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मंगलवार, 9 जनवरी 2024

वर्ष 1965 में चर्चित बाल पत्रिका पराग में साहित्यकार श्री ओम प्रकाश आदित्य जी की एक कविता इतिहास का पर्चा प्रकाशित हुई थी। सत्रह वर्ष पश्चात यही पूरी कविता श्री रामावतार चेतन जी के नाम से पराग में ही वर्ष 1982 में प्रकाशित हुई । इस संदर्भ में मैंने आदरणीय श्री आदित्य जी को पत्र लिखा जिसका उन्होंने 5 जून 1982 को उत्तर दिया । आज पुरानी फाइलों में दबा यह पत्र मिला ।आप सभी के अवलोकनार्थ प्रस्तुत है ....…(उस समय मैं इंटर मीडिएट का विद्यार्थी था )

 




ॐ नम: शिवाय
 
जी 9/12, मालवीय नगर,
नई दिल्ली–17
5–6–82
प्रिय बेटे मनोज,
 सदा सुखी रहो !
तुम्हारा बहुत प्यारा पत्र मिला। तुम्हें मेरी कविताएं अच्छी लगती हैं इसके लिए मैं तुम्हें धन्यवाद देता हूं। मेरी कविता की कुछ पंक्तियां जैसा तुमने लिखा चेतन जी ने अपने नाम से पराग में प्रकाशित करा दी हैं । यह कोई नई बात नहीं है। साहित्य में इस प्रकार की चोरी और हेराफेरी सदा से चलती रही है और चल रही है। कोई भी लेखक अपनी रचनाओं को कहां-कहां देखता फिरेगा । मैंने अभी तक वह अंक नहीं देखा है तुम्हें इतने दिनों के पश्चात भी मेरी कविता का ध्यान रहा इससे तुम्हारी सजग साहित्यिक सुरुचि का परिचय मिलता है। ईश्वर से मेरी प्रार्थना है कि तुम्हें वे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में तुम्हारी बुद्धि के अनुसार उत्तरोत्तर अग्रसर करे। इस आशय का पत्र तुम पराग के संपादक को लिखकर उन्हें अवगत करा दो। वैसे मैं भी उन्हें एक पत्र लिखे दे रहा हूं। शेष शुभ 
तुम्हारा 
ओम प्रकाश आदित्य

मंगलवार, 6 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव सक्सेना के पत्र के उत्तर में प्रख्यात साहित्यकार गोपाल दास नीरज का यादगार पत्र । यह पत्र उन्होंने सत्रह वर्ष पूर्व 30 सितंबर 2003 को लिखा था ....…

 स्मृतिशेष महाकवि गोपालदास नीरज युवा साहित्यकारों को पत्रों के उत्तर  कम ही देते थे फिर भी मुरादाबाद के प्रसिद्ध कवि एवं बालसाहित्यकार दिग्गज मुरादाबादी जी के विशेष आग्रह पर मैंने  सन 2003 में एक पत्र उन्हें लिख ही दिया।दरअसल,नीरज जी की कश्मीर पर एक कविता पांचजन्य में छपी थी जिसमें छंद के कई दोष थे और छान्दसिक कविता के महारथी दिग्गज जी ने उन दोषों को  पकड़ लिया था । नीरज जी और छंद दोष,यह  मेरे  लिए भी एक हतप्रभ कर देने वाली बात थी।दिग्गज जी का आग्रह था कि इस कविता और उसके छान्दसिक दोषों को लेकर  मैं  नीरज जी को सीधे एक पत्र लिखूँ।बड़े संकोच और हीला हवाली के बाद आखिर  मैंने  नीरज जी को पत्र लिख ही दिया जिसका उन्होंने 30.09.03 को उत्तर भी मुझे भेज दिया।पत्र के आरंभ में नीरज जी ने अपनी कमी को स्वीकार नहीं किया किन्तु आखिर में चुपके से मान भी लिया।इसे  मैं एक बड़े कवि और शायद अपने समय के सर्वश्रेष्ठ कवि की महानता ही कहूंगा ।वरना आज तो  नवोदित कवि भी अपनी गलती कहाँ स्वीकार करते हैं?यहां प्रस्तुत हैं नीरज जी द्वारा मुझे लिखे गए पत्र की दो छवियां------



:::::::प्रस्तुति::::::::::
राजीव सक्सेना, मुरादाबाद

शनिवार, 3 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश के कहानी संग्रह "रवि की कहानियां" के संदर्भ में प्रख्यात गीतकार भारत भूषण द्वारा लिखा गया एक पत्र । यह पत्र उन्होंने रामपुर से प्रकाशित साप्ताहिक पत्र "सहकारी युग"के सम्पादक महेंद्र गुप्त जी को लिखा था ।



 8 - 5  -90

 प्रिय महेंद्र जी

        नमस्कार

                  प्रिय रवि की कहानियाँ पढ़ीं।  उनमें बहुत सुंदरता से  समाज की  विविध मानसिकता का चित्रण किया गया है । कुछ बहुत अच्छे अंश हैं। मैंने नोट कर लिए हैं  ।जैसे

 *पृष्ठ 19--  तैरती लाशों के बीच एक जिंदा समझ अभी जवान है 

 *प्रष्ठ 27-- गर्मियों की रातें काटना ... नहीं है ।

 *पृष्ठ 28--  रात के अंधेरे में कमाया धन ... नसीब ।

 *पृष्ठ 46-- सचमुच आदमी ... हो गई  ।

 *पृष्ठ 49-- संसार में मृत्यु ... बाप मर गया है ।

 *पृष्ठ 50--  तुम इतनी  जिद कर ... चल बसा ।

 *पृष्ठ 73-- आपको तो..  पूछ  नहीं  थी  ।

 *पृष्ठ 75--  जीवन की कठोर  ..पाया जा सकता ।

 *पृष्ठ 77-- मुझे तो शाहजहाँ.... बेटे बहू ने। 

 *पृष्ठ 89-- लोग चाहते हैं  ...कुछ हो  ।

 *पृष्ठ 89--  पर देवत्व ... आतुर रहती हैं  ।

 *पृष्ठ 96 --हर बार... हो जाती है ।

            यह ऐसे अंश हैं जो रवि जी को एक अच्छी ऊँचाई तक ले जा सकते हैं। मैं मूलतः कवि हूँ, इसलिए गद्य  - लेखन के बारे में मेरी दृष्टि शायद कमजोर हो । किंतु फिर भी इस संग्रह की भावगत और वाक्यों के विन्यास की कुछ कमियों पर पुस्तक में ही निशान लगाए हैं। मैं चाहता हूँ कि उन पर रवि जी से ही बात हो तो अच्छा है । वैसे मैंने वर्षों से यह निश्चय किया हुआ है कि किसी को भी उसकी कमियाँ नहीं बताऊँगा । उसका अनुभव अधिकतर कड़वा रहा है । प्रिय रवि को मैं बहुत स्नेह करता हूँ। इसलिए चाहता हूँ कि यह प्रारंभिक दोष अभी दूर हो जाएँ, फिर आदत पड़ जाएगी इनकी ही । अब रिटायर भी हो रहा हूँ। इसलिए समयाभाव तो रहेगा नहीं । रामपुर अब मुझे भूल गया है। सम्मेलन अब पराए हो गए हैं भ्रष्ट हो गए हैं मैं क्योंकि भ्रष्ट नहीं हुआ हूँ, केवल इसी लिए निमंत्रण कम हो गए हैं। 

           अभी कुछ पूर्व आपके पत्र में रिपोर्ट पढ़ी थी कि शशि जी की स्मृति में सम्मेलन हुआ था । दुख भी हुआ आश्चर्य भी कि मुझे नहीं बुलाया जबकि शशि जी मुझे भी बहुत स्नेह करते थे ।

           मैं रामपुर आऊँगा किसी दिन ,केवल रवि जी से बात करने । अभी गर्मी बहुत है। 1 - 2 बारिश हो जाए। गर्मी के कारण अभी अभी एक सप्ताह में डिहाइड्रेशन से उठा हूँ। 5-6 कार्यक्रम ,एक दूरदर्शन का भी था, छोड़ दिए । कौन पैसे के लिए मरता फिरे ! यह वृत्ति आरंभ से ही रही । प्रभु कुछ अच्छा लिखाते रहें, ये ही बहुत है ।मैं पूर्ण संतुष्ट हूँ, इसी में ही। प्रिय रवि को मेरा स्नेह । बच्चों को आशीष। संभव हो तो पत्र दें।

           सप्रेम

       भारत भूषण


:::::::;प्रस्तुति ::::::::


रवि प्रकाश 
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451