शुक्रवार, 24 जून 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य रचना ----आंसू


कुछ कमजोर हैं,कुछ धांसू हैं

तरह तरह के आंसू हैं

पूरा शोरूम

ब्रांडेड आंसुओं से सजा है

लोकल आंसुओं का भी

अपना अलग मजा है


सबसे उपर सजे आंसू

ना हमारे हैं,ना आपके हैं

उस बदनसीब बाप के हैं

जो पूरी कोशिश के बाद भी

बेटी को दहेज नहीं दे पाया

बेटी दहेज की

वेदी पर बलि हो गई

अंतिम बार उसका

मुख भी नही देख पाया

इन आंसुओं में

पितृत्व और प्रतिशोध का

मिला जुला पानी है

आक्रोश है,क्रोध है

आत्म ग्लानि है

इन आंसुओं की कीमत

कोई भी नही भर सकता

क्योंकि आज का विज्ञान

मरी हुई बेटी को

जिंदा नहीं कर सकता


इसी के पास में

उस बेरोजगार के आंसू हैं

जो योग्य होने के बावजूद

नौकरी ना पा सका

क्योंकि ना रिश्वत जुटा सका

ना किसी बड़े आदमी की

सिफारिश लगा सका

पिछले दस साल से

सड़क पर पड़ा है

कहां जाना चाहता था

कहां पर खड़ा है

मरने के लिए पैसे नहीं हैं

इसलिए जी रहा है

आश्वासनों को खा रहा है

खुद्दारी को पी रहा है

इन आंसुओं को देखकर

आप कमल से खिल जाएंगे

क्योंकि ये आपको

भारी डिस्काउंट पर मिल जाएंगे


अगले काउंटर पर

नेताओं के आंसू मिलते हैं

ये किसी भी व्यक्ति को

दुखी देख निकल पड़ते हैं

शर्त सिर्फ इतनी है

वह उनके चुनाव क्षेत्र का

कोई वोटर होना चाहिए

और इस हमदर्दी का

फोटो खींचने के लिए

कोई रिपोर्टर होना चाहिए

बहुत गंदा हो चुका है

इन आंसुओं का पानी

इसमें मिले हैं

धोखा,मक्कारी,बेईमानी


अपनी बात को

आगे बढ़ाते हैं

कुछ विशेष और अनमोल

आंसुओं से आपको मिलवाते हैं

इन आंसुओं को

उस खुशनसीब मां ने बहाया है

जिसने देश के लिए

अपने बेटे को गवांया है

इन आसुओं में

गर्व की छाया है

एक ही बेटा होने का

अफसोस भी इनमे समाया है

अगर चाहते हो

इनकी कीमत का अंदाज लगाना

देश पर अपना

सर्वस्व पड़ेगा लुटाना


और भी कई

वैरायटी के आंसू हैं

सबकी अलग जाति

अलग धर्म है

सेकुलर आंसुओं का

बाजार बहुत गर्म है

घड़ियाली आंसुओं की

डिमांड सबसे ज्यादा है

टोटल सेल में इनका

योगदान लगभग आधा है

नेता चाहें छोटे हों या बड़े

इनको भारी संख्या में ले जाते हैं

राजनीति में चमकने के लिए

इन्हें पानी की तरह बहाते हैं


मध्यम वर्गीय आदमी की 

लेकिन अजब लाचारी है

उसके स्टैंडर्ड के

आंसुओं की कीमत

उसकी जेब पर भारी है

उसकी आंख और आंसुओं में

बहुत बड़ी दूरी है

विषम परिस्थितियों में भी

मुस्कराना उसकी मजबूरी है।


✍️ डॉ पुनीत कुमार

T 2/505 आकाश रेजीडेंसी

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में जकार्ता, इंडोनेशिया निवासी ) वैशाली रस्तोगी की रचना ----मैं हूँ ना


अकेली पड़ गई 

एक बार एकांत में 

डूब गई गहरे में

कभी कुछ बनाने में

कहीं कुछ मिटाने में

विचारों की गंगा में

कभी डूबती,कभी उतर जाती 

खो जाती अपने हाथों,

कभी पा जाती प्रवासी

तभी कर जाती आदतन प्रवास

कुछ नहीं आया होगा रास 

कान के पास,कान में

किसी ने फुसफुसाया  

मैं हूं ना तेरे पास 

ऐसा ही आभास

जैसे है कोई मेरे पास,बहुत खास

सहसा,तंद्रा मेरी टूट गई 

जकड़न से छूट गई 

जगती नींद से जाग गई

मैं हूं ना,मैं हूं ना की 

अपार ताकत को पहचान गई

फिर मन की बगिया महक उठी 

झूम उठी खुश होकर 

हर कली खिल उठी 

अपने रास्ते चल पड़ी 

रुकी पड़ी,मेरी घड़ी

फिर चल पड़ी,फिर चल पड़ी। 

✍️वैशाली रस्तौगी

    जकार्ता (इंडोनेशिया)

गुरुवार, 23 जून 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा --दौर -


"जिंदाबाद जिंदाबाद हमारे नेता जी जिंदाबाद ...मुर्दाबाद मुर्दाबाद तुम्हारे नेता जी मुर्दाबाद ।" भीड़ चिल्लाती जा रही थी ।

"अभी सब कुछ ठीक नहीं  है क्या देश में ।"आरोप जोर से चिल्लाया और यह सुनकर प्रत्यारोप भी कहां चुप रहने वाला था ।

"तुम्हारे शासनकाल में तो सब कुछ जैसे अच्छा ही अच्छा था ।"उसने तंज कसा ।

"हां जिन कमियों के लिए जब तुम चिल्ला रहे थे अब वही तुम्हारे भी तो शासन में हैं ?"आरोप फिर से बौखलाया सा चिल्लाया ।

"हां अभी सत्ता परिवर्तन होने दो पाली बदल जायेगी क्योंकि चेहरे बदलते हैं विचारधारा नहीं । " घायल समय असहनीय पीड़ा से कराह उठा ।


✍️ राशि सिंह

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत 




मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रामकिशोर वर्मा की लघु कथा ---- मेरे पापा

     


राम सागर बहुत देर से दरवाजा खटखटा रहा था मगर उसकी पत्नी रम्मो जानबूझकर दरवाजा नहीं खोल रही थी । उसे पता था कि आज फिर राम सागर देर से काम से लौटा है तो पीकर ही आया होगा और फिर घर में बेटी रुचि के सामने उल्टा-सीधा बोलेगा और उल्टियां करके बेसुध सो जायेगा ।

   मगर जब रुचि के पापा को दरवाजा खटखटाते बहुत देर हो गई तो रुचि से नहीं रहा गया और वह भागकर दरवाजा खोलते हुए देखती है कि उसके पापा के हाथ में दो गुब्बारे और बिस्कुट -टॉफियां हैं। 

   राम सागर रुचि को देखते ही मुस्कराकर उसे गोद में उठा लेता है ।

   रुचि के मुंँह से एकदम निकल जाता है -"मेरे पापा!" और एकदम सवाल दागती है -" आज आपके मुँह से अजीब सी बदवू नहीं आ रही?"

   रम्मो यह सब देखकर अवाक रह जाती है ।

 ✍️ राम किशोर वर्मा

रामपुर ,उत्तर प्रदेश, भारत

दिनांक:- २२-०६-२०२२ बुधवार

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की लघुकथा-आंकड़े

     


विभागीय मीटिंग में वर्तमान वर्ष के नामांकन की समीक्षा चल रही थी। गत वर्ष की तुलना में 30 प्रतिशत नामांकन वृद्धि का लक्ष्य प्रत्येक विद्यालय को पूरा करना था।सभी विद्यालयों के गत नामांकन के सापेक्ष वर्तमान का नामांकन प्रतिशत निकाला गया था और उसी अनुसार वृद्धि प्रतिशत पूरा न करने वालों को स्पष्टीकरण का पत्र हाथों हाथ थमाया जा रहा था।

      इस वर्ष सात नये नामांकन करने वाले प्रधानाध्यापक राजेन्द्र कुमार आत्मविश्वास से लबरेज थे आखिर उन्होंने वांछित प्रतिशत से एक अधिक नामांकन किया था,पर वहीं 44 नये नामांकन करने के बावजूद प्रधानाध्यापक किशोर कुमार के दिल की धड़कनें बढ़ गयीं थीं क्योंकि अभी भी वांछित वृद्धि प्रतिशत से वह 22 नामांकन दूर थे। तभी मंच से लक्ष्य प्राप्त न करने वाले उनके विद्यालय का नाम पुकारा गया और वह मन ही मन सोच रहे थे काश, मैंने गत वर्षों में घर घर घूम कर और मेहनत करके नामांकन न बढ़ाया होता तो इस वर्ष यह कार्रवाई न होती.....

 ✍️ हेमा तिवारी भट्ट

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी -----------बिन बुलाए मेहमान



   .... "कितनी देर से डोर बेल बज रही है देखते क्यों नहीं कौन आया है?"

     "अरे भटनागर साहब आइए" !

'"भाभी जी बिटिया की शादी है यह रहा कार्ड राही गेस्ट हाउस में आप सभी का बहुत-बहुत आशीर्वाद चाहिए कुछ भी हो जाय समय से आ जाना" !!

      " बिल्कुल भाई साहब बिटिया की शादी हो और हम ना पहुंचे ? भला हो सकता है यह?"

 "अंकल जी नमस्ते!,, खाना खाते हुए ही  विकल ने मुझे नमस्ते की ।

,,नमस्ते बेटा,,,! और कौन-कौन आया है? मैंने भी विकल की नमस्ते का जवाब देते हुए पूछा ।,, अंकल सभी आए हैं मम्मी पापा भैया !!

       ......और बताओ कैसे हो? आपस में बातें करते करते सब लोग खाना खाने लगे वैसे तो सभी जगह शादियों में खाना अच्छा ही होता है परंतु यहां और भी ज्यादा उच्च कोटि के व्यंजन दिखाई पड़ रहे थे सभी लोग रुचि अनुसार भोजन का रसास्वादन कर भोजन कर रहे थे ।

       अंत में आइसक्रीम पार्लर से आइसक्रीम ले खाने को संपूर्णता प्रदान कर सभी पड़ोसी लिफाफा देने के लिए भटनागर साहब को खोजने लगे परन्तु भटनागर साहब का कहीं पता नहीं था।अब महिलाएं श्रीमती भटनागर को ढूंढने लगी परन्तु वह  भी कहीं दिखाई नहीं पड़ीं ।

    ....जहां दोनों पक्ष मिलकर एक ही जगह  भोज का आयोजन करते हैं वहां अक्सर इस प्रकार की समस्या आती ही है ... सामने एक टेबल पर सभी के लिफाफे लिए जा रहे थे सभी लोगों ने अपने लिफाफे वहीं दे दिए  .... 

.....लिफाफे गिनने पर बैठा व्यक्ति एक दूसरे संभ्रांत व्यक्ति के कान में फुसफुसा रहा था 

"कार्ड तो एक हजार ही बांटे थे अब तक ढाई हजार लिफाफे आ चुके हैं !" 

.."सचमुच किसी ने सही कहा है शादियों में कन्याओं का भाग काम करता है ..... वरना भला ऐसा कहीं हुआ है की 1000 कार्ड बांटने पर ढाई हजार से ज्यादा लिफाफे आ जाएं "

....तभी वहीं चीफ कैटर( जिसको कैटरिंग का ठेका दिया था) आया और उन्ही दोनों लोगों से धीरे धीरे परन्तु आक्रोश में कह रहा था

      "यह बात बहुत गलत है  ! साहब जी ! मुझे 12 सौ लोगों का भोजन प्रबंध करने के लिए कहा गया था आपके यहां ढाई हजार से ज्यादा लोग अब तक भोजन कर चुके हैं सारा खाना समाप्त हो गया है अब मेरे बस का प्रबंध करना नहीं है मैंने खुद खूब बढ़ाकर इंतजाम किया था परंतु इतना अंतर थोड़ी होता है 100 -50 आदमी बढ़ जाएं चलता है"

" .... मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं है अब..... आप स्वयं जानें..."!

....... रात्रि के 11:00 बज चुके थे घर भी जाना था सब ने अपनी अपनी गाड़ियां निकालीं और घर की ओर चलने लगे.......

.... जब बाहर निकल रहे थे तभी अचानक दूल्हे पर नजर पड़ी दूल्हा गोरा चिट्टा शानदार वेशभूषा में तलवार लगाएं घर वाले भी सभी राजसी पोशाकें पहने जम रहे थे जैसे किसी राजघराने की शादी हो.... सभी लोग आपस में बात करते हुए जा रहे थे "कुछ भी हो भटनागर साहब ने घराना  तो बहुत अच्छा ढूंढा."..... "हां भाई साहब बहुत शानदार शादी हो रही है"!!

   ..... निकलते निकलते मन हुआ द्वार पूजा तो देख लें परन्तु गाड़ियां धीरे धीरे बाहर निकल रहीं थीं..... चलते चलते उड़ती नज़र लड़की के पिता के स्थान पर मौजूद व्यक्ति पर पड़ी तो लगा वह भटनागर साहब नहीं थे.........फिर सोचा हमें कहीं धोखा लगा होगा....

...... परंतु राही होटल से निकलने के बाद कुछ आगे चलकर एक और होटल पड़ा उसका नाम भी राही ही लिखा  हुआ था...... यह देखकर माथा कुछ ठनका सोचते सोचते घर पहुंच गए सभी पड़ोसी लोग  आपस में बातें कर रहे थे कि भटनागर साहब क्यों नहीं मिले ?ऐसा कहीं होता है कि मेहमानों से मिलो ही नहीं ! यह बात किसी को भी अच्छी नहीं लग रही थी.....

........अगले दिन भटनागर साहब गुस्से में सबसे शिकायत कर रहे थे कि "आप लोगों में से कोई भी नहीं पहुंचा.!!!.... भला यह भी कोई बात हुई  सारा खाना बर्बाद हुआ..!!!.... सभी पड़ोसी लोग एक दूसरे का मुंह देख कर मामले को समझने का प्रयत्न कर रहे थे...... आखिर सब लोग किसकी  दावत में शामिल हो गए और व्यवहार के लिफाफे किनको।   थमा कर चले आये......

      ‌.... चौंकने का समय तो अब आया जब अखबार में पढ़ा "राही होटल में शादी में खाना कम पड़ जाने के कारण बरातियों ने हंगामा काटा !! प्लेटें फेंकी .....नाराज़ होकर दूल्हे सहित बरात बिना  शादी किए लौटी !!! ...सभी पड़ोसी स्तब्ध थे.......


✍️ अशोक विद्रोही

 412 प्रकाश नगर मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

बुधवार, 22 जून 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का व्यंग्य ....नेतावीर


"नेतावीर" योजना अगर शुरू की जाए तो कैसा रहेगा ? योजना का उद्देश्य जैसा कि नाम से प्रकट हो रहा है, देश को अच्छे नेता प्रदान करना है । आजकल जिसे देखो विधायक और सांसद बनने के लिए खड़ा हो जाता है । चुनाव भी जीत जाता है और जनता से झूठे वायदे करके अथवा उसकी भावनाओं को भड़का कर पद प्राप्ति के बाद तिकड़म बाजी में जुट जाता है । नेतावीर योजना में ऐसा नहीं हो पाएगा ।

             सर्वप्रथम जिन लोगों को नेता बनना है अर्थात सांसद और विधायक आदि का चुनाव लड़ना है, उन्हें पॉंच वर्ष तक नेतावीर के कठिन प्रशिक्षण से गुजरना होगा। नेतावीर बनने के लिए आवेदन-पत्र प्राप्त किए जाएंगे । यह केवल 25 वर्ष से 60 वर्ष आयु के व्यक्तियों के लिए होंगे अर्थात बूढ़े और ढल चुके व्यक्तियों का नेताओं के रूप में कोई भविष्य नहीं होगा । इन्हें जबरन राजनीति से रिटायर कर दिया जाएगा । 

       नेतावीर के लिए उन युवकों को प्रशिक्षण हेतु चुना जाएगा जो किसी गुंडा-बदमाशी के चलते जेल में सजा काटकर नहीं आए होंगे अर्थात अच्छे चाल-चलन वाले लोगों को राजनीति में प्रश्रय मिलेगा ।

     नेतावीर बनना कोई मामूली बात नहीं होगी । इसके लिए 5 वर्षों तक किसी प्रकार का कोई भत्ता या वेतन नहीं मिलेगा बल्कि उल्टे अपनी आमदनी का 10% देश को दान के रूप में देना पड़ेगा। जब आप देश की सेवा करने के इच्छुक हैं तो अपनी आमदनी का 10% देश को पहले दिन से देना शुरू कर दें ।  फिर उसके बाद 5 साल तक जनता के सुख और दुख में निरंतर भागीदारी निभानी होगी । 

        अंतिम संस्कार में कंधा देना पड़ेगा और विवाह आदि के कार्यों में आपकी सहभागिता नोट की जाएगी । सुबह से शाम तक आप कितने लोगों के सुख-दुख में हिस्सेदार बने, उनका हालचाल पूछने के लिए अस्पताल अथवा घर पर गए, यह भी देखा जाएगा। गली-मोहल्लों के चक्कर आपको प्रतिदिन लगाने होंगे तथा उसका विवरण भेजना पड़ेगा । इन सब को देखते हुए कुछ लोगों को नेतावीर का सर्टिफिकेट दिया जाएगा तथा बाकी लोगों को नेता बनने के लिए चुनाव में खड़े होने का अवसर मिलेगा । चुनाव में खड़े होने के बाद भी तथा चुनाव जीतकर सांसद और विधायक बनने के बाद भी यह पद देश की सेवा के लिए ही सुरक्षित रहेगा अर्थात नेतावीर बनने की प्रक्रिया के दौरान जो 10% अपनी आमदनी देश को देते थे, वह आपको सारी जिंदगी देनी पड़ेगी।  विधायक और सांसद बनने के बाद कोई वेतन भत्ता तो दूर की बात रही, आपको अपने पास से अपनी आमदनी का 10% देना पड़ेगा । 

      इतनी कठिन प्रक्रिया के बाद सांसद और विधायक बनने के लिए केवल अच्छे, भले और ईमानदार लोग ही आएंगे।  जिनका उद्देश्य राजनीति में पैसा कमाना है, वह तो दूर से ही राजनीति को प्रणाम करेंगे । वह लोग नेता तो दूर की बात रही नेतावीर भी नहीं बन पाएंगे । एक बार जो सांसद और विधायक बन गया, वह कभी भूल कर भी इस्तीफा देने की नहीं सोचेगा।  इतने पापड़ बेलकर जब पद मिलेगा, तो कौन उसे गॅंवाने की सोच सकता है ?

✍️रवि प्रकाश 

बाजार सर्राफा

 रामपुर ,उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी का गीत .... साज़िश में बैठी है साज़िश साज़िश गहरी है ,और हमारी भलमनसाहत गूंगी बहरी है।।


साज़िश में बैठी है साज़िश

साज़िश गहरी है।

और हमारी भलमनसाहत

गूंगी बहरी है।।


आगबबूला हर कोशिश का

पता नहीं चलता।

तार गया सौहार्द हमें जो

आज नहीं फलता।।

घर में आकर समरसता के

माचिस ठहरी है।


मकसद सारे लगे ताक में

करते निगरानी।

शुभम् शिवम् पर जैसे भी हो

फिर जाए पानी।।

रोग निरंतर बढ़ता जाता

मौसम ज़हरी है।


हुई अराजक दुष्ट हवाएँ

उधम मचाती हैं।

महक रहे इस चन्दन वन में

आग लगाती हैं।।

और दखल देने में लगती

विफल कचहरी है।


✍️ डॉ.मक्खन मुरादाबादी

      झ-28, नवीन नगर

      काँठ रोड, मुरादाबाद-244001

      उत्तर प्रदेश, भारत

     संपर्क:9319086769

मंगलवार, 21 जून 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार सुभाष चंद्र शर्मा की रचना .... योग करने से रोग, जाएगा उड़ धूल-सा, पूर्ण स्वस्थ शरीर भी, हल्का होगा फूल-सा....


वर्ष का दिन बड़ा,

कड़ा ताप धूप में।

21 जून मना रहे,

योग दिवस के रूप में।।

अनुलोम विलोम योग को,

जब कभी करते हैं आप।

नियत रखता है आपका, 

निम्न-उच्च रक्तचाप।।

जवाब जब दे दिया,

मरीजों की जेब ने।

स्वस्थ योग से किया,

बाबा रामदेव ने।।

योग-गुरु देखते जब,

मरीजों की नब्ज को।

सबसे पहले तुड़वाते हैं,

पेट की कब्ज को।।

कब्ज ही होती बहुत,

रोगों का मूल है।

मुंह के छाले बवासीर,

चाहें पेट का शूल है।।

करो कपालभांति,

उदर विकार मुक्ति को।

रामदेव साथ हैं,

सुझाने सब युक्ति को।।

प्राणायाम करते रहो,

बुद्धि के विकास को।

लो तनाव मुक्ति को,

हास-परिहास को।।

योग करने से रोग,

जाएगा उड़ धूल-सा।

पूर्ण स्वस्थ शरीर भी,

हल्का होगा फूल-सा।।

मोदी जी थकते नहीं,

योग के प्रभाव से।

ऊबते नहीं कभी,

काम के दबाव से।।

मोदी जी को धन्यवाद,

जो विश्व में पहचान है।

अखिल विश्व कर रहा,

भारत का सम्मान है।।

यदि जड़ से ही खोना है,

आते हुए रोग को।

छोड़ सब भौतिकवाद,

अपनाओ तुम योग को।।


✍️ सुभाष चन्द्र शर्मा

सम्भल, उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद की साहित्यकार रश्मि प्रभाकर का मुक्तक ___योग से सिद्ध हो काम सभी


योग करो तो निरोग रहो, करो योग निरोगी बनाओ काया, 

स्वस्थ नहीं तो गरीब हो तुम, चाहे फ़िर लाख कमाओ माया, 

योग से सिद्ध हो काम सभी, मन शुद्ध बने तन पावन होये, 

रश्मि कहे करो योग और तन से रोग को दूर भगाओ भाया.... 


✍️रश्मि प्रभाकर

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत


मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में जकार्ता इंडोनेशिया निवासी ) वैशाली रस्तोगी के दोहे .....


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की दोहा गीतिका


चाहो यदि संसार से, दूर हटें सब रोग।

सुबह-सुबह मिलकर करें, आओ हम सब योग।।  


नित्य नियम से जो करे, हर दिन  प्राणायाम।

त्याग देह-आलस्य को, पाये जीवन  भोग।।

                                        

जब हों  विचलित  इन्द्रियाँ,  बने ध्यान से काम।

इस मन को जो बाँधता , वही परम है जोग ।।


इस कोरोना -मार से, कैसा हुआ कमाल।

सेहत ही पूँजी बड़ी , समझ गये हैं लोग।।


प्रीति  यहाँ जब लोग सब, मन में लेंगे ठान।

नवभारत की शान तब, बन पायेगा योग।।

✍️प्रीति चौधरी

हसनपुर, अमरोहा

उत्तर प्रदेश, भारत



मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद संभल ) के साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम के आठ दोहे


प्रात काल के योग से, दूर रहें सब रोग।
गुणकारी गुरु मंत्र सा, संजीवन रस योग।।

जीवन को सुंदर बना, करके साधन योग।
वेदों की शिक्षा यही, कहते सुनते लोग।।

भूले से करना नहीं, मन तन से खिलवाड़।
एक बार की चूक से, मिले दुखों की बाढ़।।

काया को कमजोर की, सारे सुख निर्मूल।
चुभते उसको फूल भी, जैसे शूल बबूल।।

एक-एक का योग भी, कहलाता है योग।
भोग हुआ जब योगमय, मिटे सभी दुर्योग।।

सबके मन में रम रहे, रोग भोग संभोग।
जिसका जैसा योग हैं, उसका वैसा भोग।।

जो मन चाहे भोगना, कुल वसुधा के भोग।
तन को मन में ढाल ले, मन से कर ले योग।।

दिया हुआ भगवान का, तन सुंदर उपहार।
कृष्णम् नियमित योग से, लाना नित्य निखार।।

✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्
कुरकावली, संभल (उ०प्र०)


सोमवार, 20 जून 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार का गीत ....बादल आए ,एक झलक दिखलाकर चले गए, बिन बरसे ही आँचल-से लहराकर चले गए


बादल आए ,एक झलक दिखलाकर चले गए।

बिन बरसे ही आँचल-से लहराकर चले गए ।।


बाँंध टकटकी रहे देखते, नीम और जामन, 

सूखे में ही बीत रहा है ,यह कैसा सावन  ।

रूठ गए हैं जिसके साजन, विपदा की मारी,

निष्ठुर बादल की चाहत में ,सूख गई क्यारी  ।

सपने में आए थे प्रीतम, आकर चले गए. ।।

बादल आए------


दरक गईं परतें धरती की ,सूख गया  सब जल,

नहीं परिंदों की होती है, झीलों पर हल-चल  ।

दाना-पानी फिरें ढूंढ़ते,  पागल-से सारस, 

भूखे पेट नहीं उनमें है ,उड़ने का साहस  ।

दूर देश के कुछ पंछी,  अकुला कर चले गए ।।

बादल आए---

 

हरियाली रितु के आने की,  आशा थी पूरी  ,

लेकिन बादल की धरती से ,बनी रही दूरी  ।

आज किसान दर्द से अपनी,  आँखें मींच रहा, 

श्रम की बूँदों से ही अपनी, फ़सलें सींच रहा  ।

बादल नभ में बिजली-सी, चमका कर चले गए. ।।

बादल आए------


✍️ओंकार सिंह 'ओंकार'

1-बी- 241 बुद्धि विहार, मझोला 

मुरादाबाद 244103

उत्तर प्रदेश, भारत

रविवार, 19 जून 2022

मुरादाबाद की संस्था कला भारती की ओर से रविवार 19 जून 2022 को ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया । प्रस्तुत हैं गोष्ठी के अध्यक्ष संजीव आकांक्षी, मुख्य अतिथि अशोक विश्नोई , विशिष्ट अतिथि डॉ पूनम बंसल, विशिष्ट अतिथि त्यागी अशोका कृष्णम् एवं साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी, योगेन्द्र वर्मा 'व्योम', मुजाहिद चौधरी, मनोज'मनु', राजीव 'प्रखर',अतुल कुमार शर्मा, दुष्यंत 'बाबा', डॉ रीता सिंह, इन्दु रानी,नृपेंद्र शर्मा, प्रशान्त मिश्र और शुभम कश्यप 'शुभम' द्वारा प्रस्तुत की गईं रचनाएं ...…

 


ज़हालत इस क़दर भर दी गई इन नामाकूलों में।।           हर एक के साथ ग़द्दारी सीखा  दी है उसूलों में।।

न अपनी कौम के ही हो सके न देश दुनिया के।
खुद ही दीमक लगाते घूमते मज़हब की चूलों में।।

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पत्थर पूजने वाले ही पत्थर खाएँ, आखिर क्यों?
जहरीले सापों से रिश्ता हम निभाएँ, आखिर क्यों?
फनों से ज़हर की थैली निकालो तोड़ डालो दाँत।
तुम्हारे पाले सांपों को हम गिनाएँ, आखिर क्यों?

✍️ संजीव आकांक्षी
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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आप जानते हैं ,
मैं, गीत नहीं लिखता ।
       सुख कब आते हैं ;
       पीड़ा के आंगन में ।
       रहा अकेला मैं ,
       अपनों के कानन में ।
मेरा पका घाव ,
फिर भी नहीं रिसता ।।
        छोटे से घर में ,
        ईर्ष्या की दीवारें ।
        बाहर से अच्छा ,
        दिलों में दरारें ।
भोला मन है ये,
सदा रहा दबता ।।
         विश्वासों पर ही तो,
         दिन कम हो जाता ।
         निजी आस्थाओं में ,
         मन कहीं खो जाता।
भोर से भी अपना,
भ्रम नहीं मिटता ।।
         पक्षी करते कलरव,
         अच्छा सा लगता है।
         सांझ ढले जब-जब,
         भीतर डर लगता है।
करे क्या मानव,
ईमान यहां बिकता ।।
आप जानते हैं,
मैं, गीत नहीं लिखता ।।

✍️ अशोक विश्नोई
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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आँसू में डूबा हुआ है जिसका संगीत
कैसे मैं  पूरा करूँ जीवन का यह गीत

छोटी सी यह बाँसुरी राधा की है प्रान
प्रभु अधरों से लग गई भूली अपनी तान
मिट जाने से ही मिली सात  सुरों  की जीत

दुख बचपन से साथ है सुख तो है मेहमान
मोल न जाने हंसी का दुख से जो अनजान
अपनी तो है दर्द से जनम जनम की प्रीत

कदम कदम पर ठोकरें खाता  है इंसान
गिरके भी संभले न जो वो मूरख नादान
शोलों को देता हवा यह जग की है रीत

क़िस्मत  से लड़ना नहीं  होता है आसान
आसमान छू लें कदम बस इतना अरमान
सपनों में  ही हो गई लो सपनों की जीत

✍️ डॉ पूनम बंसल
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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हाथों में हैं आरियाँ,बातें हैं रसदार।
पीपल बोला आम से,देख मनुज व्यवहार।।

सच की गठरी बांध कर,उठे गिरे सौं बार।
कुछ कागज की नांव भी,पहुंच गईं उस पार।।

तुलना का प्रारंभ है,अपनेपन का अंत।
खो जाता आनंद तब,पीड़ा मिले अनंत।।

रिश्ते अपने हो गए,इसीलिए दो फाड़।
सच था मेरे साथ में,उनके पास जुगाड़।।

गिरगिट के रंग देखकर,कैसे हों हम दंग।
रंग बदलते मिल गए,हमको कई भुजंग।।

देख-देखकर रात दिन,फँसी गले में जान।
हिन्दुस्तानी सूरतें,मन हैं पाकिस्तान।।

पापी रावण कंस या,दुर्योधन बदमाश।
अहंकार की एक गति,होती मात्र विनाश।।

किस दुश्मन ने हैं भरे,यार तुम्हारे कान।
ऐसा क्यों लगने लगा,नहीं जान पहचान।।

चित्रकार ने भाग्य से,ऐसे हारी जंग।
सुंदर बनते चित्र पर,बिखर गए सब रंग।।

✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्
कुरकावली , सम्भल
  उत्तर प्रदेश, भारत
मो.+91 97190 59703

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लेकर फिर हाथ में वो मशालें निकल पड़े हैं
बेकुसूरों  के  घर  वो जलाने निकल पड़े हैं
यह सोच कर उदास हैं चौराहों पर लगे बुत
हमारे शहर में  वो लहू बहाने निकल पड़े हैं

✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822

Sahityikmoradabad.blogspot.com
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बहुत दूर हैं पिता
किन्तु फिर भी हैं
मन के पास

पथरीले पथ पर चलना
मन्ज़िल को पा लेना
कैसे मुमकिन होता
क़द को ऊँचाई देना
याद पिता की
जगा रही है
सपनों में विश्वास

नया हौंसला हर पल हर दिन
देती रहती हैं
जीवन की हर मुश्किल का हल
देती रहती हैं
उनकी सीखें
क़दम-क़दम पर
भरतीं नया उजास

कभी मुँडेरों पर, छत पर
आँगन में आती थी
सखा सरीखी गौरैया
सँग-सँग बतियाती थी
जब तक पिता रहे
तब तक ही
घर में रही मिठास

✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल-9412805981

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तुमने नहीं किया तो किसी ने नहीं किया ।
कुछ दोस्तों ने हमसे किनारा नहीं किया ।।
इस हाथ ले के उसने उसी हाथ दे दिया ।
जब भी दुआएं मांगीं वो मक़बूल हो गई ।
मेरे खुदा ने मुझसे किनारा नहीं किया ।।
दुश्मन से मिल गए जब मोहब्बत के साथ हम ।
फिर दुश्मनों ने हमसे किनारा नहीं किया ।।
जब दोस्तों ने फर्ज निभाया तो रो पड़े ।
उन दोस्तों से हमने किनारा नहीं किया ।।
खुशबू की तरह गुल का निभाते रहे हैं साथ ।
साए से उनके हमने किनारा नहीं किया ।।
दुश्मन सा जब सुलूक किया हमसफर ने फिर ।
हमने भी दुश्मनी से किनारा नहीं किया ।।
गमगीन हैं चमन के मैं हालात देखकर ।
फिर भी चमन से हमने किनारा नहीं किया ।।
मुजाहिद ने फिर जहां को वफा की दिलायी याद ।
उसके अहद से हमने किनारा नहीं किया ।।

✍️ मुजाहिद चौधरी
हसनपुर अमरोहा
उत्तर प्रदेश, भारत

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सिर पर
छांव पिता की,
कच्ची दीवारों पर छप्पर..

आंधी-बारिश
खुद  पर   झेले
हवा  थपेड़े  रोके ,
जर्जर तन
भी ढाल बने
कितने मौके-बेमौके ,
रहते समय
जान नहीं पाते
क्यों हम सब ये अक्सर,..
सर पर छांव पिता की ,,...

जितनी
दुनियादारी जो भी
नजर  समझ   पाती  है,
वही दृष्टि
अनमोल पिता के
साए  संग  आती  है ,
जिससे, दुष्कर
जीवन  पथ  पर
नहीं  बैठते थककर....
  सिर पर छांव पिता की...

माँ का आंचल
संस्कार       भर
प्यार  दुलार लुटाता,
पिता
परिस्थिति की
विसात पर
चलना हमें सिखाता,
करता सतत प्रयास
कि बेटा होवे उस से बढ़कर,..
सिर पर
छांव पिता की
कच्ची दीवारों पर छप्पर...
                      
✍️ मनोज'मनु'
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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ॲंधियारे अब ऐंठना, है बिल्कुल बेकार।
झिलमिल दीपक फिर गया, तेरी मूॅंछ उतार।।

मन की ऑंखें खोल कर, देख सके तो देख।
कोई है जो रच रहा, कर्मों के अभिलेख।।

कर लेने को हैं बहुत, बातें मेरे पास।
ओ दीवारो तुम कभी, होना नहीं उदास।।

बेबस भीखू को मिली, कैसी यह सौग़ात।
दीवारों से कर रहा, अपने मन की बात।।

चन्दा बिन्दी भाल की, तारे नौलख हार।
रजनी करके आ गयी, फिर झिलमिल शृंगार।।

छुरी सियासत से कहे, चिन्ता का क्या काम।
मुझे दबाकर काॅंख में, जपती जा हरिनाम।

गुमसुम बैठी रह गयी, बरखा-गीत बहार।
मेघा गप्पें मार कर, फिर से हुए फ़रार।।

आये जब अवसान पर, श्वासों का यह साथ।
तब भी लेखनरत मिलें, हे प्रभु मेरे हाथ।।

की पंछी ने प्रेम से, जब जगने की बात।
बोले मेंढक कूप के, अभी बहुत है रात‌‌।।

✍️ राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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धरने पर बैठे किसानों के तंबुओं की तरह,
नहीं होती हैं कविताएं,
कि सरकार की सख्ती और हठधर्मिता के सामने,
यूं ही उखड़ जाएं।
या फिर तूफानों में उजड़ जाएं,
जंगलों की तरह,
या जल जाएं,
घास-फूस के छप्परों सी,
घुल जाएं जहरीली हवा में,
या दब जाएं ऑफिस की फाइलों सी।
मिल जाए जैसे दूध में पानी,
और कोहरे में छिप जाए,
सूरज की तरह,
कविता कविता है,
जो कभी नहीं मरती,
दिलों पर करती है राज,
एक रानी की तरह।
कविता की कीमत,
कीमती आदमी ही जानता है,
उस की आन-बान-शान को पहचानता है,
संस्कृति से इसका अटूट नाता है,
कविता किसी सभ्य समाज की निर्माता है।
कविता को विचारों का भूखंड चाहिए,
भाव रूपी ईटों की मजबूती चाहिए,
हो समस्या की सरियों का जाल,
कुंठा को तोड़ने वाली,
ऐसी रेती चाहिए।
फिर लगाकर सहानुभूति का सीमेंट,
मिटाया जाता है,
खुरदुरेपन का एहसास,
डाल दी जाती है, संस्कारों की छत,
और पहना दिया जाता है प्यारा-सा लिबास।
करके दुनिया का श्रंगार फिर,
दीनता का समाधान बन जाती है कविता,
और पहन संस्कृति का परिधान,
हर समस्या का निदान बन जाती है कविता।

✍️ अतुल कुमार शर्मा
सम्भल, उत्तर प्रदेश, भारत

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राधा! मुरली श्याम की, कितनी  हुई बड़भागी।
देख विभोर श्याम को, बोली ललिता अनुरागी।।
तुम तो राधा पुरइन पात, कियो कृष्ण रस गात।
अधरन पे वो रहत सदा, हरि छिटकें नही हाथ।।
तब ललिता से राधा कहें,दृग कंचन नीर बहाय।
ये माटी की गगरिया, अधजल  छलकत जाय।।
हम अबला भोरी थोरी, सो सहज श्याम सुहाय।
जब हरि की दृष्टि पड़े,तो बंशी सौतन छुट जाय।।

✍️ दुष्यंत 'बाबा'
पुलिस लाइन, मुरादाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत

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मेघा आओ मेघा आओ
झोली में पानी भर लाओ
सूख रहे सब ताल तलैया
रौनक उनमें फिर दे जाओ ।

सड़क किनारे धूल उड़ी है
अाँगन में भी तपन बढ़ी है
हुआ दूभर बाहर निकलना
गरमी की बस मार पड़ी है ।

आकर अब तुम जल बरसाओ
धरती माँ को मत तरसाओ
बूँद बूँद भरकर कण कण में
रिमझिम रिमझिम मन हरसाओ ।

✍️ डॉ रीता सिंह
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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हिन्दू मुस्लिम सिक्ख सब, इस भारत की आन।
आया ऐसा दौर अब, भूल गए पहचान।।

गए भूल पहचान हैं ,हम भारत की शान।
आया ऐसा दौर है, युद्ध लिया है ठान।।

बात धर्म की छेड़ कर, व्यर्थ करे अभिमान ।
आया ऐसा दौर क्यों, करते हैं अपमान।

मिल जुल कर सब एक हो ,बने हिन्द की जान।
आया ऐसा दौर क्यों,टकराओं की ठान।।

आया ऐसा दौर क्यों,बिखर रहे सब भ्रात।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख सब, रखते एक बिसात।।

✍️ इन्दु रानी, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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नफरत दिलों के बीच बढाती हैं सरहदें।
इंसान को हैवान बनाती हैं सरहदें।।

मालिक ने तो बख्शी थी कितनी हसीं दुनिया।
सीने पर इसके दाग लगाती हैं सरहदें।।

मालिक के बन्दों में नहीं है फ़र्क़ जरा सा।
है एक सा लहू और है एक सी काया।।

बंदों से खून बन्दों का कराती हैं सरहदें।
इन्सान को शैतान बनाती हैं सरहदें। ।

मालिक ने न बाँटा हवा पानी और बसेरा।
दी एक सी ही रात बख्शा एक ही सवेरा।।

हर रात में एक ख़ौफ़ बढ़ाती हैं सरहदें।
इंसान को शैतान बनाती हैं सरहदें।।

लेकिन भला क्या सरहदें कर देंगी दिल जुदा।
उसका बुरा क्या होगा जिसके दिल है प्यार का।।

कैसे जुदा करेंगी उनके दिल को सरहदें।
जो मानते नही हैं क्या होती हैं सरहदें।।

✍️ नृपेंद्र शर्मा
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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मेरे विरोधी ही,
मेरे अच्छे “मित्र” हैं..
और मुझसे सच्चा प्यार करते हैं,
जब अपने साथ छोड़ जाते हैं
जब अपने हमसे रूठ जाते हैं
उस समय की वेदना में,
शान्त जीव चेतना में
हंसकर अपने होने का इजहार करते हैं
मेरे विरोधी ही मेरे अपने हैं
और मुझे सदैव याद करते हैं

जब हार होती है,
और मैं टूट जाता हूँ
अकेला तन्हा, अपनी “किस्मत’ से रूठ जाता हूँ
तब मेरे विरोधी मुझे चिढ़ाते हैं
तब मेरे विरोधी मुझे उकसाते हैं
और मेरे बिखरे हुए
“अरमान” को पुनः जगाते हैं
मेरे विरोधी ही मेरी प्रेरणा हैं
और मुझ पर पक्का एतबार करते हैं 

“अपनों” का आना, सिर्फ हवा का झोंका है..
“चिता” पर छोड़ आते समय
कितनों ने रोका है,
जो मेरे सुख में कम
और दुःख में ज्यादा याद करते हैं..
मेरे विरोधी ही हैं
जो मेरी हर पल बात करते हैं
मेरे विरोधी ही हैं
जो मेरे शरीर में , तेज रक्त प्रवाह कर
आसीम शक्ति का संचार करते हैं

✍️ प्रशान्त मिश्र
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद ,उत्तर प्रदेश, भारत

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क्यों फ़र्ज़-ओ-वाजीबात का मतलब नही पता ।
छोटों से इल्तिफ़ात का मतलब नही पता ।
सबका लहू सफेद है घर - घर हैं रंजिशें,
रिश्तों का मुआमलात का मतलब नही पता।
ठोकर में बाप दादा की दस्तार है पड़ी,
जन्नत की मालियात का मतलब नही पता।
बैठे बिठाए बाप की दौलत जिसे मिली,
उसको ही दाल भात का मतलब नही पता ।
बढ़के गले 'शुभम' ने सभी को लगा लिया,
उसको तो जात पात का मतलब नहीं पता।
 
✍️शुभम कश्यप 'शुभम'
मुरादाबाद ,उत्तर प्रदेश, भारत

शुक्रवार, 17 जून 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल (वर्तमान में मेरठ निवासी ) के साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी का व्यंग्य _----कारण के आगे कारण


कारण के आगे भी कारण होते हैं। कारण के पीछे  भी कारण होते हैं। कारण कभी कारण नहीं होता। कारण कभी अकारण नहीं होता। कारण न जानने के लिए कितने कारण होते हैं। कारण को न जानने के भी कई कारण होते हैं। कारण करुणा है। यह हर हृदय में पाई जाती है। पूरा जीवन कारण जानने में निकल जाता है। हम क्यों आये? किसलिए आये? क्या किया? यही सवालों का उत्तर हमको नहीं मिल पाता। इसके पीछे भी दो कारण हैं। एक-या तो घर में जरूरत थी। या हमारे बिना संसार नहीं चल रहा था। तीसरा कारण अज्ञात है। यानी हम जबरदस्ती आये। घर में चाह नहीं थी। उमंग नहीं थी। लेकिन हमारा धरती पर अवतार हो गया। हम बड़े हुए, फिर इसी खोज में लग गये, हम क्यों आये। स्कूल गये तो कारण ही कारण थे। हजारों सपने थे। ये बनेगा...वो बनेगा। यानी कारण ही कारण थे। नौकरी लगी तो कारण ही कारण थे। अकारण प्रश्न थे और हम उनका कारण  जानने के लिए सिर धुन रहे थे। जिनका हमसे मतलब नहीं। उनका कारण जानने में जुटे थे। यानी कारण के पीछे कारण थे। घर चलाना था। पेट भरना था। सो कारण ढूंढने में जुट गये। सेंसेक्स से लेकर सांसों तक के कारण हमारी टिप्स पर थे। हाथों में मोबाइल था। हमारी आंखों में सपने थे। उत्सुकता थी। हम कारण जानने में जुटे थे।

कारण न होता तो क्या होता। कारण तलाश करने के लिए पूरी मशीनरी काम करती है। सरकारी महकमे तो इसी वजह से चलते हैं। हजारों कर्मचारियों-अधिकारियों को पगार इसलिए ही मिलती है। पूरी सर्विस में कारण अज्ञात ही रहते हैं। जैसे किसी की हत्या हुई। कारण अज्ञात थे। यह बरसों तक अज्ञात रहते हैं। फिर केस होता है। पैरोकारी होती है। अधिवक्ता अपने बुद्धि-विवेक-तर्क से कारण का कारण जानने का प्रयास करते हैं। कभी कारण का कारण पता लग जाता है। कभी नहीं। कारण पता भी लग जाये तो कारण अंतिम नहीं होता। उसके पीछे और भी कारण होते हैं। तह में जाकर अनेक कारण मिलते हैं। अणुओं की मानिंद। सूर्य की किरणों की मानिंद। सिर में इतने बाल क्यों हैं? नाक का बाल भी अकारण नहीं है। नाक में बाल का भी कारण है। यह कारण आज तक अज्ञात है। यानी कितने आये और चले गये...मुहावरा बन गया लेकिन नाक का बाल नाक में रहा। यह कान तक नहीं आया। तफ्तीश भी नहीं हुई। हुक्मरान ने कभी नहीं विचारा...यह मुहावरा क्यों रचा गया। न आयोग बना। न जांच समिति बनी। न रिपोर्ट आई। सरकारी मशीनरी भी बिना कारण, कारण नहीं ढूंढती। उसके पीछे भी कारण होते हैं। कारण का पता करने के लिए बाकायदा एक पीठ काम करती है। वह यह पता करती है कि कारण क्यों कारण है? कारण पता भी चल जाये तो इसके क्या कारण होंगे। शोध पीठ न जाने कितने कारण रोज ढूंढती है। पीएचडी अवार्ड उनको मिलता है जो शोध करते हैं कि यह कारण पता नहीं लगा। यह शोध यहीं पूरा नहीं होता। जहां पर बात खत्म मान ली जाती है, उससे आगे बढ़ती है। दूसरा शोध करता है। फिर तीसरा। यानी शोधकर्ता कारण-दर-कारण बढते जाते हैं और कारण के पीछे कारण चलते रहते हैं।

हम अपने इर्द-गिर्द देखें। रोजाना कारण ही कारण हैं। सुबह हम कारण जानने निकलते हैं। शाम को मुंह लटकाए आ जाते हैं। पत्नी पूछती है...कारण पता लगा? हम क्या जवाब दें। कारण तो अकारण है। कारण ने एक बार कारण से पूछा...तुम कारण क्यों हो। तुममें ऐसा क्या है जो कोई नहीं जान सका। कारण बोला...मैं ही सच हूं। सत्य सनातन हूं। आगे-पीछे मेरे कोई नहीं। अर्जुन को श्रीकृष्ण ने कारण बताये। अर्जुन ने किसी को नहीं बताये। वह युद्ध लड़ा। कारण....? यही तो कारण था जो इतने साल से चला आ रहा है। हमारे नेता, अफसर, पत्रकार, कर्मचारी,कवि, लेखक सब इसी में जुटे हैं...कारण को कारागार में डालो। कोई क्या बताये...हर चीज का कारण नहीं होता। कारण अकारण भी होता है। ठीक वैसे ही, जैसे घर में पत्नी ही भूल जाती है कि हम क्यों लड़ रहे थे। नेता भूल जाते हैं कि हम फलां क्यों आये हैं। वहां क्या कहना है। क्या बोलना है। कारण अनेक होते हैं। कारण स्वतंत्र होते हैं। यह एक फाइल की तरह है। लाल फाइल। हरी फाइल। पीली फाइल। इन सभी में कारण अनेक होते हैं। फाइल क्यों लौटी...इसके पीछे भी कारण होते हैं। फाइल स्वीकृत हुई, इसके पीछे भी कारण होते हैं। कारण एक बांध की तरह हैं। बह जाते हैं। कारण एक सतत प्रक्रिया है। जब तक सांस है। चलती रहती है। कारण कभी अकारण नहीं होते। कारण के पीछे भी कारण होते हैं। लिखने के पीछे भी कारण होते हैं। बिकने के पीछे भी कारण होते हैं। आने के भी कारण होते हैं। जाने के पीछे भी कारण होते हैं। कारण नाक का बाल है। जो हर इंसान में पाया जाता है। चूंकि अरबों की आबादी है। आबादी की गणना में यह निकले नहीं। पता नहीं....क्या कारण रहे????

✍️सूर्यकांत द्विवेदी, मेरठ

बुधवार, 15 जून 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति की ओर से 14 जून 2022 को काव्यगोष्ठी का आयोजन

 मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति की ओर से 14 जून 2022 को काव्यगोष्ठी का आयोजन  श्री जंभेश्वर धर्मशाला में किया गया ।

गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने कहा ---

   मानव बन तू दीप समान।

   दीपक सा तू जल जल के

    कर कर्तव्य महान

मुख्य अतिथि वीरेंद्र सिंह बृजवासी ने कहा ---

हर  धर्म की  इज्ज़त  करें

बांटें   नहीं   भगवान  को

पाठ    पूजा    के     लिए

टोकें    नहीं   इंसान   को 

सत्य   की  पहचान  हित

तालीम      ज़रूरी      है।

विशिष्ट अतिथि योगेन्द्र पाल विश्नोई  ने कहा---

चलते चलते थक गये मंजिल नहीं मिली

बसंत की बयार में कलिका नहीं खिली

अशोक विद्रोही ने कहा--

करलो कितनी भी चालाकी,

हर जगह उसी को पाओगे

कंकर कंकर में शंकर है,

तुम कितने साक्ष्य मिटाओगे!

रामसिंह निशंक ने पढ़ा---

तू है जननी मेरी मां तुझे शत शत नमन

पहली सांस दायिनी मां तुझे शत शत नमन

योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कहा ----

व्यर्थ आपस में क्यों हम हमेशा

लड़ें,भेंट षड्यंत्र की क्यों हमेशा चढ़ें।

छोड़ कर नफरतें प्यार की राह पर

 दो कदम तुम बढ़ो'दो कदम हम बढें 

राजीव प्रखर ने कहा ----

स्वप्न सलोने सुन्दर युग की, 

बीती एक कहानी हूॅं। 

पढ़े-लिखे मानव के हाथों, 

झेल रही मनमानी हूॅं। 

मद में अन्धा जब करता हो

 जलधारा का चीर-हरण,

  मैं मछली तब कैसे खुद को, 

  कह दूॅं जल की रानी हूॅं।

प्रवीण राही ने कहा---

जो बंदे इधर से उधर जा रहे हैं,

 सबब मैंने पूछा तो हकला रहे हैं

करें गर्व कैसे न उन सैनिकों पे,

 तिरंगे में लिपटे जो घर जा रहे हैं

प्रशांत मिश्र ने पढ़ा-----

गम है जिंदगी तो रोते क्यों हो

 नैनो के नीर से जख्मों का दर्द कम नहीं होता

नकुल त्यागी ने कहा -----

अपनी प्रतिभा से आलोकित पगडंडी और राह बनाएं,

अंधकार को क्यों धिक्कारें अच्छा है एक राह बनाएं 

पूजा राणा ने पढ़ा- 

पल दो पल का परिचय भी क्या,

 प्रेम प्रसंग हुआ करता है!

 तुलसी दल के सेवन से भी 

 क्या व्रत भंग हुआ करता है

काव्य गोष्ठी में  रमेश गुप्ता, रवि शंकर चतुर्वेदी, चिंतामणि जी ने भी भाग लिया। रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने आभार अभिव्यक्त किया। 













:::::::::प्रस्तुति:::::::

अशोक विद्रोही 

अध्यक्ष

राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति मुरादाबाद