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बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार सीमा रानी की लघुकथा ----दोस्ती

        बडा नाज था मनु काे अपनी व स्नेहा की दोस्ती पर | स्नेहा भी मनु की सबसे हितैषी व सच्ची सहेली हाेने का दम्भ भरती थी क्याेंकि वह बहुत मीठा बाेलती थी और देखने में व्यवहार भी सौम्य था | कोई भी व्यक्ति उससे बात कर उसका कायल हो जाता था |स्नेहा लिखती भी अच्छा थी एवं अपना काम दूसराें से कैसे निकाला जाता है यह तो कोई उससे सीखे........... |

          जब भी स्नेहा काे कोई पुरस्कार मिलता तो मनु फूली नहींं समाती, बढ -चढ कर सबसे पहले मुबारकबाद देती और साेशल साइट पर भी खूब प्रचार प्रसार करती |

         मनु भी पढनें में बहुत अच्छी थी |इस बार उसने अपनी   कक्षा टॉप की ताे प्रधानाचार्य जी ने उसे पुरस्कृत किया |सभी मित्रों व सहपाठियाें ने उसे बधाई दी पर मनु की आँखें तो कुछ और खाेज रही थी......... वह रह रह कर सभागार के गेट की तरफ टकटकी लगाकर देख रही थी पर स्नेहा का कहीं कोई पता नही था............... |


✍🏻सीमा रानी , पुष्कर नगर , अमराेहा 

  मोबाइल फोन नम्बर 7536800712

बुधवार, 15 जुलाई 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार सीमा रानी की लघुकथा ----जमाईं

   पति की मौत के बाद मधु ने अपनी दोनों बेटियों को दिन-रात कपड़े सिल सिल कर पढ़ाया | बेटियों के सपनों को पूरा करने में उसने कोई कसर नहीं छोड़ी |  जीवन की गाड़ी मदन की मौत के बाद तो रुकती सी  मालूम हो रही थी परंतु मधु ने अपनी हिम्मत वह हुनर से रुकने नहीं दिया |बड़ी बेटी अब स्नातक कर एक स्कूल में शिक्षण कार्य करने लगी थी और छोटी बहन की पढ़ाई के खर्च का बोझ उठाने लगी थी तो मधु को लगा जैसे हर रात के बाद सवेरा अवश्य होता है अब जीवन उसको थोड़ा सहज  लगने लगा था |
                बेटियों के विवाह योग्य हो जाने पर हर मां-बाप की तरह उसे भी बेटियों के विवाह की चिंता सताने लगी थी । अंततः बड़ी बेटी का विवाह पड़ोस के शहर में व छोटी बेटी का उसी शहर में हो गया | अब मधु ने चैन की सांस ली उसे लगा जैसे वर्षों बाद उसके जीवन में सवेरा हुआ हो धीरे-धीरे जीवन की गाड़ी फिर चल पड़ी कुछ दिन तक तो सब ठीक ठाक रहा पर साल 2 साल में दामाद (जमाई) अपने नए नए रूप दिखाने लगे बेटियों से कहते कि तुम्हारी मां अकेली है इतने बड़े मकान में अकेली रहकर बोर हो जाती होंगी मकान बेच कर उन्हें अपने साथ ले आओ कुछ दिन बड़ी बेटी के यहां व कुछ दिन छाेटी  बेटी के यहां आराम से रह लेंगीं । दोनों बेटियां मां का मकान बेचकर मां को अपने साथ ले आयीं |कुछ दिन बड़ी बहन के साथ तो कुछ दिन छोटी बहन के साथ माँ को रखने का दोनों नें समझौता कर लिया|कुछ समय बाद सासू मां का अपने साथ रहना दामादाें (जमाई) को बहुत अखरने लगा ।दोनों अक्सर कहते कि तुम्हारी मां के साथ रहना ठीक नहीं लगता है क्यों न हम  ऐसा करें कि इन्हें वृद्ध आश्रम मैं पहुंचा दें क्योंकि वहां इन्हें संगी साथी  भी मिलेंगें और अपनी आयु वर्ग में यह स्वस्थ भी रहेंगीं क्योंकि मन खुश होने पर तन भी  स्वस्थ रहता है |
             अब मधु को हर पल यह एहसास होने लगा था कि आखिर ऐसी मुझसे क्या कमी हो गई जो आज मेरी बेटियां मुझे बाेझ समझ रही है जबकि इनके लिए तो मैंने अपना जीवन न्योछावर कर दिया |उसे बार-बार मां के कहे शब्द याद आ रहे थे कि "बेटी जमाई जम होता है |" मधु को वृद्धाश्रम भेजकर दोनों बेटियों ने अपना पत्नी धर्म पूरा किया और चैन की सांस ली |


✍🏻सीमा रानी
   अमराेहा
 7536800712

बुधवार, 24 जून 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार सीमा रानी की लघुकथा ----- बहू बेटी


            रमा की आंखों में खुशी का ठिकाना न था क्योंकि आज उसके इकलौते बेटे रवि की बहु विवाह बंधन में बंध कर रमा के घर आई थी। दो वर्ष पहले बेटी रिया की शादी के बाद जैसे घर सूना सूना हो गया था, बेटे के ऑफिस जाने के बाद शाम 5: 00 बजे तक तो घर ऐसे सूना हो जाता जैसे घर की आत्मा ही निकल गई हो। रमा कभी छत पर तो कभी खिड़की से सड़क पर निहार निहार कर ही अपना दिन पूरा करती थी।
                     पिछले 2 दिन से घर में काफी चहल-पहल थी क्योंकि रवि के विवाह उत्सव में मित्र व सगे संबंधी सभी एकत्रित थे। आज बहू घर आ गई तो मनोरमा को लग रहा था जैसे वह दिन में सपना देख रही हो पिछले 2 सालों से वह हर पल इसी दिन का इंतजार कर रही थी।
                      मेहमानों को विदा करने के बाद रमा को फुर्सत मिली तो वह अपने मन की बात करने अपनी नई नवेली बहू के पास आए बहू ने सासू मां के चरण स्पर्श किए तो रमा ने ढेर सारा आशीर्वाद दिया। रमा ने अपनी बहू नेहा से बड़े स्नेही भाव से कहा कि,"देखो बेटी तुम ही मेरी बेटी रिया हो एवं तुम ही मेरी बहू नेहा हो क्योंकि मेरी बेटी तो किसी दूसरे घर की लक्ष्मी बन चुकी है अब तुम ही मेरे घर की लक्ष्मी हो..............।" ऐसा कहकर रमा ने नेहा को अपने कलेजे से लगा लिया। रमा की इतनी स्नेह से भरी भावपूर्ण बातों को सुनकर नेहा की आंखें भर आई और वह रमा के गले से लिपट कर बोली मां जी मैं अपनी मां को तो मायके में ही छोड़ आई अब तो आप ही मेरी मां हो। यह सुनकर रमा का कलेजा भी सुखद अनुभूति से गदगद हो गया और उसने नेहा को अपने कलेजे से लगा लिया ।

  ✍🏻सीमा रानी
अमरोहा

मंगलवार, 16 जून 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार सीमा रानी की लघुकथा----- जीवन संध्या


            वर्मा जी ने अपने बच्चों को शहर के प्रमुख स्कूलों में पढ़ाया चाहे उसके लिए उन्हें कितनी फीस क्यों ना चुकानी पड़े। उनकी पत्नी रमा भी अपने दोनों बेटों की इच्छा पूरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, क्योंकि पैसे की वर्मा परिवार में कोई कमी नहीं थी।
                दोनों बेटे विदेश की प्रसिद्ध कंपनियों में इंजीनियर बन गए एवं दोनों की महीने की तनख्वाह भी लाखों में थी। उन्होंने अपने बराबर की लड़कियों से शादी की एवं अमेरिका में बस गये ।
              वर्मा जी उनकी पत्नी सारे मोहल्ले वालों व रिश्तेदारों में ताल ठोक कर कहते कि शायद उनसे बड़ा सुखी कोई नहीं है क्योंकि उनके बेटे व बहुएं बहुत अच्छा कमाते हैं। सभी पड़ोसी एवं रिश्तेदार उनकी इस बात से सहमत होतेऔर उनके सामने बोलने की हिम्मत ना करते। वर्मा जी को हर किसी में कमी नजर आती व उनकी पत्नी रमा उनसे भी आगे हर महिला के व्यवहार में बहुत कमियां बताती थी।
             समय बीतता गया ,दोनों बेटे अपनी अपनी नौकरी में बहुत व्यस्त रहने लगे।  माता पिता के पास आना तो दूर फोन पर बात करने का भी अब उनके पास समय नहीं होता था। उधर वर्मा जी व उनकी पत्नी पर भी समय ने वृद्धावस्था का प्रभाव जमाना शुरू कर दिया था। उन्हें हर क्षण सहारे की जरूरत पड़ने लगी अथाह पैसा व्यक्ति की जगह नहीं ले सकता यह दोनों पति-पत्नी को समझ आने लगा।
        दोनों को ज्ञात होने लगा कि संतान को केवल पैसा कमाने की ही शिक्षा नहीं देनी चाहिए अपितु तो माता-पिता की जीवन के संध्या समय में देखभाल व  संस्कारों की शिक्षा भी देनी चाहिए। क्योंकि जीवन प्राणी का एक निश्चित समय का सफर मात्र होता है पैसा व्यक्ति को सुख सुविधा दे सकता है परंतु अपनेपन का एहसास कभी नहीं दे सकता। परंतु अब बहुत देर हो चुकी थी अतः उन्होंने स्वयं को बदलने का निश्चय किया एवं दोनों ने अपने बेटों के साथ रहने का फैसला ले लिया क्योंकि वह जान गए अब जीवन संध्या में बच्चों के साथ रहने में ही भलाई है।

 ✍🏻सीमा रानी
  अमरोहा

गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार सीमा रानी की लघुकथा ----"चार धाम यात्रा "


पैसा पैसा जोड़कर चार धाम की यात्रा करने का इंतजाम किया था सज्जन सिंह ने |घर की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी छोटी सी कृषि से ही बाल बच्चों की पढ़ाई व बाकी खर्च चलता था |पर मन में जीवन में एक बार चार धाम की यात्रा करने का सपना रह रहकर उभरता था तो अपनी छोटी सी आमदनी से यात्रा के खर्च का इंतजाम करने में कई वर्ष लग गये थे |
            यात्रा का खर्च पूरा हो जाने पर सज्जन सिंह बड़े प्रफुल्लित थे कि चलाे अब प्रभु दरबार के दर्शन आसानी से कर सकूंगा और फिर शांति से देह का त्याग भी कर सकूंगा |
             सज्जन सिंह खिड़की के पास खड़े होकर सड़क पर आते जाते लोगों को निहार रहे थे जाने जिंदगी किस धुन में दौड़ लगाती रहती है तभी बराबर वाले वर्मा जी ने आकर बताया कि रहीम भाई के बेटे की तबीयत बहुत खराब है डॉक्टर ने दाे लाख का खर्च ऑपरेशन के लिए बताया है यह सुनकर तो रहीम भाई की बोलती ही बंद हो गई |
वर्माजी की बातें सुनकर सज्जन सिंह अवाक थे क्याेंकि रहीम भाई के घर का इकलौता चिराग उनका बेटा ही था.... |
           अब सज्जन सिंह दुविधा में पड़ गए कि वर्मा जी से तो कह सकता हूं कि मैं उनकी कोई सहायता नहीं कर सकता परंतु खुद से कैसे कहूं कि..... ...?
और यदि ऐसे धर्म संकट में मैने मानव धर्म नहीं निभाया तो क्या मेरी चार धाम यात्रा कुबूल हाे पायेगी इसी द्वन्द में वे पूरी रात सो नहीं सके |
            सुबह सज्जन सिंह बहुत दृढ़ निश्चय व शांत मन से उठकर रहीम भाई के घर पहुँचे और रहीम भाई के कंधे पर हाथ रखकर बाेले घबराओ न रहीम भाई....... |ये लाे दाे लाख और बेटे का ऑपरेशन कराओ |रहीम भाई का गला रूंध गया मुँह से शब्द नही निकल पा रहा था बडी हिम्मत से बाेले सज्जन.... .....|
बस टकटकी लगाकर सज्जन सिंह काे निहारते रहे..... |

✍🏻✍🏻सीमा रानी
अमराेहा