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::::::::::प्रस्तुति:::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822
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डॉ मनोज रस्तोगी
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आश्विन मास कनागत में ।
मनोयोग से लग जाते हैं
त्योहारों के स्वागत में ।।
इठला उठते हैं घर-द्वारे
जब पहनें साफ-सफाई ।
घर से विदा दलिद्दर होते
जी भर ले नेग विदाई ।।
फिर भी मन अनमना, सोचता
रही कमी कुछ लागत में ।
नवरात्र शुभम् पूजा-अर्चन
शुद्ध मनों को कर देते ।
अहंकार हो सभी पराजित
पुरुषोत्तम को बल देते ।।
यहीं राम की लीलाओं का
मिलता मर्म परागत में ।
जगमग होकर दीवाली में
मोती मन के बिखरें सब ।
घर-घर के कोने-कोने भी
उपवन जैसे निखरें जब ।।
गान उभर कर आ बैठे फिर
अपने आप अनाहत में ।
धूम-धाम से देवठान को
देव उठाये जाते हैं ।
गंग घाट पर नहा-नहा कर
आसन देव लगाते हैं ।।
कर्म हमारे तब हैं ,तोले
जाते दिव्य अदालत में ।
अपने-अपने कर्म-धर्म में
जब-जब दोष भरे देखे ।
शरण यज्ञ की हम पहुंचे हैं
ले, लेकर अपने लेखे ।।
तब कस्तूरी बस जाती है
आकर सोच तथागत में ।
✍️ डॉ. मक्खन मुरादाबादी
झ-28, नवीन नगर
काँठ रोड, मुरादाबाद
मोबाइल:9319086769
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डॉ मनोज रस्तोगी
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एक आदर्श व सक्षम रचनाकार जब भावों के अथाह महासागर में चहलक़दमी करके बाहर आता है, तो उसकी लेखनी कुछ ऐसा अवश्य समेट कर लाती है, जो एक उत्कृष्ट कृति में ढलकर, सहज ही पाठकों व श्रोताओं से वार्तालाप करने लगती है। डॉ. पूनम बंसल की उत्कृष्ट लेखनी से साकार हुआ गीत-संग्रह 'चाॅंद लगे कुछ खोया-खोया' ऐसी ही उल्लेखनीय कृति है जो कुल 78 मनमोहक गेय रचनाओं से सुसज्जित होकर यह स्पष्ट करती है कि कवयित्री ने मात्र लिखने के लिये ही नहीं लिखा अपितु, अनुभूतियों के इस अथाह महासागर में उतर कर उनसे साक्षात्कार भी किया है। चाहे ये अनुभूतियाॅं अध्यात्म से ओत-प्रोत हों अथवा जीवन की विभिन्न चुनौतियों से जूझते संघर्ष की गाथाएं, प्रत्येक रचना में कवयित्री अपने मनोभावों को, उत्कृष्टता से स्पष्ट करने में सफल रही हैं। कृति का आरम्भ पृष्ठ 31 पर उपलब्ध, माॅं शारदे को समर्पित हृदयस्पर्शी रचना से हुआ है। इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाॅं ही हृदय को भक्ति-भाव से ओत-प्रोत कर जाती हैं, पंक्तियाॅं देखें -
"इन पावन चरणों में कर ले, आज नमन स्वीकार माॅं।
ज्योतिर्मय हों सभी दिशाएं, और मिटे ॲंधियार माॅं।"
कुछ इसी प्रकार की कामना, पृष्ठ-32 पर उपलब्ध रचना में भी दिखाई देती है, पंक्तियाॅं देखें -
"ज्ञान के सूरज उगा, हे धवल वसना शारदे।
हो नया स्वर्णिम सवेरा, वो मधुर झंकार दे।"
आध्यात्मिक रचनाओं से शुभारंभ करने वाली यह कृति आगे बढ़ती हुई, जीवन के विभिन्न उतार-चढ़ावों को भी स्पर्श करने लगती है। इसी क्रम में जीवन का दर्द समेटे एक रचना पृष्ठ 36 पर, 'क़दम-क़दम पर दर्द भरा जब' शीर्षक से आती है। इस मर्मस्पर्शी रचना की कुछ पंक्तियाॅं -
"क़दम-क़दम पर दर्द भरा जब, पीना है विष का प्याला।
फिर कैसे कह दें हम बोलो, जीवन अमृत की हाला।"
इसी प्रकार मातृ-भक्ति को साकार करती, 'माॅं गंगा की धार है' (पृष्ठ 39), जनकल्याण की भावना से अभिप्रेरित, 'दूर हो यह धरा का ॲंधेरा सभी' (पृष्ठ 40), प्रकृति से गलबहियाॅं करती 'ओ सावन के मेघ बरस जा' (पृष्ठ 41), 'पिया मिलन की रुत आई' (पृष्ठ 55), 'झूला झूलें राधा रानी' (पृष्ठ 96) आदि रचनाएं हैं, जिनके माध्यम से कवयित्री ने जीवन के प्रत्येक पहलू को पाठकों के सम्मुख उकेरा है।
व्यक्तिगत रूप से मैं इस निष्कर्ष पर पहुॅंचा हूॅं कि इस उत्कृष्ट गीत-संग्रह के केंद्र में, अंतस में छिपी व आकुल व्यथा एवं सर्वशक्तिमान ईश्वर से एकाकार हो जाने की उत्कण्ठा ही है, जिसके इर्द-गिर्द, अन्य अनेक अनुभूतियाॅं निरंतर चहलकदमी करती हैं, जिन्हें अभिव्यक्त करने में कवयित्री की लेखनी तनिक भी विलंब नहीं करती। यही कारण है कि उनकी रचनाओं में रची-बसी एक संघर्षरत परन्तु जीवट की धनी नारी, संघर्षों से जूझते हुए भी आशा का संचार कर जाती है। पृष्ठ 119 पर उपलब्ध रचना इसी आशावादी दृष्टिकोण को अभिव्यक्ति दे रही है। 'बदल रहा कश्मीर है' शीर्षक वाली इस रचना की पंक्तियाॅं देखें -
"महक उठी है केसर-वादी, उड़ा गुलाल अबीर है।
धारा के हटने से देखो, बदल रहा कश्मीर है।"
जीवन के विविध पहलुओं को साकार करती यह गीत-यात्रा पृष्ठ-125 पर उपलब्ध 'जो सलोने सपन' शीर्षक रचना के साथ विश्राम लेती है। निराशा से आशा की ओर बढ़ती इस रचना की कुछ पंक्तियाॅं -
"जो सलोने सपन ऑंसुओं में पले,
आस बन कर सभी जगमगाते रहे।
लालिमा से गगन है अभी बे-ख़बर,
बादलों में छिपा है कहीं भास्कर।
पंछियों की तरह सुरमई साॅंझ में,
प्रीत के गीत हम गुनगुनाते रहे।"
यद्यपि, हिंदी एवं उर्दू दोनों के शब्दों का सुंदर संगम लिये इस कृति में, कहीं-कहीं भाषाई अथवा टंकण सम्बंधी त्रुटियाॅं, कवयित्री के इस सारस्वत अभियान में बाधा डालने का असफल प्रयास करती प्रतीत हुई हैं एवं कुछ आलोचक बंधु भी अपनी अभिव्यक्ति के लिये इसमें पर्याप्त संभावनाएं तलाश सकते हैं परन्तु, यह उत्कृष्ट कृति इन सभी चुनौतियों से पार पाते हुए, पाठकों के अंतस को स्पर्श करने में पूर्णतया सक्षम है, ऐसा मैं मानता हूॅं। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि, सरल व सहज भाषा-शैली के साथ, आकर्षक सज्जा एवं सजिल्द स्वरूप में तैयार यह गीत-संग्रह, गीत-काव्य जगत में अपना उल्लेखनीय स्थान बनायेगा।
रचनाकार : डॉ पूनम बंसल
प्रकाशन वर्ष : 2022 मूल्य : 200 ₹
प्रकाशक - गुंजन प्रकाशन, मुरादाबाद
डिप्टी गंज, मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था अक्षरा के तत्वावधान में कवयित्री डॉ. पूनम बंसल के गीत-संग्रह "चाँद लगे कुछ खोया-खोया" का लोकार्पण रविवार 28 अगस्त 2022 को सिविल लाइंस मुरादाबाद स्थित दयानंद आर्य कन्या महाविद्यालय के सभागार में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने की, मुख्य अतिथि के रूप में गजरौला से विख्यात कवयित्री डॉ. मधु चतुर्वेदी तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में उच्च शिक्षा आयोग के पूर्व सदस्य डॉ. हरवंश दीक्षित, इं० उमाकांत गुप्त, सिंभावली के साहित्यकार राम आसरे गोयल एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामानंद शर्मा उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम द्वारा किया गया। कार्यक्रम का आरंभ युवा कवि मयंक शर्मा द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वन्दना से हुआ।
इस अवसर पर लोकार्पित कृति "चाँद लगे कुछ खोया-खोया" से रचनापाठ करते हुए डॉ. पूनम बंसल ने गीत सुनाये- "दूर हो ये धरा का अँधेरा सभी/आज फिर इक नया अवतरण चाहिए/प्रेम के फूल ही हर तरफ़ हों खिले/हम लगा लें गले राह में जो मिले/हर जहाँ से हसीं हो हमारा जहाँ/चेतना का विमल जागरण चाहिए"। उनके एक और गीत की सबने तारीफ की- "भौतिकता ने पाँव पसारे, संस्कृति भी है भरमाई/मौन हुई है आज चेतना, देख धुंध पूरब छाई/नैतिकता जब हुई प्रदूषित, मूलें का भी ह्रास हुआ/मात-पिता का तिरस्कार तो मानवता का त्रास हुआ/पश्चिम की इस चकाचैंध में लाज-हया भी शरमाई"।
लोकार्पित गीत संग्रह पर आयोजित चर्चा में प्रख्यात साहित्यकार माहेश्वर तिवारी ने कहा- "डॉ. पूनम बंसल शुद्ध अर्थों में अंतरंग रागचेतना और बाह्य प्रकृति के समन्वय से निर्मित गीत कवयित्री हैं जिनकी काव्य-भाषा आम बोलचाल की भाषा है, जिसमें हिंदी के तत्सम शब्दों के साथ-साथ उर्दू का पुट भी मिलता है।"
वरिष्ठ ग़ज़लकार डॉ. कृष्णकुमार नाज़ ने कहा- "पूनम जी के गीत यूँ तो विविध रंगों में सजे हुए शब्दचित्र हैं, लेकिन उनके यहाँ श्रृंगार की प्रधानता पाई जाती है। उसमें भी वियोग श्रृंगार की प्रबलता है। आम बोलचाल की भाषा में लिखे गए गीत सबका मन मोह लेते हैं।"
नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा- "डाॅ. पूनम बंसल के गीतों में मन की रागात्मकता तथा संगीतात्मकता की मधुर ध्वनि स्पष्ट सुनाई देती है, ऐसा महसूस होता है कि ये सभी गीत गुनगुनाकर लिखे गए हैं। संग्रह के गीतों का विषय वैविध्य कवयित्री की सृजन-क्षमता को प्रतिबिंबित करता है। इन गीतों में जहाँ एक ओर प्रेम की सात्विक उपस्थिति है तो वहीं दूसरी ओर भक्तिभाव से ओतप्रोत अभिव्यक्तियाँ भी हैं।"
कृति के संबंध में अपने विचार रखते हुए महानगर के रचनाकार राजीव प्रखर ने कहा - कवयित्री डॉ. पूनम बंसल ने मात्र लिखने के लिए ही नहीं लिखा अपितु, अनुभूतियों के अथाह सागर में उतर कर उनसे साक्षात्कार भी किया है। यही कारण है कि वह संग्रह की प्रत्येक रचना में अपने मनोभावों को सशक्त रूप से स्पष्ट करने में सफल रही हैं। कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने पुस्तक के संबंध में अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति करते हुए कहा - डॉ पूनम बंसल जी के गीतों से गुजरते हुए हम सहजता से पीड़ा के घने जंगलों को पार कर मुस्कानों व उम्मीदों की डगर पर बढ़ते हुए प्रेम की सुन्दर नगरी में प्रवेश करते हैं जहाँ मन की चिड़िया फुर्र से उड़ती है।
डॉ. पूनम बंसल के रचनाकर्म के संबंध में अन्य वक्ताओं में डॉ सुधीर अरोरा, डॉ. आर. सी. शुक्ल, डॉ. प्रेमवती उपाध्याय, डॉ. अजय अनुपम, देवकीनंदन जैन, हरिनंदन जैन, प्रदीप बंसल, डॉ अंबरीश गर्ग, काव्य सौरभ रस्तोगी, बाल सुंदरी तिवारी आदि प्रमुख रहे।
कार्यक्रम में ओंकार सिंह ओंकार, फक्कड़ मुरादाबादी, श्रीकृष्ण शुक्ल, डॉ. मनोज रस्तोगी, धवल दीक्षित, ज़िया ज़मीर, रामदत्त द्विवेदी, राकेश जैसवाल, मनोज मनु, वीरेन्द्र ब्रजवासी, ज़िया ज़मीर, नकुल त्यागी, शिव मिगलानी, डॉ अर्चना गुप्ता, डॉ पंकज दर्पण, शिव ओम वर्मा, नकुल त्यागी, संतोष गुप्ता, जितेन्द्र जौली, रामसिंह निशंक, राजीव शर्मा, दुष्यंत बाबा, माधुरी सिंह, अभिव्यक्ति, अमर सक्सेना, मुस्कान आदि उपस्थित रहे। आभार अभिव्यक्ति अंशिका बंसल ने व्यक्त की।
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डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
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अंधा बनकर
अपनो को ही रेबड़ी बांटता हूं
अपनी और पराई चीज में
कोई भेद नहीं करता हूं
जिस थाली में खाता हूं
छेद उसी में करता हूं
अपना उल्लू सीधा करना
मुझे अच्छे से आता है
मुझे रंग बदलता देख
गिरगिट भी शर्माता है
मैं कभी घड़ियाली
आंसू बहाता हूं
कभी हथेली पर
सरसों जमाता हूं
मुख में राम
बगल में छुरी रखता हूं
कुंभकरण को पीछे छोड़
पांच साल तक सो सकता हूं
जनता रूपी मछली को देख
बगुला भगत की तरह
खड़ा रहता मौन हूं
क्या आप बता सकते हैं
मैं किस ग्रह का वासी हूं,
कौन हूं
वैसे मैं बाहर से
बिल्कुल आपके जैसा हूं
अब तो समझ गए ना
मैं कौन हूं,कैसा हूं
✍️ डॉ पुनीत कुमार
T 2/505 आकाश रेजीडेंसी
आदर्श कॉलोनी रोड
मुरादाबाद 244001
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