सुरेन्द्र मोहन मिश्र लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
सुरेन्द्र मोहन मिश्र लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 29 जनवरी 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र पर केंद्रित राजीव सक्सेना का आलेख ----गंगा के गायक- -सुरेन्द्र मोहन मिश्र। यह आलेख उनकी कृति समय की रेत पर ( साहित्यकारों के व्यक्तित्व- कृतित्व पर एक दृष्टि ) में संगृहीत है। यह कृति वर्ष 2006 में श्री अशोक विश्नोई ने अपने सागर तरंग प्रकाशन मुरादाबाद द्वारा प्रकाशित की थी ।

 


किशोरावस्था की बहुत सी स्मृतियां कौधती हैं, यादों का प्रोजेक्टर छाया डालता है- मुरादाबाद नगर में हर साल होने वाले अखिल भारतीय कवि सम्मेलन और मुशायरे में मैं उपस्थित हूँ एक सुकुमार से दिखने वाले कवि मंच संचालक द्वारा कविता पाठ के लिए आमंत्रित किये जाने पर मंथर गति से मंच पर प्रकट होते है। पंडाल में उपस्थित श्रोताओं को हास्य रस में खूब सराबोर कर अपना स्थान ग्रहण करते है। खूब तालियां बजती है, खूब वाहवाही मिलती है।

     प्रोजेक्टर अपनी छाया डालकर चुप हो जाता है। ये है मुरादाबाद के प्रसिद्ध कवि सुरेन्द्र मोहन मिश्र। यद्यपि उनका निवास अधिकतर जनपद की तहसील चन्दौसी में ही रहा है किन्तु उनकी पहचान मुख्यतया मुरादाबाद के प्रमुख हास्य-कवि के रूप में ही है और 'हुल्लड़' मुरादाबादी की तरह काव्य मंच पर मुरादाबाद का प्रतिनिधित्व करते है।

    किन्तु अपने सुदीर्घ रचनाकाल में मिश्र जी ने केवल हास्य-रस की कविताएं ही नहीं रची है, काव्य की दूसरी विधाओं विशेषकर गीत को भी उन्होंने पर्याप्त समृद्ध किया है। काव्य रचना के अलावा मिश्र जी ने नाटक भी लिखे है। पुरातत्व और इतिहास पर भी उन्होंने काफी लिखा है। वे निरे कवि नहीं है बल्कि गद्य लेखन में भी खासे निष्णात हैं। सही बात तो यह है कि साहित्यकार के रूप में मिश्र जी के विविध रूप है। 'पवित्र पंवासा' शीर्षक ऐतिहासिक खण्ड-काव्य की भूमिका में प्रख्यात गीतकार शचीन्द्र भटनागर, मिश्र जी के बारे में लिखते है " श्री सुरेन्द्र मोहन मिश्र के गीतकार, व्यंग्यकार, पुरातत्वविद, लेखक, नाटककार आदि रूपों से मेरा परिचय विगत तीस-पैतीस वर्षों में समय-समय पर होता रहा है उनकी समर्थ लेखनी जिधर मुड़ी उधर ही उसने नये प्रतिमान स्थापित कर दिए।" यूँ मिश्र जी की पहचान मुख्यतया एक व्यंग्य कवि के रूप में ही अधिक है किन्तु उनके अन्दर बैठा कवि वास्तव में तभी हमारे सामने अपनी पूरी ‘फार्म' में आता है जब वे 'पवित्र पंवासा' जैसे ऐतिहासिक खण्ड-काव्य में अपनी ओजपूर्ण भाषा में हुंकार लगाते हैं।

     "है समर प्रयाण, वीर चल पड़े,

      छोड़ के कमान तीर चल पड़े, 

      शत्रु- सैन्य थी जहाँ दहाड़ती, 

      रक्त पान को अधीर चल पड़े।

      तेग चल पड़ीं, दुधार चल पड़े, 

      ढाल चल पड़ी, कुठार चल पड़े, 

      लौह के कवच, बदन सजे हुए,

       राजपूत धारदार चल पड़े। 

       केसरी निशान हाथ में लिए, 

       आखिरी प्रयाण हाथ में लिए,

        सिंह-पूत सिंह से निकल पड़े, 

        चंचला कृपाण हाथ में लिए । "

ऐसा कौन पाठक या श्रोता होगा जिसकी शिराओं में इन पंक्तियों के अवगाहन के बाद रक्त न खौल उठे। दरअसल, मिश्र जी जब वीर रस के काव्य की रचना कर रहे होते है तब वे जाने-अनजाने मध्ययुगीन चंदवरदाई, जगनिक या भूषण जैसे कवियों की परम्परा का अनुसरण ही नहीं कर रहे होते बल्कि उनके समीप खड़े दिखाई पड़ते है। मिश्र जी कथ्य की दृष्टि से ही नहीं बल्कि यति गति, लय या छन्द की दृष्टि से भी मध्ययुगीन कवियों से कमतर नहीं है। बल्कि कहीं-कहीं तो वे वीरगाथा काल के कवियों से भी ज्यादा मौलिक और विशिष्ट दिखाई पड़ते है। वीरगाथा काल के कवियों ने जहाँ अधिकांश काव्य रचना राज्याश्रय प्राप्त करने, आजीविका चलाने या अपने स्वामी शासक को प्रसन्न करने के लिए की है वही मिश्र जी ने ऐसी किसी बाध्यता के बिना निर्द्वन्द्व भाव से साहित्य रचना की है और उन्होंने स्थानीय इतिहास, लोक कथाओं या किवदंतियों को प्रश्नय दिया है। 

    मिश्र जी उन विरले हिन्दी साहित्यकारों में से है जिन्होंने स्थानीय इतिहास, विशेषकर जनपदीय इतिहास में काफी रुचि ली है। उनके 'चरित्र काव्य' का मुख्य आधार स्थानीय इतिहास रहा है। वृन्दावन लाल वर्मा जैसे महान साहित्यकारों ने जहाँ उपन्यासों के जरिये झांसी या बुन्देलखण्ड क्षेत्र के इतिहास को उजागर किया है वहीं मिश्र जी ने गंगा या राम गंगा के तीर पर बसे प्राचीन नगरों के इतिहास को अपने साहित्य सृजन का आधार बनाया है। ऐतिहासिक कथाओं पर साहित्य रचने वाले अपने पूर्ववर्ती साहित्यकारों से मिश्र जी इस दृष्टि से भी बिल्कुल अलग है कि उनमें से अधिकांश ने गद्य और पद्य दोनों में से किसी एक विधा में ही साहित्य रचना की है। किन्तु मिश्र जी ने गद्य-पद्य दोनों ही विधाओं में पर्याप्त मात्रा में साहित्य रचा है। एक ओर जहाँ उन्होंने 'पवित्र पंवासा' और 'मुरादाबाद अमरोहा के स्वतंत्रता सेनानी' जैसी पुस्तकें काव्य में रची है वहीं 'शहीद मोती सिंह' गद्य में रचा ऐतिहासिक उपन्यास है। उपरोक्त कृतियों के अतिरिक्त उन्होंने "इतिहास के झरोखे से संभल' और 'मुरादाबाद का स्वतंत्रता संग्राम' जैसी कृतियां भी रची है।

    स्थानीय इतिहास या जनपदीय इतिहास को मिश्र जी के समग्र लेखन के रूप में रेखांकित किया जा सकता है। दरअसल, स्थानीय इतिहास, लोककथाएं, किवंदंतियां मिश्र जी के साहित्य की 'लाइफलाइन' हैं और इनके बिना उनके साहित्य की कल्पना नहीं की जा सकती। स्थानीय इतिहास पर मिश्र जी का कार्य शोध के महत्व का है। अमर उजाला और दूसरी पत्र-पत्रिकाओं में लिखे उनके लेखों से न केवल रोचक ऐतिहासिक जानकारियां प्राप्त होती है बल्कि अतीत को खंगालने के मिश्र जी के एकल और भगीरथ प्रयासों और भीष्म संकल्प का भी हमें ज्ञान प्राप्त होता है।

    यद्यपि मिश्र जी का इतिहास अधिकांशतया जनश्रुतियों पर आधारित है किन्तु उनका साहित्य असंदिग्ध रूप से प्रमाणित है। पंवासा के राजा कमाल सिंह और राग केसरी, कैथल के बड़गूजर, संभल के रुस्तम खाँ और शहीद मोती सिंह कोई मिथकीय या काल्पनिक पात्र नहीं है बल्कि इतिहास है। हाँ, जब मिश्र जी इस इतिहास में कल्पना का समावेश कर देते हैं तब यह अतिरंजित भले ही लगता हो किन्तु यह उत्कृष्ट साहित्य का रूप अवश्य ले लेता है। किन्तु इसका अभिप्राय यह भी नहीं है कि मिश्र जी का रचा साहित्य अतिरंजना है। दरअसल, इतिहास और कल्पना दो ऐसे सूत्र है जो मिश्र जी के साहित्य में कुछ इस तरह गुँथे हुए है कि उन्हें पृथक चिह्नित किया जाना संभव नहीं है।

महान अंग्रेज साहित्यकार सर वाल्टर स्काट का नाम आज विश्व साहित्य में यदि आदर के साथ लिया जाता है तो वह इसलिए कि उन्होंने अपनी कृतियों में स्काटलैंड और इंग्लैण्ड के इतिहास, समकालीन जनजीवन, लोककथाओं, लोकपरम्पराओं, किवंदंतियों को पूरी ईमानदारी और कलात्मकता के साथ दर्ज़ कर प्रस्तुत किया है। ठीक यही काम मिश्र जी भी व्यापक स्तर पर न सही क्षेत्रीय अथवा स्थानीय स्तर पर करते रहे हैं। अब यदि ऐतिहासिक कथाओं और आख्यानों के गायन के लिए विलियम शेक्सपियर को 'वार्ड आफ एवन' और सर वाल्टर स्काट को 'विजर्ड आफ द नार्थ' कहा जा सकता है तो सुरेन्द्र मोहन मिश्र को भी 'गंगा का गायक' कहा जा सकता है क्योंकि उन्होंने अपने साहित्य में गांगेय क्षेत्र का विशद वर्णन किया है।

   तथ्य तो यह है कि लगभग दर्जन भर कृतियों के रचनाकार सुरेन्द्र मोहन मिश्र जी का सही आकलन आज तक नहीं किया गया है। लोग उन्हें एक हास्य कवि के रूप में ही जानते हैं। एक इतिहासकार और पुराशास्त्री के रूप में उनका आकलन किया जाना बाकी है। यह हिन्दी जगत का दुर्भाग्य है कि इतने बड़े कद के रचनाकार का समुचित मूल्यांकन तक नहीं हुआ है। यदि मिश्र जी अंग्रेजी भाषा में साहित्य रच रहे होते तो निश्चित ही उनका स्थान टामस ग्रे सरीखे कवियों के समकक्ष होता और उन पर दर्जनों शोध हो गये होते। किन्तु मिश्र जी ने इन सब बातों की कभी परवाह नहीं की है। 'एकला चलो' की तर्ज पर वे निरन्तर सृजनरत हैं और नयी पीढ़ी को तकनीक के घटाटोप से बाहर लाकर एक बार अपनी मिट्टी, अपनी जड़ों यानी अपने इतिहास से जोड़ने के लिए प्रयत्नशील हैं। 

( यह आलेख उस समय लिखा गया था जब श्री सुरेन्द्र मोहन मिश्र साहित्य साधना में रत थे )

✍️ राजीव सक्सेना

प्रभारी सहायक निदेशक (बचत) 

मथुरा , उत्तर प्रदेश, भारत



गुरुवार, 20 जनवरी 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार फरहत अली ख़ान का आलेख ....."श्री सुरेंद्र मोहन मिश्र: एक नायाब शख़्सियत"

 


स्मृति शेष सुरेंद्र मोहन मिश्र जी के बारे में मैंने पहले भी सुन रखा था, जिस से मुझे इतना इल्म हुआ था कि उन के पास बहुत पुरानी पांडुलिपियाँ और किताबें मौजूद थीं। इस के अलावा उन के बारे में जो कुछ भी जाना वो आज इस आयोजन के ज़रिए जाना। मंच पर शोहरत उन्हें एक हास्य-कवि के रूप में मिली, मगर उन में एक गीतकार की तड़प मौजूद थी। इस की वज़ाहत उन की किताब 'कविता नियोजन' में लिखी भूमिका से होती है, साथ ही डॉ. प्रेमवती साहिबा के उन के बारे में लिखे संस्मरण से भी यही बात ज़ाहिर होती है। उन्होंने 'पवित्र पँवासा' खण्डकाव्य रचा जो उन्हें एक अहम कवि के तौर पर स्थापित करता है। राजीव सक्सेना जी के आलेख से पता चलता है कि अपने खण्डकाव्य में उन्हों ने मक़ामी इतिहास को ख़ास जगह दी, ये उन की शख़्सियत का एक और नायाब पहलू है, जो सामने आता है।उन्होंने 'शहीद मोती सिंह' नाम से एक ऐतिहासिक उपन्यास लिखा, जो उन्हें उपन्यासकार के तौर पर पहचान देता है और उन्हें वृन्दावन लाल वर्मा जी जैसे ऐतिहासिक उपन्यासकारों की सफ़ में ले आता है।

इतिहास को जुनून की हद तक जीने की ये उन की ललक ही थी, जिस ने उन्हें एक ख़ास रचनाकार के तौर पर सँवारा और उन से वो सब लिखवाया जो अमूमन नहीं लिखा जाता है।

इंसानी तहज़ीब से मुहब्बत और उसे जानने-खोजने की चाहत ही ने उन्हें एक महान पुरातत्ववेत्ता बनाया।हमें उन से ये सब कुछ सीखने, अपने अंदर उतारने और सहेज कर रखने की ज़रूरत है।

✍️ फ़रहत अली ख़ान,

लाजपत नगर

मुरादाबाद 244001

रविवार, 16 जनवरी 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ मीरा कश्यप का आलेख.....सुरेन्द्र मोहन मिश्र का बहुआयामी व्यक्तित्व


अवशेषों और पुरातत्वों की खोज में ,यायावरों की भांति, अपनी संस्कृति और सभ्यताओं को सहेजने, सवांरने के लिए कोई यथार्थ का दामन थामे इतिहासकार तो हो सकता है, परन्तु कल्पना के पंख लगा प्रकृति के हास - उल्लास के गीत गाते,नवयौवन के मधुर कल्पना लोक में विचरते कवि  होना उसके बहुआयामी व्यक्तित्व का परिचायक बन जाता है ,जहाँ इतिहासकार होना ,व्यक्तित्व के रूखेपन को दर्शाता है वहीं इतिहासकार होकर कवि के कवित्व को बनाये रखना सुरेन्द्र मोहन मिश्र जी की कल्पनाशीलता जैसे सारी बातों का खण्डन कर रही हो । लेखक का हास्य रुप सबको दिखता है, परन्तु उस कठोर यथार्थ के भीतर बहते मीठे स्रोत को पहचानना हर किसी के वश में नहीं, लेकिन सुरेन्द्र मोहन जीवन की इन सारी कटुताओं के बीच कवि हृदय को जीवित रखने में सफल हुए हैं । वे इतिहासकार हैं तो पुरातत्ववेत्ता भी ,उपन्यासकार हैं तो कविता की मधुरता से ओतप्रोत भी ।उनके गीत मात्र हास भर नहीं है, उनके यहाँ प्रकृति इठलाती है, नर्तन करती है, हृदय में माधुर्य भी घोलती है--

दृग सम्मुख ये विशाल भूधर /ओढ़े है चांदी की चादर /**** झर-झर झरते शुचि निर्झर से / सरिता की लहरों के स्वर से /****** खग रव से मुझको गान मिला /मुझको मेरा उपहार मिला 

अल्पावस्था से ही उनको कविता का उपहार मिला समय के साथ वह प्रौढ़ होता चला गया। प्रेम और श्रृंगार के गीत रचते -रचते कवि कब सांसारिक दुखों से बोझिल हो नैराश्य से भर उठा --

  बनकर कितने स्वप्न मिटे हैं मेरे 

जल -जलकर कितने दीप बुझे हैं मेरे 

जग का ठुकराया प्यार तुम्हें मैं क्या दूँ

संसार के मिथ्या  प्रेम और आडम्बर से ऊबकर कवि कब लौकिक से पारलौकिक हो गया कि वह ईश्वर को प्रिय मान उन्हीं में अपने जीवन के सौंदर्य को तलाशने लगा --

 मेरे दुर्दिन में जब प्रियतम आते हैं 

नयनों में आ आंसू बन बह जाते हैं 

मेरे उर के कोमल छाले भी 

नभ के तारे बनकर मुस्काते हैं  

इस प्रकार जीवन के विविध रूपों को तलाशते हुए उदारमना कवि सुरेन्द्र मोहन जी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं ,उनमें इतिहासकार की भांति खरा यथार्थ है तो कल्पनाशीलता भी । इतिहास की वीथिका में विचरते हुए उनका कवि मन कभी भी थकता नहीं है ,ऐसा एक विराटमना व्यक्ति अपने जीवन में निरंतर कालजयी रचनाओं के साथ हमारे बीच अपनी उपस्थिति बनाने में सफल हो सका है तो वे हैं सुरेंद्र मोहन मिश्र ,यहीं उनकी रचनाओं की प्रासंगिकता भी है ---

 तेरे रंगीन विश्व में मुझे बहुत छला गया 

मिलन उम्मीद का विहग उड़ा कहीं चला गया 

सभी तो स्वार्थ में पले न बन सका कोई मेरा 

न जाने कौन विषमयी सुरा मुझे पिला गया 

अपने विविध आयामों में आभा बिखेरता वह महान व्यक्तित्व अपनी रचनाओं के साथ चिरकाल तक अविस्मरणीय रहेगा  ।

✍️ डॉ मीरा कश्यप

अध्यक्ष हिंदी विभाग

के.जी.के. महाविद्यालय मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत


बुधवार, 12 जनवरी 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र का ऐतिहासिक उपन्यास - शहीद मोती सिंह। यह कृति वर्ष 2001 में प्रतिमा प्रकाशन , दीनदयाल नगर ,मुरादाबाद द्वारा प्रकाशित की गई थी। स्मृतिशेष मिश्र जी की यह कृति मुझे 30 अक्टूबर 2004 को दैनिक जागरण के तत्कालीन स्थानीय संपादक डॉ अनुपम मार्कण्डेय जी ने प्रदान की थी ।


 क्लिक कीजिए और पढ़िए पूरी कृति

👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇

https://documentcloud.adobe.com/link/track?uri=urn:aaid:scds:US:e1d3f328-7137-4ab3-8bcc-e512516466d1

:::::::प्रस्तुति:::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मंगलवार, 11 जनवरी 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार एवं पुरातत्ववेत्ता स्मृति शेष सुरेंद्र मोहन मिश्र का गीत -----मद भरे लोचन सिहरती रात....। यह गीत लिया गया है वर्ष 1980 में प्रकाशित वार्षिक स्मारिका विनायक से । यह स्मारिका मेला गणेश चौथ चंदौसी के अवसर पर प्रकाशित की जाती है ---


 ::::::::प्रस्तुति:::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मुरादाबाद के साहित्यकार एवं पुरातत्ववेत्ता स्मृति शेष सुरेंद्र मोहन मिश्र का गीत -----मस्तक पर हिम किरीट आवरण, ....। यह गीत लिया गया है वर्ष 1977 में प्रकाशित वार्षिक स्मारिका विनायक से । यह स्मारिका मेला गणेश चौथ चंदौसी के अवसर पर प्रकाशित की जाती है ---


 
:::::;:प्रस्तुति:::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मुरादाबाद के साहित्यकार एवं पुरातत्ववेत्ता स्मृति शेष सुरेंद्र मोहन मिश्र का गीत ----- दीप खंडहरों के, सौ सौ खंडहरों के ...। यह गीत लिया गया है वर्ष 1976 में प्रकाशित वार्षिक स्मारिका विनायक से । यह स्मारिका मेला गणेश चौथ चंदौसी के अवसर पर प्रकाशित की जाती है ---


 
::::::प्रस्तुति::::::

डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र की काव्य कृति - मुरादाबाद और अमरोहा के स्वतंत्रता - सेनानी। यह कृति वर्ष 2003 में प्रतिमा प्रकाशन , दीनदयाल नगर ,मुरादाबाद द्वारा प्रकाशित की गई थी। स्मृतिशेष मिश्र जी ने अपनी यह कृति मुझे तीन जून 2004 को प्रदान की थी ।



 क्लिक कीजिए और पढ़िए पूरी कृति

👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇

https://documentcloud.adobe.com/link/track?uri=urn:aaid:scds:US:4ddceab9-df59-47fc-8d56-dacba222d90f

::::::::प्रस्तुति:::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

बुधवार, 29 दिसंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र की रचना --यहां भग्न मूर्ति का भाग हूं । यह रचना उन्होंने अपने दिल्ली प्रवास के दौरान लिखी थी । हमें यह रचना उपलब्ध कराई है उनके सुपुत्र अतुल मिश्र ने ।


मैं शिकारियों से घिरा हुआ, 

मैं थके हिरन सा डरा हुआ,

किसी राजधानी में खो गया,

मुझे क्या हुआ, मुझे क्या हुआ।


वहां लिख रहा था कहानियां,

वहां खोजता था निशानियां,

वहां कर रहा था खुदाइयां,

जहां ज्ञान-धन था दबा हुआ।


हैं पुरावशेष रखे जहां,

मृण्पात्र-शेष रखे जहां,

मुझे उस मकां का पता तो दो,

है बुतों से ही, जो सजा हुआ।


यह नया शहर भी अजीब है,

यहां हर शरीफ़ ग़रीब है,

यहां हर निगाह है अजनबी,

है सभी में ज़हर घुला हुआ।


वहां शब्द-शब्द का अर्थ था,

वहां शब्द-शब्द समर्थ था,

यहां आके सब ही भुला चुका,

वहां पुस्तकों का पढ़ा हुआ।


वहां मूर्ति थी किसी यक्ष की,

वहां यक्षिणी मेरे वक्ष थी,

यहां भग्न मूर्ति का भाग हूं,

ना जुड़ा हुआ, ना ढला हुआ।


वहां तितलियों को सुगंध दी,

वहां ज़िंदगी मेरी छंद थी,

यहां डाल-टूटा गुलाब हूं,

ना झरा हुआ, ना खिला हुआ।


वहां आंचलों ने सजा दिया,

यहां आंधियों ने हिला दिया,

मैं वो बदनसीब चिराग हूं,

ना धरा हुआ, ना जला हुआ।


✍️ सुरेंद्र मोहन मिश्र

::::प्रस्तुति::::::

अतुल मिश्र

सुपुत्र स्मृतिशेष सुरेंद्र मोहन मिश्र

चन्दौसी, जिला सम्भल

उत्तर प्रदेश, भारत


सोमवार, 27 दिसंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र की प्रथम काव्य कृति -- मधुगान । इस कृति में उनके 37 गीत हैं । इस कृति का प्रकाशन श्री योगेन्द्र मोहन मिश्र, काव्य कुटीर चन्दौसी द्वारा वर्ष 1951 में हुआ । हमें यह दुर्लभ कृति उपलब्ध कराई है उनके सुपुत्र श्री अतुल मिश्र जी ने ।


 क्लिक कीजिए और पढ़िए पूरी कृति

👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇

https://documentcloud.adobe.com/link/track?uri=urn:aaid:scds:US:05d1cb3b-7e31-4758-882d-d1c0ed426b4b

::::::::::प्रस्तुति:::::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

रविवार, 26 दिसंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र की दुर्लभ गीति काव्य कृति -- कल्पना कामिनी । इस कृति में उनके वर्ष 1951-52 में लिखे 51 गीत हैं । इस कृति का प्रकाशन काव्य कुटीर चन्दौसी द्वारा वर्ष 1955 में हुआ । हमें यह कृति उपलब्ध कराई है उनके सुपुत्र श्री अतुल मिश्र जी ने ।


 क्लिक कीजिए और पढ़िए पूरी कृति

👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇

https://documentcloud.adobe.com/link/track?uri=urn:aaid:scds:US:fcaa2113-5029-407d-aa67-9455ca2ef29c

::::::::प्रस्तुति::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मंगलवार, 23 नवंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार, इतिहासकार और पुरातत्ववेत्ता स्मृतिशेष सुरेंद्र मोहन मिश्र की ऐतिहासिक कृति - 'बदायूं के रण-बांकुरे राजपूत' । उनकी यह कृति सौजन्या मिश्र, प्रतिमा प्रकाशन चंदौसी, उत्तर प्रदेश, भारत द्वारा वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई । इस कृति में श्री मिश्र ने कठेरिया, गहरवार, गौतम,गौर, चौहान, चंदेल, जंघारा, तोमर, भाटी, बड़गूजर, बाछिल,बैस, राष्ट्रकूट और मुस्लिम राजपूतों का संक्षिप्त इतिहास प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत कृति श्री मिश्र जी ने मुझे 4 जुलाई 1994 को भेंट की थी।


 क्लिक कीजिए और पढ़िए पूरी कृति

👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇

https://documentcloud.adobe.com/link/track?uri=urn:aaid:scds:US:cc74bfc9-847f-480e-af55-bb579f087d38 

::::::::प्रस्तुति::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

सोमवार, 8 नवंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष सुरेंद्र मोहन मिश्र की ग़ज़ल --सारी ख़ुशियां न्यौंछावर कर आया हूं जिस गांव में, लिखना क्या अब भी ठंडक है, पीपल वाली गांव में,


सारी ख़ुशियां न्यौंछावर कर आया हूं जिस गांव में,

लिखना क्या अब भी ठंडक है, पीपल वाली गांव में,


क्या पड़ोस का कलुआ अब भी, पीकर जुआ खेलता है,

मंगलसूत्र बहू का गिरवीं, रख आता था दांव में।


क्या बच्चों की टोली अब भी, मुझे पूछने आती है,

मैं बंदी था, जिनकी मुस्कानों के सरल घिराव में।


बिन दहेज के कई लड़कियां, क्वांरी थीं उस टोले में,

लिखना, बिछुए झनक रहे हैं, अब किस-किसके पांव में।


कभी तलैया में कागज की नाव चलाया करता था,

अब ख़ुद ही दिल्ली में बैठा हूं कागज की नाव में।

(22 मार्च 1983) (दिल्ली-प्रवास)

✍️ सुरेंद्र मोहन मिश्र 


सोमवार, 22 मार्च 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र की आज 22 मार्च को पुण्यतिथि है । प्रस्तुत है उनका एक गीत ---अनजाने ज्ञान को सुरक्षित रखने में ही, पुरखों का आंगन बिक जाये, तो क्षमा करना !! यह गीत हमें उपलब्ध कराया है उनके सुपुत्र अतुल मिश्र ने ....


जीवन के लक्ष्य तक पहुंचने से पहले ही,

यदि स्वांसों का ऋण चुक जाये, तो क्षमा करना !!

आधा ही गायन रुक जाये, तो क्षमा करना !!!!


जीवन भर ये खारे आंसू ही बेचे हैं

सपन मोल लेने को,

कनक कन गला बेचे, मिट्टी के, पत्थर के 

रतन मोल लेने को !!


नये पथ बनाने में सुनो, वंशधर मेरे,

कुटिया का तृण-तृण बिक जाये, तो क्षमा करना !!


जब-जब भी पीड़ा से प्राण कसमसाते हैं

गान जन्म लेता है,

जब अपने पथ के ही, पत्थर ठुकराते हैं

ज्ञान जन्म लेता है !!


अनजाने ज्ञान को सुरक्षित रखने में ही,

पुरखों का आंगन बिक जाये, तो क्षमा करना !!


जो कुछ भी गा गये, यहां अनेक चातकगण

मेरा ही क्रंदन था,

यों तो मैं चंदा का चंदन भी छू लेता,

धरती का बंधन का  !!


मेरे जीवन भर के कर्ज़ को चुकाने में,

विधवा का कंगन बिक जाये, तो क्षमा करना !!!!

✍️  सुरेंद्र मोहन मिश्र.

शनिवार, 20 फ़रवरी 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र की काव्य कृति ---कविता नियोजन । इस कृति में उनकी सन 1972 से 1974 तक की 26 कविताएं संगृहीत हैं । इस कृति का प्रकाशन नवम्बर 1982 में प्रज्ञा प्रकाशन मंदिर चन्दौसी (उत्तर प्रदेश) से हुआ था । उनकी यह कृति मुझे डॉ विश्व अवतार जैमिनी जी ने प्रदान की थी ।



क्लिक कीजिए और पढ़िये

👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇

https://documentcloud.adobe.com/link/review?uri=urn:aaid:scds:US:7c935bee-40bb-44ee-957e-25199d349390

:::::::::प्रस्तुति:::::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

रविवार, 12 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र के व्यक्तित्त्व एवं कृतित्व पर "प्रगति मंगला" संस्था एटा द्वारा ऑनलाइन साहित्यिक परिचर्चा .....


प्रगति मंगला साहित्यिक संस्था एटा के तत्वावधान में ऑनलाइन  साहित्यिक परिचर्चा के क्रम में  शनिवार 11 जुलाई 2020 को राष्ट्रकवि उमाशंकर राही वात्सल्य धाम वृन्दावन के संयोजन व संचालन में मुरादाबाद के ख्याति लब्ध कवि व पुरातत्व वेत्ता स्वर्गीय श्री सुरेन्द्र मोहन मिश्र के कृतित्व व व्यक्तित्व पर परिचर्चा आयोजित की गयी। मुख्य अतिथि  मथुरा के वरिष्ठ साहित्यकार डा. रमाशंकर पाण्डेय तथा विशिष्ट अतिथि मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी रहे ।अध्यक्षता एटा के वरिष्ठ समालोचक व चिन्तक आचार्य डा. प्रेमीराम मिश्र ने की।
 
संस्था के संस्थापक कवि बलराम सरस ने सभी आगन्तुक अतिथियों व वक्ताओं का स्वागत करते हुए संस्था की गतिविधियों और आयोजन की रूपरेखा पर प्रकाश डाला।
संयोजक उमाशंकर राही ने श्री सुरेन्द्र मोहन मिश्र का परिचय दिया।उन्होंने बताया कि सुरेन्द्र मोहन मिश्र का जन्म 22 मई 1932 को मुरादाबाद जिले के चन्दौसी में हुआ था। वह बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। मात्र चौदह वर्ष की अवस्था में ही आपका दार्शनिक गीतों का पहला संग्रह 'मधुगान' पूर्ण हो गया था। 15 अप्रैल 1955 में शादी के दूसरे दिन ही मिश्र जी ने संग्रहालय की स्थापना की।फक्कड़ स्वभाव के व्यक्ति थे मिश्रा जी। झोला डालकर निकल पडते थे पुरातात्विक चीजों को ढूंढ़ने। मंचो पर बेशक हास्य कवि के रूप में विख्यात थे किन्तु वह मूलतः गीतकार थे।
मुख्य वक्ता चन्दौसी के श्री अतुल मिश्र ने  श्री सुरेन्द्र मोहन के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि सुरेन्द्र मोहन मिश्र का व्यक्तित्व इतना विशाल था कि मुरादाबाद के विशाल कवि सम्मेलन में प्रख्यात ओजस्वी कवि बालकवि बैरागी ने कहा था "मैं या मालवा का कोई कवि जब चन्दौसी के स्टेशन से गुजरता है तो सबसे पहले इस पावन धरती की मिट्टी को अपने माथे से लगाता है। जानते हो क्यों? क्योंकि उस सुरेंद्र की धरती है जिसने खुद जलकर सैकड़ों दियों को रोशनी दी है।" हास्यकवि सुरेन्द्र मोहन मिश्र कवि साहित्यकार के अतिरिक्त पुरातत्ववेत्ता भी थे।उनका पहला पुरावशेष एक हस्तलिखित ग्रन्थ था जो वे मुरादाबाद के एक पुराने कुएं से निकाल कर लाए थे।इसके बाद तो प्रागमौर्य, मौर्य,गुप्त और कुषाण कालीन पुरावशेष उन्हें आकर्षित करने लगे। कवि सम्मेलन से लौटने के पश्चात वह खंडहर ,वीरानों और प्राचीन टीलों से पुरावशेष एकत्रित करने निकल पड़ते थे।
 मुरादाबाद के  वरिष्ठ साहित्यकार डा. मनोज रस्तोगी ने  श्री सुरेन्द्र मोहन मिश्र के जन्म, शिक्षा व काव्ययात्रा पर विस्तार से प्रकाश डाला।उन्होंने बताया  कि सुरेन्द्र मोहन की पहली कवित्रा मात्र सोलह वर्ष की उम्र में दिल्ली के दैनिक सन्मार्ग में वर्ष 1948 में प्रकाशित हुई थी।व्यवसायी पिता लक्ष्मी उपासक थे और वह सरस्वती उपासक ।पिता पुत्र में यही वैचारिक संघर्ष रहता था।1951 में उनका पहला संग्रह मधुगान 1955 में कल्पना कामिनी प्रकाशित हुए।इसके बाद वह पुरातत्व के क्षेत्र में आ गये।उन्होंने ग्रन्थों को शोध का विषय बनाया।उन्होंने एकांकी नाटक भी लिखे।
 कवि मंजुल मयंक (फीरोजाबाद) ने सुरेन्द्र मोहन मिश्र के साथ काव्यमंचो की यात्रा के संस्मरण ताजा किये।मंजुल ने बताया एक दम गोरा चिट्टा चेहरा, छरहरा वदन ,खूबसूरत बोलती हुई आंखें ऐसा चमत्कारी व्यक्तित्व था उनका।
नई दिल्ली की आशा दिनकर आस ने कहा  एक महान गीतकार, शानदार कवि, पुरातत्ववेत्ता की जीवनी से परिचित कराने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। आदरणीय सुरेन्द्र मोहन मिश्र जी की अद्भुत लेखन शैली और देश की प्राचीन धरोहरों की सुरक्षा के लिए  किये गए अनन्य प्रयासों को सादर नमन ।
गाजियाबाद की कवियत्री सोनम यादव ने कहा कि साहित्य के साधक, प्रकृति के चितेरे, अद्भुत व्यक्तित्व के धनी आदरणीय श्री सुरेन्द्र मोहन मिश्र जी को जानकर, पढकर बहुत अच्छा लगा ऐसे अविस्मरणीय चरित्र हमारे पथ प्रदर्शक है हम उस परंपरा के अनुयायी हैं यह सब सोच कर ह्रदय रोमांचित हो जाता है
 नोएडा के साहित्यकार डा. सतीश पाठक ने भी अपने संस्मरण साझा करके जहां अपनी स्मृतियों को ताजा किया वहीं स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र के व्यक्तित्त्व पर भी रोशनी डाली ।
     
 मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डा. रमाशंकर पाण्डेय (मथुरा)ने कहा कि हास्य की रसधार बहाने वाले हास्यावतार सुरेन्द्र मोहन मिश्र गीतकार भी अच्छे थे।सामाजिक विसंगतियों को उन्होंने हास्य का विषय बनाया।कम शब्दों में बहुत कुछ कह देना श्रोताओं को तरंगायित कर देना यह उनकी विशेषता थी।वे श्रोता को सीधे कविता से जोड़ते थे। उनके प्रभाव शाली व्यक्तित्व का असर उनकी कविताओं में भी दिखता था।
अध्यक्षीय उद्बोधन में आचार्य डा. प्रेमीराम मिश्र ने कहा -प्रगति मंगला साहित्यिक मंच देश के चर्चित सुविख्यात कवियों पर परिचर्चा आयोजित कर सराहनीय कार्य कर रहा है। इसी क्रम में स्व. श्री सुरेन्द्र मोहन मिश्र के व्यक्तित्व व कृतित्व पर चर्चा कर उन्हें नयी पीढ़ी के साहित्कारों व कवियों से परिचित कराया है। सुरेन्द्र मोहन मिश्र जी जैसे पुरातात्त्विक चेतना से संगुफित कवि की कालजयी स्मृतियों को साकार करने का सुअवसर मिला।मैं यह जान कर आश्चर्यचकित हूं कि एक हास्य व्यंग्य का कवि पुरातात्विक जिज्ञासा का इतनी अधिक दीवानगी के साथ जीवन भर निर्वाह करता रहा। काव्यनाटक के अतिरिक्त उनकी पुरातात्विक महत्व की दुर्लभ 60पाण्डुलिपियाँ उनके कृतित्व का प्रमाण है।
अन्त में संस्था की पटल प्रशासक व साहित्यकार श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ गुना (मध्य प्रदेश) ने सभी आगन्तुकों का आभार व्यक्त किया।