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शुक्रवार, 15 मई 2020

कंचनलता पांडेय की लघुकथा ----बुद्धू बक्सा






हे हेलो !  सो उठकर मुझे अकेले चीखते हुए छोड़कर जो तुम बाथरूम में घुस जाते हो, कोई सुनता भी है मुझे ? आज मेरा टीवी थोड़े शिकायती लहजे में बोला ।
क्या हुआ बुद्धू बक्से ? मैंने भी टूथपेस्ट का पैकेट खोलते हुए ही उसे चिढ़ाने के अंदाज़ में कहा ।
इतना सुनते ही वो तो भड़क गया !
क्या बोला ? बुद्धू बक्सा ! मैं बुद्धू बक्सा हूँ, और तुम ? तुम बहुत समझदार हो ? तो क्यों नहीं मेरे बिना रह लेते हो ? मैं तो नहीं आया था अपने आप तुम्हारे पास, तुम लेकर आए थे मुझे बड़े एहतियात से, याद  है ना और हाँ सुबह उठने से रात के सोने तक कोई न कोई चलाए रखता है मुझे । तुम्हें भी तो हर खबर मुझसे ही जाननी होती है चाहे कहीं और से सुनी हो तो भी और मैं बुद्धू बक्सा हुँह । मेरे बिना तुम्हारा ही नहीं तुम्हारे घर में किसी का काम नहीं चलता । तुम्हारी माता जी का भजन कीर्तन कथा योगा हो या बच्चों का कार्टून । और तो और आजकल तुम्हारा पूरा परिवार रामायण, महाभारत देखने और कितनी शिद्दत से बच्चों को भी दिखाने में लगा रहता है, बच्चों को संस्कार जो सिखाना है !
टीवी अब तक रौब में आ गया था और मुझे उससे बहस करने का न मूड था न समय, सो मै वहाँ से जाने के मुड़ गया । पर वो अभी चुप होने मूड में नहीं था, अब भी उसकी आवाज़ मेरे कानों में धीमी धीमी पड़ रही थी ।
घर का हर समान मुझे देखकर ही लाते हो, सुन रहे हो ? ये जो टूथपेस्ट लिए खड़े थे, वो भी मैंने ही बताया था तुम्हें । बड़े आए होशियार ।
साबुन सैपू ...
वो बोलता जा रहा था, पर अब तक मैंने नहाने के लिए पानी खोल दिया था और उसकी आवाज़ सुनाई देनी बंद हो गई, लेकिन उसकी कही हुई बातें सही ही तो थीं ! बल्कि मुझे तो वो सब (जो उसने कहा नहीं या मैंने सुना नहीं ) नज़र आने लगा । नास्ते की मेज़ पर रखा जैम अचार जूस सब जगह उसकी मौजूदगी दिखने लगी । मैं ऑफ़िस के लिए लेट हो रहा था और उसकी कही अनकही बातों को दिमाग़ से निकाल जल्दी ऑफ़िस जाने के लिए निकाल गया ।                                           
~कंचन
आगरा
9412806816