अपना वजूद टटोल रहा था। ये मेरी ख़ुशकिस्मती थी कि अपने चन्द अशआर से जनाब साहिर साहब की नज़र की ज़द में आ चुका था।

     

मैं साहिर साहब और जनाब फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ साहब की कला का शैदाई था, तो उसी अंदाज़ में गगन साहब का कहा क़लाम मेरे दिल में उतर गया। मुझे बताया गया किसी यूनानी देवता जैसा दिखने वाला ये बेहद हैंडसम नौजवान गगन भारती भी मुरादाबाद से ताल्लुक रखता है, तो मुझे बहुत खुशी हुई और मैंने दोस्ती का हाथ गगन साहब के आगे बढ़ा दिया। हम अच्छे दोस्त बनकर मुरादाबाद लौटे पर जिस मीटिंग का ज़िक्र मैनें ऊपर किया, उसमें गगन साहब ने न सिर्फ अपने कलाम से  वाहवाही लूटी वरन अपनी ज़हनियत और तरक्की पसंद सोच के झंडे गाड़ दिए।

गगन साहब ने जनाब के ए अब्बास साहब और कृशन चंदर साहब के सामने एक मशवरा रखा कि हमारी इस अंजुमन में सिर्फ जदीद खयाल राइटर्स ही क्यों मेंबर हैं ? कोई भी फनकार जो हुनरमंद और तरक्की पसंद है, वह क्यों नहीं मेंबर हो सकता। उसे भी मेंबर होना चाहिए। खासी तवील बहस के बाद गगन साहब का मशवरा मान लिया गया और एक नई अंजुमन बन गई जिसमें कोई भी जदीद खयाल हुनरमंद फनकार मेंबर हो सकता था। गगन साहब ने नाम सुझाया "अंजुमन तरक्की पसंद मुफक् रीन" और उसी रात ये अंजुमन अपने वजूद में आ गई।

   

मैं गगन साहब की फिलासफी और ज़हनियत का और ज्यादा कायल हो गया। मुरादाबाद लौट कर हम दोनों एक दूसरे से मिलने लगे । गगन साहब को मेरे अफ़साने पसंद आते तो मैं उनकी नज़्मों पर फिदा था। कहना गलत ना होगा कि मैं न सिर्फ उनसे नज़्म कहने का सलीका बल्कि उनकी अजीम शख्सियत से एक सच्चा इंसान बनने की तालीम लेने लगा । आज जो तहजीब और इंसानियत का जज्बा मेरे अंदर आप पाते हैं। वह गगन साहब का मुझे दिया ईनाम है और जो बदतमीजी या अक्खड़पन आपको मुझ में नजर आता है वह मेरा ओरिजिनल किरदार है । गगन साहब बहुत अजीम और कामयाब शायर थे। हिंदुस्तान का कोई मुशायरा ऐसा नहीं था जो उन्होंने पढ़ा ना हो। वह मुशायरे के बादशाह थे, कितनी ही बार मैंने वह दिल फरेब मंजर देखा जब लोग उन्हें मुशायरे का माइक छोड़ने नहीं देते थे । बाहैसियत एक इंसान, गगन साहब का किरदार इतना आलीशान था कि अपनी 74 साल की जिंदगी में मैंने उन जैसा सच्चा और उम्दा इंसान दूसरा नहीं देखा।

एक वाकया याद आ रहा है : मुरादाबाद में हमारे एक और प्यारे दोस्त रहते थे जिनके गगन साहब से अच्छे ताल्लुकात थे। हमारे वह साथी मुरादाबाद से कहीं बाहर चले गए और गुरबत के शिकार हो गए। 43 साल के बड़े अर्से में उनकी कोई खैर खबर नहीं मिली गो कि वो बात और थी कि वह गगन साहब की तलाश सोशल साइट्स पर करते रहे और मुरादाबाद की महफिलों में गगन साहब उनका जिक्र खासे ऐहतराम से करते रहे । 2018 में उन्होंने फेसबुक के जरिए गगन साहब को ढूंढ निकाला और दोस्ती की ठहरी हुई किश्ती एक बार फिर खुशियों के दरिया में आगे चल पड़ी । पर वक्त को दोस्तों की यह छोटी सी खुशी बर्दाश्त नहीं हुई और एकाएक उन दोस्त की कुंवारी नौजवान बेटी की दोनों आंखों की रोशनी एक हादसे में जाती रही। इन आंखों के कामयाब ऑपरेशन  के लिए 2 लाख रुपए  की दरकार  थी । एक गरीब फनकार इतनी बड़ी रकम कहां से जुटा सकता था पर किसी दोस्त के जरिए गगन  साहब को ये बात पता चली,उन्होंने उसी दिन बीस हजार रुपए अपने उसी दोस्त  को भिजवा दिये। अल्लाह की मेहर से बाकी रकम का भी वक्त रहते बन्दोबस्त  हो  गया और उस बेटी की आंखो का कामयाब ऑपरेशन  दिल्ली में हुआ। आंखो की रौशनी वापिस आ गई। बाद में जब उस दोस्त ने गगन साहब को इस मदद का शुक्रिया अदा करना चाहा तो इन्सान  की शक्ल मे जीने वाले उस फरिश्ते ने कहा,"कैसा "शुक्रिया ?, कैसी मदद? मैंने सिर्फ वो किया जो एक दोस्त को करना चाहिए था और जहां तक उस छोटी सी रकम की बात है,क्या वह मेरी बेटी नहीं है ?"और गगन साहब ने इस टाॅपिक पर फ़ुुलस्टाप लगा दिया। तो इतनी शानदार शख्सियत और आला किरदार  के मालिक थे गगन साहब !

 

मुझे याद है, 1970-71 के वो दिन जब के.जी.के.कालेज के इंग्लिश डिपार्टमेंट के प्रोफेसर मोयत्रा साहब के दौलतखाने पर एक माहनामी नशिस्त बज़्मे मसीह हुआ करती थी,जिसकी डायस सैक्रैटरीशिप गगन साहब सम्भालते थे ।इस हिन्दी,उर्दु की गंगा_जमुनी नशिस्त में मुरादाबाद और आसपास  के शहरों के कवि और शायर शिरकत किया करते थे. ये वो स्टेज था जिस  पर जनाब कमर मुरादाबादी साहब और अल्लामा कैफ मुरादाबादी को मैने एक साथ  पढते देखा । इस नशिस्त का आगाज  रात करीबन नौ बजे होता धा और  तड़के मुर्गे की बांग के साथ यह नशिस्त अपने अंजाम पर पहुंचती थी। इस नशिस्त में जनाब शाहाब मुरादाबादी,जनाब अख्तर आजिम साहब ,जनाब हिलाल रामपुरी, जनाब गौहर उस्मानी साहब, जनाब हुल्लड़ मुरादाबादी, जनाब मक्खन मुरादाबादी, जनाब प्रोफेसर महेंद्र प्रताप,जनाब ललित मोहन भारद्वाज साहब और इस मयार के और जाने कितने शोरा हाजरात अपने कलाम  सुनाया करते थे।गगन साहब इंकलाबी नज़्में कहते थे,हम सब सांस रोक कर उनका क़लाम सुनते थे। शायरी गगन साहब को अपनी अम्मी से विरासत में मिली थी। वो बहुत आलादरजे का क़लाम कहती थीं । उन्होंने ही शायरी की ए.बी.सी.डी.गगन साहब को समझायी थी।

मेरी जिन्दगी की इतनी सारी यादें गगन साहब  से वाबस्ता है कि अगर मैं उनको लिखने -समेटने बैठूं तो एक मुकम्मल दीवान बन सकता है। अब  मैं उस मनहूस दिन का जिक्र कर रहा हूं, जिस दिन गगन  से आया ये फरिश्ता हम सब को तन्हा छोड़कर चला गया। गगन साहब की तबीयत पिछले 6-7 माह से ख़राब थी और बिगड़ती जा रही थी मगर  उस शेरदिल इंसान ने हम दोस्तों को अपनी इस बीमारी और तकलीफ़ से कभी रुबरु होने ही न दिया जब ज़िन्दगी की लौ टिमटिमाने लगीं तो हमें मनोज रस्तोगी साहब से उनकी बीमारी की ख़बर मिली। मैं उन दिनों रोज रात को 8.30 बजे फ़ोन करके उनका हाल लेता था । कभी कभी भाभी साहिबा से भी बात हो जाती थी। मैं उनकी खैरियत रोज़ रात को नौ बजे मनोज रस्तोगी साहब, जनाब मक्खन मुरादाबादी  और बम्बई के जनाब विनोद गुप्ता साहब को बतलाता था। 

 न चाहते हुए भी आ गया, वो मनहूस दिन जब गगन  साहब अपना हाथ हमसे छुड़ा के जिस गगन से आए थे, वहीं लौट गए। मैंने जब ये मनहूस खबर मक्खन मुरादाबादी और उसके बाद जनाब विऩोद गुप्ता साहब को बतलाई तो ये दोनों साहेबान फ़ोन पर ही फ़ूट फूटकर रोने लगे। अपनी कैफि़यत को इस हादसे के इतने दिनों बाद भी बतलाने की हालत में मैं नहीं हूं । मेरी दुनिया 21 अक्टूबर 2022 को जहां थी, वहीं उसी लम्हे में ठहर गयी है।

  गगन साहब क्या गए, मेरी आधी ज़िन्दगी और मेरी रूह भी उनके साथ ही चली गई । मैं हूं यहीं,इसी दुनिया में टूटा हुआ और अधूरा। मेरे सिर के ऊपर बहुत ऊंचाई तक ख़ला है पर गगन नहीं।  


✍️
ए.टी.ज़ाकिर

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सोमवार, 21 नवंबर 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं कला संस्था 'संकेत' के रजत जयंती समारोह में साहित्यकार डॉ प्रेमवती उपाध्याय , श्रीकृष्ण शुक्ल, प्रेमचंद प्रेमी, ओंकार सिंह विवेक एवं मीनाक्षी ठाकुर को किया गया सम्मानित

मुरादाबाद की साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं कला संस्था 'संकेत' का रजत जयंती समारोह रविवार 20 नवम्बर 2022 को रामगंगा विहार स्थित एमआईटी सभागार में आयोजित किया गया। वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए समारोह में डॉ प्रेमवती उपाध्याय (मुरादाबाद), श्रीकृष्ण शुक्ल(मुरादाबाद), प्रेमचंद प्रेमी (धामपुर), ओंकार सिंह विवेक (रामपुर) एवं मीनाक्षी ठाकुर (मुरादाबाद) को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए संस्था की ओर से सम्मानित किया गया। 

   सम्मान स्वरूप संस्था की ओर से उन्हें अंग वस्त्र, मानपत्र, प्रतीक चिह्न एवं पुस्तक प्रदान की गई। सागर तरंग प्रकाशन की ओर से उपरोक्त पांचों सम्मानित रचनाकारों की रचनाओं के साझा संकलन " साधना के पथ पर " का विमोचन भी  किया गया। सभी पाॅंचों सम्मानित रचनाकारों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित आलेख प्रो ममता सिंह, राजीव प्रखर, दुष्यंत बाबा, पूजा राणा, एवं मयंक शर्मा द्वारा प्रस्तुत किए गये। इस अवसर पर सम्मानित पांचों साहित्यकारों ने रचना पाठ भी किया। 

समारोह की अध्यक्षता करते हुए सुधीर गुप्ता  (चेयरमैन एमआईटी, मुरादाबाद) ने कहा...  "सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं कला के क्षेत्र में संकेत द्वारा किया गया योगदान सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। साहित्यकारों पर यह दायित्व है कि वे समाज को निरंतर सही दिशा में आगे बढ़ाते रहें।"

  मुख्य अतिथि डॉ विशेष गुप्ता (पूर्व अध्यक्ष बाल संरक्षण आयोग, उत्तर प्रदेश) का कहना था - 'संकेत' ने अपने विभिन्न आयामों से  समाज को रास्ता दिखाने का उल्लेखनीय कार्य किया है जो भविष्य में सामाजिक विकास का मार्ग प्रशस्त करेंगा।"

  विशिष्ट अतिथि के रूप में दयानंद डिग्री कॉलेज के प्रबंधक उमाकांत गुप्ता ने कहा "सामाजिक उत्थान में संकेत की भूमिका निश्चित रूप से वर्तमान एवं भावी पीढ़ी को प्रेरित करेगी।"

   डॉ महेश 'दिवाकर' (अध्यक्ष अन्तर्राष्ट्रीय साहित्य कला मंच) ने कहा ..

 "कहा-अनकहा सब कहें, कविगण करें सचेत। 

अद्भुत गति साहित्य की, बता दिया संकेत।"

   विशिष्ट अतिथि बाल-साहित्यकार राजीव सक्सेना ने विचार रखते हुए कहा - "संकेत का समाज को बेहतर बनाने और नगर के साहित्यिक व सांस्कृतिक परिदृश्य को परिष्कृत बनाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उसने सफलतापूर्वक अपनी भूमिका का निर्वहन किया है।"

   संस्था की स्थापना एवं गतिविधियों पर आधारित आलेख का वाचन वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी द्वारा किया गया। काले सिंह साल्टा ने काव्य पाठ किया। 

 समारोह में वरिष्ठ कवयित्री डॉ पूनम बंसल, नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम, अमर सक्सेना,  पूजा राणा,  सरिता लाल, सुनील ठाकुर, रामसिंह निशंक, इंदु रानी, डॉ प्रीति हुंकार, नकुल त्यागी,  रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ, डॉ मधु सक्सेना, डॉ मीरा वैश्य, शिवओम वर्मा, रवि चतुर्वेदी, राशिद हुसैन, अभिव्यक्ति सिन्हा, रघुराज सिंह निश्चल, ओंकार सिंह ओंकार आदि साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे। समारोह का संचालन संस्था के अध्यक्ष अशोक विश्नोई ने किया तथा संयोजन राजीव प्रखर एवं दुष्यंत बाबा का रहा।  संस्था के महासचिव शिशुपाल 'मधुकर' ने आभार-अभिव्यक्त किया।