गुरुवार, 29 फ़रवरी 2024

मंगलवार, 27 फ़रवरी 2024

उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान, लखनऊ एवं मुरादाबाद की संस्था 'हस्ताक्षर' द्वारा सोमवार 26 फरवरी 2024 को विचार-गोष्ठी, परिचर्चा एवं संवाद कार्यक्रम का आयोजन

 उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान, लखनऊ एवं मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' के संयुक्त तत्वावधान में सोमवार 26 फरवरी 2024 को  'साहित्य के सामाजिक सरोकार' शीर्षक से विचार गोष्ठी, संवाद एवं परिचर्चा का आयोजन मुरादाबाद स्थित स्वतंत्रता सेनानी भवन में किया गया। 

   माॅं सरस्वती के समक्ष दीप-प्रज्ज्वलन एवं माल्यार्पण के पश्चात् शुभम कश्यप द्वारा प्रस्तुत माॅं शारदे की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की  अध्यक्षता करते हुए डॉ. अजय अनुपम का कहना था - "साहित्य का अर्थ है समाज को मंगलकारी मार्ग दिखाना। साहित्य वह है, जिसे परिवार में सबके साथ बैठकर पढ़ा जा सके, अर्थात्  मर्यादा की स्थापना की जा सके। अपने समय का साक्षी होना उत्कृष्ट साहित्य की पहचान है।"  

  मुख्य अतिथि  श्लेष गौतम ने कहा -  "साहित्य में चिंतन एवं वैचारिकी होती ही है। सामाजिक सरोकारों को अभिव्यक्त करने के लिए सृष्टि, समाज, ब्रह्मांड और उससे परे भी जाकर साहित्य हमको प्रभावित करता है, राह दिखाता है तथा प्रश्न एवं हल दोनों से जोड़ता है। वर्तमान को जीते हुए भी इतिहास बोध और भविष्य दृष्टा है साहित्यिक चिंतन।"  

मुख्य अतिथि शायर अनुराग मिश्रा 'ग़ैर' का कहना था - "साहित्य हमेशा ही समाज का प्रतिबिंब रहा है। जिस साहित्य में अपने समय की धड़कन नहीं रहती, वह कालजई नहीं हो सकता। हमेशा अपनी समय की नब्ज़ को पहचान कर रचा जाने वाला साहित्य ही जीवंत रहता है।" 

विशिष्ट अतिथि नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कहा - "साहित्य में जब तक सामाजिक सरोकार नहीं होते, तब तक साहित्य आम जनमानस से जुड़ नहीं पाता। साहित्य ही है जो समाज में व्याप्त विसंगतियों और विद्रूपताओं को अपनी अभिव्यक्ति देता है और उनका समाधान भी। नागार्जुन, दुष्यंत कुमार, अदम गोंडवी, कैलाश गौतम आदि ने अपनी रचनाओं में सामाजिक सरोकारों को ही जिया है।" 

विशिष्ट अतिथि प्रो. चन्द्रभान सिंह यादव का कहना था - "साहित्य समाज का दर्पण होता है। समाज की गतिविधियों को साहित्य में देखा जा सकता है। समाज का मार्गदर्शन करना साहित्य का उद्देश्य है तथा साहित्यकार लोगों की सुप्त चेतना का जागरण करता है। दलित साहित्य, स्त्रीवादी साहित्य और आदिवासी साहित्य में समाज का यथार्थ चित्रण किया गया है।" 

विशिष्ट अतिथि शायर डॉ. कृष्ण कुमार नाज़ की अभिव्यक्ति थी - "साहित्य जीवन की व्याख्या है और जीवन का निर्माण समाज से होता है ऐसी स्थिति में यह स्पष्ट हो जाता है कि साहित्य समाज का प्रतिरूप है और मानवीय व्यवहार को अभिव्यक्ति देने का एक सशक्त माध्यम है।" 

संचालन करते हुए राहुल शर्मा ने कहा - "अदब की क़ीमत कभी भी कम नहीं हो सकती। अदब एक ऐसा ज़रिया है जो समाज की हक़ीक़त से रू-ब-रू कराता है। अदब के बिना हम समाज की कल्पना नहीं कर सकते।" 

        इसके अतिरिक्त धवल दीक्षित,  रघुराज सिंह निश्चल,  दुष्यंत बाबा, ओंकार सिंह ओंकार, मयंक शर्मा ने भी  विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम में अशोक विश्नोई, ज़िया ज़मीर,  राजीव प्रखर, मनोज मनु, राशिद हुसैन, प्रवीन राही, डॉ. मनोज रस्तोगी, कुलदीप सिंह, खगेन्द्र सिंह आदि उपस्थित रहे।