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सोमवार, 2 जनवरी 2023

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार मनोज मानव की गीतिका - पागल है वह

दिल का सच में सच्चा है, पागल है वह।

लेकिन सिर में फोड़ा है, पागल है वह।


बातें करने के खोजता बहाने है,

सबकी सुध-बुध रखता है, पागल है वह।


लोगों से मिलता है तो दिल में बसकर,

लूट दिलों को लेता है, पागल है वह।


हर सुख-दुख में सब मित्रों के साथ खड़ा,

नजर हमेशा आता है, पागल है वह।


मात-पिता, गुरुओं  में  ईश देखता है,

शायद अब तक बच्चा है, पागल है वह।


जाने कितनी बार पिया है विष उसने,

फिर भी अब तक जिंदा है, पागल है वह।


कोई ठेस पहुँचा दे दिल को तो भी खुश,

खुद को मानव कहता है, पागल है वह।


✍️ मनोज मानव

पी 3/8 मध्य गंगा कॉलोनी

बिजनौर  246701

उत्तर प्रदेश, भारत 

मोबाइल फोन नंबर  9837252598


रविवार, 25 दिसंबर 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार मनोज मानव के चौदह बाल गीत । विशिष्ट शैली में लिखे गए इन शिक्षाप्रद गीतों का मुखड़ा एक ही है....जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया। छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।।


 1... नित्य नहाना


जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।

छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।


सुबह-सवेरे नित्य नहाओ, दादा जी मुझको समझाते।

जिस दिन नहीं नहाता हूँ मैं , मुझे बुलाकर डाँट लगाते।

इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,

चुस्त-दुरुस्त सदा रहते वे, जो बच्चे नित सुबह नहाते।

क्या-क्या लाभ नहाने के नित, पापा ने मुझको समझाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


नित्य नहाकर मानव तन-मन, फुर्ती और ताजगी पाता।

बदन फूल सा खिल जाता है, आलस दूर सभी हो जाता।

नित्य नहाने से मानव को, फंगस रोग नही लगता है,

बैक्टीरिया त्वचा को कोई, हानि कभी नहीं पहुंचाता।

सुबह समय पर नित्य नहाना, शास्त्रों ने भी श्रेष्ठ बताया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


रोगों से लड़ने की क्षमता, बढ़ जाती है मानव तन की।

बदन निरोगी स्वयं हमारी, उम्र बढ़ा देता जीवन की।

बदबू दूर पसीने की हो, बदन महकता रहता दिन भर।

रहता निज मस्तिष्क स्वस्थ है, चमक बनी रहती आनन की।

नित्य नहाने की आदत से, रोगरहित रहती हैं काया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया


2..... पौधारोपण 


जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।

छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।


वर्षों से दादा जी सबका, जन्म-दिवस इस तरह मनाते।

जिसका जन्म-दिवस हो उससे , पौधारोपण एक कराते।

इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,

दादा को है प्रेम प्रकृति से, इसीलिए पौधे लगवाते।

पेड़ लगाना क्यों आवश्यक, पापा ने मुझको समझाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


केनवास पर पेड़ प्रकृति के, भव्य मनोरम रँग भरते हैं।

ध्यान प्रकृति के संरक्षण, संवर्धन का भी रखते हैं।

कार्बन-डाई-ऑक्साइड के, विष को पीकर पेड़ धरा पर,

प्राणवायु का उत्सर्जन कर , जीवन की रक्षा करते हैं।

वास और भोजन के सँग-सँग, देते हैं आँचल की छाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


कई तरह की जड़ी-बूटियां, पेड़ और पौधों से पाते।

तापमान बढ़ने से भू का , भू पर केवल पेड़ बचाते।

पेड़ों के बिन नहीं धरा की, सम्भव पर्यावरण सुरक्षा,

रहे सुरक्षित भू पर जीवन, इसीलिए हम पेड़ लगाते।

जिसने पेड़ लगाया उसने, धरती माँ का कर्ज चुकाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


3..... धूप में बैठकर शरीर की मालिश


जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।

छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।


छुट्टी के दिन मुझे धूप में , दादा छत पर लेकर जाते।

गर्म तेल से मेरी मालिश , करते अपनी भी करवाते।

इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,

ऐसे सूरज की किरणों से, मुफ्त विटामिन-डी  हम पाते।

लाभ विटामिन-डी के क्या-क्या, पापा ने मुझको समझाया,

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


अल्ट्रा-वायलेट किरणें जब, सूरज की तन पर हैं पड़ती।

त्वचा हमारी स्वयं विटामिन, डी किरणों से निर्मित करती।

गर्म तेल की मालिश से सब, रन्ध्र त्वचा के खुल जाते हैं,

तब निर्माण विटामिन करने,की गति बहुत अधिक जा बढ़ती।

इसी विटामिन-डी से बनती, हम सबकी बलशाली काया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


यही विटामिन-डी भोजन को, अच्छे से हैं नित्य पचाता।

तन में यही पचा कैल्शियम, हड्डी को मजबूत बनाता।

सँग में गर्म तेल तन के सब ,जोड़ों को देता नव ताकत,

भव्य निखार त्वचा को देकर , मानव तन का ओज बढाता।

जिसने भी इसको अपनाया, लाभ उसी ने इसका पाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


4..... खाने से पहले हाथ धोना


जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।

छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।


नित खाना खाने से पहले, मम्मी मेरे हाथ धुलाती।

बिना हाथ अच्छे से धोये , मेरा खाना नहीं लगाती।

इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,

धुलवाकर वह हाथ तुम्हारे, बीमारी से तुम्हें बचाती।

धोने क्यों है हाथ जरूरी, पापा ने मुझको समझाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


गन्दे हाथों के कारण ही , होते तन में रोग अधिकतर।

छिपे हुए कीटाणु हजारों , रहते हैं गन्दे हाथों पर।

बिना हाथ धोये जब बच्चे,अपने भोजन को खाते हैं,

भोजन के ही साथ सभी ये, चले पेट में जाते अंदर।

जिसके अंदर चले गये ये, उसको ही बीमार बनाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


पग-पग पर कीटाणु सक्रिय, वैज्ञानिक हमको बतलाते।

जब हम किसी सतह को छूते,तब ये चिपक हाथ पर जाते।

हम जब साबुन से हाथों को , अच्छे से धोते है  तो ये,

हुए वार को सहन स्वयं पर , ज्यादा देर नहीं कर पाते।

धोकर हाथ करे जो भोजन , रहे निरोगी उसकी काया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


5........ बड़ों के पैर छूना


जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।

छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।


चरण स्पर्श करना दादा जी, उत्तम अभिवादन बतलाते।

घर पर आते सभी बड़े जब, मुझसे उनके पैर छुआते।

इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,

झुककर पैर बड़ों के छूकर, हम उनसे ऊर्जा है पाते।

झुककर पैरों को छूने का , वैज्ञानिक कारण समझाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


छूते पैर बड़ों के जब हम, दादा , चाचा या हो ताया।

दाया हाथ पैर को बायें, बाया हाथ छुएगा दाया।

ऐसा जब होता है उस क्षण, चक्र एक विद्युतीय बनता,

जिससे सदा बड़ों की ऊर्जा , को छोटों ने उनसे पाया।

आशीर्वाद साथ में मिलता, जाता नहीं कभी जो जाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


ज्ञान बड़ों से कुछ पाने को, हमें उन्हें सुनना पड़ता है।

कुछ पाने के लिए सभी को, कुछ श्रम तो करना पड़ता है।

आशीर्वाद नाम की पूँजी , पाने को दुनिया मे बेटा,

ऊँचे से ऊँचे मस्तक को, नीचे तो झुकना पड़ता है।

बिना झुके इस सकल जगत में, आशीर्वाद कौन जन पाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


6....... भोर में जगना 


जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।

छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।


दादा-दादी जल्दी सोते, और सुबह जल्दी जग जाते।

हम यदि सुबह देर से जगते  , हमें बुलाकर डाँट लगाते।

इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,

रोज सुबह जल्दी जग जाना, शास्त्र हमारे श्रेष्ठ बताते।

फिर पापा ने इससे होते, क्या-क्या लाभ मुझे समझाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


नित्य भोर में जग जाने से, हमें अधिक ऊर्जा मिलती है।

दूर हमारा आलस कर जो, दिन भर चुस्त-दुरुस्त रखती है।

दिन भर बढ़ा प्रदूषण सारा , वृक्ष सोख लेते हैं मिलकर,

वातावरण शुद्ध होता है, प्राण वायु उत्तम बहती है।

इसीलिए तो समय भोर का , जगने को उत्तम कहलाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


सुबह-सुबह धरती माता का, भरा खुशी से रहता आँचल।

नित्य भोर में ईश- वन्दना, का मिलता है श्रेष्ठ सदा फल

सुबह-सुबह पढ़ने से बेटा, पाठ याद अच्छे से होता,

किया सुबह व्यायाम बहुत ही, तन को देता है उत्तम बल।

जो जगता है नित्य भोर में, रोगमुक्त तन उसने पाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया


7...... सूर्य नमस्कार


जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।

छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।


सुबह- सुबह नित मेरे दादा , अजब-गजब आसन करते हैं।

उठकर झुककर कमर धनुष कर, दण्डवत करते रहते हैं।

इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,

नमस्कार कर नित सूरज को , स्वस्थ स्वयं को वे रखते हैं।

नमस्कार सूरज को कैसे, करते हैं मुझको समझाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


पहले करे प्रणाम खड़े हो , फिर करते हस्त उत्तानासन।

उसके बाद पाद हस्तासन, करके करे अश्व संचालन।

अगली मुद्रा पर्वत आसन, बाद किया जाता दण्डासन।

फिर अष्टांग,भुजंगासन कर, आधा पूर्ण करे यह आसन।

फिर इन सबको उल्टे क्रम में, वापिस जाता हैं दोहराया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


बारह मुद्रिक इस आसन से , पूरे तन को लाभ पहुंचता।

सदा निरोगी रहता है वह , जो नित इस आसन को करता।

योगशास्त्र अनुसार इसी को ,सर्वश्रेष्ठ आसन कहते हैं,

बना लचीला मानव का तन , तन के सब कष्टों को हरता।

अस्सी साल उम्र दादा की, फिर भी रोगमुक्त है काया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


8...... गुरु जी ने मुर्गा बनाया


जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।

छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।


आज परीक्षा लेकर गुरु ने , बच्चों को यह दंड सुनाया।

जिनके उत्तर सही नहीं थे , उन सबको मुर्गा बनवाया।

इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,

सजा रूप में भी गुरुवर ने , योगासन अभ्यास कराया।

कितने अधिक लाभ होते हैं, मुर्गा आसन के बतलाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


योग-शास्त्र में मुर्गा आसन, समझो कैसे हम हैं करते।

झुककर टाँगों के नीचे से , हाथों से निज कान पकड़ते।

जितना ऊपर उठा सके फिर, ऊपर कमर उठा देते हैं,

साँस रोककर तनिक देर तक , इसी अवस्था में हैं रहते।

जिसने भी यह किया नियम से, उसने इसका लाभ उठाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


मुर्गा आसन को करने से , बढ़ संचार रक्त का जाता।

बढ़ा रोशनी ये आंखों की , लाभ सभी को है पहुंचाता।

पाठ याद करने की क्षमता , बहुत अधिक बढ़ जाती इससे,

इसीलिए तो सजा रूप में , सब गुरुओं को ये है भाता।

सबक शिष्य जो लिया सजा से, वही सफलता को छू पाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


9......पक्षियों को दाना-पानी


जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।

छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।


दादा जी नित छत पर जाकर, दाना-पानी रखकर आते।

आस-पास के पक्षी सारे , कलरव कर छत पर आ जाते।

इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,

ऐसा कर तेरे दादा जी , मानवता का फर्ज निभाते।

इसके पीछे छिपे भेद को, पापा ने मुझको समझाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


बेटा ऐसा नित करने से, घर में क्लेश नहीं हो पाते।

शास्त्र हमारे कहते इससे , सब ग्रह दोष दूर हो जाते।

वैज्ञानिक भी यह कहते हैं, मित्र हमारे होते पक्षी,

चुन-चुन कीट पतंगे खाकर, बीमारी से हमें बचाते।

सारे सुख उस आँगन बसते, जिसे पक्षियों ने चहकाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


रंग-बिरंगे पक्षी बेटा, हर मानव के मन को भाते।

जितना हमसे पाते पक्षी, उससे अधिक हमें दे जाते।

फल खाने पर बीज फलों के,पक्षी पचा नहीं पाते हैं,

पक्षी की बीटों से भू पर , नये-नये पौधे उग आते।

जिसने दाना-पानी डाला, उस मानव ने पुण्य कमाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


10...... गाय और कुत्ते की रोटी


जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।

छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।


मम्मी लगी सेंकने रोटी, पहली रोटी अलग निकाली।

उसके बाद लगायी माँ ने, दादा-दादी जी की थाली।

इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,

पहली रोटी गौ माता की, अंतिम रोटी कुत्ते वाली।

दोनों जीवों की महिमा को, पापा ने मुझको समझाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


इस धरती पर मात्र गाय ही , पालनहार पूर्ण कहलाती।

दूध पूर्ण भोजन है इसका, इसीलिए कहलाती दाती।

वफादार कुत्ते के जितना, नहीं जीव कोई धरती पर,

कुत्ते को रोटी डाले जो,उसको अकाल मौत  न आती।

नहीं फटकता इनके रहते, किसी दुष्ट आत्मा का साया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


ईश्वर इन पशुओं को भू पर, हम मानव के मित्र बनाये।

इन सबके पालन पोषण के , उर मानव के भाव जगाये।

मुफ्त नहीं लेते ये सेवा , उसका फल हमको देते हैं,

कदम-कदम पर साथ हमारे , नजर हमेशा ये सब आये।

इनकी सेवा की जिसने भी , वह सच्चा मानव कहलाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


11...... बुजुर्गों के पैर दबाना


जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।

छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।


सभी काम निपटाकर मम्मी, नित दादी के पैर दबाती।

कभी एक तो कभी दूसरी, पकड़ पिंडली जोर लगाती।

इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,

ऐसा करने से दादी को, नींद बहुत अच्छे से आती।

पैर दबाने का पाचन से, रिश्ता पापा ने समझाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


नसें पिंडली में जो होती, उनका आंतों से हैं नाता।

पैर दबाने से खाने का , पाचन अच्छे से हो जाता।

पैर दबाने से दादी की , दूर थकान सभी हो जाती।

दौर रक्त का बढ़ जाता है , जो तन-मन को बहुत लुभाता।

बड़े और बूढ़ों की सेवा, करना पापा ने सिखलाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


पापा बोले सुन लो बेटा, तुम भी अपना फर्ज निभाओ।

अच्छे से तुम दादा जी के, जाकर दोनों पैर दबाओ।

बड़े बुजर्गों की सेवा का, फल ईश्वर देता है सबको,

जब भी मौका मिले बुजुर्गों, का आशीष सदा तुम पाओ।

जीवन सफल उसी का जिसने, आशीर्वाद बड़ों का पाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


12........ दूध बिलोना


जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।

छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।


मम्मी दूध बिलोने बैठी, लगा बिलोनी हांडी ऊपर।

बारी-बारी उल्टे-सीधे, लगी घुमाने उसके चक्कर।

इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,

इससे ही मक्खन निकलेगा, जो है छिपा दूध के अंदर।

बड़े प्यार से पापा ने फिर, मंथन का मतलब समझाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


द्रव्य स्वयं में अपने अंदर, रखता अवयव कई समाये।

मथने से अंदर के अवयव, निकल सतह पर ऊपर आये।

सतयुग में सागर के अंदर, रत्नों का भंडार छिपा था,

बृह्मा जी देवों से कहकर, सागर का मंथन करवाये।

सागर मंथन कर देवों ने, अपने लिए अमृत था पाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


सुन बेटा ईश्वर धरती पर, दूध मनुज के लिये बनाये।

चतुराई से अमिय रूप में, उसमें मक्खन दिये छिपाये।

सागर मंथन से शिक्षा ले, मथने लगा दूध को मानव,

जिससे निकला मक्खन खाकर, बच्चे उन्नत ताकत पाये।

मक्खन खाने से बच्चों की, बनती हैं ताकतवर काया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


13.... आटा गूंथती माँ


जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।

छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।


मम्मी गूँथ रही थी आटा , मैंने थोड़ा ध्यान लगाया।

बार-बार माँ ने आटे में, थोड़ा-थोड़ा नीर मिलाया।

इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,

नीर अधिक हो गया अगर तो, आटा हो जायेगा जाया।

और तभी अनुपात विषय के, बारे में मुझको समझाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


पटक-पटक मम्मी ने आटा, उस पर गुस्सा खूब उतारा।

लगी मारने घूसे उसको, और कभी चांटा जा मारा।

इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,

बोले बेटा तेरी माँ के, पास ज्ञान का भरा पिटारा।

ऐसा कर उसने आटे की, लोच बढा वह नरम बनाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


रिश्ते-नाते सुख देते जो, और कहाँ सुख मिलता वैसा।

रिश्तों में अनुपात चाहिए, आटे और नीर के जैसा।

जैसे सही लोच आने पर, रोटी अच्छी बनती वैसे,

मात्र लोच पर निर्भर नर का , नर से रिश्ता होगा कैसा।

सफल जिंदगी उसकी जो जन,  पग-पग खुद में लोच बढाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया



14... दाल पकाई मां ने


जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।

छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।


चूल्हें चढा दाल मम्मी ने, धीरे-धीरे ताप बढाया।

बड़ी समझदारी से उसमे ,आया सारा झाग हटाया।

इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,

साथ गुणों के विष आ जाता, ऐसा कर विष मुक्त बनाया।पकते-पकते दाल पिता ने , इसका भेद मुझे बतलाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


झाग मुक्त जब हुई दाल तो, रंग निखर कर उसका आया।

दाल सही से पक जाने पर, माँ ने उसमें छौंक लगाया।

इसका कारण जब पूछा तो , पापा ने समझाया मुझको,

छौंक लगाया उसने तब ही, जब तैयार दाल को पाया।

डले मसालों की खुशबू ने , दाने-दाने को महकाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।


बापू बोले सुनो गुणों के, अवगुण साथ चला करते हैं।

ज्ञानी लोग तपस्या के बल, दूर जिन्हें करते रहते हैं।

अपने लिए श्रेष्ठ पोष्टिक, छाँट मसालों को जीवन में,

छौंक ज्ञान का लगा स्वयं में, जीवन में आगे बढ़ते हैं।

जीवन सफल उसी का जिसने, जीवन को विष-मुक्त बनाया।

जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।

✍️ मनोज मानव 

पी 3/8 मध्य गंगा कॉलोनी

बिजनौर  246701

उत्तर प्रदेश, भारत 

मोबाइल फोन नंबर  9837252598


शनिवार, 29 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार मनोज मानव की गीतिका ....


बहे जो दरिया वे मीठे अवश्य होते हैं।

मिले समुद्र तो खारे अवश्य होते हैं।


सभी चुनाव में वादे अवश्य होते हैं।

हटे गरीबी ये नारे अवश्य होते हैं।


किसी को मिलती नहीं मंजिलें सरलता से,

सभी के मार्ग में काँटे अवश्य होते हैं।


भले हो कागजों में पाँच साल गारंटी,

सड़क पे वर्षा में गड्ढे अवश्य होते हैं।


महान लोग सदा कर्म करते चुपके से,

जो ढोल होते वे पोले अवश्य होते हैं।


बुआ भतीजे की शादी में खुश हो कितनी भी,

महान फूफा जी रूठे अवश्य होते हैं।


कठोर लगते हैं जो लोग अपनी भाषा से,

वे दिल के द्वार को खोले अवश्य होते हैं।


समय को कोसना होता नहीं उचित मानव,

मिले सभी को ही मौके अवश्य होते हैं।


✍️ मनोज मानव 

पी 3/8 मध्य गंगा कॉलोनी

बिजनौर  246701

उत्तर प्रदेश, भारत 

मोबाइल फोन नंबर  9837252598



मंगलवार, 18 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद मंडल के चांदपुर (जनपद बिजनौर) की साहित्यकार उर्वशी कर्णवाल के गीत संग्रह...." मैं प्रणय के गीत गाती" की बिजनौर के साहित्यकार मनोज मानव द्वारा की गई समीक्षा....

 192 पृष्ठों में 120 गीतों से सजा उर्वशी कर्णवाल का छंदबद्ध गीत संग्रह... ..." मैं प्रणय के गीत गाती", जिसमें मेरी दृष्टि से 25 सनातनी छंदों का प्रयोग किया गया है... द्विबाला, आनन्दवर्धक, सारः, लावणी, द्विमनोरम,स्रावि्गणी, राधेश्यामी , शृंगार, चतुर्यशोदा , माधव मालती,  विधाता, भुजंगपर्यात, सार्द्धमनोरम, गंगोदक, मानव, गीतिका, नवसुखदा , द्विपदचौपाई, महालक्ष्मी, दोहा, वीर/आल्हा, विष्णुपद, चौपाई ।

शारदे माँ की सुंदर वंदना से गीत संग्रह का बहुत सुंदर प्रारम्भ किया गया है। गीत- संग्रह में प्रेम के तीनों रूपों को बहुत ही खूबसूरती से प्रस्तुत किया है , ग्रन्थ प्रणय से शुरू होकर विरह की यात्रा करता हुआ प्रेम के अंतिम एवं सबसे भव्य स्वरूप भक्ति पर समाप्त होता है। 

यों तो संग्रह के सभी गीत छन्द एवं भावों का मधुर संगम के दर्शन कराते है लेकिन अधिकतर गीतों में भावों का विशाल सागर है जिसमें पाठक एक बार डुबकी लगाकर गहराई की ओर जाने से स्वयं को नहीं रोक पायेगा।देखिएगा प्रणय गीतों के कुछ ऐसे ही भाव--

" प्रेम पूज्य है, प्रेम ईश है, प्रेम हृदय का स्पंदन है।

  प्रेम विधाता का अनुभव है , प्रेम दिव्य का दर्शन है।।

एक और गीत देखिएगा

" एक वनिता को व्यथित कर, जा रहे पुरुषत्व लेकर।

  प्रीति की लय से विमुख हो, क्या किया बुद्धत्व लेकर।

उर निरंतर चाहता था , यह भुवन हो प्रीति सिंचित,

स्वाद रंगों से रहित यह, क्या करूंगी सत्व लेकर।

प्रीति की लय से विमुख हो, क्या किया बुद्धत्व लेकर।।

लेखिका ने प्रणय को बहुत ही खूबसूरती से परिभाषा दी है देखिएगा...

" व्याप्त हर कण में सुवासित, सृष्टि है चाहे प्रलय है।

  डूबता जो वह तरेगा, सिंधु सा गहरा प्रणय है।

  डूबकर पा ले चरम जो, या स्वयं को भी मिटा ले, 

  हो नहीं सकता पराजित , मृत्यु का उसको न भय है।

डूबता जो वह तरेगा, सिंधु सा गहरा प्रणय है।।

लेखिका ने चतुर्यशोदा जैसे अत्यंत कठिन छन्द को बहुत ही खूबसूरती से प्रस्तुत किया है , जिसकी बहुत सुरीली धुन है ...." रिहाले-मस्ती मकुंदरंजिश जिहाले हिजरा हमारा दिल है"

खुले-खुले से सुवास गेसू, मुदित हृदय को किये हुए है,

मंदिर-मंदिर सी, मलय अनोखी, लगे कि जैसे पिये हुए है।

प्रदीप्त स्वर्णिम, सवर्ण किरण सी प्रकाश करती उजास भरती।

झलक तुम्हारी अलग अनूठी कि प्राण लाखों दिए हुए हैं।।"

एक और मधुर छन्द माधवमालती का गीत देखिए

" जिंदगी के इस भँवर में, काल के लंबे सफर में,

शब्द उलझाते बहुत हैं, अर्थ तड़पाते बहुत हैं।

मौन को पढ़ना पड़ेगा,

पथ स्वयं गढ़ना पड़ेगा।।"

जब विरह के चरम पर कलम चले और उसे  मधुर ताल युक्त  गंगोदक छन्द  का साथ मिल जाये तो क्या उत्कृष्टता आती है  इस गीत में  देखिएगा, 

" भाव खो से गये शब्द मिलते नहीं, लय कहाँ गम हुई गीत कैसे लिखूँ,

श्वास या घड़कनें नाम में लीन है, पुष्प मुरझा गया पाँखुड़ी दीन है,

काँच की कोठरी , पात की झोपड़ी , पीर की ,अश्रु की, रीत कैसे लिखूँ ।"

वैसे तो संग्रह में ईश भक्ति , मातृ भक्ति के कई गीत है लेकिन एक गीत जो पितृ महिमा पर केंद्रित है बरबस आकर्षित करता है ।

" हमारे धन्य जीवन का, रहें आधार बाबू जी।

  तुम्हारे पुण्य-कर्मों को, कहें आभार बाबू जी।।

  घनी रातों में दीपक से, दिखाते रोशनी हमको,

  बने चंदा सितारों में , दिखाते चांदनी हमको।

  हमारे ग्रन्थ बाबू जी , हमारा सार बाबू जी ।।"

एक गीत में लेखिका ने समाज मे व्याप्त कोढ़ पर बड़ी सुंदर कलम चलायी है।

" शिकारी कुछ यहाँ ऐसे, चमन को छीन लेते हैं।

   जरा सी दे धरा तुमको , गगन को छीन लेते हैं।।"

आज कम्प्यूटर नेटवर्क के जमाने में पुस्तकों के महत्व को दर्शाते हुए लेखिका कहती है....

" पढ़ो पढ़ाओ किताब सब जन, सखी सहेली किताब होती,

उठे जो मन मे हजार उलझन , सवाल का ये जबाब होती।"

 अंत मे लेखिका ने गीत के माध्यम से कवि समाज के लिए संदेश दिया है कि --

" भूख- गरीबी लाचारी पर, होती खूब रही कविताई,

   अब थोड़ा सा जगना होगा, अंगारों पर लिखना होगा।

   कागज - कलम दवातें छोड़ो, तलवारों पर लिखना होगा

   उठने से पहले दब जाती, चीत्कारों पर लिखना होगा।

यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा यह छंदबद्ध उत्कृष्ट गीत संग्रह, लेखिका को साहित्य जगत में अपनी एक अलग पहचान दिलाने के समस्त गुण रखता है ।



कृति : मैं प्रणय के गीत गाती (गीत संग्रह)

रचनाकार : उर्वशी कर्णवाल

प्रथम संस्करण : वर्ष 2022

मूल्य : 300 ₹

प्रकाशक : शब्दांकुर प्रकाशन , नई दिल्ली

समीक्षक : मनोज मानव 

पी 3/8 मध्य गंगा कॉलोनी

बिजनौर  246701

उत्तर प्रदेश, भारत

दूरभाष- 9837252598