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शनिवार, 2 सितंबर 2023

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' की ओर से मंडल के जनपद बिजनौर के साहित्यकार दुष्यंत कुमार की जयंती पर दो सितंबर 2023 को गोष्ठी का आयोजन

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर के साहित्यकार दुष्यंत कुमार की जयंती के अवसर पर साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' के तत्वावधान में कंपनी बाग स्थित प्रदर्शनी कार्यालय के भवन में शनिवार 2 सितंबर 2023 को कवि-गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता  सुप्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य कवि डॉ. मक्खन मुरादाबादी ने की। मुख्य अतिथि अपर नगर मजिस्ट्रेट राजबहादुर सिंह तथा विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय अनुपम रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ  मयंक शर्मा द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ। इसके पश्चात  योगेन्द्र वर्मा व्योम द्वारा गजलकार दुष्यंत कुमार के व्यक्तित्व व कृतित्व पर केन्द्रित आलेख का वाचन किया गया। 

    कवि गोष्ठी में विख्यात कवि डॉ.मक्खन मुरादाबादी ने गीत प्रस्तुत किया- 

नए सृजन पर असमंजस में, 

तुलसी सूर कबीरा। 

गान आज का गाने में सुन, 

दुखी हो उठी मीरा। 

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय अनुपम ने सुनाया- 

जब से चन्दा पर चला, है रोवर प्रज्ञान। 

खोजें उपमा रूप की, भाषा के विद्वान।  

डॉ. कृष्ण कुमार नाज़ ने ग़ज़ल पेश की- 

वादों की फ़ेहरिस्त दिखाई और तक़रीरें छोड़ गए, 

वो सहरा में दरियाओं की कुछ तस्वीरें छोड़ गए। 

मुख्य अतिथि अपर नगर मजिस्ट्रेट राजबहादुर सिंह ने रचना प्रस्तुत की- 

रास्ता होता नहीं मंज़िल कभी ।

 बात मेरी मान ले ऐ दिल कभी। 

कुछ भँवर भी नाव कर देते हैं पार। 

छोड़ देते हाथ कुछ साहिल कभी। 

वरिष्ठ ग़ज़लकार ओंकार सिंह ओंकार ने सुनाया- 

अब ये करोड़ों हाथ जो बेकार हो गए, 

काम इनको कुछ दिलाओ ज़रा होश में रहो। 

मज़दूर ने कमाई है दौलत जो मुल्क में, 

उसको न तुम उड़ाओ ज़रा होश में रहो। 

वरिष्ठ कवि श्रीकृष्ण शुक्ल ने सुनाया- 

जिन दरख्तों को गिराना चाहती थीं आँधियाँ। 

कुछ परिन्दों ने बना रक्खे हैं उनमें आशियाँ। 

 डॉ.मनोज रस्तोगी ने रचना प्रस्तुत की- 

बीत गए कितने ही वर्ष ,

हाथों में लिए डिग्रियां, 

कितनी ही बार जलीं 

आशाओं की अर्थियां, 

आवेदन पत्र अब 

लगते तेज कटारों से।

शायर जुबैर मुरादाबादी ने सुनाया- 

मुद्दतों हमने ज़माने को दिया दरसे हयात। 

मुद्दतों तक हमें रोयेंगे ज़माने वाले। 

हम वो मदहोशें मुहब्बत हैं ज़माने में ज़ुबैर। 

हश्र तक भी जो नहीं होश में आने वाले। 

 योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने दोहे प्रस्तुत किये- 

अट्टहास कर हँस रहा, जालिम भ्रष्टाचार। 

डिग्री थामे हाथ में, युवावर्ग लाचार। 

धन-पद-बल की हो अगर, भीतर कुछ तासीर। 

जीकर देखो एक दिन, वृद्धाश्रम की पीर।

 ज़िया ज़मीर ने ग़ज़ल पेश की- 

हक़ीक़त था मगर अब तो फ़साना हो गया है। 

उसे देखे हुए कितना ज़माना हो गया है। 

ज़रा सी बात पे आंखों के धागे खुल गए हैं। 

ज़रा सी देर में ख़ाली ख़जाना हो गया है।  

राहुल शर्मा ने गीत सुनाया- 

चंद लम्हों की मुलाकात बुरी होती है। 

गर जियादा हो तो बरसात बुरी होती है। 

हर किसी को ये समझ लेते है अपने जैसा। 

अच्छे लोगों में यही बात बुरी होती है।  

राजीव 'प्रखर' ने दोहे प्रस्तुत किए- 

मैंने तेरी याद में, ओ मेरे मनमीत। 

पूजाघर में रख दिए, रचकर‌ अनगिन गीत। 

 मनोज मनु ने गीत सुनाया- 

कुचलकर हक़ ये सरकारें अमन आवाद रखेंगी। 

मगर जब जुल्म पे मजबूरियां फरियाद रखेंगी। 

जमाने को दिया जो ढंग अपनी बात रखने का। 

तुम्हें उसके लिए दुष्यंत, सदियां याद रखेंगी।

मयंक शर्मा ने सुनाया- 

बोल मजूरे ज़ोर लगाकर बोल मजूरे हल्ला, 

मांगें हम ख़ैरात कोई न चाहें सस्ता गल्ला। 

कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने सुनाया- 

तेरे क़दमों मे मेरी ख़ाक बिखर जायेगी। 

बाद मरने के यूँ तक़दीर सँवर जायेगी। 

लौट आया है तेरी याद का मौसम फिर से। 

ख़ुश्क आँखो में कोई बूँद ठहर जायेगी।  

कुलदीप सिंह ने सुनाया -

थक जाते हैं खुद के भीतर, दुहरा जीवन जीते जीते। 

बाहर से सब भरे भरे हैं, अंदर से हैं रीते रीते।  

शुभम कश्यप ने सुनाया- 

किस कदर है खूबसूरत शायरी दुष्यंत की। 

ज़िन्दगी की है ज़रूरत शायरी दुष्यंत की। 

दिल से देखोगे जो पढ़कर जान जाओगे 'शुभम'। 

बख्शती है दिल को क़ूवत शायरी दुष्यंत की।

 मनीष मोहक ने सुनाया-

 तराशा है तुझे जिसने लड़कपन में, जवानी में। 

हमेशा याद रखना तू उसे अपनी कहानी में। 

कार्यक्रम में कलक्ट्रेट के प्रशासनिक अधिकारी गोपी कृष्ण, अनुपम अग्निहोत्री, केके गुप्ता ने दुष्यंत कुमार के संदर्भ में अपने विचार प्रस्तुत किये। कार्यक्रम का संचालन नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने किया। कार्यक्रम संयोजक एवं प्रदर्शनी प्रभारी राहुल शर्मा द्वारा आभार-अभिव्यक्ति प्रस्तुत की गई।

























::::प्रस्तुति:::::;

योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'

संयोजक- 

संस्था 'अक्षरा' 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल-9412805981

गुरुवार, 27 जुलाई 2023

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' की ओर से यश भारती माहेश्वर तिवारी के जन्मदिन शनिवार 22 जुलाई 2023 को पावस-गोष्ठी एवं सम्मान समारोह का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' के तत्वावधान में गौड़ ग्रीशियस काँठ रोड, मुरादाबाद स्थित 'हरसिंगार' भवन में साहित्यकार माहेश्वर तिवारी के जन्मदिन एवं उनकी रचनाधर्मिता के सात दशक पूर्ण होने के अवसर पर पावस-गोष्ठी, संगीत संध्या एवं सम्मान समारोह का आयोजन किया गया जिसमें वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय अनुपम को अंगवस्त्र, प्रतीक चिन्ह, मानपत्र, श्रीफल तथा सम्मान राशि भेंटकर "माहेश्वर तिवारी साहित्य सृजन सम्मान" से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता देहरादून निवासी देश के सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र ने की। मुख्य अतिथि विख्यात व्यंग्यकवि डॉ.मक्खन मुरादाबादी रहे। कार्यक्रम का संचालन योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने किया।

   कार्यक्रम का शुभारंभ सुप्रसिद्ध संगीतज्ञा बालसुंदरी तिवारी एवं उनकी संगीत छात्राओं- लिपिका सक्सेना, संस्कृति, प्राप्ति गुप्ता, सिमरन, आदया एवं तबला वादक लकी वर्मा द्वारा प्रस्तुत संगीतबद्ध सरस्वती वंदना से हुआ। इसके पश्चात उनके द्वारा सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी के गीतों की संगीतमय प्रस्तुति हुई- "बादल मेरे साथ चले हैं परछाई जैसे/सारा का सारा घर लगता अंगनाई जैसे।" और- "याद तुम्हारी जैसे कोई कंचन कलश भरे/जैसे कोई किरन अकेली पर्वत पार करे।"

     पावस गोष्ठी में यश भारती से सम्मानित सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने गीत पढ़ा- 

"आज गीत गाने का मन है, 

अपने को पाने का मन है।

अपनी चर्चा है फूलों में, 

जीना चाह रहा शूलों में, 

मौसम पर छाने का मन है।" 

सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र ने गीत प्रस्तुत किया- 

"प्यास हरे कोई घन बरसे,

 तुम बरसो या सावन बरसे, 

एक सहज विश्वास संजोकर, 

चातक ने व्रत ठान लिया है, 

अब चाहे नभ से स्वाती की,

 बूँद गिरे या पाहन बरसे।" 

विख्यात कवि डॉ.मक्खन मुरादाबादी ने गीत प्रस्तुत किया- 

"उन गीतों में मिला महकता, 

इस माटी का चंदन, 

जिनका अपना ध्येय रहा है, 

सौंधी गंधों का वंदन।"

   वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय 'अनुपम' ने सुनाया-

 "राह कांँटों भरी थी सहल हो गई, 

चाह मेरी कुटी से महल हो गई,

 मैं झिझकता रहा बात कैसे करूं, 

आज उनकी तरफ़ से पहल हो गई।"

 मशहूर शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज ने ग़ज़ल पेश की- 

"ज़िंदगी तेरे अगर क़र्ज़ चुकाने पड़ जाएं, 

अच्छे-अच्छों को यहां होश गंवाने पड़ जाएं, 

साफ़गोई है किसी अच्छे तअल्लुक़ की शर्त,

 वादे ऐसे भी न हों जो कि पुराने पड़ जाएं।"   

कवयित्री विशाखा तिवारी ने रचना प्रस्तुत की-

 "आज व्याकुल धरती ने 

पुकारा बादलों को। 

मेरी शिराओं की तरह 

बहती नदियाँ जलहीन पड़ी हैं।" 

      वरिष्ठ ग़ज़लकार ओंकार सिंह 'ओंकार' ने सुनाया- 

"बारिश में सड़कें हुई हैं गड्‌ढों से युक्त। 

जाम लग रहे हर जगह वाहन सरकें सुस्त।

हरियाली फैला रही चहुंदिसि ही आनंद।

 बूँदों से हर खेत में, महक उठे है छंद।

      कवि वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी ने गीत सुनाया- 

"मुँह पर गिरकर बूँदों ने बतलाया है, 

देखो कैसे सावन घिरकर आया है। 

बौछारों से तन-मन ठंडा करने को,

डाल-डाल झूलों का मौसम आया है।" 

 कवयित्री डॉ पूनम बंसल ने सुनाया- 

"कभी गरजते कभी बरसते,

रंग जमाते हैं बादल। 

सदियों से इस तृषित धरा का,

द्वार सजाते हैं बादल।" 

         कवि समीर तिवारी ने सुनाया-

 "बदल गया है गगन सारा,सितारों ने कहा।

 बदल गया है चमन हमसे बहारों ने कहा। 

वैसे मुर्दे है वही सिर्फ अर्थियां बदली। 

फ़क़ीर ने पास में आकर इशारों से कहा।"

कवि डॉ.मनोज रस्तोगी ने रचना प्रस्तुत की- 

"नहीं गूंजते हैं घरों में अब, 

सावन के गीत 

खत्म हो गई है अब, 

झूलों पर पेंग बढ़ाने की रीत

 नहीं होता अब हास परिहास, 

दिखता नहीं कहीं सावन का उल्लास।"

कवि योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने पावस दोहे प्रस्तुत किये- 

"भौचक धरती को हुआ, बिल्कुल नहीं यक़ीन।

अधिवेशन बरसात का, बूँदें मंचासीन।

पल भर बारिश से मिली, शहरों को सौगात। 

चोक नालियां कर रहीं, सड़कों पर उत्पात।"

" शायर ज़िया ज़मीर ने ग़ज़ल पेश की-

 "हमारे शहर में बादल घिरे हैं, तुम्हारे शहर में क्या हो रहा है। 

वो आंखें ऐसी भी प्यारी नहीं हैं,न जाने यह हमें क्या हो रहा है।" 

 दोहाकार राजीव 'प्रखर' ने दोहे प्रस्तुत किए- 

"मीठी कजरी-भोजली, बल खाती बौछार। 

तीनों मिलकर कर रहीं, सावन का शृंगार।

 मानुष मन है अश्व सा, इच्छा एक लगाम।

 जिसने पकड़ी ठीक से, जीत लिया संग्राम।" 

कवि मनोज मनु ने गीत सुनाया-

 "रिमझिम बरखा आई, झूम रे मन मतवाले,

 काले काले बदरा घिर-घिर के आते हैं, 

अंजुरी में भर-भर के बूंद-बूंद लाते हैं,

 बूंद -बूंद भर देती खाली मन के प्याले, "

 प्रो ममता सिंह ने सुनाया- 

"मोरे जियरा में आग लगाय गयी रे, सावन की बदरिया।

 मोहिं सजना की याद दिलाय गयी रे, सावन की बदरिया।

 जब जब मौसम ले अंगडाई और चले बैरिनि पुरवाई। 

मोरी धानी चुनरिया उड़ाय गयी रे सावन की बदरिया।" 

    हेमा तिवारी भट्ट ने सुनाया-

 "बोया था रवि बीज मैंने, 

रात्रि की कोमल मृदा में, 

तम गहन ऊर्जा में ढलकर, 

अंकुरा देखो दिवस बन।" 

काशीपुर निवासी डॉ ऋचा पाठक ने सुनाया- 

"एक बदरिया आँखों में ही सूख गयी ज्यों न दिया। 

पकी फ़सल कैसे ढोये, अब सोचे हारा हरिया। 

बामन ने ये साल तो पर कै भला बताये रे।"

मयंक शर्मा ने सुनाया- 

"प्रिय ने कुंतल में बँधी खोली ऐसे डोर। 

मानो सावन की घटा घिर आई चहुँओर। 

बूँदों के तो घर गई एक रंग की धूप। 

लेकर निकली द्वार से इंद्रधनुष का रूप।"

संतोष रानी गुप्ता, माधुरी सिंह, डी पी सिंह एवं इं० उमाकांत गुप्त ने पावस के संदर्भ में अपने विचार प्रस्तुत किये। कार्यक्रम संयोजक आशा तिवारी एवं समीर तिवारी द्वारा आभार-अभिव्यक्ति प्रस्तुत की गई। 
























































मंगलवार, 7 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' की ओर से चार फरवरी 2023 को आयोजित भारतीय शास्त्रीय संगीत कार्यक्रम 'वसंत-राग एवं सम्मान समारोह' में बरेली के संगीतकार अवधेश गोस्वामी, रीता शर्मा एवं डॉ हितु मिश्रा को किया गया सम्मानित

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' की ओर से नवगीतकार माहेश्वर तिवारी जी के नवीन नगर स्थित आवास पर शनिवार 4 फरवरी 2023 को भारतीय शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम 'वसंत-राग एवं सम्मान समारोह' का आयोजन किया गया जिसमें बरेली निवासी शास्त्रीय संगीतकार अवधेश गोस्वामी, रीता शर्मा एवं डॉ हितु मिश्रा को भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए मानपत्र, अंगवस्त्र, प्रतीक चिह्न तथा सम्मान राशि भेंटकर "संत संगीतज्ञ कीर्तिशेष पुरुषोत्तम व्यास स्मृति सम्मान" से सम्मानित किया गया। 

     सुप्रसिद्ध संगीतज्ञा बाल सुंदरी तिवारी एवं उनकी शिष्याओं लिपिका सक्सेना, संस्कृति राजपूत, सिमरन मदान व राधिका गुप्ता द्वारा संगीतमयी प्रस्तुत सरस्वती वंदना से आरम्भ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना रुकमणी खन्ना ने की, मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध शास्त्रीय संगीतज्ञ ब्रज गोपाल व्यास तथा विशिष्ट अतिथि दयानंद आर्य कन्या महाविद्यालय के प्रबंधक उमाकांत गुप्त रहे। कार्यक्रम का संयुक्त रूप से संचालन वरिष्ठ रंगकर्मी प्रदीप शर्मा एवं नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने किया।

         इस अवसर पर सर्वप्रथम बाल सुंदरी तिवारी द्वारा महाकवि निराला के अमर वसंत गीत- "सखि वसंत आया..." की संगीतमय प्रस्तुति की गयी तत्पश्चात अतिथि संगीतकारों की प्रस्तुतियां हुईं।

     बरेली के वरिष्ठ संगीतज्ञ अवधेश गोस्वामी ने राग- सोनी में भजन और राग- पटदीप में ठुमरी के साथ साथ राग-पीलू में "तुम राधा मैं कृष्ण..." की कर्णप्रिय संगीतमय प्रस्तुति दी। अतिथि संगीतज्ञ डॉ हितु मिश्रा ने राग-वसंत में छोटा खयाल -"...सरस रंग खिले" और होरी- "ब्रज में धूम मची..." की प्रस्तुति के साथ साथ 18 रागों की रागमाला प्रस्तुत की। बरेली की ही वरिष्ठ संगीतज्ञा रीता शर्मा ने विभिन्न रागों में भजन और गीतों -"ऐ री सखी री मोरे पिया घर आये..." की मनमोहक प्रस्तुति दी। कार्यक्रम में वरिष्ठ संगीतज्ञ बृज गोपाल व्यास, रागिनी कौशिक और राजीव व्यास ने भी प्रस्तुति दी। बरेली से पधारे प्रशांत उपाध्याय ने तबले पर, चाँद खां ने हारमोनियम पर और स्थानीय राधेश्याम ने तबले पर शानदार संगत दी।" 

            इस अवसर पर संगीतकार विनय निगम, साहित्यकार योगेन्द्र वर्मा व्योम, डॉ चंद्रभान यादव, डॉ मनोज रस्तोगी, राजीव प्रखर, मनोज मनु, डॉ माधुरी सिंह, उमाकांत गुप्त, संजीव आकांक्षी, गीता शर्मा, संतोष रानी गुप्ता, आशा तिवारी, समीर तिवारी, भाषा, अक्षरा, शशि प्रभा आदि उपस्थित रहे। आभार अभिव्यक्ति माहेश्वर तिवारी ने प्रस्तुत की।


















































:::::::प्रस्तुति:::::::::

योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'

संयोजक

साहित्यिक संस्था 'अक्षरा'

मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल- 9412805981