अस्मिता पाठक लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
अस्मिता पाठक लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 3 जुलाई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार अस्मिता पाठक की कविता ------ माइग्रेन

उस वक्त
वह माईग्रेन के जैसा नहीं था
वह रोज़मर्रा बहती नदी से
धूसर सवालों
की तरह नहीं टकराता था
वह बस मेरा ही एक भाग था
उसमें न मस्तिष्क था और
न दर्द था

उन खुशनुमा दिनों में
कैंपस के पास
मामूली सी झाड़ियों के बीच से
फुदकते हुए
एक टांग वाली गौरैया हाथ से
ब्रेड छीनती थी
और मैं कॉफी, दोस्तों
और बेचैन आवाज़ों में
सोमवार को ढ़ूँढती थी....
उन दिनों
दिल्ली, देश और हवा
वैसे ही दिखते थे जैसे मैंने
किताबों में देखे थे
कागज़ की खुशबू में
वे खूबसूरत थे
वे रोचक थे
तब समझी
...कागजों में सब खूबसूरत होता है...

उन दिनों
वह माईग्रेन नहीं था
क्योंकि शायद
तब सवाल स्पष्ट नहीं थे
उन बारीक महीन सवालों से
खेलते हुए
उनके किनारे बड़े होने तक
वे विरोध पर थोपी हुई सरलता
में गिरकर
खो चुके थे...

✍️  अस्मिता पाठक
मुरादाबाद 244001

शनिवार, 25 अप्रैल 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार अस्मिता पाठक की कविता ------ क्या तुम रोक सकोगे


इस देश में
क्या तुम रोक सकोगे?
जवान झील के
पानी की तरह ठहरी,
कभी न खोने वाले
उबलते सच से भरी दृष्टि को
जिससे लोग,
तुम्हें निरंतर देख रहे हैं?
खोखले कानूनों की सुरक्षा
और स्याह हथकडियों के पीछे
शिकार करते हुए,
एक के बाद एक
आवाजों को दबाते हुए,
लोगों को ले जाते हुए,
लोग, जो दबाए हालातों को
ले आते हैं मिट्टी से उछालकर
सतहों तक,
उनके स्वरों से गूँजते,
संघर्ष करते, लड़ते,
घरों को
खाली करते हुए
नज़रें तुम्हें निरंतर देख रही हैं,
बोलो, जब
त्वरित झरनों की तरह
उमड़ने लगेगा
प्रतिरोध का सागर
हर कोने से
तो क्या तुम
इस बहाव को रोक सकोगे?

 ✍️ अस्मिता पाठक
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

मंगलवार, 31 मार्च 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार अस्मिता पाठक की कविता --कोरोना कर्फ्यू


मार्च में लगे कर्फ्यू की उस शाम
अपने आलीशान संसार की सतह पर खड़े होकर
एक सी आवाजों के अंधाधुंध शोर में
क्या तुम सुन पाए थे ?
कान के एक छोर से
बच्चों के रोने चीखने की आवाजों के बीच
दबी हुई धीमी व्यग्र बूढ़ी-जवान आवाजें
जो तुमसे बहुत दूर
-बहुत ही दूर- स्थित कमरे में
किसी चलचित्र की तरह चल रही थीं?
सहसा तुमने भी महसूस किया?
फटे-खुरदुरे हाथों पर बने
पुराने घावों की जलन को
जब वे उलझन में कुछ पुराने नोट
और सिक्के निकालते समय
डब्बे की स्टील वाली सतह से
बार-बार टकरा रहे थे?
नहीं ?
नहीं सुन पाए न तुम ?
-शंखों, थालियों के
तर्कहीन शोर में-
मजबूर मेहनतकश के हाथों से छूटती,
-स्टेशन पर दुविधा में भागते पैरों के बीच-
ऊँचे प्रतिरोध में गिरती पसीने की
खानाबदोश बूंदों को...
जिन्होंने खड़ा किया था कभी
तुम्हारा सुरक्षित संसार..

***अस्मिता पाठक
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार अस्मिता पाठक की कविता - सच मत बोलो ...

मीडिया तुम बोलो,
माइक्रोफोन को हाथ में पकड़ो
और ऊँची आवाज़ में छोटे-मोटे मामलों पर
बहस करो....
उनके नीचे
....हालात खुद ब खुद दब जाएंगे।
क्योंकि आम लोग तुम पर
 विश्वास करते हैं
इसलिए कहो
कहो कि सब अच्छा है,
कहो कि रात हो रही है
और सुबह सूरज दीख रहा है।
कि तापमान कम है तो क्या हुआ,
कंबल, हीटर, छत सबके पास है।
मगर;
मगर, मत कहना जो सच है
मत कहना कि कोई मुश्किल में है
और कोई रोज़ मर रहा है
वरना जो लोग तुम पर विश्वास करते हैं
वे लड़ने लगेंगे,
वे उस भगवान से लड़ने लगेंगे
जिसने तुम्हें खरीद लिया था
इसलिए तुम सब बोलो
मगर,
सच मत बोलो...
**अस्मिता पाठक
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत