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मंगलवार, 16 जनवरी 2024

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार का गीत .... कर रहे हम सब स्वागत गान , हमारे राम पधारे। क्लिक कीजिए⬇️⬇️⬇️⬇️



 हाथ में लेकर तीर-कमान, हमारे राम पधारे।

कर रहे हम उनके गुणगान, हमारे राम पधारे।।


हो भव्य सजावट अयोध्या धाम, फूल दीपक माला से,

मनोहर बाल रूप धर राम, देखें सुन्दर लाला से,

कर रहे हम सबका स्वागत गान, हमारे राम पधारे।।


दुष्ट रावण का कर संहार, बध कुंभकरण का,

और सब राक्षसों को मारा, दंड दिया गया सिया हरण का।

बड़े-बड़े बलवान, हमारे राम पधारे।।


साथ में हैं सुग्रीव कपीश, माता सीता को लेकर,

विभीषण भी लंकापति हैं, और लछमन जी आये हैं।

 साथ लेकर अंगद, हनुमान्, हमारे राम पधारे।।


ओंकार सिंह 'ओंकार'

1-बी-241 बुद्धि विहार, मझोला,

उत्तर प्रदेश (उत्तर प्रदेश) 244103

शनिवार, 30 सितंबर 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार की ग़ज़ल ..... अब भी कुछ लोग तो हैं हमको लड़ाने वाले


किस तरह घर को बनाते हैं बनाने वाले।

क्या समझ पायेंगे ये आग लगाने वाले।।


वे समझते ही नहीं हैं किसी कमज़ोर का दुख,

हैं  ग़रीबों    को  कई  लोग   सताने  वाले।।


काम करने का तो करते हैं दिखावा केवल,

लोकसेवा  का  बड़ा  ढोल बजाने  वाले।।


जाति और धर्म की चालों में फंसाते हैं हमें,

अब भी कुछ लोग तो हैं हमको लड़ाने वाले।।


अपने दुर्गुण भी कभी ध्यान लगा कर देखें,

दूसरों  के  ही  सदा  दोष   गिनाने  वाले।।


देश के मान को अपने से तो ऊंचा जानें,

देश की धुंधली-सी तस्वीर दिखाने वाले।।


 दिल का जो दर्द समाया है मेरी ग़ज़लों में,

कब समझ पायेंगे अनजान ज़माने वाले।।


हौसला रोज़  वे  'ओंकार' बढ़ा देते हैं, 

मेरे भावों को  सदा  मान दिलाने वाले।।


✍️ ओंकार सिंह 'ओंकार'

1-बी/241 बुद्धि विहार, मझोला, 

मुरादाबाद 244103

 उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 2 सितंबर 2023

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर के साहित्यकार स्मृतिशेष दुष्यन्त कुमार की ग़ज़लों पर ओंकार सिंह ओंकार का विस्तृत आलेख ---



 समाज की ज़मीनी सच्चाइयों को स्पष्टता से बयान करने वाले शायर/कवि दुष्यंत कुमार ने कहा था कि मैं उर्दू नहीं जानता परन्तु मैं शह्र और शहर के वज़्न और वजन के फ़र्क़ से वाक़िफ था। परंतु मैं उस भाषा में लिखना चाहता था जिस भाषा में मैं बोलता था । इसलिए मैंने जानबूझकर शहर की जगह नगर नहीं लिखा। 

        वे कहते थे," उर्दू और हिन्दी जब अपने अपने सिंहासन से उतर कर आम आदमी के पास आती है तो दोनों भाषाओं में अन्तर करना मुश्किल हो जाता है। मेरी नियत और कोशिश यही रही है कि मैं इन दोनों भाषाओं को ज़्यादा से ज़्यादा क़रीब ला सकूं। इस लिए ये ग़ज़लें उसी भाषा में कही गई हैं जिसे मैं बोलता हूं।" वे अपने एक शेर में कहते हैं कि-

मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूं।

वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूं।।

   हिन्दी के बहुत से पुराने कवियों ने ग़ज़लें कही हैं। जिनमें निराला जैसी हस्तियां शामिल हैं। लेकिन कवि दुष्यंत ने परंपरागत ग़ज़ल की धारा को मोड़कर जनसंघर्ष की धारा में परिवर्तित कर दिया तथा समय की आवश्यकता के अनुसार उसे नवीनता प्रदान कर दी। राजनीतिज्ञों ने आज़ादी के समय जो जनता से वादे किए थे, दुष्यंत ने राजनीतिज्ञों की कथनी और करनी के अंतर को बड़े व्यंगात्मक और चुटीले अंदाज़ में बयान किया है। उन्होंने कहा-

कहां तो तय था चिराग़ां हर एक घर के लिए।

कहां चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए।।

न हो कमीज़ तो पांवों से पेट ढंक लेंगे,

ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए।।

आदमी की परेशानियों, ग़रीबी, भुखमरी, बेरोजगारी तथा अन्य सामाजिक सरोकारों का उल्लेख करने वाले बहुत से शेर दुष्यंत कुमार ने अपनी ग़ज़लों में दिये हैं जिनमें से से दो शेर पाठकों की सुगमता के लिए प्रस्तुत हैं-

ये सारा जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा।

मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा।।

कई फ़ाक़े बिताकर मर गया जो उसके बारे में,

वो सब कहते हैं अब ऐसा नहीं ऐसा हुआ होगा।।

प्रसिद्ध कवि दुष्यंत कुमार ने ग़रीबों और ज़रूरत मंदों को सरकार से दी जाने वाली आर्थिक सहायता या अन्य सहयोग उन तक पहुंचने से पहले  ही समाप्त हो जाती है।इसी का बहुत सुन्दर चित्र अपने एक बहुत सुन्दर शेर में कवि दुष्यंत ने दिया है । उस समय के सरकारी योजनाओं में हो रहे भ्रष्टाचार को व्यक्त करने का इतना अच्छा व्यंग्य शायद ही किसी अन्य कवि / शायर की रचनाओं में मिल पाए।

यहां तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियां,

हमें मालूम है पानी कहां ठहरा हुआ होगा ।।

इसी प्रकार कवि दुष्यंत कुमार के बहुत से शेर याद करने और समय समय-समय पर उदाहरण के तौर पर उल्लेख करने लायक़ हैं। जिनमें से कुछ शेर प्रस्तुत हैं :-

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए।

इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।।

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,

मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,

हो कहीं भी आग तो फिर आग जलनी चाहिए।।

 दुष्यंत कुमार जनकवि थे ।वे ग़रीबों और कमज़ोरों की तकलीफ़ों को सत्ता के शीर्ष पदाधिकारियों तक पहुंचाना चाहते थे तथा जनता को भी अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए एकजुट होकर संघर्ष करने के लिए प्रेरित करते थे। संघर्ष का एक प्रतिरोधी स्वर उनकी शायरी /कविताओं में मिलता है। यही स्वर उनकी शायरी को दीर्घायु बनाता है तथा  उन्हें अन्य कवियों से श्रेष्ठता प्रदान करता है। उनकी शायरी सहज और सरल भाषा में है जिसे आम आदमी समझ सकता है। उनका प्रसिद्ध ग़ज़ल संग्रह "साये में धूप" बार बार पढ़ने योग्य है। उनकी शायरी को जनता लम्बे समय तक याद रखेगी। 


✍️ओंकार सिंह 'ओंकार' 

1-बी/241 बुद्धि विहार, मझोला,

मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) 244103

शुक्रवार, 25 अगस्त 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार के तीन मुक्तक ....



"पहुंच गए हम चांद पर", भेज रहे संदेश।

कितना ऊंचा उठ गया, आज हमारा देश।।

उन्नति का इससे जुड़ा,  एक नया अध्याय,

भारत अब संचार का, बना बड़ा  परिवेश।।1।।


घटीं चांद से दूरियां, बढ़ा देश का मान।

दक्षिण ध्रुव पर चांद के, पहुंचा अपना यान।।

लहर तिरंगा ने किया, चंद्र विजय का घोष,

सारा जग करने लगा, भारत का जय गान।।2।।

 

विद्वानों ने  देश  के,    करके  अद्भुत  काम।

दुनिया में रौशन किया, आज देश का नाम।।

वर्षों  करके  साधना,  जीत  लिया  है  चांद,

'इसरो' है 'ओंकार' अब, अपना तीरथ धाम।।3।।


✍️ ओंकार सिंह 'ओंकार'

1-बी/241 बुद्धि विहार, मझोला,

मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) 244103

शनिवार, 19 अगस्त 2023

मुरादाबाद की संस्था कला भारती की ओर से 19 अगस्त 2023 को आयोजित कार्यक्रम में ओंकार सिंह 'ओंकार' को कलाश्री सम्मान

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था कला भारती की ओर से शनिवार 19 अगस्त 2023 को आयोजित कार्यक्रम में महानगर के वरिष्ठ रचनाकार ओंकार सिंह ओंकार को कलाश्री सम्मान से सम्मानित किया गया।‌ इस सम्मान-समारोह एवं काव्य-गोष्ठी का आयोजन आकांक्षा विद्यापीठ इण्टर कॉलेज, मिलन विहार में हुआ। दुष्यंत बाबा द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता योगेन्द्र पाल विश्नोई ने की। मुख्य अतिथि हरि प्रकाश शर्मा एवं विशिष्ट अतिथियों के रुप में रामदत्त द्विवेदी एवं डॉ. मनोज रस्तोगी मंचासीन हुए जबकि कार्यक्रम का संयुक्त संचालन राजीव प्रखर एवं आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ द्वारा किया गया।         सम्मान स्वरूप श्री ओंकार जी को अंग-वस्त्र, मान-पत्र, स्मृति-चिह्न एवं श्रीफल अर्पित किए गए। सम्मानित रचनाकार श्री ओंकार जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित आलेख का वाचन राजीव प्रखर एवं अर्पित मान-पत्र का वाचन दुष्यंत बाबा ने किया। 

कार्यक्रम के अगले चरण में एक काव्य-गोष्ठी का भी आयोजन किया गया जिसमें काव्य-पाठ करते हुए श्री ओंकार जी ने कहा - 

वर्षा भरती इस तरह, हर मन में आनंद। 

बौछारों की धुन लगे, जैसे कोई छंद।। 

वर्षा से हरिया गए, सब पेड़ों के पात। 

रसमय हर जीवन हुआ, अद्भुत है बरसात।। 

दुष्यंत बाबा ने कहा - 

हरे  रंग  की   चूड़ियां, और महावर लाल। 

प्रीतम आते देखकर, केश गिरातीं गाल।।

 योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कहा - 

चलो मिटाने के लिए, अवसादों के सत्र। 

फिर से मिलजुल कर पढ़ें, मुस्कानों के पत्र।।

 अपनेपन का जब हुआ, रिश्तों में फैलाव।

 "गूँगे का गुड़" बन गए, मन के अनगिन भाव।। 

नकुल त्यागी ने कहा - 

आज अभी मेरा भैया आया, 

मेरा वह सिन्धारा लाया 

राजीव प्रखर ने कहा - 

चल रस्सी को ढालकर, हम झूले में आज। 

रख दें सिर पर तीज के, फिर सुन्दर सा ताज।।

 होठों पर सुर-ताल हों, झूलों में उल्लास। 

मेघा ला दे ढूंढ कर, ऐसा सावन मास।।

 योगेन्द्र पाल विश्नोई का कहना था - 

यार क्या पायेगा जो डरा ज्वार से। 

और डूबा नहीं हो जो हो मझधार में। 

डॉ. मनोज रस्तोगी ने कहा -

 नहीं गूंजते हैं घरों में 

अब सावन के गीत।

 खत्म हो गई है अब, 

झूलों पर पेंग बढ़ाने की रीत। 

रामदत्त द्विवेदी ने कहा - 

बारातें जिस पथ से गुजरीं, 

शव भी उससे गुजरे हैं। 

हरि प्रकाश शर्मा ने व्यंग्य से अपनी वेदना व्यक्त की - 

इन भिनभिनाते ज़ख्मों पर 

यह नमकीन धाराएं, 

तड़पा तड़पा कर 

मुझे सहला रही हैं। 

इनके अतिरिक्त कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार राजीव सक्सेना एवं बाबा संजीव आकांक्षी ने भी वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य पर अपने विचार रखे। आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा।








































रविवार, 23 अप्रैल 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह 'ओंकार' का गीत..... मन- मोहक सुख देने वाली, होती धरती की हरियाली।


मन- मोहक सुख देने वाली, होती धरती की हरियाली।

जो दुनिया के हर प्राणी के, जीवन की करती रखवाली। ।


ये हरी क्यारियां, घास हरी, इठलाती- बलखाती ऐसे,

मदमस्त हवा के झोंकों से, लहराता हो आँचल जैसे,

खुशबू से तर करती सबको, भर-भर देती मधु की प्याली। 


जब पेड़ो पर बैठे पंछी ,मीठी लय में सब गाते हैं,

तो फूलों से लिपटे भौंरे , उनसे सुर-ताल मिलाते हैं,

यह दृश्य देखकर आंखें भी, होती जाती हैं मतवाली।।


मीठे फल लगते पेड़ों पर, जो भूख मिटाते जन-जन की,

रोगों को दूर भगाते हैं, हरते पीड़ाएँ तन-मन की,

सेवा में तत्पर रहते हैं ,  पत्ते- पत्ते, डाली-डाली।।


हरियाली कारण वर्षा का ,जलवायु विशुध्द बनाती है , 

हर जीव-जंतु को धरती के , माता बनकर सहलाती है ,

सिंचित करती रस से जीवन , बनकर माली यह हरियाली।।


हितकामी जन इस जगती के, सब मिलकर चिंतन-मनन करें, 

हरियाली नष्ट न हो पाए , हम ऐसा कोई जतन करें ,

'ओंकार' तभी इस दुनिया में , सब ओर बढ़ेगी खुशहाली।।


✍️ओंकार सिंह 'ओंकार' 

1-बी-241 बुद्धि विहार, मझोला,

दिल्ली रोड, मुरादाबाद-  244103

 उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 24 दिसंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह 'ओंकार' की गजल ......भ्रष्ट आचरण से लोग जो दौलत कमा रहे, भुगतेंगे वे ज़रूर ही अंजाम देखिए .....


जिसने समाज का न किया काम देखिए।

सेवा का वो ही पा रहा इनआम देखिए ।।


मेहनतकशों के हाथ लगीं रूखी रोटियां,

पर कामचोर खाते हैं बादाम देखिए ।।


भ्रष्ट आचरण से लोग जो दौलत कमा रहे,

भुगतेंगे वे ज़रूर ही अंजाम देखिए ।।


ठहरी हुई पगार है, ये सोचिए मगर,

चीजों के चढ़ गए हैं बहुत दाम देखिए।।


माना अकेले आप बहुत दिन चले मगर ,

चलकर हमारे साथ भी दो गाम देखिए।।


साक़ी ने मय पिलाई हर-इक रिंद को मगर, 

मुझको न फिर भी उसने दिया जाम देखिए।।


'ओंकार' भाग-दौड़ में गुज़री है ज़िन्दगी ,

क्या मिल सकेगा मुझको भी आराम देखिए ।।


✍️ ओंकार सिंह 'ओंकार' 

1- बी-241 बुद्धि विहार, मझोला,

 मुरादाबाद 244103

उत्तर प्रदेश, भारत

बुधवार, 5 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह 'ओंकार' के पांच दोहे


सेवक बनकर राम का, किया राज का काज।

भाई हो तो भरत सा, कहता सभी समाज ।।

भाई हो तो भरत-सा, जिसका निश्छल प्यार ।

कुश आसन पर बैठकर, करता था दरबार ।।

जनसेवा करता रहा, सरयू तट के पास ।

भाई हो तो भरत-सा, तजा महल का वास।।

राज-काज करता रहा,धारण कर सन्यास।

भाई हो तो भरत-सा, त्यागे भोग-विलास।।

राजा होकर भी सदा, भोगा था वनवास ।

भाई हो तो भरत-सा, बना राम का दास ।।


✍️ ओंकार सिंह ओंकार 

1-बी-241बुद्धिविहार, मझोला,

मुरादाबाद 244103

उत्तर प्रदेश, भारत

बुधवार, 21 सितंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार की बाल कविता ...कबूतर.


चार कबूतर उड़-उड़कर

पहुंचे एक सरोवर पर

तिनके लाए चुन-चुनकर 

और बनाया अपना घर


देख-देखकर ख़ुश होते 

बना एक सुन्दर-सा घर

उसमें वे अंडे रखते 

जिन्हें प्यार से वे सेते


अंडों से बच्चे निकले

प्यारे-प्यारे लगते थे

लड़ते थे न झगड़ते थे

गीत सुरीले गाते थे 


मीठी तान सुनाते थे

खेल निराले करते थे

चूं-चूं करते रहते थे

और कबूतर भी दिनभर

दाने लाते चुन-चुनकर 


बच्चों की चोंचों में भर

उन्हें खिलाते जी भरकर

और कबूतर ख़ुश होकर

गुटर-गुटर गूं करते थे


पंख निकलने पर बच्चे

फुर-फुरकर उड़ जाते थे

मात-पिता को वे बच्चे

चले छोड़कर जाते थे


कहीं दूर फिर वे जाकर

अपना नीड़ बनाते थे

नहीं समझ कुछ आता है

कैसा अजब तमाशा है।


✍️ ओंकार सिंह 'ओंकार'

1-बी/241 बुद्धि विहार, मझोला,

मुरादाबाद  244103

उत्तर प्रदेश, भारत

मंगलवार, 6 सितंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार के ग़जल संग्रह ' आओ! खुशी तलाश करें ' की मीनाक्षी ठाकुर द्वारा की गई समीक्षा......रश्मियाँ बिखेरतीं आशावादी ग़जलें

ग़ज़ल शब्द सुनते ही कानों में मिठास घुल जाती है और लगता है हम किसी  मनोरम स्थान पर झरने के नज़दीक एकांत में बैठकर प्रकृति की मधुर स्वर लहरियों में कहीं खो से गये हैं.ग़ज़ल  का हर शेर स्वयं में एक पूर्ण कविता, एक कहानी लिये होता है. इसी क्रम में   महानगर मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार जी का  ग़जल संग्रह ' आओ! खुशी तलाश करें 'मुरादाबाद की ग़ज़ल यात्रा में एक संगीत का दरिया बनकर प्रवाहित हुआ है.

आपके ग़ज़ल संग्रह   का शीर्षक ही 'आओ! खुशी तलाश करें ' जीवन से भरपूर  व आशावादी दृष्टिकोण लिए हुए पाठकों के  समक्ष  प्रस्तुत हुआ है.आपकी  ग़ज़लों ने परंपरागत शैली से हटकर मानव मन की पीड़ा को स्पर्श करते हुए, उस पीड़ा को अपना समझकर उसे दूर करने का प्रयास किया है.   वस्तुतः आपके ग़ज़ल संग्रह की प्रथम ग़ज़ल  ही   सूर्य की प्रथम किरण की भाँति सकारात्मकता का सवेरा लिए  अवसादों के अँधियारों को धूल चटाने में सक्षम  प्रतीत होती है .  संग्रह   का शीर्षक ही 'आओ! खुशी तलाश करें ' जीवन से भरपूर  व आशावादी दृष्टिकोण लिए हुए पाठकों के  समक्ष  प्रस्तुत हुआ है.आपकी  ग़ज़लों ने परंपरागत शैली से हटकर मानव मन की पीड़ा को स्पर्श करते हुए, उस पीड़ा को अपना समझकर उसे दूर करने का प्रयास किया है.   वस्तुतः आपके ग़ज़ल संग्रह की प्रथम ग़ज़ल  ही   सूर्य की प्रथम किरण की भाँति सकारात्मकता का सवेरा लिए  अवसादों के अँधियारों को धूल चटाने में सक्षम  प्रतीत होती है . चंद शेर देखिएगा.. 

" ग़मों के बीच से आओ खुशी तलाश करें

अँधेरे चीर के हम रोशनी तलाश करें

खुशी को अपनी लुटाकर खुशी तलाश करें

सभी के साथ में हम ज़िन्दगी तलाश करें"

एक अन्य ग़ज़ल के चंद शेर प्रस्तुत हैं

 "मैं गीत में वो सुखद भावनाएँ भर जाऊँ

कि छंद छंद में बनकर खुशी उतर जाऊँ

हटा सकूँ मैं रास्तों से सभी काँटों को

हर एक राह पे फूलों सा मैं बिखर जाऊँ"

आप के सहज, सरल और निश्चल हृदय की परिक्रमा करती एक अन्य ग़जल नि:संदेह  उच्च विचारों की गरिमा के परिधान पहने सामाजिक हितों व संस्कृति के चरण पखारती प्रतीत होती है.इस ग़ज़ल के चंद शेर मतले सहित बेहद शानदार बन पड़े हैं. यथा.

 "अरूण को सवेरे नमन कर रहा हूँ

मैं उन्नत स्वयं अपना तन कर रहा हूँ

लिखूँ मैं सदा जन हितों की ही बातें

विचारों का मैं संकलन कर रहा हूँ"

आपने अपनी ग़ज़लों को शिल्प के  कठोर बंधन में बांधकर भी मन के भावों के तन पर लेशमात्र भी खरोंच  नहीं आने दी है. आपकी कलम के अनुभवी दृष्टिकोण ने इंसानी स्वभाव का बहुत सधा हुआ मूल्यांकन भी किया है.और तंज भी किया है. आपकी ग़ज़लों में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आपने इस संग्रह में हिंदी के शुद्ध शब्दों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया है . उर्दू के शब्दों के जबरन प्रयोग को आपने दरकिनार किया है.यह हिंदी  साहित्य के लिए एक सुखद  प्रयोग है  साथ ही नैतिकता के जिस शिखर को आपकी ग़ज़लों ने स्पर्श किया है वह विरले ही देखने को मिलता है. इस क्रम में कुछ शेर प्रस्तुत हैं

"सुख तो औरों को मिला लेकिन श्रमिक को वेदना

जबकि उसके श्रम  से सुख के पुष्प विकसित हो गए"


"किया है उसने किसी खल का अनुसरण मित्रों

कि जिससे बिगड़ा है उसका भी आचरण मित्रों"


  "बुरे समय में अगर किसी के जो भी साथ निभायेगा

खुशियाँ उसके पाँव छुएंगी वो हरदम मुस्काएगा.

कष्ट पड़े चाहे जितने भी मलिन नहीं साधु होगा

जैसे जैसे स्वर्ण तपेगा  और निखरता जायेगा"


"काम आए जो दूसरों के सदा

वो ही बड़े महान होते हैं

बढ़ती जाती है ज़िम्मेदारी भी

जबकि बच्चे जवान होते हैं"


"काम बन जाते हैं बिगड़े भी सरल व्यवहार से

मान जाते हैं बड़े रूठे हुए मनुहार से"

संघर्ष और मुश्किलों में भी सदैव मुस्कुराती आपकी गज़लें आज के आभासी युग में पाठकों के लिए और भी अधिक प्रेरणास्रोत बन जाती हैं, आपकी ग़ज़लों में महबूब की बेवफाई का रोना धोना नहीं है और न ही फालतू के शिकवा शिकायत हैं वरन्  प्रेम के सकारात्मक पहलू ही आपकी ग़जलों के आभूषण बने हैं.आपकी ग़ज़लें देश की फिक्र करती हैं तो आम आदमी की पीड़ा के साथ ही  महबूब से भी गुफ्तगू करती हैं. रुमानियत और खुरदरे धरातल दोनो का ख़याल  रखते  आपके अशआर अद्भुत हैं  एक बानगी देखिए.. 

"मिल जाए उनका प्यार तो खुशियाँ मिलें सभी

उनके करम के सामने टिकते हैं ग़म कहाँ"

और . . . 

"साथ तुम्हारे होने भर से

मंगल है मेरे जीवन में

मन में कसक रह गयी अबकी

भीग न पाए इस सावन में"

यथार्थ के धरातल पर उगे आम आदमी की पीड़ा के स्वर भी आपकी ग़ज़लों में बखूबी दिखते हैं.. 

"दिल लरजते  हैं सभी, महंगाई की रफ़्तार देख

होश खो देते हैं कितने आजकल बाज़ार देख"


"बैचेन किया है सबको रोज़ी के सवालों ने

तूफान उठाया है रोटी के निवालों ने"


"इस दौर में ये कौन सा कानून चल गया

जो रोजगार को भी यहाँ के निगल गया

पानी को पी के जिसके बुझाते थे प्यास सब

नाले में गंदगी के वो दरिया बदल गया"

आतंकवाद  पर भी आपकी कलम खूब चली है.. 

"नफरत को मुहब्बत मे बदलने नहीं देते

है कौन जो दुनिया को संभलने नहीं देते"

आपके भीतर का देश प्रेमी अपने अशआरके ज़रिए नौजवानों के हृदय में देश भक्ति की अलख  जगाने में भी सफल रहा है.. 

"जिसको वतन से प्यार है, अहले वतन से प्यार है

मेरी नज़र में दोस्तों! काबिले ऐतबार है"

"ज़ात, मज़हब, धर्म के झगड़े मिटाने के लिए

आओ सोचें बीच की दीवार ढाने के लिए "

 कहा जाता है कि आइना अपनी तरफ से कब बोलता है, इसी  क्रम में  सौम्यता और सादगी से परिपूर्ण और सबका हित चाहती आपकी ग़ज़लें देश, दुनिया, राजनीति, आम जनता और महबूब के मन के भावों को ही  परावर्तित करती प्रतीत होती है. समर्पण की भावना को लेकर प्रारंभ हुई आपके  इस ग़जल संग्रह की यात्रा  ,स्वर कोकिला कीर्ति शेष लता मंगेशकर जी को शब्दाजंलि पर आकर समाप्त होते हुए अपने साथ अनेक भावों को समेटकर पाठकों के हृदय के तट स्थल छोड़ देती है,अंत में आपको ग़ज़ल संग्रह की बधाई प्रेषित करते हुए, आपके ही एक शेर से अपनी बात समाप्त करती हूँ.

"दर्द की सबके लिए दिल में चुभन ज़िंदा रहे

मुझमें सबके दुख मिटाने की लगन ज़िंदा रहे."


कृति : आओ! खुशी तलाश करें (ग़ज़ल संग्रह)

रचनाकार : ओंकार सिंह 'ओंकार'

प्रकाशन : गुंजन प्रकाशन, मुरादाबाद

प्रकाशन वर्ष : 2022

मूल्य : 250₹

समीक्षक : मीनाक्षी ठाकुर

 मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत