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गुरुवार, 28 जुलाई 2022

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा) की साहित्यकार रेखा रानी की लघुकथा ...हर घर तिरंगा


सावन का महीना था आसमान में चांद बेचारा बार - बार कोशिश कर रहा था कि काश मैं अपना चेहरा धरती को दिखा सकूं लेकिन ज़िद बादलों को भी थी कि चांद को किसी भी हाल में जीतने नहीं देना है यह सब बेचारी नंदिनी देख रही थी और खोज रही थी अपने चांद को जो अभी दो महीने पहले ही देश की सरहद से तिरंगे में लिपटकर घर पहुंचा था ऐसा लिपटा तिरंगे में कि बस फिर दिखाई न दिया ...........तभी स्कूल के ग्रुप पर मैसेज आया कि .........आज़ादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में इस बार सरकार द्वारा हर घर तिरंगा घर- घर तिरंगा कार्यक्रम बड़े ही हर्षोल्लास एवं वृहद स्तर पर मनाया जाना है, सुबह प्रभात फेरी निकाली जाएगी, उसके लिए....  " विजयी विश्व तिरंगा प्यारा* गीत याद कर लेना क्योंकि आपकी आवाज़ में वो जोश है जो देखते ही बनता है ।" 

हो भी क्यों न आख़िर शहीद की पत्नी जो हूं ।....यादों में आए आंसुओं को गर्व से सहेजते हुए नंदिनी सुबह के कार्यक्रम की तैयारी में जुट गई।

✍ रेखा रानी

विजय नगर गजरौला ,

जनपद अमरोहा, उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 1 जनवरी 2022

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा ) की साहित्यकार रेखा रानी की रचना --वर्ष पुराना गुजर रहा है





तारीखों के जीने से
चुपके से वो धीरे धीरे
देखो कोई उतर रहा है
उम्र की माला से 
आज़ फिर एक मोती
 टूट देखो गिर रहा है।
 कुछ अपने सपने से होकर
 कुछ बेगाने अपने होकर
 बिगड़ा पल फिर संवर रहा है।
 कुछ बिछुड़े हैं अनहोनी से
 बंधे हुए थे नेह डोरी से।
 वक्त लगा कर पंख सहसा
  चुपके चुपके गुजर रहा है।
  अरमानों के आसमान पर,
  आशाओं की फिर धूप खिली है। 
  गुजरे लम्हों पर झीना सा,
  एक परदा गिर रहा है।
  भोर सुहानी फिर से होगी
  तन मन सुन्दर और स्वस्थ हों
  न हो कोई भी अब रोगी।
  नवल वर्ष में जन जन में 
  यह विश्वास पल रहा है।
  नवल रश्मियां भानू शशि की
  आएंगी फिर से धरती पर,
  देखो बादल सा बनकर
  वर्ष पुराना गुजर रहा है।
  आओ बैठो फिर से पास
  घोलो अंतर्मन में उल्लास।
  रेखा जज्बातों का दरिया
  धीरे धीरे उमड़ रहा है।*
  
 ✍️ रेखा रानी
विजय नगर गजरौला ,
जनपद अमरोहा उत्तर प्रदेश

शुक्रवार, 19 नवंबर 2021

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा ) की साहित्यकार रेखा रानी की लघुकथा --- चुनाव


      रामकली को साड़ी दिखाकर खुश होते हुए  भरतो बोली  अम्मा हमें तो न मालूम कि कौन कौन खड़े हैं  मुखिया बनने को, बस हम तो अपना वोट इन साड़ी बांटने वाले को ही देंगे। रामकली भी साथ साथ दोहराने लगी- हां बहू , हमें और क्या चाहिए बेचारा साल भर से सब त्योहारों पर नए नए सामान बंटवा जो रहा है ।कनु यह सब सुन रही थी  बोली" स्कूल में तो मैम ने समझाया था कि हमें लालच में आकर वोट नहीं देना है सही नेता का चुनाव करें  कनु ने लाख प्रयास किया अपनी मां और दादी मां को समझाने का पर उसकी दोनों में से किसी ने न सुनी।

चुनाव हुए - साड़ी वाला उम्मीदवार जीत गया बेचारा पढ़ा लिखा और ईमानदार उम्मीदवार  राम किशोर हार गया।

शपथ के अगले दिन ही  मुनादी हुई कि गांव में  आदर्श तालाब बनेगा, जिस पर सब लोग घूमने फ़ोटो खिंचवाने जाया करेंगे और गांव का नाम होगा। गांव के सभी लोगों ने पूरे उत्साह से श्रम दान किया । उसके कुछ दिनों बाद पता चला कि  वहां मुखिया जी ने स्वीमिंग पूल बनवा लिया है और उसी के पास अपनी कोठी बनवा ली  अब वह उनकी अपनी  प्रॉपर्टी है न कि  गांव की ।हद तो तब हो गई जब भरतो चीखती रही और.... रामकली को दरोगा  जी पकड़ कर ले गए, कि यह झोपड़ी अवैध रूप से बनी हुई है। इस जगह पर तो ....मुखिया जी  मन्दिर बनवाना चाहते हैं। अब रह - रह कर भरतो को कनु की बातें याद आ रही थीं लेकिन........

अब पछताए क्या होत  है जब चिड़िया चुग गई  खेत

कनु बाहर से आकर बोली "मां! रामकिशोर काका दादी को छुड़ा लाए हैं और वो इस सब के लिए 

मुखिया जी के खिलाफ़ लड़ाई भी लड़ेंगे।"


✍️ रेखा रानी 

विजय नगर, गजरौला 

जनपद अमरोहा ,उत्तर प्रदेश।


बुधवार, 15 सितंबर 2021

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा )की साहित्यकार रेखा रानी की रचना ----हिन्दी अपनी प्यारी भाषा , बच्चों सब अपनाओ रे


हिन्दी अपनी प्यारी भाषा , बच्चों सब अपनाओ रे ।

     मां की लोरी सी यह भाषा,सपनों में खो जाओ रे। 

    भारत मां के भाल पे बिंदी,हिन्दी से ही सजाओ रे।

    परियों वाली एक कहानी, इस भाषा में सुनाओ रे।

    पेंग बढ़ाओ झूला झूलो,मिल सब सावन गाओ रे।

    वही पुरानी चरखे वाली, पुस्तक मुझे दिलाओ रे।

    वेदों वाली अपनी हिन्दी, बच्चों सब अपनाओ रे।

    छोटी बहन है संस्कृत की,हिन्दी यह समझाओ रे।

   जग में मान बढ़े हिन्दी का, कुछ ऐसा कर जाओ रे।

   घर फैले रत्न हिन्दी का, मिलकर जुगत लगाओ रे।

    भावों की स्नेहिल नदिया, हिन्दी है बतलाओ रे।

   रेखा भारत की संस्कृति, राष्ट्र भाषा अपनाओ रे।    

  अपनी भाषा,अपना गौरव,परचम तुम लहराओ रे।

चहुँ ओर हो हिन्दी फैली, ज्ञान पुंज बिखराओ रे।

✍️ रेखा रानी

विजय नगर गजरौला,

जनपद अमरोहा,

उत्तर प्रदेश, भारत।


शुक्रवार, 3 सितंबर 2021

मुरादाबाद मंडल के गजरौला ( जनपद अमरोहा ) की साहित्यकार रेखा रानी की लघुकथा ---वट वृक्ष


मिंटो काफ़ी देर से दोहरा रही थी कि आज़ के ज़माने में आंगन लगभग समाप्त ही हो गए हैं और जब आंगन ही नहीं होंगे तो कहां लगाओगे वट वृक्ष और जब वट वृक्ष नहीं होंगे तो कहां से पाओगे छांव

मां खीझते हुए बोलीं कि क्या रट्टा लगा रखा है इतनी देर से"

मिंटो बोली "मां आज़ हमारी मैम कक्षा में हमारी संस्कृति को समझाते हुए यह बोल रही थीं तब से मेरे मन में एक अजीब सी हलचल पैदा हो गई है....

मैम के कहने का आशय क्या था।

मां बोलीं - मैं समझ गई तुम्हारी मैम के कहने का आशय पापा से कहो गाड़ी निकालें और गांव चलें और इस बार तुम्हारे दादा जी को साथ ही ले आएंगे... आगे से अब वो हमारे साथ ही रहेंगे हमारे पास क्योंकि वो ही हैं हमारे वट वृक्ष हमें चाहिए उनकी छांव.

मिंटो मां की बात सुनकर खुशी से उछल पड़ी।

✍️ रेखा रानी, विजय नगर गजरौला , जनपद अमरोहा, उत्तर प्रदेश,भारत

गुरुवार, 26 अगस्त 2021

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा) की साहित्यकार रेखा रानी की लघुकथा ---अदना


 मैले कुचैले चिथड़ों में लिपटा हुआ.... एक नन्हा सा लड़का उम्र यही कोई दस या ग्यारह वर्ष रही होगी..... डेली आ जाता था दरवाज़े पर......  मैं भी दया और सहानुभूति भाव से उसे रोजाना दस या पांच रुपए दे देती थी । जब मैं उसे कुछ भी देती तो वह काफ़ी देर तक ऊपर को घूरता सा रहता था..... मुझे बहुत ही अजीब लगता था, आख़िर मैंने पूछ ही लिया कि "मैं रोज़ाना तुम्हें कुछ तो देती ही हूं और फिर भी तुम चुपचाप ऊपर की ओर ताकते रहते हो"। 

     वह मुस्कुराया.... और बोला--  मांजी, मैं ऊपर वाले से कहता हूं कि जिसने मुझे दिया है तू! उसे और दे... ।यह सुनकर..... मैं सोचती रही कि वह कहां 'अदना' है....., जो अपने लिए कुछ भी नहीं मांगता हमारे लिए मांगता है।


✍️ रेखा रानी, विजय नगर, गजरौला, जनपद अमरोहा, उत्तर प्रदेश,भारत।

मंगलवार, 27 जुलाई 2021

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा) की साहित्यकार रेखा रानी की लघुकथा -----गुरु दक्षिणा


विद्यालय से वापस लौटते  हुए सीमा की स्कूटी अज्ञात वाहन की चपेट में आ गई और टक्कर लगने से स्कूटी सहित सड़क किनारे गहरी खाई में जा गिरी । सीमा गंभीर रूप से घायल अचेत अवस्था में पड़ी थी...…। 

      श्याम अपनी कार से ऑफिस से वापस लौट रहा था, उसने देखा कि ....सड़क के किनारे बहुत सारे लोग एकत्र हैं ।   उसने तुरंत गाड़ी रोक कर साइड में ली। उतर कर देखा तो उसके होश उड़ गए ...."अरे ये तो सीमा मैम हैं "... पास जाकर हिला डुला कर देखा स्थिति गंभीर थी। श्याम ने आनन - फानन में गाड़ी में सीट पर लिटाकर तेज़ी से हॉस्पिटल लेकर चल दिया रास्ते से ही हॉस्पिटल में संपर्क किया ....इमर्जेंसी में भर्ती कराया।               डॉक्टर ने चेक अप के पश्चात कहा कि  "सिर और नाक में चोट होने के कारण इनका ब्लड ज्यादा बह गया है ,तुरंत ही ऑपरेशन करना होगा और ब्लड भी चाहिए"। श्याम की आंखों से अश्रु धार बह रही थी ..  

ख़ुद को संभालते हुए बोला," डॉक्टर जितना ब्लड चाहिए मेरा ले  लीजिए और रुपए पैसे की चिंता मत कीजिए प्लीज़ मेरी मैम को बचा लीजिए......। " ऑपरेशन के पश्चात   सीमा को ओ.टी.से रूम में शिफ्ट किया गया... जब होश में आई तब श्याम ने माथे पर हाथ फेरते हुए कहा कि ..."मैम अब कैसी हैं "? सीमा मुस्कुराई और बोली "आख़िर , तुमने दे ही दी मुझे गुरु दक्षिणा .....श्याम शांत हो कर मुस्कराते हुए शून्य में निहारने लगा......।

✍️ रेखा रानी, विजय नगर गजरौला, जनपद अमरोहा, उत्तर प्रदेश

गुरुवार, 15 जुलाई 2021

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा) निवासी साहित्यकार रेखा रानी की लघुकथा ---- "जन्मदिन "

   


आज दिन भर नितिन उदास रहा। मम्मी के बार बार कहने पर भी उसने केक काटने से मना कर दिया छोटा भाई सचिन भी उससे कहते हुए ख़ुद को नहीं संभाल पा रहा था। पिछले वर्ष पापा ने सब कुछ कितने अच्छे से किया था।... प्लीज पापा आ जाओ..... कहते हुए फूट फूटकर रोने लगे दोनों भाई ,अब तो घर भर में करुण स्वर पसर गया था। ....प्लीज़ पापा आप एक बार तो आ जाओ। .....देखो आप नहीं आओगे तो मैं न तो केक काटूंगा और न ही खाना खाऊंगा।...... पता नहीं सुबकते सुबकते दोनों भाई एक दूसरे से लिपट कर जाने कब सो गए। .....मां की भी सुबकियाँ रुकने का नाम नहीं ले रही थीं। तभी एक आवाज़ सुनाई दी "अरे नितिन ! उठ चल, केक काट.... आवाज़ सुनते ही.... नितिन उठा देखा पापा पुलिस की वर्दी में मुस्कुरा रहे थे और उसका सिर सहला रहे थे। 

    नितिन उठा .......मोमबत्तियां जलाकर टेबल पर रखे हुए केक पर सजाकर फूंक मारकर केक काटते हुए बोला... "पापा अब मत जाना ।"

    मां आंसुओं को पोंछती हुई मुस्कुरा कर अपने लाल को लंबी उम्र की दुआएं देती रही।....

  सचिन यह सब देखकर हतप्रभ सा हो गया..... कि क्या पापा सितारों की दुनिया से वापस लौट आए हैं या सिर्फ़ एक सपना था या केवल अहसास था अपनों का ....

   ✍️  रेखा रानी, विजय नगर गजरौला, जनपद अमरोहा ,उत्तर प्रदेश।

रविवार, 20 जून 2021

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा ) की साहित्यकार रेखा रानी की कविता ----एक पिता ही जनाब


 बाज़ार से लाता है, 

 ख़रीद कर खुशियां।

 कमाकर लाता है 

 चंद ख्वाब,

 एक पिता ही जनाब।

चुन चुन कंटीले वन से

मधुर फ़ल।

जीवन के भीषण रण से,

स्वर्णिम कल,

छुपाकर लाता है,

चंद ख्वाब

एक पिता ही जनाब

 एक एक लम्हा संजोता है,

 तब कहीं जाकर,

 अपने आंगन में फसल

 खुशियों की बोता है।

 लहलहाते हैं

 तब कहीं जाकर,

 चंद ख्वाब,

 एक पिता ही जनाब।

 स्वेद से सिंचित कर,

 सुर्ख़ खूं से रंग भर,

 खूबसूरत गुलों को

 तब कहीं जाकर,

 महकाता, संजोता है

 चंद ख्वाब,

 एक पिता ही जनाब।

 ख़ुद बैठकर फर्श पर

 बैठाता है अर्श पर,

फलक तक ले जाता है

चंद ख्वाब

एक पिता ही जनाब।

✍️ रेखा रानी, विजयनगर गजरौला, जनपद अमरोहा, उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 19 जून 2021

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा) की साहित्यकार रेखा रानी की लघुकथा ---कौन पात्र कौन अपात्र


"अरे बीबी जी!..... दरवज्जा खोलियो, विपदा की मारी हूं। वो भी गुजर गए और पीछे से पांच बच्चे छोड़ गए... अब कैसे गुजारा करूं इनका ऊपर से यो कोरोना न्यारा आ गया।" बोलती ही जा रही थी भिखारिन ..... तब तक दरवाजा खोला भी नहीं था।  दरवाज़ा खोल कर....  उसकी दीन हीन सी दशा देखकर दया और सहानुभूति भाव से स्नेहा बोली" खाना खाया या नहीं," ना बीबी जी ..... हम गरीबों को कहां खाना नसीब होवे है। चल मैं खिलाऊं..…. पूड़ी और कटहल की सब्जी बनाई है । "रैन दो बीबी जी,....  बस तम मझे  सो पांसो रपए देदो  जिसते मैं अपनी गुड्डी के हाथ पीले कर दूं। "  ...............बेचारी स्नेहा द्रवित हो उठी, फटाफट पूड़ी सब्जी और कपड़े  दो सौ इक्यावन रूपए लेकर आई और बोली ..."देखो ये रख लो.....

" लाओ बीबी जी तम्हारे बच्चे जीते रहवें,  कमाऊ बना रह।"

     "बीबी पैसे थोड़े से नहीं लगरे इस ते नाक का टोरा भी नहीं मिलै"।   हां.... यह तो है स्नेहा बोली "लो मेरी नाक का पुराना हो गया है ,इसे ही लेलो मैं दूसरा पहन लूंगी।"

     आशीर्वाद का स्वर और तेज हो उठा था, जाते -जाते..... दरवाजा बंद करके वापस लौट कर फ़िर किचिन की ओर बढ़ी ही थी ,.......….

तभी फिर दरवाज़ाखटखटाया  ....खोला तो देखा एक  बहुत ही बीमार सा भिखारी  ..... दरवाजा खोलते ही कहने लगा.... "बहुत ही बीमार हूं दवाई को पैसे नहीं हैं। घर में मां भी बीमार है उसकी किडनी फेल हो गई हैं। बहन जी..... मदद कर दो"  ......अब तो स्नेहा अंदर से बहुत ही परेशान हो गई ....*दुनिया में कितने लोग बेचारे बडी ही दयनीय स्थिति से गुजर रहे हैं*।

 अभी आई .....सोचने लगी.... शाम को मन्दिर भी तो जाती गरीबों को दान करने सो यहीं कर दूं।...... उसने पांच सौ रुपए  और थोड़ा खाना देते हुए कहा कि "भूख लगी है खाना भी खा लो।" नोट देखकर बोला," बहनजी इससे तो फीस भी नहीं भरी जाएगी ,उस डाक्टर की जो अम्मा का इलाज करेगा।"

  "   हां,... यह तो है लो पांच सौ और रख लो।".... स्नेहा बोली। दुआ देता हुआ भिखारी दूसरे घर की ओर बढ़ गया।

     स्नेहा बालकनी में खड़ी होकर  धुले कपड़े उतारने लगी अचानक से उसने देखा मोड़ पर ही भिखारिन और वही भिखारी अपना सामान एक जगह मिला रहे थे।

 अब तो स्नेहा को समझने में देर न लगी कि कैसे ....दोनों कोरोना और गरीबी का फायदा उठा रहे थे साथ ही,.... स्नेहा की दरिया दिली का भी।.....


     ....… अब तो स्नेहा  मन ही मन पात्र अपात्र का चयन करने में उलझी थी ।

रेखा रानी, विजयनगर गजरौला, जनपद अमरोहा

 उत्तर प्रदेश।

शुक्रवार, 4 जून 2021

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा ) निवासी साहित्यकार रेखा रानी की लघुकथा ----ऑन लाइन पढ़ाई


शीला  बड़बड़ाए जा रही थी कि "इस जमाने में तीन - तीन बच्चों को पालना ही कितना मुश्किल  और ऊपर से पढ़ाई भी सरकार फ़ोन पर ही करवाएगी । कहां से लाऊं इतना पैसा ..... सोनू के पापा  होते तो अपने आप जो भी करते मुझे परेशान न होने देते । सरकार के करिंदे बार बार कहे जा रहे हैं कि हाथ सैनेटाइज करो ,साबुन से हाथ धोओ एक टिक्की भी दस से कम की नहीं मिलती है..... सरकार भी....।" मम्मी! मैम कह रही थी, कि मां से कहो टच वाला फ़ोन लो बिना लिए काम नहीं चलेगा। तभी पिंकी ने कहा मां मुझे भी चाहिए, उधर से चिंकू बोला ....." मेरा काम भी नहीं चल पा रहा है बिना फोन "..... अब तो शीला ने अपना माथा ही पीट लिया और चिल्लाने लगी "एक काम करो..... मुझे बेच दो किसी को और ले लो तुम तीनों टच के मोबाइल ....हां ! तुम्हारा बाप तो बडी जायदाद छोड़ कर गया है ना ....जो उसकी कमाई से तुम्हें मोबाइल से पढ़वा लूं " कहते - कहते आपा खो गई शीला.... तभी अचानक नीचे गिर पड़ी बेहोश होकर ,ऐसी गिरी कि फ़िर कभी न उठी। तीनों बच्चे उससे चिपट कर रो रहे

✍️ रेखा रानी,  विजयनगर, गजरौला, जनपद -अमरोहा उत्तर प्रदेश।

गुरुवार, 6 मई 2021

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा ) की साहित्यकार रेखा रानी की लघुकथा ---हवा

 


चीं- चीं करती हुई चिड़िया  अपनी चोंच में दाना लिए अपने बच्चों को खिलाते हुए बड़ी बेचैनी महसूस कर रही है। अपने भावों को व्यक्त करते हुए  चिड़े से बोली- देखो जी, मैं अभी जब दाना लेकर आ रही थी, तभी मैंने लोगों को बात करते हुए सुना कि इन लोगों में महामारी फैली हुई है ...विज्ञान भी फेल हो गया है और यह भी कह रहे हैं कि सांसें घुट रही हैं, हवा की कमी से , लोग मारे मारे घूम रहे हैं  ।"   हवा को सिलेंडर में भर कर बेच रहे हैं पर हवा इतनी आसानी से मिल भी नहीं रही है।

     ......इन लोगों ने विकास के लिए पेड़ों को काटा,  तब नहीं सोचा शायद तब तो केवल ये सोचते थे कि बस हमारे घर ही उजड़ेंगे , इन पर  तो पैसे हैं ...पैसों से सब कुछ खरीद सकते हैं ,".....   चिड़ा लगभग चिढ़ कर बोला।

चिड़िया बोली-  आप भी न, बिल्कुल मनुष्य जैसे हो गए हो, मेरा तो दिल बैठा जा रहा है क्या करूं ? " एक काम कर लोगों को समझा कर देख शायद तेरी बात मान लें। इनसे कह दे ...." अपने घरों में पांच ऑक्सीजन लेवल बढ़ाने वाले और कम से कम दस पौधे जरूर लगाएं और अब खरीद लें हवा मुंह मांगे दामों में "

हां बात तो लाख टके की कही है जी आपने,, बच्चों को खाना देकर हम दोनों ही शुरुआत करें ।

  चिड़िया दंपत्ति बडे़ उत्साह से अपने पड़ौस के घरों में नन्हें नन्हें पौधे चोंच में भर कर लाने लगे। जब  लोगों ने इन्हें देखा तो समझ गए, कि क्या संदेश देना चाहते हैं ये पंछी अपनी जुबां में ।.......

 ✍️ रेखा रानी ,  विजयनगर , गजरौला , जनपद अमरोहा।

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा) की साहित्यकार रेखा रानी की लघुकथा ---सफल चुनाव


   "साहब! मेरी कोरोना जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। मेरी ड्यूटी काट दीजिए प्लीज़..... सर! मेरी तबीयत ज्यादा खराब है। मैं ड्यूटी नहीं कर पाऊंगा । एक मतदान अधिकारी गिड़गिड़ाते हुए... लगभग रोते हुए बोला ।"

   चले आते हैं बहाना बनाकर ....यदि सब तुम्हारी तरह निकम्मे हो गए तो चुनाव कौन कराएगा?  एफआईआर दर्ज कर दी जाएगी आपकी...... फटकार लगाते हुए.... चुनाव अधिकारी चिल्लाए।.….

    बेचारा लड़खड़ाए कदमों से.. चुनाव सामग्री प्राप्त कर पार्टी के साथ बस की ओर  चल दिया। पार्टी के सभी कार्मिक सहमे हुए से... एक बस में पांच पोलिंग पार्टियां ।  दो गज दूरी मास्क ज़रूरी का उपहास उड़ाते हुए अपने पोलिंग बूथ पर पहुंच रही थीं।

     पूरी रात तपे बदन से कार्य करता रहा,  पूरी पार्टी भी कोरोना भूल उसके साथ लगी रही। सुबह हुई.... मतदान हुआ,  शाम को पेटियां सील करते करते लगभग लड़खड़ाने लगा था, बेचारा.. ..।

     सेक्टर मजिस्ट्रेट के द्वारा सफ़ल मतदान संपन्न होने की घोषणा। इधर मतदान अधिकारी की सांसें भी शून्य में विलीन हो.... लोकतन्त्र की खोखली नीतियों का तमाशा देख रही थीं।

✍️ रेखा रानी, विजयनगर गजरौला, जनपद अमरोहा।

     

रविवार, 28 मार्च 2021

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा ) की साहित्यकार रेखा रानी की रचना ----बरसाने की ओ री गुजरिया , हमको रंग लगिइयो आय


 बरसाने की ओ री गुजरिया , 

हमको रंग लगिइयो आय।

ओ कान्हा सुनो बात हमारी , 

धौंस काहू की सहती नाय।

जो चाहो  हमरे रंग रंगना,

 मोरे पिता से कहियो आय।

इत उत काहे तकते डोलो,

हाथ मांग लियो सीधे आय।

फ़िर भीजैगो तन - मन मेरौ,

 श्यामल रंग राधा रंग जाय।

रेखा लेकर प्रेमी पिचकारी,

अमर प्रीत की रीत निभाय।

✍️ रेखा रानी, गजरौला ,अमरोहा