बुधवार, 30 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की कहानी ----चाबुक


अजब सिंह को रिश्वत लेने के आरोप में एक साल की सजा हुई।उसके बच्चों की देखभाल उसके बडे़ भाई एवं भाभी की जिम्मेदारी बन गयी क्योंकि पत्नी की मृत्यु के बाद वह अपने बच्चों को विमाता का दुख नहीं देना चाहता था इसलिए स्वयं ही बच्चों का पालनपोषण कर रहा था।अपने वेतन से उसकी सारी जरूरत पूरी हो जाती थी।मगर साथी मित्र के लिए आया लिफाफा उसके कहने पर उसने बिना देखे रख लिया अगले पल ही एन्टी करप्शन टीम ने उसे पकड़ लिया।उसकी किसी ने एक न सुनीऔर सजा हो गयी।ताई ताऊ का व्यवहार थोडे़ दिन तो सही रहा मगर अब ताई से घर का काम न होता। सुबह से शाम तक मोनी को घर के काम करने पडते और मुन्ना के पैर बाहर भागते भागते थक जाते।रात को दोनो भाईबहन गले लगकर आसूँ बहाते।एक दिन पास की काकी कह रही थी ,"कितना सीधा दिखता था,अरे जब रिश्वत लेता था तो दे देता तो छूट न जाता।आजकल तो जज पैसा और लड़की देखकर डाकू को भी छोड़ देते हैंं"। ताई  ने भी उसकी हाँ मे हाँ मिलाई।रात को दोनोंं बच्चों ने आपस मे बात की।सुबह उठने पर दोनों को घर मे न पाकर गांव भर मे शोर हो गया।उधर मोनी और मून्नू दोनो जज साहब की कोठी पर पहुंचे।दरबान ने रोक लिया।बोला "साहब नहीं मिलते किसी से,भागो। बच्चों की रोनी सूरत देखकर बोला, "रुको पता करके बताता हूं"।

आज जज साहब का मूड अच्छा था, बोले ,"बच्चे, उनको क्या काम है? चलो बुला दो।"दोनों बच्चे अंदर आये।अपनी जेब से 50 रुपये-निकालकर हाथपर रखे और बोले,"आप ये  ले लीजिए, हमारे पापा को छोड़ दीजिए।काकी कहती है कि आप पैसे लेकर डाकू को भी छोड़  देते हैंं। मेरी बहन बहुत सुन्दर है आप इसे भी रख लीजिए आपका काम कर देगी,ताई कहती है सुन्दर लडकी देखकर सब काम कर देते है।देखिए मेरी बहन सुन्दर है ना"।"बस हमारे पापा को छोड दीजिए।पापा बिना कुछ अच्छा नही लगता।ताई बहुत काम करवाती हैं, खाना कम देतीहै"।

बच्चों की बाते सुनकर जज साब को लगा किसी ने उनपर चाबुक बरसा दिये।अपनी पत्नी की ओर नजर न उठा सके।

✍️डा.श्वेता पूठिया,मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की कहानी ---- मेरा भारत महान

सारे गांव में एक अजीब सन्नाटा सा पसरा है।कोई किसी से बातें करना तो दूर किसी की ओर देखना तक गवारा नहीं कर रहा।

   अपनी चौपाल में पंडत जी,अपनीचौपाल में चौहान साहब,घर के बाहर बनी अपनी छोटी सी बंगलिया में दीवान पर उदास बैठे माथुर साहब तथा पीपल के पेड़ के नींचे खरैरी चारपाई पर बैठे चौधरी साहब हुक्के में बेमन से दम लगाकर अपनी चिंता को नहीं रोक पाते हुए कहते हैं।है ईश्वर सबको सद्बुद्धि देना।

  तभी एक लंबी -चौड़ी फॉर्च्यूनर गाड़ी आकर गाँव के शुक्ला जी के मकान के बाहर रुकी।उसमें से करीब छह फीट लंबे खद्दर का सफेद कुर्ता और पाजामा पहने एक नेता जी उतरे।उनके साथ उनके कई हाली-मुवाली चमचे भी  हाथों में अलग-अलग तरह के असलहे  लेकर उनकी सुरक्षा में उतरे।

        नेता जी ने चारों ओर ही नज़रें दौड़ाईं तथा प्रधान जी,ओ प्रधान जी कहकर दो-तीन आवाज़ें भी लगाईं,परंतु किसी के कान में जूं तक न रेंगती देख नेता जी ने सोचा कि मेरे आने पर जिस गांव में एक शोर सा मच जाता था।हर कोई व्यक्ति मुझसे मिलने की तत्परता दिखाने में अग्रणी बनने की जुगत में रहता था।

         कोई पानी तो कोई चाय-नाश्ता लेकर आने के साथ-साथ साफ सुथरी बैठक में बैठाने के लिए अपनी साफी से ही कुर्सी मेज साफ करता नजर आता था।परंतु आज तो जिसकी तरफ देखो नज़रें फेर लेने को ही प्राथमिकता देता दिखाई दे रहा है।

    लगभग सभी के पास जाकर नेता जी ने इस बेरुखी का कारण जानने का प्रयास किया परंतु कोई सफलता नहीं मिली।तभी गांव के एक जिम्मेदार बुजुर्ग ने सारे गांव की आंतरिक पीड़ा को कुछ इस तरह बयान किया,,,,,

       'नेता जी' हमारा गांव कोई ऐसा-वैसा गांव नहीं आदर्श गांव है।यहाँ सारी कौमें एक परिवार के समान एक दूसरे की भावनाओं का आदर-सम्मान करते हुए गांव की प्रगति और खुशहाली कायम रखने को ही अपना सबसे बड़ा धर्म मानती हैं।

        यहाँ हरेक त्योहार हम सभी का त्योहार होता है।हर किसी मंगल कार्य में एक दूसरे की उपस्थिति महायज्ञ में आहुति। डालने के समान ही आपसी प्यार और भाईचारे को बल प्रदान करती नज़र आती हैं।हम हिन्दू-मुस्लिम का फर्क अपने दिमाग में नहीं रखते।

      नेता जी कुछ कहते इससे पहले ही सभी ने एक स्वर में नेता जी से कहा तुम्हें आपस में लड़ाकर वोट लेना ही आता है।सुना है हमारे देश से हमारे जिस्म के एक हिस्से से बेवजह ईर्ष्या को पनपने का मौका दिया जा रहा है।

     अनेक समाचार माध्यमों एवं कुछ शरारती तत्वों ने हमारे गांव में ऐसी खबरें फैलाकर हम सभी की चिंता को बढ़ा दिया है।उसी का परिणाम आपको देखने मिल रहा है।क्या ऐसा ही है नेता जी?

      नहीं -नहीं ऐसा कुछ नहीं है।आप लोग बिल्कुल भी चिंता न करें।हम एक थे,हम एक हैं,हम एक रहेंगे।यह कहते हुए नेता जी ने गांव के सम्मानित मुस्लिम परिवारों को आश्वस्त करते हुए गले से लगाया और सभी गांववालों के बीच बैठकर प्रेम पूर्वक जल पान करते हुए कहा में तो डर ही गया था।वैसे भी व्यर्थ आशंकाऐं दुख का कारण तो बनती ही हैं।हमारा संविधान भी हमें ऐसा करने की आज्ञा नहीं देता।

     तभी तो सभी कहते हैं ।,,,,

        मेरा भारत महान

✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद/उ,प्र,

     मोबाइल फ़ोन नम्बर 9719275453

      

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रागिनी गर्ग की लघुकथा ---दूध हुआ पानी

 


बहू सीमा ने सासू माँ का हाथ  पकड़ लिया और खा जाने वाली नजरों से घूरते हुए बोली," माँ जी!आप  गिलास में  दूध किसके लिए डाल रही हैं? यह दूध तो मेरे शेरू( कुत्ते)के लिए आया है" 

शान्ति बोली:-"बहू तेरे बाबू जी को डाॅक्टर ने दूध से दवा लेने को बोला है। बस आधा गिलास दूध ले रही थी।" 

तभी पीछे से शान्ति का बेटा रोहन बोला , "मम्मी! क्या आप पागल हो गयी हो?पिताजी को इस उम्र में  दूध की क्या जरुरत है? दूध पीने से उनका पेट खराब हो जाएगा, उनको पानी से दवा दीजिए। "

दरवाजे के पीछे खड़े जमुना दास जी की आँखों से गंगा-यमुना बह निकली। वो रोते हुये रोहन की माँ से बोले:-

 "शान्ति! अगर हमने रोहन को  अपने हिस्से का दूध न दिया होता, तो आज हमारे हिस्से का दूध शेरू को न मिल रहा होता।"

✍️रागिनी गर्ग, रामपुर (यूपी)

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेन्द्र शर्मा सागर की लघुकथा --बिन बुलाई मुसीबत

 


रोहन जँगल में जोर-जोर से गिनता हुआ जा रहा था,

"एक....दो...तीन...,

आठ...नौ.. दस.."

जैसे ही उसके मुंह से निकला "दस" 

अचानक एक भयंकर काला नाग उसके सामने प्रकट हो गया।

उसे देखकर रोहन के तो जैसे प्राण ही गले में आ गए, फिर भी वह हिम्मत करके हाथ जोड़ते हुए बोला, "जय हो नाग देवता की, किन्तु आप अचानक कैसे प्रकट हो गए? 

आप देव हैं मैं एक नन्हा बालक, आप कृपा करके मेरा मार्ग छोड़ दीजिए।

"अभी तुमने ही तो मुझे बुलाया है डसने के लिए, और अब जाने को कहते हो।

अब तो मैं तुम्हे डसकर ही जाऊँगा", नाग हँसते हुए मनुष्य की आवाज में बोला।

"मैं.... मैंने कब बुलाया आपको नागराज?" रोहन की घिग्गी बन्ध गयी।

"अच्छा  अभी तुमने कहा नहीं कि डस", नाग उसे याद दिलाते हए बोला।

"अर्रे वह तो मैं गिनती...", रोहन याद करते हुए बोला।

"हाँ तो जब भी कोई यहाँ आकर 'डस' बोलता है मैं आकर उसे डस लेता हूँ", नाग ने कहा।

"लेकिन आप हो कौन?", रोहन ने पूछा।

"मैं एक प्यासी रूह हूँ, मुझे बहुत भूख लगती है लेकिन मैं एक वचन में बंधा हुआ हूँ कि जबतक की मुझे खुद डसने को ना कहे मैं किसी को नहीं डस सकता। आज बहुत दिन बाद तुमने यहां आकर 'डस' कहा है । नाग उसपर झपट्टा मारते हुए बोला।

"रुको!! तनिक ठहरो। मैंने 'डस' नहीं 'दस' कहा था तुम मुझे नहीं दस सकते", रोहन जोर से बोला।

"डस ही बोला था तुमने अन्यथा मैं यहां आता ही नहीं", नाग फुफकारते हुए बोला।

अब रोहन बहुत घबरा गया, वह बचने की कोई युक्ति सोच रहा था तभी उसके दिमाग ने कुछ संकेत किया।

"लेकिन मैंने तो 'नहीं डस' बोला था तुमने पूरी बात सुनी ही नहीं", रोहन बोला।

"लेकिन तुमने 'नहीं' कब कहा था तुमने तो नो...दस.. कहा था", नाग एकदम से कह गया।

"वही तो मैने तो दस कहा था तुमने डस कैसे सुन लिया", रोहन मुस्कुरा कर बोला।

नाग खुद की बातों में फंस चुका था अतः चुपचाप झाड़ी में सरक गया और रोहन भी चुपचाप आगे बढ़ गया। 

उसकी धड़कने अभी भी शोर मचा रही थीं।


✍️नृपेंद्र शर्मा "सागर", ठाकुरद्वारा, मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा -----आइना


आज बहुत दिन बाद रागिनी आइने के सामने बैठी ......उसने धीरे से काजल उठाया  ,इधर उधर देखा ,फिर उसको अपनी आँखो तक ले गयी पर झट से उसने उसे फिर वही रख दिया ।लोग क्या कहेंगे ......

उसके हाथ काँप रहे थे .................

प्रखर बुद्धि रागिनी प्रशासनिक सेवा में जाना चाहती थी पर आज वह विधवा थी ,पति को उसने ठीक से देखा तक नही बस फेरे लिए थे अगले ही दिन ऐक्सिडेंट हो गया ...........और वह...........

आज उसने फिर अपना चेहरा आइने में  देखा ,आइना उसे पहले की तरह देखना चाहता था,इसबार उसने काजल उठाया और अपनी आँखो को गहरे काजल से सजा लिया।

काजल लगते ही आँखों मे सोये सपने फिर से जागृत हो उठे--------।।

                  

✍️ प्रीति चौधरी, गजरौला,अमरोहा

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की लघुकथा -----चेहरा

 

"अब देखना है कि कितने लोग मुझे फ़्रेन्ड रिक्वेस्ट भेजते हैं",  तेजाबी हमले में झुलस चुके अपने चेहरे को शीशे में निहारते हुए वह बुदबुदाई और मुस्कुराते हुए अपनी ताज़ी फोटो अपनी फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल पर लगा दी।

-✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद

मो० 8941912642

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा ---तेजाब

"मुझे रसायन शास्त्र हमेशा से पसंद रहा,लेकिन जब से उस लड़की का चेहरा देखा है,उस हादसे ने मुझे अंदर तक हिला दिया। बस,तब से रसायन शास्त्र से घृणा हो गई है.... उफ! वो अधजले काग़ज़ सी हो गई थी.....।"

✍️प्रवीण राही, मुरादाबाद


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा -----तारीफ

दीदी इतनी जिम्मेदारियों के बीच नौकरी और घर की व्यवस्था में सामन्जस्य कैसे बैठा लेती हो ?"नीति ने अपनी बहन अवनि की तारीफ करते हुए कहा"मैं तो घर पे रहती हूँ ,फिर भी बहुत ज्यादा अच्छे से घर को व्यवस्थित नहीं कर पाती । हर समय पत्नी की ओर उँगली उठाने वाले गौरव को अपनी पत्नी की यह तारीफ हजम नहीं हो सकी ,तो वह तेज नींद का बहाना करके दोनो बहनों की बातें देर तक सुनता रहा।

✍️डॉ प्रीति हुँकार , मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के साहित्यकारों दीपक गोस्वामी चिराग, डॉ श्वेता पूठिया,राजीव प्रखर, अशोक विद्रोही, डॉ पुनीत कुमार और प्रीति चौधरी की बाल कविताएं


बच्चो!! राष्ट्रीय पशु मैं बाघ। 

मुझे देख जाते सब भाग।
नजर अगर मुझसे मिल जाए।
सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाए।

है कोई मुझसे तेज जो दौड़े।
चाहे हिरन हों, चाहे घोड़े।
पीले रंग पर खिंची हैं धारी।
मां गौरी की बना सवारी।

देखो! मैंने शेर हराया।
फिर इस गौरव को है पाया।

✍️दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिवबाबा सदन, कृष्णाग
बहजोई (सम्भल)244410
मो. 9548812618
ईमेल:deepakchirag.goswami@gmail.com
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मेरी छोटीसी गुड़िया रानी
कापी लेकर दौड़ रही।
अम्मा मै पढ़ने जाउंगी
कहके वो चहक रही।
पढ़कर क्या होगा मेरी रानी
पूछा ये बस मैंने यूहीं।
वह इठलाकर बोली
अम्मा पढ़कर जज बन जाउंगी।
रोज न्यायालय जाऊंगी
सुनकर सबकी सारी बातें
अपना फैसला सुनाउंगी
जीत सदा होगी  सच की
हार के झूठ अपना मुँह छिपायेगा
ऐसी जज बनकर मै
तेरा  मान बढ़ाऊंगी
अम्मा मै पढलिखकर
जज बन जाउंगी

✍️डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद
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एडीसन ने बचपन से ही,
कड़ा जतन यह कर दिखलाया।
दुनिया बोली पागल उसको,
फिर भी उसने बल्ब बनाया।

जो बस किस्मत को रोते हैं,
वे ही अवसर को खोते हैं ।
बिना परिश्रम प्यारे बच्चो,
सपने सत्य नहीं होते हैं।

सोना तप कर बनता कुंदन,
इसमें जीवन सार समाया।
एडीसन ने बचपन से ही,
कड़ा जतन यह कर दिखलाया।

दुनिया बोली पागल उसको,
फिर भी उसने बल्ब बनाया।

-✍️राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद (उ० प्र०)
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मां मुझको बंदूक दिला दो,
              मैं भी लड़ने जाऊंगा ।
पाक चीन शत्रु जो अपने,
            उनको मजा चखाऊंगा ।।
छोटे-मोटे खेल खिलौने ,
         मुझको अब नहीं भाते हैं ।
पापा के लड़ने के जौहर,
             याद मुझे बस आतें हैं ।।
पापा जैसा बनुं सिपाही,
             देश पे जान लुटाऊंगा ।
मां मुझको बंदूक दिला दो,
               मैं भी लड़ने जाऊंगा ।।
मातृभूमि की करूं अर्चना,
           उसका ही गुणगान करूं ।
वीरों की मैं करूं आरती ,
        उनको नमन प्रणाम करूं ।।
सीमाओं पर गाड़ तिरंगा,
             देश का मान बढ़ाऊंगा ।
मां मुझको बंदूक दिला दो,
             मैं भी लड़ने जाऊंगा ।।
नस नस में मेरे पापा का
             लहू हिलोरें मार रहा ।
पापा का बदला लेने को,
               अंतर्मन हुंकार रहा ।।
नींद नहीं आती है मुझको ,
              तभी  चैन मैं पाऊंगा ।
मां मुझको बंदूक दिला दो,
              मैं भी लड़ने जाऊंगा ।।
दादी का सपना पापा ने,
         सैनिक बन साकार किया ।
तोड़ मोह के सारे बंधन ,
           भारत मां से प्यार किया ।।
मेरे वंश की परंपरा को ,
              मैं कैसे न निभाऊंगा ।
मां मुझको बंदूक दिला दो,
              मैं भी लड़ने जाऊंगा ।।
राजगुरु,सुखदेव,भगतसिंह,
                जैसे अनगिन दीप बुझे ।
बलिदानी भारत वीरों की,
                  गाथाएं सब याद मुझे ।।
अभिनंदन सा शेर बनूं और ,
                 फाइटर जेट उड़ाऊंगा ।
मां मुझको बंदूक दिला दो ,
                  मैं भी लड़ने जाऊंगा ।।
पाक चीन जो शत्रु अपने,
                उनको मजा दिखाऊंगा ।।
        
✍️अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
   82 188 25 541
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हाथ करें सब अच्छा अच्छा                                    पांव चुने पथ अच्छा अच्छा

कान सुनें सब अच्छा अच्छा
आंखे देखें  अच्छा अच्छा

खाना खाएं अच्छा अच्छा
गाना गाएं  अच्छा अच्छा

मुख से बोलें अच्छा अच्छा
मन में सोचें अच्छा अच्छा

हो जाए सब अच्छा अच्छा
करे प्रार्थना  बच्चा  बच्चा

डाॅ पुनीत कुमार
T - 2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद 244001
M - 9837189600
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घंटी
बजती नही
अब विद्यालय की
अखरती हैं
छुट्टी

प्रार्थना
मौन हुई
विद्यालय भूल गये
सुबह को
चहकना

कोरोना
क़हर से
आंगन हो गया
विद्यालय का
सूना

रौनक़
लौट आये
देख सकें मुस्कान
बच्चों की
मोहक

✍️ प्रीति चौधरी
  गजरौला,अमरोहा

     

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कविता ---क्या खोया क्या पाया

क्या खोया क्या पाया हमने,

सोच रहे हैं आज।

ऊपर वाले की लाठी में,

होती नहीं आवाज।

चले जा रहे थे दौड़े हम,

खींची गयी लगाम।

कोरोना आया ऐसा,

सब जपें राम का नाम।

सड़कों ने राहत की साँसें,

ली थी मुद्दत बाद।

नदियों और झीलों ने देखी,

अपनी सूरत साफ।

घर में सारे परिजन अपने,

कितने अच्छे हैं।

सप्तपदी के जो भूले थे,

वादे सच्चे हैं।

लॉकडाउन ने हमें दिखाया,

अपनों का नवरंग।

भूले बैठे थे हम जिनको 

मोबाइल के संग।

पाकशास्त्री एक हमारे 

भीतर बैठा था।

एक दयालु मन भी,

नित सेवा पर निकला था।

लेकिन हुई क्षति भी अपनी,

भरी न जा सकती।

खोये अपने और पराए,

इस जग की थाती।

भारत गाँवों में बसता है,

फिर से सिद्ध हुआ।

हरिया लौटा घर दिल्ली से,

पल जब गिद्ध हुआ।

मतभेदों में,मनभेदों में,

भी उलझे थे हम।

और अर्थ की रीढ़ मुड़ी तो,

हुए सभी बेदम।

धीरे-धीरे फिर पटरी पर,

लौट रही है रेल।

कुछ खोया कुछ पाया हमने,

देखी धक्का-पेल।

✍️हेमा तिवारी भट्ट

मुरादाबाद 244001

मंगलवार, 29 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की कविता उन्हीं की हस्तलिपि में


 

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार का गीत उन्हीं की हस्तलिपि में -----


 

मुरादाबाद के साहित्यकार अनवर कैफी की ग़ज़ल उन्हीं की हस्तलिपि में ---यह होता है कि कुछ अर्से को नफरत जीत जाती है ,दिलों को जीत कर फिर भी मुहब्बत जीत जाती है ....


 

सोमवार, 28 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की ग़ज़ल उन्हीं की हस्तलिपि में -- कलेजा चीर देगी ये ,कलम की धार पढ़ लेना ....-


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार डॉ महताब अमरोहवी की ग़ज़ल उन्हीं की हस्तलिपि में ----वो शख़्स बात जो करता था कल अहिंसा की , उसी की जेब से खंजर की नोक चमकी थी ....


 

मुरादाबाद के साहित्यकार मंसूर उस्मानी के तीन अशआर उन्हीं की हस्तलिपि में ....


 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ पूनम बंसल का गीत उन्हीं की हस्तलिपि में ---गुनगुना कर तुम जियो तो गीत है यह जिंदगी .....


 

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ विश्व अवतार जैमिनी का गीत उन्हीं की हस्तलिपि में--- जगत में सबसे प्रीति करो ....


 

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ अजय अनुपम का गीत उन्हीं की। हस्तलिपि में


 

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में दिल्ली निवासी)आमोद कुमार अग्रवाल का गीत उन्हीं की हस्तलिपि में ---कविता जीवनदायिनी है,जीवन का दर्शन है


 

मुरादाबाद के साहित्यकार अभिषेक रुहेला का गीत उन्हीं की हस्तलिपि में


 

मुरादाबाद के साहित्यकार योगेंद्र वर्मा व्योम का मुक्तक उन्हीं की हस्तलिपि में


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार त्यागी अशोक कृष्णम की रचना


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मरगूब अमरोही का गीत उन्हीं की हस्तलिपि में ....


 

रविवार, 27 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार कंचन खन्ना की ग़ज़ल ----छोटे-बड़े अमीर-गरीब का फ़र्क मिटेगा कैसे, समाज में हर तरफ रस्मों रिवाज के पहरे हैं ....


 

मुरादाबाद मंडल की जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की रचना उन्हीं की हस्तलिपि में


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार सीमा रानी की रचना उन्हीं की हस्तलिपि में --- फैशन की इस आंधी में ....


 

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग की ग़ज़ल --बूथ लूटने बड़के भैया, नेताजी के साथ रहे ,अब राशन डीलर बनवाना उनकी जिम्मेदारी है


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार संतोष कुमार शुक्ल सन्त का गीत उन्हीं की हस्तलिपि में


 

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही का गीत उन्हीं की हस्तलिपि में ----हम मिलकर आज हिन्दी के ही गीत गाएंगे


 

शनिवार, 26 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल के दो मुक्तक उन्हीं की हस्तलिपि में


 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ ममता सिंह द्वारा रचित मां सरस्वती वंदना उन्हीं की हस्तलिपि में


 

मुरादाबाद मंडल के अफजलगढ़ (जनपद बिजनौर) निवासी साहित्यकार डॉ अशोक रस्तोगी का गीत उन्हीं की हस्तलिपि में ----हिन्दी सबसे प्यारी है, भाषा भारतवर्ष की


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की ग़ज़ल उन्हीं की हस्तलिपि में --एक मासूम से चेहरा पल में कातिल लगने लगता है, आंख मिलाकर शरमाना भी अच्छा लगता है ...


 

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर के दोहे उन्हीं की हस्तलिपि में


 

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत उन्हीं की हस्तलिपि में --- जाने क्या आज ऐसी हैं मजबूरियां, जो कि इंसानियत से बढ़ीं दूरियां ...


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल ( वर्तमान में नोएडा )निवासी साहित्यकार अटल मुरादाबादी की रचना ....उन्हीं की हस्तलिपि में


 

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता उन्हीं की हस्तलिपि में


 

मुरादाबाद मंडल की चांदपुर( जनपद बिजनौर)निवासी साहित्यकार ऋतुबाला रस्तौगी की रचना उन्हीं की हस्तलिपि में


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की गीतिका ---लड़कियां ,उन्हीं की हस्तलिपि में .....


 

शुक्रवार, 25 सितंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में मेरठ) निवासी साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी के दोहे


 

मुरादाबाद मंडल के अफजलगढ़ (जनपद बिजनौर)निवासी साहित्यकार डॉ अशोक रस्तोगी की रचना ----दिल में खिले हुए थे कुछ ,यादों के महके से गुलाब । मादक गंध ले साथ में , हम चले आये हैं कहाँ ??

शहरी  शोर  से मुंह  मोड़ ,सघन कोलाहल को छोड़ ।

चलते हुएअनजान राह में , हम  चले आये  हैं  कहाँ ??


शाखा शाखा की अकड़ , बिसरा हर फूल की चुभन ।

शीतल छाया की चाह में , हम  चले   आये  हैं  कहाँ ??


अनंत सिंधु के उस पार तक , वीराना    ही   वीराना ।

निर्मल संतृप्ति की आस में , हम चले आये  हैं कहाँ ??


दिल में खिले हुए थे कुछ ,यादों के महके से गुलाब ।

मादक  गंध  ले  साथ  में , हम  चले  आये  हैं कहाँ ??


दूर - दूर तक पसरे रेत पर , खामोशियों  के   निशां ।

एक सृजन की अभिलाष में ,हम चले आये हैं कहाँ ??

   

 ✍️ डा. अशोक रस्तोगी, अफजलगढ़ (बिजनौर)

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की लघु नाटिका----बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

*पात्र*------लाखन सिंह, उसकी वृद्धा माँ, लाखन की तीसरी पत्नी कमला, डाक्टर रीना व सूत्रधार।

सूत्रधार----(मंच पर गाते हुए प्रवेश करता है।)

जय गणपति जय गणेश।
जय गौरा जय महेश।
जय माँ वागीश्वरी
हर मन के तम निशेष।
जय भू,जय अनल,जल
जय नभ,जय पवन शेष।
होवे सब की कृपा,
विकसित हो मेरा देश।
विकसित हो मेरा देश।
विकसित हो मेरा देश।

(देवताओं को शीश नवाता है।पुनः दर्शकों की ओर मुख करके)
उपस्थित सम्मानित जन को,
करबद्ध हो शीश नवाता हूँ।
जनमन के जागरण हेतु,
मैं एक कथा सुनाता हूँ।
एक बार की बात कहूँ मैं
एक गाँव था बसा सुदूर।
उसी गाँव में एक चौधरी,
धन-पद के मद में था चूर।
अपनी मूंछों पर हरदम,
वह हाथ फेरता रहता था।
मूंछों वाला ही इस जग में
है सम्मानित कहता था।
उसकी ऐसी बातों पर,
माँ उसका समर्थन करती थी।
है पुरुष प्रधान,जगत सारा,
वह नारी,नारी से चिढ़ती थी।
कहती थी पुत्र वही सीढ़ी,
जो स्वर्ग द्वार तक जाती है।
बेटी तो धन पराया है,
किसी और वंश की थाती है।
ऐसे विचार वाले घर में,
इक गर्भवती बहू रोती है।
पुत्र रतन की आशाओं का,
बोझ शीश पर ढोती है।
बोझ शीश पर ढोती है।
(सूत्रधार गाता हुआ मंच से एक ओर को निकल जाता है।)

*दृश्य-एक*

(आलीशान कोठी का एक सर्वसुविधायुक्त कक्ष जिसमें पलंग पर एक गर्भवती महिला बैठी है और कुछ घबरायी हुई सी है।युवती की वय और संकोचमिश्रित आचरण उसके पहली बार गर्भवती होने के संकेत दे रहे हैं।तभी कमरे में एक वृद्धा प्रवेश करती है। युवती उठने का प्रयास करती है।)

वृद्धा-----अर्ररर् कमला बहू रहने दो,आराम से बैठी रहो। तुम्हारी कोख में मेरे वंश का चिराग पल रहा है।(गर्भ की ओर बढ़े ममत्व से देखती हुई)मेरे कान्हा, मेरे किरसन मुरारी!जब मेरे अंगना अवतरेंगे,तब पूरा जिला देखेगा चौधरी की आन बान शान।मोती लुटाऊँगी, मोती।
(युवती सकुचाकर वृद्धा से कुछ कहने का प्रयास करती है)

युवती----अअअअम्मा जी।

वृद्धा----(बड़े लाड़ से)हाँ,बोल बेटा।

युवती-----अअअअम्मा जी वो मैं कह रही थी अगर बिटिया हुई तोअ...

वृद्धा----(अत्यधिक आवेश में आकर बीच में बात काटती हुई) खबरदार बहू जो ऐसी मनहूस बातें की तो। स्वामी जी का आशीर्वाद लेकर आयी हूँ इस बार मैं।तेरे गले में ये जो ताबीज़ है इस बात का पक्का प्रमाण है कि बेटा ही होगा।

युवती-----(साहस बटोरकर)पर माँ जी मैंने सुना ऐसा ताबीज़ तो पहले दोनों दीदियों को भी आपने बांधा था,पर पुत्र जनना तो दूर वह दोनों तो अपनी जान भी गंवा बैठी।

वृद्धा----(क्रोध से तिलमिलाते हुए)बस कर छोकरी!चार अक्षर क्या पढ़ लिये बड़ों से ज़बान लड़ायेगी।(हड़बड़ाकर)उन दोनों ने.... उन दोनों ने तो....ताबीज़ की कद्र नहीं की थी जिसका फल उन्हें मिला।पर तूझे ऐसी भूल नहीं करने दूँगी। (बाहर की ओर मुख करके जोर से आवाज लगाती है) लाखन,बेटा लाखन!

लाखन सिंह----(लम्बी चौड़ी कद-काठी का एक अधेड़ कमरे में प्रवेश करता है)कहो माँ जी कोई परेशानी है क्या?

वृद्धा----बेटा!जरा बहू का ध्यान रखना गले से ताबीज़ न निकले,बच्ची है अभी,भला बुरा नहीं जानती। प्यार से माने तो ठीक ,वरना चौधरी के वंश की बात है।तरीके और भी हैं.... (युवती को धमकाने वाली तीखी नजरों से देखती है)

लाखन सिंह---(मूँछों पर ताव देते हुए)माँजी तुम तो हुकुम करो,परिंदा भी पर न फड़फड़ायेगा तुम्हारी मर्जी के बगैर।

वृद्धा----मेरा लाल जुग जुग जीवे।(माँ बेटा जहाँ प्रसन्न वदन हैं,वहीं युवती के चेहरे पर भय के भाव हैं)

सूत्रधार-----
तो इस तरह भय्या बहनों,
वह नारी डरायी जाती थी।
बेटा बेटा बेटा होवे,
यह धुन रटवायी जाती थी।
पर कोमल अंगी वह नारी,
थी ज्ञानशक्ति से भरी हुई।
लगी थी सोचने निराकरण,
वह विगत दृश्य से डरी हुई।
सहसा उसके मन में फिर,
समाधान इक आ गया।
शोकाकुल चेहरे पर उसके,
आस उजाला छा गया।
अपनी खास सहेली को,
उसने संदेशा भिजवाया।
सारा हाल उपाय सहित,
विस्तार से उसको समझाया।
धीरे-धीरे-धीरे भय्या,
वह मोड़ समय का आ गया।
असह दर्द में थी महिला,
चिन्ता का बादल छा गया।
आयी दायी फिर ये बोली,
मेरे बस की यह बात नहीं।
हकीम बड़े ही भली करें,
उससे कम की औकात नहीं।
आनन फानन में दुखिया को,
शहर ले जाया जाता है।
माँ तो बची है किसी तरह,
मृत शिशु बताया जाता है।
बेटे के अभिलाषी मन में,
वज्रपात सहज हो जाता है,
स्वप्न महल उम्मीदों का
देखो ढह कर गिर जाता है।
पर कुछ तो है छिपा हुआ,
उस अनदेखे आगत में।
आँखें माँ की हँसती हैं,
जाने किसके स्वागत में।
धीरे-धीरे रे समय
पथ अनजाने पर बढ़ आया।
कोठी आलीशान वहीं,
पर छाया है दुख का साया।
पर छाया है दुख का साया

*दृश्य-दो*

(वही सुसज्जित कमरा,पर सुविधा के कुछ संसाधनों का बदलाव देखकर प्रतीत होता है कि समय का एक लम्बा अंतराल बीत चुका है।पलंग पर एक वृद्ध असहाय सा लेटा है।एक औरत तीमारदारी में लगी है।)

वृद्ध----पानी, थोड़ा पानी पिलाना कमला।
(महिला तुरन्त जग से पानी उड़ेल कर गिलास में डालती है और वृद्ध को सहारा देकर पानी पिलाती है। वृद्ध महिला की ओर देखता है और उसकी आंखों से आंसू छलकने लगते हैं।)मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ कमला। मुझे माफ़ कर दो।

महिला----अरेरेरे ऐसा मत कहिए।आप मेरे पति हैं, मैं आपकी अर्द्धांगिनी हूँ।आप ने ऐसा कुछ नहीं किया, जिसके लिए आप माफी माँगे।

वृद्ध----नहीं कमला,आज मुझे कह लेने दो। तुम्हारा दिल बहुत बड़ा है।माँ ने तुम्हें कितना दुख दिया पर उनके अन्तिम समय में उनकी तकलीफों में तुम्हीं उनका सबसे बड़ा सहारा बनी। मैं बेटा होकर भी कुछ न कर सका।और तुमने बेटी होकर भी अपने घर के साथ साथ अपने माँ बाप की जिम्मेदारी भी अच्छे से संभाली। मैं पागल था जो अपनी ओछी सोच के कारण बेटा बेटा रटता रहा,एक बेटा पाने के लिए मैंने तीन-तीन बेगुनाह औरतों की जिन्दगी दांव पर लगा दी।आठ अजन्मी बच्चियों के कत्ल का गुनाह है मुझ पर।और मेरा दण्ड कि मैं  आज निसंतान हूँ,असहाय हूँ, मृत्यु शय्या पर हूँ और कोई मुझे पिता कहने वाला नहीं।(जोर जोर से रोने लगता है, महिला आंसू पोछती है।वह स्वयं भी भावुक हो गयी है।)

महिला-(ढांढस बँधाते हुए)मत रोइये, हिम्मत रखिए। पश्चाताप के इन आंसुओं के साथ आपकी सारी गलतियाँ बह गयी हैं।
और आज मैं आपको बताना चाहती हूँ कि आप निसंतान नहीं है और न ही आप अब असहाय और गम्भीर बीमार हैं।

वृद्ध---(चौंककर आशा भरी निगाहों से महिला की ओर देखता है।)क्या कह रही हो कमला?सच बताओ क्या बात है?पहेलियां मत बुझाओ।

महिला-जी,सच ये है कि डाक्टर रीना जो आपका इलाज कर रही है,वह आपकी ही बेटी है।

वृद्ध-(हर्ष मिश्रित विस्मय से महिला को देखता हुआ)सच कमला!डाक्टर रीना मेरी बेटी हैं।
महिला-बिल्कुल सच। अम्मा जी और आप की सोच के डर से मैंने बेटी को पैदा होते ही अपनी खास सहेली के हाथ सौंप दिया था। मैं आप लोगों से छुपाकर उसकी परवरिश का खर्च भेजती थी और मायके जाने पर उससे मिल भी आती थी।

वृद्ध----आह! कितना अभागा पिता हूँ मैं ,जो अपनी संतान का पालन पोषण भी न कर सका। आज मुझे अपनी सोच पर शर्म आती है।लानत है मुझ पर (सर झुका लेता है। महिला उसे सांत्वना देते हुए गले लगा लेती है तभी एक सुंदर युवती डाक्टर का कोट पहने कमरे में प्रवेश करती है।)

डाक्टर युवती----और चौधरी जी कैसी तबियत है आपकी अब?

वृद्ध-(बड़े ममत्व से उसकी ओर देखता है उसकी आंखों से अश्रु धारा बह निकलती है।वह बाँह फैला देता है और करुण भाव से पुकारने लगता है।) डाक्टर बेटा!
(युवती आश्चर्य मिश्रित नजरों से माँ की ओर देखती है।)

महिला-–--जा बेटा!अपने पिता से मिल ले।आज सही समय आ गया था तो मैंने आज तेरे पिता को सब सच सच बता दिया।

युवती----(भावुक होकर वृद्ध के चरण स्पर्श करती है) पिताजी

वृद्ध----न बेटी! मैं इस लायक नहीं हूँ।तू मुझे माफ़ कर दे बेटी।(रोने लगता है)

युवती ----न,पिताजी न।अब सब ठीक हो गया है।आपकी गलती नहीं थी। आपका अज्ञान था जिसके कारण गलतियां हुई और पढ़ी लिखी माँ की समझदारी कि सब ठीक हो गया।

वृद्ध ---हाँ, बेटी तू सही कहती है।तू बिल्कुल सही कहती है। (दर्शकों की ओर मुखातिब होकर) मैं चौधरी लाखन सिंह आज सब लोगों को हाथ जोड़कर कहता हूँ कि आप सब भी अंधविश्वास से बाहर निकलो । बेटी हो या बेटा दोनों को खूब पढ़ाओ। बेटी बचेगी तभी तो बहू मिलेगी।इस संसार में बेटी बेटा दोनों का महत्व है। इसलिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ।

सूत्रधार-
हाँ,भाईयों और बहनों !
तो सुना आपने।
क्या कह दिया है
लड़की के बाप ने।
(संगीत बजने लगता है और सभी एक स्वर में गाने लगते हैं)
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
धरती पे ही जन्नत ले के आओ।
बेटी पढ़ेगी बेटी बचेगी
खुशहाली घर घर में आके रहेगी।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ---
बेटा हो बेटी एक बराबर
बेटी से नफ़रत पाप सरासर।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ---
जन्मेगी न जो बेटी अहो हो
कैसे बढ़ेगा वंश कहो तो
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ---
बेटी या बेटा दोनों पढ़ाओ
अपने देश को आगे ले जाओ
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ---
इति
पर्दा गिरता है।

✍हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद 244001

गुरुवार, 24 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कहानी -----पत्थर की औरत


"अरे मारो इसे... कुलटा है यह... डायन है.... सबको बर्बाद कर देगी l" एक महिला जिसके वस्त्र फटे हुए थे बाल खुले हुए उस पर पत्थर बरसाती भीड़ चिल्ला रही थी.

वह पीड़ा से तड़पती अपनी जान की दुहाई मांग रही थी मगर लोगों पर तो जैसे खून सवार था.

उस महिला ने एक अपराध जो कर लिया था किसी का हाथ थामने का.

"इस उम्र में विवाह रचाएगी यह... गाँव की दूसरी महिलाओं पर कितना बुरा असर पड़ेगा l" एक व्यक्ति ने दाँत पीसते हुए कहा यह व्यक्ति वही था जिसकी आँखों मे वासना की चिंगारी को भड़कते हुए न जाने कितनी बार उसने पढ़ा था जो रात के अंधेरे में मूँह छिपाकर उसके बजूद को तहस नहस करना चाहता था मगर ऎसे लोगों को दिखावा करना ढोंग करना कितने अच्छे से आता है यह आज पहली बार देखा था उसने.

भीड़ में उसे कोई भी अपना दिखाई नहीं दे रहा था अपने क्या वो सब इंसान ही कहाँ थे सभी इंसान की खाल    में छिपे भेड़िये थे जो उसके जिस्म को नोचकर खाना चाहते थे.

वह पीड़ा से पड़ी कराह रही थी और ऎसा लग रहा था कि शायद यह उसकी पीड़ा का अंत हो.

अब से पंद्रह साल पहले वह विवाह होकर इस गांव में आई थी. पति के पास कुछ बीघे जमीन थी विवाह के तीन साल गुजरने पर भी उसके बच्चा नहीं हुआ जिसका दोष भी उसी के माथे मढ़ दिया गया था कि वह बांझ है, लेकिन चूंकि उसकी जुवान तो थी नहीं वह तो पत्थर का बुत थी शायद जिसके ना भावना थीं दुनियां की नजर में और न ही इच्छाएं कैसे कहती चिल्लाकर की उसका पति नपुंसक है यह स्त्री धर्म के खिलाफ जो था.

खैर कई साल गुजर गए और उस पर तानों की बौछार भी अब उसको सबकी आदत पड़ चुकी थी क्योंकि पत्थर कुछ बोलते नहीं.

और तीन साल पहले ही पति जो कि दमा का मरीज था, चल बसा उसके जाने से मुसीबत और बढ़ गईं अब उसको नया नाम पति को खाने वाली डायन जो मिल गया था पति था उसके साथ मारपीट करता मनमानी करता मगर था तो वह उसका मरद इसलिए कोई उसकी तरफ देखता नहीं था परंतु जबसे वह गुजरा वही लोग जिनकी रिश्ते की चाची भाभी बहुत थी वह उसी को गिद्ध की नजर से देखने लगे भूखे भेड़िये से उसकी आबरू को लूटने को आमादा.

तभी कहते हैं न अहिल्या को छूकर राम जी ने उसे नारी में परिवर्तित कर दिया ऎसा ही गाँव के दीना ने भी उसका हाथ दिन के उजाले में जाकर मांगा और जिन्दगी भर साथ देने का वायदा भी किया अब उसकी भी भावना हिलोरें लेने लगी थी शायद वर्षों से दबी दबाई भावनाएं ज्वार भाटे सी तरंगें भरने लगीं थीं.

और दीना की समझदारी और उसके सुरक्षा के वचन ने औरत को जिंदा करने में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाई मगर यह क्या यह बात इन नर पिशाचों को पसंद नहीं आई और पहले दीना को 'बुरा आदमी ' कहकर पीट पीटकर मार डाला और उसे डायन घोषित कर मारने पर आमादा हो गए.

एक स्त्री ने उनके पौरुष जो कि गंदगी से ओत प्रोत था को जो नकारा था.

वह फिर से गहरी नींद में सोकर पत्थर की जो बन गई थी.

✍️राशि सिंह, मुरादाबाद उत्तर प्रदेश


मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा ----- भीख


रविन्द्र नाथ जी अपनी लड़की की शादी की बात करने के लिए सुरेन्द्र जी की दुकान पर पहुंचे।सुरेन्द्र जी किसी ग्राहक के साथ व्यस्त थे।तभी वहां एक दीन हीन सा दिखने वाला एक हट्टा कट्टा नौजवान आया औरगिड़गिड़ाने लगा "कल से भूखा हूं, कुछ पैसे दे दो।" 

रविन्द्र जी को उस पर दया आ गई, और उन्होंने उसको पचास रुपए दे दिए।उसके जाने के बाद सुरेन्द्र जी ने रविन्द्र जी से कहा "आपने ये अच्छा नहीं किया।आप जैसे लोगों की वजह से ही इनकी मांगने की हिम्मत बढ़ती है। जब तक हम इनका बॉयकॉट नहीं करेंगे,भीख मांगने की प्रथा खत्म नही होगी। खैर,छोड़िए इन बातो को, अब कुछ काम की बात कर ली जाए।लड़की हमें पसंद है, हमें कुछ चाहिए भी नहीं,वैसे आप समाज में अपनी नाक रखने के लिए गाड़ी तो देंगे ही, हम बस इतना चाहते है कि आप कम से कम इनोवा जैसी गाड़ी दें।"

रवीन्द्र जी ने स्वीकृति मेेें सिर हिलाया और बोले "आप ठीक कहते हैं।भीख मांगने की आदत आसानी से नहीं जाती।" 

फिर क्या था,सुरेन्द्र जी का मुंह देखने लायक था।

✍️डॉ पुनीत कुमार

T - 2/505, आकाश रेजिडेंसी, मधुबनी पार्क के पीछे

मुरादाबाद - 244001

M - 9837189600