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सोमवार, 23 जनवरी 2023

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद संभल ) के साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग की कृति बाल रामायण की अतुल कुमार शर्मा द्वारा की गई समीक्षा ...रामरस में जलते दीपक की अलौकिक आभा.

आज हम ऐसे युग में जीवन व्यतीत कर रहे हैं, जहां हम अपने आप को ही समय नहीं दे पाते। सुबह से शाम तक मशीन की तरह काम करते हुए भी, मन में चैन नहीं, आत्मा को शांति नहीं, हृदय में संतोष नहीं। जिसके पास जितनी अधिक दौलत है ,उसको उतना अधिक मानसिक असंतोष भी है क्योंकि हमारी इच्छाएं कभी पूर्ण होने का नाम नहीं लेतीं और न ही हम लालच के चलते थकान मानने को तैयार होते हैं। इस भागदौड़ में अपने रिश्ते को निभाना भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं है। पारिवारिक रिश्तों को बांधे रखना और सास-बहू, पिता-पुत्र, मां-बेटा, भाई-भाई के प्रति कर्तव्यों का निर्वहन करना, आज के समय में तो लगभग असम्भव ही प्रतीत होता है ।ऐसे विकृत समाज को, किस तरह सुसंगठित, सुसंस्कृत एवं सुसभ्य बनाया जाए? यह एक कठिन प्रश्न है। साहित्य की भूमिका ऐसे जटिल समय में और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। गीता, रामायण और रामचरितमानस भारतीय संस्कृति के आधार हैं ,आध्यात्मिक जगत एवं मन की दृढ़ता हेतु इनका अध्ययन आवश्यक है लेकिन व्यक्ति के पास समय का अभाव है। ऐसे में कवि दीपक गोस्वामी चिराग ने, अपने शब्दों को एक ऊंची मशाल की भांति, "बाल रामायण" के रूप में प्रस्तुत किया है जिसको बच्चे  आसानी से समझ सकेंगे तथा संक्षेप में रामायण और रामचरित्र की समझ, अपने अंदर विकसित कर सकेंगे। आकर्षक तरीके से कवि ने पद्य रूप में, रामायण के प्रमुख प्रसंगों तथा सनातनी परंपराओं का उल्लेख किया है, यहां तक कि श्री राम स्तुति को भी अपने ढंग से प्रस्तुत कर, भगवान राम का गुणगान किया है। चारों भाइयों एवं उनकी पत्नियों का परिचय चार लाइनों में समेट कर, कवि ने अपनी योग्यता का परिचय दिया है-

"सिया-राम की मिल गई जोड़ी ,गया अवध को भी संदेश ।

भरत शत्रुघ्न साथ लिए फिर, दशरथ आए मिथिला देश।

लखन लाल ने पाई उर्मिला, और मांडवी भरत के साथ।

छोटे भ्राता शत्रु-दमन ने,श्रुतिकीरत का थामा हाथ।"

कई-कई प्रसंगों का विवरण कुछ ही पंक्तियों में भरना और फिर उसके दृश्यों को भी स्पष्ट कर देना, यह कठिन कार्य है। राम रावण युद्ध की मुख्य कारण बनी सूपर्नखा का, रावण के दरबार में जाकर किए गए विलाप का दृश्य देखिए-

"राम-लखन हैं वे दो भ्राता, दोनों अवधी राजकुमार।

साथ लिए इक नारी सीता,जो सुंदर है अपरंपार।

बदला मेरा ले लो भ्राता,हुआ निशाचर कुल पर वार।

छाती मेरी तब ठंडी हो,हर लाओ तुम उनकी नार।"

अरण्यकांड में हम पढ़ते हैं कि माता सीता का हरण होने पर जटायु, रावण पर हमला बोल देता है, बलशाली रावण के सामने पूरे साहस से लड़ता है, लेकिन विवश हो जाता है और भगवान राम को यह राज बताने के बाद, कि 'सीता का हरण रावण ने किया है' वह प्राणों को त्याग देता है। धर्म की राह पर न्योछावर होने वाले जटायु ने भी भगवान राम की मदद की , इससे सिद्ध होता है कि पशु-पक्षियों में भी, श्रीराम के प्रति प्रेम भरा था।इस दृश्य को दीपक जी इस प्रकार प्रस्तुत करते हैं-

"वन-वन,उपवन खोजैं राघव, नहीं मिली सीता की थाह।

पढ़ा अधमरा मिला जटायू, देख रहा रघुवर की राह।

दसकंधर ने हर ली सीता, किया गीध ने यही बयान।

ज्यौं रघुवर ने गले लगाया, छोड़ दिए फिर उसने प्रान।"

शक्ति और धन का घमण्ड, उस व्यक्ति को स्वयं को ही तोड़ देता है, क्योंकि वास्तविकता को अधिक समय तक नहीं दबाया जा सकता । एक तरफ रामा दल में भाई-भाई के प्रति अपार स्नेह दिखता है, दूसरी तरफ रावण अपने भाई विभीषण को लात मारकर अपने राज्य से निकाल देता है। इसी से रुष्ट होकर, विभीषण भाई रावण की मृत्यु का कारण बन जाता है, उधर शत्रु-दल का होने के बाद भी ,श्रीराम विभीषण को स्नेह प्रदान करते हैं । इस प्रसंग पर कवि ने लिखा है -

"भक्त विभीषण ने समझाया, रावण नहीं रहा था मान।

दसों दिशाओं का था ज्ञाता, आड़े आता था अभिमान।

ठोकर मार विभीषण को जब, दिया राज्य से उसे निकाल।

राम-भक्त था संत विभीषण, पहुंचा रामा दल तत्काल।

उत्तरकांड में राम राज्य का बहुत सुंदर दृश्य देखने में आता है, जहां धर्म है, नीति है, प्रेम है, संयम है, न्याय है, मर्यादाएं हैं, कर्तव्यनिष्ठा का भाव है, भाईचारा है। ऐसे रामराज्य की कल्पना करना जितना सुखद है, उसे स्थापित करना आज के समय में उतना ही मुश्किल भी है। रचियता ने रामराज्य का एक चित्र खींचा है-

"सिंहासन पर बैठे रघुवर,हो गए हर्षित तीनों लोक।

चहुँदिशि बरस रही थीं खुशियां,नहीं दिखे था किंचित शोक।

मालदार हो या हो निर्धन, नहीं न्याय में लगती देर।

एक घाट सब पानी पीते,या हो बकरी या हो शेर।"

"बाल रामायण" की रचना करके दीपक जी ने आज के जहरीले परिवेश में, भक्ति रस की धारा को प्रवाहमान करके, न केवल सुंदर कार्य किया है, बल्कि एक धार्मिक अनुष्ठान किया है, 108 कुंडलीय यज्ञ किया है, नई पीढ़ी को संस्कार देने की कोशिश की है, गृहस्थजनों को अपने परिवारों को संगठित रखने की अपील की है,बच्चों में माता-पिता के प्रति पवित्र भाव रखने की सीख दी है, जन-जन को धर्म के मार्ग पर चलने को प्रेरित किया है। अर्थात कुल मिलाकर संपूर्ण समाज की बिगड़ती आकृति को, सुडौलता प्रदान करने की भरपूर कोशिश की है।


कृति : "बाल रामायण" (काव्य)

रचयिता : दीपक गोस्वामी "चिराग"

प्रथम संस्करण : 2022, मूल्य: 160 ₹

प्रकाशक : सस्ता साहित्य मण्डल प्रकाशन,न‌ई दिल्ली


समीक्षक
: अतुल कुमार शर्मा

सम्भल

उत्तर प्रदेश, भारत

मो०-8273011742



शनिवार, 19 नवंबर 2022

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद संभल)के साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग की रचना ....गौरैया और गिद्ध


सुनो! सुनाऊं, ध्यान से; सुन लो मेरे मीत।

गौरैया और गिद्ध में हुई अनोखी प्रीत। 


ऐसी डूबी प्रीत में, इक गौरैया यार।

प्रीत करी इक गिद्ध से, किया न तनिक विचार।

 

समझाई माँ-बाप ने, समझ सुता यह मर्म। 

गौरैया और गिद्ध के, नहीं निभेंगे धर्म।


लाख सीख दी भ्रात ने, मत कर ऐसी प्रीत।

माँ का आंचल रौंदकर ,गइ गौरैया जीत।


गौरैया पर गिद्ध का, चढ़ा प्रेम का रंग।

गौरैया फुर हो गई, छली-गिद्ध के संग।


 लिप्त हुए फिर 'काम में, खूब बुझाई प्यास।

मात-पिता करते रहे, गौरैया की आस।

 

देह वासना में सखे!, बीते कुछ दिन- रैन।

देख रूप फिर गिद्ध का, गौरैया बेचैन।


 उसका धन लुटता रहा, भइ गौरैया रंक ।

नोचे इक-इक गिद्ध ने, गौरैया के पंख।

 

हुई जुल्म की इंतेहा, फटा कलेजा यार।

गौरैया को गिद्ध ने, दिया एक दिन मार।


विनती करे 'चिराग' यह, दे! गौरैया ध्यान।

किसी प्रेम में तोड़ मत, मात-पिता की आन।


 मात-पिता के प्रेम का, रख गौरैया मोल।

धरती के भगवान हैं, मात-पिता अनमोल।


✍️ दीपक गोस्वामी 'चिराग'

शिवबाबा सदन, कृष्णाकुंज 

बहजोई -244410 

जनपद संभल

उत्तर प्रदेश, भारत

मो. 9548812618 

ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com

मंगलवार, 8 नवंबर 2022

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद संभल) के साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग की बाल कविता ....चंद्रग्रहण


शिक्षक जी बच्चों से पूछे,

फिर से एक सवाल। 

चंद्रग्रहण कैसे-क्यों पड़ता, 

बतलाओ तत्काल। 


गप्पू जी ने हिम्मत करके, 

सर जी को बतलाया ।

चाँद चमकता है,सूरज से,

तुमने हमें बताया ।


सर जी बोले सही पकड़े हो,

पर आगे बतलाओ ।

चंद्रग्रहण की सारी घटना,

जल्दी से समझाओ।

 

सूर्य-चंद्रमा में भी तो सर!,

झगड़ा होता होगा। 

सूरज न देता प्रकाश, तब,

चंदा रोता होगा। 


उस दिन सर जी हमें रात में,

चाँद न जब दिख पाता।

समझो सर जी उसी रात में,

चंद्रग्रहण पड़ जाता। 


सारी कक्षा ही-ही करके,

गप्पू पर थी हँसती। 

शिक्षक जी ने डाँटा सबको,

करो न इतनी मस्ती। 


कुछ तो कोशिश करता गप्पू ,

कुछ तो हमें बताता।

सूर्यप्रकाश से चाँद चमकता,

गप्पू सही फरमाता। 


सुनो ध्यान से पूरी कक्षा, 

देखो मैं समझाऊं। 

चंद्रग्रहण की पूरी घटना, 

मे तुमको बतलाऊं।


जब पृथ्वी सूरज-चंदा के,

ठीक मध्य में आती। 

तब सारी किरणें सूरज की, 

भू तक पहुंच न पाती।


अरु पृथ्वी की छाया बच्चो!

चंदा पर पड़ जाती। 

यह खगोलिय घटना गप्पू !,

चन्द्रग्रहण कहलाती।

 

पूर्णिमा है वो तिथि बच्चो!,

जब ऐसा होता है। 

न सूरज लड़ता चंदा से, 

न चंदा रोता है।


✍️ दीपक गोस्वामी 'चिराग' 

शिवबाबा सदन, कृष्णाकुंज,

बहजोई-244410 (संभल) 

उत्तर प्रदेश, भारत

मो. 9548812618 

ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com

मंगलवार, 6 सितंबर 2022

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद संभल) के साहित्यकार दीपक गोस्वामी विराग की पांच बाल कविताएं .....


 (1) माँ! मैं भी बन जाऊँ कन्हैया

माँ! मैं भी बन जाऊँ कन्हैया,

 मुरली मुझे दिला दे।

और मोर का पंख एक तू,

मेरे शीष सजा दे।


ग्वाल-बाल के साथ ओ! मैया,

मैं भी मधुबन जाऊँ।

प्यारी मम्मी! मुझको छोटी,

 गैया एक दिला दे।


यमुना तट पर मित्रों के सँग,

गेंद-तड़ी फिर खेलूँ।

मारूँ तक कर गेंद,ओ माता!

मुझे पड़े तो झेलूँ।


और कदंब के पेड़ों पर मैं,

पल भर में चढ़ जाऊँ।

कूद डाल से यमुना में फिर,

गोते खूब लगाऊँ।


ऊँची डाली पर बैठूँ मैं,

मुरली मधुर बजाऊँ।

मुरली मधुर बजा कर मैया,

गैया पास बुलाऊँ।


मैं फोड़ूँ माखन-मटकी भी,

माखन खूब चुराऊँ।

मेरे पीछे भागें गोपी,

उनको खूब भगाऊँ।

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(2) कोयल कहती मीठा बोलो

कोयल कहती मीठा बोलो, 

फूल कहें मुस्काओ। 

चिड़िया चूँ-चूँ करके बोले, 

शीघ्र सुबह उठ जाओ।

 

चींटी यह कहती है हमसे, 

श्रम की रोटी खाओ। 

कुत्ता भौं-भौं कर बतलाता,

 वफादार बन जाओ। 


नदी सिखाती चलते रहना,

 थक कर मत रुक जाना। 

पर्वत कहता तूफानों को,

 कभी न शीष झुकाना।


वृक्ष हमें फल देकर कहते,

 सदा भलाई करना। 

मधुमक्खी सिखलाती बच्चो!

 सदा संगठित रहना।

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(3) चांद और पृथ्वी में संबंध

अध्यापक जी ने कक्षा में, 

पूछा एक सवाल ।

चांद और पृथ्वी में संबंध,

बतलाओ तत्काल ।


सारे बच्चे थे भौचक्के, 

क्या है यह जंजाल। 

सर जी ने पूछा है हमसे, 

कैसा आज सवाल? 


सर जी मैं बतलाऊँ उत्तर,

 उठकर गप्पू बोला। 

कक्षा में तो आता नहीं तू,

 खबरदार मुँह खोला। 


सब बच्चों के कहने पर फिर,

 सर ने दे दिया मौका। 

देखो प्यारे गप्पू ने फिर, 

मारा  कैसे चौका।


चाँद और पृथ्वी का संबंध,

हमको दिया दिखाई। 

पृथ्वी तो है प्यारी बहना, 

और चांद है भाई। 


अध्यापक गुस्से में बोले- 

पूरी बात बताओ। 

भाई और बहन का रिश्ता,

 कैसे है समझाओ।


 गप्पू बोला मैं  बतलाता, 

ओ गुरुदेव! हमारे।

 समझाता हूँ सुनो ध्यान से,

 तुम भी बच्चों सारे। 


जब चंदा है अपना मामा,

धरती अपनी मैया।

फिर क्यों नहीं होगा धरती का,

 चंदा प्यारा भैया। 


फिर क्या था पूरी कक्षा ने 

खूब बजाई ताली। 

बड़ी शान से गप्पू जी ने, 

छाती खूब फुला ली।

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(4) बच्चों के मन भाता संडे

बच्चों के मन भाता संडे।

सबको बहुत लुभाता संडे।


 होमवर्क से मिलती छुट्टी,

 कितना रेस्ट कराता संडे। 


सिर्फ एक दिन मुख दिखलाता,

 फिर छ: दिन छुप जाता संडे।


 बच्चों को पिकनिक ले जाकर, 

खुद 'फन-डे' बन जाता संडे।


 घर में बनते कितने व्यंजन,

 नए-नए स्वाद चखाता संडे।


लेकिन प्यारी मम्मी जी का,

 काम बहुत बढ़वाता संडे।


 मुन्नी यों मम्मी से पूछे,

 रोज नहीं क्यों आता संडे।

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(5) नील गगन के प्यारे तारे!,

नील गगन के प्यारे तारे!,

 कितने सुंदर कितने न्यारे।

 आसमान में ऊँचे ऐसे।

 चमके हो हीरे के जैसे।


 चाँद तुम्हारे पापा शायद,

 साथ तुम्हारे आते हैं। 

शैतानी न करो कोई तुम, 

हर पल यह समझाते हैं।


 कितने भाई तुम्हारे हैं ये।

 एक ही जैसे दिखते हो।

 सोच-सोच हैरानी होती, 

नभ में कैसे टिकते हो। 


क्या तुम भी विद्यालय जाते?,

 किस कक्षा में पढ़ते हो? 

हम बच्चों के जैसे तुम भी,

 क्या आपस में लड़ते हो? 


ओ तारे! चमकीलापन यह

 तुमने कैसे पाया है? 

सच-सच बतलाना तुम भैया,

 किसने तुम्हें बनाया है?


✍️ दीपक गोस्वामी 'चिराग'

शिव बाबा सदन, कृष्णाकुंज

बहजोई (सम्भल) 244410

 उत्तर प्रदेश, भारत

मो. नं.- 9548812618

ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com

रविवार, 8 मई 2022

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग का गीत---- पाती माँ के नाम लिखूँ


कभी-कभी मन करता मेरा, पाती माँ के नाम लिखूँ।

राम-राम, सत श्री अकाल या,दिल से उसे सलाम लिखूँ।


 उसके उदर पला तो उसको, मिलते कितने कष्ट रहे,

प्रसव पीर सहने से पहले, अनगिन थे आघात सहे।।

जो रातें थीं टहल गुजारी ,उन रातों के नाम लिखूँ।

कभी-कभी मन करता मेरा ........................... 


घुटमन-घुटमन मैं चलता था,ताली बजा बुलाती थी।

फिर-फिर कर लेती थी बलैयाँ,गोद ले चाँद दिखाती थी।

जो माँ मुझसे बातें करती, रोज सुबह और शाम लिखूँ।

कभी-कभी मन करता मेरा ..............................


मुझको नींद न जब आती थी, थपकी दे दुलराती थी।

 जाग-जाग कर रात-रात भर ,लोरी सुना सुलाती थी।

राजा-रानी के अफसाने, परी-कथाएं तमाम लिखूँ।

कभी-कभी मन करता मेरा .........................


लिख दूँ सब बचपन की बातें,वर्षा की काली रातें।

बिजली कौंधी हृदय लगाती,चुम्बन की दे सौगातें।

माँ की महिमा लिखी न जाए,चाहे आठों याम लिखूँ।

कभी-कभी मन करता मेरा ...........................


✍️  दीपक गोस्वामी 'चिराग'

शिव बाबा सदन

(निकट एस.बी. कान्वेंट स्कूल)

कृष्णा कुंज, बहजोई

(सम्भल ) 244410 उ.प्र.

चलभाष 9548812618

ईमेल -deepakchirag.goswami@gmail.com

सोमवार, 10 जनवरी 2022

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद सम्भल) के साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग की रचना ---- वर्ण क्रम में वैज्ञानिकता, भाषा बहुत महान है हिन्दी।


भारत माँ की शान है हिन्दी

सनातनी पहचान है हिन्दी ।


पैंसठ प्रतिशत जन की भाषा,

पूरा हिन्दुस्तान है हिन्दी


भारत की थाती की वाहक,

संस्कृत की संतान है हिन्दी। 


भोजपुरी, अवधी, नेपाली,

 बृज की मात समान है हिन्दी।


वर्ण क्रम में वैज्ञानिकता,

भाषा बहुत महान है  हिन्दी।


ग्यारह स्वर इकतालीस व्यंजन,

वर्ण-चिह्नों की खान है हिन्दी।


ढाई लाख की शब्द सम्पदा,

छंद व रस प्रधान  है हिन्दी।


इसमें नहिं अपवाद कहीं भी,

सीखो तो आसान है हिन्दी।


तुलसी,सूर, जायसी,रहिमन,

घनानंद ,रसखान है हिन्दी।


मीरा के पग की रुनझुन है,

भूषण की भी बान है हिन्दी।


कबिरा की फक्कड़ता इसमें,

खुसरों का अभिमान है हिन्दी।


नीर भरी दुःख की बदली है,

दिनकर की भी आन है हिन्दी।


बच्चन की ये मधुशाला है,

नीरज का भी गान है हिन्दी।


यह किरीट सब भाषाओं की,

कवियों को वरदान है हिन्दी।


✍️दीपक गोस्वामी 'चिराग'

 बहजोई (सम्भल) उ.  प्र., भारत

मो. 9548812618

शनिवार, 17 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद सम्भल )निवासी साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग की रचना ----माता उर बस जाओ,मन आज पुकारा है, मतलब की दुनिया में, तू एक सहारा है


माता उर बस जाओ,मन आज पुकारा है।

मतलब की दुनिया में, तू एक सहारा है।


जग के सम्बंधों ने, यह मन झुलसाया है।

पर तेरी ममता ने तो, मरहम ही लगाया है।

माँ! तेरा यह आँचल,जगती से न्यारा है।

मतलब की दुनिया में......................


यह मन मेरा दुखिया, माँ! इत-उत डोले है।

तेरी राहें तक-तक कर, ये नैना बोले हैं।

माँ! तेरा यह दर्शन,सबसे ही प्यारा है।

मतलब की दुनिया में.......................


जीवन में सुख-दुख तो, दिन-रैन से आते हैं।

पर माँ  तेरे सम्बल, मुझे पार लगाते हैं।

माँ! मेरा यह जीवन, तूने  संँवारा है।

मतलब की दुनिया में......................


✍️दीपक गोस्वामी 'चिराग'

शिव बाबा सदन, कृष्णा कुंज 

बहजोई.( सम्भल) पिन 244410

मो. 9548812618

ईमेल-

deepakchirag.goswami@gmail.com

शनिवार, 10 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग का गीत -----इस धरा का, इस धरा पर,सब धरा रह जाएगा


मान या मत मान बंदे,सार यह तू पाएगा।

इस धरा का, इस धरा पर,सब धरा रह जाएगा।


यह तेरा, वह मेरा जग में, कैसी मिथ्या माया है?,

सबसे कर तू प्रीत जगत में, कोई नहीं पराया है।

जेब क़फ़न में कहाँ है होती, कोन तुझे समझाएगा?,

इस धरा का, इस धरा पर,सब धरा रह जाएगा.....


लोभ,मोह जिनके हित करता, करम का फल नहीं बाँटेंगे

चित्रगुप्त जब पोथी खोले,अलग राह ही छाँटेंगे।

जो है बोया वही कटेगा, और न कुछ भी पाएगा,

इस धरा का, इस धरा पर,सब धरा रह जाएगा.......

आज जवानी कल है बुढ़ापा, अंतकाल निश्चित आए।

तुझको जाना है हरि-द्वारे, प्राणी तू क्यों बिसराए।

मरा-मरा ही रट ले बंदे,राम-राम हो जाएगा।

✍️दीपक गोस्वामी 'चिराग'

शिव बाबा सदन, कृष्णा कुंज बहजोई (सम्भल) 244410 उ. प्र.

चलभाष-9548812618

ईमेल -deepakchirag.goswami@gmail.com

प्रकाशित कृति - भाव पंछी (काव्य संग्रह)  प्रकाशन  वर्ष  -   2017

सोमवार, 27 जुलाई 2020

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग की काव्य कृति ‘भाव पंछी’ की रजनी सिंह द्वारा की गई समीक्षा

‘‘भाव पंछी जब पंख पसारे, उड़ा कल्पना लोक।
कुछ यथार्थ कुछ अभिनव, ढूंढा रहस्य भूलोक।
शब्दों की गूँथी माला, बेसुध पी रसववन्ती प्याला।
खोज-खोज अक्षर मोती, छन्द्धबद्ध नवनीत आला।
वश में कब रहता मनवा, भावुक कवि अनियंत्रित।
नभ के पार विचर पहुंची ,भाव-पंछी मुग्ध मोहित।’’
          मेरी उपरोक्त  काव्य पंक्तियाँ कवि दीपक गोस्वामी ‘चिराग’ की कृति को आद्योपांत पढ़ने के पश्चात् उमड़ पड़ी। वास्तव में कवि हृदय संवेदनाओं का उमड़ता हुआ सागर है जिसमें अपार बहुमूल्य वेशकीमती रत्नों का ढेर भरा पड़ा है। जितना उसमें डूबा उतना ही खजाना पा लिया। कवि संवेदनाओं के संसार में डूबकर अक्षरों की सुगढ़ माला का गुंठन करता है, उसमें कल्पना लोक की आकर्षक स्वप्निल दृश्यावली के साथ सार्थकता का सम्बन्ध भी अपना स्थान रखता है। साथ ही अपने भोगे, देखे और महसूस किये वातावरण से उत्पन्न आनन्द, उदासी, कलह और विवशता का चित्रण अपनी काव्य-प्रतिमा के सहारे व्यक्त करता है। यह संसार जितना सुकोमल संवेदनाओं से पूरित प्रतिभावान कवि का होगा उतनी ही विकलता उसकी काव्य मंजरी में रची-बसी होगी और पाठक उसे पढ़ने को उत्प्रेरित होगा। दीपक गोस्वामी इस उद्देश्य की पूर्ति करने में काफी हद तक सफल माने जायेंगे। यद्यपि काव्य-प्रतिभा का निखार जीवनभर ऊँचाईयाँ छूता रहता है। गोस्वामी ने अपने प्रथम काव्य-संग्रह में विभिन्न विषयों पर अपनी कलम चलाई है। वर्तमान में समाज को उद्वेलित करने वाली घटनाएँ कवि के मन को छूती हैं।

‘आह कब तक यों जलेंगे, लोग मेरे देश के,
   जुल्म ये कितना सहेंगे, लोग मेरे देश के।            (पृष्ठ 83)

तथा
     यह कैसा धर्मवाद है? यह कैसा कर्मवाद है?
            यह कैसा रे! जिहाद है?                       (पृष्ठ 133)

और -
खाता-पीता है भारत का, फिर भी पाक -पाक चिल्लाय।

दूसरी तरफ प्यार का अहसास कवि निम्न पंक्तियों में उमड़ता है।
            मेरे खत का, जबाब आया है।
            यार खत में, गुलाब आया है।         
 ,(पृष्ठ 67)

एवं -

    रूप की धूप से, पल भर में, पिघल जाओगे।
  उम्र की सीढ़ियाँ, चिकनी हैं, फिसल जाओगे।       (पृष्ठ 70)

            ‘प्रार्थना’ का भोलापन ईश्वर को सदैव प्रिय रहा है।
कवि‘चिराग’ पीछे नहीं हैं, प्रभु से दया मांगने में -

दया करना प्रभो! हम पर, कि तेरा ही सहारा है।
हैं बालक भोले-भाले हम, पिता तू सबसे न्यारा है।        (पृष्ठ 109)
         
उपरोक्त काव्य-धारा दर्शाती है कि कवि ‘गोस्वामी’ के संवेदनात्मक हृदय संसार में भावों का पंछी भटकता हुआ समाज-परिवार-राष्ट्र सबके प्रति कुछ कहने के लिए विकल है। भ्रूण-हत्या से द्रवित कवि पुकार उठता है -

            मत मार मुझे ओ माँ, मैं हूँ तेरी छाया।
            मैं भी दुनिया देखूँ, मन मेरा हर्षाया।

            सहज और सरल भाषा में रचित कविताएं क्लिष्टता से दूर पाठक के मन पर प्रभाव डालती हैं। अन्त में गोस्वामी की एक कविता प्रकृति रानी के सबसे उन्मुक्त उत्सव बसन्त की छटा इस प्रकार मन मोहती है कि कवि गा उठता है -

ओ! बसंत ऋतुराज पधारो, स्वागत आज तुम्हारा है।
मादक मोहक रूप तुम्हारा, सब ऋतुओं से न्यारा है।




* कृति : भाव पंछी (काव्य)
*रचनाकार : दीपक गोस्वामी 'चिराग'
*प्रकाशन :अंजुमन प्रकाशन इलाहाबाद,उ. प्र.
*प्रथम संस्करण : 2017 मूल्य : ₹ 140

*समीक्षक :  रजनी सिंह
रजनी विला, डिबाई
बुलंदशहर, उ. प्र.

रविवार, 14 जून 2020

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद संभल ) निवासी साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग का गीत ---कभी-कभी मन करता मेरा, पाती माँ के नाम लिखूँ....


कभी-कभी मन करता मेरा, पाती माँ के नाम लिखूँ।
राम-राम, सत श्री अकाल या,दिल से उसे सलाम लिखूँ।

उसके उदर पला तो उसको, मिलते कितने कष्ट रहे,
प्रसव पीर सहने से पहले, अनगिन थे आघात सहे।।
जो रातें थीं टहल गुजारी ,उन रातों के नाम लिखूँ।
कभी-कभी मन करता मेरा .......

घुटमन-घुटमन मैं चलता था,ताली बजा बुलाती थी।
फिर-फिर कर लेती थी बलैयाँ,गोद ले चाँद दिखाती थी।
जो माँ मुझसे बातें करती, रोज सुबह और शाम लिखूँ।
कभी-कभी मन करता मेरा ......

मुझको नींद न जब आती थी, थपकी दे दुलराती थी।
जाग-जाग कर रात-रात भर ,लोरी सुना सुलाती थी।
राजा-रानी के अफसाने, परी-कथाएं तमाम लिखूँ।
कभी-कभी मन करता मेरा .......

लिख दूँ सब बचपन की बातें,वर्षा की काली रातें।
बिजली कौंधी हृदय लगाती,चुम्बन की दे सौगातें।
माँ की महिमा लिखी न जाए,चाहे आठों याम लिखूँ।
कभी-कभी मन करता मेरा .........

✍️ दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिव बाबा सदन
(निकट एस.बी. कान्वेंट स्कूल)
कृष्णा कुंज
बहजोई 244410
जनपद सम्भल 
उत्तर प्रदेश, भारत
 मोबाइल फोन नंबर 9548812618