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सोमवार, 1 अप्रैल 2024

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता का गीत ....मतदान केंद्र पर जायेंगे हम जाकर बटन दबायेंगे


मतदान केंद्र पर जायेंगे

हम जाकर बटन दबायेंगे

हर इक मतदाता वोट करे
आँधी -तूफ़ाँ से नहीं डरे
हम मिलकर मुहिम चलाएंगे
मतदान केंद्र पर जाएंगे

कितना पावन उत्सव आया
वादों का मौसम फिर लाया
हम अपनी अक्ल लगाएंगे
मतदान केंद्र पर जाएंगे

दिन भर के सारे काम छोड़
सब मतभेदों को बाम छोड़
हम अपना फ़र्ज़ निभाएंगे
मतदान केंद्र पर जाएंगे

✍️डॉ अर्चना गुप्ता

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत



मंगलवार, 27 जून 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता के गीत संग्रह "मेघ गोरे हुए सांवरे" की मीनाक्षी ठाकुर द्वारा की गई समीक्षा ....सांस्कृतिक मूल्यों को समेटे ,प्रेम के आभूषणों से सुसज्जित, समाज में जागृति की ज्योति जलाते गीत

 सृष्टि के आरंभ में जब चारो ओर मौन था, नदियों का जल मूक होकर बह रहा था. पक्षी गुनगुनाते न थे.भँवरे गुंजन न करते थे .पवन भी मौन होकर निर्विकार भाव से बहती थी, प्रकृति के सौंदर्य के प्रति मानव मन में भावनाएँ शून्य थीं , तब सृष्टि के प्रति  मानव की यह उदासीनता देखकर भगवान शिव ने अपना डमरू  बजाकर नाद की उत्पत्ति  की,  और फिर ब्रह्मा जी के निर्देशानुसार माँ शारदे ने  अपनी वीणा को बजाकर  मधुर वाणी को जन्म दिया.जिसके फलस्वरूप नदियाँ कलकल करने लगीं ,पक्षी चहचहाने लगे. बादल गरजने लगे, पवन सनन- सनन  का शोर मचाती इधर से उधर बहने लगी. हर ओर गीत - संगीत बजने लगा. मानव मन की भावनाएँ मुखरित होकर शब्दों का आलिंगन करने लगीं तथा स्वर और ताल की लहरियों पर नृत्य करते गीत का अवतरण हुआ. तबसे लेकर आज तक गीत लोकजीवन का अभिन्न अंग  बने हुए हैं. गीत मानव मन की सबसे सहज व सशक्त अभिव्यक्ति है ही, इसके अतिरिक्त    काव्यपुरुष की कंचन काया से उत्पन्न विभिन्न विधाओं की रश्मियों में  सबसे चमकदार व अलंकृत विधा भी  गीत ही है.गीत  का उद्देश्य केवल मानव मन को आनंदित  करना ही नहीं है,अपितु  लोक कल्याण भी है. लोककल्याण हेतु ज्ञान का रूखा टुकड़ा पर्याप्त नहीं था .अतः  जनमानस के स्मृति पटल पर  ज्ञान को चिर स्थायी रखने हेतु , रूखे ज्ञान को विभिन्न रसों व छंदो में डुबोकर गीत के रूप में प्रस्तुत किया गया . इसी क्रम में डॉ अर्चना गुप्ता जी का यह गीत संग्रह " मेघ गोरे हुए साँवरे" इस उद्देश्य  की पूर्ति मे सफल जान पड़ता है.

आपका यह गीत संग्रह ,शिल्प की कसी हुई देह में छंदो के आकर्षक परिधान पहने, पूरी  सजधज के साथ  आपको  गीतकारों की अग्रिम पंक्ति में लाकर खड़ा कर  रहा है.गीतमाला का आरंभ पृष्ठ 17 पर  माँ शारदे की वंदना से होता है

कर रही हूँ वंदना दिल से करो स्वीकार माँ

लाई हूँ मैं भावनाओं के सुगंधित हार मांँ

ओज भर आवाज में तुम सर गमों का ज्ञान दो

गा सकूँ गुणगान मन से भाव में भर प्रान दो

कर सकूँ अपने समर्पित मैं तुम्हें उद्धार माँ

कर रही हूँ वंदना दिल से करो स्वीकार माँ

गीत कवयित्री डॉ अर्चना गुप्ता जी अपने शीर्षक गीत पृष्ठ संख्या 21 गीत नं. 2  "मेघ गोरे हुए सांवरे" से ही पाठकों के हृदय को स्पर्श कर जाती हैं. जब एक प्रेयसी के कोरे मन पर प्रियतम  की सांँवरी छवि अंकित होती है, तब मन की उमंगें मादक घटाएँ बन कर बरस- बरस  कर गाने लगती हैं.. 

मेघ गोरे हुए सांवरे

देख थिरके मेरे पांव रे

बह रही संदली सी पवन

आज बस मे नही मेरा मन

झूमकर गीत गाने लगीं

स्वप्न अनगिन सजाने लगी

कल्पनाओं में मैं खो गयी

याद आने लगे गाँव रे

देख थिरके मेरे पाँव रे.

डॉ अर्चना गुप्ता जी की पावन लेखनी जब भावों के रेशमी धागों में शब्दों के  मोती पिरोकर ,गीतों का सुकोमल हार तैयार करती है ,तब एक  श्रृंगारिक कोमलता अनायास ही पाठकों के हृदय को स्पर्श कर जाती है... पृष्ठ नं.22पर  "प्यार के हार फिर मुस्कुराने लगे" गीत की पंक्तियाँ  देखिएगा.. 

पोरुओं से उन्हें हम उठाने लगे

अश्रु भी उनको मोती के दाने लगे

जब पिरोया उन्होंने प्रणय डोर में

प्यार के हार फिर मुस्कुराने लगे

संयोग  और वियोग , दोनो ही परिस्थितियों में कवयित्री ने प्रेम की उत्कंठा को बड़े यत्नपूर्वक संजोया है.प्रेम की मार्मिक अभिव्यक्ति, जब होठों के स्थान पर आंखों से निकली तो दुख और बिछोह  की पीड़ा के खारेपन  ने आपकी लेखनी की  व्यंजना शक्ति   को और भी अधिक मारक बना  दिया है.पृष्ठ नं. 55 पर  गीत संख्या 32 के बोल इस प्रकार हैं.

बह रहा है आंख से खारा समंदर

ज़िन्दगी कुछ इस तरह से  रो रही है

रात की खामोशियाँ हैं और हम हैं

बात दिल की आँसुओं से हो रही है

नींद आंखों मे जगह लेती नहीं है

स्वप्न के उपहार भी देती नहीं है

जग रहे हैं हम और दुनिया सो रही है

बात दिल की आंसुओं से हो रही है

मगर श्रृंगार लिख कर ही आप ने अपने कर्तव्य की इति श्री नहीं की है.. आपकी लेखनी जीवन की  सोयी हुई आशा को झंझोड़ती है और उसे उठकर,कर्तव्य पथ पर चलने का आह्वान भी करती है . पृष्ठ संख्या 47 पर गीत सं.25 की पंक्तियाँ देखिएगा... 

पार्थ विकट हालात बहुत है मगर सामना करना होगा

अपना धनुष उठाकर तुमको, अब अपनों से लड़ना होगा

समझो जीवन एक समर है, मुख मत मोड़ो सच्चाई से

लड़ना होगा आज समर में, तुमको अपने ही भाई से

रिश्ते- नाते, संगी- साथी, आज भूलना होगा सबको

और धर्म का पालन करने, सत्य मार्ग पर चलना होगा

अपना धनुष उठाकर तुमको, अब अपनो से लड़ना होगा

डॉ. अर्चना गुप्ता जी का नारी सुलभ मन  कभी प्रेयसी बन कर लाजवंती के पौधे सा सकुचाया तो , कभी मां बनकर बच्चों को दुलारता दिखता  है . कभी पत्नी बनकर गृहस्थी की पोथी बांँचता  है, तो कभी बहन बनकर भाई के साथ बिताये पल याद कर भावुक हो उठता है और जब यही मन बेटी बना तो पिता के प्रति प्रेम, स्नेह, आदर, और कृतज्ञता की नदी बन भावनाओं के सारे तटबंधों को तोड़ , गीत बनकर बह चला.पृष्ठ संख्या 65 पर  गीत संख्या 38 हर बेटी के मन को छूती रचना अति उत्कृष्ट श्रेणी में रखी जायेगी .गीत की पंक्तियाँ बेहद मार्मिक बन पड़ी हैं... 

मेरे अंदर जो बहती है, उस नदिया की धार पिता

भूल नहीं सकती जीवन भर, मेरा पहला प्यार पिता

मेरी इच्छाओं के आगे, वे फौरन झुक जाते थे

मगर कभी मेरी आँखों में, आँसू देख न पाते थे

मेरे ही सारे सपनों को देते थे आकार पिता

भूल नहीं सकतीं जीवन भर मेरा पहला प्यार पिता 

आपकी कलम ने जब देशभक्ति की  हुंकार भरी तो भारतीय नारी के आदर्श मूल्यों का पूरा चित्र ही गीत के माध्यम से खींच दिया, जब वो अपने पति को देश सेवा के लिए  हंँसते- हँसते  विदा करती है..तब. पृष्ठ संख्या 113 ,गीत संख्या 76 पर ओजस्वी कलम बोल उठती है

जाओ साजन अब तुम्हे कर्तव्य है अपना निभाना

राह देखूंगी तुम्हारी शीघ्र ही तुम लौट आना

सहचरी हूँ वीर की मै , जानती हूँ धीर धरना

ध्यान देना काम पर चिंता जरा मेरी न करना

भाल तुम माँ भारती का, नभ तलक ऊंचा उठाना

जाओ साजन अब तुम्हे कर्तव्य है अपना निभाना

 इसी क्रम में एक नन्ही बच्ची के माध्यम से एक सैनिक के परिवार जनो की मन: स्थिति पर लिखा गीत पढ़कर तो आंखे स्वयं को भीगने से नहीं रोक पायीं.... पृष्ठ संख्या 121 ,गीत संख्या 82..

सीमा पर रहते हो पापा, माना मुश्किल है घर आना

कितना याद सभी करते हैं, चाहूँ मै बस ये बतलाना

दादी बाबा की आंखों में, पापा सूनापन दिखता है

मम्मी का तकिया भी अक्सर मुझको गीला मिलता है

देख तुम्हारी तस्वीरों को, अपना मन बहलाते रहते, 

गले मुझे लिपटा लेते ये, जब मैं चाहूँ कुछ समझाना

कितना याद सभी करते हैं, चाहूँ मैं बस ये बतलाना

इसी क्रम में आपकी लेखनी ने जब तिरंगे के रंगों को मिलाकर माँ भारती का श्रृंगार किया तो अखंड भारत की तस्वीर जीवंत हो उठी .पृष्ठ संख्या 117 पर .हिंदुस्तान की शान में  लिखा ,भारत सरकार द्वारा दस हजार रूपये. की धनराशि से पुरस्कृत  गीत नं. 79 आम और खास सभी पाठकों से पूरे सौ में सौ अंक प्राप्त करता प्रतीत होता है.गीत के बोल हैं... 

इसकी माटी चंदन जैसी, जन गन मन है गान

जग में सबसे प्यारा है ये अपना हिंदुस्तान

है पहचान तिरंगा इसकी, सबसे ऊंची शान

जग में सबसे प्यारा है ये अपना हिंदुस्तान

सर का ताज हिमालय इसका, नदियों का आँचल है

ऋषियों मुनियों के तपबल से, पावन इसका जल है

वेद पुराणों से मिलता है, हमें यहाँ पर ज्ञान

जग में सबसे प्यारा है ये, अपना हिंदुस्तान

इसके अतिरिक्त वक्त हमारे भी हो जाना, ये सूर्यदेव हमको लगते पिता से, कुछ तो अजीब हैं हम, ओ चंदा कल जल्दी आना, पावन गंगा की धारा, मैं धरा ही रही हो गये तुम गगन. आदि गीत आपकी काव्यकला का उत्कृष्ट प्रमाण देते हैं.

डा. अर्चना जी के गीतों की भाषा -शैली सभी मानकों पर खरी उतरती हुई,आम बोलचाल की भाषा है,शब्द कहीं से भी जबरन थोपे  हुए प्रतीत नहीं होते हैं. आपकी लेखनी पर- पीड़ा की सशक्त अभिव्यक्ति करने में भी सफल रही है. सांस्कृतिक मूल्यों को समेटे सभी गीत गेयता, लय, ताल व संगीत से अलंकृत हैं.प्रेम के आभूषणों से सुसज्जित, समाज में जागृति की ज्योति जलाते, उत्सवों को मनाते, प्रकृति के सानिध्य में अध्यात्म की वीणा बजाते और देश सेवा को समर्पित गीतों का यह संग्रह , सुंदर छपाई, जिल्द कवर पर छपे मनभावन वर्षा ऋतु के चित्र के साथ रोचक व प्रशंसनीय बन पड़ा है . मेरा विश्वास है कि  डा. अर्चना गुप्ता जी के ये साँवरे सलोने गीत हर वर्ग के  पाठकों का मन मोह लेंगे.


कृति
: मेघ गोरे हुए सांँवरे (गीत संग्रह) 

कवयित्री : डॉ अर्चना गुप्ता

प्रकाशक : साहित्यपीडिया पब्लिशिंग, नोएडा 201301

प्रकाशन वर्ष : 2021

मूल्य : 299₹


समीक्षक
: मीनाक्षी ठाकुर

मिलन विहार

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत 



मंगलवार, 13 जून 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता के बाल कविता संग्रह "नन्ही परी चिया" की राजीव प्रखर द्वारा की गई समीक्षा---बाल मन को साकार अभिव्यक्ति देती इक्यावन कविताएं

 

सरल व सुबोध भाषा-शैली एवं कहन में रची गई बाल कविताएं साहित्य जगत में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। इस क्षेत्र में इनकी हमेशा से मांग भी रही है। बड़े होकर बच्चों की बात तो सभी कर लेते हैं परन्तु, जब एक बड़े के भीतर छिपा बच्चा कविता के रूप में साकार होकर बाहर आ जाये तो यह स्वाभाविक ही है कि वह कृति बच्चों के साथ-साथ बड़ों में भी पर्याप्त लोकप्रियता पाती है। कवयित्री डॉ. अर्चना गुप्ता की समर्थ व सशक्त लेखनी से निकला बाल कविता-संग्रह 'नन्ही परी चिया' ऐसी ही उत्कृष्ट श्रृंखला की एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में साहित्यिक समाज के सम्मुख है। चार-चार पंक्तियों की अति संक्षिप्त परन्तु बाल मन को साकार अभिव्यक्ति देती कुल इक्यावन उत्कृष्ट रचनाओं का यह संग्रह इस बात को स्पष्ट कर रहा है कि कवयित्री ने मन के भीतर छिपे बैठे इस बच्चे को अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए बिल्कुल खुला छोड़ दिया है। यही कारण है कि इन सभी रचनाओं में, बड़ों के भीतर छिपा बच्चा मुखर होकर अपनी बात रख सका है। अध्यात्म, पर्यावरण, मानवीय मूल्य, बच्चों का  स्वाभाविक नटखटपन, देश प्रेम इत्यादि जीवन से जुड़े सभी पक्षों को चार-चार पंक्तियों की सरल एवं सुबोध रचनाओं के माध्यम से अभिव्यक्त कर देना, देखने व सुनने में जितना सरल प्रतीत होता है उतना है नहीं परन्तु कवयित्री ने ऐसा कर दिखाया है। कृति का प्रारंभ पृष्ठ 9 पर चार पंक्तियों की सुंदर "प्रार्थना" से होता है। सरल व संक्षिप्त होते हुए भी वंदना हृदय को सीधे-सीधे स्पर्श कर रही है, पंक्तियाॅं देखें -

"ईश्वर ऐसा ज्ञान हमें दो 

बना भला इंसान हमें दो 

कुछ ऐसा करके दिखलायें

जग में ऊंचा नाम कमायें"

इसी क्रम में पृष्ठ 10 पर उपलब्ध रचना "कोयल रानी" में  बच्चा एक पक्षी से बहुत ही प्यारी भाषा में बतियाता है, पंक्तियाॅं पाठक को प्रफुल्लित कर रही हैं -

"ज़रा बताओ कोयल रानी 

क्यों है इतनी मीठी बानी 

कुहू-कुहू जब तुम गाती हो

हम सबके मन को भाती हो"

इसी क्रम में एक अन्य महत्वपूर्ण रचना "नन्ही परी चिया" शीर्षक से पृष्ठ 11 पर उपलब्ध है जो मात्र चार पंक्तियों में बेटियों के महत्व  को सुंदरता से स्पष्ट कर रही है। मनोरंजन के साथ यह रचना समाज को एक संदेश भी दे जाती है -

"नन्ही एक परी घर आई 

झोली भर कर ख़ुशियां लाई 

चिया नाम से सभी बुलाते 

नख़रे उसके खूब उठाते"

इसी सरल व सुबोध भाषा शैली के साथ बिल्ली मौसी (पृष्ठ 12), हाथी दादा (पृष्ठ 13), गधे राम जी (पृष्ठ 14), कबूतर (पृष्ठ 15), बकरी (पृष्ठ 16), बादल (पृष्ठ 17), इत्यादि रचनाएं आती हैं जो बाल-मन को अभिव्यक्ति देती हुई कहीं न कहीं एक सार्थक संदेश भी दे रही हैं। इक्यावन मनोरंजक परन्तु सार्थक बाल रचनाओं की यह मनभावन माला पृष्ठ 59 पर उपलब्ध "15 अगस्त" नामक एक और सुंदर बाल कविता के साथ समापन पर आती है। देश प्रेम व एकता से ओतप्रोत चार पंक्तियों की यह संक्षिप्त रचना भी पाठक-हृदय का गहराई से स्पर्श रही है -

"स्वतंत्रता का दिवस मनायें 

आओ झंडे को फहरायें 

राष्ट्रगान सब मिलकर गायें

भारत माॅं को शीश नवायें"

कुल मिलाकर एक ऐसा अनोखा एवं अत्यंत उपयोगी संग्रह, जिसकी रचनाओं को बच्चे सरलतापूर्वक कंठस्थ भी कर सकते हैं। यह भी निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि कवयित्री ने इन हृदयस्पर्शी चतुष्पदियों को मात्र रचा ही नहीं अपितु, मन में छिपे उस भोले भाले परन्तु जिज्ञासु बच्चे से वार्तालाप भी किया है। मुझे यह कहने में भी कोई आपत्ति नहीं कि परिपक्व/अनुभवी पाठकगण भले ही इस सशक्त कृति का मूल्यांकन छंद/ विधान इत्यादि के पैमाने पर करें परन्तु, यह भी सत्य है कि बच्चों के कोमल मन अथवा मनोविज्ञान को समझना सरल बात बिल्कुल नहीं है। इसे तो बच्चा बनकर ही समझा जा सकता है। जब हम उनकी कोमल भावनाओं की बात करें, तो हमें अपना "बड़प्पन" एक तरफ उठाकर रखते हुए, बच्चों की दृष्टि से ही उन्हें देखना चाहिए। चूंकि कवयित्री ने इस संग्रह में स्वयं एक अबोध बच्चा बनते हुए अपनी सशक्त लेखनी चलाई है, यही कारण है कि यह संग्रह  बिना किसी लाग-लपेट के, मनमोहक लय-ताल के साथ, बच्चों व बड़ों सभी के हृदय को भीतर तक स्पर्श करने में समर्थ सिद्ध हुआ है, ऐसा मैं मानता हूॅं। 

कुल मिलाकर अत्यंत सरल व सुबोध भाषा-शैली सहित आकर्षक छपाई एवं साज-सज्जा के साथ, पेपरबैक संस्करण में उपलब्ध यह कृति अपने उद्देश्य में मेरे विचार से पूर्णतया सफल तथा स्तरीय बाल-विद्यालयों के कोर्स एवं स्तरीय पुस्तकालयों में स्थान पाने के सर्वथा योग्य है।




कृति
: नन्ही परी चिया (बाल कविता-संग्रह)

कवयित्री : डॉ. अर्चना गुप्ता

प्रकाशक: साहित्यपीडिया पब्लिशिंग, नोएडा

प्रकाशन वर्ष : 2022

मूल्य: 99₹


समीक्षक
: राजीव प्रखर

डिप्टी गंज

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत




मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता का बाल गीत ....जंगल की होली


लो आया मस्ती भरा, होली का त्यौहार
जंगल में होने लगी, रंगों की बौछार

भरी बाल्टी रंग से, लेकर बैठे शेर
छोडूंगा अब मैं नहीं,लगा रहे हैं टेर
हाथी दादा सूंड से, मारे जल की धार
लो आया मस्ती भरा, होली का त्यौहार

बंदर मामा कम नहीं, बहुत बड़े शैतान
बैठे ऊँचे पेड़ पर, ले पिचकारी तान
लाये थे बाज़ार से, वो कुछ रंग उधार
लो आया मस्ती भरा, होली का त्यौहार

छिपती छिपती फिर रहीं, बिल्ली मौसी आज
चूहों ने रँग डालकर, किया उन्हें नाराज़
पर कुछ कर सकती नहीं,बैठी खाये खार
लो आया मस्ती भरा, होली का त्यौहार

हिरनी ने गुझिया बना, सबको दी आवाज
सभी खा गयी लोमड़ी,ज़रा न आयी लाज़
और टपकती रह गयी, सबके मुँह से लार
लो आया मस्ती भरा, होली का त्यौहार

✍️ डॉ अर्चना गुप्ता

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

रविवार, 8 मई 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की रचना --माँ से महके घर का कोना कोना है

 


जितना माँ पन्नों में पूजी जाती है                                                घर में उतना मान कहाँ वो पाती है

होता उसका गान बड़ा कविताओं में
शब्दों से व्याख्यान बड़ा कविताओं में
जितनी उसकी महिमा गाई जाती है
घर में उतना मान कहाँ वो पाती है

माँ से महके घर का कोना कोना है
होता उसका प्यार खरा ज्यूँ सोना है
जितनी वो अपनी ममता बरसाती है
घर में उतना मान कहाँ वो पाती है

बचपन में जो माँ से अलग न होते थे
उसके आँचल में ही छुपकर सोते थे
आज उन्हें वो माँ ही नहीं सुहाती है
घर में उतना मान कहाँ वो पाती है

कहने को तो उत्सव खूब मनाते हैं
मातृदिवस पर आसन पर बैठाते हैं
दुनिया इस दिन जितना प्यार लुटाती है
घर में उतना मान कहाँ वो पाती है


✍️ डॉ अर्चना गुप्ता

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

रविवार, 20 जून 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता का गीत ---भूल नहीं सकती जीवन भर मेरा पहला प्यार पिता ..... साथ में दस दोहे


दस दोहे

मिले पिता से हौसला, और असीमित प्यार 

इनके ही आधार पर ,टिका हुआ परिवार

बच्चों के सुख के लिये, पिता लुटाते प्रान

अपने सारे स्वप्न भी, कर   देते कुर्बान

मिले पिता के नाम से, हम को हर पहचान 

कोई भी होता नहीं,   प्यारा  पिता समान

मिले पिता के रूप में, धरती पर भगवान 

इनका करना चाहिये, हमें सदा सम्मान 

पापा रहते आजकल,घर में बनकर मित्र 

जीवन शैली के बहुत, बदल गये हैं चित्र

पापा बाहर से कड़क, अंदर होते मोम 

खुद पीते गम का गरल, बच्चों को दे सोम 

पापा जब भी बाँटते, अनुभव की सौगात

बच्चों को कड़वी लगे, तब उनकी हर  बात

पापा साये की तरह, रहते हर पल साथ 

कैसे भी हों रास्ते, नहीं छोड़ते हाथ

पापा से है हर खुशी,  मम्मी का श्रृंगार 

मुखिया घर के हैं यही ,पालें घर परिवार

पापा मम्मी साथ में,चलें मिलाकर ताल

इन दोनों की छाँव में,घर होता खुशहाल 

✍️ डॉ अर्चना गुप्ता, मुरादाबाद

रविवार, 9 मई 2021