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मंगलवार, 30 जुलाई 2024

मुरादाबाद के साहित्यकार ज़मीर दरवेश की बाल कविता ....यह मुंह और मसूर की दाल


 یہ منہ اور مسور کی دا

यह मुंह और मसूर की दाल


 پیارے بچو اک بلی تھی،

 کہلاتی تھی شیر کی موسی

प्यारे बच्चों इक बिल्ली थी,

कहलाती थी शेर की मौसी।


پڑھ کے نصیحت کی کچھ باتیں،

 کرتی پھرتی تھی تقریریں

पढ़  के नसीहत की कुछ बातें,

करती फिरती थी तक़रीरें।


اتنا چیختی تھی مائک پر،

اٹھ جاتے تھے بچے ڈر کر ۔

इतना चीख़ती  थी माइक पर,

उठ जाते थे बच्चे डर कर।


گھڑتی تھی ولیوں کی کہانی،

جھوٹی کی تھی جھوٹی نانی۔

घड़ती थी वलियों की कहानी ,

झूठी  की  थी  झूठी  नानी ।


یوں ہی چالاکی کی بدولت 

کھانے لگ گئی گھر گھر دعوت

यूं ही चालाकी की बदौलत,

खाने लग गई घर-घर दावत।


خوب اڑانے لگی وہ بھائی،

 دودھ ملائی چکن فرائی

ख़ूब उड़ाने लगी वह भाई,

दूध मलाई चिकन फ्राई ।


اک دن بولی بھائی بہنو،

 سادہ کھاؤ سادہ پہنو

इक दिन बोली,' भाई बहनो'

सदा खाओ सदा पहनो'


کھایا کرو تم دال مسور کی،

 ملا کرے گی بے حد نیکی

खाया कीजे दाल मसूर की

मिला  करेगी बेएहद नेकी ।


اس دن اس کی باتیں سن کر,

 اثر  ہوا  سننے  والوں  پر

उस दिन उसकी बातें सुनकर,

असर हुआ सुनने वालों पर।


 جہاں ملے تھا چکن فرائی،

 انہوں نے اس دن دال بنائی۔

जहां मिले था चिकन फ्रा़ई,उ

उन्होंने उस दिन दाल बनाई।


دال کو دیکھ کے بولی، 'بھائی 

 آج کہاں ہے چکن فرائی ؟'

दाल को देखके बोली,' भाई!

आज कहां है चिकन फ्रा़ई?'


اس پر گھر کا مالک بولا،

 موسی تم نے ہی تو کہا تھا

इस पर घर का मालिक बोला,

मौसी तुम ने ही तो कहा था ۔۔


 اسے ملے گی بے حد نیکی،

 جو کھائے گا دال مسور کی

मिलेगी उसको बेहद नेकी,

जो खाएगा दाल मसूर की


 بولی  بلی  تم   بُدھو  ہو،

 یہ تو نصیحت تھی اوروں کو

बोली बिल्ली,' तुम बुद्धू हो,

यह तो नसीहत थी औरों को।


میں بھی اگر کھاؤں گی دالیں،

 کیا لوں گی کر کے تقریریں

मैं भी अगर खाऊंगी दालें, 

क्या लूंगी करके तक़रीरें ?


 مرے   لیے   تو   لاؤ   مال،

' یہ منہ اور مسور کی دال!

मिरे लिए तो लाओ माल,

यह मुंह और मसूर की दाल ।

✍️ज़मीर दरवेश

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

शुक्रवार, 13 अक्टूबर 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार ज़मीर दरवेश की ग़ज़ल ...तोड़ना है घमंड पर्वत का, चल इसे रास्ता किया जाए!

 


جب کوئی فیصلہ کِیا جائے

دل سے بھی مشورہ کِیا جائے۔

जब कोई फ़ैसला किया जाए,

 दिल से भी मशविरा किया जाए।

خود کو ہی آئِنہ دکھانا ہے،

 آ  تجھے  آئِنہ  کِیا  جائے۔

ख़ुद को ही आइना दिखाना है,

 आ तुझे आइना किया जाए ।

کی ہے تا زندگی وفا پہ وفا ،

 اور اے عشق کیا کِیا جائے۔

की है ता ज़िन्दगी वफ़ा  पे वफ़ा,

 और ए इश्क़ क्या किया जाए।

 یہاں ظالم کے ہوش اڑائے ہیں،

یہاں  سجدہ ادا کِیا جائے۔

यहां ज़ालिम के होश उड़ाएं हैं,

 यहां सजदा अदा किया जाए।

توڑنا ہے گھمنڈ پربت کا ،

چل اسے راستہ کِیا جائے

तोड़ना है घमंड पर्वत का,

 चल इसे रास्ता किया जाए!

ہے جو بے بس کے آنسوؤں کی لڑی،

 اس  کو  موجِ  بلا   کِیا  جائے !

हैं जो बेबस के आंसूओं की लड़ी,

 उसको मौजे-बला किया जाए।

✍️ज़मीर दरवेश                ضمیر درویش

गुरुवार, 5 नवंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार ज़मीर दरवेश की बाल कविता --- प्यासी चिड़िया


मरी पड़ी थी चिड़िया एक, 

देखके बोला बच्चा  एक.. 


किसने इसे मारा है  मम्मी, 

पता चले वो कौन है पापी? 


मम्मी बोलीं - हम भी तुम भी, 

इसको मारने के हैं  दोषी। 


कितनी पड़ी हुई है गर्मी, 

यह चिड़ाया बेहद प्यासी थी। 


तरस न इस पर किसी को आया, 

किसी ने पानी नहीं पिलाया। 


छतों मुंडेरों पर भी आई, 

पानी की इक बूंद न पाई। 


बच्चे की आंखें भर आईं, 

मम्मी भी उसकी पछताईं। 


झट पट रक्खा छत पर पानी, 

साथ में रक्खा कुछ दाना भी। 

✍️ ज़मीर दरवेश, मुरादाबाद

پیاسی چڑیا.... 


مری پڑی تھی چڑیا ایک، 

دیکھکے بولا بچہ ایک. 


کس نے اسے مارا ہے ممّی، 

پتا چلے وہ کون ہے پاپی؟ 


ممّی بولیں - ہم بھی تُم بھی، 

اسکو مارنے کے ہیں دوشی. 


کتنی پڑی ہوئی ہے گرمی، 

یہ چڑیا بےحد پیاسی تھی. 


ترس نہ اس پر کسی کو آیا، 

کسی نے پانی نہیں پلایا. 


چھتوں مُنڈیروں تک بھی آئی، 

پانی کی اک بوند نہ پائے! 


بچّے کی آنکھیں بھر آئیِں، 

ممّی بھی اسکی پچھتائیں. 


جھٹ پٹ رکھّا چھت پر پانی، 

ساتھ میں رکھّا کچھ دانہ بھی. 

(ضمیر درویش)

रविवार, 20 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार ज़मीर दरवेश की ग़ज़ल ...... बुज़ुर्ग पेड़ से करके चले सलाम दुआ, हवा को चाहिए पासे अदब निभा के चले!

بہت وہ چل نہیں پاۓ جو بچ بچاکے چلے، 

وہی چلے جو کلیجے پہ تیر کھا کے چلے! 

बहुत वो चल नहीं पाए जो बच बचाके चले, 

वही चले जो कलेजे पे तीर खाके चले! 


بزرگ پیڑ سے کرکے چلے  سلام دعا،

ہوا کوچاہیے پاس ِادب نبھا کے چلے ! 

बुज़ुर्ग पेड़ से करके चले सलाम दुआ, 

हवा को चाहिए पासे अदब निभा के चले! 


یہ میری خو  ہے مخالف ہوا کے چلتا ہوں، 

وہ اور ہوگا کوئی ساتھ جو ہوا کے چلے!

यह मेरी ख़ू* है मुख़ालिफ़ हवा के चलता हूँ, 

वो और होगा कोई साथ जो हवा के चले! 


 ہنسا ہنسا کے چمن زار کردیا گھر کو ،

ہلاکے ہاتھ جو چلنے لگے رلا کے چلے! 

हंसा हंसा के चमनज़ार कर दिया घर को, 

हिलाके हाथ जो चलने लगे रुला के चले! 


دیارِ یار میں جانا ہو چاہے مقتل میں، 

مزہ تو جب ہے کہ دیوانہ سر اٹھا کے

 چلے! 

दायरे यार** में जाना हो चाहे मक़तल में, 

मज़ा तो जब है के दीवाना सर उठा के चले! 


 کسی چراغ کا لینا نہیں پڑا احسان، 

بہت اندھیرا ہُوا جب تو دل جلاکے چلے! 

किसी चराग़ का लेना नहीं पड़ा एहसान, 

बहुत अंधेरा हुआ जब तो दिल जलाके चले! 


چلے جو دشت میں اہلِ جنوں تو نقش ِقدم، 

بنا بنا کے چلے اور مٹا مٹا کے چلے! 

चले जो दश्त में एहले जुनूँ तो नक़्शे क़दम, 

बना बना के चले और मिटा मिटा के चले! 


عجب ہیں ہم بھی کہ ہجرت پہ  جارہے تھے مگر، 

اجاڑ کر نہ چلے گھر کو گھر سجاکے چلے! 

अजब हैं हम भी के हिजरत ***पे जा रहे थे मगर, 

उजाड़ कर न चले घर को घर सजा के चले! 


مٹانے جگنو چلے گھور اندھیرا تو خود کو، 

جلا جلا کے چلے اور بجھا بجھا کے چلے! 

मिटाने जुगनू चले घोर अंधेरा तो ख़ुद को, 

जला जला के चले और बुझा बुझाके चले! 


*आदत  ** मेहबूब का शहर*** मुस्तक़िल तौर पर अपने गाँव/ शहर को छोड़ जाना

  ✍️ज़मीर दरवेश, मुरादाबाद


 

रविवार, 1 मार्च 2020

यादगार आयोजन : मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था ‘अक्षरा’ के तत्वावधान में 8 दिसम्बर 2013 को आयोजित समारोह में मुरादाबाद के वरिष्ठ शायर ज़मीर ‘दरवेश’ को किया गया सम्मानित

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था ‘अक्षरा’ के तत्वावधान में हिमगिरी कॉलोनी, मुरादाबाद स्थित शिव मंदिर के सभागार में 8 दिसम्बर 2013 को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया जिसमें मुरादाबाद के वरिष्ठ शायर  ज़मीर ‘दरवेश’ को हिन्दी व उर्दू के क्षेत्र में किए गए समग्र साहित्यिक अवदान के लिए अंगवस्त्र, मानपत्र, प्रतीक चिन्ह, श्रीफल भेंटकर ‘देवराज वर्मा उत्कृष्ट साहित्य सृजन सम्मान-2013’ से सम्मानित किया गया।

   अंकित गुप्ता ‘अंक’ द्वारा प्रस्तुत मां सरस्वती वंदना से आरंभ कार्यक्रम में संस्था के संयोजक योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’ ने बताया कि कुछ अपरिहार्य कारणोंवश इस वर्ष ‘देवराज वर्मा उत्कृष्ट साहित्य सृजन सम्मान-2013’ हेतु प्रविष्टियां आमंत्रित नहीं की जा सकीं । अत: समग्र साहित्यिक अवदान को दृष्टिगत रखते हुए संस्था द्वारा सम्मान हेतु वरिष्ठ शायर ज़मीर ‘दरवेश’ के नाम का चयन किया गया। सम्मानित व्यक्तित्व श्री दरवेश के कृतित्व के संदर्भ में प्रकाश डालते हुए संस्था के संयोजक ने कहा-‘दरवेश जी का समूचा रचनाकर्म हिन्दी और उर्दू साहित्य जगत में एक अलग पहचान तो रखता ही है, महत्वपूर्ण स्थान भी रखता है। उनकी ग़ज़लों में मिठास का एक कारण उनकी कहन का निराला अंदाज़ भी है।  

   अध्यक्षता कर रहे विख्यात नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि ‘ज़मीर दरवेश की ग़ज़लें फ़िक्र और अहसास के नये क्षितिज से उदय होती हैं। उनकी ग़ज़लों के शेर हालात पर तंज भी करते हैं और मशविरे भी देते हैं।’ 

    मुख्य अतिथि प्रसिद्ध साहित्यकार  राजीव सक्सेना ने कहा कि ‘श्री दरवेश अपनी ग़ज़लों के माध्यम से चित्रकारी करते हैं, वह अपने शेरों में मुश्किल से मुश्किल विषय पर भी सहजता से अपनी बात कह जाते हैं। यही खासियत है कि उनकी ग़ज़लें श्रोताओं और पाठकों के दिल-दिमाग़ पर छा जाती हैं।’ 

      विशिष्ट अतिथि डॉ. ओम आचार्य ने कहा कि ‘बेहद खूबसूरत ग़ज़लें कहने वाले ज़मीर साहब शेर कहते समय भाषा की सहजता का विशेष ध्यान रखते हैं, उनके शेरों में बनावटीपन या दिखावा कहीं नहीं मिलता।’ 

     सुप्रसिद्ध शायर डॉ. कृष्णकुमार ‘नाज़’ ने कहा कि ‘बहुत कम लोगों को पता है कि ज़मीर साहब बेहतरीन शायर होने के साथ-साथ बहुत अच्छे बालकवि भी हैं। उन्होंने बच्चों के लिए अनेक कहानियाँ तो लिखी ही हैं बहुत सारी बाल कवितायें भी लिखी हैं जो विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर चर्चित भी हुई हैं।’ 

    कार्यक्रम में सम्मान के पश्चात ज़मीर ‘दरवेश’ के एकल काव्य-पाठ का भी आयोजन किया गया जिसमें उन्होंने अपनी कई ग़ज़लें प्रस्तुत करते हुए कहा-

 ‘हर शख़्स के चेहरे का भरम खोल रहा है

 कम्बख़्त ये आइना है सच बोल रहा है

 पैरों को ज़मीं जिसके नहीं छोड़ती वो भी

 पर अपने उड़ानों के लिए तोल रहा है’

 

‘घर के दरवाज़े हैं छोटे और तेरा क़द बड़ा

 इतना इतराकर न चल चौखट में सर लग जायेगा’


‘आदमी को इतना ख़ुदमुख़्तार होना चाहिए

 खुल के हँसना चाहिए, जीभर के रोना चाहिए’

 

‘मैं घर का कोई मसअला दफ़्तर नहीं लाता

 अन्दर की उदासी कभी बाहर नहीं लाता

 तन पर वही कपड़ों की कमी, धूप की किल्लत

 मेरे लिए कुछ और दिसम्बर नहीं लाता’

 

‘महकने लगती है आरी अगर चन्दन को छू जाये

 दुआ देते हैं हम उस तंज पर जो मन को छू जाये’

 कार्यक्रम में ब्रजभूषण सिंह गौतम ‘अनुराग’, अशोक विश्नोई, जिया ज़मीर, अतुल कुमार जौहरी, मनोज वर्मा ‘मनु’, शिवअवतार ‘सरस’, सतीश ‘सार्थक’, रामसिंह ‘निशंक’, विवेक कुमार ‘निर्मल’, अम्बरीश गर्ग, डा.मीना नक़वी, डा. प्रेमवती उपाध्याय, डा. पूनम बंसल, राजेश भारद्वाज, डॉ. अजय ‘अनुपम’, यू.पी.सक्सेना ‘अस्त’, रामदत्त द्विवेदी, रघुराज सिंह ‘निश्चल’, ओमकार सिंह ‘ओंकार’, समीर तिवारी, अंजना वर्मा, सुभाषिणी वर्मा, श्रेष्ठ वर्मा, प्रतिष्ठा वर्मा, दीक्षा वर्मा, रामेश्वरी देवी, पुष्पेन्द्र कुमार सिंह, देवेन्द्र सिंह एडवोकेट, प्रदीप कुमार, प्रेम कुमार, वेदप्रकाश वर्मा कादम्बिनी वर्मा आदि उपस्थित रहे । कार्यक्रम का संचालन आनंद कुमार ‘गौरव’ ने किया तथा आभार अभिव्यक्ति श्री मनोज वर्मा ‘मनु’ ने प्रस्तुत की ।