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शुक्रवार, 3 सितंबर 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर की साहित्यकार रागिनी गर्ग की लघुकथा ---फर्क


 "अरे यार विनोद! बहू सुनीता मात्र सत्ताइस साल की छोटी उम्र में  विधवा हो गयी, तुमने उसके और उसकी पाँच साल की बच्ची के लिये क्या सोचा है? भाभीजी और तुम कब तक बैठे रहोगे? मेरी मानो तो उसका पुनर्विवाह कर दो।"

विनोद ने आँखें तरेरकर अपने लँगोटिया यार प्रकाश को घूरते हुये कहा:- 

"लगता है तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है। जो बहकी- बहकी बातें कर रहे हो।"

"विनोद! इसमें बहकी बात जैसा क्या है?"

"बहू का दूसरा विवाह करना इतना आसान नहीं है। मेरी पोती का क्या होगा? लोग क्या कहेंगे? सुना! तुमने, मैं बहू का विवाह नहीं कर सकता।" लगभग प्रकाश पर चीखते हुये विनोद बोला।

"परररर विनोद! ये बहू,बहू की रट क्यों लगा रखी है? तुम तो सुनीता को बेटी मानते हो। वो अनाथ भी तुम दोनों को ही अपना माता- पिता मानती है।"

"बंद कर अपनी बक-बक और अपनी सलाहअपने पास रख" प्रकाश को झिड़कते हुये विनोद बोला,"बेटी मानने और बेटी होने में बहुत बडा़ फर्क है।"

✍️ रागिनी गर्ग, रामपुर , उत्तर प्रदेश, भारत

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर की साहित्यकार रागिनी गर्ग की लघुकथा -----एक पत्र मां के नाम


मेरी प्यारी माँ,

सादर प्रणाम, 

समझ नहीं  आ रहा क्या लिखूँ?आपके जीते जी मैंने आपको कभी खत नहीं  लिखा। आज यह पहला खत लिख रही हूँ। आप मुझे बुलाया करती थीं। लेकिन मैं कभी परिवार ,कभी बच्चों की पढा़ई,कभी सास की बीमारी में  ऐसी उलझी की आपसे मिलने बहुत कम आ पाती  थी। जब मैंअपनी मजबूरी बताती थी तब आप कहती थीं, "ठीक  है बेटा! मत आओ अपने परिवार में खूब खुश रहो" आज भी मुझे याद है भाई  दूज से पहले पड़वा का वो दिन  आपने फोन किया और कहा था, तुमसे मिलने को बहुत मन हो रहा है भाई- दूज पर आ जाओ। 

मैंने आपको कहा, "मम्मी मैं नहीं  आ पाऊँगी भाई दूज का टीका करने मेरी ननद आ रही हैं।" आपने गुस्से में यह कहकर कि मत आओ फोन कट कर दिया था। मेरे दोबारा  मिलाने पर भी नहीं उठाया था।अगले दिन में मेरे घर ननद-ननदोई के आ जाने की वजह से मैं  आपको फोन नहीं  मिला पायी।

तीज के दिन  सुबह चार बजे फोन की घन्टी घनघनाई और भाई ने बुरी खबर सुना दी, " 'चुनमुन'  मम्मी नहीं  रहीं" सच कहती हूँ मम्मी! मेरे पैरों तले जमीन खिसक गयी।मैंने भाई को बोला, "तुम झूठ क्यों बोल रहे हो।"

एक ही झटके में मेरी व्यस्तता समाप्त हो गयी और मैं  दौड़ पडी़ आपसे मिलने। मैंने आपको बहुत जगाया पर आप नहीं  जगीं।  आप ऐसी नाराज हुयीं कि आपने मुझसे फिर  कभी बात ही नहीं  की। सात साल हो गये आपको गए खुद को कसूरवार  मानती हूँ। काश! आपके बुलाने पर पहले ही दौड़ जाती तो आपसे बात  तो कर पाती। 

माँ! एक विशेष बात आपको बताना है, मैंने साहित्य  पथ चुन लिया है।साहित्य में नित नवीन उपलब्धियाँ हाँसिल करके आपकी 'चुनमुन' आपका नाम रोशन कर रही है।

 जब सब यह कहते हैं कि विमला की छोरी तो खूब नाम कमा रही है।मेरा सीना गर्व से फूल जाता है,और खुशी होती है मेरी मम्मी का नाम मेरे कारण आदर से लिया जा रहा है।मैंने किसी को आपको भुलाने नहीं  दिया।बस अफसोस इस बात  का है कि आपको अपने प्रतीक चिह्न  न दिखा सकी। यह सब आपके जाने के बाद  ही शुरू किया। लेकिन मैं जानती हूँ आप जहाँ  भी हो अपना आशीर्वाद मुझे  भेज रही हो, और मेरे लिए  खुश हो रही हो। आपके आशीष से ही मुझे सफलताएँ प्राप्त हो रही हैं। बस एक बार माँ! मेरे सपने मैं ही आकर मुझसे बात कर लो।"

        आपसे एक बार बात करने की इच्छा में 

           आपकी अपनी चुनमुन

✍️रागिनी गर्ग, रामपुर, यूपी

बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर की साहित्यकार रागिनी गर्ग की लघुकथा ----अंधविश्वास


प्रिया ने जैसे ही गिन्नी को छुआ परेशान  हो गयी ,वो गिन्नी को उठाकर  अपनी सास के पास ले जाकर बोली:- "माँ जी  गिन्नी को तेज बुखार के साथ -साथ पूरे शरीर पर लाल -लाल दाने निकले हैं। आप इसका ध्यान  रखिए मैं डाॅक्टर को बुलाती हूँ।"  

प्रिया की सास बोली:- "बहुरिया  पगलाये  गयी हो का ?गिन्नी कू माता निकली है, जामें डा. का करेगो?   जल को  लोटा भर के गिनिया के सिरहाने रखो,  आँगन से नीम तोड़ के लाओ बुहारा करो,, माता के नाम को जाप करो ,दो-तीन दिन  में  गिन्नी बिल्कुल सही है जायेगी।

परररररर माँजी .....

""पर वर कुछ न जो मैं कह रही हूँ वही सुन !डा. कू दिखावे से माता गुस्सा है के बच्ची कू अपने संगे ले जायेगी।""

प्रिया बिना मन के सास का बताया काम करती रही , 

दो दिन  बीत गये पर गिन्नी की हालत में कोई  सुधार नहीं  हुआ उलटे परिस्थिति बिगड़ती चली जा रही थी। रविन्द्र टूर से वापस घर आया गिन्नी की हालत देखकर उसने माँ की एक न सुनी और डा. को फोन कर दिया पर वही हुआ जिसका प्रिया और रविन्द्र  को डर था, 

डॉक्टर ने कहा:- "समय पर  इलाज न मिलने की वजह से गिन्नी कभी न जगने वाली गहरी नींद में  सो चुकी है।"

उधर दादी रोते हुए बड़बडा़ये जा रही थी,"हाय मेरी पोती! मना करी डाँक्टर कू मत बुलाओ पर काऊ ने मेरी एक न सुनी, मैया गुस्सा है गयी, बच्ची कू संग लिवा ले गई।।"

✍️रागिनी गर्ग ,रामपुर (यूपी)

बुधवार, 30 सितंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रागिनी गर्ग की लघुकथा ---दूध हुआ पानी

 


बहू सीमा ने सासू माँ का हाथ  पकड़ लिया और खा जाने वाली नजरों से घूरते हुए बोली," माँ जी!आप  गिलास में  दूध किसके लिए डाल रही हैं? यह दूध तो मेरे शेरू( कुत्ते)के लिए आया है" 

शान्ति बोली:-"बहू तेरे बाबू जी को डाॅक्टर ने दूध से दवा लेने को बोला है। बस आधा गिलास दूध ले रही थी।" 

तभी पीछे से शान्ति का बेटा रोहन बोला , "मम्मी! क्या आप पागल हो गयी हो?पिताजी को इस उम्र में  दूध की क्या जरुरत है? दूध पीने से उनका पेट खराब हो जाएगा, उनको पानी से दवा दीजिए। "

दरवाजे के पीछे खड़े जमुना दास जी की आँखों से गंगा-यमुना बह निकली। वो रोते हुये रोहन की माँ से बोले:-

 "शान्ति! अगर हमने रोहन को  अपने हिस्से का दूध न दिया होता, तो आज हमारे हिस्से का दूध शेरू को न मिल रहा होता।"

✍️रागिनी गर्ग, रामपुर (यूपी)

बुधवार, 23 सितंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रागिनी गर्ग की लघुकथा ----तेरी भी चुप मेरी भी चुप

 

देर से आई मेहरी को देखते ही सीमा विफर पड़ी 

 "रानी आज कहाँ मर गयी थी?और यह तेरे चोट कैसे लगी हैं?"

 "बीबीजी मैं  फिसल गयी तो चोट लगी हैंl" रानी ने बर्तनों को धोते हुए कहा. 

"यह तो पीटने के निशान है किसने मारा तुझे?"

सीमा उसके चेहरे पर नजरें जमाते हुए बोली 

रानी फफक-फफक कर रो पडी़ और रोते हुए बोली, "बीबीजी मेरे मर्द ने शराब पीकर मारा।"

 "तलाक काहे नहीं  दे देती ऐसे नामर्द को जो औरत पे हाथ उठाता है?" सीमा गुस्से में बोली. 

बीबी जी के चेहरे पर उँगलियों। की छाप देख रानी ने भरे गले से कहा, "बीबी जी शायद आप भी आज  फिसल गईं थीं "

 रानी से इतना सुनते ही सीमा आँख में  आँसू भर लाई रानी को गले लगा कर बोली,"हम औरतें  घर की लाज हैं रनिया"।


रागिनी गर्ग, रामपुर, यूपी

बुधवार, 1 जुलाई 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रागिनी गर्ग की कहानी -----भावनाओं की सूखी रेत



भूमि को अशोक अंकल  ने फोन करके अस्पताल आने को कहा।......
"भूमि!जल्दी, सिटी हास्पिटल पहुँचो ,दीपक को बहुत चोट आयी है।दीपक आइ सी यू में भर्ती है"
एक पल भी बिना गँवाए भूमि जिस हाल में  थी उसी हाल में अस्पताल पहुँची। उसे डा. अशोक बाहर ही खड़े मिले। वो भूमि के पापा के अच्छे दोस्त थे। सुबह अस्पताल आते समय,दीपक को सड़क से उठाकर वही अस्पताल लाये थे। दीपक का इलाज भी वही कर रहे थे।....
भूमि को देखते ही बोले, "बेटी! मैं तुमको किसी अँधेरे में नहीं रखना चाहता हूँ। दीपक की साँसें चन्द घड़ी की मेहमान हैं। मैंने बहुत कोशिश की,उसको बचाने की पर सिर में चोट काफी गहरी लगी है, और खून भी बहुत बह चुका है।अतःमैं उसको नहीं बचा पाऊँगा।जाओ!आखिरी बार उससे जाकर मिल लो।" .......
यह सुनकर, भूमि के कदम जड़वत हो गये, गला रुँध गया, आँखें पथरा गयीं और शरीर चेतना खोने लगा। वो गिर ही जाती अगर अंकल ने उसको सम्भाल न लिया होता।
वो उसको  साथ लेकर दीपक के पास गये। ......
भूमि दीपक से बस इतना ही बोल पायी, "दीपक! तुम मुझे छोड़कर नहीं जा सकते।"
तभी ,दीपक ने भूमि को देखकर आखिरी हिचकी ली,जैसे वो सिर्फ उसके आने का ही इन्तजार  कर रहा था और जिन्दगी शरीर रुपी मुठ्ठी से सरक गयी ।वैसे ही जैसे बन्द मुट्ठी से रेत सरक जाती है। ......
अशोक अंकल ने भूमि को सहारा दिया,और बोले,"बेटा!दीपक बच सकता था ,अगर लोगों में  थोडी़ सी भी संवेदनशीलता जिंदा होती।
भूमि बोली ,"मतलब अंकल?मैं कुछ समझी नहीं।"
"समझाता हूँ बेटा! मुझे दीपक सड़क पर बेहोश हालत में मिला तब तक उसका बहुत खून बह चुका था। आस-पास लोगों की भीड़ तो बहुत थी, लेकिन कोई मदद करने वाला नहीं था।सभी वीडियो बनाने में व्यस्त थे। अगर दीपक थोड़ी देर पहले हास्पिटल पहुँच जाता ,तो हम उसे बचा सकते थे।"
 "तुमको याद होगी भूमि! सूरत हादसे में घटी घटना,कितने बच्चे असमय काल का ग्रास बन गये थे। मेरे मानस पटल से तो वो हटती ही नहीं।बच्चे आग से बचने के लिए एक-एक कर ऊपर से नीचे कूदते रहे। किसी ने नहीं सोचा उनको बचाने के बारे में।और तो और यह संवेदनहीनता ही हर  रोज अनेकों दुर्घटनाग्रस्त लोगों की जान जाने का  कारण  है।
यह हमारा दुर्भाग्य है बेटी! हम अपनी भावनाओं को एकदम सूखी रेत बनाते जा रहे हैं।जबकि सूखी रेत रुक नहीं पाती, बन्द मुठ्ठी में भी नहीं।अगर वीडियो बनाने या फोटो खींचने की जगह उस चोटिल इन्सान को हस्पताल तक पहुँचा दें ,तो कई ज़िन्दगियाँ मुठ्ठी से नहीं फिसलेगी,यह मेरा दावा है।"
भूमि आँसू पौंछते हुये बोली, "अंकल!  आज मैं ये प्रण लेती हूँ ।कभी भी भावनाओं की रेत को नहीं सूखने दूँगी अपनी भावनाओं को गीली रेत बनाउँगी। जिससे लोगों की मदद करने का ज़ज्बा मुझमें बरकरार रहे।"
"बंद मुट्ठी रेत सूखी अब न फिसलेगी कहीं।"

✍️ रागिनी गर्ग
रामपुर (यूपी)

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गुरुवार, 7 मई 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रागिनी गर्ग की लघु कथा------मुक्ति



सुंदरी नाम था उसका। उम्र लगभग चौदह साल थी।जैसा नाम था, वैसा ही रंग-रूप। जो देखे, देखता ही रह जाए। घर में दो लोग थे, सुन्दरी और उसकी बूढ़ी दादी। दोनों ही एक दूसरे का सहारा थीं ।
यह दादी-पोती की ज़िन्दगी का बहुत मनहूस दिन था। घर में चारों ओर लोगों की भीड़ खड़ी थी। सुन्दरी की खून से लथपथ, क्षत-विक्षत लाश घर के आँगन में पड़ी थी। उसके साथ बलात्कार किया गया था।
उसकी लाश देखकर, दादी रोते हुये , बड़बडा़ये जा रही थी, "दुनिया में बेटी बनकर पैदा होना पाप हो गया है ।अगर बेटी गरीब की हो और सुन्दर हो तो यह तो और भी बड़ा महा-पाप है।
"सुन्दरी !अच्छा हुआ तू मर गयी।माँ बाप तो पहले ही न थे छोरी तेरे, मैं भी कोई अमरबेल खाकर तो न आयी थी, आखिर मैं भी कबतक संग रहकर देखभाल करती। "
दादी का बड़बडा़ना लगातार जारी था इसके अलावा वो बेचारी, गरीब, लाचार बुढ़िया और कर भी क्या सकती थी,
     "बलात्कार के बाद जिन्दा रहती तो रोज एक मौत मरती तू बच्ची। भला हुआ जो हमेशा के लिए सो गयी। भगवान ने अपने पास बुलाकर मोक्ष दे दिया, इन राक्षसों के संसार से,नहीं तो पता नहीं कितनी बार और मरना, तड़पना,पड़ता। कसूरवार न होते हुये भी सवालों के कटघरे में खड़ा होना पड़ता।
नित्य बलात्कार होता, कभी अदालत में , कभी लोगों की गन्दी नजरों से। तेरी चिन्ता में,  मैं न जी पा रही थी और न, ही मर पा रही थी। अब चैन से मर तो पाऊँगी । आज दादी तेरी परवरिश से मुक्त हो गयी।"
इतना कहकर दादी सुन्दरी के ऊपर ही लुढ़क गयी। हमेशा के लिए मोक्ष मिल गया दादी और पोती को इस पापी संसार से।
वहीं भीड़ में खडा़ वो वहशी दरिन्दा मन ही मन मुस्करा रहा था, धीरे से बड़बडा़या "चलो बुढ़िया भी निपट गयी अब मुझे थाने का मुँह नहीं देखना पड़ेगा"  अकस्मात वहाँ खडे़ थानेदार की नजर बुढिया की मुट्ठी में बंद एक कागज पर पडी़ ,उसे निकाल कर पढा़ तो उस पर बलात्कारी का नाम अंकित था, जो कि काफी करीबी था।उसको फौरन गिरफ्तार कर लिया गया । वो दोनों तो मुक्त हो गयीं,किन्तु ऊपरवाले के न्याय की लाठी ऐसी चली कि दोषी बंदी हो गया।
रागिनी गर्ग
रामपुर (उ.प्र)

गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रागिनी गर्ग की लघुकथा---- गलतफ़हमी


आज अर्णव,आॅफिस से देर से घर आया। काफी थका -थका , निढाल सा।
माधवी, पानी का गिलास लेकर आयी।फिर व्यंगात्मक -अंदाज में  बोली :-"क्या बात अर्णव! काफी थके हुये लग रहो हो?क्या आज अपनी बाॅस रिनी के साथ चाय नहीं पी , या उसने तुमसे काम ज्यादा करा लिया?"
अर्णव बोला,"तुम्हारे दिमाग में  रिनी जी को लेकर जो शक का कीडा़ रेंग रहा है उसे निकाल बाहर करो। यह हमारे बीच रोज की क्लेश अच्छी  नही । मेरे और उनके बीच में बाॅस और सेक्रेटरी के अलावा न कोई रिश्ता है,  और  न होगा।" मैं बताता हूँ , "आज क्या हुआ -----?"
वो माधवी को कुछ बता पाता, इससे पहले ही माधवी की नजर अर्णव की कमीज पर लगी लिपस्टिक की ओर चली गयी।
"यह क्या है अर्णव?  अब मुझे कुछ नहीं सुनना , झूठ बोलने की भी हद होती है। छीः! मुझे शर्म आती है तुम पर। मैं  तुम्हारे साथ अब एक पल भी नहीं रह सकती। इसी समय  मम्मी के घर जा रही हूँ।' इतना कहकर  वो अपना सामन बाँधने लगी।
तभी दरवाजे की घन्टी बजी।
अर्णव ने दरवाजा खोला।माधवी भी बाहर आ गयी।
60-65 साल के एक बुजुर्ग- दम्पत्ति हाथ में फूलों का गुलदस्ता लिये खडे़ थे।उन दोनों ने एक स्वर से पूछा, "क्या अर्णव जी आप हैं?"
"जी हाँ! मैं हीअर्णव हूँ। पर माफ कीजियेगा, मैंने आपको पहचाना नहीं।"
 दोनों बुजुर्ग अर्णव के पैरों की ओर झुक गये, बोले:- बेटा! आप हमारे लिये भगवान हो। हम उसी जवान -बच्ची के माँ -बाप हैं, जिसकी आपने आज जान बचायी है। ट्रक वाला तो उसे मारकर चला ही गया था, अगर आप उसको समय पर अस्पताल न पहुँचाते तो हम अपनी बच्ची को जिन्दा नहीं पाते।
हमें आपके घर का पता अस्पताल के उस फाॅर्म से मिला जो आपने मेरी बेटी का संरक्षक बनकर भरा था।
अर्णव बोला, "आप मेरे माता-पिता जैसे हैं , कृपया मेरे पैर न पकडे़ं यह तो मेरा फर्ज था।"
पास ही खडी़ माधवी शर्म से, धरती में गढी़ जा रही थी।उसकी आँखों में पश्चाताप के आँसू थे। एक छोटी सी बात को लेकर इतनी बडी़ गलतफहमी पालकर वो अपना घर तोड़ने जा रही थी।

  ✍️ रागिनी गर्ग
रामपुर


गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

रामपुर की साहित्यकार रागिनी गर्ग की लघुकथा -----"प्रकॄति का परिवर्तित रूप"


मिहिका ने शाम को जैसे ही खिड़की खोलीं।उसकी आँखें प्राकृतिक सौन्दर्य को देखकर मुस्करा उठीं।वो खुद को एकदम तरोताजा महसूस करने लगी।
समुद्र एकदम शान्त और स्वच्छ था।हवा में एक अलग सी मीठी-मीठी सुगन्ध थी, जो मन को आह्लादित कर रही थी।
सूरज घर जाने को तैयार था,वह गगन में सिंदूरी छटा बिखेरे हुआ था।बादल आसमान से अठखेलियाँ कर रहे थे। कुल मिलाकर यह खूबसूरती शब्दों में बयाँ नहीं हो सकती।
मिहिका ने अपने पति विहान को आवाज  लगायी,"विहान!,विहान!जल्दी आओ देखो!कितना खूबसूरत नजारा है।"
विहान आया ,और मिहिका के साथ उस खूबसूरती का अवलोकन करने लगा।
विहान बोला-"मिहिका! सचमुच एक अलग ही अनुभूति हो रही है।वरना तो प्रदूषण की वजह से साँस लेना भी दुश्वार था।विषैली हवा के कारण यह खिड़की भी हमेशा बन्द रहती  थी। तुमने इसको आज बहुत दिनों बाद खोला है।"
"विहान क्यों भूलते हो?  यह विष भी तो हम मानवों ने ही प्रकृति में घोला है।भौतिकता की दौड़ में हम धरती माँ का नित स्वरुप बिगाड़ रहे हैं। टी.वी,ए.सी,कूलर ,फ्रिज, इन्टरनेट,मोबाइल आदि अलादीन के चिराग ( विज्ञान) द्वारा  प्रदत्त सारे उपकरण हमारी पृथ्वी के लिये अभिशाप बन गये हैं। मनुज अपने अहम में अंधा हो गया  था कि उससे ज्यादा ताकतवर और समझदार प्राणी पूरी सृष्टि में कोई नही है।इतना सब कुछ मिहिका एक साँस में बोल गई,
विहान ने कहा, "मिहिका! प्रकृति का हर छोटा से छोटा प्राणी भी उतनी शक्ति रखता है जितना कि एक बडा़ प्राणी रखता है। देखो न! एक अति सूक्ष्म,अदृश्य जीव ने सम्पूर्ण मनुष्य जाति को घर में  कैद कर उसकी गति को रोककर प्रकृति का जीर्णोद्धार किया है।इस कोरोना ने प्रकृति को खुशहाल बना दिया है।नदियाँ अविरल बह रही हैं।पशु- पक्षी स्वतन्त्र विचरण कर रहे हैं,हवा स्वच्छ हो गयी, जल  साफ होकर पीने योग्य हो गया है।फूल, पेड़,पौधे सब मुस्करा रहे हैं।कुल मिलाकर आज धरती ,गगन,चाँद ,तारे,पशु,पक्षी,सब खुश हैं।"यह प्रकृति का परिवर्तित रूप है ,जो बहुत समय बाद देखने को मिला है।"
 
✍️ रागिनी गर्ग
रामपुर
उत्तर प्रदेश,भारत
मोबाइल फोन न.-8077331027