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गुरुवार, 12 अक्तूबर 2023

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार राजीव कुमार भृगु का बाल गीत ....चलो मेला चलें

 


मेला एक लगा है भारी,

खेल खिलौने न्यारे।

मन को रोक न पाओगे तुम 

लगते हैं सब प्यारे।


चलो खरीदें ये लाला है,

इनका पेट बड़ा है।

ये किसान है काॅंधे पर हल,

बैलों बीच खड़ा है।


ये सैनिक, बंदूक हाथ में,

सीमा पार निहारे ।


चलो चलें आगे भी घूमें,

मेला रंग बिरंगा।

वहाॅं खड़े नेता जी देखो,

थामे हाथ तिरंगा।


उनके पीछे खड़ा भिखारी,

दोनों हाथ पसारे।


चलो वहाॅं पर चलें देख लें,

भीड़ लगी है भारी।

अपने तन को बेच रही है 

बेटी एक बिचारी।


चढ़ी बाॅंस पर नाच दिखाती

भूखे तन से हारे।


सब धर्मों के कैसे कैसे ,

प्यारे ग्रन्थ सजे हैं।

अलग अलग दूकानें इनकी,

न्यारे साज बजे हैं।


भला कौन इनको पढ़कर जो,

अपना भाग्य सॅंवारे।

✍️राजीव कुमार भृगु 

सम्भल 

उत्तर प्रदेश, भारत

मंगलवार, 5 अप्रैल 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार राजीव कुमार भृगु का गीत---मेरी पीड़ा तुम क्या जानो


मेरी पीड़ा तुम क्या जानो,

कितने दर-दर में भटकी हूँ।

छोड़ा है जबसे दर तेरा,

बीच भँवर में मैं अटकी हूँ।


पाया नहीं किनारा मैंने,

जीवन में इतनी भटकन है।

पा न सकी फिर द्वार तुम्हारा,

विषयों की इतनी अटकन है।


देता कौन सहारा मुझको,

जग की आंखों में खटकी हूँ।


जब से मुझ पर यौवन आया,

जग के वैरी मुझे खींचते।

फैला जाल वासनाओं का,

मोह पाश में मुझे भींचते ।


जब से छूटा साथ तुम्हारा,

रोज़ अधर में मैं लटकी हूँ ।


तेरे घर से आकर मैंने,

ठौर नहीं जग में पाया है ।

नित्य बिकी हूँ बाजारों में,

नहीं किसी ने अपनाया है ।


स्वारथ के अंधों ने जग के,

बाँध डोर में मैं झटकी हूँ ।


अब तो एक चाह है मन की,

तेरे दर को फिर पा जाऊँ ।

इस भटकन को छोड़ जगत की,

तेरे चरणों में आ जाऊँ ।


क्या तुम मुझको अपना लोगे,

यही सोच कर मैं अटकी हूँ ।


✍️ राजीव कुमार भृगु

सम्भल, उ.प्र.,भारत