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शनिवार, 5 अप्रैल 2025

मुरादाबाद के साहित्यकार के डी शर्मा (कृष्ण दयाल शर्मा ) की सोलह रचनाएं....


 1. साधक रखता संतोष निर्झर

---------------------------

सदा सदुपयोग सतत व्यस्तता

सराहनीय सद्गुण श्रम शीलता

प्रसन्नता स्रोत निरंतर उद्यम

सावधान साधक सदा सर्वोत्तम


भगवत्ता की प्रतीक चेतनता

उद्यमी को उपलब्ध सफलता

परिश्रमी में प्रमाद हीनता

साधक कभी न दर्शाता दीनता


सकारात्मक सोच आशावदिता

अनवरत अनुभव दिव्यता

परिणाम गोविंद पर निर्भर 

साधक रखता संतोष निर्झर


सर्वोपरि परमपिता प्रसाद

मुदित स्वीकारना हर्ष विषाद

सृष्टि रचनाकार पर विश्वास

संतोषी साधक कभी ना निराश


संसारी लीला संचालक चक्रधारी

गिरधारी वंशीधारी बनवारी

आस्तिकता वास्तविक धार्मिकता 

परहित कर्म ही आध्यात्मिकता


पंचतत्व परमात्मा का स्वरूप

असंतुलन से संसार विद्रूप

भगवान एक अगोचर शक्ति

उसको प्रकटंती केवल भक्ति


2. निरोगी तन सर्वत्र लोकप्रिय 

...............................

स्वस्थ तन हितकारी सर्वोपरि 

रोगी अस्वस्थ का नारायण हरि 

निरोगी तन सर्वत्र लोकप्रिय 

सुस्वास्थ्य हेतु रहना सक्रिय 


दिनचर्या में लाना परिवर्तन 

शिव शक्ति सुत से शक्ति करण 

नियम संयम पालन सचेत

आहार व्यवहार में विवेक


प्रकृति सदा करती परमार्थ 

परमात्मा की पाठशाला शिक्षार्थ

प्रत्येक अंग का हो सदुपयोग 

अहितकर मनमाने प्रयोग 


अपनाना योगासन प्राणायाम 

भास्कर नमन दैनिक व्यायाम 

निज कर्म प्रति न उचित प्रमाद

शांति संतोष परिश्रम प्रसाद


परमात्मा जीवन का आधार 

श्वास प्रतिश्वास उनका आभार

धन संपदा  पर न अंहकार 

पल पल गोविंद को नमस्कार 


समर्पित साधक सदा सुखी 

पतन गर्त गिरते मन मुखी 

शास्त्र बताते पथ सदाचरण 

आनंद दायक उचित वरण 


 3. समाप्त हो खेल जनम - मरण

************************

कदापि ना छोड़ना अधूरा प्रयास

निरंतरता से पूर्णता की आस

गोविंद भर दो उत्साह - उल्लास

अनुभव करा दो आत्म-विश्वास


आपके भजन में अनंत शक्ति

तिरोहित कर दो जग आसक्ति

हटाना पथ के सकल संकट

चलाना गंतव्य तक निष्कंटक


जीवन सफल रखना सोद्देश्य

प्रियकर लगे सरल परिवेश

इंद्रिय उद्वेग ना करें अधीर

रखना सदैव विवेकी  गंभीर


बिन आपकी कृपा साधक दीन

सतत रखना अपने आधीन 

नहीं अपनी कोई निज कामना

 केवल अपनी शरण रखना


कृपालु नियंत्रित रखना मन 

रखना स्वस्थ तन का अंग - अंग

अनवरत रखना कर्म शील 

सदा रखना सदाचारी सुशील


नत मस्तक खड़ा आपके द्वार 

करना अपराध क्षमा इस बार 

प्रदान करना शाश्वत शरण 

समाप्त हो खेल जन्म मरण


 4 . दिव्यानंदित समर्पित जीवात्मा

________________________

सर्वत्र सर्वदा सर्वव्यापक

एकमेव गोविंद व्यवस्थापक 

अंतःकरण में खिलाता कमल

विकार विहीन विमल धवल


नियंत्रित हो मन की चंचलता 

संयम का अर्थ  नियम बद्धता 

पल पल स्वयं को रखना व्यस्त

निष्क्रिय प्रमादी का जीवन ध्वस्त 


संसारी दायित्व न उपेक्षणीय 

सदा कर्म शीलता सराहनीय 

अभेद करना  सेवा सहायता 

सहृदयता मानव की विशेषता 


उपलब्धि पर न करना गर्व 

परमेश्वर का स्वामीत्व सर्व

नियति अनुसार भौतिक प्राप्ति 

उद्यमशीलता की नहीं समाप्ति


संसार एक विचित्र दुखालय 

पूर्ण समर्पण से  औषधालय 

सतत बढ़ाना सहन शीलता 

आचार में मधुरता शीतलता 


सब कुछ पूर्व कर्म परिणाम 

बुद्धिमान संवारते वर्तमान 

सबका परमपिता परमात्मा 

दिव्यानंदित समर्पित जीवात्मा।


5. बिन उदारता मनुज कंगाल

____________________

चिंतन नश्वर अनश्वर ज्ञान 

ईश्वर को अपनाता मतिमान

परिवर्तन शील यह संसार 

सदैव रखना शाश्वत विचार 


जग जगदीश रचित परिवार

सत्य प्रेम दया से करना प्यार

सत्य अनवरत  अपराजित 

शास्त्रीय सिद्धांत में लगाना चित्त 


सांसारिक पदार्थों की प्रचुरता 

उपजाती मानसिक दरिद्रता 

और अधिक की बढ़ती लालसा 

लगती प्रिय प्रदर्शन प्रियता


राग द्वेष जन्मती असमानता 

गोविंद दृष्टि में न कोई भिन्नता 

संपति सर्वेश्वर का उपहार

केवल परोपकार से उद्धार


अकल्याणकारी संकुचित दृष्टि

सर्वेश्वर सृजित सकल सृष्टि 

चेतन विहीन शरीर कंकाल

बिन उदारता मनुज कंगाल 


मानव का मूल्यांकन सुविचार 

सत्संग से निज  आचार सुधार

सतत करना चिंतन मनन 

जीवन सार एकमात्र भजन 


6. आत्म ज्ञान शाश्वत संतोष सेतु

*********************

परमानंददायी एकाकीपन

साधक चिंतन मनन सलंग्न 

हृदय सतत गोविंद निवास

आध्यात्मिकता में गहन विश्वास


सांसारिक कर्म अवश्य करना

कर्म संपादन धर्म समझना 

सत्संग बनाता मन निर्विकार 

मन पर हो विवेकी अधिकार


एकांत हेतु समय उपलब्ध 

साधक को प्राप्त उत्तम प्रारब्ध 

समय सदैव करना सार्थक 

न करना वार्तालाप निरर्थक


समय करना ईश्वर अर्पण

उत्तमोतम भाव समर्पण 

भौतिकता में न रहना संलिप्त 

अवगत हो आत्मज्ञान गुप्त 


इंद्रियां मांगती सकल पदार्थ 

विषय रस पुष्टि उसका स्वार्थ 

दान दया दमन उत्तम धर्म 

सदैव हितकारी अकेलापन


आयु पर्यन्त मनुज की परीक्षा 

कल्याणकारी विरक्ति तितिक्षा 

जगत में जगदीश को नमन

जीव जीव परमेश्वर अयन 


7. अभिलाषी को सदैव चिंता व्याप्त

***********************"

काम क्रोध लोभ मोह राग द्वेष 

प्रत्येक प्राणी प्रभावित विशेष 

प्रिय पदार्थ प्राप्ति की इच्छा काम

इसके त्याग से जीवन अभिराम 


सहनशीलता ही सराहनीय 

उत्तम चरित्र अनुकरणीय 

मानसिक विकार से पराजित 

न उपलब्ध आत्म उन्नति वांछित


सत्संग से संभव परिमार्जन

विकारी हृदय का परिशोधन

आवश्यक दैनिक आत्मचिंतन 

सदाचार मनुज का मूल्यांकन 


स्वयं को प्राप्त समझना पर्याप्त 

असंतोषी को सदैव चिंता व्याप्त 

सर्वोपरि ईश्वरीय संविधान 

सतत पूजना करूणानिधान


नित्यानंद का एकमेव उपाय 

निश्चित भजना नमः गोविंदाय 

परमात्मा की इच्छा को समर्पित 

अवश्यमेव सर्वदैव विजित 


सर्वकल्याणमय दिव्य प्रार्थना 

न उपजे अनावश्यक कामना 

जीवन पर्यन्त करना साधना

कल्याणकारी ईश्वर आराधना 


8. कर्म हों कल्याणकारी उपयोगी

************************

रखना तन अवयव संपुष्ट 

मानसिक संतुलन से संतुष्ट 


कर्म में प्रवीण कहलाता योगी 

कर्म हों कल्याणकारी उपयोगी 


निरन्तर ध्यान रखना चेतन

सकल संसार ईश निकेतन 


अभेद प्यार नित्यानंद आधार 

सर्वोपकारी रखना विचार 


अवश्यमेव हो दैनिक चिंतन 

नम्रतापूर्वक सबको नमन 


व्यावहारिक निपुणता प्रथम

बनेगा जीवन आनन्द सदन


वैचारिक श्रेष्ठता सदा उत्तम

विकारी मन वाला सदा अधम 


अनवरत अपनाना सत्संग

स्रोत उत्तमोतम जीवन ढंग 


मनमानी जीवन शैली निंदनीय 

निगम आज्ञाकारी  सराहनीय 


जीवन में सहायक गुरुदेव

पूजनीय वंदनीय महादेव 


जग उपलब्धि व्यर्थ अहंकार 

प्राप्त परिणाम ईश उपहार


पतनकारी गोविन्द विस्मरण 

स्मरण उपाय आत्म जागरण 


9. धरातल रखना सिक्त करुणा 

*************"*******

भाव सागर में उठती तरंग 

लेखनी लिखती सहित उमंग

रचना में रचनाकार उपस्थित 

स्वयंमेव अभिव्यक्ति व्यवस्थित 


एकमेव सत्य रचना आधार 

आत्मोन्नति हेतु आत्मिक विचार 

शास्त्र सम्मत उक्ति का संपादन

सत्य ज्ञान सिद्धांत प्रतिपादन


आत्मज्ञान स्वयमेव असंभव 

गोविंद अनुकंपा से संभव 

समय सदुपयोग हरि स्मरण

कविता जन्मती आत्म जागरण 


सच्चरित्रता सत्य जागरूकता 

सत्य न प्रकटना घोर  भीरूता 

ईश्वर की संतान ईश्वरवादी

असत्य हेय सदैव सत्यवादी 


उचित शब्द प्रदाता भगवान 

पल पल आनंदित भाग्यवान 

भावुकता न करती प्रभावित 

सद्ज्ञान बादलों से न आच्छादित 


हृदय  पूर्ण प्रसन्नता  पूरित 

प्रकट आभार आनंद सहित

धरातल रखना सिक्त करुणा 

समीप न आवे दुर्भाव  दारूणा 


 10. होलिका दहन विकार समापन

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होलिका दहन विकार समापन 

प्रहलाद अभ्यस्त नाम उच्चारण

हुआ प्रसार नाम नारायण 

सनातन धर्म का पुनः स्थापन 


अवगत हुई नाम की महिमा 

प्रदाता सिद्धियां अणिमा गरिमा 

कल्याणकारी नाम का अवलंबन

प्रकट हुआ स्वरूप अविलंब


कल्याणकारी कर्म का सत्यापन 

न करना चरित्र का विज्ञापन 

हृदय में बसाना समरसता 

उत्सव में संवर्द्धन प्रसन्नता


तिरोहित हो रूप रंग भिन्नता 

प्रयत्न पूर्वक मिटाना खिन्नता 

प्रतिकूलता में करना संघर्ष 

मन वाणी कर्म हों पूरित हर्ष 


उत्सव त्योहार लाते उत्सुकता 

धनी निर्धन मन में प्रफुल्लता

परमात्मा रचित यह संसार 

सतत मानना उसका आभार 


गोविंद चढ़ाना प्रहलाद का रंग 

परिमार्जित करना जीवन ढंग

निराकार प्रकटता सर्वाकार 

जीव जीव को करना नमस्कार 



11.अनुचित संलिप्तता जग भोग

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सागर में लहरें करती क्रीड़ा 

उठती गिरती सिंधु को न पीड़ा

तरंगों की स्वाभाविक गति

सबकी अपनी अपनी नियति


सकल तरंगें सागर का अंश

अंततोगत्वा मिलती निज वंश 

जीवन का एकमेव यही सत्य 

जन्मने वाला प्रत्येक जीव मर्त्य


हर्ष विषाद का कारण ममत्व

शाश्वत सत्य न समझना जड़त्व 

केवल करना अपना कर्तव्य 

परिणाम इच्छानुसार असत्य 


वेद शास्त्र का सनातन सिद्धांत 

न उपलब्ध अपवाद दृष्टांत 

सराहनीय दायित्व निर्वहन 

मुदित मन कठिनाई सहन


आयु अवधि सदैव सुनिश्चित 

गोविंद स्मरण करना निश्चिंत 

कल्याणकारी निरन्तर उद्योग 

अनुचित संलिप्तता जग भोग 


सरिता को न विस्मृत निज स्रोत

रखना प्रज्वलित आत्मिक ज्योत

बिन आत्म जागरण न कल्याण 

ईश्वर को न भूलना म्रियमान 


12.सुदृढ़ मन कभी न पराजित 

**********************

मन को बना दो कोमल सुमन

प्रवाहित हो सुवासित पवन

सत्य दया प्रेम पूरित हो मन 

गोविंद की अनुकंपा को नमन


सकल संसार मन का विस्तार 

निरन्तर रखना मन उदार 

तिरोहित करना सर्व विकार

देना मन को सुशोभित संस्कार 


मन ही उपजाता हर्ष विषाद 

कल्याणी मन पवित्र निर्विवाद 

मन को अपावन करता संग

 मन परिवार्जक केवल सत्संग


मन अलंकृत करता साहित्य

अज्ञान कालिमा हरता आदित्य 

मन चंचलता रोकता विवेक

सदगुरू शरण कल्याणी विशेष 


मन सागर में आनंद भरना 

कृपालु विकृत विचार हरना 

मन उपजाता वास्तविक शक्ति 

मन को लगाना आराध्य की भक्ति 


मन रखना उद्देश्य सुकेंद्रित 

मन चंचलता करती बाधित 

मन सहायक कर्म नियोजित

सदृढ़ मन कभी न पराजित 


13. प्रथम सदगुरु जनक जननी 

**********************

जनक जननी की कृपा अपार

प्रदान किए अनुपम संस्कार 

उत्तम विचार जीवन आधार 

जीवन पर्यन्त अद्भुत आभार 


निरन्तर अपनाया सदाचार 

मधुर परोपकारी व्यवहार 

सर्व सेवा समय सदुपयोग 

सर्वदा सचेत प्रति उपभोग 


अवगत कराया जीवन उद्देश्य 

ध्येय प्राप्ति हेतु साधना विशेष 

पशु वत जीवन स्वार्थ पूरित 

जीवन जीना उदारता सहित


सर्वोत्तम गुण आत्म निर्भरता 

शुभ अवसर खोना कायरता 

मिथ्या आकर्षण पूर्ण प्रवंचना 

सांसारिक लोलुपता से बचना


जीवन अवधि सदा सुनिश्चित 

प्रमादी न बनना कभी किंचित 

सतत आवश्यक जागरूकता 

अकल्याणकारी उत्साह हीनता


गोविन्द से सदा करना प्रार्थना 

निरर्थक न उत्पन्न हो कामना 

अंतर हीन हो कथनी करनी 

प्रथम सदगुरु जनक जननी 


14. उत्थानकारी अर्चना आराधना

***********************

एक ही आश्रय एक ही आधार 

गोविन्द आपकी महिमा अपार

संसार सपना सत्य ज्ञान सार 

वास्तविकता कदापि न बिसार


एक जलनिधि जलद सरिता 

भिन्न भिन्न नाम दैवीय कविता 

एकमेव सर्वदा सर्वत्र व्याप्त 

एक ही रचनाकार असमाप्त 


एक ही जनक सुमन कंटक 

आनंद प्रदाता मिटाता संकट

एक ही संचालक शक्ति चेतन 

सकल संसार उसका निकेतन 


अज्ञानता समझना विविधता

निर्माता की सबमें विद्यमानता 

अवनि गगन उसका प्रकाश

एकमेव आस्था एक ही विश्वास


विभिन्नता में देखना रचनाकार 

विस्तार निस्सार एकमेव सार

एक ही निर्माता उसी का संसार 

कल्याणमय सबके प्रति प्यार 


सत्य ज्ञान प्राप्ति साधन साधना 

परम पिता से एक ही प्रार्थना 

अधोपतन का कारण कामना

उत्थानकारी अर्चना आराधना 


15. सरिता आतुर स्रोत से मिलन

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सरिता व स्रोत में न पृथकत्व

स्रोत से संयुक्त करती कर्तव्य 

निरन्तर आनंदित प्रवाहित 

अनवरत संलग्न परहित 


सतत प्रवाह में निरंतरता 

परोपकार में निस्वार्थ समता 

उद्देश्य सदैव गोविंद स्मरण 

उपाय मन बुद्धि शुद्धि करण 


कर्म संग न भूलना परमात्मा 

उसी का सूक्ष्मतम अंश आत्मा 

अवगत हो ध्येय जीवन प्राप्ति 

उसी में लगना पर्यन्त समाप्ति


जानना पशु मनुज में अन्तर

मनुज को प्राप्त दिव्य अभ्यन्तर 

आज्ञाकारी सेवक से स्वामी प्रसन्न

आज्ञाकारिता से उन्नत मन 


व्यस्तता ही आयु सदुपयोग 

अवश्य अपनाना आसन योग

निश्चित महत्वपूर्ण सात्विकता

विचार और कर्म की पवित्रता 


सरिता आतुर स्रोत से मिलन 

एक दिन धूमिल जीवन सुमन

रहना कर्मशील आयु पर्यन्त 

विस्मृत न करना ईश अनंत 


16. सफल साधक सदैव आज्ञाकारी

*************************

साधक शारीरिक रूप से शुद्ध 

मन बुद्धि चित्त रखता विशुद्ध

सांसारिक आचरण में प्रबुद्ध

आत्म उन्नति पथ अनावरूद्ध 


स्वामी की आज्ञा पर केंद्रित ध्यान 

सकल वर्णित गीता रामायण 

गीता समझाती जीवन सिद्धांत

अवधेश का आचरण  दृष्टांत 


काम क्रोध लोभ सदैव बाधक

सतत सचेत रहता साधक

नियम संयम उपाय पालक 

सेवक सदा गोविंद आराधक 


रखना नश्वर अनश्वर ज्ञान 

पल प्रतिपल भजता नाम

आज्ञाकारिता सेवक का काम 

यात्रा में अवरोधक विश्राम


सतत समक्ष रखना उद्देश्य 

अविस्मृत न हो जाना परदेश 

सांसारिक आकर्षण मिथ्या माया

पकड़ना अवलंबन न छाया 


रचयिता करा रहा  अभिनय

अवश्यमेव रहना मतिमय 

मनमाना आचरण पतनकारी

सफ़ल साधक सदैव आज्ञाकारी 

✍️कृष्ण दयाल शर्मा

लाजपत नगर

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 97515899 80


बुधवार, 7 अगस्त 2024

मुरादाबाद के साहित्यकार के डी शर्मा (कृष्ण दयाल शर्मा ) की दस रचनाएं....


1. उसकाआदि न मध्य न अन्त

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उसका रूप न रंग न आकार 

निरुपाधि निराकार सर्वाकार 

 वह सर्वदा - सर्वत्र उपस्थित

जग रचना , स्वयं स्व - रचित


सर्वज्ञ व्यापक सर्वशक्तिमान

सूक्ष्म से सूक्ष्म, महान से महान 

उसको खोज रहे योगी -विद्वान 

सकल संसार उसका मकान


सब ही उसके संज्ञा सर्वनाम 

बाँटता निज कोष निरभिमान  

उसके समान न कोई उदार 

न चाहत धन्यवाद न आभार


 वह नित्य निरंतर अनंत

 उसका आदि न मध्य न अन्त 

अपनी रचना में स्वयं समाया 

अज्ञ उसकी माया से भर माया


वह मन बुद्धि चित्त से परे

भक्त उसके स्मरण से तरे

जीव - जीवका पालक रक्षक

विकृत विचार धारा का भक्षक


सृष्टि से वह आनंद वर्षा करता

उसका कोल चक्र सदा चलता 

रहित भूत -भविष्य -वर्तमान 

गोविंद ने दिया नाम भगवान


2..कल्याणकारी गोविन्द गुणगान

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जीवन उद्देश्य नही सुख -भोग 

तन - मन उन्नत करता योग

चंचल इन्द्रियाँ निरंतर भूखी

संयमशील मनुज सदा सुखी


दुखदायी तत्कालीन सुख वृत्ति

 मनोरंजन हेतु पुनः आवृति

सदाचरण का आधार प्रवृत्ति

सतत सुधारना निज प्रकृति


पकड़ना महापुरुषों का संग 

स्वाध्याय करना श्रेष्ठतम ग्रन्थ 

निश्चित चढ़ेगा आत्मा - ज्ञान रंग

सीखेंगे जीना मानवता का ढंग


आवश्यक विशुद्ध अन्तःकरण

काम क्रोध लोभ मोह का हरण

पुनः पुनः परमेश्वर स्मरण

श्री राम द्वारा दशानन मरण


वेद - शास्त्र मे दृढतम विश्वास

सत्य - प्रेम - दया का दिव्य प्रकाश

ज्ञान दीप ही हरता अंधकार

कल्याणकारी मानवता विचार


शरीर उपकरण उपलब्ध 

सतत सराहना निज प्रारब्ध

संतोष आनंद  प्राप्ति का सोपान

कल्याणकारी गोविन्द गुणगान


3.सर्विश जगादो सद्ज्ञान आदित्य

...............................

सतत सच्चा सुधारक साहित्य

तम तिरोहित करता आदित्य

हिमालय में प्रवाहित सरिता

उर सागर से निस्सृत कविता


सदैव करती पावन पवित्र

उन्नायक सुविचार सुचरित्र

मन बुद्धि चित सदा प्रभावित

परिमार्जन अवश्य संभावित


रचनाकार का दर्पण रचना

पूर्णतया अनुवादित कल्पना

मनोरंजन संग आत्म रंजन 

साहित्य द्वारा सर्वेश्वर दर्शन


परमात्मा से उपलब्ध प्रतिभा

शब्द आभूषण सजाते प्रतिमा

प्रकृति पुरुष की सब महिमा

रखना निगम शास्त्र की गरिमा


निश्चित समझना निज दायित्व

अच्युत बताते अर्जुन को कर्तव्य

गोविंद विस्मरण अक्षम्य भूल

रचना में ईश अनुकंपा मूल


सर्वेश जगा दो सद्ज्ञान आदित्य

करा दो कुछ योगदान साहित्य

सदैव उदित रखना सविता

शब्दालंकार से सजाना कविता


4 : अनुभव हो ईश्वरीय स्पंदन 

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मानव न मानव बिन मानवता

नीर  विहीन सरिता न सरिता 

मानव का गुण परोपकारिता 

उद्यम शीलता आत्म निर्भरता 


दिव्य सद्गुरु सर्वहित चिंतन

 प्रेम पूर्वक पर -दुख हरण

सब मे  गोविंद उसका स्मरण

सदा शिक्षाप्रद गीता रामायण 


उनके सिद्धांतों का अनुपालन

अनुपालक  श्रेष्ठ उदाहरण

 निज जीवन कल्याण करण

 अविस्मरणीय उनका मरण 


संयम विहीन मानव न मानव 

उच्छृंखलता  परिभाषा दानव 

परमेश्वर की सर्व व्यापकता 

परिचायक सर्वत्र चेतनता 


संसार में सबका अभिनंदन 

उद्यम पूर्वक हरना क्रन्दन

अनुभव हो ईश्वरीय स्पन्दन 

यही सत्य -ज्ञान आत्म जागाण 


मानव होना अनुपम सोपान

 यहां से संभव पतन उत्थान 

सद्गुण अपनाना अवरोहण

पशुवत जीवन अवतरण"


5 : निज ध्येय  से न होना विचलित 

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रहना  प्रसन्न पाया नरतन

आनंदमय गीत संगीत  नर्तन

मनुज मुदित  देख परिवर्तन

 स्वस्थ रखना उभय तन -मन


दैनिक व्यायाम भास्कर : नमन 

शोभित श्रृंगार कथन - श्रवण 

आहार व्यवहार दोनों मनोरम 

संयम पालन हो अधिकतम


सकल जीवन साधना सदन 

रहना तटस्थ हर्ष - रुदन

जग रंगमंच प्राणी अभिनेता 

सतयुग ,कलयुग  द्वापर त्रेता 


आकर्षण से न होना सम्मोहित 

निज ध्येय से न होना विचलित

मन को सतत रखना केंद्रित 

सत्संग से ज्ञान भास्कर उदित


काल बीत रहा दिवस रजनी 

जीवन क्रीडा मध्य नभ अवनि

इन्द्रियां निरन्तर मांगती भोग

भोग अभ्यस्त मनुज ग्रस्त रोग


नियम -संयम पालन सुखद 

समुचित पथ त्यागना दुखद 

सुख -दुख से श्रेष्ठतर आनन्द 

गोविन्द स्मरण से परमानंद


6 : करुणेश, काटना फन्द ममत्व

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तन उपकरण ध्येय आनंद

उचित पथ उपलब्धि अनंत

कुपथ पसन-गर्त मे गिराता

प्रिया को प्रियतम से न मिलाता 


संसारी पदार्थ आकर्षण माया

अनं :करण पर कुत्सित छाया

दुर्बुद्धि मनुज सदा भरमाया 

मृगमरी चिका से व्यर्थ लुभाया


अमूल्य आयु निरक गंवाई

कोई न सहायक बहन - भाई

मिथ्या जगत मे सत्य पहचानना

सत्संग सद्गुरु शरण अपनाना


संसार आवश्यकता पूर्ति हेतु 

वैराग्य स्मरण कल्याण सेतु

चिंतन -मनन जगाता विवेक 

श्रेयस्कर श्रेय त्यागना निषेध


 निगम शास्त्र समझाते उपाय 

निरंतर भजना नमः शिवाय 

आदर्श पथ दर्शाते नीलकंठ 

उपेक्षा करना आलोचना व्यंग 


त्याग तपस्या से जीवन सफल

भोग संलिप्तता  करती विफल

गोविंद कराना सकल कर्तव्य

करुणेश काटना फंद ममत्व


7 : सर्वोत्तम उपहार प्रसन्नता

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 प्राची मे उदित मुदित भास्कर

 करना स्वागत निद्रा त्यागकर 

होना सचेत लालिमा देखकर 

सदा प्रचुर कृपालु दिनकर


उड़ते विहंग पंख फैलाकर

प्रकटते हर्ष गोविंद गांकर 

प्रवाहित पवन इठलाकर 

कलियाँ हंसती मुख दिखाकर


 नृत्य में मगन भ्रमरावलियाँ 

साथ दे रही संगिनी तितलियाँ

हरित वसुधा बिखरे मोतियाँ

झिल -मिल झिलमिल झाँकियां 


बहती सरिता कल कल गाती

प्रकृति मधुर संगीत सुनाती 

सर्वत्र लहराती विजय केतु

 सहज उपलब्ध आनंद सेतु 


प्रत्येक जीव पशु पक्षी पतंग 

पूरित उत्साह उल्लास उमंग

कर्मठ कृषक भूमि सहलाता 

 धन्यवाद मुद्रा में हल चलाता


सब ओर अनुपम सजीवता 

अनुभव ईश्वरीय भगवत्ता 

सर्वोत्तम उपहार प्रसन्नता 

आनंद से स्पंदन ही सफलता


8: सेवा मात - पिता तुल्य जगत पिता

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कर्म संग स्मरण अभ्यास

पुन :पुन :निश्चित हो प्रयास

कर्म पर ध्यन रखना केंद्रित

चंचल मन न करें विचलित


कुछ काल अवश्य बैठना शांत

जग शोर से दूर चुनना स्थान 

देवालय सरिता -तट एकांत 

दृढतम हो संकल्प, न हों भ्रान्त 


तन मंदिर में ईष्ट उपस्थित 

हो मानसिक पूजा तथा कथित

पंचोपचार पूजा विधि - विधान 

गहनतम ध्यान, सर्वकल्याण 


श्वास -श्वास सदा भजना नाम 

समझना पूजा स्थान तीर्थ धाम 

निश्चित समय इष्ट को अर्पण 

मन से  अर्चना सर्व समर्पण 


चेतन -स्मरण सांसारिक कर्म

निष्ठा पूर्वक निर्वहन ही धर्म 

सत्य प्रेम दया उत्तम सिद्धांत 

नित्यानंद उपलब्ध उपरांत


 जीवन एक प्रभावी सरिता

 सद्गुरु सत्संग सद्ज्ञान सविता 

स्वाध्याय हो रामायण गीता 

सेवा मात - पिता तुल्य परमपिता


9 : श्रेयस्कर भजन अधिकतम 

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विनम्रता से सुलभ महानता

निरंतर अपनाना उदारता

स्वार्थमय सोच अकल्याणकारी 

सराहनीय जीव परोपकारी


सबकी सुनना ,विवेकी बोलना

 कथन से पूर्व अवश्य सोचना

निज ज्ञान किसी पर न थोपना

कदाचारी को समझाना, रोकना


सदा हितकारी बनना जिज्ञासु

 ज्ञानवान बनता ज्ञान पिपासु 

सरिता न दीर्घ जीवी बिन स्रोत

चिंतन मनन से जाग्रत ज्योत 


 रहना तत्पर सर्व - सहायता

 संसाधन प्रदाता  परमपिता 

उपलब्धि पर न करना गर्व 

हानि लाभ गोविंद के हाथ सर्व 


सचेत,ध्यान रहे आयु  अल्पता 

प्रमाद से विनष्ट शक्ति क्षमता 

अवश्य करना योग्यता प्रयोग

 निज जीवन का यही उपयोग


 अग्रज का आदर ,अनुज से  स्नेह 

रखना व्यवहार मधुर  प्रेय 

केवल मनुज तन श्रेष्ठतम

श्रेयस्कर भजन अधिकतम


10: जनक -जननी का अमूल्य ऋण 

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 ईश अनुकंपा प्राप्त नर-तन

 आभार पूर्वक करना नर्तन 

गोविंद जनक - जननी माध्यम 

 उनका महत्तम अधिकतम


 जनक - जननी, ईश उपस्थित

 सकल पदार्थ प्राप्त अयाचित

 संतान के सहायक संरक्षक

 सब गतिविधि के पर्यवेशक 


सतत उपलब्ध सहायतार्थ 

उदारमना निरंतर निस्वार्थ

सराहनीय संतान आज्ञाकारी

सद्गुणी परोपकारी सदाचारी


सदा संवारना निज वर्तमान 

कर्मठ कर्मनिष्ठ विवेकवान 

सदैव सेवक संतान महान

 सहज पथ आरोहण उत्थान


आचरण मनुज की पहचान

 विनम्रता महानता की सोपान 

सत्यवान ,ज्ञानवान ,बुद्धिमान

 भावना में विद्यमान भगवान


 परिवार सद्गुण की पाठशाला 

समाज चरित्र की प्रयोगशाला 

जनक -जननी का अमूल्य ऋण 

गोविंद कृपालु करना अऋण


✍️कृष्ण दयाल शर्मा

लाजपत नगर

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 97515899 80

बुधवार, 17 जुलाई 2024

मुरादाबाद के साहित्यकार के डी शर्मा (कृष्ण दयाल शर्मा ) की ग्यारह रचनाएं....


1. आदर्श चरित्र शुभ सदाचार

धर्म अर्थ काम मोक्ष पुरुषार्थ

प्रत्येक सद्कर्म करना निस्वार्थ

उदारता अपनाना मानवता 

साधनवान कृपण प्रवंचना 


परस्पर प्रेम करुणा साधना

 आपस में सहयोग उपासना 

सत्य असत्य समझना विवेक 

वर्जनीय पथ सदैव निषेध 


यम नियम निर्वहन उत्कृष्ट 

इन्द्रिय संयम  विहीन निकृष्ट 

कम कामना वाला शीघ्र सन्तुष्ट

अतृप्त इच्छाएँ करती रुष्ट 


जीवन निर्वहन विधि अनुसार 

काम क्रोध लोभ मोह अन्तर्विकार

 निन्दनीय बना देते व्यवहार 

आदर्श चरित्र शुभ सदाचार


विकार विहीन पुरुष उत्तम 

कुसंगी व्यसनी दंभी अधम 

चिन्तन मनन एंकात अभ्यास 

स्वयं के परिमार्जन का प्रयास


आत्मावलोकन से क्षीण स्व -दोष  

निर्मल साधक प्रिय आशुतोष

निज को सुधारना जीवन ध्येय 

गोविन्द स्मरण दिव्यानंद पेय


2. सनातन धर्म के मूल सिद्धांत

सनातन धर्म के मूल सिद्धान्त

दृढ़तम आस्था विश्वास अभ्रान्त

परमपिता परमेश्वर महान

उत्तमोत्तम विज्ञान आत्म -ज्ञान 


वेद शास्त्र परमेश्वर की वाणी 

द्वैत में अद्वैत देखता आत्म -ज्ञानी

सत्य प्रेम दया मय व्यवहार

सदा सात्विक संयमित आहार 


शम - दम से इन्द्रियाँ नियंत्रित

मन आत्म कल्याण पर केंद्रित 

मन-बुद्धि चित्त पूर्णतः पवित्र 

सर्वोत्तम धन केवल चरित्र 


मानव जीवन कर्तव्य प्रधान 

पूर्व जन्म कृत कर्म परिणाम

सुख -दुख सब विधि अनुसार 

संसार दुखालय, न बिसार


परिमार्जित रखना वर्तमान

निरन्तर कर्म -साक्षी भगवान

परहित कर्म कारक कल्याण

पर पीडा़ पाप मानते धीमान


सेवा सहायता करना धर्म 

सदैव देखना चेतन ,न चर्म

काम -क्रोध-लोभ मोह दानवीय

गोविन्द ,चलाना  पथ मानवीय

 

3. मन मन्दिर के सुदृढ स्तम्भ

परिवार की शोभा आज्ञाकारिता

आदर स्नेह मिश्रित मधुरता

सनातन वैदिक सामाजिकता

शोभित नैतिकता आध्यात्मिकता


आदर्श अनुसरणीय परम्परा

आनंदमय व्यवस्था इस धरा

वंदनीय अवध के चारों भाई

त्रेता में आज्ञाकारिता अपनाई


 मुदित हर्ष विषाद में तरस्थ

 वैदिक सिद्धांत पालन अभ्यस्त 

राम लखन भरत शत्रुघ्न 

उनके चरित्र का अभिवादन


निज भवन स्थापित रघुराई 

सर्वत्र दिव्यानंद लहर छाई

आनंदित सब सनातनी भाई 

नवीन युग की आशा गहराई


भारत भर में बाल युवा वृद्ध 

अब अपने सौभाग्य पर मुग्ध

गोविंद अनुकंपा से घड़ी आई 

वक्षु विग्रह दर्शन को ललचाई 


राम भक्तों का सपन हुआ सच्चा

प्रमुदित भारत का बच्चा- बच्चा 

हो गया नवीन युग का प्रारम्भ

राम मन मंदिर के सुदृढ स्तम्भ


4.श्रद्धा से श्रम, उपलब्ध प्राप्तव्य

केवल उदर भरना न ध्येय

भोग संलिप्तता निदंनीय हेय

पशुन्सा जीवन उपेक्षणीय

मानवीय सद्गुण आदरणीय


बिन दिव्यानन्द जीवन निस्सार

आनन्द स्रोत  जीव- जीव से प्यार

मुदिता  पथ प्रसन्नता प्रसार

अपना चितंन अवश्य सुधार


परमात्मा अनवरत उदार

सतत मानना उसका आभार

प्रार्थना आध्यात्मिकता का आधार

विनम्रता उपजाती नमस्कार


अवगत हो कर्मठता का महत्व

प्रमाद विहीन करना कर्तव्य

निगम शास्त्र समझाते ज्ञातव्य

श्रद्धा से श्रम, उपलब्ध प्राप्तव्य


सहज उपाय कल्याण करण 

अविस्मृत रहे गोविन्द स्मरण

रहना आदर्श पुरुष शरण

स्वाभाविक होगा सदाचरण


आत्मोन्नति हेतु नियम - संयम

अवश्यमेव हेतु एकांत मे मनन

मनुज जीवन हेतु ईश - नमन

आनंद सागर मे अवगाहन


5. आनन्द हेतु जीवन उपलब्ध

मृग रेणु को समझना सरिता 

दूर पर्यंत निरर्थक दौड़ता

आशा की आशा में मिलती निराशा 

व्यर्थ परिश्रम रहता प्यासा


दुखद करना कामना असीम

 स्मरण रहे प्राप्त आयु ससीम 

कैलास पर बिराजे आशुतोष

बतावें सर्वोत्तम धन संतोष 


प्रारब्ध से समझौता हितकर

अत्यंत अभिलाषाएँ मतकर 

आनंद हेतु जीवन उपलब्ध

विमूढ़ न उचित रहना क्षुब्ध 


ईश वश सफलता -असफलता

परिश्रम करना ही प्रसन्नता 

परिस्थितियाँ उपजाता विधाता

यथावत को स्वीकारना सिखाता


सकल जीवन एक पाठशाला

अनुभव पाने हेतु कर्मशाला

 अवश्य खोजना सद्गुरु वरिष्ठ 

अवधेश को उपलब्ध  वशिष्ठ 


सदैव सत्संग प्रदाता सद्ज्ञान

सर्वेश्वर परमेश्वर महान 

विनम्रता पूर्वक करना कर्म 

गोविंद स्मरण उपकारी धर्म


6. देखना जगत लीला नत माथ

 बैठना प्रशांत चर्म -चक्षु -बंद 

होगा आभास आनंद अविलंब 

अन्तर्मन उपस्थित उपवन

जहाँ  प्रफुल्लित विविध सुमन


प्रवाहित सुहानी मंद पवन

 व्याप्त चहुँ ओर अद्भुत सुगंध 

मन पशु बंधा संयम की डोर 

अनुपम कृपा अवध किशोर


चंचल इन्द्रियाँ अब न स्वतंत्र 

अब परतन्त्र एकाग्रता मंत्र

 संसारी हल -चल अब समाप्त

 अन्तर्भवन  परमानंद व्याप्त


जगत नहीं जगदीश दर्शन

भाव विभोर नित्यानंद नर्तन 

अच्युत चलाते अर्जुन का रथ 

रथी अविचलित स्वस्थ तटस्थ


जन्म -मृत्यु लाभ हानि ईश हाथ

 देखना जगत लीला नत माथ 

गोविंद प्रदत्त सब उपहार 

निस्वार्थ प्रयोग सहित आभार


सकल  संसार स्वामी अंतर्यामी 

एकमात्र विमूढ ही अभिमानी 

शाश्वत सिद्धांत पालक सद्ज्ञानी

विषय भोगी निरंतर अज्ञानी 


7. विवेकी साधक स्वयं को सुधारता

नियम पूर्वक बैठना एकांत

मन बुद्धि चित रखना प्रशांत 

हितकर सदा अपनाना मौन 

कभी न पूछना कहाँ, कैसे,कौन


चिंतन मनन का करना अभ्यास 

अवश्य होगा दिव्यता का आभास 

एक इष्ट पर हो ध्यान केंद्रित 

पाओगे स्वयं को अति आनंदित


कर्म सत्य प्रेम न्याय आधारित

रखता सबको सदैव मुदित

 सदाचार व्यवहार का आधार

 स्वार्थ वशीभूत न बने व्यापार


शरीर उपलब्ध उद्यम हेतु

परस्पर सद्कर्म कल्याण सेतु 

सर्व साक्षी  निरंतर निहारता 

विवेकी साधक निज को सुधारता


गंभीरता से आत्म -अवलोकन 

आनंद सागर में अवगाहन 

सद्गुण सद्विचार का आवाहन 

निंगम शास्त्र सिद्धांत निर्वहन 


सोचना स्वामी ने क्यों भेजा इस देश 

सेवक दृष्टि मे रखना उद्देश्य

अकल्याणकारी भोग संलिप्तता

कल्याणी गोविंद स्मरण  सात्विकता


8. कर्म संपादन पूजन चेतन 

सांसारिक कर्म बने आध्यात्मिक

 तामसिक राजसिक बने सात्विक

 देवालय समान हो कर्म - क्षेत्र

चिंतन मनन से चुनना श्रेष्ठ


कर्म का प्रेरक मन -विचार

सत्संग से मन - विचार सुधार 

कर्म को समझना देवों उपासना 

श्रद्धापूर्वक कर्म ही आराधना 


कर्म साधना, साध्य परोपकार

प्राप्त साधन गोविंद उपहार

निज श्रम पर व्यर्थ अंहकार

परिणाम  छिपा गर्त अंधकार 


कृषक बोता बीज पाता उत्पाद 

आशा में करता सर्वेश्वर याद 

अनवरत रहना सावधान

कर्म में स्मरण रहे भगवान


अर्जित संपत्ति नहीं जाती साथ 

पदार्थ विसर्जन हो नत -माथ

कर्म ही पूजा अर्चना जगन्नाथ 

कर्म फल न मिलता हाथों हाथ 


प्रत्येक कर्म को समझना पूजा

सनातन धर्म सिद्धांत अनूठा

आत्मा का वास शरीर निकेतन 

कर्म संपादन पूजन चेतन


9. आसन - प्राणायाम दैनिक कर्तव्य 

मुदित - मन मनाना योग -दिवस 

सदा  विलुप्त प्रमाद अमावस 

अंग - प्रत्यंग  चेतन प्रफुल्लित

 नित्यानंद प्रदायक उल्लसित

 

अष्ट  प्रहर प्रकाशित पूर्णिमा

विलुप्त सकल विकार कालिमा 

अपनाया संतुलित अल्पाहार

हो गया अन्त : करण निर्विकार 


स्वागत करती भास्कर रश्मियाँ

खिलती मन उपवन की कलियाँ

 हितकर गुरुदेव उपदेश 

सहज सात्विक वेष -परिवेष


अरुचिकर संसारी आडंबर 

 नीचे वसुंधरा ऊपर अंबर

 पल-पल अनुभव प्रसन्नता 

अनुपम अनुकंपा जग - पिता


अब अवगत जीवन महत्व

आसान प्राणायाम दैनिक कर्तव्य 

समक्ष प्रकट अपना गन्तव्य 

दिव्य प्रकाश ने दर्शाया मनुष्यत्व


तन - मन स्वस्थ कल्याण कारक

दंभ अज्ञान अंधकार मारक

गोविन्द, आभार प्रति गुरुदेव

हृदय देवालय में महादेव


10. जग -हित हेतु सत्य न बिसार

जग - हित हेतु शुभ्र हिमालय 

जग - हित हेतु दिव्य देवालय

जग - हित हेतु कविता सरिता 

जग - हित हेतु मयंक सविता


जग - हित हेतु सिंधु सरोवर

जग -हित हेतु हरित तरुवर

जग - हित हेतु पावन पवन

जग - हित हेतु वसुधा गगन


जग -हित हेतु वेद उपनिषद

जग -हित हेतु साहित्य विशद

जग -हित हेतु ब्रह्मा, विष्णु ,महेश

जग -हित हेतु सरस्वति गणेश


जग - हित हेतु साधक संतन 

जग - हित हेतु जीवात्मा वंदन

जग हित हेतु चिंतन - मनन

जग - हित हेतु आनंद स्पन्दन


जग हित हेतु कल्याण कामना 

जग -हित हेतु मंगल प्रार्थना

जग -हित हेतु दिवस - रजनी 

जग -हित हेतु जनक - जननी


जग - हित हेतु स्वयं को सुधार

जग - हित हेतु सत्य न बिसार 

जग -हित हेतु संसार निस्सार 

जग - हित हेतु गोविंद ही सार 


11. स्वयं ही जनक स्वयं ही जननी

ईश्वर ने देखा अद्भुत सपना

साकार हो गई उसकी कल्पना

स्वयं खेलने वाला स्वयं खिलौना 

चेतन निर्मित आत्मज सलोना


निराकार के लिऐ विविध आकार

सकल संसार का वही आधार

स्वयं ही जनक स्वयं ही जननी 

स्वयं ही मित्र बंधु भाई भगिनी


स्वयं ही आराध्या आराधना

स्वयं ही साध्य साधक साधना 

स्वयं ही करते सतत उद्यम

 स्वयं ही धरातल पर उत्तम


स्वयं रंगमंच स्वयं अभिनेता

स्वयं सामग्री के क्रेता विक्रेता 

स्वयं ही भोज्य पदार्थ स्वयं भोक्ता 

स्वयं ही भाषा भाषण श्रोता वक्ता 


स्वयं ही संसार के दृश्य पदार्थ 

स्वयं ही प्रत्येक कर्म परमार्थ 

स्वयं का कोष संसार की संपदा 

स्वयं ही हरत जगत विपदा


स्वयं का न कोई आकर स्वरूप 

स्वयं स्त्री -पुरुष सुंदर कुरूप 

ईश्वर स्मरण आत्म जागरण 

गोविंद विस्मरण  सदा मरण


✍️ कृष्ण दयाल शर्मा 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9756589980

सोमवार, 20 मई 2024

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था अंकन नवोदित साहित्यकार मंच की ओर से 19 मई 2024 को साहित्यकार कृष्णदयाल शर्मा का सम्मान


मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था अंकन नवोदित साहित्यकार मंच के बैनर तले रविवार 19 मई 2024 को प्रताप सिंह हिन्दू गर्ल्स इंटर कॉलेज की प्रधानाचार्य सीमा शर्मा के लाजपतनगर स्थित आवास पर आयोजित कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार कृष्ण दयाल शर्मा को सम्मानित किया गया।

  कार्यक्रम की अध्यक्षता रानी शर्मा ने की।  वरिष्ठ बाल साहित्यकार राकेश चक्र विशिष्ट अतिथि रहे  तथा डॉ. सीमा शर्मा, डॉ प्रीति हुँकार, इन्दु रानी  और शुभम कश्यप अतिथि मंडल में रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन के बाद शुभम कश्यप द्वारा प्रस्तुत मां सरस्वती वंदना से हुआ।कार्यक्रम का संचालन राजीव प्रखर ने किया । इस अवसर पर सभी ने काव्य पाठ भी किया ।