राम दत्त द्विवेदी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
राम दत्त द्विवेदी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 15 जून 2025

मुरादाबाद मंडल के साहित्य के प्रसार एवं संरक्षण को पूर्ण रूप से समर्पित संस्था साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से साहित्यकार स्मृतिशेष राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग की जयंती 12 जून 2025 को आयोजित सम्मान समारोह एवं संगोष्ठी में राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग' स्मृति सम्मान से रामदत्त द्विवेदी को किया गया सम्मानित






मुरादाबाद मंडल के साहित्य के प्रसार एवं संरक्षण को पूर्ण रूप से समर्पित संस्था साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से साहित्यकार स्मृतिशेष राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग की जयंती 12 जून 2025 को  सम्मान समारोह एवं संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें हिन्दी साहित्य के प्रति समर्पण एवं सक्रियता के लिए वयोवृद्ध साहित्यकार रामदत्त द्विवेदी को अंगवस्त्र, मानपत्र, श्रीफल भेंट कर राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर अखिल भारतीय साहित्य कला मंच ,वर्णन प्रकाशन, हेमा तिवारी भट्ट और मनोज मनु द्वारा भी उन्हें सम्मानित किया गया।

    मिलन विहार स्थित आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कॉलेज में आयोजित समारोह का शुभारंभ मनोज व्यास द्वारा स्मृतिशेष पंडित मदन मोहन व्यास रचित मां सरस्वती वंदना की  प्रस्तुति से हुआ। साहित्यिक मुरादाबाद के संस्थापक डॉ मनोज रस्तोगी ने स्मृतिशेष राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग का जीवन परिचय प्रस्तुत करते हुए कहा कि 12 जून 1934 को जन्में राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग ने हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखन किया।  उनकी तीन कृतियां अर्चना के गीत, शकुंतला और मैंने कब ये गीत लिखे हैं प्रकाशित हो चुकी हैं। अप्रकाशित रचनाओं में मुक्तक शतक (मुक्तक संग्रह), गहरे पानी पैठ (लघुकथा संग्रह), श्रृंगारिकता( मुक्त छंद), सीख बड़ों ने हमको दी (बालोपयोगी कविताएं), भूली मंजिल भटके राही, अंबर के नीचे (कहानी संग्रह), अंतर्दृष्टि , लेखांजलि, साहित्य के गवाक्ष में मुरादाबाद (मुरादाबाद के साहित्यकारों के व्यक्तित्व व कृतित्व पर विवेचनात्मक लेख) उल्लेखनीय हैं। उनका देहावसान 17 दिसंबर 2013 को हुआ।

    कार्यक्रम सह संयोजक जितेन्द्र कुमार जौली ने सम्मानित विभूति रामदत्त द्विवेदी का जीवन परिचय प्रस्तुत करते हुए कहा कि 30 जून 1937 को रामपुर की तहसील शाहबाद में पंडित गोपाल दत्त द्विवेदी एवं कैलाशो देवी के पुत्र के रूप में जन्में रामदत्त द्विवेदी हिन्दी साहित्य के प्रति समर्पित भाव से सक्रिय हैं। उनकी दो काव्य-कृतियां 'हम अंधेरों को मिटायें' और 'खुद को बदलना होगा' प्रकाशित हो चुकी हैं। वह हिन्दी साहित्य संगम के अध्यक्ष भी हैं।

     इस अवसर पर साहित्यकारों द्वारा राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग के गीतों की प्रस्तुति भी की गई। मनोज मनु ने उनका गीत .... ज्योति की राह पर रख दिए जो चरण, वे चरण बढ़ गए फिर रुके ही नहीं, मीनाक्षी ठाकुर ने उनका गीत लग रही आज है आग़ इस देश में तुम गगन से अंगारे गिराओ नहीं प्रस्तुत किया।

   कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ महेश दिवाकर ने कहा कि छह दशक से भी अधिक हिन्दी की निरंतर बहुआयामी सेवा करने वाले राजेंद्र मोहन शर्मा 'श्रृंग' साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य संगम' के संस्थापक अध्यक्ष थे। वे अपने आपमें एक संस्था थे! सृजन और संयोजन का उनका व्यक्तित्व पर्याय था! उनकी स्मृति को जीवंत रखने हेतु श्री रामदत्त दिवेदी जी को उनकी बहु आयामी हिंदी सेवा के लिए 'श्रृंग'- सम्मान से सम्मानित करना निश्चित ही स्तुत्य है।

   मुख्य अतिथि बृजेंद्र सिंह वत्स ने कहा राजेंद्र मोहन शर्मा युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं । उन्होंने अपनी संस्था के माध्यम से मुरादाबाद में साहित्यिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया।

   डॉ अजय अनुपम ने कहा उन्होंने मुरादाबाद में अंग्रेजी हटाओ आंदोलन में भी सक्रिय भागीदारी निभाई। यही नहीं उन्होंने अपने हस्तलेख में मासिक पत्र प्रकाशित कर साहित्य सेवा का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया।

श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा कि वह ऋतुराज उपनाम से कहानियां लिखा करते थे, मच्छर मुरादाबादी उपनाम से हास्य कविताएं लिखते थे और गीतोंं का सृजन श्रृंग उपनाम से करते थे। 

हरि प्रकाश शर्मा ने कहा कि उन्होंने हस्तलिपि में एक साहित्य संवाद नामक मासिक पत्र भी निकाला जिस में कविता, कहानी,संस्मरण आदि सम्मिलित रहते थे।

डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा सहज सरल व्यक्तित्व के धनी और हिन्दी को समर्पित स्मृतिशेष राजेन्द्र मोहन शर्मा साहित्यिक पाठशाला के अनुशासित प्राध्यापक थे।

राजीव सक्सेना ने कहा स्मृति शेष राजेंद्रमोहन शर्मा श्रृंग जी केवल एक  गीतकार ही नहीं थे अपितु एक प्रतिबद्ध साहित्यकार भी थे जिनके लिए साहित्य एक जुनून था तभी उन्होंने हिंदी साहित्य  संगम जैसी साहित्यिक संस्था का गठन कर प्रत्येक माह नियमित रूप से इसकी गोष्ठियों का आयोजन किया और युवा साहित्यकारों की एक पौध भी तैयार की ।

   कार्यक्रम संयोजक योगेन्द्र वर्मा व्योम का आलेख प्रस्तुत करते हुए आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ ने कहा श्रृंग जी के गीतों में श्रंगार और प्रकृति चित्रण के साथ साथ छायावाद की छाया भी दिखाई देती है। उनके गीतों की भाषा आम जनभाषा के साथ साथ विशुद्ध संस्कृतनिष्ठ हिन्दी भी है।

अशोक विद्रोही ने उन्हें काव्यात्मक श्रद्धांजलि इस तरह दी....

हे कवि-कभी आकर देखो

अपने संगम की महफिल में।

जो दीप जलाया था तुमने,

न उसकी ज्योति हुई फीकी।

उत्साहित स्वर अब भी गुंजित ,

गीतों की तान नहीं रीती।

     डॉ कृष्ण कुमार नाज ने कहा कि वह जितने अच्छे साहित्यकार थे, उससे भी बहुत अच्छे इंसान थे। चश्मे के पीछे झाँकती हुई दो चमकदार आँखें, होंठों पर निरंतर अठखेलियाँ करती मुस्कान, सभी से हँसकर मिलना, सभी से उनकी और उनके परिवार की ख़ैर-ख़बर लेते रहना, उनके व्यक्तित्व की विशेषताएँ थीं।

डॉ पूनम बंसल, डॉ प्रदीप शर्मा, हेमा तिवारी भट्ट, चंद्रहास कुमार हर्ष, अल्पना मिश्रा, खुशबू शर्मा ने भी विचार व्यक्त किए।

      इस अवसर पर दुष्यंत बाबा, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, प्रदीप  विरल, राम सिंह निशंक, घनश्याम सिंह चौहान, रूप चंद्र गोयल, जिया जमीर, फरहत अली, नकुल त्यागी, मोहम्मद जावेद,धवल दीक्षित, पदम सिंह बेचैन, नकुल त्यागी, श्याम रस्तोगी, मुकुल व्यास, एल  एस तोमर, अमर सक्सेना, कमल शर्मा, विवेक कुमार निर्मल, शर्मिष्ठा मिश्रा, राखी शर्मा, नीति शर्मा, प्रतीक्षा शर्मा आदि उपस्थित रहे। 

   उल्लेखनीय है इससे पूर्व संस्था द्वारा स्मृतिशेष रामलाल अनजाना, स्मृतिशेष डॉ मक्खन मुरादाबादी, स्मृतिशेष पंडित सुरेन्द्र मोहन मिश्र और स्मृतिशेष पंडित मदन मोहन व्यास की पावन स्मृति में आयोजन किया जा चुका है जिसमें क्रमशः वरिष्ठ साहित्यकारों ओंकार सिंह ओंकार , त्यागी अशोका कृष्णम, सुरेश चंद्र शर्मा तथा रामावतार रस्तोगी शरणागत को सम्मानित किया जा चुका है ।

















































































आयोजन से पूर्व  विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार .....….